मद आठ : वे दूसरों से केवल अपने प्रति समर्पण करवाएँगे, सत्य या परमेश्वर के प्रति नहीं (भाग दो) खंड चार

मसीह-विरोधियों का दूसरों से सत्य या परमेश्वर के प्रति नहीं, बल्कि केवल अपने प्रति समर्पण कैसे करवाने का गहन-विश्लेषण

III. मसीह-विरोधियों द्वारा अपने काम में दूसरों के दखल देने, पूछताछ करने या उनकी निगरानी करने से रोकने का गहन-विश्लेषण

अपनी पिछली संगति के विषय से आगे बढ़ें तो मसीह-विरोधियों की अभिव्यक्ति विभिन्न तरीकों में आती है आठवीं मद : वे दूसरों से केवल अपने प्रति समर्पण करवाएँगे, सत्य या परमेश्वर के प्रति नहीं। इस मद को हमने चार उपखंडों में बाँट दिया है। अपनी पिछली सभा में हमने दो उपखंडों पर चर्चा की थी : पहला था कि वे किसी के भी साथ सहयोग करने में सक्षम नहीं होते; और दूसरा था कि उनमें लोगों पर नियंत्रण करने और उन पर विजय पाने की लालसा और महत्वाकांक्षा होती है। तीसरा उपखंड क्या है? दूसरों को उनके किए गए किसी भी काम में दखल देने, पूछताछ करने या उनकी निगरानी करने से रोकना। उन्होंने जो भी कार्य हाथ में लिया हो, उसमें क्या शामिल हो सकता है? उसमें शामिल होती है कोई भी कार्य योजना, जिसके लिए कोई टीम पर्यवेक्षक या टीम अगुआ जिम्मेदार हो सकता है, और साथ ही वह कार्य शामिल होता है जिसके लिए कोई समूह पर्यवेक्षक या कोई समूह अगुआ जिम्मेदार हो सकता है; यह किसी क्षेत्र का कोई पेशेवर कार्य या किसी एक व्यक्ति का कार्य भी हो सकता है। यह व्यक्ति जिसने कोई कार्य हाथ में लिया है वह कोई अगुआ या कार्यकर्ता हो सकता है, या कोई साधारण भाई या बहन। अगर वे दूसरों को दखल देने, पूछताछ करने या उनकी निगरानी करने से रोकते हैं, तो वे कौन-सी दशा में हैं? इस रोक से संबंधित व्यवहार कौन-से हैं? यह एक और व्यवहार है, जो मसीह-विरोधियों की आठवीं अभिव्यक्ति में आता है, उनके सार का एक और प्रकाशन है। प्रत्येक प्रकार के कर्तव्य में कुछ कार्य ऐसा होता है जो पेशेवर होता है, और कुछ ऐसा होता है जिसमें सीधे जीवन प्रवेश का समावेश होता है। पेशेवर कार्य में तकनीक, ज्ञान, सीख और कर्मचारियों की नियुक्ति जैसी चीजों के सभी पहलू शामिल होते हैं। ये सभी इसमें शामिल होते हैं। कोई काम हाथ में लेने के बाद कुछ लोग इसे खुद करने लगते हैं। वे इसके बारे में दूसरों से विचार-विमर्श नहीं करते, और जब उन्हें कोई कठिनाई होती है, तो वे दूसरों के सुझाव नहीं लेना चाहते; वे चाहते हैं कि वे एकल मध्यस्थ हों और आखिरी फैसला लें। दूसरे लोग उनकी थोड़ी सहायता करने की उम्मीद से अपने विचार और सुझाव दे सकते हैं—मगर क्या वे उन्हें स्वीकारते हैं? (नहीं।) नहीं, वे स्वीकार नहीं कर सकते। यह कैसा स्वभाव है? कौन-सा स्वभाव उन्हें नियंत्रित कर रहा है कि वे अपने कर्तव्य या उसके निष्पादन के बारे में दूसरों को दखल देने, पूछताछ करने या उनकी निगरानी करने से रोकते हैं। वे मानते हैं, “मैं इस काम के बारे में जानता हूँ, और मुझे सिद्धांत मालूम है। कलीसिया ने मुझे यह काम सौंपा है। इसलिए मैं इसे खुद ही करूँगा।” वे कार्य-संबंधी कोई जानकारी या कार्य प्रगति दूसरों को बताने से इनकार करने को उचित ठहराने के लिए अक्सर दावा करते हैं कि वे पेशे को समझते हैं, और वे एक अंदर वाले व्यक्ति हैं। वे यह भी नहीं चाहते कि दूसरे लोग काम में हुई उनकी बड़ी भूलों, गलतियों या दुर्घटनाओं के बारे में जानें। जब दूसरा कोई ऐसी चीज के बारे में जान लेता है और पूछताछ करना चाहता है, जुड़ना चाहता है, या ज्यादा पता लगाना चाहता है, तो वे जवाब देने से मना करते हैं, मगर कहते हैं, “काम के दायरे में आने वाली चीजें मेरे अधिकार क्षेत्र में हैं। तुम्हें पूछताछ करने का कोई अधिकार नहीं है। कलीसिया ने यह काम तुम्हें नहीं सौंपा है—मुझे सौंपा है, और मुझे इसे गोपनीय रखना होगा।” क्या यह उचित औचित्य है? क्या उनका “उसे गोपनीय रखना” सही है? (नहीं।) क्यों नहीं? क्या कार्य की स्थिति और उसमें हुई भूलों और समस्याओं और उसकी योजना और दिशा के बारे में दूसरों से संगति करना इसे गोपनीय रखने का उल्लंघन होगा? (नहीं होगा।) नहीं होगा, कुछ विशेष विवरणों को छोड़कर जो यदि बाहर आ जाएँ तो कलीसिया की सुरक्षा के लिए खतरा बन जाएँगे और दूसरों को ये बताना उपयुक्त नहीं होगा। ऐसे मामलों में उनकी बात न करना ही ठीक है। लेकिन यदि वे अपने गोपनीय रखने को एक औचित्य के रूप में प्रयोग कर रहे हैं, और दूसरों को ऐसी कोई भी चीज नहीं जानने देते जो उनके काम के दायरे में आती है, और साधारण भाई-बहनों और अगुआओं और कार्यकर्ताओं की पूछताछ, सवाल, या जानकारी के निवेदनों को मानने से इनकार करते हैं, तो फिर इसमें समस्या क्या है? उदाहरण के लिए, हो सकता है कि वे कोई चीज एक खास तरीके से करना चाहते हों। कोई और उनसे कहता है, “अगर तुम इस तरह से करोगे, तो इससे परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचेगा, और तुम अपने रास्ते से भटक जाओगे। इसके बजाय हम क्यों न ऐसा कर लें?” वे मन-ही-मन सोचते हैं, “अगर मैं तुम्हारे कहे अनुसार करूँगा, तो इससे दूसरों को लगेगा कि मेरा तरीका गलत था, है कि नहीं? और फिर कार्य का श्रेय तुम्हें चला जाएगा, है कि नहीं? यह नहीं चलेगा; मैं तुम्हारे मुताबिक चलने के बजाय रास्ता भटकना पसंद करूँगा। मुझे अपने रास्ते पर बने रहना होगा। इससे परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचता हो तो भी मुझे परवाह नहीं; मेरी प्रतिष्ठा और रुतबा ही मायने रखते हैं—मेरा गौरव ही मायने रखता है!” वे जो करते हैं वह चाहे गलत ही क्यों न हो, वे बस अपनी गलती को बदतर कर देंगे और किसी को हस्तक्षेप नहीं करने देंगे। क्या यह एक मसीह-विरोधी का स्वभाव नहीं है? (हाँ, है।) दूसरों को हस्तक्षेप करने की अनुमति न देने का सार क्या है? यह अपने खुद के उद्यम में लगना है। उनके लिए परमेश्वर के घर के हित महत्वपूर्ण नहीं होते, और उसका कार्य उनके ध्यान के केंद्र में नहीं होता। वे उस सिद्धांत के अनुसार काम नहीं करते। इसके बजाय, वे निजी हितों और अपने रुतबे और गौरव पर ध्यान केंद्रित करके काम करते हैं। परमेश्वर के घर के कार्य और हितों को उनके अपने रुतबे और उनके अपने हितों की पूर्ति करनी होगी। यही वजह है कि वे दूसरों को अपने कार्य में हस्तक्षेप नहीं करने देते या पूछताछ नहीं करने देते। वे मानते हैं कि जैसे ही कोई उनके कार्य में हस्तक्षेप करता है, वैसे ही उनके रुतबे और हितों के लिए खतरा पैदा हो जाएगा, और उनकी कमियों और विचलनों और साथ ही उनके कार्य की समस्याओं और विचलन के उजागर होने की संभावना होगी। इसलिए वे दूसरों को अपने कार्य में हस्तक्षेप करने से रोकने पर अड़े रहते हैं और वे किसी और के सहयोग या निगरानी को स्वीकार नहीं करते।

मसीह-विरोधी चाहे किसी भी कार्य में लगा हो, वह उसके बारे में ऊपरवाले के ज्यादा जानने और पूछताछ करने से डरता है। अगर ऊपरवाला कार्य की स्थिति या कर्मचारियों की नियुक्ति के बारे में पूछताछ करे, तो वह बस थोड़ी-सी तुच्छ चीजों का सतही हिसाब दे देगा, ऐसी थोड़ी-सी चीजों का, जिनके बारे में वह मानता है कि ऊपरवाला जान भी ले तो कोई बात नहीं, और उन्हें जान लेने से भी कोई बुरे परिणाम नहीं होंगे। अगर ऊपरवाला बाकी चीजों के बारे में भी पूछताछ पर जोर दे, तो उसे लगेगा कि वह उसके कर्तव्य और “आंतरिक मामलों” में दखल दे रहा है। वह और ज्यादा कुछ नहीं बताएगा, बल्कि मूर्ख बनकर, धोखेबाज और चीजों पर परदा डालने वाला बना रहेगा। क्या वह परमेश्वर के घर की निगरानी को मना नहीं कर रहा है? (वह मना कर रहा है।) और अगर कोई उसकी किसी समस्या का पता लगा ले और उसे उजागर कर ऊपरवाले से उसकी शिकायत करने वाला हो, तो वह क्या करेगा? वह उसे रोक देगा, बीच में पकड़ लेगा—यहाँ तक कि धमकियाँ भी देगा : “अगर तुम यह बताओगे और इस कारण से ऊपरवाले द्वारा हमारी काट-छाँट हुई, तो इसका दोष तुम पर होगा। अगर किसी की काट-छाँट होनी है, तो वह तुम होगे!” क्या वह एक स्वतंत्र राज्य स्थापित करने की कोशिश नहीं कर रहा है? (कर रहा है।) वह ऊपरवाले को भी पूछताछ नहीं करने देगा, किसी को भी उसके कार्य के दायरे में आने वाली चीजों के बारे में जानने का या उन चीजों के बारे में सवाल पूछने का अधिकार नहीं होता, सिफारिशें करना तो दूर की बात है। अगर कोई कार्य योजना उसके हाथ लग गई हो, तो उस कार्य के दायरे में आने वाले मामलों के बारे में सिर्फ उसका ही फैसला अंतिम होगा; सिर्फ वही मध्यस्थता कर सकेगा; सिर्फ वही अपनी मर्जी से कार्य कर सकेगा और बोल सकेगा, और वह जैसे भी कार्य करे उसके पास उसका औचित्य होता है। जब एक बार कोई पूछताछ करता है तो वे कार्रवाई का कौन-सा तरीका इस्तेमाल करते हैं? लापरवाही और परदा डालने का। इसके अलावा और क्या? (धोखा।) सही है : धोखा—वे तुम्हारे सामने एक झूठा मुखौटा भी पेश करेंगे। उदाहरण के लिए, किसी कलीसिया में किसी अगुआ या सुसमाचार उपयाजक ने, जिस कलीसिया के लिए वे जिम्मेदार हैं, वहाँ महीने भर में स्पष्ट रूप से शायद सिर्फ तीन लोगों को प्राप्त किया होगा, जो दूसरी कलीसियाओं के मुकाबले बहुत कम है। उसे लगता है कि ऊपरवाले को हिसाब देने का कोई तरीका नहीं है—तो फिर वह क्या करता है? जब वह अपने कार्य का विवरण देता है, तो उसमें तीन के बाद एक शून्य जोड़ देता है और कहता है कि उसने तीस लोग प्राप्त किए हैं। किसी और को इसका पता चल जाता है और वह उससे पूछता है : “क्या यह धोखा नहीं है?” “धोखा?” वह कहता है, “क्यों भला, अगले महीने जब हम इसकी भरपाई करने के लिए तीस लोग प्राप्त कर लेंगे तो यह ठीक हो जाएगा, है कि नहीं?” इसके लिए उसके पास एक औचित्य होता है। अगर कोई और इस मामले को गंभीरता से लेकर ऊपरवाले से इसकी शिकायत करने की इच्छा करे, तो वह मानता है कि वह व्यक्ति उसके लिए मुसीबत खड़ी कर रहा है, और वह उसके पीछे पड़ गया है। तो वह उसे दबाएगा और उससे निपटेगा—वह उसके लिए मुसीबत खड़ी करेगा। क्या ऐसा करके वह लोगों को यातनाएँ नहीं दे रहा है? क्या वह बुराई नहीं कर रहा है? वह अपने कार्य में कभी सत्य सिद्धांतों को नहीं खोजता, तो फिर कार्य करने का उसका लक्ष्य क्या होता है? यह अपने रुतबे और आजीविका को सुरक्षित करने को लेकर होता है। वह जो भी बुरे काम करता है, उनके पीछे का इरादा और मंशा वह लोगों को नहीं बताता। वह इन्हें पूरी तरह से गोपनीय रखेगा; उसके लिए यह गुप्त जानकारी होती है। ऐसे लोगों के लिए सबसे अधिक संवेदनशील विषय क्या होता है? यह तब पता चलता है जब तुम उनसे पूछते हो, “हाल के दिनों में तुम क्या करते रहे हो? क्या तुम्हारे कर्तव्य निष्पादन के कोई नतीजे निकले हैं? क्या तुम्हारे कार्य के दायरे के क्षेत्र में कोई गड़बड़ियाँ या विघ्न-बाधाएँ आई हैं? तुम उनसे कैसे निपटे? क्या अपने कार्य में तुम वहीं हो जहाँ तुम्हें होना चाहिए? क्या तुम अपना कर्तव्य निष्ठापूर्वक निभाते रहे हो? क्या तुमने जो कार्य संबंधी फैसले लिए हैं, उनसे परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचा है? क्या जो अगुआ मानक-स्तर के नहीं हैं, उन्हें बर्खास्त कर दिया गया है? क्या अच्छी काबिलियत वाले लोग जो सत्य का अपेक्षाकृत अधिक अनुसरण करते हैं, उन्हें पदोन्नत और विकसित किया गया है? क्या तुमने उन लोगों को दबाया है जो तुम्हारे प्रति अवज्ञापूर्ण रहे हैं? तुम्हें अपने भ्रष्ट स्वभाव का कितना ज्ञान है? तुम किस प्रकार के व्यक्ति हो?” ये विषय उनके लिए सबसे अधिक संवेदनशील होते हैं। ऐसे सवाल पूछे जाने से वे सबसे ज्यादा डरते हैं, इसलिए तुम्हारे उनके बारे में पूछने की प्रतीक्षा करने से पहले वे जल्दी से कोई दूसरा विषय ढूँढ़ने की कोशिश करेंगे ताकि वे उन पर परदा डाल सकें। वे हर तरह से तुम्हें गुमराह करने की कोशिश करेंगे, तुम्हें यह जानने नहीं देंगे कि मौजूदा वास्तविक स्थिति क्या है। वे तुम्हें हमेशा अँधेरे में रखते हैं, यह जानने देने से रोकते हैं कि वास्तव में वे अपने कार्य में कहाँ तक पहुँचे हैं। वहाँ जरा भी पारदर्शिता नहीं होती। क्या ऐसे लोग परमेश्वर में सच्ची आस्था रखते हैं? क्या वे परमेश्वर का भय मानते हैं? नहीं। वे कभी भी सक्रिय होकर कार्य की रिपोर्ट नहीं देते, न ही वे सक्रियता से अपने कार्य में हुई दुर्घटनाओं की सूचना देते हैं; वे अपने काम में आने वाली चुनौतियों और उलझनों के बारे में कभी भी नहीं पूछते, खोजते या खुलकर नहीं बताते, बल्कि उन चीजों को छिपाने, और दूसरों की आँखों में धूल झोंकने और उन्हें धोखा देने में लग जाते हैं। उनके कार्य में जरा भी पारदर्शिता नहीं होती, और सिर्फ जब ऊपरवाला उनसे तथ्यात्मक रिपोर्ट और हिसाब-किताब देने के लिए दबाव डालता है, तभी वे अनिच्छा से थोड़ा-बहुत बताते हैं। वे अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे से जुड़े मसलों पर बोलने के बजाय मर जाना पसंद करेंगे—उस पर एक भी शब्द बोलने से पहले ही मर जाएँगे। इसके बजाय, वे नहीं समझ पाने का बहाना करेंगे। क्या यह मसीह-विरोधी का स्वभाव नहीं है? यह किस प्रकार का व्यक्ति है? क्या इस प्रकार की समस्या का समाधान आसानी से हो जाता है? यदि ऊपरवाला उनके कार्य में उन्हें दिशा-निर्देश देता है, तो उसके प्रति उनका रवैया क्या होता है? बेपरवाही। वे सहमत होते प्रतीत होते हैं, यहाँ तक कि वे कोई नोटबुक या कंप्यूटर निकाल कर तेजी से बातें लिख लेंगे—लेकिन एक बार ऐसा करने के बाद क्या वे मार्गदर्शन को समझ चुके होते हैं और कार्य में लग जाते हैं? (नहीं।) वे तुम्हारे देखने के लिए नाटक कर रहे हैं, तुम्हें गुमराह करने के लिए दिखावा कर रहे हैं। वे वास्तव में क्या सोच रहे हैं? “चूँकि यह काम मुझे सौंपा गया है, इसलिए मैं जो कहूँगा वही चलेगा। मैं जो करना चाहता हूँ उसमें कोई दखल नहीं दे सकता। ‘राज्य के अधिकारियों की तुलना में स्थानीय अधिकारियों के पास ज्यादा नियंत्रण रहता है,’ इसलिए मेरे पास यह अधिकार है। यदि ऐसा नहीं है, तो मुझे यह काम मत सँभालने दो। मुझे निकाल दो।” वे ऐसा ही सोचते हैं, और इसी तरह कार्य करते हैं। यह कौन-सा स्वभाव है? क्या यह किसी मसीह-विरोधी का स्वभाव नहीं है? (हाँ, है।) इसका मतलब मुसीबत है। तुम्हें हस्तक्षेप करने या पूछताछ करने की अनुमति नहीं है, न ही जाँच करने और सवाल पूछने की अनुमति है। वे इसके प्रति बहुत संवेदनशील होते हैं। वे सोचते हैं, “क्या ऊपरवाला मेरी समस्याओं का पता लगाने और मेरे काम की जाँच करने की कोशिश कर रहा है? किसने राज उगला है?” घबराहट में वे यह पता लगाने का ठोस प्रयास करते हैं कि भला वह कौन है जिसने उन्हें जोखिम में डाला। अंत में, उनके संदेह के घेरे में दो लोग रह जाते हैं, और वे उन्हें तुरंत निकाल देते हैं। यह कैसी समस्या है? यह मसीह-विरोधी का स्वभाव है।

किसी मसीह-विरोधी के स्वभाव का मुख्य प्रमाण-चिह्न क्या होता है। रुतबे पर पकड़ बनाए रखना और दूसरों को नियंत्रित करना। वे दूसरों को नियंत्रित करने के लिए रुतबा हासिल करते हैं। जब तक उनके पास रुतबा होगा, वे वैध रूप से लोगों को अपने नियंत्रण में लेते रहेंगे। मैं ऐसा क्यों कहता हूँ कि वे वैध रूप से ऐसा करेंगे? क्योंकि उनका कार्य उन्हें परमेश्वर के घर द्वारा सौंपा गया था; यह करने के लिए उन्हें भाई-बहनों ने चुना था। इस प्रकार क्या वे महसूस नहीं करेंगे कि ऐसा करने की वैधता उनके पास है? (हाँ।) इसलिए उनके लिए यह कुछ ऐसा है जिसका वे लाभ उठा सकते हैं, इसे ध्यान में रखते हुए : “तुम लोगों ने मुझे चुना, है कि नहीं? अगर तुमने मुझे चुना, तो तुम्हें मुझ पर भरोसा करना पड़ेगा। गैर-विश्वासियों की एक कहावत है : ‘न तो उन लोगों पर संदेह करो जिन्हें तुम नियोजित करते हो, न ही उन लोगों को नियोजित करो जिन पर तुम संदेह करते हो।’” यहाँ, वे एक शैतानी कहावत का भी प्रयोग करते हैं। क्या यह कहावत सत्य है? (नहीं।) यह शैतानी विधर्म और भ्रम है। अगर तुम उनके कार्य के बारे में पूछताछ करते हो, तो वे ऐसा सिद्धांत प्रस्तुत करेंगे : “‘न तो उन लोगों पर संदेह करो जिन्हें तुम नियोजित करते हो, न ही उन लोगों को नियोजित करो जिन पर तुम संदेह करते हो।’ अगर तुम मेरा उपयोग करते हो, तो तुम मुझ पर संदेह नहीं कर सकते। अगर तुम्हें नहीं मालूम कि मैं किस प्रकार का व्यक्ति हूँ, अगर तुम मेरी असलियत नहीं जान सकते, तो मेरा उपयोग मत करो। लेकिन तुम मेरा उपयोग कर रहे हो, और यह देखते हुए कि बात ऐसी है, मुझे इस स्थान पर अडिग रहना होगा। मैं जो कहता हूँ वह लागू होना चाहिए।” वे जो कहते हैं, वह कार्य के सभी मामलों में लागू होना चाहिए; उन्हें ऐसा न करने देने से, या उनके लिए कोई साझेदार ढूँढ़ने से, या दूसरों द्वारा उनकी निगरानी और मार्गदर्शन करवाने से काम नहीं चलेगा। यदि कोई उनके कार्य की जाँच करने आता है, तो वे बस मना कर देते हैं—उन्हें लगता है कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है, और उनकी जाँच करने की कोई जरूरत नहीं है। अधिकारों के अनुसार, वे अपने रुतबे और अधिकार का दूसरों पर, कार्यस्थल पर और कलीसिया के कार्य पर नियंत्रण करने के लिए फायदा उठाते हैं। क्या वे एक स्वतंत्र राज्य स्थापित नहीं कर रहे हैं? क्या यह एक मसीह-विरोधी नहीं है? परमेश्वर का घर उनसे यह काम करवा सकता है और इस कर्तव्य का निर्वहन करवा सकता है, लेकिन वह उन्हें एक तानाशाह की तरह सत्ता नहीं चलाने देगा। क्या ऐसे व्यक्ति ने परमेश्वर के इरादे और उसके घर की व्यवस्थाओं को गलत नहीं समझा है? वे अपना कर्तव्य अच्छे ढंग से करने के बजाय हमेशा रुतबे और सत्ता का लालच क्यों कर रहे हैं? (वे एक मसीह-विरोधी के स्वभाव से संचालित हैं।) सही है—किसी मसीह-विरोधी का स्वभाव ऐसा ही होता है। जब कलीसिया उनके लिए कार्य की व्यवस्था करती है तो वे उसे गलत क्यों समझते हैं? क्योंकि वे सहज रूप से लोगों को नियंत्रित करना पसंद करते हैं। यह उनका प्रकृति सार है—वे यही हैं। उनके लिए कार्य की व्यवस्था करो, और उन्हें महसूस होगा कि अब उनके पास सत्ता और रुतबा है, और इस तरह कार्यक्षेत्र पर उनका नियंत्रण है। अगर तुम उनके कार्यक्षेत्र में जाते हो, तो तुम्हें उनके कहे अनुसार करना होगा। उदाहरण के लिए, परमेश्वर के घर ने एक बार एक मसीह-विरोधी के कार्य की जाँच करने के लिए एक अगुआ की व्यवस्था की। वह और मसीह-विरोधी दोनों ही कलीसिया अगुआ थे; वे एक ही पद पर थे। मसीह-विरोधी ने कहा, “तुम एक कलीसिया अगुआ हो, और मैं भी एक कलीसिया अगुआ हूँ। हम एक ही पद पर हैं। तुम मेरे काम में दखल मत दो और मैं तुम्हारे काम में दखल नहीं दूँगा। मेरे साथ संगति मत करो—तुम वैसी स्थिति में हो ही नहीं! और तुम पूछना चाहोगे कि हमारी कलीसिया में काम कैसा चल रहा है—क्या ऊपरवाले ने तुम्हें यह करने का निर्देश दिया? मुझे प्रमाण दिखाओ।” अगुआ ने कहा, “ऊपरवाले ने मुझसे बस एक संदेश देने को कहा। अगर तुम्हें यकीन न हो, तो जाकर पूछ लो।” मसीह-विरोधी ने कहा, “तो फिर तुम्हें मेरे साथ संगति करने और मेरे विरुद्ध आरोप लगाने का क्या अधिकार है? मेरे कार्य के अधीन आने वाली चीजों के बारे में पूछताछ करने का क्या अधिकार है? ऐसा करने के लिए तुम्हारे पास कोई अधिकार नहीं है!” क्या ये शब्द सत्य से मेल खाते हैं? (नहीं।) यह कार्य का कैसा ढंग है? ऐसा ढंग जो सिर्फ कोई मसीह-विरोधी ही अपनाएगा। गैर-विश्वासियों के बीच एक कहावत चलती है : “जिसकी लाठी उसकी भैंस।” वे यह देखने के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं कि किसका पद ऊँचा है, किसकी ताकत ज्यादा है, कौन ज्यादा सक्षम है। वे यह देखने के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं कि कौन अधिक लोगों का प्रभारी है। और परमेश्वर के घर में मसीह-विरोधी यही चीजें देखने के लिए दूसरों से प्रतिस्पर्धा करते हैं। क्या वे गलत जगह पर नहीं आ गए हैं? जो व्यक्ति भ्रष्ट स्वभाव वाला हो, मगर मसीह-विरोधी न हो, क्या वह अपने ही पद वाले किसी कलीसिया अगुआ से मिलने पर आम तौर पर इस तरह से सोचेगा? वह कुछ चीजें प्रकट करेगा मगर सामान्य रूप से वह उस कलीसिया अगुआ के साथ संगति करने में सक्षम होगा। वह यह बिल्कुल नहीं कहेगा, “क्या तुम मेरे कार्य के बारे में पूछताछ करने की स्थिति में हो?” वह ऐसा नहीं कहेगा, क्योंकि वह सामान्य समझ वाला व्यक्ति है, और उसके पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल है। सामान्य समझ वाला कोई व्यक्ति किस तरह व्यवहार करेगा? वह सोचेगा, “हमसे कलीसिया की अगुआई करवाना—यह परमेश्वर का हमें ऊपर उठाना है; यह उसका आदेश है, और हमारा कर्तव्य है। यदि परमेश्वर ने हमें ऐसा करने का आदेश न दिया होता, तो हम कुछ भी न होते। यह किसी प्रकार की आधिकारिक नियुक्ति नहीं है। मैं तुम्हारे साथ कलीसिया के कार्य, भाई-बहनों के हालचाल और अपने कार्य अनुभव के बारे में संगति कर सकता हूँ।” क्या कोई मसीह-विरोधी इन चीजों के बारे में दूसरों से संगति करेगा? नहीं—वह बिल्कुल इनका खुलासा नहीं करेगा। इसी वजह से मसीह-विरोधियों का एक लक्षण रुतबे और सत्ता की इच्छा होती है जो साधारण लोगों से बढ़कर होती है और इसीलिए उससे परे वे साधारण लोगों से अधिक चालाक और कपटी होते हैं। उनकी चालाकी और कपट कहाँ अभिव्यक्त होते हैं? (वे तुम्हें कुछ नहीं बताते। वे तुमसे कोई भी चीज सीधे नहीं कहते।) बात यह है कि उन्हें लगता है कि हर मामला गुप्त होता है, ऐसा जिसके बारे में उन्हें दूसरों को नहीं बताना चाहिए। वे हर मामले में दूसरों से सावधान रहते हैं; वे सभी चीजों को परदे के पीछे, ढँककर और छिपाकर रखते हैं। तो फिर क्या वे दूसरों से अपने आचरण में सामान्य बातचीत और संवाद कर सकते हैं? क्या वे दिल से कुछ भी कह सकते हैं? नहीं। तुम्हें अंतर्निहित स्थिति का अंदाजा लगाने से रोकने के लिए वे बस थोड़ी-सी सतही बातें और खुशनुमा शब्द बोल देते हैं। उनके साथ कुछ समय तक संपर्क में रहने के बाद तुम्हें लगेगा, “देखने में यह व्यक्ति बुरा नहीं लगता, लेकिन मैं हमेशा यह क्यों महसूस करता हूँ कि उसका दिल अन्य लोगों से बहुत दूर है? उसके साथ संपर्क में रहने में हमेशा इतना अजीब क्यों लगता है? मुझे हमेशा महसूस होता है कि वे अथाह हैं।” क्या तुम भी ऐसा महसूस करते हो? (हाँ।) यह मसीह-विरोधी का स्वभाव होता है : ऐसे लोग सभी से सावधान रहते हैं। और वे सावधान क्यों रहते हैं? क्योंकि उनकी दृष्टि में कोई भी उनके रुतबे के लिए खतरा बन सकता है। यदि वे सावधान न रहें, अपनी सतर्कता छोड़ दें, वे दूसरों को यह जानने दे सकते हैं कि उनके साथ, उनके वास्तविक स्वरूप के साथ वास्तव में क्या चल रहा है—और फिर अपने रुतबे को बनाए रख पाना मुश्किल हो जाएगा। इसलिए जब वे किसी ऐसे व्यक्ति से मिलते हैं जो उनके कार्य और कर्तव्य की स्थिति या उनकी निजी स्थिति के बारे में पूछताछ करता है, तो वे जो कुछ गुप्त रख सकते हैं, उसे गुप्त रखते हैं और जो बात छिपा सकते हैं, उसे छिपा लेते हैं। जिस चीज को वे छिपा नहीं पाते, वे उसे दूर रखने का कोई तरीका ढूँढ़ लेंगे या खुद को उस व्यक्ति से छिपा लेंगे। कुछ मसीह-विरोधियों का स्वभाव विचित्र होता है : हालाँकि वे दूसरों के बीच रहते हैं, मगर तुम उन्हें किसी के साथ सामान्य बातचीत करते हुए नहीं देखोगे, और उनका दूसरों के साथ कोई सामान्य संवाद नहीं होता। वे हर दिन अपने-आप में रहते हैं, खाने के समय दिखाई देते हैं और उसके बाद फिर से गायब हो जाते हैं। वे हमेशा गायब होने का करतब करते रहते हैं। वे दूसरों से बातचीत क्यों नहीं करते? वे अपने परिवार को हर चीज बताते हैं, तो भाई-बहनों को बताने के लिए उनके पास कुछ क्यों नहीं होता? गैर-विश्वासियों की एक कहावत होती है : “जो ज्यादा बोलता है वह अधिक गलतियाँ करता है।” ऐसे लोग इस सिद्धांत के प्रति कटिबद्ध होते हैं; वे खुद को लापरवाही से बोलने की छूट नहीं देते, क्योंकि हो सकता है उनकी कही हुई कोई बात उनका राज खोल दे, उनकी कोई कमजोरी उजागर कर दे। कुछ नहीं कहा जा सकता कि उनका कौन-सा शब्द सुनकर दूसरे उन्हें नीची नजर से देखने लगें और जान जाएँ कि उनके साथ वास्तव में क्या चल रहा है, इसलिए वे दूसरों से बचने की भरसक कोशिश करते हैं। क्या उनकी यह टालमटोल अनजाने में होती है, या इसके भीतर कुछ होता है जो इसे संचालित करता है? उसमें कोई चीज होती है जो इसे संचालित करती है। क्या वह चीज न्यायसंगत और सम्मानजनक है या संदिग्ध? (यह संदिग्ध है।) बेशक यह संदिग्ध है। यही एकमात्र तरीका नहीं है जिससे मसीह-विरोधी व्यवहार करते हैं—अधिकतर समय वे दूसरों से सामान्य ढंग से संवाद या बातचीत नहीं करते; हालाँकि कभी-कभी वे अत्यंत सुस्पष्ट होते हैं और बोलने में सक्षम होते हैं—लेकिन वे किन चीजों के बारे में बात करते हैं? उनकी विषयवस्तु क्या होती है? वे शब्द और धर्म-सिद्धांतों का उपदेश देकर अपना दिखावा करते हैं। वे कहते हैं कि वे वास्तविक कार्य कर सकते हैं और वास्तविक समस्याओं को हल कर सकते हैं, जबकि दरअसल उनके पास कोई वास्तविक कौशल नहीं होता। उनसे पूछो कि उनमें कौन-सी कमियाँ हैं, क्या उनका स्वभाव अहंकारी है, तो वे कहेंगे, “भ्रष्ट मानवजाति में कौन ऐसा है जो अहंकारी नहीं है?” देखो तो—यहाँ तक कि उनके अहंकार का भी अपना आधार है। इसमें सभी शामिल कर लिए गए हैं, मानो उनका अहंकार बिल्कुल उचित हो। वे कभी भी सत्य को नहीं खोजेंगे, और ऐसा प्रतीत होता है कि उन्हें इस बात का बोध है ही नहीं कि कार्य में कोई समस्या या कठिनाई है। तुम उनसे पूछकर वास्तविक स्थिति का पता नहीं लगा पाओगे। जब उनके पास कुछ करने को न हो तो वे चुपचाप बैठे रहेंगे, और जब भी वे बोलेंगे अपनी योग्यताओं के बारे में बताते रहेंगे। वे कभी खुलकर नहीं बोलते; वे कभी नहीं बताते कि उनके भीतर किस प्रकार का विद्रोहीपन या कैसी अतिशय इच्छाएँ हैं या वे परमेश्वर से किस तरह से सौदेबाजी करने की कोशिश करते हैं, या उन्होंने किससे झूठ बोला है, या कार्य करने के पीछे उनकी महत्वाकांक्षाएँ क्या हैं। वे कभी ये मसले नहीं उठाते, और जब दूसरे उठाते हैं, तो वे दिलचस्पी नहीं लेते। यहाँ तक कि उनके कार्य के दायरे के भीतर की चीजों को छूने वाले सवालों पर भी वे सरसरी तौर पर थोड़ा बोल देते हैं। संक्षेप में कहें, तो कितने भी लंबे समय तक उनके संपर्क में रहने वाला कोई व्यक्ति यदि उनके कर्तव्य के दायरे के भीतर की कोई बात जानना चाहे, चाहे वह कर्मचारियों, पेशेवर अभ्यास या कार्य प्रगति से संबंधित हो, तो उसे बड़ी कठिनाई होगी। बात निकालने का तुम्हारा चाहे कोई भी तरीका हो—चाहे तुम अपना प्रश्न घुमा-फिरा कर पूछो या सीधे, या उनके किसी करीबी से पूछ डालो—तुम्हें आसानी से नतीजे नहीं मिलेंगे। यह बहुत श्रमसाध्य होता है। क्या यह कपटपूर्ण नहीं है? (हाँ।) उनसे चीजों के बारे में यथास्थिति की जानकारी पाना इतना श्रमसाध्य क्यों होता है? वे चीजों को इतनी सख्ती से छिपा कर क्यों रखते हैं? उनका लक्ष्य क्या होता है? वे अपने रुतबे और आजीविका में सुरक्षित बने रहना चाहते हैं। वे मानते हैं, “यह रुतबा पाना, आज मैं जहाँ हूँ वहाँ पहुँचना कोई आसान काम नहीं था—क्षणिक लापरवाही से गलती करके मैं खुद बेवकूफी कर लूँ तो क्या यह मेरे लिए मुसीबत का कारण नहीं होगा? इसके अलावा, अगर परमेश्वर के घर को मेरे किए हुए बुरे कामों का पता चल गया, तो कौन जानता है कि वे मुझसे नहीं निपटेंगे?” तुम खुलकर बोलने, एक ईमानदार इंसान होने, और निष्ठापूर्वक अपना कर्तव्य करने के बारे में जितना भी बोलो, क्या उन्हें समझ आएगा? नहीं, नहीं समझ आएगा। उनके लिए यही एकमात्र मूलमंत्र है : बेवजह की बातों से सावधान रहो। अगर तुम दूसरों को सब-कुछ बता देते हो, तो तुम अयोग्य हो—निकम्मे हो! यही उनका मूलमंत्र होता है। मसीह-विरोधियों का ऐसा स्वभाव होता है।

मसीह-विरोधी जो भी कार्य करता है वह दूसरों को दखल देने या पूछताछ करने से रोकता है और इससे भी अधिक वह परमेश्वर के घर को उसकी निगरानी करने से रोकता है। ऐसा करने के पीछे उसका लक्ष्य क्या होता है? वह मुख्य रूप से परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नियंत्रित करना चाहता है, अपने रुतबे और सत्ता को सुरक्षित रखना चाहता है, जिसका अर्थ है कि वह अपनी आजीविका को सुरक्षित कर रहा है। यही उसका मुख्य लक्ष्य होता है। अगर तुम लोग अगुआ या कार्यकर्ता हो, तो क्या तुम परमेश्वर के घर द्वारा अपने काम के बारे में पूछताछ किए जाने और उसका निरीक्षण किए जाने से डरते हो? क्या तुम डरते हो कि परमेश्वर का घर तुम लोगों के कार्य में खामियों और विचलनों का पता लगा लेगा और तुम लोगों की काट-छाँट करेगा? क्या तुम डरते हो कि जब ऊपरवाले को तुम लोगों की वास्तविक क्षमता और आध्यात्मिक कद का पता चलेगा, तो वह तुम लोगों को अलग तरह से देखेगा और तुम्हें प्रोन्नति के लायक नहीं समझेगा? अगर तुममें यह डर है, तो यह साबित करता है कि तुम्हारी अभिप्रेरणाएँ कलीसिया के काम के लिए नहीं हैं, तुम प्रतिष्ठा और रुतबे के लिए काम कर रहे हो, जिससे साबित होता है कि तुममें मसीह-विरोधी का स्वभाव है। अगर तुममें मसीह-विरोधी का स्वभाव है, तो तुम्हारे मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चलने और मसीह-विरोधियों द्वारा गढ़ी गई तमाम बुराइयाँ करने की संभावना है। अगर, तुम्हारे दिल में, परमेश्वर के घर द्वारा तुम्हारे काम की निगरानी करने का डर नहीं है, और तुम बिना कुछ छिपाए ऊपरवाले के सवालों और पूछताछ के वास्तविक उत्तर देने में सक्षम हो, और जितना तुम जानते हो उतना कह सकते हो, तो फिर चाहे तुम जो कहते हो वह सही हो या गलत, चाहे तुम जितनी भी भ्रष्टता प्रकट करो—भले ही तुम एक मसीह-विरोधी का स्वभाव प्रकट करो—तुम्हें बिल्कुल भी एक मसीह-विरोधी के रूप में निरूपित नहीं किया जाएगा। महत्वपूर्ण बात यह है कि क्या तुम मसीह-विरोधी के अपने स्वभाव को जानने में सक्षम हो, और क्या तुम यह समस्या हल करने के लिए सत्य खोजने में सक्षम हो। अगर तुम ऐसे व्यक्ति हो जो सत्य स्वीकारता है, तो मसीह-विरोधी वाला तुम्हारा स्वभाव ठीक किया जा सकता है। अगर तुम अच्छी तरह से जानते हो कि तुममें एक मसीह-विरोधी स्वभाव है और फिर भी उसे हल करने के लिए सत्य नहीं खोजते, अगर तुम सामने आने वाली समस्याओं को छिपाने या उनके बारे में झूठ बोलने की कोशिश करते हो और जिम्मेदारी से जी चुराते हो, और अगर तुम काट-छाँट किए जाने पर सत्य नहीं स्वीकारते, तो यह एक गंभीर समस्या है, और तुम मसीह-विरोधी से अलग नहीं हो। यह जानते हुए भी कि तुम्हारा स्वभाव मसीह-विरोधी है, तुम उसका सामना करने की हिम्मत क्यों नहीं करते? तुम उससे खुलकर क्यों नहीं निपट पाते, “अगर ऊपरवाला मेरे काम के बारे में पूछताछ करता है, तो मैं वह सब बताऊँगा जो मैं जानता हूँ, और भले ही मेरे द्वारा किए गए बुरे काम प्रकाश में आ जाएँ, और पता चलने पर ऊपरवाला अब मेरा उपयोग न करे, और मेरा रुतबा खो जाए, मैं फिर भी स्पष्ट रूप से वही कहूँगा जो मुझे कहना है”? परमेश्वर के घर द्वारा तुम्हारे काम का निरीक्षण और उसके बारे में पूछताछ किए जाने का तुम्हारा डर यह साबित करता है कि तुम सत्य से ज्यादा अपने रुतबे को सँजोते हो। क्या यह मसीह-विरोधी वाला स्वभाव नहीं है? रुतबे को सबसे अधिक सँजोना मसीह-विरोधी का स्वभाव है। तुम रुतबे को इतना क्यों सँजोते हो? रुतबे से तुम्हें क्या फायदे मिल सकते हैं? अगर रुतबा तुम्हारे लिए आपदा, कठिनाइयाँ, शर्मिंदगी और दर्द लेकर आए, तो क्या तुम उसे फिर भी सँजोकर रखोगे? (नहीं।) रुतबा होने से बहुत सारे फायदे मिलते हैं, जैसे दूसरों की ईर्ष्या, आदर, सम्मान और चापलूसी, और साथ ही उनकी प्रशंसा और श्रद्धा मिलना। श्रेष्ठता और विशेषाधिकार की भावना भी होती है, जो रुतबे से तुम्हें मिलती है, जो तुम्हें गरिमा और खुद के योग्य होने का एहसास कराती है। इसके अलावा, तुम उन चीजों का भी आनंद ले सकते हो, जिनका दूसरे लोग आनंद नहीं लेते, जैसे कि रुतबे के लाभ और विशेष व्यवहार। ये वे चीजें हैं, जिनके बारे में तुम सोचने की भी हिम्मत नहीं करते, लेकिन जिनकी तुमने अपने सपनों में लालसा की है। क्या तुम इन चीजों को बहुमूल्य समझते हो? अगर रुतबा केवल खोखला है, जिसका कोई वास्तविक महत्व नहीं है, और उसका बचाव करने से कोई वास्तविक प्रयोजन सिद्ध नहीं होता, तो क्या उसे बहुमूल्य समझना मूर्खता नहीं है? अगर तुम देह के हितों और भोगों जैसी चीजें छोड़ पाओ, तो प्रसिद्धि, लाभ और रुतबा तुम्हारे पैरों की बेड़ियाँ नहीं बनेंगे। तो, रुतबे को बहुमूल्य समझने और उसके पीछे दौड़ने से संबंधित मुद्दे हल करने के लिए पहले क्या हल किया जाना चाहिए? पहले, बुराई और छल करने, छिपाने और ढँकने, और साथ ही रुतबे के फायदों का आनंद लेने के लिए परमेश्वर के घर द्वारा निरीक्षण, पूछताछ और जाँच-पड़ताल से मना करने की समस्या की प्रकृति समझो। क्या यह परमेश्वर का घोर प्रतिरोध और विरोध तो नहीं? अगर तुम रुतबे के फायदों के लालच की प्रकृति और नतीजों की असलियत जान पाओ, तो रुतबे के पीछे दौड़ने की समस्या हल हो जाएगी। अगर तुम रुतबे के फायदों के लालच के सार की असलियत नहीं जान पाते, तो यह समस्या कभी हल नहीं होगी।

क्या तुम लोग कार्य करने और अपने कर्तव्य निभाने के लिए दूसरों के साथ सहयोग करते हो? क्या तुम निगरानी स्वीकारते हो? क्या तुमने दूसरों को हस्तक्षेप करने या पूछताछ करने से रोकने के लिए कुछ किया है? अगर कोई पूछताछ करे, तो फिर क्या तुम उसका प्रतिरोध करके कहते हो, “मेरे काम में हस्तक्षेप करने वाले तुम कौन हो? मैं रुतबे में तुमसे एक पद ऊपर हूँ, और मेरे कार्य में मेरा फैसला चलता है। ऊपरवाले ने पूछताछ नहीं की, तो तुम्हें यह अधिकार कहाँ से मिला?” ऐसा ही कुछ? मसीह-विरोधियों का मुख्य स्वभाव क्या होता है? रुतबा हथियाना और सत्ता पाने की लालसा; ऐसा कुछ भी न करना जो परमेश्वर के घर को फायदा पहुँचाए, ऐसा कुछ भी न करना जो कुछ उसके हितों पर ध्यान देने से उपजे, बल्कि लापरवाह और धोखेबाज होना और अनमने ढंग से कार्य करना। बाहर से देखने पर वे पूरे जोश के साथ अपने काम में व्यस्त प्रतीत होते हैं, लेकिन उनके द्वारा किए जा रहे कामों को देखो, जिनमें पहले तो कोई प्रगति नहीं होती; दूसरे वे अकुशल होते हैं; और तीसरे इनका कोई खास प्रभाव नहीं होता—उन्हें बिल्कुल अव्यवस्थित बना दिया जाता है। सिर्फ एक चीज है जिसका वे त्याग नहीं करते, और वह है अपने काम से मिले अवसर का उपयोग करके सत्ता हथिया लेना और उसे जाने न देना। सत्ता हाथ में रहने तक वे ठीक रहते हैं। वे जो भी काम करते हैं, चाहे इसका सरोकार किसी पेशे से हो, बाहरी मामलों से हो, तकनीकी कौशल से हो, या दूसरे पहलुओं से, उसमें समान रूप से कोई पारदर्शिता नहीं होती। क्या पारदर्शिता का यह अभाव अनजाने में होता है? नहीं—जो अनजाने में होता है वह स्वभावगत नहीं होता, बल्कि इसका संबंध काबिलियत की कमी और कार्य करने के तरीके को न जानने से है। तो फिर मैं यह क्यों कहता हूँ कि यह स्वभाव किसी मसीह-विरोधी का स्वभाव है? वे ऐसा जानबूझकर करते हैं। उनके भीतर एक मंशा होती है : वे जानबूझकर तुम्हें इन चीजों को जानने से दूर रखते हैं, जानबूझकर तुमसे छिपाते हैं और तुमसे मिलने से बचते हैं। वे तुम्हारे साथ बोलचाल और संवाद कम कर देते हैं; वे तुमसे आदान-प्रदान कम कर देते हैं। वे इन चीजों को उजागर करना कम कर देते हैं, ताकि तुम हमेशा उन्हें दोष न देते रहो, और उनसे पूछताछ न करो, ताकि तुम ज्यादा न जान पाओ कि वास्तव में क्या चल रहा है, ताकि तुम्हें उनके असली चेहरे का बोध न हो पाए। क्या यह जानबूझकर नहीं किया जाता? क्या इसके पीछे कोई मंशा नहीं है? उनकी मंशा और लक्ष्य क्या हैं? वे तुम्हें दाँव-पेंच में फँसाना चाहते हैं, अपना मतलब निकालना चाहते हैं, वे तुम्हारे सामने एक झूठी छवि पेश करते हैं, और तुम्हें जानने नहीं देते कि चीजें वास्तव में कैसी हैं। इस तरह वे अपने रुतबे को सुरक्षित कर चुके होते हैं, जिससे वे खुश होते हैं। क्या यही इसकी प्रकृति नहीं है? (हाँ, है।) यह मसीह-विरोधियों का स्वभाव है, जानबूझकर धोखा देना, आँखों में धूल झोंकना और चीजों पर परदा डालना। यह सब जानबूझकर किया जाता है। मुझे बताओ, ऐसी कौन-सी कार्य योजना है जो लोगों को इतना व्यस्त रखती है कि उनके पास दूसरों से मिलने का समय नहीं होता? कोई नहीं, है न? कोई भी कार्य योजना किसी को इतना ज्यादा व्यस्त नहीं करती कि उनके पास खाने-पीने और सोने का समय न हो, न ही दूसरों से मिलने का समय हो। अभी तक चीजों में इतनी अधिक व्यस्तता नहीं आई है। उन चीजों के लिए वक्त निकाला जा सकता है। तो फिर इन लोगों के पास समय क्यों नहीं है? वे तुमसे मिलना नहीं चाहते; वे नहीं चाहते कि तुम उनके कार्य के बारे में पूछताछ करो। क्या यह एक मसीह-विरोधी का स्वभाव नहीं है? (हाँ, है।) वे किस प्रकार के लोग हैं? क्या वे छद्म-विश्वासी नहीं हैं? हाँ, हैं—प्रत्येक मसीह-विरोधी एक छद्म-विश्वासी होता है। यदि नहीं होते तो वे परमेश्वर के घर के कार्य को हथिया नहीं लेते, या परमेश्वर का अनुसरण करने वालों को अपनी सत्ता के अधीन करके नियंत्रित नहीं करते। वे ऐसी चीजें नहीं करते। छद्म-विश्वासियों का पहला व्यवहार यह होता है कि उनमें परमेश्वर का भय मानने वाला दिल होता ही नहीं। वे परमेश्वर में विश्वास रखने के बहाने अपने हितों के लिए षड्यंत्र रचते हैं; वे दिलेर और लापरवाह होते हैं, बिल्कुल नहीं डरते। परमेश्वर में उनका विश्वास कोई सच्ची आस्था नहीं, बल्कि एक नारा होता है। उनके दिल में परमेश्वर का जरा भी भय नहीं होता।

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