परमेश्वर के दैनिक वचन : जीवन में प्रवेश | अंश 489
व्यावहारिकता का ज्ञान होने और परमेश्वर के कार्य को स्पष्ट रूप से देखने में सक्षम हो जाने पर—यह सब उसके वचनों में दिखाई देता है। यह केवल परमेश्वर के वचनों में है कि तुम प्रबुद्धता प्राप्त कर सकते हो, इसलिए तुम्हें उसके वचनों के साथ अपने आप को और अधिक समर्थ बनाना चाहिए। परमेश्वर के वचनों से अपनी समझ को संगति में साझा करें, और तुम्हारी संगति के माध्यम से अन्य लोग प्रबुद्धता प्राप्त कर सकते हैं और यह लोगों को मार्ग पर ले जा सकता है—यह मार्ग व्यावहारिक है। इससे पहले कि परमेश्वर तुम्हारे लिए एक वातावरण स्थापित करे, तुम लोगों में से हर एक को उसके वचनों के साथ पहले स्वयं समर्थ बन जाना चाहिए। यह ऐसा कुछ है जो हर किसी को करना चाहिए—यह एक अत्यावश्यक प्राथमिकता है। किए जाने के लिए सबसे पहली बात है उसके वचनों को खाने और पीने में सक्षम होना। जिन चीजों को तुम करने में असमर्थ हो उनके लिए, उसके वचनों से अभ्यास का मार्ग तलाशें, और उसके वचनों में तुम्हारी समझ में नहीं आने वाले मुद्दों, या अपनी किन्हीं कठिनाइयों को खोजें। परमेश्वर के वचनों को अपनी आपूर्ति बनाएँ, उन्हें अपनी व्यावहारिक कठिनाइयों और समस्याओं को सुलझाने में तुम्हारी सहायता करने दें, और उसके वचनों को जीवन में तुम्हारी सहायता बनने दें। इन चीज़ों के लिए तुम्हारी तरफ से प्रयास की आवश्यकता होगी। परमेश्वर के वचन को खाने और पीने से तुम्हें परिणाम अवश्य प्राप्त होने चाहिए; तुम्हें उसके सामने अपने दिल को शांत करने में समर्थ अवश्य होना चाहिए, और जब कभी भी तुम किन्हीं समस्याओँ का सामना करते हो तब परमेश्वर के कथनों के अनुसार अभ्यास अवश्य करना चाहिए। जब तुमने किसी भी समस्या का सामना नहीं किया है, तो तुम्हें बस उसके वचन को खाने और पीने की चिंता करनी चाहिए। कभी-कभी तुम प्रार्थना कर सकते हो और परमेश्वर के प्यार के बारे में चिंतन कर सकते हो, उसके वचनों की तुम्हारी समझ को संगति में साझा कर सकते हो, और उस प्रबुद्धता और रोशनी के बारे में जिसे तुम अपने अंदर अनुभव करते हो और उन प्रतिक्रियाओं के बारे में जो तुम्हें उन कथनों को पढ़ते समय होती है, संचारित कर सकते हो। इसके अलावा, तुम लोगों को एक रास्ता दे सकते हो। केवल यही व्यावहारिक है। ऐसा करने का लक्ष्य परमेश्वर के वचनों को तुम्हारी व्यावहारिक आपूर्ति बनने देना है।
एक दिन के दौरान, तुम परमेश्वर के सामने सचमुच कितने घंटे बिताते हो? तुम्हारे दिन का कितना हिस्सा परमेश्वर को दिया जाता है? कितना शरीर को दिया जाता है? अपना हृदय हमेशा परमेश्वर की ओर मोड़े रखना, परमेश्वर द्वारा पूर्ण किए जाने की ओर सही रास्ते पर पहला कदम है। तुम अपना हृदय और शरीर और अपना समस्त वास्तविक प्यार परमेश्वर को समर्पित कर सकते हो, उसके सामने रख सकते हो, उसके प्रति पूरी तरह से आज्ञाकारी हो सकते हो, और उसकी इच्छा के प्रति पूर्णतः विचारशील हो सकते हो। शरीर के लिए नहीं, परिवार के लिए नहीं, और अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं के लिए नहीं, बल्कि परमेश्वर के परिवार के हित के लिए। तुम परमेश्वर के वचन को हर चीज में सिद्धांत के रूप में, नींव के रूप में ले सकते हो। इस तरह, तुम्हारे इरादे और तुम्हारे दृष्टिकोण सब सही जगह पर होंगे, और तुम ऐसे व्यक्ति होओगे जो परमेश्वर के सामने उसकी प्रशंसा प्राप्त करता है। जिन लोगों को परमेश्वर पसंद करता है ये वे लोग हैं जो पूर्णतः उसकी ओर हैं, वे लोग हैं जो उसके प्रति समर्पित हैं तथा किसी अन्य के प्रति नहीं। जिनसे वह घृणा करता है ये वे लोग हैं जो उसके साथ में आधा-अधूरे मन से हैं, और जो उसके विरुद्ध विद्रोह करते हैं। वह उन लोगों से घृणा करता है जो उस पर विश्वास करते हैं और हमेशा उसका आनंद लेना चाहते हैं, लेकिन उसके लिए स्वयं को पूरी तरह से व्यय नहीं कर सकते हैं। वह उन से घृणा करता है जो कहते हैं कि वे उससे प्यार करते हैं, लेकिन अपने हृदय में उसके विरुद्ध विद्रोह करते हैं। वह उनसे घृणा करता है जो धोखा देने के लिए लच्छेदार वचनों का उपयोग करते हैं। जिन लोगों का परमेश्वर के प्रति वास्तविक समर्पण या उसके प्रति वास्तविक आज्ञाकारिता नहीं है, वे विश्वासघाती लोग हैं; वे प्राकृतिक रूप से अत्यधिक अभिमानी हैं। जो लोग सामान्य, व्यावहारिक परमेश्वर के सामने सचमुच में आज्ञाकारी नहीं हो सकते हैं वे और भी अधिक अभिमानी हैं, और वे विशेष रूप से महादूत के कर्त्तव्यनिष्ठ वंशज हैं। जो लोग वास्तव में खुद को परमेश्वर के लिए व्यय करते हैं वे उसके सामने अपना पूरा अस्तित्व रख देते हैं। वे वास्तव में उसके सभी कथनों का पालन करते हैं, और वे उसके वचनों को अभ्यास में लाने में सक्षम होते हैं। वे परमेश्वर के वचनों को अपने अस्तित्व की नींव बनाते हैं, और वे परमेश्वर के वचन में अभ्यास के हिस्सों को वास्तविक रूप से तलाश करने में सक्षम होते हैं। यह कोई ऐसा है जो वास्तव में परमेश्वर के सामने रहता है। यदि तुम जो करते हो वह तुम्हारे जीवन के लिए लाभदायक है, और उसके वचनों को खाने और पीने के द्वारा, तुम अपनी आंतरिक आवश्यकताओं और अपर्याप्तताओं को पूरा कर सकते हो ताकि तुम्हारा जीवन स्वभाव रूपान्तरित हो जाए, तो यह परमेश्वर की इच्छा को संतुष्ट करेगा। यदि तुम परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार कार्य करते हो, यदि तुम शरीर को संतुष्ट नहीं करते हो, बल्कि उसकी इच्छा को संतुष्ट करते हो, तो यह उसके वचनों की वास्तविकता में प्रवेश करना है। जब परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में अधिक वास्तविकता से प्रवेश करने के बारे में बात करते हैं, तो इसका अर्थ है कि तुम अपने कर्तव्यों का पालन कर सकते हो और परमेश्वर की अपेक्षाओं को पूरा कर सकते हो। केवल इस प्रकार के व्यावहारिक कार्यों को ही उसके वचनों की वास्तविकता में प्रवेश करना कहा जा सकता है। यदि तुम इस वास्तविकता में प्रवेश करने में सक्षम हो, तो तुममें सच्चाई है। यह वास्तविकता में प्रवेश करने की शुरुआत है; तुम्हें सबसे पहले यह प्रशिक्षण अवश्य पूरा करना चाहिए और केवल उसके बाद ही तुम गहरी वास्तविकताओं में प्रवेश कर पाओगे। विचार करो कि कैसे आज्ञाओं का पालन करें और परमेश्वर के सामने निष्ठावान बनें। हमेशा यह न सोचें कि कब तुम राज्य में प्रवेश कर पाओगे—यदि तुम्हारा स्वभाव नहीं बदलता है तो तुम जो भी सोचोगे वह बेकार होगा! परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में प्रवेश करने के लिए, तुम्हें सबसे पहले अपने सभी मतों और विचारों को परमेश्वर के लिए बनाने में सक्षम अवश्य होना चाहिए—यह अल्पतम आवश्यकता है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर से सचमुच प्रेम करने वाले लोग वे होते हैं जो परमेश्वर की व्यावहारिकता के प्रति पूर्णतः समर्पित हो सकते हैं
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