परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे (भाग एक)
आरंभ में परमेश्वर विश्राम में था। उस समय पृथ्वी पर कोई मनुष्य या अन्य कुछ भी नहीं था और परमेश्वर ने तब तक किसी भी तरह का कोई कार्य नहीं किया था। उसने अपने प्रबंधन का कार्य केवल तब आरंभ किया, जब मानवता अस्तित्व में आ गई और जब मानवता भ्रष्ट कर दी गई; उस पल से, उसने विश्राम नहीं किया बल्कि इसके बजाय उसने स्वयं को मानवता के बीच व्यस्त रखना आरंभ कर दिया। मानवता के भ्रष्ट होने की वजह से और प्रधान स्वर्गदूत के विद्रोह के कारण भी परमेश्वर को विश्राम से उठना पड़ा। यदि परमेश्वर शैतान को परास्त नहीं करता और भ्रष्ट हो चुकी मानवता को नहीं बचाता, तो वह पुनः कभी भी विश्राम में प्रवेश नहीं कर पाएगा। मनुष्य के समान ही परमेश्वर को भी विश्राम नहीं मिलता और जब वह एक बार फिर विश्राम करेगा, तो मनुष्य भी करेंगे। विश्राम में जीवन का अर्थ है युद्ध के बिना, गंदगी के बिना और स्थायी अधार्मिकता के बिना जीवन। कहने का अर्थ है कि यह जीवन शैतान की रुकावटों (यहाँ "शैतान" शत्रुतापूर्ण शक्तियों के संदर्भ में है) और शैतान की भ्रष्टता से मुक्त है और इसे परमेश्वर विरोधी किसी भी शक्ति के आक्रमण का ख़तरा नहीं है; यह ऐसा जीवन है, जिसमें हर चीज़ अपनी किस्म का अनुसरण करती है और सृष्टि के प्रभु की आराधना कर सकती है और जिसमें स्वर्ग और पृथ्वी पूरी तरह शांत हैं—"मनुष्यों का विश्रामपूर्ण जीवन", इन शब्दों का यही अर्थ है। जब परमेश्वर विश्राम करेगा, तो पृथ्वी पर अधार्मिकता नहीं रहेगी, न ही शत्रुतापूर्ण शक्तियों का फिर कोई आक्रमण होगा और मानवजाति एक नए क्षेत्र में प्रवेश करेगी—शैतान द्वारा भ्रष्ट मानवता नहीं होगी, बल्कि ऐसी मानवता होगी, जिसे शैतान के भ्रष्ट किए जाने के बाद बचाया गया है। मानवता के विश्राम का दिन ही परमेश्वर के विश्राम का दिन भी होगा। मानवता के विश्राम में प्रवेश करने में असमर्थता के कारण परमेश्वर ने अपना विश्राम खोया था, इसलिए नहीं कि वह मूल रूप से विश्राम करने में असमर्थ था। विश्राम में प्रवेश करने का अर्थ यह नहीं कि सभी चीज़ों का चलना या विकसित होना बंद हो जाएगा, न ही इसका यह अर्थ है कि परमेश्वर कार्य करना बंद कर देगा या मनुष्यों का जीवन रुक जाएगा। विश्राम में प्रवेश करने का चिह्न होगा जब शैतान नष्ट कर दिया गया है, जब उसके साथ बुरे कामों में शामिल दुष्ट लोग दंडित किए गए हैं और मिटा दिए गए हैं और जब परमेश्वर के प्रति सभी शत्रुतापूर्ण शक्तियों का अस्तित्व समाप्त हो गया है। परमेश्वर के विश्राम में प्रवेश करने का अर्थ है कि वह मानवता के उद्धार का कार्य अब और नहीं करेगा। मानवता के विश्राम में प्रवेश करने का अर्थ है कि समस्त मानवता परमेश्वर के प्रकाश के भीतर और उसके आशीष के अधीन, शैतान की भ्रष्टता के बिना जिएगी और कोई अधार्मिकता नहीं होगी। परमेश्वर की देखभाल में मनुष्य सामान्य रूप से पृथ्वी पर रहेंगे। जब परमेश्वर और मनुष्य दोनों एक साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे, तो इसका अर्थ होगा कि मानवता को बचा लिया गया है और शैतान का विनाश हो चुका है, कि मनुष्यों के बीच परमेश्वर का कार्य पूरी तरह समाप्त हो गया है। परमेश्वर मनुष्यों के बीच अब और कार्य नहीं करता रहेगा और वे अब शैतान के अधिकार क्षेत्र में और नहीं रहेंगे। वैसे तो, परमेश्वर अब और व्यस्त नहीं रहेगा और मनुष्य लगातार गतिमान नहीं रहेंगे; परमेश्वर और मानवता एक साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे। परमेश्वर अपने मूल स्थान पर लौट जाएगा और प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने स्थान पर लौट जाएगा। ये वे गंतव्य हैं, जहाँ परमेश्वर का समस्त प्रबंधन पूरा होने पर परमेश्वर और मनुष्य रहेंगे। परमेश्वर के पास परमेश्वर की मंज़िल है, और मानवता के पास मानवता की। विश्राम करते समय, परमेश्वर पृथ्वी पर सभी मनुष्यों के जीवन का मार्गदर्शन करता रहेगा, जबकि वे उसके प्रकाश में, स्वर्ग के एकमात्र सच्चे परमेश्वर की आराधना करेंगे। परमेश्वर अब मानवता के बीच और नहीं रहेगा, न ही मनुष्य परमेश्वर के साथ उसके गंतव्य में रहने में समर्थ होंगे। परमेश्वर और मनुष्य दोनों एक ही क्षेत्र के भीतर नहीं रह सकते; बल्कि दोनों के जीने के अपने-अपने तरीक़े हैं। परमेश्वर वह है, जो समस्त मानवता का मार्गदर्शन करता है और समस्त मानवता परमेश्वर के प्रबंधन-कार्य का ठोस स्वरूप है। मनुष्य वे हैं, जिनकी अगुआई की जाती है और वे परमेश्वर के सार के समान नहीं हैं। "विश्राम" का अर्थ है अपने मूल स्थान में लौटना। इसलिए, जब परमेश्वर विश्राम में प्रवेश करता है, तो इसका अर्थ है कि परमेश्वर अपने मूल स्थान में लौट जाता है। वह पृथ्वी पर अब और नहीं रहेगा, या मानवता की ख़ुशियाँ या उसके दु:ख साझा नहीं करेगा। जब मनुष्य विश्राम में प्रवेश करते हैं, तो इसका अर्थ है कि वे सृष्टि की सच्ची वस्तु बन गए हैं; वे पृथ्वी से परमेश्वर की आराधना करेंगे और सामान्य मानवीय जीवन जिएंगे। लोग अब और परमेश्वर की अवज्ञा या प्रतिरोध नहीं करेंगे और वे आदम और हव्वा के मूल जीवन की ओर लौट जाएंगे। विश्राम में प्रवेश करने के बाद ये परमेश्वर और मनुष्य के अपने-अपने जीवन और गंतव्य होंगे। परमेश्वर और शैतान के बीच युद्ध में शैतान की पराजय अपरिहार्य प्रवृत्ति है। इसी तरह, अपना प्रबंधन-कार्य पूरा करने के बाद परमेश्वर का विश्राम में प्रवेश करना और मनुष्य का पूर्ण उद्धार और विश्राम में प्रवेश अपरिहार्य प्रवृत्ति बन गए हैं। मनुष्य के विश्राम का स्थान पृथ्वी है और परमेश्वर के विश्राम का स्थान स्वर्ग में है। जब मनुष्य विश्राम में परमेश्वर की आराधना करते हैं, वे पृथ्वी पर रहेंगे और जब परमेश्वर बाकी मानवता को विश्राम में ले जाएगा, वह स्वर्ग से उनका नेतृत्व करेगा न कि पृथ्वी से। परमेश्वर तब भी पवित्र आत्मा ही होगा, जबकि मनुष्य तब भी देह होंगे। परमेश्वर और मनुष्य दोनों अलग ढंग से विश्राम करते हैं। जब परमेश्वर विश्राम करता है, वह मनुष्यों के बीच आएगा और प्रकट होगा; जबकि मनुष्यों को विश्राम के दौरान स्वर्ग की यात्रा करने और साथ ही वहाँ के जीवन का आनंद उठाने के लिए परमेश्वर द्वारा अगुआई की जाएगी। परमेश्वर और मनुष्य के विश्राम में प्रवेश करने के बाद, शैतान का अस्तित्व नहीं रहेगा; उसी तरह, वे दुष्ट लोग भी अस्तित्व में नहीं रहेंगे। परमेश्वर और मनुष्यों के विश्राम में जाने से पहले, वे दुष्ट व्यक्ति जिन्होंने कभी पृथ्वी पर परमेश्वर को उत्पीड़ित किया था, साथ ही वे शत्रु जो पृथ्वी पर उसके प्रति अवज्ञाकारी थे, वे पहले ही नष्ट कर दिए गए होंगे; वे अंत के दिनों की बड़ी आपदा द्वारा नष्ट कर दिए गए होंगे। उन दुष्ट लोगों के पूर्ण विनाश के बाद, पृथ्वी फिर कभी शैतान का उत्पीड़न नहीं जानेगी। केवल तब मानवता पूर्ण उद्धार को प्राप्त करेगी और परमेश्वर का कार्य पूर्णतः समाप्त होगा। परमेश्वर और मनुष्य के विश्राम में प्रवेश करने के लिए ये पूर्व अपेक्षाएँ हैं।
सभी चीज़ों के अंत का पास आना परमेश्वर के कार्य की समाप्ति की ओर और साथ ही मानवता के विकास के अंत का संकेत करता है। इसका अर्थ है कि शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए मनुष्य अपने विकास के अंतिम चरण तक पहुँच गए होंगे और आदम व हव्वा के वंशजों ने अपनी वंश-वृद्धि पूरी कर ली होगी। इसका अर्थ यह भी है कि अब शैतान द्वारा भ्रष्ट की जा चुकी मानवता के लिए लगातार विकास करते रहना असंभव होगा। आदम और हव्वा को आरंभ में भ्रष्ट नहीं किया गया था, पर आदम और हव्वा जो अदन की वाटिका से निकाले गए, उन्हें शैतान द्वारा भ्रष्ट किया गया था। जब परमेश्वर और मनुष्य एक साथ विश्राम में प्रवेश करते हैं, तो आदम और हव्वा—जो अदन वाटिका से बाहर निकाले गए थे—और उनके वंशजों का आखिरकार अंत हो जाएगा। भविष्य की मानवता आदम और हव्वा के वंशजों से ही बनेगी, परंतु वे ऐसे लोग नहीं होंगे, जो शैतान के अधिकार क्षेत्र के अधीन रहते हों। बल्कि ये वे लोग होंगे, जिन्हें बचाया और शुद्ध किया गया है। यह वह मानवता होगी, जिसका न्याय किया गया है और जिसे ताड़ना दी गई है और जो पवित्र है। ये लोग उस मानवजाति के समान नहीं होंगे, जो वह मूल रूप से थी; यह कहा जा सकता है कि वे शुरुआती आदम और हव्वा से पूरी तरह भिन्न प्रकार की मानवता हैं। इन लोगों को उन सभी लोगों में से चुना गया है, जिन्हें शैतान द्वारा भ्रष्ट किया गया था और ये वे लोग होंगे, जो अंततः परमेश्वर के न्याय और ताड़ना के दौरान अडिग रहे हैं; वे भ्रष्ट मानवजाति में से लोगों का अंतिम शेष समूह होंगे। केवल यही लोग परमेश्वर के साथ-साथ अंतिम विश्राम में प्रवेश कर पाएँगे। जो अंत के दिनों के दौरान परमेश्वर के न्याय और ताड़ना के कार्य के दौरान अडिग रहने में समर्थ हैं—यानी, शुद्धिकरण के अंतिम कार्य के दौरान—वे लोग होंगे, जो परमेश्वर के साथ अंतिम विश्राम में प्रवेश करेंगे; वैसे, वे सभी जो विश्राम में प्रवेश करेंगे, शैतान के प्रभाव से मुक्त हो चुके होंगे और परमेश्वर के शुद्धिकरण के अंतिम कार्य से गुज़रने के बाद उसके द्वारा प्राप्त किए जा चुके होंगे। ये लोग, जो अंततः परमेश्वर द्वारा प्राप्त किए जा चुके होंगे, अंतिम विश्राम में प्रवेश करेंगे। परमेश्वर के ताड़ना और न्याय के कार्य का उद्देश्य सार रूप में अंतिम विश्राम की खातिर मानवता को शुद्ध करना है; इस शुद्धिकरण के बिना संपूर्ण मानवता अपने प्रकार के मुताबिक़ विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत नहीं की जा सकेगी, या विश्राम में प्रवेश करने में असमर्थ होगी। यह कार्य ही मानवता के लिए विश्राम में प्रवेश करने का एकमात्र मार्ग है। केवल परमेश्वर द्वारा शुद्धिकरण का कार्य ही मनुष्यों को उनकी अधार्मिकता से शुद्ध करेगा और केवल उसकी ताड़ना और न्याय का कार्य ही मानवता के उन अवज्ञाकारी तत्वों को सामने लाएगा, और इस तरह बचाये जा सकने वालों से बचाए न जा सकने वालों को अलग करेगा, और जो बचेंगे उनसे उन्हें अलग करेगा जो नहीं बचेंगे। इस कार्य के समाप्त होने पर जिन्हें बचने की अनुमति होगी, वे सभी शुद्ध किए जाएँगे, और मानवता की उच्चतर दशा में प्रवेश करेंगे जहाँ वे पृथ्वी पर और अद्भुत द्वितीय मानव जीवन का आनंद उठाएंगे; दूसरे शब्दों में, वे अपने मानवीय विश्राम का दिन शुरू करेंगे और परमेश्वर के साथ रहेंगे। जिन लोगों को रहने की अनुमति नहीं है, उनकी ताड़ना और उनका न्याय किया गया है, जिससे उनके असली रूप पूरी तरह सामने आ जाएँगे; उसके बाद वे सब के सब नष्ट कर दिए जाएँगे और शैतान के समान, उन्हें पृथ्वी पर रहने की अनुमति नहीं होगी। भविष्य की मानवता में इस प्रकार के कोई भी लोग शामिल नहीं होंगे; ऐसे लोग अंतिम विश्राम की धरती पर प्रवेश करने के योग्य नहीं हैं, न ही ये उस विश्राम के दिन में प्रवेश के योग्य हैं, जिसे परमेश्वर और मनुष्य दोनों साझा करेंगे क्योंकि वे दंड के लायक हैं और दुष्ट, अधार्मिक लोग हैं। उन्हें एक बार छुटकारा दिया गया था और उन्हें न्याय और ताड़ना भी दी गई थी; उन्होंने एक बार परमेश्वर को सेवा भी दी थी। हालाँकि जब अंतिम दिन आएगा, तो भी उन्हें अपनी दुष्टता के कारण और अवज्ञा एवं छुटकारा न पाने की योग्यता के परिणामस्वरूप हटाया और नष्ट कर दिया जाएगा; वे भविष्य के संसार में अब कभी अस्तित्व में नहीं आएँगे और कभी भविष्य की मानवजाति के बीच नहीं रहेंगे। जैसे ही मानवता के पवित्र जन विश्राम में प्रवेश करेंगे, चाहे वे मृत लोगों की आत्मा हों या अभी भी देह में रह रहे लोग, सभी बुराई करने वाले और वे सभी जिन्हें बचाया नहीं गया है, नष्ट कर दिए जाएँगे। जहाँ तक इन बुरा करने वाली आत्माओं और मनुष्यों, या धार्मिक लोगों की आत्माओं और धार्मिकता करने वालों की बात है, चाहे वे जिस युग में हों, बुराई करने वाले सभी अंततः नष्ट हो जाएँगे और जो लोग धार्मिक हैं, वे बच जाएँगे। किसी व्यक्ति या आत्मा को उद्धार प्राप्त होगा या नहीं, यह पूर्णतः अंत के युग के समय के कार्य के आधार पर तय नहीं होगा; बल्कि इस आधार पर निर्धारित किया जाता है कि क्या उन्होंने परमेश्वर का प्रतिरोध किया था, या वे परमेश्वर के प्रति अवज्ञाकारी रहे हैं। पिछले युगों में जिन लोगों ने बुरा किया और जो उद्धार नहीं प्राप्त कर पाए, निःसंदेह वे दंड के भागी बनेंगे और वे जो इस युग में बुरा करते हैं और उद्धार प्राप्त नहीं कर सकते, तो वे भी निश्चित रूप से दंड के भागी बनेंगे। मनुष्य अच्छे और बुरे के आधार पर पृथक किए जाते हैं, युग के आधार पर नहीं। एक बार इस प्रकार वर्गीकृत किए जाने पर, उन्हें तुरंत दंड या पुरस्कार नहीं दिया जाएगा; बल्कि, परमेश्वर अंत के दिनों में अपने विजय के कार्य को समाप्त करने के बाद ही बुराई को दंडित करने और अच्छाई को पुरस्कृत करने का अपना कार्य करेगा। वास्तव में, वह मनुष्यों को तब से अच्छे और बुरे में पृथक कर रहा है, जबसे उसने मानवजाति के उद्धार का अपना कार्य आरंभ किया था। बात बस इतनी है कि वह धार्मिकों को पुरस्कृत और दुष्टों को दंड देने का कार्य केवल तब करेगा, जब उसका कार्य समाप्त हो जाएगा; ऐसा नहीं है कि वह अपने कार्य के पूरा होने पर उन्हें श्रेणियों में पृथक करेगा और फिर तुरंत दुष्टों को दंडित करना और धार्मिकों को पुरस्कृत करना शुरू करेगा। बल्कि, यह कार्य तभी किया जाएगा, जब उसका कार्य पूर्ण रूप से समाप्त हो जाएगा। बुराई को दंडित करने और अच्छाई को पुरस्कृत करने के परमेश्वर के अंतिम कार्य के पीछे का पूरा उद्देश्य, सभी मनुष्यों को पूरी तरह शुद्ध करना है, ताकि वह पूरी तरह पवित्र मानवता को शाश्वत विश्राम में ला सके। उसके कार्य का यह चरण सबसे अधिक महत्वपूर्ण है; यह उसके समस्त प्रबंधन-कार्य का अंतिम चरण है। यदि परमेश्वर ने दुष्टों का नाश नहीं किया होता, बल्कि उन्हें बचा रहने देता तो प्रत्येक मनुष्य अभी भी विश्राम में प्रवेश करने में असमर्थ होता और परमेश्वर समस्त मानवता को एक बेहतर क्षेत्र में नहीं ला पाता। ऐसा कार्य पूर्ण नहीं होता। जब वह अपना कार्य समाप्त कर लेगा, तो संपूर्ण मानवता पूर्णतः पवित्र हो जाएगी। केवल इसी तरीक़े से परमेश्वर शांतिपूर्वक विश्राम में रह सकता है।
आजकल लोग अभी भी देह की चीज़ें छोड़ने में असमर्थ हैं; वे देह के सुख नहीं छोड़ सकते, न वे संसार, धन और अपने भ्रष्ट स्वभाव छोड़ पाते हैं। अधिकांश लोग अपनी कोशिशें बेपरवाही से करते हैं। वास्तव में इन लोगों के हृदय में परमेश्वर है ही नहीं; इससे भी बुरा यह है कि वे परमेश्वर का भय नहीं मानते। परमेश्वर उनके दिलों में नहीं है और इसलिए वे वह सब नहीं समझ पाते, जो परमेश्वर करता है और वे उसके द्वारा कहे गए वचनों पर विश्वास करने में तो और भी असमर्थ हैं। ऐसे लोग अत्यधिक देह में रमे होते हैं, वे आकंठ भ्रष्ट होते हैं और उनमें पूरी तरह सत्य का अभाव होता है। और तो और, उन्हें विश्वास नहीं कि परमेश्वर देहधारी हो सकता है। जो कोई देहधारी परमेश्वर पर विश्वास नहीं करता—अर्थात, जो कोई प्रत्यक्ष परमेश्वर या उसके कार्य और वचनों पर विश्वास नहीं करता और इसके बजाय स्वर्ग के अदृश्य परमेश्वर की आराधना करता है—वह व्यक्ति है, जिसके हृदय में परमेश्वर नहीं है। ये लोग विद्रोही हैं और परमेश्वर का प्रतिरोध करते हैं। इन लोगों में मानवता और तर्क का अभाव होता है, सत्य के बारे में तो कहना ही क्या। इसके अतिरिक्त, इन लोगों के लिए, प्रत्यक्ष और स्पर्शनीय परमेश्वर तो और भी विश्वास के योग्य नहीं है, फिर भी वे अदृश्य और अस्पर्शनीय परमेश्वर को सर्वाधिक विश्वसनीय और खुशी देने वाला मानते हैं। वे जिसे खोजते हैं, वह वास्तविक सत्य नहीं है, न ही वह जीवन का वास्तविक सार है; परमेश्वर की इच्छा तो और भी नहीं। इसके उलट वे रोमांच खोजते हैं। जो भी वस्तुएं उन्हें अधिक से अधिक उनकी इच्छाओं को पूरा करने में सक्षम बनाती हैं, बिना शक वे वो वस्तुएँ हैं जिनमें उनका विश्वास है और जिसका वे अनुसरण करते हैं। वे परमेश्वर पर केवल इसलिए विश्वास करते हैं ताकि निजी इच्छाएं पूरी कर पाएं, सत्य की खोज के लिए नहीं। क्या ऐसे लोग बुराई करने वाले नहीं हैं? वे आत्मविश्वास से अत्यधिक भरे हैं, और वे यह बिल्कुल विश्वास नहीं करते कि स्वर्ग का परमेश्वर उनके जैसे इन "भले लोगों" को नष्ट कर देगा। इसके बजाय, उनका मानना है कि परमेश्वर उन्हें बना रहने देगा और इसके अलावा, उन्हें परमेश्वर के लिए कई चीज़ें करने और उसके प्रति यथेष्ट "वफ़ादारी" दिखाने के कारण उन्हें अच्छी तरह पुरस्कृत करेगा। अगर वे भी प्रत्यक्ष परमेश्वर का भी अनुसरण करते, तो जैसे ही उनकी इच्छाएँ पूरी न होतीं, वे तुरंत परमेश्वर के ख़िलाफ़ जवाबी हमला कर देते या बेहद नाराज़ हो जाते। वे ख़ुद को नीच और अवमानना करने वाले लोगों की तरह दिखाते हैं, जो हमेशा अपनी इच्छाएँ पूरी करना चाहते हैं; वे सत्य की खोज में लगे ईमानदार लोग नहीं हैं। ऐसे लोग वे तथाकथित दुष्ट हैं, जो मसीह के पीछे चलते हैं। जो लोग सत्य की खोज नहीं करते, वे संभवत: सत्य पर विश्वास नहीं कर सकते और मानवता के भविष्य का परिणाम समझने में और भी अधिक अयोग्य हैं, क्योंकि वे प्रत्यक्ष परमेश्वर के किसी कार्य या वचनों पर विश्वास नहीं करते—और इसमें मानवता के भविष्य के गंतव्य पर विश्वास नहीं कर पाना शामिल है। इसलिए, यदि वे साक्षात परमेश्वर का अनुसरण करते भी हैं, तब भी वे बुरा करेंगे और सत्य को बिल्कुल नहीं खोजेंगे, न ही वे उस सत्य का अभ्यास करेंगे, जिसकी मुझे अपेक्षा है। वे लोग जो यह विश्वास नहीं करते कि वे नष्ट हो जाएंगे, वही लोग असल में नष्ट होंगे। वे सब स्वयं को बहुत चतुर मानते हैं और वे सोचते हैं कि वे ही वो लोग हैं, जो सत्य का अभ्यास करते हैं। वे अपने बुरे आचरण को सत्य मानते हैं और इसलिए उसे सँजोते हैं। ऐसे दुष्ट लोग अत्यधिक आत्मविश्वास से भरे हैं; वे सत्य को सिद्धांत मानते हैं और अपने बुरे कार्यों को सत्य मानते हैं, लेकिन अंत में, वे केवल वहीं काटेंगे, जो उन्होंने बोया है। लोग जितना अधिक आत्मविश्वासी हैं और जितना अधिक घमंडी हैं, उतना ही अधिक वे सत्य को पाने में असमर्थ हैं; लोग जितना ज़्यादा स्वर्गिक परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, वे उतना अधिक परमेश्वर का प्रतिरोध करते हैं। ये वे लोग हैं, जो दंडित किए जाएंगे। मानवता के विश्राम में प्रवेश से पहले, हर एक व्यक्ति का दंडित होना या पुरस्कृत होना इस बात पर आधारित होगा कि क्या उन्होंने सत्य की खोज की है, क्या वे परमेश्वर को जानते हैं और क्या वे प्रत्यक्ष परमेश्वर को समर्पण कर सकते हैं। जिन्होंने प्रत्यक्ष परमेश्वर को सेवा दी है, पर उसे न तो जानते हैं न ही उसे समर्पण करते हैं, उनमें सत्य नहीं है। ऐसे लोग बुराई करने वाले हैं और बुराई करने वाले निःसंदेह दंड के भागी होंगे; इसके अलावा, वे अपने दुष्ट आचरण के अनुसार दंड पाएंगे। परमेश्वर मनुष्यों के विश्वास करने के लिए है और वह उनकी आज्ञाकारिता के योग्य भी है। वे जो केवल अज्ञात और अदृश्य परमेश्वर पर विश्वास रखते हैं, वे लोग हैं जो परमेश्वर पर विश्वास नहीं करते और परमेश्वर को समर्पण करने में असमर्थ हैं। यदि ये लोग तब भी दृश्यमान परमेश्वर पर विश्वास नहीं कर पाते, जब उसका विजय कार्य समाप्त होता है और लगातार अवज्ञाकारी बने रहते हैं और देह में दिखाई देने वाले परमेश्वर का विरोध करते हैं, तो ये "अज्ञातवादी" बिना संदेह विनाश की वस्तुएँ बन जाएँगे। यह उसी प्रकार है, जैसे तुम सब के बीच के कुछ लोग जो मौखिक रूप में देहधारी परमेश्वर को पहचानते हैं, फिर भी देहधारी परमेश्वर के प्रति समर्पण के सत्य का अभ्यास नहीं कर पाते, तो वे अंत में हटाने और विनाश की वस्तु बनेंगे। इसके अलावा, जो कोई मौखिक रूप से दृष्टिगोचर परमेश्वर को पहचानता है, उसके द्वारा अभिव्यक्त सत्य को खाता और पीता है जबकि अज्ञात और अदृश्य परमेश्वर को भी खोजता है, वह निश्चित ही विनाश का पात्र होगा। इन लोगों में से कोई भी, परमेश्वर का कार्य पूरा होने के बाद उसके विश्राम का समय आने तक नहीं बचेगा, न ही उस विश्राम के समय, ऐसे लोगों के समान एक भी व्यक्ति बच सकता है। दुष्टात्मा लोग वे हैं, जो सत्य का अभ्यास नहीं करते; उनका सार प्रतिरोध करना और परमेश्वर की अवज्ञा करना है और उनमें परमेश्वर के समक्ष समर्पण की लेशमात्र भी इच्छा नहीं है। ऐसे सभी लोग नष्ट किए जाएँगे। तुम्हारे पास सत्य है या नहीं और तुम परमेश्वर का प्रतिरोध करते हो या नहीं, यह तुम्हारे प्रकटन पर या तुम्हारी कभीकभार की बातचीत और आचरण पर नहीं बल्कि तुम्हारे सार पर निर्भर है। प्रत्येक व्यक्ति का सार तय करता है कि उसे नष्ट किया जाएगा या नहीं; यह किसी के व्यवहार और किसी की सत्य की खोज द्वारा उजागर हुए सार के अनुसार तय किया जाता है। उन लोगों में जो कार्य करने में एक दूसरे के समान हैं, और जो समान मात्रा में कार्य करते हैं, जिनके मानवीय सार अच्छे हैं और जिनके पास सत्य है, वे लोग हैं जिन्हें रहने दिया जाएगा, जबकि वे जिनका मानवीय सार दुष्टता भरा है और जो दृश्यमान परमेश्वर की अवज्ञा करते हैं, वे विनाश की वस्तु होंगे। परमेश्वर के सभी कार्य या मानवता के गंतव्य से संबंधित वचन प्रत्येक व्यक्ति के सार के अनुसार उचित रूप से लोगों के साथ व्यवहार करेंगे; थोड़ी-सी भी त्रुटि नहीं होगी और एक भी ग़लती नहीं की जाएगी। केवल जब लोग कार्य करते हैं, तब ही मनुष्य की भावनाएँ या अर्थ उसमें मिश्रित होते हैं। परमेश्वर जो कार्य करता है, वह सबसे अधिक उपयुक्त होता है; वह निश्चित तौर पर किसी प्राणी के विरुद्ध झूठे दावे नहीं करता। अभी बहुत से लोग हैं, जो मानवता के भविष्य के गंतव्य को समझने में असमर्थ हैं और वे उन वचनों पर विश्वास नहीं करते, जो मैं कहता हूँ। वे सभी जो विश्वास नहीं करते और वे भी जो सत्य का अभ्यास नहीं करते, दुष्टात्मा हैं!
आजकल, वे जो खोज करते हैं और वे जो नहीं करते, दो पूरी तरह भिन्न प्रकार के लोग हैं, जिनके गंतव्य भी काफ़ी अलग हैं। वे जो सत्य के ज्ञान का अनुसरण करते हैं और सत्य का अभ्यास करते हैं, वे लोग हैं जिनका परमेश्वर उद्धार करेगा। वे जो सच्चे मार्ग को नहीं जानते, वे दुष्टात्माओं और शत्रुओं के समान हैं। वे प्रधान स्वर्गदूत के वंशज हैं और विनाश की वस्तु होंगे। यहाँ तक कि एक अज्ञात परमेश्वर के धर्मपरायण विश्वासीजन—क्या वे भी दुष्टात्मा नहीं हैं? जिन लोगों का अंत:करण साफ़ है, परंतु सच्चे मार्ग को स्वीकार नहीं करते, वे भी दुष्टात्मा हैं; उनका सार भी परमेश्वर का प्रतिरोध करने वाला है। वे जो सत्य के मार्ग को स्वीकार नहीं करते, वे हैं जो परमेश्वर का प्रतिरोध करते हैं और भले ही ऐसे लोग बहुत-सी कठिनाइयाँ सहते हैं, तब भी वे नष्ट किए जाएँगे। वे सभी जो संसार को छोड़ना नहीं चाहते, जो अपने माता-पिता से अलग होना नहीं सह सकते और जो स्वयं को देह के सुख से दूर रखना सहन नहीं कर सकते, परमेश्वर के प्रति अवज्ञाकारी हैं और वे सब विनाश की वस्तु बनेंगे। जो भी देहधारी परमेश्वर को नहीं मानता, दुष्ट है और इसके अलावा, वे नष्ट किए जाएँगे। वे सब जो विश्वास करते हैं, पर सत्य का अभ्यास नहीं करते, वे जो देहधारी परमेश्वर में विश्वास नहीं करते और वे जो परमेश्वर के अस्तित्व पर लेशमात्र भी विश्वास नहीं रखते, वे सब नष्ट होंगे। वे सभी जिन्हें रहने दिया जाएगा, वे लोग हैं, जो शोधन के दुख से गुज़रे हैं और डटे रहे हैं; ये वे लोग हैं, जो वास्तव में परीक्षणों से गुज़रे हैं। यदि कोई परमेश्वर को नहीं पहचानता, शत्रु है; यानी कोई भी जो देहधारी परमेश्वर को नहीं पहचानता—चाहे वह इस धारा के भीतर है या बाहर—एक मसीह-विरोधी है! शैतान कौन है, दुष्टात्माएँ कौन हैं और परमेश्वर के शत्रु कौन हैं, क्या ये वे नहीं, जो परमेश्वर का प्रतिरोध करते और परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते? क्या ये वे लोग नहीं, जो परमेश्वर के प्रति अवज्ञाकारी हैं? क्या ये वे नहीं, जो विश्वास करने का दावा तो करते हैं, परंतु उनमें सत्य नहीं है? क्या ये वे लोग नहीं, जो सिर्फ़ आशीष पाने की फ़िराक में रहते हैं जबकि परमेश्वर के लिए गवाही देने में असमर्थ हैं? तुम अभी भी इन दुष्टात्माओं के साथ घुलते-मिलते हो और उनके प्रति साफ़ अंत:करण और प्रेम रखते हो, लेकिन क्या इस मामले में तुम शैतान के प्रति सदिच्छाओं को प्रकट नहीं कर रहे? क्या तुम दानवों के साथ मिलकर षड्यंत्र नहीं कर रहे? यदि आज कल भी लोग अच्छे और बुरे में भेद नहीं कर पाते और परमेश्वर की इच्छा जानने का कोई इरादा न रखते हुए या परमेश्वर की इच्छाओं को अपनी इच्छा की तरह मानने में असमर्थ रहते हुए, आँख मूँदकर प्रेम और दया दर्शाते रहते हैं, तो उनके अंत और भी अधिक ख़राब होंगे। यदि कोई देहधारी परमेश्वर पर विश्वास नहीं करता, तो वह परमेश्वर का शत्रु है। यदि तुम शत्रु के प्रति साफ़ अंत:करण और प्रेम रख सकते हो, तो क्या तुममें धार्मिकता की समझ का अभाव नहीं है? यदि तुम उनके साथ सहज हो, जिनसे मैं घृणा करता हूँ, और जिनसे मैं असहमत हूँ और तुम तब भी उनके प्रति प्रेम और निजी भावनाएँ रखते हो, तब क्या तुम अवज्ञाकारी नहीं हो? क्या तुम जानबूझकर परमेश्वर का प्रतिरोध नहीं कर रहे हो? क्या ऐसे व्यक्ति में सत्य होता है? यदि लोग शत्रुओं के प्रति साफ़ अंत:करण रखते हैं, दुष्टात्माओं से प्रेम करते हैं और शैतान पर दया दिखाते हैं, तो क्या वे जानबूझकर परमेश्वर के कार्य में रुकावट नहीं डाल रहे हैं? वे लोग जो केवल यीशु पर विश्वास करते हैं और अंत के दिनों के देहधारी परमेश्वर को नहीं मानते, और जो ज़बानी तौर पर देहधारी परमेश्वर में विश्वास करने का दावा करते हैं, परंतु बुरे कार्य करते हैं, वे सब मसीह-विरोधी हैं, उनकी तो बात ही क्या जो परमेश्वर पर विश्वास नहीं करते। ये सभी लोग विनाश की वस्तु बनेंगे। मनुष्य जिस मानक से दूसरे मनुष्य को आंकता है, वह व्यवहार पर आधारित है; वे जिनका आचरण अच्छा है, धार्मिक हैं और जिनका आचरण घृणित है, दुष्ट हैं। परमेश्वर जिस मानक से मनुष्यों का न्याय करता है, उसका आधार है कि क्या व्यक्ति का सार परमेश्वर को समर्पित है या नहीं; वह जो परमेश्वर को समर्पित है, धार्मिक है और जो नहीं है वह शत्रु और दुष्ट व्यक्ति है, भले ही उस व्यक्ति का आचरण अच्छा हो या बुरा, भले ही इस व्यक्ति की बातें सही हों या गलत हों। कुछ लोग अच्छे कर्मों का उपयोग भविष्य में अच्छी मंज़िल प्राप्त करने के लिए करना चाहते हैं और कुछ लोग अच्छी वाणी का उपयोग एक अच्छी मंज़िल हासिल करने में करना चाहते हैं। प्रत्येक व्यक्ति का यह ग़लत विश्वास है कि परमेश्वर मनुष्य के व्यवहार को देखकर या उनकी बातें सुनकर उसका परिणाम निर्धारित करता है; इसलिए बहुत से लोग परमेश्वर को धोखा देने के लिए इसका फ़ायदा उठाना चाहते हैं, ताकि वह उन पर क्षणिक कृपा कर दे। भविष्य में, जो लोग विश्राम की अवस्था में जीवित बचेंगे, उन सभी ने क्लेश के दिन को सहन किया हुआ होगा और परमेश्वर की गवाही दी हुई होगी; ये वे सब लोग होंगे, जिन्होंने अपने कर्तव्य पूरे किए हैं और जिन्होंने जानबूझकर परमेश्वर को समर्पण किया है। जो केवल सत्य का अभ्यास करने से बचने की इच्छा के साथ सेवा करने के अवसर का लाभ उठाना चाहते हैं, उन्हें रहने नहीं दिया जाएगा। परमेश्वर के पास प्रत्येक व्यक्ति के परिणामों के प्रबंधन के लिए उचित मानक हैं; वह केवल यूँ ही किसी के शब्दों या आचरण के अनुसार ये निर्णय नहीं लेता, न ही वह एक अवधि के दौरान किसी के व्यवहार के अनुसार निर्णय लेता है। अतीत में किसी व्यक्ति द्वारा परमेश्वर के लिए की गई किसी सेवा की वजह से वह किसी के दुष्ट व्यवहार के प्रति नर्मी कतई नहीं करेगा, न ही वह परमेश्वर के लिए एक बार स्वयं को खपाने के कारण किसी को मृत्यु से बचाएगा। कोई भी अपनी दुष्टता के लिए प्रतिफल से नहीं बच सकता, न ही कोई अपने दुष्ट आचरण को छिपा सकता है और फलस्वरूप विनाश की पीड़ा से बच सकता है। यदि लोग वास्तव में अपने कर्तव्यों का पालन कर सकते हैं, तो इसका अर्थ है कि वे अनंतकाल तक परमेश्वर के प्रति वफ़ादार हैं और उन्हें इसकी परवाह नहीं होती कि उन्हें आशीष मिलते हैं या वे दुर्भाग्य से पीड़ित होते हैं, वे पुरस्कार की तलाश नहीं करते। यदि लोग तब परमेश्वर के लिए वफ़ादार हैं, जब उन्हें आशीष दिखते हैं और जब उन्हें आशीष नहीं दिखाई देते, तो अपनी वफ़ादारी खो देते हैं और अगर अंत में भी वे परमेश्वर की गवाही देने में असमर्थ रहते हैं या उन कर्तव्यों को करने में असमर्थ रहते हैं जिसके लिए वे ज़िम्मेदार हैं, तो पहले वफ़ादारी से की गई परमेश्वर की सेवा के बावजूद वे विनाश की वस्तु बनेंगे। संक्षेप में, दुष्ट लोग अनंतकाल तक जीवित नहीं रह सकते, न ही वे विश्राम में प्रवेश कर सकते हैं; केवल धार्मिक लोग ही विश्राम के अधिकारी हैं। जब मानवता सही मार्ग पर होगी, लोग सामान्य मानवीय जीवन जिएँगे। वे सब अपने-अपने कर्तव्य निभाएँगे और परमेश्वर के प्रति पूर्णतः वफ़ादार होंगे। वे अपनी अवज्ञा और अपने भ्रष्ट स्वभाव को पूरी तरह छोड़ देंगे और वे अवज्ञा और प्रतिरोध दोनों के बिना परमेश्वर के लिए और परमेश्वर के कारण जिएंगे। वे पूर्णतः परमेश्वर को समर्पित होने में सक्षम होंगे। यही परमेश्वर और मानवता का जीवन होगा; यह राज्य का जीवन होगा और यह विश्राम का जीवन होगा।
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