परमेश्वर के दैनिक वचन : परमेश्वर को जानना | अंश 77

लाज़र का पुनरुत्थान परमेश्वर को महिमामंडित करता है

यूहन्ना 11:43-44 यह कहकर उसने बड़े शब्द से पुकारा, "हे लाज़र, निकल आ!" जो मर गया था वह कफन से हाथ पाँव बँधे हुए निकल आया, और उसका मुँह अँगोछे से लिपटा हुआ था। यीशु ने उनसे कहा, "उसे खोल दो और जाने दो।"

इस अंश को पढ़ने के बाद इसका तुम लोगों पर क्या प्रभाव पड़ा? प्रभु यीशु द्वारा किए गए इस चमत्कार का महत्व पहले वाले चमत्कार से बहुत अधिक था, क्योंकि कोई भी चमत्कार किसी मरे हुए व्यक्ति को क़ब्र से बाहर लाने से ज्यादा आश्चर्यजनक नहीं हो सकता। उस युग में प्रभु यीशु का ऐसा कुछ करना अत्यंत महत्वपूर्ण था। चूँकि परमेश्वर देहधारी हो गया था, इसलिए लोग केवल उसके शारीरिक रूप-रंग, उसके व्यावहारिक पक्ष, और उसके महत्वहीन पक्ष को ही देख सकते थे। यदि कुछ लोगों ने उसके चरित्र की कोई चीज़ या कुछ विशेष योग्यताएँ देखी और समझी भी थीं, जो उसमें दिखाई देती थीं, तो भी यह कोई नहीं जानता था कि प्रभु यीशु कहाँ से आया है, अपने सार में वह वास्तव में कौन है, और वह वास्तव में और क्या कर सकता है। यह सब मानवजाति को अज्ञात था। इसलिए बहुत-से लोग प्रभु यीशु से संबंधित इन प्रश्नों का उत्तर देने और सत्य जानने के लिए प्रमाण ढूँढ़ना चाहते थे। क्या अपनी पहचान साबित करने के लिए परमेश्वर कुछ कर सकता था? परमेश्वर के लिए यह एक आसान बात थी—बच्चों का खेल था। वह अपनी पहचान और सार साबित करने के लिए कहीं भी, किसी भी समय कुछ कर सकता था, परंतु चीज़ों को करने का परमेश्वर का अपना तरीका था—वह हर चीज़ एक योजना के साथ और चरणों में करता था। उसने चीज़ों को विवेकहीनता से नहीं किया; मनुष्य को दिखाने हेतु कुछ करने के लिए सही समय और सही अवसर का इंतज़ार किया, कुछ ऐसा जो अर्थपूर्ण हो। इस तरह उसने अपना अधिकार और अपनी पहचान प्रमाणित की। तो क्या तब लाज़र का फिर से जी उठना प्रभु यीशु की पहचान प्रमाणित कर पाया? आओ, पवित्रशास्त्र के इस अंश को देखें : "और यह कहकर, उसने बड़े शब्द से पुकारा, हे लाज़र, निकल आ! जो मर गया था निकल आया...।" जब प्रभु यीशु ने ऐसा किया, तो उसने बस एक बात कही : "हे लाज़र, निकल आ!" तब लाजर अपनी क़ब्र से बाहर निकल आया—यह प्रभु द्वारा बोले गए कुछ वचनों के कारण संपन्न हुआ था। इस दौरान प्रभु यीशु ने न तो कोई वेदी स्थापित की, न ही उसने कोई अन्य गतिविधि की। उसने बस यह एक बात कही। इसे कोई चमत्कार कहा जाना चाहिए या आज्ञा? या यह किसी प्रकार की जादूगरी थी? सतही तौर पर, ऐसा प्रतीत होता है कि इसे एक चमत्कार कहा जा सकता है, और यदि तुम इसे आधुनिक परिप्रेक्ष्य से देखो, तो निस्संदेह तुम तब भी इसे एक चमत्कार ही कह सकते हो। किंतु इसे किसी मृत आत्मा को वापस बुलाने का जादू निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता, और यह किसी तरह की जादूगरी तो बिलकुल भी नहीं थी। यह कहना सही है कि यह चमत्कार सृजनकर्ता के अधिकार का अत्यधिक सामान्य, छोटा-सा प्रदर्शन था। यह परमेश्वर का अधिकार और सामर्थ्य है। परमेश्वर के पास किसी व्यक्ति को मारने, उसकी आत्मा उसके शरीर से निकालने और अधोलोक में या जहाँ भी उसे जाना चाहिए, भेजने का अधिकार है। कोई कब मरता है और मृत्यु के बाद कहाँ जाता है—यह परमेश्वर द्वारा निर्धारित किया जाता है। वह ये निर्णय किसी भी समय और कहीं भी कर सकता है, वह मनुष्यों, घटनाओं, वस्तुओं, स्थान या भूगोल द्वारा विवश नहीं होता। यदि वह इसे करना चाहता है, तो वह इसे कर सकता है, क्योंकि सभी चीज़ें और जीवित प्राणी उसके शासन के अधीन हैं, और सभी चीज़ें उसके वचन और अधिकार द्वारा जन्म लेती हैं, जीती हैं और नष्ट हो जाती हैं। वह किसी मृत व्यक्ति को पुनर्जीवित कर सकता है, और यह भी वह किसी भी समय, कहीं भी कर सकता है। यह वह अधिकार है, जो केवल सृजनकर्ता के पास है।

जब प्रभु यीशु ने मृत लाज़र को पुनर्जीवित करने जैसी चीज़ें कीं, तो उसका उद्देश्य मनुष्यों और शैतान के देखने के लिए प्रमाण देना, और मनुष्य और शैतान को यह ज्ञात करवाना था कि मानवजाति से संबंधित सभी चीज़ें, मानवजाति का जीवन और उसकी मृत्यु परमेश्वर द्वारा निर्धारित की जाती हैं, और कि भले ही वह देहधारी हो गया था, फिर भी इस भौतिक संसार का, जिसे देखा जा सकता है, और साथ ही आध्यात्मिक संसार का भी, जिसे मनुष्य नहीं देख सकते, वही नियंत्रक था। यह इसलिए था, ताकि मनुष्य और शैतान जान लें कि मानवजाति से संबंधित कुछ भी शैतान के नियंत्रण में नहीं है। यह परमेश्वर के अधिकार का प्रकाशन और प्रदर्शन था, और यह सभी चीज़ों को यह संदेश देने का परमेश्वर का एक तरीका भी था कि मानवजाति का जीवन और मृत्यु परमेश्वर के हाथों में है। प्रभु यीशु द्वारा लाज़र को पुनर्जीवित किया जाना मानवजाति को शिक्षा और निर्देश देने का सृजनकर्ता का एक तरीका था। यह एक ठोस कार्य था, जिसमें उसने मानवजाति को निर्देश और पोषण प्रदान करने के लिए अपने सामर्थ्य और अधिकार का उपयोग किया था। यह सृजनकर्ता द्वारा बिना वचनों का इस्तेमाल किए मानवजाति को यह सच्चाई दिखाने का एक तरीका था कि वह सभी चीज़ों का नियंत्रक है। यह उसके द्वारा व्यावहारिक कार्यों के माध्यम से मानवजाति को यह बताने का एक तरीका था कि उसके माध्यम से मिलने वाले उद्धार के अलावा कोई उद्धार नहीं है। मानवजाति को निर्देश देने के लिए उसके द्वारा प्रयुक्त यह मूक उपाय चिरस्थायी, अमिट और मनुष्य के हृदय को एक ऐसा आघात और प्रबुद्धता देने वाला है, जो कभी फीके नहीं पड़ सकते। लाज़र को पुनर्जीवित करने के कार्य ने परमेश्वर को महिमामंडित किया—इसका परमेश्वर के प्रत्येक अनुयायी पर एक गहरा प्रभाव पड़ा है। यह हर उस व्यक्ति में, जो इस घटना को गहराई से समझता है, यह समझ और दर्शन मज़बूती से जमा देता है कि केवल परमेश्वर ही मानवजाति के जीवन और मृत्यु पर नियंत्रण कर सकता है। यद्यपि परमेश्वर के पास इस प्रकार का अधिकार है, और यद्यपि उसने लाज़र को पुनर्जीवित करने के माध्यम से मानवजाति के जीवन और मृत्यु के ऊपर अपनी संप्रभुता के बारे में एक संदेश भेजा, फिर भी यह उसका प्राथमिक कार्य नहीं था। परमेश्वर बिना किसी अर्थ के कभी कोई कार्य नहीं करता। हर एक चीज़ जो वह करता है, उसका बड़ा मूल्य होता है और वह खजानों के भंडार में एक नायाब नगीना होती है। वह "किसी व्यक्ति को क़ब्र से बाहर लाने" को अपने कार्य का प्राथमिक या एकमात्र उद्देश्य या मद बिलकुल नहीं बनाएगा। परमेश्वर ऐसी कोई चीज़ नहीं करता, जिसका कोई अर्थ न हो। एक विलक्षण घटना के रूप में लाज़र को पुनर्जीवित करना परमेश्वर का अधिकार प्रदर्शित करने और प्रभु यीशु की पहचान साबित करने के लिए पर्याप्त था। इसीलिए प्रभु यीशु ने इस प्रकार का चमत्कार दोहराया नहीं। परमेश्वर चीज़ों को अपने सिद्धांतों के अनुसार करता है। मनुष्य की भाषा में यह कहा जा सकता है कि परमेश्वर अपना मस्तिष्क केवल गंभीर कार्यों में व्यस्त रखता है। अर्थात्, जब परमेश्वर चीज़ों को करता है, तब वह अपने कार्य के उद्देश्य से भटकता नहीं। वह जानता है कि इस चरण में वह कौन-सा कार्य करना चाहता है, वह क्या संपन्न करना चाहता है, और वह एकदम अपनी योजना के अनुसार कार्य करेगा। यदि किसी भ्रष्ट व्यक्ति के पास इस प्रकार की क्षमता होती, तो वह बस अपनी योग्यता प्रदर्शित करने के तरीकों के बारे में ही सोचता रहता, ताकि अन्य लोगों को पता चल जाए कि वह कितना दुर्जेय है, जिससे वे उसके सामने झुक जाएँ, ताकि वह उन्हें नियंत्रित कर सके और उन्हें निगल सके। यह बुराई शैतान से आती है—इसे भ्रष्टता कहते हैं। परमेश्वर का इस प्रकार का स्वभाव नहीं है, और उसका इस प्रकार का सार नहीं है। चीज़ों को करने के पीछे उसका उद्देश्य अपना दिखावा करना नहीं है, बल्कि मानवजाति को और अधिक प्रकाशन और मार्गदर्शन प्रदान करना है, और यही कारण है कि लोगों को बाइबल में इस तरह की घटनाओं के बहुत कम उदाहरण देखने को मिलते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि प्रभु यीशु का सामर्थ्य सीमित था, या वह इस प्रकार की चीज़ें नहीं कर सकता था। इसका कारण केवल था कि परमेश्वर ऐसा करना नहीं चाहता था, क्योंकि प्रभु यीशु द्वारा लाज़र को पुनर्जीवित करने का बहुत व्यावहारिक महत्व था, और परमेश्वर के देहधारी होने का प्राथमिक कार्य चमत्कार करना नहीं था, मुर्दों को जीवित करना नहीं था, बल्कि मानवजाति के छुटकारे का कार्य करना था। इसलिए प्रभु यीशु ने जो कार्य पूरा किया, उसमें अधिकांशत: लोगों को शिक्षा देना, उन्हें पोषण प्रदान करना और उनकी सहायता करना था, और लाज़र को पुनर्जीवित करने जैसी घटनाएँ प्रभु यीशु द्वारा की गई सेवकाई का मात्र एक छोटा-सा हिस्सा था। इससे भी अधिक, तुम लोग कह सकते हो कि "दिखावा करना" परमेश्वर के सार का अंग नहीं है, इसलिए अधिक चमत्कार न दिखाकर प्रभु यीशु जानबूझकर संयम नहीं बरत रहा था, न ही यह पर्यावरणीय सीमाओं के कारण था, और यह सामर्थ्य की कमी के कारण तो बिलकुल भी नहीं था।

जब प्रभु यीशु ने लाज़र को पुनर्जीवित किया, तो उसने इन वचनों का उपयोग किया : "हे लाज़र, निकल आ!" उसने इसके अलावा कुछ नहीं कहा। तो ये वचन क्या दर्शाते हैं? ये दर्शाते हैं कि परमेश्वर बोलने के द्वारा कुछ भी कर सकता है, जिसमें एक मरे हुए व्यक्ति को पुनर्जीवित करना भी शामिल है। जब परमेश्वर ने सभी चीज़ों का सृजन किया, जब उसने संसार बनाया, तो उसने ऐसा अपने वचनों—मौखिक आज्ञाओं, अधिकार-युक्त वचनों का उपयोग करके ही किया था, और सभी चीज़ों का सृजन इसी तरह हुआ था, और यह कार्य इसी तरह संपन्न हुआ था। प्रभु यीशु द्वारा कहे गए ये कुछ वचन परमेश्वर द्वारा उस समय कहे गए वचनों के समान थे, जब उसने आकाश और पृथ्वी और सभी चीज़ों का सृजन किया था; वे उसी तरह से परमेश्वर का अधिकार और सृजनकर्ता का सामर्थ्य रखते थे। परमेश्वर के मुँह से निकले वचनों की वजह से सभी चीज़ें बनीं और कायम रहीं, और बिलकुल वैसे ही प्रभु यीशु के मुँह से निकले वचनों के कारण लाज़र अपनी क़ब्र से बाहर आ गया। यह परमेश्वर का अधिकार था, जो उसके द्वारा धारित देह में प्रदर्शित और साकार हुआ था। इस प्रकार का अधिकार और क्षमता सृजनकर्ता की और मनुष्य के उस पुत्र की है, जिसमें सृजनकर्ता साकार हुआ था। लाज़र को पुनर्जीवित करके परमेश्वर द्वारा मानवजाति को यही समझ सिखाई गई है।

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III

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