सत्य का अनुसरण कैसे करें (10) भाग दो

लोगों को शादी के बारे में इन अवास्तविक कल्पनाओं को कैसे त्यागना चाहिए? उन्हें रोमांस और शादी के बारे में अपनी सोच और दृष्टिकोण सुधारना चाहिए। सबसे पहले, लोगों को प्यार के बारे में अपना तथाकथित दृष्टिकोण त्यागना चाहिए, भ्रामक बातें और कहावतें त्याग देनी चाहिए, जैसे कि किसी से तब तक प्यार करना जब तक समुद्र सूख न जाए और चट्टानें धूल में न बदल जाएँ, मरते दम तक अटूट प्यार करना, और ऐसा प्यार करना जो जन्म-जन्मांतर तक कायम रहे। लोगों को नहीं पता कि उनका यह प्यार जीवन भर कायम रहेगा या नहीं, फिर अगले जन्मों में और जब तक समुद्र सूख न जाए और चट्टानें धूल में न बदल जाएँ, तब तक साथ निभाने की तो बात छोड़ ही दो। समुद्र सूखने और चट्टानों को धूल में बदलने में कितने साल लगेंगे? अगर लोग इतने लंबे समय तक जी सकें तो क्या वे राक्षस नहीं कहलाएँगे? इस जीवन को अच्छी तरह से जीना, और इसे जागरूकता और स्पष्टता के साथ जीना ही काफी है। शादी में अपनी भूमिका अच्छे से निभाना, एक पुरुष या महिला को जो करना चाहिए वह करना, उन दायित्वों और जिम्मेदारियों को निभाना जो एक पुरुष या महिला को निभाने चाहिए, अपनी आपसी जिम्मेदारियों को पूरा करना, एक-दूसरे का सहयोग करना, एक-दूसरे की मदद करना, और जीवन-भर एक-दूसरे के साथ रहना काफी है। यह एक आदर्श और उचित शादी है, और इसके अलावा सभी चीजें, वह तथाकथित प्रेम, प्रेम के वो तथाकथित कसमें-वादे, वह प्रेम जो जन्म-जन्मांतर तक कायम रहता है—ये सभी चीजें बेकार हैं, इनका परमेश्वर द्वारा निर्धारित शादी, और महिला-पुरुषों के लिए परमेश्वर के निर्देशों और उपदेशों से कोई सरोकार नहीं है। क्योंकि किसी शादी का आधार चाहे कुछ भी हो, या पति या पत्नी की व्यक्तिगत शर्तें जो भी हों, चाहे वे गरीब हों या अमीर, उनकी प्रतिभाएँ, उनका रुतबा और उनकी सामाजिक पृष्ठभूमि चाहे कुछ भी हो, या चाहे वे सटीक मेल या सटीक जोड़ी हों या न हों; चाहे शादी पहली नजर के प्यार के कारण हुई थी या माता-पिता ने तय की थी, चाहे यह संयोगवश हुई थी या लंबे समय तक प्यार में रहने के कारण—इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह कैसी शादी है, अगर दो लोग शादी करके शादीशुदा जीवन में प्रवेश करते हैं, तो उन्हें ख्वाबों की दुनिया से आखिर में हकीकत की दुनिया में लौटना ही पड़ता है। कोई भी वास्तविक जीवन से बच नहीं सकता, और हर शादी को, चाहे उसमें प्यार हो या न हो, आखिरकार दैनिक जीवन में लौटना ही होगा। उदाहरण के लिए, बिजली-पानी के बिल भरने हों और पत्नी शिकायत करे, “अरे नहीं, फिर से बिल ज्यादा आए हैं। सब कुछ महँगा हो रहा है, बस पगार नहीं बढ़ रही। चीजें इसी तरह महँगी होती रहीं तो लोग कैसे जिएँगे?” मगर वह चाहे कितनी ही शिकायतें कर ले, फिर भी उसे बिजली-पानी की जरूरत है, उसके पास कोई विकल्प नहीं है। तो वह बिल भरती है, और बिल भरने के बाद उसे खाने के सामान और बाकी खर्चों के लिए पैसे बचाने होते हैं, वह उन पैसों को बचाने की कोशिश करती है जो उसने बढ़े हुए बिल पर चुकाए थे। बाजार में सब्जियों पर छूट देखकर पति कहता है, “आज फलियों पर छूट मिल रही है। ज्यादा खरीद लो, दो हफ्तों के लिए खरीद लो।” पत्नी कहती है, “हमें कितना खरीदना चाहिए? अगर हमने बहुत ज्यादा खरीद लिया और इसे खा न पाए, तो यह सड़ जाएगी। और अगर हम इतना ज्यादा खरीदेंगे तो इसे फ्रीजर में भी नहीं रख पाएँगे!” इस पर पति जवाब देता है, “अगर हम यह सब रख नहीं पाएँगे, तो क्या थोड़ा ज्यादा नहीं खा सकते? हम दिन में दो बार फलियाँ खा सकते हैं। खाने के लिए महँगी चीजें खरीदने को लेकर हमेशा इतनी परेशान मत हुआ करो!” पति को पगार मिलती है तो वह कहता है, “मुझे इस महीने फिर से बोनस मिला है। अगर मुझे साल के अंत में बड़ा बोनस मिलता है, तो हम छुट्टियों पर जा सकते हैं। हर कोई छुट्टियाँ मनाने मालदीव या बाली जा रहा है। मैं भी तुम्हें छुट्टियों में वहाँ लेकर जाऊँगा, ताकि तुम अच्छा समय बिता सको।” उनके घर के आसपास के पेड़ों पर बहुत सारे फल लगते हैं, तो इस पर पति-पत्नी चर्चा करते हैं : “पिछले साल हमें अच्छी फसल नहीं मिली थी। इस साल बहुत सारे फल लगे हैं, तो हम कुछ फल बेचकर थोड़े पैसे कमा सकते हैं। कुछ पैसे कमाने के बाद शायद हम अपने घर की मरम्मत करवा सकें? हम एल्यूमीनियम एलॉय की बड़ी खिड़कियाँ और एक बड़ा नया लोहे का दरवाजा लगवा सकते हैं।” जब कड़ाके की ठंड पड़ती है, तो पत्नी कहती है, “मैं सात-आठ साल से यही सूती जैकेट पहन रही हूँ, और यह पतली होती जा रही है। पगार मिलने के बाद, तुम कुछ खर्चे घटाकर मेरे लिए एक नया विंटर जैकेट लेने के लिए थोड़े पैसे बचा सकते हो। एक डाउन जैकेट कम से कम तीन-चार सौ या शायद पाँच-छह सौ युआन की होती है।” पति कहता है, “ठीक है। मैं थोड़े पैसे बचाकर तुम्हारे लिए एक अच्छी, गर्म डक डाउन जैकेट खरीदूँगा।” इस पर पत्नी कहती है, “तुम मेरे लिए जैकेट खरीदना चाहते हो, पर तुम्हारे पास भी तो जैकेट नहीं है। एक अपने लिए भी खरीदो।” पति जवाब देता है, “मेरे पास पैसे बचे तो मैं भी खरीद लूँगा। अगर नहीं बचे, तो मैं अपना पुराना जैकेट एक और साल चला लूँगा।” कोई दूसरा पति अपनी पत्नी से कहता है, “मैंने सुना है कि पास में ही एक बड़ा रेस्टोरेंट खुला है जिसमें हर तरह का सी-फूड मिलता है। क्यों न हम वहाँ चलें?” पत्नी कहती है, “हाँ, चलो। हमारे पास इतना पैसा है कि हम वहाँ जा सकते हैं।” वे जाकर सी-फूड खाते हैं और खुशी-खुशी घर लौटते हैं। पत्नी सोचती है, “देखो अब मेरा जीवन कितना आरामदायक है। मैंने सही आदमी से शादी की। मैं ताजा सी-फूड खा सकती हूँ। मेरे पड़ोसियों की ताजा सी-फूड खाने की औकात नहीं है। मेरा जीवन शानदार है!” शादीशुदा जीवन ऐसा ही होता है न? (हाँ।) इस तरह जोड़-तोड़ और तर्क-वितर्क करते हुए उनका जीवन बीतता रहता है। वे हर रोज सुबह से शाम तक काम करते हैं, आठ बजे काम पर जाने के लिए उन्हें सुबह पाँच बजे उठना पड़ता है। जब अलार्म बजता है, तो वे सोचते हैं, “अरे, मेरा उठने का बिल्कुल भी मन नहीं है, पर मेरे पास कोई चारा नहीं। मुझे अपने परिवार का पेट भरने और जीने के लिए काम पर जाना ही होगा,” तो इस तरह वे सुबह बिस्तर से उठने के लिए संघर्ष करते हैं। “अच्छा हुआ जो आज मुझे देरी नहीं हुई, वो मेरा बोनस कम नहीं करेंगे।” वे काम खत्म करके घर लौटते हैं और कहते हैं, “आज कितना मुश्किल दिन रहा, बहुत कठिन! मुझे काम से कब फुरसत मिलेगी?” उन्हें पैसे कमाने और अपने परिवार का पेट भरने के लिए इतनी मेहनत करनी पड़ती है; अच्छी तरह से जीने के लिए, शादी के ढाँचे में दोनों लोगों का जीवन चलाते रहने के लिए या ताकि उनके जीवन में स्थिरता बनी रहे, उन्हें इसी तरह से जीना पड़ता है। बूढ़े होने तक और अपनी उम्र के आखिरी पड़ाव पर पहुँचने तक, वे अपना जीवन इसी तरह बिताते हैं, और बूढ़ी पत्नी कहती है, “मेरे स्वामी, देखो मेरे बाल सफेद हो गए हैं! मेरी आँखों के चारों ओर झुर्रियाँ आ गई हैं और गाल भी लटकने लगे हैं। क्या मैं अब बूढ़ी हो गई हूँ? क्या तुम मेरे बुढ़ापे को देखकर मुझे नापसंद करोगे और कोई दूसरी महिला को ले आओगे?” इस पर उसका पति जवाब देता है, “बिल्कुल नहीं, मेरी नादान बुढ़िया। मैंने तुम्हारे साथ पूरी जिंदगी बिता दी और तुम अभी भी मुझे नहीं जानती। क्या मैं तुम्हें सचमुच ऐसा आदमी लगता हूँ?” उसकी पत्नी हर वक्त सोचती रहती है कि वह बूढ़ी होगी तो उसका पति उसे पसंद नहीं करेगा और डरती है कि वह उसे नहीं चाहेगा। वह अपने पति को और ज्यादा टोकती है, तो उसका पति और कम बोलता है, उनके बीच बातें कम हो जाती हैं, और वे एक-दूसरे पर ध्यान न देते हुए टीवी पर अपने-अपने शो देखते रहते हैं। एक दिन, पत्नी कहती है, “सुनो, हमने अपने जीवन में बहुत बहस की है। तुम्हारे साथ इतने साल बिताना बहुत मुश्किल रहा है। मैं अपना अगला जीवन तुम जैसे आदमी के साथ नहीं बिताऊँगी। खाना खाने के बाद, तुम कभी साफ-सफाई में मेरी मदद नहीं करते, बस बैठकर देखते रहते हो। तुमने जीवन भर अपनी यह भूल नहीं सुधारी। तुम अपने उतरे हुए कपड़े खुद कभी नहीं धोते, हमेशा मुझे ही धोकर सुखाने पड़ते हैं। अगर मैं मर गई तो तुम्हारी मदद कौन करेगा?” उसका पति कहता है, “अच्छा, क्या मैं सच में तुम्हारे बिना नहीं रह पाऊँगा? मेरे पीछे इतनी सारी जवान महिलाओं की लाइन लगी हैं कि मैं उनसे छुटकारा नहीं पा सकता।” उसकी पत्नी जवाब देती है, “बड़ी-बड़ी बातें करवा लो बस! खुद को देखा है कभी, कितने बदसूरत दिखते हो। मेरे अलावा भला कौन तुम्हारे साथ रहेगी।” इस पर उसका पति कहता है, “गुस्सा होना है तो होती रहो, पर बाहर बहुत से लोग हैं जो मुझे पसंद करते हैं। बस तुम ही हो जो मुझे नीची नजरों से देखती हो और मेरी बातों को गंभीरता से नहीं लेती।” उनकी शादी किस तरह की शादी है? पत्नी कहती है, “अरे, भले ही मेरे पास खुश होने का कोई कारण नहीं है और तुम्हारे साथ पूरा जीवन बिताने के बाद भी कोई अच्छी यादें नहीं हैं, अब जब मैं बूढ़ी हो गई हूँ तो सोच रही हूँ : अगर तुम मेरे साथ नहीं हुए, तो लगेगा कि जीवन में कोई कमी है। अगर तुम मुझसे पहले चल बसे, तो मैं दुखी रहूँगी और मेरे पास टोकने के लिए भी कोई नहीं होगा। मैं अकेली नहीं रहना चाहती। मुझे तुमसे पहले जाना होगा, ताकि तुम्हें बचा हुआ जीवन अकेले बिताना पड़े, तुम्हारे कपड़े धोने या तुम्हारा खाना बनाने के लिए कोई नहीं होगा, तुम्हारे दैनिक जीवन की देखभाल करने वाला कोई नहीं होगा, और तब तुम्हें मेरी नेकियाँ याद आएँगी। तुम्हीं ने कहा था न कि तुम्हारे पीछे बहुत सारी जवान महिलाओं की लाइन लगी है? मैं मर जाऊँगी तो जाकर ले आना किसी को।” उसका पति कहता है, “शांत हो जाओ, मैं ध्यान रखूँगा कि तुम मुझसे पहले ही जाओ। जब तुम चली जाओगी, तो मैं यकीनन तुमसे अच्छी जीवनसाथी ढूँढ़ ही लूँगा।” मगर वास्तव में वह अपने दिल में क्या सोचता है? “तुम पहले चली जाओ, और जब तुम चली जाओगी, तो मुझे अकेलापन काटने को दौड़ेगा। तुम कष्ट सहो, इससे बेहतर है कि मैं इस कठिनाई को झेलता रहूँ और इस प्रकार कष्ट सहूँ।” हालाँकि, बूढ़ी पत्नी हमेशा अपने पति के बारे में शिकायत करती रहती है कि वह यह काम गलत करता है, वह काम गलत करता है, उसमें यह कमी है और उसमें वो कमी है, और भले ही उसका पति अपनी खामियों को सुधार नहीं पाता, वे इसी तरह जीते रहते हैं, और समय के साथ उसे इसकी आदत हो जाती है। आखिर में, महिला खुद हार मान लेती है, पुरुष इसे सहता रहता है और इस तरह वे जीवन भर साथ रहते हैं। ऐसा होता है शादीशुदा जीवन।

भले ही ऐसी बहुत सी चीजें हैं जो वैवाहिक जीवन में व्यक्ति की पसंद के हिसाब से नहीं होती हैं, बहुत ज्यादा बहस होती रहती है, शादीशुदा जोड़े जीवन में बीमारी, गरीबी, आर्थिक कठिनाइयों का सामना करते हैं, और यहाँ तक कि बेहद सुख-दुख की घटनाओं के साथ-साथ ऐसी अन्य घटनाओं का भी सामना करते हैं, मगर वे इन तमाम बाधाओं को एक साथ पार कर जाते हैं, और उनका जीवनसाथी वह है जिसे वे कभी नहीं छोड़ सकते, कोई ऐसा व्यक्ति जिसे वो मरते दम तक नहीं छोड़ सकते। जीवनसाथी क्या होता है? एक पत्नी या पति होता है। पुरुष महिला के प्रति जीवन भर की जिम्मेदारियाँ निभाता है, और इसी तरह महिला भी पुरुष के प्रति जीवन भर की जिम्मेदारियाँ निभाती है; महिला जीवन भर पुरुष का साथ निभाती है, और पुरुष भी जीवन भर महिला का साथ देता है। उनमें से कोई भी साफ तौर पर नहीं बता सकता कि दोनों में से कौन दूसरे का ज्यादा साथ देता है; न ही कोई यह स्पष्ट बता सकता है कि किसने ज्यादा योगदान दिया है, किसने ज्यादा गलतियाँ की हैं, या किसमें ज्यादा खामियाँ हैं; दोनों में से कोई यह स्पष्ट नहीं बता सकता कि उनमें से कौन किस पर निर्भर है या उनके जीवन का मुख्य कमाने वाला व्यक्ति कौन है; कोई भी यह स्पष्ट नहीं कह सकता कि घर का मुखिया या प्रभारी कौन है और सहायक कौन है; कोई भी यह साफ तौर पर नहीं बता सकता कि उनमें से कौन दूसरे को छोड़ नहीं सकता, क्या पुरुष महिला के बिना नहीं रह सकता या फिर महिला पुरुष के बिना नहीं रह सकती; और जब वे बहस करते हैं तो दोनों में से कोई भी यह साफ तौर पर नहीं बता सकता कि कौन सही है और कौन गलत : यही जीवन है, शादी के ढाँचे में एक पुरुष और महिला का सामान्य जीवन ऐसा ही होता है, और मनुष्यों के लिए जीवन की सबसे आम और सामान्य स्थिति यही है। जीवन ऐसा ही होता है, मनुष्य की सभी प्रकार की खामियों और पूर्वाग्रहों के साथ, और इससे भी बढ़कर, मनुष्य की सभी प्रकार की आवश्यकताओं, और साथ ही मनुष्य के सभी सही या गलत, तर्कसंगत या अतार्किक फैसलों के साथ व्यक्ति अपनी अंतरात्मा और विवेक से काम लेता है। यही जीवन है, यही सबसे सामान्य जीवन है। इसमें सही और गलत का कोई महत्व नहीं है, यह सिर्फ तुलनात्मक रूप से जीवन की उचित और पारंपरिक स्थिति और जीवन की वास्तविकता है। अब, शादी के ढाँचे के भीतर जीवन और रहन-सहन की यह वास्तविकता लोगों को क्या बताती है? यही कि लोगों को शादी के बारे में अपनी तमाम अवास्तविक फंतासियों को त्याग देना चाहिए, उन सभी विचारों को त्याग देना चाहिए जिनका शादी की सही परिभाषा और परमेश्वर के विधान और व्यवस्थाओं से कोई लेना-देना नहीं है। ये सभी वो चीजें हैं जिन्हें लोगों को त्याग देना चाहिए, क्योंकि इनका सामान्य मनुष्य के जीवन या उन दायित्वों और जिम्मेदारियों से कोई लेना-देना नहीं है जिन्हें एक सामान्य व्यक्ति जीवन में पूरा करता है। इसलिए, लोगों को शादी के बारे में उन विभिन्न परिभाषाओं और कहावतों को त्याग देना चाहिए जो समाज और दुष्ट मानवजाति से आती हैं, खास तौर से उस तथाकथित प्रेम से जिसका वास्तव में शादीशुदा जीवन से कोई सरोकार नहीं है। शादी जीवन भर की प्रतिबद्धता नहीं है, न ही यह जीवन भर प्यार की कसमें खाना है, और यह जीवन भर कसमें-वादे पूरे करते रहना तो बिल्कुल भी नहीं है। बल्कि, यह शादी में एक पुरुष और महिला का वास्तविक जीवन है, यह वही है जिसकी उन्हें वास्तविक जीवन में जरूरत है और वास्तविक जीवन में उनकी अभिव्यक्ति है। कुछ लोग कहते हैं, “अगर तुम शादी के विषय पर संगति कर रहे हो और प्यार के बारे में बात नहीं करते, प्यार की कसमों के बारे में बात नहीं करते, या उस प्यार की बात नहीं करते जो तब तक कायम रहता है जब तक समुद्र सूख न जाए और चट्टानें धूल में न बदल जाएँ या उन कसमों-वादों के बारे में बात नहीं करते जो शादीशुदा जोड़े एक-दूसरे से करते हैं, तो तुम किस बारे में बात कर रहे हो?” मैं मानवता के बारे में, जिम्मेदारी के बारे में, और उन चीजों के बारे में बात कर रहा हूँ जो परमेश्वर के उपदेशों और निर्देशों के अनुसार एक पुरुष और महिला को करना चाहिए, मैं उन दायित्वों और जिम्मेदारियों को पूरा करने के बारे में बात कर रहा हूँ जो एक पुरुष और महिला को पूरे करने चाहिए; उन दायित्वों और जिम्मेदारियों को निभाने के बारे में बात कर रहा हूँ जो एक पुरुष और महिला को उठाने चाहिए—इस तरह, तुम्हारे दायित्व, तुम्हारी जिम्मेदारियाँ या तुम्हारा मकसद पूरा हो जाएगा। जो भी हो, शादी से जुड़ी जिन तमाम फंतासियों को त्यागने के बारे में हमें संगति करनी चाहिए, उससे संबंधित अभ्यास करने का सही तरीका क्या है? यही कि तुम्हें अपने विचारों या कार्यों का आधार दुष्ट मानवजाति और दुष्ट प्रवृत्तियों से आने वाले विभिन्न विचारों को नहीं बनाना चाहिए, बल्कि इनका आधार परमेश्वर के वचनों को बनाना चाहिए। परमेश्वर शादी के मुद्दे पर चाहे जो भी कहे, तुम्हें अपने विचार और कार्य उसके वचनों पर टिकाने चाहिए। यही सिद्धांत सही है, है न? (हाँ।) क्या अब हम शादी से जुड़ी तमाम फंतासियों को त्यागने के विषय पर संगति लगभग खत्म कर चुके हैं? क्या यह बात अब तुम्हें स्पष्ट हो चुकी है? (हाँ, यह स्पष्ट है।)

हमने अभी शादी से जुड़ी तमाम फंतासियों को त्यागने के विषय पर संगति की, जिस पर कुछ लोगों ने कहा, “अगर मैं अकेले नहीं रहना चाहता और किसी को डेट करना या शादी के लिए किसी को ढूँढ़ना चाहता हूँ, तो मुझे परमेश्वर के वचनों का अभ्यास कैसे करना चाहिए ताकि मैं शादी से जुड़ी अपनी तमाम फंतासियों को त्याग सकूँ? मुझे इस सिद्धांत का अभ्यास कैसे करना चाहिए?” क्या यह जीवनसाथी चुनने के सिद्धांतों, शादी के लिए साथी चुनने के सिद्धांतों से संबंधित नहीं है? जीवनसाथी चुनने के बारे में संसार ने तुम्हारे भीतर कौन-से सिद्धांत स्थापित किए हैं? यह कि तुम्हारा साथी एक सलोना राजकुमार, एक गोरा-चिट्टा, सुंदर और अमीर आदमी या एक सुंदर और अमीर महिला हो, और अगर वह किसी अमीर परिवार की दूसरी पीढ़ी से हो तो और भी बेहतर होगा। ऐसे किसी व्यक्ति से शादी करके तुम अपने जीवन से 20 साल का संघर्ष घटा देते हो। आदमी ऐसा होना चाहिए जो तुम्हारे लिए हीरे की अंगूठी, शादी की पोशाक और शानदार शादी का खर्च उठा सके। वह ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जिसमें अपने करियर को लेकर महत्वाकांक्षा हो, जो दौलत कमा सकता हो या जिसके पास पहले से ही एक निश्चित मात्रा में धन हो। क्या संसार ने तुम्हारे मन में यही विचार और दृष्टिकोण नहीं डाले हैं? (बिल्कुल, डाले हैं।) फिर ऐसे लोग भी हैं जो कहते हैं, “मेरा जीवनसाथी वह होना चाहिए जिससे मुझे प्यार हो।” कोई और कहता है, “यह सही नहीं है। जरूरी नहीं कि जिससे तुम्हें प्यार हो वह भी तुमसे प्यार करे। प्यार दोतरफा होना चाहिए; जिससे तुम्हें प्यार हो उसे भी तुमसे प्यार होना चाहिए। अगर उसे तुमसे प्यार होगा तो वह कभी भी तुम्हें छोड़ने या त्यागने का नहीं सोचेगा। अगर जिससे तुम्हें प्यार है वह तुमसे प्यार नहीं करता, तो एक दिन वह तुम्हें छोड़कर चला जाएगा।” क्या ये विचार सही हैं? (नहीं।) तो फिर बताओ, जीवनसाथी चुनते समय तुम लोगों को ऐसे कौन-से सिद्धांत का पालन करना चाहिए जो परमेश्वर के वचनों पर आधारित हो और जो सत्य को अपनी कसौटी मानता हो? इस विषय के बारे में अब तुम लोग अपने पास मौजूद सही विचारों और दृष्टिकोणों के अनुसार बात करो। (अगर मैं एक साथी ढूँढ़ना चाहती हूँ, तो वह कम से कम ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जो परमेश्वर में विश्वास रखता हो, जो सत्य का अनुसरण कर सकता हो, जिसके जीवन का लक्ष्य मेरे जैसा ही हो और जो उसी मार्ग पर चलता हो जिस पर मैं चलती हूँ।) कोई ऐसा व्यक्ति जिसकी महत्वाकांक्षाएँ तुम्हारी जैसी हों, जो उसी मार्ग पर चलता हो जिस पर तुम चलती हो, और जो परमेश्वर में विश्वास करता हो—तुमने जीवनसाथी चुनने के लिए कुछ विशेष कसौटी का जिक्र किया। और कौन बोलना चाहेगा? (हमें यह भी देखना होगा कि क्या उसमें मानवता है, और क्या वह शादीशुदा परिवार में अपनी जिम्मेदारियाँ और दायित्व पूरे कर सकता है। इसके अलावा भी कुछ है : ऐसा नहीं है कि अगर कोई अब शादी के लिए जीवनसाथी खोजना चाहता है तो उसे यकीनन कोई मिल ही जाएगा। इसकी व्यवस्था करना परमेश्वर पर निर्भर है, और व्यक्ति को समर्पण करके इंतजार करना चाहिए।) एक विशेष अभ्यास है, विचार और सिद्धांत का एक विशेष आधार भी है। तुम्हें समर्पण करके इंतजार करना होगा, अपना यह मामला परमेश्वर को सौंपकर उसे इसकी व्यवस्था करने देनी होगी, साथ ही तुम्हें इस मामले को सिद्धांतों के अनुसार भी देखना होगा। और कोई कुछ कहना चाहेगा? (परमेश्वर, मेरा भी यही विचार है, यानी हमें कोई ऐसा व्यक्ति ढूँढ़ना चाहिए जिसकी महत्वाकांक्षाएँ हमारे समान हों और जो उसी मार्ग पर चलता हो जिस पर हम चलते हैं, कोई मानवता वाला व्यक्ति जो जिम्मेदारी उठा सकता हो। व्यक्ति को शादी के बारे में उन गलत विचारों को त्याग देना चाहिए जो शैतान उसमें भरता है, अपने कर्तव्य में दिल लगाना चाहिए, और परमेश्वर की संप्रभुता के प्रति समर्पण करके परमेश्वर की व्यवस्थाओं का इंतजार करना चाहिए।) अगर वह तुम्हारे लिए हीरे की अंगूठी न खरीद पाए, तो भी क्या तुम उससे शादी करोगी? (अगर उसमें मानवता है, तो भले ही वह मेरे लिए हीरे की अंगूठी न खरीद पाए, फिर भी मैं उससे शादी करूँगी।) मान लो कि उसके पास कुछ पैसे हैं और वह तुम्हारे लिए एक कैरेट की हीरे की अंगूठी खरीद सकता है, पर इसके बजाय वह तुम्हारे लिए सबसे लोकप्रिय 0.3 कैरेट की हीरे की अंगूठी खरीदता है, तो क्या तुम उससे शादी करना चाहोगी? (मैं उसके सामने ऐसी कोई माँग नहीं रखूँगी।) ऐसी कोई माँग न रखना ठीक है। पैसे बचाकर, तुम इसे समय के साथ खर्च कर सकते हो, और इसे दीर्घकालिक नजरिया कहते हैं। जीवनसाथी ढूँढ़ने से पहले ही, तुम्हें अच्छी तरह से जीने की मानसिकता मिल गई है—यह बहुत व्यावहारिक है! और कोई? (परमेश्वर, मुझे लगता है कि जीवनसाथी चुनने के लिए मुझे सबसे पहले ये सांसारिक कसौटियाँ त्यागनी होंगी। यानी, मुझे हमेशा एक सलोने राजकुमार, या एक सुंदर और अमीर आदमी, या किसी रोमांटिक व्यक्ति को खोजने के सपने नहीं देखने चाहिए। इन कसौटियों को त्यागने के बाद मुझे शादी को सही दृष्टिकोण से देखना होगा और फिर परमेश्वर के प्रति समर्पण करके सही समय का इंतजार करना चाहिए। इस तरह का कोई व्यक्ति सामने आ भी जाए, तो उसकी महत्वाकांक्षाएँ मेरी जैसी होनी चाहिए और वह उसी मार्ग पर चलना चाहिए जिस पर मैं चलती हूँ। मुझे अपने सांसारिक विचारों पर निर्भर होकर यह माँग नहीं करनी चाहिए कि वह आदमी मेरे प्रति विचारशील हो। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वह सत्य का अनुसरण कर सके और परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील हो।) अगर वह सत्य का अनुसरण करता है, परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील है, अपना कर्तव्य निभाने के लिए बाहर जाता है, इसलिए वह कभी घर पर नहीं होता और तुम्हें पारिवारिक जीवन का बोझ अकेले उठाना पड़ता है, और गैस टैंक में गैस खत्म हो जाने पर तुम्हें खुद इसे उठाकर ऊपर ले जाना पड़ता है, तब तुम क्या करोगी? (मैं यह सब खुद कर लूँगी।) और अगर नहीं कर सको, तो तुम किसी व्यक्ति की मदद ले सकती हो। (या फिर मैं किसी भाई-बहन की मदद ले सकती हूँ।) हाँ, इस स्थिति से निपटने के कई तरीके हैं। तो, अगर वह एक-दो या चार-पाँच साल के लिए दूर रहे, तब क्या तुम गुस्सा होओगी? “क्या यह एक विधवा की तरह जीना नहीं हुआ? उससे शादी करने का क्या मतलब था? क्या यह शादी से पहले जैसी स्थिति नहीं है, जब मैं अकेली रहती थी? मुझे सब कुछ खुद ही संभालना पड़ता है। उससे शादी करना मेरी बदकिस्मती थी!” क्या तुम ऐसा नहीं सोचोगी? (नहीं, मुझे ऐसा नहीं सोचना चाहिए, क्योंकि वह अपना कर्तव्य निभा रहा होगा और एक सही उद्देश्य के लिए काम कर रहा होगा। मुझे इसके लिए गुस्सा नहीं होना चाहिए।) ये विचार तो बड़े अच्छे हैं, पर क्या तुम वास्तविक जीवन में इन सब मुश्किलों से पार पा सकोगी? मान लो कि यह आदमी बेहद सच्चा है, आम तौर पर अपनी बातों और व्यवहार में संयमित रहता है, रोमांटिक नहीं है, और उसने तुम्हारे लिए कभी अच्छे कपड़े नहीं खरीदे, कभी तुम्हें फूल नहीं दिए, और खास तौर से कभी तुमसे यह नहीं कहा, “मैं तुमसे प्यार करता हूँ” या ऐसी कोई और बात नहीं कही, जिससे तुम्हें नहीं पता कि वह तुमसे प्यार करता है या नहीं, पर वह बड़ा अच्छा आदमी है जो तुम्हारे प्रति बहुत विचारशील और जीवन में तुम्हारी देखभाल करता है, वह बस ऐसी बातें नहीं कहता या कुछ रोमांटिक व्यवहार नहीं करता, और जब तुम नाराज हो तो तुम्हें मनाने या शांत करने की कोशिश नहीं करता—तो क्या उसके लिए तुम्हारे दिल में कोई नाराजगी नहीं होगी? (जब मैं परमेश्वर में विश्वास नहीं करती थी और सत्य नहीं समझती थी तब शायद मुझे नाराजगी होती, पर परमेश्वर की संगति सुनने के बाद, अब मुझे पता है कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि वह ऐसी बातें कहता है और वैसी रोमांटिक चीजें करता है या नहीं। ये सांसारिक लोगों के विचार हैं और सामान्य मानवता वाले लोगों को इनका अनुसरण नहीं करना चाहिए। मुझे इन चीजों को त्याग देना चाहिए और फिर मैं शिकायत नहीं करूँगी।) तुम्हें शिकायत नहीं करनी चाहिए, है न? (सही कहा।) अभी तुम उस स्थिति में नहीं हो, और यह नहीं जानती कि तुम उस परिस्थिति में क्या महसूस करोगी, या तुम्हारा गुस्सा कैसे बढ़ेगा और मिजाज कैसे बदलेगा। हालाँकि, अभी सैद्धांतिक रूप से, तुम सभी जानते हो कि क्योंकि तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो, तो तुम्हें अपने जीवनसाथी से ऐसी अनुचित माँगें नहीं करनी चाहिए, न ही ऐसी चीजें होने पर तुम्हें अपने जीवनसाथी के खिलाफ शिकायत करनी चाहिए, क्योंकि ये वो चीजें नहीं हैं जो तुम चाहते हो। अभी तुम्हारे पास ये विचार हैं, पर क्या तुम उन्हें हासिल करने में सक्षम हो? क्या उन्हें हासिल करना आसान है? (हमें अपनी प्राथमिकताओं और अपने सांसारिक विचारों के खिलाफ विद्रोह करना चाहिए; फिर इन चीजों को त्यागना काफी आसान हो जाएगा।) मैं बताता हूँ कि तुम्हें इस मामले से कैसे निपटना चाहिए। पुरुषों और महिलाओं, सभी को इन समस्याओं का सामना करना पड़ेगा और शादीशुदा जीवन में ये विचार और मनोदशाएँ होंगी और सभी की ये जरूरतें होंगी। लेकिन सबसे बुनियादी बात तो तुम्हें यह समझनी चाहिए कि अगर तुम अपने दिल की इच्छा के अनुसार जीवनसाथी चुनती हो—इस तथ्य को अलग रखते हुए कि यह परमेश्वर द्वारा व्यवस्थित किया गया था—अगर तुमने उसे खुद चुना है और तुम उसके बारे में हर चीज से संतुष्ट हो, और विशेष रूप से, तुम्हारी और उसकी महत्वाकांक्षाएँ एक समान हैं और वह उसी मार्ग पर चलता है जिस पर तुम चलती हो, वह परमेश्वर के घर में अपना कर्तव्य निभा सकता है, उसका किया हर कार्य उचित है, तो तुम्हें एक तर्कसंगत रवैया अपनाकर उसे ऐसा करने देना चाहिए, उसे तुम्हारी भावनाओं और तुम्हारे अस्तित्व को भी अनदेखा करने देना चाहिए—सैद्धांतिक रूप से, तुम्हें ऐसा करने की कोशिश करनी चाहिए। इसके अलावा, अगर किसी विशेष स्थिति या किसी विशेष घटना के कारण ऐसी जरूरत या मनोदशा उत्पन्न होती है, तो तुम्हें परमेश्वर के सामने आकर प्रार्थना करनी चाहिए। क्या तुम प्रार्थना के बाद इन चीजों को पूरी तरह से त्याग पाओगी? बिल्कुल नहीं। आखिरकार लोग अपनी सामान्य मानवता के भीतर जीते हैं, उनके पास दिमाग है, और उनका दिमाग उनमें सभी प्रकार की मनोदशाएँ पैदा करेगा। हम अभी इस पर चर्चा नहीं करेंगे कि ये मनोदशाएँ सही हैं या गलत। फिलहाल, सबसे व्यावहारिक समस्या यह है कि तुम्हें इन मनोदशाओं को त्यागना मुश्किल लगता है। भले ही तुम उन्हें एक बार त्याग सको, वे फिर से किसी प्रकार की ठोस स्थिति में सामने आ सकते हैं। ऐसे में तुम्हें क्या करना चाहिए? तुम्हें उनसे परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि सैद्धांतिक रूप में, और स्वरूप और तर्कसंगतता के संदर्भ में, तुम पहले ही इस अनुसरण या आवश्यकता को त्याग चुके हो। बात बस इतनी है कि अपनी मानवता के कारण, अलग-अलग उम्र के लोगों की ये जरूरतें होंगी और वे अलग-अलग स्तर पर और कमोवेश इन मनोदशाओं का अनुभव करेंगे। तुम्हें इन वास्तविक स्थितियों के बारे में स्पष्टता है और इस बार परमेश्वर से प्रार्थना करके इस मनोदशा को त्याग देती हो, या फिर तुम जिस मनोदशा का अनुभव कर रही हो वह इतनी गंभीर नहीं है और तुम इसे बहुत गंभीरता से नहीं लेती। हालाँकि, निश्चित रूप से अगली बार फिर से तुम इसी मनोदशा का अनुभव करोगी। तब तुम्हारा विशिष्ट अभ्यास क्या रहेगा? यह कि तुम्हें यह कहते हुए इस पर कोई ध्यान देने या इसे गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है, “अरे, मेरे स्वभाव का यह पहलू अभी तक नहीं बदला है।” यह किसी प्रकार का स्वभाव नहीं है; यह बस एक अस्थायी मनोदशा है जिसका तुम्हारे स्वभाव से कोई लेना-देना नहीं है। न ही तुम्हें यह कहते हुए बात का बतंगड़ बनाने की जरूरत है, “अरे, मैं अभी भी ऐसी क्यों हूँ? क्या मैं सत्य का अनुसरण नहीं करती? मैं इस तरह का व्यवहार कैसे कर रही हूँ? कितनी बुरी बात है!” बात का बतंगड़ बनाने की कोई जरूरत नहीं है; यह तुम्हारी सामान्य मानवता की विभिन्न भावनाओं से संबंधित मनोदशा की अभिव्यक्ति मात्र है। इस पर ध्यान मत दो। यह मनोदशा को संभालने के संबंध में एक दृष्टिकोण है। इसके अलावा, अगर यह तुम्हारे सामान्य जीवन, आध्यात्मिक जीवन, या तुम्हारे कर्तव्य निभाने के क्रम और नियमितता को प्रभावित नहीं करता है, तो सब ठीक है। उदाहरण के लिए, मान लो कि तुम्हारा पति (या पत्नी) अपना कर्तव्य निभाने में व्यस्त है, तुम्हें एक-दूसरे को देखे हुए काफी समय हो गया है, और तुम्हारे पास आपस में बात करने का समय नहीं है। एक दिन तुम अचानक एक बहन को उसके पति के साथ बातचीत करते हुए देखती हो, और तुम्हारे दिल में एक मनोदशा उत्पन्न होती है, और तुम सोचती हो, “देखो, वह अपने पति के साथ मिलकर अपना कर्तव्य निभा सकती है। वे बहुत खुश और सुखी हैं। मेरा पति ही इतना निष्ठुर क्यों है? वह मुझसे यह क्यों नहीं पूछता, ‘तुम कैसी हो? क्या तुम ठीक हो?’ उसे मेरी चिंता क्यों नहीं है? वह मेरी कद्र क्यों नहीं करता या मुझसे प्यार क्यों नहीं करता?” तुम इस प्रकार की मनोदशा का अनुभव करती हो, और कुछ समय बाद सोचती हो, “अरे, नाराज होना अच्छी बात नहीं है।” यह जानते हुए भी कि ऐसा महसूस करना सही नहीं है, तुम ऐसा महसूस करती हो और खुद से बहस करते हुए कहती हो, “मैं उसे परेशान नहीं करूँगी, मैं बस इंतजार करूँगी कि वह मुझ पर ध्यान देना शुरू करे। अगर वह ऐसा नहीं करेगा तो मैं उससे नाराज हो जाऊँगी। हमारी शादी को इतने साल हो गए हैं, इतने समय में हमने एक-दूसरे को नहीं देखा है और वह अब भी नहीं कहता कि उसे मेरी याद आती है। उसे मेरी याद आती भी है या नहीं? उसे मुझसे कोई फर्क नहीं पड़ता, तो मैं भी उसकी कोई परवाह नहीं करूँगी!” तुम खुद से बहस करते हुए इसी मनोदशा में रहती हो। पल भर के लिए तुममें गुस्से का सैलाब और मनोदशा उत्पन्न हो जाती है। अगर तुम सामान्य रूप से सो और खा सकती हो, परमेश्वर के वचन पढ़ सकती हो, सभाओं में भाग ले सकती हो, अपना कर्तव्य सामान्य रूप से निभा सकती हो, और अपने भाई-बहनों के साथ सामान्य रूप से मिल-जुलकर रह सकती हो, तो तुम्हें ऐसी मनोदशाओं के बारे में चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है, और तुम अपने दिल में जो चाहो वह सोच सकती हो। तुम जो भी सोचती हो, अगर तुम्हारी तर्कशक्ति सामान्य है और तुम सामान्य रूप से अपना कर्तव्य निभा रही हो, तो कोई दिक्कत नहीं है। तुम्हें इसे जबरदस्ती दबाने की जरूरत नहीं है, न ही तुम्हें जबरदस्ती परमेश्वर से प्रार्थना करते हुए उसे तुम्हें अनुशासित करने या ताड़ना देने को कहने या खुद को पापी महसूस करने की जरूरत है। बात का बतंगड़ बनाने की कोई जरूरत ही नहीं है, क्योंकि यह मनोदशा जल्द ही खत्म हो जाएगी। अगर तुम्हें वाकई अपने पति की इतनी याद आती है, तो तुम उसे फोन करके उसका हाल-चाल पूछ सकती हो, तुम दोनों दिल खोलकर एक-दूसरे से बात कर सकते हो, और तब क्या वो अस्थायी मनोदशाएँ और गलतफहमियाँ दूर नहीं हो जाएँगी? दरअसल, उसे कुछ भी करने की जरूरत नहीं है। कभी-कभी तुम्हें बस एक क्षणिक एहसास होगा और तुम उसकी आवाज सुनना चाहोगी, या तुम कुछ समय के लिए अकेलापन और असंतुष्ट महसूस कर सकती हो, या तुम दुखी महसूस कर सकती हो, तब तुम फोन करके उससे बात कर सकती हो। तब तुम्हें पता चलता है कि वह ठीक है, वह तुमसे पहले की तरह ही बेपनाह प्यार करता है और तुम उसकी यादों में बसती हो। बात बस इतनी है कि वह काम में व्यस्त है, या ऐसा इसलिए है क्योंकि पुरुष बारीकियों को लेकर कुछ हद तक लापरवाह हो सकते हैं और वह अपने कर्तव्य में व्यस्त है जिससे उसे यह नहीं लगता कि बहुत समय हो गया है, और यही कारण है कि उसने तुमसे संपर्क नहीं किया। क्या यह अच्छी बात नहीं है कि वह व्यस्त है और सामान्य रूप से अपना कर्तव्य निभा रहा है? तुम यही चाहती थी न? अगर उसने कोई बुरा काम किया, कोई विघ्न डाला या गड़बड़ी की, जिस वजह से उसे हटा दिया गया, तो क्या तुम्हें उसकी चिंता नहीं होगी? अभी उसके साथ सब कुछ सामान्य है, और सब पहले जैसा ही है—क्या इससे तुम्हारा मन शांत नहीं है? तुम्हें और क्या चाहिए? ऐसा ही होता है न? (हाँ, बिल्कुल।) जैसा कि अविश्वासी कहते हैं, इस तरह से कॉल करके एक-दूसरे से बात करने से दिल में अकेलापन और तड़प की भावनाएँ दूर हो जाती हैं, और क्या तब यह समस्या हल नहीं हो जाती? क्या कोई दिक्कत है? बताओ मुझे, अपने पति को फोन करके उसका हाल-चाल पूछना—क्या परमेश्वर ऐसी बात की निंदा करता है? (नहीं।) तुम दोनों कानूनन पति-पत्नी हो, और फोन करके उससे बात करना, एक-दूसरे के प्रति अपनी तड़प दिखाना, यह सब उचित है, यह सामान्य मानवीय भावना है, और यह कुछ ऐसा है जो तुम्हें मानवता के दायरे में करना चाहिए। इसके अलावा, यह मानवजाति के लिए शादी को लेकर परमेश्वर के विधान में शामिल है—एक-दूसरे का साथ देना, एक-दूसरे को सुकून देना और एक-दूसरे का सहयोग करना। अगर वह ये जिम्मेदारियाँ नहीं निभाता है, तो क्या तुम इन्हें निभाने में उसकी मदद नहीं कर सकती हो? यह बहुत ही सरल मामला है जिसे संभालना बहुत आसान है। क्या इस प्रकार अभ्यास करने से यह समस्या हल नहीं होती? क्या तुम्हारे दिल में सभी प्रकार की मनोदशाओं का पनपना जरूरी है? नहीं, बिल्कुल नहीं। इस पर अमल करना सरल है।

मैंने जो अभी सवाल पूछा उस पर वापस आते हैं : “लोगों को शादी से जुड़ी अपनी तमाम फंतासियों को कैसे त्यागना चाहिए?” तुम सबने इस सवाल के जवाब में अपने-अपने विचार दिए। अगर लोग शादी से जुड़ी अपनी तमाम फंतासियों को त्यागना चाहते हैं, तो उन्हें पहले आस्था रखनी होगी और परमेश्वर की व्यवस्थाओं और विधान के प्रति समर्पण करना होगा। तुम्हारे मन में शादी के बारे में कोई व्यक्तिपरक या अवास्तविक कल्पनाएँ नहीं होनी चाहिए, जैसे कि तुम्हारा जीवनसाथी कौन है या वह कैसा व्यक्ति है; तुम्हें परमेश्वर के प्रति समर्पित रवैया रखना चाहिए, परमेश्वर की व्यवस्थाओं और विधान के प्रति समर्पण करना चाहिए, और यह भरोसा रखना चाहिए कि परमेश्वर तुम्हारे लिए सबसे उपयुक्त व्यक्ति ही चुनेगा। क्या समर्पित रवैया होना जरूरी नहीं है? (बिल्कुल है।) दूसरी बात, तुम्हें जीवनसाथी चुनने के उन मानदंडों को भी त्यागना होगा जो समाज की दुष्ट प्रवृत्तियों ने तुममें डाले हैं और फिर अपना जीवनसाथी चुनने के लिए सही मानदंड स्थापित करना होगा, यानी कम से कम तुम्हारा जीवनसाथी ऐसा व्यक्ति हो जो तुम्हारी तरह परमेश्वर में विश्वास करे और उसी मार्ग पर चले जिस पर तुम चलती हो—यह बात सामान्य परिप्रेक्ष्य से है। इसके अलावा, तुम्हारा जीवनसाथी शादी में एक पुरुष या महिला की जिम्मेदारियाँ निभाने में सक्षम होना चाहिए; उसे एक जीवनसाथी की जिम्मेदारियाँ निभानी आनी चाहिए। तुम इस पहलू को कैसे आँकोगी? तुम्हें अपने जीवनसाथी की मानवता की गुणवत्ता देखनी चाहिए, जैसे कि क्या उसमें जिम्मेदारी की भावना और अंतरात्मा है। और तुम यह कैसे आँकोगी कि किसी के पास अंतरात्मा और मानवता है या नहीं? अगर तुम उसके साथ नहीं जुड़ती तो तुम्हारे पास यह जानने का कोई और तरीका नहीं होगा कि उसकी मानवता कैसी है, और अगर तुम उनके साथ जुड़ती हो, वो भी काफी कम समय के लिए, तब भी शायद तुम यह पता न लगा पाओ कि वह कैसा व्यक्ति है। तो फिर, तुम यह कैसे आँकोगी कि उस व्यक्ति में मानवता है या नहीं? तुम यह देखोगी कि वह व्यक्ति अपने कर्तव्य की, परमेश्वर के आदेश की, और परमेश्वर के घर के कार्य की जिम्मेदारी उठाता है या नहीं, और क्या वह परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा कर सकता है और क्या वह अपने कर्तव्य में ईमानदार है—यह किसी व्यक्ति की मानवता की गुणवत्ता को आँकने का सबसे अच्छा तरीका है। मान लो कि इस व्यक्ति का चरित्र बहुत सच्चा है और वह परमेश्वर के घर द्वारा सौंपे गए कार्य को लेकर बेहद समर्पित, जिम्मेदार, गंभीर और ईमानदार रहता है, वह बहुत सावधानी बरतता है, बिल्कुल भी लापरवाही नहीं करता, किसी चीज को अनदेखा नहीं करता, और वह सत्य का अनुसरण करता है, परमेश्वर की हर बात ध्यान से और निष्ठापूर्वक सुनता है। जैसे ही उसे परमेश्वर के वचन समझ में आ जाते हैं, वह फौरन उन्हें अभ्यास में लाता है; भले ही ऐसे व्यक्ति में ऊँची काबिलियत न हो, पर कम से कम वह अपने कर्तव्य और कलीसिया के कार्य के प्रति अनमना नहीं होता, और ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारी निभा सकता है। अगर वह अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठावान और जिम्मेदार है, तो वह यकीनन सच्चे दिल से तुम्हारे साथ अपना जीवन बिताएगा और मरते दम तक तुम्हारी जिम्मेदारी उठाएगा—ऐसे व्यक्ति का चरित्र परीक्षणों का सामना कर सकता है। भले ही तुम बीमार पड़ो, बूढ़ी हो जाओ, बदसूरत हो जाओ या तुममें दोष और कमियाँ हों, यह व्यक्ति हमेशा तुम्हारे साथ उचित व्यवहार कर तुम्हें बर्दाश्त करेगा, और वह हमेशा तुम्हारी और तुम्हारे परिवार की हिफाजत करने, तुम्हें टिकाऊ जीवन देने की अपनी पूरी कोशिश करेगा, ताकि तुम शांति से जी सको। शादीशुदा जीवन में यह किसी भी महिला-पुरुष के लिए सबसे खुशी की बात होती है। ऐसा जरूरी नहीं कि वह तुम्हें एक समृद्ध, विलासितापूर्ण या रोमांटिक जीवन दे सके, और यह भी जरूरी नहीं कि वह तुम्हें स्नेह या किसी अन्य पहलू के संदर्भ में कुछ भी अलग दे सके, पर कम-से-कम वह तुम्हें सुकून देगा और उसके साथ तुम्हारा जीवन व्यवस्थित हो जाएगा, और कोई खतरा या असहजता की भावना नहीं रहेगी। उस व्यक्ति को देखकर तुम यह जान लोगी कि 20-30 साल बाद या बुढ़ापे में उसके साथ जीवन कैसा होगा। जीवनसाथी चुनने के लिए इस तरह का व्यक्ति ही तुम्हारा मानदंड होना चाहिए। बेशक, जीवनसाथी चुनने का यह मानदंड थोड़ा ऊँचा है और आधुनिक मानवजाति के बीच ऐसे व्यक्ति को खोजना आसान नहीं है, है न? यह आँकने के लिए कि किसी का चरित्र कैसा है और क्या वह शादी में अपनी जिम्मेदारियाँ निभा पाएगा, तुम्हें कर्तव्य के प्रति उसका रवैया देखना होगा—यह एक पहलू है। दूसरा पहलू यह देखना होगा कि क्या उसके पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल है। अगर है, तो कम-से-कम वह कुछ भी अमानवीय या अनैतिक काम नहीं करेगा, और इसलिए वह यकीनन तुम्हारे साथ अच्छी तरह पेश आएगा। अगर उसके पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल नहीं है, वह बेशर्म और मनमाना है, या उसकी मानवता दुष्ट, कपटी और अहंकारी है; अगर उसके दिल में परमेश्वर नहीं है और वह खुद को दूसरों से श्रेष्ठ मानता है; अगर वह अपने कार्य, अपने कर्तव्यों और यहाँ तक कि परमेश्वर के आदेश और परमेश्वर के घर के किसी भी प्रमुख मामले से मनमाने तरीके से निपटता है, मनमर्जी से काम करता है, कभी भी सतर्क नहीं रहता, सिद्धांत नहीं खोजता, और खास तौर से चढ़ावे के मामले में वह इन्हें लापरवाही से लेकर इनका गलत इस्तेमाल करता है और वह किसी बात से नहीं डरता, तो तुम्हें ऐसे किसी व्यक्ति की तलाश बिल्कुल भी नहीं करनी चाहिए। परमेश्वर का भय मानने वाले दिल के बिना वह आदमी कुछ भी कर सकता है। अभी ऐसा आदमी शायद तुमसे मीठी-मीठी बातें कर अपने अटूट प्यार का वादा करे, पर एक दिन आएगा जब वह खुश नहीं होगा, जब तुम उसकी जरूरतों को पूरा नहीं कर पाओगी और उसके मन को नहीं भाओगी, तब वह कहेगा कि उसे तुमसे प्यार नहीं है और अब उसके दिल में तुम्हारे लिए कोई भावना नहीं है, और वह जब चाहे तब तुम्हें छोड़कर चला जाएगा। भले ही तुम दोनों का अभी तक तलाक न हुआ हो, फिर भी वह किसी और को ढूँढ़ने में लग जाएगा—यह सब मुमकिन है। वह तुम्हें कभी भी, कहीं भी छोड़ सकता है और वह कुछ भी करने में सक्षम है। ऐसे पुरुष बहुत खतरनाक होते हैं और उन्हें अपना पूरा जीवन सौंप देना ठीक नहीं है। अगर तुम्हें अपने प्रेमी, अपने प्रियतम, अपने चुने हुए जीवनसाथी के रूप में ऐसा व्यक्ति मिले, तो तुम मुसीबत में पड़ जाओगी। चाहे वह लंबा, अमीर और सुंदर ही क्यों न हो, बेहद प्रतिभाशाली क्यों न हो, और भले ही वह तुम्हारी अच्छी देखभाल करता हो और तुम्हारा ख्याल रखता हो, और सतही तौर पर कहें, तो वह विशेष रूप से उन मानदंडों पर खरा उतरता हो कि वह तुम्हारा बॉयफ्रेंड है या पति हो सके, फिर भी अगर उसके पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल नहीं है, तो यह व्यक्ति तुम्हारा जीवनसाथी नहीं हो सकता। अगर तुम उस पर मुग्ध होकर उसके साथ प्रेम की डगर पर कदम बढ़ाती हो और फिर उससे शादी कर लेती हो, तो वह तुम्हारे जीवनभर के लिए बुरा अनुभव और तबाही बनकर रह जाएगा। तुम कहती हो, “मैं नहीं डरती, मैं सत्य का अनुसरण करती हूँ।” तुम एक दुष्ट के चंगुल में फँस चुकी हो, जो परमेश्वर से नफरत करता है, परमेश्वर की अवज्ञा करता है, और परमेश्वर में तुम्हारा विश्वास भंग करने के लिए हर तरह के पैंतरे आजमाता है—क्या तुम इस मुसीबत से उबर लोगी? अपने छोटे आध्यात्मिक कद और आस्था से तुम उसके अत्याचार को बर्दाश्त नहीं कर पाओगी, और कुछ दिन बाद ही तुम इतनी त्रस्त हो जाओगी कि दया की भीख माँगने लगोगी और परमेश्वर में विश्वास जारी नहीं रख पाओगी। तुम परमेश्वर में अपना भरोसा खो बैठोगी और तुम्हारा मन इस शत्रुतापूर्ण द्वंद्व से भरा होगा। यह मांस की चक्की में पिसकर टुकड़े-टुकड़े हो जाने जैसा है, इसमें मनुष्य जैसा कुछ भी नहीं है, तुम पूरी तरह इस दलदल में फँस चुकी होगी, जब तक कि आखिर में तुम्हारा हश्र उसी शैतान जैसा नहीं हो जाता जिससे तुमने शादी की है, और तुम्हारा जीवन वहीं खत्म हो जाएगा।

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