परमेश्वर के दैनिक वचन : जीवन में प्रवेश | अंश 578
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पवित्र आत्मा का कार्य सकारात्मक उन्नति है, जबकि शैतान का कार्य पीछे को हटना, नकारात्मकता, विद्रोहीपन, परमेश्वर के प्रति प्रतिरोध, परमेश्वर में विश्वास की कमी, भजनों को गाने तक की अनिच्छा, और अपना कर्तव्य कर पाने में बहुत कमज़ोर होना है। वह सब कुछ जो पवित्र आत्मा के प्रबोधन से उपजता है वह काफी स्वाभाविक होता है; यह तुम पर थोपा नहीं जाता। यदि तुम इसका अनुसरण करते हो, तो तुम्हारे पास शांति होगी, और यदि तुम ऐसा नहीं करते हो, फिर बाद में तुम्हें फटकारा जाएगा। यदि यह पवित्र आत्मा का प्रकाशन होता है, तब जो कुछ भी तुम करो उसमें कोई हस्तक्षेप या रोक नहीं होगी, तुम स्वतंत्र होगे, तुम्हारे कार्यों में अभ्यास का एक मार्ग होगा, और तुम किन्हीं सीमाओं के अधीन नहीं होगे, और परमेश्वर की इच्छा के अनुसार कार्य करने के योग्य होगे। शैतान का कार्य बहुत-सी बातों में तुमसे व्यवधान या हस्तक्षेप उत्पन्न करवाता है; यह तुम्हें प्रार्थना करने से विमुख करता है, और परमेश्वर के वचनों को खाने और पीने में बहुत आलसी बनाता है, कलीसिया के जीवन को जीने के प्रति विमुख बनाता है, और यह आत्मिक जीवन से दूर कर देता है। पवित्र आत्मा का कार्य तुम्हारे दैनिक जीवन में हस्तक्षेप नहीं करता, और सामान्य आत्मिक जीवन में तुम्हारे प्रवेश करने में हस्तक्षेप नहीं करता। तुम बहुत-सी चीज़ों को उस क्षण समझने में असमर्थ रहते हो जब वे घटित होती हैं; फिर भी कुछ दिनों बाद, तुम कुछ बातों को जीते हो और बाह्य रूप से खुद को कुछ तरीकों से व्यक्त करते हो, भीतर कुछ तरीकों से प्रतिक्रिया देते हो और फिर जो उत्पन्न होता है उसका उपयोग यह पहचानने में करते हो कि कोई विचार परमेश्वर से आया है या शैतान से। कुछ बातें तुमसे परमेश्वर का विरोध करवाती हैं और परमेश्वर के विरूद्ध विद्रोह करवाती हैं, या परमेश्वर के वचनों को कार्य में लाने से तुम्हें रोकती हैं, और ये सब बातें शैतान की ओर से आती हैं। कुछ बातें स्पष्ट नहीं होतीं, और उस समय तुम बता नहीं सकते कि वे क्या हैं; बाद में, तुम उनके प्रकटीकरणों को देख पाते हो, तत्पश्चात विवेक का इस्तेमाल कर पाते हो। अगर तुम स्पष्ट रूप से बता सकते हो कि कौन-सी बातें शैतान की ओर से आती हैं और कौन-से पवित्र आत्मा के द्वारा निर्देशित होते हैं, तो तुम अपने अनुभवों में सरलता से भटक नहीं सकते। कभी-कभी जब तुम्हारी परिस्थितियाँ अच्छी नहीं होतीं, तो तुम में ऐसे विचार आते हैं जो तुम्हें तुम्हारी निष्क्रिय अवस्था से बाहर ले आते हैं—जो दिखाता है कि जब तुम्हारी परिस्थितियाँ प्रतिकूल होती हैं, तो तुम्हारे कुछ विचार पवित्र आत्मा से भी आ सकते हैं। ऐसा नहीं है कि जब तुम निष्क्रिय होते हो, तो तुम्हारे सारे विचार शैतान के भेजे हुए हों; यदि ऐसा होता, तो तुम सकारात्मक अवस्था की ओर कब मुड़ पाओगे? कुछ समय तक तुम्हारे निष्क्रिय रहने के बाद, पवित्र आत्मा तुम्हें सिद्ध बनाए जाने का अवसर देता है, वह तुम्हें स्पर्श करता है, और तुम्हें तुम्हारी निष्क्रिय अवस्था से बाहर लाता है।
यह जानने के द्वारा कि पवित्र आत्मा का कार्य क्या है, और शैतान का कार्य क्या है, तुम इनकी तुलना अपने अनुभवों के दौरान अपनी स्वयं की दशा से और अपने अनुभवों के साथ कर सकते हो, और इस प्रकार से तुम्हारे अनुभवों में सिद्धांत से संबंधित और अधिक सत्य प्रकट होंगे। इन बातों को समझने के द्वारा तुम अपनी वास्तविक दशा को नियंत्रित कर पाओगे और लोगों एवं तुम्हारे साथ घटित हुई बातों को परख पाओगे, और तुम्हें पवित्र आत्मा के कार्य को प्राप्त करने के लिए बहुत अधिक प्रयास नहीं करने होगे। निःसंदेह, यह तब तक ही होगा जब तक तुम्हारी प्रेरणाएँ सही हैं, और जब तक तुम खोजने और अभ्यास करने के लिए तैयार हो। इस प्रकार की भाषा—वह भाषा जो सिद्धांतों से संबंधित है—तुम्हारे अनुभवों में दिखनी चाहिए। इसके बिना तुम्हारे अनुभव शैतान के व्यवधानों या हस्तक्षेपों से और निर्बुद्धि ज्ञान से भरे हुए होंगे। यदि तुम यह नहीं समझते कि पवित्र आत्मा कैसे कार्य करता है, तो तुम यह भी नहीं समझ सकते कि कैसे प्रवेश करें, और यदि तुम यह नहीं समझते कि शैतान कैसे कार्य करता है, तो तुम यह भी नहीं समझते कि तुम्हें अपने चाल-चलन में कैसे सावधान रहना है। लोगों को समझना चाहिए कि पवित्र आत्मा कैसे कार्य करता है और शैतान कैसे कार्य करता है; वे लोगों के अनुभवों के अभिन्न अंग हैं।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पवित्र आत्मा का कार्य और शैतान का कार्य
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