सत्य का अनुसरण कैसे करें (15) भाग दो

कुछ ऐसे लोग हैं जो चीनी नव वर्ष के समय पंचांग देखने में अपने दिन बिताते हैं, चंद्र कैलेंडर के बारहवें महीने की 30वीं तिथि की पारंपरिक छुट्टी के दिन से शुरू कर हर दिन खाने-पीने, कपड़े पहनने और परहेज करने की हर बात में पीढ़ियों से चले आ रहे, जीवन शैली और प्रतिबंधों के पारंपरिक रिवाजों का सख्ती से पालन करते हुए अपने दिन गुजारते हैं। जो भी कहना या करना निषिद्ध हो, वे उसे कहने या करने से बचते हैं, और जो भी खाना या बोलना भाग्यशाली हो, वे वही खाते और बोलते हैं। मिसाल के तौर पर, कुछ का विश्वास है कि अगले वर्ष पदोन्नति सुनिश्चित करने के लिए उन्हें नव वर्ष के समय चावल केक खाने चाहिए। उन्हें कितने भी अहम मसले से निपटना हो, वे कितने भी व्यस्त या थके हुए हों, कर्तव्य निर्वहन को लेकर कोई खास हालात बन गए हों, या उन्हें निभाने के लिए पर्याप्त समय निकाल पा रहे हों या नहीं, लेकिन वे यह सुनिश्चित कर लेते हैं कि नव वर्ष में पदोन्नति की खातिर वे चावल केक जरूर खाएँ। अगर उनके पास घर में चावल केक बनाने का वक्त नहीं है, तो वे सिर्फ सौभाग्य सुनिश्चित करने के लिए उसे खरीद भी लेते हैं। कुछ लोगों को नव वर्ष के समय मछली खानी होती है, क्योंकि यह साल-दर-साल प्रचुरता का निरूपण करती है। अगर वे एक साल मछली नहीं खाते तो मानते हैं कि अगले बारह महीने उन्हें गरीबी झेलनी पड़ेगी। अगर वे मछली नहीं खरीद पाते, तो प्रतीक चिह्न के रूप में एक लकड़ी की मछली खाने की मेज पर रख सकते हैं। वे आने वाले वर्ष में पदोन्नति और प्रचुरता दोनों पाने के लिए चावल केक और मछली खाते हैं। एक अर्थ में, वे यह इसलिए करते हैं कि उनका मौजूदा साल आसानी से गुजरे और उनका जीवन बेहतर और ज्यादा समृद्ध हो, और एक दूसरे अर्थ में वे अपने करियर में कामयाबी या अपने व्यापार से ढेरों पैसा कमाने की आशा करते हैं। यही नहीं, नव वर्ष में, वे यह भी सुनिश्चित करते हैं कि वे भाग्यशाली वाक्यांशों का प्रयोग करें। मिसाल के तौर पर, वे संख्या चार और पाँच कहने से बचते हैं, क्योंकि चीनी भाषा में “चार” सुनने में “मृत्यु” जैसा लगता है और “पाँच” “शून्य” जैसा। इसके बजाय, वे छह और आठ संख्याओं का प्रयोग करना पसंद करते हैं, जिसमें “छह” सब अच्छा रहने और “आठ” धन-दौलत कमाने को दर्शाता है। वे न सिर्फ शुभ शब्दों और वाक्यांशों का प्रयोग करते हैं बल्कि कर्मचारियों, परिवार के सदस्यों, रिश्तेदारों और मित्रों को लाल लिफाफे भी देते हैं। लाल लिफाफे देना धन-दौलत कमाने का प्रतीक माना जाता है, और वे जितने ज्यादा लाल लिफाफे बाँटते हैं, वह भविष्य में उनका उतना ही समृद्ध होना दर्शाता है। वे लाल लिफाफे सिर्फ लोगों को ही नहीं, अपने पालतू जानवरों को भी देते हैं, जो इस बात का प्रतीक है कि वे किसी से भी धन-दौलत कमा सकते हैं, और अगला वर्ष फलते-फूलते व्यापार और भव्य धन-दौलत से सराबोर होगा। उनके खाने से लेकर उनके हर कार्य तक, वे जो कहते हैं उससे लेकर कार्य करने के तरीके तक, सभी कुछ उन आदतों और कहावतों को जारी रखने से जुड़ा होता है जो परंपरा से उन्हें मिली हैं, और वे उन्हें श्रमसाध्य परिशुद्धता से करते हैं। भले ही उनका जीवन परिवेश या जिस समुदाय में वे रहते हैं वह बदल जाए, फिर भी ये पारंपरिक रिवाज और जीवनशैलियाँ नहीं बदल सकतीं। चूँकि ये परंपराएँ एक विशेष अर्थ लिए होती हैं, जिनमें लोगों के पूर्वजों द्वारा पीढ़ी-दर-पीढ़ी बताई गई सकारात्मक कहावतें और प्रतिबंधित चीजें शामिल हैं, इसलिए इनको उन्हें जारी रखना ही होगा। अगर इन परंपराओं का उल्लंघन हुआ या प्रतिबंधित चीजें की गईं, तो आने वाला वर्ष शायद अच्छा न जाए, हर जगह बाधाएँ आएँ, व्यापार मंदा हो जाए या दिवाला निकल जाए। इसीलिए इन परंपराओं को बनाए रखना बहुत अहम होता है। कुछ ऐसी परंपराएँ हैं जिनका त्योहारों के समय पालन करना जरूरी है, और साथ ही कुछ ऐसी परंपराएँ भी हैं जिनका लोगों को अपने दैनिक जीवन में पालन करना जरूरी है। मिसाल के तौर पर, बाल कटवाना—अगर कोई कैलेंडर देख कर यह जान ले कि यह दिन बाल कटवाने के लिए अशुभ है तो वह बाहर जाने की हिम्मत नहीं करता। अगर उसने कैलेंडर देखे बिना बाल कटवा लिए तो यह घर से बाहर न जाने और बाल न कटवाने के प्रतिबंधों का उल्लंघन होगा, और शायद उसे अनजान परिणाम झेलने पड़ें—इसलिए इन चीजों का पालन करना जरूरी है। वे परंपरा और अंधविश्वास दोनों से जुड़े हैं। अगर किसी को बाहर जाना हो, मगर वह कैलेंडर देख कर जान ले कि आज का पूरा दिन अशुभ है, यानी यह आराम का दिन है, विश्राम करने का, और कुछ भी करने से बचने का दिन है, यहाँ तक कि जब उसे बताया जाता है कि आज उसे बाहर जाकर सुसमाचार फैलाना है, तो उसे यह चिंता हो जाती है कि प्रतिबंध का उल्लंघन करने से न जाने क्या होगा, कहीं कोई अनहोनी न हो जाए, जैसे कि कार दुर्घटना या चोरी-डकैती। वह बाहर जाने की हिम्मत नहीं करेगा और कहेगा, “कल चलते हैं! पूर्वजों ने जो बताया हम उसकी अनदेखी नहीं कर सकते। वे कहते हैं कि हमें बाहर जाने से पहले कैलेंडर देखना चाहिए। अगर कैलेंडर के अनुसार सारी चीजें अशुभ हैं, तो हमें बाहर नहीं जाना चाहिए। फिर भी अगर तुम बाहर गए और कुछ हो गया तो तुम्हीं को भुगतना होगा। तुमसे किसने कहा कि कैलेंडर मत देखो और उसके अनुसार काम मत करो?” यह परंपरा और अंधविश्वास दोनों से जुड़ा है, है कि नहीं? (हाँ, दोनों से जुड़ा है।)

कुछ लोग कहते हैं, “मैं इस साल 24 का हो गया; यह मेरा राशि वर्ष है।” दूसरे कहते हैं, “मैं इस साल 36 का हो गया; यह मेरा राशि वर्ष है।” तुम्हें अपने राशि वर्ष में क्या करना है? (लाल चड्डी पहनो, लाल बेल्ट लगाओ।) पहले किसी ने लाल चड्डी पहनी है? किसने लाल बेल्ट लगाया है? लाल चड्डी पहन कर और लाल बेल्ट लगा कर कैसा लगा? क्या तुम्हें लगा कि तुम्हारा साल अच्छा बीता? क्या इनसे दुर्भाग्य दूर हुआ? (अपने राशि वर्ष में मैंने लाल मोजे पहने थे। लेकिन उस वर्ष मेरी परीक्षा के नतीजे बहुत बुरे रहे। लाल रंग पहनने से लोगों के कहे अनुसार सौभाग्य नहीं मिला।) उन्हें पहनने से तुम्हें दुर्भाग्य मिला, है न? लाल रंग न पहनने से क्या शायद तुम बेहतर कर पाए होते? (उसे पहनने या न पहनने से कोई असर नहीं हुआ।) प्रश्न के प्रति यही सही नजरिया है—कोई असर नहीं। यह एक परंपरा और एक अंधविश्वास दोनों है। इससे फर्क नहीं पड़ता कि अभी तुम राशि वर्ष के विचार में विश्वास करते हो या नहीं, या तुम इस परंपरा को जारी रखना चाहते हो या नहीं, इससे जुड़े पारंपरिक विचारों और कहावतों ने लोगों के मन पर अपनी छाप छोड़ दी है। मिसाल के तौर पर, तुम्हारा राशि वर्ष आने पर तुम्हारे साथ कोई अनहोनी होती है, या ऐसे कुछ खास हालात बनते हैं जिनमें तुम्हारा वर्ष विषम और तुम्हारी कामना के विपरीत होता है, तो तुम खुद को यह सोचने से नहीं रोक सकोगे, “यह वर्ष सचमुच विषम रहा है। सोचा जाए तो यह मेरा राशि वर्ष है, और लोग कहते हैं कि अपने राशि वर्ष में तुम्हें सावधान रहना चाहिए, क्योंकि इस साल प्रतिबंधों का उल्लंघन करना आसान होता है। परंपरा के अनुसार मुझे लाल रंग पहनना चाहिए, लेकिन परमेश्वर में विश्वास रखने के कारण मैं नहीं पहनता हूँ। मैं इन कहावतों में यकीन नहीं करता, लेकिन जब मैं इस वर्ष झेली चुनौतियों के बारे में सोचता हूँ, तो पाता हूँ कि चीजें आसान नहीं रही हैं। मैं इन समस्याओं से कैसे बच सकता हूँ? शायद अगला वर्ष बेहतर हो।” अनजाने ही वर्ष के दौरान जिन अनहोनियों से तुम्हारा सामना हुआ उन्हें तुम अपने पूर्वजों और परिवार द्वारा राशि वर्ष के बारे में तुम्हारे मन में बैठाई गई पारंपरिक कहावतों की शिक्षा से जोड़ देते हो। तुम इस वर्ष हुई अनहोनियों को सही ठहराने के लिए इन कहावतों का इस्तेमाल करते हो और ऐसा करते समय तुम उनके पीछे के तथ्यों और सार को किनारे कर देते हो। तुम उस रवैये को भी दरकिनार कर देते हो जो तुम्हें ऐसी स्थितियों के प्रति अपनाना चाहिए और उस सबक को भी जो तुम्हें इनसे सीखने चाहिए। तुम सहज ही इस वर्ष को एक विशेष वर्ष मानोगे, अनजाने ही इस वर्ष के दौरान हुई तमाम घटनाओं को अपने राशि वर्ष से जोड़ दोगे। तुम्हें लगेगा, “यह वर्ष मेरे लिए कुछ दुर्भाग्य लेकर आया या इसके दौरान मुझे कुछ आशीष मिले।” इन विचारों का तुम्हारे परिवार द्वारा मिली शिक्षा से एक निश्चित रिश्ता है। वे सही हों या गलत, क्या वे तुम्हारे राशि वर्ष से संबद्ध हैं? (नहीं, संबद्ध नहीं हैं।) वे संबंधित नहीं हैं। तो क्या इन मामलों पर तुम्हारे परिप्रेक्ष्य और नजरिये सही हैं? (नहीं, वे नहीं हैं।) वे सही क्यों नहीं हैं? क्या इसलिए कि तुम अपने परिवार द्वारा तुम्हारे भीतर पिरोए गए पारंपरिक विचारों से कुछ हद तक प्रभावित हुए हो? (हाँ।) तुमने इन पारंपरिक विचारों को प्राथमिकता दी और वे तुम्हारे मन पर हावी हो गए। फिर ऐसे मामले सामने आने पर, तुम्हारी तत्काल प्रतिक्रिया यह होती है कि तुम इन मामलों को इन पारंपरिक विचारों और नजरियों से देखते हो, जबकि उस परिप्रेक्ष्य को जो परमेश्वर तुममें चाहता है या उन विचारों और नजरियों को जो तुममें होने चाहिए, उन्हें दरकिनार कर देते हो। इन मामलों को देखने के तुम्हारे तरीके का अंतिम नतीजा क्या होगा? तुम्हें लगेगा कि यह वर्ष अनुकूल नहीं था, यह दुर्भाग्यपूर्ण और तुम्हारी कामनाओं के विपरीत था, और फिर तुम इन चीजों से बचने, विरोध और प्रतिरोध करने और उन्हें ठुकराने के साधन के रूप में अवसाद और नकारात्मकता को अपना लोगे। तो क्या तुम्हारे भीतर इन भावनाओं, विचारों और नजरियों के पैदा होने की वजह उन पारंपरिक विचारों से संबंधित है जो तुम्हारे भीतर तुम्हारे परिवार ने पिरोये हैं? (हाँ।) ऐसे मामलों में लोगों को क्या जाने देना चाहिए? उन्हें उस परिप्रेक्ष्य और दृष्टिकोण को जाने देना चाहिए जिससे वे उन्हें मापते हैं। उन्हें इन मामलों को उस परिप्रेक्ष्य से नहीं देखना चाहिए कि इस वर्ष के दुर्भाग्यपूर्ण, प्रतिकूल और उनकी कामना के विपरीत होने की वजह से उनका इनसे सामना हुआ, या इस कारण से कि उन्होंने प्रतिबंधों का उल्लंघन किया या पारंपरिक प्रथाओं का पालन नहीं किया। इसके बजाय, तुम्हें हर मामले को बारी-बारी से देखना चाहिए और सबसे पहले तुम्हें कम-से-कम उन्हें एक सृजित प्राणी के नजरिये से देखना चाहिए। ये मामले अच्छे हों या बुरे, तुम्हारी कामनाओं के अनुकूल हों या विरुद्ध, इंसानी नजर में अनुकूल हों या दुर्भाग्यपूर्ण, मान लेना चाहिए कि ये परमेश्वर द्वारा व्यवस्थित हैं, परमेश्वर की सार्वभौमता के अधीन हैं, और परमेश्वर से आए हैं। क्या इन मामलों में ऐसा परिप्रेक्ष्य और दृष्टिकोण अपनाने से फायदा है? (हाँ।) पहला लाभ क्या है? तुम इन मामलों को परमेश्वर से स्वीकार कर सकते हो, जिसका अर्थ है कि कुछ हद तक तुम समर्पण की मानसिकता अपना सकते हो। दूसरा लाभ यह है कि इन निराशाजनक मामलों से तुम कोई सबक सीख कर कुछ हासिल कर सकते हो। तीसरा लाभ यह है कि इन निराशाजनक मामलों से तुम अपनी कमियों और खामियों और साथ ही अपने भ्रष्ट स्वभाव को पहचान सकते हो। चौथा लाभ यह है कि इन निराशाजनक मामलों में तुम प्रायश्चित्त कर पीछे मुड़ सकते हो, अपने पिछले विचारों और नजरियों, अपनी पुरानी जीवनशैली और परमेश्वर के बारे में अपनी विविध गलतफहमियों को जाने दे सकते हो, और परमेश्वर के समक्ष वापस लौट सकते हो, समर्पण के रवैये के साथ उसके आयोजनों को स्वीकार सकते हो, भले ही वे परमेश्वर की ताड़ना और न्याय से, उसके द्वारा तुम्हारी ताड़ना और तुम्हें अनुशासित करने या तुम्हें दंड देने से जुड़े हों। तुम इन सबके प्रति समर्पित होने, स्वर्ग और दूसरे लोगों को दोष न देने, हर चीज को अपने भीतर पारंपरिक विचारों द्वारा पिरोये गए नजरिये और दृष्टिकोण से बांधे न रखने को तैयार हो जाओगे, बल्कि इसके बजाय प्रत्येक मामले को एक सृजित प्राणी के परिप्रेक्ष्य से देखोगे। यह तुम्हारे लिए कई तरह से लाभकारी है। क्या ये तमाम चीजें लाभकारी नहीं हैं? (हाँ, जरूर हैं।) दूसरी ओर, अगर तुम इन मामलों को अपने परिवार द्वारा तुम्हारे भीतर पिरोये गए पारंपरिक विचारों के आधार पर देखोगे, तो तुम हर संभव कोशिश करोगे कि उनसे बचा जाए। उनसे बचने का क्या अर्थ है? इसका अर्थ इन दुर्भाग्यपूर्ण चीजों, इन निराशाजनक, प्रतिकूल और अशुभ मामलों से बचने के विविध तरीके खोजना है। कोई कहता है, “छोटे दानव तुम्हें परेशान कर रहे हैं। अगर तुम लाल कपड़े पहनोगे, तो उनसे बच सकोगे। लाल कपड़े पहनना बौद्ध धर्म में तुम्हें तिलिस्मी तावीज दिए जाने जैसा है। तिलिस्मी तावीज पीले कागज का एक टुकड़ा होता है जिस पर लाल रंग में कुछ अक्षर लिखे होते हैं। तुम इसे अपने माथे पर चिपका सकते हो, अपने कपड़ों में सिल सकते हो या अपने तकिये के नीचे रख सकते हो, और यह तुम्हें इन चीजों से दूर रहने में मदद करेगा।” जब लोगों के पास अभ्यास का कोई सकारात्मक पथ नहीं होता, तो उनका एकमात्र उपाय इन कुटिल और दुष्ट पथों से मदद लेना होता है, क्योंकि कोई भी अभागा नहीं होना चाहता, दुर्भाग्य नहीं झेलना चाहता। सभी चाहते हैं कि चीजें आसान हों। यह दुनियावी मामलों का सामना करते समय भ्रष्ट मानवजाति की सहज प्रतिक्रिया होती है। तुम या तो इन मामलों से बचना चाहते हो, या उन्हें दूर करने के लिए विविध इंसानी उपायों का इस्तेमाल करना चाहते हो, क्योंकि तुम्हारे पास न तो उनके समाधान का सही पथ है, न ही उनका सामना करने के लिए सही विचार और नजरिये हैं। तुम इन चीजों को एक गैर-विश्वासी के नजरिये से ही देख सकते हो, इसलिए तुम्हारी पहली प्रतिक्रिया उनका सामना न कर उनसे बचना है। तुम कहते हो, “चीजें मेरे लिए इतनी प्रतिकूल क्यों हैं? मैं इतना अभागा क्यों हूँ? मुझे हर दिन काट-छाँट का सामना क्यों करना पड़ता है? मुझे हमेशा बाधा क्यों मिलती है, मैं क्यों गलतियाँ करता रहता हूँ? मेरे कार्य हमेशा क्यों उजागर किए जाते हैं? मेरे आसपास के लोग हमेशा मेरी कामनाओं के खिलाफ क्यों जाते हैं? वे मुझे निशाना क्यों बनाते हैं, मुझे नीची नजर से क्यों देखते हैं, और हर चीज में मेरी इच्छा के विरुद्ध क्यों जाते हैं?” जैसे कि कुछ लोग कहते हैं, “तुम अगर दुर्भाग्यशाली हो तो ठंडा पानी भी तुम्हारे दाँतों में फँस सकता है।” क्या ठंडा पानी तुम्हारे दाँतों में फँस सकता है? क्या तुम ठंडे पानी को अपने दाँतों से चबाते हो? क्या यह बकवास नहीं है? क्या यह स्वर्ग और दूसरे लोगों को दोष देना नहीं है। (हाँ, जरूर है।) दुर्भाग्यशाली होने का क्या अर्थ होता है? क्या ऐसी चीज का वास्तव में अस्तित्व है? (नहीं, नहीं है।) इसका अस्तित्व नहीं है। अगर तुमने सचमुच समझ लिया होता कि सब-कुछ परमेश्वर के हाथों में है, सब-कुछ परमेश्वर की सार्वभौमता और व्यवस्था के अधीन है, तो तुम “दुर्भाग्यशाली” जैसे शब्द इस्तेमाल नहीं करते, और तुम मामलों से बचने की कोशिश नहीं करते। जब लोगों का अपनी इच्छा के विपरीत मामलों से सामना होता है, तो उनकी पहली प्रतिक्रिया उनसे बचने की होती है, और फिर वे उन्हें मना करते हैं। अगर वे इन मामलों को मना नहीं कर सकते, उनसे बच या छिप नहीं सकते, तो वे उनका प्रतिरोध करने लगते हैं। प्रतिरोध सिर्फ अपने विचारों में मनन करना नहीं है, या इस बारे में सोचना नहीं है; इसमें कार्य करना शामिल होता है। अकेले में लोग खुद को अच्छा दिखाने के लिए तुच्छ पैंतरेबाजी करते हैं, और ऐसे वक्तव्य देते हैं, जो उत्तेजक, उन्हें सही ठहराने वाले, आत्म-संरक्षण, स्वयं का महिमामंडन या स्वयं को अलंकृत करने वाले होते हैं, ताकि वे किसी दुर्भाग्यपूर्ण घटना से प्रभावित न हों या उसमें न फंसें। एक बार कोई व्यक्ति जब प्रतिरोध करने लगता है, तो यह उसके लिए खतरनाक हो सकता है, है कि नहीं? (हाँ, हो सकता है।) मुझे बताओ, जब कोई व्यक्ति उस मुकाम पर पहुँच जाता है जहाँ वह प्रतिरोध करना शुरू कर देता है, तो क्या उसमें सामान्य मानवता का जमीर और समझ बाकी रह जाती है? वे विचारों और नजरियों से आगे बढ़कर असली कार्य में लग चुके हैं, और समझ और जमीर अब उन्हें रोक नहीं सकते। इसका अर्थ क्या है? इसका अर्थ है कि किसी व्यक्ति के कार्य और विचार विकसित होकर परमेश्वर का प्रतिरोध करने की वास्तविकता में बदल जाते हैं। वे अपने दिल में सिर्फ ठुकरा नहीं रहे हैं, अनिच्छुक या नाखुश नहीं है; वे अपने कार्यों और वास्तविक कृत्यों द्वारा प्रतिरोध कर रहे हैं। जब असली कार्य से प्रतिरोध की बात आती है, तो क्या मूल रूप से उस व्यक्ति का काम तमाम नहीं हो चुका है? जब परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह करने, उसका प्रतिरोध और विरोध करने की वास्तविकताएँ आकार ले लेती हैं, तो अब यह उस पथ की समस्या नहीं रह गई है जिस पर लोग चल रहे हैं—इसका नतीजा पहले ही आ चुका है। क्या यह बहुत खतरनाक नहीं है? (हाँ, जरूर है।) तो, पारंपरिक संस्कृति और पारंपरिक सोच के भीतर एक गौण दृष्टिकोण या अंधविश्वासी कहावत के भी बहुत गंभीर परिणाम हो सकते हैं। यह एक सरल जीवनशैली वाली आदत नहीं है, क्या खाएँ, क्या पहनें, या क्या बोलें या न बोलें इसका मामला नहीं है। यह परमेश्वर द्वारा आयोजित माहौल का सामना करते समय व्यक्ति द्वारा अपनाए जाने वाले रवैये की हद तक पहुँच सकता है। इसलिए ये भी ऐसे मसले हैं जिन्हें लोगों को जाने देना चाहिए।

बड़े त्योहारों के दौरान कुछ खास पारंपरिक जीवनशैलियों, विचारों और नजरियों को बनाए रखने के अलावा, लोग कुछ छोटे त्योहारों के दौरान भी उनका पालन करते हैं। मिसाल के तौर पर, चंद्र नव वर्ष के 15वें दिन वे मीठे मोमो खाते हैं। लोग मीठे मोमो क्यों खाते हैं? (इसलिए कि यह निरूपित करता है कि परिवार का पुनर्मिलन हो गया है।) परिवार का पुनर्मिलन हो गया है। क्या तुम लोगों ने पिछले कुछ वर्षों में मीठे मोमो खाए हैं? (मैंने घर में खाए हैं, कलीसिया में नहीं।) क्या अपने परिवार के साथ पुनर्मिलन अच्छा होता है? (नहीं, अच्छा नहीं होता।) क्या तुम्हारे परिवार में कोई अच्छे लोग हैं? या तो वे तुमसे पैसे माँगते हैं या उधार चुकाने को कहते हैं; तुम्हारे पास शोहरत और लाभ होता है तो वे तुम्हारी खुशामद करते हैं और कुछ हिस्सा माँगते हैं, और अगर तुम्हारे पास नहीं है, तो वे तुम्हें नीची नजर से देखते हैं। चंद्र नव वर्ष के 15वें दिन मीठे मोमो खाए जाते हैं, और साथ ही अलग-अलग तिथियों जैसे कि दूसरे चंद्र माह के दूसरे दिन, तीसरे माह के तीसरे दिन, चौथे माह के चौथे दिन, पांचवें माह के पांचवें दिन...। यहाँ विभिन्न चीजों का घालमेल है और उनके साथ सभी तरह के खाने जुड़े होते हैं। ये जो चीजें गैर-विश्वासियों और दानवों का संसार करता है, वे सभी हास्यास्पद हैं। अगर तुम त्योहार में खुशी मनाना चाहते हो, और उम्दा खाना खाना चाहते हो, तो बोलो कि तुम्हें उम्दा खाने के मजे लेने हैं, बस इतना ही। अगर तुम्हारे जीने के हालात इजाजत दें, तो तुम जो चाहे खा सकते हो। ये तमाम शगूफे बहुत हो गए, जैसे साल-दर-साल पदोन्नति के लिए चावल केक खाना, प्रचुरता के लिए मछली खाना या परिवार के पुनर्मिलन के लिए मीठे मोमो खाना। चीनी लोग चावल के मोमो भी बनाते हैं, लेकिन किस प्रयोजन से? हर वर्ष त्योहारों के दौरान कलीसिया के कुछ समर्पित व्यक्ति हर त्योहार के अनुरूप विविध चीजें खरीद लाते हैं, जैसे कि चावल के मोमो। उनमें से कुछ से मैंने पूछा, “तुम चावल के मोमो क्यों खाते हो?” वे बोले, “यह पांचवें चंद्र माह के पांचवें दिन पर पड़ने वाले ड्रैगन नाव उत्सव के लिए है।” चावल के मोमो बहुत स्वादिष्ट होते हैं, लेकिन मुझे नहीं मालूम कि इनसे कोई त्योहार क्यों जुड़ा हुआ है या लोगों के जीवन और धन-दौलत से इसका क्या रिश्ता है। मैंने कभी कोई शोध नहीं किया या इस बारे में कोई सर्वेक्षण नहीं किया, इसलिए मैं नहीं जानता। शायद यह किसी की याद में किया जाता है। लेकिन हमें उसकी याद में ये क्यों खाने चाहिए? चावल के मोमो उस व्यक्ति को देने चाहिए। जो भी उसकी स्मृति मनाना चाहता है उसे उसकी कब्र या तस्वीर के सामने ये चावल के मोमो रख देने चाहिए। ये जीवित लोगों को नहीं देने चाहिए : जीवित लोगों से उसका लेना-देना नहीं है। जीवित लोगों का उसके नाम पर ये खाना बेतुका है। इन त्योहारों का और उस दौरान क्या खाना चाहिए इसका ज्ञान गैर-विश्वासियों से प्राप्त किया गया था : मैं खास बारीकियाँ नहीं जानता, और खास बारीकियाँ बाद में कलीसिया के लोगों के जरिये सबको बता दी गई थीं—चावल के मोमो ड्रैगन नाव उत्सव और चावल केक चंद्र नव वर्ष के दौरान खाए जाते हैं। पश्चिमी देशों में, लोग थैंक्सगिविंग दिवस पर टर्की खाते हैं : वे टर्की क्यों खाते हैं? खबरों के अनुसार वे थैंक्सगिविंग पर धन्यवाद ज्ञापन के लिए टर्की पक्षी खाते हैं—यह एक परंपरा है। पश्चिम में क्रिसमस नामक एक और छुट्टी होती है, जब लोग क्रिसमस ट्री सजाकर नए कपड़े पहनते हैं—यह भी एक परंपरा है। इस छुट्टी के दौरान पाश्चात्य लोगों को एक-दूसरे को सुखद संदेश शुभकामनाएँ और साथ ही आशीष देने होते हैं। उन्हें बुरे शब्द और अपशब्द कहने की इजाजत नहीं होती। ये सब पूर्वी संस्कृतियों की शुभ कहावतों के बराबर हैं और उनका प्रयोजन लोगों को प्रतिबंध तोड़ने से रोकना है, वरना आने वाला वर्ष उनके लिए अनुकूल नहीं होगा। थैंक्सगिविंग और क्रिसमस जैसी पश्चिमी छुट्टियों में विशेष लजीज खाना खाया जाता है और ये चीजें खाने को न्यायसंगत ठहराने के लिए कहानियाँ रची गई थीं। अंत में, मैं इन घटनाओं का सारांश प्रस्तुत करता हूँ : लोग इन स्वादिष्ट व्यंजनों का मजा लेने के बहाने ढूँढ़ते हैं, जिससे वे घर में मजे से दावत करने, तोंद बाहर निकलने तक खाने के लिए कुछ दिन छुट्टी लेने को सही ठहरा सकें। रक्तदान करने का समय आने पर नर्स कहती है, “तुम्हारा रक्त लिपिड स्तर बहुत ज्यादा है, मानक तक नहीं है, इसलिए तुम रक्तदान के लिए अयोग्य हो।” ऐसा बहुत ज्यादा मात्रा में माँस खाने से हुआ। इन पारंपरिक छुट्टियों को मनाने का मुख्य उद्देश्य उम्दा खान-पान का मजा लेना है। यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में, बड़ों से बच्चों में पहुँचती है, और एक परंपरा बन जाती है। इन परंपराओं द्वारा पिरोये गए बुनियादी विचार और नजरिये और साथ ही खास अंधविश्वासी कहावतें भी बड़ों से युवा पीढ़ी में पहुँच जाती हैं।

और कौन-सी अंधविश्वासी कहावतें हैं? आँखों के फड़कने का जो जिक्र मैंने किया था क्या वह अक्सर होता है? (हाँ।) तुम कहते हो, “मेरी आँख फड़कती रहती है।” कोई पूछता है, “कौन-सी आँख फड़क रही है?” तुम जवाब देते हो, “बाईं आँख।” वह कहता है, “कोई बात नहीं। बाईं आँख का फड़कना अच्छे भाग्य की भविष्यवाणी करता है, लेकिन दाईं आँख का फड़कना विपत्ति की भविष्यवाणी करता है।” क्या यह सच है? तुम्हारी बाईं आँख के फड़कने पर क्या तुम अमीर हो गए? क्या तुम्हें धन प्राप्त हुआ? (नहीं।) तो क्या तुम्हारी दाईं आँख के फड़कने पर कोई विपत्ति आई? (यह भी नहीं।) क्या ऐसी कोई स्थिति आई जब तुम्हारी बाईं आँख के फड़कने पर विपत्ति आई हो, कुछ बुरा हुआ हो, या दाईं आँख के फड़कने पर कुछ अच्छा हुआ हो? क्या तुम इन चीजों में यकीन करते हो? (नहीं।) तुम इन चीजों में कैसे यकीन नहीं कर सकते? तुम्हारी आँख क्यों फड़कती है? क्या लोक संस्कृति में आँख को फड़कने से रोकने के कुछ देसी इलाज हैं? क्या कोई विधियाँ हैं? (मैंने कुछ लोगों को अपनी पलक पर सफेद रंग के कागज का टुकड़ा चिपकाते देखा है।) वे चिपकाने के लिए सफेद रंग का कागज ढूँढ़ते हैं। उनकी जो भी आँख फड़क रही हो, वे कैलेंडर या किसी छोटी-सी नोटबुक से सफेद रंग के कागज का टुकड़ा फाड़ लेते हैं और अपनी पलक पर चिपका लेते हैं—सफेद रंग छोड़ कर कोई और रंग नहीं हो सकता। सफेद कागज क्या दर्शाता है? इसके मायने हैं कि फड़कना “बेकार” है, यह संकेत देता है कि कुछ भी बुरा नहीं होने दिया जाएगा। क्या यह एक बढ़िया विधि है? बहुत बढ़िया है, है न? लेकिन क्या इसका अर्थ है कि आँख “बेकार” ही फड़क रही है? (कोई आँख की पलक पर कागज चिपकाता हो या नहीं इससे इसका कोई लेना-देना नहीं है।) क्या तुम लोग इस बात को स्पष्ट कर सकते हो? “बाईं आँख का फड़कना अच्छे भाग्य की भविष्यवाणी करता है, लेकिन दाईं आँख का फड़कना विपत्ति की भविष्यवाणी करता है”—चाहे इसका अर्थ धन-दौलत हो या विपत्ति, क्या आँख फड़कने का कोई स्पष्टीकरण है? क्या ऐसी कोई स्थिति है जब तुम्हारी दाईं आँख फड़कने पर तुम्हें लगे कि कुछ बुरा होने वाला है, तुम्हें कोई पूर्वानुमान हुआ है, और थोड़ी देर बाद फड़कना बंद होने पर तुम सब-कुछ भूल जाते हो, और कई दिन बाद कुछ बुरा हो जाता है, और उस मामले को सँभालने के बाद तुम्हें अचानक याद आता है, और तुम सोचते हो, “वाह, आँख फड़कने के बारे में कहावत बिल्कुल सही है। क्यों? क्योंकि कुछ दिन पहले, मेरी दाईं आँख सचमुच फड़की थी और उसके बंद होने के बाद यह घटना घटी। ये होने के बाद से मेरी आँख नहीं फड़की है।” क्या ऐसा कभी होता है? जब तुम कोई बात नहीं समझ सकते, तो तुम कुछ कहने की हिम्मत नहीं करते, न तुम इसे नकारने की हिम्मत करते हो, न ही इसे सही मानने की; तुम इस विषय से बच नहीं सकते, तुम इसे स्पष्ट रूप से समझा नहीं सकते, लेकिन तुम्हें अभी भी लगता है कि यह संभव है। तुम कहते हो, “यह एक अंधविश्वास है, मैं इस पर यकीन नहीं कर सकता, सब-कुछ परमेश्वर के हाथों में है।” तुम इस पर विश्वास नहीं करते, लेकिन यह सच हो गया; यह इतना सही है, इसे कैसे समझाया जा सकता है? तुम यहाँ सत्य और सार नहीं समझते, इसलिए स्पष्ट रूप से नहीं बता सकते। तुम मुँह से इसे नकारते हो, इसे अंधविश्वास कहते हो, लेकिन अपने भीतर गहराई से तुम अब भी इससे डरते हो क्योंकि कभी-कभी यह वास्तव में सच हो जाता है। मिसाल के तौर पर, कोई किसी कार दुर्घटना में मारा जाता है। दुर्घटना से पहले, उस व्यक्ति की पत्नी की दाईं आँख बुरी तरह फड़कती रहती है : यह दिन-रात फड़कती है—आँख और कितना फड़केगी? दूसरे लोग भी उसकी आँख को फड़कते हुए देख सकते हैं। कुछ दिन बाद, उसके पति की एक कार दुर्घटना में मृत्यु हो जाती है। अंत्येष्टि पूरी होने के बाद, वह बैठ कर धीरे-धीरे सोचने लगती है, “अरे बाप रे, उन कुछ दिनों मेरी आँख इतनी बुरी तरह से फड़क रही थी कि मैं अपने हाथ से भी उसे रोक नहीं पा रही थी। मुझे उम्मीद नहीं थी कि वह इस तरह सच हो जाएगा।” बाद में वह इस कहावत पर यह सोच कर यकीन करने लगती है, “मेरी आँख के फड़कने पर चीजें सचमुच हो जाती हैं। जरूरी नहीं कि वे अच्छी हों या बुरी हों, मगर कुछ न कुछ होकर ही रहता है। यह एक तरह का अनुमान या पूर्वानुमान है।” क्या ऐसा कभी होता है? कुछ लोग कहते हैं, “मैं इस पर यकीन नहीं करता, यह एक अंधविश्वास है।” लेकिन यह सही वक्त पर आता है, और सचमुच बहुत सही होता है। लोक संस्कृति में जिक्र की गई चीजें आधारहीन अफवाहें नहीं हैं; अंधविश्वास परंपरा से अलग है। कुछ हद तक यह लोगों के जीवन में होता है, और यह लोगों के जीने के परिवेश और उनके जीवन में होने वाली घटनाओं को प्रभावित और नियंत्रित करता है। कुछ लोग कहते हैं, “सोचो, क्या यह अंधविश्वास न होकर परमेश्वर की ओर से मिला संकेत नहीं है? चूँकि यह अंधविश्वास नहीं है, इसलिए हमें इससे उचित ढंग से पेश आना और इसे समझना चाहिए। यह शैतान से नहीं आता, हो सकता है यह परमेश्वर से आया हो—परमेश्वर का एक इशारा हो। हमें इसकी निंदा नहीं करनी चाहिए।” हम इस मामले को सही ढंग से कैसे देखें? यह तुम्हारी चीजें देखने की क्षमता और सत्य की तुम्हारी समझ की परीक्षा लेता है। अगर तुम यह विश्वास कर हर चीज से समान ढंग से पेश आते हो, “यह सब अंधविश्वास है, ऐसी कोई चीज नहीं है और मैं इनमें से किसी पर भी यकीन नहीं करता,” क्या यह चीजों को देखने का सही तरीका है? मिसाल के तौर पर, जब गैर-विश्वासी घर बदलना चाहते हैं, तो घर बदलने से पहले वे अपने पंचांग में यह लिखा हुआ देखते हैं, “घर बदलने के लिए आज का दिन अशुभ है,” तो वे इस प्रतिबंध का पालन करते हैं और उस दिन घर बदलने की हिम्मत नहीं करते। वे घर बदलने से पहले ऐसा दिन तलाशते हैं जिसके लिए लिखा हो, “यह घर बदलने के लिए शुभ दिन है” या “सारे काम शुभ हैं।” नए घर में जाने के बाद, कुछ भी बुरा नहीं होता, और इससे भविष्य में उनके धन-दौलत पर भी असर नहीं पड़ता। क्या ऐसा होता है? कुछ लोग “घर बदलने के लिए अशुभ” लिखा देखते हैं, लेकिन उसमें विश्वास नहीं करते; वे फिर भी घर बदल लेते हैं। नतीजतन, नए घर में जाने के बाद कुछ गलत हो जाता है : परिवार में दुर्भाग्य छा जाता है, उनकी दौलत घट जाती है, उनके परिवार में कोई मर जाता है, और कोई दूसरा बीमार हो जाता है। तमाम चीजें, खेती-किसानी, कामकाज और व्यापार से लेकर उनके बच्चों की शिक्षा तक मुश्किल में पड़ जाती है। वे नहीं समझ पाते कि क्या हो रहा है। वे एक भविष्यवक्ता से परामर्श लेते हैं, जो कहता है, “उस वक्त तुमने एक मुख्य प्रतिबंध का उल्लंघन किया था। जिस दिन तुम नए घर में आए, वह अशुभ था, और ऐसा करके तुमने ताई सुई[क] का अपमान किया है।” यहाँ क्या हो रहा है? क्या तुम जानते हो? अगर तुम यह नहीं समझ सकते, तो तुम नहीं जानोगे कि ऐसी परिस्थिति आने पर इसे कैसे संभालना है। अगर कोई गैर-विश्वासी कहता है, “मैं तुम्हें बता दूँ कि मैंने एक अशुभ दिन घर बदला था, नए घर आने के बाद मेरे परिवार ने दिन-ब-दिन समस्याओं का अनुभव किया, और हम और भी ज्यादा अभागे हो गए, और तब से लेकर एक भी दिन अच्छा नहीं रहा,” यह सुनकर शायद तुम्हारे दिल की धड़कन थम जाए। तुम यह सोचकर डर जाते हो, “अगर मैंने प्रतिबंधों का पालन नहीं किया तो क्या मेरे साथ भी ऐसा ही होगा?” तुम यह सोचकर इस पर बार-बार मनन करोगे, “मैं परमेश्वर में विश्वास रखता हूँ, मैं नहीं डरता!” लेकिन तुम्हारे मन में अभी भी शक बना रहता है, और तुम प्रतिबंध का उल्लंघन करने की हिम्मत नहीं करते।

तुम्हें इन अंधविश्वासी कहावतों को किस तरह देखना चाहिए? चलो आँख के फड़कने से बात शुरू करते हैं। क्या हम सभी जानते हैं कि आँख का फड़कना क्या होता है? लोगों की सबसे बुनियादी समझ यही है कि यह भविष्य की किसी घटना की भविष्यवाणी करता है, कि वह घटना अच्छी होगी या बुरी। लेकिन यह अंधविश्वास है या नहीं? बताओ। (यह अंधविश्वास है।) यह अंधविश्वास है। अगला सवाल, क्या परमेश्वर में विश्वास रखने वाले लोगों को इस कहावत पर यकीन करना चाहिए? (नहीं करना चाहिए।) उन्हें यकीन क्यों नहीं करना चाहिए? (क्योंकि हमारे भाग्य और दुर्भाग्य की व्यवस्था और आयोजन परमेश्वर के हाथों में हैं और इनका हमारी आँख फड़कने या न फड़कने से कोई लेना-देना नहीं है। हम जिस भी चीज का अभी सामना करते हैं वह परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्था के अधीन है, और हमें इसके प्रति समर्पित होना चाहिए।) मान लो कि एक दिन तुम्हारी आँख पूरा दिन बुरी तरह फड़कती रहती है और ऐसा अगली सुबह तक होता रहता है। बाद में कुछ हो जाता है, और तुम्हारी काट-छाँट की जाती है। काट-छाँट के बाद तुम्हारी आँख का फड़कना बंद हो जाता है, तुम क्या सोचोगे? “मेरी आँख का फड़कना इस बात का संकेत था कि मेरी काट-छाँट की जाने वाली है।” क्या यह महज एक संयोग है? क्या यह अंधविश्वास है? कभी-कभी यह महज एक संयोग होता है; कभी-कभी ऐसी चीजें हो जाती हैं। क्या चल रहा है? (हे परमेश्वर, हो सकता है आँख का फड़कना सामान्य शारीरिक लय-ताल का हिस्सा हो, और इसे काट-छाँट होने से नहीं जोड़ना चाहिए।) आँख के फड़कने को इस तरह समझना चाहिए : भले ही लोग यह विश्वास करें कि एक आँख का फड़कना धन-दौलत आने का संकेत देता है, और दूसरा विपत्ति का, लेकिन अनेक रहस्यों के साथ मानव शरीर की रचना परमेश्वर ने की है। ये रहस्य कितने गहरे हैं, कौन-सी विशिष्ट बारीकियाँ इससे जुड़ी हैं, मानव शरीर में कौन-सी सहज बुद्धि, काबिलियत और संभावनाएँ हैं—इंसानों को इसका ज्ञान अपने आप नहीं होता। मानव शरीर आध्यात्मिक क्षेत्र को बूझ सकता है या नहीं, क्या इसमें वह भान होता है जिसे छठी इंद्रिय कहा जाता है—लोग नहीं जानते। क्या लोगों को मानव शरीर के इन अनजाने पहलुओं को समझने की जहमत उठानी चाहिए? (नहीं, उन्हें नहीं उठानी चाहिए।) कोई जरूरत नहीं है—लोगों को यह समझने की जरूरत नहीं है कि मानव शरीर में कौन-से रहस्य मौजूद हैं। भले ही उन्हें समझने की जरूरत न हो, फिर भी उन्हें यह बुनियादी समझ होनी चाहिए कि मानव शरीर सरल नहीं है। यह परमेश्वर द्वारा न रची गई किसी भी चीज या वस्तु से मूल रूप से अलग है, जैसे कि मेज, कुर्सी, या कंप्यूटर। इन चीजों की प्रकृति मानव शरीर की प्रकृति से बिल्कुल अलग है : इन निर्जीव वस्तुओं को आध्यात्मिक क्षेत्र का कोई बोध नहीं होता, जबकि परमेश्वर से आया सजीव मानव शरीर, जिसे परमेश्वर ने रचा है, अपने आसपास के परिवेश, वातावरण और कुछ विशेष वस्तुओं का बोध कर सकता है, और साथ ही समझ सकता है कि आसपास के माहौल और आने वाली घटनाओं के प्रति कैसी प्रतिक्रिया करे। यह सरल नहीं है—ये तमाम चीजें रहस्य हैं। मानव शरीर उन चीजों का बोध कर सकता है जो ठंडी, गर्म, सुगंधित, बदबूदार, मीठी, खट्टी और मसालेदार होती हैं, लेकिन ऐसे कुछ खास रहस्य हैं जिनके बारे में व्यक्ति की व्यक्तिपरक चेतना को ज्ञान नहीं होता। मनुष्य इन चीजों के बारे में नहीं जानते। तो, विशिष्ट रूप से कहा जाए, तो आँख का फड़कना किसी की तंत्रिकाओं से, छठी इंद्रिय से या आध्यात्मिक क्षेत्र की किसी चीज से संबद्ध होता है या नहीं—हम इस पर विचार नहीं करेंगे। चाहे जो हो, यह घटना होती तो है, और हम उसके होने के प्रयोजन और अर्थ की जाँच-पड़ताल नहीं करेंगे। फिर भी आँख के फड़कने को लेकर परिवार और लोक संस्कृति में कुछ खास कहावतें हैं। इन कहावतों में अंधविश्वास है या नहीं, कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि यह एक लक्षण है जो सजीव माहौल में होने वाली कुछ खास घटनाओं से पहले मानव शरीर में अभिव्यक्त होता है। क्या अभिव्यक्ति का यह रूप अंधविश्वास या परंपरा से जुड़ा है, या फिर विज्ञान से? यह ऐसी चीज है जिस पर शोध नहीं हो सकती—यह एक रहस्य है। संक्षेप में कहें, तो असल जीवन में प्राचीन काल से वर्तमान तक के हजारों वर्षों में, मानवजाति इस निष्कर्ष पर पहुँची है कि किसी की आँख का फड़कना किसी-न-किसी तरह से उन घटनाओं से संबद्ध है, जो उसके आसपास होने वाली हैं। यह नाता किसी व्यक्ति के जीवन के धन-दौलत, भाग्य से संबद्ध है या किसी और पहलू से, इस पर शोध असंभव है। यह भी एक रहस्य है। इसे रहस्य क्यों माना जाता है? आध्यात्मिक क्षेत्र में, भौतिक संसार से परे अनेक चीजें शामिल होती हैं, जो तुम्हें बताई भी जाएँ तो न तुम उन्हें देख सकते हो और न महसूस कर सकते हो। इसीलिए इसे रहस्य कहा जाता है। चूँकि ये मामले रहस्य हैं, और लोग उन्हें देख या महसूस नहीं कर सकते, मगर फिर भी इंसानों में पूर्वाभास और पूर्व-ज्ञान की कुछ खास भावनाएँ जरूर होती हैं, इसलिए लोगों को इनसे कैसे निपटना चाहिए? सबसे सरल तरीका इन्हें बस नजरअंदाज करना है। मत मानो कि इनका तुम्हारे धन-दौलत या भाग्य से कुछ लेना-देना है। फिक्र मत करो कि तुम्हारी दाईं आँख के फड़कने से बुरी चीजें हो सकती हैं, और बाईं आँख के फड़कने पर यह सोच कर खुशी से मत उछलो-कूदो कि तुम अमीर बन जाओगे। इन चीजों को तुम्हें प्रभावित मत करने दो। मुख्य कारण यह है कि तुममें भविष्य को पहले ही देख पाने की काबिलियत नहीं है। सब-कुछ परमेश्वर द्वारा आयोजित और शासित होता है; होनी अच्छी होगी या बुरी, यह परमेश्वर के हाथों में है। तुम्हारा एकमात्र रवैया परमेश्वर के आयोजन और व्यवस्था को समर्पित होने का होना चाहिए। भविष्यवाणियाँ या कोई बेकार का बलिदान, तैयारियां या संघर्ष मत करो। होनी तो होकर रहेगी, क्योंकि यह सब परमेश्वर के हाथों में है। कोई भी व्यक्ति परमेश्वर के विचारों, उसकी योजनाओं या उसने जो भी होनी तय कर रखी है, उसे बदल नहीं सकता। तुम चाहे अपनी पलक पर सफेद कागज चिपका लो, अपने हाथ से पलक को दबाओ, या विज्ञान या अंधविश्वास पर भरोसा करो, किसी से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। होनी तो होकर रहेगी, सच होगी, और तुम उसे नहीं बदल सकते, क्योंकि सब-कुछ परमेश्वर के हाथों में है। इससे बचने की कोई भी कोशिश बेवकूफी है, बेकार का त्याग है, और जरूरी नहीं है। ऐसा करना सिर्फ यह दिखाएगा कि तुम विद्रोही और जिद्दी हो, तुममें परमेश्वर के प्रति आज्ञापालन का रवैया नहीं है। समझ रहे हो? (हाँ, समझ रहा हूँ।) तो चाहे आँख फड़कने को अंधविश्वास माना जाए या विज्ञान, तुम लोगों का रवैया यह होना चाहिए : अपनी बाईं आँख फड़कने पर खुश मत हो, और अपनी दाईं आँख फड़कने पर भयभीत, आतंकित, चिंतित, नकारने वाले या प्रतिरोधी मत बनो। तुम्हारी आँख फड़कने के बाद कुछ हो भी जाए, तो भी शांति से उसका सामना करो, क्योंकि सब-कुछ परमेश्वर के हाथों में है। तुम्हें डरने या चिंतित होने की जरूरत नहीं है। अगर कुछ अच्छा होता है तो परमेश्वर को उसके आशीष के लिए धन्यवाद दो—यह परमेश्वर का अनुग्रह है; अगर कुछ बुरा हो जाए, तो परमेश्वर से तुम्हें रास्ता दिखाने, तुम्हारी रक्षा करने और तुम्हें प्रलोभन में न फँसने देने की प्रार्थना करो। फिर जो भी माहौल आए, परमेश्वर के आयोजन और व्यवस्था को समर्पित होने में समर्थ बनो। परमेश्वर का परित्याग मत करो, उससे शिकायत मत करो, तुम पर जितनी भी बड़ी विपत्ति आए, तुम्हें जितने भी गंभीर दुर्भाग्य का अनुभव करना पड़े, परमेश्वर को दोष मत दो। परमेश्वर के आयोजन को समर्पित होने को तैयार हो जाओ। तब क्या यह मसला सुलझ नहीं जाएगा? (हाँ।) ऐसे मामलों में, लोगों को यह विचार और नजरिया रखना चाहिए : “भविष्य में चाहे जो हो, मैं तैयार हूँ, और परमेश्वर के प्रति मेरा रवैया आज्ञा मानने का है। चाहे मेरी बाईं आँख फड़के, या मेरी दाईं आँख, या दोनों आँखें एक साथ फड़कें, मैं नहीं डरता। जानता हूँ कि भविष्य में शायद कुछ हो जाए, मगर विश्वास करता हूँ कि सब-कुछ परमेश्वर के हाथों में है। यह शायद वह तरीका हो सकता है जिससे परमेश्वर मुझे किसी होनी के बारे में सूचित कर रहा हो, या यह मेरे भौतिक शरीर की सहज प्रतिक्रिया हो सकती है। चाहे जो हो, मैं तैयार हूँ, और परमेश्वर के प्रति मेरा रवैया आज्ञापालन का है। इस घटना के बाद मुझे कितनी भी हानि या नुकसान हो, मैं परमेश्वर को दोष नहीं दूँगा। मैं समर्पित होने को तैयार हूँ।” लोगों को यह रवैया अपनाना चाहिए। एक बार यह रवैया अपनाने के बाद उन्हें अब परवाह नहीं होगी कि आँखें फड़कने के बारे में उनके परिवार द्वारा उन्हें सिखाई गई कहावतें अंधविश्वास हैं या विज्ञान। वे कहते हैं, “यह अंधविश्वास हो या विज्ञान, कोई फर्क नहीं पड़ता। तुम जो भी मानते हो, वह तुम्हारा अपना मामला है। अगर तुम मुझसे अपनी पलक पर कागज का टुकड़ा चिपकाने को कहोगे, तो मैं ऐसा नहीं करूँगा। अगर फड़कना मुझे परेशान कर दे, तो मैं थोड़ी देर ऐसा कर भी लूँगा।” अगर कोई तुमसे कहे, “तुम्हारी आँख बहुत फड़फड़ा रही है, अगले कुछ दिन सावधान रहो!” तो क्या सावधान होने से तुम किसी भी चीज से बच सकोगे? (नहीं, होनी से बचा नहीं जा सकता।) अगर यह एक आशीष है तो यह विपत्ति नहीं हो सकती, अगर यह विपत्ति है तो तुम इसे रोक नहीं सकते; यह आशीष हो या विपत्ति, तुम्हें स्वीकार कर लेना चाहिए। यह वही रवैया अपनाना है जो अय्यूब ने अपनाया था। अगर तुम इसे आशीष होने पर ही स्वीकारते हो, अपनी बाईं आँख फड़कने से खुश होते हो, मगर दाईं आँख फड़कने से नाराज होकर कहते हो, “यह क्यों फड़क रही है? यह फड़कती ही रहती है, कभी नहीं रुकती! मैं अपनी दाईं आँख को फड़कने से रोकने और दुर्भाग्य को मुझसे दूर रखने के लिए श्राप दूँगा और प्रार्थना करूँगा”—यह वो रवैया नहीं है जो परमेश्वर में विश्वास रखने वाले और उसका अनुसरण करने वाले व्यक्ति में होना चाहिए। परमेश्वर की इजाजत और उसके द्वारा उसका होना तय किए जाने के बिना, क्या दुर्भाग्य और दानव तुम्हारे पास आने की हिम्मत करेंगे? (नहीं।) भौतिक जगत और आध्यात्मिक क्षेत्र दोनों संसार परमेश्वर के नियंत्रण, संप्रभुता और व्यवस्था के अधीन हैं। एक तुच्छ-सा दानव जो भी करना चाहे, परमेश्वर की अनुमति के बिना क्या वह तुम्हारा बाल भी बाँका करने की हिमाकत करेगा? वह हिम्मत नहीं करेगा, है ना? (नहीं, वह नहीं करेगा।) वह तुम्हें छू कर नुकसान पहुँचाना चाहता है, लेकिन अगर परमेश्वर उसे अनुमति न दे, तो वह हिम्मत नहीं करेगा। अगर परमेश्वर यह कह कर उसे अनुमति दे दे, “इसके आसपास कुछ हालात पैदा कर दो, इस पर कहर और मुश्किलें बरपा दो,” तब तुच्छ दानव खुश होकर तुम्हारे खिलाफ काम करने लगेगा। अगर तुम्हें परमेश्वर में आस्था है, और तुम अपनी गवाही में दृढ़ होकर, परमेश्वर को नकारे या धोखा दिए बिना, तुच्छ दानव को सफल न होने देकर उस पर विजय पा लेते हो, तो वह परमेश्वर के समक्ष आने पर अब तुम पर आरोप नहीं लगा पाएगा, परमेश्वर तुमसे महिमा पाएगा और वह तुच्छ दानव को कैद कर देगा। वह दानव दोबारा तुम्हें हानि पहुँचाने की हिम्मत नहीं करेगा और तुम सुरक्षित रहोगे। तुम्हारे भीतर यह सच्ची आस्था होनी चाहिए, तुम्हें यह विश्वास रखना चाहिए कि सब-कुछ परमेश्वर के हाथ में है। परमेश्वर की अनुमति के बिना कोई भी बुरी या दुर्भाग्यपूर्ण चीज तुम तक नहीं पहुँचेगी। परमेश्वर लोगों को आशीष देने से ज्यादा और बहुत कुछ कर सकता है; वह तुम्हारी परीक्षा लेने और तुम्हें तपाने के लिए तरह-तरह के हालात की व्यवस्था कर सकता है, उनसे तुम्हें कुछ सबक सिखा सकता है, और वह तुम्हें ताड़ना देने और तुम्हारा न्याय करने के लिए तरह-तरह के हालात बना सकता है। कभी-कभी हो सकता है परमेश्वर द्वारा व्यवस्थित परिस्थितियाँ तुम्हारी धारणाओं के अनुरूप न हों और तुम्हारी कल्पनाओं के अनुरूप तो बिल्कुल न हों। लेकिन अय्यूब की यह बात मत भूलो, “क्या हम जो परमेश्वर के हाथ से सुख लेते हैं, दुःख न लें?” (अय्यूब 2:10)। यह परमेश्वर में तुम्हारी सच्ची आस्था का स्रोत होना चाहिए। विश्वास करो कि परमेश्वर हर चीज का नियंत्रण करता है और तुम आँख के फड़कने की मामूली बात से नहीं डरोगे, क्या यह सही नहीं है? (हाँ, सही है।)

अभी-अभी हमने आँख फड़कने से निपटने के तरीकों के बारे में संगति की। आँख का फड़कना—जो दैनिक जीवन की एक आम घटना है—इसे दूर करने के लिए लोग अक्सर इंसानी तरीके आजमाते हैं। लेकिन इन तरीकों से मनचाहे नतीजे नहीं मिलते, और आखिर होनी तो होकर रहती है, और कोई भी इससे बच नहीं सकता। चाहे अच्छी हो या बुरी, चाहे लोग इसे देखना चाहें या नहीं, जो होना है वो तो होकर ही रहेगा। इससे यह और पक्का हो जाता है कि यह चाहे व्यक्ति की नियति हो या दैनिक जीवन की तुच्छ बातें, ये सभी परमेश्वर द्वारा आयोजित और प्रबंधित होती हैं, और कोई भी इनसे बच नहीं सकता। इसलिए, बुद्धिमान लोगों को इन चीजों को सही, सकारात्मक रवैये से लेना चाहिए, इन्हें सत्य सिद्धांतों और परमेश्वर के वचनों के आधार पर देखना और दूर करना चाहिए, बजाय इसके कि बेमानी त्याग या संघर्षों के इंसानी तरीकों का सहारा लें, वरना अंत में नुकसान उन्हीं को होगा। ऐसा इसलिए कि सृष्टिकर्ता की संप्रभुता के विषय में मानवजाति के पास चुनने के लिए दूसरा कोई पथ है ही नहीं। एकमात्र इसी पथ को चुनना चाहिए, इसी पर चलना चाहिए। परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं को समर्पित हो जाओ, परमेश्वर द्वारा आयोजित माहौल में सबक सीखो, परमेश्वर को समर्पित होना, उसके कर्मों को समझना, खुद को समझना, और एक सृजित प्राणी को कौन-सा पथ चुन कर उस पर चलना चाहिए, यह सीखो और परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं का अंधविश्वासों या इंसानी तरीकों से प्रतिरोध करने के बजाय, यह सीखो कि लोगों को जिस जीवन पथ पर चलना चाहिए, उस पर अच्छे ढंग से कैसे चलें।

फुटनोट :

क. ताई सुई देवता का संक्षिप्त रूप है। चीनी ज्योतिष में ताई सुई का अर्थ होता है वर्ष का संरक्षक देवता। ताई सुई किसी वर्ष विशेष के सभी भाग्यों का संचालन करता है।

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