सत्य का अनुसरण कैसे करें (10) भाग एक
आज हम उसी विषय पर संगति जारी रखेंगे जिसके बारे में पिछली बैठक में बात की थी। हमारी पिछली बैठक की संगति का विषय क्या था? (पिछली बार, परमेश्वर ने मुख्य रूप से दो विषयों पर संगति की थी। सबसे पहले, परमेश्वर ने लोगों द्वारा उठाए इस सवाल पर संगति की थी : “अगर मानवजाति ने अपने आदर्शों और इच्छाओं का अनुसरण न किया होता, तो क्या आज संसार इतना विकसित हुआ होता?” इसके बाद, परमेश्वर ने शादी के बारे में लोगों के कुछ गलत परिप्रेक्ष्यों और दृष्टिकोणों पर, और फिर शादी की सही अवधारणा और परिभाषा के बारे में संगति की।) पिछली बार मैंने एक बहुत व्यापक विषय, शादी के बारे में संगति की थी। शादी एक व्यापक विषय है जो संपूर्ण मानवजाति से संबंधित और मानव विकास के इतिहास में रचा-बसा है। यह विषय लोगों के रोजमर्रा के जीवन से संबंधित है, और हरेक के लिए महत्वपूर्ण है। पिछली बार हमने इस विषय से संबंधित कुछ बातों पर संगति की थी, मुख्य रूप से शादी की उत्पत्ति और ढाँचे के साथ-साथ शादी में दोनों पक्षों के लिए परमेश्वर के निर्देश और विधान, और शादी में दोनों पक्षों को जो जिम्मेदारियाँ और दायित्व निभाने चाहिए, उनके बारे में संगति की थी। यह मुख्य रूप से किस पर आधारित थी? (बाइबल के अभिलेख पर।) यह संगति बाइबल में दर्ज वचनों और पदों पर आधारित थी, जिसमें परमेश्वर ने मानवजाति की रचना करने के बाद उसके लिए शादी का विधान बनाया था, है न? (हाँ।) हमारी पिछली संगति से, और मनुष्य की शादी के संबंध में बाइबल में दर्ज परमेश्वर के कुछ कथनों और कार्यों के बारे में पढ़कर, क्या अब तुम लोगों के पास शादी की कोई सटीक परिभाषा है? कुछ लोग कहते हैं : “हम युवा हैं, हमारे पास शादी की कोई अवधारणा नहीं है, न ही हमारे पास कोई अनुभव है। शादी को परिभाषित करना हमारे लिए मुश्किल है।” क्या यह मुश्किल है? (नहीं।) यह मुश्किल नहीं है। तो हमें शादी को कैसे परिभाषित करना चाहिए? मनुष्य की शादी के संबंध में परमेश्वर के कथनों और क्रियाकलापों के आधार पर, क्या तुम लोगों के पास शादी की सटीक परिभाषा नहीं होनी चाहिए? (होनी चाहिए।) शादी के संबंध में, चाहे तुम शादीशुदा हो या नहीं, तुम्हें अब मेरी संगति के शब्दों का सटीक ज्ञान होना चाहिए। यह सत्य का वह पहलू है जिसे तुम्हें जरूर समझना चाहिए। इस परिप्रेक्ष्य से बात करें, तो चाहे तुम्हारे पास शादी का कोई अनुभव हो या न हो, चाहे तुम्हें शादी में कोई दिलचस्पी हो या न हो, और शादी के संबंध में तुमने अतीत में जो भी जोड़-तोड़ की होगी और योजनाएँ बनाई होंगी, जब तक यह मामला सत्य के अनुसरण से जुड़ा है, तुम्हें इसके बारे में जरूर जानना चाहिए। यह एक ऐसा मामला भी है जिसे तुम्हें स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए, क्योंकि यह सत्य, मानवीय विचारों और दृष्टिकोणों, लोगों के सत्य के अनुसरण, तुम्हारे सिद्धांतों और सत्य के अनुसरण के मार्ग पर अभ्यास से संबंधित है। तो, चाहे तुमने पहले शादी का अनुभव किया हो या नहीं, चाहे तुम्हें शादी में रुचि हो या नहीं, या तुम्हारी शादी को लेकर तुम्हारी स्थिति जो भी हो, अगर तुम सत्य का अनुसरण करके उद्धार पाना चाहते हो, तो तुम्हारे पास शादी के संबंध में सटीक ज्ञान, सही विचार और दृष्टिकोण होने चाहिए, ठीक वैसे ही जैसे तुम्हारे पास सत्य से जुड़े किसी भी मामले में होता; तुम्हें अपने दिल में इसका प्रतिरोध नहीं करना चाहिए, या अपनी नजरों पर पर्दा चढ़ाकर इसके बारे में धारणाएँ नहीं बनानी चाहिए या अपनी पृष्ठभूमि और परिस्थिति के आधार पर इससे नहीं निपटना चाहिए या इसके बारे में कोई फैसला नहीं करना चाहिए। ये सभी गलत दृष्टिकोण हैं। शादी, किसी भी अन्य मामले की तरह, लोगों के दृष्टिकोण, नजरिये और परिप्रेक्ष्य से संबंधित है। अगर तुम शादी के मामले पर सही, सत्य के अनुरूप विचार, दृष्टिकोण, परिप्रेक्ष्य और राय रखना चाहते हो, तो तुम्हारे पास इस मामले का सटीक ज्ञान और परिभाषा होनी चाहिए, जो सभी सत्य से संबंधित हो। तो, जब शादी की बात आती है, तो तुम्हारे पास सही ज्ञान होना चाहिए और उस सत्य को समझना चाहिए जो परमेश्वर इस मामले में लोगों को समझाना चाहता है। सत्य को समझकर ही तुम्हारे पास शादी करने के बाद या जब तुम्हारे जीवन में शादी से संबंधित समस्याएँ होंगी तब इस विषय का सामना करने के लिए सही विचार और दृष्टिकोण हो सकते हैं; सिर्फ तभी तुम्हारे पास इस पर सही दृष्टिकोण और परिप्रेक्ष्य हो सकते हैं, और बेशक, शादी से जुड़ी समस्याओं को हल करने के लिए एक सटीक मार्ग हो सकता है। कुछ लोग कहते हैं : “मैं कभी शादी नहीं करूँगा।” और शायद तुम कभी करोगे भी नहीं, पर तुम्हारे पास शादी के बारे में अपरिहार्य रूप से कुछ छोटे-बड़े, सही-गलत, विचार और दृष्टिकोण होंगे। इसके अलावा, जीवन में तुम्हारा निश्चित तौर पर कुछ ऐसे लोगों या चीजों से सामना होगा जो शादी के मामले से जुड़ी समस्याएँ खड़ी करेंगी, तो तुम इन समस्याओं को कैसे देखोगे और इन्हें कैसे हल करोगे? जब शादी से संबंधित ये समस्याएँ सामने आती हैं, तो सटीक विचार, नजरिया, राय और अभ्यास के सिद्धांत रखने के लिए तुम्हें क्या करना चाहिए? परमेश्वर के इरादों के अनुरूप होने के लिए तुम्हें कैसे कार्य करना चाहिए? यह कुछ ऐसा है जिसे तुम्हें समझना चाहिए, जिसे तुम्हें आगे बढ़ते हुए अपनाना चाहिए। मेरा यह कहने का क्या मतलब है? मेरा मतलब है कि कुछ लोग ऐसे हैं जो सोचते होंगे कि शादी का उनसे कोई लेना-देना नहीं है, इसलिए वे ध्यान से नहीं सुनते हैं। क्या यह सही दृष्टिकोण है? (नहीं।) सही कहा। चाहे मैं जिस किसी विषय पर संगति करूँ, अगर यह सत्य से संबंधित है, सत्य का अनुसरण करने से संबंधित है, लोगों और चीजों को देखने, आचरण और कार्य करने के आधार और मानदंडों से संबंधित है, तो तुम्हें इसे स्वीकार कर ईमानदारी और ध्यान से सुनना चाहिए। क्योंकि यह सामान्य ज्ञान नहीं है, न ही यह ज्ञान है, पेशेवर ज्ञान होना तो दूर की बात है—यह सत्य है।
आओ हम फिर से शादी के विषय पर संगति जारी रखें। शादी की परिभाषा क्या होनी चाहिए? शादी के संबंध में परमेश्वर के विधान और व्यवस्थाओं के साथ-साथ दोनों शादीशुदा पक्षों के लिए उसके उपदेशों और निर्देशों के आधार पर, जिनके बारे में मैंने पिछली बार संगति की थी, शादी को लेकर तुम लोगों की अवधारणा और परिभाषा भ्रमित नहीं होनी चाहिए; बल्कि, यह बिल्कुल साफ और स्पष्ट होनी चाहिए। शादी परमेश्वर के विधान और व्यवस्थाओं के तहत एक पुरुष और एक महिला का मिलन होना चाहिए। यही शादी की संरचना है, जिसकी कुछ पूर्व शर्तें हैं। परमेश्वर के विधान और व्यवस्थाओं के तहत, एक पुरुष और एक महिला का मिलन शादी कहलाती है। ऐसा ही है न? (हाँ।) क्या शादी की ऐसी परिभाषा सैद्धांतिक रूप से सटीक नहीं है? (बिल्कुल है।) हम इसे सटीक कैसे कह सकते हैं? तुम लोगों को पक्का यकीन कैसे है कि यह सटीक है? क्योंकि यह बाइबल के अभिलेख पर आधारित है, और इसमें ऐसे संकेत हैं जिनका पालन किया जा सकता है। बाइबल के अभिलेख स्पष्ट रूप से शादी की उत्पत्ति की व्याख्या करते हैं। यही शादी की परिभाषा है। शादी की इस स्पष्ट परिभाषा के आधार पर, आओ अब देखें कि शादी में दोनों पक्ष कौन से कर्तव्य निभाते हैं। पिछली बैठक में हमने बाइबल के जो अंश पढ़े थे, क्या उनमें यह स्पष्ट रूप से दर्ज नहीं था? (बिल्कुल था।) शादी में दोनों पक्षों द्वारा निभाए जाने वाले सभी कर्तव्यों में से सबसे सरल कर्तव्य एक-दूसरे का साथ देना और मदद करना है। तो फिर, महिला के लिए परमेश्वर का क्या निर्देश था? (परमेश्वर ने महिला से कहा : “मैं तेरी पीड़ा और तेरे गर्भवती होने के दुःख को बहुत बढ़ाऊँगा; तू पीड़ित होकर बालक उत्पन्न करेगी; और तेरी लालसा तेरे पति की ओर होगी, और वह तुझ पर प्रभुता करेगा” (उत्पत्ति 3:16)।) बाइबल में इसी तरह से कहा गया है। हमारे आधुनिक शब्दों के हिसाब से, महिला के लिए परमेश्वर का निर्देश यह था कि वह अपना कर्तव्य निभाए। वह कौन सा कर्तव्य था? बच्चे पैदा करना, उनका पालन-पोषण करना और अपने पति की देखभाल करना और उससे बहुत प्यार करना। यह महिला के लिए परमेश्वर का निर्देश था। तो परमेश्वर ने पुरुष को कौन-सा कर्तव्य निभाने का निर्देश दिया? घर के मुखिया होने के नाते, पुरुष को पारिवारिक जीवन का बोझ उठाना और कड़ी मेहनत करके परिवार का भरण-पोषण करना होगा। उसे परिवार के सदस्यों, अपनी पत्नी और अपने जीवन का प्रबंध करने का बोझ भी उठाना होगा। महिला-पुरुषों के बीच परमेश्वर ने इस तरह कर्तव्यों को बाँटा है। महिला-पुरुषों के कर्तव्यों के बारे में तुम्हें स्पष्ट और निश्चित होना चाहिए। यही शादी की परिभाषा और ढाँचा है; साथ ही, वे जिम्मेदारियाँ और दायित्व भी हैं जो दोनों पक्षों को अपने ऊपर लेनी चाहिए और उन्हें पूरा करना चाहिए। यही शादी है और इसकी वास्तविक विषय-वस्तु है। हमने शादी के संबंध में जिन चीजों पर चर्चा की है, क्या उसमें कोई नकारात्मक बातें हैं? (नहीं।) इसमें कोई नकारात्मक बात नहीं है। यह सब अधिकतम शुद्ध, सत्य के अनुरूप, तथ्यों के अनुरूप और परमेश्वर के वचनों के अनुरूप है। बाइबल के अभिलेखों को आधार मानें, तो शादी का मामला आधुनिक लोगों के लिए बहुत निश्चित और स्पष्ट हो जाता है; हमें शादी की उत्पत्ति के बारे में बात करने के लिए पहले से बहुत सारी शर्तें रखने या बहुत से शब्दों का उपयोग करने की जरूरत नहीं है। यह आवश्यक नहीं है। शादी की परिभाषा स्पष्ट है, और शादी में दोनों पक्षों को जो कर्तव्य अपने ऊपर लेने चाहिए, जो दायित्व उन्हें पूरे करने चाहिए, वे भी स्पष्ट और निश्चित हैं। जब ये बातें किसी व्यक्ति को स्पष्ट और निश्चित हो जाती हैं, तो उसके सत्य के अनुसरण पर क्या प्रभाव पड़ता है? शादी की परिभाषा, संरचना और दोनों पक्षों के कर्तव्यों को समझने के पीछे क्या अर्थ है? यानी, इन चीजों पर संगति करने से लोगों पर क्या परिणाम और क्या प्रभाव होते हैं? आम भाषा में कहें, तो यह सब सुनकर तुम लोगों को क्या फायदा होता है? (जब शादी से हमारा सामना होता है या जब हम शादी के मामले को देखते हैं, तो इससे हमें चीजों को देखने के लिए एक सही और सत्य के अनुरूप दृष्टिकोण रखने में मदद मिलती है; हम दुष्ट प्रवृत्तियों या शैतान द्वारा डाले गए विचारों से प्रभावित या पथभ्रष्ट नहीं होंगे।) यह एक सकारात्मक प्रभाव है। क्या शादी की परिभाषा, इसके ढाँचे और दोनों पक्षों के कर्तव्यों पर संगति करने से लोग शादी के संबंध में सही विचार और दृष्टिकोण रख पाते हैं? (हाँ।) जब किसी व्यक्ति के पास सही विचार और दृष्टिकोण होते हैं, तो क्या इनके फायदे और सकारात्मक प्रभाव उसे अपनी चेतना में शादी के बारे में सही दृष्टिकोण स्थापित करने में सक्षम बनाते हैं? जब किसी व्यक्ति के पास शादी के बारे में सही राय, विचार और दृष्टिकोण होते हैं, तो क्या उसमें दुष्ट प्रवृत्तियों से संबंधित प्रतिकूल, नकारात्मक विचारों और दृष्टिकोणों के प्रति एक निश्चित प्रतिरोध और प्रतिरक्षा होती है? (हाँ, होती है।) इस प्रतिरोध और प्रतिरक्षा का क्या अर्थ है? इसका अर्थ यह है कि जब शादी के संबंध में संसार और समाज के कुछ दुष्ट विचारों और दृष्टिकोणों की बात आएगी, तो तुम उन्हें कम-से-कम पहचानने तो लगोगे। जब तुम इन्हें पहचानने लगोगे, तब तुम शादी को संसार की दुष्ट प्रवृत्तियों से आने वाले विचारों और दृष्टिकोणों के आधार पर नहीं देखोगे, न ही तुम उन विचारों और दृष्टिकोणों को स्वीकार करोगे। तो उन विचारों और दृष्टिकोणों को न स्वीकारने से तुम्हें क्या लाभ होगा? यही कि वे विचार और दृष्टिकोण शादी के संबंध में तुम्हारे परिप्रेक्ष्यों और क्रियाकलापों को नियंत्रित नहीं करेंगे, और वे अब तुम्हें भ्रष्ट नहीं करेंगे, न ही तुममें ये दुष्ट विचार और दृष्टिकोण पैदा करेंगे; इसलिए, तुम शादी को संसार की दुष्ट प्रवृत्तियों के अनुसार नहीं देखोगे, न ही तुम उन दुष्ट प्रवृत्तियों से प्रभावित होगे, इसलिए तुम शादी के मामले में अपनी गवाही पर दृढ़ रह सकोगे। तो एक अर्थ में, क्या तुम शादी से संबंधित उन शैतानी, सांसारिक विचारों, दृष्टिकोणों और परिप्रेक्ष्यों में से कुछ को त्याग चुके होगे? (हाँ।) जब लोगों को शादी की सटीक परिभाषा मिल जाती है, तो वे शादी से संबंधित अपने कुछ लक्ष्यों, आदर्शों और इच्छाओं को त्यागने में सक्षम होते हैं, पर क्या हमें यहीं रुक जाना चाहिए? क्या वे शादी के संबंध में अपने लक्ष्यों, आदर्शों और इच्छाओं को पूरी तरह से त्यागने में सक्षम हैं? इतना काफी नहीं है। उनके विचारों में शादी की एक सटीक परिभाषा और अवधारणा, शादी के बारे में सिर्फ एक प्रारंभिक, बुनियादी अवधारणा और ज्ञान के अलावा और कुछ भी नहीं है। मगर शादी के संबंध में संसार और समाज में प्रसारित होने वाले विभिन्न विचार, दृष्टिकोण और विषय अभी भी तुम्हारे विचारों और दृष्टिकोण को प्रभावित करेंगे, और शादी के संबंध में तुम्हारे परिप्रेक्ष्यों और यहाँ तक कि क्रियाकलापों को भी प्रभावित करेंगे। इसलिए, शादी की सटीक परिभाषा होने के बाद भी, लोग आज तक शादी को लेकर अपने लक्ष्यों, आदर्शों और इच्छाओं को पूरी तरह से त्यागने में असमर्थ हैं। इसके बाद, क्या हमें शादी के संबंध में लोगों में उत्पन्न होने वाले विभिन्न लक्ष्यों, आदर्शों और इच्छाओं के बारे में संगति नहीं करनी चाहिए? (बिल्कुल करनी चाहिए।)
शादी की परिभाषा के बारे में मैं यह संगति यहीं पर समाप्त करूँगा। आगे हम इस बारे में संगति करेंगे कि शादी के कारण उत्पन्न होने वाले विभिन्न लक्ष्यों, आदर्शों और इच्छाओं को कैसे त्यागा जाए। सबसे पहले, हम शादी को लेकर लोगों की विभिन्न कल्पनाओं के बारे में संगति करेंगे। कल्पनाओं से मेरा मतलब है वो तस्वीरें जिनकी लोग अपने दिमाग में कल्पना करते हैं। ये तस्वीरें अभी असलियत नहीं बनी हैं; ये सिर्फ लोगों के दैनिक जीवन या उनके सामने आने वाली परिस्थितियों से उत्पन्न कल्पनाएँ हैं। ये कल्पनाएँ लोगों के दिमाग में छवियाँ और भ्रम पैदा करती हैं, यहाँ तक कि शादी के संबंध में उनके लक्ष्य, आदर्श और इच्छाएँ भी बन जाती हैं। तो, शादी के संबंध में अपने लक्ष्यों, आदर्शों और इच्छाओं को त्यागने के लिए, तुम्हें सबसे पहले उन तमाम फंतासियों को त्यागना चाहिए जो कभी तुम्हारे मन में और तुम्हारे दिल की गहराइयों में डाली गई थीं। शादी के संबंध में अपने लक्ष्यों, आदर्शों, और इच्छाओं को त्यागने के लिए सबसे पहले तुम लोगों को यही करना होगा—यानी, शादी से जुड़ी अपनी तमाम फंतासियों को त्यागना होगा। तो, आओ सबसे पहले बात करें कि लोगों के मन में शादी को लेकर क्या-क्या कल्पनाएँ होती हैं। शादी के बारे में सैकड़ों या हजारों साल पहले प्राचीन लोगों की विभिन्न राय वर्तमान से बहुत अलग हैं, तो हम उनके बारे में बात नहीं करेंगे। इसके बजाय, हम इस बारे में बात करेंगे कि शादी को लेकर आधुनिक लोगों की ताजा, लोकप्रिय, फैशन-परस्त और मुख्यधारा की राय और गतिविधियाँ क्या हैं; ये चीजें तुम लोगों को प्रभावित करती हैं, जिनसे तुम्हारे दिल की गहराइयों में या मन में शादी को लेकर लगातार तमाम तरह की कल्पनाएँ उत्पन्न होती रहती हैं। सबसे पहले, शादी के बारे में कुछ राय समाज में लोकप्रिय हो जाती हैं, और फिर साहित्य की विभिन्न रचनाओं में शादी के संबंध में लेखकों के विचार और दृष्टिकोण सामने आते हैं; जैसे-जैसे साहित्य की इन रचनाओं को स्क्रीन पर दिखाने के लिए टेलीविजन कार्यक्रमों और फिल्मों में बदला जाता है, वे शादी के बारे में लोगों की विभिन्न राय, इसके बारे में उनके विभिन्न लक्ष्यों, आदर्शों और इच्छाओं को और भी अधिक स्पष्ट रूप से सामने लाती हैं। कमोबेश, प्रत्यक्ष या अदृश्य रूप से, ये चीजें तुम लोगों के भीतर लगातार समाहित होती रहती हैं। इससे पहले कि तुम लोगों के पास शादी के बारे में कोई सटीक अवधारणा हो, शादी के संबंध में ये सामाजिक राय और संदेश तुममें पूर्वाग्रह पैदा करते हैं और तुम इन्हें स्वीकार लेते हो; फिर तुम लोग यह कल्पना करने लगते हो कि तुम्हारी शादी कैसी होगी और तुम्हारा जीवनसाथी कैसा होगा। चाहे ये संदेश टेलीविजन कार्यक्रमों, फिल्मों और उपन्यासों के जरिये तुम्हारे सामने आएँ या तुम्हारे सामाजिक दायरे और तुम्हारे जीवन में मौजूद लोगों के माध्यम से आएँ—स्रोत चाहे जो भी हो, ये सभी संदेश मनुष्य, समाज और संसार से आते हैं, या सटीक रूप से कहें, तो वे दुष्ट प्रवृत्तियों से आते और विकसित होते हैं। बेशक, अधिक सटीकता से कहें, तो वे शैतान से आते हैं। ऐसा ही है न? (बिल्कुल।) इस प्रक्रिया में, चाहे तुम लोगों ने शादी के बारे में किसी भी प्रकार के विचारों और दृष्टिकोणों को स्वीकारा हो, तथ्य यह है कि शादी के बारे में विभिन्न विचारों और दृष्टिकोणों को स्वीकारते हुए, तुम लगातार अपने विचारों में शादी के बारे में कल्पनाएँ कर रहे होते हो। ये सभी कल्पनाएँ एक ही चीज के इर्द-गिर्द घूमती हैं। जानते हो वह क्या चीज है? (रूमानी प्रेम।) अभी समाज में, ज्यादा लोकप्रिय या मुख्यधारा का संदेश रूमानी प्रेम के संदर्भ में शादी के बारे में बात करने के इर्द-गिर्द घूमता है; शादी की खुशी रूमानी प्रेम के अस्तित्व और इस बात पर निर्भर करती है कि पति-पत्नी एक-दूसरे से प्यार करते हैं या नहीं। शादी को लेकर समाज की ऐसी राय—ये बातें जो लोगों के विचारों और उनकी आत्मा की गहराई में व्याप्त हैं—मुख्य रूप से रूमानी प्रेम से संबंधित हैं। ऐसी राय लोगों में डाली जाती है, जिससे उनमें शादी के बारे में सभी प्रकार की कल्पनाएँ विकसित होने लगती हैं। उदाहरण के लिए, वे इस बारे में कल्पना करते हैं कि उनका प्रेमी कौन होगा, वह कैसा व्यक्ति होगा और जीवनसाथी के रूप में उनकी अपेक्षाएँ क्या हैं। विशेष रूप से, समाज से मिलने वाले कई ऐसे संदेश हैं जो कहते हैं कि उन्हें निश्चित रूप से उस व्यक्ति से प्यार करना चाहिए और उस व्यक्ति को भी उन्हीं से प्यार करना चाहिए, सिर्फ यही सच्चा रूमानी प्रेम है, सिर्फ सच्चा रूमानी प्रेम ही शादी की ओर बढ़ सकता है, सिर्फ रूमानी प्रेम पर आधारित शादी ही अच्छी और सुखद होती है, और जिस शादी में रूमानी प्रेम न हो वह शादी अनैतिक है। तो, जिस व्यक्ति से वह प्यार करेगा उसे ढूँढ़ने से पहले, हर कोई रूमानी प्रेम खोजने की तैयारी करता है, शादी के लिए अग्रिम व्यवस्थाएँ करता है, उस दिन के लिए तैयारी करता है जब उसका सामना उस व्यक्ति से होगा जिससे वह प्यार करेगा, ताकि वह बिना सोचे-विचारे अपने प्यार की राह पर चलकर उसे साकार कर सके। सही कहा न? (हाँ।) पहले के समय में, लोग रूमानी प्रेम के बारे में बात नहीं करते थे, न ही वे शादी की तथाकथित स्वतंत्रता के बारे में बात करते थे, या यह नहीं कहते थे कि प्रेम निर्दोष है, प्रेम सर्वोच्च है। उस समय लोग शादी, प्यार और रोमांस के बारे में बात करने से कतराते थे। खासकर जब इसमें विपरीत लिंग शामिल हो, तो लोगों को शर्म आती थी, उनके गाल लाल हो जाते थे और दिल तेजी से धड़कने लगते थे या उन्हें बोलने में भी कठिनाई होती थी। आज लोगों का रवैया बदल चुका है। जब वे दूसरों को इतनी शांति और आत्मविश्वास के साथ रोमांस और शादी के बारे में चर्चा करते हुए देखते हैं, तो वे भी ऐसा ही व्यक्ति बनना चाहते हैं जो रोमांस और शादी के बारे में स्वतंत्र रूप से और खुले तौर पर चर्चा करता हो, वो भी बिना शर्माए या दिल की धड़कनें तेज हुए। यही नहीं, जब वे उस व्यक्ति से मिलते हैं जिसे वे पाना चाहते हैं, जिससे अपने दिल की बात कहना चाहते हैं, तो खुलकर अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में सक्षम होना चाहते हैं; वे प्रणय निवेदन करने या करवाए जाने के सभी प्रकार के दृश्यों की भी कल्पना करते हैं, और इससे भी अधिक, वे यह कल्पना करते हैं कि जिससे वे प्रेम करेंगे और जिसका अनुसरण करेंगे वह व्यक्ति कैसा होगा। महिलाएँ कल्पना करती हैं कि वे जिस व्यक्ति का अनुसरण करेंगी वह एक सलोना राजकुमार होगा; वह कम-से-कम 1.8 मीटर लंबा, हाजिरजवाबी से बातें करने वाला, परिष्कृत, सुशिक्षित होगा; वह अच्छी पारिवारिक पृष्ठभूमि से होगा, और इससे भी बेहतर, उसके पास कार और घर होगा, सामाजिक रुतबा होगा, एक निश्चित मात्रा में धन भी होगा, वगैरह। जहाँ तक पुरुषों की बात है, वे कल्पना करते हैं कि उनकी जीवनसाथी एक गोरी-चिट्टी सुंदर महिला होगी, एक सुपरवुमन होगी जो सामाजिक समारोहों के साथ-साथ रसोई में भी चमके। वे यह भी कल्पना करते हैं कि उनकी जीवनसाथी एक सुंदर और धनी महिला होगी, और अगर उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि ठोस हो तो सोने में सुहागा होगा। तब लोग कहेंगे कि उन दोनों का मिलन रोमियो-जूलियट जैसा, एक आदर्श जोड़ी या स्वर्ग में बनी जोड़ी जैसा है, एक ऐसा जोड़ा जिससे देखने वाले ईर्ष्या करते हैं, जो कभी बहस नहीं करते या एक-दूसरे पर गुस्सा नहीं करते, जो कभी किसी कारण झगड़ते नहीं, एक-दूसरे से गहरा प्यार करते हैं—फिल्मी जोड़ों की तरह जो एक-दूसरे से तब तक प्यार करने की कसम खाते हैं जब तक कि समुद्र सूख न जाए और चट्टानें धूल में न बदल जाएँ, और वे साथ-साथ बूढ़े होने, कभी एक-दूसरे को नापसंद न करने या एक-दूसरे से दूर न जाने, कभी एक-दूसरे से हार न मानने और एक-दूसरे का साथ न छोड़ने की कसम खाते हैं। महिलाएँ कल्पना करती हैं कि एक दिन वे अपने प्रेमी से शादी करेंगी, और फिर पादरी के आशीष से, वे एक-दूसरे को अंगूठी पहनाएँगे, वचन देंगे, प्यार की कसमें खाएँगे, एक-दूसरे के साथ यह जीवन बिताने का वादा करेंगे और बीमारी या गरीबी में भी एक-दूसरे का साथ न छोड़ने या एक-दूसरे को न त्यागने का संकल्प लेंगे। पुरुष भी यह कल्पना करते हैं कि एक दिन वे उस महिला से शादी करेंगे जिससे वे प्यार करते हैं, और पादरी के आशीष से उन्हें अँगूठी पहनाएँगे और वादे करेंगे, कसम खाएँगे कि चाहे उनकी नई-नवेली दुल्हन आगे चलकर कितनी भी बूढ़ी या बदसूरत हो जाए, वे उसे नहीं छोड़ेंगे या उसे नहीं त्यागेंगे, और वे इस शादी को सबसे शानदार, सुखी बनाएँगे, और अपनी पत्नी को संसार की सारी खुशी देंगे। महिला-पुरुष सभी इस तरह की कल्पनाएँ करते हैं, इस तरीके से चीजें हासिल करने का प्रयास करते हैं, और अपने वास्तविक जीवन में, वे लगातार शादी के बारे में सभी प्रकार के लक्ष्यों, आदर्शों और इच्छाओं को सीखते हैं। साथ ही, वे इन कल्पनाओं को अपने दिल की गहराइयों में बार-बार दोहराते हैं, इस उम्मीद में कि एक दिन उनकी कल्पनाएँ उनके वास्तविक जीवन में जरूर साकार होंगी, जिससे वे अब महज एक प्रकार का आदर्श या इच्छाएँ नहीं रह जाएँगी, बल्कि वास्तविकता बन जाएँगी। आधुनिक जीवन के प्रभाव और सभी प्रकार के सामाजिक संदेशों और सूचनाओं के अनुकूलन के तहत, हरेक महिला शादी की सफेद पोशाक पहनने और संसार की सबसे खूबसूरत दुल्हन, संसार की सबसे खुशहाल महिला बनने की उम्मीद करती है; वह अपनी हीरे की अंगूठी पहनने की भी आशा करती है, जो यकीनन एक कैरेट से ज्यादा की होनी चाहिए, और बेहतरीन शुद्धता वाली होनी चाहिए। इसमें कोई खामी नहीं होनी चाहिए, और उसका प्रेमी ही उसे यह अँगूठी पहनाए। यह एक महिला की शादी की कल्पना है। पहली बात, उसकी शादी के तरीके को लेकर कुछ कल्पनाएँ हैं; दूसरी बात, उसके मन में शादीशुदा जीवन के बारे में सभी प्रकार की कल्पनाएँ हैं; वह आशा करती है कि जिस पुरुष से प्यार करेगी वह उसकी उम्मीदों पर खरा उतरने में असफल नहीं होगा, शादी के बाद भी उससे उतना ही गहरा प्यार करेगा जितना कि तब करता था जब वे पहली बार मिले थे; वह किसी दूसरी महिला से प्यार नहीं करेगा, अपनी पत्नी को एक खुशहाल जीवन देगा, अपनी प्रतिबद्धता पर खरा उतरेगा, और जब तक समुद्र सूख नहीं जाते और चट्टानें धूल में नहीं बदल जातीं, तब तक वे इस जीवन और अगले जीवन में एक साथ रहेंगे। इसके अलावा, वह जिस व्यक्ति से प्यार करेगी, उसको लेकर भी उसके मन में सभी प्रकार की कल्पनाएँ और अपेक्षाएँ होंगी। कम-से-कम वह एक सलोना राजकुमार होना चाहिए, जो सफेद न सही काले घोड़े पर ही सवार हो। महिला चाहती है कि उसके आदर्श पुरुष में इस स्तर की राजकुमार-जैसी गुणवत्ता हो—यह कितना रूमानी और भव्य होगा, उसका जीवन कितना खुशहाल हो जाएगा। शादी को लेकर लोगों के मन में उत्पन्न इन कल्पनाओं का आधार समाज, उनके सामाजिक समूह या सभी प्रकार के संदेश, सभी प्रकार की किताबें, साहित्य की रचनाएँ और फिल्में हैं; इसमें उनके दिलों में मौजूद कुछ थोड़े से उत्कृष्ट तत्व भी शामिल होते हैं जो उनकी प्राथमिकताओं के अनुरूप होते हैं, और इसलिए वे प्यार करने के लिए सभी प्रकार के लोगों, सभी प्रकार के प्रेमियों और शादी के सभी रूपों और जीवन की कल्पना करते हैं। संक्षेप में, लोगों की विभिन्न कल्पनाएँ शादी के बारे में समाज की समझ, शादी की व्याख्या और शादी को लेकर विभिन्न प्रकार की राय पर आधारित हैं। महिलाएँ ऐसी होती हैं, और पुरुष भी कुछ अलग नहीं हैं। शादी को लेकर एक पुरुष की विभिन्न चाहतें किसी महिला से कम नहीं होती हैं। पुरुष भी अपनी पसंद की लड़की ढूँढ़ने की आशा करता है, जो गुणी, सौम्य, अच्छी और विचारशील हो, जो उसकी देखभाल करे और उसके साथ स्नेहपूर्ण व्यवहार करे, और जो एक छोटी चिड़िया की तरह उस पर निर्भर रहे, उसके प्रति पूरी तरह से समर्पित हो, उसकी किसी भी खामी या कमी का मजाक न उड़ाए, यहाँ तक कि जो उसकी सभी कमियों और दोषों को भी स्वीकार करे, जो उसके निराश या हताश महसूस करने पर और असफल होने पर, उसकी मदद और समर्थन के लिए उसकी ओर हाथ बढ़ाकर कहे : “प्रिय, चिंता की कोई बात नहीं, मैं यहीं हूँ। ऐसा कुछ नहीं है जिसका हम साथ मिलकर सामना नहीं कर सकते। डरो मत। चाहे जो हो जाए, मैं हमेशा तुम्हारे साथ खड़ी रहूँगी।” महिलाओं को पुरुषों से सभी प्रकार की अपेक्षाएँ होती हैं, और ठीक उसी तरह, पुरुषों को भी महिलाओं से सभी प्रकार की अपेक्षाएँ होती हैं, तो चाहे पुरुष हों या महिलाएँ, वे अपने जीवनसाथी को भीड़ में खोज रहे होते हैं, और अपने जीवनसाथी की खोज का आधार शादी को लेकर उनकी तरह-तरह की कल्पनाएँ बनती हैं। बेशक, एक पुरुष अक्सर पहले समाज में मजबूती से पाँव जमाने, करियर बनाने, ढेर सारा धन अर्जित करने और एक निश्चित स्तर तक पूँजी जमा करने की कल्पना करेगा, जिसके बाद वह एक बेहतर जीवनसाथी की खोज करेगा जिसका रुतबा, पहचान, पसंद-नापसंद और प्राथमिकताएँ उसी के जैसी हों। जब तक वह उसे पसंद करता है और वह उसकी अपेक्षाओं पर खरी उतरती है, वह उसके लिए कुछ भी करने को, यहाँ तक कि उसके लिए जलते अंगारों पर भी चलने को तैयार रहेगा। बेशक, थोड़ा और यथार्थवादी रूप से कहें, तो वह उसके लिए कुछ अच्छी चीजें खरीदेगा, उसकी सांसारिक जरूरतों को पूरा करेगा, उसके लिए एक कार, घर, हीरे की अंगूठी, ब्रांडेड हैंडबैग और कपड़े खरीदेगा। अगर उसके पास साधन हैं, तो वह अपना निजी याट और निजी हवाई जहाज भी खरीदेगा, और अपनी प्रियतमा को साथ लेकर समुद्र की सैर करेगा जहाँ सिर्फ वे दोनों होंगे; या वह उसे दुनिया दिखाने ले जाएगा, दुनिया के सबसे मशहूर पहाड़, जगहें और दर्शनीय स्थान घुमाने ले जाएगा। ऐसा जीवन कितना शानदार होगा। महिलाएँ शादी से जुड़ी अपनी कल्पनाओं को साकार करने के लिए हर तरह की कीमत चुकाती हैं, और उसी तरह, पुरुष भी शादी को लेकर अपनी विभिन्न कल्पनाओं को साकार करने के लिए हर मुमकिन कोशिश और कार्य करते हैं। चाहे शादी के संबंध में तुम्हारी किसी भी प्रकार की कल्पना हो, जब तक यह संसार से जुड़ी होगी, भ्रष्ट मानवजाति की शादी के बारे में समझ और राय से जुड़ी होगी, या शादी के बारे में उस जानकारी से जुड़ी होगी जो संसार और भ्रष्ट मानवजाति तुममें पैदा करती है, ये विचार और दृष्टिकोण कुछ हद तक तुम्हारे जीवन और आस्था, और साथ ही जीवन पर तुम्हारे दृष्टिकोण और जीवन में अपनाए जाने वाले मार्ग को भी प्रभावित करेंगे। ऐसा इसलिए है क्योंकि शादी एक ऐसी चीज है जिसे कोई भी बालिग व्यक्ति नहीं टाल सकता और न ही इस विषय से भाग सकता है। अगर तुम जीवन भर अकेले रहने का फैसला करते हो, कभी शादी नहीं करना चाहते, तो फिर भी शादी के बारे में कुछ कल्पनाएँ तुम्हारे मन में मौजूद रहेंगी। तुम अकेले रहने का फैसला कर सकते हो, पर जिस पल से तुम्हारे मन में शादी को लेकर सबसे बुनियादी अवधारणाएँ और विचार आए थे, तभी से शादी के बारे में ये सारी कल्पनाएँ भी उत्पन्न हुई होंगी। ये कल्पनाएँ न सिर्फ तुम्हारे विचारों पर छाई रहती हैं, बल्कि तुम्हारे दैनिक जीवन में भी व्याप्त हो जाती हैं, जब तुम तमाम तरह की चीजों से निपटते हो, तब ये तुम्हारे विचारों, दृष्टिकोणों और फैसलों को प्रभावित करती हैं। सरल शब्दों में कहें, तो अगर किसी महिला ने एक मानक तय कर रखा है कि वह किससे प्यार करेगी, तो मानक की परिपक्वता या सुदृढ़ता की परवाह किए बिना वह पुरुषों की मानवता और चरित्र की अच्छाई-बुराई को मापने, और साथ ही यह निर्धारित करने के लिए कि वे उसके साथ वक्त बिताने लायक हैं या नहीं, इसी मानक का उपयोग करेगी। यह मानक उसी मानक जैसा होगा जिसके आधार पर वह अपना जीवनसाथी चुनती है। उदाहरण के लिए, मान लो कि जैसा पुरुष उसे पसंद है उसकी खासियत है कि वह हिम्मतवाला हो, उसका चेहरा बड़ा, चौकोर हो और त्वचा बेदाग हो; वह थोड़े किताबी ढंग से शिष्टता के साथ बात करता हो, और काफी विनम्र हो। प्यार के बारे में अपने दृष्टिकोण से उसे ऐसा पुरुष अच्छा लगता है, और वह इस तरह के पुरुष की ओर ज्यादा झुकती है। तो उसके जीवन में, चाहे यह व्यक्ति उसका प्रेमी हो या न हो, वह यकीनन उसके बारे में अच्छा महसूस करेगी। मेरे कहने का मतलब है कि जब ऐसे किसी व्यक्ति से उसका सामना होगा, तो चाहे उसकी मानवता अच्छी हो या बुरी, उसका चरित्र कैसा भी हो, चाहे वह विश्वासघाती व्यक्ति हो या दुष्ट, ये सब बाद की बातें होंगी; वह पुरुषों को इन मानकों के आधार पर नहीं देखती है। फिर उसका मानक क्या है? यह वह मानक है जिसके आधार पर वह अपना पति चुनती है। अगर सामने वाला व्यक्ति पति चुनने के उसके मानक के अनुरूप है, तो भले ही वह ऐसा व्यक्ति न हो जिसे वह वास्तव में पति के रूप में चुनती, फिर भी वह ऐसा व्यक्ति है जिसके साथ वह समय बिताना चाहेगी। यह समस्या क्या दर्शाती है? प्यार के बारे में उसका नजरिया—विशिष्ट रूप से, प्यार या शादी में जीवनसाथी के संबंध में उसका मानक—काफी हद तक विपरीत लिंग के सभी सदस्यों के प्रति उसके दृष्टिकोण को प्रभावित करता है। जब उसका सामना एक ऐसे पुरुष से होता है जो पति चुनने के उसके सभी मानकों पर खरा उतरता है, तो उसे उसकी हर चीज आँखों को भाती है, उसकी आवाज उसे प्यारी लगती है, और उसकी बातें सुनकर और उसकी हरकतें देखकर भी उसे सुकून मिलता है। भले ही यह वह व्यक्ति नहीं है जिससे वह प्यार करना और जिसका अनुसरण करना चाहती है, फिर भी वह उसकी आँखों को भाता है। आँखों को भाने की इसी बात से परेशानी शुरू होती है। तुम यह जानने की कोशिश नहीं करती कि वह जो भी कहता है वो सही है या गलत; तुम्हें उसके बारे में सब कुछ अच्छा और सही लगता है, और सोचती हो कि वह सब कुछ अच्छे से करता है। उसके बारे में इन अच्छी भावनाओं के कारण तुम धीरे-धीरे उसकी प्रशंसा कर उसे पूजने लगती हो। यह प्रशंसा और पूजा कहाँ से आती है? इनका स्रोत वह मानक है जिसके आधार पर तुम प्रेम और शादी के लिए अपना साथी चुनती हो। एक निश्चित स्तर पर, यह मानक दूसरों को देखने के तुम्हारे नजरिये को गुमराह करता है; और अधिक स्पष्टता से कहें, तो यह विपरीत लिंग के व्यक्ति को देखने के तुम्हारे मानदंडों और आधारों को धुंधला करता है। उसका बाहरी रंग-रूप तुम्हारे सौंदर्य मानकों से मेल खाता है, तो तुम्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसका चरित्र कैसा है, उसके क्रियाकलाप सिद्धांतों के अनुरूप हैं या नहीं, उसके पास सत्य सिद्धांत हैं या नहीं, वह सत्य का अनुसरण करता है या नहीं, उसमें परमेश्वर के प्रति सच्ची आस्था और समर्पण है या नहीं—ये चीजें तुम्हारे लिए बहुत धुंधली हो जाती हैं, और तुम्हारा इस व्यक्ति को देखने का नजरिया भावनात्मक रूप से प्रभावित हो सकता है। क्योंकि तुम्हें यह व्यक्ति अच्छा लगता है, और क्योंकि भावनात्मक स्तर पर वह तुम्हारे मानकों पर खरा उतरता है, तो तुम्हें उसकी सभी हरकतें अच्छी और सही लगती हैं; तुम उसकी रक्षा करती हो और उसे पूजती हो, इस हद तक कि जब वह कोई बुरा काम करता है, तो भी तुम उसे पहचान नहीं पाती हो, न ही उसका खुलासा करती हो या उसे त्यागती हो। इसकी वजह क्या है? क्योंकि यहाँ तुम्हारी भावनाएँ काम कर रही हैं, तुम्हारे दिल पर कब्जा कर रही हैं। जैसे ही तुम्हारी भावनाएँ सक्रिय होती हैं, तब क्या तुम्हारे लिए सिद्धांतों के अनुसार कार्य करना आसान होता है? तुम्हारी भावनाओं का पलड़ा ज्यादा भारी है, इसलिए तुम्हारे पास कोई सिद्धांत नहीं है। तो, इस मामले के परिणाम बहुत गंभीर होंगे। भले ही यह वह व्यक्ति नहीं है जिससे तुम प्यार करती हो या जिससे तुम शादी करना चाहती हो, मगर फिर भी वह तुम्हारे सौंदर्य मानकों और तुम्हारी भावनात्मक जरूरतों के अनुरूप है; इस पूर्वाग्रह के साथ, तुम न चाहकर भी अपनी भावनाओं से प्रभावित और नियंत्रित होती हो, और तुम्हारे लिए इस व्यक्ति को देखना, इस व्यक्ति में आने वाली समस्याओं और अपनी समस्याओं से परमेश्वर के वचनों के अनुसार निपटना बहुत कठिन होता है। जैसे ही भावनाएँ तुम्हें नियंत्रित करती हैं और तुम पर हावी होने वाली शक्ति बन जाती हैं, तो तुम्हारे लिए इन भावनात्मक बेड़ियों से मुक्त होना, सत्य पर अमल करने की वास्तविकता में प्रवेश करना बहुत मुश्किल हो जाता है। तो मेरी इन बातों का क्या मतलब है? यह कि सभी के मन में शादी को लेकर हर तरह की कल्पनाएँ होती हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि तुम शून्य में या किसी दूसरे ग्रह पर नहीं रहते हो, और बेशक तुम नाबालिग नहीं हो, मानसिक रूप से कमजोर या मूर्ख होना तो दूर की बात है; तुम बालिग हो और तुम्हारे विचार बालिगों जैसे हैं। साथ ही, तुमने शादी के बारे में समाज और दुष्ट मानवजाति से मिलने वाली जानकारी को स्वीकारते हुए, शादी के बारे में समाज की विभिन्न राय को भी अनजाने में स्वीकार लिया है। इन बातों को स्वीकारने के बाद तुम अनजाने में इसकी कल्पना करते हो कि तुम्हारा रूमानी साथी कौन होगा। कल्पना करने से मेरा क्या मतलब है? इसका मतलब है मन में अवास्तविक और खोखले विचारों को जगह देना। अभी हमने जो संगति की और खुलासा किया, उसके आधार पर यह मुख्य रूप से शादी के बारे में समाज और दुष्ट मानवजाति से आने वाली विभिन्न राय की ओर निर्देशित है। शादी के बारे में तुम्हारे पास एक सही और सत्य के अनुरूप दृष्टिकोण नहीं है, इसलिए तुम इस बारे में समाज और दुष्ट मानवजाति से आने वाले विभिन्न दृष्टिकोणों से अपरिहार्य रूप से प्रभावित होकर छीजते और भ्रष्ट होते हो, मगर तुम लोग यह नहीं जानते और न ही इस बारे में जागरूक हो। तुम यह महसूस नहीं कर पाते कि यह एक क्षरण, एक भ्रष्टता है। अनजाने में, तुम इस प्रभाव को प्राप्त करते हो, और अनजाने में, तुम यह सोचने लगते हो कि यह सब बहुत उचित और सही है, और तुम इसे एक स्वाभाविक चीज मान लेते हो, यह सोचते हुए कि ये सभी ऐसे विचार हैं जो वयस्कों के पास होने चाहिए। तुम स्वाभाविक रूप से इन सबको अपनी उचित आवश्यकताओं और उचित अपेक्षाओं में बदल दोगे—ऐसे उचित विचार जो एक वयस्क के पास होने ही चाहिए। फिर, जब से तुम्हें ये संदेश मिलने शुरू होंगे, शादी के बारे में तुम्हारी कल्पनाएँ अधिक से अधिक बढ़ती और गहराती जाएँगी। इसी के साथ, शादी की बात आने पर तुम शर्माना कम कर दोगे, या कोई कह सकता है कि शादी के बारे में इन कल्पनाओं को सक्रियता से अस्वीकार करने की तुम्हारी इच्छा कम हो जाएगी। दूसरे शब्दों में कहें, तो प्यार में अपने साथी से या शादी से संबंधित विभिन्न दृश्यों और चीजों के बारे में तुम्हारी कल्पनाएँ अधिक से अधिक अनैच्छिक और निर्भीक हो जाएँगी। ऐसा ही है न? (हाँ, बिल्कुल।) जितना ज्यादा लोग शादी के बारे में समाज और दुष्ट मानवजाति की राय और जानकारी को स्वीकारेंगे, वे अपनी शादी की कल्पना करने, अपना प्रेमी खोजने और उस साथी को पाने की चाह में उतने ही ज्यादा साहसी और बेलगाम हो जाएँगे। साथ ही, वे यह उम्मीद भी करते हैं कि उनका प्रेमी किसी रूमानी उपन्यास, टीवी नाटक या रूमानी फिल्म में दिखाए गए पात्र की तरह हो—जो उनसे बेपनाह प्यार करेगा, जब तक कि समुद्र सूख न जाए और चट्टानें धूल में न बदल जाएँ, और जो मरते दम तक वफादार रहेगा। जहाँ तक उनकी बात है, वे भी टीवी नाटकों और रूमानी उपन्यासों के पात्रों की तरह ही अपने साथी से तब तक गहरा प्यार करेंगे, जब तक कि समुद्र सूख नहीं जाते और चट्टानें धूल में नहीं बदल जातीं, और वे मरते दम तक वफादार बने रहेंगे। संक्षेप में, ये कल्पनाएँ मानवता और जीवन की वास्तविक जरूरतों से बहुत अलग हैं। बेशक, वे मानवता के सार से भी बहुत अलग हैं; वे वास्तविक जीवन से पूरी तरह असंगत हैं। ठीक वैसे ही जैसे जो चीजें लोगों को अच्छी लगती हैं, वो वास्तव में लोगों की कल्पनाओं से उपजे सुखद विचार ही होते हैं। क्योंकि ये विचार शादी के बारे में परमेश्वर की परिभाषा और व्यवस्थाओं के अनुरूप नहीं हैं, तो लोगों को इन विचारों और दृष्टिकोणों को त्याग देना चाहिए, जो तथ्यों के अनुरूप बिल्कुल नहीं हैं, जिनका उन्हें अनुसरण बिल्कुल नहीं करना चाहिए।
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