परमेश्वर के दैनिक वचन : परमेश्वर को जानना | अंश 87

परमेश्वर सभी चीजों की सृष्टि करने के लिए वचनों को प्रयोग करता है (चुने हुए अंश)

पाँचवे दिन, जीवन के विविध और विभिन्न रूप अलग-अलग तरीकों से सृष्टिकर्ता के अधिकार को प्रदर्शित करते हैं

पवित्र-शास्त्र कहता है, "फिर परमेश्‍वर ने कहा, 'जल जीवित प्राणियों से बहुत ही भर जाए, और पक्षी पृथ्वी के ऊपर आकाश के अन्तर में उड़ें।' इसलिये परमेश्‍वर ने जाति जाति के बड़े बड़े जल-जन्तुओं की, और उन सब जीवित प्राणियों की भी सृष्‍टि की जो चलते फिरते हैं जिन से जल बहुत ही भर गया, और एक एक जाति के उड़ने वाले पक्षियों की भी सृष्‍टि की: और परमेश्‍वर ने देखा कि अच्छा है" (उत्पत्ति 1:20-21)। पवित्र-शास्त्र साफ-साफ कहता है कि इस दिन, परमेश्वर ने जल के जन्तुओं और आकाश के पक्षियों को बनाया, कहने का तात्पर्य है कि उसने विभिन्न प्रकार की मछलियों और पक्षियों को बनाया और उनकी प्रजाति के अनुसार उन्हें वर्गीकृत किया। इस तरह, परमेश्वर की सृष्टि से पृथ्वी, आकाश और जल समृद्ध हो गए ...

जैसे ही परमेश्वर के वचन कहे गए, बिलकुल नई जिन्दगियाँ, हर एक अलग आकार में, सृष्टिकर्ता के वचनों के मध्य तत्काल जीवित हो गईं। वे इस संसार में अपने स्थान के लिए एक-दूसरे को धकेलते, कूदते और आनंद से खेलते हुए आ गईं...। हर रूप एवं आकार की मछलियाँ जल के एक छोर से दूसरे छोर को तैरने लगीं; और सभी किस्मों की सीपियाँ रेत में उत्पन्न होने लगीं, शल्क वाली, कवचधारी, और बिना रीढ़ वाले जीव-जन्तु, चाहे बड़े हों या छोटे, लम्बे हों या ठिगने, विभिन्न रूपों में जल्दी से विकसित हो गए। विभिन्न प्रकार के समुद्री पौधे शीघ्रता से उगना शुरू हो गए, विविध प्रकार के समुद्री जीवन के बहाव में बहने लगे, लहराते हुए, स्थिर जल को उत्तेजित करते हुए, मानो उनसे कह रहे हों : "नाचो! अपने मित्रों को लेकर आओ! क्योंकि अब तुम लोग कभी अकेले नहीं रहोगे!" उस घड़ी जब परमेश्वर के द्वारा बनाए गए जीवित प्राणी जल में प्रगट हुए, प्रत्येक नए जीवन ने उस जल में जीवन-शक्ति डाल दी जो इतने लम्बे समय से शांत था और एक नए युग का सूत्रपात किया...। और तब से, वे एक-दूसरे के आस-पास रहते हुए एक-दूसरे का साथ देने लगे और वे आपस में कोई दूरी नहीं रखते थे। जल के भीतर जो भी जीवधारी थे, जल उनका पोषण करने के लिए मौजूद था, और प्रत्येक जीवन, जल और उसके पोषण के कारण अस्तित्व में बना रहा। प्रत्येक जीव, दूसरे को जीवन देता था, और साथ ही, हर एक, उसी रीति से, सृष्टिकर्ता की सृष्टि की अद्भुतता, महानता और सृष्टिकर्ता के अधिकार के सर्वोत्कृष्ट सामर्थ्‍य की गवाही देता था ...

अब जबकि समुद्र शांत न रहा, उसी प्रकार जीवन ने आकाश को भरना प्रारंभ कर दिया। एक के बाद एक, छोटे-बड़े पक्षी, भूमि से आकाश में उड़ने लगे। समुद्र के जीवों से भिन्न, उनके पास पंख और पर थे, जो उनके दुबले और आकर्षक रूप को ढके हुए थे। वे अपने पंखों को फड़फड़ाते हुए, गर्व और अभिमान से अपने परों के आकर्षक आवरण को और अपनी विशेष क्रियाओं और कुशलताओं को प्रदर्शित करने लगे जिन्हें सृष्टिकर्ता के द्वारा उन्हें प्रदान किया गया था। वे स्वतन्त्रता के साथ हवा में लहराने लगे और कुशलता से आकाश और पृथ्वी के बीच, घास के मैदानों और जंगलों के आर-पार यहाँ वहाँ उड़ने लगे...। वे हवा के प्रिय थे, वे हर चीज के प्रिय थे। वे जल्द ही स्वर्ग और पृथ्वी के बीच में एक सेतु बनकर सभी चीजों तक संदेश पहुँचाने वाले बनने को थे...। वे गीत गाते, आनंद के साथ यहाँ-वहाँ झपट्टा मारते, उन्होंने कभी ख़ाली पड़े संसार में हर्ष, हँसी व कम्पन पैदा कर दिया...। उन्होंने अपने स्पष्ट एवं मधुर गीतों से और अपने हृदय के भीतर के शब्दों से उस जीवन के लिए सृष्टिकर्ता की प्रशंसा की जो उसने उन्हें दिया था। उन्होंने सृष्टिकर्ता की पूर्णता और अद्भुतता को प्रदर्शित करने के लिए हर्षोल्लास के साथ नृत्य किया, और वे उस विशेष जीवन के द्वारा जो सृष्टिकर्ता ने उन्हें दिया था, उसके अधिकार की गवाही देने में अपने सम्पूर्ण जीवन को समर्पित कर देंगे ...

जीवित प्राणी चाहे जल में थे या आकाश में, सृष्टिकर्ता की आज्ञा के द्वारा, जीवित प्राणियों की यह अधिकता जीवन के विभिन्न रूपों में मौजूद थी, और सृष्टिकर्ता की आज्ञा के द्वारा, वे अपनी-अपनी प्रजाति के अनुसार इकट्ठे हो गए—और यह व्यवस्था, यह नियम किसी भी जीवधारी के लिए अपरिवर्तनीय था। सृष्टिकर्ता के द्वारा जो भी सीमाएँ बनाई गई थीं, उसके पार जाने की हिम्मत उन्होंने कभी नहीं की और न ही वे ऐसा करने में समर्थ थे। सृष्टिकर्ता के द्वारा आदेश के अनुसार वे जीते और बहुगुणित होते रहे और सृष्टिकर्ता के द्वारा बनाए गए जीवन-क्रम और व्यवस्था का कड़ाई से पालन करते रहे और सजगता से उसकी अनकही आज्ञाओं, स्वर्गीय आदेशों और नियमों में बने रहे जो उसने उन्हें तब से लेकर आज तक दिए थे। वे सृष्टिकर्ता से अपने एक विशेष अन्दाज में बात करते थे और सृष्टिकर्ता के अर्थ की प्रशंसा करने लगे और वे उसकी आज्ञा मानते थे। किसी ने कभी भी सृष्टिकर्ता के अधिकार का उल्लंघन नहीं किया और उनके ऊपर उसकी संप्रभुता और आज्ञाओं का उपयोग उसके विचारों के तहत हुआ था; कोई वचन जारी नहीं किए गए थे, परन्तु सृष्टिकर्ता का अद्वितीय अधिकार खामोशी से सभी चीजों का नियन्त्रण करता था जिसमें भाषा की कोई क्रिया नहीं थी और जो मानवजाति से भिन्न था। इस विशेष रीति से उसके अधिकार के इस्तेमाल ने मनुष्य को नया ज्ञान प्राप्त करने के लिए बाध्य किया और सृष्टिकर्ता के अद्वितीय अधिकार की एक नई व्याख्या करने को मजबूर किया। यहाँ मैं तुम्हें एक बात बता दूँ कि इस नए दिन में, सृष्टिकर्ता के अधिकार के इस्तेमाल ने एक बार और सृष्टिकर्ता की अद्वितीयता का प्रदर्शन किया।

आगे, आओ हम पवित्र-शास्त्र के इस अंश के अंतिम वाक्य पर एक नजर डालें : "परमेश्‍वर ने देखा कि अच्छा है।" तुम लोगों को क्या लगता है कि इसका अर्थ क्या है? इन वचनों में परमेश्वर की भावनाएं निहित हैं। परमेश्वर ने उन सभी चीजों को देखा जिन्हें उसने बनाया था जो उसके वचनों के कारण अस्तित्व में आईं और मजबूत बनी रहीं और धीरे-धीरे परिवर्तित होने लगीं। उस समय, परमेश्वर ने अपने वचनों के द्वारा जो विभिन्न चीजें बनाई थीं, और जिन विभिन्न कार्यों को पूरा किया था, क्या वह उनसे संतुष्ट था? उत्तर है कि "परमेश्‍वर ने देखा कि अच्छा है।" तुम लोग यहाँ क्या देखते हो? "परमेश्‍वर ने देखा कि अच्छा है" इससे क्या प्रकट होता है? यह किसका प्रतीक है? इसका अर्थ है कि परमेश्वर ने जो योजना बनाई थी और जो निर्देश दिए थे, उन्हें और उन उद्देश्यों को पूर्ण करने के लिए परमेश्वर के पास सामर्थ्‍य और बुद्धि थी, जिन्हें पूरा करने का उसने मन बनाया था। जब परमेश्वर ने हर एक कार्य को पूरा कर लिया, तो क्या उसे पछतावा हुआ? उत्तर अभी भी यही है "परमेश्‍वर ने देखा कि अच्छा है।" दूसरे शब्दों में, उसने कोई खेद महसूस नहीं किया, बल्कि वह संतुष्ट था। इसका मतलब क्या है कि उसे कोई खेद महसूस नहीं हुआ? इसका मतलब है कि परमेश्वर की योजना पूर्ण है, उसकी सामर्थ्‍य और बुद्धि पूर्ण है, और यह कि सिर्फ उसकी सामर्थ्‍य के द्वारा ही ऐसी पूर्णता को प्राप्त किया जा सकता है। जब मुनष्य कोई कार्य करता है, तो क्या वह परमेश्वर के समान देख सकता है कि सब अच्छा है? क्या हर काम जो मनुष्य करता है वो पूर्णता पा सकता है? क्या मनुष्य किसी काम को एक ही बार में पूरी अनंतता के लिए पूरा कर सकता है? जैसा कि मनुष्य कहता है, "कुछ भी पूर्ण नहीं होता, बस बेहतर होता है," ऐसा कुछ भी नहीं है जो मनुष्य करे और वह पूर्णता को प्राप्त कर ले। परमेश्वर ने देखा कि जो कुछ उसने बनाया और पूरा किया वह अच्छा है, परमेश्वर के द्वारा बनाई गई हर वस्तु उसके वचन के द्वारा स्थिर हुई, कहने का तात्पर्य है कि, जब "परमेश्‍वर ने देखा कि अच्छा है," तब जो कुछ भी उसने बनाया, उसने एक चिरस्थायी रूप ले लिया, उसकी किस्म के अनुसार उसे वर्गीकृत किया गया, और उसे पूरी अनंतता के लिए एक नियत स्थिति, उद्देश्य, और कार्यप्रणाली दी गई। इसके अतिरिक्त, सब वस्तुओं के बीच उनकी भूमिका, और वह यात्रा जिनसे उन्हें परमेश्वर की सभी वस्तुओं के प्रबन्धन के दौरान गुजरना था, उन्हें परमेश्वर के द्वारा पहले से ही नियुक्त कर दिया गया था और वे अपरिवर्तनीय थे। यह सृष्टिकर्ता द्वारा सभी वस्तुओं को दिया गया स्वर्गीय नियम था।

"परमेश्‍वर ने देखा कि अच्छा है," ये सरल, कम समझे गए वचन, जिनकी कई बार उपेक्षा की जाती है, ये स्वर्गीय नियम और स्वर्गीय आदेश हैं जिन्हें सभी प्राणियों को परमेश्वर के द्वारा दिया गया है। यह सृष्टिकर्ता के अधिकार का एक और मूर्त रूप है, जो अधिक व्यावहारिक और अधिक गंभीर है। अपने वचनों के जरिए, सृष्टिकर्ता न केवल वह सब-कुछ हासिल करने में सक्षम हुआ जिसे उसने हासिल करने का बीड़ा उठाया था, और वह सब-कुछ प्राप्त किया जिसे वह प्राप्त करने निकला था, बल्कि जो कुछ भी उसने सृजित किया था, वह उसका नियन्त्रण कर सकता था, और जो कुछ उसने अपने अधिकार के अधीन बनाया था उस पर शासन कर सकता था और इसके अतिरिक्त, सब-कुछ व्यवस्थित और नियमित था। सभी वस्तुएँ उसके वचन के द्वारा बढ़ती, अस्तित्व में रहती और नष्ट होती थीं और उसके अतिरिक्त उसके अधिकार के कारण वे उसके द्वारा बनाई गई व्यवस्था के मध्य अस्तित्व में बनी रहती थीं और कोई भी वस्तु इससे छूटी नहीं थी! यह व्यवस्था बिलकुल उसी घड़ी शुरू हो गई थी जब "परमेश्‍वर ने देखा कि अच्छा है," और वह बना रहेगा और जारी रहेगा और परमेश्वर की प्रबंधकीय योजना के लिए उस दिन तक कार्य करता रहेगा जब तक वह सृष्टिकर्ता के द्वारा रद्द न कर दिया जाए! सृष्टिकर्ता का अद्वितीय अधिकार न केवल सब वस्तुओं को बनाने और सब वस्तुओं को अस्तित्व में आने की आज्ञा देने की काबिलियत में प्रकट हुआ, बल्कि सब वस्तुओं पर शासन करने और सब वस्तुओं पर संप्रभुता रखने और सब वस्तुओं में चेतना और जीवन देने और इसके अतिरिक्त, उन सब वस्तुओं को जिन्हें वो अपनी योजना में सृजित करेगा, उन्हें पूरी अनंतता के लिए उसके द्वारा बनाए गए संसार में एक उत्तम आकार, उत्तम संरचना, उत्तम भूमिका में प्रकट और मौजूद होने के लिए बनाने की उसकी योग्यता में भी प्रकट हुआ था। यह इस बात से प्रकट हुआ कि सृष्टिकर्ता के विचार किसी विवशता के अधीन नहीं थे और समय, अंतरिक्ष और भूगोल के द्वारा सीमित नहीं थे। उसके अधिकार के समान, सृष्टिकर्ता की अद्वितीय पहचान सदा-सर्वदा तक अपरिवर्तनीय बनी रहेगी। उसका अधिकार सर्वदा उसकी अद्वितीय पहचान का एक निरूपण और प्रतीक बना रहेगा और उसका अधिकार हमेशा उसकी पहचान के साथ-साथ बना रहेगा!

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I

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