सत्य का अनुसरण कैसे करें (15) भाग चार

कुछ लोग कहते हैं, “अगर ये परंपराएँ और अंधविश्वास ईसाई धर्म के बाहर के कुछ खास पारंपरिक विचारों और अंधविश्वासों से जुड़े हुए हैं, तो हमें उनकी आलोचना कर उनका त्याग कर देना चाहिए। लेकिन जब बात रूढ़िवादी धर्मों के कुछ खास विचारों, नजरियों, परंपराओं या अंधविश्वासों की हो, तो क्या लोगों को उनका त्याग नहीं करना चाहिए? क्या उन्हें हमारे दैनिक जीवन में याद करने और बनाए रखने के लिए एक छुट्टी या एक जीवनशैली के तौर पर नहीं देखना चाहिए?” (नहीं, हमें दोनों को त्यागना चाहिए, क्योंकि ये परमेश्वर की ओर से नहीं हैं।) मिसाल के तौर पर, ईसाई धर्म की सबसे बड़ी छुट्टी क्रिसमस है—क्या तुम लोगों को इसके बारे में कुछ भी मालूम है? आजकल, पूर्व के कुछ प्रमुख शहर भी क्रिसमस मनाते हैं, क्रिसमस पार्टियों का आयोजन करते हैं, और क्रिसमस पूर्वसंध्या का उत्सव मनाते हैं। क्रिसमस के अलावा ईस्टर और पासओवर भी हैं, दोनों ही प्रमुख धार्मिक छुट्टियाँ हैं। कुछ छुट्टियों में टर्की और बारबेक्यू खाए जाते हैं, जबकि दूसरी छुट्टियों में लाल-सफेद कैंडी खाई जाती है जो लोगों के लिए पापबलि के रूप में प्रभु यीशु के अनमोल रक्त का प्रतीक है, यह उन्हें पवित्र बना देता है। लाल रंग प्रभु यीशु का अनमोल रक्त दर्शाता है और सफेद रंग पवित्रता, और लोग ऐसी कैंडी खाते हैं। ईस्टर के दौरान ईस्टर अंडे खाने की भी परंपरा है। ये सभी छुट्टियाँ ईसाई धर्म से संबंधित हैं। कुछ विशेष ईसाई आदर्श प्रतीक भी हैं, जैसे कि मरियम, यीशु और क्रूस के चित्र। ये चीजें ईसाई धर्म से विकसित हुई हैं, और मेरी राय में ये भी एक प्रकार की परंपरा हैं। इन परंपराओं के पीछे जरूर कुछ अंधविश्वास होंगे। इन अंधविश्वासी कहावतों की विषयवस्तु चाहे जो हो, संक्षेप में कहें तो अगर वे सत्य, लोगों के चलने के पथ, या सृजित प्राणियों से परमेश्वर की अपेक्षाओं से जुड़ी हुई न हों, तो तुम्हें अभी जिस चीज में प्रवेश करना चाहिए उससे उनका कोई लेना-देना नहीं है, और तुम लोगों को उन्हें जाने देना चाहिए। उन्हें पवित्र और अलंघनीय नहीं मानना चाहिए, बेशक उनसे घृणा करना भी जरूरी नहीं है—बस उनसे सही ढंग से पेश आओ। क्या इन छुट्टियों का हमसे कोई लेना-देना है? (नहीं।) इनका हमसे कोई लेना-देना नहीं है। एक विदेशी ने एक बार मुझसे पूछा, “क्या आप लोग क्रिसमस मनाते हैं?” मैंने कहा, “नहीं।” “तो क्या आप लोग चीनी नव वर्ष, वसंत उत्सव मनाते हैं?” मैंने कहा, “नहीं।” “तो फिर आप लोग कौन-सी छुट्टियाँ मनाते हैं?” मैंने कहा, “हमारे यहाँ छुट्टियाँ नहीं होतीं। हमारे लिए हर दिन एक समान होता है। हम छुट्टियों की वजह से नहीं, बल्कि किसी भी दिन जो भी मन करे खा लेते हैं। मेरी कोई परंपरा नहीं है।” उसने पूछा, “क्यों?” मैंने कहा, “कोई कारण नहीं है। ऐसी जीवन शैली बहुत स्वतंत्र है, कोई बंदिशें नहीं। हम बिना किसी औपचारिकता के रहते हैं, सिर्फ नियमों का पालन करते हैं, परमेश्वर द्वारा दिए गए समय और माप के अनुसार स्वाभाविक और स्वतंत्र रूप से, बिना किसी औपचारिकता के, खाते-पीते, आराम करते, काम करते और चलते-फिरते हैं।” बेशक, एक विशेष धार्मिक वस्तु, क्रूस, के बारे में कुछ लोग मानते हैं कि यह पवित्र है। क्या क्रूस पवित्र है? क्या इसे पवित्र कहा जा सकता है? क्या मरियम का चित्र पवित्र है? (नहीं, यह पवित्र नहीं है।) क्या यीशु का चित्र पवित्र है? तुम लोग यह कहने की हिम्मत नहीं करते। यीशु का चित्र पवित्र क्यों नहीं है? क्योंकि इंसानों ने इसका चित्रांकन किया, यह परमेश्वर का सच्चा रूप नहीं है और इसका परमेश्वर से कोई लेना-देना नहीं है। यह महज एक चित्र है। मरियम के चित्र की तो बात ही क्या। कोई नहीं जानता यीशु कैसा दिखता है, इसलिए वे आँख बंद कर उसका चित्र बना देते हैं, और जब चित्र पूरा बन जाता है तो वे तुमसे कहते हैं कि इसे अपने सामने रख कर आराधना करो। उसकी आराधना करोगे तो क्या तुम मूर्ख नहीं होगे? तुम्हें परमेश्वर की आराधना करनी चाहिए। तुम्हें किसी मूर्ति, छायाचित्र या तस्वीर के सामने सिर झुकाने का औपचारिक दिखावा नहीं करना चाहिए; यह किसी वस्तु के सामने सिर झुकाने की बात नहीं है। तुम्हें परमेश्वर की आराधना करनी चाहिए और अपने हृदय में उसका सम्मान करना चाहिए। लोगों को परमेश्वर के वचनों और उसके वास्तविक व्यक्तित्व के समक्ष साष्टांग दंडवत होना चाहिए, न कि क्रूस या मरियम या यीशु की छवियों के समक्ष जो सबकी सब मूर्तियाँ हैं। क्रूस परमेश्वर के कार्य के दूसरे चरण का प्रतीक मात्र है। इसका परमेश्वर के स्वभाव, सार या मनुष्य से उसकी अपेक्षाओं से कोई लेना-देना नहीं है। यह परमेश्वर का सार तो दूर रहा, उसकी छवि भी नहीं दर्शाता। इसलिए, क्रूस पहनना यह नहीं दर्शाता कि तुम परमेश्वर का भय मानते हो, या तुम्हारे पास एक सुरक्षा ताबीज है। मैंने कभी भी क्रूस का प्रतिनिधित्व नहीं किया। मेरे घर में क्रूस का एक भी प्रतीक नहीं हैं, इनमें से कुछ भी नहीं। तो जब क्रिसमस और ईस्टर न मनाने की बात आती है, तो लोग इन त्योहारों को आसानी से जाने दे सकते हैं, लेकिन अगर इससे क्रूस, मरियम और यीशु के चित्र या बाइबल भी जुड़े हुए हों, और तुम उन्हें कोई क्रूस, मरियम या यीशु का चित्र कहीं फेंक देने को कहोगे, तो वे सोचेंगे, “अरे, यह अत्यधिक निरादर है, बहुत ज्यादा निरादर। परमेश्वर से जल्द माफी माँगो, माफी माँगो...।” लोगों को लगता है कि इसके बुरे नतीजे होंगे। बेशक तुम्हें इन चीजों के साथ जानबूझकर कुछ भी विध्वंसात्मक करने की जरूरत नहीं है, न ही तुम्हारे मन में इनके लिए कोई आदर जरूरी है। ये सिर्फ वस्तुएँ हैं, और इनका परमेश्वर के सार या पहचान से कोई लेना-देना नहीं है। यह ऐसी बात है जो तुम्हें जाननी चाहिए। बेशक, जब इंसानों द्वारा तय की गई क्रिसमस और ईस्टर की छुट्टियों की बात करें, तो इनका परमेश्वर की पहचान या सार, उसके कार्य या लोगों से उसकी अपेक्षाओं से कोई लेना-देना नहीं है। भले ही तुम एक सौ या दस हजार क्रिसमस मना लो, चाहे जितने भी जन्मों तक क्रिसमस या ईस्टर मना लो, यह सत्य को समझने का स्थान नहीं ले सकता। तुम्हें इनकी सराहना कर यह कहने की जरूरत नहीं है, “मुझे पश्चिम में जाना चाहिए। पश्चिमी देशों में मैं क्रिसमस मना सकता हूँ। क्रिसमस पवित्र है। क्रिसमस परमेश्वर के कार्य को याद करने का दिन है। यह वह दिन भी है जिसे हमें मनाना चाहिए। हमें उस दिन गंभीर रहना चाहिए। ईस्टर वह दिन है जो सभी का ध्यान और ज्यादा आकर्षित करता है। यह देहधारी परमेश्वर के मृतकों में से जी उठने का उत्सव है। हम सभी को साथ मिल-जुल कर आनंद और उल्लास के साथ उत्सव मना कर एक दूसरे को बधाई देनी चाहिए और इस दिन की स्मृति सदा बनाए रखनी चाहिए।” ये सब इंसानी कल्पनाएँ हैं, परमेश्वर को इनकी जरूरत नहीं। अगर परमेश्वर चाहता कि लोग ये दिन मनाएँ, तो वह तुम्हें ठीक-ठीक वर्ष, माह, दिन, घंटा, मिनट और सेकंड बता देता। अगर उसने तुम्हें ठीक वर्ष, माह और दिन नहीं बताया है, तो यह तुम्हारे लिए संकेत है कि परमेश्वर के लिए जरूरी नहीं है कि लोग ये दिन मनाएँ। अगर तुम ये दिन मनाते ही हो, तो तुम परमेश्वर के प्रतिबंधों का उल्लंघन करोगे और उसे यह रास नहीं आएगा। परमेश्वर इसे पसंद नहीं करता, मगर तुम फिर भी इसे मनाने पर जोर देते हो और दावा करते हो कि तुम परमेश्वर की आराधना करते हो। फिर परमेश्वर तुमसे और भी ज्यादा चिढ़ जाता है, और तुम मर जाने लायक हो। क्या तुम समझ रहे हो? (मैं समझता हूँ।) अगर अब तुम ये छुट्टियाँ मनाना चाहते हो, तो परमेश्वर तुम पर ध्यान नहीं देगा, और देर-सवेर, तुम्हें अपने गलत कर्मों के लिए कीमत चुकानी होगी और इसकी जिम्मेदारी उठानी होगी। इसलिए, मैं तुम्हें बताता हूँ कि तुम्हारे लिए यह ज्यादा अहम है कि परमेश्वर के किसी वचन को सचमुच समझो और उसके वचनों का पालन करो, बजाय इसके कि क्रूस के सामने कई-कई बार साष्टांग दंडवत हो जाओ और सिर झुकाओ। तुम यह चाहे जितनी बार करो, बेकार है और इसका यह अर्थ नहीं है कि तुम परमेश्वर के मार्ग का अनुसरण कर रहे हो, उसके वचनों को स्वीकार रहे हो, या उसके द्वारा अपेक्षित सिद्धांतों के अनुसार काम कर रहे हो। परमेश्वर इसे याद नहीं रखेगा। तो अगर तुम्हें लगता है कि क्रूस खास तौर पर पवित्र है, तो आज से तुम्हें इस विचार और नजरिये को जाने देना चाहिए, और अपने दिल की गहराइयों से, सँजोए हुए क्रूस को निकाल फेंकना चाहिए। यह परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं करता, और इसकी आराधना करने का अर्थ यह नहीं है कि तुम निष्ठावान हो। इसे सँजोने, सँभालने या सारा दिन अपने कंधों पर ढो कर चलने का भी यह अर्थ नहीं है कि तुम परमेश्वर की आराधना कर रहे हो। क्रूस परमेश्वर के कार्य के एक चरण में प्रयुक्त एक औजार भर था, और इसका परमेश्वर के सार, स्वभाव या पहचान से कोई संबंध नहीं है। अगर तुम इसे परमेश्वर मानकर इसकी आराधना करने पर जोर देते हो, तो इसी बात से परमेश्वर घृणा करता है। न सिर्फ तुम्हें परमेश्वर याद नहीं रखेगा, बल्कि वह तुम्हें तिरस्कृत करेगा। अगर तुम इस पर जोर देकर कहोगे, “मैं तुम्हारी बात नहीं सुनूंगा। क्रूस पवित्र है, और मेरी नजरों में अलंघनीय है। मैं तुम्हारी बातों पर यकीन नहीं करता, न स्वीकार करता हूँ कि क्रूस महत्वपूर्ण नहीं है और परमेश्वर को नहीं दर्शाता,” तो तुम जैसा चाहो वैसा करके देख सकते हो कि आखिर में तुम्हें इससे क्या मिलेगा। परमेश्वर बहुत पहले ही क्रूस से उतर चुका है। यह परमेश्वर के कार्य के एक चरण में प्रयुक्त बहुत ही मामूली औजार था। यह महज एक वस्तु है और परमेश्वर की नजरों में इसका सँभाल कर रखने जैसा कोई मूल्य नहीं है। बेशक, तुम्हें इसे सँजोने, इससे प्रेम करने या इसे आदर भाव से देखने की जरूरत नहीं है। यह गैर-जरूरी है। बाइबल को भी लोग अपने दिलों में बहुत सँजोकर रखते हैं। हालाँकि अब वे बाइबल नहीं पढ़ते, फिर भी उनके दिलों में इसका एक सुनिश्चित स्थान है। वे अभी भी बाइबल के बारे में अपने परिवार या पूर्वजों से विरासत में मिले विचारों को पूरी तरह जाने नहीं दे सकते। मिसाल के तौर पर, कभी-कभार बाइबल को किनारे रख कर तुम सोच सकते हो, “अरे, मैं क्या कर रहा हूँ? यह बाइबल है। लोगों को इसे सँजो कर रखना चाहिए! बाइबल पवित्र है और इससे यूँ उपेक्षा से पेश नहीं आना चाहिए मानो यह कोई साधारण पुस्तक हो। इस पर इतनी धूल जम गई है और किसी ने इसे साफ करने की भी जहमत नहीं उठाई। पुस्तक के कोने मुड़ गए हैं, किसी ने उन्हें सीधा तक नहीं किया।” लोगों को बाइबल से पेश आने के ऐसे विचार और नजरिये को जाने देना चाहिए जैसे कि वह पवित्र और अलंघनीय हो।

परिवार की इन परंपराओं और अंधविश्वासों जिन पर अभी-अभी हमने चर्चा की है, और साथ ही धर्म से जुड़े तरह-तरह के विचारों, नजरियों और जीवनशैलियों, और वस्तुओं जिनको लेकर लोग अंधविश्वासी हैं, या जिनकी वे सराहना करते हैं या जिन्हें सँजोते हैं, ये सभी लोगों में मन में कुछ खास गलत जीवनशैलियाँ, विचार और नजरिये बैठा देते हैं, और उनके जीवन, आजीविका और जीवित रहने में उन्हें अमूर्त रूप से गुमराह करते हैं। दैनिक जीवन में, इस तरह गुमराह होने से, लोग अनजाने ही सही चीजों, सकारात्मक विचारों और सकारात्मक मामलों को स्वीकारने की कोशिशों में बाधित होंगे, और फिर वे अनजाने ही कुछ मूर्खतापूर्ण, तर्कहीन और बचकानी हरकतें कर बैठेंगे। ठीक इसी वजह से, लोगों के लिए यह जरूरी है कि इन मामलों पर वे सही दृष्टि, सही विचार और सही नजरिये रखें। अगर कोई चीज सत्य से जुड़ी है और उसके अनुरूप है, तो तुम्हें उसे अपने जीवन और जीवित रहने हेतु पालन करने के लिए एक सिद्धांत के रूप में स्वीकार कर, उस पर अमल कर उसके प्रति समर्पित हो जाना चाहिए। लेकिन अगर यह सत्य से जुड़ी हुई नहीं है, और महज परंपरा या अंधविश्वास है, या महज धर्म से आती है तो तुम्हें इसे जाने देना चाहिए। अंत में, आज जिस विषयवस्तु पर हमने संगति की, उसकी एक विशिष्टता है : जब परंपराओं, अंधविश्वासों और धर्म की बात आती है, चाहे तुम उन्हें मानो या न मानो, तुमने उनका अनुभव किया हो या न किया हो, या तुम उन्हें जितनी भी मान्यता देते हो; संक्षेप में कहें, तो परंपरा और अंधविश्वास में कुछ खास कहावतें होती हैं जो वस्तुपरक, तथ्यात्मक रूप से मौजूद हैं, और जो एक निश्चित स्तर तक सभी लोगों के दैनिक जीवन को प्रभावित और बाधित करती हैं। तो तुम सबको इस मामले को किस दृष्टि से देखना चाहिए? कुछ लोग कहते हैं, “तुम्हें इस पर यकीन करना चाहिए। अगर तुम इसकी बातों का पालन नहीं करते, तो इसके बुरे नतीजे होंगे—तब तुम क्या करोगे?” क्या तुम विश्वासियों और छद्म-विश्वासियों के बीच का सबसे बड़ा फर्क जानते हो? (सबसे बड़ा फर्क यह है कि विश्वासी भरोसा करते हैं कि सब-कुछ परमेश्वर के हाथों में है, जबकि छद्म-विश्वासी हमेशा खुद अपना भाग्य बदलने की कोशिश करते हैं।) एक और बात यह है कि विश्वासियों के पास परमेश्वर की मौजूदगी और रक्षा है, इसलिए असल जीवन में होने वाली तरह-तरह की अंधविश्वासी घटनाएँ उन पर असर नहीं करतीं। लेकिन छद्म-विश्वासियों के पास परमेश्वर की रक्षा नहीं होती, और वे उसकी रक्षा या संप्रभुता में विश्वास नहीं करते, इसलिए वे अपने दैनिक जीवन में अस्वच्छ दानवों और दुष्ट आत्माओं के नियंत्रण में होते हैं। इसलिए उन्हें अपने हर काम में प्रतिबंधों पर ध्यान देना पड़ता है। ये प्रतिबंध कहाँ से आते हैं? क्या ये परमेश्वर से आते हैं? (नहीं, बिल्कुल नहीं।) उन्हें इन चीजों से दूर रहने की जरूरत क्यों है? उन्हें कैसे पता चलता है कि उन्हें इन चीजों से दूर रहना है? यह इसलिए होता है कि कुछ लोगों ने ये चीजें अनुभव की हैं, उनसे कुछ अनुभव पाकर कुछ सबक सीखे हैं, और फिर उन्हें लोगों के बीच फैलाया है। फिर इन अनुभवों और सबकों का बड़े पैमाने पर प्रसार किया जाता है, जिससे लोगों के बीच एक प्रवृत्ति बन जाती है, और सभी लोग उसी अनुसार जीना और काम करना शुरू कर देते हैं। यह प्रवृत्ति कैसे बनी? अगर तुम दुष्ट आत्माओं और अस्वच्छ दानवों द्वारा तय नियमों का पालन नहीं करते, तो वे तुम्हें परेशान करेंगे, बाधित करेंगे, और तुम्हारे सामान्य जीवन को अस्त-व्यस्त कर देंगे, जिससे तुम इन प्रतिबंधों के होने पर यकीन करने को मजबूर हो जाओगे, और अगर इनका उल्लंघन करोगे तो बुरे नतीजे होंगे। हजारों वर्षों में, लोगों ने अपने दैनिक जीवन में ये अनुभव इकट्ठा किए हैं, एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को विरासत में पहुँचाए हैं, और यह जान पाए हैं कि कोई अदृश्य शक्ति है जो पृष्ठभूमि में उन्हें नियंत्रित कर रही है और उन्हें इसकी बात सुननी चाहिए। मिसाल के तौर पर, अगर तुम चीनी नव वर्ष के समय पटाखे नहीं जलाते, तो उस वर्ष तुम्हारा व्यापार आसानी से नहीं चलेगा। एक और उदाहरण यह है कि अगर नव वर्ष के समय तुम पहली अगरबत्ती जलाते हो, तो पूरे वर्ष तुम्हारे लिए सब-कुछ अच्छा होगा। ये अनुभव लोगों को बताते हैं कि उन्हें अंधविश्वासों और लोक संस्कृति से आई इन कहावतों में विश्वास करना चाहिए, और पीढ़ी-दर-पीढ़ी लोग इसी तरह जीते हैं। ये घटनाएँ लोगों को क्या बताती हैं? ये लोगों को बताती हैं कि ये बंदिशें और प्रतिबंध, ये सब वे अनुभव हैं जो लोगों ने लंबे समय में अपने जीवन में इकट्ठा किए हैं, और ये वो चीजें हैं जो लोगों को करनी ही चाहिए, क्योंकि कुछ ऐसी अदृश्य शक्तियाँ हैं, जो परदे के पीछे से सब-कुछ नियंत्रित कर रही हैं। अंत में, पीढ़ी-दर-पीढ़ी लोग इन नियमों का पालन करते हैं। जो लोग परमेश्वर में विश्वास नहीं करते, उन्हें सामाजिक समुदायों में अपेक्षाकृत आसान जीवन जीने के लिए इन अंधविश्वासों और परंपराओं का पालन करना ही पड़ता है। वे शांति, आसानी और उल्लास खोजते हुए जीते हैं। तो परमेश्वर में विश्वास रखने वाले लोगों को इन अंधविश्वासों और परंपराओं का पालन क्यों नहीं करना पड़ता? (क्योंकि उन्हें परमेश्वर की रक्षा प्राप्त है।) उन्हें परमेश्वर की रक्षा प्राप्त है। परमेश्वर में विश्वास रखने वाले लोग उसका अनुसरण करते हैं, और परमेश्वर इन लोगों को अपनी मौजूदगी में और अपने घर में लाता है। परमेश्वर की अनुमति के बिना, शैतान तुम्हें हानि पहुँचाने की हिम्मत नहीं कर सकता। तुम भले ही उसके नियमों का पालन न करो, फिर भी वह तुम्हें छू नहीं सकता। लेकिन जो लोग परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते और उसका अनुसरण नहीं करते, उन्हें शैतान अपनी मर्जी से चला सकता है। लोगों को चलाने का शैतान का तरीका है तरह-तरह की कहावतें और अजीब नियम स्थापित करना जिनका तुम्हें पालन करना होता है। अगर तुम उनका पालन नहीं करते, तो वह तुम्हें दंड देगा। मिसाल के तौर पर, अगर बारहवें चंद्र माह के 23वें दिन तुम रसोई के देवता की आराधना नहीं करते, तो क्या इसके बुरे नतीजे नहीं होंगे? (जरूर होंगे।) बुरे नतीजे होंगे, और गैर-विश्वासी इस रस्म को छोड़ने की हिम्मत नहीं कर सकते। उस दिन, उन्हें रसोई के देवता का मुँह बंद करने और उनके बारे में स्वर्ग में शिकायत करने से रोकने के लिए उन्हें तिल की कैंडी भी खानी पड़ती है। ये नियम और अंधविश्वासी कहावतें कैसे चलन में आईं? शैतान ही है जो ऐसी चीजें करता है जो मौखिक परंपरा से पीढ़ी-दर-पीढ़ी पहुँचाई जाती हैं। मूल में, ये शैतान, और विविध अस्वच्छ दानवों, दुष्ट आत्माओं व दानव अगुआओं से उपजती हैं। वे ये नियम स्थापित कर इन अंधविश्वासी कहावतों और नियमों का इस्तेमाल कर लोगों को नियंत्रित करते हैं और इन्हें मानने पर मजबूर करते हैं। अगर तुम नहीं सुनते, तो वे किसी भीषण वस्तु से तुम पर प्रहार करते हैं—वे तुम्हें दंड देते हैं। कुछ लोग ये अंधविश्वासी कहावतें नहीं मानते, और उनके घर हमेशा अस्त-व्यस्त रहते हैं। जब वे अपना भविष्य जानने के लिए किसी बौद्ध मंदिर जाते हैं, तो उन्हें बताया जाता है, “बाप रे, तुमने अमुक प्रतिबंध का उल्लंघन किया है। तुम्हें अपने घर के नीचे की जमीन तोड़नी होगी, चिमनी को समायोजित करना होगा, अपने घर के पर्दे बदलने होंगे, और अपने घर के चौखट पर तिलिस्मी तावीज लगाना होगा। फिर वे छोटे दानव आसपास फटकने की हिम्मत नहीं करेंगे।” दरअसल एक बड़े दानव ने छोटे दानव को दबा दिया है, इसलिए अब वह तुम्हें परेशान नहीं करेगा। इस तरह जीवन अधिक सुकून-भरा हो जाता है। शुरू में तो इस व्यक्ति ने इस पर यकीन नहीं किया, लेकिन अब इसे देख कर वह कहता है, “अरे, सच में एक छोटा दानव था जो इतनी तकलीफ दे रहा था!” इस पर यकीन करने के सिवाय उसके पास कोई विकल्प नहीं होता। जो लोग परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते और इस दुनिया में गुजारा करने और जीने की कोशिश करते हैं, वे दुष्ट आत्माओं द्वारा पूरी तरह नियंत्रित होते हैं, अपने लिए चुनाव करने के किसी हक और किसी विकल्प से रहित होते हैं—उन्हें विश्वास करना ही पड़ता है। दूसरी ओर, तुममें से जो लोग परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, अगर तुम इन अंधविश्वासी या पारंपरिक विचारों, नजरियों या धर्म संबंधी चीजों को पकड़े रहते हो, उनके त्योहार मनाते हो, उनकी कहावतों पर यकीन करते हो, उनकी परंपराएँ, जीवनशैलियाँ और जीवन के प्रति रवैये जारी रखते हो, और तुम्हारे जीवन में उल्लास का स्रोत इन कहावतों पर आधारित है, तो तुम एक तरह की मूक भाषा का इस्तेमाल कर परमेश्वर को बता रहे हो, “मैं तुम्हारे आयोजनों में विश्वास नहीं करता, न ही मैं उन्हें स्वीकार करना चाहता हूँ,” और तुम दुष्ट आत्माओं, अस्वच्छ दानवों और शैतान को भी मूक भाषा में बता रहे हो, “आ भी जाओ, मुझे तुम लोगों की कहावतों पर यकीन है, मैं तुम लोगों के साथ सहयोग करना चाहता हूँ।” चूँकि अपने द्वारा अपनाए गए तरह-तरह के रवैयों, और अपने विचारों, नजरियों और प्रथाओं के संदर्भ में तुम सत्य को स्वीकार नहीं करते, बल्कि दुष्ट आत्माओं, अस्वच्छ दानवों और शैतान के विचारों और नजरियों का पालन करते हो, और तुम अपने आचरण और कार्य में अपने विचारों और नजरियों को लागू करते हो, इसलिए तुम उनकी सत्ता के अधीन जी रहे हो। चूँकि तुम उनकी सत्ता के अधीन जीने को तैयार हो, कहीं बाहर जाते समय मोमो बनाते हो, घर लौटने पर नूडल खाते हो, और चीनी नव वर्ष के समय चावल केक और मछली खाते हो, तो फिर उन्हीं के साथ चले जाओ। तुम्हें परमेश्वर में विश्वास रखने की जरूरत नहीं है, और तुम्हें यह घोषणा करने की जरूरत नहीं है कि तुम परमेश्वर में विश्वास रखते हो। हर जगह और हर मामले में, तुम शैतान द्वारा तुम्हारे भीतर पिरोए गए जीवन जीने के मार्ग, विचारों और नजरियों के अनुसार, या धार्मिक धारणाओं के अनुसार लोगों और चीजों को देखते हो, आचरण और कार्य करते हो, जीवन जीते और जीवित रहते हो, और तुम जो करते हो उसका परमेश्वर द्वारा तुम्हें सिखाई गई बातों या सत्य से कोई लेना-देना नहीं होता। इसका मतलब है कि तुम सचमुच शैतान के अनुयायी हो। जब तुम दिल से शैतान के पीछे चलते हो, तो फिर तुम अभी भी यहाँ क्यों बैठे हो? तुम अब भी धर्मोपदेश क्यों सुन रहे हो? क्या यह धोखेबाजी करना नहीं है? क्या यह परमेश्वर के विरुद्ध ईशनिंदा नहीं है? चूँकि तुम शैतान द्वारा मन में बैठाई गई परंपराओं, अंधविश्वासों और धार्मिक धारणाओं से इतने आसक्त हो, उनमें उलझे हुए हो, और उनके साथ तुम्हारा रिश्ता अभी भी बना हुआ है, इसलिए तुम्हें अब परमेश्वर में विश्वास नहीं रखना चाहिए। तुम्हें बौद्ध मंदिर में रह कर अगरबत्ती जलानी चाहिए, प्रणाम करना चाहिए, पर्ची निकालनी चाहिए, और पवित्र लेखों का जाप करना चाहिए। तुम्हें परमेश्वर के घर में नहीं रहना चाहिए, तुम परमेश्वर के वचन सुनने या परमेश्वर का मार्गदर्शन स्वीकारने के लायक नहीं हो। इसलिए जब तुम घोषित करते हो कि तुम परमेश्वर के अनुयायी हो, तो तुम्हें इन पारिवारिक परंपराओं, अंधविश्वासों और धार्मिक धारणाओं को जाने देना चाहिए। अपनी बुनियादी जीवनशैली भी : अगर वह भी परंपरा और अंधविश्वास से जुड़ी हुई है, तो तुम्हें उसे भी जाने देना चाहिए और उसे पकड़े नहीं रखना चाहिए। परमेश्वर जिस बात से सबसे ज्यादा घृणा करता है वह है इंसानी परंपरा, त्योहार के दिन, रीति-रिवाज, और जीने के कुछ खास तरीके जो लोक संस्कृति और परिवार से लोगों तक पहुँचते हैं, और जिनके पीछे कुछ खास व्याख्याएँ होती हैं। मिसाल के तौर पर, कुछ लोगों को घर बनाते समय यह कह कर अपने घर की चौखट पर एक आईना रखना होता है कि दुष्ट आत्माओं को दूर रखने के लिए इसका प्रयोग होता है। तुम परमेश्वर में विश्वास रखते हो, फिर भी दानवों से डरते हो? तुम परमेश्वर में विश्वास रखते हो, तो फिर दानव तुम्हें इतनी आसानी से परेशान कैसे कर सकते हैं? क्या तुम परमेश्वर के सच्चे विश्वासी हो? चीनी नव वर्ष के समय, अगर कोई बच्चा कोई दुर्भाग्यपूर्ण बात कह देता है जैसे कि “अगर मैं मर गया,” या “अगर मेरी माँ मर गई,” तो वे फौरन कहते हैं, “नहीं, नहीं, नहीं, एक बच्चे की बातें प्रतिबंध नहीं तोड़ सकतीं, एक बच्चे की बातें प्रतिबंध नहीं तोड़ सकतीं।” वे इस डर से बेहद भयभीत हो जाते हैं कि उनकी बातें सच हो जाएँगी। तुम किस बात से डरते हो? अगर वह सच हो भी गई, तो क्या तुम इस वास्तविकता को स्वीकार नहीं कर सकते? क्या तुम इसका प्रतिरोध कर सकते हो? क्या तुम्हें परमेश्वर से इसे स्वीकार नहीं करना चाहिए? परमेश्वर के साथ कोई प्रतिबंध नहीं हैं, सिर्फ वही चीजें हैं जो या तो सत्य के अनुरूप हैं या नहीं हैं। परमेश्वर के एक विश्वासी के रूप में, तुम्हें किसी प्रतिबंध का पालन नहीं करना चाहिए, बल्कि इन बातों से परमेश्वर के वचनों और सत्य सिद्धांतों के अनुसार निपटना चाहिए।

आज की संगति इन विषयों से जुड़ी हुई है कि परिवार लोगों को परंपरा, अंधविश्वास और धर्म की शिक्षा किस तरह से देता है। हालाँकि हो सकता है इन विषयों के बारे में हम ज्यादा न जानते हों, फिर भी संगति के जरिये तुम्हें इतना बताना काफी है कि तुम्हें कैसा रवैया बनाए रखना चाहिए, और तुम्हें परमेश्वर के वचनों और सत्य सिद्धांतों के अनुसार इनसे कैसे पेश आना चाहिए। कम-से-कम जो अभ्यास तुम्हें बनाए रखना चाहिए वह है इन विषयों से जुड़ी चीजों को जाने देना और उन्हें अपने दिल में न रखना या एक सामान्य जीवनशैली के तौर पर बनाए न रखना। तुम्हें सबसे ज्यादा यह करना चाहिए कि इन्हें जाने दो और इनसे परेशान न हो या बंधे न रहो। तुम्हें अपने जीवन-मरण, भाग्य और विपत्ति को इस आधार पर नहीं परखना चाहिए और बेशक तुम्हें इनके आधार पर अपने भविष्य के पथ को चुनना या उसका सामना कतई नहीं करना चाहिए। अगर बाहर जाने पर तुम्हें कोई काली बिल्ली दिख जाए, और तुम कहो, “कहीं आज का दिन दुर्भाग्यपूर्ण तो नहीं होगा? क्या कुछ दुर्भाग्यपूर्ण घटेगा?” तो यह कैसा दृष्टिकोण है? (यह सही नहीं है।) कोई बिल्ली तुम्हारा क्या बिगाड़ सकती है? भले ही इसको लेकर कुछ अंधविश्वासी कहावतें हों, उनका तुमसे कोई लेना-देना नहीं, इसलिए डरने की कोई जरूरत नहीं है। काली बिल्ली को छोड़ो, काले बाघ से भी मत डरो। सब-कुछ परमेश्वर के हाथों में है, और काली बिल्ली को छोड़ो, तुम्हें शैतान या किसी दुष्ट आत्मा से भी डरने की जरूरत नहीं है। अगर तुम्हारे मन में कोई प्रतिबंध नहीं है, तुम सिर्फ सत्य का अनुसरण करते हो और मानते हो कि सब-कुछ परमेश्वर के हाथों में है, तो भले ही इसके बारे में कुछ कहावतें हों या यह दुर्भाग्य ले भी आए, तो भी तुम्हें डरने की जरूरत नहीं है। मिसाल के तौर पर, किसी दिन तुम अपने बिस्तर के पास अचानक किसी उल्लू को हू हू की आवाज करते हुए सुनते हो। चीनी लोककथाओं में कहा गया है, “उल्लू की हू हू से मत डरो, उसकी हँसी से डरो।” यह उल्लू हू हू करने के साथ-साथ हँस भी रहा है, जिससे तुम्हें बेहद डर लग रहा है, और तुम्हारे दिल पर इसका थोड़ा असर पड़ रहा है। लेकिन पल भर के लिए सोचो, “जो होना है वह होकर रहेगा, और जो नहीं होना है उसे परमेश्वर होने नहीं देगा। मैं परमेश्वर के हाथ में हूँ, और उसी तरह सब-कुछ उसके हाथ में है। मैं इससे न तो डरता हूँ न प्रभावित होता हूँ। जैसे जीना चाहिए मैं वैसे ही जियूँगा, सत्य का अनुसरण करूँगा, परमेश्वर के वचनों पर अमल करूँगा और परमेश्वर के सभी आयोजनों को समर्पित हो जाऊँगा। यह कभी नहीं बदल सकता!” जब कोई भी चीज तुम्हें परेशान नहीं कर सकती, तो यह सही है। अगर किसी दिन तुम्हें बुरा सपना आता है कि तुम्हारे दाँत गिर गए हैं, बाल भी गिर गए हैं, तुमसे एक कटोरा टूट गया है, तुम खुद को मरा हुआ देखते हो, और एक ही सपने में तमाम बुरी चीजें हो जाती हैं, जिनमें से एक भी तुम्हारे लिए शुभ शकुन नहीं है—तो तुम्हारी प्रतिक्रिया क्या होगी? क्या तुम अवसाद-ग्रस्त महसूस करोगे? क्या तुम परेशान हो जाओगे? क्या तुम प्रभावित होगे? पहले, तुम एक या दो महीने परेशान रहते, और आखिरकार कुछ न होने पर तुम राहत की साँस लेते। लेकिन अब, तुम थोड़े-से ही परेशान हो, और यह सोचते ही कि सब-कुछ परमेश्वर के हाथों में है, तुम्हारा दिल शांत हो जाता है। तुम एक आज्ञाकारी रवैये के साथ परमेश्वर के समक्ष आते हो, और यह सही है। भले ही इन अपशकुनों से कुछ बुरा हो भी जाए, तो भी उसे ठीक करने का रास्ता है। तुम इसे कैसे सुलझा सकते हो? क्या बुरी चीजें भी परमेश्वर के हाथों में नहीं हैं? परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान और दानव तुम्हारे शरीर का एक बाल भी बाँका नहीं कर सकते। खास तौर से जीवन और मृत्यु के मामलों में फैसला उनके हाथ में नहीं है। परमेश्वर की अनुमति के बिना ये बड़ी और छोटी चीजें नहीं होंगी। तो किसी रात सपने में तुम जो भी घटना देखो या तुम्हें अपने शरीर में कुछ भी असामान्य लगे, फिक्र मत करो, बेचैन मत हो, और निश्चित रूप से बचने, ठुकराने या प्रतिरोध करने पर विचार मत करो। इन जोखिमों से बचने के लिए वूडू पुतले, प्रेतात्मा आह्वान आयोजन, पर्ची निकालने, भविष्यवाणी या ऑनलाइन जाकर जानकारी ढूँढ़ने जैसे इंसानी तरीकों का इस्तेमाल करने की कोशिश मत करो। इनमें से किसी की भी जरूरत नहीं है। संभव है तुम्हारा सपना यह संकेत दे रहा हो कि सचमुच कुछ बुरा होने वाला है, जैसे कि दिवालिया हो जाना, शेयर की कीमतों का गिर जाना, तुम्हारा व्यापार किसी और के हाथ चले जाना, किसी सभा में तुम्हारा सरकार द्वारा गिरफ्तार हो जाना, सुसमाचार फैलाते समय तुम्हारी शिकायत, वगैरह-वगैरह। तो क्या हुआ? सब-कुछ परमेश्वर के हाथों में है; डरो मत। चिंतित मत हो, शोक मत मनाओ, और जो बुरी चीजें न हुई हों उनसे मत डरो, और बेशक बुरी चीजों के होने का प्रतिरोध या विरोध मत करो। वही करो जो किसी सृजित प्राणी को करना चाहिए, एक सृजित प्राणी के रूप में अपनी जिम्मेदारियाँ और दायित्व निभाओ, और वह स्थान लो और नजरिया रखो जो एक सृजित प्राणी को रखना चाहिए—चीजों का सामना करते वक्त सभी को यही रवैया अपनाना चाहिए; यानी स्वीकार और समर्पण करना, बिना शिकायत किए परमेश्वर के आयोजनों के लिए छोड़ देना। इस तरह किसी भी धार्मिक, पारंपरिक या अंधविश्वासी कहावतों या परिणामों से तुम्हें कोई समस्या नहीं होगी, और ये कोई परेशानी नहीं खड़ी करेंगे; तुम अंधकार के प्रभाव या शैतान के किसी विचार से नियंत्रित हुए बिना, शैतान की सत्ता से और अंधकार के प्रभाव से सचमुच बाहर आ जाओगे। परमेश्वर के वचन तुम्हारे विचार, तुम्हारी आत्मा, तुम्हारे संपूर्ण अस्तित्व को जीत कर प्राप्त कर लेंगे। क्या यह स्वतंत्रता नहीं है? (हाँ।) यह संपूर्ण स्वतंत्रता है, मुक्ति और स्वतंत्रता में जीना, और मानव की सादृश्यता प्राप्त होना है। यह कितनी अच्छी बात है!

आज की संगति की विषयवस्तु मूल रूप से यही है। जहाँ तक दैनिक जीवन की आदतों के कुछ प्रतिबंधों का सवाल है, जैसे कि कोई बीमारी होने पर कौन-सा खाना न खाएँ, और कुछ लोग अपनी भीतर होने वाली अत्यधिक गर्मी के कारण मसालेदार खाना नहीं खा सकते, इनका इससे संबंध नहीं होता कि कोई कैसा आचरण करता है या कैसे विचार और नजरिये रखता है, कोई कौन-से पथ पर चलता है इस बात से तो बिल्कुल जुड़ा नहीं है। ये हमारी संगति के दायरे में नहीं हैं। परिवार द्वारा दी गई शिक्षा को लेकर हमारी संगति की विषयवस्तु का संबंध लोगों के विचारों और नजरियों से है, उनकी सामान्य जीवनशैली और जीने के नियमों और साथ ही उनके विचारों, नजरियों, अवस्थितियों, और विविध चीजों के प्रति उनके दृष्टिकोणों से है। हर मामले में इन गलत विचारों, नजरियों और रवैयों को ठीक करके लोगों को जिस अगली चीज में प्रवेश करना चाहिए वह है चीजों के बारे में सही विचारों, नजरियों, रवैयों और दृष्टिकोणों को खोजना और स्वीकार करना। ठीक है, आज के विषय पर संगति अब पूरी हुई। फिर मिलेंगे!

25 मार्च 2023

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