परमेश्वर के दैनिक वचन : जीवन में प्रवेश | अंश 570

सत्य के बारे में स्पष्ट सहभागिता का उद्देश्य लोगों को सत्य का अभ्यास करने और अपने स्वभाव बदलने में सक्षम करना है; यह उन्हें सत्य समझाने मात्र के लिए नहीं है। यदि तुम सत्य समझते हो लेकिन उसे अमल में नहीं लाते, तो इसके बारे में सहभागिता करने और तुम्हारे द्वारा इसे समझने का अब कोई मतलब नहीं होगा। यदि तुम सत्य को समझते हो लेकिन उसे अमल में नहीं लाते, तो तुम उसे हासिल करने का अवसर, और साथ ही बचाए जाने का कोई अवसर भी खो दोगे। यदि तुमने जो सत्य समझा है, उस पर अमल किया है तो तुम और अधिक, गहनतर सत्य प्राप्त करोगे; तुम परमेश्वर का उद्धार, और साथ ही पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता, रोशनी और मार्गदर्शन भी, प्राप्त करोगे। बहुत-से लोग केवल यह शिकायत करने में सक्षम हैं कि पवित्र आत्मा कभी उन्हें प्रबुद्ध नहीं करता, बिना यह समझे कि वे अनिवार्य रूप से सत्य को व्यवहार में नहीं ला रहे हैं। इसलिए, उनकी स्थिति कभी भी सामान्य नहीं होगी, और न ही वे कभी परमेश्वर की इच्छा को समझेंगे।

कुछ लोग कहते हैं कि सत्य का अभ्यास करने से उनकी समस्याएँ हल नहीं हो सकतीं। दूसरों का मानना है कि सत्य पूरी तरह से व्यक्ति के भ्रष्ट स्वभाव को सुधार नहीं सकता। तथ्य यह है कि लोगों की समस्याएँ हल की जा सकती हैं; कुंजी यह है कि लोग सत्य के अनुसार कार्य कर सकते हैं या नहीं। जो दोष तुम लोगों को वर्तमान में कष्ट देते हैं, वे कैंसर या असाध्य रोग नहीं हैं। यदि तुम लोग सत्य का अभ्यास कर सको, तो इन दोषों को बदला जा सकता है, जो इस बात पर निर्भर करता है कि तुम सत्य के अनुसार कार्य कर सकते हो या नहीं। यदि तुम सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर चल रहे हो, तो तुम्हारा सफल होना निश्चित है; लेकिन यदि तुम गलत रास्ते पर चल रहे हो, तो तुम गए काम से। उदाहरण के लिए, कुछ लोग अपना काम करते समय कभी यह नहीं सोचते कि वे चीज़ों को उस तरह कैसे करें, जो परमेश्वर के भवन के काम के लिए लाभदायक हो सके या उनका काम करने का तरीका परमेश्वर की इच्छा के अनुसार है या नहीं; नतीजतन, वे कई ऐसी चीज़ें कर डालते हैं, जिनसे परमेश्वर घृणा करता है। यदि वे अपना हर काम सत्य के अनुरूप करते, तो क्या वे ऐसे लोग न होते, जो परमेश्वर के दिल के अनुकूल हों? कुछ लोग सत्य को जानते हैं लेकिन उसका अभ्यास नहीं करते, और यह मानते हैं कि सत्य सिर्फ यही है, कुछ और नहीं। उनका विश्वास है कि यह उनकी इच्छा को नहीं मिटा सकता और उनकी भ्रष्टता दूर नहीं कर सकता। क्या इस तरह का व्यक्ति हास्यास्पद नहीं है? क्या ऐसे लोग बेतुके नहीं हैं? क्या वे खुद को चतुर नहीं समझते? यदि लोग सत्य के अनुसार कार्य करें, तो उनका भ्रष्ट स्वभाव बदल जाएगा; लेकिन यदि वे अपने प्राकृतिक व्यक्तित्व को ही परमेश्वर में अपने विश्वास और उसकी सेवा का आधार बनाते हैं, तो उनमें से कोई भी अपना स्वभाव बदलने में सफल नहीं होगा। कुछ लोग दिन भर अपनी ही चिंताओं में उलझे रहते हैं और उस सत्य की जांच या उसका अभ्यास नहीं कर पाते, जो आसानी से उपलब्ध है। अभ्यास का यह तरीका बहुत बेतुका है; इस तरह के लोग जन्मजात पीड़ित होते हैं, उनके पास आशीष तो होते हैं, लेकिन वे उनका आनंद नहीं लेते! आगे का मार्ग मौजूद है, तुम्हें सिर्फ उसका अभ्यास करना है। यदि तुम सत्य का अभ्यास करने के लिए कृत-संकल्प हो, तो तुम्हारी कमजोरियाँ और घातक खामियाँ बदली जा सकती हैं। लेकिन तुम्हें हमेशा सतर्क और सावधान रहना चाहिए और अधिक कठिनाइयाँ सहनी चाहिए। परमेश्वर में विश्वास करने के लिए विवेक की आवश्यकता होती है। यदि तुम ऐसा बेढंगा तरीका अपनाते हो, तो क्या तुम परमेश्वर में उचित रूप से विश्वास कर सकते हो?

—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन

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