सत्य का अनुसरण कैसे करें (10) भाग चार

अब जब शादीशुदा लोगों की विकृत समझ और अभ्यासों की समस्या पर हमारी संगति खत्म हो गई है, तो आओ अब इस विषय पर संगति करें, “वैवाहिक सुख के पीछे भागना तुम्हारा मकसद नहीं है।” लोगों का शादी से जुड़ी तमाम फंतासियों को त्यागने का मतलब बस इतना है कि अब उनके पास शादी की अवधारणा और परिभाषा के संबंध में कुछ सही समझ और विचार हैं जो काफी हद तक सत्य के अनुरूप हैं; हालाँकि, इसका मतलब यह नहीं है कि वे शादी से संबंधित अपने लक्ष्यों, आदर्शों और इच्छाओं को पूरी तरह से त्यागने में सक्षम हैं। जहाँ तक शादीशुदा लोगों की बात है, वे अपने वैवाहिक सुख को कैसे बनाए रखते हैं? यह कहा जा सकता है कि बहुत से लोगों का वैवाहिक सुख के प्रति सही रवैया नहीं होता, या वे वैवाहिक सुख और मनुष्य के मकसद के बीच संबंध को सही ढंग से समझने में असमर्थ होते हैं। क्या यह भी एक समस्या नहीं है? (हाँ, बिल्कुल है।) शादीशुदा लोग हमेशा शादी को जीवन की एक प्रमुख घटना मानते हैं और शादी पर बहुत जोर देते हैं। इसलिए वे अपने जीवन की सारी खुशियाँ अपने शादीशुदा जीवन और अपने जीवनसाथी को सौंप देते हैं, वे मानते हैं कि वैवाहिक सुख के पीछे भागना ही इस जीवन का एकमात्र लक्ष्य है। यही वजह है कि कई लोग वैवाहिक सुख के लिए बहुत प्रयास करते हैं, बड़ी कीमत चुकाते हैं और बड़े त्याग भी करते हैं। उदाहरण के लिए, मान लो किसी की शादी होती है, और अपने साथी को आकर्षित करने के लिए, अपनी शादी और अपने प्यार को “तरोताजा” बनाए रखने के लिए वह बहुत सी चीजें करता है। कोई महिला कहती है, “पुरुष के दिल का रास्ता उसके पेट से होकर गुजरता है,” और इसलिए वह अपनी माँ या बड़ों से खाना बनाना, बढ़िया व्यंजन और पेस्ट्री बनाना, और ऐसी हर तरह की चीजें बनाना सीखती है जो उसके पति को पसंद है, और वह उसके लिए स्वादिष्ट और रुचिकर भोजन बनाने की पूरी कोशिश करती है। जब उसका पति भूखा होता है, तो वह उसके बढ़िया व्यंजनों के बारे में सोचता है, फिर वह घर के बारे में सोचता है, उसे याद करता है, और फिर जल्दी घर चला आता है। इस तरह उसे अक्सर घर में अकेला नहीं रहना पड़ता, बल्कि अक्सर उसका पति उसके पास होता है, और इसलिए उसे लगता है कि अपने पति के पेट के रास्ते उसके दिल तक पहुँचने के लिए कुछ जायकेदार व्यंजन बनाना सीखना बहुत जरूरी है। क्योंकि यह वैवाहिक सुख को बरकरार रखने का एक तरीका है और क्योंकि यही वह कीमत है जो एक महिला को चुकानी चाहिए और अपनी वैवाहिक सुख की खातिर उसे जिम्मेदारी निभानी चाहिए, तो वह इस तरह से अपनी शादी को बनाए रखने के लिए कड़ी मेहनत करती है। कुछ महिलाएँ अपनी शादी को लेकर असुरक्षित महसूस करती हैं, और वे अक्सर अपने पतियों को खुश, आकर्षित और प्रेरित करने के लिए कई पैंतरे आजमाती हैं। उदाहरण के लिए, इस तरह की महिला अक्सर अपने पति से पूछेगी कि क्या उसे याद है कि उनके प्यार की शुरुआत कब हुई थी, वे पहली बार कब मिले थे, उनकी शादी की सालगिरह कब है, और ऐसी ही कुछ अन्य अहम तारीखें कौन सी हैं। अगर उसके पति को ये सब याद है, तो उसे लगता है कि वह उससे प्यार करता है, वह उसके दिल में बसती है। अगर उसे ये सब याद नहीं रहता तो वह नाराज होकर शिकायत करती है, “तुम्हें इतनी खास तारीख भी याद नहीं। क्या तुम अब मुझसे प्यार नहीं करते?” देखा तुमने, अपने जीवनसाथी को आकर्षित करने, उसका ध्यान खींचने और अपनी वैवाहिक सुख बरकरार रखने के निरंतर प्रयास में, महिला-पुरुष दोनों ही अपने साथी को प्रेरित करने के लिए सांसारिक पैंतरे आजमाते हैं, और वे सभी बेतुकी और बचकानी चीजें करते हैं। कुछ महिलाएँ ऐसी भी हैं जो कोई भी कीमत चुकाएँगी, फिर चाहे यह उनकी सेहत के लिए हानिकारक ही क्यों न हो। उदाहरण के लिए, तीस साल से अधिक उम्र की कुछ महिलाएँ जब यह देखती हैं कि उनकी त्वचा अब उतनी कोमल और गोरी-चिट्टी नहीं रही, और उनके चेहरे अब उतने चमकदार और सुंदर नहीं रहे, तो वे फेसलिफ्ट कराती हैं या हाइलूरोनिक एसिड का इंजेक्शन लगवाती हैं। कुछ महिलाएँ ज्यादा सुंदर दिखने के लिए डबल आइलिड सर्जरी कराती हैं और अपनी भौहों पर टैटू बनवाती हैं, वे अक्सर अपने पतियों को आकर्षित करने के लिए बहुत सुंदर और कामुक तरीके से सजती हैं, और वे ऐसी रोमांटिक चीजें करना भी सीखती हैं जो दूसरे अपने वैवाहिक सुख को बनाए रखने के लिए करते हैं। उदाहरण के लिए, किसी खास दिन ऐसी महिला मोमबत्तियों और रेड वाइन के साथ एक शानदार डिनर तैयार कर सकती है। फिर जब उसका पति घर आता है, तो वह बत्तियाँ बुझा देती है और उसकी आँखें बंद करके पूछती है, “आज कौन सा दिन है?” उसका पति काफी देर तक अंदाजा लगाने की कोशिश करता है, पर सोच नहीं पाता कि आज क्या खास दिन है। वह मोमबत्तियाँ जलाती है और जब उसका पति आँखें खोलता है तो पता चलता है कि आज उसी का जन्मदिन है और वह कहता है, “अरे, कितना अद्भुत है! मैं तुमसे बेइंतहा प्यार करता हूँ! मुझे खुद अपना जन्मदिन याद नहीं था। तुम्हें मेरा जन्मदिन याद रहा, तुम बहुत प्यारी हो!” तब पत्नी बेहद खुश होती है। अपने पति के इन चंद शब्दों से ही वह संतुष्ट और सहज महसूस करती है। पुरुष और महिलाएँ दोनों अपनी वैवाहिक सुख को बनाए रखने के तरीकों के बारे में सोचने में अपना दिमाग लगाते हैं। पत्नी बड़े बदलाव और त्याग करती है, बहुत समय खपाती और कोशिश करती है, और पति भी वही करता है, कड़ी मेहनत करता है और दुनिया में जाकर पैसे कमाता है, अपना बटुआ भरता है, और अपनी पत्नी को बेहतर से बेहतर जीवन देने के लिए ढेर सारे पैसे घर लाता है। अपनी वैवाहिक सुख बनाए रखने के लिए वह दूसरों से भी सीखता है और अपनी पत्नी के लिए गुलाब, जन्मदिन के उपहार, क्रिसमस के उपहार और वेलेंटाइन डे पर चॉकलेट वगैरह खरीदता है, और उसे खुश करने के तरीकों के बारे में सोचने में अपना दिमाग लगाता है, वह ये छोटी-छोटी चीजें करने का भरसक प्रयास करता है। और फिर एक दिन वह अपनी नौकरी से हाथ धो बैठता है और अपनी पत्नी को बताने की हिम्मत नहीं करता, डरता है कि वह उसे तलाक दे देगी या उनकी शादी पहले की तरह खुशहाल नहीं रहेगी। तो वह हर दिन काम पर जाने और समय पर काम खत्म करने का दिखावा करते हुए काम की तलाश में जगह-जगह जाकर नौकरी के लिए आवेदन भरता है। जब पगार का दिन आता है और उसे कोई पैसे नहीं मिलते तो वह क्या करता है? वह अपनी पत्नी को खुश करने के लिए हर किसी से उधार लेता है और कहता है, “देखो, मुझे इस महीने 2,000 युआन का बोनस मिला है। अपने लिए कुछ अच्छा खरीद लो।” उसकी पत्नी को असलियत की भनक भी नहीं होती, और वह सच में जाकर कुछ विलासिता की चीजें खरीद लाती है। उसका मन चिंता से भर जाता है और उसे लगता है कि अब कोई रास्ता नहीं बचा है, और उसकी चिंता बढ़ती जाती है। चाहे पुरुष हो या महिला, वे सभी अपनी वैवाहिक सुख बनाए रखने के लिए कई कदम उठाते हैं और बहुत समय खपाते और प्रयास करते हैं, यहाँ तक कि वे अपनी सूझबूझ के विरुद्ध जाकर भी काम करते हैं। इतना समय खपाने और कोशिश करने के बावजूद इसमें शामिल लोगों को नहीं पता होता कि इन चीजों का सही तरीके से सामना कैसे करें या उन्हें कैसे संभालें, यहाँ तक कि अपनी वैवाहिक सुख को बनाए रखने के लिए वे अपना दिमाग दौड़ाते हैं और दूसरों का अध्ययन कर उनसे सीखते और राय लेते हैं। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो परमेश्वर में विश्वास करने के बाद अपना कर्तव्य और परमेश्वर के घर से मिला आदेश स्वीकारते हैं, मगर जब कर्तव्य निभाने का समय आता है तो वे अपनी वैवाहिक सुख और संतुष्टि बरकरार रखने के चक्कर में बहुत पीछे रह जाते हैं। उन्हें मूल रूप से किसी दूर जगह जाकर सुसमाचार प्रचार करना था, जिसमें वे हफ्ते में एक बार या लंबे अंतराल के बाद घर लौटते या वे घर छोड़कर अपनी विभिन्न काबिलियत और परिस्थिति के अनुसार पूरे समय अपना कर्तव्य निभा सकते थे, मगर वे डरते हैं कि उनका जीवनसाथी उनसे नाराज हो जाएगा, उनकी शादी खुशहाल नहीं रहेगी या फिर उनकी शादी ही टूट जाएगी, तो अपनी वैवाहिक सुख को बनाए रखने के लिए वे अपना बहुत सारा समय गँवा देते हैं जो उन्हें अपना कर्तव्य निभाने में लगाना चाहिए था। खास तौर पर जब वे अपने जीवनसाथी को शिकायत करते या नाखुश होते या रोते देखते हैं, तो अपनी शादी को बचाए रखने के लिए और भी सतर्क हो जाते हैं। वे अपने जीवनसाथी को संतुष्ट करने के लिए हर संभव प्रयास और अपनी शादी को खुशहाल बनाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं, ताकि यह टूटने न पाए। बेशक, इससे भी अधिक गंभीर बात यह है कि कुछ लोग अपने वैवाहिक सुख को बरकरार रखने के लिए परमेश्वर के घर की पुकार को ठुकराकर अपना कर्तव्य निभाने से इनकार कर देते हैं। जब उन्हें अपना कर्तव्य निभाने के लिए घर छोड़ देना चाहिए, तब क्योंकि वे अपने जीवनसाथी से अलग होना बर्दाश्त नहीं कर सकते या क्योंकि उनके जीवनसाथी के माँ-बाप परमेश्वर में उनके विश्वास का विरोध करते हैं और उनके नौकरी छोड़कर कर्तव्य निभाने के लिए घर छोड़ने का विरोध करते हैं, तो वे समझौता करके अपना कर्तव्य त्याग देते हैं, और इसके बजाय अपनी वैवाहिक सुख और अपनी शादी की अखंडता बनाए रखने का फैसला करते हैं। अपने वैवाहिक सुख और अपनी शादी की अखंडता बनाए रखने के लिए, और अपनी शादी को टूटकर खत्म होने से बचाने के लिए, वे सिर्फ विवाहित जीवन में अपनी जिम्मेदारियों और दायित्वों को पूरा करने और एक सृजित प्राणी के मकसद को त्यागने का रास्ता चुनते हैं। तुम्हें इसका एहसास नहीं होता, परिवार या समाज में तुम्हारी भूमिका कुछ भी हो—चाहे वह पत्नी, पति, बच्चे, माता-पिता, कर्मचारी या कुछ और भूमिका हो—और चाहे वैवाहिक जीवन में तुम्हारी भूमिका महत्वपूर्ण हो या न हो, परमेश्वर के सामने तुम्हारी एक ही पहचान है और वह एक सृजित प्राणी के रूप में है। परमेश्वर के सामने तुम्हारी कोई दूसरी पहचान नहीं है। इसलिए, जब परमेश्वर का घर तुम्हें बुलाता है, यही वह समय है जब तुम्हें अपना मकसद पूरा करना चाहिए। यानी, एक सृजित प्राणी के रूप में, ऐसा नहीं है कि तुम्हें अपना मकसद सिर्फ तभी पूरा करना चाहिए जब तुम्हारे वैवाहिक सुख और तुम्हारी शादी की अखंडता को बनाए रखने की शर्त पूरी हो, बल्कि ऐसा है कि अगर तुम एक सृजित प्राणी हो, तो परमेश्वर ने जो मकसद तुम्हें सौंपा है, तुम्हें उसे बिना शर्त पूरा करना चाहिए; परिस्थिति चाहे जो भी हो, परमेश्वर द्वारा तुम्हें सौंपे गए मकसद को प्राथमिकता देना हमेशा तुम पर निर्भर करता है, जबकि शादी के जरिए तुम्हें सौंपे गए मकसद और जिम्मेदारियों को निभाना अधिक महत्वपूर्ण नहीं है। एक सृजित प्राणी के रूप में तुम्हें जो भी मकसद पूरा करना चाहिए, जो परमेश्वर ने तुम्हें सौंपा है, वह किसी भी स्थिति में और किसी भी परिस्थिति में हमेशा तुम्हारी सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। इसलिए तुम अपने वैवाहिक सुख को चाहे कितना भी बरकरार रखना चाहो या तुम्हारी वैवाहिक स्थिति चाहे कैसी भी हो या तुम्हारा साथी तुम्हारी शादी के लिए चाहे कितनी भी बड़ी कीमत चुकाता हो, इनमें से कोई भी उस मकसद को ठुकराने का कारण नहीं है जो परमेश्वर ने तुम्हें सौंपा है। यानी तुम्हारी शादी चाहे कितनी भी खुशहाल क्यों न हो या इसकी अखंडता कितनी भी मजबूत क्यों न हो, एक सृजित प्राणी के रूप में तुम्हारी पहचान नहीं बदलती है और, इस तरह, परमेश्वर तुम्हें जो मकसद सौंपता है तुम सबसे पहले उसे पूरा करने के लिए बाध्य हो, और इससे कोई शर्त नहीं जुड़ी है। तो, जब परमेश्वर तुम्हें तुम्हारा मकसद सौंपे, जब तुम्हारे पास एक सृजित प्राणी का कर्तव्य और मकसद हो, तो तुम्हें एक सुखी विवाह के अपने लक्ष्य को और एक अटूट शादी को बनाए रखने की कोशिश को त्याग देना चाहिए, तुम्हें अपनी पहली प्राथमिकता परमेश्वर को और उसके घर से मिले मकसद को बना लेना चाहिए, और बेवकूफी नहीं करनी चाहिए। वैवाहिक सुख को बरकरार रखना एक ऐसी जिम्मेदारी है जिसे तुम पति या पत्नी के नाते शादी के ढाँचे के भीतर निभाते हो; यह सृष्टिकर्ता के सामने किसी सृजित प्राणी की जिम्मेदारी या मकसद नहीं है, इसलिए तुम्हें अपना वैवाहिक सुख बरकरार रखने के लिए सृष्टिकर्ता द्वारा सौंपे गए मकसद को नहीं त्यागना चाहिए, न ही तुम्हें इतनी सारी मूर्खतापूर्ण, ओछी और बचकानी हरकतें करनी चाहिए जिनका पति या पत्नी होने की जिम्मेदारियों से कोई लेना-देना नहीं है। तुम्हें बस परमेश्वर के वचनों और उसकी अपेक्षाओं के अनुरूप पति या पत्नी के रूप में अपनी जिम्मेदारियों और दायित्वों को पूरा करना है—यानी, परमेश्वर के सबसे शुरुआती निर्देशों के अनुसार काम करना चाहिए। कम से कम, तुम्हें पति या पत्नी की जिम्मेदारियों को सामान्य मानवता की अंतरात्मा और विवेक से पूरा करना चाहिए, और यही काफी है। जहाँ तक तथाकथित “पुरुष के दिल का रास्ता उसके पेट से होकर गुजरता है” या रोमांस या लगातार सभी प्रकार की सालगिरह मनाने, या दो लोगों की दुनिया, या “एक दूसरे का हाथ पकड़ना और साथ-साथ बूढ़े होना” या “मैं तुम्हें हमेशा वैसे ही प्यार करता रहूँगा जैसे आज करता हूँ,” और ऐसी कई और बेतुकी चीजों की बात है, ये एक सामान्य महिला-पुरुष की जिम्मेदारियाँ नहीं हैं। बेशक, अधिक सटीक होकर कहें, तो ये चीजें सत्य का अनुसरण करने वाले किसी व्यक्ति की शादी के ढाँचे के भीतर की जिम्मेदारियाँ और दायित्व नहीं हैं। ये जीवन जीने के तरीके और जीवन लक्ष्य ऐसी चीजें नहीं हैं जिनमें सत्य का अनुसरण करने वाला कोई व्यक्ति संलग्न रहे, इसलिए तुम्हें सबसे पहले इन नीरस, मूर्खतापूर्ण, बचकानी, सतही, घृणित और बेकार कहावतों, दृष्टिकोणों और अभ्यासों को अपने मन से पूरी तरह त्याग देना चाहिए। अपनी शादी को बिगड़ने मत दो, वैवाहिक सुख की अपनी चाहत को अपने हाथ-पैरों, विचारों और कदमों पर ऐसा हावी मत होने दो कि तुम खुद ही बचकाने, मूर्ख, अशिष्ट और दुष्ट बन जाओ। सुखी विवाहित जीवन की ये सांसारिक चाहतें ऐसे दायित्व और जिम्मेदारियाँ नहीं हैं जिन्हें सामान्य विवेक वाले किसी व्यक्ति को पूरा करना चाहिए, बल्कि ये चीजें पूरी तरह से इस दुष्ट संसार और भ्रष्ट मानवजाति से विकसित हुई हैं और सभी लोगों की मानवता और विचारों पर विनाशकारी प्रभाव डालती हैं। वे तुम्हारे मन को पतित करेंगी, तुम्हारी मानवता को विकृत करेंगी, और तुम्हारे विचारों को दुष्ट, जटिल, अराजक और यहाँ तक कि अतिवादी बना देंगी। उदाहरण के लिए, कुछ महिलाएँ दूसरे पुरुषों को रोमांटिक होते, अपनी शादी की सालगिरह पर अपनी पत्नियों को गुलाब देते, या अपनी पत्नियों को शॉपिंग के लिए बाहर ले जाते या उन्हें गले लगाते या उनके गुस्सा या नाराज होने पर उन्हें कुछ खास उपहार देते या उन्हें खुश करने के लिए चकित करते हुए देखती हैं। अगर तुम इन कहावतों और अभ्यासों को स्वीकार कर लोगी, तो तुम भी चाहोगी कि तुम्हारा साथी ये चीजें करे, तुम भी उस तरह का जीवन और उस तरह का व्यवहार चाहोगी, और इस तरह तुम्हारी सूझ-बूझ की भावना असामान्य हो जाएगी और ऐसी कहावतों, विचारों और अभ्यासों से विचलित होकर छीज जाएगी। अगर तुम्हारा साथी तुम्हारे लिए गुलाब नहीं खरीदता, तुम्हें खुश करने की कोशिश नहीं करता या तुम्हारे लिए कुछ भी रोमांटिक नहीं करता, तो तुम गुस्सा, नाराज और नाखुश होती हो—तुम तमाम चीजें महसूस करती हो। जब तुम्हारा जीवन इन चीजों से भर जाता है, तो एक महिला होने के नाते तुम्हें जो दायित्व पूरे करने चाहिए और एक सृजित प्राणी के तौर पर परमेश्वर के घर में तुम्हें जो कर्तव्य और जिम्मेदारियाँ निभानी चाहिए, वे सभी अस्त-व्यस्त हो जाती हैं। तुम असंतोष की दशा में रहोगी, और असंतोष की इन भावनाओं और विचारों से तुम्हारी सामान्य जिंदगी और दिनचर्या बाधित हो जाएगी। इसलिए, तुम्हारी इच्छाएँ तुम्हारी सामान्य मानवता की तार्किक सोच, तुम्हारे सामान्य निर्णय और हाँ, एक सामान्य व्यक्ति के रूप में तुम्हें जो जिम्मेदारियाँ और दायित्व पूरे करने चाहिए, उन्हें प्रभावित करेंगीं। अगर तुम सांसारिक चीजों और वैवाहिक सुख के पीछे भागते हो, तो तुम निश्चित रूप से “सांसारिक व्यक्ति” बन जाओगे। अगर तुम सिर्फ वैवाहिक सुख के पीछे भागते हो, तो यकीनन तुम हमेशा अपने जीवनसाथी से “मैं तुमसे प्यार करता हूँ” जैसी बातें सुनना चाहोगी, और अगर तुम्हारे जीवनसाथी ने यह कभी नहीं कहा कि “मैं तुमसे प्यार करता हूँ,” तो तुम सोचोगी, “अरे, मेरी शादी बहुत बेकार है। मेरा पति लकड़ी के तख्ते जैसा सुन्न है, एक नंबर का बेवकूफ है। बहुत हुआ तो वह थोड़े-से पैसे घर ले आता है, थोड़ी मेहनत और थोड़ा परिश्रम कर लेता है। खाने का समय हो तो वह कह देता है, ‘चलो खाना खाते हैं,’ और सोने का समय होने पर कह देता है, ‘अब सो जाओ, तुम्हें अच्छे सपने आएँ, शुभरात्रि,’ और बस हो गया। वह कभी यह क्यों नहीं कह सकता, ‘मैं तुमसे प्यार करता हूँ’? क्या वह इतनी छोटी-सी रोमांटिक बात भी नहीं कह सकता?” जब तुम्हारा दिल ऐसी चीजों से भरा हो, तो क्या तुम एक सामान्य व्यक्ति हो सकते हो? क्या तुम एक निरंतर असामान्य और भावुक दशा में नहीं रहते? (रहते हैं।) कुछ लोगों को संसार की इन दुष्ट प्रवृत्तियों की कोई पहचान नहीं होती; उनमें कोई प्रतिरोध, कोई प्रतिरक्षा नहीं होती। ऐसी महिला इस मामले को, इन रोमांटिक बातों को वैवाहिक सुख का संकेत मानती है, और फिर वह इसे पाना, इसका अनुकरण करना, इसे हासिल करना चाहती है, और जब वह इसे हासिल नहीं कर पाती है तो वह गुस्सा होती है, और अक्सर अपने पति से पूछती है “बताओ, तुम मुझसे प्यार करते हो या नहीं?” इतनी बार पूछने पर उसका पति गुस्सा हो जाता है और शरमाते हुए कहता है, “मैं तुमसे प्यार करता हूँ, बेबी।” और वह कहती है, “जरा फिर से कहो न।” उसका पति खुद को इतना रोकता है कि उसका चेहरा और गर्दन दोनों लाल हो जाते हैं और फिर वह थोड़ा सोचकर कहता है, “बेबी, मैं तुमसे प्यार करता हूँ।” देखा तुमने, यह भला आदमी ऐसी छोटी सी बात कह देता है, मगर यह उसके दिल से नहीं निकली है, इसलिए वह असहज महसूस करता है। उसे यह कहते सुन उसकी पत्नी खुश हो जाती है, और कहती है, “ये हुई न बात!” फिर उसका पति क्या कहता है? “अब बोलो। क्या अब तुम खुश हो? तुम बस खोट खोज रही हो।” तुम्हीं बताओ, जब एक महिला और पुरुष इस तरह का वैवाहिक जीवन जीते हैं, तो क्या यह खुशहाली है? (नहीं।) क्या तुम्हें “मैं तुमसे प्यार करता हूँ” शब्द सुनकर खुशी होती है? क्या यह वैवाहिक सुख की व्याख्या करता है? क्या यह इतना सरल है? (नहीं।) कोई महिला हमेशा अपने पति से पूछती रहती है, “सुनो, क्या तुम्हें लगता है कि मैं बूढ़ी लगने लगी हूँ?” उसका पति ईमानदार है, तो वह ईमानदारी से कहता है, “हाँ, थोड़ी सी। चालीस साल के बाद कौन बूढ़ा नहीं लगता?” वह जवाब देती है, “अच्छा, तो क्या तुम मुझसे प्यार नहीं करते? तुम यह क्यों नहीं कहते कि मैं जवान दिखती हूँ? क्या तुम्हें मेरा बूढ़ा होना पसंद नहीं? क्या तुम कोई रखैल ढूँढ़ना चाहते हो?” इस पर उसका पति जवाब देता है, “हद है! मैं तुमसे ईमानदारी से कुछ कह भी नहीं सकता। दिक्कत क्या है तुम्हें? मैं तो बस सच कह रहा था। कौन बूढ़ा नहीं होता? क्या तुम कोई राक्षस बनना चाहती हो?” ऐसी महिलाएँ मूढ़ होती हैं। इस तरह के तथाकथित वैवाहिक सुख का अनुसरण करने वालों को हम क्या कहते हैं? घटिया शब्दों में कहें, तो वे निकृष्ट हैं। और अगर घटिया शब्दों में न कहें तो हम उन्हें क्या कहेंगे? दिमाग से पैदल। “दिमाग से पैदल” से मेरा क्या मतलब है? मेरा मतलब है कि उनमें सामान्य मानवता वाली सोच नहीं है। चालीस या पचास साल की उम्र में, वे बुढ़ापे के करीब पहुँच रही हैं, मगर फिर भी यह स्पष्ट नहीं देख सकतीं कि जीवन क्या है, वैवाहिक जीवन क्या है, और वे हमेशा बेकार और घटिया चीजें करना पसंद करती हैं। वे इसे वैवाहिक सुख मानती हैं, कि यह उनकी स्वतंत्रता और उनका अधिकार है, उन्हें इसी तरह से अनुसरण करना और जीना चाहिए, और शादी के प्रति यही रवैया अपनाना चाहिए। क्या यह उनकी ओर से गलत व्यवहार नहीं है? (बिल्कुल है।) क्या ऐसे बहुत से लोग हैं जो उचित व्यवहार नहीं करते? (हाँ।) अविश्वासियों की दुनिया में इनकी संख्या बहुत है, मगर क्या परमेश्वर के घर में कोई ऐसा है? क्या ऐसे बहुत हैं? रोमांस, उपहार, आलिंगन, चकित, और ऐसे शब्द कि “मैं तुमसे प्यार करता हूँ,” वगैरह सभी वैवाहिक सुख के संकेत हैं जिनका वे अनुसरण करते हैं और ये वैवाहिक सुख की उनकी खोज के लक्ष्य हैं। परमेश्वर में विश्वास नहीं करने वाले लोग ऐसे होते हैं, और परमेश्वर में विश्वास करने वाले भी बहुत से लोग इस तरह के अनुसरण में लगे हुए हैं और उनके भी ऐसे विचार हैं। ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्होंने दस साल या उससे भी ज्यादा समय से परमेश्वर में विश्वास किया है, कुछ उपदेश सुने हैं और कुछ सत्यों को समझा है, मगर अपने वैवाहिक सुख को बरकरार रखने, अपने जीवनसाथी का साथ देने, और अपनी शादी में किए वादों को पूरा करने और वैवाहिक सुख के जिस लक्ष्य को पाने की कसमें खाई थीं, उसे हासिल करने के लिए सृष्टिकर्ता के सामने अपनी जिम्मेदारियों और कर्तव्यों को कभी नहीं निभाया है। बल्कि, वे अपने घर के बाहर पैर तक नहीं रखते, परमेश्वर के घर का कार्य चाहे कितना भी जरूरी क्यों न हो, वे घर नहीं छोड़ते, और अपना कर्तव्य निभाने के लिए अपने जीवनसाथी को नहीं त्यागते, बल्कि वे तो वैवाहिक सुख के अनुसरण और उसे बनाए रखने को अपने जीवन का लक्ष्य मानते हैं जिसके लिए उन्हें संघर्ष और निरंतर कोशिश करनी है। ऐसी चीज का अनुसरण करके क्या वे सत्य का अनुसरण कर रहे हैं? बिल्कुल नहीं। क्योंकि अपने मन में, अपने दिल की गहराई में और यहाँ तक कि अपने क्रियाकलापों में भी उन्होंने वैवाहिक सुख के अनुसरण को नहीं त्यागा और न ही जीवन के प्रति इस विचार, दृष्टिकोण और नजरिये को त्यागा कि “वैवाहिक सुख के पीछे भागना व्यक्ति के जीवन का मकसद है,” इसलिए वे सत्य प्राप्त करने में पूरी तरह असमर्थ हैं। तुम लोग अभी शादीशुदा नहीं हो और तुमने अभी तक शादी में प्रवेश नहीं किया है। अगर तुम लोग शादी करते वक्त भी इस दृष्टिकोण को कायम रखोगे, तो तुम लोग भी सत्य प्राप्त नहीं कर पाओगे। वैवाहिक सुख पाने के बाद तुम सत्य प्राप्त नहीं कर पाओगे। तुम वैवाहिक सुख के पीछे भागने को अपने जीवन का मकसद मानते हो, इसलिए तुम आखिर में सृष्टिकर्ता के सामने अपना मकसद पूरा करने का मौका गँवा दोगे। अगर तुम सृष्टिकर्ता के सामने एक सृजित प्राणी होने का मकसद पूरा करने का मौका और अधिकार त्यागते हो, तो तुम सत्य के अनुसरण को भी त्याग देते हो, और हाँ, तुम उद्धार पाने से भी हार मान लेते हो—यह तुम्हारा फैसला है।

हम वैवाहिक सुख के अनुसरण को त्यागने के बारे में संगति इसलिए नहीं कर रहे कि तुम शादी को ही त्याग दो, न ही इसका मकसद तुम्हें तलाक लेने के लिए उकसाना है, बल्कि हम यह संगति इसलिए कर रहे हैं ताकि तुम वैवाहिक सुख के संबंध में अपनी सभी इच्छाओं को त्याग दो। सबसे पहले, तुम्हें उन विचारों को त्याग देना चाहिए जो तुम्हारे वैवाहिक सुख के अनुसरण में तुम पर हावी हैं, और फिर तुम्हें वैवाहिक सुख के पीछे भागने के अभ्यास को त्याग कर अपना ज्यादातर समय और ऊर्जा एक सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाने और सत्य के अनुसरण में लगाना चाहिए। जहाँ तक शादी की बात है, अगर यह तुम्हारे सत्य के अनुसरण में बाधा नहीं डालती या उसके आड़े नहीं आती है, तो तुम्हें जो दायित्व पूरे करने चाहिए, जो मकसद पूरा करना चाहिए, और शादी के ढाँचे के भीतर तुम्हें जो भूमिका निभानी चाहिए, वह नहीं बदलेगी। इसलिए, तुम्हें वैवाहिक सुख का अनुसरण त्यागने के लिए कहने का मतलब यह नहीं है कि तुम औपचारिकता के चक्कर में शादी को ही त्याग दो या तलाक ले लो, बल्कि इसका मतलब एक सृजित प्राणी के रूप में तुम्हें अपना मकसद पूरा करने और वह कर्तव्य निभाने के लिए कहना है जो तुम्हें शादी में निभाई जाने वाली जिम्मेदारियों को पूरा करने के आधार पर निभाना चाहिए। बेशक, अगर तुम्हारा वैवाहिक सुख का अनुसरण एक सृजित प्राणी के रूप में तुम्हारे कर्तव्य निर्वहन को प्रभावित, बाधित या यहाँ तक कि उसे बर्बाद करता है, तो तुम्हें न सिर्फ वैवाहिक सुख के अनुसरण को, बल्कि अपनी पूरी शादी को ही त्याग देना चाहिए। इन समस्याओं पर संगति करने का अंतिम उद्देश्य और अर्थ क्या है? यही कि वैवाहिक सुख तुम्हारे कदमों को न रोके, तुम्हारे हाथ न बाँधे, तुम्हारी आँखों पर पर्दा न डाले, तुम्हारी दृष्टि विकृत न करे, तुम्हें परेशान न करे और तुम्हारे दिमाग को काबू न करे; यह संगति इसलिए है ताकि तुम्हारा जीवन और जीवन पथ वैवाहिक सुख के अनुसरण से न भर जाए, और ताकि तुम शादी में पूरी की जाने वाली जिम्मेदारियों और दायित्वों के प्रति सही रवैया अपना सको और उन जिम्मेदारियों और दायित्वों के संबंध में, जो तुम्हें पूरे करने चाहिए, उनके बारे में सही फैसले ले सको। अभ्यास करने का एक बेहतर तरीका यह है कि तुम अपना ज्यादा समय और ताकत अपने कर्तव्य में लगाओ, वह कर्तव्य निभाओ जो तुम्हें निभाना चाहिए, और परमेश्वर द्वारा सौंपे गए मकसद को पूरा करो। तुम्हें कभी नहीं भूलना चाहिए कि तुम एक सृजित प्राणी हो, परमेश्वर ने ही तुम्हें जीवन के इस पड़ाव पर लाकर खड़ा किया है, वह परमेश्वर ही है जिसने तुम्हें शादी की व्यवस्था दी, एक परिवार दिया और वो जिम्मेदारियाँ सौंपी जो तुम्हें शादी के ढाँचे के भीतर निभानी चाहिए, और कि वह तुम नहीं हो जिसने तुम्हारी शादी तय की है, या ऐसा नहीं है कि तुम्हारी शादी बस यूँ ही हो गई, या फिर तुम अपनी क्षमताओं और ताकत के भरोसे अपने वैवाहिक सुख को बरकरार रख सकते हो। क्या अब मैंने इसे स्पष्ट रूप से समझा दिया है? (हाँ।) क्या तुम समझते हो कि तुम्हें क्या करना है? क्या अब तुम्हारा मार्ग स्पष्ट है? (हाँ।) अगर वैवाहिक जीवन में तुम्हारी जिम्मेदारियों और दायित्वों और एक सृजित प्राणी के रूप में तुम्हारे कर्तव्य और मकसद के बीच कोई टकराव या विरोधाभास नहीं है, तो ऐसी परिस्थिति में तुम्हें शादी के ढाँचे के भीतर जरूरत के मुताबिक अपनी जिम्मेदारियाँ निभानी चाहिए, उन्हें अच्छे से पूरा करना चाहिए, वे जिम्मेदारियाँ उठानी चाहिए जो तुम्हें उठानी हैं और उनसे भागने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। तुम्हें अपने साथी की, उसके जीवन की, उसकी भावनाओं और उसके बारे में हर चीज की जिम्मेदारी लेनी होगी। हालाँकि, जब शादी के ढाँचे के भीतर तुम्हारे द्वारा निभाई जाने वाली जिम्मेदारियों और दायित्वों और एक सृजित प्राणी के रूप में तुम्हारे मकसद और कर्तव्य के बीच कोई टकराव होता है, तो तुम्हें अपना कर्तव्य या मकसद नहीं बल्कि शादी के ढाँचे के भीतर अपनी जिम्मेदारियों को त्याग देना चाहिए। परमेश्वर तुमसे यही अपेक्षा करता है, यह तुम्हारे लिए परमेश्वर का आदेश है और बेशक, हर पुरुष और महिला से परमेश्वर यही अपेक्षा करता है। जब तुम यह सब करने में सक्षम होगे तभी सत्य और परमेश्वर का अनुसरण करोगे। अगर तुम इसमें सक्षम नहीं हो और इस तरह से अभ्यास नहीं कर सकते, तो तुम बस नाममात्र के विश्वासी हो, तुम सच्चे दिल से परमेश्वर का अनुसरण नहीं करते, और सत्य का अनुसरण करने वालों में से भी नहीं हो। अब तुम्हारे पास अपना कर्तव्य निभाने के लिए चीन छोड़ने का अवसर और परिस्थिति है, और कुछ लोग कहते हैं, “अगर मैं अपना कर्तव्य निभाने के लिए चीन छोड़ता हूँ, तो मुझे अपने जीवनसाथी को घर पर छोड़ना होगा। क्या हम फिर कभी एक-दूसरे को नहीं देख पाएँगे? क्या हमें अलग नहीं रहना पड़ेगा? क्या हमारी शादी खत्म नहीं हो जाएगी?” कुछ लोग सोचते हैं, “अरे, मेरी जीवनसाथी मेरे बिना कैसे जिएगी? अगर मैं वहाँ नहीं हुआ तो क्या हमारी शादी टूट नहीं जाएगी? क्या हमारी शादी टूट जाएगी? फिर मैं भविष्य में क्या करूँगा?” क्या तुम्हें भविष्य की चिंता करनी चाहिए? तुम्हें सबसे ज्यादा किस बात की चिंता करनी चाहिए? अगर तुम सत्य का अनुसरण करने वाले व्यक्ति बनना चाहते हो, तो तुम्हें सबसे ज्यादा चिंता यह करनी चाहिए कि उस चीज को कैसे त्याग सको जिसे त्यागने के लिए परमेश्वर तुमसे कहता है और उस चीज को कैसे साधो जिसे साधने के लिए परमेश्वर तुम्हें कहता है। अगर भविष्य में तुम्हें बिना शादी के और बिना अपने साथी के रहना है, तो आने वाले दिनों में भी तुम इतनी ही अच्छी तरह से बुढ़ापे तक जीवित रह सकते हो। हालाँकि, अगर तुम यह अवसर छोड़ देते हो, तो यह तुम्हारे कर्तव्य और उस मकसद को त्यागने के समान है जो परमेश्वर ने तुम्हें सौंपा है। परमेश्वर के लिए, तब तुम ऐसे व्यक्ति नहीं रहोगे जो सत्य का अनुसरण करता है, जो वास्तव में परमेश्वर को चाहता है, या जो उद्धार पाना चाहता है। अगर तुम सक्रियता से उद्धार पाने और अपना मकसद पूरा करने का अपना अवसर और अधिकार त्यागना चाहते हो और इसके बजाय शादी को चुनते हो, पति-पत्नी की तरह साथ रहने का फैसला करते हो, अपने जीवनसाथी के साथ रहना और उसे संतुष्ट करना चुनते हो, और अपनी शादी को बरकरार रखना चाहते हो, तो अंत में तुम कुछ चीजें हासिल करोगे और कुछ चीजें खो दोगे। तुम्हें अंदाजा तो है न कि तुम क्या खो दोगे? शादी तुम्हारा सब कुछ नहीं है, न ही वैवाहिक सुख तुम्हारा सब कुछ है—यह तुम्हारी किस्मत तय नहीं कर सकता, यह तुम्हारा भविष्य भी तय नहीं कर सकता, तो फिर तुम्हारी मंजिल तय करना तो दूर की बात है। तो, लोगों को क्या फैसला करना चाहिए, और क्या उन्हें वैवाहिक सुख का अनुसरण त्याग कर एक सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाना चाहिए, यह उन पर निर्भर करता है। क्या हमने अब “वैवाहिक सुख के पीछे भागना तुम्हारा मकसद नहीं है” के विषय पर स्पष्ट रूप से संगति कर ली है? (बिल्कुल।) क्या ऐसी कोई समस्या है जो तुम लोगों को मुश्किल लगती है और जिसके बारे में मेरी संगति सुनने के बाद भी तुम नहीं जानते कि इनका अभ्यास कैसे करें? (नहीं।) इस संगति को सुनकर क्या अब तुम पहले से ज्यादा स्पष्ट महसूस कर रहे हो, तुम्हारे पास अभ्यास का एक सटीक मार्ग और अभ्यास करने के लिए एक सही लक्ष्य है? क्या अब तुम जानते हो कि तुम्हें आगे कैसे अभ्यास करना चाहिए? (हाँ।) तो चलो इस संगति को यहीं खत्म करते हैं। फिर मिलेंगे!

14 जनवरी 2023

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