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परमेश्वर के दैनिक वचन : मसीही जीवन
जीवन में प्रवेश
- कार्य के तीन चरण
- परमेश्वर का प्रकटन और कार्य
- अंत के दिनों में न्याय
- देहधारण
- परमेश्वर के कार्य को जानना
- परमेश्वर का स्वभाव और स्वरूप
- बाइबल के बारे में रहस्य
- धर्म-संबंधी धारणाओं का खुलासा
- इंसान की भ्रष्टता का खुलासा
- जीवन में प्रवेश
- मंज़िलें और परिणाम
- कार्य के तीन चरण
- परमेश्वर का प्रकटन और कार्य
- अंत के दिनों में न्याय
- देहधारण
- परमेश्वर के कार्य को जानना
- परमेश्वर का स्वभाव और स्वरूप
- बाइबल के बारे में रहस्य
- धर्म-संबंधी धारणाओं का खुलासा
- इंसान की भ्रष्टता का खुलासा
- जीवन में प्रवेश
- मंज़िलें और परिणाम
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "आरंभ में मसीह के कथन : अध्याय 6" | अंश 374
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "तुम्हें हर चीज़ सत्य के दृष्टिकोण से ध्यानपूर्वक देखनी ही चाहिए" | अंश 375
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "विश्वासियों को संसार की दुष्ट प्रवृत्तियों की असलियत समझने से ही शुरुआत करनी चाहिए" | अंश 376
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "क्या तुम जानते हो कि सत्य वास्तव में क्या है?" | अंश 377
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "सत्य के अनुसरण का महत्व और अनुसरण का मार्ग" | अंश 378
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "आरंभ में मसीह के कथन : केवल अपनी खुद की परिस्थितियों को समझ कर आप सही रास्ते पर चल सकते हैं" | अंश 379
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "अपना सच्चा हृदय परमेश्वर को दो, और तुम सत्य को प्राप्त कर सकते हो" | अंश 380
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "बाहरी परिवर्तन और स्वभाव में परिवर्तन के बीच अंतर" | अंश 381
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "बाहरी परिवर्तन और स्वभाव में परिवर्तन के बीच अंतर" | अंश 382
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "स्वभाव बदलने के बारे में क्या जानना चाहिए" | अंश 383
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "आरंभ में मसीह के कथन : लोग परमेश्वर से बहुत अधिक माँगें करते हैं" | अंश 384
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "आरंभ में मसीह के कथन : नायकों और कार्यकर्ताओं के लिए, एक मार्ग चुनना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है (9)" | अंश 385
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "आरंभ में मसीह के कथन : सत्य प्राप्त करने के लिए तुम्हें अपने आसपास के लोगों, विषयों और चीज़ों से सीखना ही चाहिए" | अंश 386
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "अगुआओं और कार्यकर्ताओं के कार्य के मुख्य सिद्धांत" | अंश 387
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "पतरस के मार्ग पर कैसे चलें" | अंश 388
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन : अध्याय 8" | अंश 389
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "प्रस्तावना" | अंश 390
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "विश्वासियों को क्या दृष्टिकोण रखना चाहिए" | अंश 391
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "विश्वासियों को क्या दृष्टिकोण रखना चाहिए" | अंश 392
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "तुम्हें सत्य के लिए जीना चाहिए क्योंकि तुम्हें परमेश्वर में विश्वास है" | अंश 393
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "तुम्हें सत्य के लिए जीना चाहिए क्योंकि तुम्हें परमेश्वर में विश्वास है" | अंश 394
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "परमेश्वर के सबसे नए कार्य को जानो और उसके चरण-चिन्हों का अनुसरण करो" | अंश 395
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "परमेश्वर के सबसे नए कार्य को जानो और उसके चरण-चिन्हों का अनुसरण करो" | अंश 396
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "परमेश्वर के सबसे नए कार्य को जानो और उसके चरण-चिन्हों का अनुसरण करो" | अंश 397
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "परमेश्वर के सबसे नए कार्य को जानो और उसके चरण-चिन्हों का अनुसरण करो" | अंश 398
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "परमेश्वर के सबसे नए कार्य को जानो और उसके चरण-चिन्हों का अनुसरण करो" | अंश 399
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "राज्य का युग वचन का युग है" | अंश 400
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "राज्य का युग वचन का युग है" | अंश 401
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "राज्य का युग वचन का युग है" | अंश 402
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "राज्य का युग वचन का युग है" | अंश 403
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "राज्य का युग वचन का युग है" | अंश 404
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "परमेश्वर के वचन के द्वारा सब कुछ प्राप्त हो जाता है" | अंश 405
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "परमेश्वर के साथ सामान्य संबंध स्थापित करना बहुत महत्वपूर्ण है" | अंश 406
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "परमेश्वर के साथ सामान्य संबंध स्थापित करना बहुत महत्वपूर्ण है" | अंश 407
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "परमेश्वर के साथ सामान्य संबंध स्थापित करना बहुत महत्वपूर्ण है" | अंश 408
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "परमेश्वर के साथ तुम्हारा संबंध कैसा है?" | अंश 409
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "परमेश्वर के साथ तुम्हारा संबंध कैसा है?" | अंश 410
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "परमेश्वर के साथ तुम्हारा संबंध कैसा है?" | अंश 411
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "एक सामान्य अवस्था में प्रवेश कैसे करें" | अंश 412
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "एक सामान्य आध्यात्मिक जीवन लोगों को सही मार्ग पर ले जाता है" | अंश 413
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "एक सामान्य आध्यात्मिक जीवन के विषय में" | अंश 414
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "एक सामान्य आध्यात्मिक जीवन के विषय में" | अंश 415
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "प्रार्थना की क्रिया के विषय में" | अंश 416
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "प्रार्थना की क्रिया के विषय में" | अंश 417
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "प्रार्थना की क्रिया के विषय में" | अंश 418
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "परमेश्वर के समक्ष अपने हृदय को शांत रखने के बारे में" | अंश 419
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "परमेश्वर के समक्ष अपने हृदय को शांत रखने के बारे में" | अंश 420
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "परमेश्वर के समक्ष अपने हृदय को शांत रखने के बारे में" | अंश 421
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "सत्य को समझने के बाद, तुम्हें उस पर अमल करना चाहिए" | अंश 422
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "सत्य को समझने के बाद, तुम्हें उस पर अमल करना चाहिए" | अंश 423
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "सत्य को समझने के बाद, तुम्हें उस पर अमल करना चाहिए" | अंश 424
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "आज्ञाओं का पालन करना और सत्य का अभ्यास करना" | अंश 425
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "आज्ञाओं का पालन करना और सत्य का अभ्यास करना" | अंश 426
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "आज्ञाओं का पालन करना और सत्य का अभ्यास करना" | अंश 427
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "वह व्यक्ति उद्धार प्राप्त करता है जो सत्य का अभ्यास करने को तैयार है" | अंश 428
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "केवल सत्य का अभ्यास करना ही इंसान में वास्तविकता का होना है" | अंश 429
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "केवल सत्य का अभ्यास करना ही इंसान में वास्तविकता का होना है" | अंश 430
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "वास्तविकता पर अधिक ध्यान केन्द्रित करो" | अंश 431
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "वास्तविकता पर अधिक ध्यान केन्द्रित करो" | अंश 432
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "वास्तविकता को कैसे जानें" | अंश 433
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "वास्तविकता को कैसे जानें" | अंश 434
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "विश्वास में, वास्तविकता पर केंद्रित होना चाहिए, धार्मिक रीति-रिवाजों में संलग्न होना विश्वास नहीं है" | अंश 435
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "कलीसियाई जीवन और वास्तविक जीवन पर विचार-विमर्श" | अंश 436
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "कलीसियाई जीवन और वास्तविक जीवन पर विचार-विमर्श" | अंश 437
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "अभ्यास (4)" | अंश 438
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "अभ्यास (4)" | अंश 439
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "अभ्यास (6)" | अंश 440
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "अभ्यास (7)" | अंश 441
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "अभ्यास (7)" | अंश 442
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "तुम लोगों को कार्य को समझना चाहिए—भ्रम में अनुसरण मत करो!" | अंश 443
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "पवित्र आत्मा का कार्य और शैतान का कार्य" | अंश 444
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "पवित्र आत्मा का कार्य और शैतान का कार्य" | अंश 445
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "पवित्र आत्मा का कार्य और शैतान का कार्य" | अंश 446
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "क्षमता को बढ़ाना परमेश्वर द्वारा उद्धार पाने के लिए है" | अंश 447
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "देहधारी परमेश्वर की सेवकाई और मनुष्य के कर्तव्य के बीच अंतर" | अंश 448
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "देहधारी परमेश्वर की सेवकाई और मनुष्य के कर्तव्य के बीच अंतर" | अंश 449
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "अनुभव पर" | अंश 450
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "सभी के द्वारा अपना कार्य करने के बारे में" | अंश 451
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "सभी के द्वारा अपना कार्य करने के बारे में" | अंश 452
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप सेवा कैसे करें" | अंश 453
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप सेवा कैसे करें" | अंश 454
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "धार्मिक सेवाओं को अवश्य शुद्ध करना चाहिए" | अंश 455
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "धार्मिक सेवाओं को अवश्य शुद्ध करना चाहिए" | अंश 456
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "कार्य और प्रवेश (2)" | अंश 457
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "कार्य और प्रवेश (2)" | अंश 458
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का कार्य" | अंश 459
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "एक योग्य चरवाहे को किन चीज़ों से लैस होना चाहिए" | अंश 460
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "इस्राएलियों की तरह सेवा करो" | अंश 461
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "इस्राएलियों की तरह सेवा करो" | अंश 462
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "तुझे अपने भविष्य के मिशन पर कैसे ध्यान देना चाहिए?" | अंश 463
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "तुम विश्वास के बारे में क्या जानते हो?" | अंश 464
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "तुम विश्वास के बारे में क्या जानते हो?" | अंश 465
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "परमेश्वर के बारे में तुम्हारी समझ क्या है?" | अंश 466
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "तुम्हें परमेश्वर के प्रति अपनी भक्ति बनाए रखनी चाहिए" | अंश 467
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "तुम्हें परमेश्वर के प्रति अपनी भक्ति बनाए रखनी चाहिए" | अंश 468
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "तुम्हें परमेश्वर के प्रति अपनी भक्ति बनाए रखनी चाहिए" | अंश 469
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "तुम्हें परमेश्वर के प्रति अपनी भक्ति बनाए रखनी चाहिए" | अंश 470
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "तुम्हें परमेश्वर के प्रति अपनी भक्ति बनाए रखनी चाहिए" | अंश 471
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "पौलुस की प्रकृति और स्वभाव को कैसे पहचाना जाए" | अंश 472
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "अपने मार्ग के अंतिम दौर में तुम्हें कैसे चलना चाहिए" | अंश 473
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "सफलता या असफलता उस पथ पर निर्भर होती है जिस पर मनुष्य चलता है" | अंश 475
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "सफलता या असफलता उस पथ पर निर्भर होती है जिस पर मनुष्य चलता है" | अंश 476
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "सफलता या असफलता उस पथ पर निर्भर होती है जिस पर मनुष्य चलता है" | अंश 477
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "सफलता या असफलता उस पथ पर निर्भर होती है जिस पर मनुष्य चलता है" | अंश 478
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "सफलता या असफलता उस पथ पर निर्भर होती है जिस पर मनुष्य चलता है" | अंश 479
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "सफलता या असफलता उस पथ पर निर्भर होती है जिस पर मनुष्य चलता है" | अंश 480
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "सफलता या असफलता उस पथ पर निर्भर होती है जिस पर मनुष्य चलता है" | अंश 481
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "सफलता या असफलता उस पथ पर निर्भर होती है जिस पर मनुष्य चलता है" | अंश 482
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "परमेश्वर में अपने विश्वास में तुम्हें परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करना चाहिए" | अंश 483
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "परमेश्वर में अपने विश्वास में तुम्हें परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करना चाहिए" | अंश 484
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "जो सच्चे हृदय से परमेश्वर के आज्ञाकारी हैं वे निश्चित रूप से परमेश्वर के द्वारा ग्रहण किए जाएँगे" | अंश 485
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "जो सच्चे हृदय से परमेश्वर के आज्ञाकारी हैं वे निश्चित रूप से परमेश्वर के द्वारा ग्रहण किए जाएँगे" | अंश 486
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "जो सच्चे हृदय से परमेश्वर के आज्ञाकारी हैं वे निश्चित रूप से परमेश्वर के द्वारा ग्रहण किए जाएँगे" | अंश 487
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "जो सच्चे हृदय से परमेश्वर के आज्ञाकारी हैं वे निश्चित रूप से परमेश्वर के द्वारा ग्रहण किए जाएँगे" | अंश 488
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "जो परमेश्वर से सचमुच प्यार करते हैं, वे वो लोग हैं जो परमेश्वर की व्यावहारिकता के प्रति पूर्णतः समर्पित हो सकते हैं" | अंश 489
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "जो परमेश्वर से सचमुच प्यार करते हैं, वे वो लोग हैं जो परमेश्वर की व्यावहारिकता के प्रति पूर्णतः समर्पित हो सकते हैं" | अंश 490
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "जो परमेश्वर से सचमुच प्यार करते हैं, वे वो लोग हैं जो परमेश्वर की व्यावहारिकता के प्रति पूर्णतः समर्पित हो सकते हैं" | अंश 491
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "परमेश्वर के लिए सच्चा प्रेम स्वाभाविक है" | अंश 492
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "परमेश्वर के लिए सच्चा प्रेम स्वाभाविक है" | अंश 493
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "परमेश्वर के लिए सच्चा प्रेम स्वाभाविक है" | अंश 494
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "केवल परमेश्वर को प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है" | अंश 495
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "केवल परमेश्वर को प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है" | अंश 496
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "केवल परमेश्वर को प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है" | अंश 497
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "केवल परमेश्वर को प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है" | अंश 498
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "परमेश्वर से प्रेम करने वाले लोग हमेशा के लिए उसके प्रकाश में रहेंगे" | अंश 499
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "परमेश्वर से प्रेम करने वाले लोग हमेशा के लिए उसके प्रकाश में रहेंगे" | अंश 500
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "परमेश्वर से प्रेम करने वाले लोग हमेशा के लिए उसके प्रकाश में रहेंगे" | अंश 501
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "परमेश्वर से प्रेम करने वाले लोग हमेशा के लिए उसके प्रकाश में रहेंगे" | अंश 502
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "परमेश्वर से प्रेम करने वाले लोग हमेशा के लिए उसके प्रकाश में रहेंगे" | अंश 503
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "परमेश्वर से प्रेम करने वाले लोग हमेशा के लिए उसके प्रकाश में रहेंगे" | अंश 504
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "केवल पीड़ादायक परीक्षाओं का अनुभव करने के द्वारा ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो" | अंश 505
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "केवल पीड़ादायक परीक्षाओं का अनुभव करने के द्वारा ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो" | अंश 506
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "केवल शुद्धिकरण का अनुभव करके ही मनुष्य सच्चे प्रेम से युक्त हो सकता है" | अंश 507
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "केवल शुद्धिकरण का अनुभव करके ही मनुष्य सच्चे प्रेम से युक्त हो सकता है" | अंश 508
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "केवल शुद्धिकरण का अनुभव करके ही मनुष्य सच्चे प्रेम से युक्त हो सकता है" | अंश 509
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "केवल शुद्धिकरण का अनुभव करके ही मनुष्य सच्चे प्रेम से युक्त हो सकता है" | अंश 510
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शुद्धिकरण से अवश्य गुज़रना चाहिए" | अंश 511
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शुद्धिकरण से अवश्य गुज़रना चाहिए" | अंश 512
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शुद्धिकरण से अवश्य गुज़रना चाहिए" | अंश 513
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शुद्धिकरण से अवश्य गुज़रना चाहिए" | अंश 514
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शुद्धिकरण से अवश्य गुज़रना चाहिए" | अंश 515
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शुद्धिकरण से अवश्य गुज़रना चाहिए" | अंश 516
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शुद्धिकरण से अवश्य गुज़रना चाहिए" | अंश 517
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "केवल वे लोग ही परमेश्वर की गवाही दे सकते हैं जो परमेश्वर को जानते हैं" | अंश 518
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "केवल वे लोग ही परमेश्वर की गवाही दे सकते हैं जो परमेश्वर को जानते हैं" | अंश 519
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "पतरस ने यीशु को कैसे जाना" | अंश 520
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "पतरस ने यीशु को कैसे जाना" | अंश 521
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "पतरस ने यीशु को कैसे जाना" | अंश 522
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "पतरस के अनुभव: ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान" | अंश 523
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "पतरस के अनुभव: ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान" | अंश 524
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "पतरस के अनुभव: ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान" | अंश 525
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "पतरस के अनुभव: ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान" | अंश 526
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "पतरस के अनुभव: ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान" | अंश 527
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "पतरस के अनुभव: ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान" | अंश 528
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "पतरस के अनुभव: ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान" | अंश 529
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "पतरस के अनुभव: ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान" | अंश 530
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन : अध्याय 6" | अंश 531
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या : पतरस के जीवन पर" | अंश 532
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "अंधकार के प्रभाव से बच निकलो और तुम परमेश्वर द्वारा प्राप्त किए जाओगे" | अंश 533
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "अंधकार के प्रभाव से बच निकलो और तुम परमेश्वर द्वारा प्राप्त किए जाओगे" | अंश 534
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "अंधकार के प्रभाव से बच निकलो और तुम परमेश्वर द्वारा प्राप्त किए जाओगे" | अंश 535
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "परमेश्वर के प्रकटन को उसके न्याय और ताड़ना में देखना" | अंश 536
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "क्या तुम ऐसे व्यक्ति हो जो जीवित हो उठा है?" | अंश 537
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "जिनके स्वभाव परिवर्तित हो चुके हैं, वे वही लोग हैं जो परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में प्रवेश कर चुके हैं" | अंश 538
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "जिनके स्वभाव परिवर्तित हो चुके हैं, वे वही लोग हैं जो परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में प्रवेश कर चुके हैं" | अंश 539
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "जिनके स्वभाव परिवर्तित हो चुके हैं, वे वही लोग हैं जो परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में प्रवेश कर चुके हैं" | अंश 540
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "जिनके स्वभाव परिवर्तित हो चुके हैं, वे वही लोग हैं जो परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में प्रवेश कर चुके हैं" | अंश 541
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "पूर्णता प्राप्त करने के लिए परमेश्वर की इच्छा को ध्यान में रखो" | अंश 542
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "पूर्णता प्राप्त करने के लिए परमेश्वर की इच्छा को ध्यान में रखो" | अंश 543
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "पूर्णता प्राप्त करने के लिए परमेश्वर की इच्छा को ध्यान में रखो" | अंश 544
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "परमेश्वर उन्हें पूर्ण बनाता है, जो उसके हृदय के अनुसार हैं" | अंश 545
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "परमेश्वर उन्हें पूर्ण बनाता है, जो उसके हृदय के अनुसार हैं" | अंश 546
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "परमेश्वर उन्हें पूर्ण बनाता है, जो उसके हृदय के अनुसार हैं" | अंश 547
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "मात्र उन्हें ही पूर्ण बनाया जा सकता है जो अभ्यास पर ध्यान देते हैं" | अंश 548
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "मात्र उन्हें ही पूर्ण बनाया जा सकता है जो अभ्यास पर ध्यान देते हैं" | अंश 549
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "मात्र उन्हें ही पूर्ण बनाया जा सकता है जो अभ्यास पर ध्यान देते हैं" | अंश 550
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "मात्र उन्हें ही पूर्ण बनाया जा सकता है जो अभ्यास पर ध्यान देते हैं" | अंश 551
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "केवल पूर्ण बनाया गया मनुष्य ही सार्थक जीवन जी सकता है" | अंश 552
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "केवल पूर्ण बनाया गया मनुष्य ही सार्थक जीवन जी सकता है" | अंश 553
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "प्रतिज्ञाएँ उनके लिए जो पूर्ण बनाए जा चुके हैं" | अंश 554
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "प्रतिज्ञाएँ उनके लिए जो पूर्ण बनाए जा चुके हैं" | अंश 555
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "केवल सत्य की खोज करके ही स्वभाव में बदलाव लाया जा सकता है" | अंश 556
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "केवल सत्य की खोज करके ही स्वभाव में बदलाव लाया जा सकता है" | अंश 557
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "सत्य के अनुसरण का महत्व और अनुसरण का मार्ग" | अंश 558
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "स्वभाव बदलने के बारे में क्या जानना चाहिए" | अंश 559
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "मनुष्य का स्वभाव कैसे जानें" | अंश 560
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "मनुष्य का स्वभाव कैसे जानें" | अंश 561
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "मनुष्य का स्वभाव कैसे जानें" | अंश 562
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "मनुष्य का स्वभाव कैसे जानें" | अंश 563
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "अपने पथभ्रष्ट विचारों को पहचानकर ही तुम स्वयं को जान सकते हो" | अंश 564
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "स्वयं को जानना मुख्यतः मानवीय प्रकृति को जानना है" | अंश 565
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "स्वयं को जानना मुख्यतः मानवीय प्रकृति को जानना है" | अंश 566
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "पतरस के मार्ग पर कैसे चलें" | अंश 567
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "पतरस के मार्ग पर कैसे चलें" | अंश 568
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "अपनी प्रकृति को समझना और सत्य को व्यवहार में लाना" | अंश 569
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "जो लोग सत्य से प्रेम करते हैं, उनके पास एक मार्ग होता है" | अंश 570
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "केवल वे ही अगुआई कर सकते हैं जिनके पास सत्य की वास्तविकता है" | अंश 571
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "भ्रमित लोगों को बचाया नहीं जा सकता" | अंश 572
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "परमेश्वर की इच्छा को खोजना सत्य के अभ्यास के लिए है" | अंश 573
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "परमेश्वर की इच्छा को खोजना सत्य के अभ्यास के लिए है" | अंश 574
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "जीवन में प्रवेश अपने कर्तव्य को निभाने का अनुभव करने से प्रारंभ होना चाहिए" | अंश 575
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "अपने कर्तव्यों में परमेश्वर के वचनों का अनुभव कैसे करें" | अंश 576
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "केवल सत्य की खोज करके ही व्यक्ति परमेश्वर के कर्मों को जान सकता है" | अंश 577
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "देहधारी परमेश्वर को कैसे जानें" | अंश 578
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "देहधारी परमेश्वर को कैसे जानें" | अंश 579
- परमेश्वर के दैनिक वचन | "सफलता या असफलता उस पथ पर निर्भर होती है जिस पर मनुष्य चलता है" | अंश 474
परमेश्वर के दैनिक वचन | "केवल पीड़ादायक परीक्षाओं का अनुभव करने के द्वारा ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो" | अंश 505
तुम आज परमेश्वर से कितना प्रेम करते हो? और आज तुम उसके बारे में कितना जानते हो जो परमेश्वर ने तुम्हारे लिए किया है? ये वे बातें हैं जो तुम्हें सीखनी चाहिए। जब परमेश्वर पृथ्वी पर पहुँचा, तो जो कुछ उसने मनुष्य में किया और जो कुछ उसने मनुष्य को देखने की अनुमति दी, वह इसलिए था कि मनुष्य उससे प्रेम करे और सच्चाई के साथ उसे जाने। मनुष्य यदि परमेश्वर के लिए कष्ट सहने के योग्य है और वह यहाँ तक आ पाया है, यह एक ओर परमेश्वर के प्रेम के कारण है, और दूसरी ओर परमेश्वर के उद्धार के कारण है; इससे बढ़कर, यह न्याय और ताड़ना के कारण है जो परमेश्वर ने मनुष्य पर डाले हैं। यदि तुम लोग परमेश्वर के न्याय, ताड़ना, और परीक्षाओं के बिना हो, और यदि परमेश्वर ने तुम्हें कष्ट सहने नहीं दिया है, तो सच कहूँ तो तुम लोग परमेश्वर से सच्चाई से प्रेम नहीं करते। मनुष्य में परमेश्वर का काम जितना बड़ा होता है, और जितने अधिक मनुष्य के कष्ट होते हैं, उतना ही अधिक यह इस बात को दिखा सकता है कि परमेश्वर का कार्य कितना अर्थपूर्ण है, और उतना ही अधिक मनुष्य का हृदय परमेश्वर से सच्चाई से प्रेम कर सकता है। तुम परमेश्वर से प्रेम करना कैसे सीखते हो? यातना और शोधन के बिना, पीड़ादायक परीक्षाओं के बिना, और यदि परमेश्वर ने मनुष्य को अनुग्रह, प्रेम और दया ही प्रदान की होती, तो क्या तुम परमेश्वर के प्रति सच्चे प्रेम को प्राप्त कर सकते थे? एक ओर, परमेश्वर की ओर से आने वाले परीक्षाओं के दौरान मनुष्य अपनी त्रुटियों को जान पाता है, और देख लेता है कि वह महत्वहीन, घृणित, और निम्न है, और कि उसके पास कुछ नहीं है, और वह कुछ नहीं है; दूसरी ओर, अपने परीक्षाओं के दौरान परमेश्वर मनुष्य के लिए भिन्न वातावरणों की रचना करता है जो मनुष्य को परमेश्वर की मनोहरता का अनुभव करने के अधिक योग्य बनाता है। यद्यपि पीड़ा अधिक है, और कभी-कभी तो असहनीय है—और यह कुचलने वाले कष्ट तक भी पहुँच जाती है—परंतु इसका अनुभव करने के बाद मनुष्य देखता है कि उसमें परमेश्वर का कार्य कितना मनोहर है, और केवल इसी नींव पर मनुष्य में परमेश्वर के सच्चे प्रेम का जन्म होता है। आज मनुष्य देखता है कि परमेश्वर के केवल अनुग्रह, प्रेम और उसकी दया के साथ वह स्वयं को पूरी तरह से जान सकने में असमर्थ है, और वह मनुष्य के तत्व को तो जान ही नहीं सकता है। केवल परमेश्वर के शोधन और न्याय के द्वारा, केवल ऐसे शोधन के द्वारा एक व्यक्ति अपनी कमियों को जान सकता है, और जान सकता है कि उसके पास कुछ भी नहीं है। अतः, मनुष्य का परमेश्वर के प्रति प्रेम परमेश्वर की ओर से आने वाले शोधन और न्याय की नींव पर आधारित होता है। शांतिमय पारिवारिक जीवन या भौतिक आशीषों के साथ, यदि तुम केवल परमेश्वर के अनुग्रह का आनंद लेते हो, तो तुमने परमेश्वर को प्राप्त नहीं किया है, और परमेश्वर में तुम्हारे विश्वास को सफल नहीं माना जा सकता। परमेश्वर ने शरीर में अनुग्रह के कार्य के एक चरण को पहले ही पूरा कर लिया है, और मनुष्य को भौतिक आशीषें प्रदान कर दी हैं—परंतु मनुष्य को केवल अनुग्रह, प्रेम और दया के साथ सिद्ध नहीं किया जा सकता। मनुष्य अपने अनुभवों में परमेश्वर के कुछ प्रेम का अनुभव करता है, और परमेश्वर के प्रेम और उसकी दया को देखता है, फिर भी कुछ समय तक इसका अनुभव करने के बाद वह देखता है कि परमेश्वर का अनुग्रह और उसका प्रेम और उसकी दया मनुष्य को सिद्ध बनाने में असमर्थ हैं, और उसे प्रकट करने में भी असमर्थ हैं जो मनुष्य में भ्रष्ट है, और न ही वे मनुष्य के भ्रष्ट स्वभाव से उसे आज़ाद कर सकते हैं, या उसके प्रेम और विश्वास को सिद्ध बना सकते हैं। परमेश्वर का अनुग्रह का कार्य एक अवधि का कार्य था, और मनुष्य परमेश्वर को जानने के लिए परमेश्वर के अनुग्रह का आनंद उठाने पर निर्भर नहीं रह सकता।
— 'वचन देह में प्रकट होता है' से उद्धृत
मुश्किलों और परीक्षणों के ज़रिए ही तुम ईश्वर को सचमुच प्रेम कर सकते हो
आज तुम ईश्वर को कितना चाहते हो? तुम पर जो किया उसने, कितना जानते हो? इन चीज़ों को जानो। ईश्वर ने धरती पर आकर, इंसान पर जो कुछ किया, उसे जो कुछ दिखाया, इसलिए कि इंसान उसे प्रेम करे, उसे सचमुच जाने। ईश्वर के प्यार की वजह से, उसके उद्धार की वजह से ही, इंसान उसके लिए दुख उठा पाया, यहाँ तक आ पाया। इंसान पर ईश्वर के न्याय और ताड़ना के काम की वजह से भी, इंसान ऐसा कर पाया। अगर तुम उसके न्याय, परीक्षण, ताड़ना से रहित हो, अगर उसने कष्टों से नहीं गुज़ारा तुम्हें, तो सच में नहीं चाहते तुम ईश्वर को। इंसान के कष्ट और उसमें ईश-कार्य जितने अधिक होंगे, तो तुम ईश-कार्य की सार्थकता उतनी ही ज़्यादा जानोगे, इंसान ईश्वर से उतना ही ज़्यादा प्रेम करेगा। बिना शुद्धिकरण और परीक्षणों के ईश्वर से प्रेम करना कैसे सीखोगे? अगर ईश्वर दे इंसान को अनुग्रह, दया, प्रेम, तो क्या तुम ईश्वर को सच्चा प्रेम कर पाओगे?
एक तरफ ईश्वर के परीक्षणों से, इंसान अपनी कमियों को जाने; जाने कि वो कितना घृणित है, तुच्छ और नीच है, उसके पास कुछ नहीं, और वो कुछ नहीं है। दूसरी तरफ, जब ईश्वर ये इम्तहान लाए, वो इंसान के लिए परिवेश बनाए ताकि इंसान उसकी मनोहरता का अनुभव कर पाए।
भयंकर पीड़ा आए, कभी बर्दाश्त से बाहर हो जाए, इस हद तक कि इंसान को तोड़ दे, तो जाने इंसान उस पर कितना सुंदर ईश-कार्य हुआ है। इसी बुनियाद पर ईश्वर के लिए इंसान में सच्चा प्रेम जागे। अगर तुम उसके न्याय, परीक्षण, ताड़ना से रहित हो, अगर उसने कष्टों से नहीं गुज़ारा तुम्हें, तो सच में नहीं चाहते तुम ईश्वर को। इंसान के कष्ट और उसमें ईश-कार्य जितने अधिक होंगे, तो तुम ईश-कार्य की सार्थकता उतनी ही ज़्यादा जानोगे, इंसान ईश्वर से उतना ही ज़्यादा प्रेम करेगा। बिना शुद्धिकरण और परीक्षणों के ईश्वर से प्रेम करना कैसे सीखोगे? अगर ईश्वर दे इंसान को अनुग्रह, दया, प्रेम, तो क्या तुम ईश्वर को सच्चा प्रेम कर पाओगे?
'मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ' से