मद आठ : वे दूसरों से केवल अपने प्रति समर्पण करवाएँगे, सत्य या परमेश्वर के प्रति नहीं (भाग एक) खंड पाँच

मसीह-विरोधी किसी के भी साथ सहयोग करने में सक्षम नहीं होते। यह एक गंभीर समस्या है। मसीह-विरोधी चाहे कोई भी कर्तव्य कर रहा हो, वह चाहे किसी के भी साथ सहयोग करता हो, हमेशा झगड़े और विवाद होंगे। कुछ लोग कह सकते हैं, “अगर वे सफाई कार्य के प्रभारी हैं, और वे हर दिन अंदर साफ-सफाई कर देते हैं, तो दूसरों के साथ उनके असहयोगी होने की बात कैसे हो सकती है?” इसमें एक स्वभावगत समस्या है : वे जिसके साथ भी बातचीत कर रहे हों या कोई काम कर रहे हों, वे हमेशा उनका तिरस्कार करेंगे, हमेशा उन्हें उपदेश देना चाहेंगे, उनसे वही करवाना चाहेंगे जो वे कहेंगे। क्या तुम लोग कहोगे कि ऐसा व्यक्ति दूसरों के साथ सहयोगी हो सकता है? वह किसी के भी साथ सहयोगी नहीं हो सकता है; ऐसा इसलिए कि उसमें अत्यंत गंभीर भ्रष्ट स्वभाव होता है। न सिर्फ वह दूसरों के साथ सहयोग नहीं कर सकता है, वह ऊपर बैठ कर हमेशा दूसरों को खरी-खोटी सुना कर बेबस भी करता रहता है—वह हमेशा लोगों के कंधों पर बैठ कर उन्हें आज्ञा पालन के लिए मजबूर करने की कामना करता है। यह सिर्फ एक स्वभावगत समस्या नहीं है—यह उसकी मानवता के साथ भी एक गंभीर समस्या है। उसमें जरा भी जमीर या विवेक नहीं होता है। बुरे लोग ऐसे ही होते हैं। वे किसी के भी साथ सहयोग नहीं कर सकते; वे किसी के भी साथ मिल-जुल कर नहीं रह सकते। लोगों के बीच मानवता में कौन-सी चीजें साझा की जाती हैं? उनमें से कौन-सी चीजें संगत होती हैं? जमीर और विवेक, और सत्य से प्रेम करने का उनका रवैया—ये साझा की जाती हैं। यदि दोनों पक्षों में ऐसी सामान्य मानवता हो, तो वे मिल-जुल कर रह सकते हैं; यदि न हो, तो वे नहीं रह सकते; और यदि एक के पास हो और दूसरे के पास न हो, तो भी वे नहीं रह सकते। अच्छे लोग और बुरे लोग मिल-जुल कर नहीं रह सकते—उदार लोग और बुरे लोग मिल-जुल कर नहीं रह सकते। लोगों के एक दूसरे के साथ सामान्य रूप से मिल-जुल कर रहने के लिए कुछ खास शर्तों का पूरा होना जरूरी है : वे एक-दूसरे से सहयोग कर सकें, इससे पहले उनमें कम-से-कम जमीर और विवेक होना चाहिए, और उन्हें धैर्यवान और सहनशील होना चाहिए। कोई कर्तव्य निभाने में सहयोग कर पाने के लिए लोगों को एकमत होना चाहिए; उन्हें दूसरों की खूबियों का लाभ ले कर अपनी कमजोरियों की भरपाई करनी चाहिए, धैर्यवान और सहनशील होना चाहिए और उनके स्व-आचरण की एक आधाररेखा होनी चाहिए। इसी तरह से सामंजस्य में मिल-जुल कर रहने के लिए, भले ही समय-समय पर झगड़े और विवाद हों, सहयोग जारी रह सकता है, और कम-से-कम कोई शत्रुता पैदा नहीं होगी। यदि उनमें से एक के पास ऐसी आधाररेखा न हो, और वह कर्तव्यनिष्ठ या समझदार न हो, और वह लाभ-केंद्रित तरीके से काम करता हो, सिर्फ लाभ खोजता हो, हमेशा दूसरों की कीमत पर फायदा उठाना चाहता हो, तो सहयोग असंभव होगा। बुरे लोगों और दानव राजाओं के बीच ऐसा ही होता है, जो बिना किसी विराम के एक-दूसरे से युद्ध करते रहते हैं। आध्यात्मिक क्षेत्र की विभिन्न बुरी आत्माएँ एक-दूसरे से मिल-जुल कर नहीं रहतीं। हालाँकि दानव कभी-कभी संघ बना लेते हैं, मगर यह सब अपने लक्ष्य हासिल करने के लिए परस्पर शोषण करने को लेकर होता है। उनके संघ अस्थायी होते हैं, और जल्द ही वे खुद-ब-खुद बिखर जाते हैं। लोगों के बीच भी ऐसा ही होता है। मानवता विहीन लोग सड़े हुए सेब की तरह होते हैं जो पूरे गुच्छे को नष्ट कर देते हैं; सिर्फ सामान्य मानवता वाले लोगों को ही दूसरों से सहयोग करने, धैर्यवान और सहनशील होने में आसानी होती है, वे दूसरों की राय पर ध्यान दे पाते हैं, और अपने काम में अपने रुतबे को दूर रख पाते हैं, और इसे दूसरों के साथ विचार-विमर्श के बाद करते हैं। उनका भी स्वभाव भ्रष्ट होता है, और वे हमेशा चाहते हैं कि लोग उनकी बातों पर ध्यान दें—उनका भी यही इरादा होता है—लेकिन चूँकि उनके पास जमीर और विवेक होता है, वे सत्य को खोज सकते हैं, खुद को जानते हैं, उन्हें लगता है कि ऐसा करना अनुचित है जिसके लिए उनका दिल उन्हें धिक्कारता है, और वे खुद को संयमित कर पाते हैं, इसलिए चीजें करने के उनके तौर-तरीके थोड़ा-थोड़ा करके बदल जाएँगे। और इस तरह वे दूसरों के साथ सहयोग करने में सक्षम हो पाएँगे। वे भ्रष्ट स्वभाव प्रकट करते हैं लेकिन वे बुरे लोग नहीं हैं, और उनमें मसीह-विरोधियों का सार नहीं है। उन्हें दूसरों के साथ सहयोग करने में कोई बड़ी समस्या नहीं होगी। यदि वे बुरे लोग या मसीह-विरोधी होते, तो दूसरों के साथ सहयोग नहीं कर पाते। परमेश्वर के घर द्वारा निकाले गए सभी बुरे लोग और मसीह-विरोधी ऐसे ही होते हैं। वे किसी के भी साथ सहयोग नहीं कर पाते, और परिणामस्वरूप उन सभी का खुलासा हो जाता है और वे हटा दिए जाते हैं। फिर भी मसीह-विरोधियों के स्वभाव वाले अनेक लोग होते हैं जो मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चलते हैं, और जो काफी काट-छाँट से गुजरने के बाद सत्य को स्वीकार सकते हैं, सचमुच प्रायश्चित्त कर सकते हैं, और दूसरों के साथ धैर्यवान और सहनशील हो सकते हैं। ऐसे लोग दूसरों के साथ धीरे-धीरे सामंजस्यपूर्ण सहयोग करने में सक्षम होते हैं। केवल मसीह-विरोधी ही किसी के भी साथ सहयोग नहीं कर पाते हैं। चाहे वे अपने भ्रष्ट स्वभाव का जितना भी खुलासा करें, वे उसे दूर करने के लिए सत्य को नहीं खोजेंगे, बल्कि अनैतिक और असंयमित हो कर अपने ही तौर-तरीकों पर अड़े रहेंगे। बात बस इतनी नहीं है कि वे दूसरों के साथ सामंजस्य में सहयोग नहीं कर सकते हैं—यदि वे देखते हैं कि किसी ने उन्हें पहचान लिया है और उनसे नाखुश है, तो वे उस व्यक्ति को सताने पर भी उतारू हो जाते हैं, और उसके प्रति बहिष्कारपूर्ण और शत्रुतापूर्ण रवैया अपना लेते हैं। वे कलीसिया के कार्य में हस्तक्षेप होने की कीमत पर भी उसके प्रति शत्रुतापूर्ण बने रहेंगे। यह मसीह-विरोधियों के प्रकृति सार से निर्धारित होता है।

सामंजस्य में सहयोग करने के प्रशिक्षण में तुम लोगों को कौन-से सबक सीखने चाहिए? सहयोग करना सीखना सत्य से प्रेम करने के अभ्यास का एक अंश और साथ ही उसका एक लक्षण भी है। यह एक तरीका है जिससे किसी व्यक्ति में जमीर और तार्किकता होने की अभिव्यक्ति होती है। तुम कह सकते हो कि तुम्हारे पास जमीर, गरिमा और तार्किकता है, लेकिन अगर तुम किसी के भी साथ सहयोग नहीं कर सकते, और अपने परिवार, बाहर के लोगों या दोस्तों के साथ मिल-जुल कर नहीं रह सकते, तुम्हारी बातचीत बिखर जाती है, और तुम साझा कामों में अंतहीन विवादों में उलझ जाते हो, जिनके कारण तुम दुश्मन बन जाते हो—इस तरह से अगर तुम कभी किसी के भी साथ मिल-जुल कर नहीं रह सकते, तो तुम खतरे में हो। यदि ऐसा व्यवहार तुम्हारे तमाम भ्रष्ट स्वभावों के व्यवहारों में से एक है, या यह तुम्हारे उन सभी व्यवहारों में से एक है जो सत्य के अनुरूप नहीं हैं और यह केवल एक व्यवहार है और तुम स्वयं इसके बारे में जानते हो और जिसके बारे में तुम निरंतर खोज कर रहे हो और बदल रहे हो, तो तुम्हारे पास अभी भी एक मौका है। अभी भी उद्धार की गुंजाइश है; यह कोई बड़ी समस्या नहीं है। लेकिन अगर तुम स्वभावतः ऐसे इंसान हो, स्वभावतः किसी के भी साथ मिल-जुल कर नहीं रह पाते, और उसके बारे में चर्चा का कोई फायदा न हो—तुम इसे रोक नहीं पाते हो—तो फिर यह एक गंभीर समस्या है। तुम्हारे साथ सत्य पर चाहे जैसे भी संगति की जाए, यदि तुम इसे कोई महत्व नहीं देते, बल्कि महसूस करते हो कि यह समस्या कोई बड़ी बात नहीं है, कि यह तुम्हारा सामान्य जीवन है, यह वह मुख्य तरीका है जिससे तुम्हारा भ्रष्ट स्वभाव अभिव्यक्त होता है, तो फिर तुममें मसीह-विरोधी का सार है। और यदि वह तुम्हारा सार है, तो यह तुम्हारे मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चलने की अपेक्षा एक अलग बात है। कुछ लोग मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चलते हैं, और कुछ स्वयं मसीह-विरोधी होते हैं। क्या इनमें अंतर नहीं है? (बिल्कुल है।) जो मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चलते हैं, वे अपने कार्यकलापों में मसीह-विरोधियों के ये व्यवहार दर्शाते हैं; वे एक औसत व्यक्ति के मुकाबले मसीह-विरोधी का स्वभाव थोड़ा अधिक स्पष्ट रूप से और जाहिर तौर पर प्रकट करते हैं, लेकिन वे अभी भी वह कार्य कर सकते हैं जो सत्य के अनुरूप हो, जिसमें मानवता और तार्किकता हो। यदि कोई व्यक्ति बिल्कुल भी कोई सकारात्मक कार्य नहीं कर पाता, और इसके बजाय उसके कार्य पूरी तरह से मसीह-विरोधियों के ये व्यवहार होते हैं, मसीह-विरोधी के सार के ये प्रकाशन होते हैं—यदि उसके द्वारा किए जाने वाले सभी काम और किए जाने वाले सभी कर्तव्य ऐसे ही प्रकाशन हैं, और इनमें सत्य के अनुरूप कोई भी चीज न हो—तो ऐसी स्थिति में वह मसीह-विरोधी है।

कुछ अगुआ और कार्यकर्ता अतीत में अक्सर मसीह-विरोधी का स्वभाव प्रकट कर चुके हैं : वे अनियंत्रित और स्वेच्छाचारी थे, वे जो कहें हमेशा वही मानना होता था। लेकिन उन्होंने कोई स्पष्ट बुराई नहीं की और उनकी मानवता भयानक नहीं थी। काट-छाँट से गुजर कर, भाई-बहनों द्वारा मदद किए जाने से, कर्तव्य बदले जाने या बर्खास्त होने के माध्यम से, कुछ समय के लिए नकारात्मक होकर वे अंततः इस बात से अवगत हो जाते हैं कि उन्होंने जो पहले प्रकट किया था, वह भ्रष्ट स्वभाव था, वे पश्चात्ताप करने के लिए तैयार हो जाते और सोचते हैं, “चाहे जो हो, अपना कर्तव्य निभाते रहना सबसे महत्वपूर्ण है। हालाँकि मैं मसीह-विरोधी के मार्ग पर चल रहा था, लेकिन मुझे वैसा निरूपित नहीं किया गया था। यह परमेश्वर की दया है, इसलिए मुझे अपने विश्वास और अपने अनुसरण में कड़ी मेहनत करनी चाहिए। सत्य के अनुसरण के मार्ग में कुछ भी गलत नहीं है।” धीरे-धीरे, वे खुद को बदल लेते हैं, और फिर वे पश्चात्ताप करते हैं। उनमें अच्छी अभिव्यक्तियाँ होती हैं, वे अपने कर्तव्य निभाते समय सत्य सिद्धांतों को खोज पाते हैं और दूसरों के साथ जुड़ते समय भी वे सत्य सिद्धांतों को खोजते हैं। हर लिहाज से वे एक सकारात्मक दिशा में प्रवेश कर रहे होते हैं। तब क्या वे बदले नहीं हैं? वे मसीह-विरोधी के मार्ग से सत्य के अभ्यास और उसको खोजने के मार्ग की ओर मुड़ गए हैं। उनके लिए उद्धार पाने की आशा और मौका है। क्या तुम ऐसे लोगों को इसलिए मसीह-विरोधी के रूप में निरूपित कर सकते हो कि उन्होंने एक बार मसीह-विरोधी के कुछ लक्षण प्रदर्शित किए थे या वे मसीह-विरोधी के मार्ग पर चले थे? नहीं। मसीह-विरोधी पश्चात्ताप करने के बजाय मरना पसंद करेंगे। उनमें शर्म की कोई भावना नहीं होती; इसके अलावा वे शातिर और दुष्ट स्वभाव के होते हैं, और वे सत्य से अत्यधिक विमुख होते हैं। क्या सत्य से इतना ज्यादा विमुख व्यक्ति उसे अभ्यास में ला सकता है, या पश्चात्ताप कर सकता है? यह असंभव होगा। सत्य से उसके बेहद विमुख होने का यह अर्थ है कि वह कभी पश्चात्ताप नहीं करेगा। जो लोग पश्चात्ताप करने में सक्षम होते हैं, उनके बारे में एक बात तो निश्चित है कि उन्होंने भूलें तो की होती हैं, लेकिन वे परमेश्वर के वचनों के न्याय और ताड़ना को स्वीकार करने में सक्षम होते हैं, सत्य को स्वीकार करने में सक्षम होते हैं और अपने कर्तव्य निभाते समय भरसक अपनी भूमिका निभाने में सक्षम होते हैं, परमेश्वर के वचनों को अपनी व्यक्तिगत सूक्तियों के रूप में लेते हैं और परमेश्वर के वचनों को अपने जीवन की वास्तविकता बनाते हैं। वे सत्य को स्वीकार करते हैं, और भीतर गहराई में, वे इससे विमुख नहीं रहते हैं। क्या यह अंतर नहीं है? यही अंतर है। लेकिन मसीह-विरोधी काट-छाँट किए जाने से इनकार किए जाने पर ही नहीं रुकते—वे उस किसी भी व्यक्ति की नहीं सुनते जिसकी बातें सत्य के अनुसार होती हैं, और वे नहीं मानते हैं कि परमेश्वर के वचन ही सत्य हैं, न ही वे उन्हें सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं। उनकी यह प्रकृति किस प्रकार की है? यह सत्य से विमुख होने और उससे तीव्र घृणा करने की है। जब कोई सत्य पर संगति करता है, या अनुभवजन्य गवाही के बारे में बोलता है, तो वे अत्यंत विमुख हो जाते हैं और वे संगति करने वाले व्यक्ति के प्रति शत्रुतापूर्ण हो जाते हैं। यदि कलीसिया का कोई व्यक्ति विभिन्न ऊटपटांग और बुरी दलीलें फैलाता है, बेतुकी ऊटपटांग बातें बोलता है, तो उन्हें बड़ी खुशी मिलती है; वे फौरन साथ हो लेते हैं और करीबी सहयोग में बेहूदगी में लोटते-पोटते हैं। यह चोर-चोर मौसेरे भाई, एक ही थैली के चट्टे बट्टे वाला मामला है। यदि वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों को सत्य पर संगति करते हुए या अपने आत्म-ज्ञान और सच्चे प्रायश्चित्त के बारे में अनुभवजन्य गवाही देते हुए सुन लेते हैं, तो इससे वे उद्विग्न हो कर खीझने लगते हैं, और वे यह विचार करने लगते हैं कि कैसे उस व्यक्ति को अलग-थलग कर उस पर हमला किया जाए। संक्षेप में कहें तो वे सत्य का अनुसरण करने वाले किसी भी व्यक्ति को स्नेह से नहीं देखते। वे उसे अलग-थलग कर उसका दुश्मन बनना चाहते हैं। जो भी व्यक्ति शब्दों और धर्म-सिद्धांतों का उपदेश देकर दिखावा करने में निपुण होता है, वे उसे बहुत पसंद करते हैं, और उसे पूरी स्वीकृति देते हैं, मानो उन्हें कोई विश्वासपात्र सहयात्री मिल गया हो। यदि कोई कहे, “जो भी व्यक्ति सर्वाधिक कार्य करेगा और सर्वोत्तम योगदान देगा, उसे सर्वाधिक पुरस्कार देकर ताज पहनाया जाएगा, और वह परमेश्वर के साथ मिलकर शासन करेगा,” तो वे बेहद उत्साहित होकर जबरदस्त जोश में आ जाएँगे। उन्हें लगेगा कि वे दूसरों से सर्वश्रेष्ठ हैं, वे अंततः भीड़ से अलग हैं, और अब उनके लिए अपना प्रदर्शन करने और अपनी योग्यता दर्शाने को स्थान मिल गया है। तब वे काफी संतुष्ट हो जाएँगे। क्या यह सत्य से विमुख होना नहीं है? मान लो कि तुम उनसे संगति में कहते हो, “परमेश्वर पौलुस जैसे लोगों को पसंद नहीं करता, और वह उन लोगों से सबसे ज्यादा नाराज होता है जो मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चलते हैं और जो सारा दिन यह कहते हुए घूमते रहते हैं, ‘प्रभु, प्रभु, क्या मैंने तुम्हारे लिए ज्यादा काम नहीं किया है?’ वह उन लोगों से घृणा करता है जो सारा दिन घूमते हुए उससे पुरस्कार और ताज की भीख माँगते हैं।” ये बातें निश्चित रूप से सत्य हैं, लेकिन ऐसी संगति सुनने पर उनके मन में कैसी भावनाएँ रह जाती हैं? क्या वे आमीन कह कर ऐसे शब्दों को स्वीकारते हैं? उनकी पहली प्रतिक्रिया क्या होती है? दिल में विकर्षण और सुनने को लेकर अनिच्छा—उसका यह अर्थ होता है, “तुम अपनी बात को लेकर इतने सुनिश्चित कैसे हो सकते हो? क्या तुम्हारी बात ही अंतिम है? तुम जो कह रहे हो उसे मैं नहीं मानता! मुझे जो ठीक लगता है, मैं वही करूँगा। मैं पौलुस जैसा ही रहूँगा और परमेश्वर से ताज माँगूँगा। उस तरह से मैं धन्य हो पाऊँगा और मुझे अच्छी मंजिल मिलेगी!” वे पौलुस के नजरिए बनाए रखने पर जोर देंगे। क्या इस तरह से वे परमेश्वर के विरुद्ध लड़ नहीं रहे हैं? क्या यह परमेश्वर का स्पष्ट विरोध नहीं है? परमेश्वर ने पौलुस के सार को उजागर कर उसका गहन-विश्लेषण किया है; उसने उस बारे में काफी कुछ कहा है, और उसका प्रत्येक अंश सत्य है—फिर भी ये मसीह-विरोधी सत्य को या इस तथ्य को नहीं स्वीकारते कि पौलुस के तमाम कार्यकलाप और व्यवहार परमेश्वर के विरुद्ध थे। अपने मन में वे अभी भी सवाल उठाते हैं : “यदि तुम कुछ कहते हो, तो इसका अर्थ यह है कि यह सही है? किस आधार पर? मुझे तो पौलुस ने जो कहा और किया वह सही लगता है। उसमें कुछ भी गलत नहीं है। मैं एक ताज और पुरस्कार का अनुसरण कर रहा हूँ—और मैं इसके काबिल हूँ। क्या तुम मुझे रोक सकते हो? मैं काम करने का प्रयास करूँगा; काफी काम कर लेने के बाद, मेरे पास पूँजी होगी—तब मैं योगदान कर चुका होऊँगा, और ऐसा होने पर मैं स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर पुरस्कार प्राप्त कर पाऊँगा। उसमें कुछ गलत नहीं है!” वे इतने ज्यादा अड़ियल होते हैं। वे सत्य को लेशमात्र भी स्वीकार नहीं करते। तुम उनसे सत्य पर संगति कर सकते हो, लेकिन यह उनके दिमाग में नहीं उतरेगा; वे उससे विमुख हैं। परमेश्वर के वचनों और सत्य के प्रति मसीह-विरोधियों का यही रवैया होता है, और यही परमेश्वर के प्रति भी उनका रवैया होता है। तो सत्य को सुनने के बाद तुम लोगों को क्या महसूस होता है? तुम्हें लगता है कि तुम सत्य का अनुसरण नहीं कर रहे हो, और तुम उसे नहीं समझते हो। तुम्हें लगता है कि तुम अभी भी बहुत पीछे हो, और तुम्हें सत्य वास्तविकता की ओर प्रयास करने की जरूरत है। और जब कभी तुम खुद को परमेश्वर के वचनों की तुलना में देखते हो तभी तुम्हें लगता है कि तुममें बहुत कमी है, तुम्हारी काबिलियत कमजोर है, और तुममें आध्यात्मिक समझ का अभाव है—तुम अभी भी लापरवाह हो, और तुममें अभी भी दुष्टता है। और फिर तुम नकारात्मक हो जाते हो। क्या तुम्हारी यह अवस्था नहीं है? दूसरी ओर, मसीह-विरोधी कभी नकारात्मक नहीं होते। वे हमेशा बहुत उत्साही होते हैं, कभी भी आत्म-चिंतन नहीं करते, न खुद को जानते हैं, लेकिन सोचते हैं कि उनमें कोई बड़ी समस्या नहीं है। जो लोग हमेशा अहंकारी और आत्मतुष्ट होते हैं, वे ऐसे ही होते हैं—जैसे ही उनके हाथों में सत्ता आती है, वे मसीह-विरोधियों में तब्दील हो जाते हैं।

II. मसीह-विरोधियों का हमेशा लोगों को नियंत्रित करने और जीतने की इच्छा और महत्वाकांक्षा रखने का गहन-विश्लेषण

हम अगली मद पर संगति करके अपनी बात जारी रखेंगे : मसीह-विरोधियों का हमेशा लोगों को नियंत्रित करना और जीतने की महत्वाकांक्षा और इच्छा रखना। यह समस्या उनके किसी के साथ सहयोग कर पाने में अक्षमता से ज्यादा गंभीर है। तुम लोगों के अनुसार वे किस प्रकार के लोग हैं जो दूसरों को नियंत्रित करना और जीतना पसंद करते हैं? किस प्रकार के व्यक्ति में दूसरों को नियंत्रित करने और जीतने की महत्वाकांक्षा और इच्छा होती है? मैं तुम्हें एक उदाहरण देता हूँ। क्या जो लोग खास तौर पर रुतबा पसंद करते हैं, वे दूसरों को नियंत्रित करने और जीतने में आनंद लेते हैं? क्या वे मसीह-विरोधियों के किस्म के नहीं हैं? वे दूसरे लोगों को गुमराह करते, नियंत्रित करते और दबाते हैं, जो फिर उनकी आराधना कर उनकी बातों पर ध्यान देते हैं। वे इस तरह से लोगों का सम्मान और आदर प्राप्त करते हैं और लोगों से अपनी आराधना और आदर करवाते हैं। तो फिर क्या लोगों के दिलों में उनके लिए जगह नहीं होती है? यदि लोगों को उनकी बातों पर विश्वास न हो और वे उन्हें स्वीकृति न दें, तो क्या वे उनकी आराधना करेंगे? बिल्कुल नहीं। तो रुतबा पाने के बाद भी इन लोगों को दूसरों को विश्वास दिलाना होता है, उन्हें पूरी तरह जीतना होता है, और उनसे अपनी सराहना करवानी होती है। सिर्फ तभी लोग उनकी आराधना करेंगे। यह एक प्रकार का व्यक्ति है। एक दूसरे प्रकार का व्यक्ति भी होता है—जो खासतौर पर अहंकारी होता है। वह लोगों से इसी तरह पेश आता है : वह लोगों को दबाने और सभी से अपनी आराधना और सराहना करवाने से शुरू करता है। तभी वह संतुष्ट होता है। अत्यंत क्रूर लोग भी दूसरों को नियंत्रित करना, अपनी बातों पर लोगों से ध्यान दिलवाना, अपने दायरे में रखना और अपने लिए चीजें करवाना पसंद करते हैं। जब बात अत्यंत अहंकारी और क्रूर स्वभाव के लोगों की आती है, तो एक बार सत्ता हथिया लेने पर वे मसीह-विरोधी बन जाते हैं। मसीह-विरोधियों में हमेशा दूसरों को नियंत्रित करने और जीतने की महत्वाकांक्षा और इच्छा होती है; लोगों से अपनी मुलाकातों में वे हमेशा यह पता लगाना चाहते हैं कि दूसरे उन्हें किस दृष्टि से देखते हैं, और क्या दूसरों के दिलों में उनके लिए जगह है, और क्या दूसरे उनकी सराहना और आराधना करते हैं। यदि उनकी मुलाकात किसी ऐसे व्यक्ति से हो जो तलवे चाटने, चापलूसी करने और खुशामद करने में अच्छा है, तो वे बहुत खुश होते हैं; फिर वे ऊँचे स्थान पर खड़े होकर लोगों को उपदेश देते हैं, ऊँचे लगने वाले विचारों पर बकबक करते हैं, लोगों के मन में विनियम, तौर-तरीके, धर्म-सिद्धांत और धारणाएँ बिठाते हैं। वे लोगों से इन चीजों को सत्य के रूप में स्वीकार करवाते हैं, और उन्हें एक सुंदर रूप से सँवारते हैं : “यदि तुम ये चीजें स्वीकार कर सको, तो तुम ऐसे व्यक्ति हो जो सत्य से प्रेम करता है, उसका अनुसरण करता है।” भेद न पहचान पाने वाले लोग सोचेंगे कि वे जो कह रहे हैं वह उचित है, और हालाँकि यह उनके लिए स्पष्ट नहीं है, और वे यह नहीं जानते कि क्या यह सत्य के अनुरूप है, उन्हें सिर्फ यह लगता है कि वे जो कह रहे हैं उसमें कुछ गलत नहीं है, और इससे सत्य का उल्लंघन नहीं होता है। और इसलिए वे मसीह-विरोधी की आज्ञा का पालन करते हैं। यदि कोई व्यक्ति किसी मसीह-विरोधी को पहचान कर उसे उजागर कर दे, तो इससे मसीह-विरोधी को गुस्सा आ जाएगा, और वह उस पर रुखाई से दोष थोपेगा, उसकी निंदा करेगा, और शक्ति प्रदर्शन कर उसे धमकाएगा। जिन लोगों में समझ नहीं होती, वे मसीह-विरोधी से पूरी तरह दब जाते हैं और अपने दिल की गहराई से उसकी सराहना करते हैं, जिससे उनके भीतर मसीह-विरोधी की आराधना, उस पर भरोसा और उससे डर भी पैदा हो जाता है। उनके मन में मसीह-विरोधी का गुलाम होने का भाव पैदा हो जाता है, मानो मसीह-विरोधी की अगुआई, शिक्षाएँ और भर्त्सनाएँ गँवाने पर वे दिल में अशांत हो जाएँगे। ऐसा होता है जैसे इन चीजों के बिना उनमें सुरक्षा का कोई एहसास नहीं बचेगा, और फिर परमेश्वर उन्हें नहीं चाहेगा। तब कार्य करते समय हर कोई मसीह-विरोधी की अभिव्यक्ति देखना सीख लेता है, इस डर से कि मसीह-विरोधी नाखुश हो जाएगा। वे सब उसे खुश करने की कोशिश करते हैं; ऐसे लोग मसीह-विरोधी का अनुसरण करने में जी-जान से जुटे होते हैं। मसीह-विरोधी अपने काम में शब्दों और धर्म-सिद्धांतों का उपदेश देते हैं। वे लोगों को कुछ खास विनियमों का पालन करने की सीख देने में अच्छे होते हैं; वे लोगों को कभी नहीं बताते कि वे सत्य सिद्धांत कौन-से हैं, जिनका उन्हें पालन करना चाहिए, उन्हें इस तरह काम क्यों करना चाहिए, परमेश्वर के इरादे क्या हैं, और परमेश्वर के घर ने काम के लिए कौन-सी व्यवस्थाएँ की हैं, सबसे अनिवार्य और महत्वपूर्ण काम कौन-सा है, और वह कौन-सा प्राथमिक कार्य है जो किया जाना है। ये चीजें जो सर्वाधिक महत्व की हैं, उनके बारे में मसीह-विरोधी कुछ भी नहीं कहते हैं। काम करते समय और उसकी व्यवस्था करते समय वे सत्य पर कभी संगति नहीं करते। वे स्वयं सत्य सिद्धांतों को नहीं समझते हैं, इसलिए वे बस इतना ही कर सकते हैं कि लोगों को कुछ विनियमों और धर्म-सिद्धांतों का पालन करना सिखा दें—और अगर लोग उनकी कहावतों और विनियमों के खिलाफ जाएँ तो उन्हें मसीह-विरोधियों की फटकार और डाँट का सामना करना पड़ेगा। मसीह-विरोधी अक्सर परमेश्वर के घर की ध्वजा के अधीन काम करते हैं, और ऊँची पदवी से दूसरों को डाँटते और उपदेश देते हैं। कुछ लोग उनकी फटकार से इतने घबरा जाते हैं कि उन्हें लगता है कि मसीह-विरोधियों की अपेक्षाओं के अनुसार कार्य न करने से वे परमेश्वर के ऋणी हैं। क्या ऐसे लोग मसीह-विरोधियों के नियंत्रण में नहीं हैं? (बिल्कुल हैं।) मसीह-विरोधियों की ओर से यह किस प्रकार का व्यवहार है? यह दासता का व्यवहार है। बड़े लाल अजगर के राष्ट्र के शब्दों में “दासता” को “ब्रेनवॉश” कहा जाता है। यह ऐसा ही है जब बड़ा लाल अजगर परमेश्वर के विश्वासियों को पकड़ लेता है। उन्हें सताने के अलावा वह एक दूसरी तकनीक का उपयोग करता है : ब्रेनवॉशिंग। वे चाहे किसान हों, कार्यकर्ता हों या बुद्धिजीवी, बड़ा लाल अजगर लोगों में ब्रेनवॉश करने के लिए नास्तिकता, विकासवाद, और मार्क्सवाद-लेनिनवाद जैसे ढेर सारे विधर्मों और भ्रांतियों के संग्रह का उपयोग करता है; भले ही उन लोगों को ये जितना भी घिनौना या घृणित क्यों न लगें, वह उनके मन में जबरन ये चीजें बैठाता है, और फिर लोगों के हाथ-पैर जकड़ने और उनके दिलों को नियंत्रित करने के लिए इन विचारों और सिद्धांतों का उपयोग करता है। बड़ा लाल अजगर इसी तरह से लोगों को परमेश्वर में विश्वास रखने, और बचाए जाने और पूर्ण बनाए जाने के लिए सत्य को स्वीकारने और सत्य का अनुसरण करने से रोकता है। इसी तरह से मसीह-विरोधियों द्वारा नियंत्रित लोग चाहे जितने भी धर्मोपदेश सुनें, वे सत्य को नहीं समझ सकते, या यह नहीं समझ सकते कि परमेश्वर में विश्वास वास्तव में किसलिए रखा जाता है, या उन्हें किस प्रकार के मार्ग पर चलना चाहिए या प्रत्येक कार्य करने में क्या सही नजरिया या कौन-सा रुख अपनाना चाहिए। वे इनमें से कुछ भी नहीं समझते; उनके दिलों में बस शब्द और धर्म-सिद्धांत और उन मसीह-विरोधियों के खोखले सिद्धांत होते हैं। लंबे समय तक मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह और नियंत्रित होने के बाद वे पूरी तरह से उन्हीं के जैसे हो जाते हैं : वे ऐसे लोग बन जाते हैं जो परमेश्वर में विश्वास तो रखते हैं, लेकिन सत्य को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते, यहाँ तक कि परमेश्वर का विरोध करते हैं और खुद को उसके विरुद्ध खड़ा करते हैं। मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह और नियंत्रित होने वाले लोग किस प्रकार के होते हैं? निस्संदेह उनमें से कोई भी सत्य का प्रेमी नहीं है—वे सभी पाखंडी हैं, ऐसे लोग जो परमेश्वर में अपने विश्वास में सत्य का अनुसरण नहीं करते, और जो अपने कर्तव्य निर्वहन में उचित मामलों पर ध्यान नहीं देते हैं। परमेश्वर में अपने विश्वास में ये लोग परमेश्वर का अनुसरण नहीं करते; इसके बजाय मसीह-विरोधियों का अनुसरण करते हैं, मसीह-विरोधियों के दास बन जाते हैं, और परिणामस्वरूप वे सत्य को प्राप्त नहीं कर पाते। यह परिणाम अपरिहार्य होता है।

वह कौन-सा सिद्धांत है जिससे परमेश्वर लोगों से व्यवहार करता है? क्या शक्ति से? क्या नियंत्रण से? नहीं—यह नियंत्रण का ठीक उल्टा होता है। लोगों के साथ पेश आने के तरीके में परमेश्वर का कौन-सा सिद्धांत होता है? (वह उन्हें स्वतंत्र इच्छा प्रदान करता है।) हाँ, वह तुम्हें स्वतंत्र इच्छा प्रदान करता है। वह अपने द्वारा निर्मित परिवेशों में तुम्हें अपनी खुद की समझ तक पहुँचने लायक बनाता है, ताकि तुम स्वाभाविक रूप से मानवीय समझ और अनुभव पैदा कर सको। वह तुम्हें स्वाभाविक रूप से सत्य के एक पहलू को समझने योग्य बनाता है, ताकि जब तुम्हारा ऐसे परिवेश से दोबारा सामना हो, तो तुम जान सको कि तुम्हें क्या करना है और क्या चुनना है। वह तुम्हें अपने दिल की गहराई से यह समझने योग्य भी बनाता है कि क्या सही है और क्या गलत, ताकि तुम अंततः सही मार्ग चुनो। परमेश्वर तुम्हें नियंत्रित नहीं करता है, और वह तुम्हें मजबूर नहीं करता है। लेकिन एक मसीह-विरोधी ठीक विपरीत ढंग से कार्य करता है : वह तुम्हें गुमराह कर ब्रेनवॉश और मतारोपित करेगा और फिर तुम्हें अपना दास बना लेगा। मैं “दास” शब्द का उपयोग क्यों करता हूँ? दास क्या होता है? इसका अर्थ है कि तुम यह भेद नहीं पहचानोगे कि मसीह-विरोधी सही है या गलत और तुम पहचानने की हिम्मत भी नहीं करोगे—तुम नहीं जानोगे कि वह सही है या गलत; तुम दिल में उलझे हुए और भ्रमित रहोगे। तुम्हें स्पष्टता नहीं होगी कि क्या सही है और क्या नहीं है; तुम नहीं जान पाओगे कि तुम्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं। तुम बस एक कठपुतली की तरह मसीह-विरोधी के निर्देशों की प्रतीक्षा करोगे, और अगर मसीह-विरोधी आदेश न दे तो कार्यवाही करने की हिम्मत नहीं करोगे, और उसके आदेश सुनने के बाद ही कार्यवाही करने की हिम्मत करोगे। तुम अपनी अंतर्जात क्षमताएँ खो चुके होगे, और तुम्हारी स्वतंत्र इच्छा अपनी भूमिका नहीं निभाएगी। तुम एक मृत व्यक्ति बन चुके होगे। तुम्हारा अपना दिल होगा, लेकिन तुम सोच नहीं पाओगे; तुम्हारा अपना दिमाग होगा, लेकिन तुम समस्याओं पर विचार नहीं कर पाओगे—तुम नहीं जानोगे कि सही क्या है और गलत क्या है, या कौन-सी चीजें सकारात्मक हैं और कौन-सी नकारात्मक, या कार्य करने का सही तरीका क्या है और गलत तरीका क्या है। अनजाने ही मसीह-विरोधी तुम पर नियंत्रण कर चुका होगा। वह क्या चीज है जिसे वह नियंत्रित करेगा? तुम्हारे दिल को या फिर तुम्हारे दिमाग को? यह तुम्हारा दिल होगा; फिर दिमाग स्वाभाविक रूप से उसके नियंत्रण में आ जाएगा। वह तुम्हारे हाथ-पैर कस कर, जोर से और मजबूती से बाँध देगा, ताकि अपने प्रत्येक कदम पर तुम संकोच और संदेह में फँसो और बाद में पीछे हट जाओ; और फिर तुम एक और कदम उठाना चाहते हो, थोड़ा कार्य करना चाहते हो, मगर तुम फिर पीछे हट जाते हो। तुम्हारे हर कृत्य में तुम्हारा दर्शन धुँधला और अस्पष्ट होगा। यह मसीह-विरोधियों की गुमराह करने वाली बातों से अभिन्न है। वह मुख्य तकनीक कौन-सी होती है जिससे मसीह-विरोधी लोगों को नियंत्रित करते हैं? वे जो भी बातें कहते हैं वे लोगों की धारणाओं और कल्पनाओं, मानवीय भावनाओं और मानवीय तार्किकता के अनुसार होती हैं। जब वे बोलते हैं तो लगता है कि उनमें थोड़ी मानवता है, लेकिन उनमें कोई सत्य वास्तविकताएँ नहीं होतीं। मुझे बताओ, क्या वे लोग जो मसीह-विरोधियों द्वारा नियंत्रित होते हैं और उनका अनुसरण करते हैं, परमेश्वर के घर में पूरा दिल लगा कर और पूरी शक्ति से कर्तव्य निभा सकते हैं? (नहीं।) इसके पीछे क्या कारण होता है? वे सत्य को नहीं समझते—यह मुख्य कारण होता है। और एक और कारण होता है : मसीह-विरोधी सत्ता के खेल खेलते हैं; वे अपने कर्तव्य निर्वहन में सत्य का अभ्यास नहीं करते, न ही वे इसे पूरा दिल लगा कर पूरी शक्ति से निभाते हैं। तो फिर क्या उनके नौकर सत्य का अभ्यास कर सकते हैं? मसीह-विरोधी जैसा भी होता है, उसके पीछे चलने वाले नौकर भी उसके जैसे ही होंगे। मसीह-विरोधी सत्य का अभ्यास न करने, सिद्धांतों के विरुद्ध जाने, परमेश्वर के घर के हितों के साथ विश्वासघात करने, अनुचित होने और तानाशाहों की तरह काम करने में अगुआई करते हैं। क्या इससे उसके नौकर प्रभावित हुए बिना रह सकेंगे? ऐसा हो ही नहीं सकता कि असर न हो। तो उन लोगों का क्या होगा जिन्हें वे बेबस और नियंत्रित करते हैं? वे एक-दूसरे से सतर्क रहेंगे, वे एक-दूसरे पर शक करेंगे और एक-दूसरे से लड़ेंगे—प्रसिद्धि और लाभ के लिए प्रतिस्पर्धा करते हुए, शान से चमकने के मौके और पूँजी के लिए प्रतिस्पर्धा करेंगे। गहराई में मसीह-विरोधी द्वारा नियंत्रित सभी लोगों के बीच अनबन होती है और अब वे एकमत नहीं होते हैं। वे अपने कार्यकलापों में सावधान और चौकस होते हैं; वे एक-दूसरे के साथ खुल कर नहीं रहते, और उनमें आपस में सामान्य मानवीय रिश्ते नहीं होते। उनके बीच सामान्य संगति नहीं होती, वे प्रार्थना-पाठ नहीं करते, और उनका कोई सामान्य आध्यात्मिक जीवन नहीं होता। वे खंडित होते हैं, ठीक वैसे ही जैसे बाहरी दुनिया में शैतान के अविश्वासी समूह होते हैं। मसीह-विरोधी के सत्ता में होने पर ऐसा ही होता है। लोगों के बीच सतर्कता होती है, खुले और छिपे हुए संघर्ष, विध्वंस, ईर्ष्या, आलोचना, और तुलनाएँ होती हैं कि कौन कम जिम्मेदारी उठा रहा है : “यदि तुम जिम्मेदारी नहीं लोगे, तो मैं भी नहीं लूँगा। तुम किस आधार पर चाहोगे कि मैं परमेश्वर के घर के हितों का ध्यान रखूँ जब तुम स्वयं उनका ध्यान नहीं रखते हो? फिर मैं भी ध्यान नहीं रखूँगा!” क्या ऐसा स्थान परमेश्वर का घर होता है? नहीं। यह कैसी जगह है? यह शैतान की छावनी है। यहाँ सत्य का राज्य नहीं है; यहाँ पवित्र आत्मा का कार्य, परमेश्वर का आशीष या उसकी अगुआई नहीं है। और इसलिए वहाँ के सभी लोग छोटे दानव जैसे होते हैं। ऊपर से तो वे दूसरों के बारे में प्रशंसा के जो शब्द बोलते हैं वे सुनने में अच्छे लगते हैं : “ओह, वे सचमुच परमेश्वर से प्रेम करते हैं; वे सचमुच भेंटें चढ़ाते हैं; वे अपना कर्तव्य निभाने में सचमुच कष्ट सहते हैं!” लेकिन उनसे किसी व्यक्ति का मूल्यांकन करवाओ, तो वे उसकी पीठ पीछे तुम्हें जो बताएँगे वह उनकी मौजूदगी में बताई हुई बातों से अलग होगा। यदि भाई-बहन किसी झूठे अगुआ के हत्थे चढ़ गए, तो वे अपने कर्तव्य निर्वहन में ढीली रेत के टीले की तरह चूर-चूर हो जाएँगे—उन्हें नतीजे नहीं मिलेंगे, उन्हें पवित्र आत्मा का कार्य प्राप्त नहीं होगा, और उनमें से ज्यादातर लोग सत्य का अनुसरण नहीं करेंगे। तो फिर यदि वे किसी मसीह-विरोधी के नियंत्रण के अधीन आ गए तो क्या होगा? उन लोगों को अब एक कलीसिया नहीं कहा जा सकता है। वे पूरी तरह से शैतान की छावनी के हैं और मसीह-विरोधी के गिरोह से संबंधित हैं।

ऐसा क्यों होता है कि मसीह-विरोधी हमेशा लोगों को नियंत्रित करना चाहते हैं? इस वजह से कि वे परमेश्वर के घर के हितों की सुरक्षा नहीं करते, न ही उन्हें परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश की कोई परवाह होती है। उनका एकमात्र ध्यान अपनी सत्ता, रुतबे और प्रतिष्ठा पर होता है। वे मानते हैं कि अगर लोगों के दिलों पर उनका नियंत्रण होगा और वे सबसे अपनी आराधना करवाते रहेंगे, तो उनकी महत्वाकांक्षा और इच्छा पूरी होगी। जहाँ तक परमेश्वर के घर के हितों या कलीसिया के कार्य या परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश को प्रभावित करने वाले मामलों की बात है, वे इन बातों की जरा भी परवाह नहीं करते। समस्याओं के उत्पन्न होने पर भी वे उन्हें देख नहीं पाते। वे ऐसी समस्याएँ नहीं देख पाते जैसे कि परमेश्वर के घर में कहाँ कर्मचारियों की उपयुक्त व्यवस्था नहीं है; या कहाँ परमेश्वर के घर की संपत्ति अनुचित रूप से आवंटित की गई है, और उसका काफी अंश नष्ट हो चुका है, और साथ ही किसने उसे बरबाद किया है; या कौन उनके कार्य में गड़बड़ियाँ और बाधाएँ पैदा कर रहा है; या कौन लोगों का अनुपयुक्त ढंग से उपयोग कर रहा है, या कौन अपने काम में लापरवाही दिखा रहा है—और ऐसी समस्याएँ सँभालना तो उनके लिए दूर की बात है। वे क्या सँभालते हैं? वे किन मामलों में दखल देते हैं? (तुच्छ मामलों में।) किस प्रकार के मामले तुच्छ मामले होते हैं? कुछ विवरण दो। (कुछ अगुआ खास भाई-बहनों के घरेलू मामलों का समाधान करने में लग जाते हैं—उदाहरण के लिए, उसके परिवार के किसी व्यक्ति की किसी और से नहीं बनती। ये बस दैनिक जीवन के मामले हैं।) यह ऐसी चीज है जो झूठे अगुआ करते हैं। और मसीह-विरोधी क्या करते हैं? (वे भाई-बहनों के जीवन प्रवेश पर कोई ध्यान नहीं देते, न ही उन चीजों पर ध्यान देते हैं जो सत्य सिद्धांतों के विरुद्ध होती हैं; वे सिर्फ उन चीजों पर ध्यान देते हैं जो उनके नाम और रुतबे को प्रभावित करती हैं—उदाहरण के लिए, लोगों का उनकी बात न सुनना, या कुछ लोगों का उन्हें नापसंद करना। वे ऐसी चीजें सँभालते हैं।) यह उनका एक अंश है। ऐसी चीजें होती हैं। मसीह-विरोधी यह देखने के लिए जाँच करते हैं कि किसकी मौजूदगी उनके लिए अवाँछित है, कौन उनके प्रति सम्मानपूर्ण नहीं है, और कौन उन्हें पहचान सकता है। वे ये चीजें देखते हैं और अपने मन में उनकी सूची बना लेते हैं; ऐसी चीजें उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण होती हैं। और क्या? (यदि किसी कलीसिया में चुना गया व्यक्ति उसे पहचानता है, और उसके साथ एकमत नहीं है, तो वह उस व्यक्ति की खामियाँ निकालने के तरीके खोजेगा, और उसे बदलवा देगा। वह ऐसे काम करना पसंद करता है।) भले ही बुरे काम करने वाले किसी व्यक्ति में जैसी भी खामियाँ या समस्याएँ हों, या वे जैसी भी गड़बड़ियाँ या बाधाएँ पैदा करें, मसीह-विरोधी उन पर कोई ध्यान नहीं देता—वह खास तौर पर अपना कर्तव्य निभाने वाले और सत्य का अनुसरण करने वाले लोगों में खामियाँ ढूँढ़ता है, और उन लोगों को बदलवाने के लिए औचित्य और बहाने तलाशता है। एक और भी मुख्य तरीका है जिससे मसीह-विरोधियों का दूसरों पर नियंत्रण अभिव्यक्त होता है : साधारण भाई-बहनों को नियंत्रित करने के अलावा, वे कार्य के प्रत्येक पहलू के प्रभारी लोगों को नियंत्रित करने की कोशिश करते हैं। वे हमेशा चाहते हैं कि संपूर्ण सत्ता उनकी पकड़ में रहे। इसलिए वे हर चीज के बारे में पूछताछ करते हैं; हर चीज पर नजर रखते हैं और सब कुछ देखते हैं, यह समझने के लिए कि लोग किस तरह काम करते हैं। वे लोगों के साथ सत्य सिद्धांतों पर बिल्कुल भी संगति नहीं करते, न ही लोगों को कार्य करने की स्वतंत्रता देते हैं। वे चाहते हैं कि सभी लोग उनके कहे अनुसार काम करें और उनके प्रति समर्पण करें। वे हमेशा डरते रहते हैं कि उनकी सत्ता बिखर जाएगी और दूसरे लोग उसे हथिया लेंगे। किसी मसले पर विचार-विमर्श करते समय, चाहे जितने भी लोग इस बारे में संगति करें, या उनकी संगति के जो भी परिणाम निकले, उनके पास पहुँचने पर वे सारे परिणामों को ठुकरा देंगे और विचार-विमर्श फिर से शुरू करना पड़ेगा। और इसका अंतिम परिणाम क्या होता है? चीजें तब तक पूरी नहीं होतीं जब तक सभी लोग उनकी बात पर ध्यान न दें, और यदि ऐसा न हुआ हो, तो उन्हें संगति करते रहना पड़ता है। यह संगति कभी-कभी आधी रात तक चलती है, और किसी को भी सोने की इजाजत नहीं मिलती; यह तब तक समाप्त नहीं होती जब तक दूसरे उनकी बात पर ध्यान नहीं देते हैं। यह ऐसी चीज है जो मसीह-विरोधी करते हैं। क्या ऐसे लोग हैं जो मानते हैं कि ऐसा करके मसीह-विरोधी कार्य की जिम्मेदारी ले रहा है? कार्य की जिम्मेदारी लेने और मसीह-विरोधियों की निरंकुशता के बीच क्या अंतर है? (यह इरादे का अंतर है।) जब लोग जमीर वाले और अपने कार्य के प्रति जिम्मेदार होते हैं, वे सत्य सिद्धांतों पर स्पष्टता से संगति करने के लिए ऐसा करते हैं, ताकि हर कोई सत्य को समझ सके। दूसरी ओर मसीह-विरोधियों का लक्ष्य सत्ता कायम रखना, प्रभावी होना और उन सभी विचारों का खंडन करना है, जो उनके विचारों से भिन्न हैं और जिनके कारण उनकी प्रतिष्ठा गिर सकती है। क्या इन इरादों के बीच कोई अंतर नहीं है? (हाँ, है।) उनके बीच क्या अंतर है? क्या तुम लोग उसे पहचान सकते हो? लोगों को संगति के जरिए सत्य सिद्धांतों को समझने देना और सम्मान के लिए होड़ करना—इन दोनों के बीच क्या अंतर है? (इरादों का।) सिर्फ इरादे नहीं—बेशक इरादे अलग-अलग हैं। (इनमें से एक दृष्टिकोण परमेश्वर के घर को अधिक लाभ देगा।) इनमें से परमेश्वर के घर को अधिक लाभ पहुँचाना एक और अंतर है—परमेश्वर के घर के हितों पर विचार करना। वैसे मुख्य अंतर क्या है? जब कोई व्यक्ति सत्य पर सही मायनों में संगति कर रहा हो, तो उसे सुनने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि यह व्यक्तिगत औचित्य या बचाव करना नहीं है। उनकी पूरी संगति सभी को परमेश्वर के इरादों को समझाने के आशय से होती है, यह सब परमेश्वर के इरादों की गवाही होती है। ऐसी संगति सत्य सिद्धांतों को स्पष्ट कर देती है और इसे सुनने के बाद लोगों को आगे का मार्ग मिल जाता है—वे जान जाते हैं कि सिद्धांत क्या हैं, वे जान जाते हैं कि उन्हें भविष्य में क्या करना चाहिए, अपना कर्तव्य निभाने में उनके सिद्धांतों के विरुद्ध जाने की आशंका नहीं होगी, और उनके अभ्यास का लक्ष्य और अधिक सही होगा। ऐसी संगति लेशमात्र भी व्यक्तिगत औचित्य या बचाव से दूषित नहीं होती है। लेकिन ऐसे लोग कैसे उपदेश देते हैं, जो अपने पक्ष में चीजें मोड़ना चाहते हैं और दूसरों को अपने नियंत्रण में लाना पसंद करते हैं? वे किस बारे में उपदेश देते हैं? वे अपने आत्म-औचित्यों, अपने कृत्यों के पीछे के विचारों, इरादों और लक्ष्यों के बारे में उपदेश देते हैं, ताकि लोग इसे स्वीकार कर लें, अपनाएँ और उन्हें गलत न समझें। ये सब बस आत्म-औचित्य होता है; उसमें जरा भी सत्य नहीं होता। यदि तुम बारीकी से सुनोगे, तो सुनोगे कि उनकी संगति में बिल्कुल भी सत्य नहीं होता—सिर्फ इंसानी कहावतें, बहाने और औचित्य होते हैं। बस इतना ही होता है। और उनके बोलने के बाद क्या सभी लोग सिद्धांतों को समझ पाते हैं? नहीं—लेकिन वे वक्ता के इरादों को काफी हद तक समझ चुके होते हैं। यह मसीह-विरोधियों का तरीका होता है। इसी तरीके से वे लोगों को नियंत्रित करते हैं। जैसे ही उन्हें लगता है कि उनके रुतबे और प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचा है, और समूह में इन पर असर पड़ा है, तो जैसे भी हो सके वे उन्हें बचाने की कोशिश में तुरंत सभा बुला लेते हैं। और वे उन चीजों को कैसे बचाते हैं? बहाने बना कर, औचित्य जता कर, और यह बता कर कि वे उस वक्त क्या सोच रहे थे। ये बातें कहने के पीछे उनका लक्ष्य क्या होता है? हरेक के मन में जो तमाम गलतफहमियाँ हैं, उन्हें दूर करना। यह ठीक बड़े लाल अजगर जैसा ही है : किसी को सताने के बाद वह उन्हें सही ठहराएगा और जो भी आरोप उन पर लगाए गए हैं, उन्हें हटा देगा। यह करने का लक्ष्य क्या है? (लीपापोती करना।) तुम्हारे साथ कुछ बुरा कर लेने के बाद वह तुम्हें निर्दोष ठहराता है, और उसकी भरपाई करता है, ताकि तुम सोचो कि आखिरकार बड़ा लाल अजगर वास्तव में अच्छा और भरोसेमंद है। इस प्रकार उसके शासन को कोई खतरा नहीं होता है। मसीह-विरोधी भी ऐसे ही होते हैं : उनकी कही हुई एक भी ऐसी बात नहीं होती या एक भी ऐसा काम नहीं होता जो उनकी अपनी खातिर नहीं होता; वे सत्य की खातिर कुछ भी नहीं कहते, परमेश्वर के घर के हितों की खातिर कुछ कहना और करना तो दूर की बात है। उनकी कथनी और करनी सब कुछ अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे के लिए होती है। कुछ लोग कह सकते हैं, “तुम्हारा उन्हें मसीह-विरोधियों के रूप में परिभाषित करना अनुचित है, क्योंकि वे बहुत कठिन परिश्रम करते हैं, बड़ी मेहनत से अपना काम करते हैं, सुबह से शाम तक परमेश्वर के घर के लिए काम करते और दौड़ते-भागते हैं। कभी-कभी वे इतने व्यस्त होते हैं कि खाना भी नहीं खा पाते। उन्होंने बहुत कष्ट सहे हैं!” और वे किसके लिए कष्ट सहते हैं? (अपने लिए।) अपने लिए। यदि उनके पास कोई रुतबा न होता, तो क्या वे यही काम करते? वे अपनी खुद की प्रतिष्ठा और रुतबे के लिए इस तरह दौड़ते-भागते हैं—वे पुरस्कार के लिए यह करते हैं। यदि उन्हें पुरस्कार न मिलता, या उनकी कोई प्रसिद्धि, लाभ या रुतबा न होता, तो वे बहुत पहले ही पीछे हट गए होते। वे ये चीजें दूसरों के सामने करते हैं, और यह करते समय वे चाहते हैं कि परमेश्वर इस बारे में जाने और जो कुछ उन्होंने किया है उसके प्रकाश में परमेश्वर उन्हें उसका उचित पुरस्कार दे। अंततः वे जो चाहते हैं वह है पुरस्कार; वे सत्य हासिल नहीं करना चाहते। तुम्हें इस बिंदु की असलियत जाननी चाहिए। जब उन्हें लगता है कि उन्होंने पर्याप्त पूँजी जमा कर ली है, जब उन्हें दूसरों के बीच बोलने का मौका मिलता है, तो उनकी बातों की विषयवस्तु क्या होती है? पहले तो वे अपने योगदान का दिखावा करते हैं—एक मनोवैज्ञानिक हमला। मनोवैज्ञानिक हमला क्या होता है? यह सभी को उनके दिलों की गहराई में जताना है कि उन्होंने परमेश्वर के घर की ओर से बहुत-से अच्छे काम किए हैं, योगदान किए हैं, जोखिम मोल लिए हैं, खतरनाक काम किए हैं, काफी भाग-दौड़ की है, और कम कष्ट नहीं सहे हैं—यह दूसरों के सामने अपनी साख पेश करना और अपनी पूँजी के बारे में बताना है। दूसरे, वे कुछ अवास्तविक सिद्धांतों के बारे में बढ़ा-चढ़ा कर और अनर्गल ढंग से बताते हैं, जिससे लोगों को लगता है कि वे इन सिद्धांतों को जानते हैं, हालाँकि वे नहीं जानते। ये सिद्धांत सुनने में अत्यंत गूढ़, रहस्यमय और अमूर्त लगते हैं और जो लोगों से मसीह-विरोधियों की आराधना करवाते हैं। फिर वे किसी ऐसी चीज के बारे में शानदार और भ्रमित करने वाले ढंग से बोलते हैं जो वे मानते हैं कि किसी ने पहले कभी नहीं समझा है—उदाहरण के लिए टेक्नॉलॉजी और बाहरी अंतरिक्ष, वित्त और लेखे, और समाज और राजनीति के मामले—और यहाँ तक कि अपराध लोक के मामले और धांधलियाँ। वे अपना निजी इतिहास बयान करते हैं। तो फिर यह क्या है? वे दिखावा कर रहे हैं। और दिखावा करने का उनका लक्ष्य मनोवैज्ञानिक हमला करना है। क्या तुम सबको लगता है कि वे बेवकूफ हैं? यदि उनकी कही इन बातों का लोगों पर कोई असर न होता, तो भी क्या वे यह कहते? नहीं कहते। इन्हें कहने के पीछे उनका एक लक्ष्य है : यह उनकी अपनी साख पेश करने, दिखावा करने, और शान दिखाने के लिए है।

इसके अलावा, मसीह-विरोधी अक्सर कौन-से तौर-तरीके अपनाते हैं? वे जहाँ भी जाते हैं, घर के मुखिया के तौर-तरीके अपनाते हैं—वे जहाँ भी जाते हैं, कहते हैं, “तुम लोग किस चीज पर काम कर रहे हो? कैसा चल रहा है? क्या कोई कठिनाई है? जल्दी करो और वे काम सँभालो जो तुम लोगों को सौंपे गए हैं! लापरवाही मत बरतो। परमेश्वर के घर का सारा काम महत्वपूर्ण है, और इसमें देर नहीं की जा सकती!” वे बस घर के मुखिया जैसे होते हैं, हमेशा अपने घर के लोगों के काम की निगरानी करते रहते हैं। इस बात के क्या मायने हैं कि वे किसी घर के मुखिया हैं? इसके मायने हैं कि उनके घर का कोई भी व्यक्ति गलती कर सकता है, या गलत मार्ग पर कदम रख सकता है, इसलिए उस पर उन्हें नजर रखने की जरूरत है; यदि वे न रखें तो कोई भी अपना कर्तव्य नहीं निभाएगा—सब के सब लड़खड़ा जाएँगे। मसीह-विरोधी मानते हैं कि बाकी सभी लोग बेवकूफ हैं, बच्चे हैं, और अगर वे उन पर बहुत ध्यान न दें, अगर वे उन्हें पल भर के लिए नजरों से ओझल होने दें, तो उनमें से कुछ लोग गलतियाँ करेंगे और गलत मार्ग पकड़ लेंगे। यह किस प्रकार की सोच है? क्या वे घर के मुखिया के तौर-तरीके नहीं अपना रहे हैं? (हाँ, अपना रहे हैं।) तो फिर क्या वे ठोस काम करते हैं? वे कभी नहीं करते; वे दूसरों के लिए सारे काम करने की व्यवस्था करते हैं, और खुद सिर्फ नौकरशाह और मालिक बनने पर ध्यान देते हैं, और जब दूसरों ने अपना काम कर लिया होता है, तो ऐसा होता है मानो उन्होंने खुद ही वह काम किया हो—सारा श्रेय उन्हीं को जाता है। वे बस अपने रुतबे के लाभों में लिप्त रहते हैं; वे कभी ऐसा कुछ नहीं करते जो परमेश्वर के घर को लाभ पहुँचाता हो, और भले ही वे देखें कि कोई अपने कर्तव्य निर्वहन में लापरवाह है या कर्तव्य निर्वहन में उपेक्षापूर्ण हैं, कोई कलीसिया के कार्य में गड़बड़ी और बाधा पैदा कर रहा है, तो वे बस उससे प्रोत्साहन और तसल्ली के कुछ बोल बोलते हैं, लेकिन वे उसे कभी उजागर या प्रतिबंधित नहीं करते—वे कभी किसी को नाराज नहीं करते। यदि कोई उनकी बात न सुनना चाहे, तो वे कहेंगे, “तुम सबके बारे में चिंता करके मेरा दिल चूर-चूर हो गया है; मैं इतना बोल चुका हूँ कि मेरा मुँह सूख गया—मैं खुद को इतना ज्यादा थका चुका हूँ कि इससे मैं दो टुकड़े हो गया हूँ! तुम लोग मुझसे इतनी अधिक चिंता करवाते हो!” क्या उनके लिए यह कहना बेशर्मी नहीं है? क्या तुम लोगों को यह सुन कर घृणा नहीं होती? यह एक तरीका है जिससे लोगों को नियंत्रित करने की मसीह-विरोधियों की निरंतर इच्छा अभिव्यक्त होती है। ऐसे मसीह-विरोधी लोगों के साथ संगति कैसे करते हैं? उदाहरण के लिए, वे मुझसे कहते हैं, “मेरे नीचे वाले लोग वैसा नहीं करते जैसा उन्हें बताया जाता है। वे कलीसिया के कार्य को गंभीरता से नहीं लेते। वे लापरवाह हैं, और वे परमेश्वर के घर का पैसा अंधाधुंध खर्च करते हैं। वे लोग सचमुच जानवर हैं—कुत्तों से भी गए-गुजरे हैं!” यहाँ उनका लहजा क्या है? वे अपने आपको अपवाद की तरह रखते हैं; उनका अर्थ होता है, “मैं परमेश्वर के घर के हितों का ध्यान रखता हूँ—वे नहीं रखते।” मसीह-विरोधी खुद को किस रूप में ले रहे हैं? एक “ब्रांड अम्बेसडर।” ब्रांड अम्बेसडर क्या होता है? कुछ देशों के ब्रांड अम्बेसडरों को लो—वे किस प्रकार के लोग होते हैं? वे अपने सौंदर्य के लिए चुने जाते हैं; वे बहुत खूबसूरत होते हैं, बढ़िया बोल सकते हैं, और सब प्रशिक्षण पा चुके हैं। परदे के पीछे, उन सबके लंबे-चौड़े, अमीर और सुंदर पुरुषों से, ऊँची श्रेणी के अधिकारियों और धनवान कारोबारियों से संबंध और लेन-देन होते हैं—इसीलिए वे ब्रांड अम्बेसडर हैं। ब्रांड अम्बेसडर बनने के लिए वे किस पर भरोसा करते हैं? क्या यह विशुद्ध रूप से उनका सुंदर रंग-रूप, छरहरा बदन और वाक्पटुता होती है? वे मुख्य रूप से परदे के पीछे के अपने संबंधों पर भरोसा करते हैं। क्या यह सब इसी तरह से नहीं चलता है? (हाँ।) हाँ, यह इसी तरह से चलता है। मसीह-विरोधी, जो हमेशा किसी अगुआ या घर के मुखिया के तौर-तरीके अपनाते हैं, हमेशा इन तौर-तरीकों, इस भंगिमा का उपयोग लोगों को गुमराह करने और उन्हें नियंत्रित करने के लिए करना चाहते हैं। क्या यह थोड़ा ब्रांड अम्बेसडर की शैली की तरह नहीं है? वे वहाँ पीठ के पीछे हाथ बांधे खड़े रहते हैं, और जब भाई-बहन सिर हिला कर उनके सामने सिर झुकाते हैं, तो वे कहते हैं, “खूब—बढ़िया काम करो!” ऐसा कहने वाले वे कौन होते हैं? उन्होंने खुद को किस पद पर नियुक्त कर लिया है? मैं जहाँ भी जाता हूँ, ऐसी बातें नहीं कहता—क्या तुम लोगों ने मुझे कभी भी ऐसी बात कहते हुए सुना है? (नहीं।) कभी-कभार मैं कहूँगा, “तुम लोगों को मन की शांति के साथ अपना कर्तव्य निभाने का जो यह अवसर मिला है वह आसानी से नहीं मिलता! तुम लोगों को इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए और अपना कर्तव्य अच्छे से निभाना चाहिए—बुरे काम करने और बाधाएँ पैदा करने की वजह से दूर न भेजे जाओ।” वैसे मैं किस कारण से ऐसा कह रहा हूँ? ईमानदारी से। लेकिन क्या कोई मसीह-विरोधी इस तरह सोचता है? वह ऐसा नहीं सोचता है, और वह इस तरह से कार्य नहीं करता। वह दूसरों को अच्छा काम करने को कहता है—क्या वह खुद ऐसा करता है? वह ऐसा नहीं करता। वह दूसरों से अच्छा काम करवाता है, उनसे जी-तोड़ मेहनत करवाता है, मजदूरी करवाता है, और अंत में वही सारा श्रेय ले जाता है। क्या तुम लोग अभी अपने कर्तव्य निभाते हुए मेरे लिए जी-तोड़ मेहनत कर रहे हो? (नहीं।) तुम लोग मेरे लिए मजदूरी भी नहीं कर रहे हो; तुम लोग अपने कर्तव्य और दायित्व निभा रहे हो, और फिर परमेश्वर का घर तुम लोगों को पोषण देता है। क्या यह कहना अतिशयोक्ति होगी कि मैं तुम लोगों का पोषण करता हूँ? (नहीं।) यह गलत वक्तव्य नहीं है, और असल में, चीजें सचमुच ऐसी ही हैं। लेकिन यदि तुम चाहो कि मैं ऐसा कहूँ, तो मैं नहीं कहूँगा—यह बात कभी मेरे होंठों पर नहीं आएगी। मैं बस इतना कहूँगा कि परमेश्वर का घर तुम लोगों का पोषण करता है : तुम लोग परमेश्वर के घर में अपना कर्तव्य निभाते हो, और परमेश्वर तुम सबका पोषण करता है। तो फिर तुम लोग किसके लिए अपने कर्तव्य निभा रहे हो? (अपने लिए।) तुम लोग अपने ही कर्तव्य और दायित्व निभा रहे हो; सृजित प्राणियों के रूप में तुम्हें यह जिम्मेदारी पूरी करनी ही चाहिए। तुम लोग यह परमेश्वर के सामने कर रहे हो। तुम लोगों को बिल्कुल नहीं कहना चाहिए कि तुम मेरे लिए काम कर रहे हो—मुझे इसकी जरूरत नहीं है। मेरे लिए किसी का काम करना जरूरी नहीं है; मैं बॉस नहीं हूँ, न ही किसी कंपनी का अध्यक्ष। मैं तुम लोगों से पैसे नहीं बना रहा हूँ, और तुम लोग मेरा भोजन नहीं खा रहे हो। हम बस एक-दूसरे के साथ सहयोग कर रहे हैं। मैं तुम्हारे साथ उन सत्यों की संगति करता हूँ जिन पर मुझे तुम लोगों के साथ संगति करनी चाहिए ताकि तुम लोग उन्हें समझ सको और सही मार्ग पर कदम रख सको, और इसके साथ मेरे दिल को सुकून मिलता है—मेरी जिम्मेदारी और दायित्व पूर्णता तक क्रियान्वित हो चुके हैं। यह पारस्परिक सहयोग है, सभी लोग अपनी भूमिका निभा रहे हैं। यह इस बात से बहुत दूर है कि कौन किसका शोषण कर रहा है, कौन किसका इस्तेमाल कर रहा है, और कौन किसे खाना खिला रहा है। इस तरह का स्वांग मत करो—यह बेकार है, और इससे घृणा पैदा होती है। सचमुच अच्छे ढंग से काम करो, इस तरह कि सबको स्पष्ट नजर आए, और अंत में परमेश्वर के समक्ष अपना हिसाब चुकाने के लिए तुम सही जगह पर होगे। क्या मसीह-विरोधियों के पास ऐसी समझ होती है? नहीं। यदि वे थोड़ी जिम्मेदारी ले लें, थोड़ा योगदान कर दें, और कुछ काम कर दें, तो वे उस बारे में दिखावा करते हैं, इस तरह से कि वह बिल्कुल घिनौना लगता है—यहाँ तक कि वे ब्रांड अम्बेसडर भी बनना चाहते हैं। यदि तुम ब्रांड अम्बेसडर बनने की कोशिश न करो, और कुछ वास्तविक कार्य करने में जुट जाओ, तो सबके मन में तुम्हारे लिए थोड़ा सम्मान होगा। यदि तुम ब्रांड अम्बेसडर की भंगिमा अपना लेते हो, मगर कोई ठोस काम नहीं कर पाते और ऐसा करते हो कि ऊपरवाले को सभी कामों के लिए खुद चिंता करनी पड़े और स्वयं निर्देश देने पड़ें, और तुम्हारी निगरानी कर, तुम्हें मार्गदर्शन देकर काम का जायजा लेना पड़े और ऊपरवाले को काम का हर पहलू खुद करना पड़े, और फिर भी तुम खुद को सक्षम मानते हो, कि तुम ज्यादा कुशल हो गए हो और सोचते हो कि तुम्हीं ने सब-कुछ किया है—तो क्या यह बेशर्मी नहीं है? मसीह-विरोधी ऐसा करने में काबिल होते हैं। वे परमेश्वर की गरिमा लूट लेते हैं। जब सामान्य लोग कुछ चीजों का अनुभव कर लेते हैं, तो वे सत्य को थोड़ा समझ पाते हैं, और समझ सकते हैं कि, “मेरी काबिलियत बहुत खराब है—मैं कुछ भी नहीं हूँ। ऊपरवाला मेरी चिंता और निगरानी न करे, मेरी मदद के लिए मेरा हाथ न पकड़े, तो उसके बिना मैं कुछ भी नहीं कर पाऊँगा। मैं बस एक पुतला हूँ। मैं अब खुद को थोड़ा जान गया हूँ। मैं अपनी छोटी-सी औकात जानता हूँ। मुझे कोई शिकायत नहीं होगी यदि ऊपरवाला भविष्य में फिर से मेरी काट-छाँट करता है। मैं बस समर्पण कर दूँगा।” अपनी छोटी-सी औकात के बारे में जानते हुए तुम वह काम अच्छे बर्ताव के साथ करोगे जो तुम्हें करना चाहिए और तुम्हारे पैर जमीन पर रहेंगे। ऊपरवाला तुम्हें जो भी काम सौंपे, वह तुम पूरे मन से और पूरी शक्ति लगा कर अच्छे ढंग से करोगे। क्या मसीह-विरोधी ऐसा करते हैं? नहीं, वे ऐसा नहीं करते—वे परमेश्वर के घर के हितों का या परमेश्वर के घर के कार्य का ध्यान नहीं रखते। परमेश्वर के घर का सर्वोच्च हित क्या है? क्या यह कलीसिया की संपत्ति है? क्या यह परमेश्वर को चढ़ाई गई भेंटें हैं? नहीं। तो फिर वह क्या है? प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य निर्वहन कार्य के किस पहलू के चारों ओर घूमता है? सुसमाचार का प्रचार करना और परमेश्वर की गवाही देना, ताकि संपूर्ण मानवजाति परमेश्वर को समझे और उसके पास लौट जाए। यही परमेश्वर के घर का सर्वोच्च हित है। और यह सर्वोच्च हित नीचे की ओर शाखाएँ बनाता है, प्रत्येक टीम और कार्य के प्रत्येक पहलू में विभाजित होता है, और फिर और अधिक बारीकी से विभाजित हो कर प्रत्येक व्यक्ति द्वारा किए जाने वाले विभिन्न कर्तव्यों तक पहुँचता है। यही परमेश्वर के घर का हित है। क्या तुम लोगों ने पहले इसे देखा था? नहीं, तुमने नहीं समझा था! जब मैं परमेश्वर के घर के हितों की बात करता हूँ, तो तुम लोग सोचते हो कि यह पैसा, मकान और कारें हैं। ये किस प्रकार के हित हैं? क्या ये सिर्फ कुछ भौतिक चीजें नहीं हैं? तो फिर क्या कुछ लोग कहेंगे, “यह देख कर कि ये परमेश्वर के घर के हित नहीं हैं, चलो उन्हें जैसे चाहें बरबाद कर दें”? क्या यह सही है? (नहीं।) बिल्कुल नहीं! भेंटें बरबाद करना महा पाप है।

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