मद आठ : वे दूसरों से केवल अपने प्रति समर्पण करवाएँगे, सत्य या परमेश्वर के प्रति नहीं (भाग दो) खंड एक

परिशिष्ट : सामान्य मानवता के तीन पहलुओं की संक्षिप्त चर्चा

अपनी संगति में इस बार हम कहानियाँ नहीं सुनाएँगे। हम एक ऐसे विषय से शुरू करेंगे जिस पर अक्सर विचार-विमर्श होता रहता है : मानवता क्या है। पहले हमने इस विषय पर काफी कुछ कहा है, और हम अब भी बोलते हैं। यह एक ऐसा विषय है जिसका अक्सर उल्लेख होता है, एक ऐसा मसला जिससे व्यक्ति का अपने जीवन में प्रतिदिन सामना होता है, एक ऐसा विषय जिसका कोई व्यक्ति प्रतिदिन सामना और अनुभव कर सकता है। विषय है कि मानवता क्या है। मानवता में बहुत-सी महत्वपूर्ण चीजें शामिल होती हैं। व्यक्ति के दैनिक जीवन में मानवता की कौन-सी सामान्य अभिव्यक्तियाँ होती हैं? (सत्यनिष्ठा और गरिमा।) और क्या? अंतरात्मा और विवेक, ठीक है? (हाँ।) तुम अक्सर उन पर बात करते हो। दूसरी और कौन-सी अभिव्यक्तियाँ हैं जिनके बारे में तुम अक्सर बात नहीं करते? यानी, मानवता के बारे में अपनी सामान्य चर्चा में तुम लोग मूल रूप से किन विषयों को नहीं छूते? अंतरात्मा और विवेक, सत्यनिष्ठा और गरिमा—ये पुराने विषय हैं, जिनका कोई नियमित रूप से सामना करता है। अंतरात्मा, विवेक, सत्यनिष्ठा और गरिमा, जिन पर तुम लोग अक्सर विचार-विमर्श करते हो, और तुम लोगों के असल जीवन के बीच कितना बड़ा संबंध है? इस सामग्री ने तुम्हारे अभ्यास और तुम लोगों के असल जीवन में प्रवेश को कैसे उन्नत किया है और उसमें कैसे मदद की है? यह कितना लाभकारी रहा है? तो ऐसी कौन-सी दूसरी मद हैं जो तुम लोगों के दैनिक सामान्य मानव जीवन से नजदीकी से जुड़ी हैं? मैं कुछ नाम लूँगा और हम देखेंगे कि क्या ये वे विषय हैं जिनसे तुम लोग नियमित रूप से रूबरू होते हो। मानवता से जुड़ी हमारी सामग्री में से पहले हम वह सामग्री अलग रख देंगे जो सकारात्मक है या नकारात्मक, और वह सामान्य मानवता से संबंधित है या असामान्य मानवता से। हमने अभी जिन मदों का उल्लेख किया उनसे परे एक मद है अपने दैनिक जीवन में विभिन्न प्रकार के लोगों, घटनाओं और चीजों के प्रति व्यवहार में लोगों का रवैया। क्या यही नहीं है? क्या इसमें मानवता शामिल नहीं है? (जरूर है।) एक और भी है, लोगों द्वारा दैनिक जीवन में अपने व्यक्तिगत परिवेश का प्रबंधन, और एक और है, दैनिक जीवन में विपरीत लिंग के साथ संपर्क में लोगों का रवैया और व्यवहार। क्या ये तीनों मदें मानवता से संबंधित हैं? (हाँ।) वे सभी संबंधित हैं। अब हम जिस विषय पर विचार-विमर्श करने वाले हैं, उसके लिए हम मनुष्य के सत्य के अनुसरण, परमेश्वर में विश्वास के साथ सत्य वास्तविकता में कैसे प्रवेश करें और विभिन्न सिद्धांतों को कैसे कायम रखें, इन विषयों को अलग रख देंगे, और केवल मानवता पर बात करेंगे। तो वे तीन मदें—क्या मानवता से उनका संबंध ठोस है? (हाँ।) वे तीन मदें कौन-सी हैं? उनका फिर से उल्लेख करो। (पहला है, अपने दैनिक जीवन में विभिन्न प्रकार के लोगों, घटनाओं और चीजों के प्रति व्यवहार में लोगों का रवैया। दूसरा है, लोगों द्वारा दैनिक जीवन में अपने व्यक्तिगत परिवेश का प्रबंधन। तीसरा है, लोगों के दैनिक जीवन में विपरीत लिंग के साथ संपर्क में लोगों का रवैया और व्यवहार।) और उन तीन मदों में क्या शामिल है? (मानवता।) हम क्यों कहते हैं कि इन तीन मदों में मानवता शामिल है, कि वे उससे संबंधित हैं? हम इन तीनों को अलग क्यों रखेंगे? हम अंतरात्मा और विवेक वाले अंश की बात क्यों नहीं कर रहे हैं? हम उन पहलुओं को अलग क्यों रख रहे हैं जिनके बारे में हम इन तीन मदों पर चर्चा करते समय आम तौर पर विचार-विमर्श करते हैं? क्या ये तीनों मदें मानवता से संबंधित अंतरात्मा, विवेक, सत्यनिष्ठा और गरिमा, जिन पर हमने पहले विचार-विमर्श किया, उनसे ज्यादा उन्नत हैं या ज्यादा प्राथमिक? (वे ज्यादा प्राथमिक हैं।) तो क्या इन चीजों पर विचार-विमर्श करना तुम लोगों को तुच्छ मानना है? (नहीं।) तो हम इन पर विचार-विमर्श क्यों करेंगे? (वे व्यावहारिक हैं।) वे ज्यादा व्यावहारिक हैं। क्या तुम लोगों के पास यही विवेक है? हम इसके बारे में चर्चा क्यों करने वाले हैं? क्योंकि मुझे समस्याएँ मिली हैं; स्थितियों को लेकर जैसी कि वे हैं और वे विभिन्न व्यवहारों को लेकर जो लोगों के दैनिक जीवन में दिखाई देते हैं, मुझे कुछ समस्याएँ मिली हैं, जो लोगों के वास्तविक जीवन से नजदीकी से जुड़ी हुई हैं, और उन्हें संगति के लिए बारी-बारी से प्रस्तुत करना जरूरी है। यदि लोग परमेश्वर में अपने विश्वास में, वास्तविक जीवन, सामान्य मानवता और दैनिक जीवन के विभिन्न व्यवहारों को अलग रख दें, और दृढ़ निश्चय के साथ सत्य का अनुसरण करें—ऐसे गूढ़ सत्य जैसे कि वह व्यक्ति होना जिससे परमेश्वर प्रेम करता है—मुझे बताओ, इससे कैसी समस्याएँ पैदा होंगी? वह कौन सी बुनियादी शर्त है जिसके तहत कोई व्यक्ति सत्य के अपने अनुसरण में सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने में सक्षम हो सकता है? (उसे यह वास्तविक जीवन में करना पड़ेगा।) इसके अलावा और क्या? (उसमें सामान्य मानवता होनी चाहिए।) सही है—उसे सामान्य मानवता से युक्त होना चाहिए, जिसमें अंतरात्मा, विवेक, सत्यनिष्ठा और गरिमा के अलावा तीन मदें होती हैं जिनका हमने अभी उल्लेख किया। यदि कोई मानकों पर खरा न उतर सके या मानवता को छूने वाली इन तीन मदों में सामान्यता हासिल न कर पाए, तो उस व्यक्ति के लिए सत्य का अनुसरण करने और उसे खोजने की बात करना थोड़ा खोखलापन होगा। सत्य का अनुसरण, सत्य वास्तविकता में प्रवेश का अनुसरण, उद्धार का अनुसरण—इन्हें सभी लोग हासिल नहीं कर सकते, बस थोड़े-से लोग ही कर सकते हैं जो सत्य से प्रेम करते हैं और सामान्य मानवता से युक्त हैं। यदि कोई यह न जानता हो कि सामान्य मानवता वाले किसी व्यक्ति को किससे युक्त होना चाहिए, या उसे क्या करना चाहिए, या कुछ खास लोगों, घटनाओं और चीजों को लेकर उसका रवैया और नजरिया कैसा होना चाहिए, तो क्या वह व्यक्ति सत्य वास्तविकता में प्रवेश प्राप्त करने में सक्षम है? क्या सत्य के उसके अनुसरण के नतीजे निकल सकते हैं? दुख की बात है कि नहीं निकल सकते।

क. विभिन्न प्रकार के लोगों, घटनाओं और चीजों के प्रति व्यवहार में लोगों का रवैया

हम पहली मद पर संगति से शुरू करेंगे जिसमें मानवता शामिल है : अपने दैनिक जीवन में विभिन्न प्रकार के लोगों, घटनाओं और चीजों के प्रति व्यवहार में लोगों का रवैया। सभी समझते हैं कि “दैनिक जीवन” का अर्थ क्या है। इसको विस्तार से समझाने की जरूरत नहीं है। तो फिर मानवता से संबंधित मुख्य लोग, घटनाएँ और चीजें क्या होती हैं? यानी उसमें ऐसा क्या है जो सामान्य मानवता के स्तर तक पहुँचता है, जो इसके दायरे से संबंधित है, जो इसे छूता है? (लोगों और चीजों से जुड़ना।) यह इसका एक हिस्सा है। ज्ञान और पेशेवर कौशल भी हैं जो व्यक्ति को सीखने चाहिए, और फिर दैनिक जीवन के लिए सामान्य ज्ञान भी है। सामान्य मानवता वाले किसी व्यक्ति को जो समझना और जिनसे युक्त होना चाहिए, ये सब उसके अंश हैं। उदाहरण के लिए कुछ लोग बढ़ईगीरी या राजगीरी का काम सीखते हैं और कुछ दूसरे कार चलाना या मरम्मत करना सीखते हैं। ये कौशल और शिल्प हैं, और ऐसे शिल्प को जानना उस शिल्प के पेशेवर कारोबार में पारंगत होना है। तो किसी व्यक्ति को प्रवीण कहलाने के लिए किस सीमा और किस स्तर तक कोई कौशल सीखना चाहिए? उन्हें कम-से-कम स्वीकार्य स्तर तक कोई तैयार उत्पाद बनाने में सक्षम होना चाहिए। ऐसे कुछ लोग हैं जो बहुत घटिया काम करते हैं। वे जो काम करते हैं वह सही स्तर का नहीं होता, इतना घटिया होता है कि उसे देखना भी सहन नहीं होता। उसमें समस्या क्या है? यह अपने कारोबार के प्रति उनका रवैया दर्शाता है। कुछ लोगों का रवैया कर्तव्यनिष्ठ नहीं होता। वे सोचते हैं, “मैं जो बनाता हूँ अगर उससे काम चल जाए, तो काफी है। कुछ साल इनसे काम चला लो, फिर उसे दुरुस्त करेंगे।” क्या सामान्य मानवता वाले लोगों को ऐसा नजरिया अपनाना चाहिए? (नहीं।) कुछ लोगों के रवैये बेपरवाही वाले उदासीन होते हैं। उनके लिए “ठीक-ठाक” ही बढ़िया होता है। यह एक गैर-जिम्मेदाराना रवैया है। चीजों को इतनी लापरवाही और गैर-जिम्मेदारी से सँभालना एक भ्रष्ट स्वभाव के भीतर की चीज है : इसे लोग नीचता कहते हैं। वे अपने सारे काम “लगभग ठीक” और “काफी ठीक” की हद तक ही करते हैं; यह “शायद,” “संभवतः,” और “पाँच में से चार” का रवैया है; वे चीजों को अनमनेपन से करते हैं, यथासंभव कम से कम और झाँसा देकर काम चलाने से संतुष्ट रहते हैं; उन्हें चीजों को गंभीरता से लेने या सावधानी बरतने में कोई मतलब नहीं दिखता और सत्य-सिद्धांतों की तलाश करने का तो उनके लिए कोई मतलब ही नहीं। क्या यह एक भ्रष्ट स्वभाव के भीतर की चीज नहीं है? क्या यह सामान्य मानवता की अभिव्यक्ति है? नहीं। इसे अहंकार कहना सही है, और इसे अनैतिक कहना भी पूरी तरह से उपयुक्त है—लेकिन इसका अर्थ पूरी तरह से ग्रहण करना हो तो, एक ही शब्द उपयुक्त होगा और वह है “नीच।” अधिकांश लोगों के भीतर नीचता होती है, बस उसकी मात्रा ही भिन्न होती है। सभी मामलों में, वे बेमन और लापरवाह ढंग से चीजें करना चाहते हैं, और वे जो कुछ भी करते हैं, उसमें छल झलकता है। वे जब भी संभव हो दूसरों को धोखा देते हैं, जब भी संभव हो जैसे-तैसे काम निपटाते हैं, जब भी संभव हो समय बचाते हैं। वे मन ही मन सोचते हैं, “अगर मैं उजागर होने से बच सकता हूँ, और कोई समस्या पैदा नहीं करता, और मुझसे जवाब तलब नहीं किया जाता, तो मैं इसे जैसे-तैसे निपटा सकता हूँ। मुझे बहुत बढ़िया काम करने की जरूरत नहीं है, इसमें बड़ी तकलीफ है!” ऐसे लोग महारत हासिल करने के लिए कुछ नहीं सीखते, और वे अपनी पढ़ाई में कड़ी मेहनत नहीं करते या कष्ट नहीं उठाते और कीमत नहीं चुकाते। वे किसी विषय की सिर्फ सतह को खुरचना चाहते हैं और फिर यह मानते हुए कि उन्होंने जानने योग्य सब-कुछ सीख लिया है, खुद को उसमें प्रवीण कह देते हैं, और फिर जैसे-तैसे काम निपटाने के लिए वे उस पर भरोसा करते हैं। क्या दूसरे लोगों, घटनाओं और चीजों के प्रति लोगों का यही रवैया नहीं होता? क्या यह ठीक रवैया है? नहीं। सीधे शब्दों में कहें तो, यह “काम चलाना” है। ऐसी नीचता तमाम भ्रष्ट मनुष्यों में मौजूद है। जिन लोगों की मानवता में नीचता होती है, वे अपनी हर चीज में “काम चलाने” का दृष्टिकोण और रवैया अपनाते हैं। क्या ऐसे लोग अपना कर्तव्य ठीक से निभाने में सक्षम होते हैं? नहीं। तो क्या वे चीजों को सिद्धांत के साथ कर पाने में सक्षम होते हैं? इसकी संभावना और भी कम है।

कुछ लोग जो भी करते हैं, उसके प्रति कटिबद्ध नहीं होते, बल्कि लापरवाह, अनमने और गैर-जिम्मेदार होते हैं। उदाहरण के लिए कुछ ऐसे लोग होते हैं जो गाड़ी चलाना सीख लेते हैं, पर अनुभवी ड्राइवरों से कभी नहीं पूछते कि गाड़ी चलाते समय किस बात का ध्यान रखना चाहिए, या कितनी रफ्तार से इंजन को नुकसान पहुँचेगा। वे पूछते नहीं, बस चलाते रहते हैं—और नतीजतन उनकी कार में टूट-फूट हो जाती है। वे कार को लात मारते हैं और कहते हैं, “यह चीज बड़ी भंगुर है। मुझे मर्सिडीज या बीएमडब्ल्यू दो, इस खटारा से काम नहीं चलेगा—यह पुरानी खटारा है!” यह कैसा रवैया है? वे भौतिक चीजों से प्यार-भरी परवाह से पेश नहीं आते, और उन्हें अच्छी हालत में रखने के बारे में नहीं सोचते, बल्कि जानबूझकर उन्हें तोड़-फोड़ कर खराब कर देते हैं। कुछ लोग लापरवाह और ढीला-ढाला जीवन जीते हैं। वे सारा दिन हर काम उतावलेपन और लापरवाही से करते हैं। ये किस प्रकार के लोग हैं? (असावधान लोग।) “असावधान लोग” कहने का बढ़िया तरीका है—तुम्हें उन लोगों को “लापरवाह लोग” कहना चाहिए; “नीच लोग” कहना भी सटीक है। क्या कुछ ज्यादा हो गया? व्यक्ति कुलीन और नीच लोगों के बीच अंतर कैसे बता सकता है? बस कर्तव्यों के प्रति उनका रवैया और उनके क्रियाकलाप देखो, और देखो कि समस्याएँ आने पर वे चीजों को कैसे लेते और कैसे व्यवहार करते हैं। सत्यनिष्ठापूर्ण और गरिमापूर्ण लोग अपने क्रियाकलापों में सजग, कर्तव्यनिष्ठ और मेहनती होते हैं और वे कीमत चुकाने के लिए तैयार रहते हैं। सत्यनिष्ठाहीन और गरिमाहीन लोग अपने कार्य-कलापों में बेपरवाह और अनमने होते हैं, हमेशा कोई-न-कोई चाल चलते रहते हैं, हमेशा बस खानापूर्ति करना चाहते हैं। चाहे वे जिस भी तकनीक का अध्ययन करें, वे उसे कर्मठता से नहीं सीखते, वे उसे सीखने में असमर्थ रहते हैं, और चाहे वे उसका अध्ययन करने में जितना भी समय लगाएँ, वे पूरी तरह से अज्ञानी बने रहते हैं। ये निम्न चरित्र के लोग हैं। ज्यादातर लोग अपने कर्तव्य निर्वहन में अनमने होते हैं। उसमें कौन-सा स्वभाव कार्यरत होता है? (कमीनापन।) कमीने लोग अपने कर्तव्य से कैसे पेश आते हैं? निश्चित रूप से उसके प्रति उनका रवैया सही नहीं होता, और वे निश्चित रूप से उसे अनमने ढंग से करते हैं। इसका अर्थ है कि उनमें सामान्य मानवता नहीं होती। गंभीरता से कहें तो कमीने लोग जानवरों जैसे होते हैं। यह किसी कुत्ते को पालतू जानवर के रूप में रखने जैसा है : अगर तुम उस पर नजर न रखो, तो वह चीजों को चबा डालेगा, और तुम्हारे सभी फर्नीचर और उपकरणों को नष्ट कर देगा। इससे हानि होगी। कुत्ते जानवर हैं; वे चीजों से प्यार और परवाह से पेश आने के बारे में नहीं सोचते, और तुम उन्हें चीजों के लिए जवाबदेह नहीं ठहरा सकते—तुम्हें बस उन्हें सँभालना पड़ता है। यदि तुम नहीं सँभालते, बल्कि किसी जानवर को उत्पात मचाने देते हो और अपना जीवन बाधित करने देते हो, तो इससे पता चलता है कि तुम्हारी मानवता में किसी चीज की कमी है। फिर तुम किसी जानवर से ज्यादा अलग नहीं रह जाते। तुम्हारा आईक्यू बहुत कम होता है—तुम किसी काम के नहीं होते। तो फिर तुम उन्हें अच्छे-से कैसे सँभालोगे? तुम्हें किसी ऐसे तरीके के बारे में सोचना चाहिए कि उन्हें कुछ विशेष मापदंडों के भीतर सीमित रखो, या उन्हें पिंजड़े में कैद रखो और प्रतिदिन दो या तीन बार नियत समय पर बाहर आने दो, ताकि वे पर्याप्त गतिविधियाँ कर सकें। इससे उनके बेतहाशा चबाने पर रोक लगेगी और उनके स्वस्थ रहने के लिए उन्हें व्यायाम भी मिल जाएगा। इस तरह कुत्ते को अच्छी तरह सँभाला जाता है और तुम्हारा परिवेश भी निरापद रहता है। यदि कोई व्यक्ति अपने सामने वाली चीजों को न सँभाल सके और उसका रवैया सही न हो, तो उसकी मानवता में किसी चीज की कमी है। यह सामान्य मानवता के मानक पर खरा नहीं उतर सकता। या खाना बनाने के संदर्भ में : साधारण लोग तलने के लिए थोड़ा-सा तेल इस्तेमाल करते हैं, लेकिन ऐसी कुछ महिलाएँ ढेर सारा तेल डाल देती हैं। अमीर होने पर भी तुम तेल बरबाद नहीं कर सकते—तुम्हें उचित मात्रा में ही उपयोग करना चाहिए। लेकिन ये महिलाएँ इसकी परवाह नहीं करतीं; यदि उनका काबू नहीं रहता और वे तलने में ढेर सारा तेल उँडेल दें, तो वे ज्यादा तेल चम्मच से निकाल कर जमीन पर फेंक देती हैं। यह बरबादी है, है कि नहीं? भौतिक चीजों के बारे में ऐसा रवैया रखने वाले को आम तौर पर क्या कहा जाता है? “फिजूलखर्च”—या फिर अपमानित करने के लिए “उड़ाऊ” कहा जाता है। भौतिक चीजें कहाँ से आती हैं? ये परमेश्वर द्वारा दी जाती हैं। कुछ लोग कहते हैं कि उन्होंने अपनी चीजें खुद कमाई हैं—लेकिन अगर ये परमेश्वर द्वारा न दी जातीं, तो तुम कितना कमा पाते? उसने तुम्हें तुम्हारा जीवन दिया। अगर उसने तुम्हें तुम्हारा जीवन न दिया होता, तो तुम्हारे पास कुछ भी न होता और तुम भी कुछ न होते, तब भी क्या तुम्हारे पास तुम्हारी वे भौतिक चीजें होतीं? परमेश्वर ने तुम्हें औसत परिवार से कदाचित ज्यादा दिया हो, लेकिन जिस रवैये या दृष्टिकोण से तुम उसे बरबाद करते हो, क्या वह सही है? मानवता के लिहाज से इसे कैसे परिभाषित किया जाना चाहिए? ऐसे व्यक्ति की मानवता खराब है। फिजूलखर्ची, चीजें बरबाद करना, चीजों से प्यार और परवाह से पेश आने के बारे में न जानना—ऐसे व्यक्ति के पास सामान्य मानवता नहीं होती। कुछ लोग परमेश्वर के घर की चीजों को सावधानी से सँभालने के बारे में सोचते भी नहीं। कोई चीज परमेश्वर के घर की है। वे इसे देखते हैं। फिर भी यदि बारिश होने वाली हो, और अगर वह भीगने से खराब हो जाने वाली हो, तो वे क्या सोचेंगे? “यह भीग भी जाए तो कोई बड़ी बात नहीं है। यह मेरी अपनी चीज तो नहीं है। मैं इसे ऐसे ही छोड़ दूँगा।” फिर वे चले जाएँगे। इस रवैये को क्या कहा जाता है? स्वार्थपरता। क्या वे अपनी सोच में ईमानदार हैं? अगर नहीं, तो फिर वे क्या हैं? (कुटिल।) यदि कोई व्यक्ति ईमानदार नहीं है, तो क्या वह कुटिल नहीं है? जो लोग अपनी सोच में ईमानदार नहीं होते, क्या उनमें सामान्य मानवता होती है? बिल्कुल नहीं। अपनी पहली मद, विभिन्न प्रकार के लोगों, घटनाओं और चीजों के प्रति व्यवहार में लोगों के रवैये को लेकर हमने अब तक कितनी चीजों पर बात की है? एक है कमीनापन, नीचता। इसके अलावा? (अधम और कुटिल होना।) ऐसी बोलचाल वाली भाषा—क्या तुम लोग अपने दैनिक जीवन में आत्मचिंतन करते समय, खुद को जानते समय और अपना गहन विश्लेषण करते समय ऐसे शब्दों का उपयोग करते हो? (नहीं।) कोई नहीं करता। तो तुम लोग कौन-से शब्दों का उपयोग करते हो? तुम दिखावटी शब्दों में बोलते हो—कोई भी ऐसी रोजमर्रा की भाषा का प्रयोग नहीं करता।

बहुत-से लोग खुद को खूब महान समझते हैं क्योंकि वे परमेश्वर में विश्वास रखते हैं। जो लोग किसी कौशल और पेशेवर ज्ञान, या खास तौर से उन्नत डिग्रियों वाले हैं, उन्हें लगता है कि वे साधारण लोगों से ऊँचे हैं। अपने आप से खुश होकर वे सोचते हैं, “मैंने दुनिया में अपना बना-बनाया करियर भी छोड़ दिया, और मैं परमेश्वर के घर मुफ्त का खाने के लिए नहीं आया। मुझ जैसा कुशल व्यक्ति परमेश्वर के घर में योगदान दे सकता है। मैं परमेश्वर के लिए खुद को खपाता हूँ और कष्ट सहता हूँ। मैं सामुदायिक रिहाइश में इन आम लोगों के साथ कमरा और खाना भी साझा करता हूँ। मैं कितना उच्च कोटि का हूँ!” वे सोचते हैं कि उनमें विशेष गौरवयोग्य सत्यनिष्ठा है, कि वे बाकी सभी लोगों से अधिक श्रेष्ठ हैं। उन्हें इस बात से निरंतर खुशी मिलती है। तथ्य यह है कि उनकी मानवता से बहुत-सी चीजें गुम होती हैं, और न सिर्फ वे इस बारे में नहीं जानते, बल्कि वे सातवें आसमान पर होते हैं, यह सोचते रहते हैं कि वे महान हैं, कि उनका चरित्र साधारण लोगों से काफी शानदार है। दरअसल, उनमें एक भी चीज ऐसी नहीं होती जो उस “सामान्य” शब्द की परिभाषा पर खरी उतरती हो, जो “सामान्य मानवता” में “मानवता” शब्द से पहले आता है। उनमें कुछ भी उस स्तर का नहीं होता; हर चीज अपर्याप्त रह जाती है। उनकी अंतरात्मा? उनमें है ही नहीं। उनका चरित्र? यह अच्छा नहीं होता। उनकी सत्यनिष्ठा और गुण? इनमें से कुछ भी अच्छा नहीं होता। जब सब लोग एक साथ रहते हों और उनमें से कुछ लोगों के पास कोई अनमोल चीज हो, तो वे इसे खुला छोड़ने की हिम्मत नहीं करेंगे। ऐसा क्यों होता है? इसका एक अंश यह है कि वे दूसरों पर विश्वास नहीं करते, और दूसरा यह कि जहाँ अनेक लोग होते हैं, वहाँ अविश्वसनीय लोग होते हैं, और उनमें से कुछ का रुझान चोरी का हो सकता है—वे चोरी भी कर सकते हैं। इन लोगों का चरित्र खराब होता है। कुछ लोग खाना खाते समय सबसे बढ़िया निवाले उठाने को तैयार रहते हैं, और वे उन्हें भरपेट खाते हैं, उनके पीछे चाहे कितने भी लोगों ने खाना न खाया हो। क्या यह अत्यधिक स्वार्थपरता नहीं हैं? कुछ ऐसे होते हैं जो खाना खाते समय दूसरों का ध्यान रखते हैं। यह क्या दर्शाता है? यह दिखाता है कि ये समझदार लोग हैं जो दूसरों का ध्यान रखते हैं। वे थोड़ा कम खाएँगे, ताकि दूसरों के लिए थोड़ा बच जाए। उत्कृष्ट होने के यही मायने हैं। परमेश्वर के घर में, कुछ लोगों में मानवता होती है, जबकि कुछ लोगों में इसकी थोड़ी कमी रह जाती है। वे सामान्य मानवता के मानकों पर भी खरे नहीं उतर सकते। जिन व्यवहारों का मैंने जिक्र किया उन पर नजर डालें, तो क्या तुम लोगों के बीच सामान्य मानवता वाले लोग बहुत-से हैं? या ज्यादा लोग नहीं हैं? जब तुम लोग आम तौर पर ऐसा व्यवहार प्रदर्शित करते हो, तो क्या तुम लोग यह एहसास करने में सक्षम होते हो कि ये समस्याएँ हैं? जब तुम कोई भ्रष्ट स्वभाव प्रकट करते हो, तो क्या तुम्हें पता होता है? यदि तुम इसे जानते हो, महसूस कर सकते हो, और बदलाव करने को तैयार हो, तो तुममें थोड़ी-सी मानवता है—बस इसे अभी सामान्यता हासिल नहीं हुई है। यदि तुम्हें यह पता ही न हो, तो क्या तुम्हें मानवता वाले किसी व्यक्ति के रूप में गिना जा सकता है? नहीं गिना जा सकता। यह अच्छी या बुरी मानवता, सामान्य या असामान्य मानवता का प्रश्न नहीं है—तुममें मानवता है ही नहीं। उदाहरण के लिए, भोजन के समय ब्रेज्ड पोर्क की प्लेट बाहर आते देखते ही कुछ लोग उन पर झपट पड़ते हैं, फिर चाहे टुकड़े मांसल हों या पतले, और तब तक नहीं रुकते जब तक वे खत्म नहीं हो जाते। क्या तुम लोगों ने जानवरों को खाने के लिए लड़ते हुए देखा है? (हाँ।) यही दृश्य होता है, मगर जानवरों के साथ; इंसानों के बीच क्या यह लड़ाई सामान्य मानवता का अंश है? (यह सामान्य मानवता नहीं है।) सामान्य मानवता वाले लोग क्या करेंगे? (वे जो भी मिले उससे खुश रहेंगे, लालची नहीं होंगे।) इस बात को कहने का यह बहुत ही तथ्यात्मक तरीका है। तो फिर कोई लालची कैसे नहीं हो सकता? इस मसले के प्रति कैसे विचार और कैसा ध्यान सामान्य मानवता वाले लोगों की सोच में होना चाहिए, जिसके जरिए कोई सटीकता के साथ कार्य कर सके? सबसे पहले, तुम्हारी सोच सही होनी चाहिए। उदाहरण के लिए, कोई महिला सोचेगी, “आज ढेर सारा ब्रेज्ड पोर्क है। मैं ज्यादा खाना चाहती हूँ, मगर थोड़ी लज्जित हूँ कि मैं भाइयों से घिरी हुई हूँ। मुझे क्या करना चाहिए? सोचती हूँ उनके शुरू करने तक मुझे खाने का इंतजार करना चाहिए। मैं नहीं चाहती कि दूसरे यह सोचें कि मुझ जैसी महिला इतनी पेटू कैसे हो सकती है। यह कितना अपमानजनक होगा!” किसी महिला के लिए इस तरह से सोचना सामान्य होगा क्योंकि महिलाएँ आम तौर पर थोड़ी संवेदनशील होती हैं। ज्यादातर पुरुष सोचेंगे, “ब्रेज्ड पोर्क लाजवाब है। मैं बस जाकर भरपेट खा लेता हूँ।” वे अपनी चॉपस्टिक्स लेकर पहुँचने वाले लोगों में सबसे पहले होंगे, उन्हें परवाह नहीं होगी कि दूसरे क्या सोचेंगे। लेकिन कुछ पुरुष थोड़े ज्यादा तार्किक होते हैं। एक निवाला खाने के बाद वे इस बारे में थोड़ा सोचते हैं : “मेरे पीछे इतने सारे लोग हैं जिन्होंने अभी खाया नहीं है। मुझे रुक जाना चाहिए और दूसरों के लिए थोड़ा छोड़ देना चाहिए।” यह तथ्य कि वे इस तरह सोच सकते हैं और कार्य कर सकते हैं यह दर्शाता है कि वे विवेकपूर्ण व्यक्ति हैं और उनमें सहज रूप से सामान्य मानवता है। कुछ लोग बेतुके भटकाव में चले जाते हैं : “परमेश्वर नहीं चाहता कि लोग ब्रेज्ड पोर्क खाएँ, इसलिए मैं एक निवाला भी नहीं खाऊँगा। इसका अर्थ है कि मुझमें और अधिक मानवता है, है कि नहीं?” यह बेतुकी सोच है। इस उदाहरण से मैं क्या प्रदर्शित कर रहा हूँ? यह कि लोगों को हर प्रकार के व्यक्ति, घटना और चीज के प्रति सही रवैया अपनाना चाहिए। व्यक्ति इस सही रवैये तक उस विचार के जरिए पहुँचता है जो मानवता की तार्किकता, अंतरात्मा, सत्यनिष्ठा और गरिमा के परिप्रेक्ष्य से किया जाता है। यदि तुम ऐसी मानसिकता से अभ्यास करते हो, तो तुम मूल रूप से सामान्य मानवता के अनुरूप रहोगे।

लोगों, घटनाओं और चीजों के प्रति किसी का रवैया इससे अलग कुछ नहीं होता कि उनके दैनिक जीवन में लोगों और चीजों से जुड़ाव किस रूप में अभिव्यक्त होता है। हो सकता है इन अभिव्यक्तियों का तुम्हारे किए जाने वाले कार्य से कोई ज्यादा लेना-देना न हो, या वे इससे काफी दूर हों, लेकिन परमेश्वर में विश्वास खोखला नहीं होता : परमेश्वर के विश्वासी शून्य में नहीं रहते, बल्कि वास्तविक जीवन में रहते हैं। उन्हें वास्तविक जीवन से अनासक्त नहीं होना चाहिए। चाहे यह पेशेवर कौशलों के प्रति हो या किसी चीज को लेकर सामान्य बुद्धि या ज्ञान के बारे में हो, लोगों को किस प्रकार का रवैया और सोच रखनी चाहिए? क्या हमेशा उलझन में रहने की मानसिकता सही होती है? कुछ लोग इन चीजों को लेकर हमेशा भ्रमित रहते हैं—क्या इससे काम चलेगा? क्या उन्हें अपने दृष्टिकोण से कोई समस्या नहीं होती? उनके दृष्टिकोण की समस्या उसका एक अंश है; इससे परे, इसका लेना-देना उनके चरित्र से होता है। बड़े लाल अजगर ने चीन पर हजारों वर्षों से शासन किया है, हमेशा अभियानों और संघर्षों में संलग्न रहा है। इससे अर्थतंत्र का विकास नहीं होता, और यह आम लोगों के जीवन के बारे में नहीं सोचता। अंततः लोगों ने इसके साथ बहते जाने की एक प्रकार की नीचता को बढ़ावा दिया। अपने हर काम में वे अनमने होते हैं और एक अदूरदर्शी नजरिया पालते हैं। अपने किसी भी अध्ययन में वे उत्कृष्टता का लक्ष्य नहीं रखते, न ही वे यह हासिल कर सकते हैं। वे हमेशा एक अदूरदर्शी नजरिए से काम करते हैं : वे देखते हैं कि बाजार की जरूरतें क्या हैं, और फिर जल्दी से वे चीजें बनाने में लग जाते हैं, और धन-दौलत कमाने तक किसी चीज के बारे में नहीं सोचते। वे इस नींव से ऊपर नहीं बढ़ते, आगे वैज्ञानिक शोध नहीं करते या और अधिक पूर्ण श्रेष्ठता पाने का प्रयास नहीं करते, और अंतिम परिणाम यह होता है कि चीन के हल्के उद्योग, भारी उद्योग, और वैसे ही तमाम दूसरे क्षेत्र भी विश्व मंच पर कोई अत्याधुनिक उत्पाद पेश नहीं कर पाते। फिर भी चीनी लोग शेखी बघारते हैं : “यहाँ चीन में हमारे पास 5,000 साल की अव्वल दर्जे की पारंपरिक संस्कृति है। हम चीनी लोग दयालु और मेहनती होते हैं।” तो फिर चीन लोगों को ठगने के लिए नकली चीजें क्यों बनाता है? उनके पास ऐसी कोई चीज क्यों नहीं हैं जो विश्व बाजार में प्रतिस्पर्धा कर सके? वहाँ क्या चल रहा है? क्या चीन के पास अत्याधुनिक उत्पाद हैं? चीनी लोगों के पास एक “अत्याधुनिक चीज” अवश्य है, और वह है नकल करने और खोटी चीजें बनाने का कौशल—धोखा देने का। इसी में उनकी नीचता मौजूद होती है। कुछ लोग कहेंगे, “तुम हमें इस तरह से क्यों दर्शाते हो? क्या तुम्हें नहीं लगता कि यह हमें छोटा और नीचा दिखाता है।” ऐसी बात है? चीनियों द्वारा किए जाने वाले काम को देखें तो सचमुच कहा जा सकता है कि यह सच है। क्या बाजार में या आम लोगों में कुछ ऐसे चीनी लोग हैं, जो अपना उचित काम करते हैं? बहुत कम, और जो लोग अपना उचित कार्य करना भी चाहते हैं वे यह देखकर अपनी दृढ़ता खो देते हैं कि सामाजिक परिवेश कितना प्रतिकूल है और अपना उचित कार्य करने वालों के लिए कुछ अच्छा नहीं होता। वे कोशिश करना बंद कर देते हैं और छोड़ देते हैं।

वे चीजें जो मानवता को छूती हैं—वे रवैये, विचार और मत, जो लोग अन्य लोगों, घटनाओं और चीजों के प्रति अपने व्यवहार में प्रकट करते हैं—बहुत कुछ बयाँ करते हैं। वे चीजें क्या बताती हैं? वे बताती हैं कि कोई यह कैसे देख सकता है कि किसी व्यक्ति का चरित्र कैसा है, वह सभ्य और ईमानदार व्यक्ति है या नहीं। सभ्य और ईमानदार होना क्या होता है? क्या पारंपरिक होना सभ्य और ईमानदार होना है? क्या शिष्ट और तमीजदार होना सभ्य और ईमानदार होना है? (नहीं।) क्या नियमों का अक्षरशः पालन करना सभ्य और ईमानदार होना होता है? (नहीं।) इनमें से कुछ भी नहीं है। तो सभ्य और ईमानदार होना क्या होता है? अगर कोई व्यक्ति वास्तव में सभ्य और ईमानदार है, तो चाहे वह कुछ भी करे, वह उसे एक विशेष मानसिकता के साथ करता है : “चाहे मुझे यह काम करना पसंद हो या नहीं और चाहे यह मेरे हितों के दायरे में आता हो या नहीं, या चाहे यह ऐसी चीज हो जिसमें मेरी कम दिलचस्पी है—यह मुझे करने के लिए दिया गया था और मैं इसे अच्छी तरह से करूँगा। मैं एकदम आरंभ से इसका अध्ययन करना शुरू करूँगा, और अपने पैर जमीन पर रखते हुए, मैं इसे एक बार में एक कदम उठाकर करूँगा। अंत में, चाहे मैं कार्य में कितनी भी प्रगति कर पाया हूँ, मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया होगा।” कम से कम तुममें ऐसा रवैया और मानसिकता है जो जमीन से जुड़ी है। अगर तुम जिस क्षण से कोई कार्य लेते हो, उसी क्षण से उसे अव्यवस्थित रूप से करते हो और उसकी जरा भी परवाह नहीं करते—अगर तुम उसे गंभीरता से नहीं लेते, और प्रासंगिक संसाधनों को नहीं देखते, विस्तृत तैयारी नहीं करते, या खोजते और दूसरों से परामर्श नहीं लेते; और इसके अतिरिक्त, अगर तुम इस चीज का अध्ययन करने में लगने वाला समय नहीं बढ़ाते, ताकि तुम उसमें लगातार सुधार करते हुए उस कौशल या पेशे में महारत हासिल कर सको, बल्कि उसके प्रति एक लापरवाही भरा और जैसे-तैसे निपटाने का रवैया अपनाए रखते हो, तो यह तुम्हारी मानवता की समस्या है। क्या यह सिर्फ अव्यवस्थित तरीके से काम करना नहीं है? कुछ लोग कहते हैं, “तुम्हारे द्वारा मुझे इस तरह का कर्तव्य दिया जाना पसंद नहीं है।” अगर तुम्हें वह पसंद नहीं है, तो उसे स्वीकार मत करो—और अगर तुम उसे स्वीकार करते हो, तो तुम्हें उसे एक गंभीर, जिम्मेदारी भरे रवैये के साथ लेना चाहिए। तुम्हारा ऐसा ही रवैया होना चाहिए। क्या सामान्य मानवता वाले लोगों में यह नहीं होना चाहिए? सभ्य और ईमानदार होना यही है। सामान्य मानवता के इस पहलू में, तुममें कम-से-कम सामान्य मनुष्य की दत्तचित्तता, कर्तव्यनिष्ठा, और कीमत चुकाने की इच्छा के साथ-साथ उसका जमीन से जुड़े होने का रवैया, उसकी ईमानदारी और जिम्मेदारी की भावना होनी आवश्यक है। इन चीजों का होना काफी है।

कलीसिया में तमाम तरह के लोग होते हैं। जो लोग सत्य से प्रेम करते हैं, वे बेहतर मानवता वाले होते हैं, और जब वे भ्रष्ट स्वभाव प्रकट करते हैं, तो उन्हें आसानी से सुधार दिया जाता है। जो लोग सत्य से प्रेम नहीं करते वे बदतर मानवता वाले होते हैं। यदि कोई व्यक्ति ध्यान न दे और परमेश्वर के आदेश के प्रति गैर-जिम्मेदारी दिखाए, तो क्या वह श्रेय के अयोग्य नहीं है? ऐसी मानवता बेकार होती है और इसका कोई मूल्य नहीं होता। यह अधम होती है। तुम परमेश्वर में विश्वास रखते हो। यदि तुम अपने आदेश के प्रति अनमने और गैर-जिम्मेदार रवैये से पेश आते हो, चाहे वह तुम्हारे लिए परमेश्वर का आदेश हो या कलीसिया का, तो क्या तुम्हारा रवैया वैसा है जो सामान्य मानवता वाले का होना चाहिए? शायद कुछ लोग कहें, “मैं भाई-बहनों द्वारा मुझे करने के लिए दिए गए कार्य को गंभीरता से नहीं लेता, लेकिन मैं गारंटी देता हूँ कि मैं उन चीजों में सफल रहूँगा जो परमेश्वर मुझे करने के लिए देगा। मैं उनसे अच्छी तरह पेश आऊँगा।” क्या यह सही भावना है? (नहीं।) यह किस तरह से सही नहीं है? जिस व्यक्ति की कोई साख नहीं है और जिसमें सदगुणों की कमी है, जिसकी मानवता में इन चीजों का अभाव है—वह किसके प्रति सच्चा हो सकता है? किसी के प्रति भी नहीं। अपने खुद के मामलों में भी वह धोखा देता है और खानापूर्ति करता है। क्या ऐसा व्यक्ति नीच और बेकार नहीं है? यदि कोई व्यक्ति दूसरे लोगों द्वारा दिए गए काम पर ध्यान दे, जिम्मेदारी ले और चीजों के साथ विश्वसनीय हो, तो क्या उसने परमेश्वर का जो आदेश स्वीकार किया है उसे वह और बदतर ढंग से निभाएगा? यदि अंतरात्मा और विवेक वाला कोई व्यक्ति सत्य को समझता हो, तो उसे परमेश्वर से स्वीकृत आदेश और अपने कर्तव्य निर्वहन के साथ खराब कार्य नहीं करना चाहिए। वह निश्चित रूप से उस व्यक्ति से काफी बेहतर करेगा जिसमें अंतरात्मा और सदगुण नहीं हैं। यही उनके चरित्र का अंतर होता है। कुछ लोग कहते हैं, “यदि तुम मुझसे किसी कुत्ते या बिल्ली की देखभाल करने को कहोगे, तो मैं उसे गंभीरता से नहीं लूँगा, लेकिन यदि मुझे परमेश्वर के घर का कोई महत्वपूर्ण कार्य दिया गया, तो मैं निश्चित रूप से इसे बढ़िया ढंग से करूँगा।” क्या यह मान्य है? (नहीं।) क्यों नहीं? आदेश चाहे जो हो, यदि किसी के लिए छोटे-बड़े सभी मामलों में एक जैसा सही दृष्टिकोण हो, और वह दिल से सही और श्रेष्ठ हो, उसमें सत्यनिष्ठा और साख हो, उसके आचरण में नैतिकता हो, तो यह अनमोल होता है, यह भिन्न होता है। ऐसे लोग किसी भी मामले पर अपनी नैतिकता और साख से ध्यान देते हैं। यदि कोई अनैतिक और श्रेय के लिए अयोग्य व्यक्ति कहे, “यदि परमेश्वर मुझे सीधे किसी काम का आदेश दे, तो मैं उसे जरूर अच्छे से करूँगा,” तो क्या यह सच्चा कथन होगा? यह कुछ ज्यादा ही बढ़ा-चढ़ा कर कही गई और कपटपूर्ण बात होगी। अंतरात्मा और विवेक के बिना तुम दूसरों के लिए विश्वसनीय कैसे हो सकते हो? तुम्हारे शब्द खोखले होंगे—वे एक चाल होंगे। एक बार परमेश्वर के घर में किसी स्थान की सुरक्षा के लिए दो छोटे कुत्ते थे। उनकी देखभाल करने के लिए किसी व्यक्ति की व्यवस्था की गई, और उसने उन्हें अपना ही समझकर उनकी देखरेख की और उन्हें सँभाला। वह व्यक्ति कुत्तों का खास प्रेमी नहीं था, मगर वह उनकी अच्छी तरह देखभाल करता था। जब कोई कुत्ता बीमार पड़ता तो वह उसका इलाज करता, उसे नहलाता और सही वक्त पर उसे खाना खिलाता। उसे कुत्ते पसंद नहीं थे, लेकिन उसने उन कुत्तों की देखभाल को अपने आदेश और जिम्मेदारी के रूप में लिया। क्या यहाँ ऐसा कुछ नहीं है जो मानवता में होना चाहिए? उसमें मानवता थी, इसलिए उसने वह काम अच्छे से किया। बाद में दोनों कुत्ते देखभाल के लिए किसी दूसरे को सौंप दिए गए, और उसी महीने वे दयनीय रूप से दुबले हो गए। क्या हुआ था? कुत्तों के बीमार पड़ने पर कोई उनकी देखभाल या उन पर ध्यान नहीं देता था, और उनकी खराब मनःस्थिति से उनकी भूख प्रभावित हुई। इसी वजह से वे इतने दुबले हो गए; उस व्यक्ति ने उनकी ऐसी देखभाल की। क्या लोगों के बीच कोई अंतर है? (हाँ।) कहाँ? (उनकी मानवता में।) जो व्यक्ति कुत्तों की अच्छी देखभाल करता था, क्या वह अनेक सत्य अच्छी तरह समझता था? जरूरी नहीं है। और जो उनकी खराब ढंग से देखभाल करता था, जरूरी नहीं कि उसने कम समय के लिए परमेश्वर में विश्वास रखा हो। तो फिर इन दोनों के बीच इतना बड़ा अंतर क्यों है? इस वजह से कि उनके चरित्र अलग हैं। कुछ लोग साख वाले होते हैं। जब वे किसी को वचन देते हैं, तो वे अंत में अपना लेखा-जोखा देने में सक्षम होंगे, चाहे उन्हें वह काम पसंद हो या न हो। जब वे कोई काम हाथ में लेते हैं, तो निश्चित रूप से वे उसे एक-एक करके करवा ही लेते हैं। वे दूसरों से मिले श्रेय पर खरे उतरते हैं, और अपने दिल से भी खरे उतरते हैं। उनमें अंतरात्मा होती है, और वे उसी से सभी चीजें मापते हैं। कुछ लोगों में अंतरात्मा होती ही नहीं है। वे वचन देंगे, मगर बाद में उसे निभाने के लिए कुछ नहीं करेंगे। वे नहीं कहेंगे, “उन्होंने मुझमें विश्वास रखा। मुझे उनका विश्वास बनाए रखने के लिए काम अच्छे ढंग से करना होगा।” उनके दिल में यह बात नहीं होती, और वे इस तरह से नहीं सोचते। क्या यह मानवता का अंतर नहीं है? मुझे बताओ, जिस व्यक्ति ने अच्छा काम किया, क्या उसे ऐसा करना श्रमसाध्य लगा? उसे यह बहुत थकाऊ या श्रमसाध्य नहीं लगा। उसने अच्छा काम कैसे करें यह सोचने में अपना दिमाग नहीं खपाया, और उसने इस काम को लेकर अक्सर प्रार्थना भी नहीं की। उसे दिल से मालूम था कि क्या करना उचित है, इसलिए उसने वह बोझ हाथ में लिया। जो व्यक्ति बोझ उठाने को तैयार नहीं था, उसने भी कर्तव्य को स्वीकार किया और फिर इसके बाद यह उसे एक झंझट जैसा लगने लगा। कुत्तों के भौंकने पर वह चिड़चिड़ा जाता और उन्हें फटकारता : “भौंको, भौंकोगे? एक बार और भौंको और मैं लात मार कर तुम्हें मार डालूँगा!” क्या यहाँ मानवता में अंतर नहीं है? जरूर है, बहुत बड़ा अंतर है। कुछ लोग ऐसे होते हैं कि जब तुम उन्हें कोई काम सौंपते हो, तो उन्हें चिड़चिड़ाहट पैदा होती है, एक झंझट लगता है, कि तुम उन्हें बहुत कम आजादी दे रहे हो। “एक और काम? मेरे पास पहले ही ढेरों काम हैं—मैं यहाँ बस मटरगश्ती नहीं कर रहा हूँ!” और इसलिए वे वह काम किसी और को देने, अपनी जिम्मेदारी न निभाने, और खुद को माफी देने के लिए तमाम तरह के बहाने बनाते हैं। उनमें बिल्कुल भी अंतरात्मा और विवेक नहीं होता, न ही वे खुद की जाँच करते हैं, इसके बजाय वे अपनी खराब मानवता की माफी के लिए औचित्य ढूँढ़ते हैं और बहाने बनाते हैं। खराब मानवता वाले लोग इसी तरह व्यवहार करते हैं। तो फिर क्या ऐसा व्यक्ति सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर सकता है? (नहीं।) क्यों नहीं? वह सत्य से प्रेम नहीं करता, और वह सकारात्मक चीजों से प्रेम नहीं करता। क्या बात ऐसी नहीं है? वह न तो सामान्य मानवता से युक्त होता है, न ही सकारात्मक चीजों की वास्तविकता से। उसके भीतर वह सार नहीं होता। तो सत्य और सामान्य मानवता के बीच क्या संबंध है? सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने और सत्य का अभ्यास करने के लिए किसी व्यक्ति की मानवता के भीतर क्या होना चाहिए? सबसे पहले उसके भीतर अंतरात्मा और विवेक होना चाहिए। वह जो भी करे, उसका रवैया, सोच और दृष्टिकोण सही होना चाहिए। सिर्फ इन्हीं चीजों से किसी में सामान्य मानवता हो सकती है—और केवल सामान्य मानवता से युक्त होकर ही कोई सत्य को स्वीकार कर उसका अभ्यास कर सकता है।

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