सत्य का अनुसरण कैसे करें (11) भाग तीन

अभी हमने इस मसले पर संगति की कि “लोगों को शादी का गुलाम नहीं बनना चाहिए,” और उन्हें शादी के बारे में अपने भ्रामक दृष्टिकोण त्यागने के लिए कहा। यानी, कुछ लोग सोचते हैं कि उन्हें अपनी शादी को बनाए रखना चाहिए और उसे टूटने या खत्म होने से बचाने के लिए हर मुमकिन कोशिश करनी चाहिए। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए वे कई समझौते करते हैं। अपनी शादी को बनाए रखने के लिए अपने कई सकारात्मक लक्ष्य त्याग देते हैं, और जानबूझकर अपनी शादी के गुलाम बन जाते हैं। ऐसे लोग शादी के अस्तित्व और परिभाषा को गलत ढंग से समझ बैठते हैं और शादी के प्रति उनका रवैया गलत होता है, इसलिए उन्हें ऐसे विचार और दृष्टिकोण त्याग देने चाहिए, ऐसी विकृत वैवाहिक स्थिति से दूर हो जाना चाहिए, शादी के प्रति सही नजरिया अपनाना चाहिए, और शादी में आने वाली इन समस्याओं से अच्छी तरह निपटना चाहिए—शादी के संबंध में यह तीसरी समस्या है जिससे लोगों को निजात पाना चाहिए। इसके बाद, हम शादी से जुड़ी चौथी समस्या पर संगति करेंगे : शादी तुम्हारी मंजिल नहीं है। यह भी एक समस्या है। क्योंकि हम इस समस्या पर संगति कर रहे हैं, तो यह लोगों की शादी में आज के हालात में एक प्रत्यक्ष समस्या है। यह सभी प्रकार की वैवाहिक परिस्थितियों में मौजूद है। लोग अपनी शादी के प्रति या जीवन जीने के तरीके में भी ऐसा रवैया रखते हैं, तो हम इस मसले पर संगति करके इसके बारे में सब कुछ स्पष्ट करेंगे। शादी के बाद कुछ महिलाओं को लगता है कि उन्हें आदर्श पति मिल गया है। उन्हें लगता है कि वे इस आदमी पर निर्भर रह और विश्वास कर सकती हैं, वह उनके जीवन मार्ग में एक मजबूत सहारा बन सकता है, और जब उन्हें उसकी जरूरत पड़ेगी तो वह मजबूत और भरोसेमंद साबित होगा। कुछ पुरुषों को लगता है कि उन्हें आदर्श पत्नी मिल गई है। वह सुंदर और सुशील, सौम्य और विचारशील, सच्चरित्र और समझदार है। उन्हें लगता है कि इस महिला के साथ वे एक स्थिर जीवन जी पाएँगे और उनके पास एक सुकून और स्नेह से भरा घर होगा। जब लोगों की शादी होती है, तो वे सभी अपने आपको भाग्यशाली और खुश समझते हैं। ज्यादातर लोग मानते हैं कि शादी के बाद उनका साथी उनके चुने हुए भविष्य के जीवन का प्रतीक है, और बेशक, इस जीवन में उनकी शादी ही उनकी मंजिल है। इसका क्या मतलब है? इसका मतलब है कि शादी करने वाला हर व्यक्ति शादी को अपनी मंजिल मानता है, और ऐसी शादी के बाद यही शादी उनकी मंजिल होती है। “मंजिल” का क्या मतलब है? इसका मतलब है एक आधार पाना। वे अपनी संभावनाओं, अपने भविष्य और अपनी खुशियों का जिम्मा अपनी शादी और अपने जीवनसाथी को सौंप देते हैं, और इसी वजह से शादी के बाद उन्हें लगता है कि अब उन्हें किसी और चीज की चाहत या चिंता नहीं होगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि वे सोचते हैं कि उन्हें अपनी मंजिल मिल चुकी है, और यह मंजिल उनका साथी और वह घर है जो उन्होंने उस व्यक्ति के साथ मिलकर बसाया है। चूँकि उन्हें अपनी मंजिल मिल गई है, तो उन्हें किसी और चीज का अनुसरण या आशा करने की जरूरत नहीं है। बेशक, शादी के प्रति लोगों के रवैये और दृष्टिकोण के हिसाब से यह वैवाहिक ढाँचे की स्थिरता के लिए फायदेमंद है। कम से कम, यदि किसी पुरुष या महिला के पास अपनी पत्नी या पति के रूप में विपरीत लिंग का एक निश्चित साथी होगा, तो उनका किसी और के साथ चक्कर नहीं चलेगा या कोई कामुक संबंध भी नहीं होगा। यह अधिकतर शादीशुदा जोड़ों के लिए फायदेमंद है। कम से कम, रिश्तों को लेकर उनके दिल शांत हो जाएँगे, वे एक ही इंसान के प्रति आकर्षित होंगे और जीवन के सामान्य परिवेश में अपनी पत्नी या पति के साथ स्थिरता से रहेंगे—यह एक अच्छी बात है। लेकिन, अगर शादी के बाद, कोई व्यक्ति शादी को ही अपनी मंजिल मान लेता है, और अपने सभी लक्ष्यों, जीवन के प्रति अपने नजरिए, अपने जीवन के मार्ग, और परमेश्वर की अपेक्षाओं को अपने खाली समय में की जाने वाली अनावश्यक चीजें मान लेता है, तो फिर बिना सोचे-विचारे अपनी शादी को ही अपनी मंजिल मान लेना अच्छी बात नहीं है, बल्कि इसके विपरीत यही चीज जीवन में उसके सही लक्ष्यों के अनुसरण, जीवन के प्रति उसके सही नजरिए और यहाँ तक कि उद्धार पाने की उसकी कोशिश के लिए एक अड़चन, रास्ते का रोड़ा और बाधा बन जाती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि शादी के बाद जब कोई अपने साथी को ही अपनी मंजिल और किस्मत मान लेता है, तो उसे लगता है कि उसके साथी की विभिन्न भावनाएँ, उसकी खुशियाँ और दुख-सुख, सब उसके अपने हैं, और उसकी अपनी खुशियाँ, दुख-सुख और विभिन्न भावनाएँ उसके साथी से जुड़ी हैं, और इस तरह उसके साथी का जीवन, मरण, खुशी और आनंद उसके अपने जीवन, मरण, खुशी और आनंद से जुड़ी है। इसलिए, इन लोगों की यह सोच कि उनकी शादी ही उनके जीवन की मंजिल है, यह उनके जीवन के मार्ग, सकारात्मक चीजों और उद्धार पाने की कोशिश को बहुत धीमा और निष्क्रिय बना देती है। अगर अपनी शादी में परमेश्वर का अनुसरण करने वाले व्यक्ति का साथी परमेश्वर का अनुसरण न करने का फैसला करता है, बल्कि सांसारिक चीज पाने के पीछे भागता है, तो परमेश्वर का अनुसरण करने वाले व्यक्ति पर इसका बहुत गंभीर प्रभाव पड़ेगा। उदाहरण के लिए, पत्नी का मानना है कि उसे परमेश्वर में विश्वास रखना और सत्य का अनुसरण करना चाहिए, और उसे अपनी नौकरी छोड़कर अपना कर्तव्य निभाना चाहिए, खुद को खपाना चाहिए, और परमेश्वर के घर में खुद को समर्पित कर देना चाहिए, जबकि उसका पति सोचता है, “परमेश्वर में विश्वास रखना अच्छी बात है, लेकिन हमें जीवन भी जीना है। अगर हम दोनों ही अपना कर्तव्य निभाएँगे, तो पैसे कौन कमाएगा? घर कौन चलाएगा? हमारे परिवार का भरण-पोषण कौन करेगा?” इस दृष्टिकोण के साथ वह नौकरी करते रहने और सांसारिक चीजों के पीछे भागते रहने का फैसला करता है; वह नहीं कहता कि उसे परमेश्वर में विश्वास नहीं है, और न ही यह कहता है कि वह उसका विरोध करता है। परमेश्वर में विश्वास करने वाली पत्नी हमेशा यही सोचती है, “मेरा पति मेरी मंजिल है। वह ठीक है तो मैं ठीक हूँ। अगर उसे कुछ होता है, तो मैं भी ठीक नहीं रहूँगी। हम एक ही रस्सी पर बैठी टिड्डियों जैसे हैं। हमारा सुख-दुख एक है, और हमारा जीना-मरना साथ है। वह जहाँ जाता है मैं भी वहीं जाती हूँ। लेकिन अब हमारे बीच अपना मार्ग चुनने को लेकर मतभेद होने लगे हैं और दरारें आने लगी हैं, तो फिर सामंजस्य कैसे बिठाया जाए? मैं परमेश्वर का अनुसरण करना चाहती हूँ, मगर उसे परमेश्वर पर आस्था में कोई दिलचस्पी नहीं है। अगर वह परमेश्वर में विश्वास नहीं करेगा, तो मैं भी अपनी आस्था में आगे नहीं बढ़ पाऊँगी और मेरा परमेश्वर का अनुसरण करने का मन नहीं होगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि शुरू से ही मैंने उसे अपना आसमान, अपनी किस्मत माना है। मैं उसे नहीं छोड़ सकती। अगर वह परमेश्वर में विश्वास नहीं करता, तो मैं भी नहीं करूँगी और अगर वह परमेश्वर में विश्वास करेगा तो हम दोनों करेंगे। अगर वह परमेश्वर में विश्वास नहीं करेगा, तो मुझे ऐसा लगेगा जैसे मुझमें कुछ कमी है, मानो मेरी आत्मा छीन ली गई हो।” वह हर वक्त इस बात को लेकर बेचैन और परेशान रहती है। वह अक्सर प्रार्थना करते हुए आशा करती है कि उसका पति परमेश्वर में विश्वास करने लगे। लेकिन वह कितनी भी प्रार्थना करे, उसके पति पर कोई असर नहीं पड़ता और वह परमेश्वर में विश्वास नहीं करता। वह बेचैन हो जाती है—उसे क्या करना चाहिए? जब वह कुछ नहीं कर पाती है, तो अपना इष्टतम प्रयास करती है; जब तक उसका पति घर पर होता है, तो वह उसे परमेश्वर के वचन पढ़ने के लिए लेकर जाती है। उसका पति परमेश्वर के वचन पढ़ता है और जब वह उन्हें बिना रुके पढ़ती है तो वह बिना कोई विरोध किए सुनता रहता है, लेकिन वह संगति में सक्रिय रूप से भाग नहीं लेता। चूँकि वे पति-पत्नी हैं तो वह उससे बहस नहीं करता है। जब उससे भजन गाना सीखने के लिए कहा जाता है, तो वह यही करता है और भजन गाना सीखता है, और सीखने के बाद यह नहीं बताता है कि उसने इसे पूरी तरह सीख लिया है या नहीं, उसे यह सब पसंद है या नहीं। जब उसे सभाओं में जाने के लिए कहा जाता है, तो कभी-कभी जब उसके पास थोड़ा खाली समय होता है, वह अपनी पत्नी के साथ सभा में जाता है, लेकिन आम तौर पर वह काम करने और पैसा कमाने में लगा रहता है। वह परमेश्वर में आस्था से जुड़ी किसी बात का जिक्र कभी नहीं करता, वह कभी किसी सभा में शामिल होने या कर्तव्य निभाने के लिए पहल नहीं करता है। संक्षेप में, वह इन सबके प्रति उदासीन रहता है। वह परमेश्वर में विश्वास का विरोध नहीं करता, लेकिन वह इसका समर्थन भी नहीं करता, और न ही वह इसके प्रति अपना रवैया जाहिर करता है। परमेश्वर में विश्वास करने वाली पत्नी यह सब दिल पर लेकर याद रखती है, और कहती है, “क्योंकि हम शादीशुदा जोड़ा हैं और हम दोनों एक परिवार हैं, तो अगर मैं राज्य में प्रवेश करती हूँ तो उसे भी करना चाहिए। अगर वह मेरी आस्था में मेरे साथ-साथ नहीं चलेगा, तो वह राज्य में प्रवेश नहीं कर पाएगा या उसे उद्धार प्राप्त नहीं होगा, और फिर मेरी भी जीने की इच्छा खत्म हो जाएगी और मैं मरना पसंद करूँगी।” भले ही वह अभी मरी नहीं है, लेकिन उसका दिल इस बात से चिंतित, दुखी और पीड़ित महसूस करता है, वह सोचती है, “अगर किसी दिन आपदाएँ आती हैं और उन आपदाओं में उसकी मौत हो जाती है, तो मेरा क्या होगा? इतनी बड़ी महामारी फैली है। अगर वह इसकी चपेट में आ गया, तो मैं जी नहीं पाऊँगी। वो यह नहीं कहता कि उसे परमेश्वर में मेरे विश्वास से कोई आपत्ति है, लेकिन अगर किसी दिन वाकई उसने ऐसा कह दिया कि वह नहीं चाहता मैं परमेश्वर में विश्वास करूँ, तो मैं क्या करूँगी?” उसे चिंता है कि जब वैसा समय आएगा, तो वह अपने पति की सुनेगी और परमेश्वर में विश्वास न करने का फैसला करके परमेश्वर को धोखा देगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि उसके दिल में, उसका पति ही उसकी आत्मा है, वही उसका जीवन है, और इससे भी बढ़कर, वही उसका आसमान और उसका सब कुछ है। उसके दिल में बसा उसका पति उससे सबसे अधिक प्यार करता है, और वह भी अपने पति से सबसे अधिक प्यार करती है। लेकिन अब वह उलझन में पड़ गई है : अगर उसका पति परमेश्वर में उसके विश्वास का विरोध करता है और उसकी प्रार्थनाओं का कोई फायदा नहीं होता, तब क्या होगा? वह इस बारे में बहुत चिंता करती है। जब उसे घर से दूर जाकर अपना कर्तव्य निभाना होता है, तो भले ही वह भी परमेश्वर के घर में अपना कर्तव्य निभाना चाहती है, मगर जब उसे पता चलता है कि अपना कर्तव्य निभाने के लिए उसे घर छोड़कर कहीं दूर जाना पड़ेगा, और उसे लंबे समय तक दूर रहना पड़ सकता है, तो उसे बहुत पीड़ा होती है। ऐसा क्यों? क्योंकि उसे चिंता है कि अगर वह घर छोड़ देगी तो उसके पति का ख्याल रखने वाला कोई नहीं होगा, उसे अपने पति की याद आएगी और उसकी चिंता सताती रहेगी। उसे उसकी परवाह होगी और वह उसके लिए तड़पेगी और उसे महसूस होगा कि वह उसके बिना नहीं जी सकती, वह अपने जीवन की दिशा और उम्मीद खो बैठेगी, और वह पूरे दिल से अपना कर्तव्य भी नहीं निभा पाएगी। अब, इस बारे में सोचते ही उसका दिल पीड़ा से भर जाता है कि कहीं ऐसा वाकई न हो जाए। इसलिए कलीसिया में, वह कभी किसी और जगह पर जाकर कर्तव्य निभाने के बारे में पूछने की हिम्मत नहीं करती है, या अगर कोई ऐसा काम आता है जिसमें किसी को लंबे समय के लिए दूर जाना पड़े और रात को घर से दूर सोना पड़े, तो वह कभी इस काम के लिए अपने कदम बढ़ाने या ऐसे किसी अनुरोध पर अपनी सहमति देने की हिम्मत नहीं कर पाती है। उससे जो बन पाता है वह करती है, अपने भाई-बहनों के लिए पत्र भेजती है, या कभी-कभी उनके लिए अपने घर पर सभाएँ आयोजित करती है, मगर कभी भी पूरे दिन अपने पति से दूर रहने की हिम्मत नहीं करती। अगर वास्तव में कोई विशेष परिस्थिति आती है और उसके पति को कारोबार के लिए दूसरी जगह जाना पड़ता है या वह कुछ दिनों के लिए बाहर रहता है, तो पति के घर छोड़ने से पहले दो-तीन दिन तक घर पर बैठी रोती रहती है, इतना अधिक रोती है कि उसकी आँखें टमाटर की तरह सूज जाती हैं। वह क्यों रोती है? उसे चिंता है कि कहीं विमान दुर्घटना में उसके पति की मौत न हो जाए और कहीं उसकी लाश तक का पता न चले, तो वह क्या करेगी? वह कैसे जिएगी और कैसे दिन गुजारेगी? उसका आसमान मिट चुका होगा, ऐसा लगेगा जैसे उसका दिल लुट चुका है। इस बारे में सोचते ही उसकी रूह काँप जाती है, और इसलिए इस बारे में सोच-सोचकर रोती रहती है। उसका पति अभी तक गया भी नहीं है और वह पहले ही दो-तीन दिनों से रोती जा रही है, और उसके वापस आने तक रोती रहती है, इतना अधिक रोती है कि उसका पति झल्लाकर कहता है, “क्या मुसीबत है? मैं अभी तक मरा भी नहीं और यह रोती जा रही है। मुझे मरने का शाप दे रही है क्या?” उसके हाथ में कुछ भी नहीं है, मगर वह बस रोती रहती है, कहती है, “मैं नहीं चाहती कि तुम कहीं दूर जाओ, मैं तुम्हें अपनी आँखों से ओझल नहीं होने देना चाहती।” वह अपनी किस्मत और मंजिल अपने पति के लिए दाँव पर लगा देती है जिसके साथ उसने शादी की है, और चीजों को करने का यह तरीका बेवकूफी हो या बचकाना, हर जगह ऐसे लोग होते हैं। ऐसी महिलाओं की संख्या ज्यादा है या पुरुषों की? (महिलाओं की।) ऐसा लगता है कि ऐसी महिलाओं की संख्या ज्यादा है, महिलाएँ थोड़ी कमजोर पड़ सकती हैं। पुरुषों और महिलाओं में से चाहे कोई भी किसी को छोड़े, क्या वे अभी भी जी सकते हैं? (क्यों नहीं।) कौन किसे छोड़ता है, क्या यह फैसला तुम्हारे हाथों में है? क्या तुम इसे तय कर सकते हो? (नहीं।) नहीं, तुम यह तय नहीं कर सकते, इसलिए तुम बेतुकी कल्पनाओं में डूबे रहते हो, रोते हो, और परेशान, दुखी और पीड़ित महसूस करते हो—क्या इन सब का कोई मतलब है? (नहीं।) इन लोगों को लगता है कि अपने साथी को देख पाने, उनका हाथ थामने और उनके साथ रहने का मतलब है कि उनके पास जीवन भर का सहारा है, जो उन्हें शांत रखेगा और दिलासा देगा। उन्हें लगता है कि उन्हें खाने या कपड़ों के बारे में सोचना नहीं होगा, कोई चिंता नहीं करनी पड़ेगी और उनका साथी ही उनकी मंजिल है। अविश्वासियों से जुड़ी एक कहावत है, “जीवन में तेरा साथ है तो मुझे और क्या चाहिए।” ये लोग अपनी शादी और अपने जीवनसाथी के बारे में दिल की गहराइयों से ऐसा ही महसूस करते हैं; जब उनका साथी खुश होता है तो वे खुश होते हैं, उनका साथी बेचैन होता है तो वे बेचैन होते हैं, और जब उनका साथी तकलीफ उठाता है तो वे भी तकलीफ महसूस करते हैं। अगर उनके साथी की मौत हो जाती है, तो वे भी और जीना नहीं चाहते। और अगर उनका साथी उन्हें छोड़कर किसी से प्यार करने लगे, तब वे क्या करते हैं? (वे जीना नहीं चाहते।) कुछ लोग जीना नहीं चाहते तो वे आत्महत्या कर लेते हैं, और कुछ अपना मानसिक संतुलन खो बैठते हैं। बताओ, यह सब क्या है? कैसा व्यक्ति अपना मानसिक संतुलन खो बैठता है? मानसिक संतुलन खो बैठना यह दर्शाता है कि उसे खुद पर काबू नहीं है। कुछ महिलाएँ अपने पति को अपने जीवन की मंजिल मानती हैं, और जब उन्हें ऐसा व्यक्ति मिल जाएगा, तो वे कभी किसी और से प्यार नहीं करेंगी—यह “जीवन में उसका साथ है तो मुझे और क्या चाहिए” वाली समस्या है। लेकिन उसका पति उसे निराश करता है, किसी और के प्यार में पड़ जाता है और अब उसे नहीं चाहता है। तो अंत में क्या होता है? फिर वह सभी पुरुषों से बेहद नफरत करने लगती है। जब उसके सामने कोई दूसरा आदमी आता है तो वह उस पर थूकना चाहती है, उसे गालियाँ देना और पीटना चाहती है। वह हिंसक बन जाती है, और अपना विवेक खो देती है। कुछ महिलाएँ ऐसी भी हैं जो वाकई पागल हो जाती हैं। जो लोग शादी को सही ढंग से नहीं समझते हैं तो उनका यही नतीजा होता है।

ये लोग शादी को अपनी खुशी की कामयाब तलाश का प्रतीक, अपने जीवन की मंजिल और वह लक्ष्य मानते हैं जिसके सपने वे काफी समय से देखते आए हैं और वह अब जाकर पूरा हुआ है। शादी उनके जीवन का अंतिम लक्ष्य है, और शादी को लेकर उनका लक्ष्य बस अपने साथी के साथ जीवन बिताना, साथ-साथ बूढ़ा होना और जीना-मरना होता है। उनकी शादी ही उनकी मंजिल है, इस सोच और विचार को सही ठहराने के लिए वे शादीशुदा जीवन में कई ऐसी चीजें करते हैं जो तार्किकता और व्यक्ति की जिम्मेदारियों के दायरे से परे होती हैं। ये चीजें जो व्यक्ति की जिम्मेदारियों के दायरे से परे हैं उनमें अतिवादी चीजें शामिल होती हैं, जिससे वे अपनी ईमानदारी, अपनी गरिमा और अपने लक्ष्य खो बैठते हैं। उदाहरण के लिए, वे अक्सर इस बात पर नजर रखते हैं कि आज उनका साथी किसके साथ था, वह बाहर जाकर क्या करता है, क्या वह किसी और पुरुष या महिला के संपर्क में आया, और क्या उसने किसी और पुरुष या महिला से बातचीत की या दोस्ताना संबंध बनाए जो दोस्ती के दायरे से कहीं आगे हों। कुछ लोग अपने प्रति अपने साथी के रवैये को भाँपने और छानबीन करने में बहुत समय देते हैं ताकि पता चल सके कि क्या वे अपने साथी के मन में बसते हैं और क्या उनका साथी अब भी उनसे प्यार करता है। कुछ ऐसी महिलाएँ भी हैं जो अपने पति के घर आने पर उनके कपड़े सूँघती हैं, देखती हैं कि कहीं उन पर किसी दूसरी महिला के बाल तो नहीं उलझे हैं, कहीं उनकी कमीज पर किसी और महिला की लिप्स्टिक के निशान तो नहीं हैं। वे अपने पतियों के फोन भी जाँचती हैं कि कहीं उनमें किसी अनजान महिला का नंबर तो नहीं है, वे तो यह भी देखती हैं कि उनके पतियों के पास कितने फोन हैं, वे किससे जुड़े हुए हैं, और हर दिन जब किसी को फोन करते हैं तो वे क्या सच कहते हैं। उदाहरण के लिए, एक महिला अपने पति को फोन करके पूछती है, “तुम कहाँ हो? क्या कर रहे हो?” उसका पति जवाब देता है, “मैं काम पर हूँ, कागजात की जाँच कर रहा हूँ।” फिर वह कहती है, “जो कागजात देख रहे हो उनकी एक फोटो लेकर मुझे भेजो।” उसका पति उसकी बात मानता है, और फिर वह पूछती है, “तुम्हारे साथ दफ्तर में और कौन है?” वह जवाब देता है, “सिर्फ मैं ही हूँ।” वह कहती है, “क्या तुम मुझे वीडियो कॉल कर सकते हो, मुझे देखना है कि तुम्हारे साथ दफ्तर में और कौन है?” वह उसे वीडियो कॉल करता है और उसकी पत्नी को कोई महिला वहाँ से जाती हुई दिखती है, तो वह कहती है “तुम झूठ बोल रहे हो, वो महिला कौन है?” वह कहता है, “वो तो सफाई वाली है।” फिर वह कहती है, “अच्छा, ठीक है।” इसके बाद जाकर उसे राहत मिलती है। ऐसी महिलाएँ अपने पतियों के फोन, उनके पते-ठिकाने जाँचती हैं और यह भी कि वे दिन भर क्या करते रहते हैं। उन्हें अपनी शादी से बहुत सारी उम्मीदें होती हैं और उनके मन में काफी असुरक्षा की भावना भी होती है। बेशक, उनमें अपने जीवनसाथी पर काबू रखने की भी तीव्र इच्छा होती है। क्योंकि उन्हें यकीन है कि उनका जीवनसाथी ही उनकी मंजिल है और उन्हें जीवन भर अपने जीवनसाथी के साथ ही रहना चाहिए, इसी वजह से वे अपनी शादी में कोई चूक नहीं होने देती हैं या कोई दरार नहीं आने देती हैं; छोटी-मोटी खामियाँ या परेशानियाँ भी नहीं आने देती हैं—वे ऐसा होने नहीं दे सकतीं। इसलिए, वे अपनी ज्यादातर ऊर्जा अपने जीवनसाथी पर नजर रखने, उसके मन के विचार जानने, उसकी गतिविधियों और ठौर-ठिकानों के बारे में पूछताछ करने और उन्हें काबू करने में लगाती हैं। खासकर जब उनके जीवनसाथी का किसी से कोई प्रेम संबंध हो, तो वे यह बर्दाश्त नहीं करती हैं। वे तमाशा खड़ा कर देती हैं, इधर-उधर भटकती हैं, रोती हैं, परेशानी खड़ी करती हैं, और खुदखुशी करने की धमकी भी देती हैं। कुछ तो अपनी परेशानियों को सभाओं में लेकर जाती हैं और भाई-बहनों के साथ रणनीतियों पर चर्चा कर कहती हैं “वह मेरा पहला प्यार है, मैं उससे बेहद प्यार करती हूँ। मैंने अपने जीवन में कभी किसी और आदमी का हाथ तक नहीं पकड़ा है या किसी और को छुआ भी नहीं है। वही मेरा अकेला आदमी है, वही मेरा आसमान है, और यह जीवन मैं उसी के साथ बिताऊँगी। अगर वह किसी और के साथ भाग गया तो यह बात मेरे गले नहीं उतर सकती।” कोई उससे कहता है, “गले नहीं उतरने का क्या मतलब है? जो हो चुका है क्या तुम उसे बदल सकती हो? दूसरों को तुम्हारे पति की यह प्रवृत्ति बहुत पहले ही दिख गई थी।” वह जवाब देती है, “चाहे पहले से उसकी यह प्रवृत्ति थी या नहीं, मगर जो हुआ उसे मैं स्वीकार नहीं सकती। अब उसे सजा देने और उसकी रखैल को मेरी जगह लेने से रोकने का उपाय सुझाने में कौन मेरी मदद करेगा?” देखा तुमने, वह इतनी परेशान है कि अपनी समस्याओं का जिक्र सभा में करके उन पर संगति करना चाहती है। क्या यह संगति है? यह अनुचित टिप्पणियाँ करना, नकारात्मक संदेश देना और नकारात्मक जानकारी फैलाना है। यह तुम्हारा अपना मामला है, और चाहे तुम घर जाकर दरवाजा बंद करके उसे मारो-पीटो और बहस करो, यह सब तुम्हारा अपना मामला है, मगर तुम्हें अपनी समस्याओं का जिक्र सभाओं में नहीं करना चाहिए। अगर तुम सभा में आकर सत्य खोजना चाहती हो, तो तुम कह सकती हो, “मेरे साथ ऐसा हुआ है, तो मैं इस स्थिति से कैसे बाहर निकलूँ और उसके आगे बेबस न होने के लिए क्या करूँ? मैं परमेश्वर में अपनी आस्था और अपने कर्तव्य निर्वहन को इस मसले से प्रभावित होने से कैसे रोक सकती हूँ?” तुम्हारा सत्य की तलाश करना तो ठीक है, लेकिन तुम्हें सभा में जाकर अपने घरेलू विवादों के बारे में बातें नहीं करनी चाहिए। तुम्हें ऐसा क्यों नहीं करना चाहिए? क्योंकि शादी के बारे में गलत समझ होने के कारण ही तुम इस समस्या का सामना कर रही हो और आज खुद को अपने जीवन की मौजूदा परिस्थितियों में घिरा पाती हो। फिर तुम इन विवादों और उनके नतीजों का जिक्र भाई-बहनों के सामने करके उन पर संगति करना चाहती हो; इससे न सिर्फ दूसरों पर बुरा प्रभाव पड़ता है, बल्कि तुम्हें भी कोई फायदा नहीं होता। तुम अपने विवादों के बारे में बात करती हो, मगर ज्यादातर लोग सत्य नहीं समझते और उनके पास कोई आध्यात्मिक कद नहीं है, तो फिर वे सिर्फ नई तरकीबें लगाने और विवादों पर चर्चा करने के अलावा तुम्हारी कोई और मदद नहीं कर पाते हैं। वे न केवल सकारात्मक प्रवेश पाने में तुम्हारी मदद नहीं कर पाते हैं, बल्कि इसके विपरीत वे चीजों को बदतर बनाकर समस्या को अधिक गंभीर और जटिल बना देते हैं। ज्यादातर लोग भ्रमित होते हैं और वे सत्य या परमेश्वर के इरादों को नहीं समझते हैं—क्या ऐसे लोग तुम्हें लाभकारी और मूल्यवान सलाह दे सकेंगे? कोई कहता है, “कानून की नजरों में तुम हमेशा उसकी पत्नी रहोगी। बुराई कभी भी न्याय पर विजय नहीं पा सकती।” क्या यह सच है? (नहीं।) कोई और कहता है, “उसकी रखैल के लिए रास्ता ही मत छोड़ो, फिर देखना वह तुम्हारी जगह कैसे लेती है!” क्या यह सच है? (नहीं।) लोगों की ऐसी बातें सुनकर क्या तुम्हें खुशी मिलती है, या इनसे तुम्हें गुस्सा आता है? क्या वे ऐसी चीजें तुम्हें और गुस्सा दिलाने के लिए कहते हैं या फिर इसलिए कि तुम सत्य समझो और अभ्यास का मार्ग अपनाओ? कोई और कहता है, “मैं अच्छी तरह समझता हूँ। आजकल अच्छे आदमियों की कमी है। पैसे वाला आदमी बिगड़ जाता है।” क्या यह सच है? (नहीं।) और फिर कोई कहता है, “तुम्हें इसे बर्दाश्त नहीं करना चाहिए। तुम्हें उस रखैल को दिखाना होगा कि वह तुम्हें इतनी आसानी से नहीं हटा सकती। उसे दिखाओ कि बॉस कौन है। वह जहाँ काम करती है वहाँ जाकर सबको उसकी असलियत बता दो, बखेड़ा खड़ा कर दो और कहो कि वह तुम्हारे पति की रखैल है। उसकी कानूनी पत्नी तुम हो और सब तुम्हारा ही साथ देंगे, उसका नहीं। उसे अपना रास्ता नापने को मजबूर कर दो।” क्या यह सत्य है? (नहीं।) क्या ये बातें ज्यादातर लोगों की भ्रामक समझ नहीं हैं? (बिल्कुल हैं।) कोई और थोड़े संकोच के साथ कहता है, “वह जीवन भर तुम्हारे साथ रहा है, तुम अब तक उससे ऊब नहीं गई हो? अगर वह किसी और के साथ रहना चाहता है तो रहने दो। जब तक वह पैसे कमाकर घर लाता है और तुम्हारे पास खाने-पीने की चीजें मौजूद हैं, तो क्या यह काफी नहीं है? तुम्हें खुश रहना चाहिए, और फिर वह तुम्हें हमेशा परेशान नहीं करेगा। अगर वह अक्सर घर आता रहता है और इसे अपना घर मानता है, तो क्या इतना काफी नहीं है? तुम्हें किस बात का गुस्सा है? तुम असल में इसका फायदा उठा रही हो।” यह सुनने में भले ही अच्छा लगता हो, लेकिन क्या यह सच है? (नहीं।) क्या कोई सभ्य व्यक्ति ऐसी बातें कहेगा? (नहीं।) अगर यह सब क्लेश पैदा करने या टकराव बढ़ाने के लिए नहीं है, तो यह चीजों को शांत करने और सिद्धांतों से हटकर समझौता करने के लिए है। क्या यहाँ एक भी शब्द ऐसा है जो यह दर्शाता हो कि पत्नी को इस मामले के प्रति कैसा रवैया अपनाना चाहिए, वह रवैया जो सही हो और सत्य के अनुरूप भी हो? (नहीं।) क्या अधिकतर लोग इस तरह की बातें नहीं कहते? (बिल्कुल कहते हैं।) इससे क्या साबित होता है? (ज्यादातर लोग बहुत भ्रमित हैं और उनके सुझाव मददगार नहीं होते हैं।) ज्यादातर लोग बहुत भ्रमित हैं, वे सत्य का अनुसरण नहीं करते, न ही वे सत्य समझते हैं। जो भी हो, वे नहीं समझते कि सत्य क्या है, और न ही वे यह समझते हैं कि मनुष्य से परमेश्वर की क्या अपेक्षाएँ हैं। साफ तौर पर कहें, तो जहाँ तक शादी का सवाल है, लोगों को यह समझ ही नहीं आता कि शादी के बारे में परमेश्वर के वचनों और परिभाषा के संदर्भ में, उन्हें शादी में आने वाली समस्याओं को परमेश्वर के इरादों के अनुरूप कैसे हल करना चाहिए और कैसे गुस्से से काम नहीं लेना चाहिए।

चाहे तुम किसी भी समस्या का सामना करो, वह कोई बड़ी समस्या हो या छोटी, तुम्हें हमेशा परमेश्वर के वचनों को अपना आधार और सत्य को अपनी कसौटी मानकर ही उससे निपटना चाहिए। तो फिर, शादी में सामने आने वाली इन समस्याओं के संबंध में परमेश्वर के वचनों का आधार क्या है? सत्य की कसौटी क्या है? तुम्हारा जीवनसाथी तुम्हारी शादी के प्रति वफादार नहीं है, तो यह उसकी समस्या है। लेकिन तुम उसकी समस्या का असर शादी के बारे में अपने सही रवैये और जिम्मेदारी की भावना पर पड़ने नहीं दे सकती। अपराधी वह है, पर तुम उसके अपराधों के कारण शादी के प्रति तुम्हारा जो रवैया होना चाहिए उसे प्रभावित नहीं होने दे सकती। तुम उसे अपनी मंजिल मानती हो, लेकिन यह सिर्फ तुम्हारी सोच है, असलियत यह नहीं है। परमेश्वर को कभी ऐसी अपेक्षा नहीं थी या उसने ऐसा निर्धारित नहीं किया था। दरअसल तुम ही स्नेह में आकर, मानवीय इच्छा के कारण, और अधिक सटीक रूप से कहें, तो इंसानी गुस्से के कारण उसे अपनी मंजिल, अपना जीवनसाथी मानने पर जोर देती हो। ऐसा मानने पर जोर देना गलत है। इससे फर्क नहीं पड़ता कि तुम पहले क्या मानती थीं, हर हाल में तुम्हें अब अपनी सोच बदलनी होगी और यह देखना होगा कि परमेश्वर लोगों से कौन-सी सही सोच और रवैया अपनाने को कहता है। जब तुम्हारा साथी तुमसे बेवफाई करे, तो तुम्हें क्या करना चाहिए? तुम्हें झगड़ा करके मुसीबत मोल नहीं लेनी चाहिए, न ही बखेड़ा खड़ा करके जमीन पर लोटना चाहिए। तुम्हें समझना चाहिए कि ऐसा होने से आसमान नहीं टूट पड़ता, न ही अपनी मंजिल पाने का तुम्हारा सपना टूटता है, और बेशक इसका मतलब यह भी नहीं है कि अब तुम्हारी शादी खत्म हो जाएगी और टूट जाएगी, और इसका यह मतलब तो बिल्कुल नहीं है कि तुम्हारी शादी विफल हो गई या अब इसका कोई हल ही नहीं निकल सकता। दरअसल, सभी लोगों के स्वभाव भ्रष्ट हैं, और चूँकि लोग दुष्ट प्रवृत्तियों और संसार के आम तौर-तरीकों से प्रभावित होते हैं और उनमें खुद को इन दुष्ट प्रवृत्तियों से बचाए रखने की क्षमता भी नहीं है, तो लोग गलतियाँ करने से नहीं बच पाते हैं, बेवफाई करते हैं, अपनी शादी से भटक जाते हैं, और अपने जीवनसाथी को निराश करते हैं। अगर तुम इस परिप्रेक्ष्य से इस समस्या पर गौर करो, तो यह कोई इतनी बड़ी बात नहीं है। सभी शादीशुदा लोगों के परिवार संसार के आम परिवेश और समाज की दुष्ट प्रवृत्तियों और आम तौर-तरीकों से प्रभावित होते हैं। एक व्यक्ति के परिप्रेक्ष्य से देखें, तो लोगों में यौन इच्छाएँ होती हैं, और इसके अलावा वे फिल्मों और टेलीविजन नाटकों में दिखने वाले पुरुषों और महिलाओं के प्रेम संबंधों और समाज में मौजूद पोर्नोग्राफी जैसी चीजों से प्रभावित होते हैं। लोगों के लिए उन सिद्धांतों का पालन करना मुश्किल हो जाता है जिनका पालन उन्हें करना चाहिए। दूसरे शब्दों में, लोगों के लिए नैतिक आधार बनाए रखना मुश्किल हो जाता है। यौन इच्छा की सीमाएँ आसानी से टूट जाती हैं; यौन इच्छा अपने आप में भ्रष्ट चीज नहीं है, पर लोगों के स्वभाव भ्रष्ट हैं, और क्योंकि लोग ऐसे सामान्य परिवेश में रहते हैं, तो जब महिला-पुरुष संबंधों की बात आती है तो वे आसानी से गलतियाँ कर बैठते हैं, और तुम्हें यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए। भ्रष्ट स्वभाव वाला कोई भी व्यक्ति ऐसे सामान्य परिवेश में लालच या प्रलोभन मिलने पर अडिग नहीं रह पाता है। मनुष्य की यौन इच्छा कभी भी और कहीं भी उमड़ सकती है, और लोग कभी भी और कहीं भी बेवफाई कर सकते हैं। ऐसा इसलिए नहीं कि यौन इच्छा में ही कोई समस्या है, बल्कि इसलिए कि लोगों में ही कुछ गड़बड़ है। लोग अपनी यौन इच्छाओं के नाम पर ऐसी चीजें करते हैं जिससे वे अपनी नैतिकता, सदाचार और ईमानदारी खो देते हैं; जैसे कि बेवफाई करना, प्रेम संबंध बनाना, और रखैल रखना वगैरह। इसलिए परमेश्वर में विश्वास करने वाला व्यक्ति होने के नाते अगर तुम इन चीजों पर सही ढंग से विचार कर सकते हो, तो तुम्हें इनसे विवेकशील ढंग से निपटना चाहिए। तुम एक भ्रष्ट मनुष्य हो और वह भी एक भ्रष्ट मनुष्य है, इसलिए तुम्हें सिर्फ इस कारण उससे अपने जैसा बनने और वफादार रहने को नहीं कहना चाहिए कि तुम अपनी शादी के प्रति वफादार हो, तुम्हें उससे कभी बेवफाई न करने की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए। ऐसा कुछ होने पर तुम्हें सही तरीके से इसका सामना करना चाहिए। ऐसा क्यों? हर किसी को ऐसे माहौल या लालच का सामना करने का मौका मिलता है। तुम अपने जीवनसाथी पर बाज की तरह नजर रख सकती हो पर इससे कुछ होगा नहीं, और तुम जितने करीब से उस पर नजर रखोगी, उतनी ही जल्दी और तेजी से ऐसी घटना घटेगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि सभी भ्रष्ट स्वभाव के हैं, हर कोई दुष्ट समाज के इस सामान्य परिवेश में रहता है, और बहुत कम लोग ही हैं जो व्यभिचारी नहीं होते। केवल अपनी स्थिति या हालात से ही वे ऐसा होने से बचे हुए हैं। ऐसी बहुत कम ही चीजें हैं जिनमें इंसान जानवरों से बेहतर है। कम से कम, एक जानवर स्वाभाविक रूप से अपनी यौन प्रवृत्ति पर प्रतिक्रिया करता है, लेकिन इंसान ऐसा नहीं करते हैं। मनुष्य सोच-समझकर व्यभिचार और अनाचार में लिप्त हो सकते हैं—केवल लोग ही व्यभिचार में लिप्त हो सकते हैं। इसलिए इस दुष्ट समाज के आम परिवेश में न केवल अविश्वासी बल्कि लगभग सभी लोग ऐसी चीजें करने में सक्षम हैं। यह एक निर्विवाद तथ्य है, और कोई इस समस्या से नहीं बच सकता। चूँकि ऐसी चीज किसी के साथ भी हो सकती है, तो फिर तुम अपने पति के साथ ऐसा होने क्यों नहीं देती? वास्तव में ऐसा होना बहुत आम बात है। क्योंकि तुम उसके साथ भावनात्मक रूप से जुड़ी हुई हो, इसलिए जब वह तुम्हें छोड़कर चला जाता है, तो तुम इस झटके से उबर नहीं पाती और यह सब बर्दाश्त नहीं कर पाती हो। अगर ऐसा किसी और के साथ हुआ होता, तो तुम बस व्यंग्यपूर्ण ढंग से मुस्कुराते हुए सोचती, “यह तो आम बात है। क्या समाज में सभी लोग ऐसे ही नहीं हैं?” वो कहावत है न? बाहर से “कई लोगों में दिलचस्पी रखने” के बारे में? (अपने साथी को छोड़कर दूसरे में दिलचस्पी लेना।) ये सब संसार की दुष्ट प्रवृत्तियों से जुड़े लोकप्रिय शब्द और बातें हैं। यह एक आदमी के लिए सराहनीय बात है। अगर कोई आदमी अपने साथी में दिलचस्पी बनाए रखता है और बाहर किसी में दिलचस्पी नहीं रख पाता, तो इससे पता चलता है कि उस आदमी में कोई क्षमता नहीं है और लोग उस पर हँसेंगे। इसलिए, जब किसी महिला के साथ कुछ ऐसा होता है, तो वह बखेड़ा खड़ा कर सकती है, जमीन पर लोट सकती है, गुस्सा उतार सकती है, रो-रोकर मुसीबत खड़ी कर सकती है, और यह सब होने के कारण खाना-पीना छोड़ सकती है, उसमें मर जाने, खुद को फाँसी लगाने और खुदकुशी करने की इच्छा हो सकती है। कुछ महिलाएँ गुस्से में अपना मानसिक संतुलन भी खो बैठती हैं। यह साफ तौर पर शादी के प्रति उसके रवैये से संबंधित है, और बेशक इसका सीधा संबंध उसके इस विचार से भी है कि “उसका जीवनसाथी ही उसकी मंजिल है।” महिला मानती है कि शादी तोड़कर उसके पति ने उसके जीवन की मंजिल की जिम्मेदारी और बेहतरीन महत्वाकांक्षा को नष्ट कर दिया है। क्योंकि पहले उसके पति ने ही उनकी शादी के संतुलन को बिगाड़ा, उसने ही पहले नियम तोड़े, उसका साथ छोड़ा, शादी की कसमें तोड़ीं और उसके सुंदर सपने को बुरा सपना बना दिया, इसलिए वह खुद को इस तरह से व्यक्त कर ऐसा अतिवादी व्यवहार कर रही है। अगर लोग शादी के बारे में परमेश्वर से मिली सही समझ को अपनाएँगे, तो वे कुछ हद तक विवेकशील व्यवहार कर पाएँगे। जब सामान्य लोगों के साथ ऐसी चीजें होती हैं, तो वे दुखी होते हैं, रोते हैं, और उन्हें पीड़ा होती है। लेकिन जब वे शांत होकर परमेश्वर के वचनों पर विचार करेंगे, तो समाज के सामान्य परिवेश के बारे में सोचेंगे, और फिर उस वास्तविक स्थिति के बारे में सोचेंगे कि सभी भ्रष्ट स्वभाव के हैं, तो वे इस मामले से विवेकशील ढंग से और सही तरीके से निपटेंगे, और वे हड्डी पर चिपके कुत्ते की तरह इस पर अड़े रहने के बजाय इसे भुला देंगे। “भुला देंगे” से मेरा क्या मतलब है? मेरे कहने का मतलब है कि क्योंकि तुम्हारे पति ने तुम्हारे साथ ऐसा किया है और तुम्हारी शादी के प्रति बेवफाई की है, तो तुम्हें इस तथ्य को स्वीकार लेना चाहिए और उसके साथ बैठकर बात करनी चाहिए, उससे पूछना चाहिए, “तुम क्या चाहते हो? अब हम क्या करेंगे? हमें अपनी शादी बनाए रखनी चाहिए या इसे तोड़कर अपने-अपने रास्ते चलना चाहिए?” बस बैठकर उससे बात करो; लड़ने या मुसीबत खड़ी करने की कोई जरूरत नहीं है। अगर तुम्हारा पति शादी तोड़ने को कहता है, तो कोई बड़ी बात नहीं है। अविश्वासी अक्सर कहते हैं, “समुद्र में बहुत सारी मछलियाँ हैं,” “आदमी बसों की तरह होते हैं—जल्द ही कोई और आ जाएगा,” और वह दूसरी कहावत भी है न? “एक पेड़ के चक्कर में पूरा जंगल मत गँवाओ।” और यह पेड़ सिर्फ भद्दा ही नहीं है बल्कि अंदर से सड़ा हुआ भी है। क्या ये कहावतें सही हैं? अविश्वासी इन कहावतों से खुद को दिलासा देते हैं, लेकिन क्या इनका सत्य से कोई लेना-देना है? (नहीं।) तो सही सोच और दृष्टिकोण क्या होना चाहिए? जब तुम्हारे साथ ऐसा कुछ हो, तो सबसे पहले तुम्हें गुस्सा नहीं होना चाहिए, तुम्हें अपने गुस्से पर काबू कर कहना चाहिए, “आओ, शांति से बैठकर बात करते हैं। तुम क्या करने की सोच रहे हो?” वह कहता है, “मैं इस शादी को बनाए रखने की कोशिश करना चाहता हूँ।” और फिर तुम कहती हो, “अगर ऐसा है तो कोशिश जारी रखते हैं। अब और प्रेम संबंध मत बनाना, एक पति की जिम्मेदारियाँ निभाना, और हम बीती बात भूलकर एक नई शुरुआत कर सकते हैं। लेकिन अगर तुम ऐसा नहीं कर सकते, तो हम अलग हो जाएँगे और अपने-अपने रास्ते चले जाएँगे। शायद परमेश्वर ने निर्धारित किया हो कि हमारी शादी यहीं खत्म हो जानी चाहिए। अगर ऐसा है, तो मैं उसकी व्यवस्था के प्रति समर्पण के लिए तैयार हूँ। तुम चौड़े रास्ते पर चल सकते हो, मैं परमेश्वर में आस्था के मार्ग पर चलूँगी, और फिर हम एक दूसरे को प्रभावित नहीं करेंगे। मैं तुम्हारे मामलों में टाँग नहीं अड़ाऊँगी, और तुम भी मुझे बेबस नहीं करोगे। मेरी किस्मत तुम्हारे हाथों में नहीं है और तुम मेरी मंजिल नहीं हो। मेरी किस्मत और मेरी मंजिल परमेश्वर के हाथों में है। इस जीवन में कौन-सा पड़ाव मेरा आखिरी पड़ाव होगा, और वही मेरी मंजिल होगी—यह मुझे परमेश्वर से पूछना चाहिए, वह सब जानता है, वह संप्रभुता रखता है, और मैं उसके आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होना चाहती हूँ। जो भी हो, अगर तुम मेरे साथ इस शादी को नहीं बनाए रखना चाहते हो, तो हम शांति से अलग हो जाएँगे। भले ही मेरे पास कोई विशेष कौशल नहीं है और यह परिवार आर्थिक रूप से तुम्हारे ऊपर निर्भर है, फिर भी मैं तुम्हारे बिना जी सकती हूँ, और मैं अच्छे से रहूँगी। परमेश्वर एक गौरैया को भी भूखा नहीं रहने देता, तो वह मेरे लिए, एक जीवित इंसान के लिए कितना कुछ करेगा। मेरे हाथ-पैर हैं, मैं अपना ध्यान खुद रख सकती हूँ। तुम्हें चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। अगर परमेश्वर ने यह निर्धारित किया है कि मैं तुम्हारे साथ के बिना जीवन भर अकेली रहूँगी, तो मैं समर्पण करने को तैयार हूँ, और इस तथ्य को बिना किसी शिकायत के स्वीकारना चाहती हूँ।” क्या ऐसा करना अच्छी बात नहीं है? (बिल्कुल है।) अच्छी बात है, है न? बहस और झगड़ा करने की कोई जरूरत नहीं, और इस बात को लेकर निरंतर मुसीबत खड़ी करने की जरूरत तो बिल्कुल नहीं है, ताकि सबको इसका पता चल जाए—इन सबकी कोई जरूरत नहीं। शादी किसी और का नहीं, बल्कि तुम्हारा और तुम्हारे पति का निजी मामला है। अगर शादी में कोई विवाद उत्पन्न होता है, तो तुम दोनों को साथ मिलकर इसे सुलझाना होगा, और इसके नतीजे भुगतने होंगे। परमेश्वर के विश्वासी होने के नाते, तुम्हें नतीजे की परवाह किए बिना परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करना चाहिए। बेशक, जब शादी की बात आती है, तो चाहे कैसी भी दरारें आएँ या नतीजे कैसे भी हों, तुम्हारी शादी बनी रहे या नहीं, तुम अपनी शादी में एक नए जीवन की शुरुआत कर पाते हो या नहीं, या तुम्हारी शादी उसी मुकाम पर टूट जाए, तुम्हारी शादी तुम्हारी मंजिल नहीं है, और न ही तुम्हारा जीवनसाथी तुम्हारी मंजिल है। परमेश्वर ने उसका तुम्हारे जीवन और अस्तित्व में आना निर्धारित किया था, ताकि वह तुम्हारे जीवन के मार्ग में तुम्हारा साथ दे सके। अगर वह पूरे रास्ते तुम्हारा साथ दे पाता है और अंत तक तुम्हारे साथ चलता रहता है, तो इससे बेहतर और कुछ नहीं है, और तुम्हें परमेश्वर के अनुग्रह के लिए धन्यवाद करना चाहिए। अगर शादी के दौरान कोई समस्या आती है, चाहे दरारें आती हैं या तुम्हारी पसंद के विरुद्ध कुछ होता है, जिसकी वजह से तुम्हारी शादी टूट जाती है, तो इसका मतलब यह नहीं कि अब तुम्हारे पास कोई मंजिल नहीं है, अब तुम्हारा जीवन अंधकार में पड़ गया है, आगे कोई रोशनी नहीं है, और अब तुम्हारा कोई भविष्य नहीं है। यह भी हो सकता है कि तुम्हारी शादी का टूटना तुम्हारे लिए एक शानदार जीवन की शुरुआत हो। यह सब परमेश्वर के हाथों में है, और सब आयोजन और व्यवस्था परमेश्वर ही करेगा। ऐसा हो सकता है कि शादी टूटने से तुम्हें इसकी गहरी समझ मिले और तुम बेहतर मूल्यांकन कर पाओ। बेशक, तुम्हारी शादी का टूटना तुम्हारे जीवन के लक्ष्यों और दिशा के लिए और जिस मार्ग पर तुम चलते हो उसके लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ हो सकता है। यह तुम्हें मनहूस यादें देकर नहीं जाएगा, और यह दर्दनाक यादें तो बिल्कुल नहीं देगा, न ही यह पूरी तरह नकारात्मक अनुभव और नतीजे देगा, बल्कि इससे तुम्हें सकारात्मक और सक्रिय अनुभव मिलेंगे जो तुम्हें अभी तक शादी में बने रहने से शायद नहीं मिल पाते। अगर तुम्हारी शादी बनी रहती, तो शायद तुम अपने आखिरी समय तक हमेशा यही सादा, औसत दर्जे का और नीरस जीवन जीती रहती। लेकिन, अगर तुम्हारी शादी खत्म होकर टूट जाती है, तो जरूरी नहीं कि यह कोई खराब बात हो। इससे पहले तुम अपनी शादी की खुशी और जिम्मेदारियों के साथ ही अपने जीवनसाथी के प्रति अपनी भावनाओं या जीवन जीने के तरीकों की चिंता करने, उसकी देखभाल करने, उसका ख्याल रखने, उसकी परवाह करने और उसके बारे में फिक्र करने को लेकर बेबस महसूस करती थी। लेकिन, तुम्हारी शादी टूटने के दिन से ही तुम्हारे जीवन की सभी परिस्थितियाँ, जीवन जीने के तुम्हारे लक्ष्य और अनुसरण के तरीके पूरी तरह से बदल जाते हैं, और ऐसा कहना सही होगा कि तुममें यह बदलाव तुम्हारी शादी टूटने के कारण ही आया है। ऐसा हो सकता है कि यह परिणाम, बदलाव और परिवर्तन परमेश्वर द्वारा तुम्हारे लिए निर्धारित की गई शादी से और उस शादी को खत्म करने के लिए रास्ता दिखाकर परमेश्वर तुम्हें जो हासिल कराना चाहता है उसकी वजह से आया हो। भले ही तुम्हें पीड़ा हुई है और तुमने एक पेचीदा मार्ग अपनाया है, और भले ही तुमने अपनी शादी के ढाँचे में कुछ अनावश्यक त्याग और समझौते किए हैं, लेकिन अंत में तुम्हें जो हासिल होता है वह वैवाहिक जीवन में रहकर हासिल नहीं किया जा सकता। इसलिए, चाहे जो भी हो, इस विचार और दृष्टिकोण को त्याग देना ही सही है कि “शादी ही तुम्हारी मंजिल है।” चाहे तुम्हारी शादी बनी रहती है या उसमें दरारें आती हैं, या तुम्हारी शादी टूटने के कगार पर पहुँच जाती है या वह पहले ही टूट चुकी है, किसी भी परिस्थिति में, शादी अपने आपमें तुम्हारी मंजिल नहीं है। लोगों को यह बात समझनी चाहिए।

लोगों को यह विचार और दृष्टिकोण नहीं पालना चाहिए कि “शादी ही व्यक्ति की मंजिल है।” यह विचार और दृष्टिकोण तुम्हारी स्वतंत्रता और जीवन में अपना मार्ग चुनने के अधिकार के रास्ते में एक बड़ा खतरा है। “खतरे” से मेरा क्या मतलब है? मैंने यह शब्द क्यों इस्तेमाल किया? मेरे कहने का मतलब है कि जब भी तुम कोई फैसला करते हो, या जब भी तुम कुछ कहते हो या किसी दृष्टिकोण को अपनाते हो, अगर यह तुम्हारे वैवाहिक सुख या तुम्हारी शादी की अखंडता से जुड़ा है, या अगर यह तुम्हारा साथी ही तुम्हारी मंजिल और तुम्हारा अंतिम सहारा होने से जुड़ा है, तो तुम्हारे हाथ-पैर बंध जाएँगे, और तुम बेहद सतर्क और सावधान हो जाओगे। अनजाने में, इस तरह तुम्हारी स्वतंत्र इच्छा, जीवन में अपना मार्ग चुनने का तुम्हारा अधिकार, और साथ ही सकारात्मक चीजों की खोज और सत्य का अनुसरण करने का तुम्हारा अधिकार, सभी इस विचार और दृष्टिकोण से बाधित हो जाएँगे और छिन जाएँगे, और इस वजह से तुम धीरे-धीरे परमेश्वर के समक्ष आना कम कर दोगे। परमेश्वर के समक्ष आना कम कर देने का क्या अर्थ है? उद्धार पाने की तुम्हारी इच्छा धीरे-धीरे कम हो जाएगी और तुम्हारे जीवन की परिस्थितियाँ दयनीय, दुखी, अँधकारमय और घिनौनी हो जाएँगी। ऐसा क्यों? ऐसा इसलिए है क्योंकि तुमने अपनी सभी उम्मीदों, अपेक्षाओं, जीवन के लक्ष्यों और दिशा को अपने उस जीवनसाथी से जोड़ लिया है जिससे तुमने शादी की थी, और तुम उसे अपना सब कुछ मानते हो। क्योंकि तुम अपने साथी को ही अपना सब कुछ मानते हो, इसी वजह से वह तुम्हारे सभी अधिकार छीन लेता है, तुम्हारी दृष्टि को भ्रमित और बाधित कर देता है, तुमसे तुम्हारी ईमानदारी और गरिमा, सामान्य सोच और विवेक छीन लेता है, और वह तुमसे परमेश्वर में विश्वास करने और जीवन में सही मार्ग पर चलने के अधिकार, सही नजरिया अपनाने का अधिकार, और उद्धार पाने की कोशिश करने का अधिकार भी छीन लेता है। इसी के साथ, तुम्हारे इन सभी अधिकारों पर तुम्हारे जीवनसाथी का नियंत्रण और शासन होता है, और इसलिए मैं कहता हूँ कि ऐसे लोग दयनीय, घृणित और घटिया जीवन जीते हैं। जिस पल से ऐसे किसी व्यक्ति का जीवनसाथी किसी बात को लेकर थोड़ा दुखी महसूस करने लगता है या किसी तरह से असहज होता है, कहता है कि उसका दिल ठीक महसूस नहीं कर रहा है, तो वे इतना डर जाते हैं कि कई दिनों तक न खाना खा पाते हैं और न ही सो पाते हैं और यहाँ तक कि वे आँसुओं की बाढ़ लेकर प्रार्थना के लिए परमेश्वर के समक्ष आते हैं—उन्हें अपने जीवन में पहले कभी किसी बात को लेकर इतनी परेशानी या चिंता नहीं हुई थी, वे वाकई बहुत दुखी हैं—जैसे ही ऐसा कुछ होता है, तो लगता है जैसे उन्हें मौत आने वाली है। ऐसा क्यों? ऐसा इसलिए क्योंकि वे मानते हैं कि आकाश टूटने वाला है, उनसे उनका सहारा छीन लिया जाएगा, यानी वे कहीं के नहीं रहेंगे। वे यह नहीं मानते कि व्यक्ति का जीना-मरना सृष्टिकर्ता के हाथों में है, और उन्हें इस बात का बहुत डर होता है कि परमेश्वर उनसे उनका जीवनसाथी छीन लेगा, और वे अपना जीवनसाथी, अपना सहारा, अपना आसमान और अपनी आत्मा भी खो देंगे—यह जीने का कितना विद्रोही तरीका है। परमेश्वर ने तुम्हें शादी की देन दी, और जैसे ही तुम्हें तुम्हारा सहारा और साथी मिला, तुमने परमेश्वर को भुला दिया, अब तुम्हें परमेश्वर नहीं चाहिए। तुम्हारा साथी ही तुम्हारा परमेश्वर, तुम्हारा प्रभु और तुम्हारा सहारा बन गया है। यह सरासर विश्वासघात है और परमेश्वर के खिलाफ इससे बड़ा विद्रोह और कुछ नहीं हो सकता है। कुछ ऐसे लोग भी हैं जिनका जीवनसाथी अगर थोड़ा गुस्सा हो जाए या बीमार पड़ जाए, तो वे इतने डर जाते हैं कि कई दिनों तक सभाओं में नहीं आते। वे किसी से कुछ नहीं कहते और न ही किसी और को अपना कर्तव्य सौंपकर जाते हैं, वे बस गायब हो जाते हैं मानो हवा में उड़ गए हों। उन्हें सबसे ज्यादा चिंता सिर्फ अपने जीवनसाथी के जीने-मरने की होती है और वे जीवन में सबसे अधिक उसी की परवाह करते हैं, और उनके लिए इससे जरूरी कुछ और नहीं हो सकता—यह उनके लिए परमेश्वर, परमेश्वर के आदेश और अपने कर्तव्य से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है। ऐसे लोग अपनी वह पहचान, मूल्य और अहमियत खो देते हैं जो सृजित प्राणी के रूप में परमेश्वर के समक्ष उनकी होनी चाहिए, और परमेश्वर उनसे घृणा करता है। परमेश्वर ने तुम्हें एक स्थिर जीवन और एक जीवनसाथी बस इसलिए दिया है ताकि तुम बेहतर जीवन जी सको और तुम्हारा ख्याल रखने वाला कोई हो, जो तुम्हारे साथ खड़ा हो, इसलिए नहीं कि तुम परमेश्वर और उसके वचनों को ही भूल जाओ या जीवनसाथी पाने के बाद अपना कर्तव्य निभाने के दायित्व या जीवन में उद्धार पाने के लक्ष्य को त्यागकर सिर्फ अपने जीवनसाथी के लिए जियो। अगर तुम वाकई ऐसा करते हो, इसी तरह से जीते हो, तो मैं उम्मीद करता हूँ कि तुम जल्द-से-जल्द अपना रास्ता बदलोगे। चाहे कोई तुम्हारे लिए कितना ही जरूरी क्यों न हो, या वह तुम्हारे जीवन, तुम्हारी आजीविका या जीवन के मार्ग में कितना ही महत्व रखता हो, वह तुम्हारी मंजिल नहीं हैं, क्योंकि वह सिर्फ एक भ्रष्ट मनुष्य है। परमेश्वर ने तुम्हारे लिए तुम्हारे मौजूदा जीवनसाथी की व्यवस्था की है और तुम उसके साथ जीवन बिता सकते हो। अगर परमेश्वर का मन बदल जाता है और वह तुम्हारे लिए कोई और जीवनसाथी निर्धारित करता है, तब भी तुम अच्छी तरह जी सकते हो, और इसलिए तुम्हारा मौजूदा जीवनसाथी ही तुम्हारा सब कुछ नहीं है और वह तुम्हारी मंजिल भी नहीं है। तुम्हारी मंजिल सिर्फ परमेश्वर के हाथों में है, और समस्त मानवजाति की मंजिल परमेश्वर के हाथों में ही है। अपने माँ-बाप को छोड़ने के बाद भी तुम जिंदा रह सकते हो और जीवन बिता सकते हो, और बेशक अपने जीवनसाथी को छोड़ने के बाद भी तुम उतना ही अच्छा जीवन जी सकते हो। तुम्हारी मंजिल न तो तुम्हारे माँ-बाप हैं और न ही तुम्हारा जीवनसाथी। सिर्फ इसलिए कि तुम्हारे पास एक साथी है जिसे तुम अपनी आत्मा, अपना मन और अपना शरीर सौंप सकते हो, जीवन की सबसे महत्वपूर्ण चीजों को मत भूलो। अगर तुम परमेश्वर को भूल जाते हो, यह भूल जाते हो कि उसने तुम्हें क्या जिम्मेदारी सौंपी है, उस कर्तव्य को भूल जाते हो जो एक सृजित प्राणी को निभाना चाहिए, और अपनी पहचान को भुला देते हो, तो तुम अपनी अंतरात्मा और विवेक पूरी तरह से खो दोगे। चाहे तुम्हारा जीवन आज कैसा भी है, तुम शादीशुदा हो या नहीं हो, सृष्टिकर्ता के सामने तुम्हारी पहचान कभी नहीं बदलेगी। कोई व्यक्ति तुम्हारी मंजिल नहीं हो सकता, और तुम खुद को किसी और के हाथों में नहीं सौंप सकते। सिर्फ परमेश्वर ही तुम्हें एक उपयुक्त मंजिल दे सकता है, मानवजाति का जीवन सिर्फ परमेश्वर के हाथों में है, और यह कभी नहीं बदलेगा। समझ गए? (हाँ।)

शादी के विषय पर अपनी संगति हम यहीं समाप्त करेंगे। अगर तुम लोग अपने विचार, दृष्टिकोण या अपनी भावनाएँ व्यक्त करना चाहते हो, तो अभी करो। (मेरे दृष्टिकोण और विचार यही हुआ करते थे कि शादी ही व्यक्ति की मंजिल है। अगर मेरा जीवनसाथी मुझसे बेवफाई करता, तो मुझे बहुत निराशा होती और मैं जी नहीं पाती। मैंने कुछ भाई-बहनों से सुना है कि उन्होंने भी ऐसा अनुभव किया है, और इस तरह के हालात का सामना करना बहुत दुखदायी था। लेकिन आज, परमेश्वर की संगति सुनकर मैं इस मामले में सही रवैया अपना सकती हूँ। सबसे पहले, परमेश्वर ने यह बताया है कि इस दुष्ट समाज में, लोग दूसरे लोगों, घटनाओं और बाहरी दुनिया की चीजों के बहकावे में आकर आसानी से गलतियाँ कर सकते हैं, तो अब मैं इन चीजों को समझ सकती हूँ। दूसरी बात, हमें अपने जीवनसाथी के प्रति सही रवैया अपनाना चाहिए। हमारे जीवन की मंजिल हमारा जीवनसाथी नहीं है। सिर्फ परमेश्वर ही हमारे जीवन की मंजिल है, और केवल परमेश्वर पर भरोसा करके ही हम वास्तव में जीवित रह सकते हैं। मुझे लगता है कि अब मुझे इस बारे में कुछ नई समझ मिली है।) बहुत बढ़िया। सत्य से संबंधित जिन सभी दृष्टिकोणों और रवैयों पर हम संगति करते हैं, उनका मकसद लोगों को सभी प्रकार के विकृत, गलत और नकारात्मक विचार और दृष्टिकोणों को निकाल फेंकने में सक्षम बनाना है; फिर, उन बातों पर संगति की जाती है ताकि जब लोगों के सामने ऐसी समस्या आए, तो उनके पास सही विचार और दृष्टिकोण हों, अभ्यास का सही मार्ग हो, ताकि वे भटकें नहीं और फिर कभी शैतान के हाथों गुमराह न हों और उसके काबू में न आएँ; उन बातों पर इसलिए संगति की जाती है ताकि लोग अतिवादी चीजें न करें, ताकि वे सभी चीजों को परमेश्वर से आया मानकर स्वीकार सकें, सभी चीजों में परमेश्वर की व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित हो सकें, और सच्चे सृजित प्राणी बन सकें। यही जीने का सही तरीका है। ठीक है, आज के लिए हम अपनी संगति यहीं रोकते हैं। फिर मिलेंगे!

4 फ़रवरी 2023

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