परमेश्वर के दैनिक वचन : परमेश्वर को जानना | अंश 93

उत्पत्ति 17:4-6 देख, मेरी वाचा तेरे साथ बन्धी रहेगी, इसलिये तू जातियों के समूह का मूलपिता हो जाएगा। इसलिये अब से तेरा नाम अब्राम न रहेगा, परन्तु तेरा नाम अब्राहम होगा; क्योंकि मैं ने तुझे जातियों के समूह का मूलपिता ठहरा दिया है। मैं तुझे अत्यन्त फलवन्त करूँगा, और तुझ को जाति जाति का मूल बना दूँगा, और तेरे वंश में राजा उत्पन्न होंगे।

उत्पत्ति 18:18-19 अब्राहम से तो निश्‍चय एक बड़ी और सामर्थी जाति उपजेगी, और पृथ्वी की सारी जातियाँ उसके द्वारा आशीष पाएँगी। क्योंकि मैं जानता हूँ कि वह अपने पुत्रों और परिवार को, जो उसके पीछे रह जाएँगे, आज्ञा देगा कि वे यहोवा के मार्ग में अटल बने रहें, और धर्म और न्याय करते रहें; ताकि जो कुछ यहोवा ने अब्राहम के विषय में कहा है उसे पूरा करे।

उत्पत्ति 22:16-18 यहोवा की यह वाणी है, कि मैं अपनी ही यह शपथ खाता हूँ कि तू ने जो यह काम किया है कि अपने पुत्र, वरन् अपने एकलौते पुत्र को भी नहीं रख छोड़ा; इस कारण मैं निश्‍चय तुझे आशीष दूँगा; और निश्‍चय तेरे वंश को आकाश के तारागण, और समुद्र के तीर की बालू के किनकों के समान अनगिनित करूँगा, और तेरा वंश अपने शत्रुओं के नगरों का अधिकारी होगा; और पृथ्वी की सारी जातियाँ अपने को तेरे वंश के कारण धन्य मानेंगी: क्योंकि तू ने मेरी बात मानी है।

अय्यूब 42:12 यहोवा ने अय्यूब के बाद के दिनों में उसके पहले के दिनों से अधिक आशीष दी; और उसके चौदह हज़ार भेड़ बकरियाँ, छ: हज़ार ऊँट, हज़ार जोड़ी बैल, और हज़ार गदहियाँ हो गईं।

परमेश्वर द्वारा बोले गए वचनों और मनुष्य द्वारा बोले गए वचनों में क्या अंतर है? जब तुम परमेश्वर द्वारा बोले गए इन वचनों को पढ़ते हो, तो तुम परमेश्वर के वचनों की शक्ति और परमेश्वर के अधिकार को महसूस करते हो। जब तुम लोगों को ऐसे वचन कहते सुनते हो, तो तुम्हें कैसा लगता है? क्या तुम्हें नहीं लगता कि वे बेहद अहंकारी हैं और शेखी बघारते हैं, ऐसे लोग हैं जो दिखावा कर रहे हैं? क्योंकि उनके पास यह सामर्थ्य नहीं है, उनके पास ऐसा अधिकार नहीं है, इसलिए वे ऐसी चीजें हासिल करने में पूरी तरह असमर्थ हैं। उनका अपने वादों को लेकर इतना आश्वस्त होना केवल उनकी टिप्पणियों की लापरवाही दर्शाता है। अगर कोई ऐसे वचन कहता है, तो वह निस्संदेह अहंकारी और अति-आत्मविश्वासी होगा, और खुद को प्रधान दूत के स्वभाव के एक उत्कृष्ट उदाहरण के रूप में प्रकट करेगा। ये वचन परमेश्वर के मुख से निकले थे; क्या तुम यहाँ अहंकार का कोई तत्त्व महसूस करते हो? क्या तुम्हें लगता है कि परमेश्वर के वचन केवल एक मजाक हैं? परमेश्वर के वचन अधिकार हैं, परमेश्वर के वचन तथ्य हैं, और उसके मुँह से वचन निकलने से पहले, यानी जब वह कुछ करने का फैसला कर रहा होता है, तो वह चीज पहले ही पूरी हो चुकी होती है। कहा जा सकता है कि जो कुछ भी परमेश्वर ने अब्राहम से कहा, वह परमेश्वर द्वारा अब्राहम के साथ बाँधी गई एक वाचा थी, परमेश्वर द्वारा अब्राहम से किया गया एक वादा था। यह वादा एक स्थापित तथ्य था, साथ ही एक पूरा किया गया तथ्य भी था, और ये तथ्य परमेश्वर की योजना के अनुसार परमेश्वर के विचारों में धीरे-धीरे पूरे हुए। इसलिए, परमेश्वर द्वारा ऐसे वचन कहे जाने का यह अर्थ नहीं है कि उसका स्वभाव अहंकारी है, क्योंकि परमेश्वर ऐसी चीजें हासिल करने में सक्षम है। उसके पास यह सामर्थ्य और अधिकार है, और वह ये कार्य करने में पूरी तरह से सक्षम है, और उनका पूरा होना पूरी तरह से उसकी क्षमता के दायरे के भीतर है। जब इस तरह के वचन परमेश्वर के मुख से बोले जाते हैं, तो वे परमेश्वर के सच्चे स्वभाव का प्रकाशन और अभिव्यक्ति होते हैं, परमेश्वर के सार और अधिकार का एक पूर्ण प्रकाशन और अभिव्यक्ति, और सृष्टिकर्ता की पहचान के प्रमाण के रूप में इससे ज्यादा सही और उपयुक्त कुछ नहीं होता। इस तरह के कथनों का ढंग, लहजा और शब्द सटीक रूप से सृष्टिकर्ता की पहचान की निशानी हैं, और पूर्ण रूप से परमेश्वर की पहचान की अभिव्यक्ति के अनुरूप हैं; उनमें न तो ढोंग है, न अशुद्धता; वे पूरी तरह से और सरासर सृष्टिकर्ता के सार और अधिकार का पूर्ण प्रदर्शन हैं। जहाँ तक प्राणियों का संबंध है, उनके पास न तो यह अधिकार है, न ही यह सार, उनके पास परमेश्वर द्वारा दिया गया सामर्थ्य तो बिलकुल भी नहीं है। अगर मनुष्य इस तरह का व्यवहार प्रकट करता है, तो यह निश्चित रूप से उसके भ्रष्ट स्वभाव का विस्फोट होगा, और इसके मूल में मनुष्य के अहंकार और जंगली महत्वाकांक्षा का हस्तक्षेपकारी प्रभाव होगा, और वह किसी और के नहीं बल्कि उस शैतान के दुर्भावनापूर्ण इरादों का खुलासा होगा, जो लोगों को धोखा देना और उन्हें परमेश्वर को धोखा देने के लिए फुसलाना चाहता है। ऐसी भाषा से जो प्रकट होता है, उसे परमेश्वर कैसे देखता है? परमेश्वर कहेगा कि तुम उसका स्थान हड़पना चाहते हो और तुम उसका रूप धरना और उसकी जगह लेना चाहते हो। जब तुम परमेश्वर के कथनों के लहजे की नकल करते हो, तो तुम्हारा इरादा लोगों के दिलों में परमेश्वर का स्थान लेने का होता है, उस मानव-जाति को हड़पने का होता है जो जायज तौर पर परमेश्वर की है। यह शुद्ध और स्पष्ट रूप से शैतान है; ये प्रधान दूत के वंशजों के कार्य हैं, जो स्वर्ग के लिए असहनीय हैं! क्या तुम लोगों में से कोई है, जिसने लोगों को गुमराह करने और धोखा देने के इरादे से कुछ शब्द बोलकर एक तरीके से परमेश्वर की नकल की है और उन्हें यह महसूस करवाया है कि इस व्यक्ति के वचनों और कार्यों में परमेश्वर का अधिकार और शक्ति है, इस व्यक्ति का सार और पहचान अद्वितीय है, यहाँ तक कि इस व्यक्ति के वचनों का स्वर परमेश्वर के समान है? क्या तुम लोगों ने कभी ऐसा कुछ किया है? क्या तुमने कभी अपनी बोलचाल में ऐसे हाव-भावों के साथ परमेश्वर के स्वर की नकल की है, जो कथित रूप से परमेश्वर के स्वभाव को दर्शाते हैं और जिन्हें तुम पराक्रम और अधिकार मानते हो? क्या तुम लोगों में से ज्यादातर अक्सर इस तरह से कार्य करते या कार्य करने की योजना बनाते हैं? अब, जबकि तुम लोग वास्तव में सृष्टिकर्ता के अधिकार को देखते, समझते और जानते हो, और याद करते हो कि तुम लोग क्या किया करते थे, और अपने बारे में क्या प्रकट किया करते थे, तो क्या तुम्हें खुद से नफरत होती है? क्या तुम लोग अपनी नीचता और निर्लज्जता पहचानते हो? ऐसे लोगों के स्वभाव और सार का विश्लेषण करने के बाद, क्या यह कहा जा सकता है कि वे नरक की शापित संतान हैं? क्या यह कहा जा सकता है कि ऐसा करने वाला हर व्यक्ति अपना अपमान करवा रहा है? क्या तुम लोग इसकी प्रकृति की गंभीरता समझते हो? आखिर यह कितना गंभीर है? इस तरह से कार्य करने वाले लोगों का इरादा परमेश्वर की नकल करना होता है। वे परमेश्वर बनना चाहते हैं, लोगों से परमेश्वर के रूप में अपनी आराधना करवाना चाहते हैं। वे लोगों के दिलों से परमेश्वर का स्थान मिटाना चाहते हैं, और उस परमेश्वर से छुटकारा पाना चाहते हैं जो मनुष्यों के बीच कार्य करता है, और वे ऐसा लोगों को नियंत्रित करने, उन्हें निगलने और उन पर अधिकार करने का उद्देश्य हासिल करने के लिए करते हैं। हर किसी के अवचेतन में इस तरह की इच्छाएँ और महत्वाकांक्षाएँ होती हैं, और हर कोई इस तरह के भ्रष्ट शैतानी सार में जीता है, ऐसी शैतानी प्रकृति में, जिसमें वे परमेश्वर के साथ दुश्मनी रखते हैं, परमेश्वर को धोखा देते हैं, और परमेश्वर बनना चाहते हैं। परमेश्वर के अधिकार के विषय पर मेरी संगति के बाद, क्या तुम लोग अभी भी परमेश्वर का रूप धरने या उसकी नकल करने की इच्छा या आकांक्षा रखते हो? क्या तुम अभी भी परमेश्वर बनने की इच्छा रखते हो? क्या तुम अभी भी परमेश्वर बनना चाहते हो? मनुष्य द्वारा परमेश्वर के अधिकार की नकल नहीं की जा सकती, और मनुष्य परमेश्वर की पहचान और हैसियत का रूप नहीं धर सकता। भले ही तुम परमेश्वर के स्वर की नकल करने में सक्षम हो, लेकिन तुम परमेश्वर के सार की नकल नहीं कर सकते। भले ही तुम परमेश्वर के स्थान पर खड़े होने और परमेश्वर का रूप धरने में सक्षम हो, लेकिन तुम कभी वह करने में सक्षम नहीं होगे जो करने का परमेश्वर इरादा रखता है, और कभी भी सभी चीजों पर शासन और नियंत्रण करने में सक्षम नहीं होगे। परमेश्वर की नजर में तुम हमेशा एक छोटे-से प्राणी रहोगे, और तुम्हारे कौशल और क्षमता कितनी भी महान हों, चाहे तुममें कितने भी गुण हों, तुम संपूर्ण रूप से सृष्टिकर्ता के प्रभुत्व के अधीन हो। भले ही तुम कुछ ढिठाई भरे वचन कहने में सक्षम हो, लेकिन यह न तो यह दिखा सकता है कि तुममें सृष्टिकर्ता का सार है, और न ही यह दर्शाता है कि तुम्हारे पास सृष्टिकर्ता का अधिकार है। परमेश्वर का अधिकार और सामर्थ्य स्वयं परमेश्वर के सार हैं। वे बाहर से सीखे या जोड़े नहीं गए, बल्कि स्वयं परमेश्वर के निहित सार हैं। और इसलिए सृष्टिकर्ता और प्राणियों के बीच का संबंध कभी नहीं बदला जा सकता। एक प्राणी के रूप में, मनुष्य को अपनी स्थिति बनाए रखनी चाहिए, और कर्तव्यनिष्ठा से व्यवहार करना चाहिए। सृष्टिकर्ता द्वारा तुम्हें जो सौंपा गया है, उसकी कर्तव्यपरायणता से रक्षा करो। अनुचित कार्य मत करो, न ही ऐसे कार्य करो जो तुम्हारी क्षमता के दायरे से बाहर हों या जो परमेश्वर के लिए घृणित हों। महान, अतिमानव या दूसरों से ऊँचा बनने की कोशिश मत करो, न ही परमेश्वर बनने की कोशिश करो। लोगों को ऐसा बनने की इच्छा नहीं करनी चाहिए। महान या अतिमानव बनने की कोशिश करना बेतुका है। परमेश्वर बनने की कोशिश करना तो और भी ज्यादा शर्मनाक है; यह घृणित और निंदनीय है। जो प्रशंसनीय है, और जो प्राणियों को किसी भी चीज से ज्यादा करना चाहिए, वह है एक सच्चा प्राणी बनना; यही एकमात्र लक्ष्य है जिसका सभी लोगों को अनुसरण करना चाहिए।

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I

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