मद आठ : वे दूसरों से केवल अपने प्रति समर्पण करवाएँगे, सत्य या परमेश्वर के प्रति नहीं (भाग तीन) खंड दो

परिशिष्ट :

शियाओजिया के जीवन में एक दिन

चलो हम अगले विषय की तरफ बढ़ते हैं। यह क्या होना चाहिए? शायद मुझे एक कहानी सुनानी चाहिए। कहानियाँ सत्य और इंसान के स्व-आचरण, क्रियाकलापों और परमेश्वर की आराधना की कसौटियों का जिक्र करती हैं। सुनो कि इस कहानी का सत्य से और मानव व्यवहार की कसौटियों से क्या संबंध है। यह शियाओजिया के जीवन में एक दिन का वर्णन करती है। कहानी का नायक शियाओजिया है और यह कहानी लगभग कितने समय की है? (एक दिन की।) एक दिन की। कुछ लोग शायद कहेंगे कि “क्या एक दिन की घटनाएँ बताने लायक भी होती हैं?” खैर, यह तो इस पर निर्भर करता है कि तुम क्या बताना चाहते हो। अगर यह सिर्फ गप्प है और सही-गलत के बारे में है तो यह सुनाने लायक नहीं है। लेकिन अगर यह सत्य का जिक्र करती है तो एक दिन तो क्या—एक मिनट की घटनाएँ भी सुनाने लायक होती हैं, सही कहा ना? (हाँ, बिल्कुल सही कहा।)

शियाओजिया अपने लक्ष्यों को लेकर जुनूनी और कर्तव्य निभाने के मामले में उत्साही व्यक्ति है और यह कहानी एक सुबह उसके उठने के बाद शुरू होती है। नींद से जागकर परमेश्वर के वचनों को पढ़ने और अपनी भक्ति का अभ्यास करने के बाद, शियाओजिया नाश्ता करने गया और वहाँ उसने एक कटोरी में दलिया और कुछ सब्जियाँ ली। फिर उसे वहाँ कुछ अंडे दिखाई दिए और उसने सोचा : “मुझे एक-दो अंडे ले लेने चाहिए। एक दिन में दो अंडे खाने से पर्याप्त पोषण मिल जाता है।” लेकिन अपना हाथ बढ़ाते हुए वह ठिठक गया और सोचने लगा, “एक लूँ या दो? अगर दूसरों ने मुझे दो अंडे लेते हुए देख लिया तो बुरा होगा। यह लालच है और दूसरे लोग सोचेंगे कि मैं पेटू हूँ। इसलिए एक अंडा लेना ही बेहतर है।” उसने दोबारा अंडा उठाने से पहले ही अपना हाथ वापस खींच लिया। तभी कोई और व्यक्ति अंडा लेने के लिए वहाँ आया और उसे देखते ही शियाओजिया बुरी तरह घबरा गया। उसने सोचा : “दरअसल, अंडा ना खाना ही सबसे बढ़िया रहेगा। मेरे पास दलिया और सब्जियाँ हैं, और साथ ही कुछ भाप से पकाए हुए पाव हैं, नाश्ते के लिए ये काफी हैं। मुझे इतना लालची नहीं होना चाहिए। और फिर अंडा खाने की इच्छा ही क्यों करना? अगर दूसरों ने देख लिया होता, तो कितना भयानक होता। क्या ऐसा करना ऐशो-आराम में लिप्त होना नहीं होता? मैं बिल्कुल नहीं खाऊँगा।” यह सोचकर शियाओजिया ने अंडा वापस रख दिया और कुछ देर बाद नाश्ता करके अपना कर्तव्य करना शुरू कर दिया। वह अपने कार्य करने में व्यस्त हो गया और एक-एक करके उन्हें खत्म करता गया। समय जल्दी बीत गया और पलक झपकते ही दोपहर के खाने का समय हो गया। बाकी सभी लोग खाना खाने चले गए, लेकिन शियाओजिया ने जब अपनी घड़ी देखी तो उसमें 12:40 बजे थे। “जरा ठहरो। जब बाकी सभी खाना खाने जा रहे हों तो मुझे खाने के लिए जाने की जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। अगर मैं बाकी सभी की तरह चला गया तो क्या मैं भी उनके जैसा नहीं हो जाऊँगा और पेटू नहीं लगूँगा? मुझे थोड़ा-सा और इंतजार कर लेना चाहिए।” उसने अपना कार्य जारी रखा, लेकिन उसके पेट ने उसका साथ नहीं दिया और गुड़गुड़ाना शुरू कर दिया। शियाओजिया ने अपना पेट पकड़ लिया और अन्यमनस्कता से कंप्यूटर की तरफ देखकर सोचने लगा : “मुझे तेज भूख लगी है! आज खाने में क्या है? क्या मांस बना होगा? अगर मैं थोड़ा-सा मांस खा पाता तो बहुत मजा आ जाता!” जिस दौरान वह ये बातें सोच रहा था उसके पेट में लगातार गुड़गुड़ाहट हो रही थी और बड़ी मुश्किल से वह तब तक इंतजार कर पाया जब तक कि बाकी सभी लोग खाना खाकर वापस नहीं आ गए। किसी ने उससे पूछा : “तुमने अभी तक खाना क्यों नहीं खाया? जल्दी जाओ, खाना ठंडा हो रहा है।” शियाओजिया ने कहा, “कोई बात नहीं। मैंने अभी तक अपना कार्य खत्म नहीं किया है। मैं उसे पूरा करने के बाद ही जाऊँगा।” “क्या खाना खाने के बाद अपना कार्य जारी रखना बेहतर नहीं होगा?” “कोई बात नहीं। मेरा कार्य जल्द खत्म हो जाएगा।” तो, शियाओजिया अपनी भूख को सहते हुए अपना कार्य करता रहा। दरअसल, अब उसे तेज भूख लग रही थी और उसका कार्य जारी रखने का बिल्कुल मन नहीं था, लेकिन फिर भी वह अपनी भूख सहते हुए दिखावा करता रहा। थोड़ी देर बाद उसने फिर से अपनी घड़ी देखी, 1:30 बज रहे थे और उसने सोचा : “अब ठीक है। अब शायद मुझे खाना खाने के लिए चले जाना चाहिए।” जैसे ही वह उठकर खाना खाने के लिए जाने लगा, एक बहन उसके लिए खाने की थाली लेकर आ गई और बोली : “कितनी देर हो गई है! तुम अभी तक खाना खाने क्यों नहीं गए? तुम चाहे कितने भी व्यस्त हो, तुम्हें फिर भी खाना खाना पड़ेगा और अगर तुमने समय पर खाना नहीं खाया तो तुम्हारा पेट खराब हो जाएगा।” जवाब में उसने कहा : “कोई बात नहीं। मैं अपना कार्य खत्म करके खाना खा लूँगा।” “तुम्हें जाने की जरूरत नहीं है। मैं तुम्हारा खाना ले आई हूँ, इसलिए जल्दी से खा लो।” “इतनी क्या जल्दी है? अभी तो मुझे भूख भी नहीं लगी।” जैसे ही उसने कहा कि उसे भूख नहीं लगी, उसके पेट में बादलों जैसी जोरदार गड़गड़ाहट हुई। शियाओजिया अपना पेट पकड़कर झेंपते हुए मुस्कुराया और बहन से बोला : “मेरे लिए फिर से खाना लाने की तकलीफ मत करना।” “लेकिन अगर मैं नहीं लाई तो खाना पड़े-पड़े ठंडा हो जाएगा और उसे फिर से गर्म करना पड़ेगा। इसे पहले ही एक बार दोबारा गर्म किया जा चुका है।” “फिर ठीक है, धन्यवाद!” शियाओजिया के मुँह में पानी आ रहा था, उसने बहन से अपना खाना ले लिया। थाली पर नजर डालते ही वह बहुत खुश हो गया : दो भाप से पकाए हुए पाव, सब्जियाँ, मांस और शोरबा। भाप से पकाए हुए पाव को देखकर शियाओजिया के मन में एक और ख्याल आया, और उसने बहन से कहा : “मैं दो पाव नहीं खा पाऊँगा। आजकल मैं बहुत व्यस्त रहता हूँ, अच्छी नींद नहीं आती है और भूख भी ज्यादा नहीं लगती है। अगर तुम मुझे दो पाव दोगी तो क्या यह बर्बादी नहीं होगी? एक वापस ले लो।” “कुछ नहीं होता। अगर तुम सच में इसे नहीं खा पाए तो इसे बाद में वापस भेज सकते हो,” बहन ने जवाब दिया और वहाँ से जाने लगी। शियाओजिया ने मन में सोचा : “जल्दी जाओ। मुझे तेज भूख लगी है।” उसने देखा कि आसपास कोई नहीं है, लेकिन वह फिर भी थोड़ा-सा असहज महसूस कर रहा था, उसने कटोरा उठाया और धीरे से एक घूँट पीया। फिर उसने मांस की तरफ देखा और कहा, “वाह! दम देकर पकाए हुए सुअर के मांस की खुशबू मुझे मीलों दूर से आ जाती है। लेकिन मैं इसे तुरंत नहीं खा सकता, क्योंकि मुझे पहले अपनी सब्जियाँ खानी होंगी। अगर मैंने सब्जियों से पेट भर लिया, तो फिर मैं कम मांस खाऊँगा, नहीं तो मैं मांस का आधा कटोरा खा जाऊँगा, और क्या वह शर्मनाक बात नहीं होगी?” उसने ऐसा करने से पहले एक पल सोचा। फिर उसने भाप से पकाए हुए पाव और सब्जियाँ चबा डालीं और सूप पी लिया। खाना खाने के दौरान उसे लगा कि वह थोड़ा-सा मांस खाना चाहता है, इसलिए उसने दम देकर पकाए हुए सुअर के मांस का एक टुकड़ा उठा लिया। टुकड़े को अपने मुंह में डालकर उसने अपनी आँखें बंद कर लीं और ध्यान से उसका स्वाद लेने लगा, “कितना स्वादिष्ट है यह! मांस तो वाकई अच्छा है, लेकिन मैं ज्यादा नहीं खा सकता। बस एक निवाला काफी होगा, फिर थोड़ी और सब्जियाँ खा लूँगा, थोड़ा और सूप पी लूँगा।” वह भाप से पकाए हुए पाव खाता रहा, लेकिन सब्जियाँ खाने के दौरान वह मांस को ताकता रहा और सोचता रहा, “क्या मुझे यह मांस खाना चाहिए? यह बहुत स्वादिष्ट है, इसे ना खाना वाकई शर्म की बात होगी।” उसके मुँह में फिर से पानी आना शुरू हो गया और उसने सोचा, “मुझे पता है क्या करना है! मैं पाव के टुकड़े करूँगा और उन्हें मांस के झोल में डुबो दूँगा। क्या यह मांस खाने जैसा ही नहीं है? इस तरह से दूसरे लोग देखेंगे कि मैं मांस नहीं खा रहा, लेकिन फिर भी मुझे मांस का सारा स्वाद मिल जाएगा। बहुत ही बढ़िया होगा!” यह सोचकर उसने भाप से पकाए हुए पाव को खाने से पहले उसका एक छोटा-सा टुकड़ा मांस के झोल में डाला और फिर उसे खाने लगा। उसे वह बहुत स्वादिष्ट लगा और उसका स्वाद बिल्कुल मांस जैसा था। फिर शियाओजिया ने फौरन पूरे पाव के टुकड़े कर दिए और उसे मांस के झोल में डाल दिया...। दस मिनट पूरे होने से पहले ही वह सारा पाव खा चुका था और शोरबा भी पी चुका था। उसने भाप से पकाया हुआ सिर्फ एक ही पाव खाया था और दूसरा पाव खाने की इच्छा को सहन करते हुए खुद को रोक लिया था। जब शियाओजिया ने योजना के अनुसार सारे व्यंजन खा लिए, तो उसका पेट लगभग भर चुका था और उसे नहीं लग रहा था कि उसे और खाने की जरूरत है। फिर उसने सोचा : “ओह, इतनी जल्दी-जल्दी खाना वाकई सही नहीं है, इससे लगता है जैसे मैं बहुत भूखा हूँ। मैं सच में बहुत भूखा था, लेकिन यह अच्छा नहीं है कि लोग मुझे ऐसी हालत में देखें। मुझे धीरे-धीरे खाना चाहिए। लेकिन अब मैं क्या करूँ, मैं तो पहले ही खाना खत्म कर चुका हूँ? खैर, मेरे पास एक तरकीब है। मैं इसे दस मिनट में वापस भेज दूँगा।” उसने अपनी घड़ी हाथ में ली और उसे घूरने लगा, “पाँच मिनट ... दस ... पंद्रह ... ठीक है, दो बज गए। वाह, अब वापस भेज देना चाहिए!” खुशी-खुशी उसने बाकी बचे सुअर के मांस और पाव को वापस भेज दिया।

जब शियाओजिया लौटा तो दोपहर के दो बज चुके थे। उसके भाई-बहन दोपहर के भोजनावकाश पर जा चुके थे और उसके पास खुद के लिए करने को कुछ भी नहीं था, इसलिए उसे वाकई बहुत बोरियत हो रही थी। उसने सोचा : “क्या मुझे भी झपकी ले लेनी चाहिए? खाना खाने के बाद झपकी लेना हमेशा अच्छा होता है। लेकिन नहीं, अगर मैं भी बाकी सभी की तरह सो गया, तो मैं क्या बन जाऊँगा? मैं नहीं सो सकता। मुझे टिके रहना होगा। लेकिन मैं खुद को कैसे जगाए रखूँ? अगर मैं खड़ा रहा तो सो नहीं पाऊँगा, लेकिन अगर मैं हमेशा खड़ा रहा और मान लो कोई अचानक अंदर आ गया, तो वह चौंक जाएगा। नहीं, मैं खड़ा नहीं रह सकता। खैर, फिर मैं बस अपने कंप्यूटर के सामने बैठ जाता हूँ। अगर किसी ने मुझे देख लिया तो वह बस यही सोचेगा कि मैं काम कर रहा हूँ, लेकिन मैं तो असल में आराम कर रहा होऊँगा। बहुत ही बढ़िया चाल है।” यह सोचकर वह स्वाभाविक रूप से अपने कंप्यूटर के सामने बैठ गया और उसे एकटक देखता रहा, लेकिन पाँच मिनट के अंदर ही वह कीबोर्ड पर ही सो गया और खर्राटे भरने लगा। चालीस मिनट बीतने के बाद अचानक शियाओजिया अपनी गहरी नींद से जागा और झट से खड़ा हो गया, “मैं तो खड़ा था ना? फिर मुझे नींद कैसे आ गई?” उसने अपनी घड़ी पर नजर डाली और देखा कि देर हो रही थी। इसलिए वह अपना चेहरा धोने चला गया जबकि उसके आसपास कोई नहीं था। विश्रामकक्ष में अपनी शक्ल देखकर वह बोला, “ओह, नहीं! मेरा पूरा चेहरा कीबोर्ड के निशानों से भर गया है! मैं इस हालत में दूसरों के सामने कैसे जा सकता हूँ?” उसने जल्दी-जल्दी अपना चेहरा मलना शुरू किया, उसे रगड़ा और थपथपाया और इस तरह विश्रामकक्ष में उसे काफी समय लग गया। फिर उसने शीशे में अपनी शक्ल देखी, अब कीबोर्ड के निशान काफी हद तक मिट चुके थे, और दिल ही दिल में खुश होकर उसने सोचा : “जब तक कोई वाकई ध्यान से नहीं देखता, किसी को कभी पता नहीं चलेगा।” इसके बाद उसने अपने बालों में कंघी की और अपने कॉलर को सीधा किया। अचानक उसने देखा कि उसके हल्के रंग की कमीज का कॉलर थोड़ा चिकना हो गया है और पास से देखने पर उसने पाया कि उसके कफ भी थोड़े मैले हो गए हैं। उसने सोचा, “मैंने फिलहाल कुछ दिनों से अपने कपड़े ना तो धोए हैं और ना ही बदले हैं, लेकिन कपड़ों को ना धोने का कुछ तो फायदा है। थोड़ी-सी मैल से कुछ नुकसान नहीं होता और जरा-सी गंदगी से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। वैसे भी, थोड़ा मैला-कुचला रहने से इंसान दिखने में ज्यादा आध्यात्मिक भी तो लगता है, है ना?” बस, फिर उसने अपनी कमीज का कॉलर और आस्तीन बाहर निकाल लिए और जैकेट की आस्तीनों को ऊपर चढ़ा लिया जिससे सारी मैली जगहें साफ-साफ दिखाई देने लगीं। इससे उसे गहरी संतुष्टि मिली, वह खुश हो गया और शांतिपूर्वक विश्रामकक्ष से बाहर निकल आया। कुछ देर बाद सारे लोग अपनी-अपनी जगहों पर वापस आ गए और अपने काम में व्यस्त हो गए। जब शियाओजिया ने देखा कि बाकी सभी लोग वहाँ मौजूद हैं, तो वह बोला : “तुम लोगों ने लंबी झपकी नहीं ली! इस कारण तुम लोगों को सचमुच कष्ट उठाना पड़ सकता है और कीमत चुकानी पड़ सकती है! मैंने तो झपकी भी नहीं ली, लेकिन बस अपने चेहरे पर पानी के छींटें मारने से पहले एक मिनट अपनी आँखों को आराम जरूर दिया। नहीं तो मुझमें बिल्कुल ताकत नहीं रहती।” किसी ने कोई जवाब नहीं दिया। अब उसे बोरियत महसूस होने लगी, इसलिए वह अपना कार्य करने लगा। उसने दोपहर के खाने में बहुत सारा शोरबा पीया था, इसलिए वह बार-बार शौचालय जाना चाहता था लेकिन उसने यह सोचकर अपनी इच्छा को रोक लिया : “अगर मैं चला गया, तो क्या लोग मुझे आलसी नहीं समझेंगे? इससे बदनामी होगी, इसलिए मैं नहीं जा सकता।” इसलिए उसने खुद पर काबू रखा और तब तक तकलीफ सहता रहा जब तक आखिर में कोई और पेशाब करने नहीं गया और तब उसने देखा कि अब मौका है। वह जल्दी से कतार में लग गया और सोचने लगा, “भीड़ के पीछे-पीछे चलना बहुत अच्छा है, क्योंकि अब मेरे बारे में कोई कुछ नहीं कहेगा।”

उस दिन दोपहर में बहुत काम था। शियाओजिया ने बहुत सारा कार्य किया, अमुक व्यक्ति के साथ संगति की, अमुक व्यक्ति से सवाल किए, संसाधनों की तलाश की और अपने कर्तव्यों से जुड़े सभी तरह के कार्य पूरे किए। इतनी सारी दौड़-धूप के बाद आखिर में शाम के खाने का समय हो गया। इस बार शियाओजिया दूसरों से बस थोड़ी ही देर पीछे रहा, लेकिन फिर भी उसने लगभग समय पर खाना खत्म कर लिया। शाम के खाने के बाद का समय शियाओजिया के दिन का सबसे खुशी का समय था, क्योंकि सिर्फ यही वह समय था जब वह आराम से, अपनी निंदा या दूसरों की आलोचना के बिना, शांत दिल से अपनी मनपसंद कॉफी पी सकता था। ऐसा क्यों? क्योंकि उसके पास इसके पर्याप्त कारण थे कि उसे कॉफी पीने की जरूरत क्यों पड़ी, और ये कारण बाकी सभी की नजरों में पूरी तरह से जायज थे। इसलिए यह उसका सबसे खुशी का समय था। कॉफी बनाते हुए वह मन ही मन बड़बड़ाया, “ओफ्फ, आज मुझे फिर से ज्यादा देर तक कार्य करना पड़ेगा। और मुझे यह भी नहीं पता कि कितनी देर तक करना पड़ेगा। चलो देखता हूँ कि यह कॉफी कितनी देर तक मुझे ताकत दे पाती है।” उसने ताजी-ताजी बनाई कॉफी के कप को धम्म से टेबल पर रखा, मानो सभी से कह रहा हो, “और बोलो? मैं तो अपनी कॉफी पी रहा हूँ, तुम लोग मेरा क्या बिगाड़ सकते हो?” उसने अपने आसपास के लोगों पर नजर दौड़ाई। कोई भी उसकी तरफ नहीं देख रहा था, लेकिन फिर भी उसने बेपरवाही से अपना कप उठाया और कॉफी का एक घूँट लेकर सोचने लगा : “सभी कहते हैं कि यह कॉफी अच्छी है और यह वाकई अच्छी है। हर रोज इसका स्वाद अलग होता है जिससे अलग अनुभव मिलता है। यह शानदार है!” खुश होकर उसने गर्व से अपनी कॉफी पी और फिर अन्यमनस्कता से वह अपने शाम के कार्य के बारे में सोचने लगा। उसके मन में कोई खास लक्ष्य नहीं था और सारे दिन की दौड़-धूप के बाद वह थक चुका था, लेकिन फिर भी वह जबर्दस्ती अपना कार्य करता रहा। ना वह झपकी ले सकता था और ना ही दूसरों को यह देखने दे सकता था कि वह थक गया है या अपना कार्य या कर्तव्य सँभालने में उसका रवैया लापरवाह, गैर-जिम्मेदार या अपमानजनक है। उसने जबर्दस्ती अपनी चुस्ती बनाए रखी और अपने कंप्यूटर के सामने बैठ कर कार्य करता रहा और स्वाभाविक रूप से कॉफी के बाद कॉफी पीता रहा। वह जितनी ज्यादा कॉफी पी रहा था, उसमें उतनी ज्यादा चुस्ती आ रही थी और उसे उतनी ही कम नींद आ रही थी। शियाओजिया कभी-कभार अपनी घड़ी पर नजर डाल लेता था, “एक बज चुका है, लेकिन मैं नहीं सो सकता क्योंकि मैंने अपने लिए तीन बजे सोने का लक्ष्य तय किया हुआ है। मैं 2:50 बजे भी नहीं सो सकता, क्योंकि इससे मेरा वादा टूट जाएगा और मेरे पास परमेश्वर को देने के लिए कोई सफाई नहीं होगी। एक सृजित प्राणी को यह वादा अटूट रखना चाहिए, इसलिए मुझे इसका सम्मान करना होगा। मैंने कहा था कि मैं तीन बजे सोऊँगा, इसलिए मैं तीन बजे ही सोऊँगा, चाहे मुझे इसके लिए बहुत सारी कॉफी क्यों ना पीनी पड़े।” तो इस तरह वह लगातार कॉफी पीता रहा, अपनी थकान का प्रतिरोध करता रहा और मानसिक तौर से खुद को बेबस और नियंत्रित करता रहा। तीन बजे शियाओजिया को एक जरूरी कार्य पूरा करना था, इसलिए उसने अपना फोन लिया और उससे यह संदेश भेजा : अमुक बहन, मैं शियाओजिया हूँ। मुझे तुम्हें एक जरूरी बात याद दिलानी है, मत भूल जाना कि कल सुबह 10 बजे एक सामूहिक सभा है। इसमें भाग लेना अनिवार्य है और तुम देर मत करना। हस्ताक्षरित : शियाओजिया। संदेश भेजने के बाद शियाओजिया ने राहत की साँस ली और साथ ही, यह भी सोचा : “इसे भेजना एक बात है, लेकिन अगर उसे यह नहीं मिला, तो फिर क्या होगा? क्या उसे पता है कि मैंने उसे एक संदेश भेजा है? मैं अभी नहीं सो सकता। मुझे इंतजार करके यह देखना होगा कि क्या वह जवाब देती है।” आधा घंटा इंतजार करने के बाद भी जब कोई जवाब नहीं आया, तो उसने सोचा : “क्या वह सो गई है? वह इतनी जल्दी कैसे सो गई? कितनी निकम्मी है, तीन बजे ही सो गई।” वह तब तक इंतजार करता रहा जब तक कि सुबह 3:50 बजे उस बहन ने यह जवाब नहीं दिया : मैं कल सुबह 10 बजे के बारे में नहीं भूली हूँ। आशा है कि तुम भी नहीं भूलोगे और समय पर आ जाओगे। यह पढ़ने के बाद शियाओजिया ने सोचा, “ओह, यह किस तरह की इंसान है? यह मुझसे भी देर से सोने कैसे जा सकती है?” लेकिन वह और बर्दाश्त नहीं कर पाया। “बस और कॉफी नहीं पीनी! अगर मैंने और पी, तो मैं आज रात बिल्कुल नहीं सोऊँगा। अब मुझे सोने चले जाना चाहिए, क्योंकि कल मुझे सुबह 5:30 बजे, नहीं तो ज्यादा से ज्यादा 6 बजे तो उठना ही पड़ेगा। मैं अपने दूसरे भाई-बहनों से देर से नहीं उठ सकता, क्योंकि उनके जागने के बाद मुझे उन सबको दिखाना ही होगा कि मैं प्रार्थना कर रहा हूँ, परमेश्वर के वचन पढ़ रहा हूँ और धर्मोपदेश सुन रहा हूँ। इसलिए मैं देर से नहीं उठ सकता। बस इस संदेश के कारण ही मैं जल्दी सोने नहीं जा पाया। लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, दूसरों को पता है कि मैं रात में देर तक जाग रहा था। वैसे मैंने अपना लक्ष्य तो हासिल कर लिया है और मैं कल चार बजे तक सो जाने की कोशिश करूँगा।” हालाँकि शियाओजिया सोचने की कोशिश कर रहा था, लेकिन उसे इतने चक्कर आ रहे थे कि अपने कमरे में वापस जाकर वह अपने कपड़े भी नहीं उतार पाया। पहले से ही आधी नींद में डूबा वह अपने बिस्तर पर पसर गया, लेकिन फिर भी उसने जबर्दस्ती खुद को याद दिलाया : सुबह अंडे नहीं खाना, दोपहर के खाने में सिर्फ भाप से पकाया हुआ एक पाव खाना, दम देकर पकाए हुए सुअर का मांस नहीं खाना, सुबह तीन बजे सोने चले जाना, अभी भी भेजने के लिए संदेश बचे हैं...। शियाओजिया ऐसे ही लगातार सोचता रहा जब तक आखिरकार वह निढाल होकर शांत नहीं लेट गया और फिर सुस्ती, थकान, सपनों और भ्रम के जाल में उलझकर उसे नींद आ गई। तो यह था शियाओजिया के जीवन में एक दिन।

तो बताओ, ये सब क्या था? क्या इस तरह से हमेशा दिखावा करना शियाओजिया के लिए थकाऊ नहीं था? (हाँ, था।) सारा दिन एक ही चीज करते रहने से रोबोटों को थकान नहीं होती है, क्योंकि उनके पास मन या चेतना नहीं होती है, लेकिन लोगों के लिए यह थका देने वाली चीज है। इतना थक जाने के बाद भी शियाओजिया इसी तरह क्यों जी रहा था? आखिर उसने ऐसा क्यों किया? क्या उसके पास कोई योजना थी? (हाँ, थी।) उसकी योजना किस पर केंद्रित थी? (दूसरों के सामने दिखावा करने पर।) क्या दिखावा करने से उसे कोई फायदा होने वाला था? (इससे उसे लोगों से सराहना मिल सकती थी।) इससे उसे लोगों से सराहना मिल सकती थी। क्या शियाओजिया का तरीका तुम लोगों को जाना-पहचाना लग रहा है? किस तरह के लोग ऐसा व्यवहार करते हैं? (फरीसी।) सही कहा। फरीसी अच्छे आचरण अपनाते हैं, और ऐसे आचरण और अभ्यास अपनाते हैं जो लोगों की धारणाओं के अनुरूप होता है और फिर वे दूसरों के आगे उनका प्रदर्शन करते हैं ताकि वे अच्छे दिखें और उनकी आराधना की जाए। वे लोगों को गुमराह करने का लक्ष्य हासिल करने के लिए इस तरीके का उपयोग करते हैं। उनके इस तरह से ढोंग करने और दूसरे लोगों के आगे दिखावा करने के लिए सभी प्रकार के अच्छे आचरणों का उपयोग करने के पीछे उनकी मूल प्रकृति क्या है? यह दिखावा, फरेब और गुमराह करने वाली प्रकृति है—और भी कुछ है? (झूठी आध्यात्मिकता है।) शियाओजिया के दिन में ऐसी कितनी चीजें थीं जो स्वभाव से संबंधित थीं और जो उन सभी लोगों में भी मौजूद होती हैं जो ढोंग करने के काबिल हैं? अंडे खाना, भाप से पकाए हुए पाव और दम देकर पकाया हुआ सुअर का मांस खाना और कॉफी पीना। ये सभी बाहरी चीजें हैं, लेकिन इनमें तुम्हें क्या सार दिखाई दे रहा है? दिखावा और आत्म-नियंत्रण। किस चीज का दिखावा? (कष्ट सहने का दिखावा।) लोगों की नजर में कष्ट सहना अच्छी चीज है या बुरी? (अच्छी चीज है।) कष्ट सहना अच्छा आचरण है जिसकी सभी बेहद सराहना करते हैं। लोग इसे क्या मानते हैं? वे इसे सत्य का अभ्यास मानते हैं। तो, शियाओजिया कष्ट सहने और कीमत चुकाने से नहीं हिचकिचाया। उसने क्या-क्या कष्ट सहे? उसने बढ़िया व्यंजन नहीं खाया, वह देर तक जगा रहा, सुबह जल्दी उठ गया और उसने अपने शरीर को अनुशासित किया। इस प्रकार के कष्टों की प्रकृति क्या है? ये सभी दिखावा हैं। उसने सत्य या धार्मिकता के लिए नहीं, बल्कि दूसरों से सम्मान और श्रद्धा प्राप्त करने और अपने लिए यश और गौरव अर्जित करने के लिए सारे कष्ट सहे। क्या उसने सत्य के लिए कष्ट सहे? (नहीं, सत्य के लिए नहीं।) उसके कौन-से कार्य सत्य सिद्धांतों के अनुरूप थे और क्या शियाओजिया सत्य की खातिर अपने खिलाफ विद्रोह कर रहा था और अपने व्यक्तिगत हितों की उपेक्षा कर रहा था? क्या इनमें से कोई कार्य ऐसा था? (नहीं।) उसके कष्टों की प्रकृति क्या थी? क्या वह सत्य का अभ्यास करना था? क्या वह सत्य के लिए उसके प्रेम की अभिव्यक्ति थी? (नहीं, ऐसा नहीं था।) खैर, तो फिर यह क्या था? (यह पाखंड था।) यह पाखंड था, यह सत्य से विमुख होना था, यह फरेब, दिखावा, ढोंग और गुमराह करना था; यह ऐसे कार्य और फैसले थे जो पूरी तरह से उसकी अपनी कल्पना और धारणाओं पर आधारित थे, और जो उसके खुद के हितों के इर्द-गिर्द घूम रहे थे, और इनका सत्य से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं था। उसे सत्य की तलाश नहीं थी, और इसलिए उसके क्रियाकलाप भी सत्य नहीं थे; न केवल उनका सत्य से कोई संबंध नहीं था, बल्कि वे उसके दिल की गहराइयों में बसी सामान्य मानवीय जरूरतों के भी पूरी तरह विपरीत थे। क्या अंडे खाना पाप है? (नहीं, ऐसा नहीं है।) लेकिन शियाओजिया को अंडे खाना लालच लगा। अंडे एक किस्म का भोजन हैं जिसे परमेश्वर ने इंसान के लिए बनाया है। अगर तुम्हारे पास उन्हें खाने का साधन है तो फिर उन्हें खाना लालच नहीं है, लेकिन अगर तुम्हारे पास उन्हें खाने का साधन नहीं है और तुम दूसरों के हिस्से के अंडे चुराकर खा जाते हो तो फिर वह लालच है। शियाओजिया ने इस मामले को कैसे परिभाषित किया? उसका मानना था कि अंडे खाना लालच है और अगर दूसरों ने उसे अंडे खाते हुए देख लिया तो यह और भी बड़ा लालच होगा। उसने सोचा कि अगर वह सबकी नजरों से छिपकर, उनकी पीठ पीछे अंडे खा सके तो वह लालच नहीं कहलाएगा। लालच को मापने के लिए उसका मापदंड क्या है? यह इस पर आधारित था कि क्या कोई देख रहा है या नहीं। क्या उसने इसे परमेश्वर के वचनों के आधार पर किया? नहीं, यह उसका अपना नजरिया था। दरअसल, क्या अंडे खाने के मामले में दूसरों का कोई विचार या नजरिया है? (नहीं, उनका नहीं है।) यह पूरी तरह से शियाओजिया का मनगढंत सिद्धांत था। उसका मानना था कि सुबह के नाश्ते में अंडे खाने का मतलब लालची होना, ऐशो-आराम में लिप्त होना और देह को महत्व देना है। उसके नजरिए के आधार पर फिर क्या अंडे खाने वाले सभी लोग ऐशो-आराम में लिप्त नहीं हो रहे हैं और देह को महत्व नहीं दे रहे हैं? उसका निहित मतलब यह था : “जब तुम लोग अंडे खाते हो तो तुम देह को महत्व देते हो। मैं देह को महत्व नहीं देता, मैं खुद को रोक सकता हूँ, इसलिए मैं अंडे नहीं खाता। तुम मेरे सामने अंडे रखकर देख लो, मैं उन्हें हाथ में उठा लेने के बाद भी वापस रख सकता हूँ। मुझमें ऐसा ही संकल्प और दृढ़निश्चय है, और मैं सत्य से इतना प्रेम करता हूँ। क्या तुम लोगों में ऐसा करने का दम है? अगर नहीं है, तो इसका मतलब है कि तुम्हें सत्य से प्रेम नहीं है।” उसने अपने विचार को क्या माना? सही और गलत को मापने का मानक। क्या यह ढोंग नहीं था? (हाँ, था।) यह ढोंग था।

शियाओजिया ने दूसरी जो अभिव्यक्ति दिखाई वह यह थी कि दोपहर के खाने का समय होने पर भी वह खाना खाने नहीं गया। इसके बजाय उसने क्या किया? (उसने टाल दिया।) उसने अपनी भूख दबा दी और खाने के लिए जाना टाल दिया। लेकिन क्यों? (दूसरों के आगे दिखावा करने के लिए।) वह नाटक कर रहा था और दूसरों को दिखाने के उद्देश्य से इसे कर रहा था। वह इससे दूसरों को क्या आभास कराना और समझाना चाहता था? वह दूसरों को दिखाना चाहता था कि वह बहुत ज्यादा कष्ट सह सकता है और अपने कार्य के प्रति बहुत ही मेहनती, वफादार, गंभीर और जिम्मेदार है! वह चाहता था कि लोग देखें कि वह वाकई अतिमानव है! फिर वह अपना लक्ष्य हासिल कर लेता; उसे इसी मूल्यांकन की चाह थी। उसके लिए उस मूल्यांकन के क्या मायने थे? वह उसका जीवन था, उसकी जान थी। क्या यह सत्य के लिए प्रेम है? (नहीं, यह नहीं है।) तो, उसके जैसे लोगों को क्या पसंद है? वे दिखावा करने से नहीं हिचकिचाते, साजिश रचते हैं और छलने की योजना बनाते हैं और मुखौटे लगाकर दूसरों को धोखा देते हैं और उन्हें दिखाते हैं कि वे खुद कितना ज्यादा कष्ट सहन कर सकते हैं जिससे उन्हें ऐसी टिप्पणियाँ मिलती हैं : “तुममें वाकई कष्ट सहने की क्षमता है। तुम ऐसे व्यक्ति हो जिसे परमेश्वर से सच्चा प्रेम है और तुम अपना कर्तव्य वफादारी से करते हो।” वे असली तथ्यों को छिपाने के लिए झूठे दिखावों और चालाकियों का उपयोग करने, परमेश्वर को धोखा देने और दूसरे लोगों को छलने से नहीं हिचकिचाते, और वे ये सब कुछ दूसरों से तारीफ या अनुकूल मूल्यांकन प्राप्त करने के लिए करते हैं। यह किस तरह का स्वभाव है? (यह दुष्ट स्वभाव है।) यह दुष्ट है। वे दिखावा करने, नाटक करने और चकमा देने में कितने माहिर होते हैं! यह तो बस खाना था, खाने के लिए शांति से उठकर चले जाने में क्या समस्या थी? कौन जीवित व्यक्ति खाना नहीं खाता है? क्या समय पर खाना खाना पाप है? क्या भूख लगने पर खाने के लिए कुछ ढूँढना पाप है? (नहीं, ऐसा नहीं है।) यह शारीरिक जरूरत है; यह उचित है। ऐसे लोग सारी उचित जरूरतों को अनुचित ठहराते हैं और उनकी निंदा करते हैं। वे किस चीज का प्रचार करते हैं? वे लगातार शारीरिक अनुशासन का प्रचार करते हैं और ऐसा करके सच्चे तथ्यों को छिपाते हैं और दूसरों के सामने एक झूठा मुखौटा पेश करते हैं ताकि दूसरे लोग देख सकें कि वे कैसे कष्ट सहते हैं, कैसे ऐशो-आराम में लिप्त होने से बचते हैं और कैसे अपने कार्य के लिए कोई भी कीमत चुकाते हैं और अपना समय, ताकत और सब कुछ समर्पित कर देते हैं। वे लोगों को यही दिखाना चाहते हैं। क्या वे वास्तव में ऐसा करते हैं? नहीं, वे ऐसा नहीं करते हैं। वे झूठे दिखावे करके दूसरों को गुमराह करते हैं और यह दुष्ट स्वभाव की अभिव्यक्ति है। वे खाना खाने जैसी एक मामूली चीज के लिए भी इस हद तक जा सकते हैं—किस तरह के लोग हैं ये? क्या सामान्य मानवता वाले व्यक्ति को ऐसा करना चाहिए? (नहीं, यह नहीं है।) यह नहीं है। यह बहुत बड़ी धूर्तता है! एक मामूली चीज को लेकर किसी व्यक्ति के इतना ज्यादा दिखावा करने की बात सुनकर क्या ज्यादातर लोग अपनी स्वीकृति देंगे या उनका मन घृणा से भर जाएगा? (उनका मन घृणा से भर जाएगा।) क्या तुम कभी इस तरह से व्यवहार कर सकते हो? (कभी-कभी।) इतने गंभीर तरीके से? (नहीं।) भूख सहन करना मुश्किल होता है, लेकिन कुछ लोगों में इस कष्ट को सहने की क्षमता होती है। अगर तुम उन्हें परमेश्वर के वचनों के प्रति समर्पण करने, उसके वचनों के लिए प्रयास करने, परमेश्वर के वचनों के सिद्धांतों के अनुसार कार्य करने, और ईमानदारी से बात करने के लिए कहोगे, तो उन्हें यह बेहद श्रमसाध्य और मुश्किल लगेगा। इन लोगों के लिए अपने हितों और गर्व का त्याग करना आकाश पर चढ़ने से भी मुश्किल होगा, लेकिन वे परमेश्वर के वचनों की उपेक्षा करने, अपनी कल्पना के अनुसार कार्य करने और अपने दैहिक हितों की रक्षा करने के इच्छुक हैं, चाहे इसके लिए उन्हें कोई भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े। क्या यह सत्य से प्रेम नहीं करने की अभिव्यक्ति नहीं है? (हाँ, है।) यह एक पहलू है।

शियाओजिया ने और कौन-सी अभिव्यक्तियाँ दिखाईं? उसे बहुत तेज नींद आ रही थी, लेकिन फिर भी वह सोने नहीं गया। जरा बताओ, अगर किसी को नींद आ रही हो और वह थोड़ी देर के लिए सोने चला जाए या झपकी ले ले ताकि उसे अपने कार्य के लिए ज्यादा ताकत मिल जाए तो क्या यह उचित नहीं है? (हाँ, है।) यह उचित है। क्या सो जाने के लिए शियाओजिया की कोई निंदा करेगा? (नहीं, कोई नहीं करेगा।) तो, अगर कोई उसकी निंदा नहीं करने वाला था तो फिर वह इतना डरा हुआ क्यों था? उसे किस बात का डर सता रहा था? (यही कि कहीं उससे कोई चूक न हो जाए।) सही कहा, उसे डर था कि कहीं उससे कोई चूक न हो जाए। अपनी कल्पनाओं में वह मानता था कि सभी लोग उसका बेहद सम्मान करते हैं और सभी सोचते हैं कि वह कष्ट सहने की खास क्षमता रखता है और अत्यंत धार्मिक है। उसे लगता था कि अगर उसका असली चेहरा लोगों के सामने उजागर हो गया और सभी को पता चल गया कि वह वैसा व्यक्ति नहीं है जैसा वे समझते हैं तो उसकी सारी अच्छी छवि खराब हो जाएगी। वह इस बात का ख्याल भी बर्दाश्त नहीं कर सकता था और इसलिए उसने खुद को झपकी लेने से भी रोककर रखा। उसने अपने साथ इतनी ज्यादा सख्ती बरती। वह किस तरह का व्यक्ति है? क्या वह मानसिक रूप से बीमार नहीं है? इस तरह के लोग अक्सर धर्मोपदेश सुनते हैं, परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं और संगति करने के लिए इकट्ठा होते हैं तो फिर वे सत्य पर ध्यान केंद्रित क्यों नहीं कर पाते? सत्य सिद्धांतों पर गहन चिंतन करना तुम्हारे लिए बढ़िया रहेगा। देखो कि परमेश्वर के वचन क्या कहते हैं : क्या परमेश्वर के वचनों में झपकी लेने वाले लोगों के बारे में कोई घोषणा मौजूद है? (नहीं, कोई घोषणा नहीं है।) परमेश्वर ने इस मामले पर कोई घोषणा नहीं की है और न ही उसने इसका कोई जिक्र किया है। सामान्य मानवता की सोच रखने वाले हर व्यक्ति को यह पता होना चाहिए कि इसे कैसे सँभालना है। नींद आने पर झपकी ले लेना उचित है। गर्मियों के दिनों में दोपहर को विश्राम करना उचित है। खास तौर पर, कुछ बुजुर्ग लोगों को जो अपने शरीर, ऊर्जा स्तर वगैरह को बरकरार नहीं रख पाते हैं, दोपहर के खाने के बाद थोड़ी देर सोने की जरूरत पड़ती है। यह उनकी जीवनशैली से जुड़ी आदतों पर नहीं, बल्कि उनकी शारीरिक जरूरतों पर आधारित है। परमेश्वर ने तुम्हें सामान्य मानवता की जागरूकता, चेतना और प्रतिक्रियाएँ दी हैं ताकि तुम अपने कार्य और परिवेश के अनुसार अपने दैनिक आहार, कड़ी मेहनत और विश्राम को सँभाल पाओ; तुम्हें अपनी सेहत बर्बाद नहीं करनी चाहिए। मिसाल के तौर पर, मान लो कि तुम खाने में बहुत भव्य व्यंजन नहीं खाते हो और कहते हो, “परमेश्वर लोगों को अच्छा खाना खाने की अनुमति नहीं देता है; हमेशा अच्छा खाना खाने से लोग लालची बन जाते हैं।” परमेश्वर ने ऐसा कभी नहीं कहा और वह लोगों से इस तरह की कोई अपेक्षा नहीं रखता है। लेकिन शियाओजिया ने ऐसा ही सोचा, और उसने अनुमान लगाया कि शायद परमेश्वर भी ऐसा ही सोचता है। उसने सोचा कि अगर कोई व्यक्ति जल्दी सो जाता है तो इसका मतलब है कि वह ऐशो-आराम में लिप्त हो रहा है और परमेश्वर को यह चीज पसंद नहीं है। क्या यह सत्य को नहीं समझना नहीं है? (हाँ, ऐसा ही है।) जब शियाओजिया को सत्य समझ नहीं आया तो वह इसे समझने का प्रयास कर सकता था, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया, उसने बस अपनी व्यक्तिपरक इच्छा के अनुसार कार्य किया। वह इसे किस हद तक ले गया? उसने एक दिन में तीन-चार कप कॉफी पी, बस इसलिए ताकि वह रात को देर तक जाग सके। कुछ लोग कहते हैं : “मैंने पिछले कुछ वर्षों में अपना कर्तव्य करने के दौरान बहुत सारी कॉफी पी है ताकि मैं परमेश्वर के घर का कार्य कर सकूँ।” अगर कोई दूसरा व्यक्ति उससे पूछता है, “किसने तुम्हें कॉफी पीने के लिए मजबूर किया? क्या तुमने खुद उसे पीने का फैसला नहीं लिया था?” वे मन में सोचेंगे, “तुम्हें पता भी है कि मैं कॉफी क्यों पीता हूँ? मैं देर तक जागने के लिए नहीं पीता, मैं वजन घटाने के लिए पीता हूँ। अच्छा, तो तुम्हें नहीं पता था? लेकिन मैं यह बात तुम्हें नहीं बता सकता, क्योंकि फिर तुम्हें पता चल जाएगा। अगर तुम मुझसे पतले हो गए तो क्या मैं पतला दिखूँगा?” यह तो सोची-समझी चाल है, है ना? इसमें कौन-सा नजरिया और विचार शामिल हैं? क्या इसमें सामान्य मानवता की समझ या तार्किकता शामिल है? (नहीं, इसमें नहीं है।) नहीं, इसमें सिर्फ अक्ल की लड़ाई, चालें और साजिशें, दिखावा, ढोंग और गुमराह करना शामिल है। इसमें बस यही है, और कुछ नहीं। यह कुछ भी घटने पर सोची-समझी चालें चलना है। वे अपने ईमानदार विचार और ख्याल किसी भी दूसरे व्यक्ति को बिल्कुल नहीं बताएँगे, फिर सभी को जानने देना या परमेश्वर को देखने देना तो बहुत दूर की बात है। उनकी मानसिकता ऐसी नहीं है कि “मैं खुली किताब हूँ। मेरे कार्य मेरी सोच के अनुरूप हैं और मैं तो बस ऐसा ही हूँ।” उनकी मानसिकता निश्चित रूप से यह नहीं है, तो फिर क्या है? वे जितना हो सके उतना छिपाने और दिखावा करने का प्रयास करते हैं, क्योंकि वे डरते हैं कि लोगों के मन में उनकी जो छवि है वह पर्याप्त रूप से महान, धार्मिक या आध्यात्मिक नहीं है।

शियाओजिया देर तक क्यों जागना चाहता था? ऐसे बहुत-से कार्य हैं जिनके लिए रात को देर तक जागने की जरूरत नहीं पड़ती है और 10 बजे के बाद लोगों को अक्सर नींद आने लगती है। अगर फिर भी वे कार्य करते रहें तो वह असरदार नहीं होता, क्योंकि लोगों में सीमित ऊर्जा होती है। लेकिन शियाओजिया ने हमेशा अपने साथ जबर्दस्ती की और कभी यह परवाह नहीं की कि क्या ऐसा करना असरदार है, जबकि उसे अच्छी तरह से मालूम था कि यह असरदार नहीं है। उसने सोने से पहले संदेश क्यों भेजा? (ताकि दूसरे लोग ध्यान दें।) दूसरों को इसका गवाह बनाने के लिए वह तीन बजे सोने गया। अगर तुम पूरी रात सोओगे ही नहीं तो क्या अंत में तुम्हीं को नींद नहीं आती रहेगी? और क्या इसके लिए तुम खुद जिम्मेदार नहीं होओगे? कुछ लोग रात को देर तक जागते हैं और सुबह 3 बजे संदेश भेजते हैं। जब संदेश पाने वाला व्यक्ति 4 बजे जवाब देता है तो वे जवाब देने के लिए 5 बजे तक इंतजार करते हैं ताकि यह दिखा सकें कि वे और भी देर से सोते हैं। वे दोनों खुद को कष्ट देते हैं और इस तरीके से एक दूसरे को नुकसान पहुँचाते हैं, और अंत में दोनों में से कोई भी सारी रात नहीं सो पाता है। क्या ये दोनों लापरवाह बेवकूफ नहीं हैं? यह किस तरह का व्यवहार है? यह मूर्खतापूर्ण व्यवहार है। इस तरह का व्यवहार कहाँ से आता है? यह सब भ्रष्ट स्वभाव से आता है। फिलहाल, हम इस पर विचार नहीं करेंगे कि इस व्यवहार की उत्पत्ति किस भ्रष्ट स्वभाव से होती है, हम बस यही कहेंगे कि यह बहुत ही बेहूदा है। ये लोग परमेश्वर के किसी भी वचन को अभ्यास में लाकर इस तरह के बेहूदा व्यवहार और अभ्यास को बदल सकते हैं। उसका कोई भी वचन उन्हें शांति से और सुरक्षित रूप से जीवन जीने में सक्षम बना सकता है, और उनके जीवन को और अधिक वास्तविक और व्यावहारिक बना सकता है। वे परमेश्वर के वचनों के अनुसार जीवन जीने का फैसला क्यों नहीं लेते हैं? वे अपने आप को इस तरह से क्यों सताते हैं? क्या वे अपनी करनी का फल नहीं भुगत रहे हैं? (हाँ, भुगत रहे हैं।) ऐसा व्यक्ति चाहे कितने भी कष्ट क्यों न उठा ले, वे हमेशा बेकार ही जाएँगे, और चाहे वह कितने भी कष्ट क्यों न सह ले, अकेले उसे ही इनके परिणाम भुगतने पड़ेंगे। कुछ लोग कहते हैं : “मैं इतने वर्षों से परमेश्वर में विश्वास करता आया हूँ, और मैं 20 सालों से अगुआ हूँ। मैं हमेशा देर तक जागता रहा और सोया नहीं, और अंत में, मुझे नसों की कमजोरी हो गई।” मैं कहता हूँ : “तुम आसानी से बच निकले जो तुम्हें नसों की कमजोरी ही हुई। अगर तुम इसी तरह मूर्खतापूर्ण तरीके से खुद को सताते रहोगे और ऐसे ही कार्य करते रहोगे तो वह दिन दूर नहीं जब तुम मनोविकृति से ग्रस्त हो जाओगे।” अगर कोई व्यक्ति रात को नहीं सोता है, हमेशा तनावग्रस्त रहता है और उसका शरीर असामान्य रूप से कार्य करता है तो क्या वह स्वस्थ रह सकता है? इसके लिए वह खुद ही जिम्मेदार है! मान लो कि तुम उससे कहते हो, “इस तरह कार्य करने से नहीं चलेगा। अपने कार्य को दिन में व्यवस्थित करने का पूरा प्रयास करो और अपनी उत्पादकता बढ़ाओ। जब सब लोग कार्य पर चर्चा कर रहे हों तो बकवास कम करो और फालतू चीजों के बारे में ज्यादा बातें मत करो। तुम्हें चर्चा के महत्वपूर्ण बिंदुओं, बुनियादी बातों और विषय की समझ हासिल करनी चाहिए और चर्चा खत्म हो जाने के बाद सभी को अपने-अपने कार्यों में व्यस्त हो जाना चाहिए। लगातार बक-बक मत करो और टालमटोल करना बंद कर दो।” वह तुम्हारी बात नहीं सुनेगा। वह खुद को अच्छी तरह व्यक्त नहीं कर पाता है, लेकिन अपने अनुभवों का सारांश नहीं करता है, वह रात के एक-दो बजे तक समय बर्बाद करने के लिए बेहूदा बातें करता है, और न खुद सोता है और न ही किसी और को सोने देता है। क्या यह दूसरों को सताना और नुकसान पहुँचाना नहीं है? आखिर में, वह सोचता है, “परमेश्वर, तुमने देखा, है ना? तीन बज चुके थे और मैं फिर भी नहीं सोया था!” परमेश्वर ने देखा। परमेश्वर ने न सिर्फ उसका बाहरी रूप देखा, बल्कि उसके दिल की गहराइयों में भी देखा और कहा : “तुम्हारा दिल गंदा है। तुम खुद को व्यर्थ में सताने के लिए रात भर जागते हो, लेकिन परमेश्वर इसे कभी याद नहीं रखेगा। सोने का समय हो जाने पर भी तुम सोने नहीं जाते हो, बल्कि खुद को जबर्दस्ती रोककर रखते हो। अपने कष्टों के लिए तुम खुद ही जिम्मेदार हो!” नींद आने पर लोगों की पलकें स्वाभाविक रूप से बंद हो जाती हैं। यह सहज प्रवृत्ति है, इसलिए अगर तुम हमेशा सहज प्रवृत्ति और प्रकृति के नियमों के खिलाफ जाते हो तो तुम कष्ट भुगतने के हकदार हो! परमेश्वर तुमसे निरर्थक कष्ट सहने या ऐसे कष्ट सहने के लिए नहीं कहेगा जो प्रकृति के नियमों के उल्लंघनों, या सिद्धांतों या सत्य के उल्लंघनों के कारण होते हैं। अगर तुम इस तरह के कष्ट सहने की जिद करते हो तो यही सही। कुछ लोग जब यह सुनते हैं कि कोई व्यक्ति सुबह के 3 बजे तक सोने नहीं जाता तो वे सोचते हैं, “क्या यह बिल्कुल मेरे जैसा नहीं है? खैर, आगे से मैं भी 3:30 बजे सोने जाऊँगा।” फिर वे सुनते हैं कि कोई व्यक्ति 3:30 बजे सोने जाता है तो फिर वे 4 बजे सोने जाना चाहते हैं। क्या यह मानसिक बीमारी नहीं है? ऐसी बहुत सी चीजें हैं जिनके लिए तुम मुकाबला कर सकते हो, लेकिन तुम इस पर मुकाबला करने का फैसला करते हो कि सबसे देर से कौन सोता है—इसका मतलब है कि तुम मानसिक रूप से असामान्य हो। क्या ऐसे लोगों में समझ की समस्या है? (हाँ, बिल्कुल है।) वे सत्य को नहीं समझ पाते हैं। जब तुम्हारे पास समय है तो बाहरी व्यवहार, दिखावा और ढोंग जैसी चीजों को लेकर मेहनत करना, अपना दिमाग खपाना और सोचना बंद करो। तो, फिर तुम्हें किस चीज में मेहनत करनी चाहिए? देखो कि परमेश्वर के वचन किस तरह से मानवजाति की भ्रष्ट प्रकृति और दुष्ट स्वभाव को उजागर करते हैं और परमेश्वर किस तरह से लोगों के अनमने होने को उजागर करता है। अपनी तुलना परमेश्वर के इन वचनों के साथ करने में मेहनत करो जो इंसान को उजागर करते हैं, इस पर विचार करो कि परमेश्वर द्वारा उजागर की जाने वाली अभिव्यक्तियों में से कितनी तुम्हारे पास हैं और इनमें से कितनी अभिव्यक्तियों को तुम अक्सर व्यवहार में लाते हो या उन्हें दिखाते हो। इन चीजों का सारांश करना बहुत अच्छी बात है! हमेशा कुछ अंडों या भाप से पके मीठे पाव के लिए या मांस के शोरबे में चीजें डुबोने के लिए मेहनत करना किसी व्यक्ति के लिए कितनी घिनौनी बात है! यह क्या है? यह सोची-समझी चालें हैं और अक्ल की कमी है। इस तरह का व्यक्ति क्या है? (बेवकूफ है।) सही कहा। जब ऐसे लोगों की बात आती है जो हमेशा इसका ध्यान रखते हैं कि कितने अंडे खाने हैं या जो रात को जगे रहने के लिए हमेशा कॉफी पीने के बारे में सोचते रहते हैं तो भोजन के लिए जुनूनी इन लोगों को बेवकूफ कहना अतिशयोक्ति नहीं है। वे किन मामलों में बेवकूफ हैं? हम इन लोगों को बेवकूफ क्यों कहते हैं? (क्योंकि उनका कष्ट भुगतना पूरी तरह से बेकार है।) निश्चित रूप से यह बेकार है। आखिर तुम ऐसी बचकानी हरकतें क्यों करना चाहोगे? क्या तुम्हें लगता है कि जीवनभर अंडे नहीं खाने से तुम सत्य को समझने में समर्थ हो जाओगे? क्या इस तरह से कार्य करना बेवकूफी नहीं है? (हाँ, है।) ऐसी बेवकूफी भरी चीजें मत करो। किस तरह के लोग बेवकूफी भरी चीजें करने के लिए प्रवृत्त होते हैं? (वे लोग जिनमें आध्यात्मिक समझ नहीं होती है।) क्या इन लोगों में सत्य को समझने की क्षमता होती है? (नहीं, उनमें नहीं होती है।) कुछ लोग कहते हैं : “उनमें अच्छी काबिलियत है, और वे अत्यंत कुशलता से उपदेश दे सकते हैं।” हो सकता है कि वे कुशलता से उपदेश दे सकते हों, लेकिन जब भी कार्य करने का समय आता है तो वे हमेशा बचकानी हरकतें क्यों करने लगते हैं? वे ऐसे बचकाने और हास्यास्पद तरीके से कार्य क्यों करते हैं? यहाँ क्या चल रहा है? उनकी कथनी और करनी में अंतर होता है। उनकी कथनी धर्म-सिद्धांतों की उनकी समझ पर आधारित होती है जबकि उनकी करनी में वे चीजें शामिल होती हैं जिन्हें वे वास्तव में समझते हैं और स्वीकार पाते हैं। अपने दिल की गहराइयों में क्या वे उन धर्म-सिद्धांतों का अनुमोदन करते हैं या उन्हें स्वीकारते हैं जिनका वे उपदेश देते हैं? (नहीं, वे उन्हें स्वीकार नहीं करते हैं।) वे स्वीकार नहीं करते हैं कि वे चीजें सत्य हैं या ऐसी कसौटियाँ हैं जिन्हें उन्हें अभ्यास में लाना चाहिए और जिनका पालन करना चाहिए। दरअसल, वे अपने दिलों में बसी साजिशों और धारणाओं को, झूठे विचारों और अभ्यासों को और दूसरों द्वारा अच्छे समझे जाने वाले व्यवहारों को ही वास्तव में अभ्यास की कसौटियाँ और मार्ग मानते हैं। अगर ऐसे लोगों ने कभी खुद को नहीं बदला, तो क्या उन्हें बट्टे खाते में नहीं डाल दिया जाएगा? क्या उन्हें उद्धार का कोई मौका मिलेगा? इसकी उम्मीद कम ही है।

जरा बताओ, क्या तेज धूप में सिर पर छाता रखना या टोपा पहनना उचित है? (हाँ, यह उचित है।) तेज धूप में काम करने वाले लोगों ने अगर टोपा नहीं पहना तो वे जल्दी ही झुलस जाएँगे, इसलिए ऐसा करना पूरी तरह से उचित है। कुछ लोग ऐसा नहीं सोचते और कहते हैं : “क्या मैं टोपा पहनूँ? क्या इससे मेरा अपमान नहीं होगा? मैं कैसे टोपा पहन सकता हूँ? मैं कष्ट सहने से नहीं डरता और ना ही साँवला हो जाने से। दरअसल, यह तो सेहत के लिए अच्छा है।” अगर वे सच में यही सोचते हैं तो यह कोई समस्या नहीं है, लेकिन यहाँ महत्वपूर्ण बात यह है कि कुछ लोग अपने दिल की गहराइयों में ऐसा नहीं सोचते। वे सोचते हैं, “जरा तुम लोग खुद को देखो, टोपा पहने हुए हो क्योंकि तुम लोगों को कड़ी धूप में साँवला हो जाने या चमड़ी झुलस जाने का डर है। मैं तो नहीं पहनूँगा! साँवला होने या चमड़ी झुलसने से क्या डरना? परमेश्वर को ऐसी चीजें पसंद हैं, इसलिए मुझे परवाह नहीं है कि दूसरे लोग क्या सोचते हैं!” ऐसा कहने वाले लोगों के बारे में तुम क्या सोचते हो? क्या तुम्हें लगता है कि वे थोड़े-से धोखेबाज हैं, थोड़े-से झूठे हैं? दरअसल, टोपा पहनने से इनकार करने के पीछे उनका एक मकसद है, और वह यह है कि वे दूसरे लोगों को दिखाना चाहते हैं कि वे कष्ट सहने की क्षमता रखते हैं और यह कि वे वास्तव में आध्यात्मिक हैं। इस तरह का पाखंडी व्यवहार अत्यंत घिनौना है! क्या इतनी अच्छी तरह दिखावा करने वाले लोग अपने कर्तव्य अच्छी तरह करते हैं? क्या वे अपने कर्तव्यों के लिए कष्ट सह सकते हैं और कीमत चुका सकते हैं? साँवला हो जाने या धूप में झुलस जाने के बाद क्या वे शिकायत नहीं करेंगे और परमेश्वर को दोषी नहीं ठहराएँगे? पाखंडी फरीसी कभी सत्य को अभ्यास में नहीं लाते हैं, बल्कि वे आध्यात्मिकता का नाटक करते हैं। क्या वे वाकई कष्ट सह सकते हैं और कीमत चुका सकते हैं? पाखंडियों के सार के आधार पर, तुम देख सकते हो कि उनके मन में सत्य के लिए कोई प्रेम नहीं होता है और यह कि उनमें सत्य के लिए कष्ट सहने या कीमत चुकाने की क्षमता और भी कम होती है। इतना ही नहीं, वे सत्य के चाहे कितने भी वचन क्यों न सुन लें, वे उन वचनों को कभी सत्य मानकर नहीं सुनते हैं और न ही समझते हैं, बल्कि वे उन्हें कोई आध्यात्मिक सिद्धांत मानते हैं और उसी तरह उनका उपदेश देते हैं। इस तरह के पाखंडी यह नहीं समझते हैं कि लोग परमेश्वर में क्यों विश्वास करते हैं, वह लोगों को सत्य क्यों प्रदान करना चाहता है, लोगों द्वारा परमेश्वर का उद्धार स्वीकार करने की प्रक्रिया कैसी होती है, इसका महत्व कहाँ निहित है और उद्धार से परमेश्वर का वास्तव में क्या मतलब है। उन्हें इनमें से कोई सत्य समझ नहीं आता है। अगर कलीसिया में ऐसा कोई पाखंडी है जो सत्य से प्रेम नहीं करता है, लेकिन झूठा बने रहना पसंद करता है तो फिर वह वाकई फरीसी है। वह व्यवहार, दिखावट और लोगों के दिलों में अपने मूल्यांकनों पर ध्यान देता है और चाहे वह कितने भी सत्य क्यों न सुन ले, उन्हें कभी अभ्यास में नहीं लाता है। वह जो भी कहता है वह सही है और वह हर तरह के धर्म-सिद्धांत बोल सकता है, लेकिन वह अपने दिए हुए उपदेशों का अभ्यास नहीं करता है। अगर कोई वाकई उसके साथ कदम से कदम मिलाकर चलता है तो क्या वह उसी किस्म का व्यक्ति है? (हाँ, वह वैसा ही है।) सामान्य सोच वाला व्यक्ति इस पाखंडी की अभिव्यक्तियों को किस नजर से देखेगा? वह सोचेगा, “उसके अभ्यास का तरीका गलत है, है ना? यह इतना अजीब क्यों है? खाना खाने का समय होने पर उसे बस जाकर खाना खा लेना चाहिए, तो वह इस चीज को लेकर इतने चक्कर क्यों लगाता है?” वह कहेगा कि यह व्यक्ति अजीब है, वह दूसरों से अलग ढंग से, विकृत तरीके से चीजों को समझता है—और वह उससे प्रभावित नहीं होगा। लेकिन अगर कोई व्यक्ति ठीक इस पाखंडी जैसा ही है और बाहरी व्यवहार और लोगों की राय पर खास ध्यान देता है तो फिर वह उससे अपनी तुलना करेगा और उसके साथ मुकाबला करेगा। यह ठीक शियाओजिया के सुबह 3 बजे संदेश भेजने और संदेश मिलने वाले व्यक्ति के 4 बजे यह सोचकर जवाब देने जैसा है कि : “तुमने मुझे 3 बजे संदेश भेजा, इसलिए मैं तुम्हें 4 बजे जवाब दूँगी।” और फिर, शियाओजिया ने सोचा, “तुमने मुझे 4 बजे जवाब दिया तो मैं अपना जवाब 5 बजे भेजूँगा।” समय के साथ, इस तरह मुकाबला करते हुए सब लोग धीरे-धीरे पाखंडी बन जाते हैं। अगर कलीसिया का कोई अगुआ इस तरह का व्यक्ति है, और भाई-बहनों में सूझ-बूझ की कमी है तो वे खतरे में हैं, वे किसी भी समय गुमराह किए जा सकते हैं। मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ? जो व्यक्ति सत्य को नहीं समझता, वह दूसरों के बाहरी अच्छे व्यवहार से आसानी से गुमराह और प्रभावित हो सकता है। क्योंकि उसे नहीं पता कि क्या सही है, वह अपनी धारणाओं के अनुसार ऐसे व्यवहार को अच्छा मानता है। अगर कोई और व्यक्ति उन व्यवहारों को करने में सक्षम होता है, तो फिर वही उसकी आराधना का पात्र बन जाता है और वह सोचता है कि उस व्यक्ति को अगुआ होना चाहिए, पूर्ण बनाया जाना चाहिए और परमेश्वर द्वारा प्रेम किया जाना चाहिए। वह इस तरह के व्यवहार को स्वीकृति देगा और अपने दिल की गहराइयों में उसकी पुष्टि करेगा। अगर उसने इसकी पुष्टि की तो क्या होगा? वह उस व्यक्ति का अनुसरण करने लगेगा। अगर वे दोनों ही अगुआ हैं तो वे एक दूसरे की तुलना करेंगे और आपस में मुकाबला करेंगे। एक बार, अलग-अलग देशों की कलीसियाओं से अगुआ और कार्यकर्ता ऑनलाइन इकट्ठा हुए। मैंने ऑनलाइन जाकर जब कुछ देर उनकी बातें सुनी तो मुझे लगा कि यहाँ कुछ ठीक नहीं है। मैंने सोचा, “ये सब लोग यहाँ क्या कर रहे हैं? क्या वे उपदेश दे रहे हैं?” स्थिति को समझने के बाद मुझे समझ आया कि वे प्रार्थना कर रहे हैं। मैंने खुद से पूछा कि वे इस तरीके से क्यों प्रार्थना कर रहे हैं। वह सुनने में डरावना लग रहा था, मानो वे अपने फन उठा रहे हों और अपने पंजे फैला रहे हों। यह अपने आप में कोई बड़ी बात नहीं थी, तो फिर मुख्य समस्या क्या थी? ऐसा लग रहा था जैसे वे अपनी आँखें खुली रखकर, परमेश्वर के आगे प्रार्थना नहीं कर रहे हैं और उनके दिल में जो है उसे सच्चाई से नहीं कह रहे हैं। बल्कि, वे यह देखने के लिए मुकाबला कर रहे हैं कि कौन सबसे अच्छा सुवक्ता है, कौन ज्यादा धर्म-सिद्धांत बोल सकता है और किसने सबसे ज्यादा विस्तार और गंभीरता से बात की। यह किसी अखाड़े के मुकाबले जैसा सुनाई पड़ रहा था और निश्चित रूप से परमेश्वर से प्रार्थना करने जैसा तो बिल्कुल नहीं लग रहा था। क्या ये लोग खत्म नहीं हो चुके हैं? क्या उन्हें बट्टे खाते में नहीं डाल दिया गया है? जब ऐसे लोग अगुआ के तौर पर सेवा कर रहे हों तो जरा सोचो कि उनके नीचे जो लोग हैं उन्हें कितना कष्ट सहन करना पड़ता होगा? क्या उनके नीचे के लोगों को नुकसान नहीं पहुँच रहा है? हर व्यक्ति ने पूरे जोश से कम से कम 20 मिनट तक प्रार्थना की और ऊपरवाले के इन नियमों के बावजूद कि सभाओं में एक व्यक्ति का बोलबाला नहीं होना चाहिए और लोग सिर्फ 5 से 10 मिनट की संगति कर सकते हैं, उन्होंने फिर भी प्रार्थना करने में ही बेशर्मी से इतना ज्यादा समय लगा दिया। बाद में, मुझे अंततः समझ आ गया कि इतनी सारी सभाएँ सुबह से लेकर रात तक क्यों चलती हैं : ये तथाकथित अगुआ एक के बाद एक सिर्फ प्रार्थना करने में ही बहुत समय लगा देते हैं, जबकि उनके नीचे के लोग कष्ट सहते रहते हैं। ये झूठे अगुआ वहाँ पर बहसबाजी और बकवास करने के लिए मौजूद थे और उनमें से कुछ तो इतने बेतुके थे कि उन्हें यह भी याद नहीं रह रहा था कि वे कुछ बातों को पहले ही कह चुके हैं या नहीं। जब तक वे दूसरों से ज्यादा देर तक बोलते रहे तब तक उनके हिसाब से यह सब ठीक था। मैं हैरान था : प्रार्थना करते समय व्यक्ति को अपनी आँखें बंद करके परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए तो फिर इन लोगों की आँखें क्यों खुली हुई थीं? क्या अपनी आँखें खुली रखकर यह देखने से कि दूसरे लोग कैसे प्रार्थना कर रहे हैं, उनका मन वाकई अशांत नहीं हो रहा था? खास तौर पर, यह सोचने की जरूरत पड़ना कि दूसरे लोग कैसे प्रार्थना कर रहे हैं और वे किन शब्दों का उपयोग कर रहे हैं, और उनसे बेहतर बनने की इच्छा रखना—जब दिल ऐसी चीजों से भरा हुआ हो तो क्या परमेश्वर से प्रार्थना करना और सच्चे दिल से बोलना संभव होगा? क्या यह असामान्य विवेक नहीं है? क्या ये सब झूठे अगुआओं और झूठे कार्यकर्ताओं की झूठी आध्यात्मिकता की अभिव्यक्तियाँ नहीं हैं? एक जगह इकट्ठा होकर परमेश्वर के वचनों को पढ़ना और सत्य की संगति करना सभी के लिए अच्छा है, लेकिन कुछ लोगों ने बताया है : “ओह, तुम्हें कुछ नहीं पता। जब वे अगुआ इकट्ठा होकर प्रार्थना करते हैं तो ऐसा लगता है मानो वे धर्मग्रन्थों का पाठ कर रहे हों; वे सिर्फ एक ही चीज के बारे में बात करते रहते हैं, और हर बार हमारे इकट्ठा होने पर वही बात दोहराई जाती है। मैं तो यह सुन-सुनकर थक चुका हूँ।” इस तरह की सभाएँ लोगों को कैसे उन्नत कर सकती हैं? झूठे अगुआ और कार्यकर्ता हमेशा यही करते हैं; क्या वे परमेश्वर के इरादों के अनुरूप हो सकते हैं? वे सत्य को समझने में लोगों की मदद करने के लिए सत्य की संगति पर ध्यान नहीं देते हैं और न ही सत्य पर संगति करके समस्याओं को हल करने पर ध्यान देते हैं; इसके बजाय, वे धर्म की झूठी आध्यात्मिकता में व्यस्त रहते हैं। क्या यह लोगों को गुमराह नहीं कर रहा है? यहाँ क्या समस्या है? उन्हें न तो परमेश्वर के इरादों की कोई समझ है और न ही वे यह समझते हैं कि लोगों से उसकी क्या अपेक्षाएँ हैं। वे तो बस धार्मिक संस्कारों और दिखावे में व्यस्त रहते हैं! इससे भी बुरी बात यह है कि वे प्रार्थना का उपयोग दूसरों को उजागर करने, दूसरों पर हमला करने और दूसरों की निंदा करने के लिए करते हैं, जबकि कुछ लोग खुद को सही ठहराने के लिए प्रार्थना का उपयोग करते हैं। उन्हें देखकर लगता है जैसे उनकी प्रार्थनाएँ परमेश्वर को सुनाने के लिए हैं, लेकिन दरअसल वे इंसान को सुनाने के लिए होती हैं। इसलिए, इन लोगों में परमेश्वर का भय मानने वाला दिल रत्ती भर भी नहीं है, ये सभी छद्म-विश्वासी लोग हैं जो परमेश्वर के घर के कार्य में विघ्न डाल रहे हैं। ये झूठे अगुआ अपनी प्रार्थनाओं में बहुत भद्दापन प्रकट करते हैं। कुछ लोग ऐसा कहते हुए प्रार्थना करते हैं : “परमेश्वर, कुछ लोगों ने मुझे गलत समझ लिया है। मेरा वैसा मतलब नहीं था। मैं तुमसे प्रार्थना कर रहा हूँ, मैं निराश महसूस नहीं कर रहा हूँ, और दूसरे लोग जो चाहे वह सोच सकते हैं।” कुछ लोग धर्म-सिद्धांत बोलते हैं, और कुछ लोग इस पर मुकाबला करते हैं कि कौन ज्यादा धर्मोपदेश सुनता है, किसे सबसे ज्यादा भजन के बोल या परमेश्वर के वचन याद रहते हैं, किसकी प्रार्थना सबसे देर तक चलती है, कौन सबसे अच्छा सुवक्ता है या किसके पास प्रार्थना करने के सबसे विविध तरीके हैं और कौन अलग-अलग तरह की बहुत-सी प्रार्थनाओं में व्यस्त रहता है। क्या यह प्रार्थना है? (नहीं, यह नहीं है।) यह क्या है? यह निर्लज्जता से बुराई करना है! यह सत्य के साथ खिलवाड़ करना और उसे रौंदना है, यह परमेश्वर का अपमान करना और उसकी निंदा करना है। ये दुष्ट और छद्म-विश्वासी लोग प्रार्थना के माध्यम से कुछ भी कहने की हिम्मत करते हैं—जरा बताओ, क्या ये लोग सच्चे विश्वासी हैं? क्या उनमें जरा भी धर्मनिष्ठा है? (नहीं, उनमें नहीं है।) जब इस तरह के लोगों से अगुआ का दर्जा छीन लिया जाता है तो वे नकारात्मक हो जाते हैं, आत्मचिंतन बिल्कुल नहीं करते हैं, बल्कि हर जगह ऐसे शिकायत करते रहते हैं : “मैंने परमेश्वर के कार्य के दौरान कितने सारे कष्ट सहे, फिर भी उन्होंने कहा कि मैंने कोई सच्चा कार्य नहीं किया और यह कि मैं एक झूठा अगुआ था और मुझे बर्खास्त कर दिया। और फिर, ऐसे कितने लोग हैं जो धर्म-सिद्धांत उतने विस्तार से बोल सकते हैं जितना मैं बोल सकता हूँ? कितने लोग मेरे जितने स्नेही हैं? मैंने अपने परिवार और करियर को त्याग दिया, अपने भाई-बहनों के साथ हर रोज कलीसियाई सभाओं में बिताया और लगातार तीन या पाँच दिनों तक बोलता रहा। वे बस यूँ ही मुझे बर्खास्त कैसे कर सके?” वे आज्ञा नहीं मानते हैं और मन में शिकायतें छिपाकर रखते हैं। फिर ऐसे लोग भी हैं जो यह बात फैलाते हैं : “परमेश्वर के घर में अगुआ मत बनो। अगर तुम्हें अगुआ के तौर पर चुन लिया गया तो तुम मुसीबत में पड़ जाओगे और एक बार जो तुम्हें बर्खास्त कर दिया गया तो तुम्हारे पास आम विश्वासी बनने का मौका तक नहीं रहेगा।” ये कैसे शब्द हैं? ये शब्द सबसे बेतुके और हास्यास्पद हैं और यह भी कहा जा सकता है कि ये अवज्ञा, असंतुष्टि और परमेश्वर की निंदा करने वाले शब्द हैं। क्या उन शब्दों का यही मतलब नहीं है? (हाँ, यही है।) उन शब्दों की गहराई में क्या निहित है? हमला—वे शब्द कोई आम आलोचना नहीं हैं! ये लोग यह नहीं बताते हैं कि उन्हें पागलों की तरह बुरी चीजें करने और कोई भी वास्तविक कार्य नहीं करने के कारण बर्खास्त कर दिया गया, बल्कि यह शिकायत करते हैं कि परमेश्वर उनके साथ अधार्मिक रहा, कि उसने अपने कार्य में उनके गौरव का ध्यान नहीं रखा और यह भी शिकायत करते हैं कि वह यह नहीं समझ सका कि उन्होंने कैसा महसूस किया और उनका भावनात्मक निवेश कितना था। उनकी मानसिकता गैर-विश्वासी व्यक्ति जैसी है, उनमें सत्य वास्तविकताएँ बिल्कुल नहीं हैं।

आम तौर पर, तुम लोग सभाओं में कितनी देर तक प्रार्थना करते हो? क्या इसमें सभी का बहुत ज्यादा समय लगता है? क्या कभी तुम्हारी प्रार्थनाओं से लोग परेशान हो जाते हैं? कुछ लोग प्रार्थना करने में बहुत सारा समय लगाते हैं और उन्हें सुनते-सुनते सभी लोग उकता जाते हैं, फिर भी ये लोग सोचते हैं कि वे सबसे ज्यादा आध्यात्मिक हैं और मानते हैं कि यह उनके वर्षों से परमेश्वर में विश्वास करने के कारण हुई प्राप्ति और उपलब्धि है। वे दो-तीन घंटे प्रार्थना करने के बाद भी नहीं थकते हैं, जिस दौरान वे बस वही पुरानी, घिसी-पिटी, बेतुकी चीजों को दोहराते रहते हैं, वही शब्द और धर्म-सिद्धांत और नारे बोलते रहते हैं जो उन्हें मालूम हैं या जो चीजें उन्होंने दूसरों से सुनी हैं या जो चीजें उनकी मनगढ़ंत हैं। वे ऐसा ही करते हैं, भले ही सभी तंग आ चुके हों और उन्हें इसकी परवाह नहीं होती कि लोगों को यह पसंद है भी या नहीं। क्या तुम लोग इस तरह प्रार्थना करते हो? जरा बताओ, क्या थोड़ी देर के लिए प्रार्थना करना सही है या देर तक? (इसमें कोई सही या गलत नहीं है।) हाँ, बिल्कुल। तुम इस बात पर कोई फैसला नहीं दे सकते कि इनमें से कौन-सा सही है और कौन-सा गलत, तुम्हें बस अपने दिल की जरूरतों के अनुसार परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए। कभी-कभी प्रार्थना के लिए किसी अनुष्ठान की जरूरत नहीं पड़ती है, और कभी-कभी पड़ती है; यह परिवेश पर और क्या हुआ इस पर निर्भर करता है। अगर तुम सोचते हो कि प्रार्थना में समय लग सकता है, तो फिर परमेश्वर से अपने निजी मामलों के बारे में अकेले में प्रार्थना करो। सभाओं में उन सब चीजों के बारे में प्रार्थना करके सभी का समय बर्बाद मत करो। इसे सूझ-बूझ कहते हैं। कुछ लोग अपने गर्व और प्रतिष्ठा की खातिर इस चीज पर ध्यान नहीं देते हैं। यह अज्ञानता और विवेकहीनता है। क्या जिन लोगों में विवेक की कमी होती है, उनमें शर्म होती है? वे तो इस बात से भी बेखबर होते हैं कि उन्हें प्रार्थना करते हुए देखने से सभी कितने विमुख हैं। जिन लोगों में थोड़ी-सी भी अनुभूति या जागरूकता नहीं है, क्या वे सत्य समझ सकते हैं? वे नहीं समझ सकते हैं। परमेश्वर इंसान से जिन सत्य सिद्धांतों को अभ्यास में लाने की उम्मीद करता है वे सब उसके वचनों में निहित हैं और सत्य के अभ्यास के बारे में परमेश्वर जिन सभी वचनों की संगति करता है उनमें सिद्धांत निहित हैं और वे सिद्धांत हैं, लोगों को बस बड़े ध्यान से उन पर सोच-विचार करने की जरूरत है। सत्य को अभ्यास में लाने के बारे में परमेश्वर के वचनों में बहुत सारे सिद्धांत निहित हैं; इनमें हर तरह के मामलों, हालातों और प्रसंगों में अभ्यास करने के तरीकों के लिए सिद्धांत और मार्ग शामिल हैं, यहाँ सबसे महत्वपूर्ण चीज यह है कि क्या तुम्हारे पास आध्यात्मिक समझ और समझने की क्षमता है या नहीं है। अगर किसी के पास यह समझने की क्षमता है तो फिर वह सत्य को समझ सकता है। लेकिन अगर उसके पास नहीं है तो उसे सिर्फ विनियम समझ आएँगे, भले ही परमेश्वर के वचन कितने भी सुविस्तृत क्यों न हों, और यह सत्य समझना नहीं है। इसलिए, परमेश्वर तुम्हें एक सिद्धांत देता है ताकि तुम उसे अलग-अलग हालातों के अनुरूप ढाल सको। उसके वचनों को सुनकर और उसे जानकर, अलग-अलग अनुभवों और संगति के माध्यम से और साथ ही पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता के माध्यम से तुम्हें उन सिद्धांतों का एक पहलू समझ आ जाएगा जिनके द्वारा वह बात करता है और तुम एक तरह के मामले के लिए उसके अपेक्षित मानकों को भी समझ जाओगे। और तब तुम सत्य के उस पहलू को समझ चुके होगे। अगर परमेश्वर को सब कुछ विस्तार से बताना पड़ता और लोगों को यह बताना पड़ता कि अमुक मामले में ऐसे कार्य करो और अमुक में ऐसे, तो फिर वह जिन सिद्धांतों के बारे में बात करता है, वे सभी बेकार हो जाते। अगर परमेश्वर ने इस तरीके का उपयोग किया होता और मानवजाति को एक के बाद एक चीज के लिए विनियम बताए होते, तो अंत में लोगों को क्या हासिल होता? बस कुछ अभ्यास और व्यवहार। वे परमेश्वर के इरादों या उसके वचनों को कभी समझ नहीं पाते। अगर लोग परमेश्वर के वचनों को नहीं समझ पाए, तो वे सत्य को कभी समझ नहीं पाएँगे। क्या ऐसा ही नहीं है? (हाँ, ऐसा ही है।) क्या तुम लोग सत्य को समझ पाते हो? ज्यादातर लोग नहीं समझ पाते हैं और सिर्फ कुछ ही लोग जिन्हें आध्यात्मिक समझ है और जो सत्य से प्रेम करते हैं, वास्तव में इस लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं। तो, इस लक्ष्य को हासिल करने वालों के लिए पूर्वशर्तें क्या हैं? वे इसे तभी हासिल कर सकते हैं अगर उनके पास आध्यात्मिक समझ है, समझने की क्षमता है, वे ईमानदारी से अनुसरण करते हैं और सत्य और सकारात्मक चीजों से प्रेम करते हैं। जहाँ तक उन लोगों की बात आती है जो इसे हासिल नहीं कर सकते हैं, तो एक तरफ इसका कारण यह है कि उनमें काबिलियत या समझ की समस्या है और दूसरी तरफ, इसका कारण समय की समस्या है। यह 20-30 वर्ष की आयु के लोगों में जैसा होता है वैसा है—अगर तुम उनसे वही सब कुछ हासिल करने के लिए कहो जो 50-60 वर्ष की आयु के लोग हासिल कर सकते हैं और उस आयु के लोगों को हासिल करना चाहिए, तो क्या यह उन्हें ऐसा कुछ करने के लिए जबर्दस्ती करना नहीं है जो उनकी क्षमताओं के बाहर है। (हाँ, ऐसा ही है।) अब जरा सोचो, किसी व्यक्ति की सत्य को समझने की क्षमता का संबंध किस चीज से है? (उसकी काबिलियत से।) यह उसकी काबिलियत से संबंधित है। और किस चीज से है? (क्या वह सत्य का अनुसरण करता है या नहीं।) इसका उसके अनुसरण से एक निश्चित संबंध है। दरअसल, कुछ लोग अपनी समझ, दिमाग की गति और आईक्यू के मामले में पर्याप्त होते हैं और वे सत्य को समझ सकते हैं, लेकिन वे न तो सत्य से प्रेम करते हैं और न ही उसका अनुसरण करते हैं। वे अपने दिलों में सत्य के लिए कुछ महसूस नहीं करते हैं और न ही इस मामले में कोई प्रयास करते हैं। इस तरह के लोगों के लिए सत्य हमेशा धुँधली और न पहचानी जा सकने वाली चीज ही बनी रहेगी और भले ही वे कई-कई वर्षों तक परमेश्वर में विश्वास क्यों न कर लें, इसका कोई फायदा नहीं होगा।

खैर, मैं अपनी कहानियाँ सुना चुका हूँ। क्या इन कहानियों का कथानक और सामग्री कुछ सत्य को समझने में तुम लोगों की मदद कर सकते हैं? (हाँ।) मैं ये कहानियाँ क्यों सुनाता हूँ? अगर ये कहानियाँ लोगों की जीवन स्थितियों, उनके द्वारा प्रकट किए गए स्वभाव और असली जीवन में उनके विचारों से हटकर होतीं तो क्या इन्हें सुनाना जरूरी होता? (नहीं।) यह जरूरी नहीं होता। हमने जिन चीजों पर चर्चा की वे सभी आम परिघटनाएँ और स्थितियाँ हैं जिन्हें अक्सर लोग अपने जीवन में प्रकट करते हैं और ये चीजें मानव स्वभाव, नजरिए और विचारों से जुड़ी हैं। अगर इन कहानियों को सुनने के बाद तुम सोचते हो कि ये तो बस कहानियाँ हैं, ये थोड़ी-सी मजाकिया और दिलचस्प हैं, बस और कुछ नहीं, और तुम उनमें निहित सत्य को नहीं समझ पाते हो तो फिर ये तुम्हारे किसी काम नहीं आएँगी। तुम लोगों को इन कहानियों से कुछ सत्य जरूर समझना होगा—इससे कम से कम तुम लोगों के व्यवहार पर, खासकर कुछ चीजों के बारे में तुम्हारे नजरिए पर सुधारात्मक प्रभाव पड़ेगा, और तुम लोग अपनी समझ के विकृत तरीकों से वापस लौटने और इस तरह की चीजों की शुद्ध समझ प्राप्त करने में समर्थ हो जाओगे। यह सिर्फ तुम्हारे व्यवहार को बदलने के लिए नहीं है, बल्कि भ्रष्ट स्वभाव से उत्पन्न होने वाली इन दशाओं को जड़ से सुधारने के लिए है। क्या तुम मेरी बात समझ रहे हो? तो आओ, अब मुख्य विषय पर संगति करें।

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