सत्य का अनुसरण कैसे करें (16) भाग एक
पिछली सभा में किस विषय पर संगति हुई थी? (पिछली सभा में, परमेश्वर ने मुख्य रूप से परंपरा, अंधविश्वास और धर्म को ले कर परिवार द्वारा दी गई शिक्षा को त्याग देने के बारे में संगति की थी। परमेश्वर ने कुछ अंधविश्वासी कहावतों जैसे कि “जाने के लिए मोमो, लौटने के लिए नूडल,” और “बाईं आँख का फड़कना अच्छे भाग्य की भविष्यवाणी करता है, लेकिन दाईं आँख का फड़कना विपत्ति की भविष्यवाणी करता है,” और साथ ही चीनी नव वर्ष और दूसरी छुट्टियों से जुड़ी कुछ पारंपरिक प्रथाओं के लोगों पर पड़ने वाले प्रभावों पर विस्तार से संगति की थी। साथ ही, परमेश्वर ने इन पारंपरिक और अंधविश्वासी कहावतों और प्रथाओं को देखने के सही नजरिये पर संगति की थी, जो यह मानना है कि कुछ घटनाएँ तो होंगी ही, इसके साथ ही यह मानना भी है कि सब-कुछ परमेश्वर के हाथों में है। ये कहावतें चाहे जिस ओर भी इशारा करें, या जो भी घटनाएँ घटें, हम सभी को स्वीकृति और समर्पण का रवैया अपनाना चाहिए और खुद को परमेश्वर के आयोजन और व्यवस्था के अधीन करने में समर्थ होना चाहिए।) ये थे पिछली सभा में हमारी संगति के बुनियादी तत्व। परंपरा, अंधविश्वास और धर्म से जुड़ी जिस विषयवस्तु की शिक्षा परिवार लोगों को देते हैं, उसके संदर्भ में हमने विस्तार से उन कुछ चीजों पर संगति की थी जिनसे लोगों का अपने दैनिक जीवन में सामना होता है। हालाँकि हमारी संगति की विषयवस्तु में बस चीनी लोगों के दैनिक जीवन से जुड़ी सिर्फ वे परंपराएँ, अंधविश्वास और धर्म शामिल थे जिनसे हम सब परिचित हैं, और जो प्रत्येक राष्ट्र और प्रजाति के द्योतक नहीं हैं, फिर भी जिन परंपराओं, अंधविश्वासों और धर्मों से विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले और विभिन्न प्रजातियों के लोग चिपके रहते हैं, वे प्रकृति में इन्हीं जैसे होते हैं—वे सब उन कुछ परंपराओं, जीने की आदतों और अंधविश्वासी कहावतों को मानते हैं जो उनके पूर्वजों द्वारा उन तक पहुँचाई गईं। ये अंधविश्वासी चीजें लोगों के दिमाग का मनोवैज्ञानिक परिणाम हों, या वे वस्तुनिष्ठ रूप से असली हों, संक्षेप में कहें, तो उनके प्रति तुम्हारा रवैया इन अंधविश्वासों के पीछे के प्राथमिक विचार या सार को स्पष्ट रूप से पहचानने का होना चाहिए। साथ ही, तुम्हें उनसे प्रभावित या बाधित नहीं होना चाहिए। इसके बजाय, तुम्हें मानना चाहिए कि लोगों से जुड़ी हर चीज परमेश्वर के हाथ में है, और ये अंधविश्वास नहीं हैं जो लोगों को चलाते हैं, और यकीनन वे लोगों के भाग्य या दैनिक जीवन का निर्धारण नहीं करते। चाहे अंधविश्वास वास्तविक हों या न हों, प्रभावोत्पादक या सच हों या न हों, किसी भी स्थिति में, ऐसे मामलों से निपटते समय लोगों के पास वैसा सिद्धांत होना चाहिए जो सत्य के अनुरूप हो। उन्हें इन अंधविश्वासों के वशीभूत और इनसे नियंत्रित नहीं होना चाहिए, और उन्हें निश्चित रूप से उनके अनुसरण के सामान्य लक्ष्यों या सिद्धांतों के उनके अभ्यास में दखल नहीं देने देना चाहिए। परंपरा, अंधविश्वास और धर्म के विषयों में से, अंधविश्वास लोगों के जीवन, और विभिन्न मामलों पर उनके विचारों और नजरियों में सबसे ज्यादा दखल देता है और उन पर सबसे अधिक प्रभाव डालता है। आम तौर पर लोग ये अंधविश्वासी कहावतें और परिभाषाएँ छोड़ने की हिम्मत नहीं करते, और ये अंधविश्वास, जीवन की जो समस्याएँ पैदा करते हैं वे कभी नहीं सुलझतीं। यह तथ्य कि लोग अपने दैनिक जीवन में इन अंधविश्वासी वक्तव्यों की जंजीरों को तोड़ने की हिम्मत नहीं करते यह साबित करता है कि उनमें अभी भी परमेश्वर में पर्याप्त आस्था नहीं है। उन्होंने अभी भी सभी चीजों पर परमेश्वर की संप्रभुता और मानवजाति के भाग्य पर उसकी संप्रभुता के तथ्य को सच में गहराई से या सटीक रूप से नहीं समझा है। इसलिए जब लोगों का किसी अंधविश्वासी कहावत या अंधविश्वास से जुड़ी कुछ भावनाओं से सामना होता है, तो उनके हाथ-पैर बंध जाते हैं। खास तौर से जब जीवन-मृत्यु, उनकी धन-दौलत, या उनके प्रियजनों के जीवन-मृत्यु से जुड़ी बड़ी घटनाओं की बात हो, तो लोग इन तथाकथित अंधविश्वासी वर्जनाओं और वक्तव्यों से और भी ज्यादा जकड़ जाते हैं, और काफी हद तक खुद को मुक्त कर पाने में असमर्थ हो जाते हैं। वे निरंतर डरते हैं कि वे कोई वर्जना तोड़ देंगे और यह सच हो जाएगा, शायद उन पर कोई विपत्ति टूट पड़े, और शायद उनके साथ कुछ बुरा हो जाए। अंधविश्वास की बात पर, लोग हमेशा इस मसले के सार को गहराई से समझ नहीं पाते, और हर प्रकार के अंधविश्वासी वक्तव्यों की जंजीरों से मुक्त होने में और भी कम सक्षम होते हैं। बेशक, वे लोगों के जीवन पर अंधविश्वास के प्रभाव की असलियत भी समझ नहीं पाते। मानव व्यवहार के परिप्रेक्ष्य से और अंधविश्वास पर लोगों के विचारों और नजरियों से, उनकी चेतना और विचारों के परिप्रेक्ष्य पर अभी भी काफी हद तक शैतान का प्रभाव है, और ये भौतिक संसार से बाहर की किसी अदृश्य शक्ति द्वारा नियंत्रित हैं। इसलिए लोग परमेश्वर का अनुसरण कर उसके वचनों को स्वीकार तो करते हैं, मगर वे अभी भी धन-दौलत, जीवन-मृत्यु और अपने अस्तित्व से जुड़ी अंधविश्वासी कहावतों द्वारा नियंत्रित हैं। इसका यह अर्थ है कि अपनी सोच की गहराई में, वे अभी भी मानते हैं कि ये अंधविश्वासी वक्तव्य सचमुच असली हैं। उनके ऐसा मानने का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि लोग अभी भी सच में यह पहचान पाने के बजाय कि उनका भाग्य परमेश्वर के हाथ द्वारा शासित और आयोजित है, इन अंधविश्वासों के पीछे के अदृश्य चंगुल की पकड़ में हैं। इसका यह भी अर्थ है कि वे अपना भाग्य परमेश्वर के हाथों में सौंपने को लेकर पूरी तरह खुशी या सुकून महसूस नहीं कर रहे हैं, बल्कि वे अनजाने ही शैतान द्वारा नियंत्रित हैं। मिसाल के तौर पर, जो लोग नियमित व्यापार करते हैं, अक्सर यात्रा करते हैं, जो चेहरा पढ़कर भविष्य बताने, आठ तीन लिखित इकाइयों के समूहों, और आई चिंग, यिन और यांग का अध्ययन वगैरह, जैसी अंधविश्वासी गतिविधियों और कहावतों पर यकीन करते हैं, उनके दैनिक जीवन, जीवित रहने के नियम और धारणाएँ आदि, इन अंधविश्वासों से गहराई से प्रभावित और नियंत्रित होते हैं और इनके द्वारा चलाए जाते हैं। यानी वे चाहे जो भी करें, उसका अंधविश्वास से उपजा सैद्धांतिक आधार होना चाहिए। मिसाल के तौर पर, बाहर जाते समय उन्हें देखना होता है कि पंचांग में क्या लिखा है, और क्या कोई वर्जना है। व्यापार चलाते समय, ठेकों पर हस्ताक्षर करते समय, घर खरीदते या बेचते समय, आदि के लिए उन्हें उस दिन का पंचांग देखना जरूरी होता है। अगर वे न देखें तो बहुत अनिश्चित महसूस करते हैं, और नहीं जानते, न जाने क्या हो जाए। वे तभी सुनिश्चित और शांतचित्त होते हैं जब पंचांग देख कर कार्य करते हैं और निर्णय लेते हैं। इसके अलावा, कुछ वर्जनाएँ तोड़ देने के कारण जब कुछ बुरी चीजें हो जाती हैं, तो इन अंधविश्वासों के सच्चे होने के बारे में उनका ज्ञान और विश्वास और ज्यादा पक्का हो जाता है, और वे इन अंधविश्वासों से बंध जाते हैं। वे और ज्यादा मजबूती से मानते हैं कि लोगों का भाग्य, धन-दौलत, जीवन-मृत्यु, अंधविश्वासी कहावतों से नियंत्रित होते हैं, और अनदेखी रहस्यमय दुनिया में एक अदृश्य बड़ा हाथ है जो उनके धन-दौलत और उनके जीवन-मृत्यु को नियंत्रित करता है। इसलिए वे सभी अंधविश्वासी कहावतों, खास तौर से अपने जीवन और जीवित रहने से नजदीकी से जुड़ी कहावतों पर, जोर-शोर से यकीन करते हैं, इस हद तक कि परमेश्वर में विश्वास रखने के बाद, हालाँकि वे मौखिक रूप से मानते और विश्वास करते हैं कि लोगों का भाग्य परमेश्वर के हाथों में है, वे अपने दिल की गहराई में विविध अंधविश्वासी वक्तव्यों से अनजाने ही बाधित और नियंत्रित हो जाते हैं। कुछ लोग इन जीवन वर्जनाओं—किसका किससे टकराव है, किसी के भाग्य में क्या अनहोनी लिखी है, और दूसरे ऐसे ही अंधविश्वासी वक्तव्यों—की सत्य सिद्धांतों के साथ खिचड़ी बना देते हैं, और उनका पालन करते हैं। अंधविश्वासों के प्रति लोगों के ये रवैये, परमेश्वर की मौजूदगी में उनके सत्य और परमेश्वर के वचनों के प्रति रवैयों को गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं। ये लोगों के उन रवैयों को भी गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं, जो वे सृजित प्राणियों के नाते सृष्टिकर्ता के प्रति रखते हैं, और बेशक ये उन लोगों के प्रति परमेश्वर के रवैये को भी प्रभावित करते हैं। ऐसा इसलिए कि लोग परमेश्वर का अनुसरण तो करते हैं, पर वे अभी भी स्वेच्छा से और अनजाने ही अंधविश्वास से जुड़े उन विविध विचारों और कहावतों से नियंत्रित और बाधित होते हैं, जो शैतान ने उनके भीतर बैठा दिए थे। साथ ही लोगों के लिए अंधविश्वास से जुड़े इन विभिन्न विचारों और कहावतों को त्यागना भी मुश्किल होता है।
परिवारों द्वारा लोगों को दी गई शिक्षा में, दरअसल लोगों के साथ सबसे अधिक दखलंदाजी अंधविश्वास करते हैं, और उन पर सबसे प्रबल और टिकाऊ प्रभाव डालते हैं। इसलिए जब अंधविश्वास की बात हो, तो लोगों को जाँच-पड़ताल कर उन्हें अपने असल जीवन में एक-एक कर जानना चाहिए, और देखना चाहिए कि क्या अपने निकट परिवारों, विस्तारित परिवारों या कुलों से उन्हें अंधविश्वास को ले कर कोई शिक्षा मिली है या प्रभाव मिला है। अगर मिला है तो, उन्हें इन अंधविश्वासों से चिपके रहने के बजाय इन्हें बारी-बारी से त्याग देना चाहिए, क्योंकि इन चीजों का सत्य से कोई संबंध नहीं है। जब जीने के पारंपरिक ढंग का अभ्यास, लोगों के दैनिक जीवन में अक्सर दिखता है, तो यह उन्हें आज्ञाकारी ढंग से और अनजाने ही शैतान के नियंत्रण में ले आ सकता है। इतना ही नहीं, लोगों के विचारों को प्रभावित करने वाली अंधविश्वासी कहावतें, लोगों को शैतान की सत्ता के अधीन दृढ़ता से नियंत्रित रखने में और ज्यादा सक्षम होती हैं। इसलिए परंपराओं और धर्मों के अलावा, अंधविश्वास से जुड़े किन्हीं भी विचारों, सोच, कहावतों या नियमों को तुरंत त्याग देना चाहिए, और उनसे चिपके नहीं रहना चाहिए। परमेश्वर के साथ कोई वर्जनाएँ नहीं हैं। परमेश्वर के वचन, मानवजाति से अपेक्षाएँ और उसके इरादे सभी परमेश्वर के वचन में स्पष्ट रूप से व्यक्त किए गए हैं। इसके अलावा, परमेश्वर अपने वचनों में लोगों को जो कुछ भी बताता है या उनसे जिसकी माँग करता है, वह सत्य से जुड़ा होता है और इसमें कोई विचित्र तत्व नहीं होते। परमेश्वर लोगों से स्पष्ट और बेबाक ढंग से सिर्फ यह बताता है कि कार्य कैसे करें और किन मामलों में किन सिद्धांतों का पालन करना है। इसमें कोई वर्जनाएँ नहीं हैं और कोई मीनमेख वाले विवरण या कहावतें नहीं हैं। लोगों को जिसका पालन करना चाहिए वह है अपने असली हालात के अनुसार सत्य सिद्धांतों के आधार पर कार्य करना। परमेश्वर के वचनों का अभ्यास करने और सत्य सिद्धांतों का पालन करने के लिए तुम्हें तिथि या समय देखने की जरूरत नहीं है; कोई वर्जनाएँ नहीं हैं। कुंडली देखना या उस दिन पूर्णिमा है या अमावस्या यह जानना तो दूर रहा, किसी पंचांग से परामर्श लेने की भी जरूरत नहीं है; तुम्हें इन चीजों की फिक्र करने की जरूरत नहीं है। परमेश्वर के अधिकार क्षेत्र और उसकी संप्रभुता में लोग मुक्त और आजाद हैं। उनके दिलों में शांति, प्रफुल्लता और सुकून है, उनमें डर या दहशत और यकीनन दमन नहीं है। दहशत, डर और दमन महज भावनाएँ हैं, जो विविध अंधविश्वासी कहावतों से उपजती हैं। सत्य, परमेश्वर के वचन, परमेश्वर की अपेक्षाएँ और पवित्र आत्मा का कार्य लोगों के मन में शांति और उल्लास, स्वतंत्रता और आजादी, विश्राम और खुशी लेकर आते हैं। जबकि अंधविश्वास लोगों को ठीक इसका उल्टा देता है। वह तुम्हारे हाथ-पाँव बाँध देता है, तुम्हें अमुक-अमुक चीजें करने से रोकता है, तुम्हें फलाँ-फलाँ चीज खाने से रोकता है। तुम जो भी करते हो वह गलत है, जो भी करते हो वह वर्जना से जुड़ी होती है, और सभी चीजें पुराने तिथिपत्र की कहावतों के अनुसार होनी चाहिए। चंद्र कैलेंडर में समय क्या है, किस दिन कौन-सा काम किया जा सकता है, तुम बाहर जा सकते हो या नहीं—बाल कटवाना, स्नान करना, कपड़े बदलना, और लोगों से मिलना, सबकी अपनी वर्जनाएँ होती हैं। खास तौर से, शादियाँ और अंत्येष्टियाँ, घर बदलना, छिटपुट कामों के लिए बाहर जाना और नौकरी तलाशना जैसे काम और भी ज्यादा तिथिपत्र पर निर्भर होते हैं। शैतान लोगों के हाथ-पाँव सख्ती से बाँध देने के लिए तरह-तरह की अंधविश्वासी और अजीबोगरीब कहावतों का इस्तेमाल करता है। ऐसा करने के पीछे उसका उद्देश्य क्या है? (लोगों को नियंत्रित करना।) आधुनिक संदर्भ में कहें, तो वह अपनी मौजूदगी का एहसास करवा रहा है। इसका क्या अर्थ है? वह लोगों को अपनी मौजूदगी का एहसास करवाना चाहता है, वह चाहता है कि वे जान लें कि वर्जनाओं के बारे में उसके ये दावे असली हैं, उसका फैसला अंतिम है, वह ये चीजें कर सकता है, और अगर तुम नहीं सुनोगे तो तुम्हें इसका सबक देखने मिलेगा। वह रूपक कैसा है? कहा गया है : “एक बुजुर्ग औरत तुम्हें दिखाने के लिए लिपस्टिक लगाती है।” इसका अर्थ है कि अगर तुम नहीं सुनोगे या इस वर्जना का उल्लंघन करोगे, तो तुम्हें बस बैठकर इंतजार करना होगा, और तुम्हें उसके नतीजे भुगतने पड़ेंगे। अगर लोग परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते, तो ऐसी वर्जनाओं से डरते हैं, क्योंकि आखिरकार लोग हाड़-माँस के होते हैं, और वे आध्यात्मिक क्षेत्र में दानवों और शैतान के तमाम विभिन्न रूपों से लड़ नहीं सकते। लेकिन अब चूँकि तुम परमेश्वर के समक्ष लौट आए हो, तुम्हारी हर चीज, तुम्हारे विचार और तुम्हारे जीवन का हर दिन परमेश्वर के नियंत्रण में है। परमेश्वर तुम्हारी निगरानी करता है, तुम्हारी रक्षा करता है। तुम परमेश्वर के अधिकार क्षेत्र में जीते हो, उसके तहत अस्तित्व में हो, और शैतान की जकड़ में नहीं हो। इसलिए तुम्हें अब इन वर्जनाओं का पालन करने की जरूरत नहीं है। इसके विपरीत अगर तुम्हें अब भी यह डर है कि शैतान तुम्हें हानि पहुँचा सकता है, या अगर तुम शैतान की बात न सुनो या अंधविश्वासों में बताई गई वर्जनाओं को न मानो, तो तुम्हारे साथ बुरा होगा, तो इससे साबित होता है कि तुम्हें अब भी यकीन है कि शैतान तुम्हारे भाग्य को नियंत्रित कर सकता है। साथ ही, इससे यह भी साबित होता है कि तुम शैतान के हेर-फेर के आगे समर्पण करने को तैयार हो, और परमेश्वर की संप्रभुता को स्वीकार करने को तैयार नहीं हो। शैतान यह सब लोगों को यह जताने के लिए करता है कि वह वास्तव में अस्तित्व में है। वह मानवजाति और सभी जीवित प्राणियों को नियंत्रित करने के लिए अपनी जादुई शक्तियों का प्रयोग करना चाहता है। इन जीवित प्राणियों को नियंत्रित करने का उद्देश्य उन्हें बरबाद करना है, और उन्हें बरबाद करने का उद्देश्य और अंतिम परिणाम उसका उन्हें निगल जाना है। बेशक, उन्हें नियंत्रित करने का उद्देश्य उनसे अपनी आराधना करवाना भी है। अगर दानव शैतान अपनी मौजूदगी का एहसास करवाना चाहता है, तो उसे थोड़ी प्रभावशीलता दर्शाने की जरूरत है। मिसाल के तौर पर, वह एक अंडे को मल में तब्दील कर सकता है। यह अंडा एक बुरी आत्मा की वेदी को दिया जाता है, अगर तुम भूखे हो, इसे खाना चाहो, और इसे दानव से छीनने की कोशिश करो, तो वह तुम्हें अपनी सामर्थ्य जताने के लिए अंडे को मल में तब्दील कर देगा। तुम उससे डर जाओगे, और खाने के लिए उससे स्पर्धा करने की हिम्मत नहीं करोगे। अगर एक चीज तुम्हें उससे डरा दे, और फिर दूसरी चीज भी तुम्हें उससे डरा दे, तो समय के साथ तुम उस पर आँख बंद कर विश्वास करने लगोगे। अगर तुम लंबे समय तक उस पर आँख बंद कर विश्वास करोगे, तो अपने दिल की गहराई से उसकी आराधना करने लगोगे। क्या शैतान के कार्यों के यही लक्ष्य नहीं हैं? शैतान ठीक इन्हीं लक्ष्यों के लिए कार्य करता है। इंसान चाहे दक्षिण में हों या उत्तर में, चाहे वे किसी भी प्रजाति के हों, सभी घुटने टेककर बुरी और अस्वच्छ आत्माओं की आराधना करते हैं। वे घुटने टेककर उनकी आराधना क्यों करते हैं? जिन बुरी और अस्वच्छ आत्माओं की वे घुटने टेककर आराधना करते हैं, उनके लिए पीढ़ी-दर-पीढ़ी लगातार अगरबत्तियाँ क्यों जलाई जाती हैं? अगर तुम कहते हो कि वे असली नहीं हैं, तो इतने सारे लोग उनमें क्यों विश्वास रखते हैं और उनके लिए अगरबत्तियाँ क्यों जलाते रहते हैं, उनकी जी-हुजूरी करते रहते हैं, उनसे वादे करते हैं, और फिर पीढ़ी-दर-पीढ़ी अपने वादे पूरे करते हैं? क्या इसलिए नहीं कि उन बुरी और अस्वच्छ आत्माओं ने कुछ किया है? अगर तुम बुरी आत्माओं की बात नहीं सुनोगे, तो वे तुम्हें बीमार कर देंगे, तुम्हारे जीवन में सब गड़बड़ कर देंगे, तुम पर कहर बरपाएँगे, तुम्हारे परिवार के बैलों को बीमार कर खेत जोतने में असमर्थ बना देंगे, और तुम्हारे परिवार के लोगों की कार दुर्घटनाएँ भी करवा देंगे। वे तुम्हें परेशान करने के तरीके ढूँढ़ेंगे, और वे जितना ऐसा करेंगे, तुम्हारी मुश्किलें उतनी ही बढ़ेंगी। तुम उनका पालन करने से मना नहीं कर सकते, और अंत में, तुम्हारे पास घुटने टेककर उनकी आराधना करने के सिवाय कोई विकल्प नहीं होगा, और तुम स्वेच्छा से उनके आगे समर्पण करने के लिए अपना सिर झुका दोगे, और तब वे खुश हो जाएँगे। उस समय से, तुम उनके हो जाओगे। समाज के उन लोगों को देखो, जो लोमड़ी की आत्माओं या वेदियों पर प्रकट होने वाली आध्यात्मिक क्षेत्र की विभिन्न हस्तियों द्वारा नियंत्रित होते हैं। इसे हम क्या कहते हैं? हम कहते हैं कि वे बुरी आत्माओं के वश में हैं और उनमें बुरी आत्माएँ वास करती हैं। आम लोगों के बीच इसे आत्माओं द्वारा नियंत्रित या किसी के शरीर का किसी चीज के काबू में होना कहा जाता है। जब बुरी आत्माएँ हथियाने के लिए शरीर ढूँढ़ना शुरू करती हैं, और उनके निशाने के लोग उन्हें ऐसा करने देने को तैयार नहीं होते, तो बुरी आत्माएँ उनके साथ दखलंदाजी करती हैं और उन्हें बाधित करती हैं, जिससे उनके परिवारों में दुर्घटनाएँ होती हैं और मुश्किलें खड़ी होती हैं। व्यापारियों को नुकसान उठाना पड़ता है, और उन्हें ग्राहक नहीं मिलते; उनके आगे इस हद तक अवरोध डाले जाते हैं कि वे गुजारा नहीं कर पाते और कोई भी तरक्की करना उनके लिए बहुत मुश्किल होता है। अंत में, वे समर्पण कर राजी हो जाते हैं। उनके राजी होने के बाद, बुरी आत्माएँ कुछ कारनामे करने, कुछ चिह्न और चमत्कार दिखाने, दूसरे लोगों को आकर्षित करने, रोगों का इलाज करने, भविष्य बताने, और मृत आत्माओं को पुकारने आदि के लिए उनके भौतिक शरीर का इस्तेमाल करती हैं। क्या बुरी आत्माएँ लोगों को गुमराह करने, भ्रष्ट करने और नियंत्रित करने के लिए इन साधनों का इस्तेमाल नहीं कर रही हैं?
अगर परमेश्वर के विश्वासी भी इन अंधविश्वासी कहावतों को ले कर गैर-विश्वासियों वाली सोच और राय ही रखते हैं, तो इसकी प्रकृति क्या है? (यह परमेश्वर की अवहेलना करना और ईशनिंदा करना है।) सही है, यह जवाब बिल्कुल सही है, यह परमेश्वर के विरुद्ध गंभीर ईशनिंदा है! तुम परमेश्वर का अनुसरण करते हो, और कहते हो कि तुम उसमें विश्वास रखते हो, मगर साथ-ही-साथ तुम अंधविश्वासों द्वारा नियंत्रित और बाधित हो रहे हो। तुम उन विचारों का अनुसरण करने में भी सक्षम हो जो अंधविश्वासों द्वारा लोगों के भीतर बैठाए जाते हैं, और इससे भी ज्यादा गंभीर, तुममें से कुछ लोग अंधविश्वासों से जुड़े इन विचारों और तथ्यों से डरते भी हो। यह परमेश्वर के विरुद्ध सबसे बड़ी ईशनिंदा है। न सिर्फ तुम परमेश्वर की गवाही देने में असमर्थ हो, बल्कि तुम परमेश्वर की संप्रभुता का प्रतिरोध करने में शैतान का अनुसरण भी कर रहे हो—यह परमेश्वर के विरुद्ध ईशनिंदा है। क्या तुम समझते हो? (हाँ।) अंधविश्वासों में विश्वास रखने वाले या उनका अनुसरण करने वाले लोगों का सार परमेश्वर के विरुद्ध ईशनिंदा करना है, तो क्या तुम्हें उन तरह-तरह की शिक्षाओं को त्याग नहीं देना चाहिए जो अंधविश्वासों ने तुम्हारे भीतर बैठाए हैं? (बिल्कुल।) उन्हें त्यागने के अभ्यास का सबसे सरल तरीका खुद को उनसे बाधित नहीं होने देना है, चाहे वे अंधविश्वास असली हों या न हों, और चाहे उनके कारण कुछ भी नतीजे सामने आएँ। भले ही किसी खास चीज के बारे में अंधविश्वासों द्वारा दिए गए वक्तव्य वस्तुपरक दृष्टि से वास्तविक हों, फिर भी तुम्हें उनसे बाधित या नियंत्रित नहीं होना चाहिए। क्यों? क्योंकि हर चीज परमेश्वर द्वारा आयोजित है। अगर शैतान कुछ कर भी पाता है तो, यह परमेश्वर की अनुमति से ही होता है। जैसा कि परमेश्वर ने कहा है, परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान तुम्हारा एक भी बाल बाँका करने की हिम्मत नहीं कर सकता। यह एक तथ्य है, एक सत्य है जिसमें लोगों को विश्वास रखना चाहिए। इसलिए, तुम्हारी कोई भी पलक फड़फड़ाए, या तुम्हें अपने दाँत गिरने, बाल झड़ने, या मौत के सपने आएँ, या कोई भी डरावना सपना आए, तुम्हें यकीन करना चाहिए कि ये चीजें परमेश्वर के हाथों में हैं, और तुम्हें उनसे प्रभावित या बाधित नहीं होना चाहिए। परमेश्वर जो कार्य पूरे करना चाहता है उन्हें कोई बदल नहीं सकता, और परमेश्वर द्वारा नियत चीजों को कोई भी बदल नहीं सकता। परमेश्वर द्वारा नियत या नियोजित चीजें वे तथ्य हैं जो पहले ही पूरे किए जा चुके हैं। चाहे तुम्हें कोई पूर्वानुमान मिले या आध्यात्मिक क्षेत्र के ये दानव और शैतान तुम्हें चाहे जैसी भी पूर्वसूचना दें, तुम्हें उनसे बाधित नहीं होना चाहिए। बस विश्वास रखो कि ये सब परमेश्वर के हाथों में हैं, और लोगों को परमेश्वर के आयोजन और व्यवस्था को समर्पित होना चाहिए। जो चीजें होने को हैं या जो नहीं हो सकतीं, वे सभी परमेश्वर के नियंत्रण और उसके विधान में हैं। उनमें दखल देना तो दूर रहा, कोई उन्हें बदल भी नहीं सकता। यह एक तथ्य है। वह सृष्टिकर्ता ही है जिसकी लोगों को घुटने टेककर आराधना करनी चाहिए, न की अंधविश्वास को साकार या बहाल कर सकने वाली आध्यात्मिक क्षेत्र की किसी और ताकत की। दानवों और शैतान को प्राप्त जादुई शक्तियाँ चाहे जितनी भी विशाल क्यों न हों, वे चाहे जो भी चमत्कार कर सकें, जो भी चीज साकार कर सकें, और किसी व्यक्ति के जितने भी पूर्वानुमानों या अंधविश्वासी कहावतों को असलियत में बदल सकें, इनमें से किसी का भी यह अर्थ नहीं है कि लोगों का भाग्य उनके हाथों में है। लोगों को घुटने टेककर जिसकी आराधना करनी चाहिए और जिस पर विश्वास रखना चाहिए वह दानव और शैतान नहीं बल्कि सृष्टिकर्ता होना चाहिए। परंपराओं, अंधविश्वासों और धर्मों को ले कर परिवार द्वारा दी गई शिक्षा के विषय में विचार करते समय लोगों को यही चीजें समझनी चाहिए। संक्षेप में कहें, तो यह चाहे परंपरा से संबंधित हो, या फिर अंधविश्वास या धर्म से, अगर इनमें से किसी चीज का परमेश्वर के वचनों, सत्य और लोगों से परमेश्वर की अपेक्षाओं से कोई लेना-देना न हो, तो लोगों को उसे त्याग कर उसे छोड़ देना चाहिए। चाहे यह कोई जीवनशैली हो, या किसी प्रकार की सोच, चाहे यह कोई नियम हो या सिद्धांत, अगर सत्य से इसका संबंध नहीं है, तो लोगों को इसे छोड़ देना चाहिए। मिसाल के तौर पर, लोगों की धारणाओं में, ईसाई धर्म, कैथोलिक धर्म, यहूदी धर्म वगैरह जैसे धर्मों से जुड़ी चीजों को अंधविश्वास, परंपरा या मूर्तिपूजा से अपेक्षाकृत श्रेष्ठ और पवित्र माना जाता है। लोग अपनी धारणाओं और अपने मन की गहराई में उनके प्रति श्रद्धा महसूस करते हैं और उन्हें पसंद करते हैं, लेकिन फिर भी लोगों को धर्म से जुड़े प्रतीकों, छुट्टियों, और निशानियों को त्याग देना चाहिए और उन्हें ज्यादा सँजोना नहीं चाहिए, या उनसे सत्य जैसे ही पेश नहीं आना चाहिए, घुटने टेककर उनकी आराधना नहीं करनी चाहिए, या अपने दिलों में उनके लिए जगह बना कर भी नहीं रखनी चाहिए। ऐसा नहीं किया जाना चाहिए। धार्मिक प्रतीक, धार्मिक गतिविधियाँ, धार्मिक छुट्टियाँ, कुछ प्रख्यात धार्मिक चीजें और साथ ही धर्म की कुछ अपेक्षाकृत श्रेष्ठ कहावतें वगैरह, ये सब धर्म के उस विषय के दायरे में आते हैं जिसके बारे में हमने चर्चा की है। संक्षेप में कहें, तो ये सब कहने का उद्देश्य तुम्हें एक तथ्य समझाना है : जब अंधविश्वास, परंपरा और धर्म से जुड़ी चीजों की बात आती है, वे श्रेष्ठ हों या अपेक्षाकृत विचित्र, अगर वे सत्य से संबंधित न हों, तो उन सबको त्याग देना चाहिए, और लोगों को उनसे चिपके नहीं रहना चाहिए। बेशक, सत्य सिद्धांतों का उल्लंघन करने वाले विषयों को खास तौर पर त्याग देना चाहिए, और उन्हें बिल्कुल भी नहीं रखना चाहिए। लोगों को उनके परिवारों से मिली शिक्षा और परिवार के प्रभाव से उपजी इन चीजों को निस्संदेह त्याग देना चाहिए, और खुद को उनसे प्रभावित नहीं होने देना चाहिए। मिसाल के तौर पर, क्रिसमस के वक्त कुछ भाई-बहनों से मिलने पर तुम उन्हें देखते ही कहते हो, “मेरी क्रिसमस! हैप्पी क्रिसमस!” क्या “मेरी क्रिसमस” कहना अच्छी बात है? (नहीं, अच्छी बात नहीं है।) क्या यह कहना उचित है, “चूँकि यह वह दिन मनाने के लिए है जब यीशु पैदा हुआ था, इसलिए क्या हमें छुट्टी लेकर कुछ भी नहीं करना चाहिए, और अपने काम और कर्तव्य में हम जितने भी व्यस्त क्यों न हों, क्या हमें सब बंदकर परमेश्वर के कार्य के अतीत के उस समय के सबसे स्मरणीय दिवस को मनाने पर ध्यान नहीं देना चाहिए?” (नहीं, यह उचित नहीं है।) यह क्यों उचित नहीं है? (क्योंकि यह वह कार्य है जो परमेश्वर ने अतीत में किया था, और यह वह चीज है जिसका सत्य से कोई लेना-देना नहीं है।) सैद्धांतिक तौर पर बात यही है। सैद्धांतिक तौर पर तुमने इस मसले की जड़ को जान लिया है, मगर वास्तविकता में क्या है? यह सबसे सरल मामला है, और तुम लोग मुझे जवाब नहीं दे सकते। लोग जब ऐसी चीजें करते हैं, तो परमेश्वर को अच्छा नहीं लगता; इसे देखकर उसे घृणा होती है। यह बात इतनी सरल है। छुट्टियों के समारोहों के दौरान गैर-विश्वासी कहते हैं, “हैप्पी न्यू इयर! हैप्पी क्रिसमस!” अगर वे मेरा अभिनंदन करते हैं, तो मैं बस सिर हिलाकर कहता हूँ, “तुम्हें भी!” यानी “तुम्हें भी मेरी क्रिसमस।” मैं बस इस अभिवादन का दिखावा भर करता हूँ। लेकिन भाई-बहनों से मिलने पर मैं यह नहीं कहता। ऐसा क्यों है? क्योंकि यह छुट्टी गैर-विश्वासियों के लिए है, एक व्यावसायिक छुट्टी। पश्चिम में, लगभग सभी छुट्टियाँ, चाहे वे पारंपरिक हों या इंसान द्वारा बनाई हुई, वास्तव में वाणिज्य और अर्थतंत्र से जुड़ी होती हैं। लंबे इतिहास वाले कुछ राष्ट्रों में भी, उनकी छुट्टियाँ महज परंपरा से जुड़ी होती हैं और ये बीसवीं शताब्दी से धीरे-धीरे करके तरह-तरह की वाणिज्यिक गतिविधियों में विकसित हो गई हैं, और व्यापारियों के लिए उत्कृष्ट वाणिज्यिक अवसर हैं। ये छुट्टियाँ वाणिज्यिक हों या पारंपरिक, किसी भी स्थिति में, इनका उन लोगों से कोई लेना-देना नहीं है जो परमेश्वर में विश्वास रखते हैं। गैर-विश्वासी या धार्मिक लोग भी इन छुट्टियों को ले कर चाहे जितने भी उत्साही क्यों न हों, या किसी भी देश या राष्ट्र में ये छुट्टियाँ चाहे जितनी भी भव्य और शानदार क्यों न हों, इनका हम परमेश्वर का अनुसरण करने वालों से कोई लेना-देना नहीं है, ये वे छुट्टियाँ नहीं हैं जो हमें मनानी चाहिए, उस दिन उत्सव मनाना या उसे स्मरणीय बनाना तो दूर की बात है। गैर-विश्वासियों से आने वाली पारंपरिक छुट्टियों को तो छोड़ ही दो, ये चाहे किसी भी प्रजाति, देशज समूह या काल अवधि से आई हों, इनका हमारे साथ कोई लेना-देना नहीं है। परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों की प्रत्येक अवधि और प्रत्येक खंड से जुड़ी बरसियों का भी हमसे कोई लेना-देना नहीं है। मिसाल के तौर पर, व्यवस्था के युग की छुट्टियों का हमसे कोई लेना-देना नहीं है, और अनुग्रह के युग के ईस्टर, क्रिसमस, वगैरह का भी यकीनन हमसे कोई लेना-देना नहीं है। इन चीजों के बारे में संगति करके मैं लोगों को क्या समझाना चाहता हूँ? यह कि परमेश्वर अपने कार्य में छुट्टियों या किसी विनियम को नहीं मानता। वह स्वतंत्र रूप से आजाद होकर आजादी के साथ बिना किसी वर्जना के कार्य करता है, और कभी कोई छुट्टी नहीं मनाता। भले ही यह परमेश्वर के पिछले कार्य का आरंभ हो, अंत हो या कोई विशेष दिन हो, परमेश्वर उसे कभी नहीं मनाता। परमेश्वर इन तिथियों, दिनों और काल को नहीं मनाता और लोगों को भी इनसे विशेष रूप से अवगत नहीं कराता। एक ओर, यह लोगों को बताता है कि परमेश्वर ये दिन नहीं मनाता और उसे इन दिनों की परवाह नहीं है। दूसरी ओर, यह लोगों को बताता है कि उनके लिए इन दिनों को मनाना या उसका उत्सव करना जरूरी नहीं है, और उन्हें ये दिन नहीं रखने चाहिए। लोगों को परमेश्वर के कार्य से जुड़े किसी दिन या काल को याद रखने की जरूरत नहीं है, उन्हें मनाना तो दूर की बात है। लोगों को क्या करना चाहिए? उन्हें परमेश्वर के आयोजन के प्रति समर्पित होना चाहिए और उसके मार्गदर्शन में परमेश्वर की संप्रभुता को स्वीकार करना चाहिए। उन्हें सत्य को स्वीकार करना चाहिए और अपने दैनिक जीवन में सत्य के प्रति समर्पण करना चाहिए। यह बात इतनी सरल है। इस प्रकार, क्या लोगों के लिए जीवन ज्यादा आसान और खुशहाल नहीं होगा? (बिल्कुल।) इसलिए इन मामलों पर संगति करने से प्रत्येक व्यक्ति को वास्तव में आजादी और मुक्ति मिलती है, बंधन नहीं। क्योंकि एक ओर, ये विषय वस्तुपरक तथ्य और सच्ची चीजें हैं जो लोगों को समझनी चाहिए, और दूसरी ओर ये लोगों को मुक्त भी करती हैं और जिन चीजों का उन्हें पालन नहीं करना चाहिए उन्हें त्यागने की अनुमति देती हैं। साथ ही ये लोगों को यह भी जानने देती हैं कि ये चीजें सत्य नहीं दर्शातीं, और परमेश्वर का बस एक ही रास्ता है जिसका लोगों को पालन करना चाहिए, और वह है सत्य। क्या तुम समझ रहे हो? (हाँ।)
जब परिवार का विषय आता है, तो परिवार द्वारा दी गई शिक्षा को त्यागने के अलावा कुछ दूसरे पहलू भी हैं जिन्हें लोगों को त्याग देना चाहिए। हमने पहले किसी व्यक्ति के परिवार द्वारा उसे दी गई विचारों की शिक्षा के बारे में संगति की थी, और फिर हमने जीवन के बारे में उन विविध कहावतों पर संगति की थी जिसकी शिक्षा लोगों में उनके परिवार द्वारा भरी जाती है। सभी परिवार लोगों को एक स्थायी जीवन और विकास का अवसर देते हैं। वे लोगों को उनकी विकास प्रक्रिया के दौरान एक सुरक्षा भावना, निर्भर रहने को कोई चीज, और बुनियादी जरूरतों का स्रोत मुहैया करते हैं। उनकी भावनात्मक जरूरतें पूरी करने के अलावा, परिवार उनकी भौतिक जरूरतें भी पूरी करता है। बेशक, वे जीवन की जरूरतें और सामान्य जीवन ज्ञान भी प्राप्त करते हैं, जिसकी उन्हें बड़े होते समय जरूरत होती है। ऐसी बहुत-सी चीजें हैं जो लोग अपने परिवारों से प्राप्त करते हैं, इसलिए प्रत्येक व्यक्ति के लिए परिवार जीवन का वह अभिन्न अंग है जिसे काटना कठिन है। परिवार से लोगों को जो लाभ मिलते हैं वे असंख्य होते हैं, लेकिन हमारी संगति की विषयवस्तु के परिप्रेक्ष्य से देखें तो विविध नकारात्मक प्रभाव, और जीवन के नकारात्मक रवैये और नजरिये जो परिवार लोगों को देते हैं वे भी असंख्य होते हैं। यानी तुम्हारा परिवार एक ओर तुम्हारे भौतिक जीवन के लिए बहुत-सी अनिवार्य चीजें देता है, तुम्हारी बुनियादी जरूरतें पूरी करता है, और तुम्हें एक भावनात्मक आधार और सहारा देता है, तो साथ ही दूसरी ओर वह तुम्हारे लिए बेमतलब की मुसीबतें भी खड़ी करता है। बेशक, सत्य समझने से पहले, लोगों के लिए इन मुसीबतों से बच निकलना और उन्हें त्यागना मुश्किल है। किसी हद तक तुम्हारा परिवार तुम्हारे दैनिक जीवन और अस्तित्व में छोटी-बड़ी बाधाएँ पैदा करता है जिससे अपने परिवार के प्रति तुम्हारी भावनाएँ अक्सर पेचीदा और विरोधाभासी हो जाती हैं। चूँकि तुम्हारा परिवार भावनात्मक स्तर पर तुम्हारे जीवन में दखलंदाजी करते हुए तुम्हारी भावनात्मक जरूरतें पूरी करता है, इसलिए ज्यादातर लोगों के मन में “परिवार” शब्द पेचीदा और साफ-साफ न बताए जा सकने वाले विचार पैदा करता है। तुम अपने परिवार के प्रति स्मृतियों, लगाव और बेशक आभार से सराबोर महसूस करते हो। मगर साथ ही तुम्हारे परिवार द्वारा लाई गई उलझनें तुम्हें यह महसूस कराती हैं कि यह मुसीबत का एक बड़ा स्रोत है। यानी व्यक्ति के वयस्क हो जाने के बाद परिवार को लेकर उनकी परिकल्पना, विचार और नजरिये अपेक्षाकृत जटिल हो जाते हैं। अगर वे अपने परिवार को पूरी तरह जाने दें, त्याग दें या उसके बारे में सोचना बंद कर दें, तो उनका जमीर इसे सह नहीं पाएगा। अगर वे अपने परिवार के बारे में सोच कर, उसे याद कर, खुद पूरे दिल से ऐसे झोंकने की सोचें जैसा वे तब करते थे जब वे बच्चे थे, तो वे ऐसा करने को अनिच्छुक होंगे। अपने परिवारों से निपटते समय लोगों को अक्सर ऐसी दशा, ऐसे विचार, सोच, या शिक्षा का अनुभव होता है, और ऐसे विचार या सोच और शिक्षा उनके परिवारों द्वारा दी गई शिक्षा से भी उपजती हैं। आज हमने इस विषय पर संगति की है : बोझ जो परिवार लोगों पर लादते हैं।
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