सत्य का अनुसरण कैसे करें (12) भाग दो

कुछ लोग कह सकते हैं : “अभी तुमने जिन माँ-बाप के बारे में बात की वे सभी छोटे किसान, छोटे व्यापारी, फेरीवाले, सफाई कर्मी और छोटे-मोटे काम करने वाले लोग हैं। इनका सामाजिक दर्जा बहुत निम्न है, और लोगों का इन्हें त्याग देना ठीक ही है। वो कहावत है न, ‘आदमी ऊपर की ओर जाने के लिए संघर्ष करता है; पानी नीचे की ओर बहता है,’ तो लोगों को बड़ा सोचना चाहिए और बड़े लक्ष्य रखने चाहिए, और इन निम्न दर्जे वाली चीजों की ओर नहीं देखना चाहिए। उदाहरण के लिए, छोटा किसान कौन बनना चाहता है? छोटा व्यापारी कौन बनना चाहता है? हर कोई खूब पैसे कमाना, उच्च-स्तरीय अधिकारी बनना, समाज में रुतबा पाना, और शानदार कामयाबी हासिल करना चाहता है। कोई भी बचपन से ही छोटा किसान बनकर और खेती करके किसी तरह अपना गुजारा चला पाने से संतुष्ट रहने के सपने नहीं देखता। कोई भी इसे कामयाबी पाना नहीं कहता, ऐसा कोई भी नहीं है। चूँकि ऐसे परिवार के कारण लोगों को शर्मिंदगी होती है और ऐसी पहचान के कारण उनके साथ पक्षपातपूर्ण व्यवहार किया जाता है, इसलिए उन्हें अपने परिवार से विरासत में मिली पहचान को त्याग देना चाहिए।” क्या ऐसा ही है? (नहीं, ऐसा नहीं है।) नहीं, ऐसा नहीं है। अगर हम दूसरे पहलू से इस बारे में चर्चा करें, तो कुछ लोग संपन्न परिवारों से आते हैं, या जिनके पास जीने के लिए अच्छा माहौल या समाज में ऊँचा दर्जा होता है, तो वे विरासत में एक खास पहचान और सामाजिक दर्जा लेकर आते हैं, और सभी क्षेत्रों में उनका बहुत सम्मान किया जाता है। बड़े होने के दौरान, उनके माँ-बाप और परिवार के बड़े-बुजुर्ग उनके साथ बहुत विनम्र व्यवहार करते हैं, कहने की जरूरत नहीं कि समाज में उनके साथ कैसा व्यवहार किया जाता है। उनके परिवार की खास और कुलीन पृष्ठभूमि के कारण, स्कूल में, उनके शिक्षक और सहपाठी सभी उन्हें ऊँची नजरों से देखते हैं, और कोई भी उन्हें धमकाने की हिम्मत नहीं करता। शिक्षक उनसे नरमी और स्नेह से बात करते हैं और उनके सहपाठी उनकी बड़ी इज्जत करते हैं। क्योंकि वे एक खास पृष्ठभूमि वाले संपन्न परिवार से आते हैं, जिससे उन्हें समाज में एक कुलीन पहचान मिलती है और सभी उनकी इज्जत करते हैं, वे खुद को दूसरों से श्रेष्ठ मानते हैं और उन्हें लगता है कि उनके पास एक सम्मानित पहचान और सामाजिक रुतबा है। इसलिए, हर समूह में वे अति-आत्मविश्वासी दिखते हैं, किसी की भावनाओं की परवाह किए बिना वे जो चाहे कह देते हैं, और अपने हर काम में पूरी तरह असंयमित होते हैं। दूसरे लोगों के सामने वे परिष्कृत और शिष्ट होते हैं, बड़ा सोचने, खुलकर बोलने और कार्य करने से नहीं डरते; उनकी कथनी या करनी चाहे जो भी हो, क्योंकि उनके पास अपनी मजबूत पारिवारिक पृष्ठभूमि का समर्थन होता है, हमेशा कुछ खास लोग उनकी मदद के लिए आगे आते रहते हैं, और उनका हर काम सहज रूप से चलता है। चीजें जितनी सहजता से चलती हैं, वे उतना ही ज्यादा श्रेष्ठ महसूस करते हैं। वे जहाँ भी जाते हैं, वहाँ दूसरों को प्रभावित करना, भीड़ से अलग खड़े होना और दूसरों से अलग दिखना चाहते हैं। दूसरों के साथ खाना खाते समय, वे बड़ा हिस्सा चुनते हैं, और अगर उन्हें ये नहीं मिलता तो वे गुस्सा हो जाते हैं। भाई-बहनों के साथ रहते हुए, वे सबसे अच्छे बिस्तर पर सोना चाहते हैं—जहाँ सबसे अच्छी धूप आती हो, या जो हीटर के पास हो, या जहाँ भी ताजी हवा आती हो—और यह सिर्फ उनका ही होता है। क्या यह खुद को दूसरों से श्रेष्ठ मानना नहीं है? (बिल्कुल है।) कुछ लोगों के माँ-बाप अच्छा पैसा कमाते हैं, या सिविल सेवक हैं, या ऊँचा वेतन पाने वाले प्रतिभाशाली पेशेवर हैं, तो उनके परिवार की ठाठ-बाट और रहन-सहन कुछ खास ही आरामदायक होता है, और उन्हें भोजन या कपड़े जैसी चीजें खरीद पाने की चिंता नहीं करनी पड़ती है। नतीजतन, ऐसे लोग खुद को श्रेष्ठतम महसूस करते हैं। वे जो चाहे पहन सकते हैं, सबसे फैशनेबल कपड़े खरीद सकते हैं और फैशन से बाहर हो जाने पर उन्हें फेंक भी सकते हैं। वे जो चाहे खा सकते हैं—उन्हें बस अपनी माँग रखनी है और उनके सामने सब हाजिर हो जाएगा। उन्हें किसी भी चीज के बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है, और वे खुद को बहुत श्रेष्ठ मानते हैं। ऐसे संपन्न परिवार से उन्हें जो पहचान विरासत में मिलती है, उसका मतलब है कि दूसरों की नजरों में, अगर वे महिला हैं तो प्रभावी रूप से एक राजकुमारी हैं, या अगर वे पुरुष हैं तो एक रसिक हैं। ऐसे परिवार से उन्हें विरासत में क्या मिला है? एक कुलीन पहचान और सामाजिक दर्जा। ऐसे परिवार से उन्हें विरासत में जो मिला है वह शर्मिंदगी नहीं, बल्कि गौरव है। चाहे वे किसी भी माहौल या लोगों के समूह के बीच हों, उन्हें हमेशा यही लगता है कि वे बाकियों से श्रेष्ठ हैं। वे ऐसी बातें कहते हैं, जैसे, “मेरे माँ-बाप अमीर कारोबारी हैं। मेरे परिवार के पास बहुत सारा पैसा है। मैं जब चाहे तब इसे खर्च करता हूँ और मुझे कभी बजट बनाने की जरूरत नहीं पड़ती,” या “मेरे माँ-बाप ऊँची रैंक वाले अधिकारी हैं। मैं अपने कारोबार के संबंध में जहाँ भी जाऊँ वहाँ सामान्य प्रक्रियाओं से गुजरे बिना चुटकी बजाकर अपना काम निकलवा लेता हूँ। देखो, तुम लोगों को अपना काम निकलवाने के लिए कितनी कोशिश करनी पड़ती है, तुम्हें सारी प्रक्रियाओं से गुजरना होता है, अपनी बारी का इंतजार करना और लोगों के सामने हाथ-पैर जोड़ने पड़ते हैं। मुझे देखो, मैं बस अपने माँ-बाप के किसी सहयोगी को काम बता देता हूँ, तो वह आसानी से हो जाता है। इस पहचान और सामाजिक दर्जे के बारे में क्या कहोगे!” क्या वे खुद को श्रेष्ठ मानते हैं? (बिल्कुल।) कुछ लोग कहते हैं : “मेरे माँ-बाप सार्वजनिक हस्तियाँ हैं, तुम इंटरनेट पर उनका नाम डालकर देख सकते हो, वे वहाँ हैं या नहीं।” जब कोई हस्तियों की सूची देखता है और उनमें वाकई उनके माँ-बाप के नाम होते हैं, तो उन लोगों को श्रेष्ठता का एहसास होता है। अगर कहीं कोई उनसे यह पूछे, “तुम्हारा नाम क्या है?” तो उनका जवाब होता है, “मेरे नाम से क्या फर्क पड़ता है, मेरे माँ-बाप का नाम फलाँ-फलाँ हैं।” वे सबसे पहले लोगों को अपने माँ-बाप का नाम बताते हैं, ताकि दूसरों को उनकी पहचान और सामाजिक दर्जे का पता चल सके। कुछ लोग मन ही मन सोचते हैं : “तुम्हारे परिवार के पास रुतबा है, तुम्हारे माँ-बाप अधिकारी या मशहूर हस्तियाँ हैं या अमीर कारोबारी हैं, और यह तुम्हें ऊँची रैंक वाले अधिकारियों या बेहद अमीर माँ-बाप की विशेषाधिकृत औलाद बनाता है। मैं कौन हूँ?” इस बारे में सोचकर, वे जवाब देते हैं, “मेरे माँ-बाप के बारे में कुछ भी खास नहीं है, वे औसत वेतन पाने वाले साधारण कर्मी हैं, तो इस बारे में डींगें हाँकने वाली कोई बात नहीं है—लेकिन मेरे पूर्वजों में से एक किसी राजवंश के प्रधानमंत्री थे।” दूसरे कहते हैं : “तुम्हारे पूर्वज प्रधानमंत्री थे। वाह, तो समाज में तुम्हारा विशेष रुतबा होगा। तुम एक प्रधानमंत्री के वंशज हो। एक प्रधानमंत्री का वंशज कोई साधारण व्यक्ति नहीं होता, यानी तुम भी मशहूर हस्तियों के वंशज हो!” देखा तुमने, जब कोई व्यक्ति खुद को किसी हस्ती के साथ जोड़ लेता है, तो उसकी पहचान बदल जाती है, उसका सामाजिक दर्जा फौरन बढ़ जाता है, और वे सम्मानित व्यक्ति बन जाते हैं। कुछ अन्य लोग भी हैं जो कहते हैं : “मेरे पूर्वज अमीर कारोबारियों की पीढ़ी से थे। वे बेहद संपन्न थे। बाद में सामाजिक परिवर्तन और सामाजिक व्यवस्था में बदलाव के कारण उनकी संपत्तियाँ जब्त कर ली गईं। आज यहाँ दसियों मील के दायरे में लोग जिन घरों में रहते हैं, उनमें से कई मेरे पूर्वजों के घर थे। पुराने समय में, मेरे खानदानी घर में चार या पाँच सौ कमरे, या कम से कम दो या तीन सौ कमरे थे और इनमें कुल मिलाकर सौ से अधिक नौकर होते थे। मेरे दादाजी कारोबार के मालिक थे। उन्होंने कभी कोई काम नहीं किया, बस दूसरों को आदेश दिया करते थे। मेरी दादी बहुत आलीशान जिंदगी जीती थी, उन्हें कपड़े पहनाने और उनके कपड़े धोने के लिए सेविकाएँ मौजूद थीं। बाद में, क्योंकि सामाजिक परिवेश बदल गया, हमारा परिवार बर्बाद हो गया, तो अब हम कुलीन वर्ग का हिस्सा नहीं रहे, बल्कि आम लोग बन गए। पहले, मेरा परिवार बड़ा और प्रतिष्ठित हुआ करता था। वे गाँव के एक छोर पर अपने पैर मारते, तो उसके झटके गाँव के दूसरे छोर तक महसूस होते थे। सभी जानते थे वे कौन हैं। मैं ऐसे परिवार से आता हूँ, इस बारे में तुम क्या कहोगे? यह बहुत असाधारण है, है न? तुम्हें मेरी इज्जत करनी चाहिए, है न?” कुछ अन्य लोग कहते हैं : “तुम्हारे पूर्वजों की संपत्ति के बारे में कुछ खास नहीं है। मेरे पूर्वज सम्राट थे और वह भी एक संस्थापक सम्राट। कहा जाता है कि मुझे मेरा उपनाम उन्हीं से मिला है। मेरे परिवार के सभी सदस्य उनके करीबी रिश्तेदार हैं, दूर के नहीं। इस बारे में क्या कहोगे? अब जब तुम मेरे पूर्वज की पृष्ठभूमि जानते हो, तो क्या तुम्हें मुझे अलग नजरों से नहीं देखना चाहिए और थोड़ा सम्मान नहीं देना चाहिए? क्या तुम्हें मेरी इज्जत नहीं करनी चाहिए?” कुछ लोग कहते हैं : “भले ही मेरे पूर्वजों में से कोई भी सम्राट नहीं था, पर उनमें से एक सेना का जनरल था जिसने अनेकों दुश्मनों का खात्मा किया, अनगिनत सैन्य अभियान पूरे किए, और शाही दरबार में एक महत्वपूर्ण मंत्री बने। मेरे परिवार के सभी लोग उनके ही वंशज हैं। आज भी, मेरा परिवार मेरे पूर्वजों द्वारा सिखाए गए मार्शल आर्ट के दाँव-पेंचों का अध्ययन करता है, जिनके बारे में बाहर के लोग नहीं जानते हैं। इसके बारे में तुम क्या कहोगे? क्या मेरी पहचान खास नहीं है? क्या मेरा रुतबा विशिष्ट नहीं है?” ये विशेष पहचान जो लोगों को उनके तथाकथित दूर के पैतृक परिवारों के साथ-साथ उनके आधुनिक परिवारों से विरासत में मिली है, उन्हें लोग सम्मानित और गौरवशाली मानते हैं, और समय-समय पर, वे उनका अपनी पहचान और सामाजिक दर्जे के प्रतीक के रूप में जिक्र करते हैं और उन पर इतराते रहते हैं। एक ओर वे ऐसा यह साबित करने के लिए करते हैं कि उनकी पहचान और रुतबा असाधारण है। वहीं दूसरी ओर, ऐसी कहानियाँ सुनाते समय लोग खुद को भी ऊँचा दिखाने और ऊँचा सामाजिक दर्जा पाने की कोशिश करते हैं, ताकि दूसरों के बीच अपनी अहमियत बढ़ा सकें और असाधारण और विशेष दिखें। वे असाधारण और विशिष्ट क्यों दिखना चाहते हैं? ताकि दूसरों से ज्यादा सम्मान, प्रशंसा और मान्यता पा सकें, और अधिक आरामदायक, आसान और सम्मानित जीवन जी सकें। उदाहरण के लिए, कुछ विशेष परिवेशों में, ऐसे लोग भी होते हैं जो किसी समूह के भीतर अपनी मौजूदगी दिखाने या दूसरों का सम्मान और आदर पाने में लगातार असमर्थ होते हैं। तो वे मौके के तलाश में होते हैं और समय-समय पर अपनी मौजूदगी दिखाने और लोगों को यह बताने के लिए कि वे असाधारण हैं, और लोगों को अपनी अहमियत दिखाने और उनसे सम्मान पाने के लिए अपनी विशेष पहचान या विशेष पारिवारिक पृष्ठभूमि का इस्तेमाल करते हैं, ताकि वे लोगों के बीच प्रतिष्ठा पा सकें। वे कहते हैं : “भले ही मेरी अपनी पहचान, रुतबा और काबिलियत सामान्य है, मेरे पूर्वजों में से एक मिंग राजवंश में एक राजकुमार के परिवार के सलाहकार थे। क्या तुमने फलाँ व्यक्ति के बारे में सुना है? वे मेरे पूर्वज थे, मेरे परदादा के दादा, वे राजकुमार के परिवार के एक महत्वपूर्ण सलाहकार थे। उन्हें ‘मास्टरमाइंड’ के नाम से भी जाना जाता था। उन्हें खगोल विज्ञान से लेकर भूगोल, प्राचीन और आधुनिक इतिहास, और चीनी और विदेशी मामले तक हर चीज में महारत हासिल थी। वे भविष्यवाणियाँ भी कर सकते थे। हमारे परिवार में आज भी वह भूगर्भिक फेंग शुई कंपास मौजूद है जिसका वे इस्तेमाल किया करते थे।” भले ही वे अक्सर इस बारे में बात न करें, फिर भी वे समय-समय पर दूसरों को अपने पूर्वजों के शानदार इतिहास की कहानियाँ सुनाकर खुश करते हैं। कोई नहीं जानता कि वे जो कह रहे हैं वह सच है या झूठ, उनमें से कुछ सिर्फ सुनी-सुनाई कहानियाँ हो सकती हैं, पर कुछ बातें सच भी हो सकती हैं। जो भी हो, लोगों के मन में, अपने परिवार से विरासत में मिली पहचान बहुत महत्वपूर्ण होती है। यह दूसरों के बीच उनकी हैसियत और रुतबा तय करता है; इससे लोगों के बीच उनके साथ किया जाने वाला व्यवहार, उनकी स्थिति और दर्जा भी तय होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि दूसरों के बीच रहते हुए, लोग समझते हैं कि उन्हें ये चीजें अपनी विरासत की पहचान से मिली हैं, और इसीलिए वे उन्हें बहुत महत्वपूर्ण मानते हैं। नतीजतन, वे समय-समय पर अपने पारिवारिक इतिहास के उन “गौरवशाली” और “शानदार” अध्यायों की डींगें हाँकते हैं, जबकि बार-बार अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि के उन पहलुओं या उन चीजों की बात करने से बचते हैं जो उनके परिवार के लिए शर्मिंदगी की बात थी या जिसकी वजह से उन्हें नीची नजरों से देखा या भेदभाव किया जा सकता है। संक्षेप में, जो पहचान लोगों को अपने परिवार से विरासत में मिलती है वह उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है। जब उनके साथ कुछ विशेष चीजें घटती हैं, तो वे दिखावा करने के लिए अक्सर अपने परिवार की विशेष पहचान का पूँजी के तौर पर इस्तेमाल करते हैं, ताकि लोगों से मान्यता पा सकें और उनके बीच रुतबा हासिल कर सकें। चाहे तुम्हारे परिवार से तुम्हें गौरव मिलता हो या शर्मिंदगी, या अपने परिवार से तुम्हें विरासत में मिली पहचान और सामाजिक दर्जा कुलीन हो या साधारण, जहाँ तक तुम्हारा सवाल है, यह परिवार तुम्हारे लिए इन सबसे अधिक और कुछ नहीं है। इससे यह तय नहीं होता कि तुम सत्य समझ सकते हो या नहीं, क्या तुम सत्य का अनुसरण कर सकते हो, या क्या तुम सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर चल सकते हो। इसलिए, लोगों को इसे बेहद महत्वपूर्ण मामला नहीं समझना चाहिए, क्योंकि यह न तो व्यक्ति की किस्मत तय करता है और न ही उसका भविष्य, और यह व्यक्ति के जीवन का मार्ग तो बिल्कुल भी तय नहीं करता। अपने परिवार से विरासत में मिली पहचान सिर्फ दूसरों के बीच तुम्हारी स्वयं की भावनाओं और धारणाओं को तय कर सकता है। अपने परिवार से विरासत में मिली पहचान से चाहे तुम नफरत करते हो या उसके बारे में डींगें हाँकते हो, इससे यह तय नहीं हो सकता कि तुम सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर चल पाओगे या नहीं। इसलिए जब सत्य के अनुसरण की बात आती है, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम्हें अपने परिवार से कैसी पहचान या कैसा सामाजिक दर्जा विरासत में मिला है। भले ही अपने परिवार से विरासत में मिली पहचान तुम्हें श्रेष्ठ और सम्मानित महसूस कराती हो, इसका जिक्र करने का कोई मतलब नहीं है। अगर यह तुम्हें शर्मिंदगी और निम्नता का एहसास दिलाती है और तुम्हारा आत्मविश्वास कम करती है, इसका तुम्हारे सत्य के अनुसरण पर कोई असर नहीं पड़ेगा। ऐसा ही है न? (हाँ।) इससे तुम्हारे सत्य के अनुसरण पर थोड़ा भी असर नहीं पड़ेगा, और न ही इसका परमेश्वर के समक्ष तुम्हारे सृजित प्राणी की पहचान पर कुछ असर होगा। इसके विपरीत, तुम्हें अपने परिवार से चाहे कैसी भी पहचान या सामाजिक दर्जा विरासत में मिला हो, परमेश्वर के नजरिये से सबके पास बचाए जाने, अपना कर्तव्य निभाने और सत्य का अनुसरण करने का एक जैसा अवसर होता है और सभी का दर्जा और पहचान समान होती है। अपने परिवार से तुम्हें विरासत में मिली पहचान, चाहे सम्मानित हो या शर्मनाक, तुम्हारी मानवता निर्धारित नहीं करती है, और न ही यह तुम्हारा मार्ग निर्धारित करती है। हालाँकि, अगर तुम इसे बेहद महत्वपूर्ण मानते हो, अपने जीवन और अस्तित्व का अटूट हिस्सा मानते हो, तो तुम इसे कसकर पकड़े रहोगे, कभी इसे छूटने नहीं दोगे, और इस पर गर्व करोगे। अगर तुम्हें अपने परिवार से मिली पहचान कुलीन है, तो तुम उसे एक तरह की पूँजी मानोगे, जबकि अगर यह पहचान निम्न स्तर की है, तो तुम उसे शर्मनाक मानोगे। तुम्हें अपने परिवार से विरासत में मिली पहचान चाहे कुलीन हो, शानदार हो या शर्मनाक हो, यह सिर्फ तुम्हारी अपनी समझ है, और यह मामले को अपनी भ्रष्ट मानवता के परिप्रेक्ष्य से देखने का नतीजा है। यह सिर्फ तुम्हारी अपनी भावना, धारणा और समझ है, जो सत्य के अनुरूप नहीं है और इसका सत्य से कोई सरोकार नहीं है। यह तुम्हारे सत्य के अनुसरण के लिए पूँजी नहीं है, और बेशक, यह तुम्हारे सत्य के अनुसरण में बाधक भी नहीं है। अगर तुम्हारा सामाजिक दर्जा कुलीन और ऊँचा है, तो इसका मतलब यह नहीं कि तुम इसे अपने उद्धार के लिए पूँजी मान बैठो। अगर तुम्हारा सामाजिक दर्जा निम्न स्तर का है और दीन-हीन है, तो भी यह तुम्हारे सत्य के अनुसरण में बाधक नहीं है, तुम्हारे उद्धार की कोशिश में बाधक होना तो दूर की बात है। भले ही किसी परिवार का माहौल और पृष्ठभूमि, जीवन स्तर, और रहन-सहन, सभी परमेश्वर द्वारा निर्धारित होते हैं, मगर उनका परमेश्वर के समक्ष व्यक्ति की वास्तविक पहचान से कोई सरोकार नहीं है। कोई भी व्यक्ति, चाहे वह किसी भी परिवार से आता हो, या चाहे उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि शानदार हो या निम्न स्तरीय, परमेश्वर की नजरों में वह सृजित प्राणी ही है। भले ही तुम्हारे परिवार की पृष्ठभूमि शानदार हो और तुम्हारी पहचान और दर्जा कुलीन है, फिर भी तुम एक सृजित प्राणी हो। इसी तरह, अगर तुम्हारे परिवार का दर्जा साधारण है और लोग तुम्हें नीची नजरों से देखते हैं, तो भी तुम परमेश्वर की नजरों में एक सामान्य सृजित प्राणी ही हो—तुममें कोई विशेष बात नहीं है। अलग-अलग पारिवारिक पृष्ठभूमि लोगों को जीवन जीने का अलग-अलग परिवेश देती है, और जीवन जीने के विभिन्न परिवेश लोगों को सांसारिक चीजों, संसार, और जीवन से निपटने के विभिन्न दृष्टिकोण देते हैं। चाहे कोई संपन्न हो या जीवन में संघर्ष करता हो, या चाहे किसी की पारिवारिक परिस्थितियाँ सौभाग्यशाली हों या नहीं, यह बस अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग अनुभव है। तुलनात्मक रूप से कहें, तो जो गरीब हैं या जिनके परिवार का जीवन स्तर सामान्य है, वे जीवन का गहराई से अनुभव करते हैं, जबकि जो अमीर हैं और जिनके परिवार सौभाग्यशाली हैं, उनके लिए ऐसा करना ज्यादा कठिन होता है, है न? (हाँ।) चाहे तुम कैसे भी पारिवारिक माहौल में पले-बढ़े हो, और तुम्हें उस पारिवारिक माहौल से चाहे जो भी पहचान या सामाजिक दर्जा मिला हो, जब तुम परमेश्वर के समक्ष आते हो, जब परमेश्वर तुम्हें एक सृजित प्राणी मानता और स्वीकारता है, तो परमेश्वर की नजरों में तुम भी दूसरे लोगों जैसे ही होते हो, तुम दूसरों के बराबर होते हो, तुममें कोई विशेष बात नहीं है, और परमेश्वर तुमसे की गई अपेक्षाओं में वही मानक और तरीके लागू करेगा जो दूसरों के लिए लागू होते हैं। अगर तुम कहते हो, “समाज में मेरा विशेष दर्जा है,” तो परमेश्वर के समक्ष, तुम्हें इस “विशेषता” को भूल जाना होगा; अगर तुम कहते हो, “मेरा सामाजिक दर्जा निम्न स्तर का है,” तो तुम्हें इस “नीचता” को भी भूल जाना होगा। परमेश्वर के समक्ष, तुम सभी को अपने परिवार से विरासत में मिली पहचान को पीछे छोड़ना होगा, उसे त्यागना होगा, परमेश्वर द्वारा तुम्हें दी गई एक सृजित प्राणी की पहचान को स्वीकारना होगा, और सृजित प्राणी का कर्तव्य अच्छे से निभाते समय इस पहचान को अपनाना होगा। अगर तुम एक अच्छे परिवार से आते हो और तुम्हारा दर्जा कुलीन है, तो इसमें डींगें हाँकने वाली कोई बात नहीं है, और तुम दूसरों से ज्यादा कुलीन नहीं हो। ऐसा क्यों? परमेश्वर की नजरों में, जब तक तुम एक सृजित प्राणी हो, तुम भ्रष्ट स्वभावों से भरे होगे, और तुम उन लोगों में से होगे जिन्हें परमेश्वर बचाना चाहता है। इसी तरह, अगर तुम्हें अपने परिवार से विरासत में मिली पहचान निम्न स्तर की और सामान्य है, तो भी तुम्हें एक सृजित प्राणी की पहचान को स्वीकारना चाहिए जो परमेश्वर ने तुम्हें दी है, और परमेश्वर का उद्धार स्वीकारने के लिए एक सृजित प्राणी के रूप में उसके समक्ष आना चाहिए। तुम कह सकते हो : “मेरे परिवार का सामाजिक दर्जा निम्न स्तर का है, और मेरी पहचान भी निम्न स्तर की है। लोग मुझे नीची नजरों से देखते हैं।” परमेश्वर कहता है कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। आज, परमेश्वर के समक्ष, तुम वह इंसान नहीं हो जिसे अपनी पहचान अपने परिवार से मिली थी। तुम्हारी मौजूदा पहचान एक सृजित प्राणी की है, और तुम्हें सिर्फ खुद से की गई परमेश्वर की अपेक्षाओं को स्वीकारना चाहिए। परमेश्वर किसी के साथ पक्षपात नहीं करता। वह तुम्हारे परिवार की पृष्ठभूमि या तुम्हारी पहचान को नहीं देखता, क्योंकि उसकी नजरों में, तुम बाकी लोगों जैसे ही हो। तुम्हें शैतान ने भ्रष्ट किया है, तुम भ्रष्ट मानवजाति का हिस्सा हो, और परमेश्वर के समक्ष तुम बस एक सृजित प्राणी हो, तो तुम उन लोगों में से एक हो जिन्हें परमेश्वर बचाना चाहता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम किसी ऊँची रैंक वाले अधिकारी या बहुत अमीर माँ-बाप की संतान हो, चाहे तुम कोई विशेषाधिकार प्राप्त युवक हो या राजकुमारी हो, या चाहे तुम छोटे किसान या साधारण माँ-बाप की संतान हो। ये चीजें महत्वपूर्ण नहीं हैं, और परमेश्वर इनमें से किसी भी चीज पर ध्यान नहीं देता। क्योंकि परमेश्वर तुम्हें बस एक इंसान के रूप में बचाना चाहता है। वह तुम्हारा भ्रष्ट स्वभाव बदलना चाहता है, तुम्हारी पहचान नहीं। तुम्हारा भ्रष्ट स्वभाव तुम्हारी पहचान से निर्धारित नहीं होता है, न ही तुम्हारा मूल्य तुम्हारी पहचान से निर्धारित होता है, और तुम्हारा भ्रष्ट स्वभाव तुम्हारे परिवार से नहीं आया है। परमेश्वर तुम्हें इसलिए नहीं बचाना चाहता कि तुम्हारा दर्जा साधारण है, इसलिए तो बिल्कुल नहीं बचाना चाहता कि तुम्हारा दर्जा विशिष्ट है। बल्कि, परमेश्वर ने अपनी योजना और अपने प्रबंधन के कारण तुम्हें चुना है, क्योंकि शैतान ने तुम्हें भ्रष्ट किया है, और तुम भ्रष्ट मानवजाति का हिस्सा हो। अपने परिवार से तुम्हें विरासत में चाहे जो भी पहचान मिली हो, परमेश्वर के समक्ष तुम भी बाकी सारे लोगों जैसे ही हो। तुम सभी मानवजाति का हिस्सा हो, जिसे शैतान ने भ्रष्ट किया है, तुम सभी में भ्रष्ट स्वभाव हैं। तुममें कोई खास बात नहीं है। ऐसा ही है न? (हाँ।) इसलिए, अगली बार जब तुम्हारे आसपास कोई कहे, “मैं काउंटी मजिस्ट्रेट हुआ करता था” या “मैं प्रांतीय राज्यपाल था,” या कोई कहे, “हमारे पूर्वज सम्राट थे,” या कोई और कहे, “मैं कांग्रेस का सदस्य हुआ करता था,” या “मैंने राष्ट्रपति का चुनाव लड़ा था,” या अगर कोई यह कहे, “मैं एक बड़ी कंपनी का प्रेसिडेंट था,” या “मैं सरकारी उद्योग का प्रमुख था,” तो कहना कि इसमें कौन-सी बड़ी बात है? क्या यह बात महत्वपूर्ण है कि किसी समय में तुम वरिष्ठ कार्यकारी या कमान अधिकारी हुआ करते थे? यह संसार और यह समाज लोगों की पहचान और सामाजिक दर्जे को बहुत महत्व देता है, और तुम्हारी पहचान और रुतबे के अनुसार ही तुम्हारे साथ व्यवहार करता है। लेकिन अब तुम परमेश्वर के घर में हो, और परमेश्वर इसलिए तुम्हें अलग नजर से नहीं देखेगा कि तुम पहले कितने प्रतिभाशाली हुआ करते थे, या तुम्हारी पहचान कितनी शानदार और गौरवशाली थी। खास तौर पर अब क्योंकि वह चाहता है कि तुम सत्य का अनुसरण करो, तो क्या अपनी योग्यताओं, सामाजिक दर्जे और मूल्य का दिखावा करने का कोई मतलब है? (नहीं, नहीं है।) क्या ऐसा करना बेवकूफी होगी? (बिल्कुल।) बेवकूफ लोग अक्सर इन चीजों का इस्तेमाल दूसरों से अपनी तुलना करने के लिए करते हैं। कुछ नए विश्वासी ऐसे भी हैं जिनका आध्यात्मिक कद छोटा है और वे सत्य नहीं समझते, और जो अक्सर दूसरों से अपनी तुलना करने के लिए समाज और परिवार की इन चीजों का इस्तेमाल करते हैं। जिन लोगों के पास परमेश्वर में विश्वास की एक नींव और आध्यात्मिक कद है वे आम तौर पर ऐसा नहीं करेंगे, न ही ऐसी चीजों के बारे में बात करेंगे। अपनी पारिवारिक पहचान या सामाजिक दर्जे का पूँजी के तौर पर इस्तेमाल करना सत्य के अनुरूप नहीं है।

अब इस बारे में इतनी संगति करने के बाद, मैंने परिवार से विरासत में मिलने वाली पहचान के बारे में जो भी कहा, क्या वह तुम समझ गए? (हाँ।) तो बताओ कुछ इस बारे में। (परमेश्वर, मैं इस बारे में कुछ कहूँगा। लोग अक्सर उस परिवार को विशेष महत्व देते हैं जिसमें वे पैदा हुए हैं; साथ ही, वे अपनी पारिवारिक पहचान और सामाजिक रुतबे को भी काफी अहमियत देते हैं। निम्न सामाजिक दर्जे वाले परिवार में पैदा हुए लोग अक्सर किसी न किसी मामले में खुद को दूसरों से कमतर समझते हैं। उन्हें लगता है कि वे बहुत ही साधारण परिवार से आते हैं, और समाज में सिर उठाकर नहीं चल सकते, तो वे अपना सामाजिक दर्जा बेहतर करने की कोशिश करना चाहते हैं; दूसरी ओर, ऊँची हैसियत और ऊँचे दर्जे वाले परिवार में पैदा हुए लोग अक्सर अहंकारी और दंभी होते हैं, वे दिखावा करना पसंद करते हैं और खुद को श्रेष्ठ समझते हैं। मगर असल में, लोगों का सामाजिक दर्जा सबसे जरूरी चीज नहीं है, क्योंकि परमेश्वर के सामने, सभी लोगों की पहचान और दर्जा एक समान है—वे सभी सृजित प्राणी हैं। किसी व्यक्ति की पहचान और दर्जा यह निर्धारित नहीं कर सकता कि क्या वह सत्य का अनुसरण कर सकता है, सत्य का अभ्यास कर सकता है, या क्या उसे बचाया जा सकता है, तो तुम अपनी पहचान और दर्जे के कारण खुद को बांध नहीं सकते।) बहुत बढ़िया। सत्य का अनुसरण नहीं करने वाले लोग किसी व्यक्ति की पहचान और सामाजिक दर्जे की बहुत परवाह करते हैं, तो कुछ विशेष हालात में, वे इस तरह की बातें कहेंगे : “हमारी कलीसिया में फलाँ आदमी को जानते हो, उसका परिवार बहुत संपन्न है!” जब उनके मुँह से “संपन्न” शब्द निकलता है तो उनकी आँखें चमक उठती हैं, जो उनकी बेहद द्वेषपूर्ण और ईर्ष्यालु मानसिकता को दर्शाता है। उनमें ईर्ष्या की भावनाएँ काफी समय से बढ़ती जा रही हैं, जो अब इस हद तक पहुँच गई है जहाँ वे ऐसे लोगों से बेहद प्रभावित होते हैं और कहते हैं, “अरे, उन लोगों को जानते हो, उस महिला के पिता ऊँची रैंक वाले अधिकारी हैं, और उस आदमी के पिता काउंटी मजिस्ट्रेट हैं, उसके पिता मेयर हैं, और उस आदमी के पिता किसी सरकारी विभाग में सचिव हैं!” जब वे किसी को अच्छे कपड़े पहने देखते हैं, या किसी का पहनावा बहुत अच्छा है, या जिसके पास थोड़ी हैसियत या अंतर्दृष्टि है, या जो खास तौर पर महंगी चीजें इस्तेमाल करता है, तो उन्हें ईर्ष्या होती है और सोचते हैं, “उनका परिवार अमीर है, वे तो पैसों में खेलते होंगे,” और वे उनके प्रति प्रशंसा और ईर्ष्या से भरे होते हैं। जब भी वे किसी व्यक्ति के बारे में बताते हैं कि वह किसी कंपनी का मालिक है, तो उन्हें उस व्यक्ति की पहचान की जितनी पड़ी होती है उतनी परवाह वह व्यक्ति खुद नहीं करता। भले ही वह व्यक्ति खुद अपने काम के बारे में बात न करे, फिर भी वे हमेशा उसके काम के बारे में चर्चा करते हैं, और जब कलीसिया अगुआ चुनने का समय आता है तो वे उस व्यक्ति के लिए वोट भी करते हैं। अपने से ऊँचा सामाजिक दर्जा रखने वाले लोगों के प्रति उनके मन में कुछ खास भावनाएँ होती हैं, और वे उन पर विशेष ध्यान देते हैं। वे हमेशा उन लोगों की खातिरदारी करने, उनके करीब आने और उनकी चापलूसी करने की कोशिश करते हैं, जबकि खुद से नफरत करते हैं और सोचते हैं, “मेरे डैड अधिकारी क्यों नहीं हैं? मैं इस परिवार में क्यों पैदा हुआ? अपने परिवार के बारे में बताने के लिए मेरे पास कुछ भी अच्छा क्यों नहीं है? ये लोग जिन परिवारों से आते हैं वे अधिकारियों या अमीर कारोबारियों के परिवार हैं, जबकि मेरे परिवार के पास तो कुछ भी नहीं है। मेरे सभी भाई-बहन सामान्य लोग हैं, खेती करने वाले छोटे किसान हैं जो समाज के निचले दर्जे पर आते हैं। और मेरे माँ-बाप के बारे में जितना कम कहा जाए उतना ही बेहतर है—वे तो पढ़े-लिखे भी नहीं हैं। कितनी शर्म की बात है!” जैसे ही कोई उनके माँ-बाप का जिक्र करता है, वे टालमटोल करते हुए कहते हैं, “इस बारे में बात ना ही करें, किसी और बात पर चर्चा करते हैं। अपनी कलीसिया के फलाँ व्यक्ति के बारे में बात करते हैं। देखो वह प्रबंधन में किस पद पर है, उसे पता है कि अगुआ कैसे बना जाता है। वह दशकों से अगुआई कर रहा है, कोई उसकी जगह नहीं ले सकता। वह अगुआई करने के लिए ही पैदा हुआ है। काश यही बात हमारे बारे में भी कही जाती। अब उसका परमेश्वर में विश्वास करना भी दोहरी आशीष जैसा है। वह सचमुच धन्य है, क्योंकि उसके पास पहले से ही वह सब कुछ मौजूद है जिसकी समाज में किसी को चाह हो सकती है, और अब जब वह परमेश्वर के घर में आ गया है, तो वह राज्य में प्रवेश करके एक सुंदर मंजिल भी पा सकता है।” वे मानते हैं कि जब कोई अधिकारी कलीसिया में आता है, तो उसे कलीसिया अगुआ ही बनना चाहिए, और उसे सुंदर मंजिल मिलनी चाहिए। यह कौन तय करता है? क्या आखिरी फैसला उनका होता है? (नहीं।) जाहिर है कि ऐसी बातें छद्म-विश्वासी ही कहते हैं। अगर उन्हें कोई ऐसा व्यक्ति दिखता है जिसमें थोड़ी योग्यता और जन्मजात प्रतिभा है, जो अच्छे कपड़े पहनता है और जीवन में अच्छी चीजों का आनंद लेता है, और जो शानदार कार चलाता है और बड़े मकान में रहता है, तो वे लगातार उस व्यक्ति के साथ खुद को जोड़ते हैं, उसकी चापलूसी करते और उसके कृपापात्र बन जाते हैं। फिर कुछ ऐसे लोग भी हैं जो मानते हैं कि उनके पास ऊँचा सामाजिक दर्जा और हैसियत है। परमेश्वर के घर में आने के बाद वे हमेशा विशेषाधिकार माँगते हैं, अपने भाई-बहनों को आदेश देते हैं, और उनके साथ गुलामों जैसा व्यवहार करते हैं, क्योंकि उन्हें अधिकारी का जीवन जीने की आदत लग गई है। क्या ऐसे लोगों को लगता है कि भाई-बहन उनके मातहत हैं? जब कलीसिया अगुआ चुनने की बारी आती है, और उन्हें नहीं चुना जाता है, तो वे गुस्सा होकर कहते हैं, “अब मैं विश्वास नहीं करूँगा, परमेश्वर का घर निष्पक्ष नहीं है, यह लोगों को मौका नहीं देता है, परमेश्वर का घर लोगों को नीची नजर से देखता है!” उन्हें बाहरी संसार में अधिकारी जैसा बर्ताव करने की आदत है, और वे खुद को दमखम वाला मानते हैं, इसलिए परमेश्वर के घर में आने के बाद भी, हमेशा सारे फैसले खुद लेने की कोशिश करते हैं, हर चीज में अगुआई करते हैं, विशेषाधिकार माँगते हैं, और वे परमेश्वर के घर में वैसा ही व्यवहार करते हैं जैसा वे बाहरी संसार और समाज में करते हैं। मुमकिन है कि कोई बाहरी संसार में किसी अधिकारी की पत्नी हो, पर परमेश्वर के घर में आने के बाद भी वह चाहती है कि उसके साथ अधिकारी की पत्नी जैसा ही व्यवहार किया जाए, लोग उसकी चापलूसी करें और उसके आगे-पीछे घूमें। सभाओं के दौरान, अगर भाई-बहन उसका अभिवादन न करें, तो वह गुस्सा होकर सभाओं में आना बंद कर देती है, क्योंकि उसे लगता है कि लोग उसे गंभीरता से नहीं लेते हैं, और परमेश्वर में विश्वास करना निरर्थक है। क्या यह अनुचित नहीं है? (बिल्कुल है।) समाज में तुम्हारी विशेष पहचान चाहे जैसी भी हो, परमेश्वर के घर में आकर तुम अपनी वह विशेष पहचान खो देते हो। परमेश्वर और सत्य के सामने, लोगों की बस एक ही पहचान है, सृजित प्राणी की पहचान। बाहरी संसार में, चाहे तुम सरकारी अधिकारी हो या किसी अधिकारी की पत्नी, चाहे तुम समाज के कुलीन वर्ग के सदस्य हो या कोई साधारण कर्मचारी, या चाहे तुम सैन्य जनरल हो या सैनिक, परमेश्वर के घर में तुम्हारी एक ही पहचान है, जो एक सृजित प्राणी की पहचान है। तुममें कोई खास बात नहीं है, तो विशेषाधिकार मत माँगो या लोगों से अपनी भक्ति मत करवाओ। फिर कुछ ऐसे लोग भी हैं जो किसी खास ईसाई परिवार से या ऐसे परिवार से आते हैं जिसने सदियों से प्रभु में विश्वास किया है। मुमकिन है कि उसकी माँ ने किसी सेमिनरी में प्रशिक्षण लिया हो और उसके पिता पादरी हों। धार्मिक समुदाय में उनका बहुत सम्मान किया जाता है, और वे विश्वासियों से घिरे रहते हैं। परमेश्वर के कार्य के इस चरण को स्वीकारने के बाद भी उन्हें लगता है कि उनकी पहचान पहले जैसी ही है, मगर वे सपनों की दुनिया में जी रहे हैं! अब उनके लिए सपने देखना बंद करने और जाग जाने का वक्त आ गया है! इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम कोई पादरी हो या अगुआ, परमेश्वर के घर में आकर तुम्हें परमेश्वर के घर के नियमों को समझना होगा और अपनी पहचान बदलना सीखना होगा। सबसे पहला काम तुम्हें यही करना है। तुम कोई ऊँची रैंक वाले अधिकारी नहीं हो, तुम कोई साधारण कर्मचारी भी नहीं हो, तुम न तो कोई अमीर कारोबारी हो और न ही गरीब या निर्धन हो। परमेश्वर के घर में आने के बाद तुम्हारी बस एक ही पहचान रहती है, और यह वही पहचान है जो परमेश्वर ने तुम्हें दी है—एक सृजित प्राणी की पहचान। सृजित प्राणियों को क्या करना चाहिए? तुम्हें अपने पारिवारिक इतिहास या अपने परिवार से विरासत में मिले सामाजिक दर्जे पर इतराना नहीं चाहिए, और न ही अपने उन्नत सामाजिक दर्जे का इस्तेमाल परमेश्वर के घर में मनमानी करने और विशेष अधिकार माँगने के लिए करना चाहिए; और यकीनन तुम्हें समाज से मिले अपने अनुभव और अपने सामाजिक दर्जे से मिली श्रेष्ठता की भावना का इस्तेमाल परमेश्वर के घर में किसी संप्रभु शासक की तरह कार्य करने और फैसले लेने के लिए नहीं करना चाहिए। बल्कि, परमेश्वर के घर में तुम्हें एक सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य निभाना चाहिए, सही ढंग से आचरण करना चाहिए, अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि का उल्लेख नहीं करना चाहिए, खुद को किसी भी तरह से श्रेष्ठ नहीं समझना चाहिए, और न ही तुम्हें खुद को दूसरों से कमतर समझना चाहिए; तुम्हें खुद को कमतर या श्रेष्ठ समझने की कोई जरूरत नहीं है। संक्षेप में, तुम्हें आज्ञाकारी बनकर वही काम अच्छे से करना है जो एक सृजित प्राणी को करना चाहिए, और सृजित प्राणी का कर्तव्य अच्छे से निभाना चाहिए। कुछ लोग कहते हैं : “तो क्या इसका मतलब है कि मुझे खुद पर लगाम लगानी चाहिए और आम आदमी की तरह पेश आना चाहिए?” नहीं, तुम्हें खुद पर लगाम लगाने या आम आदमी बनने की जरूरत नहीं है, तुम्हें दूसरों के अधीन रहने की जरूरत नहीं है, और यकीनन तुम्हें दबंग और ताकतवर बनने की भी कोई जरूरत नहीं है। तुम्हें दूसरों से अलग दिखने, मुखौटा लगाने, और सिर्फ दूसरों को खुश रखने के लिए रियायतें देने की कोई जरूरत नहीं है। परमेश्वर लोगों के साथ निष्पक्ष और न्यायपूर्ण व्यवहार करता है, क्योंकि परमेश्वर ही सत्य है। परमेश्वर ने लोगों से अनेक वचन बोले हैं और कई अपेक्षाएँ की हैं, और वह तुमसे बस यही चाहता है कि तुम अच्छी तरह से सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाओ, और वह सब करो जो एक सृजित प्राणी को करना चाहिए। अपने परिवार से विरासत में मिली पहचान के मामले से निपटते हुए, तुम्हें अपने परिवार से मिली श्रेष्ठता की भावना पर इतराने के बजाय, परमेश्वर के वचनों को आधार और सत्य को कसौटी मानकर लोगों और चीजों को देखने, वैसा आचरण और व्यवहार करने की जरूरत है। और बेशक, अगर तुम किसी सौभाग्यशाली परिवार से नहीं आते हो, तो तुम्हें अपने परिवार के हालात के बारे में खुलकर बात करने और यह सब बताने की कोई जरूरत नहीं है कि परिवार की स्थिति कितनी बुरी है। कुछ अन्य लोग कह सकते हैं : “क्या परमेश्वर का घर चाहता है कि हम ‘एक नायक से उसकी जड़ों के बारे में न पूछें?’” क्या यह कहावत सत्य है? (नहीं।) यह कहावत सत्य नहीं है, तो तुम्हें किसी भी चीज को इस कहावत के आधार पर आँकने की जरूरत नहीं है, और न ही इसे उन अपेक्षाओं को पूरा करने की कसौटी मानने की जरूरत है जो परमेश्वर तुमसे रखता है। जहाँ तक तुम्हें अपने परिवार से विरासत में मिली पहचान की बात है, तो परमेश्वर तुमसे बस यही अपेक्षा करता है कि तुम अपना कर्तव्य निभाओ। परमेश्वर के सामने, तुम्हारी पहचान सिर्फ एक सृजित प्राणी की है, तो तुम्हें उन चीजों को त्याग देना चाहिए जो तुम्हारे एक अच्छा सृजित प्राणी बनने पर असर डाल सकती हैं या तुम्हें ऐसा करने से रोक सकती हैं। तुम्हें इन चीजों को अपने दिल में जगह नहीं देनी चाहिए, न ही उन्हें ज्यादा अहमियत देना चाहिए। चाहे रूपरंग की बात हो या रवैये की, तुम्हें अपने परिवार से विरासत में मिली विशेष पहचान को त्याग देना चाहिए। इस बारे में तुम क्या सोचते हो? क्या ऐसा किया जा सकता है? (बिल्कुल।) मुमकिन है कि तुम्हें अपने परिवार से एक सम्मानित पहचान मिली हो या तुम्हारी पारिवारिक पृष्ठभूमि तुम्हारी पहचान पर पर्दा डालती हो। चाहे जो भी हो, मैं उम्मीद करता हूँ कि तुम उससे मुक्त हो जाओगे, इस बात को गंभीरता से लोगे, और फिर जब भी तुम्हारे सामने कोई विशेष परिस्थितियाँ आएँगी, और ये चीजें तुम्हारे कर्तव्य निर्वहन पर असर डालेंगी, और लोगों के साथ तुम्हारे व्यवहार को प्रभावित करेंगी, और चीजों के साथ निपटने के तुम्हारे सही सिद्धांतों को प्रभावित करेंगी और लोगों के साथ मिल-जुलकर रहने के तुम्हारे सिद्धांतों पर असर डालेंगी, तब मैं उम्मीद करता हूँ कि तुम अपने परिवार से विरासत में मिली पहचान से प्रभावित हुए बिना, सबके साथ सही व्यवहार करोगे और सब कुछ अच्छी तरह संभाल पाओगे। उदाहरण के लिए, मान लो कि कलीसिया में कोई ऐसी महिला है जो हमेशा अपने कर्तव्य में अनमने ढंग से काम करती है और लगातार रुकावटें पैदा करती है। तुम्हें उससे कैसे निपटना चाहिए? तुम इस पर दिमाग लड़ाते हुए सोचती हो, “मुझे उसकी काट-छाँट करनी होगी, क्योंकि अगर मैंने उसकी काट-छाँट नहीं की, तो इससे कलीसिया का कार्य प्रभावित होगा।” तो फिर तुम उसकी काट-छाँट करने की ठान लेती हो। मगर वह अपनी गलती नहीं मानती और कई तरह के बहाने बनाती है। तुम उससे नहीं डरती, तो उसके साथ संगति करना और काट-छाँट करना जारी रखती हो। वह कहती है, “जानती हो मैं कौन हूँ?” तो तुम जवाब देती हो, “इससे क्या फर्क पड़ता है कि तुम कौन हो?” वह कहती है : “मेरा पति तुम्हारे पति का बॉस है। अगर आज तुमने मेरे काम में टांग अड़ाई, तो तुम्हारे पति के साथ अच्छा नहीं होगा।” तुम कहती हो : “यह परमेश्वर के घर का कार्य है। अगर तुमने इसे सही से नहीं किया और रुकावटें पैदा करती रही, तो मैं तुम्हें कर्तव्य से बर्खास्त कर दूँगी।” तो वह कहती है, “जो भी हो, मैं तुम्हें इसका अंजाम बता चुकी हूँ। अब क्या फैसला करना है खुद देख लो!” “खुद देख लो” से उसका क्या मतलब है? वह तुम्हें बता रही है कि अगर तुमने उसे बर्खास्त किया, तो वह तुम्हारे पति को निकलवा देगी। ऐसे में, तुम सोचती हो, “इस औरत पर ताकतवर लोगों का हाथ है, तभी तो वह हमेशा अहंकार से बात करती है,” फिर तुम अपना लहजा बदलकर कहती हो : “ठीक है, इस बार मैं तुम्हें जाने देती हूँ, पर दोबारा ऐसा नहीं होगा! मेरी बातों को दिल पर मत लेना, ये सब मैं सिर्फ कलीसिया के कार्य की खातिर कर रही हूँ। हम सब परमेश्वर में विश्वास करने वाले भाई-बहन हैं, हम सब एक ही परिवार हैं। जरा सोचो, मैं कलीसिया अगुआ हूँ, तो मैं इसकी जिम्मेदारी कैसे न उठाऊँ? अगर मैं जिम्मेदार न होती, तो तुम लोग मुझे नहीं चुनते, है न?” तुम बात संभालने की कोशिश करने लगती हो। क्या इसके पीछे कोई सिद्धांत हैं? तुम्हारे दिल की गहराइयों में बनी रक्षात्मक दीवार गिर चुकी है, तुम सिद्धांतों पर टिकी नहीं रह पाई और उसके सामने झुक गई। ऐसा ही हुआ न? (बिल्कुल।) तो तुम उसे चेतावनी देकर छोड़ देती हो। तुम्हें शर्मिंदगी होती है कि तुम्हारी पहचान उसके जैसी कुलीन नहीं है, और उसका सामाजिक दर्जा तुमसे ऊँचा है, तो तुम उसे खुद पर काबू करने देती हो और उसकी बात मानती हो। भले ही तुम दोनों परमेश्वर में विश्वास करती हो, पर तुम खुद को उसके हाथों का खिलौना बनने देती हो। अगर तुम अपने सामाजिक दर्जे के प्रभाव से खुद को छुटकारा नहीं दिला सकती, तो तुम सिद्धांतों पर कायम नहीं रह पाओगी, सत्य का अभ्यास नहीं कर पाओगी, और परमेश्वर के प्रति वफादार नहीं होगी। अगर तुम परमेश्वर के प्रति वफादार नहीं रही, तो क्या वह तुम्हें स्वीकारेगा? क्या परमेश्वर तुम पर भरोसा करेगा? क्या वह तुम्हें कोई भी महत्वपूर्ण काम सौंपेगा? उसके लिए तुम भरोसे के लायक नहीं हो, क्योंकि तुमने एक महत्वपूर्ण मोड़ पर, अपने हितों की रक्षा करने के लिए परमेश्वर के घर के हितों को धोखा दे दिया। उस महत्वपूर्ण मोड़ पर, तुम शैतान और समाज की बुरी शक्तियों से डरकर पीछे हट गई, तुमने परमेश्वर के घर के हितों को ताक पर रख दिया और अपनी गवाही में अडिग रहने में नाकाम रही। यह एक गंभीर अपराध और परमेश्वर का सरासर अपमान है। ऐसा क्यों? क्योंकि ऐसा करके तुमने एक सृजित प्राणी की अपनी पहचान के साथ धोखा किया, और एक सृजित प्राणी द्वारा जो कार्य अपेक्षित है, उसके सिद्धांत का उल्लंघन किया। इस मामले से निपटते समय, तुमने अपने सामाजिक दर्जे और अपनी सामाजिक पहचान से खुद को प्रभावित होने दिया। किसी भी समस्या का सामना करते समय, अगर तुम अपने परिवार से विरासत में मिली पहचान के नकारात्मक प्रभावों से मुक्त नहीं हो सकती, तो तुम अप्रत्याशित चीजें करते हुए इन समस्याओं से निपटने की कोशिश करोगी। एक ओर, ये चीजें तुम्हें सत्य के खिलाफ जाने पर मजबूर करेंगी, तो वहीं दूसरी ओर, तुम्हें असमंजस की स्थिति में डाल देंगी, जहाँ तुम कोई फैसला नहीं कर पाओगी। यह रास्ता तुम्हें आसानी से अपराध करने और पछताने की ओर लेकर जाएगा, जिससे परमेश्वर के सामने तुम कलंकित हो जाओगी और तुम पर वफादार न होने का ठप्पा लग जाएगा, तुमने उन सिद्धांतों का उल्लंघन किया है जो परमेश्वर ने मानवजाति के लिए बनाए हैं, जो कि एक सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य अच्छे से निभाना और वह सब करना है जो एक सृजित प्राणी को करना चाहिए। जरा सोचो, यह बात भले ही मामूली लगती हो, मगर अपने आप में बेहद अहम भी है, है न? (बिल्कुल है।)

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