सत्य का अनुसरण कैसे करें (6) भाग तीन
दमित महसूस करने से बचने के लिए गुणी और प्रतिभाशाली लोगों को कैसे अभ्यास करना चाहिए? क्या इसे हासिल करना आसान है? (यह आसान है।) तो, अपनी विशेषज्ञता का उपयोग न कर पाने से उत्पन्न होने वाली दमन की नकारात्मक भावनाओं को तुम कैसे हल कर सकते हो? सबसे पहले, तुम्हें यह समझना होगा कि वे तकनीकी कौशल, या किसी प्रकार की प्रतिभा और विशेषज्ञता कौन-सी हैं जिसका लोग अध्ययन करते और जिसमें महारत हासिल करते हैं—क्या वे खुद जीवन हैं? (नहीं, वे नहीं हैं।) क्या उन्हें सकारात्मक चीजों की श्रेणी में डाला जा सकता है? (नहीं डाला जा सकता।) उन्हें सकारात्मक चीजों की श्रेणी में नहीं डाला जा सकता है; ज्यादा से ज्यादा, वे एक प्रकार के साधन हैं। समाज और धर्मनिरपेक्ष संसार में, वे ज्यादा से ज्यादा ऐसी क्षमताएँ हैं जो लोगों को पर्याप्त रूप से अपना भरण-पोषण करने और अपना जीवन जीते रहने में सक्षम बनाती हैं। लेकिन परमेश्वर के घर की नजरों में, तुमने बस एक प्रकार का तकनीकी कौशल हासिल किया है; यह महज एक प्रकार का ज्ञान है, यह एक प्रकार का सरल और शुद्ध ज्ञान है। यह यकीनन किसी की श्रेष्ठता या नीचता नहीं दर्शाता है—किसी व्यक्ति को दूसरों की तुलना में बस इसलिए अधिक श्रेष्ठ नहीं कहा जा सकता क्योंकि उसके पास एक खास विशेषज्ञता या कौशल है। तो फिर किसी की श्रेष्ठता या नीचता को कैसे देखा जा सकता है? उनकी मानवता, उनके अनुसरण और जिस मार्ग पर वे चलते हैं उसे देखकर। तकनीकी कौशल या विशेषज्ञता केवल यह दिखा सकती है कि तुमने कौन-सा विशिष्ट कौशल या ज्ञान हासिल किया है, इसके बारे में तुम्हारी समझ कितनी गहरी या उथली है, और तुमने इसमें किस स्तर की दक्षता हासिल की है। इन तकनीकी कौशल और विशेषज्ञता पर केवल दक्षता, मात्रा और गहराई के संदर्भ में चर्चा की जा सकती है; और इस संदर्भ में कि क्या व्यक्ति उस क्षेत्र में अत्यधिक अनुभवी है या उसके पास इसका केवल सतही ज्ञान है। उनका उपयोग किसी व्यक्ति की मानवता की गुणवत्ता, उनके अनुसरण या जिस मार्ग पर वह चल रहा है उसका मूल्यांकन करने के लिए नहीं किया जा सकता। वे शुद्ध रूप से एक प्रकार का ज्ञान या साधन हैं। यह ज्ञान या साधन तुम्हें कुछ संबंधित कार्य करने में सक्षम बना सकता है, या तुम्हें किसी विशेष प्रकार के काम में अधिक योग्य बना सकता है, लेकिन यह तुम्हें केवल नौकरी की सुरक्षा और आजीविका की गारंटी देता है। बस इतना ही। भले ही समाज तुम्हारे तकनीकी कौशल और विशेषज्ञता को कैसे भी देखता हो, लेकिन परमेश्वर का घर उन्हें इसी तरह देखता है। सिर्फ इसलिए कि किसी व्यक्ति के पास कोई विशेष कौशल है, परमेश्वर का घर कभी भी उसे अलग तरह से नहीं देखेगा, उसे बढ़ावा देने के लिए अपवादस्वरूप कोई ढील नहीं देगा या उसे किसी भी प्रकार की काट-छाँट या किसी भी प्रकार की ताड़ना या न्याय से छूट नहीं देगा। किसी व्यक्ति के पास चाहे जो भी तकनीकी कौशल या विशेषज्ञता हो, उसका भ्रष्ट स्वभाव अभी भी मौजूद है, और वह अभी भी एक भ्रष्ट इंसान हैं। किसी व्यक्ति के गुण, प्रतिभाएँ और तकनीकी कौशल उसके भ्रष्ट स्वभाव से अलग और असंबद्ध होते हैं, और उनका व्यक्ति की मानवता या चरित्र से कोई लेना-देना भी नहीं होता है। कुछ व्यक्तियों में थोड़ी बेहतर काबिलियत, थोड़ी अधिक बुद्धि, या थोड़ा अधिक विवेक और समझने की शक्ति होती है, जो खास तकनीकी कौशल का अध्ययन करते समय उन्हें कुछ हद तक गहरा ज्ञान हासिल करने में मदद करती है। वे थोड़ी अधिक उपलब्धियाँ और परिणाम प्राप्त करते हैं, और इस पेशे से जुड़े कार्य करते समय ऐसी और चीजें हासिल करते हैं। समाज में, इससे उन्हें कुछ हद तक अधिक और उच्च वित्तीय लाभ मिल सकता है, और उनके क्षेत्र में थोड़ा ऊँचा रुतबा, वरिष्ठता या प्रतिष्ठा मिल सकती है। बस इतना ही। बहरहाल, इनमें से कुछ भी यह नहीं दर्शाता है कि वे किस मार्ग पर चल रहे हैं, उनके लक्ष्य क्या हैं, या जीवन और अस्तित्व के प्रति उनका रवैया क्या है। तकनीकी कौशल और विशेषज्ञता शुद्ध रूप से ज्ञान के क्षेत्र की चीजें हैं, और उनका किसी व्यक्ति के विचारों, दृष्टिकोण, या किसी चीज के बारे में उनके परिप्रेक्ष्य और रुख से कोई लेना-देना नहीं है। वे किसी भी तरह से इन चीजों से जुड़े नहीं हैं। बेशक, ज्ञान के कुछ क्षेत्रों में जिन विचारों को बढ़ावा दिया जाता है वे विधर्म और भ्रांतियाँ हैं जो लोगों को सत्य समझने और सकारात्मक चीजों को पहचानने के बारे में गुमराह करते हैं। वह बिल्कुल अलग मामला है। यहाँ, हम शुद्ध ज्ञान और तकनीकी कौशल की बात कर रहे हैं, जो लोगों के भ्रष्ट स्वभावों या सामान्य मानवता के लिए कोई सकारात्मक या सक्रिय समर्थन नहीं देते हैं और उनमें कोई सुधार नहीं करते हैं। उनमें किसी व्यक्ति के भ्रष्ट स्वभाव पर अंकुश लगाने या उसे सीमित करने की भी कोई क्षमता नहीं है। यही उनकी प्रकृति है। चाहे कोई व्यक्ति साहित्य, संगीत, या कला के किसी भी पहलू से, विज्ञान, जीव विज्ञान, या रसायन विज्ञान, या डिजाइन, वास्तुकला, वाणिज्य, या यहाँ तक कि शिल्प कौशल से जुड़ा हो, उनका कार्य-क्षेत्र चाहे जो भी हो, उनके तकनीकी ज्ञान की प्रकृति ऐसी ही होती है—यही इसका सार है। क्या तुम लोगों को लगता है कि मेरी बात सही है? (हाँ।) चाहे तुम किसी भी क्षेत्र में शामिल हो या किसी भी तकनीकी कौशल का अध्ययन करते हो, या तुम्हारे पास कोई जन्मजात विशेषज्ञता हो, यह तुम्हारी श्रेष्ठता या नीचता को नहीं दर्शाता है। उदाहरण के लिए, जो लोग समाज में व्यवसाय और अर्थशास्त्र से जुड़े हैं, विशेष रूप से संभ्रांत वर्ग के लोग, कुछ लोग उन्हें उन्नत चरित्र वाला मानते हैं, और क्योंकि उनके द्वारा अपनाए गए पेशे और हासिल किए गए ज्ञान का लोग बहुत सम्मान करते हैं, और वे खास तौर पर ज्यादा पैसे कमाते हैं, इसलिए उनका सामाजिक दर्जा ऊँचा है। हालाँकि, परमेश्वर के घर में ऐसी राय नहीं होती है, और परमेश्वर का घर उनका इस तरह से मूल्यांकन नहीं करेगा। क्योंकि इस बात का मूल्यांकन करने के लिए उन लोगों द्वारा उपयोग किए गए सिद्धांत और मानक सत्य नहीं, बल्कि मानवीय समझ हैं, जो मानवीय ज्ञान से संबंधित हैं, इसलिए ऐसे दृष्टिकोण परमेश्वर के घर में मान्य नहीं हैं। दूसरा उदाहरण देखो, समाज में कुछ लोग मछुआरे, रेहड़ी-पटरी वाले या कारीगर होते हैं; उन्हें निम्न दर्जे का माना जाता है और वहाँ कोई भी उन्हें उच्च सम्मान नहीं देता है। हालाँकि, परमेश्वर के घर में, परमेश्वर के सभी चुने हुए लोग एक समान हैं। सत्य के सामने सभी लोग बराबर हैं और कुलीन या नीच लोगों में कोई भेदभाव नहीं है। तुम्हें सिर्फ इसलिए सम्माननीय नहीं माना जाएगा क्योंकि समाज में तुम्हारा दर्जा ऊँचा है या तुम किसी अच्छे पेशे में हो, न ही तुम्हें इसलिए नीच माना जाएगा क्योंकि तुम समाज में निम्न दर्जे का काम करते हो। इसलिए, परमेश्वर के घर में और परमेश्वर की नजरों में, चाहे तुम्हारी पहचान, अहमियत और रुतबे को ऊँचा माना जाता हो या नीचा, इसका तुम्हारी पेशेवर क्षमताओं, तकनीकी दक्षता, या उस विशेषज्ञता से कोई लेना-देना नहीं है जो तुम्हारे पास है। कुछ लोग कहते हैं, “मैं सेना में कमांडर, जनरल और मार्शल था।” मैं उनसे कहता हूँ, “तुम जाकर अलग खड़े हो जाओ।” तुम्हें अलग क्यों खड़ा होना चाहिए? क्योंकि तुम्हारा शैतानी स्वभाव बहुत गंभीर है, और तुम्हें देखकर मुझे घृणा होती है। सबसे पहले, परमेश्वर के वचनों को पढ़ने में कुछ समय बिताओ, कुछ सत्यों की समझ हासिल करो, और थोड़ा मनुष्य की तरह जीवन जियो, और फिर, जब तुम वापस आओगे, तो हर कोई तुम्हें स्वीकार सकेगा। परमेश्वर के घर में, तुम्हें बस इसलिए सम्मान नहीं दिया जाएगा क्योंकि तुम समाज में ऐसा काम करते हो जिसे मनुष्य द्वारा श्रेष्ठ माना जाता है, और न ही तुम्हें इसलिए नीची नजरों से देखा जाएगा क्योंकि समाज में कभी तुम्हारा रुतबा निम्न था। लोगों का मूल्यांकन करने के लिए परमेश्वर के घर के मानक और सिद्धांत पूरी तरह से सत्य के मानदंड पर आधारित हैं। तो, सत्य के मानदंड क्या हैं? इन मानदंडों के विशिष्ट पहलू हैं : सबसे पहले, लोगों का मूल्यांकन उनकी मानवता की गुणवत्ता के आधार पर किया जाता है, क्या उनके पास अंतरात्मा और विवेक, एक अच्छा दिल, और न्याय की भावना है; दूसरे, लोगों का मूल्यांकन इस आधार पर किया जाता है कि वे सत्य से प्रेम करते हैं या नहीं, और वे किस मार्ग पर चल रहे हैं—क्या वे सत्य का अनुसरण करते हैं, सकारात्मक चीजों से प्रेम करते हैं, और परमेश्वर की निष्पक्षता और धार्मिकता से प्रेम करते हैं, या वे सत्य का अनुसरण नहीं करते हैं, सत्य और सकारात्मक चीजों से विमुख हो चुके हैं, हमेशा व्यक्तिगत प्रयासों में जुटे रहते हैं वगैरह-वगैरह। इसलिए, चाहे तुम्हारे पास किसी प्रकार का तकनीकी कौशल या विशेषज्ञता हो या नहीं, या चाहे तुम्हारे पास कोई पेशेवर कौशल या विशेषज्ञता न हो, परमेश्वर के घर में तुम्हारे साथ उचित व्यवहार किया जाएगा। परमेश्वर के घर ने हमेशा इसी तरह से काम किया है, यह अब भी ऐसा ही कर रहा है और भविष्य में भी ऐसा ही करेगा। ये सिद्धांत और मानक कभी नहीं बदलेंगे। इसलिए, उन लोगों को बदलने की जरूरत है जो दमित महसूस करते हैं क्योंकि वे अपनी विशेषज्ञता का उपयोग नहीं कर सकते। यदि तुम सचमुच यह मानते हो कि परमेश्वर धार्मिक है, और परमेश्वर के घर में सत्य का शासन है, परमेश्वर के घर में निष्पक्षता और धार्मिकता है, तो मैं तुम लोगों से जल्दी से अपने तकनीकी कौशल और विशेषज्ञता से जुड़े गलत दृष्टिकोण और राय को त्यागने के लिए कहता हूँ। ऐसा मत सोचो कि कुछ गुण या थोड़ी विशेषज्ञता रखने से तुम श्रेष्ठ बन जाते हो। भले ही तुम्हारे पास ऐसे तकनीकी कौशल या विशेषज्ञता हो सकती है जो दूसरों में नहीं है, फिर भी तुम्हारी मानवता और भ्रष्ट स्वभाव दूसरों से अलग नहीं हैं। परमेश्वर की नजरों में तुम सिर्फ एक साधारण व्यक्ति हो और तुममें कुछ भी विशेष नहीं है। शायद तुम कहो, “मैं एक ऊँचे दर्जे वाला अधिकारी हुआ करता था,” पर तुम हो तो एक सामान्य व्यक्ति ही। शायद तुम कहो, “मैं बड़ी-बड़ी चीजें करता था,” तुम फिर भी एक सामान्य व्यक्ति ही हो। शायद तुम कहो, “मैं एक नायक हुआ करता था,” लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम किस तरह के नायक या मशहूर हस्ती थे, इसका कोई फायदा नहीं है। परमेश्वर के परिप्रेक्ष्य से, तुम अभी भी एक सामान्य व्यक्ति हो। यह सत्य और सिद्धांतों का एक पहलू है जिसे तकनीकी कौशल और कुछ प्रकार की विशेषज्ञता के बारे में लोगों को समझना चाहिए। दूसरा पहलू—इन पेशेवर कौशलों और विशेषज्ञता को कैसे देखना चाहिए—यह अभ्यास का एक विशिष्ट मार्ग है जिसे लोगों को समझना चाहिए। सबसे पहले, तुम्हें अपने विचारों और चेतना में स्पष्ट रूप से यह जानना होगा कि तुम्हारे पास चाहे जो भी पेशेवर कौशल या विशेषज्ञता हो, तुम परमेश्वर के घर में कोई काम करने, अपनी अहमियत प्रदर्शित करने, वेतन पाने, या जीविका कमाने के लिए नहीं आ रहे हो। तुम अपना कर्तव्य निभाने के लिए यहाँ आए हो। परमेश्वर के घर में तुम्हारी एकमात्र पहचान एक भाई या बहन के रूप में है, दूसरे शब्दों में कहें तो परमेश्वर की नजरों में तुम एक सृजित प्राणी हो। तुम्हारी कोई दूसरी पहचान नहीं है। परमेश्वर की नजरों में एक सृजित प्राणी कोई जानवर, कोई वनस्पति या कोई शैतान नहीं है। वह एक इंसान है और एक इंसान होने के नाते तुम्हें अपना कर्तव्य निभाना चाहिए। एक इंसान के रूप में अपना कर्तव्य निभाना परमेश्वर के घर में आने के लिए तुम्हारा सबसे बुनियादी लक्ष्य और सबसे बुनियादी दृष्टिकोण होना चाहिए। तुम्हें कहना चाहिए, “मैं एक व्यक्ति हूँ। मेरे पास सामान्य मानवता, अंतरात्मा और विवेक है। मुझे अपना कर्तव्य निभाना चाहिए।” सिद्धांत के अनुसार, लोगों को सबसे पहले यही विचार और दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। अगला यह है कि तुम्हें अपना कर्तव्य कैसे निभाना चाहिए : तुम्हें अपनी बात सुननी चाहिए या फिर परमेश्वर की? (परमेश्वर की।) सही कहा, और तुम्हें परमेश्वर की बात क्यों सुननी चाहिए? सिद्धांत और वाद के अनुसार, लोग जानते हैं कि उन्हें परमेश्वर की बात सुननी चाहिए, परमेश्वर सत्य है और अंतिम फैसला परमेश्वर ही करता है। वाद के अनुसार व्यक्ति का यही दृष्टिकोण होना चाहिए। वास्तव में, तुम यह कर्तव्य अपने लिए नहीं, अपने परिवार के लिए नहीं, अपने दैनिक जीवन के लिए नहीं, न ही अपने व्यक्तिगत करियर या प्रयासों के लिए निभाते हो, बल्कि परमेश्वर के कार्य के लिए, मानवता को बचाने के परमेश्वर के प्रबंधन के लिए निभाते हो। इसका तुम्हारे व्यक्तिगत मामलों से कोई लेना-देना नहीं है। तुम्हें इस दृष्टिकोण को समझना और अपनाना होगा। फिर तुम्हें यह समझना चाहिए कि चूँकि तुम अपनी खातिर कर्तव्य नहीं निभा रहे, बल्कि परमेश्वर के कार्य की खातिर निभा रहे हो, इसलिए तुम्हें परमेश्वर से प्रार्थना करके यह खोजना होगा कि तुम्हें अपना कर्तव्य कैसे निभाना चाहिए, और परमेश्वर के घर के सिद्धांत और अपेक्षाएँ क्या हैं। परमेश्वर जैसे तुम्हें कहता है वैसे अपना कर्तव्य निभाओ, बिना इसके बारे में कुछ भी कहे और बिना किसी हिचकिचाहट या इनकार के, वह करो जो परमेश्वर तुमसे करने के लिए कहता है। यह निश्चित है। क्योंकि यह परमेश्वर का घर है, इसलिए लोगों के लिए यही सही और उचित है कि वे उन कर्तव्यों को निभाएँ जो उन्हें यहाँ निभाने चाहिए। लेकिन लोग ऐसा अपने लिए, अपने दैनिक अस्तित्व, जीवन, परिवार या करियर के लिए नहीं कर रहे हैं। तो फिर वे यह किसलिए कर रहे हैं? परमेश्वर के कार्य के लिए, और परमेश्वर के प्रबंधन के लिए। चाहे इसमें कोई भी विशिष्ट पेशा या किसी भी प्रकार का कार्य शामिल हो, चाहे वह विराम चिह्न या प्रारूपण शैली जितना छोटा हो, या कार्य की किसी विशिष्ट वस्तु जितना महत्वपूर्ण हो, यह सब परमेश्वर के कार्य के दायरे में आता है। इसलिए, यदि तुम्हारे पास विवेक है, तो तुम्हें पहले अपने आप से पूछना चाहिए, “मुझे यह कार्य कैसे करना चाहिए? परमेश्वर की अपेक्षाएँ क्या हैं? परमेश्वर के घर ने कौन-से सिद्धांत निर्धारित किए हैं?” फिर, उन प्रासंगिक सिद्धांतों को एक-एक करके सूचीबद्ध करो और सख्ती से प्रत्येक नियम और सिद्धांत के अनुसार कार्य करो। अगर यह सिद्धांतों के अनुरूप है और उनके दायरे में रहता है, तो तुम जो भी करोगे वह उचित होगा, और परमेश्वर इसे तुम्हारे द्वारा कर्तव्य निभाना मानेगा और इसी रूप में वर्गीकृत करेगा। क्या लोगों को यह समझना नहीं चाहिए? (हाँ।) यदि तुम इसे समझते हो, तो तुम्हें हमेशा इस बात पर विचार नहीं करना चाहिए कि तुम चीजों को कैसे करना चाहते हो या तुम क्या करना चाहते हो। इस प्रकार सोचने और कार्य करने में विवेक का अभाव होता है। क्या जिन कार्यों में विवेक का अभाव हो उन्हें करना चाहिए? नहीं, उन्हें नहीं करना चाहिए। यदि तुम उन्हें करना चाहते हो, तो फिर तुम्हें क्या करना चाहिए? (खुद से विद्रोह।) तुम्हें खुद से विद्रोह कर अपनी इच्छाएँ त्याग देनी चाहिए और अपने कर्तव्य और परमेश्वर के घर की अपेक्षाओं और सिद्धांतों को पहले रखना चाहिए। यदि तुम असहज महसूस करते हो, और तुम अपने खाली समय में अपने हितों और शौक को पूरा करते हो, तो परमेश्वर का घर इसमें हस्तक्षेप नहीं करेगा। यह एक पहलू है जिसे तुम्हें समझना चाहिए—तुम्हारा कर्तव्य क्या है और तुम्हें इसे कैसे निभाना चाहिए। दूसरा पहलू लोगों की पेशेवर विशेषज्ञता और कौशल के मुद्दे से संबंधित है। तुम्हें पेशेवर कौशल और विशेषज्ञता के मामले को कैसे देखना चाहिए? यदि परमेश्वर के घर को तुम्हारी उस पेशेवर विशेषज्ञता और कौशल की आवश्यकता है जिसमें तुम उत्कृष्ट हो या जिसमें पहले ही महारत हासिल कर चुके हो, तो तुम्हारा रवैया क्या होना चाहिए? तुम्हें उन्हें बिना किसी संकोच के प्रदान करना चाहिए, जिससे वे अपना कार्य करके और तुम्हारे कर्तव्य में जितनी हो सके उतनी अपनी अहमियत प्रदर्शित कर सकें। तुम्हें उन्हें बर्बाद नहीं होने देना चाहिए; क्योंकि तुम उनका इस्तेमाल कर सकते हो, तुम उन्हें समझते हो, और तुमने उनमें महारत हासिल की है, इसलिए तुम्हें उनका उपयोग होने देना चाहिए। उनके उपयोग का सिद्धांत क्या है? वह यह है कि परमेश्वर के घर को जो कुछ भी चाहिए, उसे जितना भी चाहिए, और जिस हद तक चाहिए, तुम इन कौशलों का इस तरह से इस्तेमाल करो जिससे उन्हें मापा और नियंत्रित किया जा सके। अपने कर्तव्य में अपने तकनीकी कौशल और विशेषज्ञता को लागू करो, जिससे उन्हें अपना कार्य पूरा करने में मदद मिले और तुम अपने कर्तव्य में बेहतर परिणाम प्राप्त कर सको। इस तरह, क्या तुम्हारे द्वारा पेशेवर कौशल और विशेषज्ञता का अध्ययन किसी कारण से नहीं होगा? क्या उनका कोई मूल्य नहीं होगा? क्या तुमने कोई योगदान नहीं दिया होगा? (हाँ।) क्या तुम लोग इस तरह से योगदान देना चाहोगे? (हाँ।) यह अच्छी बात है। जहाँ तक उन कौशलों और विशेषज्ञता की बात है जिनका परमेश्वर के घर में कोई उपयोग नहीं है, परमेश्वर के घर को उनकी न तो आवश्यकता है और न ही उन्हें प्रोत्साहित किया जाता है, और जिनके पास ऐसे कौशल या विशेषज्ञता है उन्हें उनका मनमाने ढंग से इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। तुम्हें इस मामले को कैसे समझना चाहिए? (मुझे ये कौशल त्याग देने चाहिए।) बिल्कुल सही, सबसे सरल तरीका है उन्हें त्याग देना, ऐसा व्यवहार करना मानो तुमने उन्हें कभी सीखा ही नहीं। मुझे बताओ, यदि तुम अपनी इच्छा से उन्हें त्याग देते हो, तो क्या वे तब भी उभरेंगे और तुम्हें परेशान करेंगे जब तुम अपना कर्तव्य निभा रहे होगे? नहीं, वे ऐसा नहीं करेंगे। क्या यह फैसला तुम पर निर्भर नहीं है? वे थोड़ा-सा ज्ञान मात्र हैं। वे कितनी संताप, कितना बड़ा प्रभाव पैदा कर सकते हैं? उनके साथ ऐसे व्यवहार करो जैसे कि तुमने उन्हें कभी सीखा ही नहीं, मानो कि तुम्हें वो सब आता ही नहीं है, और तब क्या समस्या खत्म नहीं हो जाएगी? तुम्हें इस मामले को सही ढंग से संभालना चाहिए। यदि यह कुछ ऐसा है जिसकी परमेश्वर के घर को कोई जरूरत नहीं है, तो दिखावा करने के लिए, अपने हितों को संतुष्ट करने के लिए, या हर किसी को यह दिखाने के लिए कि तुम कुछ तरकीबें जानते हो, बेवजह अपने कौशल का प्रदर्शन मत करो। ऐसा करना गलत है। यह तुम्हारा कर्तव्य निर्वहन नहीं है और इसे याद नहीं रखा जायेगा। मैं तुम्हें बता दूँ, न केवल इसे याद नहीं किया जाएगा, बल्कि इसकी निंदा भी की जाएगी, क्योंकि तुम अपना कर्तव्य नहीं निभा रहे हो, तुम व्यक्तिगत प्रयासों में लगे हुए हो, और यह बहुत गंभीर मामला है! यह गंभीर मामला क्यों है? क्योंकि, इसकी प्रकृति ही बाधक और अवरोधक है! परमेश्वर के घर ने बार-बार कहा है कि तुम्हें इस तरह से काम नहीं करना चाहिए, या उन चीजों को नहीं करना चाहिए, या उस तरीके का उपयोग नहीं करना चाहिए, लेकिन तुम सुनते ही नहीं। तुम उन्हें करते रहते हो, तुम उन्हें त्यागने से इनकार करते हो और अपनी जिद पर अड़े रहते हो। क्या यह बाधा नहीं है? क्या यह जानबूझकर नहीं किया जाता है? तुम अच्छी तरह जानते हो कि परमेश्वर के घर को इन चीजों की जरूरत नहीं है, फिर भी तुम जानबूझकर उन्हें करते रहते हो। क्या तुम्हें सिर्फ दिखावा करने में मजा नहीं आता? यदि तुम्हारे बनाए गए वीडियो या कार्यक्रम परमेश्वर को अपमानित करते हैं, तो परिणाम अकल्पनीय होंगे, और तुम्हारा अपराध बहुत बड़ा होगा। तुम इसे समझते हो, है ना? (हाँ।) इसलिए, व्यक्तिगत रूप से तुम्हें जो चीजें अच्छी लगती हैं और जो पेशेवर कौशल तुम्हारे पास हैं—यदि तुम उन्हें पसंद करते हो, यदि तुम उनमें रुचि रखते हो, यदि तुम उन्हें सँजोते हो, तो उन्हें घर पर निजी तौर पर करो। वह ठीक है। लेकिन उन्हें सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित मत करो। यदि तुम सार्वजनिक रूप से कुछ प्रदर्शित करना चाहते हो, तो तुम्हें इसे उच्च स्तर पर करने में सक्षम होना चाहिए, और परमेश्वर को अपमानित या उसके घर को बदनाम नहीं करना चाहिए। यह सिर्फ इस बारे में नहीं है कि तुम्हारे पास अंतर्दृष्टि है या नहीं या तुम कुछ विशेष पेशेवर कौशल में कितने दक्ष हो। यह इतना आसान नहीं है। उन सिद्धांतों और मानकों का एक आधार है जिसकी परमेश्वर का घर तुम लोगों द्वारा किए जाने वाले हरेक कार्य में अपेक्षा करता है, और साथ ही इसमें वह दिशा और उद्देश्य भी शामिल हैं जो हरेक चरण में तुम लोगों के कार्य का मार्गदर्शन करते हैं। वे सभी परमेश्वर के घर के कार्य और हितों की रक्षा के लिए हैं, न कि उन्हें बाधित करने, परेशान करने, बदनाम करने या नष्ट करने के लिए। यदि तुम लोगों की व्यक्तिगत काबिलियत, अंतर्दृष्टि, अनुभव और पसंद इनके अनुरूप नहीं हो सकती हैं, या कोई कमी रह जाती है, तो निजी तौर पर संगति करो, और उन लोगों से मार्गदर्शन और सहायता माँगो जो इन्हें समझते हैं और इनके साथ तालमेल बिठा सकते हैं। विरोध मत करो, सिर्फ इसलिए लगातार नकारात्मक भावनाएँ मत पालो क्योंकि तुम लोगों को कुछ चीजें करने की अनुमति नहीं है। तुम लोगों की जो जरा-सी तरकीबें हैं, वे खास अच्छी नहीं हैं। मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ कि तुम लोग खास अच्छे नहीं हो? क्योंकि तुम लोगों के विचार और दृष्टिकोण बहुत ही विकृत हैं। न केवल तुम लोगों की पसंद, अंतर्दृष्टि, निर्णय और अनुभव अपर्याप्त और असंतोषजनक है, बल्कि तुम कई पुरानी धार्मिक धारणाओं को भी लेकर चलते हो। तुम लोगों की धार्मिक धारणाएँ बहुत सारी हैं और गहरी जड़ें जमा चुकी हैं, और यहाँ तक कि बीस-पच्चीस साल के कुछ युवाओं में भी बहुत पुराने विचार और धारणाएँ मौजूद हैं। भले ही तुम सब आधुनिक युग के लोग हो, जो आधुनिक तकनीकी कौशल का अध्ययन करते हैं, और कुछ पेशेवर ज्ञान रखते हैं, लेकिन क्योंकि तुम लोग सत्य नहीं समझते, इसलिए विभिन्न मामलों के संबंध में तुम लोगों के परिप्रेक्ष्य, दृष्टिकोण, और रुख और तुम्हारे अंदर मौजूद विचार, सभी पुराने हो चुके हैं। तो, चाहे तुम लोग कितने भी पेशेवर कौशल सीख लो, तुम लोगों के विचार पुराने ही रहेंगे। तुम्हें इस समस्या को और इस वास्तविक परिस्थिति को समझना होगा। इसलिए, तुम्हें उन चीजों का त्याग करना चाहिए जिन्हें परमेश्वर का घर चाहता है कि तुम लोग छोड़ दो, जिन पर पाबंदी लगाई जाती है या जिनका इस्तेमाल करने की तुम्हें अनुमति नहीं है। तुम्हें आज्ञापालन करना सीखना होगा। यदि तुम इसके अंतर्निहित कारणों को नहीं समझते हो, तो कम से कम, तुम्हारे पास आज्ञापालन करना सीखने के लिए पर्याप्त विवेक होना चाहिए, और पहले परमेश्वर के घर की अपेक्षाओं के आधार पर कार्य करना चाहिए। विरोध मत करो, पहले समर्पण करना सीखो।
अपने पेशेवर कौशल के प्रति लोगों के सही रवैये के बारे में संगति करने के बाद, तुम्हें और क्या समझना चाहिए? अपना कर्तव्य निभाने की प्रक्रिया में, यदि तुम किसी तकनीकी कौशल या विशेषज्ञता का ठीक से उपयोग न करने के कारण असफल हो जाते हो, जिससे कलीसिया के कार्य में रुकावट आती है और उसका नुकसान होता है, और तुम्हें काट-छाँट का सामना करना पड़ता है, तो तुम्हें क्या करना चाहिए? इसे संभालना आसान है। फौरन अपनी गलती मानकर पश्चाताप करो, और परमेश्वर का घर तुम्हें अपनी गलतियों को सुधारने का मौका देगा। क्योंकि कोई भी पूर्ण नहीं है, हर कोई गलतियाँ करता है और ऐसे पल आते हैं जब वे भ्रमित महसूस करते हैं। दिक्कत गलतियाँ करने में नहीं है, दिक्कत तब है जब तुम उन्हीं गलतियों को बार-बार दोहराना जारी रखते हो, लगातार वही गलतियाँ करते रहते हो और तब तक पीछे नहीं हटते जब तक तुम्हारा रास्ता बंद नहीं हो जाता। यदि तुम्हें अपनी गलतियों का एहसास है, तो उन्हें सुधारो। यह इतना मुश्किल नहीं है, है न? हर किसी ने गलतियाँ की हैं, इसलिए किसी को भी दूसरे का उपहास नहीं उड़ाना चाहिए। यदि तुम गलतियाँ करने के बाद उन्हें स्वीकार सकते हो, उनसे सबक सीख सकते हो, और बदलाव कर सकते हो, तो तुम प्रगति करोगे। इसके अलावा, यदि समस्या तुम्हारे कार्य में दक्षता की कमी के कारण है, तो तुम सीखना जारी रख सकते हो और आवश्यक कौशल में महारत हासिल कर सकते हो, इससे समस्या हल हो सकती है। यदि तुम यह सुनिश्चित कर सकते हो कि भविष्य में तुम उस गलती को नहीं दोहराओगे, तो क्या समस्या यहीं खत्म नहीं हो जाएगी? यह कितना सरल है! तुम्हें बस इसलिए दमित महसूस करने की जरूरत नहीं है क्योंकि तुम अपने पेशेवर कौशल के गलत उपयोग के कारण लगातार गलतियाँ करते हो, और तुम्हें काट-छाँट का सामना करना पड़ता है। दमित क्यों महसूस करते हो? तुम इतने नाजुक क्यों हो? परिस्थिति या कार्य का माहौल चाहे जैसा भी हो, लोग कभी-कभी गलतियाँ करते हैं, और ऐसे क्षेत्र भी हैं जहाँ उनकी काबिलियत, अंतर्दृष्टि और परिप्रेक्ष्य कम पड़ जाते हैं। यह सामान्य है, और तुम्हें इसे सही तरीके से संभालना सीखना होगा। चाहे तुम्हारा अभ्यास कुछ भी हो, हर हाल में तुम्हें उसका सही तरीके से और सक्रियता से सामना करना और संभालना चाहिए। थोड़ी-सी कठिनाई आने पर अवसादग्रस्त न हो या नकारात्मक या दमित महसूस न करो, और नकारात्मक भावनाओं में मत डूबो। इन सबकी कोई जरूरत नहीं है, बात का बतंगड़ मत बनाओ। तुम्हें तुरंत आत्म-चिंतन करना चाहिए और यह निर्धारित करना चाहिए कि कहीं तुम्हारे पेशेवर कौशल में या तुम्हारे इरादों में कोई समस्या तो नहीं है। जाँच करो कि क्या तुम्हारे क्रियाकलापों में कोई अशुद्धियाँ हैं या कुछ धारणाएँ इसके लिए दोषी हैं। सभी पहलुओं पर चिंतन करो। यदि यह दक्षता की कमी से जुड़ी समस्या है, तो तुम सीखना जारी रख सकते हो, समाधान खोजने में मदद के लिए किसी को ढूँढो, या उसी क्षेत्र के लोगों से परामर्श करो। यदि कुछ गलत इरादे मौजूद हैं, ऐसी समस्या शामिल है जिसे सत्य का उपयोग करके हल किया जा सकता है, तो तुम परामर्श और संगति के लिए कलीसिया अगुआओं या सत्य समझने वाले किसी व्यक्ति को खोज सकते हो। तुम जिस अवस्था में हो, उसके बारे में उनसे बात करो और उन्हें इसे सुलझाने में तुम्हारी मदद करने दो। यदि यह धारणाओं से जुड़ी समस्या है, तो उनकी जाँच करने और उन्हें पहचानने के बाद, तुम उनका गहन-विश्लेषण करके उन्हें समझ सकते हो, फिर उनसे दूर होकर विद्रोह कर सकते हो। क्या इसमें बस इतना ही नहीं करना है? आने वाले दिन अभी भी तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं, कल सूरज फिर से उगेगा, और तुम्हें जीना होगा। क्योंकि तुम जिंदा हो, क्योंकि तुम इंसान हो, तुम्हें अपना कर्तव्य निभाते रहना चाहिए। जब तक तुम जिंदा हो और तुम्हारे पास विचार हैं, तब तक तुम्हें अपना कर्तव्य निभाने और उसे पूरा करने का प्रयास करते रहना चाहिए। यह एक ऐसा लक्ष्य है जो व्यक्ति के जीवन भर में अपरिवर्तित रहना चाहिए। चाहे जब भी हो, चाहे सामने कोई भी कठिनाई हो, चाहे किसी भी परिस्थिति का सामना करना पड़े, तुम्हें दमित महसूस नहीं करना चाहिए। यदि तुम दमित महसूस करते हो, तो तुम स्थिर हो जाओगे और पराजित हो जाओगे। किस तरह के लोग हमेशा दमित महसूस करते हैं? कमजोर और मूर्ख लोग अक्सर दमित महसूस करते हैं। लेकिन तुम हृदयहीन या विचारहीन नहीं हो, तो तुम किस बात से दमित महसूस करते हो? बात सिर्फ इतनी है कि इस समय तुम्हारे तकनीकी कौशल या विशेषज्ञता का सामान्य रूप से उपयोग नहीं किया जा रहा है। सामान्य रूप से उपयोग करने का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि परमेश्वर के घर को तुमसे जो अपेक्षा है वह करना और परमेश्वर के घर के आवश्यक मानकों को पूरा करने के लिए अपने सीखे हुए तकनीकी कौशल का उपयोग करना। क्या यह काफी नहीं है? क्या इसे हम सामान्य उपयोग नहीं कहते? परमेश्वर का घर तुम्हें अपनी क्षमताओं का उपयोग करने से नहीं रोकता है। यह बस इतना चाहता है कि तुम उन्हें लापरवाही से उपयोग करने के बजाय, उद्देश्यपूर्ण ढंग से संयम, मानकों और सिद्धांतों के साथ उपयोग करो। इसके अलावा परमेश्वर का घर तुम्हारे निजी जीवन में या उन मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता जिनका संबंध तुम्हारे कर्तव्य निर्वहन से नहीं है। केवल तुम्हारे कर्तव्य निर्वहन के मामलों में परमेश्वर के घर में सख्त नियम और आवश्यक मानक हैं। इसलिए, जब तुम्हारे पेशेवर कौशल और विशेषज्ञता के इस्तेमाल की बात आती है, तो तुम्हारे हाथ-पैर बंधे नहीं होते और तुम्हारे विचार नियंत्रित नहीं होते। तुम्हारे विचार स्वतंत्र हैं, तुम्हारे हाथ-पैर स्वतंत्र हैं, और तुम्हारा हृदय भी स्वतंत्र है। बात बस इतनी है, जब तुम नकारात्मक भावनाओं को जन्म देते हो, तो तुम पीछे हटना, उदास होना, मना करना और विरोध करना चुनते हो। लेकिन यदि तुम सकारात्मकता से चीजों का सामना करना चुनते हो, ध्यान से सुनते हो, और परमेश्वर के घर के सिद्धांतों, नियमों और अपेक्षाओं के अनुसार चलते हो, तो तुम्हारे पास अनुसरण के लिए मार्ग होगा और करने के लिए चीजें होंगीं। तुम कोई बेकार, कमजोर या मूर्ख व्यक्ति नहीं हो। परमेश्वर ने तुम्हें स्वतंत्र इच्छा, सामान्य सोच और सामान्य मानवता दी है। इसलिए, तुम्हारे पास निभाने के लिए एक कर्तव्य है और तुम्हें अपना कर्तव्य निभाना चाहिए। इसके अलावा, तुम्हारे पास पेशेवर कौशल और विशेषज्ञता है, इसलिए, परमेश्वर के घर में, तुम एक उपयोगी व्यक्ति हो। यदि तुम परमेश्वर के घर के पेशेवर कौशल और विशेषज्ञता से जुड़े कार्य के कुछ पहलुओं में अपनी विशेषज्ञता का उस तरह से उपयोग कर सकते हो जैसा तुम्हें करना चाहिए, तो तुम्हें अपना स्थान मिल जाएगा और तुम एक सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाओगे। यदि तुम अपने स्थान पर दृढ़ रहते हो, अपना कर्तव्य निभाते हो, और अपना काम अच्छी तरह से करते हो, तो तुम बेकार नहीं बल्कि उपयोगी इंसान हो। यदि तुम अपना कर्तव्य निभा सकते हो, विचार रख सकते हो और सक्षमता से काम कर सकते हो, तो चाहे तुम्हें कितनी भी कठिनाइयों का सामना करना पड़े, तुम्हें दमित महसूस नहीं करना चाहिए, पीछे नहीं हटना चाहिए, और न ही तुम्हें इनकार या टालमटोल करना चाहिए। अब, इस समय, तुम्हें खुद को इस तरह से नकारात्मक भावनाओं में नहीं डुबाना चाहिए कि तुम इससे बाहर ही न निकल सको। तुम्हें एक चिढ़ी हुई औरत की तरह इस बारे में शिकायत नहीं करनी चाहिए कि परमेश्वर का घर तुम्हारे साथ अन्याय कर रहा है, तुम्हारे भाई-बहनें तुम्हें नीची नजरों से देख रहे हैं, या परमेश्वर का घर तुम्हें अहमियत या अवसर नहीं दे रहा है। वास्तव में, परमेश्वर के घर ने तुम्हें अवसर दिए हैं और तुम्हें वह कर्तव्य सौंपा है जिसे तुम्हें निभाना चाहिए, लेकिन तुमने इसे अच्छी तरह से नहीं निभाया। तुम अब भी अपनी पसंद और अपेक्षाओं पर कायम थे, तुमने परमेश्वर के वचनों को ध्यान से नहीं सुना या उन सिद्धांतों पर ध्यान नहीं दिया जो परमेश्वर के घर ने तुम्हारे काम के बारे में तुम्हें बताए थे। तुम बहुत मनमाने हो। इसलिए, यदि तुम दमन की नकारात्मक भावना में फँसे हुए हो, तो यह किसी और की जिम्मेदारी नहीं है। बात यह नहीं है कि परमेश्वर के घर ने तुम्हें निराश किया है, यह तो बिल्कुल नहीं है कि तुम्हें यहाँ बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। बात यह है कि तुमने अपना कर्तव्य निभाने में अपनी क्षमताओं का पूरी तरह से उपयोग नहीं किया। तुमने अपने तकनीकी पेशे और विशेषज्ञता को सही ढंग से नहीं संभाला या ठीक से उनका उपयोग नहीं किया है। तुमने इस मामले को तर्कसंगत रूप से नहीं लिया है, बल्कि आवेग में और नकारात्मक भावनाओं के साथ इसका विरोध किया है। यह तुम्हारी गलती है। यदि तुम अपनी नकारात्मक भावनाओं को त्यागकर दमन की इस अवस्था से बाहर आ जाते हो, तो तुम्हें एहसास होगा कि ऐसे कई कार्य हैं जो तुम कर सकते हो और बहुत-से कार्य तुम्हें करने की जरूरत है। यदि तुम इन नकारात्मक भावनाओं से बाहर आकर सकारात्मक रवैये के साथ अपने कर्तव्य का सामना कर सकते हो, तो तुम देखोगे कि आगे का रास्ता उजला है, अँधकारमय नहीं। कोई भी तुम्हारी दृष्टि अवरुद्ध नहीं कर रहा है, और न ही कोई तुम्हारे कदमों को रोक रहा है। बात सिर्फ इतनी है कि तुम आगे बढ़ना ही नहीं चाहते। तुम्हारी प्राथमिकताओं, इच्छाओं और व्यक्तिगत योजनाओं ने तुम्हारे कदमों को रोक दिया है। इन चीजों को किनारे कर दो, उन्हें त्याग दो, परमेश्वर के घर में कार्य के माहौल को अपनाना सीखो, अपने भाई-बहनों द्वारा तुम्हें दी गई मदद और समर्थन को अपनाओ, और अपने कर्तव्य निर्वहन के तरीके और परमेश्वर के घर की कार्यशैली को अपनाओ। थोड़ा-थोड़ा करके अपनी प्राथमिकताओं, इच्छाओं और अवास्तविक, काल्पनिक विचारों को त्याग दो। धीरे-धीरे, तुम स्वाभाविक रूप से दमन की इन नकारात्मक भावनाओं से बाहर आ जाओगे। एक और बात तुम्हें समझनी चाहिए कि चाहे तुम्हारा पेशेवर कौशल और विशेषज्ञता कितनी भी उन्नत क्यों न हो, ये तुम्हारे जीवन को नहीं दर्शाते हैं। वे जीवन में तुम्हारी परिपक्वता या इस बात को नहीं दर्शाते हैं कि तुमने पहले ही उद्धार प्राप्त कर लिया है। यदि तुम अपने पेशेवर कौशल और विशेषज्ञता का उपयोग करके, सत्य सिद्धांतों के अनुसार सामान्य और आज्ञाकारी तरीके से परमेश्वर के घर में अपना कर्तव्य निभाते हो, तो तुम यहाँ अच्छा कर रहे हो और वाकई परमेश्वर के घर के सदस्य हो। लेकिन, तुम हमेशा अपने कर्तव्य निर्वहन का झंडा लहराते हो, अपने कर्तव्य निर्वहन के अवसर का लाभ उठाते हो, परमेश्वर के घर द्वारा दिए गए अवसरों का लाभ उठाते हो, और अपनी विशेषज्ञता का पूरी तरह से उपयोग करने के लिए अपनी प्राथमिकताओं, महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं के अनुसार चलते हो, अपने करियर और व्यक्तिगत प्रयासों को आगे बढ़ाने के लिए इसका उपयोग करते हो, और इन सबकी वजह से तुम्हारे लिए सभी रास्ते बंद हो जाते हैं और तुम दमित महसूस करते हो। इस दमन का कारण कौन है? तुम खुद इसका कारण हो। यदि तुम परमेश्वर के घर में अपना कर्तव्य निभाते हुए व्यक्तिगत प्रयास करना जारी रखोगे, तो यह यहाँ नहीं चलेगा, क्योंकि तुम गलत जगह पर आ गए हो। शुरू से लेकर अंत तक, परमेश्वर के घर में केवल सत्य, परमेश्वर की अपेक्षाओं और उसके वचनों पर चर्चा की जाती है। इनके अलावा, बोलने के लिए और कुछ नहीं है। इसलिए, परमेश्वर के घर द्वारा लोगों से उनके काम या पेशे के किसी भी पहलू, या किसी विशेष कार्य व्यवस्था में चाहे कोई भी अपेक्षा की जाती हो, वे किसी खास व्यक्ति के लिए नहीं हैं, और न ही वे किसी को दबाने या किसी के उत्साह या गौरव को खत्म करने के लिए हैं। वे पूरी तरह से परमेश्वर के कार्य की खातिर, और परमेश्वर की गवाही देने, उसके वचन को फैलाने और ज्यादा से ज्यादा लोगों को उसके समक्ष लाने के लिए हैं। बेशक, वे यहाँ मौजूद तुममें से हरेक व्यक्ति के लिए हैं ताकि तुम जल्द से जल्द सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर चल सको और सत्य की वास्तविकता में प्रवेश कर सको। क्या तुम समझ रहे हो? अगर आज बताए गए उदाहरण कुछ खास लोगों पर लागू होते हैं, तो निराश मत होना। यदि तुम मेरी बात से सहमत हो, तो इसे स्वीकारो। यदि तुम असहमत हो और अभी भी दमित महसूस करते हो, तो तुम दमन की भावना में ही रहो। आओ देखें कि ऐसे लोग किस हद तक दमित महसूस कर सकते हैं, और वे ऐसी नकारात्मक भावनाओं के साथ, सत्य का अनुसरण या बदलाव किए बिना, परमेश्वर के घर में कितने समय तक टिके रह पाते हैं।
यदि वे दमन की भावना नहीं त्यागते, तो इस नकारात्मक भावना में रहने वालों को एक और नुकसान का सामना करना पड़ता है : जैसे ही उन्हें कोई अवसर दिया जाता है, वे फौरन काम में लग जाते हैं, परमेश्वर के घर की सभी अपेक्षाओं, नियमों, और सिद्धांतों को ताक पर रखकर खुद ही प्रभारी बन जाते हैं, लापरवाही से काम करते हैं और पूरी तरह से अपनी ही इच्छाओं को पूरा करने में लग जाते हैं। जब वे कोई कदम उठाते हैं, तो इसके नतीजे अकल्पनीय होते हैं। थोड़े नुकसान के नाम पर वे परमेश्वर के घर को वित्तीय नुकसान पहुँचा सकते हैं, या वे कलीसिया के कार्य में बाधा डालने का बड़ा नुकसान कर सकते हैं। यदि वे अगुआ और सुपरवाइजर अपनी जिम्मेदारी उठाने से बचते हैं और समस्याएँ हल नहीं कर पाते हैं, तो इससे परमेश्वर के घर के सुसमाचार फैलाने के कार्य पर भी असर पड़ेगा, जिसमें परमेश्वर का विरोध करना भी शामिल है। अगर इन लोगों के साथ ऐसी घटनाएँ होंगी और ऐसे परिणाम होंगे, तो इनका अंत हो जाएगा। अपने भविष्य को देखने के बजाय, उनके लिए यही बेहतर है कि वे जल्द से जल्द दमन की भावना को त्याग दें, तकनीकी कौशल और विशेषज्ञता को बहुत बड़ा समझने और महत्व देने के अपने रवैये और राय को बदल दें। उनके लिए अपने दृष्टिकोण को बदलना और उन्हें महत्व न देना जरूरी है। उन्हें महत्व न देने का कारण यह नहीं है कि वे परमेश्वर के घर में बुनियादी तौर पर महत्वहीन हैं या मेरे न्याय या उनके प्रति नकारात्मक राय रखने के कारण ऐसा नहीं है। ऐसा इसलिए है क्योंकि तकनीकी कौशल और विशेषज्ञता अनिवार्य रूप से एक प्रकार का साधन हैं। वे सत्य या जीवन का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। जब स्वर्ग और पृथ्वी नष्ट हो जाएँगे, तो तकनीकी कौशल और विशेषज्ञता भी नष्ट हो जाएँगे, जबकि मनुष्यों द्वारा अर्जित सकारात्मक चीजें और सत्य न केवल नष्ट नहीं होंगे, बल्कि वे कभी भी खत्म नहीं होंगे। चाहे तुम्हारे पास कितना ही गहरा, महान या अपूरणीय तकनीकी कौशल या खास विशेषज्ञता क्यों न हो, वे मानवता या संसार को नहीं बदल सकते हैं, न ही वे लोगों के किसी छोटे से विचार या दृष्टिकोण को बदल सकते हैं। ये चीजें एक छोटे से विचार या दृष्टिकोण को भी नहीं बदल सकती हैं, इंसानों के भ्रष्ट स्वभाव को बदलना तो दूर की बात है, जिसे वे और भी नहीं बदल सकती हैं। वे मानवता को नहीं बदल सकतीं, न ही वे संसार को बदल सकती हैं। वे मानवता के वर्तमान, उनके आने वाले दिनों, या उनके भविष्य को निर्धारित नहीं कर सकतीं, और वे यकीनन मानवता के भाग्य का निर्धारण नहीं कर सकती हैं। यही इस मामले का तथ्य है। यदि तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है, तो बस इंतजार करो और देखो। यदि तुम मेरी बातों पर विश्वास नहीं करते, और ज्ञान, तकनीकी कौशल और विशेषज्ञता जैसी चीजों को सँजोते रहते हो, तो देखना कि जब तुम उन्हें अंत तक सँजोकर रखोगे तो किसे देर होगी और तुम्हें इनसे क्या हासिल होगा। कुछ लोग कंप्यूटर टेक्नोलॉजी में बहुत कुशल और जानकार होते हैं, वे औसत व्यक्ति से आगे निकल जाते हैं और इस क्षेत्र में बेहतरीन काम करते हैं। वे वरिष्ठ तकनीशियन होते हैं, जहाँ भी जाते हैं अपने आप को श्रेष्ठ मानकर चलते हैं और यह घोषणा करते हैं, “मैं कंप्यूटर में बहुत कुशल हूँ, मैं कंप्यूटर इंजीनियर हूँ!” यदि तुम इसी तरह आगे बढ़ना जारी रखते हो, तो देखते हैं कि तुम वास्तव में कितनी दूर जाओगे और कहाँ तक पहुँचोगे। तुम्हें इस उपाधि को त्याग देना चाहिए और खुद को फिर से परिभाषित करना चाहिए। तुम एक साधारण व्यक्ति हो। यह समझो कि तकनीकी कौशल और विशेषज्ञता मनुष्य से आते हैं। वे लोगों की मानसिक क्षमता और विचारों तक ही सीमित हैं, ज्यादा से ज्यादा वे लोगों के मष्तिष्क पर छा जाते हैं, उनकी यादों में छाप और निशान छोड़ जाते हैं। लेकिन, उनका व्यक्ति के जीवन स्वभाव पर, या उसके भविष्य के पथ पर कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है। वे कोई वास्तविक लाभ नहीं देते। यदि तुम अपने सीखे हुए तकनीकी कौशल या विशेषज्ञता से ही चिपके रहते हो, और उन्हें त्यागना नहीं चाहते हो, हमेशा यही सोचते हो कि वे अनमोल और प्यारे हैं, यह मानते हो उन्हें सीखकर तुम दूसरों से श्रेष्ठ हो, बाकियों से थोड़ा ऊपर हो, सम्मान के हकदार हो, तो मैं कहता हूँ कि तुम एकदम मूर्ख हो। वे चीजें बिल्कुल बेकार हैं! मुझे आशा है कि तुम उन्हें त्यागने का प्रयास कर सकते हो, अपने आप को तकनीशियन या पेशेवर की उपाधि से मुक्त कर सकते हो, तकनीकी और पेशेवर क्षेत्र से बाहर निकलकर सब कुछ कहना और करना सीख सकते हो, और सभी लोगों और चीजों के साथ जमीन से जुड़े रहकर व्यवहार कर सकते हो। काल्पनिक विचारों में डूबे मत रहो या हवा में उड़ते मत रहो। इसके बजाय, तुम्हें अपने पैर जमीन पर मजबूती से टिकाए रखना चाहिए, चीजों को व्यावहारिक तरीके से करना चाहिए और व्यावहारिक आचरण बनाए रखना चाहिए। तुम्हें लोगों और चीजों के प्रति सही विचार और दृष्टिकोण, परिप्रेक्ष्य और रुख रखते हुए ईमानदार, सच्चे और यथार्थवादी तरीके से बोलना सीखना चाहिए। यह बुनियादी चीज है। इसका मतलब यह है कि तुम उन तकनीकी कौशलों और विशेषज्ञता को त्याग दो और हटा दो जो तुमने कई वर्षों से अपने दिल में सँजोकर रखे हैं और जिन्होंने तुम्हारे हृदय और विचारों पर कब्जा कर लिया है; इसका अर्थ है कि तुम कुछ बुनियादी चीजें सीख सकते हो, जैसे कि आचरण कैसे करें, कैसे बोलें, लोगों और चीजों को कैसे देखें, और परमेश्वर के वचनों और अपेक्षाओं के अनुसार अपना कर्तव्य कैसे पूरा करें। यह सब लोगों के अस्तित्व, उनके भविष्य, और उन रास्तों से संबंधित है जिन पर वे चलते हैं। ये चीजें जो लोगों के मार्ग और उनके भविष्य से संबंधित हैं, वे तुम्हारा भाग्य बदल सकती हैं, और तुम्हारा भाग्य निर्धारित कर सकती हैं और तुम्हें बचा सकती हैं। दूसरी ओर, तकनीकी कौशल और विशेषज्ञता तुम्हारे भाग्य या तुम्हारे भविष्य को नहीं बदल सकतीं। वे कुछ भी निर्धारित नहीं कर सकती हैं। यदि तुम समाज में नौकरी करने के लिए इन कौशलों और विशेषज्ञता का उपयोग करते हो, तो वे केवल तुम्हारी आजीविका कमाने में मदद कर सकती हैं या कुछ हद तक तुम्हारा जीवन बेहतर बना सकती हैं। लेकिन मैं तुम्हें बता दूँ, जब तुम परमेश्वर के घर में आते हो, तो वे कुछ भी निर्धारित नहीं करती हैं। बल्कि, वे तुम्हारे कर्तव्य निर्वहन में बाधक बन सकती हैं और तुम्हें एक साधारण और सामान्य व्यक्ति बनने से रोक सकते हैं। इसलिए, चाहे कुछ भी हो, सबसे पहले तुम्हारे पास उनके बारे में सही समझ और परिप्रेक्ष्य होना चाहिए। अपने आप को कोई विशेष प्रतिभा मत समझो या यह विश्वास मत रखो कि परमेश्वर के घर में तुम असाधारण, दूसरों से श्रेष्ठ या उनसे ज्यादा खास हो। तुम जरा भी खास नहीं हो, मेरी नजरों में तो कतई नहीं। कुछ विशेष योग्यताएँ या ज्ञान और कौशल रखने के अलावा, जो दूसरों के पास नहीं हैं, तुम किसी और से जरा भी अलग नहीं हो। तुम्हारी कथनी, करनी और आचरण, तुम्हारे विचार और दृष्टिकोण शैतान के जहर से भरे हुए हैं, विकृत और नकारात्मक विचारों और दृष्टिकोण से भरपूर हैं। तुम्हें कई चीजें बदलने की जरूरत है, कई चीजों में आमूलचूल परिवर्तन करने की जरूरत है। यदि तुम संतोष, आत्म-संतुष्टि और आत्म-प्रशंसा की दशा में फँसे रहते हो, तो तुम हद से ज्यादा बेवकूफ हो और खुद को बहुत ऊँचा समझते हो। भले ही तुमने अपने पेशेवर कौशल और विशेषज्ञता के कारण एक बार परमेश्वर के घर में कुछ योगदान दिया हो, फिर भी तुम्हारे लिए इन चीजों को सँजोकर रखने का कोई अर्थ नहीं है। किसी भी पेशेवर कौशल या विशेषज्ञता के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर देना सार्थक नहीं है, यहाँ तक कि उन्हें सँजोने, बनाए रखने, बचाने, और थामे रखने, और उनकी खातिर जीने-मरने के लिए अपने भविष्य और शानदार मंजिल को खतरे में डालना भी ठीक नहीं है। बेशक, तुम्हें उनकी मौजूदगी से अपने विचारों और भावनाओं को किसी भी तरह से प्रभावित भी नहीं होने देना चाहिए, और इसलिए उनके कारण दमित बिल्कुल भी नहीं महसूस करना चाहिए, क्योंकि तुमने उन्हें खो दिया या फिर किसी ने उन्हें पहचाना नहीं। यह एक मूर्खतापूर्ण और तर्कहीन दृष्टिकोण होगा। सीधे तौर पर कहें, तो वे उन कपड़ों की तरह हैं जिन्हें किसी भी समय नष्ट किया या उठाकर पहना जा सकता है। उनके बारे में कुछ भी उल्लेखनीय नहीं है। तुम उन्हें तब पहनते हो जब तुम्हें उनकी जरूरत पड़ती है, और जब तुम्हें उनकी जरूरत नहीं होती है, तो तुम उन्हें उतारकर नष्ट कर सकते हो। तुम्हें उनके प्रति निष्पक्ष महसूस करना चाहिए; किसी भी ज्ञान, कौशल या विशेषज्ञता के प्रति तुम्हारा यही रवैया और दृष्टिकोण होना चाहिए। तुम्हें उन्हें अपने जीवन के रूप में सँजोना या मानना नहीं चाहिए, उनकी वजह से आनंद या खुशी नहीं ढूँढनी, या उनकी खातिर जीना-मरना नहीं चाहिए। इसकी कोई जरूरत नहीं है। तुम्हें तर्कसंगत रूप से उनके साथ पेश आना चाहिए। बेशक, यदि तुम उन चीजों के कारण दमन की नकारात्मक भावनाओं में फँस जाते हो, जिससे तुम्हारा कर्तव्य निर्वहन और तुम्हारे जीवन की सबसे महत्वपूर्ण चीज, जो कि सत्य का अनुसरण करना है, प्रभावित होती है तो इसे और भी स्वीकार नहीं किया जा सकता। क्योंकि वे महज एक साधन हैं जिन्हें तुम किसी भी समय उपयोग या नष्ट कर सकते हो, उनकी वजह से तुममें कोई लगाव या भावना नहीं जगनी चाहिए। तो, चाहे परमेश्वर का घर तुम्हारे द्वारा हासिल किए गए पेशेवर कौशल या विशेषज्ञता के साथ कैसे भी पेश आता हो, चाहे वह उन्हें स्वीकारता हो या तुम्हें उन्हें त्यागने को कहता हो, या यहाँ तक कि उनकी निंदा और आलोचना भी करता हो, तुम्हें उनके बारे में व्यक्तिगत विचार नहीं रखने चाहिए। तुम्हें इसे परमेश्वर से आया मामला मानकर स्वीकारना चाहिए, सही स्थितियों और परिप्रेक्ष्यों के साथ तर्कसंगत रूप से उनका सामना करना और उनसे पेश आना चाहिए। यदि परमेश्वर का घर तुम्हारे कौशल का उपयोग करता है लेकिन इनमें किसी प्रकार की कोई कमी है, तो तुम उन्हें सीखकर उनमें सुधार कर सकते हो। यदि परमेश्वर का घर उनका उपयोग नहीं करता है, तो तुम्हें उन्हें बिना किसी हिचकिचाहट, बिना किसी चिंता और बिना किसी कठिनाई के त्याग देना चाहिए—यह इतना आसान है। परमेश्वर के घर में तुम्हारे पेशेवर कौशल और विशेषज्ञता का कोई उपयोग नहीं है, इस तथ्य के निशाने पर व्यक्तिगत रूप से तुम नहीं हो, न ही यह तुम्हें अपने कर्तव्य निर्वहन के अधिकार से वंचित करता है। यदि तुम अपना कर्तव्य निभाने में असफल रहते हो, तो इसका कारण तुम्हारा अपना विद्रोहीपन है। यदि तुम कहते हो कि “परमेश्वर का घर मुझे, मेरी प्रतिभाओं और मेरे द्वारा अर्जित किए हुए ज्ञान को कमतर नजरों से देखता है, और वह मुझे प्रतिभाशाली व्यक्ति नहीं मानता है। इसलिए, अब से मैं अपना कर्तव्य नहीं निभाऊँगा!” तो अपना कर्तव्य न निभाना तुम्हारा अपना फैसला है; ऐसा नहीं है कि परमेश्वर के घर ने तुम्हें इसका अवसर देने से इनकार कर दिया है या इसे निभाने का तुम्हारा अधिकार छीन लिया है। यदि तुम अपना कर्तव्य निभाने में असफल रहते हो, तो यह उद्धार पाने का अवसर गँवाने के बराबर है। क्योंकि तुम अपने पेशेवर कौशल, विशेषज्ञता और व्यक्तिगत गरिमा को बनाए रखने को प्राथमिकता देते हो, इसलिए तुम अपना कर्तव्य निर्वहन और उद्धार पाने की आशा त्याग देते हो। मुझे बताओ, यह तर्कसंगत है या बेतुका? (बेतुका।) यह मूर्खता है या बुद्धिमानी? (मूर्खता।) तो, क्या इसके लिए कोई रास्ता है कि तुम्हें क्या चुनना चाहिए? (हाँ।) एक रास्ता है। तो फिर, क्या तुम अब भी दमित महसूस करते हो? (नहीं, नहीं करता।) अब तुम दमित महसूस नहीं करते हो, है न? दमन की भावनाओं वाले और दमन की भावनाओं से रहित लोगों का अपने कर्तव्य निर्वहन के प्रति बिल्कुल अलग-अलग रवैया होता है, और उनके कार्य करने के तरीके भी पूरी तरह से अलग होते हैं। दमित लोग कभी खुश नहीं रह सकते, उन्हें कभी शांति या खुशी महसूस नहीं होगी, और उन्हें अपने कर्तव्य निभाने से मिलने वाले आनंद और संतोष का अनुभव कभी नहीं होगा। बेशक, दमन की इस नकारात्मक भावना से मुक्त होने के बाद, लोग परमेश्वर के घर में अपने कर्तव्य निभाने में खुशी, सुकून और आनंद महसूस करेंगे। इसके बाद कुछ लोगों को सत्य का अनुसरण करने का प्रयास करना चाहिए—ऐसे लोगों का भविष्य उज्ज्वल होगा। हालाँकि, यदि तुम लगातार दमित महसूस करते हो और खुद को मुक्त करने के लिए सत्य नहीं खोजते, तो जाओ, अपनी दमन की अवस्था में बने रहो और देखो कि तुम कितने समय तक यह सब सह सकोगे। यदि तुम दमन की इस अवस्था में रहते हो, तो तुम्हारा भविष्य निराशाजनक और घोर अंधकारमय होगा, जिससे तुम कुछ भी नहीं देख सकोगे, और आगे कोई रास्ता नहीं होगा। तुम हर दिन धुंधलके में जियोगे, तुम कितने अनभिज्ञ होगे! वास्तव में, यह एक छोटा-सा मामला है, बस एक मामूली-सी बात है, लेकिन लोग इससे मुक्त नहीं हो सकते, इसे त्याग नहीं सकते या बदल नहीं सकते। यदि वे इसे बदल सकें, तो उनकी मानसिकता और उनके दिल की आकांक्षाएँ और उनके लक्ष्य अलग होंगे। ठीक है, हम आज अपनी संगति यहीं समाप्त करेंगे। मुझे आशा है कि तुम लोग जल्द ही दमन की नकारात्मक भावना से मुक्त हो जाओगे!
19 नवंबर 2022
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