सत्य का अनुसरण कैसे करें (5) भाग तीन
जो लोग वास्तव में परमेश्वर में विश्वास करते हैं, वे सभी ऐसे व्यक्ति होते हैं जो अपना उचित कार्य करते हैं, वे सभी अपने कर्तव्य निभाने के इच्छुक होते हैं, वे किसी कार्य का दायित्व लेकर उसे अपनी काबिलियत और परमेश्वर के घर के विनियमों के अनुसार अच्छी तरह से करने में सक्षम होते हैं। निस्संदेह शुरू में इस जीवन के साथ सामंजस्य बैठाना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। तुम शारीरिक और मानसिक रूप से थका हुआ महसूस कर सकते हो। लेकिन अगर तुम में वास्तव में सहयोग करने का संकल्प है और एक सामान्य और अच्छा इंसान बनने और उद्धार प्राप्त करने की इच्छा है, तो तुम्हें थोड़ी कीमत चुकानी होगी और परमेश्वर को तुम्हें अनुशासित करने देना होगा। जब तुममें जिद्दी होने की तीव्र इच्छा हो, तो तुम्हें उसके खिलाफ विद्रोह कर उसे त्याग देना चाहिए, धीरे-धीरे अपना जिद्दीपन और स्वार्थपूर्ण इच्छाएँ कम करनी चाहिए। तुम्हें निर्णायक मामलों में निर्णायक समय पर और निर्णायक कार्यों में परमेश्वर की मदद लेनी चाहिए। अगर तुम में संकल्प है, तो तुम्हें परमेश्वर से कहना चाहिए कि वह तुम्हें ताड़ना देकर अनुशासित करे, और तुम्हें प्रबुद्ध करे ताकि तुम सत्य समझ सको, इस तरह तुम्हें बेहतर परिणाम मिलेंगे। अगर तुम में वास्तव में दृढ़ संकल्प है और तुम परमेश्वर की उपस्थिति में उससे प्रार्थना कर विनती करते हो, तो परमेश्वर कार्य करेगा। वह तुम्हारी अवस्था और तुम्हारे विचार बदल देगा। अगर पवित्र आत्मा थोड़ा-सा कार्य करता है, तुम्हें थोड़ा प्रेरित और थोड़ा प्रबुद्ध करता है, तो तुम्हारा हृदय बदल जाएगा और तुम्हारी अवस्था रूपांतरित हो जाएगी। जब यह रूपांतरण होता है, तो तुम महसूस करोगे कि इस तरह से जीना दमनात्मक नहीं है। तुम्हारी दमित अवस्था और भावनाएँ रूपांतरित होकर हलकी हो जाएँगी, और वे पहले से अलग होंगी। तुम महसूस करोगे कि इस तरह जीना थका देने वाला नहीं है। तुम्हें परमेश्वर के घर में अपना कर्तव्य निभाने में आनंद मिलेगा। तुम महसूस करोगे कि इस तरह से जीना, आचरण करना और अपना कर्तव्य निभाना, कठिनाइयाँ सहना और कीमत चुकाना, नियमों का पालन करना और सिद्धांतों के आधार पर काम करना अच्छा है। तुम महसूस करोगे कि सामान्य लोगों को इसी तरह का जीवन जीना चाहिए। जब तुम सत्य के अनुसार जीते हो और अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाते हो, तो तुम महसूस करोगे कि तुम्हारा दिल स्थिर और शांत है और तुम्हारा जीवन सार्थक है। तुम सोचोगे : “मुझे यह पहले क्यों नहीं पता चला? मैं इतना जिद्दी क्यों था? पहले मैं शैतान के फलसफों और स्वभाव के अनुसार जीता था, न तो इंसान की तरह जीता था न ही भूत की तरह, और जितना ज्यादा जीता था, उतना ही ज्यादा यह पीड़ादायक महसूस होता था। अब जब मैं सत्य समझता हूँ, तो मैं अपना भ्रष्ट स्वभाव थोड़ा छोड़ सकता हूँ और अपना कर्तव्य निभाने और सत्य का अभ्यास करने में बिताए गए जीवन की सच्ची शांति और खुशी महसूस कर सकता हूँ!” क्या तब तुम्हारी मनोदशा बदल नहीं गई होगी? (हाँ।) जब तुम जान जाते हो कि तुम्हारा जीवन पहले दमनात्मक और दुखद क्यों लगता था, जब तुम अपने कष्ट का मूल कारण ढूँढ़ लेते हो और समस्या हल कर लेते हो, तो तुम्हें बदलाव की उम्मीद होगी। अगर तुम सत्य की दिशा में प्रयास करते हो, परमेश्वर के वचनों पर ज्यादा श्रम करते हो, सत्य के बारे में ज्यादा संगति करते हो और अपने भाई-बहनों की अनुभवात्मक गवाहियाँ भी सुनते हो, तो तुम्हारे पास एक स्पष्ट मार्ग होगा, तब क्या तुम्हारी अवस्था में सुधार नहीं होगा? अगर तुम्हारी अवस्था में सुधार होता है, तो तुम्हारी दमनात्मक भावनाएँ धीरे-धीरे कम हो जाएँगी और अब तुम्हें उलझाएँगी नहीं। बेशक विशेष परिस्थितियों या संदर्भों में कभी-कभार दमन और पीड़ा की भावनाएँ उत्पन्न हो सकती हैं, लेकिन अगर तुम उन्हें हल करने के लिए सत्य खोजोगे, तो ये दमनात्मक भावनाएँ गायब हो जाएँगी। तुम अपना कर्तव्य निभाते समय अपनी ईमानदारी, पूरी शक्ति और निष्ठा अर्पित करने में सक्षम होगे और तुम्हें उद्धार की आशा होगी। अगर तुम इस तरह के रूपांतरण से गुजरने में सक्षम हो, तो तुम्हें परमेश्वर का घर छोड़ने की आवश्यकता नहीं है। इस रूपांतरण से गुजरने की तुम्हारी क्षमता यह साबित करेगी कि तुम्हारे लिए अभी भी आशा है—बदलाव की आशा, उद्धार की आशा। वह साबित करेगी कि तुम अभी भी परमेश्वर के घर के सदस्य हो, लेकिन तुम विभिन्न स्वार्थपूर्ण उद्देश्यों और व्यक्तिगत वजहों या विभिन्न बुरी आदतों और विचारों से बहुत लंबे समय तक और बहुत गहराई से प्रभावित थे, जिसके कारण तुम्हारा जमीर सुन्न और भावनाहीन हो गया, तुम्हारी तर्कशक्ति कमजोर हो गई और तुम्हारी शर्म की भावना मिट गई। अगर तुम इस तरह के रूपांतरण से गुजर सको, तो परमेश्वर का घर तुम्हारे वहाँ रहकर अपना कर्तव्य निभाने, अपना मिशन पूरा करने और हाथ में लिए अपने काम को पूरी तरह से खत्म करने के लिए स्वागत करेगा। निस्संदेह जिन लोगों में ये नकारात्मक भावनाएँ हों, उनकी मदद सिर्फ प्रेमपूर्ण हृदय से ही की जा सकती है। अगर कोई व्यक्ति लगातार सत्य स्वीकारने से इनकार करता है और बार-बार चेताने के बावजूद पश्चात्ताप नहीं करता, तो हमें उसे विदा कर देना चाहिए। लेकिन अगर कोई वास्तव में बदलने, पलटने, अपना ढर्रा बदलने का इच्छुक है, तो हम उनके रहने का हार्दिक स्वागत करते हैं। अगर वे वास्तव में रहने और अपने पिछले नजरिए और जीने के तरीके बदलने के इच्छुक हैं, और अपना कर्तव्य निभाते समय धीरे-धीरे रूपांतरण से गुजरने में सक्षम हैं, और जितने ज्यादा समय तक अपना कर्तव्य निभाते हैं उतना ही बेहतर होते जाते हैं, तो हम ऐसे लोगों के रहने का स्वागत करते हैं और आशा करते हैं कि उनमें सुधार होता जाएगा। हम उनके लिए बड़ी शुभकामना भी व्यक्त करते हैं : हम कामना करते हैं कि वे अपनी नकारात्मक भावनाओं से उबरें, उनमें और न उलझें या उनकी छाया में और न घिरें, इसके बजाय वे अपना उचित कार्य करें और सही मार्ग पर चलें, परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार सामान्य लोगों को जो करना चाहिए वही करें और जैसे जीना चाहिए वैसे ही जिएँ, और परमेश्वर के घर में परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार नियमित रूप से अपने कर्तव्य निभाएँ, जीवन में और न भटकें। हम उनके अच्छे भविष्य की कामना करते हैं, और यह भी कि वे अब जैसा चाहे वैसे न करें, या सिर्फ सुख-प्राप्ति और शारीरिक आनंद की चिंता न करें, बल्कि अपने कर्तव्य निभाने, जीवन में जिस मार्ग पर वे चलते हैं उसके और सामान्य मानवता को जीने से संबंधित मामलों के बारे में ज्यादा सोचें। हम तहे-दिल से कामना करते हैं कि वे परमेश्वर के घर में खुशी से, स्वतंत्रतापूर्वक और मुक्त होकर रहें और यहाँ अपने जीवन में दैनिक शांति और खुशी अनुभव करें, गर्मजोशी और आनंद महसूस करें। क्या यह सबसे बड़ी शुभकामना नहीं है? (हाँ, है।) मैंने अपनी शुभकामना व्यक्त कर दी है और मैं तुम सभी लोगों को उन्हें अपनी हार्दिक शुभकामनाएँ देने के लिए आमंत्रित करता हूँ। (हमारी हार्दिक शुभकामना है कि वे परमेश्वर के घर में खुशी से, स्वतंत्रतापूर्वक और मुक्त होकर रह सकें, दैनिक शांति और खुशी का अनुभव कर सकें और यहाँ अपने जीवन में गर्मजोशी और आनंद महसूस कर सकें।) और कुछ? तहे-दिल से यह शुभकामना देने के बारे में क्या खयाल है कि वे अब दमनात्मक भावनाओं के चंगुल में न रहें? (हाँ, यह अच्छा रहेगा।) यह मेरी शुभकामना है। क्या तुम लोगों के पास उनके लिए कोई और शुभकामनाएँ हैं? (मेरी हार्दिक शुभकामना है कि वे अपने कर्तव्य निभाने में निरंतर सुधार करते हुए अपना उचित कार्य कर पाएँ।) क्या यह एक अच्छी शुभकामना है? (हाँ।) कोई अन्य शुभकामनाएँ? (मेरी हार्दिक शुभकामना है कि वे जल्दी ही सामान्य मानवता को जीना शुरू कर सकें।) यह शुभकामना बहुत ऊँची भले न हो, पर मुझे लगता है कि यह व्यावहारिक है। मनुष्यों को सामान्य मानवता को जीना चाहिए और दमित महसूस नहीं करना चाहिए। हम वे कठिनाइयाँ सहने में असमर्थ क्यों रहते हैं, जिन्हें दूसरे सहन कर सकते हैं? अगर व्यक्ति में जमीर, विवेक और सामान्य मानवता की शर्म की भावना, और साथ ही अनुसरण, जीने के तरीके और अपने अनुसरण में वे उचित लक्ष्य हों जो सामान्य लोगों के पास होने चाहिए, तो वह दमित महसूस नहीं करेगा। क्या यह बहुत अच्छी शुभकामना नहीं है? (हाँ, है।) और कुछ? (मेरी हार्दिक शुभकामना है कि वे अपने भाई-बहनों के साथ सामंजस्यपूर्वक सहयोग करें, परमेश्वर के घर में उसका प्रेम महसूस करें और परमेश्वर के घर के सिद्धांतों के अनुसार कार्य करें।) क्या यह अपेक्षा ऊँची है? (नहीं।) चूँकि यह ऊँची नहीं है, तो क्या इसे हासिल करना आसान है? परमेश्वर के घर का प्रेम महसूस करना वास्तविकता के अनुरूप है—इन लोगों को यही चाहिए, है न? (हाँ।) इस तरह के लोगों के लिए ऊँची अपेक्षाएँ नहीं हैं। पहले और मुख्य रूप से उनमें सामान्य मानवता का जमीर और विवेक होना जरूरी है। उन्हें जीवन में निष्क्रिय रहना या भटकना नहीं चाहिए; उन्हें जीना, अपना उचित कार्य करना, अपनी जिम्मेदारियाँ उठाना और अपने कर्तव्य निभाना सीखना चाहिए। फिर उन्हें यह सीखने की जरूरत है कि कैसे जिएँ, कैसे सामान्य मानवता को जिएँ, और कैसे अपनी जिम्मेदारियाँ और कर्तव्य अच्छी तरह से निभाएँ। ऐसा करके वे परमेश्वर के घर में आराम, शांति और आनंद महसूस कर पाएँगे और यहाँ रहकर अपने कर्तव्य निभाने के इच्छुक होंगे। अपनी दमनात्मक, नकारात्मक भावनाओं से मुक्त होने के बाद थोड़ा-थोड़ा करके वे सत्य का अनुसरण करने और दूसरों के साथ सामंजस्यपूर्वक सहयोग करने में सक्षम होंगे। ये इस तरह के लोगों के लिए अपेक्षाएँ हैं। उनकी उम्र चाहे जो भी हो, हमें उनके प्रति कोई भव्य इच्छाएँ या ऊँची अपेक्षाएँ नहीं हैं, बस ये ही हैं जिनके बारे में हमने बात की है। सबसे पहले उन्हें अपना उचित कार्य करना सीखने की जरूरत है, एक वयस्क और सामान्य व्यक्ति की जिम्मेदारियाँ और दायित्व निभाना सीखने की जरूरत है, और फिर नियमों का पालन करना और परमेश्वर के घर का प्रबंधन, निरीक्षण, काट-छाँट और निपटान स्वीकारना और अपने कर्तव्य अच्छी तरह से निभाना सीखने की जरूरत है। यही वह सही रवैया है, जिसे जमीर और विवेक वाले व्यक्ति को अपनाना चाहिए। दूसरे, उन्हें उन जिम्मेदारियों, दायित्वों, विचारों और दृष्टिकोणों की सही समझ और ज्ञान होना चाहिए, जिनमें सामान्य मानवता का जमीर और विवेक शामिल होता है। तुम्हें अपनी नकारात्मक भावनाओं और दमन से छुटकारा पाना चाहिए और अपने जीवन में आने वाली विभिन्न कठिनाइयों का सही ढंग से सामना करना चाहिए। तुम्हारे लिए ये अतिरिक्त चीजें या बोझ या बंधन नहीं हैं, बल्कि वे चीजें हैं जिन्हें एक सामान्य वयस्क के रूप में तुम्हें सहन करना चाहिए। इसका मतलब यह है कि प्रत्येक वयस्क को, चाहे तुम्हारा लिंग कुछ भी हो, तुम्हारी काबिलियत कुछ भी हो, तुम कितने भी सक्षम हो या तुम में कितनी भी प्रतिभाएँ हों, वे सभी चीजें सहन करनी चाहिए जो वयस्कों को सहन करनी चाहिए, जिनमें शामिल हैं : जीवन-परिवेश जिनके साथ वयस्कों को सामंजस्य बैठाना चाहिए, जिम्मेदारियाँ, दायित्व और मिशन जो तुम्हें हाथ में लेने चाहिए, और वह काम जिसका तुम्हें दायित्व उठाना चाहिए। पहले, तुम्हें दूसरों से यह अपेक्षा करने के बजाय कि वे तुम्हें कपड़े देंगे और खाना खिलाएँगे, या गुजारे के लिए दूसरों के श्रम के फल पर निर्भर रहने के बजाय इन चीजों को सकारात्मक रूप से स्वीकारना चाहिए। इसके अलावा तुम्हें विभिन्न प्रकार के नियमों, विनियमों और प्रबंधन के साथ तालमेल बैठाकर उन्हें स्वीकारना सीखना चाहिए, तुम्हें परमेश्वर के घर के प्रशासनिक आदेश स्वीकारने चाहिए और अन्य लोगों के बीच अस्तित्व और जीवन के साथ सामंजस्य बैठाना सीखना चाहिए। तुम में सामान्य मानवता का जमीर और विवेक होना चाहिए, अपने आस-पास के लोगों, घटनाओं और चीजों को सही ढंग से लेना चाहिए और अपने सामने आने वाली विभिन्न समस्याओं को सही ढंग से सँभालना और हल करना चाहिए। ये सभी वे चीजें हैं जिनसे सामान्य मानवता वाले व्यक्ति को निपटना चाहिए, यह भी कहा जा सकता है कि यही वह जीवन और जीवन-परिवेश है जिसका किसी वयस्क को सामना करना चाहिए। उदाहरण के लिए, एक वयस्क के रूप में तुम्हें अपने परिवार के सहयोग और उसका भरण-पोषण करने के लिए अपनी क्षमताओं पर भरोसा करना चाहिए, चाहे तुम्हारा जीवन कितना भी कठिन क्यों न हो। यह कठिनाई तुम्हें सहनी चाहिए, यह जिम्मेदारी तुम्हें निभानी चाहिए और यह दायित्व तुम्हें पूरा करना चाहिए। तुम्हें वे जिम्मेदारियाँ उठानी चाहिए जो एक वयस्क को उठानी चाहिए। चाहे तुम कितना भी कष्ट सहो या कितनी भी बड़ी कीमत चुकाओ, चाहे तुम कितना भी दुखी महसूस करो, तुम्हें अपनी शिकायतें निगल लेनी चाहिए और कोई नकारात्मक भावना विकसित नहीं करनी चाहिए या किसी के बारे में शिकायत नहीं करनी चाहिए, क्योंकि यह वह चीज है जो वयस्कों को सहन करनी चाहिए। एक वयस्क के रूप में तुम्हें इन चीजों का दायित्व उठाना चाहिए—बिना शिकायत या प्रतिरोध किए, और खास तौर से उनसे बचे या उन्हें नकारे बिना। जीवन में भटकते रहना, निष्क्रिय रहना, जैसे चाहे वैसे काम करना, जिद्दी या मनमौजी होना, जो तुम करना चाहते हो वह करना और जो नहीं करना चाहते वह न करना—जीवन में किसी वयस्क का यह रवैया नहीं होना चाहिए। हर वयस्क को एक वयस्क की जिम्मेदारियाँ निभानी चाहिए, चाहे उन्हें कितने भी दबाव का सामना करना पड़े, जैसे मुसीबतें, बीमारियाँ, यहाँ तक कि विभिन्न कठिनाइयाँ भी—ये वे चीजें हैं जो सभी को अनुभव करनी और सहनी चाहिए। ये एक सामान्य व्यक्ति के जीवन का हिस्सा होती हैं। अगर तुम दबाव नहीं झेल सकते या पीड़ा नहीं सह सकते, तो इसका मतलब है कि तुम बहुत नाजुक और बेकार हो। जो जीवित है, उसे यह कष्ट अवश्य सहना होगा, और कोई भी इसे टाल नहीं सकता। चाहे समाज में हो या परमेश्वर के घर में, यह सभी के लिए समान होती है। यही वह जिम्मेदारी है जिसे तुम्हें उठाना चाहिए, एक भारी बोझ जिसे एक वयस्क को उठाना चाहिए, वह चीज जो उसे उठानी चाहिए, और तुम्हें इससे बचना नहीं चाहिए। अगर तुम हमेशा इस सबसे बचने या इसे त्यागने का प्रयास करते हो, तो तुम्हारी दमनात्मक भावनाएँ बाहर निकल आएँगी, और तुम हमेशा उनमें उलझे रहोगे। हालाँकि अगर तुम यह सब ठीक से समझ और स्वीकार सको, और इसे अपने जीवन और अस्तित्व का एक आवश्यक हिस्सा मानो, तो ये मुद्दे तुम्हारे लिए नकारात्मक भावनाएँ विकसित करने का कारण नहीं होने चाहिए। एक लिहाज से तुम्हें वे जिम्मेदारियाँ और दायित्व निभाना सीखना चाहिए, जो वयस्कों को लेने और उठाने चाहिए। दूसरे लिहाज से तुम्हें अपने रहने और काम करने के परिवेश में दूसरों के साथ सामान्य मानवता के साथ सामंजस्यपूर्वक रहना सीखना चाहिए। बस जैसा चाहे वैसा मत करो। सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व का क्या उद्देश्य होता है? यह काम बेहतर ढंग से पूरा करने और वे दायित्व और जिम्मेदारियाँ बेहतर ढंग से निभाने के लिए है, जिन्हें एक वयस्क के रूप में तुम्हें पूरा करना और निभाना चाहिए, ताकि तुम्हारे काम में आने वाली समस्याओं के कारण होने वाला नुकसान कम किया जा सके, और तुम्हारे कार्य के परिणाम और दक्षता बढ़ाई जा सके। यही वह चीज है जो तुम्हें हासिल करनी चाहिए। अगर तुम में सामान्य मानवता है, तो तुम्हें लोगों के बीच काम करते समय इसे हासिल करना चाहिए। जहाँ तक काम के दबाव की बात है, चाहे यह ऊपर वाले से आता हो या परमेश्वर के घर से, या अगर यह दबाव तुम्हारे भाई-बहनों द्वारा तुम पर डाला गया हो, यह ऐसी चीज है जिसे तुम्हें सहन करना चाहिए। तुम यह नहीं कह सकते, “यह बहुत ज्यादा दबाव है, इसलिए मैं इसे नहीं करूँगा। मैं बस अपना कर्तव्य करने और परमेश्वर के घर में काम करने में फुरसत, सहजता, खुशी और आराम तलाश रहा हूँ।” यह नहीं चलेगा; यह ऐसा विचार नहीं है जो किसी सामान्य वयस्क में होना चाहिए, और परमेश्वर का घर तुम्हारे आराम करने की जगह नहीं है। हर व्यक्ति अपने जीवन और कार्य में एक निश्चित मात्रा में दबाव और जोखिम उठाता है। किसी भी काम में, खास तौर से परमेश्वर के घर में अपना कर्तव्य निभाते हुए तुम्हें इष्टतम परिणामों के लिए प्रयास करना चाहिए। बड़े स्तर पर यह परमेश्वर की शिक्षा और माँग है। छोटे स्तर पर यह वह रवैया, दृष्टिकोण, मानक और सिद्धांत है, जो हर व्यक्ति को अपने आचरण और कार्यकलापों में अपनाना चाहिए। जब तुम परमेश्वर के घर में कोई कर्तव्य निभाते हो, तो तुम्हें परमेश्वर के घर के विनियमों और प्रणालियों का पालन करना सीखना चाहिए, तुम्हें अनुपालन करना सीखना चाहिए, नियम सीखने चाहिए और शिष्ट तरीके से आचरण करना चाहिए। यह व्यक्ति के आचरण का एक अनिवार्य हिस्सा है। तुम्हें अपना सारा समय काम करने के बजाय किसी भी चीज पर गंभीरता से विचार न करते हुए और अपने दिन बेकार गँवाते हुए या गलत कार्यों में संलग्न रहते हुए और गैर-विश्वासियों की तरह जीने के अपने ही तरीके का अनुसरण करते हुए भोग-विलास करने में नहीं बिताना चाहिए। दूसरों से अपना तिरस्कार न करवाओ, उनकी आँख की किरकिरी या उनके पैर का काँटा न बनो, हर किसी को इस बात के लिए बाध्य न करो कि वे तुमसे दूर हो जाएँ या तुम्हें नकार दें, और किसी कार्य में अड़चन या बाधा न बनो। यह वह जमीर और विवेक है जो एक सामान्य वयस्क में होना चाहिए, और यह वह जिम्मेदारी भी है जो किसी भी सामान्य वयस्क को उठानी चाहिए। ये उन चीजों का हिस्सा हैं जो तुम्हें यह जिम्मेदारी वहन करने के लिए करनी चाहिए। क्या तुम समझ रहे हो? (हाँ।)
अगर तुम दृढ़ संकल्प वाले व्यक्ति हो, अगर तुम उन जिम्मेदारियों और दायित्वों को उठा सकते हो जो लोगों को वहन करने चाहिए, वे चीजें जो सामान्य मानवता वाले लोगों को हासिल करनी चाहिए, और वे चीजें जो वयस्कों को अपने अनुसरण के उद्देश्यों और लक्ष्यों के रूप में हासिल करनी चाहिए, और अगर तुम अपनी जिम्मेदारियाँ उठा सकते हो, तो तुम चाहे जो भी कीमत चुकाओ और चाहे जितना भी दर्द सहो, तुम शिकायत नहीं करोगे, और जब तक तुम इसे परमेश्वर की अपेक्षाओं और इरादों के रूप में पहचानते हो, तुम किसी भी पीड़ा को सहन करने में सक्षम होगे और अपना कर्तव्य अच्छे से निभा पाओगे। उस समय तुम्हारी मानसिक स्थिति कैसी होगी? वह अलग होगी; तुम अपने दिल में शांति और स्थिरता महसूस करोगे और आनंद अनुभव करोगे। देखो, सिर्फ सामान्य मानवता को जीने की कोशिश करने और उन जिम्मेदारियों, दायित्वों और मिशन का अनुसरण करने से, जिन्हें सामान्य मानवता वाले लोगों को वहन करना और हाथ में लेना चाहिए, लोग अपने दिलों में शांति और खुशी महसूस करते हैं और आनंद अनुभव करते हैं। वे उस बिंदु तक भी नहीं पहुँचे, जहाँ वे सिद्धांतों के अनुसार मामलों का संचालन कर सत्य प्राप्त कर रहे हों, और उनमें पहले से ही कुछ बदलाव आ चुका हो। ऐसे लोग वे होते हैं, जिनमें जमीर और विवेक होता है; वे ईमानदार लोग हैं, जो किसी भी कठिनाई पर काबू पा सकते हैं और कोई भी कार्य कर सकते हैं। वे मसीह के अच्छे सैनिक हैं, वे प्रशिक्षण से गुजरे हैं और कोई भी कठिनाई उन्हें हरा नहीं सकती। मुझे बताओ, तुम लोग इस तरह के आचरण के बारे में क्या सोचते हो? क्या इन लोगों में धैर्य नहीं है? (है।) उनमें धैर्य है और लोग उनकी प्रशंसा करते हैं। क्या ऐसे लोग अब भी दमित महसूस करेंगे? (नहीं।) तो फिर उन्होंने इन दमनात्मक भावनाओं को कैसे बदला? किस कारण से ये दमन की भावनाएँ उन्हें न तो परेशान करेंगी और न ही उन तक पहुँचेंगी? (इसलिए कि वे सकारात्मक चीजों को पसंद करते हैं और अपने कर्तव्यों का बोझ उठाते हैं।) यह सही है, यह अपना उचित कार्य करने के बारे में है। जब लोग उचित मामलों पर अपना ध्यान केंद्रित करते हैं और जब उनकी सामान्य मानवता का जमीर और विवेक और जिम्मेदारी और मिशन की भावना सब सक्रिय हो जाती हैं, तो चाहे उन्हें कहीं भी रखा जाए, वे अच्छा ही करते हैं। वे बिना किसी दमन, संताप या अवसाद के किसी भी कार्य में सफल हो सकते हैं। क्या तुम सोचते हो कि परमेश्वर ऐसे लोगों को आशीष देता है? क्या जिन लोगों में ऐसा जमीर, विवेक और सामान्य मानवता होती है, उन्हें सत्य का अनुसरण करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा? (नहीं।) सामान्य मानवता के अनुसरणों, दृष्टिकोणों और अस्तित्व के तरीकों के आधार पर सत्य का अनुसरण करना उनके लिए बहुत कठिन नहीं होगा। जब लोग इस बिंदु पर पहुँचते हैं, तो वे सत्य समझने, सत्य का अभ्यास करने, सत्य सिद्धांतों के अनुसार कार्य करने और सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने से दूर नहीं होते। यहाँ “दूर नहीं” होने का क्या मतलब है? इसका मतलब यह है कि अपने आचरण पर उनका परिप्रेक्ष्य और उनके द्वारा चुनी गई अस्तित्व की पद्धति पूरी तरह से सकारात्मक और सक्रिय होती है, वह अनिवार्य रूप से उस सामान्य मानवता के अनुरूप होती है जिसकी परमेश्वर माँग करता है। इसका मतलब है कि वे परमेश्वर द्वारा निर्धारित मानकों तक पहुँच गए हैं। जब ऐसे व्यक्ति इन मानकों को पूरा कर लेते हैं, तो वे सत्य सुनते ही समझ सकते हैं और उनके लिए सत्य का अभ्यास करना बहुत कम कठिन होगा। उनके लिए सत्य वास्तविकता में प्रवेश करना और सत्य सिद्धांतों के अनुसार कार्य करना आसान होगा। कुल कितने पहलू हैं, जो सामान्य मानवता वाले लोगों को करने चाहिए? वे मोटे तौर पर तीन हैं। वे कौन-से हैं? मुझे बताओ। (पहला उन जिम्मेदारियों और दायित्वों को वहन करना सीखने के बारे में है, जो एक वयस्क को लेने और वहन करने चाहिए। दूसरा है सामान्य मानवता के साथ अपने रहने और काम करने के परिवेश में दूसरों के साथ सामंजस्यपूर्ण ढंग से सह-अस्तित्व में रहना सीखना और जैसा चाहे वैसा न करना। और तीसरा है सामान्य मानवता के दायरे के भीतर परमेश्वर की शिक्षाओं का पालन करना सीखना, और उन रवैयों, दृष्टिकोणों, मानकों और सिद्धांतों का पालन करना सीखना जो व्यक्ति के आचरण में होने चाहिए, जिसका अर्थ है नियमों का पालन करना।) ये तीन पहलू हैं, जो सामान्य मानवता वाले लोगों में होने चाहिए। अगर लोग इन पहलुओं पर सोचना और ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दें और उनके लिए कड़ी मेहनत करें, तो वे अपना उचित कार्य करना शुरू कर देंगे—क्या तब भी वे नकारात्मक भावनाएँ अनुभव करेंगे? क्या वे तब भी दमित महसूस करेंगे? जब तुम अपना उचित कार्य करते हो और अपने उचित मामले सँभालते हो, और वे जिम्मेदारियाँ और दायित्व उठाते हो जो वयस्कों को उठाने चाहिए, तो तुम्हारे पास करने और सोचने के लिए इतना कुछ होगा कि तुम अत्यधिक व्यस्त होगे। खासकर जो वर्तमान में परमेश्वर के घर में अपने कर्तव्य निभा रहे हैं, क्या उनके पास दमित महसूस करने का समय होता है? बिल्कुल समय नहीं होता। तो उन लोगों के साथ क्या मामला है, जो दमित महसूस करते हैं, जिनकी मनोदशा खराब हो जाती है, और अपने साथ थोड़ी अप्रिय घटना होने पर जो निराश या उदास महसूस करते हैं? वह मामला यह है कि वे खुद को सही चीजों में व्यस्त नहीं रखते और निष्क्रिय रहते हैं। वह मामला यह है कि वे अपना उचित काम नहीं करते और उन चीजों को नहीं देख पाते जो उन्हें करनी चाहिए, इसलिए उनका दिमाग निष्क्रिय और विचार बेकाबू हो जाते हैं। वे निरंतर सोचते रहते हैं, बिना किसी मार्ग के, इसलिए वे दमित महसूस करते हैं। जितना ज्यादा वे सोचते हैं, उतना ही ज्यादा वे व्यथित और असहाय महसूस करते हैं, और उनके पास उतना ही कम मार्ग बचता है; जितना ज्यादा वे सोचते हैं, उतना ही ज्यादा उन्हें लगता है कि उनका जीवन निरर्थक है, कि वे दुखी हैं, और उतना ही ज्यादा वे दयनीय महसूस करते हैं। उनमें मुक्त होने की ताकत नहीं होती और अंततः वे दमन की इन भावनाओं में फँस जाते हैं। क्या यह सही नहीं है? (हाँ, है।) वास्तव में, इस समस्या को हल करना आसान है, क्योंकि ऐसी बहुत-सी चीजें हैं जो तुम्हें करनी चाहिए, तुम्हारे सोचने-विचारने के लिए इतनी सारी उचित चीजें हैं कि तुम्हारे पास उन बेकार चीजों, उन आनंद चाहने वाली गतिविधियों के बारे में सोचने का समय ही नहीं होगा। जिन लोगों का दिमाग निष्क्रिय रहता है, वे ऐसी चीजों के बारे में सोच पाते हैं, वे काम करने के बजाय आराम करना पसंद करते हैं, वे लालची आवारा होते हैं और वे अपना उचित कार्य नहीं करते। जो लोग अपना उचित कार्य नहीं करते, वे अक्सर खुद को दमनात्मक भावनाओं में फँसा हुआ पाते हैं। ये लोग खुद को सही चीजों में व्यस्त नहीं रखते, जबकि ऐसे ढेरों महत्वपूर्ण मामले हैं जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है, और वे उनके बारे में नहीं सोचते या उन पर कार्रवाई नहीं करते। इसके बजाय उन्हें अपने मन को भटकने देने, अपने भौतिक शरीर के बारे में शिकायत और विलाप करने, अपने भविष्य के बारे में चिंता करने और जो दर्द उन्होंने सहा है और जो कीमत उन्होंने चुकाई है, उस पर कुढ़ने का समय मिल जाता है। जब वे यह सब हल नहीं कर पाते, सह नहीं पाते या इन कुंठाओं को निकालने के लिए कोई निकास नहीं खोज पाते, तो वे दमित महसूस करने लगते हैं। जब वे परमेश्वर का घर छोड़ने के बारे में सोचते हैं तो उन्हें आशीष खोने का डर होता है, वे बुराई करने पर नरक में जाने से डरते हैं, और वे सत्य का अनुसरण करने या अपने कर्तव्य ठीक से निभाने के लिए भी तैयार नहीं होते। नतीजतन, वे दमित महसूस करते हैं। क्या यही मामला नहीं है? (यही है।) यह सही है। अगर व्यक्ति अपना उचित कार्य करे और सही मार्ग पर चले, तो ये भावनाएँ उत्पन्न ही नहीं होंगी। अगर वे कभी-कभी अस्थायी विशेष परिस्थितियों के कारण दमनात्मक भावनाएँ अनुभव करते भी हैं, तो वे सिर्फ अस्थायी मनोदशाएँ होंगी, क्योंकि जीवन का सही तरीका और अस्तित्व पर सही दृष्टिकोण रखने वाले लोग इन नकारात्मक भावनाओं पर तुरंत काबू पा लेंगे। नतीजतन, तुम बार-बार खुद को दमन की भावनाओं में फँसा हुआ नहीं पाओगे। इसका मतलब यह है कि दमन की ऐसी भावनाएँ तुम्हें परेशान नहीं करेंगी। तुम अस्थायी तौर पर खराब मनोदशाओं का अनुभव कर सकते हो, लेकिन तुम उनमें फँसोगे नहीं। यह सत्य का अनुसरण करने के महत्व पर प्रकाश डालता है। अगर तुम अपना उचित कार्य करना चाहते हो, अगर तुम वे जिम्मेदारियाँ उठाते हो जो वयस्कों को उठानी चाहिए, और एक सामान्य, अच्छा, सकारात्मक और सक्रिय जीवन जीना चाहते हो, तो तुममें ये नकारात्मक भावनाएँ विकसित नहीं होंगी। ये दमनात्मक भावनाएँ तुम्हें ढूँढ़ नहीं पाएँगी या तुमसे चिपक नहीं पाएँगी।
तो हमने दमन का हल करने के मुद्दे और कठिनाई के बारे में संगति समाप्त कर ली है, जिसमें पहले उल्लिखित तीन पहलू शामिल हैं। हम तहे-दिल से चाहते हैं कि जो लोग दमन की भावनाओं में उलझ गए हैं, और जो लोग दमन की भावनाओं में फँस तो गए हैं लेकिन उनसे मुक्त होना चाहते हैं, वे अब इन भावनाओं से नियंत्रित न हों। हमें आशा है कि वे जल्दी ही दमन की नकारात्मक भावनाओं से बाहर निकल आएँ और एक सामान्य व्यक्ति की तरह जी पाएँ, अस्तित्व का एक सामान्य और उचित तरीका अपनाएँ। क्या यह एक शुभकामना है? (हाँ।) तो फिर तुम लोगों को भी यह शुभकामना देनी चाहिए। (हम कामना करते हैं कि जो लोग दमन की भावनाओं में उलझ गए हैं, और जो लोग दमन की भावनाओं में फँस तो गए हैं लेकिन उनसे मुक्त होना चाहते हैं, वे अब इन भावनाओं से नियंत्रित न हों। हमें आशा है कि वे जल्दी ही दमन की नकारात्मक भावनाओं से बाहर आ जाएँ और अस्तित्व का एक सामान्य और उचित तरीका अपनाते हुए एक सामान्य व्यक्ति की तरह जिएँ।) यह शुभकामना यथार्थपरक है। अब जब हमने अपनी शुभकामनाएँ व्यक्त कर दी हैं, तो ये लोग दमन की भावनाओं से मुक्त हो पाएँगे या नहीं, यह अंततः उनके व्यक्तिगत चुनाव पर निर्भर करता है—यह एक आसान मामला होना चाहिए। वास्तव में यह ऐसी चीज है जो सामान्य मानवता वाले लोगों में होनी चाहिए। अगर व्यक्ति में सत्य और सकारात्मक चीजों का अनुसरण करने के लिए पर्याप्त दृढ़ संकल्प और इच्छा है, तो उसके लिए दमन की भावनाओं से मुक्त होना आसान होगा। यह कोई मुश्किल काम नहीं होगा। अगर किसी को सत्य और सकारात्मक चीजों का अनुसरण करने में आनंद नहीं आता, और उन्हें सकारात्मक चीजें पसंद नहीं आतीं, तो उन्हें दमन की भावनाओं में फँसे रहने दो। उन्हें उनके हाल पर छोड़ दो। हमें अब उनके लिए शुभकामनाएँ व्यक्त करने की जरूरत नहीं है, ठीक है न? (ठीक है।) यह स्थिति को सँभालने का दूसरा तरीका है। हर समस्या का एक समाधान होता है और हर चीज सत्य सिद्धांतों और लोगों की वास्तविक परिस्थितियों के आधार पर देखी और हल की जा सकती है। हमने आज के लिए अपनी शुभकामनाएँ पूरी कर ली हैं और हमने कई अलग-अलग स्थितियों पर गहन सहभागिता की है। हमने वह सब कह दिया है, जो इस तरह के व्यक्ति के बारे में कहा जाना चाहिए, तो चलो यह चर्चा यहीं समाप्त करते हैं।
12 नवंबर 2022
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