परमेश्वर के दैनिक वचन : परमेश्वर को जानना | अंश 102

सृष्टिकर्ता की पहचान अद्वितीय है और तुम्हें बहुईश्वरवाद के विचार का पालन नहीं करना चाहिए

हालाँकि शैतान के कौशल और क्षमताएँ मनुष्य की तुलना में ज्यादा हैं, हालाँकि वह वे चीजें कर सकता है जो मनुष्य नहीं कर सकता, चाहे तुम शैतान के कार्यों से ईर्ष्या करो या उनकी आकांक्षा करो, चाहे तुम इन चीजों से घृणा करो या इनका तिरस्कार करो, चाहे तुम उन्हें देखने में सक्षम हो या न हो, और चाहे शैतान जितना भी हासिल कर सकता हो या जितने भी लोगों को धोखा देकर उनसे अपनी आराधना और अपना प्रतिष्ठापन करवा सकता हो, और चाहे तुम जैसे भी इसे परिभाषित करो, लेकिन तुम संभवतः यह नहीं कह सकते कि उसमें परमेश्वर का अधिकार और सामर्थ्य है। तुम्हें पता होना चाहिए कि परमेश्वर परमेश्वर है, केवल एक परमेश्वर है, और इसके अलावा, तुम्हें पता होना चाहिए कि केवल परमेश्वर के पास ही अधिकार है, कि केवल परमेश्वर के पास ही सभी चीजों पर नियंत्रण और शासन करने का सामर्थ्य है। सिर्फ इसलिए कि शैतान में लोगों को धोखा देने की क्षमता है और वह परमेश्वर का रूप धारण कर सकता है, परमेश्वर द्वारा बनाए गए चिह्नों और चमत्कारों की नकल कर सकता है, और उसने परमेश्वर के समान कार्य किए हैं, तुम गलती से मानते हो कि परमेश्वर अद्वितीय नहीं है, कि कई परमेश्वर हैं, कि इन अलग-अलग परमेश्वरों के पास केवल ज्यादा या कम कौशल हैं, और उनके सामर्थ्य के विस्तार में अंतर हैं। तुम उनके आगमन के क्रम में और उनकी उम्र के अनुसार उनकी महानता को श्रेणीबद्ध करते हो, और तुम गलत ढंग से यह मानते हो कि परमेश्वर के अलावा अन्य देवता भी हैं, और सोचते हो कि परमेश्वर का सामर्थ्य और अधिकार अद्वितीय नहीं हैं। अगर तुम्हारे ऐसे विचार हैं, अगर तुम परमेश्वर की अद्वितीयता को नहीं पहचानते, यह विश्वास नहीं करते कि केवल परमेश्वर के पास ही अधिकार है, और अगर तुम केवल बहुईश्वरवाद का पालन करते हो, तो मैं कहता हूँ कि तुम प्राणियों में सबसे नीच हो, तुम शैतान के सच्चे मूर्त रूप हो, और तुम पूरी तरह से बुरे व्यक्ति हो! क्या तुम लोग समझ रहे हो कि मैं ये वचन कहकर तुम लोगों को क्या सिखाने की कोशिश कर रहा हूँ? चाहे जो भी समय या स्थान हो, या जो भी तुम्हारी पृष्ठभूमि हो, तुम्हें किसी अन्य व्यक्ति, वस्तु या पदार्थ को परमेश्वर नहीं समझ लेना चाहिए। चाहे तुम परमेश्वर के अधिकार और स्वयं परमेश्वर के सार को कितना भी अज्ञेय या अगम्य महसूस करो, चाहे शैतान के कर्म और वचन तुम्हारी धारणा और कल्पना से कितने भी मेल खाएँ, चाहे वे तुम्हारे लिए कितने भी संतोषजनक हों, तुम मूर्ख मत बनो, इन अवधारणाओं में मत उलझो, परमेश्वर का अस्तित्व मत नकारो, परमेश्वर की पहचान और हैसियत मत नकारो, परमेश्वर को दरवाजे से बाहर मत करो और शैतान को अपने दिल के भीतर लाकर परमेश्वर का स्थान मत दो, उसे अपना परमेश्वर मत बनाओ। मुझे इसमें कोई संदेह नहीं कि तुम लोग ऐसा करने के परिणामों की कल्पना करने में सक्षम हो!

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I

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