सत्य का अनुसरण कैसे करें (21) भाग तीन
जहाँ तक विभिन्न सामाजिक ताकतों से दूर रहने की बात है, लोगों को अपने जीवन में जिन विभिन्न ताकतों का सामना करना पड़ता है उनके अलावा भी कई ऐसी ताकतें हैं जो समाज में अक्सर दिखाई देती हैं : व्यक्ति को उनसे भी दूर रहना चाहिए। चाहे जीवन हो या कार्यस्थल, उनके साथ किसी तरह का संबंध रखने या बातचीत करने से बचो। अपना जीवन और कार्य सँभालो, और साथ ही इन ताकतों के विकराल रूप से डरो मत। अपने दिल से उन्हें अस्वीकार कर उनसे दूर रहते हुए उनके साथ अपना रिश्ता समझदारी से सँभालो और दूरी बनाए रखो। तुम्हें यही करना चाहिए। अपने दिल में स्पष्ट रहो कि तुम यह काम सिर्फ अपने अगले वक्त के भोजन, अपनी आजीविका के लिए कर रहे हो। तुम्हारा उद्देश्य सरल है, भोजन और वस्त्र प्राप्त करना, न कि किसी विशेष परिणाम के लिए उनसे लड़ना। भले ही वे तुमसे कुछ बातें कहें या कठोरता से बोलें; भले ही तुम ऐसे देश में हो जहाँ धर्मसंबंधी विश्वासों के लिए उत्पीड़न किया जाता हो, जहाँ ईसाई धर्म का उत्पीड़न किया जाता हो, और कुछ लोग तुम्हारे विश्वास का मजाक उड़ाते हों, व्यंग्यात्मक टिप्पणी करते हों या उसके बारे में अफवाहें फैलाते हों, तुम सिर्फ सहन ही कर सकते हो। खुद को सुरक्षित रखो, परमेश्वर के समक्ष शांत रहो, उससे बार-बार प्रार्थना करो, उसकी उपस्थिति में नियमित रूप से आओ और इन ताकतों की बाहरी दुष्टता या उग्रता से त्रस्त मत हो। अपने दिल की गहराई से उन्हें पहचानने का अभ्यास करने के अलावा तुम्हें उनसे दूर भी रहना चाहिए। सोच-समझकर बोलो, सावधानी से कदम बढ़ाओ, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व कायम रखो और उनके साथ अपने व्यवहार में बुद्धि का उपयोग करो। क्या ये अभ्यास के वे सिद्धांत नहीं हैं, जिनका तुम्हें पालन करना चाहिए? (हाँ, हैं।) बेशक, चाहे तुम उनसे दूर रहना चाहो, उन्हें ठुकराना चाहो या अपने दिल में उनका तिरस्कार तक करना चाहो, तुम्हें यह समझदारी बरतनी चाहिए कि तुम बाहर से कैसे दिखते हो। तुम्हें उन्हें इसका एहसास नहीं होने देना चाहिए या इसे देखने नहीं देना चाहिए। अपने दिल में स्पष्ट रहो कि तुम सिर्फ आजीविका कमाने के लिए काम कर रहे हो, और तुम्हारे पास उनके बीच रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। पहले तो उनसे दूर रहने की कोशिश करो। जब वे सामूहिक रूप से किसी गैरकानूनी व्यवहार में भाग ले रहे हों, तो तुम्हें उनसे दूर रहना चाहिए और उनसे बचना चाहिए, और उनके अपराधों में कोई हिस्सा नहीं लेना चाहिए। साथ ही, अपनी सुरक्षा करो और खुद को साझे हमले या फँसाए जाने की अजीब स्थिति में मत पड़ने दो। क्या ऐसा करना आसान है? कुछ लोग जो युवा और अनुभवहीन हैं, उन्हें पहली बार इस जटिल सामाजिक परिवेश में पड़ने पर कठिनाई हो सकती है। या शायद कुछ व्यक्तियों में काबिलियत या अनुकूलनशीलता की कमी होती है और वे आपसी संबंधों को सँभालने में बहुत कुशल नहीं होते, जिससे इसमें कुछ कठिनाई होती है। लेकिन हर हाल में एक बात स्पष्ट है : तुम्हारे लिए हाथ में लिया हुआ काम पूरा करने के लिए अपनी व्यक्तिगत क्षमताओं का उपयोग करना पर्याप्त है। किसी को ठेस मत पहुँचाओ; किसी ऐसे व्यक्ति के प्रति बहुत ज्यादा कठोर मत बनो जिसके पास आस्था, नैतिक सीमाओं, जमीर और विवेक का अभाव है। किसी एक शब्द या घटना के कारण उन्हें उच्च सिद्धांतों का उपदेश न दो या परमेश्वर में आस्था, आचरण कैसे करें, या जमीर और मानव-प्रकृति जैसे मामलों के बारे में बात मत करो। यह आवश्यक नहीं है; अपनी अच्छी सलाह उन लोगों के लिए बचाकर रखो जो इसे समझते हैं। जो लोग जानवरों से भी गये-गुजरे हैं, उनके साथ इंसानी वाणी का प्रयोग तक न करो, सत्य से जुड़ी चीजों के बारे में बात करना तो दूर की बात है। यह एक मूर्खतापूर्ण तरीका है। अगर वे एक शक्तिशाली ताकत हैं, तो जिस तरह से तुम उनसे संपर्क करते हो, खुद को दूर रखते हुए और अपने दिल में उन्हें अस्वीकारते हुए, बाहरी तौर पर तुम्हें उनके प्रति एक दोस्ताना और सामंजस्यपूर्ण व्यवहार बनाए रखना चाहिए। भोजन और वस्त्र के साथ अपनी आजीविका कायम रखने का परिणाम प्राप्त करने का प्रयास करो—यही पर्याप्त है। ऐसे जटिल जीवन-परिवेश में जहाँ विभिन्न ताकतें आपस में जुड़ी हुई हैं, परमेश्वर नहीं चाहता कि तुम यह साबित करने के लिए किसी चीज में भाग लो कि तुम ऐसे व्यक्ति हो जो परमेश्वर का अनुसरण करता है, जो सत्य का अनुसरण करता है, या जो अच्छा और ईमानदार व्यक्ति है। इसके बजाय, वह चाहता है कि तुम कबूतरों की तरह भोले और साँपों की तरह बुद्धिमान बनो, हर पल परमेश्वर के सामने आओ, उसके सामने खुद को शांत करके प्रार्थना करो, अपनी रक्षा परमेश्वर को करने दो, और अपनी सुरक्षा का लक्ष्य पूरा करो। तुम्हें कौन-सा विशिष्ट परिणाम प्राप्त करना चाहिए? वह बुरे लोगों के झाँसे में आने से बचना होना चाहिए, विभिन्न ताकतों के हाथों फँसने से बचना होना चाहिए, और उनका पंचिंग बैग, उनका बलि का बकरा या उनके मजाक का पात्र न बनना होना चाहिए। जब उन्हें पता चलेगा कि तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो, तो वे तुम पर हँसेंगे और कहेंगे, “देखो, वह एक धर्मावलंबी विश्वासी है,” या “उस धर्मावलंबी व्यक्ति को देखो, उसका परमेश्वर ऐसा या वैसा है; वह फिर से अपने परमेश्वर से प्रार्थना कर रहा है, और वह कहता है कि वह जो पैसा कमाता है, वह उसे परमेश्वर देता है।” इसलिए उनके साथ आस्था संबंधी चर्चा न करो। उन्हें हावी न होने दो। तुम्हें उनके साथ मेलजोल बढ़ाने, उनके साथ रिश्ता कायम रखने, उनसे यह कहलवाने कि तुम कितने अच्छे हो, तुम कितने अच्छे इंसान हो, या उनकी स्वीकृति हासिल करने में अपनी ऊर्जा लगाने की जरूरत नहीं है। तुम्हें इन चीजों की जरूरत नहीं है। दफ्तर का कामकाज सैद्धांतिक तरीके से निपटाओ; तुम एक साधारण कर्मचारी हो, उद्योग के बस एक दूसरे सदस्य। परमेश्वर तुमसे यह अपेक्षा नहीं करता कि तुम उसके वचन उन लोगों के बीच फैलाओ, उनके साथ उसके सत्य के बारे में संगति करो। वह तुमसे उनसे दूर रहने, अपनी रक्षा करने, उनके दलदल में या किसी प्रलोभन में न फँसने और खासकर विभिन्न विवादों, उनकी खुद पैदा की हुई अराजकता, उनके षड्यंत्रों और फंदों या जटिल परिस्थितियों में न उलझने के लिए कहता है। तुम्हें इस पेशे में हर समय अपने उद्देश्य से अवगत रहना चाहिए : इसका संबंध तरक्की करने, शीर्ष पर पहुँचने, साधन-संपन्न व्यक्ति बनने या समाज के सामने अपना मूल्य प्रदर्शित करने से नहीं है। न इसका संबंध अपने अगुआओं या वरिष्ठों को प्रभावित करने के लिए कुछ करने-धरने से है। तुम्हारा उद्देश्य अपनी रोजी-रोटी कमाना, अपनी आजीविका जुटाना, इस दुनिया और समाज में जीवित रहने में सक्षम होना, और फिर अपना कर्तव्य निभाने, सत्य का अनुसरण करने और उद्धार प्राप्त करने के लिए समय निकालना और स्थितियाँ तैयार करना है। इसलिए, किसी भी कार्यस्थल में तुम्हें उन्नति, आगे की शिक्षा, विदेश में पढ़ाई, अपने वरिष्ठों की उच्च राय, या उच्च स्तर के अगुआओं का ध्यान आकर्षित करने के अवसर पाने के लिए प्रयास करने की जरूरत नहीं है। तुम्हें इनमें से किसी की कोई जरूरत नहीं है। अगर तुम जीवित रहने, अपनी आजीविका कायम रखने की कोशिश कर रहे हो, तो ये चीजें अपने जीवन से त्यागी जा सकती हैं। तुम्हें सिर्फ अपने पेशे के दायरे में खुद को सुरक्षित रखने की जरूरत है—यही काफी है। परमेश्वर तुमसे ज्यादा कुछ करने के लिए नहीं कहता। तुम्हें जिस सिद्धांत का पालन करना चाहिए, वह यह है कि विभिन्न ताकतों से दूर रहो—तुम्हें कोल्हू में पिसने या अपेक्षाकृत उस सरल परिवेश में चौपट होने से बचना चाहिए, जहाँ तुम अपनी आजीविका बनाए रख सकते हो—ऐसा करना क्रिया-कलाप का एक मूर्खतापूर्ण तरीका होगा। तुम सबसे सरल कार्य-विधियों के माध्यम से अपनी आजीविका बनाए रखने में स्पष्ट रूप से सक्षम हो, फिर भी तुम अक्सर विवादों में शामिल होने, अपने पेशे और आजीविका से असंबंधित मामलों में कदम रखने या भाग लेने के लिए तैयार रहते हो, जिसके परिणामस्वरूप तुम विभिन्न जटिल मानवीय मामलों, विभिन्न सामाजिक ताकतों की जटिल उलझनों और संघर्षों में फँस जाते हो। इसलिए तुम अपनी परिस्थितियों की व्यवस्था करने के लिए परमेश्वर को दोष नहीं दे सकते; इसके लिए सिर्फ तुम्हीं दोषी हो, तुम्हारा पतन तुम्हारी अपनी वजह से है। तुम अक्सर कहते हो कि तुम काम में बहुत व्यस्त रहते हो और थक जाते हो, और सभा में आकर अपना कर्तव्य निभाने के लिए तुम्हें समय नहीं मिलता। कारण चाहे जो भी हों, अगर तुम खुद को ऐसी परिस्थितियों में पाते हो, तो तुम जल्दी ही परमेश्वर के घर से निकाल दिए जाओगे। तुम्हारे उद्धार की आशा मिट जाएगी। यही वह मार्ग था जिसे तुमने खुद अपनाया, वही मार्ग जो तुमने चुना था, और यही वह परिणाम है जो तुम्हें अंततः प्राप्त होगा। अगर तुम अपने परिवेश में परमेश्वर द्वारा संगति किए गए सिद्धांतों के अनुसार अभ्यास करते हो, खुद को अच्छी तरह सुरक्षित रखते हो और शांत हृदय से परमेश्वर के सामने आ सकते हो, तो काम में संतुलन बनाए रखकर अपना कर्तव्य निभाते हुए भी तुम्हें उद्धार पाने का मौका मिलेगा। लेकिन इसके लिए पूर्व-शर्त यह है कि तुम्हें समाज की विभिन्न ताकतों से दूर रहना होगा, अपना दिल शांत रखना होगा और साथ ही, अपनी क्षमताओं और सीमित साधनों के दायरे में अपना कर्तव्य निभाने और सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर चलने में सक्षम होना होगा। इस तरह, चाहे तुम्हारा पारिवारिक माहौल कितना भी चुनौतीपूर्ण क्यों न हो, या तुम्हारे व्यक्तिगत साधन कितने भी सीमित क्यों न हों, परमेश्वर के संरक्षण, आशीषों और मार्गदर्शन के तहत तुम अंततः सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर कदम-दर-कदम आगे बढ़ोगे। तब तुम्हारे उद्धार की आशा और ज्यादा मजबूत हो जाएगी। शायद अपने व्यक्तिगत अनुसरणों, प्रयासों और कीमत चुकाने के कारण तुम अंततः उद्धार पा लोगे। लेकिन कुछ लोग बीच राह में हार मान सकते हैं। उन्हें लगता है कि यह जीवन बहुत नीरस है, कि वे दुनिया से अलग-थलग हो गए हैं, कि उनका जीवन एकाकी और अकेला है, और उन्हें लगता है कि अगर वे विभिन्न विवादों में न उलझें तो उनके पास करने के लिए कुछ नहीं है, और वे अपना मूल्य खोजने या अपना मूल्य और भविष्य देखने में असमर्थ हैं। इसलिए, वे परमेश्वर द्वारा अपेक्षित सिद्धांतों को त्याग देते हैं, अकेले या चुप रहने के बजाय समाज की विभिन्न ताकतों के साथ घुलने-मिलने का विकल्प चुनते हैं। वे हर छोटी-मोटी बात पर हुज्जत करते हैं, संघर्षों और उलझनों में कूद जाते हैं, और उनके साथ लड़ते-झगड़ते हैं। वे विभिन्न विवादों में पड़ जाते हैं और महसूस करते हैं कि उनका जीवन पूर्ण, मूल्यवान और खुशहाल हो गया है—वे अब अकेले नहीं हैं। वह क्या है, जो ऐसे लोगों ने चुना है? उन्होंने अपने कर्तव्यों की उपेक्षा करने और सत्य का अनुसरण न करने का मार्ग चुना है। यह अंत है : जब मार्ग में यह बिंदु आ जाता है, तो उद्धार की कोई आशा नहीं रह जाती। क्या ऐसा ही नहीं है? बहुत-से लोगों को ये शब्द सुनकर अच्छा लगता है और उन्हें इन पर अमल करना ज्यादा चुनौतीपूर्ण नहीं लगता। लेकिन कुछ समय तक इनका अभ्यास करने के बाद वे सोचते हैं, “क्या इस तरह जीना बहुत थकाऊ नहीं है? लोग अक्सर मुझे अपरंपरागत व्यक्ति समझते हैं, मेरा कोई दोस्त नहीं, कोई साथी नहीं; यह बहुत एकाकी है, बहुत अलग-थलग है, और मेरा दैनिक जीवन नीरस लगता है। मुझे लगता है कि यह वास्तव में एक अच्छा या खुशहाल जीवन नहीं है।” फिर वे दोबारा अपने पिछले जीवन में लौट आते हैं, और ऐसे लोगों को निकाल दिया जाता है। उनकी उद्धार की आशा खत्म हो जाती है। वे अकेलापन नहीं सह सकते, न ही वे लोगों के इस समूह के बीच परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार जीने के कारण हँसी उड़ाए जाने और अलग-थलग किए जाने की कठिनाई सह सकते हैं। इसके बजाय, वे एक-दूसरे के खिलाफ लड़ने वाली विभिन्न ताकतों के बीच रहने का आनंद लेते हैं, और वे विभिन्न ताकतों में शामिल हो जाते हैं, उनमें फँस जाते हैं, उनसे झगड़ते हैं और उनके खिलाफ संघर्ष करते हैं। कहा जा सकता है कि ऐसे लोग परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से नहीं होते। इन उपदेशों को सुनने के बाद अगर उन्हें अच्छा महसूस होता भी हो, तो भी वे विभिन्न सामाजिक ताकतों से दूर होने के बजाय उनसे जुड़ने का विकल्प चुनते हैं। कहने की आवश्यकता नहीं कि ये यकीनन वे लोग नहीं हैं, जिनके लिए उद्धार अभीष्ट है। लेकिन, अगर तुम समाज में विभिन्न ताकतों से दूरी बनाने का रास्ता चुनकर अपनी आजीविका बनाए रखने की स्थिति के तहत तुम एक सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य निभाते हो, तो कम से कम, इस विकल्प के आधार पर तुम्हारे उद्धार की आशा है। तुम्हारे पास बुनियादी पूर्वापेक्षाएँ हैं; नतीजतन, उद्धार की यह आशा रहती है।
कलीसिया में एक ऐसा व्यक्ति हुआ करता था, जिसका किसी तरह एक ऐसे श्वेत व्यक्ति से परिचय हो गया जिसके पिता सांसद थे। हकीकत में सांसद होना कोई बड़ा पद नहीं है, लेकिन इस व्यक्ति को लगा कि एक विदेशी सांसद के बेटे के साथ बोलचाल का रिश्ता होना बहुत सम्मान की बात है। उसे लगा कि वह एक रुतबे वाला इंसान है। बाद में उसने इस सांसद-पुत्र को आसपास घुमाया और जो भी मिला, उससे उसका परिचय कराते हुए कहा, “यह सांसद का बेटा है।” मैंने पूछा, “सांसद का बेटा? इसके पिता किस स्तर के सांसद हैं? वे तुम्हारे लिए क्या कर सकते हैं?” उसने उत्तर दिया, “इसके पिता सांसद हैं!” मैंने कहा, “क्या इसके पिता के सांसद होने का तुमसे कोई लेना-देना है? तुम तो सांसद हो नहीं, तो दिखावा करने से क्या फायदा?” वह व्यक्ति खुद से बहुत खुश था। सिर्फ इसलिए कि उसने सांसद के बेटे के साथ संबंध स्थापित कर लिया था, वह जहाँ भी जाता था, अहंकारपूर्ण व्यवहार करता था और रास्ते में मिलने वाले परिचित चेहरों को देखकर भी अनदेखा कर देता था। लोग पूछते, “तुम हमें नमस्कार क्यों नहीं करते?” तो वह जवाब देता, “मैं सांसद के बेटे के साथ टहल रहा हूँ!” क्या तुम विश्वास कर सकते हो कि वह कितना अहंकारी था? यह छद्म-विश्वासी था या नहीं? (था।) परमेश्वर के घर में ऐसे लोगों का अंतिम परिणाम क्या होता है? (उन्हें निकाल दिया जाएगा।) इस व्यक्ति को कलीसिया से बाहर निकाला जाना चाहिए, क्योंकि वह एक छद्म-विश्वासी और अवसरवादी है। जिस किसी के पास भी पद और ताकत प्रतीत होते हैं, वह उसी व्यक्ति से जुड़ जाता है, और अगर वह देखता है कि परमेश्वर के घर में ताकत है, तो वह उससे जुड़ जाता है। नतीजतन, कुछ समय तक परमेश्वर के घर में रहने के बाद, उसे एहसास होता है कि यहाँ पैसा कमाने का कोई उपाय नहीं है, इसलिए वह खाना पहुँचाने वाला काम ढूँढ़ता है। लेकिन यह काम उसे पर्याप्त सम्मानजनक नहीं लगता और बाद में वह यह सोचकर सांसद के बेटे की चापलूसी करता है कि अब उसकी हैसियत है और उसे खाना पहुँचाने की जरूरत नहीं है। मुझे बताओ, क्या यह मूर्खतापूर्ण नहीं है? क्या कलीसिया में लोगों का एक हिस्सा ऐसा ही नहीं है? (हाँ, है।) कुछ लोग सिर्फ इसलिए घमंड में रहते हैं कि वे किसी पद या ताकत वाले व्यक्ति को जानते हैं। उन्हें लगता है कि उनकी अपनी अहमियत है और वे बाकियों से अलग हैं। कुछ लोगों के पास कोई छोटा आधिकारिक पद और उससे जुड़ी थोड़ी ताकत होती है, फिर भी वे मानते हैं कि वे कलीसिया में दूसरों से अलग हैं और उन्हीं की चलनी चाहिए। क्या ये लोग छद्म-विश्वासी नहीं होते हैं? (बिल्कुल, होते हैं।) फिर ऐसे लोग भी हैं, जिनका वास्तविक प्रभाव नहीं होता है, लेकिन वे हर समय डींग हाँकते हुए कहते हैं, “मैं राष्ट्रपति को जानता हूँ!” या, “मैं राष्ट्रपति के सचिव के चचेरे भाई के मित्र को जानता हूँ!” देखो, वे ऐसे जटिल संबंध बनाते हैं और फिर भी ऐसी बातें कहने का दुस्साहस रखते हैं। उनकी चमड़ी इतनी मोटी क्यों है? उनकी कहानी इतनी जटिल होती है कि कोई नहीं जानता कि वे वास्तव में किसके बारे में बात कर रहे हैं, और दूसरों को सुनने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं होती, क्योंकि वे इन चीजों की परवाह नहीं करते। सिर्फ ये व्यक्ति ही ऐसे मामलों को सबसे महत्वपूर्ण, सबसे अर्थपूर्ण और सबसे प्रभावशाली मानते हैं। कुछ लोग अक्सर कहते हैं कि वे मंत्रियों, निदेशकों या उच्च अधिकारियों से परिचित हैं। कुछ लोग तो यहाँ तक दावा कर देते हैं, “मैं कानून का पालन करने वाले समाज और अंडरवर्ल्ड दोनों पक्षों के लोगों को जानता हूँ; मैं दोनों रास्तों पर इतनी आसानी से चलता हूँ मानो समतल जमीन पर चल रहा हूँ।” दूसरे लोग कह सकते हैं, “मैं प्रांत-प्रमुख की भाभी को जानता हूँ।” और ऐसे लोग भी हैं जो दावा करते हैं, “मैं महापौर की माँ की कलीसियाई सहेली को जानता हूँ।” वे इन्हें डींग हाँकने के अवसर की तरह इस्तेमाल करते हैं। इन लोगों को जानने का क्या फायदा? क्या ये तुम्हें कुछ हासिल करने में मदद कर सकते हैं? अगर तुम महापौर, निदेशक, प्रांतीय गवर्नर, या गवर्नर के माता-पिता भी हो, तो भी क्या कलीसिया में तुम्हारी हैसियत का कोई उपयोग है? (नहीं है।) क्या महापौर, गवर्नर इत्यादि मानवजाति का हिस्सा नहीं हैं? क्या वे परमेश्वर से भी महान बन सकते हैं? ये छद्म-विश्वासी ऐसी ताकतों को महत्व देते हैं, क्या यह तथ्य घृणित नहीं है? (यह घृणित है।) कुछ लोग पुलिस-प्रमुख तक को जानने का दावा करते हैं, और अन्य कहते हैं, “मैं एक सामुदायिक पुलिस अधिकारी और स्थानीय थाने में थानेदार हुआ करता था,” जबकि दूसरे कहते हैं, “मैं एक मोहल्ला कार्यालय निदेशक हुआ करता था और लाल बाजूबंद पहनता था।” जब तुम लोग उन्हें इन तथाकथित ताकतों के बारे में बात करते सुनते हो, तो तुम्हें कैसा लगता है? कुछ छद्म-विश्वासी, जो सत्य का अनुसरण नहीं करते और सिर्फ नाम के विश्वासी हैं, इतने मूर्ख हैं कि वे नहीं जानते कि वे लोग जो कह रहे हैं, वह सच है या नहीं, इसलिए वे इसे तथ्यात्मक मानकर उनका खूब सम्मान करते हैं। लेकिन जो लोग सत्य का अनुसरण करते हैं, वे ये बातें सुनकर अपने दिल में क्या सोचते हैं? उनके बारे में वे क्या मूल्यांकन करते हैं? पहली ही नजर में वे बता सकते हैं कि वे छद्म-विश्वासी हैं, कि वे जिनके बारे में बात करते हैं, वे विभिन्न सांसारिक ताकतें और मामले हैं और वे परमेश्वर के घर में इन चीजों का दिखावा करने के लिए आए हैं। इस तथ्य के बारे में बात तक न करो कि वे किसी अधिकारी या सेलिब्रिटी के दूर के रिश्तेदारों को जानते हैं; अगर वे खुद भी अधिकारी या सेलिब्रिटी हों, तो भी परमेश्वर के घर में उनका कोई मूल्य नहीं है, इन पद-पदवियों का कोई मूल्य नहीं है, तो वे किस बात का दिखावा कर रहे हैं? क्या उनके पास सत्य है? क्या वे सिद्धांतों के अनुरूप अपना कर्तव्य निभा रहे हैं? वे कुछ नहीं हैं, फिर भी उनमें दिखावा करने की धृष्टता है! क्या यह शर्मनाक नहीं है? क्या यह घृणास्पद नहीं है? (है।) यह कितना घृणास्पद है? कानून के दोनों पक्षों में संपर्क होना ऐसी चीज है, जिसके बारे में वे डींग तक हाँक सकते हैं—क्या इसके बारे में डींग हाँकने वाले मूढ़ हैं? क्या वे मूर्ख नहीं हैं? (हैं।) वे खुद को मुसीबत में डालने से भी नहीं डरते। कानून के दोनों पक्षों से जुड़ना : क्या ऐसा व्यक्ति ठग नहीं है? परमेश्वर के घर में ठगों और चालाक लोगों को महत्व नहीं दिया जाता; वे छद्म-विश्वासियों से संबंधित हैं और उन्हें निष्कासित कर देना चाहिए! फिर भी वे इसे डींग हाँकने के अवसर की तरह इस्तेमाल करते हैं। क्या यह मूढ़ता नहीं है? क्या यह कोई गर्व करने लायक चीज है? वे इस पर घमंड तक करते हैं! कुछ लोग अपनी कलाइयों पर सोने की बड़ी चेन पहनते हैं और नशे की हालत में उसे दिखाकर लोगों से कहते हैं, “मेरे पूर्वज कब्र-चोर थे, और उनका यह कौशल मेरे खानदान में पीढ़ी-दर-पीढ़ी चला आ रहा है। मेरी कलाई की यह चेन देखो, यह मुझे फलाँ तारीख को देर रात एक भव्य मकबरे में मिली थी और मैं इसे ले आया। कैसी रही? प्रभावशाली, हुँह?” कुछ लोग यह सुनकर उनकी शिकायत कर देते हैं, और वे बिना यह जाने ही कि उन्होंने कौन-सा कानून तोड़ा है, गिरफ्तार कर लिए जाते हैं। लोग उनसे पूछते हैं, “क्या तुम्हारी कलाई पर बँधी यह सोने की चेन इसी युग की है? यह तो एक कलाकृति है!” वे मूर्खतापूर्वक खुद को दोषी ठहराते हैं। उन चीजों के बारे में आँख मूँदकर शेखी न बघारो, जो कभी घटित ही नहीं हुईं; खबरदार, कहीं पुलिस को आकर्षित न कर बैठो और परेशानी में न पड़ जाओ। चीजों के बारे में शेखी बघारकर मुसीबत में पड़ना आसान है; आग से खेलोगे तो जल जाओगे, और खुद को नष्ट कर बैठोगे—तुम इसी के लायक हो। तुम यह तक नहीं जानते कि क्या कहना है, तुम इसका सिर-पैर कुछ नहीं समझ सकते—क्या यह मूढ़ता नहीं है? (हाँ, है।) अगर तुम एक बार में बीस पाव रोटी खा लेने का दावा करते हो, तो यह ठीक है; यह सिद्धांत तोड़ने की बात नहीं है। ज्यादा से ज्यादा, लोग तुम्हें मूर्ख समझेंगे और गंभीरता से नहीं लेंगे, लेकिन यह कानून के खिलाफ नहीं है। विभिन्न सामाजिक ताकतों से दूर रहने का सिद्धांत अनिवार्य रूप से समाज के हर कोने में और जिस भी समूह में तुम खुद को पाते हो उसमें, बुद्धि रखना जरूरी होने से संबंध रखता है। यह वैसा ही है, जैसा परमेश्वर ने अनुग्रह के युग के दौरान कहा था, “इसलिये साँपों के समान बुद्धिमान और कबूतरों के समान भोले बनो” (मत्ती 10:16)। खुद को अच्छी तरह से सुरक्षित रखो; अगर तुम अपनी आजीविका बनाए रख सकते हो, तो उतना काफी है। समाज में खुद को स्थापित करने, उसका हिस्सा बनने, उसकी मान्यता और स्वीकार्यता हासिल करने के लिए सामाजिक ताकतों का लाभ उठाने का प्रयास न करो या उसका भ्रम न पालो। ये बेवकूफी भरे खयाल और पतनशील विचार हैं। मनुष्यों के परिप्रेक्ष्य सही किए जाने चाहिए। चाहे वे खुद को किसी भी सामाजिक परिवेश या समुदाय में पाएँ, अगर वे परमेश्वर के मार्ग का अनुसरण करते हैं तो इससे समाज या मानवजाति उन्हें अस्वीकार कर देगी। लेकिन जब तक परमेश्वर तुम्हें साँस देता रहता है, तुम जीवित रहने के मार्ग से वंचित नहीं रहोगे। तुममें ऐसा आत्मविश्वास होना चाहिए। लोगों का जीवन अपनी सुरक्षा, आजीविका, भविष्य या उनकी हर चीज सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न ताकतों पर निर्भर नहीं है। वह परमेश्वर के एक वचन, उसके आदेश, मार्गदर्शन और सुरक्षा पर निर्भर करता है—यह आत्मविश्वास तुम्हारे लिए बहुत जरूरी है। इसलिए, समाज में जीवित रहने के लिए, तुम्हारे जीवित रहने का मूल साधन अपनी आजीविका बनाए रखने के लिए पेशा चुनना होना चाहिए, न कि किसी तरह की ताकत पर निर्भर होना। अपना भरण-पोषण करने के लिए किसी पेशे पर निर्भर होना : यह सिद्धांत यह है कि लोग, परमेश्वर के मार्गदर्शन और आदेश के तहत, परमेश्वर द्वारा उन्हें दी गई हर चीज का आनंद लेते हैं, जिसमें भौतिक संपत्ति और धन भी शामिल है—अपनी व्यक्तिगत आजीविका पूरी करने के लिए विभिन्न सामाजिक ताकतों से भिक्षा या वितरण पर निर्भर नहीं होते। जीवित रहते हुए हर दिन जिन भौतिक चीजों और धन पर तुम निर्भर रहते हो, बहुत हद तक उस साँस की तरह जो तुम लेते हो, वह सब परमेश्वर से आता है, उसने दिया है, और तुम्हें जो परमेश्वर ने दिया है, उसे कोई छीन नहीं सकता। भौतिक चीजें, तुम्हारी कोई बाहरी चीज, जैसे तुम्हारी साँस, तुम्हें कोई और भीख में नहीं देता, और निश्चित रूप से, कोई उन्हें छीन नहीं सकता। अगर उन्हें तुम्हें परमेश्वर ने दिया है, तो कोई उन्हें छीन नहीं सकता। यह तथ्य हम अय्यूब के अनुभवों में देख सकते हैं, और तुम्हें यह आत्मविश्वास होना चाहिए। इस सच्चे आत्मविश्वास के साथ तुममें विभिन्न सामाजिक ताकतों से दूर रहने का सिद्धांत कायम रखने का मूलभूत आधार और प्रेरणा होगी। फिर, इस आधार पर, तुम्हारा शरीर और मन परमेश्वर के सामने शांत हो सकते हैं, तुम उसके सामने आ सकते हो और अपना तन, मन और आत्मा अर्पित कर सकते हो, अपना कर्तव्य निभा सकते हो, सत्य का अनुसरण कर सकते हो और उद्धार का सुंदर परिणाम प्राप्त कर सकते हो। तुम्हें यह ज्ञान होना चाहिए और ये सत्य समझने चाहिए। इसलिए, भले ही यह वाक्यांश “विभिन्न सामाजिक ताकतों से दूर रहो” आसान लगे, मामलों का सामना करते समय तुम्हें अपने निर्णय विभिन्न सिद्धांतों और वास्तविक स्थितियों के आधार पर तौलने चाहिए। संक्षेप में, अंतिम लक्ष्य सिर्फ उनसे दूर रहना और अलग होना नहीं है, बल्कि परमेश्वर के सामने शांत रहने, उसे अपना तन-मन अर्पित करने, और परमेश्वर के सामने आने, सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर चलने और अंततः उद्धार की आशा और अपनी इच्छाएँ पूरी करने के लिए विभिन्न सामाजिक ताकतों से दूर रहने के अभ्यास के तरीके और मार्ग का उपयोग करना है। नतीजतन, इस अंतिम उद्धार को प्राप्त करने के लिए तुम्हें विभिन्न सामाजिक ताकतों से दूर रहने के सिद्धांत का पालन करना चाहिए। यह एक आवश्यक मार्ग है, उद्धार प्राप्त करने के महत्वपूर्ण मार्गों में से एक है। क्या ऐसा नहीं है? (ऐसा ही है।) विभिन्न सामाजिक ताकतों से दूर रहने के सिद्धांत के बारे में स्पष्ट रूप से संगति कर ली गई है। क्या इस सिद्धांत के बारे में कुछ ऐसा है, जो तुम लोगों के लिए अस्पष्ट रह गया हो? जब कुछ विशेष परिस्थितियों की बात आती है, तो क्या तुम जानते हो कि उनसे कैसे निपटना है? अगर किसी खास ताकत से जुड़ना महज एक औपचारिकता है या किसी खास पेशे की जरूरत है, तो क्या यह विभिन्न सामाजिक ताकतों से दूर रहने के सिद्धांत के खिलाफ है? अगर यह तुम्हारे पेशे में सिर्फ एक जरूरत या औपचारिकता है, तो यह स्वीकार्य है। हम जिन ताकतों की बात करते हैं, उनका इससे, सतही संगठनों या समूहों से कोई संबंध नहीं है; यहाँ हम ताकतों की चर्चा कर रहे हैं। “ताकतों” से क्या तात्पर्य है? इसका तात्पर्य अधिकारियों, समूहों की ताकत, और उस ताकत से है जिससे ये चीजें संचालित होती हैं या समाज में उन्मत्त व्यवहार करती हैं, क्या ऐसा नहीं है? (हाँ, है।) अगर तुमने अभ्यास के इस सिद्धांत को समझ लिया हो, तो आओ, अगले सिद्धांत के बारे में संगति करें।
चौथा सिद्धांत है राजनीति से दूर रहना। राजनीति एक संवेदनशील विषय है। तीस साल पहले कलीसिया के भीतर भी कुछ अमुक-अमुक नेताओं, नीतियों या वर्तमान राजनीतिक मामलों पर चर्चा करने पर कई लोगों की आलोचना झेलनी पड़ती थी। कई लोग राजनीति की चर्चा आते ही उठकर चले जाने का बहाना ढूँढ़ लेते थे और ऐसे विषयों पर चर्चा करने का साहस न करते हुए कहते थे, “राजनीति की चर्चा करने का मतलब है कि तुम पार्टी और राष्ट्र के खिलाफ हो; तुम एक क्रांतिविरोधी हो और तुम्हें गिरफ्तार कर लिया जाएगा। अगर साथी भाई-बहनों का खयाल न होता, तो मैं तुम्हारी शिकायत कर देता।” उस समय लोग राजनीति को लेकर विशेष रूप से संवेदनशील होते थे। क्या अब भी ऐसा ही है? अगर कलीसिया के भीतर राजनीति पर चर्चा की जाती है या उसे उजागर किया जाता है, अगर बड़े लाल अजगर और शैतान को प्रकट किया जाता है, या राजनीतिक लगने वाले विषय उठाए जाते हैं, तो क्या ज्यादातर लोगों का अभी भी यही रवैया रहता है? क्या कुछ बदलाव नहीं आया? (हाँ, आया है।) पिछली सभाओं में जब हम ऐसी चीजों के बारे में बात करते थे कि कौन-सा राक्षस परमेश्वर का विरोध या ईसाइयों पर अत्याचार कर रहा था, तो कुछ लोग खाँसने लगते थे, मानो उनके गले में कुछ फँस गया हो, और वे अपना गला साफ करने के लिए बाहर चले जाते थे। थोड़ी देर बाद, वे थोड़ा सुनकर मन ही मन सोचते, “ओह, क्रांतिविरोधी बातचीत बंद हो गई,” और वापस आ जाते। लेकिन वापस आकर जब वे देखते कि तुम अभी भी उसी पर चर्चा कर रहे हो, तो वे फिर से खाँसकर चले जाते। मुझे आश्चर्य होता, वे खाँसते क्यों रहते हैं? हम शैतान को पहचानने के तरीके की चर्चा कर उसके सार और वीभत्स चेहरे को उजागर कर रहे थे। क्या यह कोई राजनीतिक चर्चा है? (नहीं।) कुछ मूर्ख, तथाकथित आध्यात्मिक लोगों ने, जिनमें आध्यात्मिक समझ की कमी है, इन विषयों का कड़ा विरोध किया। वे सत्य और वास्तविक राजनीतिक भागीदारी के बीच अंतर नहीं कर सके या यह नहीं समझ सके कि कम्युनिस्ट पार्टी का “क्रांतिविरोधियों” से क्या मतलब है। वे अज्ञानी थे, कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा उनका दिमाग खराब कर दिया गया था, और वे डरते थे कि उन्हें भी क्रांतिविरोधी माना जा सकता है। उन्होंने बड़े लाल अजगर को उजागर करने के विषय पर चर्चा करने या उसका उल्लेख करने का साहस नहीं किया। क्या बड़े लाल अजगर को उजागर करना राजनीति में भाग लेना है? क्या बड़े लाल अजगर से विद्रोह करना क्रांतिविरोधी है? (नहीं, ऐसा नहीं है।) अभी तुम लोग यह कहने का साहस कर रहे हो कि ऐसा नहीं है, लेकिन क्या तुम लोग मुख्य भूमि चीन में भी यही बात कहने का साहस करोगे? क्या परमेश्वर का अनुसरण करने वाले लोग राजनीतिक अपराधी हैं, जो पार्टी और राज्य के विरुद्ध कार्य करते हैं? (नहीं।) तुम क्यों कहते हो “नहीं”? राजनीतिक अपराधी कौन होता है? क्या तुमने राजनीति में भाग लिया है? (हमने नहीं लिया।) अगर तुमने राजनीति में भाग नहीं लिया है, तो तुम राजनीतिक अपराधी कैसे बन गए? (यह ठप्पा बड़ा लाल अजगर लगाता है।) अगर तुम चोरी में हिस्सा लेते हो, तो तुम चोर हो। अगर तुम हत्या में हिस्सा लेते हो, तो तुम हत्यारे हो। अगर तुम डकैती में हिस्सा लेते हो, तो तुम डाकू हो। ये आरोप किस आधार पर लगाए जाते हैं? ये आरोप तब लगाए जाते हैं, जब तुम इन आपराधिक गतिविधियों में शामिल होते हो और तुम उस आपराधिक व्यवहार के दोषी बन जाते हो। लेकिन अगर तुमने उसमें हिस्सा नहीं लिया है, तो उस अपराध और आरोप का तुमसे कोई लेना-देना नहीं। अगर तुम शैतान या पार्टी का अनुसरण नहीं करते, अगर तुम कम्युनिस्ट पार्टी का विरोध करते हो, बड़े लाल अजगर का विरोध करते हो, और बड़े लाल अजगर से नफरत करते हो, और अगर तुम परमेश्वर का अनुसरण करते हो, तो क्या तुम राजनीति में भाग ले रहे हो? (नहीं।) तो अगर वे तुम्हें क्रांतिविरोधी या राजनीतिक अपराधी होने का दोषी ठहराते हैं, तो क्या यह आरोप मान्य होगा? (नहीं, यह मान्य नहीं होगा।) यह मान्य नहीं होगा; यह बेतुका है। यह उस किसान की तरह है, जिसके पास कोई पेशा नहीं है, जो बस थोड़ी-सी जमीन पर खेती करता है, फसलें काटता है और उन्हें बेचने के लिए बाजार जाता है। तभी लाल आस्तीन-बैज वाला कोई व्यक्ति उसे देखकर कहता है, “अरे, क्या तुम्हारे पास वर्क-परमिट है? क्या तुम्हारे पास स्वास्थ्य-प्रमाणपत्र है?” किसान कहता है, “मुझे वर्क-परमिट कहाँ से मिलेगा? मेरा कोई पेशा नहीं है, मैं नौकरीपेशा नहीं हूँ, मुझे वर्क-परमिट की जरूरत क्यों होगी?” किसान के पास कोई पद या पेशा नहीं है, फिर भी उससे कुछ बेचने के लिए उसका वर्क-परमिट माँगा जाता है—क्या यह बेतुका नहीं है? जब तुम परमेश्वर में विश्वास कर उसका अनुसरण करते हो, तो बड़ा लाल अजगर तुम पर राजनीति में भाग लेने का आरोप लगाता है। तुमने राष्ट्रीय संविधान का कौन-सा अनुच्छेद तैयार करने में मदद की? तुमने किस राजनीतिक आंदोलन की योजना बनाने में मदद की? तुम किस स्तर के सरकारी अधिकारी हो? क्या तुमने सरकार के किसी भी स्तर पर आंतरिक असंतोष में भाग लिया था? तुमने किन राष्ट्रीय कांग्रेस-बैठकों या राज्य-सम्मेलनों में भाग लिया? (किसी में नहीं।) तुम्हारी पहुँच सूचनाओं तक नहीं है, राजनीति में भाग लेना तो दूर की बात है, फिर भी अंत में तुम्हें एक राजनीतिक अपराधी के रूप में दोषी ठहरा दिया गया है—क्या यह मनगढ़ंत आरोप नहीं है? मुझे बताओ, क्या यह देश बेतुका नहीं है? (बिल्कुल, है।) कुछ लोग अभी भी मूर्ख हैं। वे सोचते हैं, “अरे नहीं, एक राजनीतिक अपराधी या क्रांतिविरोधी के रूप में दोषी ठहराया जाना परमेश्वर के विश्वासियों के लिए बहुत बड़ा अपमान है!” क्या यह मूर्खतापूर्ण बात नहीं है? कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिन्हें परमेश्वर में विश्वास करने पर प्रति-क्रांतिकारी या राजनीतिक अपराधी के रूप में दोषी ठहराया गया और 15-20 साल की जेल की सजा सुनाई गई, अपनी रिहाई पर उन्हें लगता है कि यह एक अपमानजनक मामला है। उन्हें लगता है कि वे सहपाठियों, दोस्तों और परिवार सहित किसी को भी अपना मुँह नहीं दिखा सकते। खासकर जब लोग उँगलियाँ उठा रहे होते हैं और उनकी पीठ-पीछे कानाफूसी कर रहे होते हैं, तो उन्हें लगता है कि उन्होंने कुछ शर्मनाक किया है। क्या यह मूर्खतापूर्ण नहीं है? (बिल्कुल है।) यह युग तुम्हें अस्वीकार करता है, और बड़ा लाल अजगर तुम्हें सताता है—क्या ये न्यायसंगत हैं? अगर सारी मानवता तुम पर अत्याचार करने के लिए उठ खड़ी होती है, तो क्या इसका मतलब यह है कि सत्य अब सत्य नहीं रहा? सत्य हमेशा सत्य ही रहता है, चाहे जितने भी लोग उसके विरोध में खड़े हो जाएँ। सत्य का सार अपरिवर्तित रहता है, जैसे कि शैतान का दुष्ट सार अपरिवर्तित रहता है। सत्य को चाहे कोई न पहचाने या स्वीकारे, फिर भी वह सत्य है, और यह तथ्य कभी नहीं बदलेगा। अगर पूरी मानवजाति परमेश्वर के खिलाफ उठ खड़ी हो और उसके वचन स्वीकारने से मना कर दे, तो यह दर्शाएगा कि मानवजाति अभी भी दुष्ट है। शैतान की बुराई की ताकत सिर्फ इसलिए धार्मिकता नहीं बन सकती, क्योंकि उसके पीछे कई लोग या बड़ी ताकतें हैं। दस हजार बार दोहराया गया झूठ सच हो जाता है; यह शैतान की भ्रांति है, शैतान का तर्क है, सत्य नहीं। अगर विश्वासियों को पूरी दुनिया नकार दे और बड़ा लाल अजगर सताए और बदनाम करे तो क्या उन्हें शर्मिंदा होना चाहिए? (नहीं।) उन्हें शर्मिंदा नहीं होना चाहिए। जब तुम धार्मिकता की खातिर उत्पीड़न सहते हो, तो यह साबित होता है कि यह दुनिया वास्तव में बुरी है, और यह परमेश्वर के इन वचनों की पुष्टि करता है : सारा संसार उस दुष्ट के वश में है। जब तुम्हें धार्मिकता की खातिर सताया जाता है, तो चाहे तुम्हारा मार्ग कितना भी उचित हो और तुम्हारे कार्य कितने भी न्यायसंगत क्यों न हों, कोई भी खड़ा होकर तुम्हारी सराहना नहीं करेगा। इसके बजाय, इस दुनिया में लोग जो भी गंदे काम करते हैं, अगर वे उन्हें आकर्षक ढंग से प्रस्तुत कर प्रचारित करते हैं, तो जनता के सामने पेश किए जाने पर वे सकारात्मक चीजें बन जाती हैं। वे लोग दुष्ट हैं; उनके सारे कृत्य गंदी चालें हैं।
आओ, राजनीति से दूर रहने के इस मामले पर संगति जारी रखें। राजनीति क्या है? इससे पहले कि तुम यह समझ सको कि राजनीति से कैसे दूर रहा जाए, तुम्हें यह जानना होगा कि राजनीति क्या है। क्या है राजनीति? इसमें सबसे बुनियादी स्तर पर पद सँभालने और एक अधिकारी के रूप में करियर बनाने की इच्छा शामिल होती है। यह राजनीति का एक क्षेत्र है। राजनीति का अर्थ है पद सँभालना और एक अधिकारी के रूप में करियर बनाना। उच्च श्रेणी के अधिकारियों से लेकर निम्न श्रेणी के अधिकारियों तक, सरकारी कार्यालयों में छोटे विभाग-प्रमुखों और अनुभाग-प्रमुखों से लेकर पार्टी शाखा-सचिवों और पार्टी समिति-सचिवों, निदेशकों, ब्यूरो-प्रमुखों, मंत्रियों और विभिन्न स्तरों के प्रमुखों तक—ये सभी राजनीति की श्रेणी में आते हैं। राजनीति से क्या तात्पर्य है? इसे बताने का सबसे सीधा तरीका यह है कि यह ताकत और अधिकार है, यह समाज में एक तरह के अधिकार का प्रतीक है। यह राजनीति का एक पहलू है। राजनीति के अंतर्गत और क्या आता है? (परमेश्वर, क्या राजनीति राज्य की राजनीतिक ताकत हथियाने, स्थापित करने या मजबूत करने के संघर्ष से भी संबंधित नहीं है?) कार्मिक संघर्ष और सत्ता-संघर्ष सभी राजनीति से संबंधित हैं। इसमें और क्या आता है? इन संघर्षों में इस्तेमाल की जाने वाली योजनाएँ, रणनीतियाँ और तरीके, साथ ही राजनीति और सत्ता से संबंधित विभिन्न चुनाव, अभियान और प्रचार के प्रयास—ये सभी राजनीति के अंतर्गत आते हैं। यह राजनीति की सबसे सीधी समझ है, जो हम प्राप्त कर सकते हैं। संगठन और पार्टी के करीब आना, और प्रगति के लिए प्रयास करना—क्या साधारण लोगों के लिए यही राजनीति नहीं है? वे इसे “छोटा व्यक्ति जो बड़ी तस्वीर देख सकता है” कहते हैं। देखो, हालाँकि उनका पद निम्न है, लेकिन परिदृश्य व्यापक है। इसलिए वे तरक्की के लिए प्रयास करते हुए संगठन और पार्टी के करीब जाते हैं। वे कम्युनिस्ट यूथ लीग में शामिल होकर शुरुआत करते हैं, फिर कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो जाते हैं। धीरे-धीरे, वे पार्टी के करीब आते हैं, पार्टी के निर्देश सुनते हैं, उसकी मार्गदर्शक नीतियों और दिशा का अनुसरण करते हैं। वे पार्टी द्वारा सूचित दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन करते हैं, उन्हें लागू करते हैं और पार्टी-सदस्य के गुणों को पूरी तरह से आत्मसात कर लेते हैं। वे पार्टी के लिए बोलते और कार्य करते हैं, पार्टी के हितों, उसके शासन, उसकी हैसियत और लोगों के मन में उसकी छवि की रक्षा करते हैं। वे पार्टी के लिए हर चीज की रक्षा करते हैं। क्या यह सब राजनीति का हिस्सा नहीं है? (हाँ, है।) तुम संगठन की रक्षा करते हो, वह संगठन पार्टी है। चाहे वह कोई भी राजनीतिक पार्टी या उस पार्टी द्वारा गठित कोई भी संगठन हो, जैसे ही तुम उसमें भाग लेना शुरू करते हो, वैसे ही तुम राजनीति में भाग ले रहे होते हो। क्या तुम लोगों में से किसी ने भाग लिया है? (नहीं।) तब तुम निश्चिंत हो सकते हो; तुम राजनीतिक अपराधी नहीं हो, न ही तुम में खुद को राजनीतिक अपराधी कहने की योग्यता है। राजनीतिक अपराधी कहलाने के लिए कम से कम विदेश जाकर एक मानवाधिकार संगठन या समूह स्थापित करना होगा, विभिन्न मानवाधिकार गतिविधियों में शामिल होना होगा, वर्तमान सरकार की नीतियों और शासन का और साथ ही सरकार के विभिन्न कार्यों का विरोध करना होगा। इसके अतिरिक्त, उन्हें विनियमों, प्रणालियों, नियमों और एक संविधान के साथ-साथ विभिन्न खंडों की स्थापना करने की भी जरूरत होगी, जिनका संगठन के सदस्यों को पालन करना होगा। वह संगठित और अनुशासित होना चाहिए, जिसमें अगुआ और कामकाजी सदस्य ऊपर से नीचे तक एक पूर्ण और व्यवस्थित संगठनात्मक संरचना गठित करें। तभी उसे एक राजनीतिक समूह कहा जा सकता है और उस राजनीतिक समूह के भीतर संचालित गतिविधियों को ही राजनीति में भाग लेना माना जा सकता है। क्या तुम लोगों में से किसी ने इसमें भाग लिया है? अगर नहीं, तो क्या तुम्हारा इसमें भाग लेने का कोई इरादा है, या क्या तुम्हारी किसी राजनीतिक पार्टी में शामिल होने और कम से कम विधायक या सलाहकार जैसा पद सँभालने की योजना है? क्या कोई है जो इस विवरण पर खरा उतरता हो? अगर तुम्हारी ऐसी योजनाएँ हैं, तो इसका मतलब है कि तुम पहले ही राजनीति में शामिल हो; भले ही तुमने अभी तक भाग न लिया हो, तुम्हारा ऐसा करने का इरादा पहले से है। लेकिन अगर तुम्हारा ऐसा कोई इरादा नहीं है, तो यह काफी अच्छी बात है। क्या एक नागरिक के रूप में चुनाव-मतदान में भाग लेना राजनीति में शामिल होना माना जाता है? अगर किसी देश की व्यवस्था स्वतंत्रता और लोकतंत्र पर आधारित है, और नागरिकों को वोट देने का अधिकार है, तो क्या अमुक उम्मीदवार को वोट देना राजनीति में शामिल होना माना जाता है? (नहीं माना जाता।) नहीं माना जाता, यह उस देश की नीति और व्यवस्था है, जहाँ लोगों को वोट देने का अधिकार है। इसे राजनीति में भाग लेना नहीं माना जाता। तुम किसी निश्चित व्यक्ति का चयन करके सिर्फ अपनी व्यक्तिगत पसंद व्यक्त करते हो, उसके राजनीतिक सत्ता-संघर्ष में शामिल नहीं होते। किसी राजनीतिक गतिविधि का तुमसे कोई संबंध नहीं होता। तुम बस उस देश के नागरिक के रूप में अमुक व्यक्ति को वोट देते हो। यह कार्य तुम्हारे नागरिक-अधिकारों का सीधा प्रयोग है और यह राजनीतिक गतिविधि या व्यवहार का कोई रूप नहीं है।
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