सत्य का अनुसरण कैसे करें (21) भाग दो

करियर का त्याग करने के विषय के संबंध में तीसरा सिद्धांत क्या है, जिसका अभ्यास करने की परमेश्वर लोगों से अपेक्षा करता है? वह है विभिन्न सामाजिक ताकतों से दूर रहना। इसे समझना थोड़ा कठिन है, है न? (हाँ।) भले ही इसे समझना थोड़ा कठिन हो, लेकिन यह भी एक सिद्धांत ही है। यह ऐसा सिद्धांत है, जिसका लोगों को इस समाज में जीवित रहने के लिए ईमानदारी से पालन करना चाहिए। यह एक रवैया, नजरिया और जीवित रहने का तरीका भी है, जो इस समाज में जीवित रहने के लिए लोगों में होना चाहिए, बल्कि यह कहना सटीक रहेगा कि यह समाज में जीवित रहने के लिए एक प्रकार की बुद्धिमत्ता है। विभिन्न सामाजिक ताकतों से दूर रहना सतही तौर पर एक ऐसा मुद्दा प्रतीत हो सकता है जो हर व्यक्ति से जुड़ा हुआ न हो, लेकिन वास्तव में, ये विभिन्न सामाजिक ताकतें सभी लोगों के आसपास छिपी हुई हैं। वे अमूर्त ताकतें हैं, अमूर्त तत्त्व हैं, जो हरेक के आसपास मौजूद हैं। जब तुम कोई व्यवसाय चुनते हो, चाहे वह व्यवसाय किसी भी सामाजिक वर्ग का हो, वह संबंधित व्यवसाय की महत्वपूर्ण ताकत से घिरा होता है। चाहे तुम किसी उच्चस्तरीय व्यवसाय में संलग्न हो या निम्नस्तरीय व्यवसाय में, उस व्यवसाय के भीतर लोगों के संबंधित समूह होते हैं। अगर, समाज के भीतर, इन समूहों के पास कुछ वर्षों का अनुभव, कुछ योग्यताएँ या कुछ सामाजिक आधार होते हैं, तो वे निस्संदेह एक अमूर्त ताकत बन जाते हैं। उदाहरण के लिए, अध्यापन को शायद उच्च स्तर का व्यवसाय न माना जाए, लेकिन यह निम्न स्तर का पेशा भी नहीं है। यह खेती या विभिन्न प्रकार के शारीरिक श्रम जैसे व्यवसायों से कुछ हद तक उच्च है, लेकिन समाज में वास्तव में उच्चस्तरीय व्यवसायों से कुछ हद तक निम्न है। इस व्यवसाय में, तुम्हारे द्वारा किए जाने वाले सरल कार्य के अलावा, इस उद्यम में अन्य अनेक लोगों की बाढ़ आई हुई है। इसलिए, इस उद्यम में लोगों को उनकी वरिष्ठता और अनुभव की गहराई के आधार पर अलग किया जाता है। इस पेशे के ऊपरी स्तर ऐसा वर्ग बनाते हैं, जो कर्मियों, प्रवृत्तियों, नीतियों, विनियमों और नियमों जैसी चीजें नियंत्रित करता है; वह पेशे के भीतर एक तदनुरूपी ताकत बनाता है। उदाहरण के लिए, अध्यापन के पेशे में अगुआ, उच्चाधिकारी कौन है जो पेशे का नेतृत्व कर इसे नियंत्रित करता है, और जो तुम्हारी आजीविका और वेतन तय करता है? कुछ देशों में यह शिक्षक-संघ हो सकता है; चीन में यह शिक्षा ब्यूरो और शिक्षा मंत्रालय है। ये संस्थाएँ समाज में अध्यापन के पेशे से संबंधित ताकतों के क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करती हैं। इसी प्रकार, किसानों के मामले में, उनका अगला उच्चाधिकारी कौन है? वह एक टीम-अगुआ, ग्राम-प्रधान या बस्ती का मुखिया हो सकता है, और अब तो कृषि प्रबंधन समितियाँ भी शुरू की जा रही हैं। क्या यह इस पेशे के अनुरूप ताकतों का क्षेत्र नहीं है? (बिल्कुल, है।) कहा जा सकता है कि ताकतों के ये विभिन्न क्षेत्र तुम्हारे विचारों, तुम्हारी कथनी-करनी, यहाँ तक कि तुम्हारी आस्था और तुम्हारे जीवन में अपनाए जाने वाले मार्ग को प्रभावित और नियंत्रित करते हैं। ये सिर्फ तुम्हारी आजीविका को नियंत्रित नहीं करते; ये तुमसे संबंधित हर चीज को नियंत्रित करते हैं। खासकर बड़े लाल अजगर के देश में अविश्वासी हमेशा वैचारिक सेमिनार करते हैं, अपने विचार बताते हैं, और जाँच करते हैं कि उनके विचारों में कोई समस्या तो नहीं, उनमें कोई पार्टी-विरोधी, राज्य-विरोधी या मानव-विरोधी तत्त्व तो शामिल नहीं। चाहे तुम जिस भी पेशे में हो, वह ज्यादा पारंपरिक व्यवसाय हो या ज्यादा आधुनिक, तुम्हारे आसपास पेशेवर क्षेत्र में विभिन्न तदनुरूपी ताकतें मौजूद होंगी। कुछ ताकतें तुम्हारे अगले उच्चाधिकारी हैं, जो तुम्हारे वेतन और जीवन-यापन के खर्च जारी करने के लिए सीधे जिम्मेदार हैं। अन्य ताकतें अमूर्त हो सकती हैं। उदाहरण के लिए, मान लो कि तुम कार्यस्थल पर एक गौण कर्मचारी हो; तुम्हारे पेशेवर क्षेत्र में विभिन्न ताकतें काम करेंगी। कुछ लोग प्रबंधक के साथ घनिष्ठता बढ़ाते हैं और हमेशा उसकी परिक्रमा करते रहते हैं—यह एक प्रकार की ताकत है। फिर एक ऐसी ताकत का समूह है जो सीईओ के करीब रहता है और खुद को सीईओ के मामले सँभालने के लिए समर्पित करता है। एक दूसरा समूह विपणन विभाग के निदेशक का करीबी हो सकता है। ये सब विभिन्न ताकतें मौजूद हैं। इन ताकतों का उद्देश्य क्या है? ये ताकतें अस्तित्व में कैसे आती हैं? हर व्यक्ति जो चाहता है वह ले रहा है, साथ ही अपने उद्देश्य प्राप्त करने और अस्तित्व कायम रखने के लिए सत्ता में बैठे लोगों की तरफदारी और चापलूसी कर रहा है, जिससे विभिन्न ताकतें निर्मित होती हैं। कुछ ताकतें एक नजरिये की वकालत करती हैं, तो दूसरी ताकतें अलग नजरिये की वकालत करती हैं। कुछ ताकतों में नियमों के अनुसार काम करने और कार्यस्थल के मानदंडों का पालन करने की प्रवृत्ति होती है, जबकि दूसरी ताकतें कानून और पेशेवर नैतिकता दोनों की उपेक्षा करते हुए ज्यादा घृणित तरीके से कार्य कर सकती हैं। ऐसे परिवेश में रहते हुए, जहाँ ये विभिन्न ताकतें आपस में मिलती हैं, तुम्हें कैसे चुनना चाहिए? तुम्हें कैसे जीवित रहना चाहिए? क्या तुम्हें पार्टी-संगठन के या किसी प्रबंधक या सीईओ के करीब जाना चाहिए? क्या तुम्हें किसी निदेशक या अनुभाग-प्रमुख के साथ घनिष्ठता बढ़ानी चाहिए, या तुम्हें किसी ब्यूरो-प्रमुख या फैक्टरी-निदेशक के साथ तालमेल बिठाना चाहिए? (इनमें से किसी से नहीं।) लेकिन जीवित रहने के लिए लोग अक्सर अपनी गरिमा, अपने आचरण के सिद्धांत और खासकर अपने आचरण की सीमाएँ त्याग देते हैं। इन ताकतों के जटिल परिदृश्य में लोग अनजाने ही पक्ष लेने, जमाने के साथ चलने और विभिन्न ताकतों के अनुरूप होने का विकल्प चुनेंगे। वे ऐसी ताकत ढूँढ़ते हैं जो उन्हें स्वीकार कर उनकी रक्षा करे, या वे ऐसी ताकत ढूँढ़ते हैं जिसे स्वीकार करना उनके लिए आसान हो, जिसे वे नियंत्रित कर सकें, और वे उसके करीब जाते हैं या उसमें समाहित तक हो जाते हैं। क्या यह मानवीय प्रवृत्ति नहीं है? (है।) क्या यह एक तरह का जीवित रहने का कौशल या तरीका नहीं है? (हाँ, है।) चाहे यह इस समाज और विभिन्न समूहों के अनुकूल होने के लिए लोगों की जन्मजात प्रवृत्ति हो या कौशल, क्या यह अभ्यास का वह सिद्धांत है जो आचरण करने के लिए व्यक्ति में होना चाहिए? (नहीं।) कुछ लोग कह सकते हैं, “भले ही तुम अभी कह रहे हो कि यह वह सिद्धांत नहीं है, लेकिन जब तुम वास्तव में खुद को उस स्थिति में पाओगे, तो वास्तविक जीवन में ऐसी किसी ताकत का पक्ष और उसकी शरण लेने का फैसला करोगे, जो तुम्हें लाभ पहुँचाए और तुम्हें जीवित रहने दे। और मन ही मन तुम्हें यहाँ तक लग सकता है कि लोगों को जीने के लिए इन ताकतों पर भरोसा करना चाहिए, कि वे स्वतंत्र रूप से नहीं जी सकते, क्योंकि स्वतंत्र रूप से जीने से वे धौंस के शिकार हो सकते हैं। तुम हमेशा स्वतंत्र और अलग-थलग नहीं रह सकते; तुम्हें विभिन्न ताकतों के आगे झुकना और उनके करीब रहना सीखना चाहिए। तुम्हें चौकस रहना चाहिए, लोगों की चापलूसी करनी चाहिए और अवसर की माँग के अनुसार प्रदर्शन करना चाहिए। तुम्हें जमाने के साथ चलना चाहिए, चापलूसी में माहिर होना चाहिए, रुझान परखने चाहिए और तुममें तीव्र अंतर्ज्ञान होना चाहिए। तुम्हें अपने अगुआओं की पसंद-नापसंद, उनके मिजाज और व्यक्तित्व, उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि, वे किस तरह की चीजें सुनना पसंद करते हैं, उनकी उम्र, उनके जन्मदिन, उनके सूट, जूते और लैदर-बैग के पसंदीदा ब्रांड, उनके पसंदीदा रेस्तरां, कार-ब्रांड, कंप्यूटर और फोन ब्रांड, वे अपने कंप्यूटर पर किस तरह के सॉफ्टवेयर इंस्टॉल करना पसंद करते हैं, वे अपने खाली समय में किस तरह के मनोरंजन का आनंद लेते हैं, वे किसके साथ जुड़ना पसंद करते हैं और वे किन विषयों पर चर्चा करते हैं, आदि के बारे में पता लगाकर उनसे परिचित होना चाहिए।” खुद को बचाने की खातिर तुम अनजाने ही और स्वाभाविक रूप से उनके करीब जाओगे, उनके साथ जुड़ोगे, अत्यधिक नमनशील होगे और अपने अगुआओं और सहकर्मियों को संतुष्ट करने के लिए और खुद को महान कौशल के साथ प्रबंधित करने और अपने कार्यस्थल पर हर चीज नियंत्रित करने के लिए वे चीजें करोगे जिन्हें तुम करना नहीं चाहते और वे चीजें कहोगे जिन्हें तुम कहना नहीं चाहते, और यह सुनिश्चित करोगे कि तुम्हारा जीवन और अस्तित्व सुरक्षित रहे। चाहे तुम्हारे कार्यकलाप नैतिकता और आत्म-आचरण की सीमाओं का उल्लंघन करते हों, या चाहे इसका मतलब अपनी गरिमा तक त्यागना हो, तुम परवाह नहीं करते। लेकिन ठीक यही उदासीनता तुम्हारे पतन की शुरुआत की निशानी है, और यह इस बात का संकेत है कि तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता। इसलिए, सतही तौर पर कोई उन लोगों को धिक्कार नहीं सकता, जिनके पास अपने जीवन और अस्तित्व की खातिर विभिन्न सामाजिक ताकतों के करीब जाने के अलावा कोई चारा नहीं है। हालाँकि, लोग जिन व्यवहारों को प्रदर्शित करते हैं, जिन विकल्पों को चुनते हैं और चलने के लिए जिन मार्गों का चुनाव करते हैं, वे उनकी मानवता और चरित्र विकृत कर देते हैं। साथ ही, जब लोग विभिन्न ताकतों के करीब आते हैं या उनसे जुड़े होते हैं, तब वे अपना जीवन बेहतर और अपने अस्तित्व की स्थितियाँ और ज्यादा अनुकूल बनाने हेतु इन ताकतों को खुश और संतुष्ट करने के लिए लगातार विभिन्न योजनाएँ और रणनीतियाँ लागू करना सीखते हैं। जितना ज्यादा वे ऐसा करते हैं, उन्हें यह वर्तमान अवस्था और ये रिश्ते बनाए रखने के लिए उतनी ही ज्यादा ऊर्जा और समय की जरूरत होती है। इसलिए, तुम्हारे सीमित समय और दिनों के भीतर तुम्हारे कहे हर शब्द, तुम्हारे किए हर कार्य और तुम्हारे जिए हर दिन में सिर्फ अर्थ की कमी ही नहीं होती; वे सड़े हुए होते हैं। इसका क्या मतलब है कि वे सड़े हुए होते हैं? इसका मतलब यह है कि हर दिन तुम्हें और ज्यादा भ्रष्ट बनाता है, इस हद तक कि तुम न तो इंसान के समान रहते हो, न ही भूत के। इस पृष्ठभूमि में, परमेश्वर के सामने आने के लिए तुम्हारा हृदय शांत नहीं होता, और निश्चित रूप से, तुम्हारे पास अपना कर्तव्य निभाने के लिए पर्याप्त समय भी नहीं रहता। तुम संभवतः अपना कर्तव्य निभाने में पूरा तन-मन नहीं लगा सकते, और साथ ही, तुम संभवतः सत्य का अनुसरण करने में भी अपना पूरा तन-मन नहीं लगा सकते। इसलिए तुम्हारे उद्धार की संभावनाएँ सूनी हैं, तुम्हारी आशाएँ धुँधली हैं। चूँकि तुमने विभिन्न सामाजिक ताकतों में निवेश किया है, उनके करीब जाना चुना है और उनके साथ जुड़कर उन्हें स्वीकारने का विकल्प चुना है, इसलिए इस विकल्प के परिणाम ये हैं कि तुम्हें यह वर्तमान अवस्था बनाए रखने के लिए अपना पूरा तन-मन समर्पित करते हुए अपने दिन बिताने होंगे। तुम तन-मन से थका हुआ महसूस करते हो, मानो तुम हर दिन कोल्हू में पिस रहे हो, और फिर भी तुम्हें अपने चुने हुए विकल्प के कारण दिन-ब-दिन ऐसा ही करना पड़ता है। विभिन्न ताकतों के इस जटिल परिवेश में, जब तुम उनके साथ जुड़ जाते हो, उनके द्वारा कहा गया हर शब्द, उसमें मौजूद रुझान, साथ ही आने वाले मामले, हर व्यक्ति के व्यवहार और उनके अंतरतम विचार, और खासकर तुम्हारे अगले वरिष्ठ, इन ताकतों का उच्चतम स्तर, जो कुछ सोच रहे हैं—ये सभी वे चीजें हैं, जिनका तुम्हें मूल्यांकन करना चाहिए और जिनके बारे में समयोचित तरीके से जानकारी इकट्ठी करनी चाहिए। तुम इसमें ढिलाई बरतने या इसे नजरअंदाज करने का जोखिम नहीं उठा सकते। वे क्या सोच रहे हैं, पर्दे के पीछे क्या कार्रवाई कर रहे हैं, उनकी क्या योजनाएँ और इरादे हैं, यहाँ तक कि वे हर व्यक्ति के लिए क्या योजना बना रहे हैं और क्या गणना कर रहे हैं, वे उनके लिए क्या निर्णय ले रहे हैं और उनके प्रति उनके क्या रवैये हैं—अगर तुम इन चीजों को पूरी तरह से जानना चाहते हो, तो तुम्हें अपने दिल में उस परिस्थिति की गहरी समझ होनी चाहिए। अगर तुम उन्हें गहराई से समझना चाहते हो, तो तुम्हें इन चीजों का अध्ययन कर इनमें महारत हासिल करने के लिए अपनी सारी ऊर्जा समर्पित करनी चाहिए। तुम्हें उनके साथ भोजन करना चाहिए, बातचीत करनी चाहिए, उन्हें फोन पर कॉल करना चाहिए, काम पर उनके साथ ज्यादा बातचीत करनी चाहिए, यहाँ तक कि छुट्टियों के दौरान उनके करीब आना चाहिए और उनकी गतिविधियों पर नजर रखनी चाहिए। नतीजतन, चाहे तुम्हारे दिन कैसे भी हों, चाहे वे खुशी से भरे हों या दर्द से, भले ही तुम्हारा मन अपना कर्तव्य निभाने और सत्य का अनुसरण करने का हो, लेकिन क्या तुम अपने पूरे तन-मन से अपना कर्तव्य निभाने के लिए खुद को पर्याप्त शांत करने का समय निकाल पाओगे? (नहीं निकाल पाएँगे।) ऐसी स्थिति में, तुम्हारे लिए परमेश्वर में विश्वास और अपना कर्तव्य निर्वहन खाली समय में पूरा किए जाने वाले एक तरह के शौक से ज्यादा कुछ नहीं होगा। परमेश्वर में आस्था के लिए तुम्हारी अपेक्षाएँ और इच्छा चाहे जो भी हो, वर्तमान स्थिति में परमेश्वर में विश्वास करना और अपना कर्तव्य निभाना संभवतः तुम्हारी इच्छाओं की सूची में आखिरी चीजें ही हैं। जहाँ तक सत्य का अनुसरण करने और उद्धार प्राप्त करने की बात है, तो शायद तुम उनके बारे में सोचने की हिम्मत न करो या उनके बारे में सोच भी न सको—क्या यह सही नहीं है? (हाँ, है।) इसलिए, चाहे तुम किसी भी कार्य-परिवेश में हो, अगर तुम विभिन्न ताकतों के करीब आना या उनके साथ जुड़ना चाहते हो, या अगर तुम पहले ही उनके करीब आ चुके और उनके साथ जुड़ चुके हो, तो चाहे तुम्हारे कारण या बहाने कुछ भी हों, तुममें से किसी के लिए भी अंतिम परिणाम सिर्फ यह हो सकता है कि तुम्हारे उद्धार की आशा हवा में उड़ जाती है। इसका सबसे सीधा नुकसान यह है कि तुम्हें परमेश्वर के वचन पढ़ने या अपना कर्तव्य निभाने के लिए मुश्किल से ही समय मिलेगा। निस्संदेह, तुम्हारे लिए परमेश्वर के समक्ष हृदय शांत रखना या परमेश्वर से ईमानदारी से प्रार्थना करना असंभव है—तुम यह न्यूनतम स्थिति प्राप्त करने में भी असमर्थ रहोगे। चूँकि तुम जिस परिवेश में खुद को पाते हो, वह लोगों और घटनाओं के कारण अत्यधिक जटिल है, इसलिए अगर तुम विभिन्न ताकतों में समाहित हो जाते हो, तो यह दलदल में पैर रखने के समान है—अगर उसमें घुस गए तो बाहर निकलना आसान नहीं होता। इसका क्या मतलब है कि उसमें से बाहर निकलना आसान नहीं होता? इसका मतलब यह है कि अगर तुम विभिन्न ताकतों के क्षेत्र में कदम रखते हो, तो तुम इन ताकतों से उलझे विभिन्न मामलों और उनसे उत्पन्न होने वाले तमाम तरह के विवादों से बचने में खुद को असमर्थ पाओगे। तुम खुद को लगातार विभिन्न लोगों और घटनाओं में उलझा हुआ पाओगे और कोशिश करने पर भी तुम उनसे बच नहीं पाओगे, क्योंकि तुम पहले ही उन्हीं में से एक बन चुके हो। इसलिए, इन ताकतों के क्षेत्र में होने वाली हर घटना तुमसे जुड़ी होती है और वह तुम्हें खुद में शामिल कर लेगी, जब तक कि कोई खास स्थिति पैदा न हो जाए; अर्थात्, तुम यहाँ लाभ और हानि के साथ-साथ विवादों के प्रति उदासीन रहते हो, और हर चीज एक दर्शक के परिदृश्य से देखते हो। उस स्थिति में, तुम्हारा इन विभिन्न विवादों या किसी संभावित दुर्भाग्य से दूर रहना संभव है। लेकिन जैसे ही तुम इन ताकतों के साथ जुड़ते हो, जैसे ही तुम उनके करीब जाते हो, जैसे ही तुम पूरे दिल से उनके बीच होने वाली हर घटना में भाग लेते हो, वैसे ही तुम निस्संदेह फँस जाओगे। तुम दर्शक नहीं बने रह पाओगे; तुम सिर्फ भागीदार ही हो सकते हो। और एक भागीदार के रूप में तुम इन ताकतों के क्षेत्र का शिकार हो जाओगे।

कुछ लोग कहते हैं, “चाहे तुम जिस भी व्यवसाय-क्षेत्र में या जिस भी समूह में हो, दूसरों से धौंस मिलना कोई बड़ी बात नहीं—महत्वपूर्ण बात यह है कि तुम बच सकते हो या नहीं। अगर तुम खुद को संगठनों या विभिन्न ताकतों के साथ नहीं जोड़ते, तो समाज या विभिन्न समूहों में अपना कोई सहारा न होने के कारण तुम सफल नहीं हो पाओगे।” क्या सचमुच ऐसा ही है? (ऐसा नहीं है।) विभिन्न सामाजिक समूहों में लोगों के विभिन्न ताकतों के साथ घनिष्ठता बढ़ाने के पीछे का उद्देश्य “बड़े पेड़ के नीचे छाया ढूँढ़ना” है, ऐसी ताकतें ढूँढ़ना है जो उनका समर्थन कर सकें। यह लोगों की सबसे बुनियादी माँग है। इसके अलावा लोग पदोन्नति पाने, लाभ या सत्ता पाने का अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए इन ताकतों का लाभ उठाना चाहते हैं। अगर अपने पेशेवर क्षेत्र में तुम सिर्फ अपना जीवन-यापन कर रहे हो और केवल भोजन और वस्त्र से संतुष्ट हो, तो तुम्हें किसी ताकत के करीब जाने की जरूरत नहीं। अगर तुम उसके करीब जाते ही हो, तो इसका मतलब है कि यह सिर्फ जीविका कमाने और भोजन और वस्त्र की बुनियादी जरूरतें पूरी करने के लिए नहीं है—तुम्हारे निश्चित ही दूसरे इरादे हैं, तुम प्रसिद्धि पाना चाहते हो या लाभ। क्या कोई है जो कहता है, “जीविका कमाने के अलावा, मैं खुद को साबित भी करना चाहता हूँ”? क्या यह जरूरी है? (यह जरूरी नहीं है।) अगर तुम अपना धन कमा लेते हो, दिन में तीन वक्त का भोजन जुटाने में सक्षम रहते हो, तुम्हारे पास पहनने के लिए कपड़े हैं, तो यह पर्याप्त है—शान के लिए खटने का क्या मतलब है? तुम किसके लिए खट रहे हो? अपने देश, अपने पूर्वजों, अपने माता-पिता के लिए या अपने लिए? मुझे बताओ, क्या शान के लिए खटना ज्यादा महत्वपूर्ण है या भोजन और वस्त्र से संतुष्ट रहना? (भोजन और वस्त्र से संतुष्ट रहना ज्यादा महत्वपूर्ण है।) शान के लिए खटना उतावलेपन से भरा स्वभाव है; तुम जो कुछ भी करते हो, इसी शान के लिए करते हो। यह एक अमूर्त, खोखली अवधारणा है। सबसे व्यावहारिक चीज पैसा कमाना है, ताकि तुम आजीविका बनाए रख सको। तुम्हें इसके बारे में इस तरह सोचना चाहिए : “कैसी स्थिति है, कौन किसका पक्ष लेता है या कौन किस स्तर के अगुआ या अधिकारी के करीब जाता है, इनमें से कुछ महत्व नहीं रखता। कौन पदोन्नत या पदावनत होता है, वेतनवृद्धि पाता है, या उच्च श्रेणी का अधिकारी बनने के लिए कौन-से साधन अपनाता है, यह सब अप्रासंगिक है। मैं बस जीविकोपार्जन के लिए काम कर रहा हूँ। तुम लोगों में से कौन किसके लिए प्रयास कर रहा है, इसका मुझसे कोई लेना-देना नहीं है। हर हाल में, मैं रोजाना आठ घंटे काम करता हूँ, मुझे उतना वेतन मिल जाता है जितने का मैं पात्र हूँ, और मैं इस बात से संतुष्ट हूँ कि मैं अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण कर सकता हूँ। इसका बस इतना ही महत्व है; यही छोटी-सी चीज मैं चाहता हूँ।” जो तुम्हारी नौकरी के लिए जरूरी है, वह करो और उसे अच्छी तरह से करो, और अपना वेतन और कोई बोनस साफ जमीर के साथ प्राप्त करो—इतना काफी है। क्या खुद को बचाए रखने और अपने व्यवसाय के प्रति यह रवैया सही है? (बिल्कुल।) यह कैसे सही है? (क्योंकि वह एक ऐसे रवैये के साथ जीवन जीता है जो परमेश्वर की अपेक्षा के अनुरूप है। पहले, इसका मतलब है अपना काम अनमने ढंग से न करना और अपना पेशेवर काम अच्छी तरह से कर पाना। दूसरे, इसका मतलब है किन्हीं ताकतों का आश्रय न खोजना या उनकी चापलूसी न करना; सामान्य जीवन की जरूरतें पूरी होना पर्याप्त है। यह परमेश्वर के वचनों के अनुरूप है।) बेशक यह परमेश्वर के वचनों के अनुरूप है। क्या परमेश्वर तुम्हारी रक्षा करने के लिए तुमसे इसकी अपेक्षा करता है? (हाँ।) तुम्हारी किस चीज से रक्षा करने के लिए? (शैतान द्वारा नुकसान पहुँचाने से। वरना, अगर हम ऐसे विवादों में फँस जाते हैं, तो जीवन बहुत दर्दनाक हो जाता है, और इसके अलावा परमेश्वर में विश्वास करने और अपने कर्तव्य निभाने के लिए हमारे पास ज्यादा समय नहीं बचेगा।) यह एक पहलू रहा। दूसरा पहलू मुख्य रूप से क्या है? जब तुम विभिन्न ताकतों से जुड़ जाते हो, तो अंतिम परिणाम यह होता है कि तुम खुद नष्ट हो जाओगे। इससे कुछ भी हासिल नहीं होता! पहले, तुम अपनी सुरक्षा करने में सक्षम नहीं रहोगे। दूसरे, तुम न्याय कायम नहीं रखोगे और उसे बढ़ावा नहीं दोगे। तीसरे, तुम विभिन्न ताकतों के साथ साँठ-गाँठ करके अपने पाप बढ़ाओगे। इसलिए, इन ताकतों के करीब जाने से कोई फायदा नहीं। विभिन्न ताकतों के साथ घनिष्ठता बढ़ाकर तुम्हें वेतनवृद्धि या पदोन्नति भले ही मिल जाए, लेकिन तुम्हें उनके साथ कितने झूठ बोलने पड़ेंगे? परदे के पीछे कितने बुरे काम करने पड़ेंगे? बंद दरवाजों के पीछे कितने लोगों को सजा देनी पड़ेगी? इस समाज में तमाम तरह के लोगों और उद्योगों को इन ताकतों की जरूरत क्यों पड़ती है? इसलिए कि इस समाज में निष्पक्षता और न्याय का अभाव है। लोग कार्रवाई करने के लिए विभिन्न ताकतों पर भरोसा करके ही अपनी रक्षा कर सकते हैं, और बोलने और कार्य करने के लिए उन पर भरोसा करके ही अपनी जगह सुरक्षित कर सकते हैं। क्या यह उचित है? (नहीं।) यह उचित नहीं है; सब-कुछ इन ताकतों पर टिका है। जिसके पास ज्यादा ताकत है, उसी की चलती है, जिसके पास ताकत नहीं है या कम ताकत है, उसकी कुछ नहीं चलती। यहाँ तक कि कानूनों का निर्माण भी इसी तरह से होता है : अगर तुम्हारे पास पर्याप्त ताकत है, तो तुम्हारे मनमुताबिक कानून बनाकर लागू किए जा सकते हैं। अगर तुम्हारे पास ज्यादा ताकत नहीं है, तो तुम्हारे द्वारा प्रस्तावित कोई भी नियम-कानून आगे नहीं बढ़ते और राष्ट्रीय विधायिका में नहीं पहुँच पाते। यह लोगों के किसी भी समूह के लिए सच है : अगर तुम्हारे पास काफी ताकत है, तो तुम अपने हितों के लिए लड़कर उन्हें अधिकतम कर सकते हो; अगर तुम्हारे पास ताकत नहीं है, तो तुम्हारे हित तुमसे छीने या जब्त किए जा सकते हैं। विभिन्न ताकतों के गठन के पीछे का उद्देश्य उन्हीं ताकतों का उपयोग करके स्थितियाँ नियंत्रित करना, यहाँ तक कि जनमत, कानून और इंसानी नैतिकता का भी उल्लंघन करना है। वे कानून, नैतिकता और मानवता से परे जा सकते हैं—वे हर चीज से परे जा सकते हैं। व्यक्ति की ताकत जितनी ज्यादा होगी, उसका प्रभाव उतना ही ज्यादा होगा, और उसे मनचाहे कार्य करने के, अपनी बात मनवाने के उतने ही ज्यादा अवसर मिलेंगे। क्या यह उचित है? (नहीं।) यह उचित नहीं है। सत्ता और ताकत उनकी पहचान दर्शाते हैं और यह बताते हैं कि उनके हिस्से में कितने लाभ आ सकते हैं। अगर तुम किसी सामाजिक समूह में हो और सिर्फ अपनी आजीविका बनाए रखना और भोजन और वस्त्र प्राप्त करना चाहते हो, और तुम्हारा अनुसरण हैसियत या प्रतिष्ठा के लिए, या अपनी इच्छाएँ पूरी करने के लिए नहीं है, तो विभिन्न ताकतों के करीब जाना तुम्हारे लिए बिल्कुल अनावश्यक प्रतीत होगा। अगर तुम अपना सारा समय अपने कर्तव्य पूरे करने में लगाना चाहते हो, अगर तुम सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर चलना और अंततः उद्धार प्राप्त करना चाहते हो, लेकिन तुम विभिन्न ताकतों के साथ घनिष्ठता भी बढ़ाना चाहते हो, तो ये दो चीजें परस्पर विरोधी हैं। ये एक-दूसरे की पूरक नहीं हो सकतीं, क्योंकि ये बिल्कुल विपरीत हैं, ये उतने ही बेमेल हैं जितने बेमेल पानी और तेल हैं। विभिन्न ताकतों के निकट जाना परमेश्वर में तुम्हारे विश्वास या सत्य के तुम्हारे अनुसरण में कोई सहायक प्रभाव नहीं डालेगा। यह तुम्हें शैतान का घृणित चेहरा ज्यादा स्पष्ट रूप से पहचानने में मदद नहीं करेगा, न ही यह तुम्हें दुनिया द्वारा नकारे बिना और सरकार द्वारा सताए बिना परमेश्वर पर ज्यादा बोलने या विश्वास करने देगा। कुछ लोग छोटे-से गाँव में रहते हैं, लेकिन अपने मन में बड़े-बड़े मनसूबे पालते हैं। वे सोचते हैं, “मैं देहात में पैदा हुआ था। मैं एक किसान हूँ। मेरे साथ बुरा सलूक होता है, फिर भी मैं कुछ अनाज और सब्जियाँ उगाकर, और कुछ मुर्गियाँ, मवेशी और भेड़ पालकर काम चला सकता हूँ। अगर मैं परमेश्वर में विश्वास और सत्य का अनुसरण करता हूँ, तो ये स्थितियाँ काफी अच्छी हैं; मेरे पास खुद को बचाए रखने के लिए आवश्यक स्थितियाँ हैं। लेकिन मुझे हमेशा ऐसा क्यों लगता है कि इस समाज में और इन लोगों के बीच रहने और जीने में कुछ कमी है?” क्या कमी है? उसके पास कोई शक्तिशाली सहारा नहीं है। देखो, घर चुनने वाले लोगों की स्थिति कैसी होती है : वे हमेशा ऐसा घर पसंद करते हैं, जिसके पीछे एक बड़ा पहाड़ हो। वे उस पहाड़ को अपना सहारा मानते हैं और इससे उन्हें वहाँ रहना सुरक्षित लगता है। अगर घर के पीछे गिरती चट्टान होती, तो उन्हें वहाँ रहना सुरक्षित न लगता, मानो वे किसी भी क्षण चट्टान से लुढ़क जाएँगे। इसी तरह गाँव में रहते हुए, अगर व्यक्ति किसी ऐसे के साथ संबंध नहीं रखता जिसके पास प्रतिष्ठा और हैसियत है, और उसका दिल जीतने के लिए समय-समय पर उससे मिलने नहीं जाता, तो वह उस गाँव में रहते हुए हमेशा कुछ हद तक अलग-थलग महसूस करेगा और उसे लगातार धौंस दिए जाने और गुजारा न कर पाने का खतरा रहेगा। यही कारण है कि वह हमेशा ग्राम-प्रधान से घनिष्ठता बढ़ाना चाहता है। क्या यह एक अच्छा विचार है? (नहीं।) खासकर जब परमेश्वर में विश्वास करने की बात आती है, तो कुछ देशों में जहाँ उन्हें सरकारी उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है, कुछ लोग कहते हैं, “अगर हम ग्राम-प्रधान को सुसमाचार सुनाते हैं और वह विश्वास नहीं करता, लेकिन उसकी माँ, दादी, पत्नी या बेटी विश्वास करती हैं, तो क्या यह प्रधान के करीब जाना नहीं होगा? अगर हमारी कलीसिया का कोई भाई या बहन गाँव में प्रमुख स्थान रखती है या ग्राम-प्रधान की रिश्तेदार है, तो क्या वहाँ कलीसिया की मजबूत पकड़ नहीं होगी? क्या उसकी हैसियत नहीं होगी? क्या परमेश्वर में विश्वास करने वाले हमारे भाई-बहन बिना किसी समस्या के गाँव में खाना नहीं खा सकेंगे और खेती नहीं कर सकेंगे? इतना ही नहीं, जब बड़ा लाल अजगर या यूनाइटेड फ्रंट वर्क डिपार्टमेंट जाँच करने आएगा, तो कोई हमारा समर्थन करने वाला रहेगा। यह बहुत अच्छी बात होगी!” तुम हमेशा किसी संगठन या ताकतों के किसी समूह के करीब रहना चाहते हो, ताकि तुम यकीनन खुद को किसी खतरनाक परिस्थिति में न पाओ और सुरक्षित रूप से और उत्पीड़न से मुक्त होकर परमेश्वर में विश्वास कर पाओ—यह कितनी बड़ी बात है! साथ ही, प्रभावशाली लोगों के साथ घुलना-मिलना तुम्हें किसी प्रभावशाली व्यक्ति जैसा महसूस कराता है, है न? यह एक अद्भुत विचार है, लेकिन क्या ग्राम-प्रधान चाहता भी है कि तुम उसके करीब आओ? क्या ग्राम-प्रधान ऐसा व्यक्ति है, जिसका तुम लाभ उठा सकते हो? क्या ग्राम-प्रधान तुम्हें अपना शोषण करने देगा? तुम एक साधारण व्यक्ति हो, और संगठन या ग्राम-प्रधान के करीब जाना चाहते हो और सोचते हो कि सिर्फ सुसमाचार सुनाना काम कर जाएगा? क्या ग्राम-प्रधान के करीब जाने के लिए तुम्हें कुछ अच्छे उपहार देने या कुछ महत्वपूर्ण कार्य संपन्न करने की जरूरत नहीं है? तुम लोगों का क्या अनुभव है? क्या ग्राम-प्रधान के करीब जाना आसान है? उसके पालतू कुत्ते के करीब जाना तक मुश्किल होगा! और ग्राम-प्रधान को सीधे उपहार देने से काम नहीं चलेगा; तुम्हें अपेक्षाकृत आसान लक्ष्यों से शुरुआत करते हुए उसकी पत्नी, माँ, चाची या दादी के करीब जाना होगा। ग्राम-प्रधान की दादी के करीब क्यों जाना होगा? ग्राम-प्रधान का उसके साथ घनिष्ठ संबंध होता है, इसलिए तुम उससे शुरुआत करते हो, और परिवार की बुजुर्ग उसकी दादी के माध्यम से, जो तुम्हारे लिए अच्छी बातें कह सकती है, तुम धीरे-धीरे ग्राम-प्रधान के करीब पहुँच जाते हो। इसे ही “अप्रत्यक्ष पहुँच” कहा जाता है, है न? अगर तुम सीधे ग्राम-प्रधान को उपहार देते हो, तो वह पूछ सकता है, “तुम कौन हो?” और तुम जवाब दोगे, “मैं गाँव के पूर्वी हिस्से में रहने वाले ली परिवार से फलाँ-फलाँ हूँ।” “कौन-सा ली परिवार? मैं उसे क्यों नहीं जानता?” अगर वह तुम्हें पहचानता तक नहीं, तो क्या उसके करीब जाना आसान होगा? (नहीं, आसान नहीं होगा।) और अगर तुम उसे कोई उपहार देते हो, तो किस तरह का उपहार उसका ध्यान आकर्षित करेगा? सोने की छड़ें, सोने की सिल्लियाँ—क्या तुम्हारे पास इनमें से कुछ है? समुद्री खीरे—क्या वह उन्हें चाहता भी है? वह देखेगा कि तुम्हारे समुद्री खीरे आयातित हैं या देसी; उसके पास खुद ये चीजें प्रचुर मात्रा में हैं। तुम फिजूलखर्ची न करते हुए इसे खरीदने के लिए अपने दिन किफायत से बिताते हो, खुद इसे खाने—यहाँ तक कि छूने तक की—हिम्मत नहीं करते। तुम इसे उसे देते हो और वह इस पर नजर तक नहीं डालता। तुम उसे एक बेल्ट देते हो, और वह कहता है, “यह देसी है, है न?” तुम कहते हो, “यह गाय की चमड़ी से बनी है।” और वह कहता है, “आजकल गाय की चमड़ी की बेल्ट कौन पहनता है? कोई नहीं पहनता। लोग यूरोपीय ब्रांड के लोगो वाली या हीरे-जड़ी जेनुइन लैदर बेल्ट पहनते हैं। क्या तुम्हारे पास वो हैं?” तुम कहते हो, “वह कैसी दिखती है? मैंने उसे कभी नहीं देखा।” वह कहता है, “अगर तुमने उसे कभी नहीं देखा, तो यहाँ आने की जहमत मत उठाना। क्या तुम यह बेल्ट किसी भिखारी को देने की कोशिश कर रहे हो?” क्या तुम ऐसे व्यक्ति की कृपा प्राप्त कर सकते हो? तुम सोचते हो कि तुम्हारे पास एक चतुर योजना है, कि तुमने सब समझ-बूझ लिया है, लेकिन वह तुम्हारे उपहारों को बस तुच्छ समझता है। वह तुम्हारे उपहारों को तुच्छ समझता है, फिर भी तुम उसके साथ घनिष्ठता बढ़ाने पर जोर देते हो। क्या यह उचित है? अगर वह तुम्हारे उपहारों को श्रेष्ठ भी समझता हो, तो भी क्या उसके साथ घनिष्ठता बढ़ाना उचित है? (यह उचित नहीं है।) सिर्फ इसलिए कि कुछ खाने को मिल जाए, सिर्फ इसलिए कि गाँव में कोई शक्तिशाली समर्थक हो, तुम ऐसी अपमानजनक चीजें करने को तैयार होगे। क्या तुम लोगों को यह शर्मनाक नहीं लगता? (हाँ, लगता है।) प्रधान की दादी के पीछे भागना, उसकी पत्नी और उसकी भाभी के पीछे भागना, हर तरह के हथकंडे अपनाना, उपहार देना और करीब आने की कोशिश करना। दूसरे लोग तुमसे कहते हैं, “तुम्हारा ये उपहार देना बेकार है; प्रधान की नजर तो तुम्हीं पर है।” क्या तुम तब भी करीब जाने की कोशिश करोगे? तुम्हारा कोई भी तोहफा उपयुक्त नहीं होगा। प्रधान यह सोचकर उन पर दोबारा नजर तक नहीं डालेगा कि वे सब तो उसके स्तर से नीचे के हैं। सबसे बुरी बात यह है कि तुम्हें खुद को सौदेबाजी में झोंकना होगा। क्या तुम अब भी उसके करीब जाने की कोशिश करोगे? (नहीं।) क्या तुम अब भी इस तरह का समर्थक तलाशोगे? ग्राम-प्रधान का चरित्र कैसा है? क्या वह ऐसा व्यक्ति है, जो तुम्हें यूँ ही अपने करीब आने देता है? (नहीं।) अगर तुम उसके साथ रिश्ता कायम कर भी लेते हो और उसके करीब चले भी जाते हो, तो भी क्या? क्या वह तुम्हारे भाग्य को नियंत्रित कर सकता है या तुम्हें उद्धार प्राप्त करने में मदद कर सकता है? या जब वास्तविक उत्पीड़न और स्थितियों का सामना करने का समय आता है, जब परमेश्वर इन स्थितियों को होने देता है और आयोजित करता है, तो क्या तुम इनका सामना करने से बच सकते हो? क्या इसमें अंतिम निर्णय ग्राम-प्रधान का होता है? (नहीं।) परमेश्वर द्वारा आयोजित चीजों की भव्य योजना में ऐसी कोई ताकत नहीं है जिसका निर्णय अंतिम हो, ग्राम-प्रधान की तो बात ही छोड़ दो—इस संबंध में कोई ताकत उल्लेख करने लायक भी नहीं है। इसलिए, इस दुनिया में रहते हुए, चाहे तुम किसी गाँव में हो या किसी जिले, शहर या किसी देश में, यहाँ तक कि किसी देश के भीतर किसी उद्योग में भी लगे हो, उनमें मौजूद तमाम विभिन्न ताकतें तुम्हारे भाग्य पर संप्रभुता नहीं रख सकतीं, न ही वे तुम्हारे भाग्य को बदल सकती हैं। कोई भी एक ताकत तुम्हारे भाग्य की स्वामिनी नहीं है, तुम्हारे भाग्य की संप्रभुता की स्वामिनी होना तो दूर की बात है, न ही वह तुम्हारे भाग्य का निर्माण करती है। इसके विपरीत, अगर तुम समाज में मौजूद विभिन्न ताकतों से जुड़ते हो, तभी तुम पर विपत्ति आती है और तुम्हारा दुर्भाग्य शुरू हो जाता है। तुम उनके जितने करीब जाते हो, उतने ही ज्यादा खतरे में पड़ते हो; तुम उनके साथ जितने ज्यादा जुड़ते हो, इससे बाहर निकलना उतना ही कठिन हो जाता है। न सिर्फ ये विभिन्न ताकतें तुम्हें कोई लाभ नहीं पहुँचातीं, बल्कि जैसे ही तुम उनके साथ जुड़ते हो, वे बार-बार तुम्हें तबाह करती और रौंदती हैं, तुम्हें अपनी शांति खोने पर मजबूर करते हुए तुम्हारी आत्मा और मन को विकृत करती हैं, ताकि तुम फिर इस दुनिया में निष्पक्षता और न्याय के अस्तित्व पर विश्वास न करो। वे सत्य और उद्धार का अनुसरण करने की तुम्हारी सबसे खूबसूरत इच्छा नष्ट कर देंगी। इसलिए, इस समाज में जीवित रहने के लिए, चाहे तुम्हारा सामाजिक वर्ग, परिवेश या समूह कोई भी हो, या तुम खुद को किसी भी उद्योग में पाओ, कोई ऐसी ताकत तलाशना जिस पर तुम भरोसा कर सको, जो तुम्हारी सुरक्षा की छतरी के रूप में कार्य कर सके, एक भ्रामक और अतिवादी विचार और दृष्टिकोण है। अगर तुम सिर्फ जीवित रहने का प्रयास कर रहे हो, तो तुम्हें इन ताकतों से बहुत दूर रहना चाहिए। भले ही ये ताकतें तुम्हारे वैध मानवाधिकारों की रक्षा ही कर रही हों, यह तुम्हारे उनके साथ जुड़ने का कोई कारण या बहाना नहीं है। समाज में इन विभिन्न ताकतों के अस्तित्व की अवस्था चाहे जैसी हो, उनके उन्नति के जो भी लक्ष्य हों, या उनके कार्यों की जो भी दिशा हो, संक्षेप में, एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जो परमेश्वर में विश्वास करता है, एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जो सत्य का अनुसरण करता है, तुम्हें उनमें से एक नहीं बनना चाहिए, न ही तुम्हें इन विभिन्न ताकतों के भीतर उनका समर्थक बनना चाहिए। इसके बजाय, तुम्हें उनसे दूर रहना चाहिए, उनसे बचकर रहना चाहिए, उनसे जुड़े विभिन्न विवादों से बचना चाहिए, उनके द्वारा निर्धारित विभिन्न खेल-नियमों से बचना चाहिए, और उन हानिकारक चीजों और हानिकारक शब्दों से भी बचना चाहिए, जिनकी वे व्यक्ति से अपने पेशे के या इन ताकतों के दायरे में करने और कहने की अपेक्षा करते हैं। तुम्हें उनमें से एक नहीं बनना चाहिए, और निश्चित रूप से तुम्हें उनके जुर्म के साझेदारों में से एक नहीं बनना चाहिए। विभिन्न उद्योगों और व्यवसायों में, जहाँ विभिन्न ताकतें मौजूद हैं, तुमसे परमेश्वर की यही अपेक्षा है : उनसे दूर रहना और उनसे बचकर रहना, उनका बलि का बकरा न बनना, उनके शोषण की वस्तु न बनना, और उनका अनुचर या प्रवक्ता न बनना।

बेशक, इस समाज में लोगों को विभिन्न उद्योगों और व्यवसायों में अपने से ठीक ऊपर वाले निरीक्षकों और नागरिक संगठनों के अलावा कुछ अवैध सामाजिक समूहों से भी बचना चाहिए—इन लोगों के साथ न जुड़ो या उनके साथ किसी भी तरह से संबद्ध न हो। उदाहरण के लिए, वे लोग, जो सूदखोरी करते हैं। कुछ लोगों के पास अपने व्यवसाय के लिए पूँजी नहीं होती और वे सामान्य कर्ज नहीं जुटा पाते, लेकिन उनके पास पूँजी का प्रवाह बनाने का एक तरीका होता है सूद पर कर्ज लेना। सूद पर कर्ज न सिर्फ ऊँची ब्याज-दरों पर मिलता है, बल्कि उसमें भारी जोखिम भी होते हैं। बहुत सारा पैसा कमाने और अपने व्यवसाय को दिवालिया होने से बचाने के लिए कुछ लोग अंततः इस कदम का सहारा लेते हैं : सूद पर कर्ज लेना। क्या सूदखोरी करने वाले लोग समाज में कानून का पालन करने वाले व्यक्ति होते हैं? (नहीं, वे कानून का पालन करने वाले व्यक्ति नहीं होते।) वे अवैध सामाजिक संगठन होते हैं और उनसे हर समय बचना चाहिए। तुम्हारा अस्तित्व या तुम्हारी वर्तमान स्थिति तुम्हें चाहे जिस स्थिति में ले जाए, तुम्हें कभी इस मार्ग पर विचार नहीं करना चाहिए, बल्कि इससे दूर रहकर बचना चाहिए। तुम्हारे जीवन और आजीविका में चाहे जो भी समस्याएँ आएँ, उनके बारे में सोचना भी मत और न ही यह मार्ग अपनाने पर विचार करना। क्या लोगों का यह समूह पार्टी-संगठन के समान नहीं है? इस तथाकथित कानून-पालक समाज और अंडरवर्ल्ड के बीच कुछ समानताएँ हैं। यह मत सोचो कि वे तुम्हारी आजीविका के लिए कोई रास्ता निकाल सकते हैं या महत्वपूर्ण मोड़ दे सकते हैं; यह खयाली पुलाव है। अगर तुम यह कदम उठाने का निर्णय लेते हो, अगर तुम इस मार्ग पर चलते हो, तो तुम्हारा आगे का जीवन और भी बदतर होगा। बेशक, एक दूसरी तरह का तथाकथित सामाजिक संगठन भी है जिसका नाम हम नहीं लेना चाहते, जिसके करीब तुम्हें कभी नहीं जाना चाहिए, खासकर जब तुम कुछ खास और कँटीली समस्याओं का सामना करो, जब तुम खास परिवेशों का सामना करो, या जब तुम खुद को खास तौर से खतरनाक परिस्थितियों में पाओ। अपनी सुरक्षा करने, खतरे से बाहर निकलने और कठिनाइयों से बचने के लिए अतिवादी साधनों का उपयोग करने के बारे में मत सोचो। ऐसी स्थितियों में, उन जैसे लोगों के साथ जुड़ने या उनके साथ किसी भी तरह का मेलजोल रखने से बेहतर है कि तुम उनके जाल में फँस जाओ। तुम ऐसा क्यों करोगे? क्या इसे ही ईमान कहा जाता है? क्या ईसाइयों में इसी तरह का ईमान होना चाहिए? (यह उस तरह का ईमान नहीं है जो ईसाइयों में होना चाहिए।) तो फिर यह क्या है? (बस यही कि उनके करीब जाना ठीक नहीं है।) यह ठीक क्यों नहीं है? (उनके करीब जाने से आगे का जीवन बदतर होगा और भविष्य में बड़ा खतरा होगा।) क्या यह सिर्फ भविष्य के खतरे से बचने के लिए है? तो फिर तुम पहले अपने तात्कालिक खतरे से बाहर क्यों नहीं निकल भागते? तुम इन ताकतों के करीब क्यों नहीं पहुँच पाते? बाइबल में, जब प्रभु यीशु की परीक्षा हुई तो उसने शैतान को कैसे जवाब दिया? (प्रभु यीशु ने कहा, “हे शैतान दूर हो जा, क्योंकि लिखा है : ‘तू प्रभु अपने परमेश्वर को प्रणाम कर, और केवल उसी की उपासना कर’” (मत्ती 4:10)।) वह परमेश्वर ही है जिसे प्रणाम करना चाहिए और सिर्फ वही एक है जिसकी लोगों को उपासना करनी चाहिए। साथ ही एक परमेश्वर ही है, जिसके लिए लोगों को जीना चाहिए। अगर परमेश्वर तुम्हारा जीवन छीन लेने की अनुमति देता है, तो तुम्हें क्या करना चाहिए? (समर्पित होना चाहिए।) तुम्हें परमेश्वर के प्रति समर्पित होकर उसकी स्तुति करनी चाहिए। परमेश्वर का नाम ऊँचा करना चाहिए, और लोगों को अपनी जान की परवाह किए बिना परमेश्वर के प्रति समर्पित होना चाहिए। हालाँकि, अगर परमेश्वर चाहता है कि तुम जीवित रहो, तो तुम्हारा जीवन कौन छीन सकता है? उसे कोई नहीं छीन सकता। इसलिए, चाहे तुम किसी भी परिस्थिति या खतरे का सामना करो, यहाँ तक कि मौत से सामना होने पर भी, अगर कोई ताकत है जो तुम्हें मौत से बचा सकती है, तो यह ताकत उचित नहीं है बल्कि शैतान की है। तुम्हें क्या कहना चाहिए? “चले जाओ शैतान! मैं तुम्हारे साथ कोई संबंध रखने के बजाय मर जाना पसंद करूँगा!” क्या यह सिद्धांत का मामला नहीं है? (है।) “मैं तुम्हारी ताकतों के बलबूते जिऊँ यह हो नहीं सकता, न मैं इसलिए मर जाऊँगा कि परमेश्वर ने मुझे त्याग दिया है। सब-कुछ परमेश्वर के हाथ में है। जीवित रहने के लिए मैं संभवतः किसी भी ताकत पर भरोसा कर समझौता नहीं कर सकता।” यही वह सिद्धांत है, जिसे लोगों को कायम रखना चाहिए। अगर तुम खुद को दुविधा में पाते हो, और कोई कहता है कि समाज में एक ताकत है जो तुम्हें बचा सकती है; अगर वह ताकत तुम्हें बचाने में सफल हो सकती है, लेकिन वह तुम्हारा, ईसाइयों का, कलीसिया का और परमेश्वर के घर का अपमान कराएगी; अगर वह परमेश्वर के घर को बदनाम करेगी, तो तुम कैसे प्रतिक्रिया दोगे? क्या तुम स्वीकार करोगे या इनकार करोगे? (इनकार करूँगा।) तुम्हें इनकार करना चाहिए। सिद्धांततः हम जीवित रहने के लिए किसी भी ताकत पर निर्भर नहीं हैं। इसलिए, हम चाहे जिस किसी परिस्थिति या खतरनाक स्थिति का सामना करें, परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होने के अलावा सबसे बुनियादी चीज यह है कि हमें खतरनाक स्थितियों से बचने के लिए विभिन्न अतिवादी साधनों का उपयोग करने के विचार पर ध्यान भी नहीं देना चाहिए। अगर लोग जिम्मेदारियाँ पूरी कर लेते हैं और आवश्यक प्रयास कर लेते हैं, तो बाकी सब-कुछ परमेश्वर के आयोजन पर छोड़ देना चाहिए। अगर कोई कहे कि एक अवैध सामाजिक संगठन तुम्हें बचाने में सक्षम है, तो क्या तुम सहमत होओगे? (मैं सहमत नहीं होऊँगा।) तुम सहमत क्यों नहीं होओगे? क्या तुम जीना नहीं चाहते? क्या तुम अपनी दुर्दशा से फौरन बचना नहीं चाहते? जब तुम अपनी दुर्दशा से बचने और जीवित रहने की कोशिश करते हो, तब भी तुम्हारे पास आत्म-आचरण के लिए सिद्धांत होने चाहिए। तुम्हें पता होना चाहिए कि तुम्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं। तुम्हें अपने दिल में स्पष्ट होना चाहिए और अपने सिद्धांत नहीं छोड़ने चाहिए।

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