सत्य का अनुसरण कैसे करें (20) भाग दो

इस चरण में हम जिस विषय पर संगति कर रहे हैं, वह है लोगों के लक्ष्‍यों, आदर्शों और इच्छाओं का त्‍याग करना। अपनी पिछली सभा में, हमने परिवार से जुड़े कुछ बोझों का त्‍याग करने के बारे में संगति की थी। परिवार से जुड़े बोझों के विषय के अंतर्गत, हमने पहले माता-पिता की अपेक्षाओं के बारे में संगति की और फिर उन अपेक्षाओं के बारे में संगति की जो माता-पिता की अपनी संतान को लेकर होती है। ये सभी ऐसी चीजें हैं जिनका लोगों को सत्य का अनुसरण करने की प्रक्रिया में त्‍याग कर देना चाहिए, क्या ऐसा नहीं है? (हाँ।) लोगों के लक्ष्‍यों, आदर्शों और इच्छाओं का त्‍याग करने के संबंध में हमने कुल चार चीजों को सूचीबद्ध किया है। पहली चीज है, रुचियाँ और शौक, दूसरी है शादी और तीसरी है परिवार—इन तीनों के बारे में हम पहले ही संगति कर चुके हैं। अंतिम बची हुई चीज क्या है? (करियर।) चौथी चीज करियर है; हमें इस विषय पर संगति करनी चाहिए। क्या तुम लोगों में से किसी ने पहले इस विषय पर विचार किया है? यदि तुमने ऐसा किया है, तो पहले तुम इसके बारे में बात कर सकते हो। (मैं सोचता था कि किसी का करियर में सफल या असफल होना एक व्यक्ति के रूप में उसकी सफलता या असफलता को दर्शाता है। मैं सोचता था कि अगर अपने करियर को लेकर किसी व्यक्ति में समर्पण की कमी है या वह अपना करियर खराब कर लेता है, तो यह दर्शाता है कि वह एक व्यक्ति के रूप में असफल हो गया है।) अब, जब बात करियर का त्‍याग करने की आती है, तो क्या छोड़ा जाना चाहिए? (लोगों को अपने करियर से संबंधित महत्त्वकांक्षाओं और इच्छाओं को छोड़ देना चाहिए।) यह इसे देखने का एक तरीका है। जब बात लोगों के लक्ष्यों, आदर्शों और इच्छाओं का त्‍याग करने के विषय के अंतर्गत “करियर” की हो तो तुम लोग किन चीजों को छोड़ने के बारे में सोचते हो? क्या तुम्‍हें सत्य का अनुसरण करने की प्रक्रिया में करियर के कारण आने वाली विभिन्न समस्याओं का समाधान नहीं करना चाहिए? (पहले, जब मैं धर्मनिरपेक्ष दुनिया में था, तो मैं मानता था कि मेरा अपने करियर में सफल होना जरूरी है, मेरे लिए अपनी पहचान बनाना जरूरी है। परिणामस्वरूप, खुद को अलग दिखाने की इच्छा में, मैं बेताबी से अपने करियर के पीछे भागता रहा। परमेश्वर में विश्वास करना शुरू करने के बाद, मैं परमेश्वर के घर में अलग दिखने की चाह रखने लगा, मैं चाहता था कि दूसरे लोग मेरी ओर आदर की दृष्टि से देखें। यह मुद्दा मेरे जीवन प्रवेश में एक काफी बड़ी बाधा बन गया।) तुम लोग समझते हो करियर मूलतः एक व्यक्तिगत लक्ष्‍य है; यह उस मार्ग को भी स्‍पर्श करता है जिस पर व्‍यक्ति चलता है। इसलिए, लोगों के लक्ष्‍यों, आदर्शों और इच्छाओं का त्‍याग करने के विषय के तहत “करियर” पर हमारी संगति में, मैं अभी ऐसी किसी भी विषयवस्तु का उल्लेख नहीं करूँगा जो लोगों के लक्ष्‍यों को स्‍पर्श करती हो। हम मुख्य रूप से “करियर” के शाब्दिक अर्थ के बारे में बात करेंगे। “करियर” का तात्पर्य क्या है? यह वह कार्य या श्रम है जिसमें लोग इस दुनिया में रहते हुए अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए संलग्‍न होते हैं। यह विषय जिस पर हम संगति करना चाहते हैं, लोगों के लक्ष्‍यों, आदर्शों और इच्छाओं का त्‍याग करने के विषय के अंतर्गत “करियर” के दायरे में आता है। यह परमेश्वर में विश्वास करते और सत्य का अनुसरण करते हुए, अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए नौकरी करने और समाज में एक व्यवसाय चुनने के दायरे और सिद्धांत से संबंधित है। स्वाभाविक रूप से, यह कमोबेश लोगों के लक्ष्‍यों से संबंधित विषयवस्तु के कुछ हिस्‍से की तथा जिस कार्य में एक विश्‍वासी संलग्‍न होता है, उससे संबंधित परमेश्वर की अपेक्षाओं की बात करेगा। इसे उन विचारों और दृष्टिकोणों से संबंधित भी कहा जा सकता है जो एक विश्‍वासी को दुनिया की विभिन्न नौकरियों और करियर के प्रति रखने चाहिए। करियर को स्‍पर्श करने वाले विषय काफी व्यापक हैं; हम उन्हें श्रेणीबद्ध करेंगे, ऐसा करने से लोगों को यह समझने में मदद मिलेगी कि विश्वासी और सत्य का अनुसरण करने वाले जिन करियर में संलग्न होते हैं, उनके संबंध में परमेश्वर के क्‍या मानक और अपेक्षाएँ हैं, साथ ही, परमेश्वर विश्वासियों और सत्य का अनुसरण करने वालों से किन विचारों और दृष्टिकोणों को रखने की अपेक्षा रखता है जब वे किसी पेशे में संलग्‍न होते हैं या उस पर विचार करते हैं। इससे लोग अपनी धारणाओं और अभिलाषाओं में मौजूद करियर संबंधी लक्ष्‍यों तथा लालसाओं को त्‍याग सकेंगे। साथ ही, यह लोगों के उन गलत दृष्टिकोणों को भी सुधारेगा जो वे संसार में अपने पेशे या अपने उस करियर के प्रति रखते हैं जिसके लिए वे प्रयासरत हैं। जिन करियर का लोगों को त्‍याग कर देना चाहिए, उसकी विषयवस्तु को हम चार मुख्‍य बातों में विभाजित करेंगे : जिस पहली चीज के बारे में लोगों को समझने की आवश्यकता है, वह है दान-पुण्य न करना; दूसरी चीज है, भोजन और वस्त्रों से संतुष्ट रहो; तीसरी चीज विभिन्न सामाजिक ताकतों से दूर रहना है; चौथी चीज राजनीति से दूर रहना है। हम इन चार चीजों की विषयवस्तु के आधार पर करियर का त्‍याग करने से संबंधित मुद्दों पर संगति करेंगे। जरा सोचो, क्या इन चार विषयों की विषयवस्तु की उससे कोई प्रासंगिकता है जिसके बारे में तुम संगति करते रहे हो? (नहीं है।) तुम लोग किस बारे में संगति करते रहे हो? (व्यक्तिगत लक्ष्‍यों के बारे में।) तुम लोग जिस बारे में संगति करते रहे हो, उसमें सत्य सिद्धांत शामिल नहीं हैं, वह बस कुछ छोटे, व्यक्तिगत लक्ष्‍यों से संबंधित है। जिन चार बिंदुओं पर हम संगति कर रहे हैं, उनमें करियर विषय के अंतर्गत विभिन्न सिद्धांत शामिल हैं। यदि लोग इन विभिन्न सिद्धांतों को समझ जाएँ, तो उनके लिए सत्य का अनुसरण करने की प्रक्रिया के दौरान करियर के संबंध में वह सब छोड़ना आसान होगा जो उन्‍हें छोड़ना चाहिए। उनके लिए इन चीजों को छोड़ना आसान होगा क्योंकि वे सत्य के इन पहलुओं को समझते हैं। लेकिन, यदि तुम इन सत्यों को नहीं समझते, तो तुम्‍हारे लिए इन चीजों का त्‍याग करना बहुत कठिन होगा। आओ, एक-एक करके करियर का त्‍याग करने के इन चार सिद्धांतों पर संगति करें।

सबसे पहले, दान-पुण्य न करना। दान-पुण्य न करने का क्या अर्थ है? शब्दों का शाब्दिक अर्थ समझना आसान है। तुम सभी की कमोबेश दान के विषय पर कुछ-न-कुछ अवधारणा है, है न? उदाहरण के लिए, अनाथालय, आश्रय स्थल और समाज में इस तरह के अन्‍य दानार्थ संगठन—ये सभी दान कार्य से संबंधित संगठन और अभिधान हैं। इसलिए, जब लोगों के करियर की बात आती है, तो परमेश्वर की पहली अपेक्षा यह है कि वे दान-पुण्य न करें। इसका अर्थ क्या है? इसका अर्थ है कि लोगों को दान-पुण्य संबंधी चीजें नहीं करनी चाहिए या दान-पुण्य से संबंधित किसी भी उद्योग में संलग्‍न नहीं होना चाहिए। क्या यह समझना आसान नहीं है? एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जो परमेश्वर में विश्वास करता है, जिसका एक भौतिक शरीर है, जिसका एक परिवार और एक जीवन है, और जिसे अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए पैसों की आवश्यकता है, तुम्‍हारे लिए किसी पेशे में संलग्न होना आवश्‍यक है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम किस प्रकार के पेशे में संलग्न होते हो, लोगों से परमेश्वर की पहली अपेक्षा दान-पुण्य न करना है। तुम्‍हें परमेश्वर में विश्वास करने के कारण या अपने भौतिक जीवन के निर्वहन के लिए दान-पुण्य नहीं करना चाहिए। वह कार्य ऐसा पेशा नहीं है जिसमें तुम्‍हें संलग्‍न होना चाहिए। यह परमेश्वर द्वारा तुम्‍हें सौंपा गया पेशा नहीं है, और यह निश्चित रूप से परमेश्वर द्वारा तुम्‍हें सौंपा गया कर्तव्य नहीं है। दान-पुण्य जैसी चीजों का परमेश्वर में विश्वास करने वालों या सत्य का अनुसरण करने वालों से संबंध नहीं है। कहा जा सकता है कि यदि तुम दान-पुण्य करते हो तो परमेश्वर इसे याद नहीं रखेगा। भले ही तुम संतुष्टि के साथ इसे अच्छी तरह से करते हो, और तुम्‍हें समाज और यहाँ तक कि भाई-बहन भी मान्यता दे देते हैं, परमेश्वर इसे मान्यता नहीं देगा, न ही इसे याद रखेगा। परमेश्वर तुम्‍हें याद नहीं रखेगा या अंततः आशीष नहीं देगा, या अपवादस्‍वरूप तुम्‍हें उद्धार प्राप्‍त करने नहीं देगा या वह तुम्‍हें इसलिए एक अद्भुत गंतव्य नहीं देगा क्योंकि तुम कभी दान-पुण्य करते थे, तुम कभी एक महान परोपकारी थे, तुमने अनेक लोगों की मदद की थी, अनेक अच्छे काम किए थे, अनेक लोगों को लाभ पहुँचाया था, या कई लोगों की जान भी बचाई थी। अर्थात् दान-पुण्य करना उद्धार की आवश्यक शर्त नहीं है। तो फिर दान के मामलों में क्या शामिल है? वास्तव में, किसी न किसी हद तक, हर किसी के मन में कुछ एक ऐसी चीजें होती हैं जिन्हें निश्चित रूप से एक प्रकार का दान-पुण्य का कार्य माना जा सकता है। उदाहरण के लिए, आवारा कुत्तों को पालना। चूँकि कुछ देशों में पालतू पशुओं पर सख्त नियंत्रण नहीं है, या खराब आर्थिक स्थितियों के कारण, तुम्‍हें अक्सर सड़कों पर या कुछ क्षेत्रों में आवारा कुत्ते दिखाई देते हैं। “आवारा कुत्तों” से क्या तात्पर्य है? इसका मतलब है कि कुछ लोग अपने कुत्तों को पालने में सक्षम नहीं होते या पालना नहीं चाहते, इसलिए वे उन्हें छोड़ देते हैं, या हो सकता है कि किसी कारण से कुत्ते खो गए, और अब वे सड़कों पर भटक रहे हैं। संभवतः तुम सोचने लगो, “मैं परमेश्वर में विश्वास करता हूँ, इसलिए मुझे इन पशुओं को अपनाना चाहिए, क्योंकि अच्छे काम करना परमेश्वर का इरादा है, इससे परमेश्वर के नाम की महिमा बढ़ती है, और यह एक जिम्मेदारी है जिसे परमेश्वर में विश्वास करने वालों को उठाना चाहिए। यह एक दायित्व है जिससे बचा नहीं जा सकता।” इसलिए, जब तुम आवारा कुत्ते-बिल्लियों को देखते हो तो उन्हें घर ले जाकर पालते हो, मितव्ययिता से रहते हो ताकि उनके लिए भोजन खरीद सको। कुछ लोग इसमें अपना वेतन और रोजमर्रा के खर्च भी लगा देते हैं, और अंततः ज्‍यादा-से-ज्‍यादा कुत्ते-बिल्लियों को अपनाते हैं, और इनके लिए उन्हें घर तक किराए पर लेना पड़ता है। ऐसा करने पर, धीरे-धीरे उनके अपने जीवनयापन के लिए धन कम पड़ता जाता है, और अब उनके वेतन से इसकी पूर्ति नहीं हो पाती, इसलिए उनके पास पैसे उधार लेने के अलावा कोई चारा नहीं बचता। लेकिन भले ही चीजें कितनी भी कठिन क्‍यों न हो जाएँ, उन्हें लगता है कि यह एक दायित्व है जिससे वे बच नहीं सकते, एक जिम्मेदारी है जिसे वे छोड़ नहीं सकते, और उन्हें इसे एक अच्छा काम मानते हुए करना चाहिए। उन्‍हें लगता है कि वे सत्य का अभ्यास कर रहे हैं और सिद्धांतों को कायम रख रहे हैं। वे दान-पुण्य के काम में संलग्न होने हेतु इन आवारा कुत्ते-बिल्लियों को पालने में बड़ी मात्रा में पैसा, ऊर्जा और समय खर्च करते हैं, और मन-ही-मन बहुत सुकून और परिपूर्ण महसूस करते हैं, वे खुद को लेकर वास्तव में अच्छा महसूस करते हैं और कुछ लोग तो यहाँ तक सोचते हैं, “यह परमेश्वर का महिमामंडन है, मैं उन प्राणियों को अपना रहा हूँ जिन्हें परमेश्वर ने बनाया है—यह अत्यंत नेक कर्म है, और परमेश्वर निश्चित रूप से इसे याद रखेगा।” क्या ये विचार सही हैं? (ये सही नहीं हैं।) परमेश्वर ने तुम्‍हें यह कार्य नहीं सौंपा है। न तो यह तुम्‍हारा दायित्व है और न ही जि‍म्मेदारी। यदि तुम्‍हें आवारा कुत्ते या बिल्लियाँ मिलती हैं और वे तुम्‍हें अच्‍छे लगने लगते हैं, तो एक या दो को पालना ठीक है। लेकिन, यदि तुम आवारा पशु पालने को दान-पुण्य के कार्य के रूप में देखते हो, यह मानते हुए कि दान-पुण्य एक ऐसी चीज है जिसे परमेश्वर में विश्वास करने वाले को करना चाहिए, तो तुम बहुत बड़ी गलती कर रहे हो। यह एक विकृत समझ-बूझ है।

ऐसे लोग भी हैं जो जीवित रहने की अपनी क्षमता पर भरोसा रखते हुए, अपने थोड़े-बहुत अतिरिक्त धन का उपयोग अपने आस-पास के गरीबों को राहत देने के लिए करते हैं। वे उन्हें वस्‍त्र, भोजन, रोजमर्रा के काम की चीजें और यहाँ तक कि पैसे भी देते हैं, यह मानते हुए कि यह एक प्रकार का दायित्व है जिसे उन्हें पूरा करना चाहिए। यहाँ तक कि हो सकता है कि वे कुछ गरीब लोगों को भी अपने घर ले आएँ, उनके साथ सुसमाचार साझा करें, और खर्च करने के लिए उन्हें पैसे देने की पेशकश करें। ये गरीब लोग परमेश्वर पर विश्‍वास करने के लिए मान जाते हैं, और बाद में, वे उन्हें भोजन और आश्रय प्रदान करते हैं, यह सोचकर कि वे अपना कर्तव्य और दायित्व पूरा कर रहे हैं। ऐसे लोग भी हैं जो देखते हैं कि समाज में कुछ अनाथ बच्चों को अभी तक गोद नहीं लिया गया है। उनके पास खर्च करने के लिए थोड़ा अतिरिक्त पैसा होता है, इसलिए वे जाकर इन अनाथों की मदद करते हैं, कल्याण गृह और अनाथालय स्थापित करते हैं, और अनाथों को गोद लेते हैं। उन्हें गोद लेने के बाद, वे उनके भोजन, आश्रय और शिक्षा की व्यवस्था करते हैं और यहाँ तक कि वयस्क होने तक उनका पालन-पोषण करते हैं। वे न केवल ऐसा करना जारी रखते हैं, बल्कि इसे अगली पीढ़ी तक भी पहुँचाते हैं। उनका मानना है कि यह एक अत्‍यंत अच्छा और आशीष योग्‍य कार्य है, और यह परमेश्वर के स्मरण के योग्य कार्य है। सुसमाचार फैलाने की अवधि के दौरान भी, कुछ लोग गरीब क्षेत्रों से सुसमाचार के संभावित प्राप्तकर्ताओं को देखते हैं जिनके पास धार्मिक विश्वास है और वे उनकी मदद करने और उन्हें भिक्षा देने के लिए बाध्‍य महसूस करते हैं। लेकिन सुसमाचार फैलाना, मात्र सुसमाचार फैलाना है, यह दान-पुण्य का कार्य या सहायता प्रदान करना नहीं है। सुसमाचार साझा करने का उद्देश्य उन लोगों को, जो परमेश्वर के वचनों को समझ सकते हैं और सत्य को स्वीकार कर सकते हैं, अर्थात् परमेश्वर की भेड़ों को, उसके घर में, उसकी उपस्थिति में लाना है, ताकि उन्हें उद्धार का अवसर मिल सके। इसका संबंध गरीबों की सहायता करने से नहीं है जिससे उन्‍हें खाने और पहनने के लिए कुछ मिल सके, और वे एक सामान्य व्यक्ति जैसा जीवन जी सकें और भूखे न मरें। इसलिए, किसी भी दृष्टिकोण से और किसी भी तरह से, चाहे वह पालतू पशुओं या जानवरों को सहायता देना हो, या गरीबों या ऐसे लोगों की सहायता करना हो जो अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा नहीं कर सकते, दान-पुण्य करना वह नहीं है जिसकी अपेक्षा परमेश्वर किसी व्‍यक्ति से उसके कर्तव्य, जिम्मेदारी या दायित्व के भाग के रूप में अपेक्षा करता है। इसका परमेश्वर के विश्‍वासियों और सत्य का अभ्यास करने वालों से कोई संबंध नहीं है। यदि किसी के पास दयालु हृदय है और वह ऐसा करना चाहता है, या कभी उसकी मुलाकात ऐसे विशेष लोगों से होती है जिन्हें सहायता की आवश्यकता हो, तो सक्षम होने पर वह ऐसा कर सकता है। लेकिन, तुम्‍हें इसे परमेश्वर द्वारा तुम्‍हें सौंपे गए कार्य के रूप में नहीं देखना चाहिए। यदि तुम सक्षम हो और तुम्हारी परिस्‍थि‍ति सही है, तो तुम किसी अवसर पर मदद कर सकते हो, लेकिन यह केवल तुम्‍हारा प्रतिनिधित्व करता है, परमेश्वर के घर का नहीं, और निश्चित रूप से उसकी अपेक्षाओं का तो कतई नहीं। निःसंदेह, ऐसा करने का अर्थ यह नहीं है कि तुमने परमेश्वर के इरादे पूरे कर दिए हैं और इसका अर्थ निश्चित रूप से यह भी नहीं है कि तुम सत्य का अभ्यास कर रहे हो। यह बस तुम्‍हारा व्यक्तिगत आचरण दर्शाता है। यदि तुम ऐसा कभी-कभार करते हो, तो परमेश्वर तुम्‍हें इसके लिए दोषी नहीं ठहराएगा, लेकिन वह इसका स्मरण भी नहीं करेगा—बस इतनी सी बात है। यदि तुम इसे किसी करियर में बदलते हो, नर्सिंग होम, कल्याण गृह, अनाथालय, पशु आश्रय खोलते हो, या आपदा के समय भी आगे बढ़कर आपदाग्रस्‍त लोगों या ऐसे क्षेत्रों को दान-पुण्य करने के लिए कलीसिया में भाई-बहनों से या समुदाय से धन जुटाते हो, तो तुम्‍हें क्या लगता है कि तुम कितना अच्छा कर रहे हो? इसके अलावा, जब कुछ स्थानों पर भूकंप, बाढ़, या अन्य प्राकृतिक या मानव निर्मित आपदाएँ आती हैं, तो कुछ लोग भाई-बहनों से दान माँगने के लिए कलीसिया जाते हैं। इससे भी बदतर, कुछ लोग इन आपदाग्रस्त लोगों और स्थानों की सहायता के लिए चढ़ावों का उपयोग भी करते हैं। उन्‍हें लगता है कि यह प्रत्येक विश्‍वासी का दायित्व है, और एक सामाजिक सामुदायिक संगठन के रूप में कलीसिया को इसे पूरा करना चाहिए। वे इसे एक न्यायसंगत अभियान मानते हैं, न केवल भाई-बहनों से योगदान की माँग करते हैं बल्कि कलीसिया से इन आपदाग्रस्त क्षेत्रों की सहायता के लिए चढ़ावे का कुछ अंश देने का भी आग्रह करते हैं। तुम्‍हारा इस बारे में क्या विचार है? (यह बुरा है।) क्या यह केवल बुरा है? इस मामले की प्रकृति पर चर्चा करो। (चढ़ावा सुसमाचार फैलाने के लिए, सुसमाचार के कार्य का विस्तार करने के लिए होता है। वह आपदा राहत या गरीबों की सहायता के लिए नहीं होता।) (आपदा राहत का सत्‍य से कोई संबंध नहीं है; ऐसा करने का मतलब यह नहीं है कि सत्‍य का अभ्यास किया जा रहा है, और यह निश्चित रूप से स्वभाव में बदलाव की गवाही नहीं देता।) कुछ लोगों का मानना है कि चूँकि सभी लोग एक ही ग्रह पर रहते हैं, पृथ्वी के सभी निवासी एक बड़ा परिवार हैं और जब एक पक्ष मुसीबत में होता है, तो दूसरों को मदद के लिए एकजुट होना चाहिए। वे सोचते हैं कि उन्हें पूरी मदद करनी चाहिए ताकि आपदा क्षेत्र के लोग अपने साथी मनुष्यों की गर्मजोशी महसूस कर सकें और कलीसिया की गर्मजोशी और सहायता का अनुभव कर सकें। वे इसे एक अत्यंत अच्छा कार्य, एक ऐसा कार्य जो परमेश्वर का सम्‍मान करता है, और परमेश्वर की गवाही देने का एक अद्भुत अवसर है। जब कुछ लोगों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे कर्तव्य निभाते समय सिद्धांतों पर कायम रहें और अपने अभ्‍यासों को परमेश्वर के वचनों और कार्य व्यवस्थाओं के अनुरूप करें, तो वे उत्साहहीन और प्रेरणाहीन महसूस करते हैं। वे इन बातों पर अपने हृदय में विचार नहीं करते। लेकिन जहाँ तक गरीब या पिछड़े देशों के लोगों को सहायता प्रदान करने के लिए चढ़ावे समर्पित करने, उनके कर्तव्य निर्वहन के लिए उपकरण खरीदने और उन्हें पर्याप्त भोजन और कपड़ों का जीवन जीने में मदद करने की बात है, तो वे काम पर लगने के लिए विशेष रूप से उत्साही और उत्सुक हो जाते हैं, और अधिक-से-अधिक करना चाहते हैं। वे इतने उत्साही क्यों हैं? क्योंकि वे महान परोपकारी बनना चाहते हैं। जैसे ही किसी महान परोपकारी का उल्लेख होता है, वे विशेष रूप से महान महसूस करने लगते हैं। वे इन गरीब लोगों के जीवन की बेहतरी के लिए प्रयास करने में विशेष रूप से सम्‍मानित महसूस करते हैं और अपने तेज और अपनी गर्मजोशी का उपयोग करते हैं। वे इसके बारे में बेहद उत्साहित महसूस करते हैं, और परिणामस्वरूप कुछ लोग विशेष रूप से इन गतिविधियों में शामिल होने के इच्छुक होते हैं। लेकिन इन चीजों को करने की इस उल्लेखनीय तत्परता के पीछे क्या उद्देश्य है? क्या यह सचमुच परमेश्वर का सम्मान करने के लिए है? क्या परमेश्वर को इस प्रकार के सम्मान की आवश्यकता है? क्या परमेश्वर को इस प्रकार की गवाही की आवश्यकता है? क्या ऐसा हो सकता है कि अगर तुम पैसे या सहायता नहीं दोगे तो परमेश्वर के नाम का अपमान होगा? क्या परमेश्वर अपनी महिमा खो देगा? क्या यह संभव है कि जब तुम ऐसा करोगे तो परमेश्वर महिमामंडित होगा? क्या वह संतुष्ट होगा? क्या यही मामला है? (नहीं, ऐसा नहीं है।) तो फिर बात क्या है? ये लोग ऐसा करने के इतने इच्छुक क्यों हैं? क्या इनका इरादा अपने अहंकार को संतुष्ट करना है? (हाँ।) उनका इरादा उन लोगों से सराहना पाना है जिनकी इन्होंने मदद की है, अपनी उदारता, विशाल हृदयता और धन के लिए प्रशंसा पाना है। कुछ लोगों में हमेशा वीरतापूर्ण भावना होती है : वे उद्धारकर्ता बनना चाहते हैं। तुम स्‍वयं को क्यों नहीं बचाते? क्या तुम जानते हो कि तुम किस प्रकार के व्यक्ति हो? यदि तुममें दूसरों को बचाने की क्षमता है, तो तुम स्वयं को क्यों नहीं बचा सकते? यदि तुम इतने उदार हो, तो खुद को बेचकर उन लोगों की मदद के लिए पैसे क्यों नहीं देते? चढ़ावों का उपयोग क्‍यों करते हो? यदि तुममें यह क्षमता है तो तुम्‍हें खाना-पीना बंद कर देना चाहिए, या दिन में केवल एक बार खाना चाहिए, और इस तरह जो पैसा तुम बचाते हो उसका उपयोग उन लोगों की मदद करने के लिए करना चाहिए ताकि वे अच्छा खा सकें और गर्म कपड़े पहन सकें। तुम परमेश्वर के चढ़ावों का दुरुपयोग क्यों करते हो? क्या यह परमेश्वर के घर की कीमत पर उदार होना नहीं है? (हाँ।) परमेश्वर के घर की कीमत पर उदार होना, दूसरों से “महान परोपकारी” की उपाधि पाना, दूसरों की जरूरत बनने की अपनी अहंकारी इच्छा को संतुष्ट करना—क्या यह बेशर्मी नहीं है? (हाँ।) चूँकि यह बेशर्मी का काम है, तो ऐसा काम किया जाना चाहिए या नहीं? (ऐसा नहीं किया जाना चाहिए।) परमेश्वर के घर द्वारा सुसमाचार के विस्तार की प्रकृति दान-पुण्य करना नहीं है; इसकी प्रकृति उन भेड़ों को तलाश करना है जो परमेश्वर के वचनों को समझ सकें, इन लोगों को परमेश्वर की उपस्थिति में वापस लाना, उनसे परमेश्वर की ताड़ना और न्याय को स्वीकार करवाना और परमेश्वर का उद्धार प्राप्त करवाना है। मानवजाति को बचाने के लिए परमेश्वर की प्रबंधन योजना में सहयोग करना यह होता है, न कि दान-पुण्य करना या सहायता प्रदान करना या जहाँ गरीबी हो वहाँ सुसमाचार का प्रचार करना। यह सुसमाचार फैलाने की आड़ में दान-पुण्य का कार्य करना है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि ये लोग भरपेट भोजन करें और अच्‍छा कपड़ा पहनें, आधुनिक तकनीक का उपयोग करें और आधुनिक जीवन का आनंद लें—क्या ये कार्य लोगों को बचा सकते हैं? ऐसे कार्य सुसमाचार फैलाने और लोगों को बचाने के उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर सकते। सुसमाचार फैलाना दान-पुण्य करना नहीं है; इसका संबंध दिलों को जीतने, लोगों को परमेश्वर के सामने लाने, उन्हें सत्‍य और परमेश्वर के उद्धार को स्वीकार करने में सक्षम बनाने से है—राहत प्रदान करने से नहीं। कलीसिया में काम की जरूरतों के कारण, कुछ व्यक्ति अपने कर्तव्यों पर पूर्णकालिक रूप से ध्यान केंद्रित करने के लिए अपना काम और परिवार छोड़ देते हैं, और परमेश्वर का घर उन्हें जीवन-यापन के लिए खर्च प्रदान करता है। लेकिन यह कोई राहत नहीं है, न ही यह दान-पुण्य के कार्य में संलग्न होना है। जब परमेश्वर का घर सुसमाचार फैलाता है और कलीसिया की स्थापना करता है, तो वह कल्याणकारी संस्थाएँ या आश्रय स्थल स्थापित नहीं करता। यह इन लाभों या निधियों का उपयोग करके लोगों को खरीदने या मुफ्त खिलाने-पिलाने के लिए उन्‍हें परमेश्वर के घर में लाना नहीं है। परमेश्वर का घर परजीवियों या भिखारियों की मदद नहीं करता है, न ही यह आवारा या अनाथ लोगों को जगह देता है, न ही यह उन लोगों को राहत प्रदान करता है जिनके पास खाने के लिए कुछ नहीं है। यदि किसी व्‍यक्ति के पास खाने के लिए पैसे नहीं हैं तो इसका कारण उसका आलसी या अक्षम होना है। यह खुद उसकी गलती है और इसका हमारे सुसमाचार फैलाने से कोई लेना-देना नहीं है। हम लोगों को जीतने के लिए, ऐसे लोगों को जीतने के लिए सुसमाचार फैलाते हैं जो परमेश्वर के वचन समझ सकते हैं और सत्य स्वीकार कर सकते हैं, न कि यह देखने के लिए कि कौन गरीब है, कौन दयनीय है, कौन उत्पीड़ित है, या किसका कोई नहीं है ताकि हम उन्हें अंदर ले लें या उनकी मदद करें। सुसमाचार फैलाने के अपने सिद्धांत और मानक हैं, और सुसमाचार के संभावित प्राप्तकर्ताओं के लिए भी मानक और अपेक्षाएँ हैं। इसका संबंध भिखारियों को खोजने से नहीं है। इसलिए, यदि तुम सुसमाचार फैलाने को एक दानार्थ प्रयास मानते हो, तो तुम गलत हो। या यदि तुम मानते हो कि सुसमाचार फैलाने का कर्तव्य निभाते समय और इस कार्य में संलग्न होते समय तुम दान-पुण्य कर रहे हो, तो यह और भी गलत है। यह दिशा और आरंभिक बिंदु, दोनों ही अंतर्निहित रूप से गलत हैं। यदि कोई ऐसा दृष्टिकोण रखता है या अपने कार्यों में ऐसी दिशा लागू करता है, तो उसे तुरंत सुधार करते हुए अपना दृष्टिकोण बदल लेना चाहिए। परमेश्वर गरीबों या समाज के निम्‍नतम स्तर के उत्पीड़ितों पर कभी दया नहीं करता। परमेश्वर के पास किसके लिए करुणा है? कम-से-कम, उसे एक ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जो परमेश्वर में विश्वास करता हो, जो सत्य स्वीकार कर सके। यदि तुम परमेश्वर का अनुसरण नहीं करते, और उसका विरोध और निंदा करते हो, तो क्या परमेश्वर के पास तुम्‍हारे लिए करुणा होगी? यह असंभव है। इसलिए, लोगों को गलती से यह नहीं सोचना चाहिए, “परमेश्वर एक दयालु परमेश्वर है। वह ऐसे लोगों पर दया करता है जो उत्पीड़ित और अलोकप्रिय हैं, जिन्हें नीचा दिखाया जाता है, जो हाशिये पर हैं और जिनका समाज में कोई न होता। परमेश्वर उन सब पर दया करता है और उन्हें अपने घर में प्रवेश करने देता है।” यह गलत है! यह तुम्‍हारी धारणा और कल्पना है। परमेश्वर ने कभी भी इस तरह की चीजें न तो कही हैं, न ही की हैं। यह केवल तुम्‍हारी अपनी आशाओं पर आधारित सोच है, मनुष्‍य की दयालुता के संबंध में तुम्‍हारे विचार हैं जिनका सत्य से कोई संबंध नहीं है। उन लोगों को देखो जिन्हें परमेश्वर चुनकर अपने घर में लाया है। उनका सामाजिक वर्ग जो भी हो, क्या परमेश्वर को किसी के लिए इसलिए दया या खेद महसूस हुआ कि उसके पास खाने के लिए कुछ नहीं था, और वह उसे अपने घर ले आया? एक भी नहीं। इसके विपरीत, वे लोग जिन्हें परमेश्वर ने चुना था, चाहे उनका सामाजिक वर्ग कुछ भी हो—भले ही वे किसान हों—ऐसा कभी न हुआ कि उनके पास खाने को नहीं था, और उनमें कोई भिखारी भी नहीं है। यह परमेश्वर के आशीष का प्रमाण है। यदि परमेश्वर ने तुम्‍हें चुना है, और तुम परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से एक हो, तो वह तुम्‍हें इतना निराश्रित नहीं होने देगा कि तुम खाना भी न खा सको, या ऐसी स्थिति में नहीं पहुँचाएगा जहाँ तुम्‍हें माँगकर खाना पड़े। इसके बजाय, परमेश्वर तुम्‍हें प्रचुर मात्रा में वस्‍त्र और भोजन प्रदान करेगा। परमेश्वर में विश्वास करने वाले कुछ लोग हमेशा कुछ गलत धारणाएँ मन में रखते हैं। वे क्या सोचते हैं? “परमेश्वर में विश्वास करने वाले अधिकतर लोग समाज के सबसे निचले स्तर से आते हैं, और कुछ भिखारी भी हो सकते हैं।” क्या बात ऐसी है? (नहीं, ऐसी बात नहीं है।) यहाँ तक कि कुछ लोग अफवाहें भी फैला रहे हैं कि मैं भिखारी हुआ करता था। मैंने कहा, “तो फिर, क्या मैंने कभी टाट ओढ़ा या लाठी रखी? यदि तुम कहते हो कि मैं एक भिखारी था, तो मुझे इसके बारे में कैसे पता नहीं चला?” मेरे बारे में बात हो रही है और मैं ही नहीं जानता; यह पूरी तरह से बेतुकी बात है! जब परमेश्वर ने कहा, “लोमड़ियों के भट और आकाश के पक्षियों के बसेरे होते हैं; परन्तु मनुष्य के पुत्र के लिए सिर धरने की भी जगह नहीं है।” इसका मतलब क्या है? क्या परमेश्वर कह रहा है कि वह भिखारी बन गया? क्या वह कह रहा है कि वह निराश्रित था और खाना खाने के भी पैसे नहीं थे? (नहीं, वह ऐसा नहीं कह रहा।) वह ऐसा नहीं कह रहा। तो फिर इस कथन का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि संसार और मानवजाति ने परमेश्वर को त्याग दिया था; यह दर्शाता है कि परमेश्वर के लिए कोई जगह नहीं थी, और परमेश्वर मानवजाति को बचाने के लिए आया, फिर भी उसने उसे स्वीकार नहीं किया। कोई भी परमेश्वर का स्‍वागत करने के लिए तैयार नहीं था। यह कथन भ्रष्ट मानवजाति के कुरूप पक्ष को दिखाता है और उस पीड़ा को दर्शाता है जो देहधारी परमेश्वर ने मानव जगत में भोगी थी। परमेश्वर के यह कहने पर कुछ लोग सोचते हैं, “परमेश्वर को भिखारी पसंद हैं, और हम भिखारियों से कहीं बेहतर हैं, इसलिए परमेश्वर की नजरों में हमारी स्थिति अधिक ऊँची है।” नतीजतन, वे भिखारियों की मदद करना चाहते हैं। यह पूरी तरह से मनुष्यों को हुई गलतफहमी है, इसका संबंध लोगों के भ्रामक विचारों और दृष्टिकोणों से है। इसका परमेश्वर के सार, उसके स्वभाव, या उसकी करुणा और प्रेम से बिल्कुल कोई संबंध नहीं है।

कुछ लोग कहते हैं, “तुम लोगों के लक्ष्‍यों, आदर्शों और इच्छाओं को त्याग देने के विषय के अंतर्गत ‘करियर’ छोड़ने की बात करते हो और लोगों से दान-पुण्य न करने को कहते हो। लेकिन तुम हमेशा पशुओं के साथ अच्छा व्यवहार करने और उन्हें नुकसान न पहुँचाने पर जोर क्यों देते हो? इसका क्या अर्थ है? कुत्तों और बिल्लियों को परमेश्वर के घर में भी रखा जाता है, और लोगों को उन्हें नुकसान पहुँचाने की अनुमति नहीं है।” मुझे बताओ, क्या इसमें और दान-पुण्य करने में कोई अंतर है? क्या ये एक ही चीज हैं? (नहीं, ये एक ही चीज नहीं हैं।) यहाँ क्या हो रहा है? (विभिन्न प्रकार के पशुओं को नुकसान न पहुँचाना सामान्य मानवता की अभिव्यक्ति है।) यह सामान्य मानवता की अभिव्यक्ति है। तो फिर सामान्य मानवता का अभ्यास और प्रकटीकरण क्या होना चाहिए? (चूँकि कोई उन्‍हें पालना चुनता है, तो उसे अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी।) अपनी जिम्‍मेदारी निभाना—क्या इससे अधिक विशिष्ट कुछ है? (उसे उनकी देखभाल करनी होगी।) यह एक विशिष्ट कार्य है। किन सिद्धांतों का पालन किया जाना चाहिए? इसमें सत्‍य शामिल है। मैं समझाता हूँ, और तुम लोग सुनो और देखो कि क्या इसमें सत्‍य शामिल है। परमेश्वर द्वारा बनाए गए प्राणियों की देखभाल करना सामान्य मानवता की अभिव्यक्ति है। अधिक ठोस रूप में, इसका अर्थ है, उनके प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाना और उनकी अच्छी देखभाल करना। चूँकि उन्हें पालने का चुनाव तुम्हारा है, तो तुम्‍हें ही जिम्मेदारी निभानी होगी। पालतू पशु मनुष्‍यों द्वारा पाले और देखभाल किए जाने के लिए बने हैं। वे उन जंगली जानवरों से भिन्न हैं जिनकी देखभाल के लिए तुम्‍हारी आवश्यकता नहीं होती। जंगली जानवरों के प्रति जो सबसे बड़ा सम्मान और देखभाल तुम प्रदर्शित कर सकते हो, वह जानबूझकर उनके आवास को नष्ट करने से बचना और उनका शिकार न करना या उन्‍हें न मारना है। जहाँ तक घरेलू मुर्गी, पशुधन या पालतू पशुओं का सवाल है, जिन्हें लोग अपने घरों में रख सकते हैं, चूँकि तुम उन्हें पालना चुनते हो तो तुम्‍हें अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए। यानी, तुम्‍हारी परिस्थितियों के आधार पर, यदि तुम्‍हारे पास समय है तो कुछ समय के लिए उनके साथ रहो, और यदि तुम व्यस्त हो तो बस यह सुनिश्चित करो कि उन्हें खाना मिले और वे आराम से रहें। संक्षेप में, तुम्‍हें उन्हें सँजोना चाहिए। उन्हें सँजोने का क्या मतलब है? परमेश्वर द्वारा बनाए गए जीवन का सम्मान करो और उसके द्वारा बनाए गए प्राणियों की देखभाल करो। उन्हें सँजो लो, उनकी देखभाल करो : यह दान-पुण्य का कार्य नहीं है, यह उनके साथ उचित व्यवहार करना है। क्या यह एक सिद्धांत है? (हाँ।) यह दान-पुण्य करना नहीं है। दान-पुण्य का क्‍या तात्पर्य है? यह कोई जिम्मेदारी निभाना या जीवन को सँजोना नहीं है। यह अपनी क्षमता और ऊर्जा के दायरे से परे जाना और इस चीज को करियर बनाना है। इसका पालतू पशुओं को पालने से कोई लेना-देना नहीं है। अगर कोई अपने पालतू जानवरों को बुनियादी प्यार नहीं दे सकता या जिम्मेदारी नहीं निभा सकता, तो वह किस तरह का व्यक्ति है? क्या उसमें मानवता है? (उसमें मानवता नहीं है।) कम-से-कम, उस व्यक्ति में मानवता का अभाव तो है ही। वास्तव में, कुत्ते और बिल्लियाँ लोगों से बहुत अधिक माँगें नहीं करते हैं। भले ही तुम उनसे कितना भी गहरा प्यार करते हो या उन्हें पसंद या नापसंद करते हो, कम-से-कम, तुम्‍हें उनकी देखभाल करने के लिए जिम्‍मेदार होना चाहिए, तुम्‍हें उन्हें समय पर खाना खिलाना चाहिए और उनके साथ दुर्व्यवहार करने से बचना चाहिए—यही काफी है। अपनी आर्थिक स्थिति के आधार पर, तुम जो भी खिला सकते हो, जैसे भी रख सकते हो, तुम्‍हें उन्हें प्रदान करना चाहिए। बस इतना ही। उनके जीवन के लिए बहुत अधिक की जरूरत नहीं होती। तुम्‍हें बस उनके साथ दुर्व्यवहार करने से बचना चाहिए। यदि लोग इतना-सा भी प्रेम नहीं जुटा पाते, तो यह दर्शाता है कि उनमें मानवता की कितनी कमी है। दुर्व्यवहार से क्‍या तात्पर्य है? बिना किसी कारण के उन्हें मारना और लताड़ना, खाने का समय होने पर उन्हें खाना न देना, जब उन्हें टहलने की जरूरत हो तो उन्‍हें टहलाने न ले जाना और जब वे बीमार हों तो उनकी देखभाल न करना। जब तुम दुखी या खराब मूड में होते हो तो उन्हें लताड़कर और मारकर अपना गुस्सा उन पर निकालते हो। तुम उनके साथ अमानवीय व्‍यवहार करते हो। यह दुर्व्यवहार है। यदि तुम दुर्व्यवहार से बचते हो और बस अपनी जिम्मेदारी पूरी कर सकते हो तो यही काफी है। यदि तुममें अपनी जिम्‍मेदारी निभाने के लिए इतनी-सी भी दया नहीं है, तो तुम्‍हें पालतू पशु नहीं रखना चाहिए। तुम्‍हें उसे आजाद कर देना चाहिए, किसी ऐसे व्यक्ति को ढूँढना चाहिए जो उसे पसंद करता हो और उसे ही उसकी देखभाल करने देनी चाहिए, उसे जीने का मौका दो। कुत्ते पालने वाले कुछ लोग उनके साथ दुर्व्यवहार करने से भी बाज नहीं आते। वे कुत्तों को अपनी कुंठाओं को बाहर निकालने के एकमात्र उद्देश्य से पालते हैं, जब वे बुरे मूड में होते हैं या अच्‍छा महसूस नहीं कर रहे होते और उन्हें भड़ास निकालने की जरूरत होती है, तो वे इन कुत्तों पर भड़ास निकालते हैं। उनमें किसी अन्य व्यक्ति को लताड़ने या मारने की हिम्मत नहीं होती, वे उन परिणामों और जिम्‍मेदारियों से डरते हैं जो उन्हें वहन करनी पड़ेंगी। उनके घर में एक पालतू पशु होता है, एक कुत्ता होता है और इसलिए वे अपनी भड़ास उस कुत्ते पर निकालते हैं, क्योंकि आखि‍र वह समझता नहीं है और विरोध करने की हिम्मत नहीं करता। ऐसे लोगों में मानवता नहीं होती है। ऐसे भी लोग हैं जो कुत्ते-बिल्लियाँ पालते हैं लेकिन अपनी जिम्मेदारियाँ नहीं निभा पाते। यदि तुम्‍हें पसंद नहीं है, तो पालतू पशु मत रखो। लेकिन यदि तुम उसे रखना चुनते हो तो तुम्‍हें अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। उसकी अपनी जिंदगी और भावनात्मक जरूरतें होती हैं। प्यास लगने पर उसे पानी और भूख लगने पर खाने की जरूरत होती है। उसे लोगों के करीब रहने और उनसे सांत्वना पाने की जरूरत भी होती है। यदि तुम्‍हारा मूड खराब है और तुम कहते हो, “मेरे पास तुम्‍हारे लिए समय नहीं है, जाओ यहाँ से!”—यह किसी पालतू पशु के साथ अच्छा व्‍यवहार नहीं है। क्या इसमें कोई जमीर या विवेक है? (नहीं।) कुछ लोग कहते हैं, “तुम्‍हें अपने कुत्ते-बिल्ली को आखिरी बार नहलाए कितना समय हो गया है? वे बहुत गंदे हैं!” “उफ्फ, उन्हें नहलाऊँ? मुझे तो यह भी नहीं पता कि मुझे कौन नहलाएगा। मुझे आखिरी बार नहाए कई दिन हो गए हैं, किसी को कोई परवाह नहीं है!” क्या यह मानवीय है, या यह किसी मानवीय संवेदना को दर्शाता है? (नहीं।) भले ही वे अच्छे मूड में हों या नहीं, जब कोई कुत्ता या बिल्ली उनके पास आता है, उनसे स्नेह जताता है, तो वे उसे लात मारकर कहते हैं, “चल भाग, गंदे जानवर! कर्ज वसूलने वाले की तरह, जब भी तुम आसपास होते हो तो परेशानी ही होती है। तुम्हें बस कुछ खाने-पीने को चाहिए। मैं तुम्‍हारे साथ खेलने के मूड में बिल्‍कुल नहीं हूँ!” यदि तुममें थोड़ी-सी भी करुणा नहीं है, तो तुम्‍हें कोई पालतू पशु नहीं रखना चाहिए। तुम्‍हें उसे तुरंत आजाद कर देना चाहिए। वह कुत्ता या बिल्ली तुम्‍हारे कारण कष्‍ट भोग रहा है! तुम बहुत स्वार्थी हो और पालतू पशु रखने के लायक नहीं हो। जब भी तुम कोई बिल्ली या कुत्ता पालते हो तो उसका खाना-पीना तुम्‍हारी देखभाल पर निर्भर करता है। तुम्‍हें इस सिद्धांत को समझना चाहिए। तुम पशुओं से मुकाबला क्यों कर रहे हो? तुम कहते हो, “मुझे नहलाने वाला कोई नहीं है, मुझे कौन नहलाएगा?” तुम्‍हें कौन नहलाएगा? तुम एक इंसान हो। तुम्‍हें स्वयं नहाना चाहिए। तुम अपना ख्याल रख सकते हो, लेकिन कुत्ते-बिल्लियों को तुम्‍हारी देखभाल की जरूरत है क्योंकि तुम उन्हें पाल रहे हो और चूँकि तुम उन्हें पाल रहे हो, इसलिए उनकी देखभाल करना तुम्‍हारा दायित्‍व है। यदि तुम इस दायित्व को भी पूरा नहीं कर सकते, तो तुम उन्हें रखने के लायक नहीं हो। उनसे मुकाबला करने की क्या जरूरत है? तुम यहाँ तक कहते हो, “मैं तुम्‍हारा ख्याल रखता हूँ, लेकिन मेरा ख्याल कौन रख रहा है? जब तुम उदास होते हो तो सांत्‍वना के लिए मेरे पास आते हो। जब मैं उदास महसूस करता हूँ तो मुझे कौन सांत्वना देता है?” क्या तुम एक मनुष्‍य नहीं हो? मनुष्यों को आत्म-नियमन और आत्म-समायोजन करना चाहिए। कुत्ते और बिल्लियाँ बहुत सरल होते हैं : वे आत्म-नियमन नहीं कर सकते, इसलिए उन्हें सांत्‍वना के लिए मनुष्यों की आवश्यकता होती है। पशुओं के साथ व्यवहार करने और दान-पुण्य करने के बीच यही अंतर है। पशुओं के साथ व्यवहार करने का सिद्धांत क्या है? जीवन को सँजो लो, उसका सम्मान करो और उनके साथ दुर्व्यवहार मत करो। परमेश्वर द्वारा सृजित सभी चीजों के साथ अपने व्यवहार में, उनके प्राकृतिक नियमों का पालन करो, परमेश्वर द्वारा सृजित विभिन्न प्राणियों के साथ, उसके द्वारा निर्धारित व्यवस्थाओं के अनुसार सही व्यवहार करो, सभी प्रकार के प्राणियों के साथ उचित संबंध बनाकर रखो, और उनके आवासों को नष्ट या बर्बाद मत करो। ये जीवन का सम्मान करने और उसे सँजोने के सिद्धांत हैं। हालाँकि, जीवन का सम्मान करने और उसे सँजोने के सिद्धांतों का संबंध दान करने से नहीं है। यह परमेश्वर द्वारा निर्धारित सार्वभौमिक व्यवस्थाओं में से एक सिद्धांत है जिसका पालन प्रत्येक सृजित प्राणी को करना चाहिए। लेकिन इस सिद्धांत का पालन करना और दान-पुण्य करना एक बात नहीं है।

लेकिन कुछ लोग पूछते हैं, “परमेश्वर हमें करियर के तौर पर दान-पुण्य क्यों नहीं करने देता? यदि वह हमें दान-पुण्य नहीं करने देता तो समाज में जिन लोगों या जीवों को मदद की आवश्यकता है, उनके बारे में क्या किया जाना चाहिए? उनकी मदद कौन करेगा?” उनकी मदद कौन करेगा, क्‍या इसका तुमसे कोई लेना-देना है? (इसका हमसे कोई लेना-देना नहीं है।) क्या तुम मानवजाति का हिस्‍सा नहीं हो? क्या इसका तुमसे कोई लेना-देना है? (नहीं, यह मनुष्यों का लक्ष्‍य नहीं है।) बिल्‍कुल सही, यह तुम्‍हारा लक्ष्‍य नहीं है, न ही परमेश्वर ने तुम्‍हें यह लक्ष्‍य सौंपा है। तुम्‍हारा लक्ष्‍य क्या है? एक सृजित प्राणी के कर्तव्य को पूरा करना, परमेश्वर के वचन सुनना, परमेश्वर के वचनों के प्रति समर्पण करना, उद्धार प्राप्त करने के लिए सत्य को स्वीकार करना, वही करना जो परमेश्वर तुम्हें करने के लिए कहे, और उन चीजों से दूर रहना जिन्‍हें करने के लिए परमेश्वर तुम्‍हें मना करे। दान-पुण्य से संबंधित मामलों को कौन संभालेगा? उन्‍हें कौन संभालेगा, यह तुम्‍हारी चिंता का विषय नहीं है। जो भी हो, तुम्‍हें उन्‍हें संभालने या उनके बारे में चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। दान-पुण्य के मामलों को सरकार संभालती है या विभिन्न सामुदायिक संगठन, यह हमारी चिंता का विषय नहीं है। संक्षेप में, परमेश्वर में विश्वास करने वाले और सत्य का अनुसरण करने वाले लोगों को परमेश्वर के मार्ग और उसकी इच्छा के अनुसरण को अपना मानदंड, अभ्यास का लक्ष्य और दिशा बनाना चाहिए। लोगों को यह चीज समझनी चाहिए, और यह एक शाश्वत सत्य है जो कभी नहीं बदलेगा। निःसंदेह, कभी-कभी दूसरों की सहायता के लिए कुछ करना करियर नहीं होता; यह कभी-कभार किया जाने वाला काम है, और इससे परमेश्वर तुमसे नाराज नहीं होता। कुछ लोग पूछते हैं, “क्या परमेश्वर ऐसी चीजों को अपनी स्मृति में नहीं सँजोता?” परमेश्वर उन्‍हें अपनी स्‍मृति में नहीं सँजोता। यदि तुमने कभी किसी भिखारी को या किसी ऐसे व्यक्ति को पैसे दे दिए जिसके पास घर जाने के लिए पैसे नहीं थे, या किसी बेघर व्यक्ति की मदद कर दी; यदि तुमने कभी ऐसा कुछ कर दिया या अपने जीवनकाल में कुछेक बार ऐसा किया, तो परमेश्वर की नजर में, क्या वह ऐसी चीजों को अपनी स्मृति में सँजोएगा? नहीं, परमेश्वर उनका स्मरण नहीं करता। तो फिर वह इन कार्यों का मूल्यांकन कैसे करता है? न तो परमेश्वर उन्‍हें स्मृति में सँजोता है और न ही उनकी निंदा करता है—वह उनका मूल्यांकन नहीं करता। क्यों? उनका सत्य का अनुसरण करने से कोई लेना-देना नहीं है। ये व्यक्तिगत कार्य हैं जिनका परमेश्वर के मार्ग पर चलने या उसकी इच्छा पूरी करने से कोई लेना-देना नहीं है। यदि तुम व्यक्तिगत रूप से उन्हें करने के इच्छुक हो, यदि तुम सद्भावना के क्षणिक उद्गार या अपनी अंतरात्मा की अल्पकालिक प्रेरणा से कुछ अच्छा करते हो, या उत्साह के किसी क्षण या आवेग में कुछ अच्छा करते हो, भले ही बाद में तुम पछताओ या न पछताओ, चाहे तुम्हें पुरस्कार मिले या न मिले, इसका परमेश्वर के मार्ग पर चलने या उसकी इच्छा पूरी करने से कोई लेना-देना नहीं है। परमेश्वर इसे अपनी स्‍मृति में नहीं सँजोता, न ही वह इसके लिए तुम्हें दोषी ठहराता है। परमेश्वर इसे अपनी स्‍मृति में नहीं सँजोता, इसका क्या अर्थ है? इसका अर्थ यह है कि परमेश्वर तुम्‍हारे उद्धार के दौरान तुम्‍हें अपनी ताड़ना और न्याय से इसलिए छूट नहीं देगा कि तुमने कभी यह काम किया था, न ही वह किसी अपवादस्‍वरूप तुम्‍हें इसलिए बचने की अनुमति देगा कि तुमने कुछ अच्छे या दानार्थ कार्य किए हैं। इसका क्या मतलब है कि परमेश्वर इसके लिए तुम्‍हारी निंदा नहीं करता? इसका मतलब यह है कि तुम्‍हारे द्वारा किए गए इन अच्छे कामों का सत्‍य से कोई लेना-देना नहीं है, ये केवल तुम्‍हारे अच्छे व्यवहार को दर्शाते हैं, ये परमेश्वर के प्रशासनिक आदेशों के खिलाफ नहीं जाते, न ही ये किसी के हितों का उल्लंघन करते हैं। निःसंदेह, ये परमेश्वर के नाम को भी अपमानित नहीं करते, उसके नाम को महिमामंडित तो बिल्कुल नहीं करते। ये परमेश्वर की अपेक्षाओं का उल्लंघन नहीं करते हैं, न ही इनमें परमेश्वर के इरादों के विरुद्ध जाना शामिल है, और निश्चित रूप से इनमें परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह शामिल नहीं है। नतीजतन, परमेश्वर इनके लिए तुम्‍हारी निंदा नहीं करेगा, ये केवल व्यक्तिगत स्तर पर एक प्रकार के अच्छे कार्य को दर्शाते हैं। हालाँकि, ऐसे अच्छे कार्यों को दुनिया से प्रशंसा और समाज से मान्यता मिल सकती है, लेकिन परमेश्वर की नजर में इनका सत्‍य से कोई संबंध नहीं है। परमेश्वर इन्‍हें स्‍मृति में नहीं सँजोता, न ही वह इनके लिए किसी की निंदा करता है, जिसका अर्थ है कि परमेश्वर के सामने इन कार्यों का अधिक महत्व नहीं है। लेकिन, एक संभावना है, वह यह है कि यदि तुम किसी को बचाते हो और उसे वित्तीय सहायता या किसी प्रकार की भौतिक सहायता प्रदान करते हो, या फिर उसे भावात्‍मक सहायता भी प्रदान करते हो, और उस बुरे व्यक्ति को अपने प्रयासों में सफल होने में सक्षम बनाते हो, जिससे वह और अपराध कर पाता है और समाज तथा मानवता के लिए खतरा बनता है, जिसके परिणामस्वरूप कुछ नुकसान होते हैं, तो यह पूरी तरह से अलग मामला होगा। एक सामान्य दानार्थ कार्य के मामले में, परमेश्वर का दृष्टिकोण यह है कि वह न तो इसे स्मृति में सँजोता है और न ही इसकी निंदा करता है। लेकिन वह न तो इसे स्मृति में सँजोता है और न ही इसकी निंदा करता है, इस तथ्य का अर्थ यह नहीं है कि परमेश्वर दान-पुण्य करने के लिए तुम्‍हारा समर्थन करता है या तुम्‍हें प्रोत्साहित करता है। फिर भी, यह आशा की जाती है कि तुम अपनी ऊर्जा, समय और धन का निवेश उन मामलों में नहीं करोगे जिनका उद्धार या सत्य के अभ्यास और अपना कर्तव्य निभाने से कोई संबंध नहीं है क्योंकि तुम्‍हारे पास करने के लिए और भी महत्वपूर्ण काम हैं। तुम्हारा समय, ऊर्जा और जीवन दान-पुण्य के कार्य के लिए नहीं हैं, न ही वे दान-पुण्य के करियर के माध्यम से तुम्‍हारे व्यक्तिगत चरित्र और करिश्मे को प्रदर्शित करने के लिए हैं। विशेष रूप से उन लोगों के लिए जो अधिक गरीब लोगों के लिए बुनियादी जरूरतें प्रदान करने या उन्हें उनके आदर्शों को साकार करने में मदद करने के उद्देश्य से कारखाने खोलते हैं, स्कूलों का प्रबंधन करते हैं, या व्यवसाय चलाते हैं, वे गरीबों की सहायता के लिए ये काम करते हैं। यदि तुम इन तरीकों से गरीबों की सहायता करना चुनते हो तो निःसंदेह इसमें तुम्‍हारा काफी समय और ऊर्जा खर्च होगी। तुम अपने जीवन में इस उद्देश्य पर समय और ऊर्जा का एक बड़ा हिस्सा खर्च कर दोगे, और परिणामस्वरूप तुम्‍हारे पास सत्य का अनुसरण करने के लिए बहुत कम समय होगा; शायद तुम्‍हारे पास सत्य का अनुसरण करने का समय हो ही न, और निश्चित रूप से तुम्‍हें अपना कर्तव्य निभाने का अवसर भी नहीं मिलेगा। इसके बजाय, तुम अपनी ऊर्जा लोगों, घटनाओं और सत्य या कलीसिया के काम से असंबंधित चीजों पर बर्बाद कर दोगे। यह मूर्खतापूर्ण व्यवहार है। इस मूर्खतापूर्ण व्यवहार के कारण कुछ लोग हमेशा अपने अच्छे इरादों और कुछ सीमित क्षमताओं के माध्‍यम से इंसान का भाग्य और दुनिया बदलना चाहते हैं। वे अपने प्रयासों और सद्भावना के माध्यम से इंसान के भाग्य को बदलना चाहते हैं। यह एक मूर्खतापूर्ण प्रयास है। चूँकि यह एक मूर्खतापूर्ण प्रयास है, इसलिए ऐसा मत करो। निःसंदेह, ऐसा न करने का आधार यह है कि तुम एक ऐसे व्यक्ति हो जो सत्य का अनुसरण करता है, यह कि तुम सत्य और उद्धार का अनुसरण करना चाहते हो। यदि तुम कहते हो, “मेरी उद्धार में कोई दिलचस्पी नहीं है, और सत्य का अनुसरण करना मेरे लिए उतना महत्वपूर्ण नहीं है,” तो तुम जैसा चाहो, वैसा कर सकते हो। दान-पुण्य की बात करें तो यदि वही तुम्‍हारा आदर्श और लक्ष्‍य है, यदि तुम मानते हो कि ऐसा करने से तुम्हारी कीमत पता चलती है, दान-पुण्य ही एकमात्र ऐसी चीज है जो तुम्‍हारे जीवन का मोल व्‍यक्‍त कर सकती है, तो निश्चित रूप से आगे बढ़ो। तुम अपने हर कौशल और क्षमता का उपयोग कर सकते हो, तुम्‍हें कोई नहीं रोक रहा। हम यहाँ धर्मार्थ कार्यों में शामिल न होने के जिस आधार पर संगति कर रहे हैं, वह यह है कि चूँकि तुम सत्य और उद्धार का अनुसरण करना चाहते हो, इसलिए तुम्‍हें दान-पुण्य करने के आदर्श और इच्छा को छोड़ देना चाहिए। अपने जीवन के आदर्श और इच्छा के रूप में इसका अनुसरण मत करो। इस मामले में व्यक्तिगत स्तर पर शामिल मत हो, और परमेश्वर का घर भी इसमें शामिल नहीं होगा। निःसंदेह, परमेश्वर के घर में एक स्थिति है, वह है, कुछ गरीब भाई-बहनों के घरेलू जीवन की परवाह करना। इसका भी एक आधार है। मुझे लगता है कि तुम सभी इस आधार से अवगत हो : यह आधार दान-पुण्य करना नहीं है, यह भाई-बहनों के जीवन के संदर्भ में परमेश्वर के घर की आंतरिक कार्य व्यवस्था है। इसका दान-पुण्य करने से कोई संबंध नहीं है। दान-पुण्य न करने के अलावा परमेश्वर के घर की समाज की किसी भी दानार्थ गतिविधि में कोई भागीदारी नहीं होती; उदाहरण के लिए, परमेश्वर का घर स्कूल नहीं बनाता, कारखाने नहीं खोलता या व्यवसाय नहीं चलाता। यदि कोई कलीसिया के कार्य के सामान्य संचालन के लिए आर्थिक संसाधन जुटाने के नाम पर कारखाने खोलता है, स्कूल बनाता है, व्यवसाय चलाता है, या किसी व्यावसायिक गतिविधि में भाग लेता है, तो यह सब परमेश्वर के घर के प्रशासनिक आदेशों के खिलाफ है और इस पर अंकुश लगा दिया जाना चाहिए। तो, परमेश्वर के घर के कार्य के संचालन का वित्तीय स्रोत क्या है? क्या तुम लोग जानते हो? सामान्य कार्य संचालन के लिए वित्त भाई-बहनों की ओर से दी गई भेंटों से आता है। इसका क्या तात्पर्य है? भाई-बहनों द्वारा परमेश्वर को दिया गया धन, वे जो कुछ भी परमेश्वर को अर्पित करते हैं, वह चढ़ावा है, और चढ़ावे का क्या उपयोग है? इसका उपयोग कलीसिया के सामान्य कार्य संचालन को सुरक्षित करना है। निश्चित रूप से, इस सामान्य संचालन से जुड़े विभिन्न खर्च हैं, और इन खर्चों को सिद्धांतों के अनुसार प्रबंधित किया जाना चाहिए और इन सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। नतीजतन, जब कलीसिया के काम में वित्तीय मुद्दे शामिल होते हैं, और कुछ अगुआ और कार्यकर्ता चढ़ावों को बरबाद करके उनकी काफी हानि कर देते हैं, तो परमेश्वर का घर उन पर कठोर दंड लगाएगा। कठोर दंड क्‍यों मिलेगा? चढ़ावों को बरबाद करने वाला कोई भी व्‍यक्ति क्‍यों बचकर नहीं निकल सकता? (क्योंकि परमेश्वर का चढ़ावा भाई-बहनों द्वारा परमेश्वर को अर्पित किया जाता है, और केवल परमेश्वर ही उसका आनंद ले सकता है। दूसरी तरह से, ये चढ़ावे परमेश्वर के घर के कार्य के उचित संचालन को बनाए रखने के लिए होते हैं। यदि अगुआ या कार्यकर्ता उन्‍हें बरबाद कर देते हैं, तो इससे सीधे तौर पर परमेश्वर के घर का कार्य प्रभावित होगा और नुकसान उठाना पड़ेगा। इससे परमेश्वर के घर के कार्य में गड़बड़ी होती है और बाधा पड़ती है, इसलिए परमेश्वर के घर को इसके लिए कठोर दंड देना चाहिए।) मुझे बताओ, क्या परमेश्वर के घर को कठोर दंड देना चाहिए? (हाँ।) उसे ऐसा क्यों करना चाहिए? उसे कठोर दंड क्‍यों देना चाहिए? (चढ़ावों को बरबाद करना मसीह-विरोधियों का व्यवहार है। चढ़ावे के प्रति किसी व्यक्ति का रवैया परमेश्वर के प्रति उसके दृष्टिकोण को दर्शाता है। यदि यह व्यक्ति चढ़ावा बरबाद कर सकता है, तो यह दिखाता है कि उनके पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल बिल्कुल नहीं है।) तुमने इसके केवल एक पहलू पर ही चर्चा की है; इसमें और भी महत्वपूर्ण सिद्धांत हैं जिन पर हमें संगति करनी चाहिए।

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