परमेश्वर के दैनिक वचन : परमेश्वर का स्वभाव और स्वरूप | अंश 244
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मनुष्य की देह की भ्रष्टता का न्याय करने के लिए देह में प्रकट परमेश्वर से अधिक उपयुक्त और कोई योग्य नहीं है। यदि न्याय सीधे तौर पर परमेश्वर के आत्मा के द्वारा किया जाए, तो यह सर्वव्यापी नहीं होता। इसके अतिरिक्त, ऐसे कार्य को स्वीकार करना मनुष्य के लिए कठिन होता है, क्योंकि पवित्रात्मा मनुष्य के रूबरू आने में असमर्थ है, और इस वजह से, प्रभाव तत्काल नहीं होते, और मनुष्य परमेश्वर के अपमान न किए जाने योग्य स्वभाव को साफ-साफ देखने में बिलकुल भी सक्षम नहीं होता। यदि देह में प्रकट परमेश्वर मनुष्यजाति की भ्रष्टता का न्याय करे तभी शैतान को पूरी तरह से हराया जा सकता है। मनुष्य के समान सामान्य मानवता धारण करने वाला बन कर ही, देह में प्रकट परमेश्वर सीधे तौर पर मनुष्य की अधार्मिकता का न्याय कर सकता है; यही उसकी जन्मजात पवित्रता, और उसकी असाधारणता का चिन्ह है। केवल परमेश्वर ही मनुष्य का न्याय करने के योग्य है, और उसका न्याय करने की स्थिति में है, क्योंकि वह सत्य और धार्मिकता को धारण किए हुए है, और इस प्रकार वह मनुष्य का न्याय करने में समर्थ है। जो सत्य और धार्मिकता से रहित हैं वे दूसरों का न्याय करने लायक नहीं हैं। यदि इस कार्य को परमेश्वर के आत्मा द्वारा किया जाता, तो इसका अर्थ शैतान पर विजय नहीं होता। पवित्रात्मा अंतर्निहित रूप से ही नश्वर प्राणियों की तुलना में अधिक उत्कृष्ट है, और परमेश्वर का आत्मा अंतर्निहित रूप से पवित्र है, और देह पर विजय प्राप्त किए हुए है। यदि पवित्रात्मा ने इस कार्य को सीधे तौर पर किया होता, तो वह मनुष्य की समस्त अवज्ञा का न्याय नहीं कर पाता, और उसकी सारी अधार्मिकता को प्रकट नहीं कर पाता। क्योंकि न्याय के कार्य को परमेश्वर के बारे में मनुष्य की धारणाओं के माध्यम से भी कार्यान्वित किया जाता है, और मनुष्य के अंदर कभी भी पवित्रात्मा के बारे में कोई धारणाएँ नहीं रही हैं, इसलिए पवित्रात्मा मनुष्य की अधार्मिकता को बेहतर तरीके से प्रकट करने में असमर्थ है, वह ऐसी अधार्मिकता को पूरी तरह से उजागर करने में तो बिल्कुल भी समर्थ नहीं है। देहधारी परमेश्वर उन सब लोगों का शत्रु है जो उसे नहीं जानते। अपने प्रति मनुष्य की धारणाओं और विरोध का न्याय करके, वह मनुष्यजाति की सारी अवज्ञा का खुलासा करता है। देह में उसके कार्य के प्रभाव पवित्रात्मा के कार्य की तुलना में अधिक स्पष्ट होते हैं। इसलिए, संपूर्ण मनुष्यजाति के न्याय को पवित्रात्मा के द्वारा सीधे तौर पर सम्पन्न नहीं किया जाता, बल्कि यह देहधारी परमेश्वर का कार्य है। देहधारी परमेश्वर को मनुष्य देख और छू सकता है, और देहधारी परमेश्वर मनुष्य पर पूरी तरह से विजय पा सकता है। देहधारी परमेश्वर के साथ अपने रिश्ते में, मनुष्य विरोध से आज्ञाकारिता की ओर, उत्पीड़न से स्वीकृति की ओर, धारणा से ज्ञान की ओर, और तिरस्कार से प्रेम की ओर प्रगति करता है—ये हैं देहधारी परमेश्वर के कार्य के प्रभाव। मनुष्य को परमेश्वर के न्याय की स्वीकृति से ही बचाया जाता है, वह परमेश्वर के बोले गए वचनों से ही धीरे-धीरे उसे जानने लगता है, परमेश्वर के प्रति उसके विरोध के दौरान परमेश्वर द्वारा मनुष्य पर विजय पायी जाती है, और परमेश्वर की ताड़ना की स्वीकृति के दौरान वह उससे जीवन की आपूर्ति प्राप्त करता है। यह समस्त कार्य देहधारी परमेश्वर के कार्य हैं, यह पवित्रात्मा के रूप में परमेश्वर के कार्य नहीं हैं। देहधारी परमेश्वर के द्वारा किया गया कार्य महानतम और बेहद गंभीर कार्य है, परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों का अति महत्वपूर्ण भाग देहधारण के कार्य के दो चरण हैं। इंसान की भयंकर भ्रष्टता देहधारी परमेश्वर के कार्य में एक बड़ी बाधा है। विशेष रूप से, अंत के दिनों के लोगों पर किया गया कार्य बहुत ही कठिन है, परिवेश शत्रुतापूर्ण है, और हर प्रकार के लोगों की क्षमता बहुत ही कमज़ोर है। फिर भी इस कार्य के अंत में, यह बिना किसी त्रुटि के उचित प्रभाव ही प्राप्त करेगा; यह देह के कार्य का प्रभाव है, और यह प्रभाव पवित्रात्मा के कार्य की तुलना में अधिक प्रेरक है। परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों का समापन देह में किया जाएगा, और इसे देहधारी परमेश्वर द्वारा ही पूरा किया जाना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण और सबसे निर्णायक कार्य देह में किया जाता है, और मनुष्य का उद्धार व्यक्तिगत रूप से देहधारी परमेश्वर द्वारा ही किया जाना चाहिए। हर इंसान को यही लगता है कि देहधारी परमेश्वर इंसान से संबंधित नहीं है, जबकि सच्चाई यह है कि देह पूरी मनुष्यजाति की नियति और अस्तित्व से सम्बन्धित है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, भ्रष्ट मनुष्यजाति को देहधारी परमेश्वर द्वारा उद्धार की अधिक आवश्यकता है
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