परमेश्वर के दैनिक वचन : परमेश्वर के कार्य को जानना | अंश 143
अंत के दिनों में परमेश्वर मुख्य रूप से अपने वचन बोलने के लिए आया है। वह आत्मा के दृष्टिकोण से, मनुष्य के दृष्टिकोण से, और तीसरे व्यक्ति के...
हम परमेश्वर के प्रकटन के लिए बेसब्र सभी साधकों का स्वागत करते हैं!
तुम लोगों को अब और अधिक यथार्थवादी पाठ का अध्ययन करना चाहिए। उन ऊँची-ऊँची, खोखली बातों की कोई आवश्यकता नहीं है जिनकी लोग प्रशंसा करते हैं। जब ज्ञान के बारे में बात करने की बात आती है, तो प्रत्येक व्यक्ति पिछले से बढ़कर है, लेकिन अभी भी उनके पास अभ्यास का रास्ता नहीं है। कितने लोगों ने अभ्यास के सिद्धान्तों को समझा है? कितने लोगों ने वास्तविक सबक सीखे हैं? वास्तविकता के बारे में कौन सहभागिता कर सकता है? परमेश्वर के वचनों के ज्ञान की बात करने में सक्षम होने का अर्थ वास्तविक कद का होना नहीं है। यह केवल यह दिखाता है कि तू जन्म से चतुर और प्रतिभाशाली था। अगर तू मार्ग नहीं दिखा सकता तो इसका कोई नतीजा नहीं निकलेगा, और तू बस बेकार कचरा ही होगा! यदि तू अभ्यास करने के लिए एक वास्तविक पथ के बारे में कुछ भी नहीं कह सकता है तो क्या तू दिखावा नहीं कर रहा है? यदि तू अपने वास्तविक अनुभव दूसरों को नहीं दे सकता है, जिससे उन्हें सीखने के लिए सबक या अभ्यास का मार्ग मिल सके, तो क्या तू जालसाज़ी नहीं कर रहा है? क्या तू पाखंडी नहीं है? तेरा क्या मूल्य है? ऐसा व्यक्ति केवल "समाजवाद के सिद्धांत के आविष्कारक" की भूमिका अदा कर सकता है, "समाजवाद को लाने वाले योगदानकर्ता" की नहीं। वास्तविकता के बिना होना सत्य के बिना होना है। वास्तविकता के बिना होना निकम्मा होना है। वास्तविकता के बिना होना चलती-फिरती लाश होना है। वास्तविकता के बिना मानकविहीन "मार्क्सवादी-लेनिनवादी विचारक" होना है। मैं हर व्यक्ति से अनुरोध करता हूँ सिद्धांत की बात छोड़ कर किसी वास्तविक चीज़ के बारे में बात करो, कुछ असली और ठोस बात; किसी "आधुनिक कला" का अध्ययन करो, कुछ यथार्थवादी बातें बोलो, कुछ वास्तविकता का योगदान करो और कुछ निष्ठा की भावना रखो। बोलते समय वास्तविकता का सामना करो; लोगों को खुश करने के लिए या उनसे अपने ऊपर ध्यान दिलवाने के लिए अवास्तविक और अतिरंजित बातें ना करो। उसका महत्व क्या है? अपने प्रति लोगों से स्नेहपूर्ण व्यवहार करवाने का क्या औचित्य है? अपने भाषण में थोड़ा "कलात्मक" बनो, अपने आचरण में थोड़ा और निष्पक्ष रहो, विभिन्न बातों को संभालते हुए विवेकपूर्ण रहो, जो कुछ कहते हो उसमें थोड़ा और अधिक यथार्थवादी बनो, अपने हर कार्य से परमेश्वर के घर को लाभान्वित करने में ध्यान रखो, भावुक होने पर अपनी अंतरात्मा की सुनो, दया के बदले नफरत न करो, या दयालुता की एवज़ में कृतघ्न न हो, और एक ढोंगी ना बनो, ऐसा न हो कि तुम बुरा प्रभाव बन जाओ। जब तुम लोग परमेश्वर के वचन को खाते हो और पीते हो, तो उन्हें वास्तविकता के साथ अधिक जोड़ो, और जब तुम संगति करते हो, यथार्थवादी चीज़ों के बारे में और अधिक बोलो। दूसरों को नीचा दिखाने का प्रयास न करो; यह परमेश्वर को संतुष्ट नहीं करेगा। दूसरों के साथ बातचीत में अधिक धैर्यवान और सहिष्णु रहो, अधिक उदार बनो, और "प्रधानमंत्री की भावना" से सीखो। जब तुम्हारे मन में बुरे विचार आते, तो शरीर को त्याग करने का अधिक अभ्यास करो। जब तुम कार्य कर रहे होते हो, तो यथार्थवादी पथों के बारे में अधिक बोलो और बहुत उत्कृष्ट बनो नहीं तो तुम्हारी बातें लोगों के सर के ऊपर से निकल जाएंगी। कम आनंद, अधिक योगदान-समर्पण की अपनी निस्वार्थ भावना दिखाओ। परमेश्वर के प्रयोजनों के प्रति अधिक विचारशील बनो, अपने विवेक की अधिक सुनो, और अधिक ध्यान रखो और यह ना भूलो कि हर दिन तुम लोगों से परमेश्वर कितने धैर्य और गंभीरता से कैसे बात करता है। "पुराने पंचांग" को अधिक बार पढ़ो। अधिक प्रार्थना करो और अधिक सहभागिता करो। इतने अव्यवस्थित ना रहो, बल्कि अधिक समझ का प्रदर्शन करो और कुछ अंतर्दृष्टि प्राप्त करो। जब पाप का हाथ आगे बढ़े तो, इसे वापस खींचो; इसे अधिक विस्तार न करने दो। अन्यथा यह किसी काम का नहीं है! तुम्हें परमेश्वर से शाप के अलावा कुछ भी नहीं मिलेगा, इसलिए सावधान रहो। अपने हृदय को दूसरों पर दया करने दो और हमेशा हाथों के हथियारों का प्रयोग मत करो। दूसरों की सहायता करने की भावना रखते हुए, सत्य के ज्ञान के बारे में और संगति करो और जीवन के बारे में और अधिक बात करो। अधिक करो और कम बोलो। खोज और विश्लेषण में कम और अभ्यास पर अधिक ध्यान दो। पवित्र आत्मा द्वारा अधिक प्रेरित हो, और अपनी पूर्णता के लिए परमेश्वर को अधिक अवसर दो। अधिक से अधिक मानव तत्वों को समाप्त करो; तुम्हारे अंदर अब भी कार्य करने के बहुत सारे मानवीय तरीके हैं। चीजों को करने के सतही आचरण और व्यवहार अभी भी दूसरों के लिए घृणास्पद हैं। इन्हें अधिक से अधिक समाप्त करो। तुम लोगों की मानसिक स्थिति अभी भी बहुत घृणास्पद है। उसे सही करने में अधिक समय लगाओ। तुम हृदय में लोगों को अब भी बहुत प्रतिष्ठा देते हो; परमेश्वर को अधिक प्रतिष्ठा दो और इतना अनुचित ना बनो। "मंदिर" हमेशा से परमेश्वर का है और उस पर लोगों द्वारा कब्ज़ा नहीं किया जाना चाहिए। संक्षेप में, धार्मिकता पर अधिक ध्यान दो और भावनाओं पर कम। शरीर की बातों को समाप्त करना सबसे अच्छा है; वास्तविकता के बारे में अधिक बात करो और ज्ञान के बारे में कम; चुप रहना और कुछ न कहना सर्वोत्तम है। अभ्यास के पथ के बारे में और अधिक बोलो और बेकार की बात कम करो, और अभी से अभ्यास शुरू करना सबसे अच्छा है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, वास्तविकता पर अधिक ध्यान केंद्रित करो
परमेश्वर का आशीष आपके पास आएगा! हमसे संपर्क करने के लिए बटन पर क्लिक करके, आपको प्रभु की वापसी का शुभ समाचार मिलेगा, और 2023 में उनका स्वागत करने का अवसर मिलेगा।
अंत के दिनों में परमेश्वर मुख्य रूप से अपने वचन बोलने के लिए आया है। वह आत्मा के दृष्टिकोण से, मनुष्य के दृष्टिकोण से, और तीसरे व्यक्ति के...
आजकल लोगों की तलाश में एक भटकाव है; वे मात्र परमेश्वर से प्रेम करने और परमेश्वर को संतुष्ट करने की कोशिश करते हैं, परन्तु उनके पास परमेश्वर...
मानवता के बीच मूल रूप से परिवार नहीं थे; केवल एक पुरुष और एक महिला का ही अस्तित्व था—दो भिन्न प्रकार के मनुष्य। कोई देश नहीं थे, परिवारों...
यद्यपि बहुत से लोग परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, किंतु बहुत कम लोग समझते हैं कि परमेश्वर पर विश्वास करने का अर्थ क्या है, और परमेश्वर के मन...