सत्य का अनुसरण कैसे करें (8) भाग एक
पहले, हमने सत्य का अनुसरण कैसे करें के प्रथम प्रमुख पहलू के बारे में संगति की थी, जो कि त्याग देना है। त्याग देने के संबंध में, हमने अभ्यास के प्रथम पहलू के बारे में संगति की थी, जो विभिन्न नकारात्मक भावनाओं को त्याग देना है। लोगों की विभिन्न नकारात्मक भावनाओं के बारे में संगति करने और उनका विश्लेषण करने का हमारा उद्देश्य मुख्य रूप से उन नकारात्मक भावनाओं के नीचे छिपे गलत और विकृत विचारों और दृष्टिकोणों का समाधान करना है। क्या यह सही नहीं है? (हाँ।) अर्थात्, लोगों के दिलों में जो नकारात्मक भावनाएं हैं, उनका समाधान करके हमारा लक्ष्य उन नकारात्मक विचारों और दृष्टिकोणों का समाधान करना है जो वे विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों के प्रति अपने हृदय की गहराई में रखते हैं। निःसंदेह, विभिन्न नकारात्मक भावनाओं को उजागर और विश्लेषित करके और लोगों को सही विचार, दृष्टिकोण और समझ प्रदान करके भी लोगों की विभिन्न नकारात्मक भावनाओं का समाधान किया जा सकता है। यह इसलिए है ताकि जब भी लोगों पर कोई मुसीबत आए, चाहे उनके दैनिक जीवन में या उनके जीवन पथ पर, वे गलत और विकृत विचारों और दृष्टिकोणों से परेशान या बंधे हुए न हों, इसके बजाय प्रत्येक दिन और हर दिन अपने सामने आने वाले लोगों, घटनाओं और चीजों का सामना उन सकारात्मक, सही विचारों और दृष्टिकोणों के साथ करें जो सत्य के अनुरूप हों। इस प्रकार, वास्तविक जीवन में लोगों, घटनाओं और चीजों का सामना करते समय, वे उग्रता के साथ प्रतिक्रिया नहीं करेंगे, बल्कि सामान्य मानवीय अंतरात्मा और विवेक के दायरे में रहेंगे और परमेश्वर द्वारा सिखाए गए सटीक और सही तरीकों का उपयोग करके, अपने जीवन में और जीवन के पथ पर आने वाली या अनुभव होने वाली हर स्थिति से तर्कसंगत रूप से निपटने और संभालने में सक्षम होंगे। ऐसा करने का एक पहलू यह है कि लोग सही विचारों और दृष्टिकोणों के मार्गदर्शन और प्रभाव में रहें। दूसरा पहलू यह है कि वे इन सकारात्मक विचारों और दृष्टिकोणों के मार्गदर्शन और प्रभाव में हर स्थिति को सही ढंग से संभाल सकें। बेशक हर स्थिति को सही ढंग से संभालने की क्षमता अंतिम लक्ष्य नहीं है। अंतिम लक्ष्य वह पूरा करना है जो परमेश्वर में विश्वास करने वालों को पूरा करना चाहिए, अर्थात् परमेश्वर का भय मानना और बुराई से दूर रहना, परमेश्वर और उसकी व्यवस्थाओं और आयोजनों के प्रति समर्पण करना, उसके द्वारा स्थापित प्रत्येक परिवेश के प्रति समर्पण करना और निश्चित रूप से अपनी नियति के प्रति समर्पण करना जिस पर परमेश्वर की संप्रभुता है और हर परिवेश में प्रत्येक व्यक्ति, घटना और चीज के बीच तर्कसंगत ढंग से रहना। संक्षेप में, चाहे हम लोगों की नकारात्मक भावनाओं या नकारात्मक विचारों और दृष्टिकोणों के बारे में संगति कर रहे हों और उनका विश्लेषण कर रहे हों, यह सब उस पथ से संबंधित है जिस पर एक सृजित प्राणी को चलना चाहिए, वह जीवन पथ जिसकी परमेश्वर एक सामान्य व्यक्ति से अपेक्षा करता है। और निःसंदेह, यह उन सिद्धांतों से भी संबंधित है जो एक सृजित प्राणी में होने चाहिए, इस संदर्भ में कि वे लोगों और चीजों को कैसे देखते हैं, वे स्वयं कैसा आचरण करते हैं और कैसे कार्य करते हैं। विभिन्न नकारात्मक भावनाओं को त्याग देना स्पष्ट रूप से लोगों की नकारात्मक भावनाओं को हल करने और उन नकारात्मक भावनाओं के नीचे छिपे नकारात्मक और भ्रामक विचारों और दृष्टिकोणों का समाधान करने के बारे में है। किंतु वास्तव में, तुम यह भी कह सकते हो कि मूल रूप से यह लोगों का मार्गदर्शन करने, उनका पोषण करने और उनकी मदद करने के बारे में है या लोगों को यह सिखाने के बारे में है कि विभिन्न परिवेशों, लोगों, घटनाओं और चीजों का सामना करते समय कैसा आचरण करना है और एक सच्चा और सामान्य व्यक्ति, एक तर्कसंगत व्यक्ति कैसे बनना है, ऐसा व्यक्ति जो परमेश्वर उनसे अपेक्षा करता है कि वे बनें, वह व्यक्ति जिससे परमेश्वर प्रेम करता हो, वह व्यक्ति जो परमेश्वर को प्रसन्न करता हो। यह सत्य सिद्धांतों के अन्य पहलुओं के समान है, क्योंकि वे सभी व्यक्ति के आचरण से संबंधित हैं। ऊपर से तो विभिन्न नकारात्मक भावनाओं को त्याग देने का विषय पूरी तरह से सांसारिक भावना या एक ऐसी मनोदशा से जुड़ा हुआ प्रतीत होता है जिसमें लोग इस समय जी रहे हैं। किंतु वास्तव में, ये भावनाएँ और ये सरल मनोदशाएँ उस पथ से संबंधित हैं जिस पर लोग चलते हैं और उन सिद्धांतों से संबंधित हैं जिनके अनुसार वे आचरण करते हैं। किसी व्यक्ति के परिप्रेक्ष्य से, ऐसा लग सकता है कि वे महत्वहीन हैं और उल्लेख करने योग्य भी नहीं हैं। लेकिन वे उन दृष्टिकोणों से संबंधित हैं जो लोग रखते हैं और उन परिप्रेक्ष्यों और नजरियों से भी जो वे विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों का सामना करते समय अपनाते हैं, इसलिए उनका संबंध व्यक्ति के आचरण से होता है। अधिक विशिष्ट रूप से, उनमें यह शामिल है कि लोगों और चीजों को कैसे देखना है, कैसे आचरण और कार्य करना है। चूँकि उनमें यह शामिल है कि लोगों और चीजों को कैसे देखना है, स्वयं कैसे आचरण और कार्य करना है, इसलिए लोगों के दैनिक जीवन में इन नकारात्मक भावनाओं और नकारात्मक विचारों और दृष्टिकोणों की लगातार जांच करने और चिंतन करने की आवश्यकता है। निःसंदेह, लोगों के लिए यह भी जरूरी है कि जब भी उन्हें चिंतन की प्रक्रिया के दौरान पता चले कि उनमें नकारात्मक भावनाएं या नकारात्मक और भ्रामक विचार और दृष्टिकोण हैं, तो वे तुरंत स्वयं को सही करने में सक्षम हों और इन नकारात्मक भावनाओं और भ्रामक विचारों और दृष्टिकोणों की जगह तुरंत सकारात्मक और सही विचारों और दृष्टिकोणों को अपनाने में सक्षम हों, जो सत्य सिद्धांतों के अनुरूप हों। यह उन्हें लोगों और चीजों को देखने में, आचरण करने में और परमेश्वर के वचनों को आधार और सत्य को मानदंड मानकर कार्य करने में सक्षम बनाता है। यह लोगों के स्वभावों को बदलने का भी एक तरीका है ताकि वे परमेश्वर के अनुरूप हो सकें, परमेश्वर का भय मान सकें और बुराई से दूर रह सकें। उपरोक्त बातें जिन पर हमने संगति की है वे मूल रूप से “सत्य का अनुसरण कैसे करें” में पहले पहलू, “त्याग देना” का मुख्य विवरण हैं। निःसंदेह, विभिन्न मानवीय भावनाओं के बीच कुछ विशिष्ट छोटी नकारात्मक चीजें या कुछ विशेष नकारात्मक भावनाएं भी होती हैं जो बिल्कुल भी प्रतिनिधित्व नहीं करती हैं और जो कुछ नकारात्मक या भ्रामक विचारों और दृष्टिकोणों से भी संबंधित होती हैं। कहा जा सकता है कि इन नकारात्मक भावनाओं या भ्रामक विचारों और दृष्टिकोणों का लोगों पर न्यूनतम प्रभाव पड़ता है, इसलिए हम उनमें से प्रत्येक पर अलग से अधिक विस्तार में संगति नहीं करेंगे।
जिन नकारात्मक भावनाओं के बारे में हमने पहले संगति की थी, वे मूल रूप से उन मुद्दों का प्रतिनिधित्व कर सकती हैं जो लोगों के वास्तविक जीवन में या उनके जीवन पथ पर मौजूद हैं। इन भावनाओं में लोगों और वस्तुओं को कैसे देखना है और कैसे आचरण और कार्य करना है, इससे जुड़े विभिन्न दृष्टिकोण शामिल हैं। लोगों और वस्तुओं को कैसे देखना है, कैसे आचरण और कार्य करना है, इससे जुड़े ये विभिन्न नकारात्मक विचार और दृष्टिकोण व्यापक दिशाओं, प्रमुख सिद्धांतों और लोगों के सत्य के अनुसरण से संबंधित हैं। इसलिए यह ऐसी चीजें हैं जिन्हें लोगों को छोड़ देना चाहिए और अपने विचारों और दृष्टिकोणों में इनका समाधान करना चाहिए। कुछ विशेष, प्रतिनिधित्व न करने वाले या अधिक व्यक्तिगत मामले हैं—जैसे कि भोजन, कपड़े, व्यक्तिगत जीवन इत्यादि—जिनमें लोगों और चीजों को देखने और आचरण और कार्य करने के तरीके के प्रमुख सिद्धांत शामिल नहीं हैं। यह कहा जा सकता है कि वे सकारात्मक और नकारात्मक वस्तुओं के बीच अंतर करने से संबंधित नहीं हैं। इसलिए वे उस विषय के दायरे में नहीं हैं जिस पर हम संगति कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, जब कोई कहता है, “मुझे काली वस्तुएं पसंद हैं,” तो यह उनकी स्वतंत्रता, उनकी व्यक्तिगत रुचि और पसंद है। क्या इसमें कोई सिद्धांत शामिल है? (नहीं, ऐसा नहीं है।) इसमें यह शामिल नहीं है कि कोई व्यक्ति लोगों और चीजों को किस तरह से देखता है, इस बात को तो छोड़ ही दो कि वे कैसे आचरण और कार्य करते हैं। उदाहरण के लिए, कोई व्यक्ति जो दूर की चीजें न देख पाने के कारण चश्मा पहनता है, कहता है, “मुझे सुनहरे रिम वाले फ्रेम पसंद हैं।” और कोई दूसरा कहता है, “सुनहरे रिम बहुत पुराने हो गए हैं। मुझे बिना रिम वाला चश्मा पसंद है।” क्या इसमें लोगों और चीजों को कैसे देखना है, कैसे आचरण और कार्य करना है, इसके सिद्धांत शामिल हैं? (नहीं, ऐसा नहीं है।) इसमें लोगों और चीजों को कैसे देखना है, कैसे आचरण और कार्य करना है, इसके सिद्धांत शामिल नहीं हैं। अन्य लोग कहते हैं, “दैनिक घरेलू कामों और सफाई के बारे में मेरे मन में नकारात्मक भावनाएँ हैं। मुझे हमेशा लगता है कि वे परेशान करने वाले हैं और मेरे जीवन को थकान से भर देते हैं। यहाँ तक कि खाना खाना भी परेशानी की बात है। भोजन तैयार करने में एक घंटे से अधिक समय लगता है और खाने के बाद मुझे बर्तन धोना, उन्हें साफ करना और रसोई साफ करनी पड़ती है और यह बातें विशेष रूप से खीझ दिलाती हैं।” अन्य लोग कहते हैं, “जीवन बहुत कष्टदायी है। कपड़ों को हर मौसम में बदलना पड़ता है और फिर भी गर्मियों में बहुत गर्मी होती है, चाहे आपके कपड़े कितने भी पतले हों और सर्दियों में बहुत ठंड होती है, चाहे आपके कपड़े कितने भी मोटे हों। यह भौतिक शरीर सचमुच कष्टदायी है!” अगर उनके बाल गंदे हो जाते हैं तो वे उन्हें धोना नहीं चाहते, किंतु जब वे उन्हें नहीं धोते तो उनमें खुजली होने लगती है। वे आलस्य और अस्वच्छता दिखाते हैं। वे अपने बाल धोने से बच नहीं सकते, किंतु जब वे इसे धोते हैं तो वे चिढ़ जाते हैं और सोचते हैं, “क्या बाल न होना अच्छा नहीं होगा? इसे हर समय काटना और धोना बहुत खिझाने वाली बात है!” क्या यह नकारात्मक भावनाएँ हैं? (हाँ।) क्या इन नकारात्मक भावनाओं का समाधान किया जाना चाहिए? क्या वे विभिन्न नकारात्मक भावनाओं से संबंधित हैं जिन्हें त्याग देना चाहिए? (नहीं, वे नहीं हैं।) वे संबंधित क्यों नहीं हैं? (यह बस शरीर के भौतिक जीवन से जुड़ी कुछ आदतें और मुद्दे हैं।) महिलाएँ, विशेष रूप से वयस्क महिलाएँ, इन तुच्छ दैनिक मामलों को संभाल सकती हैं, जैसे कि कपड़े धोना, साफ-सफाई करना और स्वयं को साफ-सुथरा रखना। पुरुषों की स्थिति थोड़ी खराब है। उन्हें खाना बनाना, कपड़े धोना और घर के काम करना परेशानी भरा लगता है। जब कपड़े धोने की बात आती है तो उन्हें विशेष रूप से संघर्ष करना पड़ता है। क्या उन्हें कपड़े धोने चाहिए? वे यह नही करना चाहते। क्या उन्हें कपड़े नहीं धोने चाहिए? पर कपड़े बहुत गंदे हैं और उन्हें चिंता होती है कि उनका मजाक उड़ाया जाएगा, इसलिए वे बस कपड़ों को एक सेकंड में पानी मे डूबोकर बाहर निकाल लेते हैं। इन तुच्छ दैनिक कामों को संभालने के प्रति पुरुषों और महिलाओं का दृष्टिकोण और रवैया थोड़ा भिन्न होता है। महिलाएँ साफ-सफाई और रूप-रंग पर ध्यान देने के मामले में अधिक सतर्क और विशिष्ट होती हैं, जबकि पुरुष इन मामलों में अपेक्षाकृत रूखे होते हैं। किंतु इसमें कुछ भी गलत नहीं है। बहुत गंदा होना अच्छा नहीं है; विशेष रूप से जब तुम दूसरे लोगों के साथ रह रहे हो, तो तुम अपनी बहुत-सी कमियाँ उजागर कर दोगे और इससे दूसरे लोग तुम्हें नापसंद करने लगेंगे। यह कमियाँ तुम्हारी मानवता में कमियाँ हैं और तुम्हें उन पर काबू पाना चाहिए जिन्हें दूर करने की आवश्यकता है और जिनका समाधान करने की आवश्यकता है उन्हें हल करना चाहिए। थोड़ा अधिक मेहनती बनो, अपने रहने की जगह में चीजें ठीक से रखो, अपने कपड़े और कंबल तह करके रखो और अपने काम के स्थान को हर दूसरे दिन या हर कुछ दिनों में साफ और व्यवस्थित करो ताकि दूसरों को परेशानी न हो—यह वास्तव में बहुत आसान है। तुम्हें इसे चुनौतीपूर्ण मानने की कोई आवश्यकता नहीं है, है क्या? (नहीं।) जहाँ तक यह बात है कि तुम कितनी बार स्नान करते हो या कपड़े बदलते हो, इससे तब तक फर्क नहीं पड़ता जब तक यह दूसरों की मनोदशा को प्रभावित नहीं करता। यही मानक है। यदि तुम लंबे समय तक स्नान नहीं करते, अपने बाल नहीं धोते या कपड़े नहीं बदलते, तो तुमसे बदबू आने लगती है और कोई भी तुम्हारे करीब नहीं आना चाहता है, यह ठीक नहीं है। तुम्हें नहा-धोकर खुद को प्रस्तुत करने योग्य बनाना चाहिए, ताकि कम से कम दूसरों की मनोदशा पर असर न पड़े। तुमसे बात करते समय उन्हें अपनी नाक या मुँह ढकने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए और तुम्हारी वजह से उन्हें शर्मिंदगी नहीं होनी चाहिए। यदि दूसरे तुम्हारे साथ ऐसा व्यवहार करते हैं और तुम्हें इससे कोई आपत्ति नहीं है या तुम इसकी परवाह नहीं करते हो, तो तुम उसी तरह से जीवन जीना जारी रख सकते हो। किसी ने तुमसे बहुत अधिक की अपेक्षा नहीं की है। जब तक तुम इसे स्वीकार करने में सक्षम हो। किंतु यदि तुम शर्मिंदगी महसूस करते हो, तो अपने व्यक्तिगत जीवन के माहौल और स्वच्छता का प्रबंधन करने की पूरी कोशिश करो ताकि दूसरों को इससे परेशानी न हो। लक्ष्य अपने जीवन पर कोई अनुचित बोझ या तनाव न डालना और दूसरों की भावनाओं पर विचार करना है। दूसरों पर दबाव न डालो या अपना प्रभाव बलपूर्वक न डालो। यह सामान्य मानवीय विवेक और तर्क के लिए न्यूनतम अपेक्षा है। यदि तुम्हारे पास इतना भी नहीं है, तो तुम शालीनता के साथ आचरण कैसे कर सकते हो? इसलिए यह वस्तुएँ जिन्हें सामान्य मानवता वाले किसी व्यक्ति को प्राप्त करने में सक्षम होना चाहिए, उन्हें अधिक स्पष्टीकरण की आवश्यकता नहीं है। परमेश्वर के घर को तुम्हें विशिष्ट कार्य या आदेश देने की आवश्यकता नहीं है। तुम्हें उन्हें स्वयं संभालने में सक्षम होना चाहिए। जिन व्यक्तिगत मामलों का मैंने ऊपर उल्लेख किया है उनमें लोगों और वस्तुओं को कैसे देखना है, कैसे आचरण और कार्य करना है, इसके सिद्धांत या मानदंड शामिल नहीं हैं। इसलिए तुम उन्हें संभालने के लिए सबसे बुनियादी मानवीय विवेक और तर्क पर भरोसा कर सकते हो। सामान्य मानवीय विवेक और तर्क वाले व्यक्ति के पास इस स्तर की बुद्धि होनी चाहिए। इसे कोई बड़ी बात बनाने की आवश्यकता नहीं है और इसके अलावा, इन तुच्छ मामलों को ऐसे मुद्दों के रूप में नहीं माना जाना चाहिए जिन्हें सत्य के अनुसरण के माध्यम से समझने या समाधान करने की आवश्यकता होती है, क्योंकि ये ऐसी चीजें हैं जिन्हें सामान्य मानवता वाला कोई भी व्यक्ति पूरा कर सकता है। यहाँ तक कि एक छोटा कुत्ता भी सभ्य होने का अर्थ समझता है। यदि मनुष्य इसे नहीं समझते हैं, तो वे मनुष्य होने के मानकों से कमतर हैं, है न? (हाँ।) मेरे पास एक पालतू कुत्ता है। बहुत अच्छा दिखता है, उसकी बड़ी आँखें, चौड़ा मुँह और अच्छी आकार की नाक है। एक बार खाने को लेकर उसका अपने ही पिल्ले से झगड़ा हो गया और पिल्ले ने उसकी नाक पर काट लिया। इसके बाद उसकी नाक के बीच में एक छोटा सा घाव हो गया, जिससे उसका चेहरा खराब हो गया। मैंने जल्दी से घाव पर दवा लगाई और कहा, “अब हम क्या कर सकते हैं? यदि इतने अच्छे दिखने वाले कुत्ते पर घाव का निशान रह जाए, तो यह कितना भद्दा दिखेगा!” मैंने उससे कहा, “अब से, जब हम बाहर जाएँ तो तुम हमारा पीछा मत करना। यदि लोग तुम्हारे चेहरे पर घाव का निशान देखेंगे, तो वे सोचेंगे कि तुम बदसूरत दिखते हो।” यह सुनने के बाद, उसने सहमति की आवाज निकाली, वह एक पल के लिए आँखें चौड़ी कर शून्य में देखता रहा। मैंने आगे कहा, “तुम घायल हो। तुम्हारी नाक पर इतना बड़ा घाव है, लोग इसे देखेंगे तो शायद तुम पर हँसेंगे। तुम्हें आराम करने और ठीक होने की जरूरत है। जब तक तुम पूरी तरह से ठीक नहीं हो जाते, तुम हमारे साथ मत आना।” मेरी बातें सुनने के बाद, उसने दूसरी आवाज नहीं निकाली और बाहर जाने का आग्रह नहीं किया। मैंने सोचा, एक कुत्ता भी इन बातों को समझता है। कुछ समय बाद, घाव ठीक हो गया और उसमें काफी सुधार हुआ, इसलिए मैं उसे बाहर ले गया। एक बहन ने छोटे कुत्ते को देखा और पूछा, “अरे, तुम्हारी नाक को क्या हुआ?” यह सुनने के बाद, उसने अपना सिर घुमाया और बिना पीछे देखे सीधे कार की ओर भागा और उसने वापस आने से मना कर दिया। जब बहन उससे बात करने लगी तो उसने अच्छा व्यवहार किया और जब बहन ने पानी दिया तो उसने पानी पी लिया। वह भागा नहीं। किंतु जैसे ही उसने पूछा, “तुम्हारी नाक को क्या हुआ?” उसने अपना सिर घुमाया और बिना पीछे देखे भाग गया। जब हम घर लौटे तो मैंने उससे पूछा, “तुम्हारी नाक पर चोट लग गई थी, जब बहन ने तुमसे इसके बारे में पूछा तो तुम भाग क्यों गए? क्या तुम शर्मिंदा हो?” उसने मेरी ओर शर्मीले भाव से देखा, वह लगातार अपना सिर नीचे झुकाए हुए था और उसे मेरी ओर देखने में बहुत शर्मिंदगी महसूस हो रही थी। वह मेरी बाँहों में आ गया, ताकि मैं उसे सहलाऊँ और दुलारूँ। मैंने उससे कहा, “अब तुम अपने पिल्ले से नहीं लड़ सकते। यदि तुम घायल हो जाते हो और फिर से घाव का निशान रह जाता है, तो तुम बदसूरत दिख सकते हो। लोग तुम पर हँसेंगे। तुम अपना मुँह कहाँ छिपाओगे?” देखो, पाँच साल का एक छोटा कुत्ता भी जानता है कि शर्म महसूस करने का क्या मतलब होता है। वह लोगों से छुपना जानता है क्योंकि उसका चेहरा घायल है और उसे अपनी हँसी उड़ाए जाने का डर है। यदि एक छोटे कुत्ते में इस स्तर की बुद्धि है, तो क्या मनुष्यों में भी नहीं होनी चाहिए? (हाँ।) मनुष्यों के पास यह होना चाहिए, कहने का तात्पर्य यह है कि यह कुछ ऐसा है जो उनके तर्क के दायरे में उनके पास हो। सभ्य होने का क्या अर्थ है? शिक्षित बनने और दूसरों द्वारा नापसंद या तिरस्कृत न होने का क्या अर्थ है? यह मानक तुम्हारे अंदर होना चाहिए। यह दैनिक जीवन का सबसे सरल मामला है और सामान्य मानवीय विवेक और तर्क के साथ, तुम्हें लोगों के भ्रष्ट स्वभाव या नकारात्मक भावनाओं को दूर करने जैसी बातों से जुड़े सत्य पर संगति की आवश्यकता नहीं होगी, इसके बिना ही तुम चीजों को सटीक रूप से संभाल सकते हो। निःसंदेह, यदि तुम अपने घर में रहते हो, तो तुम थोड़े अस्त-व्यस्त हो सकते हो, वहाँ मानक उतने सख्त नहीं होते। हालाँकि, यदि तुम भाई-बहनों के साथ रहते हो, तो तुम्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि तुम्हारी सामान्य मानवता अच्छी तरह से कायम रहे। हालाँकि इसके लिए हमारे पास कोई विशिष्ट अपेक्षाएँ या कड़े मानक नहीं हैं, एक सामान्य व्यक्ति के रूप में, तुम्हें इन मामलों की समझ होनी चाहिए। ये ऐसी बातें हैं जिन्हें सामान्य मानवता वाले लोगों को करना चाहिए और उनमें होनी चाहिए। इनमें लोगों और वस्तुओं को देखने, आचरण और कार्य करने के बारे में विचार, दृष्टिकोण, परिप्रेक्ष्य या सोच शामिल नहीं हैं और वे निश्चित रूप से एक बड़े जीवन पथ, दिशा या लक्ष्य से जुड़े नहीं हैं। नतीजतन, तुम्हारे लिए यह सबसे अच्छा होगा कि तुम इन मामलों को सामान्य मानवीय विवेक और तर्क की अपेक्षाओं के अनुसार हल करो, ताकि अन्य लोग इन बातों के कारण तुम्हारे बारे में चर्चा न करें या तुमसे घृणा न करें। जहाँ तक व्यक्तिगत आदतों, शौक, व्यक्तित्व में अंतर या सिद्धांतों से असंबंधित मामलों के संबंध में विकल्पों का सवाल है, यह ऐसी चीजें हैं जिनमें विचार और दृष्टिकोण शामिल नहीं हैं, तुम अपने तरीके चुनने और उसके अनुसार कार्य करने के लिए स्वतंत्र हो। परमेश्वर का घर हस्तक्षेप नहीं करेगा। परमेश्वर ने लोगों को स्वतंत्र इच्छा और बुनियादी विवेक और तर्क दिया है, जिससे लोगों को अपने हितों, शौक और आदतों या जीवनशैली को चुनने की अनुमति मिलती है जो उनके व्यक्तित्व के अनुरूप हो। किसी को भी तुम्हें बेबस करने, बाँधने या तुम पर दोष मढ़ने का अधिकार नहीं है। वे मामले जो सत्य सिद्धांतों या परमेश्वर के वचनों की अपेक्षाओं से जुड़े नहीं हैं, विशेष रूप से कहें तो, ऐसे मामले जिनमें लोगों और वस्तुओं को कैसे देखना है, कैसे आचरण और कार्य करना है, ये शामिल नहीं है, उनमें लोगों को दूसरों के किसी हस्तक्षेप के बिना स्वतंत्र रूप से अपने जीवन का मार्ग चुनने का अधिकार है। यदि कोई अगुआ, समूह प्रमुख या पर्यवेक्षक व्यक्तिगत मामलों के संबंध में तुम्हारी आलोचना करता है या हस्तक्षेप करता है, तो तुम्हारे पास उन्हें मना करने का अधिकार है। संक्षेप में, सामान्य मानवता के इन मामलों का परमेश्वर के वचनों या सत्य सिद्धांतों की अपेक्षाओं से कोई लेना-देना नहीं है। जब तक तुम सहज और उचित महसूस करते हो और तुम्हारे व्यवहार का दूसरों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है या उन्हें परेशानी नहीं होती है, तब तक सब ठीक है। उदाहरण के लिए, यदि तुम अच्छे कपड़े पहनना और साफ-सुथरा रहना पसंद करते हो, तो जब तक तुम दूसरों को प्रभावित नहीं करते, तो कोई समस्या नहीं है। किंतु यदि देर रात हो गई है और दूसरों को ग्यारह बजे सोना है और तुम अभी भी कपड़े धो रहे हो या सफाई कर रहे हो, तो यह स्वीकार्य नहीं है। यदि तुम अपने घर में हो और तुम अन्य लोगों के जीवन को प्रभावित नहीं कर रहे, तो तुम चाहो तो पूरी रात सुबह चार या पाँच बजे तक जाग सकते हो। यह तुम्हारी स्वतंत्रता है। हालाँकि, अब जब तुम भाई-बहनों के साथ रह रहे हो, तो तुम्हारी गतिविधियाँ उनकी दैनिक दिनचर्या और कार्यक्रम को प्रभावित करेंगी। यह अच्छा नहीं है। ऐसा करके, तुम अपने अधिकारों और स्वतंत्रता का सही ढंग से प्रयोग नहीं कर रहे; बल्कि तुम स्वेच्छाचारी हो रहे हो जिसे मानवता की कमी कहा जाता है। अपनी स्वतंत्रता की खातिर और अपने शरीर की प्राथमिकताओं और इच्छाओं को पूरा करने के लिए तुम दूसरों के जीवन को बाधित करते हो, यहाँ तक कि उनके आराम के समय को भी बर्बाद करते हो। यह व्यवहार सामान्य मानवीय विवेक और तर्क के अनुरूप नहीं है। इसे बदलने की जरूरत है। यह स्व-आचरण के सिद्धांतों से संबंधित है। यह इस बारे में नहीं है कि तुम्हारी व्यक्तिगत जीवनशैली या साफ-सफाई की आदतों में कुछ गलत है या नहीं। यहाँ समस्या तुम्हारे आचरण के तरीके से जुड़े सिद्धांतों को लेकर है। तुम दूसरों की भावनाओं, मनोदशाओं या रुचियों पर विचार नहीं करते हो। तुम दूसरों की कीमत पर अपने हितों की रक्षा और संरक्षण करते हो। व्यवहार करने का यह तरीका आचरण करने की परमेश्वर की अपेक्षाओं या परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार आचरण करने के सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है। इसलिए सामान्य मानवता की कोई भी प्राथमिकताएँ, रुचियाँ, जीवनशैली से जुड़े चुनाव, आदतें, स्वतंत्रता, अधिकार आदि को सामान्य मानवता माने जाने के लिए उन्हें व्यक्ति के विवेक और तर्क के दायरे में रहना चाहिए। यदि वे सामान्य मानवीय विवेक और तर्क की सीमाओं को पार करते हैं, तो यह सामान्य मानवता नहीं है, है क्या? (नहीं।) सामान्य मानवीय विवेक और तर्क की सीमाओं के भीतर, तुम एक सामान्य व्यक्ति की तरह व्यवहार कर रहे हो। यदि तुम सामान्य मानवीय विवेक और तर्क की सीमाओं से परे जाते हो और फिर भी अपनी स्वतंत्रता पर बल देते हो, तो तुम एक सामान्य व्यक्ति की तरह कार्य नहीं कर रहे हो; तुम निम्नमानव हो। इसे बदलने की आवश्यकता है, यह स्पष्ट होना चाहिए। क्या स्पष्ट होना चाहिए? यह स्पष्ट होना चाहिए कि इन व्यक्तिगत मामलों को सामान्य मानवीय विवेक और तर्क की सीमाओं के भीतर संभाला जाना चाहिए और यह स्व-आचरण का सिद्धांत है। तुम्हारी व्यक्तिगत आदतें, मांगें, जीवनशैली से जुड़े चुनाव आदि सभी तुम पर निर्भर हैं, जब तक कि वे सामान्य मानवीय विवेक और तर्क की सीमाएँ नहीं लाँघते। इन मामलों के संबंध में कोई विशिष्ट अपेक्षाएँ नहीं हैं।
“सत्य का अनुसरण कैसे करें” के पहले खंड में, हमने “त्याग करने” का जिक्र किया था, जिसमें हीनता, घृणा, क्रोध, अवसाद, संताप, चिंता, व्याकुलता और दमन जैसी विभिन्न नकारात्मक भावनाओं को त्यागने की बात की गई थी। ये बुनियादी तौर पर प्रमुख निर्देशात्मक समस्याएँ और उन सिद्धांतों से जुड़ी समस्याएँ हैं जिनके बारे में हमें संगति करनी चाहिए। जहाँ तक छोटी-मोटी, मामूली समस्याओं की बात है, जिनमें सिद्धांत या निर्देश शामिल नहीं हैं, उनके बारे में हमने पहले इस तरह से संगति की थी कि सब कुछ आसानी से समझ आए। जहाँ तक उस अनिच्छा, असंतोष, नाराजगी वगैरह की बात है, जो तुम अपनी व्यक्तिगत समस्याओं के प्रति महसूस करते हो, अगर उनमें वास्तविक विचार और दृष्टिकोण शामिल नहीं हैं और इन सिद्धांतों से जुड़े नहीं हैं कि लोगों और चीजों को कैसे देखा जाता है, या कैसे आचरण या कार्य किया जाता है, तो ये तुम्हारे अपने निजी मामले हैं। तुम्हें अपनी अंतरात्मा और विवेक के दायरे में उन्हें आँकना और हल करना होगा। जैसे, तुम भूखे हो और खाना पकाने का मन नहीं कर रहा, लेकिन तुममें खाली पेट काम करने की हिम्मत नहीं है, और जब तुम खाना बनाते हो, तो चिड़चिड़े हो जाते हो। तुम्हारे मन में यह खयाल आ सकता है, “क्या यह एक नकारात्मक भावना है?” यह कोई नकारात्मक भावना नहीं है; यह तुम्हारा शारीरिक आलस्य और खाना पकाने को लेकर अरुचि है। यह तुम्हारी भ्रष्ट देह का मामला है। अगर तुम अच्छे पैसे कमाते हो, तो खाना पकाने में मदद के लिए किसी को रख सकते हो। अगर तुम्हारे पास इतने पैसे नहीं हैं, तो तुम्हें यह मसला खुद ही हल करना होगा। दूसरे लोग तुम्हारे जीवन की इन समस्याओं को हल करने के लिए बाध्य नहीं हैं; यह तुम्हारी अपनी जिम्मेदारी है। खाना-पीना, कपड़े पहनना, ब्रश करना और साफ-सफाई करना जैसे सभी सांसारिक कार्य मानव जीवन का हिस्सा हैं। वे मनुष्य के अस्तित्व में निहित हैं। मनुष्य बिल्लियों और कुत्तों से अलग हैं। जब तुम किसी बिल्ली या कुत्ते के बच्चे को गोद लेते हो, तो उसके खाने-पीने की जिम्मेदारी तुम्हारी होती है। जब वह भूखा हो, तो तुम्हें उसे खाना खिलाना होगा। लेकिन यह मनुष्यों के लिए ऐसा नहीं है; मनुष्य को जीवन के इन पहलुओं की देखभाल और जिम्मेदारी खुद ही निभानी होगी। यह कोई बोझ नहीं है; इन चीजों को ठीक से संभालना सीखना ऐसी चीज है जिसे सामान्य मानवता वाले लोग हासिल कर सकते हैं। बात बस इतनी है कि कुछ लोगों को यह महसूस हो सकता है कि उन्होंने ये चीजें पहले कभी नहीं की हैं, खासकर कुछ लोग जिनके माता-पिता या परिवार के सदस्यों ने उन्हें व्यवस्थित रहने में मदद की और इतना लाड़-प्यार दिया कि उन्होंने कभी खाना बनाना, कपड़े धोना या अपने जीवन की चीजों की देखभाल करना ही नहीं सीखा। यह पारिवारिक माहौल का नतीजा है। हालाँकि, जैसे ही वे अपने माता-पिता को छोड़कर अकेले रहने लगते हैं, तो वे कपड़े धोने और अपना बिस्तर लगाने सहित सब कुछ खुद ही करने में सक्षम बन जाते हैं। वास्तव में, ये ऐसी चीजें हैं जिन्हें सामान्य मानवता हासिल कर सकती है। वे किसी भी वयस्क व्यक्ति के लिए कठिन कार्य नहीं हैं, और यकीनन भारी भी नहीं हैं। ये समस्याएँ आसानी से हल हो जाती हैं। अगर तुम्हारे जीवन जीने के मानक बहुत ऊँचे हैं, तो तुम बेहतर कर सकते हो। अगर अपने जीवन स्तर को लेकर तुम बहुत सख्त नहीं हो या निम्न अपेक्षाएँ रखते हो, तो तुम इसके प्रति बेपरवाह हो सकते हो। ये सभी ऐसे मामले हैं जिनमें सिद्धांत शामिल नहीं हैं।
“सत्य का अनुसरण कैसे करें” के पहले प्रमुख विषय—विभिन्न नकारात्मक भावनाओं को त्यागने—के संबंध में हम अपनी संगति यहीं समाप्त करते हैं, क्योंकि यह विषय मूलतः पूरा हो चुका है। इसके बाद, सत्य का अनुसरण करने की प्रक्रिया में, नकारात्मक भावनाओं को त्यागने के अलावा, व्यक्ति को व्यक्तिगत लक्ष्यों, आदर्शों और इच्छाओं का भी त्याग करना चाहिए। यह सत्य का अनुसरण करने के अभ्यास में “त्याग करने” का दूसरा प्रमुख पहलू है, जिसके बारे में हम आज संगति करेंगे। लोगों के लक्ष्यों, आदर्शों और इच्छाओं को त्याग देना—समझ रहे हो? (हाँ, हम समझ रहे हैं।) अभी मैंने “त्याग करने” के इस विशेष अभ्यास के उद्देश्यों का जिक्र किया था और तुम लोगों ने भी उन्हें ध्यान में रख लिया है। अब, आओ इस विषय पर गौर करें : जब हम व्यक्तिगत लक्ष्यों, आदर्शों और इच्छाओं को त्यागने की बात करते हैं तो मन में क्या आता है? तुम लोग किन उदाहरणों के बारे में सोच सकते हो? (मैं लोगों के उन आदर्शों के बारे में सोच सकता हूँ, जिनके बारे में परमेश्वर ने पहले संगति की है, जैसे कि विशेष प्रतिभा वाले लोग, जो अभिनय करते हैं, मशहूर हस्तियाँ या चमकते सितारे बनना चाहते हैं। अन्य लोग जिनके पास लेखन क्षमता और थोड़ी-सी साहित्यिक प्रतिभा है, वे परमेश्वर के घर में पाठ्य-सामग्री आधारित कर्तव्य निभाकर लेखक बनने की इच्छा रख सकते हैं। ये कुछ आदर्श हैं जो लोगों में उभरते हैं।) और कुछ? (लोग सफलता के साथ-साथ अपनी संभावनाओं, आशाओं और आशीष पाने की इच्छा का भी अनुसरण करते हैं।) और सोचो, और क्या हो सकता है? यहाँ किस बात पर जोर दिया जाना चाहिए? यह उन लक्ष्यों, आदर्शों और इच्छाओं के बारे में है जिन्हें लोगों को त्याग देना चाहिए। लोगों की विलासितापूर्ण इच्छाओं और उनके द्वारा अपनी संभावनाओं और नियति को लेकर की गई उम्मीदों के अलावा, लोगों के वास्तविक जीवन के संदर्भ में, मानव अस्तित्व की आवश्यक परिस्थितियों में, उन लक्ष्यों, आदर्शों और इच्छाओं में और क्या शामिल है जिन्हें लोगों को त्याग देना चाहिए? जीवन में कुछ ऐसे महत्वपूर्ण मसले क्या हैं जो परमेश्वर में तुम्हारी आस्था और सत्य के अनुसरण को प्रभावित कर सकते हैं? (जब लोग शादी के लायक हो जाते हैं, तो वैवाहिक बंधन के चलते विवश हो सकते हैं। इसके अलावा, जब किसी व्यक्ति का करियर परमेश्वर में उसकी आस्था के आड़े आता है, तो हो सकता है कि वह अपना करियर बनाने का विकल्प चुने। ये वे दो पहलू हैं जिनका त्याग करना भी जरूरी है।) सही कहा। पिछले कुछ वर्षों के दौरान परमेश्वर में तुम्हारी आस्था से तुम्हें नतीजे और समझ मिली है। तुमने दो महत्वपूर्ण पहलुओं, शादी और करियर का सही जिक्र किया है। ये दो प्रमुख मसले मानव जीवन के पथ पर आजीवन के मामलों में शामिल हैं। शादी हर किसी के लिए एक महत्वपूर्ण मसला है, और व्यक्ति का करियर भी प्रमुख चिंता का विषय है जिससे बचा और टाला नहीं जा सकता। क्या इन दोनों के अलावा कोई अन्य प्रमुख मसले भी हैं? (परिवार, माता-पिता और बच्चों को संभालने का भी एक पहलू है। जब ये मसले परमेश्वर में आस्था और सत्य के अनुसरण के आड़े आते हैं, तो लोगों के लिए इसे त्यागना मुश्किल हो जाता है।) जब तुम लोग कोई खाका बनाते हो, तो तुम्हें इतने लंबे वाक्यों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। पहले हमने शादी और करियर का जिक्र किया था। तो, इस विषय को क्या कहा जाना चाहिए? (परिवार।) बिल्कुल सही, परिवार भी एक प्रमुख पहलू है। क्या यह हरेक व्यक्ति के लिए है? (हाँ।) इसमें हरेक व्यक्ति शामिल है, और यह पर्याप्त रूप से विशिष्ट और प्रतिनिधिक है। शादी, परिवार और करियर, ये सभी प्रमुख विषय हैं जो लोगों के लक्ष्यों, आदर्शों और इच्छाओं की मुख्य थीम से जुड़े हैं। लोगों के लक्ष्यों, आदर्शों और इच्छाओं को त्यागने से संबंधित कुल चार प्रमुख विषय हैं। तुम लोगों ने उनमें से तीन की सही पहचान की है, जो बहुत अच्छी बात है। ऐसा लगता है कि इस विषय पर विस्तार से संगति करने की आवश्यकता है, यह ऐसा विषय है जो पहले से ही तुम्हारे मन में मौजूद है, और यह तुम लोगों के जीवन या आध्यात्मिक कद और अनुभव से काफी करीब से जुड़ा हुआ है। ऐसा एक और विषय है, जो वास्तव में काफी सरल है। यह क्या है? यह किसी व्यक्ति की रुचियों और शौक का विषय है। क्या यह आसान नहीं है? (हाँ।) मैंने किसी व्यक्ति की रुचियाँ और शौक क्यों कहा? इस विषय पर बारीकी से नजर डालो और देखो कि क्या रुचियों और शौक का संबंध व्यक्तिगत लक्ष्यों, आदर्शों और इच्छाओं से है, जिन पर हमें चर्चा करनी है। (हाँ।) क्या शादी उनसे संबंधित है? (हाँ।) क्या परिवार उनसे संबंधित है? (हाँ।) क्या करियर उनसे संबंधित है? यह भी है। इन चार पहलुओं में से हरेक किसी व्यक्ति के लक्ष्यों, आदर्शों और इच्छाओं से संबंधित है। प्रत्येक पहलू में इसके बारे में हृदय की गहराई में कल्पनाएँ करना और विशेष अपेक्षाएँ रखना शामिल है, और ऐसी चीजें भी शामिल हैं जो व्यक्ति अपनी देह और भावनाओं में पाना चाहता है। प्रत्येक पहलू में विशेष तत्व और ठोस लक्ष्य होते हैं, और इसमें व्यक्ति द्वारा किए गए प्रयास और चुकाई जाने वाली कीमत भी शामिल होती है। प्रत्येक पहलू किसी व्यक्ति के जीवन भर के विचारों और नजरिये से जुड़ा होता और इन्हें प्रभावित करता है और सही लक्ष्यों की उसकी खोज को प्रभावित कर सकता है। बेशक, इसका प्रभाव इस बात पर भी पड़ता है कि व्यक्ति लोगों और चीजों को कैसे देखता है और वह कैसे आचरण और कार्य करता है। अगर मैं विस्तार में गए बिना ही बात करूँ, तो तुम लोगों को यह अस्पष्ट और समझने में कठिन लग सकता है। तो आओ, एक-एक करके प्रत्येक पहलू के बारे में संगति करें, उनकी सावधानीपूर्वक पड़ताल करें, इससे शायद तुम लोगों को धीरे-धीरे समस्याओं की स्पष्ट समझ हो जाए। एक बार जब चीजें स्पष्ट हो जाती हैं, तो लोग यहाँ उन सिद्धांतों को खोज सकते हैं जो उन्हें लागू करने चाहिए और जिनका पालन करना चाहिए।
सबसे पहले, रुचियों और शौक के बारे में बात करते हैं। बेशक, रुचियों और शौक में वह शामिल नहीं है जो लोग कभी-कभार मनोरंजन के लिए करते हैं, या उनकी अस्थायी खेलकूद वाली चीजें या पढ़ाई-लिखाई की रुचियाँ—उनका अस्थायी चीजों से कोई लेना-देना नहीं है। यहाँ, रुचियों और शौक का अर्थ उन वास्तविक लालसाओं और अनुसरण से है जो किसी व्यक्ति के आध्यात्मिक अस्तित्व और उसकी आत्मा की गहराई में रहती हैं। वे इन चीजों के लिए काम करेंगे और योजनाएँ बनाएँगे, और इससे भी बढ़कर वे इन रुचियों और शौक को पूरा और विकसित करने के लिए, या अपनी रुचियों और शौक के अनुरूप काम करने के लिए ठोस प्रयास और मेहनत भी करेंगे। इस संदर्भ में, रुचियों और शौक का अर्थ है कि व्यक्तियों ने लक्ष्य और आदर्श निर्धारित किए हुए हैं, और यहाँ तक कि कीमत भी चुकाई है, ऊर्जा खपाई है, या विशेष कार्य किए हैं। जैसे, उन्होंने अपनी रुचियों और शौक की खातिर प्रासंगिक ज्ञान का अध्ययन किया है, अपने दैनिक जीवन का ज्यादातर समय इस ज्ञान के अध्ययन पर खर्च किया है, और इसका व्यावहारिक अनुभव पाया और अपने हाथों से कार्य कर इसे समझा है। उदाहरण के लिए, कुछ लोगों की चित्रकारी में विशेष रुचि और इसका शौक होता है, और ये चित्रकारियाँ केवल पोर्ट्रेट या लैंडस्केप ड्राइंग बनाने जितनी सरल नहीं होती हैं। यह ऐसी साधारण रुचियों और शौक से परे है। वे चित्रकारी की विभिन्न तकनीकों का अध्ययन करते हैं, जैसे स्केचिंग करना, लैंडस्केप और पोर्ट्रेट चित्र बनाना; और कुछ लोग तेल और स्याही वाली पेंटिंग बनाने का भी अध्ययन करते हैं। इस तरह से अध्ययन करने की उनकी चाह सिर्फ उनकी रुचियों और शौक से उत्पन्न नहीं होती है, बल्कि चित्रकारी में उनकी रुचि के कारण उनके मन में रचे-बसे आदर्शों और उनकी इच्छाओं से उत्पन्न होती है। यहाँ तक कि वे अपने जीवन की सारी ऊर्जा चित्रकारी को समर्पित करने, कुशल चित्रकार बनने और चित्रकारी को एक पेशे के रूप में अपनाने में लगा देना चाहते हैं। इस पेशे से जुड़ने से पहले, अन्य बातों के साथ-साथ, गहन तैयारी करना और योजना बनाना आवश्यक है; जैसे, आगे की शिक्षा और प्रशिक्षण के लिए विशेषज्ञ स्कूलों में जाना, चित्रकारी के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करना, ऑन-साइट स्केच बनाने का कार्यक्रम आयोजित करना, विशेषज्ञों और माहिर कलाकारों से मार्गदर्शन लेना और प्रतियोगिताओं में भाग लेना। ये सभी गतिविधियाँ उनके लक्ष्यों, आदर्शों और इच्छाओं के इर्द-गिर्द घूमती हैं। बेशक, ये सभी लक्ष्य, आदर्श और इच्छाएँ उनकी रुचियों और शौक पर आधारित हैं। इन रुचियों और शौक के कारण ही उन्होंने अपने जीवन के लक्ष्य, आदर्श और इच्छाएँ विकसित की हैं। कुछ लोगों को इतिहास का अध्ययन करने का बहुत जुनून होता है, जिसमें प्राचीन और आधुनिक, स्वदेशी और विदेशी इतिहास का अध्ययन शामिल है। जैसे-जैसे उनकी रुचि बढ़ती जाती है, वे खुद को इस क्षेत्र में प्रतिभाशाली व्यक्ति के रूप में देखने लगते हैं, और वे इससे जुड़ा करियर बनाने के लिए बाध्य महसूस करते हैं। वे आगे की पढ़ाई करते हुए सीखना जारी रखते हैं। बेशक, इस प्रक्रिया के दौरान उनके लक्ष्य, आदर्श और इच्छाएँ आकार लेकर ठोस बनती रहती हैं, और वे आखिर में इतिहासकार बनने की आकांक्षा रखते हैं। इतिहासकार बनने से पहले, उनका ज्यादातर समय और ऊर्जा इसी रुचि और शौक के इर्द-गिर्द घूमती है। कुछ लोगों की अर्थशास्त्र में विशेष रुचि होती है, और उन्हें आंकड़ों के साथ काम करना और अर्थशास्त्र के क्षेत्र से जुड़ी चीजों का अध्ययन करना पसंद होता है। उन्हें उम्मीद होती है कि एक दिन वे वित्त उद्योग में असाधारण या कामयाब हस्ती बनेंगे। संक्षेप में, वे अपनी रुचि और शौक के आधार पर एक लक्ष्य निर्धारित करते हैं, फिर उस रुचि और शौक से संबंधित आदर्श और इच्छाएँ विकसित करते हैं। साथ ही साथ, वे अपना पूरा समय देते हैं, कदम उठाते हैं, कीमत चुकाते हैं, और सीखने, शोधकार्य करने, अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाने में ऊर्जा लगाते हैं, और अपनी रुचियों और शौक से संबंधित व्यापक ज्ञान प्राप्त करते हैं। अन्य लोगों को कला का जुनून होता है, जैसे कि अभिनय कला, नृत्य कला, गायन या निर्देशन। ऐसी रुचियाँ और शौक विकसित होने के बाद, इन रुचियों और शौक की प्रेरणा के साथ, उनके आदर्श और इच्छाएँ धीरे-धीरे आकार लेती हैं और ठोस होती जाती हैं। जैसे-जैसे उनके आदर्श और इच्छाएँ धीरे-धीरे उनके जीवन का लक्ष्य बनती हैं, वे उन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए अपनी पूरी कोशिश, मेहनत और कार्य करते हैं। कुछ लोगों को शिक्षा के क्षेत्र में काम करने का शौक होता है। वे अपनी रुचियों और शौक से संबंधित करियर बनाने के लिए शिक्षा के विभिन्न पहलुओं, जैसे मनोविज्ञान और अन्य प्रासंगिक ज्ञान का अध्ययन करते हैं। कुछ लोग डिजाइन, इंजीनियरिंग, टेक्नोलॉजी, इलेक्ट्रॉनिक्स, या कीटों, सूक्ष्मजीवों और विभिन्न जानवरों के व्यवहार, जीवन जीने के तौर-तरीकों, उत्पत्ति वगैरह पर शोधकार्य करना पसंद करते हैं। कुछ लोगों को मीडिया का काम पसंद होता है और वे मीडिया उद्योग में होस्ट, एंकर, रिपोर्टर वगैरह का काम करने की इच्छा रखते हैं। अपनी विविध रुचियों और शौक से प्रेरित होकर, लोग गहराई से सीखना और खोजबीन करना जारी रखते हैं और धीरे-धीरे इनकी समझ हासिल करते हैं। उनके लक्ष्य, आदर्श और इच्छाएँ उनके दिलों में गहरी होती जाती हैं और आकार लेती रहती हैं। बेशक, अपने लक्ष्यों, आदर्शों और इच्छाओं के धीरे-धीरे आकार लेने की प्रक्रिया के दौरान, व्यक्ति अपने आदर्शों और इच्छाओं को पूरा करने के लिए भी प्रयास करता और आगे बढ़ता है। उनके हर विशेष कार्य में उनकी ऊर्जा, समय, जवानी और यहाँ तक कि भावनाओं और प्रयासों का भी योगदान रहता है।
चाहे व्यक्ति की रुचियाँ और शौक किसी भी क्षेत्र या उद्योग में हों, चाहे वे किसी भी श्रेणी में शामिल हों, एक बार जब उसके मन में कोई इच्छा जगती है और उससे जुड़े आदर्श और इच्छाएँ पैदा होती हैं, तो उसके जीवन के लक्ष्य और दिशा भी तय हो जाती है। जब व्यक्ति के आदर्श और इच्छाएँ उसके जीवन का लक्ष्य बन जाती हैं, तो इस संसार में उसका भविष्य का मार्ग मूलतः निर्धारित हो जाता है। मैंने क्यों कहा कि यह निर्धारित हो जाता है? यहाँ किस समस्या के समाधान पर चर्चा हो रही है? इस पर कि एक बार जब तुम अपनी रुचियों और शौक से उत्पन्न होने वाले आदर्शों और इच्छाओं को निर्धारित कर लेते हो, तो तुम्हें उसी दिशा में कोशिश और संघर्ष भी करना चाहिए; इस हद तक प्रयास करना चाहिए कि तुममें एक अटूट और दृढ़ भावना और मानसिकता हो, और तुम जीवन भर की ऊर्जा और समय लगाने और कीमत चुकाने को तैयार हो जाओ। तुम्हारा जीवन, नियति, संभावनाएँ और यहाँ तक कि तुम्हारी अंतिम मंजिल, तुम्हारे द्वारा पहले से निर्धारित जीवन लक्ष्यों से अगर जुड़ी न हो, तब भी उनसे अनिवार्य रूप से प्रभावित होगी। मैं यहाँ किस मुख्य बात पर जोर देना चाहता हूँ? एक बार जब कोई व्यक्ति किसी विशेष रुचि या शौक के आधार पर अपने लक्ष्य, आदर्श और इच्छाएँ निर्धारित कर लेता है, तो वह निष्क्रिय और निकम्मा नहीं रहेगा। विशेष रुचियों और शौक के कारण ठोस कदम आकार लेने लगते हैं। साथ ही साथ, इन विशिष्ट कदमों के मार्गदर्शन में, तुम अपने आदर्शों और इच्छाओं को निर्धारित करोगे। तब से, न तो तुम्हारा दिल रुकेगा, न तो तुम्हारे पाँव। तुम्हारी यह नियति है कि तुम अपने आदर्शों और इच्छाओं के अनुसार अपना जीवन जियो। तुम कभी भी थोड़ा सा ज्ञान प्राप्त करके संतुष्ट नहीं होगे और रुक नहीं जाओगे। क्योंकि तुममें ऐसी प्रतिभाएँ हैं, और ऐसी क्षमताएँ और गुण हैं, तो तुम यकीनन एक ऐसे ओहदे की खोज करोगे जो तुम्हारे लिए उचित हो, या तुम ऊँचा उठने और इस संसार में और भीड़ के बीच असाधारण बनने के लिए अथक प्रयास करोगे और तुम्हें इसका कोई पछतावा नहीं होगा। तुम जीत में अटल विश्वास के साथ अपने आदर्शों और इच्छाओं का अनुसरण करोगे, और उन्हें प्राप्त करने के लिए कोई भी कीमत चुकाने और किन्ही भी कठिनाइयों, खतरों और कष्टों का सामना करने के लिए तैयार रहोगे। लोग ऐसा क्यों कर पाते हैं? अपनी रुचियों और शौक के आधार पर आदर्श और इच्छाएँ विकसित करने के बाद भी लोग ऐसा व्यवहार क्यों करते हैं? (वे ऐसा अपने आदर्शों को साकार करने, उन्नत चीजों को हासिल करने और बाकियों से आगे रहने के लिए करते हैं। इस वजह से, वे किसी भी कठिनाई के सामने आने पर पीछे नहीं हटते, बल्कि अपने आदर्शों और इच्छाओं को पूरा करने में लगे रहते हैं।) लोगों की एक सहज प्रवृत्ति होती है। अगर वे कभी न जानें कि उनकी ताकत क्या है, उनकी रुचियाँ और शौक क्या हैं, तो उन्हें लगता है कि उनके लिए कोई जगह नहीं है, वे अपने मूल्य का एहसास करने में असमर्थ होते हैं, और खुद को बेकार समझते हैं। वे अपना मूल्य प्रदर्शित करने में असमर्थ रहते हैं। हालाँकि, एक बार जब व्यक्ति को अपनी रुचियों और शौक का पता चल जाता है, तो वह एक पुल या प्रेरणा की तरह उनका इस्तेमाल कर अपनी अहमियत साबित करता है। वह अपने आदर्शों का अनुसरण करने, अधिक मूल्यवान जीवन जीने, एक उपयोगी व्यक्ति बनने, भीड़ में अलग दिखने, प्रशंसा और मान्यता प्राप्त करने और एक असाधारण व्यक्ति बनने के लिए कीमत चुकाने को तैयार रहता है। इस तरह, लोग एक परिपूर्ण जीवन जी सकते हैं, इस संसार में सफल करियर बना सकते हैं, और अपने आदर्शों और इच्छाओं को पूरा करते हुए मूल्यवान जीवन जी सकते हैं। चारों तरफ लोगों की भीड़-भाड़ में केवल कुछ ही लोग हैं जो उनकी तरह स्वाभाविक रूप से प्रतिभाशाली हैं, जिन्होंने ऊँचे आदर्श और इच्छाएँ निर्धारित की हैं, और आखिर में अपने अथक प्रयासों से इन चीजों को हासिल किया है। उन्होंने अपना पसंदीदा काम करते हुए अपना करियर बनाया है, अपनी इच्छित प्रसिद्धि, लाभ और प्रतिष्ठा प्राप्त की है, अपनी अहमियत दिखाई है और अपनी कीमत का एहसास कराया है। यही लोगों का अनुसरण है। हरेक व्यक्ति, अपनी अनूठी रुचियों और शौक से प्रेरित होकर, अपने लक्ष्य, आदर्श और इच्छाएँ रखता है। बेशक, अपने लक्ष्य, आदर्श और इच्छाएँ निर्धारित करने के बाद, शायद वे इन आदर्शों और इच्छाओं को पूरा करने में सक्षम न हो पाएँ। लेकिन, एक बार जब व्यक्ति अपने आदर्श और इच्छाएँ निर्धारित कर लेता है, जब उसके पास ये लक्ष्य होते हैं, तो वह बेशक खुद को सामान्य बने नहीं रहने देगा। जैसी कि कहावत है, अपने गुण का प्रदर्शन करना सबको पसंद है; लोग चाहते हैं कि दूसरे उन्हें अनूठा मानें। कोई भी सामान्य व्यक्ति बनने को तैयार नहीं है, जो कहता हो, “मेरा जीवन ऐसा ही होगा। मैं पशुपालक, किसान, साधारण राजमिस्त्री या चौकीदार बन सकता हूँ। मैं सामान पहुँचाने वाला (डिलीवरी-मैन) या सवारी गाड़ी का ड्राइवर भी बन सकता हूँ।” इस तरह का आदर्श कोई नहीं रखता है। मान लो कि तुम कहते हो, “क्या खुशहाल डिलीवरी-मैन बनना कोई आदर्श है?” हर कोई जवाब देगा, “नहीं, यह आदर्श बिल्कुल भी नहीं है! किसी डिलीवरी कंपनी का मालिक बनना, एक विश्व-प्रसिद्ध बॉस बनना, यह एक आदर्श और इच्छा है!” कोई भी व्यक्ति अपनी मर्जी से एक सामान्य व्यक्ति की अपनी भूमिका स्वीकार नहीं करता। एक बार किसी व्यक्ति को किसी रुचि या शौक की थोड़ी सी भी भनक लग जाए, समाज में एक प्रमुख हस्ती बनने या थोड़ी सी कामयाबी हासिल करने का लाखों में एक मौका भी दिख जाए, तो वह हार नहीं मानेगा। वह अपना 120 प्रतिशत प्रयास करेगा और इसके लिए कोई भी कीमत चुकाएगा, है न? (हाँ।) लोग कभी हार नहीं मानते।
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