सत्य का अनुसरण कैसे करें (14) भाग चार
जहाँ तक परिवार से मिली शिक्षा का प्रश्न है, हमारे जिक्र किए हुए विचारों और नजरियों के अलावा, क्या कुछ और भी है? सारांश में बताओ। ऐसी बहुत-सी चीजें हैं जो परिवार से आती हैं और चीन में लोग इसे “डाइनिंग टेबल संस्कृति” कहते हैं। मिसाल के तौर पर, डाइनिंग टेबल पर कोई बच्चा कहता है, “मेरे क्लास की मॉनीटर, अपनी बाँह पर तीन फीतियों वाली वह लड़की, हमेशा मेरे होमवर्क की जाँच करती है, और मेरे होमवर्क पूरा होने के बावजूद कहती है कि मैंने यह पूरा नहीं किया है। वह हमेशा मेरी आलोचना करती है।” माता-पिता जवाब दे सकते हैं, “तू लड़का है और वह लड़की। तू उसे लेकर क्यों परेशान हो रहा है? अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे और अपनी माँ का सिर गर्व से ऊँचा कर। जब तू क्लास मॉनीटर बन जाएगा, तो तू उसके होमवर्क की जाँच करना और इससे मामला निपट जाएगा, है कि नहीं?” यह सुनकर बच्चा सोच सकता है, “बात में दम है। मैं लड़का हूँ, भले ही वह क्लास मॉनीटर हो, है तो वह एक लड़की ही। मुझे उसे लेकर परेशान नहीं होना चाहिए। अगर वह फिर से मुझे परेशान करेगी तो मैं उसकी अनदेखी करूँगा और बस बात खत्म। वह मुझे जितना परेशान करेगी, मैं उतनी ही मेहनत से पढ़ूँगा। मैं उससे आगे हो जाऊँगा, और अगले सत्र में क्लास मॉनीटर बनकर उसका प्रभारी हो जाऊँगा। बस इससे मामला निपट जाएगा।” यह डाइनिंग टेबल संस्कृति का उदाहरण है। डाइनिंग टेबल पर अगर कोई लड़का रोने लगे, तो उसके माता-पिता कह सकते हैं, “बस कर! क्यों रो रहा है? नालायक कहीं का!” क्या रोने का अर्थ यह है कि तुम नालायक हो? क्या इसका अर्थ है कि जो लोग नहीं रोते वे होनहार हैं? क्या हर वह लड़का जो कभी नहीं रोया, होनहार है? उन होनहार लोगों को देखो—जब वे बच्चे थे तो क्या वे रोये नहीं थे या रोकर आँसू नहीं बहाए थे? क्या उनमें भावनाएँ थीं? क्या उन्होंने उल्लास, क्रोध, दुख और खुशी का अनुभव किया था? उन्होंने यह सब अनुभव किया था। चाहे कोई नामी-गिरामी हो या साधारण व्यक्ति, सबके भीतर एक इंसानी कमजोरी या मानवीय सहजज्ञान होता है। माता-पिता की शिक्षा और सामाजिक पृष्ठभूमि के कारण लोग अक्सर इसे कमजोर, कायर, अक्षम या आसानी से धौंस खाने वाला पहलू समझ लेते हैं। वे कभी इसे खुलकर प्रकट करने की हिम्मत नहीं करते; इसके बजाय वे इसे किसी कोने में चुपचाप व्यक्त करते हैं। अपने करियर के सबसे चुनौतीपूर्ण समय का सामना करते समय कुछ नामी-गिरामी लोग, कोई मदद या साथ देने वाला न होने पर, शायद अपने आसपास के सभी सिपाहियों, मातहतों और नौकरों-चाकरों के जाने की प्रतीक्षा करें। और फिर वे अपने बाथटब में पड़े-पड़े भेड़ियों की तरह चिल्लाकर अपनी भावनाएँ बाहर निकालते हैं। चीखने-चिल्लाने के बाद वे सोचते हैं, “कहीं किसी ने सुना तो नहीं? कहीं मैं बहुत जोर से तो नहीं चीखा? मुझे अपना स्वर थोड़ा हल्का कर देना चाहिए!” लेकिन इसे हल्का कर देना नाकाफी लगता है, इसलिए वे अपना मुँह तौलिये से ढँककर भेड़ियों की तरह चीखते रहते हैं। सामान्य मानवता के लिए विविध भावनाओं को बाहर निकालना और अभिव्यक्त करना जरूरी है। लेकिन, इस समाज के जबरदस्त दबाव और तरह-तरह के जनमत के दमन के कारण कोई भी अपनी भावनाएँ सामान्य रूप से व्यक्त करने की हिम्मत नहीं करता। ऐसा इसलिए है कि परिवार द्वारा दी गई सीख और शिक्षा से शुरू कर प्रत्येक व्यक्ति के भीतर कुछ गलत मान्यताएँ बैठा दी गई हैं, जैसे कि “एक पुरुष को आत्मनिर्भर होना चाहिए,” “लोहा गढ़ने के लिए व्यक्ति को शक्तिशाली होना चाहिए,” “अगर व्यक्ति ईमानदार हो, तो उसे अफवाहों की फिक्र नहीं करनी चाहिए,” और “अगर तुम्हारा जमीर साफ हो, तो तुम्हें अपने दरवाजे पर दस्तक दे रहे भूतों से नहीं डरना चाहिए।” यह भी कहावत है “जैसे शरीफ घोड़े की सवारी की जाती है, वैसे ही भले व्यक्ति पर धौंस जमाई जाती है,” जो यह संदेश देता है कि व्यक्ति को आसान निशाना बनने से बचना चाहिए, बल्कि इसके बजाय उसे दूसरों को धौंस देना चाहिए। “जैसे शरीफ घोड़े की सवारी की जाती है, वैसे ही भले व्यक्ति पर धौंस जमाई जाती है,” के संदर्भ में “भले” का अर्थ क्या है? इसका अर्थ है निष्कपट, सरल, निष्ठावान, दयालु और ईमानदार। यानी यह सुझाव देता है कि तुम्हें ऐसा व्यक्ति बनने से बचना चाहिए, क्योंकि ऐसे लोग आसान निशाना होते हैं। तो इसके बजाय तुम्हें क्या बनना चाहिए? तुम्हें गुंडा-बदमाश, लुच्चा-लफंगा, खलनायक, बुरा व्यक्ति, उपद्रवी बनना चाहिए—फिर कोई तुमसे खिलवाड़ करने की हिम्मत नहीं करेगा। कहीं भी अगर तर्क काम न करे, तो तुम्हें एक लुच्चे-लफंगे जैसा काम कर तमाशा करना चाहिए, खीझ दिखानी चाहिए और कुतर्क कर हंगामा खड़ा करना चाहिए। ऐसा बर्ताव करने वाले लोग पनपते हैं। किसी भी कार्यस्थल या सामाजिक समूह में ज्यादातर लोग ऐसे लोगों से डरते हैं और कोई भी उन्हें उकसाने की हिम्मत नहीं करता। वे कुत्ते के बदबूदार मल-मूत्र या चिढ़ पैदा करने वाले कीड़े-मकोड़ों जैसे होते हैं, तुम एक बार उन्हें खुद पर ले लो, तो झटकना बहुत मुश्किल होता है। तुम्हें ऐसा व्यक्ति बनना पड़ेगा। लोगों को यह मत सोचने दो कि तुम एक आसान निशाना हो या आसानी से उकसाए जा सकते हो। तुम्हारे पूरी शरीर पर काँटे होने चाहिए। अगर तुम पर काँटे नहीं होंगे तो तुम इस समाज में खुद को स्थापित नहीं कर पाओगे। हमेशा कोई ऐसा होगा जो तुम पर धौंस जमाएगा। परिवार से मिली शिक्षा तुम्हें जीवन पथ दिखाने और विशेष रूप से यह सिखाने और तुम्हारे भीतर यह बैठाने के लिए कि तुम अपना आचरण कैसे करो, एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करती है। यानी माता-पिता इन विचारों और नजरियों का इस्तेमाल तुम्हें यह शिक्षा देने के लिए करते हैं कि तुम अपना आचरण और बर्ताव कैसे करो, चीजों से कैसे निपटो। वे तुम्हें कैसा व्यक्ति बनने को कहते हैं? ऊपर से तो कुछ माता-पिता अच्छी लगने वाली कुछ बातें कह सकते हैं, जैसे “मेरे बच्चे को नामी-गिरामी या सेलेब्रिटी बनने की जरूरत नहीं है; वह नेक इंसान बने, यह काफी है।” लेकिन, वे अपने बच्चों को ऐसे वाक्यांश भी बताते हैं, “किसी व्यक्ति को दूसरे को हानि पहुँचाने का इरादा नहीं रखना चाहिए, बल्कि खुद को दूसरों से होने वाली हानि से हमेशा सुरक्षित रखना चाहिए,” “जैसे शरीफ घोड़े की सवारी की जाती है, वैसे ही भले व्यक्ति पर धौंस जमाई जाती है,” और “एक पुरुष को आत्मनिर्भर होना चाहिए।” तो इतनी बातें करने के बाद क्या वे अपने बच्चों को अच्छे लोग बनने को कह रहे हैं या कुछ और? (वे उन्हें खूंख्वार बनने या कम-से-कम खुद की रक्षा करने में सक्षम होने को प्रोत्साहित कर रहे हैं।) मुझे बताओ, क्या ज्यादातर माता-पिता अपने बच्चों को दूसरों पर धौंस जमाते हुए देखने की इच्छा रखते हैं या इसके बजाय वे उन्हें खास तौर पर ईमानदारी से सही पथ पर चलते, अक्सर धौंस खाते हुए और थोड़ा बहिष्कार झेलते हुए देखना चाहते हैं? बच्चे को कैसा व्यक्ति बनना चाहिए ताकि वह अपने माता-पिता को सबसे ज्यादा खुश और गौरवान्वित कर सके और उनके चेहरे तेज से चमक सकें? (माता-पिता को तब गर्व होता है जब उनके बच्चे दूसरों को धौंस दे पाते हैं, लेकिन सही पथ पर चलते समय उनके बच्चों के साथ अक्सर दुर्व्यवहार हो तो वे इसे शर्मनाक मानते हैं।) अगर तुम सही पथ पर चलते हो, मगर अक्सर तुम्हारे साथ बुरा बर्ताव होता है, तो तुम्हारे माता-पिता को दुख-दर्द, पीड़ा और मानसिक व्यथा होगी, और वे ऐसा नहीं होने देना चाहेंगे। इसका मूल कारण क्या है? कारण चाहे जो भी हों, पर माता-पिता अपने बच्चों को आचरण और कार्य करने के तरीकों के बारे में जो भी विचार और नजरिया सिखाते हैं वह गलत और सत्य के विपरीत होता है। संक्षेप में कहें, तो माता-पिता तुम्हारे भीतर जो विचार और नजरिये बैठाते हैं वे तुम्हें कभी भी परमेश्वर की मौजूदगी की ओर नहीं ले जाएँगे, न ही ये तुम्हें सत्य के अनुसरण का मार्ग दिखाएँगे। बेशक, लोग कभी भी ऐसे विचारों और नजरियों के मार्गदर्शन में उद्धार प्राप्त नहीं करेंगे। यह एक अकाट्य तथ्य है। इसलिए तुम्हारे माता-पिता के इरादे या अभिप्रेरणाएँ चाहे जो भी हों, तुम पर उनका जो भी प्रभाव पड़ता हो, अगर तुम जिस तरह जीते हो वह सत्य के विपरीत हो, सत्य का विरोध करता हो और तुम्हें परमेश्वर और सत्य को समर्पित होने से रोकता हो, तो तुम्हें उसे त्याग देना चाहिए।
पिछले कुछ संगति सत्रों में बताए गए परिवार से मिली शिक्षा के विविध विचारों को देखें, तो हालाँकि ये विचार लोगों के बीच व्यापक रूप से इस्तेमाल किए जाते हैं और इन्हें आगे बढ़ाया जाता है, मगर इन्हें चाहे जितने भी व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता हो या चाहे जितने भी लोग इन्हें अपनाते हों, इन पर चाहे जितना भी भरोसा करते हों, इनसे लोगों को होने वाली हानि को देखते हुए, यह जरूरी है कि लोग इन विचारों और नजरियों को त्याग दें। उन्हें इन विचारों और नजरियों से संबंधित विविध मामलों की दोबारा जाँच करनी चाहिए या उन पर सवाल पूछने चाहिए, परमेश्वर के वचनों में अभ्यास और सत्य सिद्धांतों के सही पथ की तलाश करनी चाहिए, और विचारों की इस शिक्षा को त्याग देने के आधार पर सत्य वास्तविकता में प्रवेश करना चाहिए, और इस तरह उद्धार की आशा प्राप्त करनी चाहिए। मैं जानने को उत्सुक हूँ कि तुम्हारे परिवार द्वारा तुम्हारे भीतर बैठाए गए विचारों और नजरियों और विविध विशिष्ट कहावतों की शिक्षा पर संगति के इन सत्रों के जरिए तुम लोगों ने किस हद तक अपनी आत्मा में गहराई तक बैठे विविध विचारों और नजरियों को पहचाना है। संक्षेप में कहें, तो जो भी हो, इन संगति सत्रों को लोगों को सचेत करने का काम करना चाहिए, ताकि लोगों को परिवार की संकल्पना की नई समझ मिले, और साथ ही परिवार के रिश्तेदारों द्वारा दी गई शिक्षा, पारिवारिक विचारों और पारिवारिक संस्कृति की बिल्कुल नई समझ और अवधारणा मिले, अपने परिवार को देखने का सही नजरिया और दृष्टिकोण अपनाने के लिए बिल्कुल नया दृष्टिकोण और क्षमता मिले। तुम अपने परिवार को बाहर से चाहे जैसे भी देखो, संक्षेप में कहें तो लोगों और चीजों को देखने, आचरण और कार्य करने को लेकर जिन गलत विचारों और नजरियों से तुम्हारे परिवार ने तुम्हें प्रभावित किया है, तुम्हें उनमें से प्रत्येक को समझना-बूझना चाहिए, और फिर बारी-बारी से इन विचारों को त्याग देना चाहिए ताकि तुम शुद्ध समझ के साथ परमेश्वर द्वारा लोगों को सिखाए जाने वाले नजरियों और तरीकों को अपनाओ और उन सही दृष्टिकोणों और तरीकों को स्वीकार करो जो परमेश्वर लोगों और चीजों को देखने और आचरण और कार्य करने के लिए लोगों को देता है। यही वह कार्य है जो सत्य का सच्चाई से अनुसरण करने वाले लोगों को करना चाहिए।
परिवारों द्वारा लोगों के भीतर बैठाया गया एक महत्वपूर्ण विचार और नजरिया यह है कि उन्हें खूंख्वार होना चाहिए और अपनी रक्षा के विविध उपायों का प्रयोग करना चाहिए। विविध विचारों और नजरियों की शिक्षा से दुनिया से निपटने के तरीके और साधन प्राप्त करने के बाद लोग अपने हितों की रक्षा कैसे करते हैं, इस पर ध्यान दिया जाए, तो लोगों के भीतर ऐसे विचार बैठाने का परिवारों का प्राथमिक प्रयोजन क्या है? यह लोगों को धौंस खाने से बचाना है। अब, आओ धौंस खाने के सार की जाँच करें। क्या धौंस खाना अच्छी बात है? क्या इससे बचा जा सकता है? क्या ऐसा कोई है जिसने कभी धौंस न खाई हो? धौंस खाने में होता क्या है? यह आशा करने के अलावा कि उनके बच्चे समाज में घुल-मिल कर सामान्य ढंग से स्थापित हो सकें, माता-पिता को निरंतर यह डर भी होता है कि उनके बच्चों को धौंस दी जाएगी। इसलिए तुम्हारे माता-पिता अक्सर तुम्हें दुनिया से निपटने के कुछ जुगाड़ और उपाय बताते हैं, ताकि तुम अपनी रक्षा करने और धौंस खाने से बचने के लिए इन तरीकों का इस्तेमाल कर सको। जब तुम्हारे लिए पंख फैलाकर अपने आप उड़ने का समय आ जाएगा, तो माता-पिता हर वक्त तुम्हारे साथ नहीं हो सकते या तुम्हारी रक्षा नहीं कर सकते, इसलिए वे यह सुनिश्चित करने के लिए तुम्हें कुछ विचारों और नजरियों से लैस कर देते हैं कि लोग तुम पर धौंस न जमा पाएँ। क्या ये विचार और नजरिये सही हैं? क्या तुम लोगों को धौंस खाने का डर है? क्या तुम लोग यह विचार और नजरिया रखते हो : “जब मैं समाज और सामाजिक समूह में पहुँचता हूँ, और खास तौर पर जब गैर-विश्वासियों से बातें करता हूँ, तो मुझे डर होता है कि मुझे धौंस दी जाएगी—मुझे सबसे ज्यादा यही चिंता होती है। अगर मैं लगभग अपने बराबर के किसी व्यक्ति से मिलूँ तो मैं अपना बचाव कर सकता हूँ। लेकिन अगर मेरी मुलाकात मुझसे ज्यादा खूंख्वार किसी व्यक्ति से हो गई, तो मैं प्रतिरोध करने की हिम्मत नहीं करूँगा। मुझे जैसी भी धौंस मिले, बस स्वीकार कर लूँगा। मैं इस बारे में कुछ नहीं कर सकता। उनके पीछे छिपे हुए समर्थक और लोग हैं, और मुझे यह सहना ही पड़ेगा।” क्या ज्यादातर लोगों के मन में यही प्रचलित विचार और नजरिया है? (पहले मेरे नजरिये भी ऐसे ही होते थे। परमेश्वर में आस्था रखने के बाद मैं अपने भाई-बहनों के साथ सद्भाव के साथ मिल-जुल कर रहने लगा। गैर-विश्वासियों के साथ बातचीत के समय, धौंस और उत्पीड़न का सामना होने पर भी मुझे मालूम है कि यह परमेश्वर की अनुमति से हो रहा है और इससे मुझे एक सबक सीखने की जरूरत है। इसलिए मैं कम डरता हूँ और इसके बजाय इसका अनुभव करने के लिए परमेश्वर पर भरोसा करना सीख लिया है।) किस प्रकार का व्यक्ति खास तौर से भयभीत होता है? (जो परमेश्वर में आस्था नहीं रखता।) इन लोगों के अलावा, कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो खास तौर पर दब्बू हैं, अंतर्मुखी हैं, जिनमें स्वाभिमान की कमी है, जो कमजोर और दुर्बल हैं, शारीरिक रूप से कम आकर्षक हैं या जो छोटी कद-काठी के हैं, गरीब पृष्ठभूमि के हैं—खास तौर से ऐसे लोग जिनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि का मजाक उड़ाया जाता है, जिनसे भेदभाव होता है—जिनका सामाजिक स्तर बहुत नीचा है, जिनमें कौशल या विशेषज्ञता नहीं है, जो मजदूरी करते हैं, जो शारीरिक रूप से अक्षम, आदि हैं। इन सभी लोगों के धौंस खाने की ज्यादा संभावना होती है और इन्हें इसका डर होता है। क्या धौंस देना समाज का प्रचलित मसला है? (हाँ।) जहाँ भी लोग होते हैं, ऐसी चीजें वहाँ जरूर होती हैं। आखिर धौंस जमाने का काम शुरू कैसे हुआ? (क्योंकि शैतान द्वारा भ्रष्ट किए जाने के बाद मानवजाति बहुत दुष्ट हो गई, और खुद धौंस खाए बिना दूसरों को धौंस देने की इच्छा रखने लगी। इसलिए, दमन की ये घटनाएँ हर जगह होती हैं।) यह एक पहलू है। कुछ लोग दूसरों से धौंस नहीं खाना चाहते, इसलिए वे पहल करके खुद पहले दूसरों को धौंस देते हैं और उन्हें डराते हैं ताकि कोई उन्हें धौंस देने की हिम्मत न करे। असल में अपने दिल की गहराई से वे खुद ऐसा आचरण नहीं करना चाहते; यह उनके लिए भी थकाऊ है। सबको पछाड़ देने के बाद क्या तुम खुद भी नहीं थक जाते? एक कहावत है, “एक कदम आगे दो कदम पीछे।” उदाहरण के लिए एक हेजहॉग यानी साही को ले लो : अपने काँटों जैसे पंखों से निशाना साधने से क्या उसका अपना तंत्रिका तंत्र थक नहीं जाता? इनके लोगों के शरीर में गड़ने से उन्हें पीड़ा होती है, और साही खुद भी थक जाता है। तो इतना थकाऊ होने पर ऐसा क्यों करना? यह अपने संरक्षण के लिए होता है—साही को अपनी रक्षा करने के लिए थोड़ी मेहनत करनी पड़ती है। चूँकि इस बुरी दुनिया में विभिन्न लोगों से पेश आने के लिए सकारात्मक या सही सिद्धांतों की कमी है, और लोगों को सांसारिक आचरण के लिए शैतान के फलसफों और सामाजिक अनुक्रम के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है, इसलिए लोगों के बीच असमान विभाजन के इन सिद्धांतों और मानदंडों के आधार पर भिन्नता और अनुक्रम पैदा हो जाते हैं। ऐसा होने पर लोग उचित रूप से और सद्भावना से मिल-जुल नहीं पाते। वे ऊँचे स्तरों में होने और बढ़िया से बढ़िया होने के लिए स्पर्धा करते हैं। जो सबसे ऊपर होते हैं वे दूसरों पर रोब जमा सकते हैं, अपनी मर्जी से उन पर धौंस जमाकर उन्हें नियंत्रित कर सकते हैं। चूँकि यह समाज पक्षपातपूर्ण है, इसलिए लोगों से पेश आने के सिद्धांत अन्यायपूर्ण हैं। इस प्रकार लोगों के बीच का मेल-जोल यकीनन सद्भावनापूर्ण नहीं होता है, और लोगों के एक-दूसरे से मेल-जोल के सिद्धांत, तरीके और साधन सब-कुछ अन्यायपूर्ण हो जाते हैं। यह अन्याय विशेष रूप से उन लोगों को संबोधित करता है जो सामर्थ्य, पारिवारिक पृष्ठभूमि, कौशल, काबिलियत, शारीरिक रंग-रूप, लंबाई, और साथ ही चालों, साजिशों और रणनीतियों की तुलना करते हैं। ये तमाम चीजें कहाँ से आती हैं? ये सत्य या परमेश्वर से नहीं बल्कि शैतान से आती हैं। शैतान से आई ये चीजें लोगों में गहरे बैठ जाती हैं, और वे उनके अनुसार जीते हैं, तो तुम क्या सोचते हो, लोग आपस में कैसे मिलते-जुलते होंगे? क्या वे सभी से उचित ढंग से पेश आएँगे? (नहीं, नहीं आएँगे।) बिल्कुल नहीं। क्या परमेश्वर के घर में चुनाव का सरलतम सिद्धांत भी शैतान के प्रभुत्व वाली दुनिया में कार्य कर सकता है? (नहीं कर सकता।) इसके कार्य न करने के कारण का सार क्या है? यही है कि यह बुरी दुनिया सत्य द्वारा शासित नहीं है; यह बुरी प्रवृत्तियों और शैतान के विविध विचारों और उसके फलसफों द्वारा शासित है। तो बस यही हो सकता है कि लोग एक-दूसरे पर धौंस जमा कर उन्हें नियंत्रित करते हों—यही एकमात्र संभव वस्तुस्थिति है। धौंस खाने से बचना नामुमकिन है—यह बहुत आम है। चूँकि दुनिया में सत्य का शासन नहीं है, इसलिए इस बुरी दुनिया में जब लोग एक-दूसरे से मिलते-जुलते हैं, तो अगर तुम उन लोगों में से नहीं हो जो दूसरों पर धौंस जमाते हों, तो तुम वह बन जाओगे जिन्हें धौंस दी जाती है। तुम्हारी भूमिका इन दो चीजों की ही हो सकती है। वास्तविकता में, प्रत्येक व्यक्ति दूसरों को धौंस देता है और खुद भी धौंस खाता है। ऐसा इसलिए है कि हमेशा लोग तुमसे ऊपर भी होते हैं और नीचे भी। तुम दूसरों को इसलिए धौंस देते हो क्योंकि तुम्हारा रुतबा उनसे ऊँचा है, लेकिन साथ ही जब तुम उन्हें धौंस दे रहे होते हो, तब तुमसे भी ऊँचे रुतबे और प्रतिष्ठा वाले लोग होते हैं जो तुम्हें धौंस देंगे और तुम्हें उनकी धौंस झेलनी होगी। एक वर्ग के लोग दूसरे वर्ग के लोगों को धौंस देते हैं : यह है लोगों के बीच का रिश्ता, धौंस देने और धौंस खाने का। बस यही एकमात्र रिश्ता है। कोई भी सच्चा आत्मिक स्नेह, प्रेम, सहिष्णुता, धैर्य नहीं होता है, और सभी लोगों के न्यायपूर्ण और उचित ढंग से सिद्धांतों के अनुसार पेश आने की कोई संभावना नहीं होती है। चूँकि यह दुनिया सत्य द्वारा नहीं, बल्कि शैतान द्वारा शासित है, इसलिए लोगों के बीच जो रिश्ते बनते हैं, वे सिर्फ धौंस देने वाले और धौंस खाने वाले के होते हैं, इस्तेमाल करने वाले और इस्तेमाल किए जाने वाले के होते हैं। यह अपरिहार्य है, और कोई इससे बच नहीं सकता। तुम कह सकते हो कि तुम अंडरवर्ल्ड के डॉन हो, और तुम्हारे बहुत-से गुर्गे और पिछलग्गू हैं, जिन सब पर तुम धौंस जमाते हो और जिन्हें तुम नियंत्रित करते हो। लेकिन अंडरवर्ल्ड डॉन के भी आला होते हैं और फिर सरकार भी होती है। वैसे यह कहा जाता है कि अधिकारी और अपराधी एक परिवार होते हैं, कभी-कभी सरकार जानबूझकर हंगामा खड़ा करती है और लाभ उठाकर तुम्हें नहीं छोड़ती। तुम्हें पुलिस थाने को रकम देकर उनके करीब होना होगा। देख लो, भले ही एक अंडरवर्ल्ड डॉन शानदार लगता हो, लेकिन पुलिस थाने जाने पर उसे भी सिर झुका कर घुटने टेकने पड़ते हैं—वह घमंडी होने की हिम्मत नहीं दिखा सकता। जैसा कि गैर-विश्वासियों की कहावतों में कहा गया है, “पादरी एक खंभा चढ़ता है तो दानव दस चढ़ जाता है,” और “हमेशा हमसे ताकतवर जरूर होता है।” इसका अर्थ यह है कि हर व्यक्ति दूसरों को धौंस देता है और खुद भी धौंस खाता है, और यही है धौंस देने का सार और प्रक्रिया।
धौंस देने के मामले पर गौर करें, तो चूँकि यह ऐसी चीज है जिससे कोई बच नहीं सकता, किसी व्यक्ति को इसे कैसे सँभालना चाहिए? भले ही तुम्हें धौंस खाने का डर न हो, फिर भी क्या कलीसिया में ऐसा कुछ होता है? क्या यह हो सकता है? जब तुम गैर-विश्वासियों से बातचीत करते हो, तो हो सकता है वे तुम्हें धौंस दें। तो क्या यह कलीसिया में नहीं होता? (जरूर होता है।) कमोबेश यह होता है, क्योंकि सभी लोग शैतान द्वारा भ्रष्ट हो चुके हैं। उद्धार प्राप्त करने से पहले लोग अक्सर भ्रष्टता दिखाते हैं और इसका एक पहलू दूसरों के साथ मनमाने ढंग से पेश आकर उचित बर्ताव न करना है। जब दूसरों के साथ ऐसा अनुचित बर्ताव होता है, तो धौंस देने और धौंस खाने की घटनाएँ भी होती हैं। तो ये चीजें कभी-कभी होती ही हैं, और लोग इनसे बच नहीं सकते या इनसे दूर नहीं रह सकते। इस मामले से निपटने और इसे सँभालने का सही सिद्धांत क्या है? (परमेश्वर के वचनों के अनुसार, सिद्धांतों के अनुसार।) सैद्धांतिक रूप से ऐसा ही कहा जाता है। इसके अभ्यास का विशिष्ट तरीका क्या है? धौंस देने और धौंस खाने के मामले को तुम कैसे समझ सकते हो? मिसाल के तौर पर, मान लो तुम एक नकली अगुआ से जुड़ी समस्याओं का एक शिकायत-पत्र लिखते हो, और नकली अगुआ तुम्हें यह कहकर धौंस देना चाहता है, “अगर तुम औकात में न रहे, अगर तुम मेरी कमियों के बारे में ऊपर वालों से शिकायत करते रहे, मेरी चुगली करते रहे या मेरे मूल्यांकन में कुछ नकारात्मक लिखते रहे, तो मैं तुम्हारी जान ले लूँगा! मेरे पास तुम्हें निष्कासित करने की ताकत है। क्या तुम नहीं डरते?” तुम ऐसी स्थिति को कैसे सँभालोगे? वह तुम्हें धमकी दे रहा है; विशेष रूप से कहें तो वह तुम्हें धौंस दे रहा है। उसके पास ताकत है और तुम एक साधारण विश्वासी हो, तो वह मनमाने ढंग से बिना किसी सिद्धांत या आधाररेखा के तुम्हें सताता है। वह तुमसे वैसे ही पेश आता है जैसे शैतान लोगों से पेश आता है। इसे ठोस ढंग से कहें, तो क्या वह तुम्हें धौंस नहीं दे रहा है? क्या वह तुम्हें सताने की कोशिश नहीं कर रहा है? (बिल्कुल।) तो तुम इसे कैसे सँभालोगे? तुम समझौता करोगे या सिद्धांतों पर दृढ़ रहोगे? (सिद्धांतों पर दृढ़ रहूँगा।) सैद्धांतिक रूप से लोगों को सिद्धांतों पर दृढ़ रहना चाहिए और इस नकली अगुआ से नहीं डरना चाहिए। इसका आधार क्या है? तुम्हें उससे क्यों नहीं डरना चाहिए? अगर वह तुम्हें सचमुच निष्कासित कर दे तो क्या तुम भयभीत हो जाओगे? चूँकि वह तुम्हें सचमुच निष्कासित कर सकता है, इसलिए तुम शायद सिद्धांतों पर दृढ़ रहने की हिम्मत न करो और डर जाओ। यह मामला कहाँ अटक जाता है? तुम कैसे डर सकते हो? (क्योंकि मुझे यकीन नहीं है कि परमेश्वर के घर में सत्य का शासन चलता है।) यह इसका एक पहलू है। तुम्हें यह आस्था रखकर कहना चाहिए, “तुम बुरे व्यक्ति हो। यह मत सोचो कि सिर्फ इसलिए कि तुम एक अगुआ हो, अब तुम्हारे पास मुझे निष्कासित करने की ताकत है। मुझे निष्कासित करना गलत होगा। यह मामला देर-सवेर उजागर हो जाएगा। परमेश्वर का घर अकेले तुम्हारे अधिकार में नहीं है। अगर आज तुम मुझे निष्कासित करोगे, तो अंततः तुम्हें दंड मिलेगा। अगर तुम्हें इस पर यकीन नहीं है, तो रुको और देखो। परमेश्वर के घर में सत्य का शासन है, परमेश्वर का शासन है। लोग तुम्हें दंड नहीं दे सकते, मगर परमेश्वर तुम्हारा खुलासा कर तुम्हें हटा सकता है। जब तुम्हारे गलत कर्म उजागर हो जाएँगे, तभी तुम्हें दंड मिलेगा।” क्या तुम्हें यह विश्वास है? (हाँ।) तुम्हें है? तो फिर तुम लोग यह क्यों नहीं कह सकते? लगता है ऐसी स्थितियों का सामना होने पर तुम खतरे में पड़ जाओगे; तुम्हारे अंदर साहस और सच्ची आस्था नहीं है। जब तुम सच में इन मामलों का सामना करोगे, बुरे लोगों और ऐसे खूंख्वार मसीह-विरोधियों से मिलोगे जिनके लोगों को सताने के तरीके बड़े लाल अजगर के तरीकों जैसे ही हों, तब तुम क्या करोगे? तुम यह कहकर रोने लगोगे, “अरे, मैं आध्यात्मिक कद में छोटा हूँ, दब्बू हूँ, हमेशा मुसीबत से डरता रहा हूँ, मुझे अपने सिर पर गिरते हुए पत्ते के टकराने से भी डर लगता है। काश! मुझे ऐसे लोगों का सामना न करना पड़े। अगर वे लोग मुझे धौंस दें तो मैं क्या करूँगा?” क्या वे तुम्हें धौंस दे रहे हैं? वे तुम्हें धौंस नहीं दे रहे हैं; यह तो शैतान है जो तुम्हें सता रहा है। इंसानी नजरिये से देखें तो तुम कहोगे, “यह व्यक्ति ताकतवर है, रुतबे वाला है और यह उन निष्कपट लोगों को धौंस देता है जिनका कोई रुतबा नहीं है।” क्या यही हो रहा है? सत्य के दृष्टिकोण से, यह धौंस देना नहीं है; यह शैतान का लोगों को दुख देना है, सताना है, बेवकूफ बनाना है, भ्रष्ट करना है और उन्हें कुचलना है। शैतान के इन कार्यों से तुम्हें कैसे निपटना चाहिए, उन्हें कैसे सँभालना चाहिए? क्या तुम्हें डरना चाहिए? (मुझे नहीं डरना चाहिए; मुझे शिकायत कर उन्हें उजागर करना चाहिए।) तुम्हारे दिल में उनसे डर नहीं होना चाहिए। अगर उन मसलों की शिकायत करना और उनके विरुद्ध संघर्ष करना इस वक्त उपयुक्त न हो, तो तुम्हें फिलहाल उन्हें सहकर बाद में उनकी शिकायत का सही समय ढूँढ़ना चाहिए। अगर भाई-बहनों के बीच तुम जैसे समझ-बूझ वाले लोग हों, तो उनके बुरे कर्मों की शिकायत कर उन्हें उजागर करने के लिए तुम सबको एकजुट हो जाना चाहिए। अगर किसी और में समझ-बूझ न हो, और जब उनकी शिकायत करने के लिए तुम आगे बढ़ो और हर कोई तुम्हें ठुकरा दे, तो थोड़े समय के लिए सब्र रखो। जब आला अगुआ तुम्हारी कलीसिया में आकर कामकाज की जाँच करें, तो उनसे इन मसलों के बारे में शिकायत करने का सही समय ढूँढ़ो, पूरे विस्तार से उनके कुकर्मों का स्पष्ट वर्णन करके अगुआओं को उन लोगों को हटाने का मौका दो। क्या यह बुद्धिमानी है? (बिल्कुल।) एक लिहाज से तुम्हें आस्था रखकर बुरे लोगों, मसीह-विरोधियों या शैतान से नहीं डरना चाहिए। दूसरे लिहाज से तुम्हें अपने प्रति उनके कर्मों को एक व्यक्ति द्वारा दूसरे को धौंस देने के रूप में नहीं देखना चाहिए; तुम्हें इसका सार इस रूप में देखना चाहिए कि शैतान लोगों को बेवकूफ बनाकर सता और कुचल रहा है। फिर स्थिति के आधार पर तुम्हें उनकी यातना से निपटने के लिए बुद्धि का प्रयोग करना चाहिए, उन्हें उजागर कर उनकी शिकायत करने, और परमेश्वर के घर और कलीसियाई कार्य के हितों को सुरक्षित रखने का सही समय देखना चाहिए। यही वह गवाही है, जिस पर तुम्हें दृढ़ रहना चाहिए और यही वह कर्तव्य और दायित्व है, जो तुम्हें एक व्यक्ति के रूप में पूरा करना चाहिए। वे चाहे जैसे भी तुम्हें धौंस दें या अनुचित ढंग से पेश आएँ, इसे धौंस के रूप में मत देखो। यह उनका धौंस देना नहीं है; यह शैतान द्वारा लोगों को बेवकूफ बनाना, कुचलना और सताना है। जब बड़ा लाल अजगर परमेश्वर के विश्वासियों को सताता है तो क्या तुम कहते हो कि वह तुम्हें धौंस दे रहा है? (नहीं।) वह तुम्हें धौंस नहीं दे रहा है। वह तुम्हें क्यों सताता है? (क्योंकि उसका सार परमेश्वर का विरोध करना है।) उसका सार परमेश्वर का विरोध करना है। वह परमेश्वर को शत्रु मानता है, और परमेश्वर के संपूर्ण कार्य को अपनी आँख में चुभी कील और काँख में चुभा काँटा मानता है। वह परमेश्वर के चुने हुए लोगों को भी शत्रु मानता है। अगर तुम परमेश्वर का अनुसरण करते हो, तो वह तुमसे घृणा करेगा जैसा कि बाइबल में कहा गया है : “यदि संसार तुम से बैर रखता है, तो तुम जानते हो कि उसने तुम से पहले मुझ से बैर रखा” (यूहन्ना 15:18)। बड़ा लाल अजगर लोगों से घृणा करता है, परमेश्वर से घृणा करता है, परमेश्वर को एक शत्रु के रूप में देखता है, और इससे भी ज्यादा परमेश्वर का अनुसरण करने वालों, खास तौर से सत्य का अभ्यास करने वालों को शत्रु के रूप में देखता है। इसीलिए वह तुम्हें सताना चाहता है, मार डालना चाहता है, तुम्हें परमेश्वर का अनुसरण करने से रोकना चाहता है, तुमसे अपनी आराधना और अनुसरण करवाना चाहता है, और चाहता है कि तुम परमेश्वर को कोसो। तुम कह सकते हो, “मैं परमेश्वर को नहीं कोसूँगा।” फिर वह तुम्हें धमकी देगा, “अगर तुम परमेश्वर को नहीं कोसोगे तो मर जाओगे!” वह तुम्हें यह कहने को मजबूर करेगा, “कम्युनिस्ट पार्टी अच्छी है,” और तुम कहोगे, “मैं ऐसा नहीं कहूँगा।” फिर वह कहेगा, “अगर तुम यह नहीं कहोगे तो मैं तुम्हें परेशान करूँगा, बदले में क्रूर यातना दूँगा!” क्या यह धौंस देना है? नहीं यह लोगों के साथ शैतान का दुर्व्यवहार है। क्या तुम समझ रहे हो? (मैं समझ रहा हूँ।) धौंस के मामले से निपटते समय तुम्हारी समझ सही होनी चाहिए। समाज और लोगों के समूहों के बीच अगर तुम इसे इंसानी नजरिये से देखो, तो हर व्यक्ति कभी धौंस देने वाले तो कभी धौंस खाने वाले की भूमिका निभाता है। लेकिन इसे सत्य के परिप्रेक्ष्य से इस तरह नहीं देखना चाहिए। कोई भी व्यक्ति जो तुम्हें धौंस देना चाहता है, तुम्हें नियंत्रित करना चाहता है, उसके व्यवहार के सार को धौंस देना नहीं माना जाता। इसके बजाय यह शैतान का लोगों के साथ दुर्व्यवहार, तिकड़म, उन्हें बेवकूफ बनाना, कुचलना और भ्रष्टता है। विशेष रूप से कहें, तो इसका अर्थ है कि वे तुमसे तार्किक और मानवीय तरीकों से पेश नहीं आ रहे हैं, उचित बर्ताव नहीं कर रहे हैं, बल्कि वे शैतान का परिप्रेक्ष्य और दृष्टिकोण अपना रहे हैं और तुमसे किस तरह पेश आएँ, बात करें या मेल-जोल रखें, इसका रास्ता दिखाने के लिए शैतान के विचारों का प्रयोग कर रहे हैं। मिसाल के तौर पर, मान लो कि तुम और एक बुरा व्यक्ति एक कमरे में साथ रहते हो। तुम पहले पहुँचते हो, इसलिए तुम्हें एक उपयुक्त स्थान पहले चुनना चाहिए, और तुम नीचे वाला बिस्तर चुन लेते हो। दूसरा व्यक्ति पहुँचते ही यह देखता है तो कहता है, “क्या नीचे वाला बिस्तर चुनकर तुमने सही किया? मैंने तो अब तक चुना भी नहीं है, क्या यह तुम्हारी बारी है? मेरे होते हुए तुम नीचे वाले बिस्तर पर सोने की हिम्मत कर रहे हो? ऐसी ढिठाई! तुमने मुझसे बात भी नहीं की, और अपने आप तुमने सोने के लिए नीचे वाला बिस्तर चुन लिया। जाओ ऊपर वाले बिस्तर पर!” तुम जवाब देते हो, “तुम ऊपर वाले बिस्तर पर क्यों नहीं सो सकते? तुम मेरे बाद आए; उस कायदे से तुम्हें ऊपर वाले बिस्तर पर सोना चाहिए।” वह कहता है : “कायदा? मैंने कभी कोई कायदा नहीं माना! मैं कहीं भी कतार में नहीं लगता; मैं तो राष्ट्रपति से मिलने के लिए भी कतार में खड़ा न होऊँ! क्या तुमने यह जानने की कोशिश की कि मैं कौन हूँ? तुम मुझसे बारी लगाने की हिम्मत कर रहे हो—इतनी ढिठाई! तुम्हें मरना है क्या? जाओ ऊपर वाले बिस्तर पर!” तो तुम्हें सिर झुकाकर ऊपर वाले बिस्तर पर सोने जाना पड़ता है। क्या यह तुम्हें धौंस देना है? इंसानी नजरिये से यह धौंस देने जैसा लगता है। वह देखता है कि तुम निश्छल हो जिसके साथ उसकी तिकड़म चल सकती है। वह पहले तुम्हें रोब-दाब दिखाता है, और सबक सिखाता है ताकि तुम यह जान लो कि वह कौन है। यह इस बात को इंसानी नजरिये, मानवीय भावनाओं या देह के परिप्रेक्ष्य से देखना है। लेकिन अगर तुम इसे सत्य के नजरिये से देखो, तो क्या वैसे ही देख सकते हो? तुमने नीचे वाला बिस्तर पहले चुना, सब कुछ सही कायदे में था, लेकिन उसने जबरदस्ती की कि तुम वहाँ से हट जाओ, तुम्हें ऊपर वाला बिस्तर लेने को मजबूर किया। क्या यह अनुचित नहीं है? क्या यह उसका तुम्हें सताना नहीं है? क्या वह तुम्हें इंसान न मानकर बर्ताव नहीं कर रहा है? क्या वह तुम्हारा निरादर नहीं कर रहा है? क्या वह खुद को मालिक नहीं मान बैठा है, और तुमसे एक नौकर या गुलाम की तरह पेश नहीं आ रहा है? उसकी सोच का तर्क क्या है? जो भी उसके जितना दबंग नहीं है, उसे वह अपना नौकर समझता है, हुक्म दे सकता है, सता सकता है। सत्य के नजरिये से इसे धौंस देना नहीं कहा जा सकता है; यह लोगों को सताना है। लोगों को कौन सता सकता है? बुरे लोग, दानव, ठग, बदमाश, कमीने, अन्यायी, मानवताहीन लोग, जिनके मन में किसी के प्रति आदर नहीं है। ऐसे लोग जहाँ भी जाते हैं, नियमों का पालन नहीं करते हैं। वे यूँ पेश आते हैं मानो वे मालिक हों, हर अच्छी, फायदेमंद और लाभप्रद चीज सिर्फ उन्हीं की हो। दूसरों को ऐसी चीजों में हिस्सा नहीं मिल सकता और वे उसके बारे में सोच भी नहीं सकते। क्या यह इंसान कमीना नहीं है? (है।) कमीने और दानव यही करते हैं। वे तुम्हें यूँ सता रहे हैं, तो क्या तुम डरोगे नहीं? तुम सोचोगे, “हे परमेश्वर, तो आखिर इतने दबंग लोग भी होते हैं। वे यह भी सोचते हैं कि मेरा नीचे वाले बिस्तर पर सोना गलत है। यह क्या हो रहा है?” तुम सकपका जाओगे, और आगे से जब भी उनसे बात करोगे, सोच-समझ कर बोलोगे। तुम्हें यह सोचकर उस पर विचार करना पड़ेगा : “मैं उसे नाराज नहीं कर सकता हूँ, उसे उकसा नहीं सकता हूँ। अगर मैंने उसे उकसाया, तो वह मुझे परेशान करेगा।” अगर तुम्हारी मानसिकता ऐसी है, तो समझो वह अपने मकसद में कामयाब है। उसका मकसद क्या है? वह तुम्हें डराना चाहता है, चाहता है कि तुम उससे हमेशा डरो, अपने और तुम्हारे बीच फासला बनाकर रखना चाहता है, जहाँ वह मालिक हो और तुम नौकर, और तुम जहाँ भी जाओ तुम्हें उसकी बात सुननी और माननी पड़े। क्या शैतान के कार्य करने का यही सिद्धांत नहीं है? उसे तुम्हारा मालिक होना चाहिए, और तुम्हें उसका नौकर। तुम्हें स्वेच्छा से अनुशासित होना पड़ेगा, उसका रोब सहना पड़ेगा, और उसके हाथ का खिलौना बनना पड़ेगा; तुम्हें उसकी हर बात माननी पड़ेगी। तुम उसके साथ बराबर खड़े नहीं हो सकते; तुम उसकी बराबरी एक ही स्थिति में कर सकते हो और वह है उसके मरने के बाद—तुम सिर्फ एक मुर्दे की बराबरी करने लायक हो। मुझे बताओ, उसने तुम्हें किस हद तक धौंस दी है? क्या उसके कुकर्मों और हावी होने वाले रंग-ढंग ने तुम्हें दिल में गहराई तक भयभीत कर दिया है? (हाँ।) तुमने यह तथ्य स्वीकार कर लिया है, समझौता कर लिया है, तो क्या हम कह सकते हैं कि नतीजतन तुम उससे भ्रष्ट हो गए हो? उसने तुम्हें कसकर जकड़ रखा है; जब वह कुकर्म करे और सिद्धांतों का उल्लंघन करे, तो तुम बोलने की हिम्मत नहीं करोगे, क्योंकि वह पहले तुम्हें निचले बिस्तर से एक ही धक्के में ऊपरी बिस्तर पर भेज चुका है। तुम उसे दोबारा उकसाने की हिम्मत नहीं करोगे; जब वह तुम्हें दिखाई देगा तो उसके आसपास चक्कर लगाओगे और सिर्फ उसके जिक्र से ही तुम्हारी हालत पतली हो जाएगी। क्या यह उससे बुरी तरह डरना नहीं है? तुम उसके साथ सिद्धांतों के अनुसार उचित ढंग से पेश आने की हिम्मत नहीं कर सकते; उसने तुम्हें कसकर जकड़ रखा है। उसके तुम्हें कसकर जकड़े रखने का सार क्या है? इसका अर्थ है कि तुम उसके कब्जे में हो, वह तुम्हें नियंत्रित करता है। क्या यही बात नहीं है? (बिल्कुल।) तो उससे नियंत्रित होने से बचने के लिए तुम्हें इस स्थिति को किस नजरिये से देखना चाहिए? लोगों को दुष्टों से धौंस मिलने को तुम्हें यह मानना चाहिए कि लोगों को भ्रष्ट कर शैतान उनसे दुर्व्यवहार कर रहा है। इस सार को समझ लेने के बाद तुम्हें इसे किस नजरिये से देखना चाहिए? तुम्हें बुरे लोगों से दिल की गहराई से घृणा कर उन्हें ठुकरा देना चाहिए, उनसे डरना नहीं चाहिए। तुम्हें सोचना चाहिए, “अच्छा, तुम चाहते हो कि मैं ऊपर वाले बिस्तर पर सोऊँ? ठीक है, मैं ऊपर सो जाऊँगा। लेकिन आज मैंने एक और बुरे व्यक्ति की हरकतें देख लीं, एक और बुरे व्यक्ति के सार को पहचान लिया, और अब से मैं बुरे लोगों के एक और किस्म के व्यवहार को समझ-बूझ पाऊँगा जो वे अपने दैनिक जीवन में लोगों की पीठ पीछे करते हैं। आज से मैं उनकी कथनी-करनी पर नजदीकी नजर रखूँगा और देखूँगा कि क्या वे धोखा देते हैं। अगर परमेश्वर का घर उनसे काम लेता है, तो देखूँगा कि क्या वे सिद्धांतों के अनुसार कार्य करते हैं, क्या वे परमेश्वर के घर के हितों को कायम रखते हैं, क्या वे चढ़ावा लूटते हैं और क्या वे अभी भी दूसरों को सताते हैं।” तुम्हें दिल की गहराई से प्रार्थना करनी चाहिए : “हे परमेश्वर, इस बुरे व्यक्ति को उजागर करो, मुझे उसके कुकर्मों और उसके सार को समझने-बूझने लायक बनाओ। उसके कुकर्मों के सबूत जुटाने में मेरी मदद करो, मुझे बुरे लोगों से निडर बनाओ, आस्था रखने और उनके विरुद्ध लड़ने की शक्ति दो।” भले ही तुम अभी भी उसके साथ उसी कमरे में रहोगे, और ऊपर से कुछ भी नहीं बदला होगा, पर अपने दिल की गहराई में तुम उससे नहीं डरोगे क्योंकि वह तुम्हारे साथ जो भी कर रहा हो वह धौंस देना नहीं है; यह उसकी शैतानी प्रकृति का प्रकटन है, उसका उजागर होना है। जब तुम उसे इस दृष्टि से देखोगे, तो क्या अब भी उससे डरते रहोगे? उसके दिखाए हर कर्म और बोली गई हर बात पर तुम अपने दिल में यह कहकर उसे कोसोगे, “तुम एक दुष्ट हो, शैतान हो, बुरे काम करके परमेश्वर का प्रतिरोध करते हो, और देर-सवेर तुम्हें शाप मिलेगा। परमेश्वर तुम्हें बचकर जाने नहीं देगा; आखिर तुम उजागर कर दिए जाओगे!” तुम्हें बुरे लोगों से इस तरह निपटना चाहिए। तुम्हारे भीतर उनसे लड़ने की ऐसी आस्था और शक्ति होनी चाहिए, तुम्हें परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए, तब तुम्हारा दिल मजबूत होगा और तुम उनसे नहीं डरोगे। यह कैसा रहेगा? क्या ये युक्तियाँ असरदार नहीं हैं? (ये असरदार हैं।) जब तुम इन्हें सत्य के दृष्टिकोण से इस तरह समझोगे-बूझोगे, तो क्या यह तुम्हारे माता-पिता की सीख से ज्यादा व्यावहारिक नहीं है : “किसी व्यक्ति को दूसरे को हानि पहुँचाने का इरादा नहीं रखना चाहिए, बल्कि खुद को दूसरों से होने वाली हानि से हमेशा सुरक्षित रखना चाहिए।” सुरक्षित रखने का क्या लाभ है? तुम शैतान के दुर्व्यवहार और भ्रष्ट करने से खुद को कैसे सुरक्षित रख सकते हो? शैतान का भ्रष्ट करना और दुर्व्यवहार करना ऐसी चीजें नहीं हैं जिनसे अपनी सुरक्षा की जा सके—ये हर जगह हैं। शैतान द्वारा लोगों की भ्रष्टता सिर्फ सतह पर नहीं होती है, यह सिर्फ बाहरी नहीं होती है; यह तुम्हारी सोच को भी भ्रष्ट कर देती है। क्या तुम इससे सुरक्षित रह सकते हो? तुम्हारे लिए सबसे अहम है सत्य प्राप्त करना और परमेश्वर पर भरोसा करना। तुम्हें बुरे लोगों के कार्यों को ही नहीं बल्कि उनके सार को भी समझना-बूझना चाहिए, और साथ ही उनके विविध विचारों और नजरियों को भी समझना-बूझना चाहिए। फिर सत्य प्राप्त करो, और परमेश्वर के वचनों और सत्य के सहारे उन्हें उजागर कर उनका विश्लेषण करो, ताकि भाई-बहनों को भी समझ-बूझ हासिल हो सके। फिर सभी लोग एकजुट होकर उन्हें ठुकराने के लिए उठ खड़े हो सकते हो। यह कितना अच्छा रहेगा? अगर तुम हमेशा बचाव की मुद्रा में रहोगे, हमेशा सतर्क रहोगे, हमेशा बचते-बचाते फिरोगे तो यह कायरता है, यह एक विजेता की निशानी नहीं है।
इन सब पर संगति होने के बाद क्या तुम सबको अब लोगों के धौंस खाने के मामले को लेकर एक नया दृष्टिकोण मिला है? क्या धौंस देना सही है? (नहीं, सही नहीं है।) धौंस देने की प्रकृति क्या है? (यह बुरे लोगों का दूसरों को सताना है।) सार रूप में यह बुरे लोगों और शैतान का दूसरों को सताना और बेवकूफ बनाना है। अब धौंस खाने की प्रकृति क्या है? (यह कमजोरी है, सत्य का अभ्यास न करना है, उठ खड़े होने और प्रतिरोध करने की हिम्मत न दिखाना है।) बिल्कुल सही कहा, बुरे लोगों से डरना, बुरी ताकतों से डरना, शैतान से लड़ने की आस्था न रखना, शैतान के कुरूप चेहरे को पहचानने, समझने-बूझने और उसे गहराई से जानने की आस्था न रखना, और शैतान के तुम्हें कुचलने और तुम्हारे साथ दुर्व्यवहार करने का प्रतिरोध करने की आस्था न रखना—क्या यही इसकी प्रकृति नहीं है? (बिल्कुल।) आस्थाहीन लोगों के दिलों में हमेशा एक पेंच होता है; वे यह सोचकर हमेशा डरे रहते हैं, “मुझे दूसरों से धौंस नहीं खानी चाहिए। मैं दूसरों को धौंस नहीं देता, और मुझे भी दूसरों से धौंस नहीं खानी चाहिए, जैसा कि मेरी माँ ने कहा था, ‘किसी व्यक्ति को दूसरे को हानि पहुँचाने का इरादा नहीं रखना चाहिए, बल्कि खुद को दूसरों से होने वाली हानि से हमेशा सुरक्षित रखना चाहिए।’” वे यह कहकर प्रार्थना करते हैं, “हे परमेश्वर, बुरे लोगों से मेरा सामना न होने दो; मैं दब्बू हूँ, हमेशा सीधा-सादा रहा हूँ। मैं तुममें विश्वास रखता हूँ और तुम्हारा अनुसरण करता हूँ; तुम्हें मेरी रक्षा करनी चाहिए!” यह कायरता है। तुमने बहुत-से सत्य सुने हैं, और तुम अनेक सत्य समझते हो। तुम दानवों और शैतान से नहीं डरते, तो क्या तुम एक बुरे व्यक्ति से डरते हो? क्या तुम बड़े लाल अजगर से डरते हो? (अगर मैं पकड़ी गई तो मुझे डर लगेगा, लेकिन परमेश्वर से प्रार्थना कर मैं उस पर भरोसा रख सकती हूँ।) इसका अर्थ यह है कि तुम उसकी बुराई से भयभीत नहीं हो। यह भी एक अभिव्यक्ति है जो सिर्फ आस्था की नींव होने से आती है। कुछ लोग कहते हैं, “तुम कहते हो कि मैं बड़े लाल अजगर से डरता हूँ। अगर मैं बड़े लाल अजगर से डरता, तो क्या मैं यहाँ तक पहुँच पाता? क्या यह एक तथ्य नहीं है? लेकिन अगर तुम मुझसे यह कहने को कहोगे कि मैं बड़े लाल अजगर से नहीं डरता, तो मैं अभी भी ऐसा कहने से थोड़ा डरता हूँ। अगर बड़े लाल अजगर ने सुन लिया तो क्या होगा?” यहाँ अभी भी थोड़ा डर है। ऐसे लोग सार्वजनिक रूप से यह कहने से थोड़ा डरते हैं कि बड़ा लाल अजगर दुष्ट और क्रूर है; उनमें आस्था की कमी है और उनका आध्यात्मिक कद अभी भी बहुत ही छोटा है। मैं तुम्हें बड़े लाल अजगर से खुल्लमखुल्ला लड़ने या उसे उकसाने को नहीं कह रहा हूँ। लेकिन कम-से-कम तुम्हें अपने दिल की गहराई में यह जानना चाहिए कि यह दानव, बड़ा लाल अजगर, लोगों के साथ दुर्व्यवहार और भ्रष्टता से पेश आता है, उन्हें मूर्ख बनाता है, कुचलता है और फिर उन्हें निगल जाता है। यह धौंस देना नहीं है; ऐसा नहीं है कि वह लोगों को इसलिए धौंस देता और सताता है कि वे भोले हैं और नियम-कानून का पालन करते हैं। यह बकवास है, यह ऐसा वक्तव्य है जिसमें आध्यात्मिक समझ का अभाव है। बड़ा लाल अजगर तुम्हारे साथ दुर्व्यवहार कर रहा है। वह तुमसे दुर्व्यवहार कैसे करता है? वह तुम्हें धमकाता है, डराता है, सताता है और यातना देता है। तुमसे दुर्व्यवहार करने का उसका प्रयोजन क्या है? उसका प्रयोजन यह है कि तुम आस्था छोड़ दो, परमेश्वर को नकार दो, परमेश्वर को त्याग दो, फिर उसके साथ समझौता करो, और आखिरकार उसकी आराधना करो, उसका अनुसरण करो, उसके अधीन हो जाओ, उसके विविध विचारों को स्वीकार करो, और उसके समक्ष आराधना में घुटने टेक दो। उसे इसमें आनंद आता है; तुम्हें सताने का उसका यही प्रयोजन है। यह देखकर कि तुम उसके बजाय परमेश्वर का अनुसरण करते हो, वह जलता है, और वह तुम्हें बख्शेगा नहीं। बेशक अगर तुम परमेश्वर का अनुसरण नहीं करते हो, तो क्या वह तुम्हें बख्श देगा? (नहीं, यह उन लोगों से भी दुर्व्यवहार करता है जो परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते।) बोलचाल की भाषा में यह सही है, बिल्कुल ऐसी ही बात है; ज्यादा सही ढंग से देखें, तो यह इसका प्रकृति सार है। जो लोग उसका अनुसरण करते हैं, उसका गुणगान करते हैं, वह उनसे भी दुर्व्यवहार करता है, उन्हें भी मूर्ख बनाता और कुचलता है, और इस्तेमाल करने के बाद उन्हें फेंक देता है, उनमें से कुछ का मुँह बंद करने के लिए वह उनकी जान भी ले लेता है, और आखिरकार उन्हें पूरी तरह निगल जाता है। किसी भी स्थिति में उनका अंत अच्छा नहीं होता। चाहे कुछ भी हो, लोगों को स्पष्ट समझना चाहिए कि परिवारों का लोगों के भीतर विविध विचारों और नजरियों की शिक्षा को बैठाने का अंतिम प्रयोजन असल में उनकी रक्षा करना या उन्हें सही पथ की ओर ले जाना नहीं है। बल्कि इसका प्रयोजन यह है कि लोग परमेश्वर से दूर चले जाएँ, शैतान के फलसफों के अनुसार जिएँ, और समाज और शैतान से आने वाले विविध विचारों से कुचले जाना और तमाम बुरी प्रवृत्तियों की शिक्षा को बारम्बार चक्रीय ढंग से स्वीकार करते जाएँ। परिवारों के ऐसा करने के पीछे के शुरुआती इरादे या प्रयोजन चाहे जो हों, अंत में, ये लोगों को सही पथ की ओर नहीं ले जा सकते, उन्हें सत्य वास्तविकता में प्रवेश और आखिरकार उद्धार प्राप्त नहीं करा सकते। इसलिए परिवारों से आने वाले विविध विचार और नजरिये लोगों को त्याग देने चाहिए, वे ऐसी चीजें हैं जिन्हें सत्य के अनुसरण की प्रक्रिया और उसके पथ में त्याग देना चाहिए। अच्छा, चलो आज की संगति यहीं समाप्त करें। फिर मिलेंगे!
4 मार्च 2023
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