परमेश्वर के दैनिक वचन : परमेश्वर को जानना | अंश 114
योना 3 तब यहोवा का यह वचन दूसरी बार योना के पास पहुँचा: "उठकर उस बड़े नगर नीनवे को जा, और जो बात मैं तुझ से कहूँगा, उसका उस में प्रचार कर।" तब योना यहोवा के वचन के अनुसार नीनवे को गया। नीनवे एक बहुत बड़ा नगर था, वह तीन दिन की यात्रा का था। योना ने नगर में प्रवेश करके एक दिन की यात्रा पूरी की, और यह प्रचार करता गया, "अब से चालीस दिन के बीतने पर नीनवे उलट दिया जाएगा।" तब नीनवे के मनुष्यों ने परमेश्वर के वचन की प्रतीति की; और उपवास का प्रचार किया गया और बड़े से लेकर छोटे तक सभों ने टाट ओढ़ा। तब यह समाचार नीनवे के राजा के कान में पहुँचा; और उसने सिंहासन पर से उठ, अपने राजकीय वस्त्र उतारकर टाट ओढ़ लिया, और राख पर बैठ गया। राजा ने प्रधानों से सम्मति लेकर नीनवे में इस आज्ञा का ढिंढोरा पिटवाया: "क्या मनुष्य, क्या गाय-बैल, क्या भेड़-बकरी, या अन्य पशु, कोई कुछ भी न खाए; वे न खाएँ और न पानी पीएँ। मनुष्य और पशु दोनों टाट ओढ़ें, और वे परमेश्वर की दोहाई चिल्ला-चिल्ला कर दें; और अपने कुमार्ग से फिरें; और उस उपद्रव से, जो वे करते हैं, पश्चाताप करें। सम्भव है, परमेश्वर दया करे और अपनी इच्छा बदल दे, और उसका भड़का हुआ कोप शान्त हो जाए और हम नष्ट होने से बच जाएँ।" जब परमेश्वर ने उनके कामों को देखा, कि वे कुमार्ग से फिर रहे हैं, तब परमेश्वर ने अपनी इच्छा बदल दी, और उनकी जो हानि करने की ठानी थी, उसको न किया।
यदि परमेश्वर में तुम्हारा विश्वास सच्चा है, तो तुम अकसर उसकी देखरेख प्राप्त करोगे
नीनवे के लोगों के प्रति परमेश्वर द्वारा अपने इरादे बदलने में कोई झिझक या ऐसी चीज़ शामिल नहीं थी, जो अस्पष्ट या अज्ञात हो। बल्कि, यह शुद्ध क्रोध से शुद्ध सहनशीलता में हुआ एक रूपांतरण था। यह परमेश्वर के सार का एक सच्चा प्रकटन है। परमेश्वर अपने कार्यों में कभी अस्थिर या संकोची नहीं होता; उसके कार्यों के पीछे के सिद्धांत और उद्देश्य स्पष्ट और पारदर्शी, शुद्ध और दोषरहित होते हैं, जिनमें कोई धोखा या षड्यंत्र बिलकुल भी मिला नहीं होता। दूसरे शब्दों में, परमेश्वर के सार में कोई अंधकार या बुराई शामिल नहीं होती। परमेश्वर नीनवे के नागरिकों से इसलिए क्रोधित हुआ, क्योंकि उनकी दुष्टता के कार्य उसकी नज़रों में आ गए थे; उस समय उसका क्रोध उसके सार से निकला था। किंतु जब परमेश्वर का कोप जाता रहा और उसने नीनवे के लोगों पर एक बार फिर से सहनशीलता दिखाई, तो वह सब जो उसने प्रकट किया, वह भी उसका अपना सार ही था। यह संपूर्ण परिवर्तन परमेश्वर के प्रति मनुष्य के रवैये में हुए बदलाव के कारण था। इस पूरी अवधि के दौरान परमेश्वर का अनुल्लंघनीय स्वभाव नहीं बदला, परमेश्वर का सहनशील सार नहीं बदला, परमेश्वर का प्रेममय और दयालु सार नहीं बदला। जब लोग दुष्टता के काम करते हैं और परमेश्वर को ठेस पहुँचाते हैं, तो वह उन पर क्रोध करता है। जब लोग सच में पश्चात्ताप करते हैं, तो परमेश्वर का हृदय बदलता है, और उसका क्रोध थम जाता है। जब लोग हठपूर्वक परमेश्वर का विरोध करते हैं, तो उसका कोप निरंतर बना रहता है और धीरे-धीरे उन्हें तब तक दबाता रहता है, जब तक वे नष्ट नहीं हो जाते। यह परमेश्वर के स्वभाव का सार है। परमेश्वर चाहे कोप प्रकट कर रहा हो या दया और प्रेममय करुणा, यह मनुष्य के हृदय की गहराइयों में परमेश्वर के प्रति उसका आचरण, व्यवहार और रवैया ही होता है, जो यह तय करता है कि परमेश्वर के स्वभाव के प्रकाशन के माध्यम से क्या व्यक्त होगा। यदि परमेश्वर किसी व्यक्ति पर निरंतर अपना क्रोध बनाए रखता है, तो निस्संदेह ऐसे व्यक्ति का हृदय परमेश्वर का विरोध करता है। चूँकि इस व्यक्ति ने कभी सच में पश्चात्ताप नहीं किया है, परमेश्वर के सम्मुख अपना सिर नहीं झुकाया है या परमेश्वर में सच्चा विश्वास नहीं रखा है, इसलिए उसने कभी परमेश्वर की दया और सहनशीलता प्राप्त नहीं की है। यदि कोई व्यक्ति अकसर परमेश्वर की देखरेख, उसकी दया और उसकी सहनशीलता प्राप्त करता है, तो निस्संदेह ऐसे व्यक्ति के हृदय में परमेश्वर के प्रति सच्चा विश्वास है, और उसका हृदय परमेश्वर के विरुद्ध नहीं है। यह व्यक्ति अकसर सच में परमेश्वर के सम्मुख पश्चात्ताप करता है; इसलिए, भले ही परमेश्वर का अनुशासन अकसर इस व्यक्ति के ऊपर आए, पर उसका कोप नहीं आएगा।
इस संक्षिप्त विवरण से लोग परमेश्वर के हृदय को देख सकते हैं, उसके सार की वास्तविकता को देख सकते हैं, और यह देख सकते हैं कि परमेश्वर का क्रोध और उसके हृदय के बदलाव बेवजह नहीं हैं। परमेश्वर द्वारा कुपित होने और अपना मन बदल लेने पर दिखाई गई स्पष्ट विषमता के बावजूद, जिससे लोग यह मानते हैं कि परमेश्वर के सार के इन दोनों पहलुओं—उसके क्रोध और उसकी सहनशीलता—के बीच एक बड़ा अलगाव या अंतर है, नीनवे के लोगों के पश्चात्ताप के प्रति परमेश्वर का रवैया एक बार फिर से लोगों को परमेश्वर के सच्चे स्वभाव का दूसरा पहलू दिखाता है। परमेश्वर के हृदय का बदलाव मनुष्य को सच में एक बार फिर से परमेश्वर की दया और प्रेममय करुणा की सच्चाई दिखाता है, और परमेश्वर के सार का सच्चा प्रकाशन दिखाता है। मनुष्य को मानना पड़ेगा कि परमेश्वर की दया और प्रेममय करुणा मिथक नहीं हैं, न ही वे मनगढ़ंत हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि उस क्षण परमेश्वर की भावना सच्ची थी, और परमेश्वर के हृदय का बदलाव सच्चा था—परमेश्वर ने वास्तव में एक बार फिर मनुष्य के ऊपर अपनी दया और सहनशीलता बरसाई थी।
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है II
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