परमेश्वर के दैनिक वचन : धर्म-संबंधी धारणाओं का खुलासा | अंश 292
केवल अपनी पुरानी धारणाओं को अलग रखकर तुम नए ज्ञान को प्राप्त कर सकते हो, फिर भी पुराना ज्ञान आवश्यक रूप से पुरानी धारणाएँ नहीं होता है। मनुष्य द्वारा कल्पना की गई बातों को "धारणाएँ" कहते हैं जो वास्तविकताओं के साथ विषम होती है। यदि पुराना ज्ञान पुराने युग में पहले से ही पुराना हो गया था, इसने मनुष्य को नया कार्य आरम्भ करने से रोक दिया था, तो इस प्रकार का ज्ञान भी एक धारणा है। यदि मनुष्य इस प्रकार के ज्ञान के लिए सही रास्ता लेने में समर्थ हो, और, पुरानी और नई बातों को जोड़कर, कई विभिन्न पहलुओं से परमेश्वर को जान सकता हो, तो पुराना ज्ञान मनुष्य के लिए सहायता बन जाता है और वह आधार बन जाता है जिसके द्वारा मनुष्य नए युग में प्रवेश करता है। परमेश्वर को जानने का सबक, कई सिद्धान्तों में निपुण होना तुम्हारे लिए आवश्यक बनाता है: जैसे कि परमेश्वर को जानने के मार्ग पर किस प्रकार प्रवेश करें, परमेश्वर को जानने के लिए तुम्हें कौन से सत्यों को अवश्य समझना चाहिए और किस प्रकार से अपनी धारणाओं और पुराने स्वभाव को परमेश्वर के नए कार्य की सभी व्यवस्थाओं के लिए समर्पित करवाएँ। यदि तुम परमेश्वर को जानने के सबक में प्रवेश करने के लिए इन सिद्धान्तों का आधार के रूप में उपयोग करते हो, तो तुम्हारा ज्ञान और गहरा हो जाएगा। यदि तुम्हें कार्य के तीन चरणों की स्पष्ट जानकारी है—कहने का अर्थ है, कि परमेश्वर का प्रबंधन का सम्पूर्ण कार्य—और यदि तुम वर्तमान के चरण के साथ परमेश्वर के कार्य के पिछले दोनों चरणों को पूरी तरह से सह-सम्बन्धित कर सकते हो, और देख सकते हो कि यह कार्य एक ही परमेश्वर के द्वारा किया गया है, तो तुम्हारे पास कोई दृढ़ आधार नहीं होगा। कार्य के तीनों चरण एक ही परमेश्वर के द्वारा किए गए थे; यही सबसे महान दर्शन है और परमेश्वर को जानने का एकमात्र मार्ग है। कार्य के तीनों चरण केवल स्वयं परमेश्वर के द्वारा ही किए गए हो सकते हैं, और कोई भी मनुष्य इस प्रकार का कार्य उसकी ओर से नहीं कर सकता है—कहने का तात्पर्य है कि आरंभ से लेकर आज तक केवल परमेश्वर स्वयं ही अपना स्वयं का कार्य कर सकता था। यद्यपि परमेश्वर के कार्य के तीनों चरण विभिन्न युगों और स्थानों में किए गए हैं, और यद्यपि प्रत्येक का कार्य भी अलग-अलग है, किन्तु यह सब कार्य एक ही परमेश्वर के द्वारा किया जाता है। सभी दर्शनों में, यह सबसे महान दर्शन है जो मनुष्य को जानना चाहिए, और यदि यह पूरी तरह से मनुष्यों के द्वारा समझा जा सके, तो वह अडिग रहने में समर्थ होगा। आज सभी सम्प्रदायों और पंथों द्वारा सामना की जा रही सबसे बड़ी समस्या यह है कि वे पवित्र आत्मा के कार्य को नहीं जानते हैं और पवित्र आत्मा के कार्य तथा ऐसे कार्य जो पवित्र आत्मा के नहीं हैं के बीच अंतर नहीं कर पा रहे हैं—और इसलिए वे नहीं बता सकते हैं कि क्या कार्य का यह चरण भी, कार्य के पिछले दो चरणों के समान, यहोवा परमेश्वर के द्वारा किया गया है। यद्यपि लोग परमेश्वर का अनुसरण करते हैं, तब भी उनमें से अधिकांश लोग अभी भी यह बताने में समर्थ नहीं हैं कि क्या यही सही मार्ग है। मनुष्य चिंता करता रहता है कि क्या यही वह मार्ग है जो परमेश्वर स्वयं के द्वारा व्यक्तिगत रूप से अगुवाई से प्रदान किया जाता है और क्या परमेश्वर का देहधारण एक वास्तविकता है, और जब इस तरह की बातें आती हैं तो अधिकांश लोगों को अभी भी कोई भनक तक नहीं है कि कैसे जानें। जो लोग परमेश्वर का अनुसरण करते हैं वे मार्ग का निर्धारण करने में असमर्थ होते हैं, और इसलिए जो संदेश बोले जाते हैं उनका इन लोगों में आंशिक प्रभाव पड़ता है, और पूरी तरह से प्रभावशाली होने में असमर्थ रहते हैं और इसलिए यह फिर ऐसे लोगों के जीवन को प्रभावित करता है। यदि मनुष्य कार्य के तीनों चरणों में देख सकता कि वे विभिन्न समयों, स्थानों और लोगों में परमेश्वर स्वयं के द्वारा किए गए हैं, तो मनुष्य यह देखेगा कि, यद्यपि कार्य भिन्न है, तब भी यह सब एक ही परमेश्वर के द्वारा किया गया है। चूँकि यह कार्य एक ही परमेश्वर के द्वारा किया जाता है, तो इसे सही और बिना गलती का अवश्य होना चाहिए, और यद्यपि यह मनुष्यों की धारणाओं से विषम है, तो इस बात से कोई इनकार नहीं कि यह एक ही परमेश्वर का कार्य है। यदि मनुष्य निश्चित हो कर कहे कि यह एक ही परमेश्वर के द्वारा किया गया कार्य है, तो मनुष्यों की धारणाएँ मात्र तुच्छ और उल्लेख किए जाने के अयोग्य हो जाएँगी। क्योंकि मनुष्य के दर्शन अस्पष्ट हैं, और मनुष्य केवल यहोवा को परमेश्वर के रूप में और यीशु को प्रभु के रूप में जानते हैं, और आज के देहधारी परमेश्वर के बारे में दुविधा में पड़ जाते हैं, इसलिए कई लोग यहोवा और यीशु के कार्यों के प्रति समर्पित रहते हैं, आज के कार्य के बारे में धारणाओं से व्याकुल हो जाते हैं, अधिकांश लोग हमेशा संशय में रहते हैं और आज के कार्य को गम्भीरता से नहीं लेते हैं। मनुष्यों को कार्य के अंतिम दो चरणों के बारे में कोई धारणाएँ हैं जो कि अदृश्य थीं। यह इसलिए है क्योंकि मनुष्य इन पिछले दोनों चरणों की वास्तविकता को नहीं समझता है और व्यक्तिगत रूप में उनका साक्षी नहीं रहा था। यह इसलिए है क्योंकि उन्हें देखा नहीं जा सकता है कि मनुष्य जैसा पसंद करता है वैसी ही कल्पना करता है; इस बात की परवाह किए बिना कि वह क्या जुटाता है, इसे सिद्ध करने के लिए कोई तथ्य और सुधारने के लिए कोई नहीं है। मनुष्य नकारात्मक परिणामों के बारे में चिंता किए बिना और अपनी कल्पना को मुक्त रूप से दौड़ने देते हुए, अपनी प्राकृतिक सहज प्रवृत्ति को खुली छूट दे देता है, क्योंकि इसे सत्यापित करने के लिए कोई तथ्य नहीं हैं और इसलिए मनुष्य की कल्पनाएँ "वास्तविकता" बन जाती हैं, इस बात की परवाह किए बिना कि उनका कोई सबूत है या नहीं। इस प्रकार मनुष्य अपने मन में अपने स्वयं के कल्पित परमेश्वर को मानने लगता है और वास्तविक परमेश्वर को नहीं खोजता है। यदि एक व्यक्ति का एक प्रकार का विश्वास है, तो सौ लोगों के बीच सौ प्रकार के विश्वास होंगे। मनुष्य इसी प्रकार के विश्वास को धारण करता है क्योंकि उसने परमेश्वर के कार्य की वास्तविकता को नहीं देखा है, क्योंकि उसने इसे अपने कानों से केवल सुना है और अपनी आँखों से नहीं देखा है। मनुष्यों ने उपाख्यानों और कहानियों को सुना है—परन्तु उसने परमेश्वर के कार्य के तथ्यों के ज्ञान के बारे में शायद ही सुना है। यह उनकी स्वयं की धारणा से है कि ऐसे लोग जो केवल एक साल से विश्वासी रहे हैं वे परमेश्वर पर विश्वास करते हैं और यही उस सभी के बारे में भी सत्य है जिन्होंने परमेश्वर पर अपने सम्पूर्ण जीवन भर विश्वास किया है। जो लोग तथ्यों को नहीं देख सकते हैं वे ऐसे विश्वास से बच नहीं सकते हैं जिसमें उनकी परमेश्वर के बारे में धारणाएँ हैं। मनुष्य विश्वास करता है कि उसने अपनी सभी पुरानी अवधारणों के बंधनों से स्वयं को मुक्त कर लिया है और एक नए क्षेत्र में प्रवेश कर लिया है। क्या मनुष्य नहीं जानता है कि उन लोगों का ज्ञान जो परमेश्वर का असली चेहरा नहीं देख सकते कुछ नहीं बल्कि केवल धारणाएँ और अफ़वाहें हैं? मनुष्य सोचता है कि उसकी धारणाएँ सही हैं और बिना गलतियों की हैं, और सोचता है कि ये धारणाएँ परमेश्वर की ओर से आती हैं। आज, जब मनुष्य परमेश्वर के कार्यों को देखता है, वह उन धारणाओं को छोड़ देता है जो कई सालों से बनी हुई थीं। अतीत की कल्पनाशीलताएँ और विचार इस चरण के कार्य में अवरोध बन गए और मनुष्य के लिए इस प्रकार की धारणाओं को जाने देना और इस प्रकार के विचारों का खण्डन करना कठिन हो जाता है। इस कदम-दर-कदम कार्य की ओर उन कई लोगों की धारणाएँ जिन्होंने आज तक परमेश्वर का अनुसरण किया है बहुत ही कष्टदायक हो गई हैं और इन लोगों ने देहधारी परमेश्वर के प्रति धीरे-धीरे एक हठी शत्रुता बना ली और उनके इस घृणा का स्रोत मनुष्य की धारणाएँ और कल्पनाएँ हैं। यह ठीक-ठीक इसलिए है क्योंकि तथ्य मनुष्य को उसकी कल्पनाशीलताओं की लगाम को खुली छूट देने की अनुमति नहीं देते हैं, और इसके अलावा, मनुष्य के द्वारा आसानी से खण्डित नहीं किए जा सकते हैं और मनुष्यों की धारणाएँ और कल्पनाशीलताएँ तथ्यों के अस्तित्व को बहा नहीं सकती हैं, और इसके अलावा, क्योंकि मनुष्य तथ्यों की शुद्धता और सच्चाई पर विचार नहीं करता है, और केवल एक ही सोच के साथ अपनी धारणाओं को ढीला छोड़ देता है, और अपनी कल्पनाओं को कार्यान्वित करता है, कि मनुष्य की धारणाएँ और कल्पनाशीलताएँ आज के कार्य के शत्रु बन गए हो, वह कार्य जो मनुष्यों की धारणाओं से विषम है। इसे केवल मनुष्यों की धारणाओं की गलती ही कहा जा सकता है और परमेश्वर के कार्य की गलती नहीं कहा जा सकता है। मनुष्य जो चाहे वह कल्पना कर सकता है, परन्तु वह परमेश्वर के कार्य के किसी भी चरण या इसके छोटे से भी अंश के बारे में स्वतंत्र रूप से विवाद नहीं कर सकता है; परमेश्वर के कार्य का तथ्य मनुष्यों के द्वारा अनुल्लंघनीय है। तुम अपनी कल्पनाओं को खुली छूट दे सकते हो और यहाँ तक कि यहोवा एवं यीशु के कार्यों के बारे में सुंदर कहानियों को भी संकलित कर सकते हो, परन्तु तुम यहोवा और यीशु के कार्य के प्रत्येक चरण के तथ्य का खण्डन नहीं कर सकते हो; यह एक सिद्धान्त है, और एक प्रशासकीय आदेश भी है और तुम लोगों को इन मामलों के महत्व को समझना चाहिए। मनुष्य यह विश्वास करता है कि कार्य का यह पड़ाव मनुष्यों की धारणाओं के साथ असंगत है, और यह कि यह कार्य के पिछले दो चरणों का मामला नहीं है। अपनी कल्पना में, मनुष्य यह विश्वास करता है कि पिछले दोनों चरणों का कार्य निश्चित रूप से वही नहीं है जैसा कि आज का कार्य है—परन्तु क्या तुमने कभी यह ध्यान दिया है कि परमेश्वर के कार्य के सिद्धान्त सब एक ही हैं, यह कि उसका कार्य हमेशा व्यवहारिक होता है और यह कि युगों की परवाह किए बिना, यहाँ हमेशा ऐसे लोगों की भरमार होगी जो उसके कार्य के तथ्य का प्रतिरोध और विरोध करते हैं? आज जो लोग कार्य के इस चरण का प्रतिरोध और विरोध करते हैं निस्संदेह उन्होंने अतीत में भी परमेश्वर का विरोध किया होगा, क्योंकि इस प्रकार के लोग सदैव परमेश्वर के शत्रु रहेंगे। वे लोग जो परमेश्वर के कार्य के तथ्य को जानते हैं कार्यों के इन तीन चरणों को एक ही परमेश्वर के कार्य के रूप में देखेंगे, और अपनी धारणाओं को जाने देंगे। ये वे लोग हैं जो परमेश्वर को जानते हैं, और इस प्रकार के लोग वे हैं जो वास्तविकता में परमेश्वर का अनुसरण करते हैं। जब परमेश्वर के प्रबंधन का सम्पूर्ण कार्य समाप्ति के निकट होगा, तो परमेश्वर प्रत्येक वस्तुओं को उनके प्रकार के आधार पर श्रेणीबद्ध करेगा। मनुष्य रचयिता के हाथों से रचा गया था, और अंत में उसे मनुष्य को पूरी तरह से अपने प्रभुत्व के अधीन अवश्य लौटा देना चाहिए; कार्य के तीन चरणों का यही निष्कर्ष है। अंत के दिनों में कार्य का चरण और इस्राएल एवं यहूदा में पिछले दो चरण, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में परमेश्वर के प्रबंधन की योजना के हिस्से हैं। इसे कोई नकार नहीं सकता है, और यह परमेश्वर के कार्य का तथ्य है। यद्यपि लोगों ने इस कार्य का ज्यादा अनुभव या साक्ष्य नहीं किया है, परन्तु तथ्य तब भी तथ्य ही है और यह किसी भी मनुष्य के द्वारा नकारा नहीं जा सकता है। ब्रह्माण्ड की प्रत्येक भूमि के लोग जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं वे सभीकार्य के इन तीनों चरणों को स्वीकार करेंगे। यदि तुम केवल कार्य के किसी एक विशेष चरण को ही जानते हो, और कार्य के अन्य दो चरणों को नहीं समझते हो, अतीत में परमेश्वर के कार्यों को नहीं समझते हो, तो तुम परमेश्वर के प्रबंधन की समस्त योजना के संपूर्ण सत्य के बारे में बात करने में असमर्थहो, और परमेश्वर के बारे में तुम्हारा ज्ञान एक-पक्षीय है, क्योंकि परमेश्वर पर तुम्हारे विश्वास में तुम उसे जानते या उसे समझते नहीं हो, और इसलिए तुम परमेश्वर की गवाही देने के लिए उपयुक्त नहीं हो। इस बात की परवाह किए बिना कि इन चीज़ों के बारे में तुम्हारा वर्तमान का ज्ञान गहरा या सतही है, अंत में, तुम लोगों के पास ज्ञान अवश्य होना चाहिए, और तुम्हें पूरी तरह से आश्वस्त अवश्य होना चाहिए, और सभी लोग परमेश्वर के कार्य की सम्पूर्णता को देखेंगे और उसके प्रभुत्व के अधीन समर्पित होंगे। इस कार्य के अन्त में, सभी सम्प्रदाय एक हो जाएँगे, सभी प्राणी रचयिता के प्रभुत्व के अधीन वापस लौट जाएँगे, सभी प्राणी एक ही सच्चे परमेश्वर की आराधना करेंगे, और सभी पंथ समाप्त हो जाएँगे और कभी प्रकट नहीं होंगे।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों को जानना ही परमेश्वर को जानने का मार्ग है
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