परमेश्वर के दैनिक वचन : परमेश्वर का स्वभाव और स्वरूप | अंश 241

पृथ्वी पर मैं स्वयं व्यावहारिक परमेश्वर हूँ, जो मनुष्यों के हृदय में रहता है; स्वर्ग में मैं समस्त सृष्टि का स्वामी हूँ। मैंने पर्वत चढ़े हैं और नदियाँ लाँघी हैं, और मैं मानवजाति के बीच से अंदर-बाहर प्रवाहित होता रहा हूँ। कौन स्वयं व्यावहारिक परमेश्वर का खुलेआम विरोध करने की हिम्मत करता है? कौन सर्वशक्तिमान की संप्रभुता से अलग होने का साहस करता है? कौन यह दृढ़ता से कहने का साहस करता है कि मैं असंदिग्ध रूप से स्वर्ग में हूँ? साथ ही, कौन यह दृढ़ता से कहने का साहस करता है कि मैं निर्विवाद रूप से पृथ्वी पर हूँ? समस्त मनुष्यों में से कोई भी उन स्थानों के बारे में स्पष्ट रूप से हर विवरण के साथ बताने में सक्षम नहीं है, जहाँ मैं रहता हूँ। क्या ऐसा हो सकता है कि जब मैं स्वर्ग में होता हूँ, तो मैं स्वयं अलौकिक परमेश्वर होता हूँ, और जब मैं पृथ्वी पर होता हूँ, तो मैं स्वयं व्यावहारिक परमेश्वर होता हूँ? मैं वाकई स्वयं व्यावहारिक परमेश्वर हूँ या नहीं, यह मेरे समस्त सृष्टि का शासक होने से या इस तथ्य से कि मैं मानव-संसार की पीड़ा का अनुभव करता हूँ, निर्धारित नहीं किया जा सकता, है ना? अगर ऐसा होता, तो क्या मनुष्य समस्त आशाओं से परे अज्ञानी न होते? मैं स्वर्ग में हूँ, लेकिन मैं पृथ्वी पर भी हूँ; मैं सृष्टि की असंख्य वस्तुओं के बीच हूँ, और असंख्य लोगों के बीच भी हूँ। मनुष्य मुझे हर दिन छू सकते हैं; इतना ही नहीं, वे मुझे हर दिन देख सकते हैं। जहाँ तक मानवजाति का संबंध है, मैं उसे कभी-कभी छिपा हुआ और कभी-कभी दृश्यमान प्रतीत होता हूँ; कभी लगता है कि वास्तव में मेरा अस्तित्व है, फिर ऐसा भी लगता है कि मेरा अस्तित्व नहीं है। मुझमें मनुष्यजाति के लिए अज्ञेय रहस्य मौजूद हैं। यह ऐसा है, मानो सभी मनुष्य मुझमें और अधिक रहस्य खोजने के लिए मुझे सूक्ष्मदर्शी यंत्र से देख रहे हों, यह आशा करते हुए कि ऐसा करके वे अपने हृदय से उस असुखद अनुभूति को दूर कर सकेंगे। परंतु यदि वे एक्स-रे का भी उपयोग करें, तब भी मनुष्य कैसे मुझमें छिपे रहस्यों में से किसी का भी खुलासा कर सकेंगे?

जिस क्षण मेरे लोग मेरे कार्यों के परिणामस्वरूप मेरे साथ-साथ महिमा प्राप्त करेंगे, उस क्षण विशाल लाल अजगर की माँद खोद दी जाएगी, सारा कीचड़ और मिट्टी साफ कर दी जाएगी, और असंख्य वर्षों से जमा प्रदूषित जल मेरी दहकती आग में सूख जाएगा और उसका अस्तित्व नहीं रहेगा। इसके बाद विशाल लाल अजगर आग और गंधक की झील में नष्ट हो जाएगा। क्या तुम लोग सच में मेरी प्रेमपूर्ण देखभाल के अधीन रहना चाहते हो, ताकि अजगर द्वारा छीन न लिए जाओ? क्या तुम लोग सचमुच इसके कपटपूर्ण दाँव-पेचों से घृणा करते हो? कौन मेरे लिए मजबूत गवाही देने में सक्षम है? मेरे नाम के वास्ते, मेरे आत्मा के वास्ते, मेरी समस्त प्रबंधन योजना के वास्ते, कौन अपने समस्त सामर्थ्य की बलि दे सकता है? आज, जबकि राज्य मनुष्यों के संसार में है, वह समय है, जब मैं व्यक्तिगत रूप से मनुष्यों के संसार में आया हूँ। यदि ऐसा न होता, तो क्या कोई है जो बिना किसी आशंका के मेरी ओर से युद्ध क्षेत्र में उतर सकता? ताकि राज्य आकार ले सके, ताकि मेरा हृदय संतुष्ट हो सके, और इससे भी बढ़कर, ताकि मेरा दिन आ सके, ताकि वह समय आ सके जब सृष्टि की असंख्य वस्तुएँ पुर्नजन्म लेंगी और प्रचुर मात्रा में विकसित होंगी, ताकि मनुष्यों को पीड़ा के सागर से बचाया जा सके, ताकि आने वाला कल आ सके, और ताकि वह अद्भुत हो सके और फल-फूल सके तथा विकसित हो सके, और इतना ही नहीं, ताकि भविष्य का आंनद साकार हो सके, सभी मनुष्य मेरे लिए अपने आपको बलिदान करने में कोई कसर बाकी न रखते हुए अपनी संपूर्ण शक्ति से प्रयास कर रहे हैं। क्या यह इस बात का संकेत नहीं है कि मुझे पहले ही विजय मिल चुकी है? क्या यह मेरी योजना पूर्ण होने का चिह्न नहीं है?

लोग जितना अधिक अंत के दिनों में रहेंगे, उतना ही अधिक वे संसार का खालीपन महसूस करेंगे और उतना ही उनमें जीवन जीने का साहस कम हो जाएगा। इसी कारण से, असंख्य लोग निराशा से मर गए हैं, असंख्य अन्य लोग अपनी खोज में निराश हो गए हैं, और असंख्य अन्य लोग शैतान के हाथों अपने साथ छेड़छाड़ किए जाने की पीड़ा भोग रहे हैं। मैंने बहुत-से लोगों को बचाया है, बहुतों को राहत दी है, और कितनी ही बार, मनुष्यों के ज्योति खो देने पर मैं उन्हें वापस ज्योति के स्थान पर ले गया हूँ, ताकि ज्योति के भीतर वे मुझे जान सकें और खुशी के बीच मेरा आनंद ले सकें। मेरी ज्योति के आने की वजह से, मेरे राज्य में रहने वाले लोगों के हृदय में श्रद्धा बढ़ती है, क्योंकि मनुष्यों के लिए मैं प्रेम किया जाने वाला परमेश्वर हूँ—ऐसा परमेश्वर, जिससे मनुष्य अनुरक्त आसक्ति के साथ चिपकते हैं—और वे मेरे रूप की स्थायी छाप से भर जाते हैं। फिर भी, अंतत:, कोई भी ऐसा नहीं है, जो समझता हो कि यह पवित्रात्मा का कार्य है, या देह की क्रिया है। इस अकेली चीज़ का विस्तार से अनुभव करने में लोगों को पूरा जीवन लग जाएगा। मनुष्यों ने अपने हृदय की अंतरतम गहराइयों में मुझे कभी भी तिरस्कृत नहीं किया है; बल्कि वे अपनी आत्मा की गहराई से मुझसे चिपकते हैं। मेरी बुद्धि उनकी सराहना को बढ़ाती है, जो अद्भुत कार्य मैं करता हूँ, वे उनकी आँखों के लिए एक दावत हैं, मेरे वचन उनके मन को हैरान करते हैं, फिर भी वे उन्हें बहुत प्यारे लगते हैं। मेरी वास्तविकता मनुष्य को चकित, भौचक्का और व्यग्र कर देती है, फिर भी वे उसे स्वीकार करने के लिए तैयार हैं। क्या मनुष्य वास्तव में ऐसा ही नहीं है?

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 15

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