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परमेश्वर ने नीनवे के राजा के पश्चाताप की प्रशंसा की
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मनुष्य की पीड़ा कैसे उत्पन्न होती है?
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दुख से भर जाते हैं दिन परमेश्वर के बिन
286
सत्य से प्रेम करने वाले ही परमेश्वर की संप्रभुता को समर्पित हो सकते हैं
296
भ्रष्ट मानवता की त्रासदी
297
इंसान वो नहीं रहा जैसा परमेश्वर चाहता है
300
इतनी मलिन धरती पर रहते हैं लोग
303
क्या तुम्हें है सच्चा भरोसा मसीह में?
307
क्या यही है आस्था तुम सबकी?
308
कहाँ है तुम्हारा सच्चा विश्वास?
309
क्या तुम्हें मसीह के प्रति सच्चा विश्वास और प्रेम है?
310
तुममें मसीह के प्रति अविश्वास के बहुत ज्यादा तत्व हैं
311
आदमी का सच्चा यक़ीन मसीह में नहीं है
312
परमेश्वर उन्हीं की प्रशंसा करता है जो ईमानदारी से मसीह की सेवा करते हैं
315
मसीह के बारे में धारणाएँ रखना परमेश्वर का विरोध करना है
318
जो कुछ भी लोग कहते और करते हैं, वह बच नहीं सकता परमेश्वर की नज़र से
319
मनुष्य के शब्द और कर्म परमेश्वर के दहन से नहीं बच सकते
322
परमेश्वर इंसान से क्या पाता है?
324
परमेश्वर में विश्वास करने के पीछे मनुष्य के घृणित इरादे
325
परमेश्वर में मनुष्य का विश्वास असहनीय रूप से बुरा है
326
परमेश्वर में मनुष्य के विश्वास की सबसे दुखद बात
328
इंसान ने ईश्वर को अपना दिल नहीं दिया है
329
परमेश्वर चाहता है सच्चा दिल मनुष्य का
330
क्या अपने लिये परमेश्वर की आशाओं को महसूस किया है तुम लोगों ने?
331
क्या तुम्हारा देह की ख्वाहिशों में जीना परमेश्वर की इच्छा है?
333
उम्मीद करता है परमेश्वर कि इंसान उसके वचनों के प्रति निष्ठावान बन सके
334
जब परमेश्वर का दिन आएगा
335
परमेश्वर के वचनों के मूल की थाह पा नहीं सकता कोई
337
तुमने ईश्वर को क्या समर्पित किया है?
338
परमेश्वर के प्रति तुम्हारी वफ़ादारी की अभिव्यक्ति कहाँ है?
339
तुम किसके प्रति वफ़ादार हो?
342
परमेश्वर को नफ़रत है इंसानों के आपसी जज़्बात से
343
जो परमेश्वर को नहीं जानते, वे उसका विरोध करते हैं
345
तुम इतने मग़रूर क्यों हो?
347
मनुष्य की मौलिक पहचान और उसका मोल
348
हैसियत सँजोने में क्या मूल्य है?
350
भ्रष्ट इंसान परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता
351
बहुत कम लोग हैं परमेश्वर के अनुरूप
353
कहाँ है ईश्वर से तुम्हारी अनुकूलता का प्रमाण?
354
किसी को भी सक्रिय रूप से परमेश्वर को समझने की परवाह नहीं
355
बदले में क्या दिया है तुमने परमेश्वर को
356
परमेश्वर के हृदय को कौन समझ सकता है?
357
कोई नहीं समझता परमेश्वर की इच्छा
358
परमेश्वर उदास कैसे न हो?
359
इंसान परमेश्वर के वचनों को दिल से ग्रहण नहीं करता
360
क्या तुम लोग सचमुच परमेश्वर के वचनों में जीते हो?
363
लोग नहीं जानते कि वे कितने अधम हैं
370
परमेश्वर को सबसे अधिक क्या दुखी करता है
371
कौन परमेश्वर की इच्छा की परवाह कर सकता है?
372
किसने कभी परमेश्वर के दिल को समझा है?
373
लोग परमेश्वर से ईमानदारी से प्रेम क्यों नहीं करते?
377
परमेश्वर पर विश्वास करके भी उसकी अवहेलना करने वालों का परिणाम
381
किस तरह का व्यक्ति बचाया नहीं जा सकता?
382
तुम्हारा अंत क्या होगा?
384
परमेश्वर पर भरोसे का सच्चा अर्थ
385
इंसान के लिये परमेश्वर के प्रबंधनों का प्रयोजन
386
परमेश्वर में इंसान की आस्था का क्या लक्ष्य होना चाहिए
387
विश्वास के लिए मुख्य है परमेश्वर के वचनों को जीवन की वास्तविकता के रूप में स्वीकार करना
388
सत्य का अभ्यास परमेश्वर में विश्वास की कुंजी है
389
हर इंसान को परमेश्वर की आराधना करनी चाहिए
390
विश्वासियों के लिए क्रियाओं के सिद्धांत
391
परमेश्वर में आस्था की सर्वोच्च प्राथमिकता
392
लोगों को परमेश्वर का भय मानने वाले हृदय के साथ उस पर विश्वास करना चाहिए
393
अपने विश्वास में उस मार्ग का अनुसरण करो जिस पर पवित्र आत्मा अगुआई करता है
394
परमेश्वर के लिए तुम्हारा विश्वास हो सबसे ऊँचा
395
सच्चे विश्वासी की ज़िम्मेदारियाँ
396
परमेश्वर इंसान के सच्चे विश्वास की आशा करता है
398
तुम्हें अपने विश्वास में ईश्वर से प्रेम करने का प्रयास करना चाहिए
399
परमेश्वर में आस्था की राह, है राह उससे प्यार करने की
400
लक्ष्य जिसका अनुसरण करना चाहिये विश्वासियों को
402
जिनके पास सच्चा विश्वास होता है उन्हीं को परमेश्वर की स्वीकृति मिलती है
403
विश्वास की वजह से ही तुमने पाया इतना कुछ
406
तुम्हारा विश्वास वास्तव में कैसा है?
410
तुम्हारा विश्वास अभी भी भ्रमित है
411
परमेश्वर में विश्वास करके भी सत्य को स्वीकार न करना अविश्वासी होना है
412
अपने विश्वास को गंभीरता से न लेने का परिणाम
413
ऐसी आस्था जिसकी ईश्वर प्रशंसा न करे
414
लोग अपने विश्वास में विफल क्यों हो जाते हैं?
416
सच्ची प्रार्थना
417
मनुष्य की पुकार पर परमेश्वर देता है वो जिसकी उसे ज़रूरत है
418
प्रार्थना के मायने
419
सच्ची प्रार्थना में प्रवेश कैसे किया जाता है
420
सच्ची प्रार्थना का प्रभाव
423
बिना सच्ची प्रार्थना के, सच्ची सेवा नहीं होती
425
जो परमेश्वर के सामने शांत रहते हैं, केवल वही जीवन पर ध्यान केंद्रित करते हैं
426
परमेश्वर के समक्ष अपने हृदय को शांत करने पर तुम्हें ध्यान देना चाहिए
427
परमेश्वर अपने संग सहयोग करने वालों को दुगुना प्रतिफल देता है
428
परमेश्वर के सामने शांत कैसे रहें
429
अपने हृदय को परमेश्वर के आगे शांत करने के तरीके
430
परमेश्वर के समक्ष शांत रहने का अभ्यास
431
परमेश्वर के समक्ष अपने हृदय को शांत रखने के फ़ायदे
433
जब तुम देते हो अपना हृदय परमेश्वर को
434
अपना हृदय परमेश्वर की ओर मोड़ कर ही तुम परमेश्वर की सुंदरता कर सकते हो महसूस
435
अगर तुम ईश्वर में विश्वास करते हो तो उसे अपना हृदय सौंप दो
436
क्या तुम्हारा दिल ईश्वर की ओर मुड़ा है?
437
परमेश्वर से प्रेम करने में समर्थ होने के लिए अपना हृदय पूरी तरह उसकी ओर मोड़ो
438
जब तुम खोलते हो अपना हृदय परमेश्वर के लिए
439
परमेश्वर को अपने हृदय में आने दो
441
परमेश्वर के साथ सामान्य रिश्ता कैसे स्थापित करें
443
पारस्परिक रिश्ते परमेश्वर के वचनों के अनुसार बनाने चाहिए
444
क्या परमेश्वर से तुम्हारा संबंध सामान्य है?
445
उन लोगों के गुण जिनका परमेश्वर उपयोग करता है
446
पूर्ण किये जाने के लिये परमेश्वर से सामान्य संबंध बनाओ
448
सामान्य स्थिति जीवन में तीव्र विकास की ओर ले जाती है
449
पवित्रात्मा के काम की अभिव्यक्ति
450
क्या तुमने ईश्वर में विश्वास के सही रास्ते में प्रवेश कर लिया है?
451
पवित्र आत्मा का कार्य सामान्य और व्यावहारिक है
452
पवित्र आत्मा के कार्य के सिद्धांत
454
पवित्र आत्मा ज़्यादा कार्य करता है उनमें, पूर्ण किये जाने की तड़प है जिनमें
455
जिनमें है कार्य पवित्रात्मा का वही किये जा सकते हैं पूर्ण
456
पवित्र आत्मा के कार्य को अपने प्रवेश में लेकर चलो
457
पवित्र आत्मा के कार्य से इंसान सक्रिय रूप से प्रगति करता है
458
जब पवित्र आत्मा मनुष्य पर कार्य करता है
460
पवित्र आत्मा के काम को मानो तो तुम चलोगे पूर्णता के पथ पर
461
परमेश्वर अपनी उम्मीद रखता है पूरी तरह इंसान पर
463
बदली नहीं हैं परमेश्वर की उम्मीदें इंसान के लिये
464
परमेश्वर स्वयं के लिए इंसान की सच्ची आस्था और प्रेम पाने की करता है आशा
465
परमेश्वर मूल्यवान मानता है उनको जो उसकी सुनते और उसका आदेश मानते हैं
466
परमेश्वर की एकमात्र इच्छा है कि इंसान उसकी बात सुने और माने
467
इंसान को परमेश्वर के वचनों के अनुसार चलना चाहिये
468
ईश-वचन इंसान के जीवन की सभी जरूरतों के लिए आपूर्ति करते हैं
469
परमेश्वर के वचनों की महत्ता
471
परमेश्वर के वचन कभी न बदलने वाला सत्य हैं
472
सत्य जीवन का सबसे ऊंचा सूत्र है
473
केवल सत्य ही इंसान के दिल को सुकून दे सकता है
474
सत्य के लिए तुम्हें सब कुछ त्याग देना चाहिए
475
सबसे सार्थक जीवन
476
किसका अनुसरण करें नौजवान
477
परमेश्वर के वचनों को अपने आचरण का आधार बनाओ
478
परमेश्वर के वचनों के प्रति कैसा दृष्टिकोण अपनायें
479
परमेश्वर के वचनों के प्रति इंसान का जो रवैया होना चाहिए
480
जीवन को परमेश्वर के वचनों से भरो
481
इंसान को परमेश्वर की राह पर कैसे चलना चाहिए
482
परमेश्वर के वचनों को जो संजोते हैं वे धन्य हैं
483
चाहे बड़ा हो या छोटा, सबकुछ मायने रखता है जब परमेश्वर की राह का पालन कर रहे हो
484
परमेश्वर में सच्चा विश्वास उसके वचनों का अभ्यास और अनुभव है
485
परमेश्वर के कार्य का अनुभव उसके वचनों से अविभाज्य है
486
परमेश्वर के वचनों से खुद को लैस करना तुम्हारी सर्वोच्च प्राथमिकता है
491
ज्ञान वास्तविकता का विकल्प नहीं है
491
परमेश्वर हमारी आत्माओं को एक बार फिर प्रेरित करे
492
इन्सान के लिए परमेश्वर की सलाह
493
क्या तुम परमेश्वर को आनंद देने वाला फल बनना चाहते हो?
494
केवल परमेश्वर के वचनों का अभ्यास करने से ही वास्तविकता आती है
495
वास्तविक परिवर्तन के लिए सत्य का अभ्यास करो
497
असल कीमत चाहिये सत्य के अमल के लिये
498
सत्य का अभ्यास करने वाले ही परीक्षणों में गवाही दे सकते हैं
499
सत्य का अभ्यास करोगे तो बदल जाएगा स्वभाव तुम्हारा
500
देह-सुख को त्यागना सत्य का अभ्यास करना है
501
शरीर त्यागने का अभ्यास
502
दैहिक इच्छाएँ त्यागने का अर्थ
504
सत्य पर अमल के लिये सबसे सार्थक है दुख सहना
505
सत्य का अभ्यास करने के लिए कष्ट उठाने पर ईश्वर की प्रशंसा प्राप्त होती है
506
सत्य पर और अमल करो, परमेश्वर का और आशीष पाओ
507
सच्चाई से जी कर ही तू दे सकता है गवाही
508
पूर्ण किए जाने के लिए सत्य के अभ्यास पर ध्यान लगाओ
509
परमेश्वर द्वारा प्राप्त लोगों ने वास्तविकता प्राप्त की है
510
तुम्हें सभी चीज़ों में परमेश्वर की गवाही देनी चाहिए
511
ईश्वर की संतुष्टि के लिए हर चीज़ में ईश्वर की गवाही दो
514
सत्य की खोज का मार्ग
516
गहन अनुभव के लिए परमेश्वर के वचन को स्वीकारो
520
परमेश्वर उन्हें आशीष देता है जो सच्चे मन से सत्य का अनुसरण करते हैं
522
पवित्र आत्मा का कार्य पाने के लिए परमेश्वर के वचनों में जियो
523
परमेश्वर के वचनों का पालन करो तो तुम कभी राह से नहीं भटकोगे
524
क्या परमेश्वर के वचन सचमुच तुम्हारा जीवन बन गए हैं?
527
परमेश्वर के वचनों का सच्चा अर्थ कभी समझा नहीं गया है
528
लोग परमेश्वर के वचनों का अभ्यास ही नहीं करते
530
परमेश्वर के लिए मनुष्य का हठ और बार-बार वही अपराध करना सबसे घृणित है
532
हटा दिया जाएगा उन्हें जो नहीं करते परमेश्वर के वचनों का अभ्यास
532
मैं परमेश्वर से प्रेम करने को संकल्पित हूँ
536
जो सत्य पाने की कोशिश नहीं करते, वे अंत तक अनुसरण नहीं कर सकते
537
मृत्यु-शैय्या पर सत्य के प्रति जागना बड़ी देर से जागना है
538
इंसान जब शैतान के प्रभाव को त्याग देता है, तो उसे बचा लिया जाता है
541
अंधकार के प्रभावों से बचने के लिए परमेश्वर के वचनों का पालन करो
542
आज का सत्य उन्हें दिया जाता है जो उसके लिए लालसा और उसकी खोज करते हैं
543
मैं हूँ बस एक अदना सृजित प्राणी
545
अपने स्वभाव को बदलने के लिए ईश्वर के वचनों के सहारे जियो
547
मैं दिल से केवल परमेश्वर से प्रेम करना चाहता हूँ
548
परमेश्वर को पसंद हैं लोग जिनमें संकल्प है
552
बचाये जा सकते हो, अगर सत्य को न त्यागो तुम
556
केवल सत्य का अभ्यास करने वाले ही परमेश्वर द्वारा बचाए जा सकते हैं
557
क्या तुम अपनी प्रकृति जानते हो?
557
मैं अपना पूरा जीवन परमेश्वर को समर्पित करना चाहता हूँ
558
परमेश्वर के वचनों के अनुसार स्वयं को समझो
559
मैं इतना कुछ पाता हूँ परमेश्वर की ताड़ना और न्याय से
565
न्याय और ताड़ना में देखा मैंने प्रेम परमेश्वर का
566
परमेश्वर उन्हें आशीष देता है जो ईमानदार हैं
569
अंत में किसी का भाग्य कैसे संपन्न होगा?
571
इंसान का दिल बहुत कपटी है
572
परमेश्वर के बारे में संदेह करने वाले सबसे अधिक कपटी होते हैं
573
इंसान का फ़र्ज़ सृजित प्राणी का उद्यम है
574
अपने कर्तव्य में सत्य का अभ्यास करना ही कुंजी है
575
परमेश्वर का ध्यान मनुष्य के हृदय पर है
576
अपना कर्तव्य करने का अर्थ है भरसक प्रयत्न करना
577
परमेश्वर के आदेश की पूर्ति के लिये कर दो अपना तन-मन समर्पित
579
तुम्हें अपना कर्तव्य कैसे निभाना चाहिए
579
परमेश्वर की ताड़ना और न्याय के बिना नहीं रह सकती मैं
580
परमेश्वर के वचनों का अभ्यास और परमेश्वर को संतुष्ट करना सबसे पहले आता है
583
ऐसा व्यक्ति बनो जो परमेश्वर को संतुष्ट करे और उसके मन को चैन दे
584
परमेश्वर के कार्य के लिए पूरी तरह समर्पित हो जाओ
585
अधिक बोझ उठाओ ताकि परमेश्वर द्वारा अधिक आसानी से पूर्ण किये जा सको
586
इस मौके को खो दोगे तो तुम हमेशा पछताओगे
587
धन्य हैं वे जो ईश्वर के लिए स्वयं को सचमुच खपाते हैं
588
उठो, सहयोग करो परमेश्वर से
589
परमेश्वर ने बहुत पहले तैयार कर दी हर चीज़ इंसान के लिये
590
परमेश्वर के लिए पतरस का प्रेम
591
परमेश्वर के भवन में अपनी निष्ठा अर्पित करो
595
केवल अपना फ़र्ज़ निभाना संतुष्ट कर सकता है परमेश्वर को
596
तुम्हें दृढ़ता से अपना कर्तव्य निभाना चाहिए
598
परमेश्वर की जाँच को तुझे हर चीज़ में स्वीकर करना चाहिए
599
परमेश्वर के कार्य को समर्पित होने को मैं हूँ तैयार
602
परमेश्वर में सफल विश्वास का मार्ग
604
परमेश्वर के विश्वासी को किस चीज़ की खोज करनी चाहिए
606
इंसान को मापने के लिए परमेश्वर उसकी प्रकृति का इस्तेमाल करता है
606
क्रूस पर चढ़ते समय पतरस की प्रार्थना
609
वही पात्र हैं सेवा के जो अंतरंग हैं परमेश्वर के
610
प्रभु यीशु का अनुकरण करो
611
परमेश्वर की सेवा करने के लिए तुम्हें उसे अपना हृदय अर्पित करना चाहिए
612
ईश्वर की सेवा करने वाला बनने के लिए क्या चाहिए
614
तुम लोगों का प्रवेश ही तुम लोगों का काम है
615
परमेश्वर द्वारा इस्तेमाल के योग्य कैसे हों
616
परमेश्वर के प्रति निष्ठावान हृदय
617
मनुष्यों के लिए परमेश्वर का अनुस्मारक
619
सत्य के लिए अच्छी लड़ाई लड़ो
621
स्वभाव बदले बिना कोई परमेश्वर की सेवा नहीं कर सकता
623
ऐसा स्वभाव परमेश्वर की सेवा के योग्य कैसे हो सकता है?
628
त्याग दो धार्मिक अवधारणाएं परमेश्वर द्वारा पूर्ण किये जाने के लिए
631
परमेश्वर की ताड़ना और न्याय है मनुष्य की मुक्ति का प्रकाश
632
परमेश्वर की ताड़ना और न्याय प्रेम हैं ये जान लो
633
परमेश्वर का न्याय है प्यार
634
ताड़ना मिलने और न्याय किए जाने के कारण तुम लोगों को सुरक्षा दी जाती है
635
शैतान के प्रभाव को दूर करने के लिए परमेश्वर के न्याय का अनुभव करो
637
क्या ये दुनिया तुम्हारी आरामगाह है?
639
परमेश्वर द्वारा इन लोगों के चुने जाने का महान अर्थ
640
तुमने महान आशीषों का आनंद लिया है
641
परमेश्वर द्वारा मोआब के वंशजों का उत्कर्ष
642
वह संकल्प जो मोआब की संतानों के पास होना चाहिए
643
मोआब के वंशजों पर परमेश्वर के कार्य का अर्थ
647
हम बचाए गए हैं क्योंकि हमें परमेश्वर ने चुना है
649
ईश्वर की इच्छा को निराश नहीं कर सकते तुम
652
तुम सब वो हो जो परमेश्वर की विरासत पाओगे
655
परमेश्वर विश्वास को पूर्ण बनाता है
657
परीक्षण माँग करते हैं आस्था की
658
सच्चा विश्वास क्या है
659
यातनाओं के दौरान सिर्फ़ विजयी लोग अडिग रहते हैं
660
विजेताओं का गीत
662
परीक्षणों के दौरान मनुष्य को किसका पालन करना चाहिए
663
जब परीक्षण आ पड़ें तो तुम्हें परमेश्वर की ओर खड़े होना चाहिए
664
जब परमेश्वर इंसान की आस्था की परीक्षा लेता है
665
इम्तहान में परमेश्वर को इंसान का सच्चा दिल चाहिए
666
धन्य है वे जिनकी ईश-वचनों से परीक्षा होती है
667
मनुष्य परमेश्वर के नेक इरादों को न समझ पाए
668
इंसान का शोधन बेहद सार्थक है परमेश्वर के द्वारा
669
केवल पीड़ादायक परीक्षणों के माध्यम से तुम परमेश्वर की सुंदरता को जान सकते हो
670
मुश्किलों और परीक्षणों के ज़रिए ही तुम ईश्वर को सचमुच प्रेम कर सकते हो
672
परमेश्वर के परीक्षण इंसान को शुद्ध करने के लिए होते हैं
674
ईश्वर सबकुछ इंसान को पूर्ण बनाने और प्रेम करने के लिए करता है
675
परमेश्वर के शुद्धिकरण के कार्य का उद्देश्य
677
शुद्धिकरण के दौरान परमेश्वर से प्रेम कैसे करें
678
केवल कष्ट और शोधन के ज़रिये ही तुम ईश्वर द्वारा पूर्ण किए जा सकते हो
679
परमेश्वर के लिए, इन्सान को पूर्ण करने का सर्वोत्तम उपाय शुद्धिकरण है
680
शुद्धिकरण की पीड़ा के मध्य ही शुद्ध बनता है इंसान का प्रेम
681
परमेश्वर के परीक्षण और शुद्धिकरण मानव की पूर्णता के लिए हैं
682
परमेश्वर मनुष्य को कई तरह से पूर्ण बनाता है
683
परमेश्वर को उसके अनुग्रह का आनंद लेकर नहीं जाना सकता
684
परमेश्वर की सच में तलाश करने वाले सभी लोग उसके आशीष प्राप्त कर सकते हैं
685
इंसान को जो करना है उस पर उसे अटल रहना चाहिये
686
परमेश्वर का उद्धार पाने वाले ही जीवित हैं
688
चाहे जो भी करे परमेश्वर, उसका अंतिम लक्ष्य है उद्धार
691
परमेश्वर को हमारे सर्वस्व पर अधिकार करने दो
695
परीक्षाओं के प्रति पतरस का रवैया
696
तुम्हें पता होना चाहिए कि परमेश्वर के कार्य का अनुभव कैसे करें
697
व्यवहारिक परमेश्वर में आस्था से बहुत लाभ हैं
698
जीवन प्राप्त करने के लिए न्याय स्वीकारो
699
परमेश्वर को अर्पित करना सबसे मूल्यवान बलिदान
700
स्वभाव में बदलाव है मुख्यत: प्रकृति में बदलाव
702
स्वभाव में बदलाव पवित्र आत्मा के काम से अलग नहीं हो सकता
705
केवल स्वभावगत बदलाव ही सच्चे बदलाव हैं
707
स्वभाव में बदलाव वास्तविक जीवन से अलग नहीं हो सकता
710
परमेश्वर के कार्य का पालन करने से ही स्वभाव बदलता है
715
एक सच्चे व्यक्ति की सदृशता
717
परमेश्वर के गवाहों के लिए स्वभाव में बदलाव आवश्यक है
718
स्वभावगत बदलाव पर भरोसा रखो
723
परमेश्वर के प्रति मनुष्य की आज्ञाकारिता का मानदंड
725
पूर्ण बनाए जाने के लिए परमेश्वर के मौजूदा वचनों के प्रति समर्पित हो जाओ
726
सृजित जीव को होना चाहिये परमेश्वर की दया पर
730
परमेश्वर का अधिकार जो मानते हैं, उनका भाव ऐसा होना चाहिए
732
इंसान ईश्वर से हमेशा माँगता क्यों रहता है?
735
परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने का ज़रूरी रास्ता
737
मनुष्य के पास परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय होना चाहिए
738
परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए तुम्हें उसके मानक को समझना चाहिए
739
परमेश्वर के प्रति श्रद्धा रखने वाले लोग सभी चीज़ों में उसका गुणगान करते हैं
741
सुरक्षा पाने की ख़ातिर भय मानो परमेश्वर का
742
वही मनुष्य खुश है जो परमेश्वर का सम्मान करता है
743
गरिमा है उसमें जो करता है आदर परमेश्वर का
745
अय्यूब की गवाही ने शैतान को हरा दिया
747
अय्यूब ईश्वर का आदर कैसे कर पाया?
748
परमेश्वर के प्रति अय्यूब का सच्चा विश्वास और उसकी आज्ञाकारिता
749
परमेश्वर के आशीषों के प्रति अय्यूब का मनोभाव
750
अय्यूब को परमेश्वर की प्रशंसा मिलने के कारण
752
अय्यूब के जीवन का मूल्य
754
जो शैतान को बुरी तरह हराते हैं, केवल उन्हीं को प्राप्त करेगा परमेश्वर
755
केवल उन लोगों को बचाया जाता है जो शैतान को हरा देते हैं
756
परमेश्वर द्वारा प्राप्त किए जाने के लिए सत्य द्वारा शैतान को हराओ
757
आने वाली पीढ़ियों के लिए अय्यूब की गवाही की चेतावनी
758
आशीषित हैं वो जो करते हैं परमेश्वर से प्रेम
759
परमेश्वर का सच्चा प्रेम पाने की खोज करनी चाहिए तुम्हें
760
शुद्ध प्रेम बिना दोष के
761
क्या तुममें परमेश्वर के लिए सच्चा प्रेम है?
762
तुम सच में ईश्वर से प्रेम नहीं करते
763
परमेश्वर के प्रेम का असली जीवन में आनंद लेना चाहिये
764
ईश्वर से प्रेम करने के लिए उसकी मनोहरता का अनुभव करो
765
परमेश्वर की सुंदरता को जानना है तो उसके कार्य का अनुभव करो
766
ईश्वर से प्रेम करने वालों का आदर्श-वाक्य
767
परमेश्वर में विश्वास करना लेकिन उसे प्रेम नहीं करना एक व्यर्थ जीवन है
768
परमेश्वर के लिए जीने का है सबसे ज्यादा मोल
769
जो करें परमेश्वर से प्रेम, उनके पास अवसर है पूर्ण बनाए जाने का
770
परमेश्वर आशा करता है कि मनुष्य उसे पूरे दिलो-दिमाग और क्षमता से प्रेम करे
774
परमेश्वर के लिए पतरस के प्रेम की अभिव्यक्ति
775
तुम्हारी पीड़ा जितनी भी हो ज़्यादा, परमेश्वर को प्रेम करने का करो प्रयास
777
पतरस के अनुभव का अनुकरण करो
779
इंसान शायद समझ ले उसे, उम्मीद है परमेश्वर को
780
परमेश्वर उन्हें पाना चाहता है जिन्हें उसका सच्चा ज्ञान है
781
इंसान से परमेश्वर की अंतिम अपेक्षा है कि इंसान उसे जाने
783
परमेश्वर को जानना सृजित प्राणियों के लिए सबसे बड़े सम्मान की बात है
783
शैतान पर अय्यूब की जीत का प्रमाण
784
केवल परमेश्वर के कार्य को जानकर ही तुम अंत तक अनुसरण कर सकोगे
786
इंसान परमेश्वर को उसके वचनों के अनुभव से जानता है
788
इंसान को परमेश्वर की इच्छा की कोई समझ नहीं है
789
तुम्हें जानना चाहिए परमेश्वर को उसके कार्य द्वारा
790
परमेश्वर की इच्छा खुली रही है सबके लिए
791
सभी चीज़ों पर परमेश्वर की संप्रभुता द्वारा उसे जानो
792
अगर तुम सच में परमेश्वर को जानना चाहते हो
793
ख़्यालों से और कल्पनाओं से परमेश्वर को कभी न जान पाओगे
794
जो जानते परमेश्वर के शासन को, समर्पित होंगे उसके प्रभुत्व को
796
परमेश्वर के स्वभाव को समझने का प्रभाव
797
परमेश्वर का कार्य अथाह है
798
परमेश्वर के कर्मों को जानने से ही आती है सच्ची आस्था
799
अंतिम परिणाम जिसे हासिल करना परमेश्वर के कार्य का लक्ष्य है
800
परमेश्वर को जानकर ही कोई उसका भय मान सकता है और बुराई से दूर रह सकता है
801
केवल ईश्वर को जानकर ही इंसान ईश्वर से प्रेम कर सकता है
802
परमेश्वर को जानने वाले ही परमेश्वर को पा सकते हैं
804
परमेश्वर को जान लेने का परिणाम
805
केवल वही लोग परमेश्वर की गवाही दे सकते हैं जो उसे जानते हैं
806
परमेश्वर के स्वभाव को न जानने के नतीजे
809
पतरस के पथ पर कैसे चलें
810
पतरस ने हमेशा परमेश्वर को जानने का प्रयास किया
812
पतरस ने परमेश्वर को व्यवहारिक रूप से जानने पर ध्यान दिया
815
तुम्हें ईश्वर की इच्छा समझनी चाहिए
816
परमेश्वर के लिए गवाही देना मानव का कर्तव्य है
817
परमेश्वर की एकमात्र इच्छा
818
क्या तुम ऐसा इंसान बनने को तैयार हो जो देता है परमेश्वर की गवाही
820
गवाही जो इंसान को देनी चाहिए
821
अपनी आस्था में परमेश्वर की गवाही कैसे दें
823
परमेश्वर के कर्मों को जानकर ही उसकी सच्ची गवाही दी जा सकती है
826
एक विश्वासी के रूप में तुम्हारा कर्तव्य परमेश्वर के लिए गवाही देना है
827
विजेता हैं वे जो परमेश्वर की शानदार गवाही दें
829
क्या तुम सचमुच परमेश्वर की गवाही देने का आत्मविश्वास रखते हो?
830
तुम्हें अय्यूब और पतरस की गवाहियाँ हासिल करनी चाहिए
831
विश्वास रखो कि ईश्वर इंसान को निश्चित रूप से पूर्ण बनाएगा
832
लोगों के इस समूह को पूरा करने का संकल्प लिया है परमेश्वर ने
833
पूर्ण किए जाने के लिए जो अपेक्षित है
834
परमेश्वर उन्हें पूर्ण बनाता है जो उसे सच में प्रेम करते हैं
835
परमेश्वर उन्हीं को पूर्ण बनाता है जो प्रेम करते हैं उसे
837
पूर्ण कैसे किए जाएँ
838
हर किसी के पास पूर्ण किये जाने का अवसर है
839
परमेश्वर चाहता है कि हर कोई पूर्ण हो सके
841
परमेश्वर द्वारा पूर्ण किये जाने का मार्ग
843
क्या तुम वो इंसान हो जो परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाये जाने की खोज करता है?
844
परमेश्वर तुम्हें तभी पूर्ण करेगा जब तुम पतरस के मार्ग पर चलो
847
सत्य की खोज ही पूर्ण बनाए जाने का एकमात्र अवसर है
849
परमेश्वर के वादे उनके लिए जो पूर्ण किए जा चुके हैं
975
नए युग की आज्ञाओं का अर्थ बहुत गहरा है
977
तुम्हें परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त करनी चाहिए
981
परमेश्वर उम्मीद करता है कि लोग प्रकाश का मार्ग प्राप्त करेंगे
983
हर दिन जो तुम अभी जीते हो, निर्णायक है
985
क्या इंसान इस थोड़े समय के लिए अपनी देह की इच्छाओं का त्याग नहीं कर सकता?
986
यह शरीर तुम्हारी मंज़िल बर्बाद कर सकता है
990
पश्चाताप-रहित लोग जो पाप में फँसे हैं उद्धार से परे हैं
991
अपने वचनों और कार्यों को कैसे समझना चाहिये तुम्हें
992
परमेश्वर द्वारा मनुष्य की दी गयी तीन चेतावनियाँ
994
परमेश्वर लोगों की अगुवाई जीवन के सही मार्ग की ओर कर रहा है
995
आज की आशीषों को तुम्हें संजोना चाहिए
996
मार्ग के आखिरी दौर में अच्छी तरह अनुसरण कैसे करें?
998
परमेश्वर का संदेश
1001
परमेश्वर के कथन मनुष्य के लिए सर्वोत्तम निर्देश हैं
1003
परमेश्वर के सिय्योन लौट जाने के बाद
1005
परमेश्वर की इंसान से अंतिम अपेक्षा
1007
इंसान के अंत के लिए परमेश्वर की व्यवस्था
1008
परमेश्वर इंसान का अंत तय करता है उसके अंदर मौजूद सत्य के आधार पर
1009
परमेश्वर के मार्ग का अनुसरण न करने वाले दंडित किये जाएंगे
1010
सभी लोगों के परिणाम के लिये परमेश्वर की व्यवस्था
1011
इंसान का अंत तय करता है परमेश्वर, उनके सार के अनुसार
1033
कैसे जियें आज्ञाकारी जीवन
1034
क्या तुम सच में समझ पाते हो ईश्वर की चाह को?
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