परमेश्वर में विश्वास की शुरुआत संसार की दुष्ट प्रवृत्तियों की असलियत को समझने से होनी चाहिए (भाग एक)

बहुत-से युवा लोग भले ही परमेश्वर में विश्वास करते हैं, पर वे कम्प्यूटर गेम्स खेलने की लत नहीं छोड़ पाते। कम्प्यूटर गेम्स में किस तरह की चीजें होती हैं? उनमें बहुत सारी हिंसा होती है। गेमिंग यानी जुआ—जो कि शैतान की दुनिया है। इन खेलों को बहुत देर तक खेलने के बाद अधिकांश बच्चे कोई असली काम नहीं कर पाते—वे स्कूल या काम पर जाना नहीं चाहते, या अपने भविष्य के बारे में कोई विचार करना नहीं चाहते, अपने जीवन के बारे में विचार करना तो दूर की बात है। समाज में आजकल कौन सी चीजें युवा लोगों के दिलों में भरी हुई हैं? खाने-पीने और मौज करने के अलावा उनके मन में गेम्स खेलने की धुन सवार रहती है। वे जो कुछ भी कहते या सोचते हैं, वह सब बेहूदा और अमानवीय है। वे जिन चीजों के बारे में सोचते हैं, उनका वर्णन करने के लिए अब कोई “गंदा” या “बुरा” जैसे शब्दों का उपयोग नहीं कर सकता है; ये ऐसी चीजें नहीं हैं जो सामान्य मानवता वालों में होनी चाहिए, ये सभी चीजें बेहूदा और अमानवीय हैं। यदि तुम उनके साथ सामान्य मानवता से संबंधित मामलों या विषयों पर बात करो, तो वे इसके बारे में सुनना तक सहन नहीं कर पाते; उनकी न तो इसमें कोई रुचि है और न ही वे इसके बारे में कुछ सुनने के लिए तैयार हैं, और यही नहीं, वे तुमसे चिढ़ने तक लगेंगे। सामान्य मनुष्यजाति के साथ वे आम भाषा या कोई आम विषय साझा नहीं कर पाते। उनके सभी विषय खाने-पीने और मजे करने से जुड़े होते हैं। उनके दिल सांसारिक प्रवृत्तियों से भरे पड़े हैं। उनके भविष्य की क्या संभावनाएँ हैं? क्या उनका कोई भविष्य है? (नहीं, ये लोग कूड़े की तरह बेकार हो जाएँगे।) “कूड़ा” बड़ा ही सटीक शब्द है। इसका क्या अर्थ है? क्या ये लोग ऐसी गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं जिनमें सामान्य मानवजाति को शामिल होना चाहिए? (नहीं।) ये लोग अपनी पढ़ाई पर कोई मेहनत नहीं करते, और अगर कोई उनसे अपने काम में मेहनत करने के लिए कहे, तो क्या वे इसके लिए तैयार होंगे? (नहीं।) वे क्या सोचेंगे? वे सोचेंगे, “काम करने का क्या फायदा है? यह काम बहुत थका देने वाला है। इससे मुझे मिलेगा क्या? कुछ भी नहीं, सिवाय थकावट और दर्द के। खेलने में कितना मजा आता है, कितना आराम और आनंद मिलता है! कंप्यूटर के सामने बैठते ही मैं एक आभासी दुनिया में रहता हूँ, मेरे पास सब-कुछ होता है।” यदि तुम उनसे नौ से पांच बजे तक काम करवाते हो, समय पर और निश्चित घंटे काम करवाते हो, तो उन्हें इस बारे में कैसा लगेगा? क्या वे उस समय-सारणी का पालन करने और इस तरह बँधने को तैयार होंगे? (नहीं।) जब लोग लगातार गेम्स खेलते हुए कम्प्यूटर पर अपना समय नष्ट करते हैं तो कुछ समय बाद उनकी इच्छा-शक्ति खत्म हो जाती है और उनका पतन होने लगता है। अविश्वासी लोग, खासकर युवा, सांसारिक प्रवृत्तियों के मजे लेते हैं और उन्हें फैशन पसंद है, और उनमें से अधिकांश अपने वास्तविक कार्य नहीं करते या सही रास्ते पर नहीं चलते हैं; उनके माता-पिता उन्हें संभाल नहीं पाते, उनके शिक्षक भी उनका कुछ नहीं कर पाते, और इस प्रवृत्ति को लेकर किसी भी देश की शिक्षा प्रणाली कुछ नहीं कर सकती है। दुष्ट और शैतान लोगों को लुभाने और भ्रष्ट करने के लिए ये सब चीजें करते हैं। जो लोग आभासी दुनिया में जीते हैं, उन्हें सामान्य मानवता की जिंदगी में कोई रुचि नहीं रहती; वे काम या अध्ययन करने की मनोदशा में भी नहीं रहते। उन्हें तो बस गेम्स खेलने की चिंता रहती है, मानो वे किसी चीज के द्वारा सम्मोहित किए जा रहे हों। वैज्ञानिकों का दावा है कि गेम्स खेलने वाले लोग जैसे ही किसी गेम के किरदार में प्रवेश करते हैं, वैसे ही उनके दिमाग के अंदर कुछ ऐसा रिसने लगता है जो उन्हें उत्तेजित तो करता ही है, कुछ हद तक मतिभ्रमित भी करता है, और फिर उन्हें गेम्स की लत लग जाती है और वे हमेशा इन्हीं के बारे में सोचते रहते हैं। जब भी वे ऊब महसूस करते हैं या कोई वास्तविक काम कर रहे होते हैं, तो वे इसकी बजाय गेम खेलना चाहते हैं और धीरे-धीरे गेम खेलना ही उनकी पूरी जिंदगी बन जाता है। गेम खेलना एक तरह से किसी नशीले पदार्थ का सेवन करना है : एक बार जब किसी को इसकी लत लग जाती है तो फिर इससे पिंड छुड़ाकर बाहर निकलना बहुत मुश्किल हो जाता है—यह उन्हें बर्बाद कर देता है। बच्चा हो या कोई बड़ी उम्र का व्यक्ति, एक बार यह बुरी लत लग जाए तो इसे छोड़ना आसान नहीं होता। कुछ बच्चे रात-रात भर जागकर गेम खेलते रहते हैं, और उनके माता-पिता न तो उन्हें नियंत्रित कर पाते हैं और न ही उन पर नजर रख पाते हैं, इसलिए बच्चे कंप्यूटर के सामने बैठकर गेम खेलते-खेलते मर तक जाते हैं। वे कैसे मरे? वैज्ञानिक प्रमाणों के अनुसार उनका मस्तिष्क क्षतिग्रस्त था—उन्होंने खेल-खेलकर अपनी ही जान ले ली। क्या तुम लोग गेमिंग को किसी सामान्य व्यक्ति द्वारा किया जाने वाला काम कहोगे? अगर गेमिंग सामान्य मानवता के लिए जरूरी होती—अगर यह सही रास्ता होता—तो लोग इसे छोड़ क्यों नहीं पाते हैं? वे इस हद तक इससे वशीभूत कैसे हो सकते हैं? इससे तो यही साबित होता है कि गेमिंग सही रास्ता नहीं है। दिनभर इंटरनेट में खोए रहना, इस या उस चीज के लिए ऑनलाइन सर्फिंग करते रहना, हानिकारक चीजें देखना, और गेम्स खेलना—सारे दिन ऐसी चीजों में उलझे रहकर लोग बेकार की चीजों की खातिर अपना स्तर गिराते हैं, लोग इससे आहत होते हैं और नुकसान भी उठाते हैं। इनमें से कोई भी सही रास्ता नहीं है। इन दिनों किशोर, युवा और यहाँ तक कि अधेड़ और बुजुर्ग, सभी वीडियो गेम्स खेल रहे हैं। ज्यादा से ज्यादा लोग इन्हें खेलते हैं। भले ही अधिकांश लोग जानते हैं कि यह अच्छी चीज नहीं है, वे इससे बच नहीं पाते। यह गेमिंग युवा पीढ़ियों को नुकसान पहुँचा रही है और बहुत से लोगों का नुकसान कर चुकी है। और गेम्स आए कहाँ से हैं? क्या ये शैतान की ओर से नहीं आते? कुछ बेहूदा किस्म के लोग कहते हैं, “वीडियो गेम्स आधुनिक वैज्ञानिक तरक्की के प्रतीक हैं—ये वैज्ञानिक उपलब्धि हैं।” इस स्पष्टीकरण का क्या? यह घिनौनी बात है! गेमिंग न तो अच्छा रास्ता है, न सही रास्ता है! यह गेमिंग केवल सामाजिक प्रवृत्तियों को अपनाने का मामला नहीं है, यहाँ तक कि अविश्वासी भी कहते हैं कि गेमिंग तुम्हारे उद्देश्य बोध को खत्म कर देती है। अगर तुम इतनी साधारण चीज भी नहीं छोड़ सकते, इस मामले में खुद पर काबू नहीं पाते हो, तो फिर तुम खतरे में हो। इन दिनों लोग चाहे छोटे हों या बड़े, वीडियो गेम्स खेलना और मादक पदार्थों का सेवन आम हो चुका है, और सारा संसार ऐसा ही है। तुम्हें परमेश्वर में विश्वास करते हुए चाहे जितना अरसा हो गया हो, अगर तुम वीडियो गेम्स खेलने जैसी किसी चीज पर लगाम नहीं लगा सकते, तो फिर एक दिन जब तुम्हें लगेगा कि परमेश्वर में विश्वास करना निरर्थक, उबाऊ और नीरस है तो क्या तुम अविश्वासियों की तरह मादक पदार्थ और ऐसी ही तमाम तरह की उत्तेजक चीजों को आजमाना शुरू नहीं कर दोगे? यह भयंकर रूप से खतरनाक है! हो सकता है तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो लेकिन तुम्हारे पास टिकने के लिए कोई ठोस आधार नहीं है, और तुमने सत्य प्राप्त नहीं किया है, तो अब भी तुम्हारे सामने परमेश्वर से विश्वासघात करने का पूरा खतरा है। अपने साथ कुछ भी घटित होने की स्थिति में बहुत संभव है कि तुम गिर पड़ो। इस बुरी दुनिया में ललचाने वाली बहुत ज्यादा चीजें हैं, और जो लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं मगर सत्य का अनुसरण नहीं करते, उन्हें बरगलाने के लिए शैतान सभी तरह के हथकंडे इस्तेमाल करता है। अगर तुम नियमित रूप से परमेश्वर के वचनों को खाते-पीते नहीं हो, और तुम्हारा दिल-दिमाग अक्सर खाली रहता है तो तुम बहुत अधिक खतरे में हो। क्या तुम लोगों का दिल अधिकांश समय खाली रहता है? युवा लोगों का अधिकांश समय खाली रहता है! इस समस्या का समाधान न करना बहुत खतरनाक है। चूँकि तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो तो तुम्हें उसके वचन और अधिक पढ़ने चाहिए, और जब तुम कुछ सत्य स्वीकारने में सक्षम हो जाओगे तो यह तुम्हारे लिए एक नया मोड़ होगा और तुम इस खतरनाक घड़ी से बचने और कलीसिया में दृढ़ता से खड़े होने में सक्षम रहोगे।

अधिक से अधिक युवा लोग परमेश्वर के घर में शामिल हो रहे हैं और उनमें से कई लोगों की उम्र बीस-तीस साल के बीच है। वे अपने पूरे यौवन पर हैं, अभी तक उन्होंने अपने जीवन-लक्ष्य तय नहीं किए हैं, उनकी कोई आकांक्षा नहीं है, वे अभी तक यह नहीं समझते कि जीवन क्या है। और इन लोगों में क्या प्रकट होता है? तुम लोगों के लिए मेरे पास दो अभिव्यक्तियाँ हैं : जवानी का घमंड और अविवेक। और मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ? पहले “जवानी के घमंड” का अर्थ समझने के लिए चर्चा करते हैं। क्या तुम लोग समझा सकते हो कि “जवानी का घमंड” क्या होता है? यह किस प्रकार का स्वभाव है? यह किन-किन रूपों में प्रकट होता है? (इस स्थिति में लोग मानते हैं कि उन्हें जो कुछ भी पसंद है वही सबसे अच्छा है, कि वे जो कुछ भी कल्पना करते हैं वह सही है, और वे किसी की कुछ नहीं सुनते।) एक शब्द में कहें तो यह “अहंकारी” स्वभाव है। इस उम्र के लोगों का यह ठेठ स्वभाव होता है। उनका परिवेश या पृष्ठभूमि चाहे जैसी हो, या वे चाहे जिस पीढ़ी के हों, इस आयु वर्ग में सबके सब जवानी के घमंड में रहते हैं। और मैं ऐसा क्यों कहता हूँ? ऐसा नहीं है कि मैं उनके लिए पक्षपाती हूँ या उन्हें कमतर मानता हूँ, बल्कि बात यह है कि इस आयु वर्ग के लोगों का एक खास तरह का स्वभाव होता है, यह बहुत ही अहंकारी, ओछा और अभिमानी स्वभाव होता है। चूँकि उन्हें दुनियादारी का बहुत अधिक अनुभव नहीं होता और वे जीवन के बारे में बहुत कम समझते हैं, इसलिए जब इस दुनिया या जीवन में उनका सामना किसी चीज से होता है तो वे सोचते हैं, “मैं समझता हूँ, मैंने इसका पता लगा लिया है, अब मैं सब कुछ जानता हूँ! मैं समझ सकता हूँ कि बूढ़े लोग क्या कह रहे हैं और समाज में लोकप्रिय चीजों के साथ कदम मिलाकर चल सकता हूँ। अब देखो मोबाइल फोन कितनी तेजी से विकसित हो रहे हैं और उनके सारे फीचर कितने जटिल हैं। मैं यह सब जानता हूँ और तुम जैसे बूढ़े लोगों की तरह नहीं हूँ जो कुछ भी नहीं समझते।” उनके पास जब कोई बूढ़ा किसी चीज के लिए मदद माँगता है तो वे यहाँ तक कह देते हैं, “बुढ़ापे में लोग बेकार हो जाते हैं। वे कंप्यूटर तक नहीं चला सकते, ऐसे लोगों के जीने का क्या मतलब है?” यह क्या है? यह भी जवानी के घमंड की अभिव्यक्ति है। नौजवानों की याददाश्त बेहतर होती है और वे नए विचार तेजी से स्वीकारते हैं, और जब भी वे कोई नई चीज सीखते हैं तो वे बूढ़े लोगों को अपमान की दृष्टि से देखते हैं। यह भ्रष्ट स्वभाव है। तो क्या ऐसा स्वभाव सामान्य मानवता का स्वभाव है? क्या इसे सामान्य मानवता की अभिव्यक्ति समझा जाएगा? (नहीं समझा जाएगा।) इसीलिए इसे जवानी का घमंड कहते हैं। तो फिर इसे “घमंड” क्यों कहते हैं, “अहंकार” क्यों नहीं? क्योंकि यह ठेठ जवानी का स्वभाव है—वे कोई छोटी-सी चीज सीखते हैं और घमंड में चूर हो जाते हैं, वे ब्रह्मांड में अपनी जगह नहीं जानते, और वे जिस चीज को सीखते हैं, उसे अपनी पूँजी समझने लगते हैं। जवानी में सारे लोग ऐसे ही होते हैं। जब तक वे थोड़ा बड़े नहीं हो जाते, थोड़ा और समझ नहीं लेते और जिंदगी के उतार-चढ़ाव का अनुभव नहीं कर लेते। फिर उनमें ज्यादा परिपक्वता और स्थिरता आ जाती है और वे विनम्र और सादगी पसंद करने लगते हैं—तब अगर वे कोई नई चीज सीखते हैं तो यह उनके सिर चढ़कर नहीं बोलती और जब वे कोई चीज नहीं कर पाते तो इससे परेशान भी नहीं होते। नौजवान अविश्वसनीय रूप से दंभी होते हैं : वे जब भी कुछ करना सीखते हैं तो इसका दिखावा करना चाहते हैं, और इससे उनका अहंकार तुष्ट होता है। कभी-कभी उत्तेजना के क्षणों में उन्हें लगता है कि उन्होंने सबको पीछे छोड़ दिया है, कि यह संसार उनके लिए छोटा पड़ गया है, और वे चाहते हैं कि काश किसी दूसरे ग्रह पर बस सकते। यही घमंड कहलाता है। जवानी के घमंड का प्रमुख लक्षण यह है कि इसमें उन्हें ब्रह्मांड में अपनी जगह का ज्ञान नहीं होता, न ही इन बातों का कि लोग क्या चाहते हैं और जीवन में उन्हें कौन-से मार्ग पर चलना चाहिए, कौन-सी स्थितियाँ जीने के लिए खतरनाक हैं, और उन्हें क्या करना चाहिए। यह वैसा ही है जैसा लोग अक्सर कहते हैं : “वे अविवेकी हैं और जीवन के बारे में नहीं जानते हैं।” इस उम्र में घमंडी स्वभाव होता है इसलिए वे इसका खुलासा कर देते हैं। ऐसे भी युवा हैं जो सोचते हैं कि सबके सब उनके नीचे हैं, और जब तुम कुछ ऐसा कह देते हो जो उन्हें पसंद नहीं है तो वे तुम्हें बस अनदेखा कर देंगे। माता-पिता के लिए यह पता लगाना मुश्किल है कि युवा क्या सोच रहे हैं—एक गलत शब्द सुनते ही वे नखरे दिखाते हैं और गुस्से में उठकर चले जाते हैं। उनके साथ बातचीत करना मुश्किल हो जाता है। ऐसा क्यों है कि इन दिनों माता-पिता को अपने बच्चों को संभालने और पढ़ाने-लिखाने में कठिनाई हो रही है? इसका कारण यह नहीं है कि माता-पिता कम पढ़े-लिखे हैं और युवाओं के मन की बात नहीं समझते हैं, बल्कि ऐसा इसलिए है कि युवाओं की सोच असामान्य हो चुकी है। सभी युवा सांसारिक प्रवृत्तियों से प्यार करते हैं और इनके बंदी बन जाते हैं; वे शैतान के लिए बलि के बकरे हैं, वे बहुत तेजी से पथभ्रष्ट होते जा रहे हैं, और उनके लिए इस स्थिति से जागना कठिन है। इसलिए माँ-बाप होना आसान नहीं है—कुछ माता-पिता तो अपने बच्चों को पढ़ाने-लिखाने के लिए बाल मनोविज्ञान सीखने की हद तक जाते हैं। आजकल कई बच्चे ऑटिज्म और अवसाद जैसी विचित्र बीमारियों से पीड़ित हो रहे हैं जिससे उन्हें संभालना भी मुश्किल हो जाता है। इन समस्याओं को समझने के लिए लोगों के पास कोई रास्ता या स्पष्ट व्याख्या नहीं है और स्कूल और समाज में बुद्धिजीवियों ने “विद्रोही मानसिकता” या “विद्रोही दौर” जैसे जुमले गढ़ लिए हैं। पिछली पीढ़ियों के दौरान ये शब्द क्यों नहीं थे? विज्ञान आज बहुत तरक्की कर चुका है और तरह-तरह के विचित्र जुमले बना लिए गए हैं; यह मानव जाति अधिक से अधिक पथभ्रष्ट होती जा रही है, और सामान्य मानवता की चीजें क्षीण होती जा रही हैं—क्या यह समाज की बुरी प्रवृत्तियों के कारण नहीं हो रहा है? (इसी कारण हो रहा है।) और इसलिए तुम युवा लोगों का अभी यहाँ आना और सच्चे मन से मुझे बोलते हुए और इस तरह संगति करते हुए सुनने का कारण यह नहीं है कि तुम बहुत अच्छे हो और सत्य के अनुसरण का मार्ग चुनना चाहते हो—बल्कि इसका कारण परमेश्वर का अनुग्रह है, क्योंकि परमेश्वर ने तुम लोगों को संसार या शैतान को नहीं सौंपा है। तुम समाज में उन युवाओं को देखते हो जो परमेश्वर में विश्वास नहीं करते हैं, चाहे इसके लिए उन्हें कोई भी मनाता रहे। अगर मैं भी उनसे बात करूँ तो व्यर्थ ही रहेगा। क्या यह सिर्फ जवानी के घमंड का मामला है? ये किस किस्म के लोग हैं? अगर उनमें अंतरात्मा या विवेक नहीं है तो वे जानवरों और दुष्टों के सिवाय और कुछ नहीं हैं! अगर तुम उनसे मानवीय शब्दों में बात करो तो क्या वे समझ सकेंगे? अब मसला यह नहीं रहा कि उनसे संवाद करना कठिन है, बल्कि यह है कि वे सुनने से ही साफ इनकार कर रहे हैं। यह परमेश्वर का अनुग्रह और सुरक्षा ही है जिसके कारण तुम लोग अब उसके कार्य को स्वीकार कर पा रहे हो, उसके वचनों को समझ पा रहे हो और सत्य के मार्ग में रुचि रखने में सक्षम हो! और इसलिए तुम लोगों को अपना कर्तव्य निभाने का यह अवसर संजोकर रखना चाहिए और इस दौरान परमेश्वर में विश्वास की मजबूत नींव रखने का अथक प्रयास करना चाहिए। तब तुम लोग सुरक्षित रहोगे और इन दुष्ट प्रवृत्तियों की बाढ़ में आसानी से नहीं बहोगे। जैसे ही लोग इन दुष्ट प्रवृत्तियों के चक्कर में फँसते हैं, वे आसानी से इनमें बह जाते हैं, और अगर तुम फिर से इनमें बह जाओ तो क्या परमेश्वर तुम्हें चाहेगा? नहीं, वह नहीं चाहेगा! परमेश्वर पहले ही तुम्हें एक मौका दे चुका है और फिर तुम्हें बिल्कुल नहीं चाहेगा। जब परमेश्वर तुम्हें नहीं चाहता, तो तुम खतरे में पड़ जाओगे, और तुम कुछ भी कर डालने में सक्षम होगे।

“जवानी के घमंड” पर चर्चा कर चुकने के बाद अब हमें “अविवेक” के बारे में बात करनी चाहिए। “अविवेक” कुछ-कुछ औपचारिक शब्द है। तो आगे बढ़ो और इसका शाब्दिक अर्थ समझाओ। (इसका अर्थ यह है कि जब कोई व्यक्ति अच्छे-बुरे में भेद न कर सके, और यह सोचे कि वह जिसे अच्छा मानता है वह हमेशा अच्छा ही होगा, और जिसे बुरा मानता है वह हमेशा बुरा ही होगा, और उन्हें चीजें चाहे जैसे समझाई जाएँ, वे सुनेंगे नहीं।) (ऐसा तब होता है जब कोई सही-गलत में भेद करना नहीं जानता और उसमें विवेक की कमी होती है।) यह इसका कमोबेश शाब्दिक अर्थ है—सही-गलत का फर्क न बता सकना, और यह भी न जानना कि कौन-सी चीजें सकारात्मक हैं और कौन-सी नकारात्मक। वे अपनी जवानी के घमंड के कारण लोगों की कही कोई भी बात समझ नहीं पाते, और सोचते हैं : “कोई कुछ भी कहे, वह गलत है, और मैं जो कहता हूँ वही सही है। किसी को भी मुझे यह बताने की कोशिश नहीं करनी चाहिए कि चीजें कैसी हैं, मैं उनकी नहीं सुनूँगा। मैं बहुत जिद्दी हूँ और जिद्दी ही रहूँगा और अपने विचारों पर अड़ा रहूँगा, भले ही मैं गलत निकलूँ।” उनका इसी प्रकार का स्वभाव होता है—वे अविवेकी होते हैं। दिखाने के लिए तो वे सिद्धांत पर सिद्धांत बघार सकते हैं और इनके बारे में किसी और के मुकाबले ज्यादा स्पष्टता और समग्रता के साथ बात कर सकते हैं, तो फिर जब कार्य करने का समय आता है तो वे हमेशा ढुलमुल और भ्रमित क्यों हो जाते हैं? वे बखूबी जानते हैं कि सही क्या है, लेकिन वे बस सुनेंगे नहीं—वे जो चाहते हैं वही करते हैं, और जैसा चाहे वैसा ही कार्य करते हैं। यह चंचलता और बेहूदगी है। सांसारिक प्रवृत्तियों के पीछे भागने वाले लोग खासे बेहूदा होते हैं। वे पारकोर और बंजी जंपिंग करते हैं, और तमाम तरह के जोखिम भरे खेलों में रोमांच खोजना पसंद करते हैं। क्या यह बेहूदा नहीं है? क्या तुम लोग भी पारकोर करते हो? (मैं करता था।) और तुम इसे क्यों पसंद करते थे? क्या तुम नहीं जानते थे कि पारकोर खतरनाक है? क्या तुम्हें पता नहीं था कि पारकोर करते हुए तुम अपनी जिंदगी खतरे में डाल रहे हो? लोग मकड़ियाँ या छिपकलियाँ नहीं हैं। अगर वे किसी दीवार पर चढ़ते हैं तो गिरकर रहेंगे। मनुष्यों में वैसी क्षमता नहीं है, और यह कोई ऐसी चीज नहीं है जो सामान्य मानवता वाले लोगों में हो। तुम इसे कैसे पसंद कर सकते हो? इसका कारण यह है कि ये चीजें लोगों को एक प्रकार की दृश्यात्मक और भावनात्मक उत्तेजना देती हैं, इसीलिए लोग पारकोर करना चाहते हैं। वह क्या है जो इस सोच को नियंत्रित करता है? क्या यह “स्पाइडर-मैन” से मिलती है? क्या यह मनुष्य की मानसिकता और गहरी इच्छा नहीं है जो महानायक बनकर विश्व को बचाना चाहती है? बहुत सारी फिल्मों और टीवी शो में उड़ने वाले नायक होते हैं जो एक छत से दूसरी पर टप्पे खाकर उड़ते रहते हैं, और लोग वाकई उन्हें सराहते हैं। इसी तरह ये चीजें युवाओं के मन पर अंकित हो जाती हैं। और वे इस तरह विषपान कैसे कर लेते हैं? इसका संबंध लोगों की अपनी-अपनी तरजीह और तलाश से होता है। हर व्यक्ति नायक बनना चाहता है, सुपरमैन बनना चाहता है, विशेष शक्तियाँ हासिल करना चाहता है, इसलिए शैतान की स्तुति करता है। मुझे बताओ, क्या सामान्य लोग ऐसी बेहूदा चीजें पसंद करते हैं? क्या सामान्य लोगों के पास ऐसी विशेष शक्तियाँ होती हैं। बिल्कुल नहीं। क्या ये सारी चीजें लोगों ने नहीं गढ़ी हैं, ये उनकी दिमागी उपज नहीं हैं? अगर इन विचित्र चीजों का वास्तव में अस्तित्व होता तो जिनके पास ये होतीं, क्या उन पर बुरी आत्माओं का साया नहीं होता? क्या आदम और हव्वा के काल में पारकोर था? क्या बाइबल में पारकोर के बारे में कुछ लिखा है? (नहीं।) पारकोर इस दुष्ट, आधुनिक समाज की उपज है; यह लोगों को गुमराह और भ्रष्ट करने के लिए शैतान का एक तरीका है। शैतान विचित्र और रोमांचक चीजों के लिए युवा लोगों के रुझान का फायदा उठाकर कुछ मनगढ़ंत कहानियाँ गढ़ता है, सपने दिखाता है और उन्हें पेश करता है। इस तरह वह इन अविवेकी किशोरों को गुमराह करता है और उन्हें शैतान की विचित्र और रोमांचकारी विशेष शक्तियों का अनुसरण करने को प्रेरित करता है। क्या यह लोगों को जहर देना नहीं है? ये बातें लोगों के दिमाग में घुसते ही जहर बन जाती हैं। अगर तुम इस जहर को पहचान नहीं सकते तो इसे पूरी तरह त्याग नहीं सकोगे, और इसके असर, व्यवधान और चंगुल से कभी भी मुक्त नहीं हो पाओगे। क्या इस जहर को आसानी से मिटाया जा सकता है? (आसानी से तो नहीं।) इस समस्या को कैसे हल किया जा सकता है? कुछ लोग इन चीजों को छोड़ने से कतराते हैं। उन्हें लगता है कि ये अच्छी चीजें हैं, जहर नहीं हैं, और जब वे ऐसा सोचते हैं तो इन्हें छोड़ नहीं सकते। इसलिए अभी जबकि तुम्हारा आध्यात्मिक कद छोटा ही है, तुम्हें शैतान के लालच के जाल से बचने के लिए उन चीजों से दूर रहने का भरसक प्रयास करना होगा जो तुम्हारे दिल को खराब कर सकती हैं और तुम्हें जहर दे सकती हैं क्योंकि तुममें विवेक की कमी है और तुम अब भी मूर्ख हो और घमंड में चूर हो। तुम्हारे पास पर्याप्त सकारात्मक चीजें नहीं हैं और न कोई सत्य वास्तविकता ही है। आस्था की शब्दावली में कहें तो तुम्हारे पास न तो जीवन है, न ही आध्यात्मिक कद। तुम्हारे पास बस थोड़ी-सी तैयारी है, परमेश्वर में विश्वास करने की एक इच्छा मात्र। तुम्हें लगता है कि परमेश्वर में विश्वास करना अच्छा है, कि यही चलने के लिए सही मार्ग है और अच्छा इंसान बनने का रास्ता है, फिर भी तुम सोचते हो : “अविश्वासियों में मैं बुरा व्यक्ति नहीं हूँ, मुझे पारकोर पसंद है लेकिन मैंने कुछ भी गलत नहीं किया है, मैं अब भी अच्छा इंसान हूँ।” क्या यह सत्य से मेल खाता है? क्या तुम्हें लगता है, सिर्फ इसलिए कि तुमने कुछ भी गलत नहीं किया है तो तुममें भ्रष्ट स्वभाव है ही नहीं? तुम बुरी प्रवृत्तियों के बीच जी रहे हो, इसी से साफ दिख जाता है कि तुम्हारा दिल बुरी चीजों से भरा हुआ है।

मुझे बताओ, क्या कोई व्यक्ति अपने परिवेश से काफी प्रभावित होता है? तुम अब कलीसिया में अपना कर्तव्य कर रहे हो, यही तुम्हारा परिवेश है; तुम रोजाना अपने भाई-बहनों के साथ रहते हो और परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोगों से घिरे रहते हो, और तुम परमेश्वर में अपने विश्वास पर भी दृढ़ हो। अगर तुम्हें अविश्वासियों के बीच रखा जाए, अगर तुम्हें उनके बीच रहने को कहा जाए, तो क्या तब भी तुम्हारे दिल में परमेश्वर होगा? अगर तुम उनके संपर्क में या उनके साथ रहो तो क्या तुम भी उन्हीं जैसी प्रवृत्तियों के पीछे नहीं भागोगे? कुछ लोग कहते हैं, “कोई दिक्कत नहीं है, परमेश्वर मेरी देखभाल और सुरक्षा कर रहा है, तो मैं कभी उस रास्ते पर नहीं चलूँगा।” क्या तुम ऐसी प्रतिज्ञा करने का साहस कर सकते हो? जब तक तुम इन चीजों से प्यार कर इनका अनुसरण करते रहते हो तो तुम जानबूझकर इन प्रवृत्तियों के पीछे भागने में सक्षम हो। भले ही तुमको मन ही मन पता होगा कि यह गलत है, तुम बस बेपरवाह होकर खुद से कहोगे, “परमेश्वर मुझे माफ करना, यह मेरी गलती थी।” समय बीतने के साथ तुम्हारे मन में अपराध बोध या ऐसा ही कोई भाव बिल्कुल नहीं आएगा, और तुम सोचोगे : “परमेश्वर है ही कहाँ? मैंने उसे क्यों नहीं देखा है।” तुम परमेश्वर पर लगातार संदेह करोगे, और कभी तुम्हारे दिल में जो विश्वास हुआ करता था, वह धीरे-धीरे गायब हो जाएगा। जब तुम्हारा दिल पूरी तरह परमेश्वर को नकारने लगेगा, तुम फिर कभी उसका अनुसरण या अपने कर्तव्य से जुड़ा कोई भी कार्य नहीं करना चाहोगे, और इस बात पर ही पछताने लगोगे कि तुमने कर्तव्य निभाने का कदम ही क्यों उठाया। लोग क्यों इतनी आसानी से बदल सकते हैं? सत्य यह है कि तुम बदले नहीं हो—बल्कि तुममें सत्य वास्तविकता कभी थी ही नहीं। यद्यपि दिखावे के लिए तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो और अपना कर्तव्य करते हो, लेकिन तुम्हारे सांसारिक और शैतानी विचार, दृष्टिकोण, लोगों से बातचीत के तरीके और तुम्हारे अंदर मौजूद भ्रष्ट स्वभाव कभी साफ नहीं किए गए थे और अब भी तुम्हारे अंदर शैतानी चीजें भरी पड़ी हैं। तुम अब भी इन चीजों के साथ जीते हो, इसीलिए अब भी तुम्हारा आध्यात्मिक कद छोटा है। तुम अब भी खतरनाक दौर में हो; तुम अभी सकुशल या सुरक्षित नहीं हो। जब तक तुममें शैतानी स्वभाव रहता है, तुम परमेश्वर का प्रतिरोध और उससे विश्वासघात करते रहोगे। इस समस्या का समाधान करने के लिए तुम्हें पहले यह समझना होगा कि कौन-सी चीजें बुरी हैं या शैतान की हैं, वे कैसे हानिकारक हैं, शैतान ऐसी चीजें क्यों करता है, जब लोग इन्हें स्वीकार करते हैं तो किस किस्म के जहर से ग्रसित होते हैं, और ये लोग क्या बनेंगे, साथ ही परमेश्वर लोगों से कैसा इंसान बनने की अपेक्षा करता है, कौन-सी चीजें सामान्य मानवता की हैं, कौन-सी चीजें सकारात्मक हैं और कौन-सी नकारात्मक हैं। तुम्हें रास्ता तभी मिलेगा जब तुममें विवेक होगा और तुम इन चीजों को स्पष्ट रूप से देखने में सक्षम होगे। यही नहीं, सकारात्मक पहलुओं के तहत तुम्हें नेकनीयती और वफादारी की भावना से अपना कर्तव्य भी सक्रिय होकर निभाना होगा। धूर्तता या काहिली से बचो, अपना कर्तव्य निभाने में या परमेश्वर ने तुम्हें जो भी काम सौंपा है, उसमें अविश्वासियों के रवैये को या शैतान के फलसफों को मत अपनाओ। तुम्हें परमेश्वर के वचन और अधिक खाने-पीने चाहिए, सत्य के सभी पहलुओं को समझने का प्रयास करना चाहिए, कर्तव्य निभाने के महत्व को सुस्पष्ट समझना चाहिए, और फिर अपना कर्तव्य निभाने के दौरान सत्य के सभी पहलुओं में प्रवेश कर उनका अभ्यास करना चाहिए, और धीरे-धीरे परमेश्वर को, उसके कार्य और उसके स्वभाव को जानना शुरू करना चाहिए। इस तरीके से तुम्हारे जाने बिना तुम्हारी आंतरिक दशा बदल जाएगी, तुम्हारे भीतर और अधिक सकारात्मक और सक्रिय चीजें होंगी, और नकारात्मक और निष्क्रिय चीजें घट जाएँगी, और चीजों का गुणभेद करने की तुम्हारी क्षमता पहले से कहीं ज्यादा बढ़ जाएगी। जब तुम्हारा आध्यात्मिक कद इस स्तर तक बढ़ जाएगा, तब तुममें संसार के सभी तरह के लोगों को, घटनाओं और चीजों को पहचानने का विवेक आ जाएगा, और तुम समस्याओं के सार को पूरी तरह समझने लगोगे। अगर तुम्हें अविश्वासियों की बनाई कोई फिल्म देखनी पड़े तो तुम जान सकोगे कि इसे देखकर लोग कैसे-कैसे जहर से ग्रसित हो सकते हैं, साथ ही शैतान इन तरीकों और प्रवृत्तियों के जरिए लोगों के मन में क्या-क्या भरना या रोपना चाहता है, और लोगों में किस चीज का क्षरण करना चाहता है। तुम धीरे-धीरे इस चीजों को समझने में सक्षम हो जाओगे। फिल्म देखकर तुममें जहर नहीं भरेगा, बल्कि तुममें इसके प्रति विवेक जाग चुका होगा—तभी तुम सचमुच आध्यात्मिक कद पाओगे।

सुपरहीरो और फंतासी फिल्में देखकर कुछ युवा लोगों पर एक सनक सवार हो जाती है—वे चाहते हैं कि उनमें भी मुख्य पात्रों की तरह असाधारण क्षमताएँ हों। क्या उन्हें इस तरह जहर नहीं दिया जा रहा है? अगर तुमने ऐसी फिल्में नहीं देखी हैं तो क्या तुम्हें इस जहर से नुकसान हो सकता है? नहीं हो सकता। इससे मेरा आशय क्या है? आशय यह है कि तुम एक बुरे समाज में रहते हो इसलिए जब तुम्हारा आध्यात्मिक कद छोटा हो और तुममें विवेक की कमी भी हो, तो तुम पर बुरी प्रवृत्तियों वाली चीजें हावी हो सकती हैं क्योंकि तुमने पहली बार उनका सामना किया, और तुम उन्हें सकारात्मक, सामान्य और उचित चीजें मान लोगे। यह लोगों को जहर देने का शैतान का एक तरीका है। मुझे बताओ, क्या शैतान बुरा नहीं है? शैतान के पास लोगों को भ्रष्ट करने के बहुत तरीके हैं! कहा जा सकता है कि जिस किसी ने ऐसी फिल्में देखी हैं, उसकी ऐसी इच्छा होती है। एक ऐसा बच्चा था जिसने एक फंतासी फिल्म देखी और फिर तो फुर्सत पाते ही वह अपने अहाते में झाड़ू पर सवार होकर इधर-उधर दौड़ने लगता। पहले तो वह भरसक कोशिश करके भी उड़ नहीं सका, लेकिन एक दिन वह वाकई उड़ने लगा। वह अपने आप नहीं उड़ा था, यह कोई बाहरी ताकत थी जो उसे उड़ा रही थी। उड़ना शुरू करने के बाद वह वैसी ही विचित्र चीखें निकालने से बच नहीं सका, जैसी चीख फिल्म का पात्र निकालता था; उसके अंदर एक प्रकार का आत्मा प्रवेश कर चुका था। क्या झाड़ू की सवारी करना सामान्य मानव जीवन का हिस्सा है? तुम किसी घोड़े या गधे की सवारी तो कर सकते हो, लेकिन झाड़ू की सवारी करके उड़ने की जरूरत क्या है? क्या यह कुछ ऐसा है जो संभव है? तुम फटाक से बता सकते हो कि ऐसा सामान्य लोग नहीं करते। झाड़ू उड़ नहीं सकतीं, वे केवल बुरी आत्माओं की मदद से उड़ सकती हैं, इसलिए यह शैतान और बुरी आत्माओं का काम है। शैतान और बुरी आत्माएँ ऐसी चौंकाने वाली, विचित्र और हास्यास्पद चीजें करते हैं जिन्हें सामान्य लोग नहीं करते। क्या तुम लोगों में उन चीजों के बारे में थोड़ा-सा भी विवेक है जो शैतान करता है? उन चीजों के प्रति तुम लोगों का रवैया कैसा होना चाहिए? क्या उन्हें त्याग नहीं देना चाहिए? जब तुम्हारे पास समय हो तो तुम लोगों को आत्मचिंतन कर यह देखना चाहिए कि तुम्हारे दिमाग में कौन-सी विचित्र चीजें कायम हैं। तुम लोगों के मन में कई विचित्र चीजें क्यों हैं? क्योंकि तुम लोगों की पीढ़ी के लोगों को इतना ज्यादा जहर दिया जा चुका है—तुम सब एक छत से दूसरी छत पर उड़कर स्पाइडर-मैन या बैटमैन बनना चाहते हो, और अतिमानव बनना चाहते हो। यह कोई ऐसी चीज नहीं है जो सामान्य मानवता के लोगों में होनी चाहिए। अगर तुम ऐसी चीजें खोजने पर जोर देते हो जिनकी जरूरत सामान्य मानवता वाले लोगों को नहीं है, और अगर तुम इन्हें आजमाने और इनका अनुभव लेने में लगातार जुटे रहते हो तो तुम बुरी आत्माओं के कार्य को आकर्षित कर सकते हो। लोगों पर जब बुरी आत्माओं का साया पड़ता है तो वे परेशानी में पड़ जाते हैं, शैतान उन्हें काबू कर लेता है, और फिर वे खतरे में आ जाते हैं। इस समस्या का समाधान कैसे किया जा सकता है? लोगों को नियमित रूप से परमेश्वर की शरण में जाना चाहिए। उन्हें न किसी प्रलोभन में पड़ना चाहिए, न शैतान के हाथों गुमराह होना चाहिए। इस बुरे युग में जहाँ दानव और अस्वच्छ आत्माएँ झुंड बनाकर और बेकाबू होकर फिर रहे हैं, अगर तुम परमेश्वर से अनुग्रह और सुरक्षा पाने और सदा तुम्हारा साथ देने की प्रार्थना कर सकते हो, और अपनी देखरेख और रक्षा करने की विनती कर सकते हो, ताकि तुम्हारा हृदय उससे भटके नहीं और तुम ईमानदारी और दिल से परमेश्वर की स्तुति कर सको, तो क्या यह सही मार्ग नहीं है? (यह सही मार्ग है।) और क्या तुम लोग इस रास्ते पर चलने के इच्छुक हो? क्या तुम लोग हमेशा परमेश्वर की देखरेख, सुरक्षा और अनुशासन के अधीन रहने के इच्छुक हो या फिर अपनी स्वतंत्र दुनिया में ही रहना चाहते हो? अगर परमेश्वर तुम लोगों को अनुशासित करता है तो इससे तुम लोगों को कभी-कभी शारीरिक कष्ट उठाने पड़ सकते हैं। क्या तुम लोग यह सहने को तैयार हो? (बिल्कुल।) तुम लोग कहते हो कि तुम अभी तैयार हो, लेकिन जब तुम्हारा सामना इसकी वास्तविकता से होगा तो संभव है तुम बड़बड़ाने लगो। कष्ट सहने के लिए तैयार होना ही काफी नहीं है, तुममें सत्य हासिल करने के प्रयास करने की इच्छा भी होनी चाहिए। सत्य को समझने पर ही तुम अडिग रह सकते हो। यह चिंताजनक है कि युवा लोग बहुत अस्थिर होते हैं, वे अपने उचित कर्तव्यों पर गौर नहीं करते या उनके मन में उचित चीजें नहीं होतीं, और यह भी कि वे परमेश्वर के वचन पढ़ने या सत्य के लिए प्रयास करने के इच्छुक नहीं हैं—यह खतरनाक है। कहना मुश्किल है कि इसका परिणाम जीवन होगा या मृत्यु। आज कुछ ऐसे युवा भी हैं जो कई बरसों तक उपदेश सुन चुके हैं; वे सत्य में रुचि लेने लगे हैं, और उपदेश सुनते हुए नोट्स लेने के इच्छुक भी होते हैं। उन्हें धार्मिकता के लिए एक प्रकार की भूख-प्यास महसूस होती है, और वे सत्य को समझने में सक्षम होते हैं। इसका मतलब है कि उनकी नींव पहले ही पड़ चुकी है, और जब तक सत्य उनके दिलों में जड़ जमाए रखता है तो वे और अधिक सुरक्षित हो जाएँगे। अगर वे सत्य के लिए प्रयास जारी रखें तो इससे यह गारंटी मिल जाएगी कि वे सत्य को समझने, सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने और उद्धार प्राप्त करने में सक्षम रहेंगे।

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