सत्य का अनुसरण कैसे करें (21) भाग चार

राजनीति क्या है, इसके संदर्भ में, इस विषय पर कमोबेश संगति कर ली गई है, इसलिए यह बिल्कुल स्पष्ट होना चाहिए कि राजनीति से दूर कैसे रहा जाए। तुम राजनीति से दूर कैसे रहते हो? पहले, आओ इस बारे में बात करें कि राजनीति से दूर कैसे रहा जाए, और फिर हम चर्चा करेंगे कि तुम्हें ऐसा क्यों करना चाहिए। हमने अभी-अभी चर्चा की कि राजनीति क्या होती है। राजनीति क्या है? सबसे पहली बात, यह सत्ता-संघर्ष में भाग लेना है—यह राजनीति में भाग लेने के बराबर है। हम सभी साधारण लोग हैं, इसलिए चलो, राष्ट्रपतियों, पार्टी-अध्यक्षों या उच्चस्तरीय राष्ट्रीय राजनीतिक समूहों में पदों पर बैठे लोगों के बारे में बात नहीं करते। इसके बजाय, किसी ऐसी चीज के बारे में बात करते हैं जिससे साधारण लोग जुड़ सकें, जैसे किसी सरकारी एजेंसी में पार्टी शाखा सचिव। क्या पार्टी शाखा सचिव एक राजनीतिक व्यक्ति होता है? किसी सरकारी एजेंसी के भीतर पार्टी का पद सँभालने से व्यक्ति एक प्रमुख राजनीतिक व्यक्ति बन जाता है। तो, तुम राजनीति से दूर कैसे रहते हो? दूर रहने का क्या मतलब है? (इन राजनीतिक हस्तियों से न जुड़ना।) उनसे न जुड़ना? लेकिन वास्तव में तुम अपने कार्यस्थल पर उनसे बच नहीं सकते। अगर तुम उनसे बचते हो, तो वे आकर यह कहते हुए तुम्हारी गलतियाँ निकाल सकते हैं, “तुम मुझसे बात क्यों नहीं कर रहे हो? तुम मुझसे छिप क्यों रहे हो? क्या तुम मुझे, पार्टी शाखा सचिव को, पसंद नहीं करते? अगर मेरे बारे में तुम्हारी कोई विपरीत राय है, तो क्या इसका मतलब यह नहीं कि तुम्हारी विचार-प्रक्रिया में कोई समस्या है? चलो, बात करते हैं।” वे तुम्हारे साथ “चाय” पीना चाहेंगे। क्या वह चाय आनंददायक होगी? क्या तुम जाने का साहस करोगे? उदाहरण के लिए, पार्टी शाखा सचिव तुम्हारे पास आकर पूछता है, “अरे, शियाओ झांग, तुम यहाँ कितने समय से काम कर रहे हो?” और तुम कहते हो, “कई साल से, लगभग पाँच साल से।” फिर वह उत्तर देता है, “तुम भले आदमी लगते हो। क्या तुम पार्टी में शामिल हो चुके हो?” तुम कैसे जवाब दोगे? राजनीति से दूर रहने के लिए उचित उत्तर क्या है? (बस कहो, “मैं फिलहाल पार्टी सदस्य बनने के मानदंड पूरे नहीं करता।”) यह बुद्धिमानी है। क्या यह कथन सत्य है? (नहीं।) यह वास्तव में उसे टालने का एक तरीका मात्र है। तुम सोचते हो, “ओ धूर्त लोमड़ी, ओ बूढ़े शैतान, मैं पार्टी में शामिल होऊँ या नहीं, तुम्हें इससे क्या मतलब? तुम चाहते हो कि मैं पार्टी में शामिल होऊँ। महत्व क्या है पार्टी का?” तुम यही सोच रहे होते हो, लेकिन तुम उस शैतान से यह नहीं कह सकते। इसके बजाय, तुम्हें अपना बाहरी बरताव विनम्र रखना होगा। तुम कहते हो, “ओह, पुराने पार्टी-सदस्यो, आप उन संघर्षों को नहीं समझते जिनका सामना हम युवा करते हैं। हमारा सीमित अनुभव है और अभी तक हमारे काम में परिणाम देखने को नहीं मिले हैं, इसलिए हम पार्टी में शामिल होने योग्य नहीं हैं। पार्टी पवित्र है; हम समुचित आधार के बिना शामिल नहीं हो सकते। मैं पार्टी में शामिल होने के विचार पर गौर कर रहा हूँ...।” बस चंद शब्दों में उसे जवाब दे दो। क्या तुम दिल से पार्टी में शामिल होना चाहते हो? (नहीं।) अगर वे तुम्हें बेहतर शर्तों की पेशकश भी करें, और शामिल होने के बाद तुम्हें तरक्की या आधिकारिक पद भी मिल जाए, तो भी तुम रुचि नहीं लोगे, है न? पद प्राप्त करने और अधिकारी के रूप में करियर बनाने की बुनियादी शर्तें ये हैं कि तुम्हें पहले संगठन में शामिल होना होगा, पार्टी में शामिल होना होगा या पार्टी के करीब जाना होगा। पद या तरक्की पाने से पहले तुम्हें पार्टी के करीब जाना होगा। राजनीति से दूर रहने के लिए पहला कदम है राजनीतिक पार्टियों से दूर रहना। कुछ लोग पूछ सकते हैं, “क्या इसका मतलब सिर्फ कम्युनिस्ट पार्टी से दूर रहना है?” नहीं, इसका मतलब हर तरह की पार्टियों से दूर रहना है। कोई पार्टी क्या दर्शाती है? वह राजनीतिक ताकत दर्शाती है। वह समूह, जो पार्टी के राजनीतिक घोषणापत्र, कार्यक्रम और लक्ष्यों को अपना लक्ष्य मानता है, पार्टी कहलाता है। किसी पार्टी का उद्देश्य और कार्यक्रम चाहे कुछ भी हो, उसका एकमात्र लक्ष्य एक ताकत खड़ी करना और अपनी ताकत और बल का उपयोग राजनीतिक क्षेत्र और भूदृश्य में और ज्यादा ताकत और सत्ता के लिए जूझना है। किसी राजनीतिक पार्टी के अस्तित्व का यही उद्देश्य होता है। किसी भी पार्टी के अस्तित्व का उद्देश्य लोगों की भलाई करना नहीं, बल्कि ताकत और सत्ता पाना होता है। दूसरे शब्दों में, वह सत्ता कायम रखने और अपनी ताकत बनाने के लिए होता है। क्या यही मामला नहीं है? (हाँ, यही है।) इसलिए, राजनीति से दूर रहने का पहला कदम औपचारिक रूप से किसी भी राजनीतिक दल में शामिल न होना है। कुछ लोग पूछ सकते हैं, “अगर मैं फलाँ पार्टी का सदस्य हूँ तो क्या होगा?” यह थोड़ा कठिन है। अगर तुम पार्टी छोड़ने के इच्छुक हो, तो यह सबसे अच्छा होगा, और तुम औपचारिक रूप से उनसे नाता तोड़ लो। अगर तुम पार्टी छोड़ने के इच्छुक नहीं हो या पार्टी छोड़ना परेशानी की बात हो तो तुम्हें खुद विचार करना चाहिए कि क्या करना है। हर हाल में, चाहे औपचारिक रूप से या आत्मा से, तुम्हें राजनीति से जुड़े पहले प्रमुख मुद्दे से दूर रहना चाहिए, यानी पार्टियों से दूर रहना है। अगर तुम पार्टियों से दूरी बना लेते हो, तो तुम एक स्वतंत्र व्यक्ति बन जाते हो। तुम किसी राजनीतिक ताकत के बहाव में नहीं आओगे, न ही तुम किसी राजनीतिक ताकत के लिए काम करोगे। राजनीति से दूर रहने के लिए किसी पार्टी में शामिल न होना सबसे बुनियादी विशिष्ट मार्ग है, जिसका अभ्यास किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त, जब किसी राजनीतिक ताकत की बात आती है, जैसे कि पार्टी शाखा सचिव, निदेशक, या किसी सरकारी कार्यालय का कार्मिक अधिकारी, तो उससे निपटने का सिद्धांत यह है कि दूरी बनाए रखो। उदाहरण के लिए, अगर पार्टी शाखा सचिव तुमसे कहता है, “शियाओ झांग, क्या तुम्हारे पास थोड़ा समय है? चलो, काम के बाद साथ में खाना खाते हैं। कल से सप्ताहांत शुरू हो रहा है, चलो साथ में बास्केटबॉल खेलते हैं,” तो तुम कह सकते हो, “ओह, संयोग से मेरा बच्चा बीमार है। उसे कल बुखार हो गया था। काम की वजह से मुझे उसे डॉक्टर के पास ले जाने का समय नहीं मिला। कल मुझे उसे अस्पताल ले जाना है।” किसी दूसरे अवसर पर सचिव कहता है, “शियाओ झांग, हमें मिलकर बैठे काफी समय हो गया है। चलो, दिल खोलकर बात की जाए, तुम क्या कहते हो?” उसका उद्देश्य क्या है? वह तुम्हें अपने उत्तराधिकारी के रूप में तैयार करना चाहता है। अगर तुम्हें अभी तक इसका पता नहीं चला है, तो तुम्हें इस पर विचार करने की जरूरत है कि वह वास्तव में क्या चाहता है। अगर तुम्हें इसका पता चल गया है, तो तुम्हें जल्दी करनी चाहिए और यह कहते हुए उससे बचना चाहिए, “ओह, कल मेरी माँ ने कहा था कि उनकी तबीयत ठीक नहीं है और वे चाहती थीं कि मैं उन्हें अस्पताल ले जाऊँ। क्या यह एक दुर्भाग्यपूर्ण संयोग नहीं है?” बार-बार तुम उसे दूर धकेलते हो, जिसे देखकर सचिव सोचेगा, “हर बार जब मैं इसे आमंत्रित करता हूँ, तो कोई न कोई चीज सामने आ जाती है, हर बार जब मैं इसके करीब आता हूँ, तो कुछ हो जाता है; यह एहसानों की कद्र करना नहीं जानता, मैं किसी और को ढूँढ़ लूँगा!” वह जिसे चाहे उसे ढूँढ़ सकता है, लेकिन इसके बावजूद तुम उसके करीब नहीं जाओगे। आम तौर पर, तुम उसके साथ काफी दोस्ताना व्यवहार करते हो, लेकिन जब वह तुम्हें तैयार करना या बढ़ावा देना चाहता है, तो तुम उससे बचने के लिए बहाने ढूँढ़ते हो, और तुम अपना उत्साह खो देते हो ताकि वह समझ न सके कि तुम क्या सोच रहे हो। असल में, अपने दिल में तुम एकदम स्पष्ट रूप से जानते हो, “मैं तुम्हारे करीब नहीं आऊँगा, शैतान! मेरे दिल में परमेश्वर है और परमेश्वर मुझसे राजनीति से दूर रहने को कहता है। तुम एक राजनीतिक व्यक्ति हो और मैं तुमसे दूर ही रहूँगा। तुम मुझे एक आधिकारिक पद पर पदोन्नत करना चाहते हो और मेरी प्रतिभा का उपयोग अपनी मदद के लिए करना चाहते हो, लेकिन मैं तुम्हें एक मौका तक नहीं दूँगा! भले ही मैं इस सरकारी कार्यालय में झाड़ू लगाऊँ और कूड़ा-कचरा हटाऊँ, मैं अधिकारी नहीं बनूँगा! मैं अपना भरण-पोषण करने के लायक पैसा कमा लेता हूँ, मैं तुम लोगों की सेवा नहीं करूँगा!” लेकिन वास्तव में, तुम्हें इसके बजाय यह कहना होगा, “तुम अगुआ लोगों के दिलों में राष्ट्र बसता है, तुम अनगिनत मामले सँभालते हो और लोगों की सेवा करते हो, आम लोगों की देखभाल करते हो! हम साधारण लोग कम जागरूक हैं और सिर्फ अपने पेट की परवाह करते हैं; हम उतने महत्वपूर्ण नहीं हैं, और हम वह नहीं कर सकते जो तुम अगुआ लोग करते हो।” तुम उसके सामने हमेशा नादान होने का बहाना करते हो, ताकि वह पता न लगा सके कि तुम क्या सोच रहे हो। अगर तुममें प्रतिभा हो भी, तो भी तुम उसे प्रदर्शित नहीं करते। सिर्फ महत्वपूर्ण क्षणों में ही तुम उसे थोड़ा-सा प्रदर्शित करते हो, और वह समझता है कि तुम वास्तव में प्रतिभाशाली हो। तुम आम तौर पर कुछ छोटी-मोटी गलतियाँ कर देते हो, जिससे उसे लगता है कि तुम उतने सक्षम नहीं हो, लेकिन फिर भी वह कार्यस्थल पर तुम्हारे बिना काम नहीं चला सकता। इसी को बुद्धिमत्ता कहते हैं। तुम उस शैतान के साथ खिलवाड़ करते हो, सेवा करने के लिए उसका उपयोग करते हो और उससे पैसा कमाते हो, लेकिन उसके करीब नहीं जाते, और अपने दिल में उससे घृणा करते हो, क्या यह सही नहीं है? करीब न जाने का यही मतलब है। क्या तुम यह कर सकते हो? (हाँ।) दोपहर के समय अगुआ अपनी छोटी सिडैन कार चलाता है और खाना खाने के लिए इधर-उधर किसी प्रसिद्ध रेस्तराँ की तलाश करता है। वह तुम्हें बुलाता है, “शियाओ झांग, चलो बाहर चलकर कुछ खाते हैं; तुम आज क्या खाना चाहोगे?” तुम कहते हो, “मैंने कई दिनों से तले हुए बीन-सॉस नूडल्स नहीं खाए हैं, और मैंने लंबे समय से भाप में पके बन नहीं खाए हैं; मैं यही खाना चाहता हूँ। मैं लंच के लिए घर जा रहा हूँ, क्या तुम्हें इनमें से कुछ चाहिए?” तुम उसे इस तरह उत्तर देते हो, जिसे सुनकर वह कहता है, “क्या खाना चाहते हो? यह तो सूअर का खाना है, लोग इसे नहीं खाते!” वह उनमें से कोई चीज नहीं खाना चाहता, जिनका तुम जिक्र करते हो, और वह मन ही मन सोचता है, “यह बंदा बिल्कुल वैसा ही है, जैसा लोग कहते हैं—जन्मजात मूर्ख का इलाज नहीं किया जा सकता। आजकल भाप में पके बन और तले हुए बीन-सॉस नूडल्स कौन खाता है? अधिकारी इससे कहीं बेहतर खाना खाते हैं!” ये अधिकारी रेस्तराँ जाते हैं और जनता का पैसा खर्च करते हैं, वे अधिकारी होने की महिमा और वैभव का आनंद लेते हैं, और सिर्फ ठाठदार खाना खाते हैं : एक बार के भोजन की कीमत एक हजार युआन से ज्यादा होती है। वे बंदर का दिमाग और साही की खाल खाते हैं। ये राक्षस और शैतान कुछ भी खा लेते हैं, ऐसा कुछ नहीं है जिसे वे खा-पी न सकते हों। तुम अपने दिल में क्या सोच रहे हो? “मैं तुम्हारे पापों में भागीदार नहीं बनूँगा, मैं तुमसे दूर ही रहूँगा, शैतानों की औलादो, इंसानों का माँस और रक्त खाने-पीने वाले कमबख्तो! मैं तुम्हारी खर्चीली जीवनशैली का मजा लेने के बजाय घर जाकर तले हुए बीन-सॉस नूडल्स और भाप में पके बन खाना पसंद करूँगा। भले ही मुझे मोटा अनाज खाना पड़े, तो भी मैं तुम्हारे आसपास नहीं फटकूँगा; तुम्हारी दुष्टता में नहीं फँसूँगा, न ही तुम्हारे पापों में भागीदार बनूँगा। इंसानों का माँस और रक्त खाना-पीना शैतानों का काम है, इंसानों का नहीं। अंतिम परिणाम क्या होगा? तुम निश्चित रूप से नरक में जाओगे और सजा भुगतोगे! मैं रियायतें देता और समझौते करता हूँ और तुम्हारी सत्ता के तहत जीविकोपार्जन करता हूँ, लेकिन मेरा लक्ष्य अपनी आजीविका बनाए रखना, परमेश्वर का अनुसरण करना और अपना कर्तव्य निभाना है। मैं पदोन्नति पाने या राजनीति में शामिल होने की कोशिश नहीं कर रहा; मैं तुमसे अपने दिल की गहराइयों से नफरत करता हूँ!” इसलिए, अगुआ तुम्हें भव्य भोजन का आनंद लेने के लिए चाहे जैसे भी मनाए, तुम नहीं जाते। सप्ताहांत में, अगर वह तुम्हें कराओके गाने, सुंदर महिलाओं से घिरे रहने और बढ़िया शराब पीने के लिए आमंत्रित करता है; अगर वह तुम्हें किसी चायघर में विश्राम या मनोरंजन के लिए, या ड्रैग-शो देखने के लिए आमंत्रित करता है, तो तुम जाओगे या नहीं? अगर तुम संगठन या पार्टी के करीब जाना चाहते हो, तो तुम्हें इन जगहों पर जाना होगा। लेकिन इस क्षण तुम कहते हो, “मैं परमेश्वर के वचनों का अभ्यास करता हूँ, मैं राजनीति से दूर रहता हूँ, मैं इनमें से किसी में भी भाग नहीं लूँगा, मैं उनके पापों में हिस्सा नहीं लूँगा।” अगले दिन, जब वे एक-साथ इकट्ठे होते हैं, तो वे इस बारे में बात करते हैं कि फलाँ युवती कितनी सुंदर है, कैसे वह महफिल की सर्वश्रेष्ठ सुंदरी है, कितनी प्रतिभाशाली गायिका है, फ्रांस में एक खास जमाने की शराब कितनी स्वादिष्ट है, मनोरंजन के लिए कहाँ जाना चाहिए, गर्म झरनों का आनंद कहाँ लेना चाहिए...। वे इन चीजों के बारे में बात करते हैं—क्या तुम उनसे ईर्ष्या करते हो? क्या तुम्हें जलन हो रही है? तुम्हें हेडफोन लगाकर अपने कान बंद करने होंगे; इन शैतानों के दानवी शब्द मत सुनो, उनसे दूर रहो, अपना हृदय शांत रखो, पापियों के पापों में हिस्सा मत लो, उनके गंदे जीवन से दूर रहो, और उनकी दुष्टता में मत फँसो। तुम्हारा उद्देश्य राजनीति से दूर रहना है। जो लोग तरक्की चाहते हैं, जो संगठन के करीब जाना चाहते हैं और पदोन्नत होना चाहते हैं : इस तरह जीने का उनका उद्देश्य वास्तव में राजनीति में भाग लेना है, सीधे राजनीति में घुसना है, जिसका उद्देश्य राजनीतिक हलकों में एक स्थान प्राप्त करना और ऐसा जीवन जीना है, जो न तो इंसान के लायक है, न ही राक्षस के लायक। लेकिन तुम उनके बिल्कुल विपरीत हो। तुम्हें ऐसे गंदे जीवन से दूर रहना चाहिए। ऐसे जीवन से दूर रहने का उद्देश्य किसी भी राजनीतिक सँभावना की न तो इच्छा करना है और न ही उसकी परवाह करना है। तुम्हारा भविष्य सत्य का अनुसरण करना और उद्धार प्राप्त करना है। इसलिए, तुम्हें दिल से स्पष्ट होना चाहिए कि तुम अभी जो कुछ भी कर रहे हो, वह सार्थक और मूल्यवान है; यह सत्य के अनुसरण के लिए है, उद्धार प्राप्त करने के लिए है। यह कोई निरर्थक बलिदान नहीं है, न ही तुम किसी असामान्य ढंग से व्यवहार कर रहे हो। इससे भी बढ़कर, तुम अकेले नहीं हो। तो, इन पापमय जिंदगियों से दूर रहने का अंतिम उद्देश्य वास्तव में इन लोगों से अलग होना है, जिसे वे राजनीति कहते हैं उससे दूर रहना है। राजनीति से दूर रहने का यह दूसरा सिद्धांत है—करीब मत जाओ।

राजनेताओं के करीब न जाना न्यूनतम चीज है जो की जानी चाहिए, और इसके अलावा इसमें भाग भी नहीं लेना है। उदाहरण के लिए, अगर अनुभाग प्रमुख, निदेशक या ब्यूरो प्रमुख के रूप में पदोन्नत होने का अवसर है, तो सभी खुद को दिखाने, अपना प्रदर्शन सुधारने, नेताओं को उपहार देने, व्यक्तिगत प्रभाव का इस्तेमाल कर फायदा उठाने, मार्ग तलाशने और अगुआओं और वरिष्ठों को अपनी प्रतिभाएँ, योग्यताएँ और मूल्य दिखाने, यहाँ तक कि अपने मूल्य से भी लाभ उठाने का हर संभव प्रयास करने के लिए उत्सुक रहते हैं। बल्कि वे चापलूस बनना पसंद करेंगे, अगुआओं और वरिष्ठों की जीहुजूरी करना पसंद करेंगे और जो कुछ भी वे उनसे करने को कहेंगे, वही करेंगे, चाहे वे ऐसा करना न चाहते हों। राजनीतिक संघर्षों में भाग लेने के लिए कुछ लोग धन देते हैं, कुछ अपने शरीर तक पेश कर देते हैं। इन संघर्षों में कुछ लोग अगुआओं के साथ नेटवर्क बनाते हैं, दूसरे लोग अगुआओं को ढेर सारा पैसा और उपहार देते हैं, और कुछ लोग उन्हें अपना शरीर पेश कर देते हैं, जिसका अंतिम लक्ष्य इन अगुआओं द्वारा पदोन्नति या मार्गदर्शन प्राप्त करना और राजनीति का मार्ग अपनाना होता है। परमेश्वर के एक विश्वासी के रूप में, अगर तुम जानते हो कि इन अभ्यासों में राजनीति में भाग लेना शामिल है, तो तुम्हें दूर रहना चाहिए। पहले, अपनी राजनीतिक संभावनाओं या आधिकारिक पद की खातिर उपहार न दो, न ही नेटवर्क बनाओ। साथ ही, अगुआओं के सामने बढ़-चढ़कर अपनी खूबियाँ प्रकट न करो, और उनका ध्यान खींचने की होड़ में कोई अतिवादी कदम तो बिल्कुल भी मत उठाओ। दूसरों को तुम्हारे बिना प्रतिस्पर्धा करने दो। हर बार जब बॉस तुम्हें नामांकित करे, तो कहो, “मैं इसमें भाग नहीं लूँगा, मैं योग्य नहीं हूँ।” तुम्हें सिर्फ यह कहना है कि तुम योग्य नहीं हो और दूसरों को आगे बढ़ने दो; ऐसे बहुत सारे लोग होंगे, जो प्रतिस्पर्धा के लिए आगे आ जाएँगे। जब बॉस कहे, “शियाओ झांग, इस बार तुम्हारी बारी है,” तो कहो, “मैं अभी भी योग्य नहीं हूँ, बॉस, कृपया मुझे क्षमा करें। मैं सक्षम नहीं हूँ। पहले शियाओ ली को जाने दें, और अगर शियाओ ली सक्षम नहीं है, तो शियाओ वांग को जाने दें। उन्हें ऐसा करने दें।” बॉस कहेगा, “क्या तुम मूर्ख हो? अगर उन्होंने इसे स्वीकार लिया, तो तुम्हें कोई लाभ नहीं मिलेगा : तुम्हें घर नहीं मिलेगा, न ही कोई बोनस या वेतनवृद्धियाँ मिलेंगी।” तब तुम कहो, “अगर मुझे कुछ नहीं मिला, तो न सही। मेरे पास खाने के लिए पर्याप्त है और खर्च करने के लिए पर्याप्त पैसा है, इसलिए निश्चिंत रहें, श्रीमान। अगर आप अभी भी आश्वस्त नहीं हैं, तो वर्ष के अंत में मुझे थोड़ा और बोनस दे दीजिएगा।” उनके संघर्ष में भाग न लो। जो प्रतिस्पर्धा करना चाहता है, उसे करने दो। पदोन्नति के लिए तुम किसी साधन का सहारा नहीं लेते, कोई ऊर्जा नहीं लगाते या कोई कीमत नहीं चुकाते। पदोन्नति के लिए तुम एक पैसा भी खर्च नहीं करते, एक शब्द भी नहीं कहते, कुछ अतिरिक्त नहीं करते या विशेष प्रयास नहीं करते। अगर तुम्हारे पास अनुकूल स्थितियाँ, संबंध और लोगों का उपयुक्त आधार भी हो, तो भी तुम भाग नहीं लेते। इसे कहते हैं सचमुच त्यागना, सचमुच दूर रहना। सांसारिक लोग तुम्हें निरंतर दया की दृष्टि से देखकर कहते रहते हैं, “तुम मूर्ख हो, भोले हो!” लेकिन तुम कहते हो, “मेरे बारे में जो चाहो कहो; मैं फिर भी भाग नहीं लूँगा।” लोग पूछते हैं, “तुम भाग क्यों नहीं लोगे?” तुम कहते हो, “मैं खर्च करने के लिए पर्याप्त पैसा कमाता हूँ। मैं योग्य नहीं हूँ। तुम सब मुझसे बेहतर हो, इसलिए तुम जाओ।” क्या तुम भाग लेने से बच सकते हो? (हाँ।) बेशक, अगर तुम्हारे पास उप अनुभाग प्रमुख या उप निदेशक के पद पर पदोन्नत होने का अवसर है, तो तुम उसे ठुकरा सकते हो, लेकिन अगर तुम्हें ब्यूरो प्रमुख या प्रांतीय गवर्नर के पद की पेशकश की जाए, तो क्या तुम ऐसा कर सकते हो? यह शायद आसान न हो : पद जितना ऊँचा होता है, उतना ही ज्यादा आकर्षक होता है, और उसका अधिकार जितना ज्यादा होता है, प्रलोभन उतना ही ज्यादा होता है, क्योंकि जब तुम्हारे पास ज्यादा अधिकार होता है, तब तुम्हारे साथ बेहतर सलूक होता है, तुम्हारे शब्द ज्यादा प्रभावशाली हो जाते हैं, और तुम्हारा भौतिक आनंद बढ़ जाता है। देखो, महापौर, राज्यपाल और राष्ट्रपति सबके पास अपने आधिकारिक आवास हैं। उनके घर और बाहर का तमाम खर्च राज्य वहन करता है। इसलिए, जितना ज्यादा तुम उच्च वर्गों के साथ बातचीत करते हो, उनके प्रति तुम्हारा प्रलोभन उतना ही ज्यादा होता जाता है, और उनके साथ बातचीत करने के जितने ज्यादा अवसर तुम्हारे पास होते हैं, उन अवसरों को छोड़ना उतना ही ज्यादा कठिन हो जाता है। प्रलोभन से बचने के लिए तुम उच्च वर्ग के दायरों में कदम न रखते हुए जमीनी स्तर पर काम करते हो। तुम इन दायरों में कदम तक नहीं रखते। इसे कहते हैं दूर रहना। तुम जो कुछ भी कहते या करते हो, उसका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं; इन सबका वास्ता इन चीजों से दूर रहने से है। हर खास प्रतियोगिता में जो कोई सफलतापूर्वक उच्च-स्तरीय अधिकारी चुना जाता है, जो कोई भी बड़ी सत्ता पाकर आता है, तुम उससे ईर्ष्या नहीं करते, तुम आहत नहीं होते, और तुम्हें इसका पछतावा नहीं होता, क्योंकि परमेश्वर द्वारा आयोजित एक अन्य प्रलोभन या परिस्थिति में तुमने राजनीति से दूर रहने के सिद्धांत का अभ्यास किया है, जिसकी परमेश्वर अपेक्षा करता है। तुमने परमेश्वर की अपेक्षा पूरी की है, और शैतान के सामने तुम विजयी हो; परमेश्वर के सामने तुम एक विजेता हो, और परमेश्वर तुम्हारा अनुमोदन करता है। कुछ लोग कहते हैं, “अगर परमेश्वर मेरा अनुमोदन करता है, तो क्या वह मेरा वेतन कुछ बढ़ा देगा?” नहीं, परमेश्वर द्वारा विजेता के रूप में तुम्हारे अनुमोदन और मान्यता का मतलब है कि तुम उद्धार के एक कदम करीब हो, और परमेश्वर तुम्हें ज्यादा से ज्यादा अनुग्रह से देखता है—यह एक बड़ा सम्मान है। क्या राजनीतिक मामलों में भाग लेने से बचना आसान है? जिसे भी प्रतिस्पर्धा में आनंद मिलता है, उसे प्रतिस्पर्धा करने दो। जो भी ऐसे मामलों की तरफदारी पसंद करता है, उसे ऐसा करने दो। जो भी इनमें व्यस्त रहना पसंद करता है, उसे व्यस्त रहने दो। कुछ भी हो, तुम इन चीजों की परवाह नहीं करते, न ही इन्हें लेकर परेशान होते हो, क्योंकि तुम आगे नहीं बढ़ना चाहते और तुम्हारा लक्ष्य अधिकारी के रूप में करियर बनाना नहीं है। राजनीति से दूर रहने का यह तीसरा सिद्धांत है—भाग न लेना।

राजनीति से दूर रहने का चौथा सिद्धांत है किसी का पक्ष न लेना। “पक्ष लेना” राजनीतिक लोगों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली एक तरह की विशिष्ट शब्दावली है, और राजनीतिक दुनिया में पक्ष लेना एक सामान्य घटना है। जब तुम राजनीति में भाग लेते हो, तो तुम्हें अपनी स्थिति स्पष्ट करनी होती है कि तुम अ पार्टी के साथ खड़े हो या ब पार्टी के साथ। जैसे ही तुम राजनीति में शामिल होते हो, तुम्हें पक्ष लेना होता है। अगर तुम शामिल नहीं होते, तो तुम्हें पक्ष लेने की जरूरत नहीं होती, या तुम कह सकते हो कि तुम पक्ष नहीं लेते। अगर तुम तटस्थ रहते हो और उनके विवादों या दोनों पक्ष क्यों लड़ रहे हैं इस पर ध्यान नहीं देते, तो तुम पक्ष नहीं लेते। तुम अ पार्टी का समर्थन करते हो या ब पार्टी का, तुम्हारी ओर से कोई नतीजा या जवाब नहीं आता। तुम कहते हो, “मैं किसी के भी पक्ष में नहीं खड़ा हूँ, मैं अलग रहता हूँ। मेरे अ और ब दोनों के साथ अच्छे संबंध हैं, लेकिन मैं उनमें से किसी के भी करीब नहीं जाता। मैं उनकी किसी भी लड़ाई में भाग नहीं लेता।” ये लोग हैरान होते हैं : तुम आखिर अ पार्टी में हो या ब पार्टी में? वे हमेशा तुम्हारा दिल जीतने की कोशिश करते हैं, लेकिन कोई जीत नहीं पाता। अंतिम परिणाम यह होता है कि वे समझ जाते हैं कि तुम किसी भी पार्टी का पक्ष नहीं लेते। अंत में, तुम्हारा अगला वरिष्ठ कहता है, “धूर्त आदमी, ऐसे महत्वपूर्ण क्षण में तुमने मेरा समर्थन क्यों नहीं किया?” तुम कहते हो, “बॉस, मैं इस तरह के सम्मान की आकांक्षा करने की हिम्मत नहीं करता, मुझमें उतनी बौद्धिक गहराई नहीं है, न ही मैं अपने काम में बहुत सक्षम हूँ; मुझे आपको निराश करने का डर है। बॉस, कृपया मुझे क्षमा करें, मैं महज एक मामूली आदमी हूँ जो नीचे पड़ी दमड़ी उठाने के लिए भी झुक जाता है; मैं एक साधारण व्यक्ति हूँ, किसी का पक्ष लेने का साहस नहीं करता। कृपया मेरे साथ नरमी बरतें और मुझे छोड़ दें, अगली बार मैं निश्चित रूप से आपका समर्थन करूँगा।” हकीकत में, तुम उसे टाल रहे हो। तुमने उसे नाराज नहीं किया है और वह इस बारे में कुछ नहीं कर सकता। वे जैसे चाहें वैसे लड़ और बहस कर सकते हैं, इसका तुमसे कोई लेना-देना नहीं, तुम एक बाहरी व्यक्ति हो। मैं यह क्यों कहता हूँ कि तुम एक बाहरी व्यक्ति हो? तुम आधिकारिक करियर, अफसरशाही, ऊँचाई तक पहुँचने, अपने पूर्वजों को गौरवान्वित करने या राजनीति में कदम रखने का अनुसरण नहीं कर रहे। तुम राजनीतिक संभावनाओं के पीछे नहीं दौड़ रहे; तुम्हारा लक्ष्य आधिकारिक करियर और इन राजनीतिक हस्तियों से दूर रहना है। इसलिए, तुम जानबूझकर किसी का पक्ष न लेना, अ या ब पार्टी को न चुनने का फैसला करते हो, और कौन किसका पक्ष लेता है इसका तुमसे कोई लेना-देना नहीं। जब भी कोई तुम्हें मनाने की कोशिश करता है, तुम इसे हँसी में उड़ाकर मूर्ख होने का अभिनय करते हुए कहते हो, “मैं नहीं जानता कि कौन सही है, तुम सभी लोग मेरे अच्छे दोस्त हो, जो भी जीते मुझे खुशी होगी।” वे कहते हैं, “तुम सचमुच बहुत चालाक आदमी हो!” और तुम कहते हो, “मैं चालाक नहीं, मैं बस बेवकूफ हूँ; तुम सभी लोग विशेषज्ञ हो!” तुम उनसे भ्रमित होने का दिखावा करते हो। क्या किसी का पक्ष न लेना ठीक है? भोले मत बनो, उन लोगों का सहयोग मत करो जो तुम्हारा फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं। राजनीति चाहे जिस स्तर की हो, इसमें पानी हमेशा गँदला ही रहता है—तुम तल नहीं देख सकते। वह साफ झरने की तरह नहीं होती, जहाँ तुम तल देख सकते हो; वह गँदला पानी है, दलदल है। अगर कोई नेता तुम्हारे साथ अच्छा व्यवहार करता है, तो तुम उसके करीब आ जाते हो और उसका पक्ष ले लेते हो, बिना यह जाने कि इससे तुम्हें सौभाग्य प्राप्त होगा या दुर्भाग्य और बिना यह जाने कि उसके भविष्य में क्या होगा. क्या वह जंजीरों से जकड़ा जाएगा या ऊँचाई पर पहुँचेगा। वे सभी लोग दलदल के मगरमच्छ हैं, बड़े भी हैं और छोटे भी। एक मामूली व्यक्ति के रूप में तुम नहीं बता पाओगे कि उनके द्वारा कहा गया हर शब्द सच्चा है या झूठा, वे किसके साथ अच्छा व्यवहार करते हैं और किसके साथ नहीं, और उनके दैनिक कार्यों का उद्देश्य क्या है—तुम बता ही नहीं सकते। इसलिए, अगर तुम खुद को सुरक्षित रखना चाहते हो, तो सबसे सीधा और उच्चतम सिद्धांत किसी का पक्ष न लेना है। अगर वे तुम्हारे प्रति अच्छे हैं, तो उनके साथ हँस-बोल लो; अगर वे तुम्हारे प्रति अच्छे नहीं हैं, तो भी उनके साथ हँस-बोल लो, लेकिन उनका पक्ष मत लो। जब कोई बात सामने आए, तो बस हँसकर भ्रमित होने का नाटक करो; जब वे तुमसे कुछ पूछें, तो कहो कि तुम नहीं जानते, यह तुम्हें स्पष्ट नहीं है, या तुमने इसे पहले नहीं देखा है। क्या तुम इस तरह जवाब दे सकते हो? (हाँ, अब मैं दे सकता हूँ।) क्या कलीसिया में ये सिद्धांत लागू करना उचित है? (यह उचित नहीं है।) ये तरकीबें सिर्फ उन स्थानों के लिए उपयुक्त हैं जहाँ शैतान रहते हैं, इन्हें भाई-बहनों के बीच इस्तेमाल नहीं करना है। यही बुद्धिमत्ता है। जिन स्थानों पर शैतान रहते हैं, वहाँ तुम्हें साँपों के समान बुद्धिमान होना होगा; तुम मूर्ख नहीं हो सकते, तुम्हें बुद्धिमान होना चाहिए। चाहे जो भी तुम्हें उनकी ओर खींचें, जाकर उनके पक्ष में खड़े मत होओ। चाहे जो भी तुम्हारे साथ टकराव पैदा करे या तुम्हें नापसंद करे, उसका विरोध न करो या उसके खिलाफ खड़े न होओ। उसे विश्वास दिलाओ कि तुम उसके खिलाफ नहीं हो। ये चीजें बुद्धि का निर्माण करती हैं। किसी भी राजनीतिक ताकत से प्रतिस्पर्धा न करो, उनमें से किसी के भी करीब न जाओ, और उनमें से किसी के साथ साँठ-गाँठ न करो या सद्भावना न दिखाओ। यह बुद्धिमत्ता है, यह किसी का पक्ष न लेना है। क्या ऐसा ही नहीं है? (हाँ, है।) क्या तुम जान गए कि यह कैसे करना है? (बिल्कुल।) महत्वपूर्ण अवसरों पर तुम्हें गूँगे-बहरे होने, पागल और मूर्ख होने का नाटक करना होगा, और खुद को निपट मूर्ख समझने देना होगा। अगर वे तुमसे कुछ करने के लिए कहें, तो कर दो, बिना सवाल किए उनकी सलाह मान लो और उन्हें देख लेने दो कि तुम कितने आज्ञाकारी हो। किस हद तक आज्ञाकारी? एक चापलूस जैसा, हमेशा सुनने वाला, बारी आने से पहले कभी बात न करने वाला, बॉस की खबर के बारे में कभी पूछताछ न करने वाला या फलाँ के बारे में जानकारी न लेने वाला—बिल्कुल आज्ञाकारी बने रहना। लेकिन तुम्हें कभी उनके सामने अपने सच्चे विचार जाहिर नहीं करने चाहिए; अगर तुम अपने सच्चे विचार और इरादे जाहिर कर दोगे, तो वे तुम्हें दंडित करेंगे और तुम्हें सबक सिखाएँगे। तुम उन्हें यह महसूस नहीं होने दे सकते कि तुम उनके पक्ष में नहीं हो या कि तुम उन्हें अस्वीकार करते हो। तुम्हें ऐसा क्यों करना चाहिए? क्योंकि उनकी नजर में या तो तुम उनके मित्र हो या शत्रु। अगर तुम उनकी नजर में शत्रु बन जाते हो, तो वे तुम्हें ही दंडित करना चाहेंगे : वे तुम्हें अपनी आँख की किरकिरी, अपने जी का जंजाल मानेंगे और उन्हें तुम्हें दंडित करना होगा। इसलिए, तुम्हें बुद्धि का प्रयोग कर मूर्ख होने का दिखावा करना चाहिए। अपनी योग्यताएँ मत दिखाओ; अगर तुम किसी भी चीज के प्रति अपने विचार, दृष्टिकोण, स्थितियाँ या रवैये व्यक्त करते हो, तो तुम मूर्ख हो। समझे? (समझ गए।) शैतानों और राक्षसों के सामने, खासकर जब तुम राजनीतिक दुनिया में किसी समूह के करीब आते हो, तो तुम्हें अतिरिक्त सावधानी बरतनी होगी, खुद को सुरक्षित रखना होगा, खुद को चतुर नहीं समझना होगा या चतुराई नहीं दिखानी होगी, अपना प्रदर्शन नहीं करना होगा, अपनी योग्यता साबित करने की कोशिश नहीं करनी होगी—तुम्हें चुपचाप रहना होगा। अगर तुम ऐसे जटिल परिवेश में अपना अस्तित्व सुनिश्चित करना चाहते हो, और परमेश्वर में विश्वास भी करना चाहते हो, अपना कर्तव्य निभाना चाहते हो, सत्य का अनुसरण करना चाहते हो और उद्धार प्राप्त करना चाहते हो, तो पहली चीज जो तुम्हें करनी चाहिए, वह है अपनी रक्षा करना। अपनी रक्षा करने का एक तरीका यह है कि किसी राजनीतिक ताकत को न उकसाओ और उनके हमलों या सजा का लक्ष्य न बनो—इसी तरह तुम थोड़े सुरक्षित रह सकते हो। अगर तुम हमेशा उनकी बात सुनने, उनका आज्ञापालन करने या उनके करीब आने से इनकार कर देते हो, तो वे तुम्हें नापसंद करेंगे और तुम्हें दंडित करना चाहेंगे। दूसरी ओर, अगर वे देखते हैं कि तुममें प्रतिभा और काम करने की क्षमता है, और अगर वे समझते हैं कि तुम उनके लिए लाभदायक हो, और अगर तुम उनकी जिम्मेदारी सँभाल लेते हो, उनके रहस्य उजागर नहीं करते या उनकी भावी प्रतिष्ठा को नुकसान नहीं पहुँचाते, तो फिर वे तुम्हें प्रशिक्षण देना चाहेंगे। क्या उनका तुम्हें प्रशिक्षण देना अच्छी बात है? (नहीं।) अगर उनकी नजर तुम पर है और वे तुम्हें प्रशिक्षण देना चाहते हैं, तो मुझे बताओ, क्या यह किसी दुष्ट आत्मा के वश में होने के समान नहीं है? (हाँ, है।) अगर उनकी नजर तुम पर है, तो तुम मुसीबत में हो। इसलिए, इससे पहले कि वे तुम्हें अपनी नजरों में लाएँ, तुम उन्हें खुद को पसंद नहीं करने दे सकते; तुम्हें मूर्ख होने का दिखावा करना होगा, मानो तुम कुछ भी बहुत अच्छा नहीं कर सकते। ज्यादातर चीजें कामचलाऊ ढंग से करो। हालाँकि वे इससे असंतुष्ट हो सकते हैं, लेकिन वे तुममें कोई दोष नहीं निकाल पाएँगे या तुमसे छुटकारा पाने के कारण नहीं ढूँढ़ पाएँगे। यह पर्याप्त है, और यह वांछित परिणाम दिलाता है। अगर तुम चीजें बहुत अच्छी तरह से करते हो, अगर सब-कुछ सुचारु ढंग से किया जाता है और वे तुमसे विशेष रूप से संतुष्ट होते हैं और तुम्हारे बारे में बहुत अच्छा सोचते हैं, तो यह अच्छा नहीं है। एक ओर, वे तुम्हें अपने राजनीतिक उड़ान-पथ के लिए खतरा समझेंगे, और दूसरी ओर, वे तुम्हें प्रशिक्षण देना चाह सकते हैं, जिनमें से कोई भी चीज तुम्हारे लिए अच्छी नहीं है। इसलिए, इस समाज में खुद को स्थापित करने के लिए, विभिन्न ताकतों से बचने और दूर रहने से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है विभिन्न ताकतों या अपने से ठीक ऊपर वाले वरिष्ठ से संबंधित रिश्ते और मामले सक्षमता से सँभालना। उदाहरण के लिए, अगर तुम बहुत ज्यादा दिखावा करते हो, अगर तुम खुद को बहुत ज्यादा साबित करना चाहते हो, या अगर तुम बुद्धिहीनता से कार्य करते हो, तो तुम एक दुविधा में फँस सकते हो, जहाँ तुम कुछ भी अपने से दूर करने में असमर्थ होते हो या तुम्हें वह करना होता है जो तुम नहीं करना चाहते। इस बारे में क्या किया जा सकता है? इसलिए, इस मामले से निपटना मुश्किल है। तुम्हें बार-बार परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए, उसके सामने शांत रहो, परमेश्वर को तुम्हारा मार्गदर्शन करने दो, तुम्हें बुद्धि देने दो, बोलने के लिए शब्द देने दो, तुम्हें जो करना चाहिए उसमें तुम्हारा मार्गदर्शन करने दो, और तुम्हें यह जानने में मदद करने दो कि स्थिति से उचित रूप से कैसे निपटना है, ताकि तुम अपनी रक्षा कर सको और ऐसे जटिल चक्रों में परमेश्वर द्वारा सुरक्षित रहो। जब तुम्हें परमेश्वर की सुरक्षा प्राप्त हो जाती है और तुम अपनी रक्षा करने में सक्षम हो जाते हो, सिर्फ तभी तुम्हारे पास परमेश्वर के समक्ष स्थिर रहने, परमेश्वर के वचन खाने-पीने, उन पर विचार करने और सत्य का अनुसरण करने की बुनियादी स्थितियाँ हो सकती हैं। क्या तुम ये बातें समझते हो? (हाँ, मैं समझता हूँ।) यह किसी का पक्ष न लेने का सिद्धांत है।

राजनीति से दूर रहने का एक और सिद्धांत है, अपनी स्थिति न बताना। चाहे इसमें राजनीतिक दृष्टिकोण, रवैये या रुझान, या अगुआओं के इरादे और उद्देश्य, उनकी अभिव्यक्तियाँ, उनके विचार शामिल हों, या चाहे वे सही हों या गलत, तुम्हें अपनी स्थिति नहीं बतानी चाहिए। जब बॉस तुमसे पूछता है, “मैंने अभी जो कहा, क्या तुम उससे सहमत हो? तुम्हारा क्या रुख है?” तो तुम कहते हो, “क्या कहा? मेरे कान ठीक से काम नहीं कर रहे, मैंने आपकी बात नहीं सुनी।” यह सुनकर बॉस नाराज हो जाता है और तुमसे बात करना बंद कर देता है। तुम अपने दिल में सोचते हो, “बहुत बढ़िया, मैं वैसे भी कुछ नहीं कहना चाहता था!” तुम्हें गूँगे-बहरे होने का नाटक करना चाहिए, और हमेशा अपनी स्थिति नहीं बतानी चाहिए, या यह दिखाते हुए कि तुम कितने होशियार हो, यह नहीं कहना चाहिए, “बॉस, मेरे कुछ मत हैं, मेरे कुछ विचार हैं।” अगर तुम हमेशा हाथ उठाकर अपना रुख जाहिर करते हो, तो यह बिल्कुल मूर्खतापूर्ण है। बॉस के बारे में कोई राय होने पर तुम्हें नहीं बोलना चाहिए, और अमुक सहकर्मी के बारे में कोई राय होने पर या अपने बॉस को कुछ गलत करते देख चुप रहना चाहिए। अब, अगर अगुआ तुमसे इन चीजों के बारे में पूछे तो तुम क्या कहोगे? “आपने इसके साथ बहुत अच्छा काम किया है, आप हम छोटे श्रमिकों से दूसरे स्तर पर हैं। आप सचमुच विचारशील हैं!” तुम्हें उसकी प्रशंसा करनी चाहिए, उससे ऐसे चापलूसी भरे स्वर में बात करनी चाहिए कि वह प्रसन्न महसूस करने लगे, और जब तुम देखो कि तुम्हारा मकसद सध गया है, तो उसकी प्रशंसा करना बंद कर दो, क्योंकि तुम लगभग उकता चुके हो। तुम्हारा बॉस ऊपर से चाहे जो भी नीतियाँ, दृष्टिकोण, कार्य लागू करने के लिए बोल रहा हो, या किसी भी चीज के प्रति उसका रवैया चाहे जो हो, तुम मूर्खतापूर्ण व्यवहार कर कुछ अस्पष्ट वाक्य कह देते हो। तुम्हारी बात सुनकर बॉस कहेगा, “यह व्यक्ति हमेशा भ्रमित रहता है, इसलिए इसका इस मामले में भी भ्रमित होना सामान्य है।” ठीक है, तुम झूठे बहाने बनाकर स्थिति से निपटने में कामयाब हो गए हो। बॉस चाहे कुछ भी कहे, तुम्हें कभी अपनी स्थिति नहीं बतानी चाहिए। अगर तुम बॉस के साथ भोजन कर रहे हो और वह चाहता है कि तुम किसी चीज पर अपनी स्थिति बताओ, तो तुम कहो, “ओह, देखो मैंने कितना चावल खा लिया; मेरी रक्त-शर्करा बढ़ गई है और सिर थोड़ा चकरा रहा है, इसलिए आपने अभी जो कहा, वह मुझे स्पष्ट रूप से सुनाई नहीं दिया। बॉस, क्या हम इस पर अगली बार फिर से चर्चा कर सकते हैं?” बस, उसके साथ अस्पष्ट रहो। अगर बॉस अपने, पार्टी-समिति या राष्ट्रीय नीतियों के बारे में तुम्हारे विचार जानने के लिए किसी को भेजे, तो क्या तुम्हें कोई विचार व्यक्त करना चाहिए? (नहीं।) तुम्हारा सार्वजनिक रवैया यह होना चाहिए कि तुम्हारा कोई विचार नहीं है, लेकिन तुम्हारे सच्चे रवैये के बारे में क्या? अगर तुम्हारे अपने विचार हों भी, तो भी उन्हें बताना मत : इसे भूत को धोखा देना कहा जाता है। एक लाक्षणिक कहावत है, “किसी की कब्र पर प्लास्टिक के फूल रखना—भूत को धोखा देना,” क्या यह सही नहीं है? सही-गलत के प्रमुख मुद्दों का सामना करते समय, भले ही तुम्हारे अपने रवैये और दृष्टिकोण हों, तुम्हें उन्हें व्यक्त नहीं करना चाहिए। क्यों? इन चीजों का संबंध परमेश्वर में आस्था से नहीं है, इनका सत्य से संबंध नहीं है, ये सब शैतानों की दुनिया के मामले हैं, और इनका हम विश्वासियों से कोई लेना-देना नहीं है। यह मायने नहीं रखता कि हमारे रवैये क्या हैं, मायने यह रखता है कि इन चीजों का हमसे कोई लेना-देना नहीं है; भले ही हमारा कोई रवैया हो, वास्तव में यह उनके सार की समझ और पहचान है; हमारा रवैया और हमारे अभ्यास का सिद्धांत उनसे दूर रहना, उन्हें और उनके प्रभाव और नियंत्रण को नकारना है। जहाँ तक दूसरे लोगों के रवैयों की बात है, तो उनसे हमारा कोई वास्ता नहीं है; यह शैतानों की दुनिया का मामला है और इसका परमेश्वर के विश्वासियों से कोई लेना-देना नहीं है। इन चीजों का संबंध सत्य के अनुसरण से नहीं है, न ही इनका संबंध उद्धार से है, तुम्हारे प्रति परमेश्वर के किसी रवैये से संबंध होने की बात तो छोड़ ही दो; इसलिए, तुम्हें कोई रवैया अपनाने की जरूरत नहीं, न ही तुम्हें कोई रवैया व्यक्त करने की जरूरत है। तुम इसे बस हँसी में उड़ाकर कह सकते हो, “बॉस, मेरी विचार-प्रक्रिया उथली और दिमाग ढीला है; मैंने इतने लंबे समय तक राजनीति का अध्ययन किया है, लेकिन मैंने अपने विचारों में कभी किसी राजनीतिक क्रांति का अनुभव नहीं किया है, इसलिए मामूली आदमी होने के नाते मैं अभी भी ऊपर से आने वाली नीतियाँ या आपका अर्थ नहीं बूझ पाता। मैं आपसे माफी माँगता हूँ।” यह पर्याप्त उत्तर है। क्या यह भूत को धोखा देना है? (हाँ।) या तुम यह भी कह सकते हो, “बॉस की आँखें चमकदार हैं और लोगों की आँखें साफ हैं, लेकिन मैं ही अकेला हूँ जिसकी आँखों में उलझन है : मैं कुछ भी देखने या समझने में असमर्थ हूँ! मैं पार्टी का सदस्य नहीं हूँ, इसलिए मुझमें पार्टी की भावना नहीं है। ये बातें मेरी समझ में नहीं आतीं। हमसे बात करें बॉस, आपके लिए हम ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। आप जो भी कहेंगे, हम सुनेंगे और उस पर अमल करेंगे। यह मेरे लिए काफी है।” क्या यह आसान नहीं है? क्या इससे अपनी स्थिति न बताने का सिद्धांत सधता है? (हाँ, सधता है।) यह अनमनापन और अपनी स्थिति न बताना तुम्हें सुरक्षित रहने देता है। क्या बॉस जानता है कि इससे तुम्हारा क्या मतलब है? वह नहीं जानता। उसे लगता है कि तुम बस मूर्ख हो, और सोचता है, “यह व्यक्ति उन्नति नहीं चाहता। ऐसी अनुकूल परिस्थितियों में ज्यादातर लोग पहले ही उच्च पद पर, शायद महापौर के पद पर भी, पदोन्नत कर दिए गए होते। यह व्यक्ति प्रांतीय गवर्नर हो सकता है, लेकिन यह आगे बढ़ना ही नहीं चाहता, बेवकूफी करता रहता है, और संगठन के करीब नहीं जाता—यह निपट मूर्ख है!” तुम अपने दिल में क्या सोचोगे? “तुम्हारी नजर में मैं मूर्ख हूँ। लेकिन परमेश्वर की नजर में मैं एक भोला-भाला कबूतर हूँ। मैं तुमसे ज्यादा मूल्यवान हूँ। अरे शैतान, तुम एक आधिकारिक पद पर हो और थोड़ा राजनीति में भाग लेते हो, और तुम्हें लगता है कि यह तुम्हें श्रेष्ठ बनाता है। मेरी नजर में तुम एक टिड्डी से बेहतर नहीं हो!” क्या तुम यह कह सकते हो? (नहीं, हम नहीं कह सकते।) तुम यह नहीं कह सकते। सावधान रहो, क्योंकि दीवारों के भी कान होते हैं; तुम घर पर अपने कुत्ते से बात कर सकते हो और इसे वहीं छोड़ सकते हो। इस दुनिया में बहुत कम लोग हैं, जिन पर तुम भरोसा कर सकते हो या जिनसे गुप्त बातें कर सकते हो; इसलिए, सिद्धांत के प्रमुख मुद्दों का सामना करते समय, चाहे राजनीतिक हलकों में हो या किसी सामाजिक समूह में, तुम्हें अपनी स्थिति न बताना सीखना चाहिए, खासकर जब इसमें राजनीति, सत्ता या पक्ष लेना शामिल हो। तुम्हें निश्चित रूप से अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं करनी चाहिए। अगर तुम ऐसा करते हो, तो यह खुद को भुनने के लिए आग पर रखने जैसा है। भुनने के लिए आग पर रखा जाना कैसा लगता है? अगर तुम जानना चाहते हो, तो बस राय व्यक्त करो और देखो। क्या ऐसा नहीं है? (हाँ, है।) क्या अपनी स्थिति न बताना संभव है? यह इस पर निर्भर करता है कि तुम अपने दिल में किसका अनुसरण करते हो। अगर तुम वास्तव में आधिकारिक करियर का अनुसरण कर रहे हो, अगर तुम अधिकारी बनना चाहते हो, तो न सिर्फ तुम्हें कोई रुख अपनाना होगा, बल्कि तुम अपनी स्थिति स्पष्ट रूप से व्यक्त भी करोगे, और इसे अपने बॉस के सामने करोगे, साथ ही ऊपर की ओर चढ़ोगे—अगर ऐसा है, तो तुम एक बहुत बुरे व्यक्ति का उदाहरण बनकर रह जाओगे। तुम राजनीति से दूर नहीं रह रहे; तुम उसमें भाग ले रहे हो। अगर तुम राजनीति में भाग लेते हो तो लो और दफा हो जाओ। परमेश्वर के घर में मत रहो। तुम एक छद्म-विश्वासी हो, तुम दुनिया के हो, दानवों के हो, परमेश्वर के घर के नहीं हो—तुम परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से नहीं हो। भले ही तुम परमेश्वर के घर में रह रहे हो, लेकिन तुम उसमें चोरी-छिपे घुस आए थे, तुम खाने के लिए एक निवाला चाहते थे, आशीष पाना चाहते थे—ऐसे किसी व्यक्ति का यहाँ स्वागत नहीं है। लेकिन, दूसरी ओर, अगर तुम्हारे पास उत्कृष्ट व्यक्तिगत योग्यताएँ हैं और तुम अधिकारी बनने और करियर शुरू करने के कई अवसर पाने की स्थिति में हो, फिर भी तुम करीब जाने, भाग लेने, पक्ष लेने और कोई रुख अपनाने से बच सकते हो, तो तुम राजनीति से दूर रहने में सक्षम हो। क्या तुम्हें ये सिद्धांत याद हैं? क्या ये साध्य हैं? (हाँ, हैं।) देखो, राजनीतिक हलकों में जो भी लोग हमेशा खुद को प्रदर्शित करना चाहते हैं, अलग दिखना चाहते हैं, साथ ही वे भी, जो अपने दृष्टिकोण और रवैये व्यक्त करना चाहते हैं, विशेष रूप से खुद को अभिव्यक्त करने की तीव्र इच्छा रखते हैं—उन सभी का एक ही लक्ष्य होता है : वे किसी आधिकारिक पद पर आसीन होना चाहते हैं। अच्छे ढंग से कहें तो, वे राजनीति में भाग लेना चाहते हैं; लेकिन वास्तव में, वे बस पद पर आसीन होना चाहते हैं, अधिकार पाना चाहते हैं, और अपने पद का उपयोग खाने-पीने की चीजों और सुख-सुविधाओं में लिप्त होने के लिए करना चाहते हैं। वे अपने पद का उपयोग विभिन्न व्यक्तिगत लक्ष्यों को प्राप्त करने और अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए करना चाहते हैं। क्या ऐसा नहीं है? (हाँ, है।) कुछ लोगों में खुद बहुत अच्छी काबिलियत नहीं होती; वे दोषपूर्ण होते हैं। फिर भी वे अधिकारी बनना और राजनीति में भाग लेना चाहते हैं। नतीजतन, वे अपने प्रयासों पर भरोसा कर किसी भी कीमत पर ऊपर चढ़ जाते हैं; वे अपने वरिष्ठों की चापलूसी करते हैं, और सरकारी अधिकारियों के निजी गुर्गों के रूप में कार्य करते हैं। अंततः वे राजनीति में भाग लेने का अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेते हैं और आधिकारिक करियर बनाने का अपना सपना साकार कर लेते हैं।

राजनीति से दूर रहने के संबंध में हमने पाँच सिद्धांतों के बारे में संगति की है। पहला सिद्धांत है किसी पार्टी में शामिल न होना। देखो, किसी भी देश के तमाम शासक किसी राजनीतिक दल से संबंध रखते हैं, अधिनायकवादी देशों के नेताओं का तो कहना ही क्या, वे भी किसी राजनीतिक दल से संबंध रखते हैं। इसलिए राजनीति से दूर रहने का पहला सिद्धांत है किसी पार्टी में शामिल न होना। क्या मैं यही नहीं कह रहा था? (हाँ।) तो, दूसरा सिद्धांत क्या है? (उनके करीब न जाना।) उनके या राजनीतिक हलकों के करीब मत जाओ। तीसरा सिद्धांत क्या है? (भाग न लेना।) बिल्कुल सही कहा, उनकी किसी भी गतिविधि, आंदोलन या वैचारिक चर्चा में भाग न लेना, यानी उनके साथ भाग न लेना। चौथा सिद्धांत क्या है? (पक्ष न लेना।) पक्ष मत लो, उन्हें बहस करने दो कि कौन सही है और कौन गलत; संक्षेप में, तुम किसी का पक्ष न लो। पाँचवाँ सिद्धांत क्या है? (अपनी स्थिति न बताना।) अपनी स्थिति न बताना। कोई कहता है, “अगर तुम अपनी स्थिति नहीं बताते, तो क्या तुम सिर्फ एक क्लेश बनकर नहीं रह जाते?” तुम कहते हो, “मेरी कोई राय नहीं है, मैं बस एक साधारण व्यक्ति हूँ, मेरी शिक्षा ज्यादा नहीं है, मेरी विचार-प्रक्रिया उतनी भव्य नहीं है—मेरी कैसी राय हो सकती है? मैं सिर्फ एक औसत नागरिक हूँ, मुझे अकेला छोड़ दो।” तुम्हारी कभी किसी भी समय कोई राय नहीं होती। जब तुमसे कोई रुख अपनाने के लिए कहा जाता है, तो तुम खर्राटे लेने, सोए होने का नाटक करते हो, और जब लोग देखते हैं कि तुम्हें तरक्की में कोई दिलचस्पी नहीं है, तो वे तुमसे अपनी राय बताने के लिए नहीं कहेंगे, जो पूरी तरह से कारगर रहता है, है न? ये कुल कितने सिद्धांत हैं? (पाँच।) अगर तुम इन पाँच सिद्धांतों का पालन करते हो, तो तुम राजनीति से दूर रह सकते हो और किसी भी राजनीतिक ताकत से मजबूर, प्रभावित या बाधित नहीं होगे। चाहे शीर्ष राजनीतिक हलकों से निपट रहे हो या निम्न राजनीतिक हलकों से, अगर तुम ये पाँच सिद्धांत व्यवहार में लाते हो, तो तुम राजनीति से दूर रह सकोगे। यह वह विषय है, जो व्यक्ति के पेशेवर करियर पर लागू होता है। बेशक, अगर तुम्हारा कोई पेशा न भी हो, तो भी ये सिद्धांत ऐसे के ऐसे ही, अपरिवर्तित रहेंगे। अगर तुम बेरोजगार भी हो, तो भी तुम्हें राजनीति से दूर रहने के लिए इन सिद्धांतों का पालन करना चाहिए—सिद्धांत बदलते नहीं। तो तुम्हें राजनीति से दूर क्यों रहना चाहिए? राजनीति क्या है? वह एक संघर्ष है, सत्ता का खेल है। राजनीति साजिश और रणनीति दोनों है। और क्या है राजनीति? राजनीति विभिन्न ताकतों द्वारा छेड़े गए आंदोलन या गतिविधियाँ भी हैं। देखो, तुम लोग समझा भी नहीं सकते कि राजनीति क्या है, फिर भी बड़ा लाल अजगर कलीसिया के लोगों पर राजनीति में शामिल होने का आरोप लगाता है। क्या यह बेतुका नहीं है? क्या जब वे चाहें तब गलती ढूँढ़ना आसान नहीं है? (हाँ, है।) यह स्पष्ट रूप से झूठा आरोप है। कुछ मूर्ख और भ्रमित लोग बड़े लाल अजगर के दानवी शब्द सुनने के बाद उसके दबाव में आ जाते हैं और उसके या शैतान के बारे में विवेक अपनाने का साहस नहीं करते। जब भी बड़े लाल अजगर या शैतान को पहचानने का विषय आता है, वे एक कोने में छिप जाते हैं और मुँह खोलने की हिम्मत नहीं करते; वे बस अपना गला साफ करते हैं या भ्रमित होने का नाटक करते हैं। वे किसलिए दिखावा करते हैं? उन्हें दिखावा करने की जरूरत नहीं : वे समझते तक नहीं कि राजनीति क्या है, तो वे राजनीति में भाग कैसे ले सकते हैं? क्या उनके जैसा भ्रमित व्यक्ति राजनीति में भाग ले सकता है? इसलिए, ज्यादातर साधारण लोगों के लिए राजनीति से दूर रहना वास्तव में संभव है। हमने अभी सैद्धांतिक रूप से एक बिंदु पर जोर दिया है, जो कोई मूर्खतापूर्ण बात न करना, अनजाने ही राजनीति में शामिल होने, बिना जाने ही राजनीति से प्रभावित हो जाने और अंततः यह समझे बिना कि क्या हुआ, बलि का बकरा या बलि का पात्र बनने से बचना है। इसलिए, हम इन सिद्धांतों के बारे में संगति क्यों करते हैं, इसका कारण एक ओर तो यह है कि तुम लोगों को यह पता चले कि तुम्हारी बुद्धि राजनीति का वास्तविक सार समझने के लिए पर्याप्त नहीं है। दूसरी ओर, अगर तुम इन सिद्धांतों का अभ्यास करते हो, तो तुम अपनी बेहतर सुरक्षा कर पाओगे और किसी भी स्थिति में या उन स्थितियों में धोखा दिए जाने से बच पाओगे, जिनमें तुम अनजान या नादान होते हो। इन सिद्धांतों का पालन भर करके तुम किसी भी समूह में अपनी काफी सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हो। इसलिए, ये सिद्धांत न सिर्फ तुम्हारी सुरक्षा का ताबीज हैं, बल्कि वे सिद्धांत भी हैं जिनका राजनीति के क्षेत्र में पालन करने की सलाह परमेश्वर तुम्हें देता है। इन सिद्धांतों का पालन करके तुम सत्य से मिलने वाले लाभों का आनंद ले सकते हो, और यह भी कहा जा सकता है कि परमेश्वर द्वारा तुम्हारी सुरक्षा की जाती है। अगर तुम्हें लगता है कि परमेश्वर की सुरक्षा अस्पष्ट और खोखली है, और तुम उसे देख या महसूस नहीं कर सकते, तो तुम इन पाँच सिद्धांतों का अभ्यास करना चुन सकते हो। इस तरह, तुम वास्तव में परमेश्वर की सुरक्षा का अनुभव कर सकते हो, जो कि ज्यादा वास्तविक किस्म की सुरक्षा है। यह न सिर्फ अपनी सुरक्षा के लिए परमेश्वर के वचनों का उपयोग करना है, बल्कि परमेश्वर के वचनों का अभ्यास करके और उन सत्य-सिद्धांतों का पालन करके भी अपनी रक्षा करना है, जो परमेश्वर ने तुम्हारे सामने प्रकट किए हैं। हर हाल में, अंतिम लक्ष्य हासिल हो जाता है, और तुम राजनीति से दूर रहकर लोगों के बुरे समूहों से सुरक्षित रहने, विभिन्न प्रलोभनों और संकटों से बचने में सक्षम रहते हो, और इस तरह स्थिरता, शांति और सुरक्षा की अवस्था में परमेश्वर के सामने अपना तन-मन शांत कर सकते हो, ताकि तुम सत्य का अनुसरण कर सको। लेकिन अगर तुम मूर्ख हो और नहीं जानते कि परमेश्वर द्वारा सिखाए गए सिद्धांतों का पालन कैसे करें, और अलग दिखने और बेतरतीब ढंग से खुद को प्रदर्शित करने की कोशिश करते हो, अक्सर बिना बुद्धि के कार्य करते हो और राजनीति और समूहों से उपजे विभिन्न विवादों और संघर्षों में उलझ जाते हो; अगर तुम अक्सर विभिन्न जालों और प्रलोभनों में फँस जाते हो, और तुम्हारा दैनिक जीवन इन चीजों से प्रभावित और परेशान होता है, और तुम अपना सारा समय विवादों और अशांति से जुड़े इन संघर्षों को सँभालने और हल करने में बिताते हो, तो यह कहा जा सकता है कि तुम्हारा हृदय कभी परमेश्वर के सामने नहीं आएगा, और तुम वास्तव में उसके सामने कभी शांत नहीं होगे। अगर तुम इसे थोड़ा-सा भी हासिल नहीं कर सकते, तो परमेश्वर के वचनों को समझने, सत्य को जानने या समझने, सत्य का अभ्यास करने और बचाए जाने के लिए सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर चलने की तुम्हारी कोई उम्मीद नहीं। अगर तुम इन चीजों में फँस गए हो, तो यह शैतान द्वारा फँसाए जाने के बराबर है। अगर तुम्हारे पास इन मामलों को सँभालने के लिए सिद्धांत नहीं हैं, तो ये चीजें तुम्हारे परम अंत को निगल जाएँगी। तुम्हारा दैनिक जीवन, तुम्हारा हृदय और तुम्हारा जीवन इन विवादों और संघर्षों में उलझ जाएगा। तुम सिर्फ यह सोचोगे कि इन चीजों से कैसे छुटकारा पाया जाए, उन लोगों से कैसे लड़ा-झगड़ा जाए, और अपनी बेगुनाही साबित कर न्याय की माँग कैसे की जाए। नतीजतन, जितना ज्यादा तुम इन मामलों में फँसते हो, उतना ही ज्यादा तुम जल्दी से अपनी बेगुनाही साबित करना, न्याय की माँग करना और स्पष्टीकरण प्राप्त करना चाहते हो, और तुम्हारा दिल उतना ही ज्यादा अराजक और जटिल हो जाएगा। तुम्हारा बाहरी परिवेश जितना ज्यादा जटिल होगा, तुम्हारा आंतरिक अस्तित्व उतना ही ज्यादा जटिल हो जाएगा, और तुम्हारा बाहरी परिवेश जितना ज्यादा अराजक होगा, तुम्हारा आंतरिक अस्तित्व उतना ही ज्यादा अराजक हो जाएगा। इस तरह, तुम पूरी तरह से खत्म हो जाओगे, तुम शैतान द्वारा नियंत्रित कर बंदी बना लिए जाओगे। अगर तुम अभी भी सत्य का अनुसरण करना और बचाए जाना चाहते हो, तो यह असंभव होगा! तुम उद्धार से परे, पूरी तरह से बेकार होगे। तब तक, तुम कहोगे, “मुझे इस सब पर पछतावा है। शैतान का राजनीतिक दायरा दलदल के सिवाय कुछ नहीं! अगर मुझे पता होता तो मैं परमेश्वर की बातें सुनता।” मैंने तुम्हें बहुत पहले ही बता दिया था, लेकिन तुमने मुझ पर विश्वास नहीं किया। तुमने उनसे स्पष्टीकरण प्राप्त करने, उनके मुँह से उचित शब्द, प्रशंसा और मान्यता का शब्द प्राप्त करने पर जोर दिया। तुमने परमेश्वर द्वारा बताए गए सिद्धांतों और मानदंडों का पालन करने से इनकार कर दिया, इसलिए तुम मरने तक उनके साथ घसीटे जाने लायक हो। अंत में, शैतान नष्ट हो जाएगा, और तुम भी उसके साथ नष्ट हो जाओगे, उसका अंतिम संस्कार बन जाओगे। तुम इसी लायक हो! तुमसे शैतान का अनुसरण किसने कराया? तुम्हें शैतान से स्पष्टीकरण माँगने के लिए किसने प्रेरित किया? तुम्हें इतना मूर्ख किसने बनाया? परमेश्वर ने तुम्हें बुद्धि दी, लेकिन तुमने उसका इस्तेमाल नहीं किया। उसने तुम्हें सिद्धांत दिए, लेकिन तुमने उनका पालन नहीं किया। तुमने अपनी राह पर चलने, अपने दिमाग, प्रतिभाओं और गुणों से उन लोगों के खिलाफ लड़ने पर जोर दिया। क्या तुम शैतान को हरा सकते हो? इसके अलावा, शैतान के खिलाफ लड़ना वह काम नहीं है, जो परमेश्वर ने तुम्हें सौंपा है। परमेश्वर ने तुम्हें अपने मार्ग पर चलने का काम सौंपा है, न कि शैतान से लड़ने का। तुम्हारे लिए उसके खिलाफ लड़ना कोई मायने नहीं रखता। परमेश्वर इसे याद नहीं रखता है। अगर तुम उसे हरा भी दो, तो भी तुम्हें उद्धार प्राप्त नहीं होगा। अब समझे? इसलिए, उद्योग और राजनीति के दायरे में, तुम्हें ये सिद्धांत याद रखने चाहिए, जिनका लोगों को पालन करना चाहिए। शायद तुम लोगों में से जो लोग वर्तमान में पूर्णकालिक रूप से अपना कर्तव्य निभा रहे हैं, उन्हें ये वचन अवास्तविक और अपेक्षाकृत अपरिचित लगें। लेकिन कम से कम, ये तुम्हें यह जानने देते हैं कि राजनीति क्या है, तुम्हें राजनीति को कैसे लेना चाहिए, उन लोगों को कैसे देखना चाहिए जो राजनीतिक दायरे में रहते हैं या राजनीतिक संभावनाओं के पीछे दौड़ते हैं, और अगर वे परमेश्वर में विश्वास करते हैं तो उनकी समस्याएँ हल करने में उनकी मदद कैसे करें। ये वे सबसे बुनियादी चीजें हैं, जो तुम्हें जाननी चाहिए। अगर तुम ये सिद्धांत पूरी तरह से समझ और स्वीकार लेते हो, तो तुम उनकी मदद करने में सक्षम होगे, और जब तुम्हारा सामना ऐसे लोगों से होगा, तो तुम संबंधित सिद्धांतों का उपयोग करके उनकी समस्याएँ सँभालने और हल करने में सक्षम होगे। खैर, आओ राजनीति से दूर रहने के विषय पर अपनी संगति यहीं समाप्त करते हैं। अलविदा!

18 जून 2023

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