सत्य का अनुसरण कैसे करें (20) भाग चार

अपने करियर का त्‍याग करना, इस विषय का दूसरा सिद्धांत क्या है? भोजन और वस्त्र से संतुष्ट रहना। समाज में जीवित रहने के लिए, लोग अपनी आजीविका चलाने हेतु विभिन्न प्रकार के श्रम या नौकरियाँ करते हैं, और यह सुनिश्चित करते हैं कि उनके पास अपने दैनिक भोजन और जीवनयापन के खर्चों का कोई स्रोत और सुरक्षा हो। परिणामस्वरूप, वे चाहे निम्न वर्ग के हों या थोड़े ऊँचे वर्ग के, वे विभिन्न व्यवसायों के माध्यम से अपनी आजीविका चलाते हैं। चूँकि उनका उद्देश्य आजीविका चलाना होता है, तो यह बिल्‍कुल सीधी-सी बात है : सिर छुपाने के लिए छत होना, दिन में तीन बार भोजन करना, यदि वे मांस खाना चाहें तो कभी-कभी उसका खर्च उठा पाना, नियमित काम-धंधा होना, आमदनी होना, फटेहाल न घूमना और पर्याप्त पोषण प्राप्त करने में समर्थ होना—इतना काफी है। ये लोगों की जीवन संबंधी मूलभूत आवश्यकताएँ हैं। जब कोई व्‍यक्ति इन मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा कर लेता है, तो क्या भोजन और गर्माहट प्राप्त करना अपेक्षाकृत आसान नहीं हो जाता? क्या वह इन्हें जुटाने में समर्थ नहीं होता? (हाँ।) तो, यदि किसी के करियर की प्रकृति केवल भोजन और शरीर को गर्माहट देना और आजीविका प्रदान करना है, तो फिर वह चाहे किसी भी करियर में संलग्‍न हो, अगर वह विधिसम्‍मत है, तो सामान्‍यतया मानवता के मानकों के अनुरूप होगा। मैं क्यों कहता हूँ कि वह मानवता के मानकों के अनुरूप है? क्योंकि इस पेशे में होने के पीछे उसका मकसद, इरादा और उद्देश्य केवल अपनी आजीविका चलाना है, किसी और विचार या बात से उसका कोई लेना-देना नहीं है—उस पेशे का मकसद विशुद्ध रूप से, पर्याप्त भोजन और पर्याप्त गर्म कपड़े जुटाना और अपने परिवार का पालन-पोषण करने में समर्थ होना है। क्या ऐसा नहीं है? (हाँ।) ये मूलभूत आवश्यकताएँ हैं। इन मूलभूत आवश्‍यकताओं के पूरे हो जाने पर लोग एक आधारभूत गुणवत्ता वाले जीवन का आनंद उठा सकते हैं। इन्‍हें हासिल कर पाने पर वे एक सामान्‍य जीवन जी सकते हैं। क्या किसी व्यक्ति के लिए सामान्य जीवन जी पाने में सक्षम होना पर्याप्त नहीं है? क्या लोगों को मानवता के दायरे में रहते हुए यही हासिल नहीं करना चाहिए? (हाँ।) तुम अपने जीवन के लिए स्‍वयं जिम्मेदार हो, इसकी जिम्‍मेदारी तुम्‍हारे ही कंधों पर है—यह सामान्य मानवता की एक आवश्यक अभिव्यक्ति है। तुम्‍हारे लिए इसे हासिल कर लेना पर्याप्त और उपयुक्‍त है। लेकिन, अगर तुम संतुष्ट नहीं हो तो हो सकता है कि जहाँ एक आम इंसान सप्ताह में एक या दो बार मांस खाता हो, वहीं तुम हर दिन मांस-मछली और जो बचा खाना है वह भी खाना चाहो। उदाहरण के लिए, यदि तुम रोज आधा पौंड या एक पौंड मांस खाते हो लेकिन अपना शारीरिक स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए तुम्‍हें केवल चौथाई पौंड की आवश्यकता है, तो यह अतिरिक्त पोषण बीमारी का कारण बन सकता है। फैटी लीवर, उच्च रक्तचाप और उच्च कॉलेस्ट्रॉल जैसी बीमारियों का क्या कारण है? (बहुत अधिक मांस खाना।) बहुत अधिक मांस खाने में क्या समस्या है? क्या इसका कारण भोजन पर नियंत्रण न कर पाना नहीं है? क्या इसका कारण पेटूपन नहीं है? (हाँ।) यह पेटूपन कहाँ से आता है? क्या इसका कारण यह नहीं है कि किसी को अत्यधिक भूख लगती है? क्या अत्यधिक भूख और पेटूपन सामान्य मानवता की आवश्यकताओं के अनुरूप है? (नहीं।) वे सामान्य मानवता की आवश्यकताओं के दायरे के बाहर हैं। यदि तुम लगातार सामान्य मानवता की आवश्यकताओं से अधिक की चाहत रखते हो, तो इसका मतलब है कि तुम्‍हें अधिक काम करना होगा, अधिक पैसा कमाना होगा, और सामान्य लोगों की तुलना में कई गुना अधिक काम करना होगा। तुम्‍हें दिन में तीन बार और अपनी इच्‍छा के अनुसार मांस खाने के लिए, अधिक कमाने की आवश्यकता होगी, फिर चाहे वह ओवरटाइम के माध्‍यम से हो या एक से ज्‍यादा नौकरियाँ करके। क्या यह सामान्य मानवता के दायरे को पार नहीं करता? क्या सामान्य मानवता के दायरे से बाहर जाना अच्छा है? (नहीं।) यह अच्छा क्यों नहीं है? (एक वजह तो यह है कि इससे इंसान के शरीर के बीमार होने की संभावना बढ़ जाती है; दूसरी यह कि अपनी इच्छाओं और भूख के शमन के लिए, लोगों को अपने काम में अधिक समय, अधिक ऊर्जा और अधिक लागत का निवेश करना पड़ता है। इससे वह समय और ऊर्जा खर्च हो जाती है जिसका उपयोग वे सत्य का अनुसरण करने और अपने कर्तव्यों को निभाने में कर सकते थे। इससे उनके परमेश्वर में विश्वास करने और सत्य का अनुसरण करने का मार्ग प्रभावित होता है।) लोगों को बुनियादी आवश्यकताएँ पूरी होने, भूख या ठंड न लगने से और सामान्य मानवता के लिए आवश्यक भोजन और गर्माहट प्राप्त करके संतुष्ट रहना चाहिए। तुम्‍हें शरीर की पोषण संबंधी सामान्य आवश्यकताओं के अनुरूप पर्याप्त धन अर्जित करना चाहिए। उतना ही पर्याप्त है, सामान्य मानवता वाले लोगों का जीवन इसी प्रकार का होना चाहिए। यदि तुम हमेशा दैहिक सुखों की लालसा रखते हो, अपने शारीरिक स्वास्थ्य पर विचार किए बिना अपनी दैहिक भूख को संतुष्ट करते हो, और सही मार्ग की उपेक्षा करते हो; यदि तुम हमेशा अच्छा खाना खाना चाहते हो, अच्छी चीजों का आनंद लेना चाहते हो, रहने के लिए अच्‍छा माहौल और अच्छी गुणवत्ता वाला जीवन चाहते हो, दुर्लभ व्यंजन खाना चाहते हो, ब्रांड वाले कपड़े और सोने-चाँदी के गहने पहनना चाहते हो, हवेलियों में रहना चाहते हो, और महंगी कारें चलाना चाहते हो—यदि तुम लगातार इसका अनुसरण करना चाहते हो, तो तुम्हारा काम-धंधा किस प्रकार का होना चाहिए? यदि तुम अपनी बुनियादी जरूरतों और भोजन तथा गर्माहट संबंधी आवश्‍यकताओं की पूर्ति के लिए केवल एक साधारण-सी नौकरी करते हो, तो क्या वह इन सभी इच्छाओं को पूरा कर सकती है? (वह ऐसा नहीं कर सकती।) निश्चित रूप से नहीं। उदाहरण के लिए, यदि तुम व्यवसाय करना चाहते हो और सिर्फ एक काउंटर वाला कोई छोटा व्यवसाय तुम्‍हारे पूरे परिवार के भोजन और गर्माहट की आवश्‍यकता पूरी कर सकता है, तो तुम्‍हारे पास स्‍वयं से ऊपर वालों की तुलना में कम हो सकता है, लेकिन खुद से नीचे वालों की तुलना में बहुत है। तुम किसी विशेष अवसर पर मांस खा सकते हो, और तुम्‍हारा पूरा परिवार शालीन कपड़े पहन सकता है। तुम अपने शेष समय का उपयोग परमेश्वर में विश्वास करने, सभाओं में भाग लेने और अपने कर्तव्य निभाने के लिए कर सकते हो, और उसके बाद भी तुममें सत्य का अनुसरण करने के लिए ऊर्जा रह सकती है। यह बहुत अच्‍छा है। क्योंकि, तुम्हारे जीवन का भरोसा है, इस कारण, इस व्यवसाय में संलग्न रहते हुए तुम परमेश्वर में विश्‍वास और सत्य का अनुसरण करने के लिए समय और ऊर्जा निकाल पाओगे। यह परमेश्वर के इरादों के अनुरूप है। लेकिन अगर तुम कभी संतुष्‍ट नहीं होते तो तुम हमेशा सोचोगे, “इस व्यवसाय में संभावना है। मैं सिर्फ एक काउंटर से प्रतिमाह इतना पैसा कमा सकता हूँ। यह मेरे परिवार को भोजन और गर्माहट प्रदान कर सकता है। अगर मेरे पास दो काउंटर हों तो मैं अपनी कमाई दोगुनी कर सकता हूँ। न केवल मेरे परिवार को भोजन और गर्माहट मिल सकेगी, बल्कि हम कुछ पैसे भी बचा सकेंगे। हम जो चाहें खा सकते हैं और यहाँ तक कि घूमने-फिरने भी जा सकते हैं और कुछ विलासितापूर्ण सामान भी खरीद सकते हैं। हम उन चीजों को खा सकते हैं और उनका आनंद ले सकते हैं जिनका आनंद अधिकतर लोग नहीं ले पाते। यह बहुत बढ़िया होगा। एक काउंटर और शुरू कर लेता हूँ!” एक और काउंटर शुरू करने के बाद, तुम अमीर हो जाते हो; लाभों का स्वाद चख लेते हो और सोचते हो, “लगता है कि यह बाजार काफी बड़ा है। मैं एक और काउंटर शुरू कर सकता हूँ, अपने व्यवसाय का विस्तार कर सकता हूँ और इसे और अधिक बढ़ाने के लिए विभिन्न प्रकार का सामान रख सकता हूँ। उससे मैं न केवल पैसे बचा सकता हूँ, बल्कि एक कार खरीद सकता हूँ और एक ज्‍यादा बड़ा घर भी ले सकता हूँ। मेरा पूरा परिवार घरेलू और अंतरराष्ट्रीय यात्राएँ कर सकता है!” तुम इस बारे में जितना अधिक सोचते हो, यह उतना ही अधिक आकर्षक लगने लगता है। तब तुम एक और काउंटर लगाने को तैयार हो जाते हो। तुम्‍हारा व्यवसाय बड़ा होता जाता है, तुम पहले से अधिक पैसा कमाते हो, तुम्‍हारा आनंद बढ़ता है, लेकिन अब तुम उत्तरोत्तर पहले से कम सभाओं में जाते हो, तुम सभाओं में साप्ताहिक की जगह पाक्षिक या मासिक रूप से और अंततः छह महीने में केवल एक बार जाने लगते हो। तुम मन-ही-मन सोचते हो, “मेरा व्यवसाय बढ़ गया है, मैंने बहुत पैसा कमाया है, मैं परमेश्वर के घर के कार्य का समर्थन करता हूँ और काफी ज्यादा दान देता हूँ।” तुम एक बहुत महंगी गाड़ी चला रहे हो, तुम्‍हारी पत्नी और बच्चे सोने और हीरे के आभूषणों से सुसज्जित हैं, सिर से पैर तक बड़े ब्रांड के कपड़े पहने हैं, और तुमने विदेश यात्रा भी की है। तुम सोचते हो, “पैसा होना बहुत अच्छी बात है! अगर मुझे पता होता कि पैसा कमाना इतना आसान होगा, तो मैं पहले ही शुरुआत कर चुका होता। पैसा होना बहुत अच्छी बात है! धनवान व्यक्ति के दिन कितने आराम और सुविधा से कटते हैं! जब मैं स्वादिष्ट खाना खाता हूँ तो उसका स्वाद अद्वितीय होता है। जब मैं डिजाइनर ब्रांड पहनता हूँ, तो मुझे खुशी महसूस होती है, और जहाँ भी मैं जाता हूँ, लोग मुझे ईर्ष्‍यापूर्ण निगाहों से देखते हैं। मुझे लोगों का सम्मान और प्रशंसा मिली है, और मुझे अलग महसूस होता है, मैं थोड़ा अकड़कर चलने लगा हूँ।” तुम्‍हारी दैहिक इच्छाएँ, साथ ही तुम्हारा घमंड भी संतुष्ट हो गया है। लेकिन परमेश्वर के वचनों की किताबों पर धूल की परत और मोटी होती जा रही है, तुमने लंबे समय से उन्‍हें नहीं पढ़ा है, और परमेश्वर के प्रति तुम्‍हारी प्रार्थनाएँ छोटी हो गई हैं। सभाएँ अब किसी अलग स्थान पर होती हैं, और तुम निश्चित रूप से यह भी नहीं जानते कि वे अब कहाँ आयोजित की जाती हैं। अब तुमने कभी-कभार भी कलीसिया जाना बंद कर दिया है। मुझे बताओ, यह उद्धार के समीप जाना हुआ या दूर? (दूर।) तुम्‍हारे जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो रहा है, तुम्‍हारा शरीर अच्छी तरह से पोषित है, और तुम्हारे विशेष नियम हो गए हैं। पहले, तुम आठ से दस साल में भी मेडिकल जाँच के लिए नहीं जाते थे, लेकिन अब जबकि तुम अमीर हो गए हो, तो यह जानने के लिए हर छह महीने में जाँच के लिए जाते हो कि कहीं तुम्‍हें उच्च रक्तचाप, उच्च रक्त शर्करा, या उच्च कोलेस्ट्रॉल तो नहीं। तुम कहते हो, “व्यक्ति को अपने शरीर का ख्याल रखना चाहिए। जैसा कि कहा जाता है, ‘यदि तुम्हें कुछ बनना है, तो बीमार मत बनो। यदि तुम्हें कुछ नहीं बनना है, तो गरीब मत बनो।’” तुम्‍हारे विचार और दृष्टिकोण बदल गए हैं, है न? अब जबकि तुम अमीर हो और एक सामान्य व्यक्ति नहीं हो, तो तुम्‍हें लगता है कि तुम मूल्यवान और सम्‍मानित हो और इस तरह तुम अपने शरीर को और भी अधिक महत्व देते हो। जीवन के प्रति भी तुम्‍हारा रवैया बदल गया है। पहले, तुम यह सोचकर मेडिकल जाँच नहीं कराते थे, “हम गरीबों को इस बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है। मैं मेडिकल जाँच क्‍यों करवाऊँ? अगर मैं गंभीर रूप से बीमार हुआ, तो वैसे भी इलाज का खर्च वहन नहीं कर सकता। मैं बस चुपचाप उसे सहन करूँगा, और अगर ऐसा नहीं कर सका तो शायद एक दिन प्राण त्‍याग दूँगा। इसमें कोई बड़ी बात नहीं।” लेकिन अब बात अलग है। तुम कहते हो, “लोगों को बीमारी के साथ नहीं जीना चाहिए। यदि वे बीमार हो जाते हैं, तो उनकी कमाई कौन खर्च करेगा? वे जीवन का आनंद नहीं ले पाएँगे। जीवन छोटा है!” अब बात अलग है, है न? पैसे, शारीरिक जीवन और आनंद, सभी के प्रति तुम्‍हारा रवैया बदल गया है। इसी प्रकार, परमेश्वर में विश्वास करने, सत्य का अनुसरण करने और उद्धार प्राप्त करने के प्रति तुम्‍हारा रवैया भी निरंतर उदासीन होता चला गया है।

एक बार जब कोई व्यक्ति भोजन और वस्‍त्र से संतुष्ट न होने के मार्ग पर चल पड़ता है, तो वह उच्च गुणवत्ता वाले जीवन और बेहतर चीजों के आनंद के पीछे भागता है। यह खतरे का संकेत है, यह प्रलोभन में पड़ना है, यह परेशानी का कारण बनेगा और यह एक अपशकुन है। एक बार जब कोई धन का आनंद ले लेता है और उसका स्वाद चख लेता है, तो उसे चिंता होने लगती है कि किसी दिन वह अपना धन खोकर गरीब न बन जाए। परिणामस्वरूप, अब वे विशेष रूप से धनवान होने के दिनों को सँजोते हैं और अमीर होने की स्थिति और हैसियत को महत्व देते हैं। तुम अक्सर अविश्वासियों को यह कहते सुनते हो, “कड़वे से मीठे की ओर जाना आसान है, मीठे से कड़वे की ओर जाना आसान नहीं।” इसका मतलब यह है कि जब तुम्‍हारे पास कुछ नहीं होता, तो त्‍याग करने के लिए कहे जाने पर तुम्‍हें कोई आपत्ति नहीं होती; तुम बिना किसी हिचकिचाहट के त्‍याग कर सकते हो, क्योंकि पकड़कर रखने लायक कुछ है भी नहीं। यह मौद्रिक और भौतिक संपत्ति तुम्‍हारे लिए बाधा नहीं बनती, और तुम्‍हारे लिए उसे छोड़ना आसान होता है। लेकिन एक बार जब ये चीजें तुम्हें मिल जाती हैं, तो तुम्‍हारे लिए इन्हें छोड़ना कठिन हो जाता है, स्‍वर्गारोहण से भी अधिक कठिन। यदि तुम गरीब हो, तो अपना घर छोड़ने और अपने कर्तव्य निभाने का समय आने पर तुम आसानी से जा सकते हो। लेकिन, यदि तुम एक अमीर असामी हो, तो तुम्‍हारे दिमाग में अनेक विचार आते हैं और तुम कहते हो, “ओह, मेरे घर की कीमत बीस लाख युआन है, मेरी कार की कीमत पाँच लाख युआन है। फिर अचल संपत्तियाँ, बैंक बचत, स्टॉक, फंड, निवेश और अन्य चीजें हैं, जो कमोबेश कुल मिलाकर दस मिलियन युआन हैं। अगर मैं चला गया, तो यह सब अपने साथ कैसे लेकर जाऊँगा?” तुम्‍हारे लिए इन भौतिक संपत्तियों को छोड़ना आसान नहीं है। तुम सोचते हो, “अगर मैं इन चीजों को और इस घर और अपने वर्तमान परिवार को छोड़ देता हूँ, तो क्या मेरे भावी आवास में भी यह सब होगा? क्या मैं मिट्टी की झोपड़ी या भूसे के घर में रह पाऊँगा? क्या मैं पशुशाला की दुर्गंध सह पाऊँगा? फिलहाल, मैं हर दिन गर्म पानी से स्नान कर सकता हूँ। क्या मैं ऐसी जगह बर्दाश्त कर सकूँगा जहाँ मैं प्रति वर्ष गर्म पानी से एक बार भी स्नान न कर सकूँ?” तुम सोचते चले जाते हो, और तुम यह सब बर्दाश्त नहीं कर पाते। जब तुम्‍हारे पास पैसा होता है, तो तुम चीजें खरीदने के लिए खुले दिल से नकदी निकालते हो, बिना किसी हिचकिचाहट के अपनी पसंद की चीज खरीद लेते हो, तुम विशेष रूप से उदार होते हो, और पैसे के कारण कभी परेशान नहीं होते। लेकिन अगर तुम्‍हें यह सब छोड़ना पड़े, तो हर बार अपने बटुए में हाथ डालने पर तुम्‍हें यह सोचकर शर्मिंदगी महसूस होगी कि अगर वह खाली हुआ तो क्या होगा। अगर तुम्‍हें एक कटोरा गर्म नूडल्‍स खाने हों तो तुम्‍हें हिसाब लगाना होगा कि कौन-सा रेस्‍टोरेंट सबसे सस्‍ता है और अपने पास बचे पैसे से तुम कितनी बार और खाना खा सकते हो। तुम्‍हें एक गरीब व्यक्ति का जीवन जीते हुए एक सख्‍त बजट रखना होगा। क्या तुम यह बर्दाश्त कर सकते हो? इससे पहले, यदि किसी कपड़े को दो बार धोने पर वह ढीला हो जाता था और उसे पहनने पर तुम्‍हें शर्मिंदगी महसूस होती थी, तो तुम उसे फेंक देते थे और नया ले लेते थे। अब, तुम एक ही टी-शर्ट को बार-बार धोते और पहनते हो और यहाँ तक कि अगर उसकी कॉलर फट जाए तो भी तुम उसे फेंकना बर्दाश्त नहीं कर सकते। तुम्हें इसे फिर से सिलकर पहनना होगा। क्या तुम यह बर्दाश्त कर सकते हो? तुम जहाँ भी जाओगे, वहाँ लोग गरीब जानकर तुमसे बात नहीं करना चाहेंगे। जब तुम खरीदारी करने जाओगे और किसी चीज की कीमत पूछोगे तो कोई भी तुम पर ध्यान नहीं देगा। क्या तुम यह सहन कर पाओगे? यह महसूस करना आसान नहीं है, है न? लेकिन अगर तुम्‍हारे पास ये मौद्रिक और भौतिक संपत्ति न हो, तो तुम्‍हें उसे छोड़ने की जरूरत भी नहीं होगी, और तुम्‍हें इस चुनौती का सामना नहीं करना पड़ेगा। तुम्‍हारे लिए सब कुछ त्यागना और सत्य का अनुसरण करना इससे बहुत आसान होगा। इसलिए, परमेश्वर ने हमेशा लोगों से कहा है कि उन्हें भोजन और वस्‍त्र से संतुष्ट रहना चाहिए। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम किस पेशे में हो, उसे एक करियर के रूप में मत लो, और किसी स्प्रिंगबोर्ड या प्रमुखता तक पहुँचने या धन संचय करने और आराम से रहने के साधन के रूप में मत देखो। चाहे तुम किसी भी कार्य या पेशे में संलग्न हो, इसे केवल अपनी आजीविका बनाए रखने के साधन के रूप में देखना ही पर्याप्त है। यदि वह तुम्‍हारी आजीविका को बनाए रख सकता है, तो तुम्‍हें पता होना चाहिए कि कब रुकना है और धन के पीछे नहीं भागना है। यदि प्रति माह दो हजार युआन की कमाई तुम्‍हारे तीन बार के भोजन और जीवन की बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त है, तो तुम्‍हें वहीं रुक जाना चाहिए और अपनी नौकरी का दायरा बढ़ाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। यदि तुम्‍हारी कोई विशेष आवश्यकता है, तो तुम अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए अतिरिक्त पारियों में अंशकालिक या अस्थायी नौकरी कर सकते हो—यह स्वीकार्य है। लोगों से परमेश्वर की अपेक्षा यह है : इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम किस पेशे में हो, चाहे वह ज्ञान या किसी तकनीकी कौशल से संबंधित हो, या उसमें किसी शारीरिक श्रम की आवश्यकता हो, जब तक वह तर्कसंगत और वैध है, तुम्‍हारी क्षमताओं के भीतर है, और तुम्‍हारी आजीविका को बनाए रख सकता है, तो उतना ही काफी है। अपने पेशे को अपने दैहिक जीवन को संतुष्ट करने के लिए अपने आदर्शों और इच्छाओं को साकार करने की सीढ़ी मत बनाओ, जिसकी वजह से तुम प्रलोभन या दलदल में गिर जाओ, या खुद को ऐसे रास्‍ते पर ले जाओ जहाँ से वापसी का रास्‍ता न हो। यदि प्रति माह दो हजार युआन की कमाई तुम्‍हारे व्यक्तिगत या पारिवारिक जीवन के भरण-पोषण के लिए पर्याप्त है, तो तुम्‍हें उसी नौकरी में रहना चाहिए और शेष समय का उपयोग परमेश्वर में विश्वास का अभ्यास करने, सभाओं में भाग लेने, अपने कर्तव्य निभाने और सत्य का अनुसरण करने में करना चाहिए। यही तुम्‍हारा लक्ष्‍य है, एक विश्‍वासी के जीवन का मूल्य और अर्थ है। और तुम जिस भी पेशे में होते हो वह केवल सामान्य मानवता के दैहिक जीवन को बनाए रखने के लिए होता है। परमेश्वर यह माँग नहीं करेगा कि तुम विशिष्‍टता हासिल करो, उत्कृष्ट बनो, या अपने पेशे में नाम कमाओ। यदि तुम्‍हारा पेशा वैज्ञानिक अनुसंधान से संबंधित है, तो उसमें तुम्‍हारी काफी ऊर्जा लगेगी, लेकिन अभ्यास का सिद्धांत अपरिवर्तित रहता है—भोजन और वस्‍त्र से संतुष्ट रहो। यदि तुम्‍हारा पेशा तुम्‍हें पदोन्नति के अवसर और तुम्‍हारी क्षमताओं के आधार पर पर्याप्त आय प्रदान करता है, और यह आय भोजन और वस्‍त्रों से संतुष्ट होने की सीमा से अधिक है, तो तुम्‍हें क्या करना चुनना चाहिए? (प्रस्ताव को अस्वीकार कर देना चाहिए।) तुम्‍हें उस सिद्धांत का पालन करना चाहिए जिसकी परमेश्वर ने चेतावनी दी है—भोजन और वस्त्रों से संतुष्ट रहो। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम किस पेशे में हो, अगर यह भोजन और वस्‍त्र से संतुष्ट होने के दायरे से परे चला जाता है, तो तुम अतिरिक्त आय अर्जित करने के लिए अनिवार्य रूप से बुनियादी आवश्यकताओं की सीमा के बाहर ऊर्जा, समय या लागत का निवेश करोगे। उदाहरण के लिए, हो सकता है कि वर्तमान में तुम एक कनिष्ठ कर्मचारी हो, जो अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त कमाई कर रहा है, लेकिन नौकरी में अच्छे प्रदर्शन के कारण, तुम्‍हारे वरिष्ठ अधिकारी तुम्‍हें प्रबंधकीय पद या कई गुना उच्‍च वेतन वाले किसी वरिष्‍ठ पद पर पदोन्नत करना चाहते हैं। क्या यह कमाई व्यर्थ है? जब तुम्‍हारी आय बढ़ती है, तो तुम्‍हारे द्वारा निवेश किया गया श्रम भी उसी अनुपात में बढ़ जाता है। क्या श्रम निवेश करने के लिए ऊर्जा और समय की आवश्यकता नहीं है? यह तो एक तरह से यह कहना है कि तुम जो पैसा कमाते हो वह तुम्‍हारी काफी ऊर्जा और समय के बदले विनिमय किया जाता है। अधिक पैसा कमाने के लिए, तुम्‍हें और भी अधिक समय और ऊर्जा को निवेश करना होगा। जैसे-जैसे तुम अधिक पैसा कमाते हो, तुम्‍हारे समय और ऊर्जा का एक बड़ा हिस्सा खर्च हो जाता है, और साथ ही साथ, जो समय तुम परमेश्वर में अपनी आस्था, सभाओं में भाग लेने, कर्तव्य निभाने और सत्य का अनुसरण करने के लिए आवंटित करते हो, वह आनुपातिक रूप से कम हो जाता है। यह एक स्पष्ट तथ्य है। जब तुम्‍हारा समय और ऊर्जा धन संचय को समर्पित हो जाते हैं, तो तुम परमेश्वर में अपनी आस्‍था का प्रतिफल खो देते हो। तब परमेश्वर तुम्‍हारे साथ अनुकूल व्यवहार नहीं करेगा, और तुमसे जो कुछ छूट गया है उसकी पूर्ति परमेश्वर का घर सिर्फ इसलिए नहीं कर देगा क्योंकि तुम्‍हें पदोन्नत किया गया है और तुम्‍हारा ज्यादातर समय और ऊर्जा काम में लग जाता है, जिसके कारण तुम्‍हें कर्तव्‍य निभाने या परमेश्वर के घर की सभाओं में भाग लेने का समय नहीं मिल रहा है। क्या ऐसा होता है? (नहीं।) परमेश्वर का घर तुम्हें वह बातें नहीं बताएगा जो तुमसे छूट गई हैं या तुम्‍हारे साथ विशेष व्यवहार नहीं करेगा, और इस वजह से परमेश्वर तुम्‍हारे साथ अनुकूल व्यवहार नहीं करेगा। संक्षेप में, यदि तुम परमेश्वर में अपने विश्वास का प्रतिफल पाना चाहते हो, सत्य प्राप्त करना चाहते हो, तो यह समय और ऊर्जा सुरक्षित करने के तुम्‍हारे प्रयासों पर निर्भर करता है। यह चुनाव का मामला है। परमेश्वर तुम्‍हें सामान्य जीवन जीने से नहीं रोकता। तुम्‍हारी आय भोजन और गर्माहट उपलब्‍ध करवाने, तुम्‍हारे शारीरिक अस्तित्व और जीवन गतिविधियों को बनाए रखने के लिए पर्याप्त है। यह तुम्‍हारे जीवन को बनाए रखने के लिए पर्याप्त है। लेकिन तुम संतुष्ट नहीं हो; तुम हमेशा अधिक कमाना चाहते हो। तब यह धनराशि तुम्‍हारा समय और ऊर्जा ले लेगी। उन्हें क्‍यों लिया जा रहा है? तुम्‍हारे भौतिक जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए। जैसे-जैसे तुम अपने भौतिक जीवन की गुणवत्ता को सुधारते हो, तुम्‍हें परमेश्वर में विश्वास से कम लाभ होता है, और तुम्‍हारा कर्तव्य निभाने का समय खत्‍म हो जाता है, यह खप जाता है। यह समय किसमें खप जाता है? यह एक अच्छे भौतिक जीवन के पीछे भागने में, भौतिक आनंद में खप जाता है। क्या यह इसके लायक है? (नहीं।) यदि तुम फायदे और नुकसान का आकलन करने में अच्छे हो, तो तुम्‍हें पता होगा कि यह सार्थक नहीं है। तुम अपने भौतिक जीवन में आनंद प्राप्त करते हो, बेहतर भोजन खाते हो और अपने पेट को संतुष्ट रखते हो; तुम अच्छे, फैशनेबल और आरामदायक कपड़े पहनते हो। तुम कुछ और डिजाइनर चीजें और विलासिता का साजो-सामान खरीदते हो, लेकिन तुम्‍हारा काम थका देने वाला, अधिक मुस्‍तैद रखने वाला है और इसमें तुम्‍हारा समय और ऊर्जा खपती है। एक विश्‍वासी के रूप में, तुम्‍हारे पास सभाओं में भाग लेने या उपदेश सुनने का समय नहीं है। तुम्‍हारे पास सत्य और परमेश्वर के वचनों पर विचार करने का भी समय नहीं है। ऐसे अनेक सत्य हैं जिन्हें तुम अब भी नहीं समझते और पहचान पाते, लेकिन उन पर विचार और उनकी खोज के लिए तुम्‍हारे पास समय और ऊर्जा की कमी है। तुम्‍हारे भौतिक जीवन में सुधार होता है, लेकिन तुम्‍हारा आध्यात्मिक जीवन पनपने में विफल रहता है, और उसमें गिरावट आती है। यह लाभ है या हानि? (यह हानि है।) यह हानि बहुत बड़ी है! तुम्‍हें फायदों और नुकसानों को तोलना होगा। यदि तुम एक चतुर व्यक्ति हो जो वास्तव में सत्य से प्रेम करता है, तो तुम्‍हें दोनों पक्षों को तोलना चाहिए और देखना चाहिए कि तुम्‍हारे लिए हासिल करने लायक सबसे मूल्यवान और सार्थक चीज क्या है। यदि तुम्‍हें पदोन्नति मिलती है, और तुम्‍हारे पास अधिक पैसा कमाने और स्‍वयं को एक बेहतर भौतिक जीवन देने का अवसर होता है, तो तुम्‍हें क्या चुनना चाहिए? यदि तुम सत्य का अनुसरण करने के इच्छुक हो और सत्य का अनुसरण करने का दृढ़ संकल्प रखते हो, तो तुम्‍हें ऐसे अवसरों को छोड़ देना चाहिए। उदाहरण के लिए, मान लो कि तुम्‍हारी कंपनी में कोई कहता है, “तुम यह काम दस साल से कर रहे हो। कंपनी में अधिकतर लोगों का तीन से पाँच वर्ष में वेतन बढ़ता है और पदोन्नति होती है। लेकिन तुम्‍हारा वेतन पहले जितना ही है। तुम अपने लिए बेहतर काम क्यों नहीं करते? तुम अपना प्रदर्शन क्यों नहीं सुधार रहे हो? अमुक को देखो, वह तीन साल से यहाँ है, और अब वह एक महंगी गाड़ी चलाती है और पहले से बड़े घर में रहती है : उसने अपने एक-एक कमरे और बैठक वाले घर की जगह तीन कमरों और दो बैठकों वाला घर ले लिया। जब वह आई थी तो एक गरीब छात्रा थी। अब, वह एक अमीर महिला है, सिर से पैर तक डिजाइनर कपड़े पहनती है, लग्‍जरी होटलों में ठहरती है, हवेली में रहती है और एक महंगी गाड़ी चलाती है।” उसकी संपन्‍नता देखने पर क्या तुम्‍हारे मन में टीस नहीं उठेगी? क्या तुम्‍हें बुरा महसूस नहीं होगा? क्या तुम ऐसे प्रलोभनों को झेल सकते हो? क्या तब भी तुम अपने मूल इरादे पर कायम रहोगे? क्या तुम सिद्धांतों पर कायम रहोगे? यदि तुम वास्तव में सत्य से प्रेम करते हो, सत्य का अनुसरण करने के इच्छुक हो, और विश्वास करते हो कि सत्य में कुछ हासिल करना तुम्‍हारे जीवन की सबसे महत्वपूर्ण, सबसे मूल्यवान चीज है, और तुमने अपने जीवन की सबसे महत्वपूर्ण और मूल्यवान चीज को चुना है, तो तुम्‍हें इसका पछतावा नहीं होगा, और तुम पदोन्नति जैसी चीजों से विचलित नहीं होगे। तुम दृढ़ रहकर कहोगे, “मैं भोजन और वस्त्र से संतुष्ट हूँ; मैं जो भी काम करता हूँ, वह भोजन और शरीर को गरम रखने के उद्देश्‍य से है, ताकि मेरा शरीर जीवित रहे, वह शारीरिक आनंद के लिए नहीं है, और निश्चित रूप से प्रमुखता प्राप्त करने के लिए तो नहीं है। मैं पदोन्नति या उच्च वेतन के पीछे नहीं भागता; मैं सत्य का अनुसरण करने के लिए अपने सीमित जीवनकाल का उपयोग करूँगा।” यदि तुममें यह दृढ़ निश्चय है तो तुम डगमगाओगे नहीं, और तुम्हारे दिल में टीस नहीं उठेगी; जबकि तुम दूसरों को पदोन्नति, वेतन वृद्धि पाते हुए, या सोने-चांदी के आभूषण और ब्रांड वाले कपड़े पहनते हुए, स्‍वयं से बेहतर जीवन स्तर का आनंद लेते हुए और स्टाइल में तुमसे आगे निकलते देखोगे तो तुम्‍हें ईर्ष्‍या महसूस नहीं होगी। क्या ऐसा नहीं है? (हाँ।) लेकिन, यदि तुम सत्य से प्रेम नहीं करते और सत्य का अनुसरण नहीं करते, तो तुम स्वयं को रोक नहीं पाओगे, और लंबे समय तक अडिग नहीं रह पाओगे। ऐसे अवसर पर और ऐसे वातावरण में, यदि लोगों के जीवन में सत्य की कमी है, यदि उनमें दृढ़ संकल्प की थोड़ी कमी है, यदि उनमें सच्ची अंतर्दृष्टि की कमी है, तो उनका मन डोलेगा और वे कमजोर महसूस करेंगे। कुछ समय तक टिके रहने के बाद, वे यह सोचकर अवसादग्रस्‍त भी हो जाएँगे, “ये दिन कब जाएँगे? यदि परमेश्वर का दिन नहीं आया, तो मैं कब तक कंपनी में दरबान बना रहूँगा? दूसरे लोग मुझसे ज्यादा कमा रहे हैं। मैं केवल बुनियादी भोजन और शरीर को गरम रखने के साधन ही क्यों जुटा पाता हूँ? परमेश्वर मुझसे अधिक पैसा कमाने के लिए नहीं कहता।” तुम्‍हें ज्‍यादा पैसा कमाने से कौन रोक रहा है? यदि तुममें क्षमता है, तो तुम अधिक कमा सकते हो। यदि तुम अधिक पैसा कमाना, समृद्ध जीवन शैली जीना और विलासितापूर्ण जीवन का आनंद लेना चुनते हो, तो यह ठीक है; कोई तुम्‍हें नहीं रोक रहा है। लेकिन, तुम्‍हें अपने चुनावों के लिए स्वयं जिम्मेदार होना होगा। अंत में, यदि तुम सत्य प्राप्त नहीं करते, यदि परमेश्वर के वचन तुम्‍हारे भीतर जीवन नहीं बने हैं, तो तुम ही पछताओगे। तुम्‍हें अपने कार्यों और चुनावों के लिए स्वयं जिम्मेदार होना होगा। कोई भी तुम्‍हारी जगह भुगतान नहीं कर सकता या तुम्‍हारी जि‍म्मेदारी नहीं ले सकता। चूँकि तुमने परमेश्वर में विश्वास करना, उद्धार के मार्ग पर चलना और सत्य का अनुसरण करना चुना है, इसलिए पछतावा मत करो। चूँकि तुमने यही चुना है, इसलिए तुम्‍हें इसे ऐसे नियम या आदेश के रूप में नहीं देखना चाहिए जिसका तुम्‍हें पालन करना होगा; बल्कि, तुम्‍हें यह समझना चाहिए कि तुम्‍हारी दृढ़ता और चुनाव मूल्‍यवान और सार्थक हैं। अंततः, तुम सत्य और जीवन हासिल करते हो, न कि केवल एक नियम। यदि तुम्‍हारी दृढ़ता और चुनाव तुम्‍हें विशेष रूप से शर्मिंदा, असहज या अपने आस-पास के लोगों का सामना करने में असमर्थ महसूस कराते हैं, तो जारी मत रखो। अपने लिए चीजें कठिन क्यों बनाई जाएँ? अपने दिल में जो भी कामना करते हो, जो भी चाहते हो, उसी चीज की तलाश करो—तुम्‍हें कोई नहीं रोक रहा। इस समय, हमारा इस तरह से संगति करना तुम्‍हें बस एक सिद्धांत दे रहा है। दुनिया में, लोग जिस भी पेशे से जुड़ते हैं वह प्रसिद्धि, लाभ और शारीरिक आनंद से जुड़ा होता है। लोग अधिक पैसा क्यों कमाते हैं इसका कारण एक निश्चित संख्या हासिल करना नहीं है, बल्कि उस पैसे को अर्जित करके अपने भौतिक आनंद को बेहतर बनाना है, और साथ ही जनता में जाने-माने अमीर व्यक्ति बनना है। इस तरह, उनके पास प्रसिद्धि, लाभ और पद होगा, जो सभी बुनियादी जरूरतों की सीमा से परे है। लोग जो भी कीमत चुकाते हैं वह शारीरिक आनंद के लिए है, उसकी कोई सार्थकता नहीं है; वह सब खोखला है, किसी सपने की तरह। अंत में उन्हें विशुद्ध खालीपन हासिल होता है। हो सकता है कि आज नाश्‍ते में तुम मोमो खाओ और तुम्‍हें वे स्‍वादिष्‍ट लगें, लेकिन ध्यानपूर्वक चिंतन करने पर तुम जानोगे कि तुम्‍हें कुछ हासिल नहीं हुआ है। यदि तुम उसे प्रतिदिन खाते हो तो हो सकता है कि तुम उससे बोर हो जाओ, उसे खाना बंद कर दो और कुछ और खाने लगो, जैसे कॉर्न-बन, चावल या पैनकेक। तुम इस तरह से तालमेल बैठाते हो, और तुम्‍हारा भौतिक शरीर स्वस्थ हो जाता है। यदि तुम प्रतिदिन गरिष्ठ भोजन खाते हो, तो तुम्‍हारा भौतिक शरीर अस्वस्थ हो सकता है, है न?

भोजन और वस्‍त्रों से संतुष्‍ट रहना, क्‍या यह सही मार्ग है? (यह सही मार्ग है।) यह सही क्‍यों है? क्‍या किसी व्‍यक्ति के जीवन का मूल्‍य भोजन और वस्‍त्रों से होता है? (नहीं।) अगर किसी व्‍यक्ति के जीवन का मूल्‍य भोजन और वस्‍त्रों या दैहिक आनंदों से नहीं होता, तो किसी व्‍यक्ति के पेशे को केवल उसकी भोजन और वस्‍त्र संबंधी आवश्यकता को पूरा करना चाहिए; उसका दायरा इससे ज्‍यादा नहीं होना चाहिए। भोजन और वस्त्र पाने के पीछे क्या उद्देश्य है? यह सुनिश्चित करना कि शरीर सामान्य रूप से जीवित रह सके। जीने का उद्देश्य क्या है? जीवन दैहिक आनंद के लिए नहीं है, न ही जीवन के घटनाक्रमों का आनंद उठाने के लिए है, और निश्चित रूप से वह उन सभी चीजों का आनंद पाने के लिए नहीं है जिनका अनुभव मनुष्य अपने जीवन में करते हैं। ये सब महत्वहीन हैं तो सबसे महत्वपूर्ण क्या है? वह सबसे मूल्यवान चीज क्या है जो एक व्यक्ति को करनी चाहिए? (व्यक्ति को परमेश्वर में विश्वास और सत्य के अनुसरण के मार्ग पर चलना चाहिए, और फिर स्वयं के कर्तव्यों को पूरा करना चाहिए।) इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम किस प्रकार के व्यक्ति हो, तुम हो तो सृजित प्राणी ही। सृजित प्राणियों को वही करना चाहिए जिसके लिए वे बने हैं—उनके जीवन का मूल्‍य इसी में है। तो, सृजित प्राणी क्‍या करें जिसका मूल्‍य हो? प्रत्येक सृजित प्राणी के पास सृष्टिकर्ता द्वारा उसे सौंपा गया एक मिशन है, एक मिशन जिसे पूर्ण करने के लिए वे बने हैं। परमेश्वर ने प्रत्येक व्यक्ति के जीवन की नियति निर्धारित कर रखी है। उसके जीवन की जो भी नियति हो, उसे वही करना चाहिए। यदि तुम उसे अच्छी तरह से करते हो, तो जब तुम लेखा-जोखा देने के लिए अंतत: परमेश्वर के सामने खड़े होगे, तो वह एक संतोषजनक उत्तर प्रदान करेगा। वह कहेगा कि तुमने मूल्यवान और फलदाई जीवन जि‍या, तुमने परमेश्वर के वचनों को अपना जीवन बना लिया, और तुम एक योग्य सृजित प्राणी हो। लेकिन अगर तुम्‍हारा जीवन केवल जीने, संघर्ष करने और भोजन, वस्‍त्रों, आनंद और खुशियों में झोंकने के लिए है, तो जब तुम अंततः परमेश्वर के सामने खड़े होगे, तो वह पूछेगा, “मैंने तुम्हें इस जीवन में जो कार्य और मिशन सौंपा था, तुमने उसे कितना पूरा किया?” तुम सबका हिसाब लगाओगे और पाओगे कि इस जीवन के समय और ऊर्जा को तो तुमने भोजन, वस्‍त्र और मनोरंजन पर खर्च कर दिया है। ऐसा लगता है जैसे तुमने परमेश्वर में अपनी आस्था का ज्‍यादा कुछ नहीं किया, अपना कर्तव्य पूरा नहीं किया, तुम अंत तक कायम नहीं रहे, और तुमने अपनी भक्ति नहीं निभाई। जहाँ तक सत्य का अनुसरण करने की बात है, तो हालाँकि इसका अनुसरण करने की तुम्‍हारी थोड़ी-बहुत इच्छा थी, लेकिन तुमने इसकी अधिक कीमत नहीं चुकाई, और कुछ भी प्राप्‍त नहीं किया। अंतिम परीक्षा में, परमेश्वर के वचन तुम्‍हारा जीवन नहीं बने, और तुम अब भी वही पुराने शैतान हो। चीजों को देखने और कार्य करने के तुम्‍हारे तरीके पूरी तरह से मानवीय धारणाओं और कल्पनाओं तथा शैतान के भ्रष्ट स्वभाव पर आधारित हैं। तुम अभी भी पूरी तरह से परमेश्वर के विरोध में हो और उसके साथ संगत नहीं हो। उस स्थिति में, तुम्‍हें अनुपयोगी मान लिया जाएगा, और परमेश्वर को तुम्‍हारी और जरूरत नहीं होगी। इस बिंदु से, तुम परमेश्वर के सृजित प्राणी नहीं रहोगे। यह एक दयनीय बात है! इसलिए, चाहे तुम किसी भी पेशे में संलग्‍न हो, जब तक वह वैध है, उसे परमेश्वर द्वारा व्यवस्थित और पूर्वनिर्धारित किया गया है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि परमेश्वर अधिक पैसा कमाने या तुम्‍हारे द्वारा अपनाए गए करियर में प्रमुखता हासिल करने के लिए तुम्‍हारा समर्थन करता है या तुम्‍हें प्रोत्साहित करता है। परमेश्वर इसकी मंजूरी नहीं देता, और उसने तुमसे कभी इसकी अपेक्षा नहीं की। इसके अलावा, परमेश्वर कभी भी तुम्‍हारे पेशे का उपयोग कर न तो तुम्‍हें दुनिया की ओर धकेलेगा, न ही शैतान को सौंपेगा, न ही वह तुम्हें इरादतन प्रसिद्धि और लाभों का पीछा करने देगा। इसके बजाय, तुम्‍हारे पेशे के माध्यम से परमेश्वर तुम्‍हें भोजन और शरीर की गर्माहट संबंधी अपनी आवश्‍यकताओं को पूर्ण करने की अनुमति देता है—इससे ज्‍यादा कुछ नहीं। इसके अतिरिक्त, परमेश्वर ने अपने वचनों में तुम्‍हें ऐसी बातें बताई हैं जैसे तुम्‍हारा कर्तव्य क्या है, तुम्हारा मिशन क्या है, तुम्‍हें किसका अनुसरण करना चाहिए और क्या जीना चाहिए। ये वे मूल्य हैं जिन्‍हें तुम्‍हें जीना चाहिए और वे मार्ग हैं जिन पर तुम्‍हें जीवनभर चलना चाहिए। परमेश्वर के बोल लेने के बाद, जब तुम समझ जाते हो कि उसने क्या कहा है, तो तुम्‍हें क्या करना चाहिए? यदि सप्ताह में तीन दिन काम करना तुम्‍हारी भोजन और शरीर को गरम रखने संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है, लेकिन फिर भी तुम अन्य दिन काम करना चुनते हो तो तुम अपना कर्तव्य नहीं निभा सकते। जब किसी कर्तव्य के लिए तुम्‍हारे सहयोग की आवश्यकता होती है, तो तुम कहते हो, “मैं कार्य कर रहा हूँ, मैं अपने कार्यस्‍थल पर हूँ,” और जब कोई तुमसे संपर्क करने का प्रयास करता है, तो तुम हमेशा समय न होने का दावा करते हो। तुम्‍हारे पास समय कब होता है? केवल रात 8 बजे के बाद, जब तुम पूरी तरह से थके और शिथिल होते हो, तुम्‍हारे पास इच्छाशक्ति तो होती है लेकिन ताकत नहीं। तुम सप्ताह में छह दिन काम करते हो, और जब भी कोई तुमसे फोन पर संपर्क करने का प्रयास करता है तो तुम हमेशा समय न होने की बात कहते हो। तुम्‍हारे पास केवल रविवार को समय होता है, और तब भी तुम्‍हें अपने परिवार और बच्चों के साथ समय बिताने, घर के कामकाज निपटाने, खुद को तरोताजा करने और थोड़ा आराम करने की जरूरत होती है। कुछ लोग तो छुट्टियों पर बाहर भी जाते हैं, कुछ समय अवकाश की गतिविधियों पर बिताते हैं, और पैसे खर्च करके खरीदारी करते हैं। कुछ लोग अपने सहकर्मियों के साथ संबंध बेहतर बनाते हैं और नेताओं तथा उच्च अधिकारियों के साथ मेल-जोल बढ़ाते हैं। यह कैसा विश्वास है? ऐसा व्‍यक्ति पूरी तरह से एक छद्म-विश्वासी है; औपचारिकता में उलझने का क्‍या लाभ? यह मत कहो कि तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो; तुम्‍हारा परमेश्वर के विश्‍वासियों के साथ कोई संबंध नहीं है। तुम कलीसिया के नहीं हो; अधिक-से-अधिक, तुम कलीसिया के एक मित्र मात्र हो। परमेश्वर के घर को बाहरी मामले संभालने के लिए किसी की जरूरत है, और हो सकता है कि तुम मदद के लिए सहमत हो जाओ लेकिन बात सिर्फ इतनी है कि तुम केवल इनकार नहीं कर रहे। तुम अपना पद भर सकते हो या नहीं, या उसे कब भर सकते हो, यह अज्ञात है। और अपने पद पर पहुँचने के बाद, तुम अपना काम पूरा समय, पूरा दिल और ताकत लगाकर कर सकते हो या नहीं, यह अनिश्चित है—ये सभी बातें अज्ञात हैं। कौन जानता है कि कब तुम काम में अत्यधिक व्यस्त हो जाओ, या किसी व्यवसाय के काम से यात्रा पर चले जाओ, और दो सप्ताह या महीनेभर के लिए बिना किसी नामो-निशान के गायब हो जाओ—कोई भी तुम तक नहीं पहुँच सकता। यह अब वास्तविक आस्था नहीं, महज औपचारिकता रह गई है। जब ऐसे लोगों की बात आती है, तो उनकी परमेश्वर के वचनों की किताबें छीन ली जानी चाहिए, और फिर उन्हें निकालकर कह दिया जाना चाहिए, “यदि तुम काम नहीं छोड़ सकते, तुम्‍हारे पास सभाओं के लिए समय नहीं है, और अपना कर्तव्य नहीं निभा सकते, तो परमेश्वर का घर तुम्हें बाध्य नहीं करेगा। चलो, यहीं अलग हो जाते हैं। जब तुम केवल भोजन और वस्‍त्र से ही संतुष्ट हो सको, उच्च गुणवत्ता वाले जीवन की माँगें छोड़ सको, और अपने कर्तव्य को निभाने के लिए अधिक समय दे सको, तब हम तुम्‍हें औपचारिक रूप से स्वीकार करेंगे और कलीसिया के एक सदस्य के रूप में गिनेंगे। यदि तुम यह हासिल नहीं कर सकते, और केवल अपने खाली समय में आते हो, मदद करते हो और भाई-बहनों के साथ कमजोर रिश्ते बनाते हो तो इसे एक सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य निभाने के रूप में नहीं गिना जाता है, और इसे निश्चित रूप से परमेश्वर में औपचारिक रूप से विश्वास करना नहीं माना जाता।” ऐसे लोगों को हम क्या कहते हैं? (कलीसिया के मित्र।) कलीसिया के मित्र, कलीसिया के अच्छे मित्र। “क्योंकि जो हमारे विरोध में नहीं, वह हमारी ओर है” (मरकुस 9:40)। इसलिए, ऐसे लोग कलीसिया के मित्र कहलाते हैं। किसी को कलीसिया का मित्र कहना यह दर्शाता है कि वे अभी निगरानी चरण में हैं, वे अभी तक परमेश्वर के औपचारिक विश्वासी नहीं हैं, उन्हें कलीसिया के सदस्यों में नहीं गिना जाता है, न ही उन्हें अभी तक कर्तव्य निभाने वालों में माना जाता है; अधिक-से-अधिक उनकी अभी भी निगरानी की जानी है, क्योंकि अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि वे अपना कर्तव्य निभा सकते हैं या नहीं। हालाँकि, कुछ लोगों को, पारिवारिक माहौल या परिस्थितियों के कारण उन पर लगे प्रतिबंधों के कारण, आजीविका कमाने और अपने बच्चों के भरण-पोषण के लिए सप्ताह में कई दिन काम करना पड़ता है। हम उनसे कोई बाध्‍यकारी माँग नहीं करेंगे। यदि वे अपने शेष समय में अपने कर्तव्य निभा सकते हैं, तो उन्‍हें औपचारिक रूप से परमेश्वर में विश्वास करने वाले, परमेश्वर के घर के सदस्य के रूप में गिना जाता है क्योंकि वे पहले से ही भोजन और वस्‍त्रों से संतुष्ट रहने की बुनियादी शर्त पूरी कर चुके हैं। उनके सामने वस्‍तुगत चुनौतियाँ होती हैं और यदि तुम उन्हें काम करने से रोकते हो तो उनके पूरे परिवार के पास भरण-पोषण का कोई साधन नहीं होगा, और वे ठंड और भूख से पीड़ित हो जाएँगे। यदि तुम उन्हें काम नहीं करने दोगे तो उनके परिवार का भरण-पोषण कौन करेगा? क्या तुम उसका भरण-पोषण करने को तैयार हो? इसलिए, कलीसिया के अगुआओं, निरीक्षकों और उनसे संबंधित किसी भी व्यक्ति का यह माँग करना उचित नहीं है कि वे अपनी नौकरी छोड़ दें और अपने परिवारों की चिंता न करें। ऐसा कदापि नहीं करना चाहिए। यह लोगों से असंभव कार्य करने के लिए कहना होगा; उन्हें आजीविका का साधन दिया जाना चाहिए। लोग शून्य में नहीं जीते, वे मशीनें नहीं हैं। उन्‍हें जीवित रहना, अपनी आजीविका को कायम रखना होता है। जैसा कि हमने पहले चर्चा की थी, यदि तुम्‍हारे पास बच्चे और परिवार है, तो परिवार के मुख्य सहारे या सदस्य के रूप में, तुम्‍हें अपने परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। इस जिम्मेदारी को पूरा करने का सिद्धांत भोजन और गर्माहट प्राप्त करना है, यही सिद्धांत है। कुछ लोगों के लिए, यह वह स्थिति है जिसमें वे हैं और वे इस बारे में कुछ नहीं कर सकते। अपने परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारियाँ निभाने के बाद, वे अपने कर्तव्य निभाने के लिए अपनी दिनचर्या को समायोजित करते हैं। इसकी अनुमति परमेश्वर के घर द्वारा दी गई है; तुम लोगों से असंभव कार्य करने को नहीं कह सकते। क्या यह कोई सिद्धांत है? (हाँ।) किसी के लिए भी यह माँग करना उचित नहीं है कि जिन लोगों ने हाल ही में परमेश्वर में विश्वास करना शुरू किया है और जिन्‍हें अभी जड़ें जमानी बाकी हैं, उन्हें अपनी नौकरी छोड़ देनी चाहिए, अपने परिवार का त्‍याग कर देना चाहिए, तलाक ले लेना चाहिए, अपने बच्चों की उपेक्षा करनी चाहिए या अपने माता-पिता को ठुकरा देना चाहिए। इनमें से कुछ भी आवश्यक नहीं है। परमेश्वर के वचनों में लोगों से जिन चीजों का पालन करने की अपेक्षा की जाती है, वे सत्य सिद्धांत हैं, और इन सिद्धांतों में विभिन्न स्थितियाँ और शर्तें शामिल हैं। इन विभिन्न स्थितियों व शर्तों के आधार पर सत्य के सिद्धांतों के अनुरूप अपेक्षाएँ तथा मानक बनाए जाने चाहिए; केवल यही सही है। इसलिए, करियर के मामले में, भोजन और वस्‍त्रों से संतुष्ट रहना अति महत्वपूर्ण है। यदि तुम इस बिंदु को स्पष्ट रूप से नहीं समझ पाते, तो तुम अपना कर्तव्य खो सकते हो और बचाए जाने के अपने अवसरों को जोखिम में डाल सकते हो।

अंत के दिन एक विशेष समय भी हैं। एक दृष्टि से, कलीसिया के मामले व्यस्त और जटिल हैं; दूसरे नजरिये से, इस क्षण जबकि परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार फैल रहा है, परमेश्वर के घर के भीतर की विभिन्न परियोजनाओं की जरूरतों को पूरा करने के लिए अधिक लोगों को अपना समय और ऊर्जा देने, अपने प्रयासों का योगदान देने और अपने कर्तव्यों को पूरा करने की आवश्यकता है। इसलिए, तुम्‍हारा पेशा जो भी हो, यदि जीवन की बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने के अलावा, तुम परमेश्वर के घर में अपने कर्तव्य को पूर्ण करने, और विभिन्न परियोजनाओं में सहयोग करने के लिए अपना समय और ऊर्जा समर्पित करने में सक्षम हो, तो परमेश्वर की दृष्टि में, यह न केवल वांछनीय है बल्कि इसका विशेष मोल भी है। यह परमेश्वर द्वारा याद रखने योग्य है, और निश्चित रूप से यह इस योग्य भी है कि लोग इसमें इतना निवेश और व्‍यय करें। ऐसा इसलिए कि यद्यपि तुमने देह के सुखों का त्याग किया है, लेकिन तुम्‍हें जो प्राप्त हुआ है, वह है परमेश्वर के वचनों का अमूल्‍य जीवन, एक अनंत जीवन, एक अमूल्य खजाना जिसका दुनिया में किसी भी चीज से, पैसे या किसी अन्य चीज से आदान-प्रदान नहीं किया जा सकता है। और यह अमूल्य खजाना, वह चीज जिसे तुम समय और ऊर्जा का निवेश करके, स्‍वयं के प्रयासों और अनुसरण के माध्यम से प्राप्त करते हो : यह एक विशेष उपकार है और कुछ ऐसा है जिसे तुमने भाग्‍यशाली होने के कारण पाया है, है न? परमेश्वर के वचनों और सत्य का किसी का जीवन बन जाना : यह एक अमूल्य खजाना है जिसके बदले में लोगों को अपना सब कुछ अर्पित कर देना चाहिए। इसलिए, तुम्‍हें भोजन और वस्‍त्र उपलब्‍ध करवाने वाले तुम्‍हारे पेशे के आधार पर यदि तुम कीमत चुकाने और सत्य का अनुसरण करने में समय और ऊर्जा का निवेश करने में सक्षम हो—यदि तुम इस मार्ग को चुनते हो—तो यह जश्न मनाने लायक अच्छी बात है। तुम्‍हें इस बारे में हतोत्साहित या भ्रमित महसूस नहीं करना चाहिए; तुम्‍हें आश्वस्त रहना चाहिए कि तुमने सही चुनाव किया है। हो सकता है कि तुम पदोन्नति, वेतन वृद्धि और उच्चतर आय, शारीरिक जीवन के अधिक आनंद या समृद्ध जीवन के अवसरों से चूक गए हो, लेकिन तुमने उद्धार के अवसर को हाथ से जाने नहीं दिया है। तुमने इन चीजों को खो या छोड़ दिया है, इस तथ्‍य का मतलब यह है कि तुम्‍हारा चुनाव तुम्‍हारे लिए उद्धार की आशा और जीवन शक्ति लेकर आया है। तुमने कुछ भी नहीं खोया है। इसके विपरीत, यदि भोजन और वस्त्र प्राप्त करने के बाद, तुम अतिरिक्त समय और ऊर्जा लगाते हो, अधिक पैसा कमाते हो, अधिक भौतिक सुख प्राप्त करते हो, और तुम्‍हारा शरीर संतुष्ट हो जाता है, लेकिन ऐसा करने में, तुम अपने उद्धार की आशा को नष्‍ट कर देते हो तो यह निस्संदेह तुम्‍हारे लिए अच्छी बात नहीं है। तुम्‍हें इस बारे में परेशान और चिंतित होना चाहिए; तुम्‍हें अपने काम को या जीवन के बारे में अपने रवैये और भौतिक जीवन की गुणवत्ता से संबंधित माँगों को समायोजित करना चाहिए; तुम्‍हें शारीरिक जीवन की कुछ ऐसी इच्छाओं, योजनाओं और उद्देश्‍यों को छोड़ देना चाहिए जो वास्तविकता से मेल नहीं खाते हैं। तुम्‍हें परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए, उसके समक्ष आना चाहिए, और अपने कर्तव्य को पूरा करने का संकल्प लेना चाहिए, अपने मन और शरीर को परमेश्वर के घर के विभिन्न कार्यों में लगाना चाहिए, ताकि भविष्य में, जिस दिन परमेश्वर का कार्य समाप्त हो जाए, जब वह तमाम तरह के सभी लोगों के काम की जाँच करे और इन तमाम तरह के सभी लोगों के आध्‍यात्मिक कद को नापे तो तुम उनका एक हिस्‍सा हो। जब परमेश्वर का महान कार्य पूरा हो जाएगा, जब परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार पूरे ब्रह्मांड में फैल जाएगा, जब यह आनंदमय दृश्य सामने आएगा, तो यह तुम्‍हारा परिश्रम, निवेश और बलिदान होगा। जब परमेश्वर महिमा पाता है, जब उसका कार्य पूरे ब्रह्मांड में फैलता है, जब हर कोई परमेश्वर के महान कार्य के सफलतापूर्वक पूर्ण होने का जश्न मना रहा होता है, तब आनंद के उस क्षण के सामने आने पर, तुम वह व्यक्ति होगे जो इस आनंद से जुड़ा हुआ है। तुम इस आनंद के भागीदार होगे, जिस समय बाकी सभी लोग आनंद से उछल और चिल्‍ला रहे होंगे, उस समय तुम वह व्यक्ति नहीं होगे जो रो रहा और दाँत पीस रहा होगा, अपनी छाती पीट और पीठ पर मार रहा होगा, जिसे दंड मिल रहा होगा, जिसे परमेश्वर द्वारा पूरी तरह से तिरस्कृत करके निकाल दिया जाएगा। निःसंदेह, इससे भी बेहतर यह है कि जब परमेश्वर का महान कार्य पूरा हो जाएगा, तो तुम्‍हारे पास जीवन के रूप में परमेश्वर के वचन होंगे। तुम एक ऐसे व्यक्ति होगे जिसे बचा लिया गया है, जो अब परमेश्वर के खिलाफ विद्रोह नहीं करता, सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं करता, बल्कि एक ऐसा व्यक्ति जो परमेश्वर के अनुरूप है। साथ ही, तुम उन सभी चीजों पर भी खुशी मनाओगे जिन्हें तुमने शुरू में ही त्याग दिया था : उच्च वेतन, शारीरिक सुख, अच्छा भौतिक उपचार, श्रेष्‍ठ जीवन परिवेश और अगुआओं द्वारा प्रदत्‍त प्रशंसा, पदोन्नति और उन्नयन। तुम्हें यह पछतावा नहीं होगा कि तुमने पदोन्नति के लिए वे अवसर नहीं छोड़े या अपना वेतन बढ़ाने और संपत्ति बनाने के लिए वे अवसर नहीं छोड़े या विलासितापूर्ण जीवनशैली अपनाने के वे मौके नहीं छोड़े। संक्षेप में कहें तो किसी व्यक्ति के पेशे की अपेक्षाएँ और मानक अभ्यास के ऐसे सिद्धांत भी हैं जिनका उसे पालन करना चाहिए, और इन सभी का सार इस कहावत में है : “भोजन और वस्‍त्रों से संतुष्ट रहो।” जीवन प्राप्त करने के लिए सत्य का अनुसरण करना ही वह चीज है जिस पर लोगों को बने रहना चाहिए। उन्हें अपनी शारीरिक इच्छाओं की संतुष्टि और शारीरिक आनंद के लिए सत्य तथा सही मार्ग को नहीं छोड़ना चाहिए। यह दूसरा सिद्धांत है जिस पर लोगों को करियर के संबंध में कायम रहना चाहिए।

अपने करियर का त्याग करना, इस विषय के संबंध में आज हमने दो सिद्धांतों पर चर्चा की। क्या तुम इन दो सिद्धांतों को समझ गए हो? (हाँ।) सिद्धांतों के स्पष्ट होने पर, अगला कदम है इन सिद्धांतों के आधार पर यह मूल्यांकन करना कि उनका अभ्यास कैसे किया जाए। अंततः, जो लोग ही इन सिद्धांतों पर कायम रह सकते हैं वे ही परमेश्वर के मार्ग का अनुसरण कर रहे हैं, जबकि जो लोग सिद्धांतों पर कायम नहीं रह सकते, वे परमेश्वर के मार्ग से भटक रहे हैं। यह इतनी सरल बात है। यदि तुम सिद्धांतों पर कायम रह सकते हो, तो सत्य प्राप्त कर लोगे; यदि तुम सिद्धांतों पर कायम नहीं रहते तो सत्य खो दोगे। सत्य की प्राप्ति उद्धार की आशा प्रदान करती है; सत्य को प्राप्त करने में असफल रहने पर उद्धार की आशा खो जाएगी—बात बस ऐसी है। ठीक है, चलो, आज की संगति यहीं समाप्त करते हैं। अलविदा!

10 जून 2023

The Bible verses found in this audio are from Hindi OV and the copyright to the Bible verses belongs to the Bible Society of India. With due legal permission, they are used in this production.

परमेश्वर का आशीष आपके पास आएगा! हमसे संपर्क करने के लिए बटन पर क्लिक करके, आपको प्रभु की वापसी का शुभ समाचार मिलेगा, और 2025 में उनका स्वागत करने का अवसर मिलेगा।

WhatsApp पर हमसे संपर्क करें