परमेश्वर के दैनिक वचन : जीवन में प्रवेश | अंश 575
तुम जो भी कर्तव्य निभाते हो उसमें जीवन-प्रवेश शामिल होता है। तुम्हारा काम नियमित हो या अनियमित, नीरस हो या जीवंत, तुम्हें हमेशा जीवन-प्रवेश हासिल करना ही चाहिए। कुछ लोगों द्वारा किये गये काम एकरसता वाले होते हैं; वे हर दिन वही काम करते रहते हैं। मगर, इनको करते समय, ये लोग अपनी जो दशाएं प्रकट करते हैं वे सब एक-समान नहीं होतीं। कभी-कभार अच्छी मन:स्थिति में होने पर लोग थोड़े ज़्यादा चौकस होते हैं और बेहतर काम करते हैं। बाकी समय, किसी अनजान प्रभाव के चलते, उनका शैतानी स्वभाव उनमें शैतानी जगाता है जिससे उनमें अनुचित विचार उपजते हैं, वे बुरी हालत और मन:स्थिति में आ जाते हैं; परिणाम यह होता है कि वे अपना काम सतही ढंग से करते हैं। लोगों की आतंरिक दशाएं निरंतर बदलती रहती हैं; ये किसी भी स्थान पर किसी भी वक्त बदल सकती हैं। तुम्हारी दशा चाहे जैसे बदले, अपनी मन:स्थिति के अनुसार कर्म करना हमेशा ग़लत होता है। मान लो कि जब तुम अच्छी मन:स्थिति में होते हो, तो थोड़ा बेहतर करते हो, और बुरी मन:स्थिति में होते हो तो थोड़ा बदतर करते हो—क्या यह काम करने का कोई सैद्धांतिक ढंग है? क्या तुम इस प्रकार अपने कर्तव्य को संतोषजनक ढंग से निभा सकते हो? मन:स्थिति चाहे जैसी हो, लोगों को परमेश्वर के सामने प्रार्थना करना और खुद को संभालना आना चाहिए, और सत्य की खोज करना और सिद्धांत के साथ कर्म करना आना चाहिए, तभी वे अपनी मन:स्थिति द्वारा नियंत्रित होने, और उसके द्वारा इधर-उधर भटकाए जाने से बच सकते हैं। अपना कर्तव्य निभाते समय तुम्हें हमेशा खुद को जांच कर देखना चाहिए कि क्या तुम सिद्धांत के अनुसार काम कर रहे हो, तुम्हारा कर्तव्य निर्वाह सही स्तर का है या नहीं, कहीं तुम इसे सतही तौर पर तो नहीं कर रहे हो, कहीं तुमने अपनी ज़िम्मेदारियां निभाने से जी चुराने की कोशिश तो नहीं की है, कहीं तुम्हारे रवैये और तुम्हारे सोचने के तरीके में कोई खोट तो नहीं। एक बार तुम्हारे आत्मचिंतन कर लेने और तुम्हारे सामने इन चीज़ों के स्पष्ट हो जाने से, अपना कर्तव्य निभाने में तुम्हें आसानी होगी। अपना कर्तव्य निभाते समय तुम्हारा किसी भी चीज़ से सामना हो—नकारात्मकता और कमज़ोरी, या निपटान के बाद बुरी मन:स्थिति में होना—तुम्हें कर्तव्य के साथ ठीक से पेश आना चाहिए, और तुम्हें साथ ही सत्य को खोजना और परमेश्वर की इच्छा को समझना चाहिए। ये काम करने से तुम्हारे पास अभ्यास करने का मार्ग होगा। अगर तुम अपना कर्तव्य निर्वाह बहुत अच्छे ढंग से करना चाहते हो, तो तुम्हें अपनी मन:स्थिति से बिल्कुल प्रभावित नहीं होना चाहिए। तुम्हें चाहे जितनी निराशा या कमज़ोरी महसूस हो रही हो, तुम्हें अपने हर काम में पूरी सख्ती के साथ सत्य का अभ्यास करना चाहिए, और सिद्धांतों पर अडिग रहना चाहिए। अगर तुम ऐसा करोगे, तो न सिर्फ दूसरे लोग तुम्हें स्वीकार करेंगे, बल्कि परमेश्वर भी तुम्हें पसंद करेगा। इस तरह, तुम एक ऐसे व्यक्ति होगे, जो ज़िम्मेदार है और दायित्व का निर्वहन करता है; तुम सचमुच में एक अच्छे व्यक्ति होगे, जो अपने कर्तव्य को सही स्तर पर निभाता है और जो पूरी तरह से एक सच्चे इंसान की तरह जीता है। ऐसे लोगों का शुद्धिकरण किया जाता है और वे अपना कर्तव्य निभाते समय वास्तविक बदलाव हासिल करते हैं, उन्हें परमेश्वर की दृष्टि में ईमानदार कहा जा सकता है। केवल ईमानदार लोग ही सत्य का अभ्यास करने में डटे रह सकते हैं और सिद्धांत के साथ कर्म करने में सफल हो सकते हैं, और मानक स्तर के अनुसार कर्तव्य निभा सकते हैं। सिद्धांत पर चलकर कर्म करने वाले लोग अच्छी मन:स्थिति में होने पर अपना कर्तव्य ध्यान से निभाते हैं; वे सतही ढंग से कार्य नहीं करते, वे अहंकारी नहीं होते और दूसरे उनके बारे में ऊंचा सोचें इसके लिए दिखावा नहीं करते। बुरी मन:स्थिति में होने पर भी वे अपने रोज़मर्रा के काम को उतनी ही ईमानदारी और ज़िम्मेदारी से पूरा करते हैं और उनके कर्तव्य निर्वाह के लिए नुकसानदेह या उन पर दबाव डालने वाली या उनके काम में बाधा पहुँचाने वाली किसी चीज़ से सामना होने पर भी वे परमेश्वर के सामने अपने दिल को शांत रख पाते हैं और यह कहते हुए प्रार्थना करते हैं, "मेरे सामने चाहे जितनी बड़ी समस्या खड़ी हो जाए—भले ही आसमान फट कर गिर पड़े—जब तक परमेश्वर मुझे जीने देगा, अपना कर्तव्य निभाने की भरसक कोशिश करने का मैं दृढ़ संकल्प लेता हूँ। मेरे जीवन का प्रत्येक दिन वह दिन होगा जब मैं अपना कर्तव्य निभाने के लिए कड़ी मेहनत करूंगा ताकि मैं परमेश्वर द्वारा मुझे दिये गये इस कर्तव्य, और उसके द्वारा मेरे शरीर में प्रवाहित इस सांस के योग्य बना रहूँ। चाहे जितनी भी मुश्किलों में रहूँ, मैं उन सबको परे रख दूंगा क्योंकि कर्तव्य निर्वाह करना मेरे लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण है!" जो लोग किसी व्यक्ति, घटना, चीज़ या माहौल से प्रभावित नहीं होते, जो किसी मन:स्थिति या बाहरी हालात से नियंत्रित नहीं होते, और जो परमेश्वर द्वारा उन्हें सौंपे गये कर्तव्यों और आदेशों को सबसे आगे रखते हैं—वही परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होते हैं और सच्चाई के साथ उसके सामने समर्पण करते हैं। ऐसे लोगों ने जीवन-प्रवेश हासिल किया है और सत्य की वास्तविकता में प्रवेश किया है। यह सत्य को जीने की सबसे व्यावहारिक और सच्ची अभिव्यक्तियों में से एक है।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, जीवन में प्रवेश कर्तव्य निभाने से प्रारंभ होता है
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