मद आठ : वे दूसरों से केवल अपने प्रति समर्पण करवाएँगे, सत्य या परमेश्वर के प्रति नहीं (भाग एक) खंड दो
परिशिष्ट :
शाओगैंग के सपने
आज मैं फिर एक कहानी के साथ शुरुआत करूँगा। क्या तुम लोगों का मन कहानियाँ सुनने का है? क्या तुम इन कहानियों से कुछ हासिल कर पाते हो? कहानियों में घटनाएँ होती हैं, और उन घटनाओं में सत्य होता है। कहानियों में शामिल लोगों की कुछ दशाएँ होती हैं, कुछ प्रकाशन, कुछ इरादे और भ्रष्ट स्वभाव होते हैं। तथ्य यह है कि ये चीजें सभी में मौजूद हैं और सभी से जुड़े हुए हैं। यदि तुम कहानियों की इन बातों को समझ लेते हो और उनकी पहचान करने में सक्षम हो, तो इससे सिद्ध होता है कि तुममें आध्यात्मिक समझ है। कुछ लोग कहते हैं : “तुम कहते हो कि मेरे पास आध्यात्मिक समझ है—क्या इसका अर्थ यह है कि मैं एक ऐसा व्यक्ति हूँ जो सत्य से प्रेम करता है?” ऐसा आवश्यक नहीं है; वे दो अलग चीजें हैं। कुछ लोगों के पास आध्यात्मिक समझ तो होती है लेकिन वे सत्य से प्रेम नहीं करते। वे बस इसे समझते हैं और इससे अधिक कुछ नहीं करते, और वे सत्य से अपनी तुलना नहीं करते और सत्य का अभ्यास भी नहीं करते। कुछ लोगों के पास आध्यात्मिक समझ होती है, और कहानियाँ सुनने के बाद वे जान लेते हैं कि उनमें भी वही समस्याएँ हैं और वे विचार करते हैं कि उसमें कैसे प्रवेश करें और आगे चलकर बदलाव कैसे करें—ये लोग वांछित परिणाम प्राप्त कर चुके हैं। तो, आज मैं एक कहानी कहने जा रहा हूँ। इसकी विषय-वस्तु हल्की है और हर कोई इसे सुनना चाहेगा। पिछले दो दिनों से मैं इस पर सोच-विचार कर रहा हूँ कि कौन-सी कहानी ऐसी होगी जिससे अधिकांश लोगों को कुछ हासिल हो सके और जो सुनने के बाद शिक्षाप्रद रहे, और इसके अलावा सुनने वालों पर सत्य के एक पहलू की गहरी छाप छोड़े; साथ ही, उन्हें इसे वास्तविकता से जोड़ने में सक्षम बनाए और वे सत्य के एक पहलू में प्रवेश करने या एक तरह के भटकाव को ठीक करने का लाभ ले सकें। मैं पिछली कहानी को नाम देना भूल गया था, इसलिए आज हम उस कहानी को एक नाम देंगे। तुम लोगों को क्या लगता है कि इसे क्या नाम दिया जाना चाहिए? (खास उपहार।) चलो “खास” शब्द को छोड़ देते हैं; इसे “उपहार” कहते हैं। यहाँ “खास” शब्द थोड़ा अजीब लग रहा था, और लोग इसी पर अपना ध्यान केंद्रित कर देते। “उपहार” शब्द का अर्थ अधिक अस्पष्ट है। तो, आज मैं कौन-सी कहानी सुनाऊँगा? आज की कहानी का नाम है “शाओगैंग के सपने।” जैसा कि तुम सब जानते हो कि “शाओ” का अर्थ है “छोटा” और “गैंग” का क्या मतलब है? (“पद।”) बिल्कुल ठीक। इस नाम को सुनकर तुम लोगों को कहानी की विषय-वस्तु का पता चल जाना चाहिए—तुम्हें इसका लगभग ठीक अनुमान लगा लेना चाहिए। अब मैं कहानी सुनाना शुरू करता हूँ।
शाओगैंग एक उत्साही, अध्ययनशील और मेहनती युवक है, और वह काफी चतुर भी है। उसे पढ़ना पसंद है, इसलिए उसने आजकल की कुछ लोकप्रिय कंप्यूटर टेक्नोलॉजी थोड़ी-बहुत सीख ली है, और उसे परमेश्वर के घर में स्वाभाविक रूप से वीडियो टीम में अपना कर्तव्य निभाने के लिए नियुक्त किया गया। पहली बार वीडियो टीम में शामिल होने पर शाओगैंग बहुत खुश और गौरवान्वित हुआ। युवा होने और कुछ तकनीकों पर पकड़ होने के कारण उसे लगता है कि वीडियो का काम उसकी विशेषता होने के साथ-साथ उसका शौक भी है, और वह वहाँ अपना कर्तव्य निर्वाह करते हुए अपनी विशेषज्ञता का उपयोग कर सकेगा और इस दौरान लगातार पढ़ाई करते हुए वह इस क्षेत्र में प्रगति भी कर सकेगा। इसके अलावा, इस जगह पर उसकी जिन लोगों से मुलाकात होती है, वे भी युवा हैं और उसे यहाँ का माहौल बहुत पसंद है और वह अपने कर्तव्य का आनंद लेता है। तो, वह हर दिन काम में व्यस्त रहते हुए लगन से पढ़ाई करता है। इस क्रम में शाओगैंग हर दिन जल्दी जागकर काम शुरू करता है और कभी-कभी देर रात तक आराम नहीं कर पाता है। शाओगैंग अपने कर्तव्य निर्वाह के लिए कई कीमतें चुकाता है और थोड़ी कठिनाइयों का सामना करता है, और स्वाभाविक रूप से इसमें वह पर्याप्त पेशेवर ज्ञान भी अर्जित करता है; उसे लगता है कि वह हर दिन बहुत ही उत्पादक तरीके से बिताता है। शाओगैंग अक्सर संगति भी करता है और अपने भाई-बहनों के साथ सभाओं में भाग लेता है। उसे लगता है कि यहाँ आने के बाद उसने तब की तुलना में अधिक प्रगति की है जब वह अपने गृहनगर में रहते हुए परमेश्वर में विश्वास करता था और अब वह बड़ा हो गया है और कुछ काम कर सकता है। वह बहुत खुश और संतुष्ट महसूस करता है। जब उसने कंप्यूटर टेक्नोलॉजी का अध्ययन शुरू किया था, तो उसे उम्मीद थी कि एक दिन वह कंप्यूटर पर काम करेगा, और अब उसकी इच्छा अंततः पूरी हो गई है, इसलिए वह इस अवसर को बहुत महत्वपूर्ण मानता है। समय बीतता गया और शाओगैंग का काम और उसका पद नहीं बदला। वह अपने काम पर बरकरार है और अपनी इस जिम्मेदारी और कर्तव्य पर कायम है; वह पहले से कहीं अधिक परिपक्व दिखाई देता है। उसने जीवन प्रवेश में भी प्रगति की है, वह अक्सर सभाओं में भाई-बहनों के साथ संगति करता है और परमेश्वर के वचनों का पाठ करता है; परमेश्वर में विश्वास करने में उसकी रुचि दृढ़तर होती जा रही है। यह भी कहा जा सकता है कि शाओगैंग की आस्था धीरे-धीरे बढ़ रही है। तो, उसका एक नया सपना है : “कितना अच्छा हो कि मैं कंप्यूटर पर काम करते हुए अधिक उपयोगी व्यक्ति बन पाऊँ!”
दिन-ब-दिन समय इसी तरह बीतता रहा और शाओगैंग वही कर्तव्य निभाता रहा। एक अवसर पर उसने एक फिल्म देखी जिसका उस पर गहरा प्रभाव पड़ा। क्यों? फिल्म में शाओगैंग जैसी ही उम्र का एक युवक है, और उसे उस फिल्म के युवा अभिनेता का प्रदर्शन, अभिनय, बोलचाल और व्यवहार का तरीका प्रशंसनीय लगता है, और उसे थोड़ी ईर्ष्या भी होने लगती है। फिल्म देखने के बाद, वह कभी-कभी कल्पना करने लगता है : “कितना अच्छा होता अगर फिल्म में उस युवा की भूमिका मैंने निभाई होती। मैं रोज कंप्यूटर पर हर तरह के वीडियो बनाता और अपलोड करता हूँ, और मैं कितना ही व्यस्त या थका हुआ होऊँ, या मैं कितनी भी मेहनत करूँ, मैं तो सिर्फ पर्दे के पीछे काम करने वाला व्यक्ति हूँ। किसी को क्या पता कि हम कितनी मेहनत कर रहे हैं? अगर मैं किसी दिन फिल्म के उस युवा लड़के की तरह बड़े पर्दे पर आ सकूँ और ज्यादा लोग मुझे देख और जान सकें, तो बहुत अच्छा होगा!” शाओगैंग इस फिल्म को बार-बार देखता है, साथ ही उस युवक से जुड़े सभी अलग-अलग दृश्यों को भी देखता है। जितना अधिक वह देखता है, उतना ही उस अभिनेता के प्रति ईर्ष्या बढ़ती जाती है, और उतना ही अधिक उसके दिल में अभिनेता बनने की लालसा तीव्र होती जाती है। इस तरह से, शाओगैंग के मन में नए सपने का जन्म होता है। उसका नया सपना क्या है? “मैं अभिनय कला का अध्ययन करना चाहता हूँ और मानक स्तर का अभिनेता बनने का प्रयास करना चाहता हूँ, बड़े पर्दे पर दिखना चाहता हूँ, उस युवा अभिनेता की तरह हाव-भाव दिखाना चाहता हूँ, और चाहता हूँ अधिक लोग मुझसे ईर्ष्या करें और मेरे जैसा बनने के लिए लालायित हों।” उस समय से शाओगैंग अपने सपने को साकार करने की दिशा में काम करना शुरू कर देता है। अपने खाली समय में शाओगैंग ऑनलाइन जाकर अभिनय के बारे में सभी प्रकार की सामग्री देखता-तलाशता है। वह सभी प्रकार की फिल्में और टेलीविजन शो भी देखता और उनसे सीखता है, साथ ही अभिनेता बनने का अवसर पाने की कल्पना करता है। इस तरह एक-एक करके दिन बीतते जा रहे हैं—शाओगैंग अपने पद पर कायम रहते हुए अभिनय पेशे का अध्ययन भी कर रहा है। अंततः, अपनी लगन और परिश्रम के कारण शाओगैंग अभिनय की कुछ बुनियादी बातों का गहरा ज्ञान हासिल कर लेता है। उसने दूसरों की नकल उतारना, दूसरों के सामने बोलना और प्रदर्शन करना सीख लिया है, और उसे मंच से जरा भी डर नहीं लगता। बार-बार अनुरोध करने पर अंततः उसे एक अवसर मिला : एक फिल्म में प्रमुख भूमिका के लिए एक युवा व्यक्ति की आवश्यकता थी। ऑडिशन के दौरान फिल्म निर्देशक को लगता है कि उसका चेहरा-मोहरा, उसकी श्रेणी और उसका बुनियादी अभिनय कौशल अच्छा है। यदि उसे थोड़ा और प्रशिक्षण मिले, तो उसे फिल्म में अपेक्षित भूमिका निभाने योग्य होना चाहिए। यह खबर सुनकर शाओगैंग बहुत खुश हुआ, और मन ही मन उसने सोचा : “आखिरकार मैं पर्दे के पीछे से निकलकर पर्दे पर आ सकूँगा—मेरा एक और सपना साकार होने वाला है!” इसके बाद शाओगैंग को कर्तव्य निभाने के लिए फिल्म निर्माण टीम में तबादला कर दिया जाता है।
फिल्म निर्माण टीम में तबादला होने के बाद शाओगैंग को नए कामकाजी माहौल में ताजगी और जीवन शक्ति मिलती है। उसे लगता है कि यहाँ हर दिन बहुत खुशी से बीतता है, और यहाँ पर जीवन पहले की तरह नीरस, बेजान और बँधा हुआ नहीं है, क्योंकि वह वहीं रहता और काम करता है और हर दिन वह जिन चीजों के संपर्क में आता है उनमें से कई चीजें उसके कंप्यूटर के काम से बिल्कुल अलग हैं—वह कामकाज के दूसरे क्षेत्र में, एक अलग दुनिया में रहता है। इस तरह शाओगैंग पूरी ताकत से फिल्म निर्माण कार्य में लग गया। हर दिन वह अभिनय करने और अपने संवादों की पंक्तियाँ याद करने, निर्देशक के निर्देश सुनने और कथानक के विश्लेषण में लगे भाई-बहनों की बातें सुनने में व्यस्त रहता। शाओगैंग के लिए सबसे कठिन काम था खुद को दिए गए चरित्र में ढालना, इसलिए वह अपने संवादों को बार-बार याद करता है और अपने चरित्र के बारे में सोचता रहता है कि उसे कैसे बोलना और अभिनय करना चाहिए, उसे कैसे चलना चाहिए और कैसे खड़े होना या यहाँ तक कि कैसे बैठना चाहिए, उसे ये सभी चीजें नए सिरे से सीखनी पड़ रही हैं। कुछ समय तक इस जटिल और विविधतापूर्ण काम में लगे रहने के बाद, शाओगैंग को अंततः एहसास हुआ कि अभिनेता बनना कितना कठिन है। हर दिन उसे वही संवाद याद करने पड़ते हैं। कभी-कभी वह उन्हें बिल्कुल ठीक-ठीक सुनाने की स्थिति में होता है, लेकिन जब वास्तविक प्रदर्शन की बात आती है तो हर बार उससे गलतियाँ होती हैं और दृश्य को फिर से करना पड़ता है। उसका कोई काम या संवाद ठीक न होने के कारण उसे अक्सर निर्देशक की फटकार सुननी पड़ती है। उसके कई प्रदर्शनों के लगातार खराब होने पर उसे काट-छाँट से गुजरना होगा, बदनामी झेलनी पड़ेगी, कष्ट सहना पड़ेगा, और यहाँ तक कि लोग उसे अजीब निगाहों से देख और चिढ़ा भी सकते हैं। इन सबका मुकाबला करते हुए शाओगैंग थोड़ा निराश है, “अगर मुझे पता होता कि बड़े पर्दे पर अभिनेता बनना इतना कठिन होगा, तो मैं यहाँ नहीं आता, लेकिन अब तो मैं दलदल में फँस गया हूँ। अब मैं यहाँ आ ही चुका हूँ, तो फिल्मांकन पूरा होने से पहले हार मान लेना अनुचित होगा, और मैं इस बारे में लोगों को क्या जवाब दूँगा। यह मेरा सपना था, मुझे इसे साकार करना ही होगा, लेकिन आगे का रास्ता कितना लंबा है? क्या मैं आगे बढ़ सकता हूँ?” इस सोच-विचार के बीच शाओगैंग डगमगाने लगता है। आगे के दिनों में शाओगैंग अपने दैनिक कार्यों और जीवन के बीच तालमेल बनाने के लिए संघर्ष करता है। हर दिन पिछले दिन से अधिक असहनीय होता है, फिर भी उसे यह सब सहना पड़ता है और आगे बढ़ने के लिए खुद पर दबाव डालना पड़ता है। कोई भी अनुमान लगा सकता है कि आगे चलकर शाओगैंग को बहुत से मामलों में निश्चित रूप से समस्याएँ होंगी। अब वह सौंपे गए कामों को बहुत अनिच्छा से करने लगता है। जब निर्देशक उसे बताता है कि क्या करना है, तो वह सिर्फ सुनकर रह जाता है। इसके बाद, वह जो भी हासिल कर सकता है उसके लिए अपनी पूरी शक्ति लगाता है, लेकिन कुछ करने में असफल रहने पर वह अपने प्रति गंभीर नहीं होता। इस समय शाओगैंग किस स्थिति में है? अब वह हर दिन बहुत अनिच्छा से, बहुत नकारात्मकता से और बहुत निष्क्रियता से गुजारता है, और निर्देशक या अपने भाई-बहनों के गंभीर मार्गदर्शन और मदद को दिल से स्वीकार नहीं करता। उसका मानना है, “मैं ऐसा ही हूँ, इसमें सुधार की कोई गुंजाइश नहीं है। तुम लोग मुझे मेरी क्षमताओं से आगे धकेल रहे हो। यदि हम इसे फिल्मा सकते हैं, तो इसे बनाएँ; यदि ऐसा नहीं कर सकते, तो इसे भूल जाएँ। मैं अपना कर्तव्य निभाने के लिए वापस वीडियो टीम में चला जाऊँगा।” वह सोचता है कि हर दिन कंप्यूटर के सामने बैठकर वीडियो टीम में काम करना कितना अच्छा था। वह बहुत आरामदायक और आसान था; उन दिनों वह कितना खुश था! उसका पूरा अस्तित्व और उसकी पूरी दुनिया एक कीबोर्ड पर होती थी, वह बस एक स्पेशल एफेक्ट डालकर जो कुछ भी चाहता, कर लेता था। वह आभासी दुनिया शाओगैंग को बहुत आकर्षक लग रही है। इस समय शाओगैंग को अपने अतीत और वीडियो टीम में अपना कर्तव्य निभाने में बिताया गया समय और भी अधिक याद आ रहा है। दिन इसी तरह गुजरते रहे, फिर, एक रात शाओगैंग को नींद नहीं आई। वह क्यों नहीं सो सका? मन ही मन वह सोच रहा था : “क्या मैं अभिनेता बनने के लिए बना हूँ? यदि मैं इसके लिए नहीं बना हूँ तो मुझे तुरंत वीडियो टीम में वापस लौट जाना चाहिए। वीडियो टीम में मेरा कर्तव्य आरामदेह और आसान है, मैं कंप्यूटर के सामने बैठ जाता हूँ और आधा दिन तो यूँ ही बीत जाता है, और मुझे अपना खाना भी खुद नहीं बनाना पड़ता। वह काम कठिन नहीं है, कीबोर्ड छूते ही मेरे लिए सब कुछ संभव है, वहाँ काम करते हुए चीजें सिर्फ अकल्पित हैं, कुछ भी असंभव नहीं है। जबकि आजकल, अभिनेता होने के कारण मुझे हर दिन अपने संवाद याद करने पड़ते हैं और उन्हें बार-बार रटना होता है। इतने पर भी मेरा प्रदर्शन मानक तक नहीं पहुँचता, निर्देशक अक्सर मुझे डाँटते हैं, और भाई-बहन अक्सर मेरी आलोचना करते हैं। यह काम करना बहुत कठिन है, वीडियो टीम पर काम करना कहीं बेहतर है!” इस बारे में वह जितना अधिक सोचता है, उतना ही ज्यादा वह उसे याद करता है। वह आधी रात तक करवटें बदलता रहता है, सो नहीं पाता, और आधी रात के बाद तभी सो पाता है जब वह इतना थक गया हो कि जागते रहना कठिन हो जाए। अगली सुबह जब शाओगैंग की आँखें खुलीं, तो उसके मन में पहला विचार यह आया : “आखिर, मुझे इसे छोड़ देना चाहिए या नहीं? क्या मुझे वापस वीडियो टीम में लौट जाना चाहिए? मैं यहाँ रहता हूँ, तो पता नहीं कि फिल्म की शूटिंग खत्म होने पर फिल्म को मानक के अनुरूप समझा जाएगा या नहीं, और कौन जानता है कि इस दौरान मुझे कितनी मुश्किलें उठानी पड़ेंगी। मैं अभिनेता होने के लिए बना ही नहीं हूँ! उस समय, यह एक क्षणिक आवेग और सनक में मैं अभिनेता बनना चाहता था, मैं वाकई भ्रमित हो गया था! देखो, मेरे बस एक गलत कदम उठाने के बाद अब चीजों को सँभालना बहुत मुश्किल हो गया है, और कोई ऐसा नहीं है जिसके साथ मैं इस कठिनाई के बारे में बात कर सकूँ। वर्तमान स्थिति के आधार पर मुझे नहीं लगता कि अच्छा अभिनेता बनना मेरे लिए आसान होगा, तो जितनी जल्दी हो सके मुझे हार मान लेनी चाहिए। मैं निर्देशक को तुरंत बता दूँगा कि मैं वापस जा रहा हूँ, ताकि मेरी वजह से उनके काम में देरी न हो।” फिर, शाओगैंग ने निर्देशक से यह कहने का साहस जुटाया : “देखो, मैं अभिनेता बनने के लिए नहीं बना हूँ, लेकिन तुम लोगों को तो मुझे ही चुनना था—क्यों न तुम मुझे वापस वीडियो टीम में जाने दो?” निर्देशक कहता है : “बिल्कुल नहीं, हम पहले ही इस फिल्म की आधी शूटिंग कर चुके हैं। अगर हम अभिनेता बदलते हैं, तो हमारे काम में देरी होगी कि नहीं?” शाओगैंग फिर भी अड़ा रहता है और कहता है : “तो क्या? तुम जिसे चाहो मेरी जगह ले लो, इससे मुझे कोई लेना-देना नहीं है। चाहे जो हो, तुम्हें मुझे जाने देना ही होगा। अगर तुम मुझे नहीं जाने दोगे तो मैं अभिनय में कोई प्रयास नहीं करूँगा!” यह देखकर कि शाओगैंग छोड़कर जाने की जिद पर अड़ा है और वे फिल्म की शूटिंग पूरी नहीं कर सकेंगे, निर्देशक ने उसे जाने की अनुमति दे दी।
अंततः शाओगैंग फिल्म निर्माण टीम से वीडियो टीम में लौट आया। वह अपने जाने-परखे पुराने कार्यस्थल पर लौट आया। जब वह अपनी कुर्सी और अपने कंप्यूटर को छूता है, तो वे उसे परिचित से लगते हैं। उसे यह जगह ज्यादा पसंद है। वह जाकर बैठ जाता है; कुर्सी नरम है और कंप्यूटर काम के लिए तैयार है। “वीडियो बनाना बेहतर है, यह थका देने वाला काम नहीं है। पर्दे के पीछे काम करने के अपने फायदे हैं, अगर आपसे कोई गलती हो जाए तो किसी को पता भी नहीं चलता, और कोई आपकी आलोचना नहीं करता, आप उसे तुरंत सुधार लेते हैं और काम खत्म।” शाओगैंग ने आखिरकार पर्दे के पीछे का कार्यकर्ता होने के फायदे जान लिए। इस समय उसकी मनोदशा कैसी है? वह बेहद सुकून और खुशी महसूस करता है, और सोचता है : “मैंने सही चुनाव किया है। परमेश्वर ने मुझे एक अवसर दिया और मुझे इस काम में वापस आने की अनुमति दी। मैं सम्मानित महसूस कर रहा हूँ!” उसे खुशी है कि उसने अंत में सही चुनाव किया। आगे के दिनों में शाओगैंग वीडियो टीम के दैनिक कार्यवृत्त में शामिल रहता है। इस दौरान कुछ खास नहीं होता और शाओगैंग का हर दिन सामान्य तरीके से गुजरता है।
एक दिन, एक वीडियो पर काम करते समय शाओगैंग की मुलाकात एक नृत्य कार्यक्रम में अचानक एक विनोदी और आला दर्जे के युवक से होती है जो बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रहा होता है। वह सोचता है : “वह लगभग मेरी उम्र का है; ऐसा क्या है कि वह नृत्य कर सकता है और मैं नहीं?” नतीजतन, शाओगैंग फिर से प्रलोभन में पड़ गया। उसके मन में क्या विचार आता है? (नृत्य करने का।) शाओगैंग अब नृत्य का अध्ययन करने पर विचार कर रहा है। वह इस वीडियो क्लिप और युवक के प्रदर्शन को बार-बार देखता है। फिर, वह इस बारे में कुछ पूछताछ करता है कि नृत्य का अध्ययन कहाँ किया जाए, इसे कैसे सीखा जाए और सबसे बुनियादी नृत्य कौन से हैं। वह कंप्यूटर पर काम करने के दौरान नृत्य से संबंधित शिक्षण सामग्री, वीडियो और अध्ययन संसाधनों की खोज करने की सुविधा का भी उपयोग करता है। बेशक यह खोज करते समय शाओगैंग न केवल देख रहा होता है, बल्कि वह अभ्यास करके सीखता भी है। नृत्य सीखने के लिए, शाओगैंग हर दिन बहुत जल्दी उठता है और बहुत देर रात सोने जाता है। जिम्नास्टिक नृत्य के अपने बहुत ही सीमित आधार को आगे बढ़ाते हुए उसने औपचारिक रूप से लोक नृत्य का अध्ययन करना शुरू कर दिया है, और वह हर दिन जल्दी उठकर शरीर को लचीला बनाने के लिए व्यायाम करने लगा है। नृत्य के अध्ययन की प्रक्रिया में शाओगैंग को बहुत सारी शारीरिक पीड़ा सहनी होती है, और बहुत सारा समय लगाना होता है, जिसका उसे अंततः थोड़ा बहुत लाभ होता है। शाओगैंग को लगता है कि आखिरकार उसका मौका आ गया है, वह मंच पर नृत्य कर सकता है क्योंकि उसका मानना है कि उसका शरीर थोड़ा अधिक लचीला है और वह कुछ नृत्य कलाओं का प्रदर्शन कर सकता है। इसके अलावा, दूसरों की नकल और अध्ययन के सहारे उसने संगीत की धुनों का अनुसरण करने में लगभग महारत हासिल कर ली है। इन परिस्थितियों में शाओगैंग को लगता है कि कलीसिया में अपना कर्तव्य बदलने के लिए आवेदन करने का समय आ गया है। एक बार फिर, बार-बार अनुरोध करने के बाद, आखिरकार शाओगैंग की इच्छा पूरी हो गई और वह नर्तक बनने के लिए एक नृत्य दल में शामिल हो गया। तब से, अन्य नर्तकों की ही तरह शाओगैंग सुबह के प्रशिक्षण के लिए जल्दी उठता है, नृत्य कार्यक्रम का अभ्यास करता है, नियमित रूप से सभाओं और संगतियों में भाग लेता है और विश्लेषण करते हुए इन लोगों के साथ नृत्य कार्यक्रम की योजना बनाता है। वह हर दिन बस यही काम करता है, और जब दिन खत्म होता है तो वह इतना थक जाता है कि उसकी पीठ दुखने लगती है और उसके पैरों में दर्द होने लगता है। बारिश हो या धूप, उसका हर दिन ऐसा ही बीतता है। शाओगैंग ने जब यह सब शुरू किया था तो वह नृत्य के बारे में जिज्ञासा से भरा था, लेकिन एक बार नर्तक के जीवन और विभिन्न पहलुओं को समझ लेने और उससे परिचित हो जाने पर शाओगैंग को लगता है कि नृत्य करना बस यही सब कुछ है। तुम्हें किसी नृत्य मुद्रा को बार-बार दोहराना पड़ता है, कभी टखना मोड़ना पड़ता है, कभी निचली कमर लचकानी पड़ती है और साथ ही साथ चोट लगने का जोखिम उठाना पड़ता है। नृत्य करते हुए वह सोचता है, “अरे नहीं, नर्तक के रूप में काम करना भी कठिन है। हर दिन मैं खुद को इतना थकाता हूँ कि मेरे पूरे शरीर से पसीने की बदबू आने लगती है। यह इतना आसान नहीं है। यह वीडियो वाले काम से कठिन है! नहीं, मुझे दृढ़ता से इसमें लगे रहना होगा!” इस बार वह आसानी से हार नहीं मानता, और तब तक डटा रहता है जब तक कि वह अंततः नृत्य कार्यक्रम के लिए ड्रेस रिहर्सल में नहीं पहुँच जाता, जिसके बाद उनके नृत्य को समीक्षा के लिए भेजा जाता है। समीक्षा के दिन, शाओगैंग किस मनोदशा में है? वह अपनी कड़ी मेहनत का परिणाम जानने के लिए इतना उत्साहित और उम्मीद से भरा हुआ है कि उसने दोपहर का खाना भी नहीं खाया है। उसने बहुत मेहनत की है, है ना? अंत में, जब परिणाम जारी होते हैं, तो उनका नृत्य समीक्षाओं के पहले दौर में सफल नहीं होता है। यह खबर शाओगैंग पर बिजली की तरह गिरी, और उसका मन बेहद खराब हो गया। वह कुर्सी पर धम्म से गिर जाता है, “हमने इस नृत्य पर इतना ज्यादा समय लगाया, और तुम इसे सिर्फ एक शब्द के साथ अस्वीकार कर रहे हो? क्या नृत्य के बारे में तुम कुछ जानते हो? हम सिद्धांतों के साथ नृत्य करते हैं, हम सब ने इसकी कीमत चुकाई है, और तुम हमारे नृत्य को ऐसे ही ठुकरा रहे हो?” फिर वह सोचता है, “फैसला उनके हाथ में है, और यदि वे हमारे नृत्य को स्वीकार नहीं करते, तो हमें इसे फिर से सुधार करना होगा। इस पर किसी से बहस नहीं हो सकती। हम और कुछ नहीं कर सकते, तो चलो फिर से शुरू करते हैं।” जिस दिन उनके नृत्य को समीक्षाओं के पहले दौर में खारिज कर दिया गया, उस दिन शाओगैंग ने दोपहर का भोजन नहीं किया, और रात में उसने अनिच्छा से केवल थोड़ा सा खाना खाया। क्या तुम लोगों को लगता है कि वह उस रात सो पाया होगा? (वह सो नहीं सकता।) उसे फिर से नींद नहीं आ रही है, उसके मन में मंथन चल रहा है, “मैं जहाँ भी जाता हूँ, वहाँ चीजें सफल क्यों नहीं होतीं? परमेश्वर ने मुझे आशीष नहीं दिया। जिस नृत्य पर हम दो महीने से काम कर रहे थे वह समीक्षा के पहले दौर में सफल नहीं हुआ। मैं नहीं जानता कि समीक्षाओं के दूसरे दौर में यह कब सफल होगा और मुझे यह भी नहीं पता कि ऐसा कर पाने के लिए हमें कितना समय लगाना होगा। मैं कब मंच पर आकर आधिकारिक तौर पर प्रस्तुति दे पाऊँगा? मेरे मशहूर होने की कोई उम्मीद नहीं है!” उसका दिमाग आगे-पीछे भटकता है, वह सोच-विचार में लगा रहता है और सोचता है, “वीडियो का काम ही बेहतर है। मैं बस वहाँ जाता हूँ और बैठ जाता हूँ, कीबोर्ड पर बटन दबाते ही फूल, पौधे, पेड़ सभी दिखाई देने लगते हैं। जब मैं इशारा करता हूँ तो पक्षी बोलने लगते हैं, जब मैं दौड़ाता हूँ तो घोड़े दौड़ते हैं, जो कुछ भी मैं चाहता हूँ, वह सब वहाँ मौजूद होता है। लेकिन नृत्य में, हमें समीक्षाओं से गुजरना पड़ता है, और हर दिन मैं खुद इतना थक जाता हूँ कि मुझसे पसीने की बदबू आने लगती है। कभी-कभी मैं इतना थक जाता हूँ कि न तो खा पाता हूँ और न ही ठीक से सो पाता हूँ, फिर भी हमारा नृत्य समीक्षाओं के पहले दौर में भी सफल नहीं हो पाता। यह काम भी कठिन है। क्या यह बेहतर नहीं होगा कि मैं वीडियो टीम में काम करने वापस चला जाऊँ?” वह लगातार सोचता जाता है, “लेकिन यह बहुत बुरी स्थिति है, मैं फिर से क्यों डगमगा रहा हूँ? मुझे ऐसा नहीं सोचना चाहिए, चलो सो जाता हूँ!” वह मानसिक भ्रम की दशा में सो जाता है। अगले दिन उठने पर वह लगभग सब कुछ भूल जाता है, इसलिए वह नृत्य करना और ड्रेस रिहर्सल में भाग लेना जारी रखता है। जब समीक्षा के दूसरे दौर का दिन आता है, तो शाओगैंग फिर से घबरा जाता है। वह पूछता है : “क्या हमारा नृत्य समीक्षा के इस दौर में सफल हो सकता है?” हर कोई कहता है : “कौन जाने? यदि ऐसा नहीं होता है, तो यह साबित होगा कि हमारा नृत्य उतना अच्छा नहीं है, और हम इस पर काम करना जारी रखेंगे। जब यह सफल हो जाएगा, तभी हम आधिकारिक तौर पर इसका प्रदर्शन और फिल्मांकन करेंगे। चलो, जो चीज जैसे हो रही है उसे वैसे होने दें और इस मामले से सही ढंग से निपटें।” शाओगैंग कहता है : “नहीं, तुम लोग इससे सही तरीके से निपट सकते हो, लेकिन मेरे पास इसके लिए समय नहीं है।” अंत में, दूसरे दौर के परिणाम सामने आते हैं, और उनका नृत्य फिर से सफल नहीं होता। शाओगैंग कहता है : “हूँ..., मैं जानता था! इस कार्य क्षेत्र में सफल होना आसान नहीं है! हम युवा हैं, अच्छे दिखते हैं और नृत्य कर सकते हैं। क्या ये हमारी ताकत नहीं है? वे समीक्षक हमसे ईर्ष्या करते हैं क्योंकि वे नृत्य नहीं कर सकते, इसलिए वे हमारे नृत्य को स्वीकृति नहीं देंगे। ऐसा लगता है जैसे यह कभी सफल नहीं होगा, नृत्य करना आसान नहीं है, मैं वापस जा रहा हूँ।” उस रात शाओगैंग बहुत शांति से सोया, क्योंकि उसने अगले दिन अपना सामान समेटकर, वहाँ से जाने और अलविदा कहने का मन बना लिया था।
जो भी हो, अंततः शाओगैंग की इच्छा फिर से पूरी हो गई और वह वीडियो टीम में लौट कर फिर से अपने कंप्यूटर के सामने बैठा है। वह अतीत की उन जानी-पहचानी भावनाओं पर आत्मचिंतन करता है और सोचता है, “मेरा जन्म पर्दे के पीछे काम करने के लिए ही हुआ है। मैं बस गुमनाम नायक ही हो सकता हूँ, इस जीवन में मेरे पास मंच पर आने या प्रसिद्ध होने का कोई मौका नहीं है। मैं जो कर रहा हूँ बस वही करूँगा और कीबोर्ड पर उँगलियाँ चलाता रहूँगा। यही मेरा कर्तव्य है, इसलिए मैं बस यही काम करूँगा।” इतनी सब उठापटक के बाद उसने खुद को स्थिर कर लिया है। उसका दूसरा सपना भी टूट गया, अपूर्ण रह गया। शाओगैंग एक “मेहनती और अध्ययनशील” व्यक्ति है, “उत्साही और महत्वाकांक्षी” व्यक्ति है—क्या तुम लोगों को लगता है कि वह कंप्यूटर पर बैठकर इतना थकाऊ काम करने को तैयार होगा? नहीं, संभवतः वह ऐसा नहीं करेगा।
हाल ही में शाओगैंग पर गायन का जुनून सवार हुआ है। इतनी जल्दी वह कैसे बदल सकता है? उसे इसका जुनून क्यों है, वह मंच से दूर क्यों नहीं रह सकता? उसके दिल में कुछ तो छिपा है। इस बार वह बिना सोचे-समझे अपना कर्तव्य बदलने का अनुरोध नहीं करता; वह बस हर दिन अपनी रुचि की सामग्री खोजता है और अपने गायन कौशल को विकसित करने के लिए अभ्यास करता है। वह अक्सर तब तक गायन का अभ्यास करता रहता है जब तक कि उसका गला बैठ न जाए, कभी-कभी तो उसकी आवाज निकलनी बंद हो जाती है। इतने पर भी, शाओगैंग अब तक हतोत्साहित नहीं है क्योंकि इस बार उसने रणनीति बदल दी है। वह कहता है, “इस बार मैं वास्तविक स्थिति को समझे बिना अपना कर्तव्य नहीं बदल सकता। मुझे सचमुच सावधान रहना होगा, नहीं तो लोग मेरा मजाक उड़ाएँगे। यदि मैं हमेशा अपना काम बदलता रहूँगा, तो वे मेरे बारे में क्या सोचेंगे? वे मुझे नीची निगाह से देखेंगे। इस बार मुझे तब तक अभ्यास जारी रखना होगा जब तक मुझे यह नहीं लगता कि मैं कलीसिया के गायकों जितना अच्छा गायक बन सकता हूँ, और तब मैं भजन मंडली में चला जाऊँगा।” खाली समय में और कार्यस्थल पर वह हर दिन इस तरह अभ्यास करने का अथक प्रयास करता है। एक दिन जब शाओगैंग काम कर रहा था, तो उसके टीम लीडर ने अचानक उससे कहा : “शाओगैंग, तुम कैसा काम कर रहे हो? तुमने फिर से ऐसी बेपरवाही बरती और अपने काम को बेहतर करने का प्रयास नहीं किया तो तुम्हें आगे से यह कर्तव्य करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।” शाओगैंग ने कहा : “मैंने कुछ नहीं किया।” फिर, हर कोई उसे घेर कर कहने लगता है, “शाओगैंग, क्या हुआ है? ओह, तुमने इतनी बड़ी गलती की है! ऊपरवाले ने तुम्हारी ऐसी गलतियों को कई बार सुधारा है, फिर भी तुम बार-बार वही कैसे कर सकते हो? इसकी वजह यह है कि तुम हर दिन गायन के अभ्यास में लगे रहते हो और वीडियो संपादन पर ध्यान नहीं देते, इसीलिए तुम गलतियाँ करते हो और महत्वपूर्ण मामलों में देरी करते हो। अगर तुम दोबारा ऐसी गलती करोगे, तो कलीसिया तुम्हें निष्कासित कर देगा। वह तुम्हें आगे नहीं रखेगा, और हम सब तुम्हें खारिज कर देंगे!” शाओगैंग समझाता रहता है : “मैंने जानबूझकर ऐसा नहीं किया है, मैं अब से सावधान रहूँगा, मुझे एक और मौका दे दो। मुझे निष्कासित मत करो, मैं तुम लोगों से विनती करता हूँ कि मुझे निष्कासित मत करो! परमेश्वर मेरी रक्षा कर!” जब वह चिल्लाता है, तभी उसे महसूस होता है कि एक बड़ा सा हाथ उसका कंधा थपथपा रहा है और कह रहा है, “शाओगैंग, उठो! जागो, शाओगैंग!” क्या हुआ? (वह सपना देख रहा है।) वह सपना देख रहा है। उसकी आँखें बंद हैं और वह अचंभित है, उसके हाथ हवा में कुछ पकड़ रहे हैं और कुछ खरोंच रहे हैं। हर कोई चकित है कि क्या हुआ और फिर वे देखते हैं कि शाओगैंग अपने कीबोर्ड पर झुका हुआ सो रहा है। एक भाई उसे थपथपाता है, और थोड़ा हिलाने-डुलाने के बाद आखिरकार शाओगैंग जाग जाता है। जब वह जागता है, तो कहता है : “ओह, यह सब कितना डरावना था, मुझे निष्कासित किया जाने वाला था।” “किस लिए?” शाओगैंग इसके बारे में सोचता है और देखता है कि वास्तव में कुछ भी नहीं हुआ है। उसे पता चलता है कि वह एक सपना था, वह सपने से डर गया था। यह “शाओगैंग के सपने” नाम की इस कहानी का अंत है।
इस कहानी में किस समस्या के बारे में बात की गई है? सच तो यह है कि सपने और वास्तविकता अक्सर आपस में विरोधी होते हैं। बहुत बार लोग सोचते हैं कि उनके सपने खरे हैं, लेकिन वे नहीं जानते कि सपने और वास्तविकता एक ही चीज नहीं होते। सपने केवल तुम्हारी इच्छित सोच हैं, तुम्हारी अस्थायी रुचि भर होते हैं। ज्यादातर मौकों पर वे लोगों की प्राथमिकताएँ, महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ होती हैं जो उनके निरंतर प्रयासों का लक्ष्य बन जाते हैं। लोगों के सपने वास्तविकता से पूरी तरह असंगत होते हैं। यदि लोगों के सपने बहुत सारे हों, तो वे अक्सर कौन-सी गलतियाँ करेंगे? वे अपने सामने के उस काम पर ध्यान नहीं देंगे जो उन्हें उस समय करना चाहिए। वे वास्तविकता को नजरअंदाज कर देंगे, और उन कर्तव्यों को एक किनारे कर देंगे जो उन्हें करने चाहिए, जो काम उन्हें पूरा करना चाहिए, और उन दायित्वों और जिम्मेदारियों को एक किनारे कर देंगे जो उन्हें उस समय पूरे करने चाहिए। वे इन चीजों को गंभीरता से नहीं लेंगे और बस अपने सपनों के पीछे दौड़ते रहेंगे, उन्हें साकार करने के लिए लगातार भागदौड़ और कड़ी मेहनत करते रहेंगे, और बहुत सारी निरर्थक चीजें करते रहेंगे। इस तरह, वे न केवल अपने कर्तव्यों को ठीक से निभाने में विफल रहेंगे, बल्कि वे कलीसिया के काम में भी देरी और व्यवधान डाल सकते हैं। बहुत से लोग सत्य को नहीं समझते या सत्य का अनुसरण नहीं करते। वे कर्तव्य पालन से किस तरह पेश आते हैं? वे इसे एक तरह का काम, एक तरह का शौक या अपने हित में निवेश मानते हैं। वे इसे परमेश्वर द्वारा बताया गया कोई मिशन या कार्य या किसी ऐसी जिम्मेदारी की तरह नहीं मानते जो उन्हें पूरी करनी चाहिए। इससे भी कम प्रयास वे अपने कर्तव्यों का पालन करते समय सत्य या परमेश्वर के इरादों को समझने में करते हैं ताकि अपने कर्तव्यों को अच्छी तरह से निभा सकें और परमेश्वर के आदेश को पूरा कर सकें। इसीलिए, अपने कर्तव्यों को निभाने की प्रक्रिया में कुछ लोग थोड़ी सी कठिनाई सहते ही उसे करने के अनिच्छुक हो जाते हैं और उससे बच निकलना चाहते हैं। जब उन्हें कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है या कुछ रुकावटें आती हैं, तो वे पीछे हट जाते हैं और फिर से भाग जाना चाहते हैं। वे सत्य की खोज नहीं करते; वे बस बच निकलने के बारे में सोचते हैं। कुछ भी गलत होने पर वे बस कछुओं की तरह अपने खोल में छिप जाते हैं, फिर से बाहर आने के लिए समस्या खत्म होने तक इंतजार करते हैं। ऐसे बहुत सारे लोग हैं। विशेष रूप से कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनसे जब किसी खास काम की जिम्मेदारी लेने के लिए कहा जाता है, तो वे इस बात पर विचार नहीं करते कि वे अपनी निष्ठा कैसे प्रदान कर सकते हैं या इस कर्तव्य को कैसे निभा सकते हैं और उस काम को अच्छी तरह से कैसे कर सकते हैं। बल्कि वे इस बात पर विचार करते हैं कि जिम्मेदारी से कैसे भागा जाए, काट-छाँट से कैसे बचा जाए, किसी जिम्मेदारी को लेने से कैसे बचा जाए, और समस्याएँ या गलतियाँ होने पर कैसे बेदाग बच निकला जाए। वे पहले अपने बच निकलने का रास्ता और अपनी प्राथमिकताओं और हितों को पूरा करने पर विचार करते हैं, न कि इस पर कि अपने कर्तव्यों को अच्छी तरह से कैसे निभाएँ और अपनी निष्ठा कैसे प्रस्तुत करें। क्या ऐसे लोग सत्य प्राप्त कर सकते हैं? वे सत्य के संबंध में प्रयास नहीं करते, और जब अपने कर्तव्यों के निर्वाह की बात आती है तो सत्य का अभ्यास नहीं करते। उन्हें हमेशा दूसरे की रोटी ज्यादा चुपड़ी नजर आती है। आज वे यह करना चाहते हैं, कल कुछ और करना चाहते हैं, और उन्हें लगता है कि हर दूसरे आदमी का कर्तव्य उनके अपने कर्तव्य से बेहतर और आसान है। और तब भी, वे सत्य के लिए प्रयासरत नहीं होते। वे यह नहीं सोचते कि उनके इन विचारों में क्या समस्याएँ हैं, और वे समस्याओं के समाधान के लिए सत्य की खोज नहीं करते। उनके दिमाग हमेशा इस बात पर लगे रहते हैं कि उनके अपने सपने कब साकार होंगे, कौन सुर्खियों में है, किसे ऊपरवाले से मान्यता मिल रही है, कौन बिना काट-छाँट के काम करता है और पदोन्नत हो जाता है। उनके दिमाग इन चीजों से भरे हुए हैं। क्या जो लोग हमेशा इन चीजों के बारे में सोचते रहते हैं, वे अपने कर्तव्यों का इस ढंग से पालन कर सकते हैं जो मानक स्तर का हो? वे इसे कभी पूरा नहीं कर सकते। तो, किस तरह के लोग अपने कर्तव्यों का पालन इस तरह से करते हैं? क्या ये वे लोग हैं जो सत्य का अनुसरण करते हैं? सबसे पहले, एक बात तो तय है : इस तरह के लोग सत्य का अनुसरण नहीं करते। वे कुछ आशीषों का आनंद लेने के लिए सक्रिय प्रयास करते हैं, प्रसिद्ध होना चाहते हैं और परमेश्वर के घर में ध्यान आकर्षित कराना चाहते हैं, ठीक वैसे ही जैसे वे जैसे-तैसे समाज में जी रहे थे। सार की दृष्टि से, वे कैसे लोग हैं? वे छद्म-विश्वासी हैं। छद्म-विश्वासी परमेश्वर के घर में अपने कर्तव्यों का वैसे ही पालन करते हैं जैसे वे बाहरी दुनिया में करते हैं। उन्हें पदोन्नतियों की परवाह होती है, इस बात की चिंता होती है कि कौन टीम का अगुआ बन रहा है, कौन कलीसिया का अगुआ बन रहा है, किसके काम की सभी लोग प्रशंसा कर रहे हैं, किसकी बड़ाई हो रही है, और किसका उल्लेख किया जा रहा है। उन्हें इन चीजों की चिंता होती है। यह बिल्कुल किसी कंपनी की तरह है : किसकी पदोन्नति हो रही है, किसका वेतन बढ़ रहा है, अगुआ किसकी प्रशंसा कर रहा है, और कौन अगुआ से परिचित हो रहा है—लोग इन बातों की परवाह करते हैं। यदि वे परमेश्वर के घर में भी इन चीजों को खोजते हैं, और सारा दिन इन्हीं बातों में व्यस्त रहते हैं, तो क्या वे एकदम अविश्वासियों जैसे नहीं हैं? सार रूप से, वे अविश्वासी हैं; वे खाँटी छद्म-विश्वासी हैं। वे जो भी कर्तव्य निभाएँगे, वे केवल मेहनत करेंगे और बेमन से काम करेंगे। वे चाहे जो भी धर्मोपदेश सुनें, वे सत्य को फिर भी नहीं स्वीकारेंगे, और वे सत्य को अभ्यास में तो बिल्कुल भी नहीं लाएँगे। बिना किसी तरह के बदलाव का अनुभव किए वे कई वर्षों से परमेश्वर में विश्वास करते रहे हैं, और वे चाहे जितने वर्षों तक अपने कर्तव्यों का पालन करें, वे वफादार होने में सक्षम नहीं होंगे। परमेश्वर में उनकी सच्ची आस्था नहीं होती, उनमें निष्ठा नहीं होती, वे छद्म-विश्वासी होते हैं।
कुछ लोग अपना कर्तव्य निभाते हुए जिम्मेदारी लेने से डरते हैं। यदि कलीसिया उन्हें कोई काम देती है, तो वे पहले इस बात पर विचार करेंगे कि इस कार्य के लिए उन्हें कहीं उत्तरदायित्व तो नहीं लेना पड़ेगा, और यदि लेना पड़ेगा, तो वे उस कार्य को स्वीकार नहीं करेंगे। किसी काम को करने के लिए उनकी शर्तें होती हैं, जैसे सबसे पहले, वह काम ऐसा होना चाहिए जिसमें मेहनत न हो; दूसरा, वह व्यस्त रखने या थका देने वाला न हो; और तीसरा, चाहे वे कुछ भी करें, वे कोई जिम्मेदारी नहीं लेंगे। इन शर्तों के साथ वे कोई काम हाथ में लेते हैं। ऐसा व्यक्ति किस प्रकार का होता है? क्या ऐसा व्यक्ति धूर्त और कपटी नहीं होता? वह छोटी सी छोटी जिम्मेदारी भी नहीं उठाना चाहता। उन्हें यहाँ तक डर लगता है कि पेड़ों से झड़ते हुए पत्ते कहीं उनकी खोपड़ी न तोड़ दें। ऐसा व्यक्ति क्या कर्तव्य कर सकता है? परमेश्वर के घर में उनका क्या उपयोग हो सकता है? परमेश्वर के घर का कार्य शैतान से युद्ध करने के कार्य के साथ-साथ राज्य के सुसमाचार फैलाने से भी जुड़ा होता है। ऐसा कौन-सा काम है जिसमें उत्तरदायित्व न हो? क्या तुम लोग कहोगे कि अगुआ होना जिम्मेदारी का काम है? क्या उनकी जिम्मेदारियाँ भी बड़ी नहीं होतीं, और क्या उन्हें और ज्यादा जिम्मेदारी नहीं लेनी चाहिए? चाहे तुम सुसमाचार का प्रचार करते हो, गवाही देते हो, वीडियो बनाते हो या कुछ और करते हो—इससे फर्क नहीं पड़ता कि तुम क्या करते हो—जब तक इसका संबंध सत्य सिद्धांतों से है, तब तक उसमें उत्तरदायित्व होंगे। यदि तुम्हारे कर्तव्य निर्वहन में कोई सिद्धांत नहीं हैं, तो उसका असर परमेश्वर के घर के कार्य पर पड़ेगा, और यदि तुम जिम्मेदारी लेने से डरते हो, तो तुम कोई काम नहीं कर सकते। अगर किसी को कर्तव्य निर्वहन में जिम्मेदारी लेने से डर लगता है तो क्या वह कायर है या उसके स्वभाव में कोई समस्या है? तुम्हें अंतर बताने में समर्थ होना चाहिए। दरअसल, यह कायरता का मुद्दा नहीं है। यदि वह व्यक्ति धन के पीछे भाग रहा है, या वह अपने हित में कुछ कर रहा है, तो वह इतना बहादुर कैसे हो सकता है? वह कोई भी जोखिम उठा लेगा। लेकिन जब वह कलीसिया के लिए, परमेश्वर के घर के लिए काम करता है, तो वह कोई जोखिम नहीं उठाता। ऐसे लोग स्वार्थी, नीच और बेहद कपटी होते हैं। कर्तव्य निर्वहन में जिम्मेदारी न उठाने वाला व्यक्ति परमेश्वर के प्रति जरा भी ईमानदार नहीं होता, उसकी वफादारी की क्या बात करना। किस तरह का व्यक्ति जिम्मेदारी उठाने की हिम्मत करता है? किस प्रकार के इंसान में भारी बोझ वहन करने का साहस है? जो व्यक्ति अगुआई करते हुए परमेश्वर के घर के काम के सबसे महत्वपूर्ण पलों में बहादुरी से आगे बढ़ता है, जो अहम और अति महत्वपूर्ण कार्य देखकर बड़ी जिम्मेदारी उठाने और मुश्किलें सहने से नहीं डरता। ऐसा व्यक्ति परमेश्वर के प्रति वफादार होता है, मसीह का अच्छा सैनिक होता है। क्या बात ऐसी है कि लोग कर्तव्य की जिम्मेदारी लेने से इसलिए डरते हैं, क्योंकि उन्हें सत्य की समझ नहीं होती? नहीं; समस्या उनकी मानवता में होती है। उनमें न्याय या जिम्मेदारी की भावना नहीं होती, वे स्वार्थी और नीच लोग होते हैं, वे परमेश्वर के सच्चे विश्वासी नहीं होते, और वे सत्य जरा भी नहीं स्वीकारते। इन कारणों से उन्हें बचाया नहीं जा सकता। परमेश्वर के विश्वासियों को सत्य हासिल करने के लिए बहुत भारी कीमत चुकानी ही होगी और उसे अभ्यास में लाने के लिए उन्हें बहुत-सी रुकावटों से गुजरना होगा। उन्हें बहुत-सी चीजों का त्याग करना होगा, दैहिक हितों को छोड़ना होगा और कष्ट उठाने पड़ेंगे। तब जाकर वे सत्य का अभ्यास करने योग्य बन पाएँगे। तो, क्या जिम्मेदारी लेने से डरने वाला इंसान सत्य का अभ्यास कर सकता है? यकीनन वह सत्य का अभ्यास नहीं कर सकता, सत्य हासिल करना तो दूर की बात है। वह सत्य का अभ्यास करने और अपने हितों को होने वाले नुकसान से डरता है; उन्हें अपमानित होने और निंदा का और आलोचना का डर होता है और वे सत्य का अभ्यास करने की हिम्मत नहीं करते। नतीजतन, वह उसे हासिल नहीं कर सकता। परमेश्वर में उसका विश्वास चाहे जितना पुराना हो, वह उसका उद्धार प्राप्त नहीं कर सकता। परमेश्वर के घर में कर्तव्य निभाने वाले लोग ऐसे होने चाहिए जिनमें कलीसिया का कार्य करते समय बोझ उठाने की भावना हो, जो जिम्मेदारी लें, सत्य सिद्धांत कायम रखें, और जो कष्ट सहकर कीमत चुकाएँ। अगर कोई इन क्षेत्रों में कम होता है, तो वह कर्तव्य करने के अयोग्य होता है, और कर्तव्य करने की शर्तों को पूरा नहीं करता है। कई लोग ऐसे होते हैं, जो कर्तव्य पालन की जिम्मेदारी लेने से डरते हैं। उनका डर मुख्यतः तीन तरीकों से प्रकट होता है। पहला यह है कि वे ऐसे कर्तव्य चुनते हैं, जिनमें जिम्मेदारी लेने की आवश्यकता नहीं होती। अगर कलीसिया का अगुआ उनके लिए किसी कर्तव्य पालन की व्यवस्था करता है, तो पहले वे यह पूछते हैं कि क्या उन्हें इसकी जिम्मेदारी लेनी ही पड़ेगी : अगर ऐसा होता है, तो वे उसे स्वीकार नहीं करते। अगर उन्हें उसकी जिम्मेदारी लेने और उसके लिए जिम्मेदार होने की आवश्यकता नहीं होती, तो वे उसे अनिच्छा से स्वीकार कर लेते हैं, लेकिन फिर भी वे यह देख लेते हैं कि काम थका देने वाला या परेशान करने वाला तो नहीं, और कर्तव्य को अनिच्छा से स्वीकार कर लेने के बावजूद, वे उसे अच्छी तरह से करने के लिए प्रेरित नहीं होते, उस स्थिति में भी वे बेपरवाह बने रहना पसंद करते हैं। आराम, कोई मेहनत नहीं, और कोई शारीरिक कठिनाई नहीं—यह उनका सिद्धांत होता है। दूसरा तरीका यह है कि जब उन पर कोई कठिनाई आती है या किसी समस्या से उनका सामना होता है, तो उनकी टालमटोल का पहला तरीका यह होता है कि उसकी रिपोर्ट किसी अगुआ को कर दी जाए और अगुआ को ही उसे सँभालने और हल करने दिया जाए, और आशा की जाए कि उनके आराम में कोई खलल नहीं पड़ेगा। वे इस बात की परवाह नहीं करते कि अगुआ उस मुद्दे को कैसे सँभालता है, वे खुद उस पर कोई ध्यान नहीं देते—जब तक वे खुद जिम्मेदारी नहीं लेते, तब तक उनके लिए सब ठीक है। क्या ऐसा कर्तव्य-पालन परमेश्वर के प्रति निष्ठा है? इसे अपनी जिम्मेदारी दूसरे के सिर मढ़ना, कर्तव्य की उपेक्षा करना, चालाकियाँ करना कहा जाता है। यह केवल बातें बनाना है; वे कुछ भी वास्तविक नहीं कर रहे हैं। वे मन में कहते हैं, “अगर यह चीज मुझे सुलझानी है और मैं गलती कर बैठा तो क्या होगा? जब वे देखेंगे कि किसे दोष देना है, तो क्या वे मुझे नहीं पकड़ेंगे? क्या इसकी जिम्मेदारी सबसे पहले मुझ पर नहीं आएगी?” उन्हें इसी बात की चिंता रहती है। लेकिन क्या तुम मानते हो कि परमेश्वर सबकी जाँच करता है? गलतियाँ सबसे होती हैं। अगर किसी नेक इरादे वाले व्यक्ति के पास अनुभव की कमी है और उसने पहले कोई मामला नहीं सँभाला है, लेकिन उसने पूरी मेहनत की है, तो यह परमेश्वर को दिखता है। तुम्हें विश्वास करना चाहिए कि परमेश्वर सभी चीजों और मनुष्य के हृदय की जाँच करता है। अगर कोई इस पर भी विश्वास नहीं करता, तो क्या वह छद्म-विश्वासी नहीं है? फिर ऐसे व्यक्ति के कर्तव्य निभाने के मायने ही क्या हैं? इससे वाकई कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे यह कर्तव्य निभाते हैं या नहीं, है न? वे जिम्मेदारी लेने से डरते हैं और जिम्मेदारी से भागते हैं। जब कुछ होता है तो वे तुरंत समस्या से निपटने का तरीका सोचने की कोशिश नहीं करते, बल्कि सबसे पहले वे अगुआ को कॉल करके इसकी सूचना देते हैं। निस्संदेह, कुछ लोग अगुआ को सूचित करते हुए खुद समस्या से निपटने का प्रयास करते हैं, लेकिन कुछ लोग ऐसा नहीं करते, और उनका पहला काम होता है अगुआ को कॉल करना, और कॉल करने के बाद वे बस निष्क्रिय रहकर निर्देशों की प्रतीक्षा करते हैं। जब अगुआ उन्हें कोई कदम उठाने का निर्देश देता है, तो वे वह कदम उठाते हैं; अगर अगुआ कुछ करने के लिए कहता है, तो वे वैसा करते हैं। अगर अगुआ कुछ नहीं कहता या कोई निर्देश नहीं देता, तो वे कुछ नहीं करते और बस टालते रहते हैं। बिना किसी के प्रेरित किए या बिना निगरानी के वे कोई काम नहीं करते। बताओ, क्या ऐसा व्यक्ति कर्तव्य निभा रहा है? अगर वह मेहनत कर भी रहा हो, तो भी उसमें निष्ठा नहीं होती! एक और तरीका है, जिससे किसी व्यक्ति का कर्तव्य निर्वहन करते समय जिम्मेदारी लेने का डर प्रकट होता है। जब ऐसे लोग अपना कर्तव्य निभाते हैं, तो उनमें से कुछ लोग बस थोड़ा-सा सतही, सरल कार्य करते हैं, ऐसा कार्य जिसमें जिम्मेदारी लेना शामिल नहीं होता। जिस कार्य में कठिनाइयाँ और जिम्मेदारी लेना शामिल होता है, उसे वे दूसरों पर डाल देते हैं, और अगर कुछ गलत हो जाता है, तो दोष उन लोगों पर मढ़ देते हैं और अपना दामन साफ रखते हैं। जब कलीसिया के अगुआ देखते हैं कि वे गैर-जिम्मेदार हैं, तो वे धैर्यपूर्वक मदद की पेशकश करते हैं, या उनकी काट-छाँट करते हैं, ताकि वे जिम्मेदारी लेने में सक्षम हो सकें। लेकिन फिर भी, वे ऐसा नहीं करना चाहते, और सोचते हैं, “यह कर्तव्य करना कठिन है। चीजें गलत होने पर मुझे जिम्मेदारी लेनी होगी और हो सकता है कि मुझे बाहर निकालकर हटा भी दिया जाए और यह मेरे लिए अंत होगा।” यह कैसा रवैया है? अगर उन्हें अपना कर्तव्य निभाने में जिम्मेदारी का एहसास नहीं है, तो वे अपना कर्तव्य अच्छी तरह से कैसे निभा सकते हैं? जो लोग वास्तव में खुद को परमेश्वर के लिए नहीं खपाते, वे कोई कर्तव्य अच्छी तरह से नहीं निभा सकते, और जो लोग जिम्मेदारी लेने से डरते हैं, वे अपने कर्तव्य निभाने पर सिर्फ देरी ही करेंगे। ऐसे लोग विश्वसनीय या भरोसेमंद नहीं होते; वे सिर्फ पेट भरने के लिए अपना कर्तव्य निभाते हैं। क्या ऐसे “भिखारियों” को निकाल देना चाहिए? बेशक निकाल देना चाहिए। परमेश्वर के घर को ऐसे लोगों की जरूरत नहीं। ये उन लोगों की तीन अभिव्यक्तियाँ हैं जो अपना कर्तव्य निभाने की जिम्मेदारी लेने से डरते हैं। जो लोग अपने कर्तव्य में जिम्मेदारी लेने से डरते हैं वे एक निष्ठावान मजदूर के स्तर तक भी नहीं पहुँच पाते, और कर्तव्य निभाने के लायक नहीं होते हैं। कुछ लोगों को अपने कर्तव्य के प्रति इस प्रकार के रवैये के कारण हटा दिया जाता है। अब भी वे इसका कारण नहीं जानते और शिकायत करते हुए कहते हैं, “मैंने अपना कर्तव्य पूरे जोश के साथ निभाया, तो भी उन्होंने मुझे इतनी बेरुखी से बाहर क्यों निकाल दिया?” उनकी समझ में यह बात अब भी नहीं आती। जो लोग सत्य को नहीं समझते वे जीवन भर यह समझने में असमर्थ रहते हैं कि उन्हें क्यों हटाया गया था। वे अपने लिए बहाने बनाते हैं, और अपना बचाव करते रहते हैं, सोचते हैं, “किसी के लिए अपनी रक्षा करना स्वाभाविक है, और उन्हें ऐसा करना चाहिए। किसे अपना थोड़ा सा ख्याल नहीं रखना चाहिए? किसे अपने बारे में थोड़ा सा नहीं सोचना चाहिए? किसे अपने बच निकलने का रास्ता खोल कर रखने की जरूरत नहीं है?” अगर कोई समस्या आने पर तुम अपनी रक्षा करते हो और अपने लिए बचने का रास्ता रखते हो, पिछले दरवाजे से निकलना चाहते हो, तो क्या ऐसा करके तुम सत्य का अभ्यास कर रहे हो? यह सत्य का अभ्यास करना नहीं है—यह धूर्त होना है। अब तुम परमेश्वर के घर में अपना कर्तव्य निभा रहे हो। कोई कर्तव्य निभाने का पहला सिद्धांत क्या है? वह यह है कि पहले तुम्हें अपने पूरे दिल से भरसक प्रयास करते हुए वह कर्तव्य निभाना चाहिए और परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करनी चाहिए। यह एक सत्य सिद्धांत है, जिसे तुम्हें अभ्यास में लाना चाहिए। अपने लिए बच निकलने का रास्ता, पिछला दरवाजा छोड़कर स्वयं को बचाना, अविश्वासियों द्वारा अपनाए गए अभ्यास का सिद्धांत है और उनका सबसे ऊँचा फलसफा है। सभी मामलों में सबसे पहले अपने बारे में सोचना और अपने हित बाकी सब चीजों से ऊपर रखना, दूसरों के बारे में न सोचना, परमेश्वर के घर के हितों और दूसरों के हितों के साथ कोई संबंध न रखना, अपने हितों के बारे में पहले सोचना और फिर बचाव के रास्ते के बारे में सोचना—क्या यह एक अविश्वासी नहीं है? एक अविश्वासी ठीक ऐसा ही होता है। इस तरह का व्यक्ति कोई कर्तव्य निभाने के योग्य नहीं है। अभी भी कुछ लोग कहानी के शाओगैंग जैसे हैं—वह एक विशिष्ट उदाहरण है। वे यथार्थवादी ढंग से कुछ भी नहीं कर सकते। वे अपने हर काम में परेशानी से बचना चाहते हैं। वे थोड़ी सी भी कठिनाई या निराशा का सामना नहीं करना चाहते। उनकी देह को आराम चाहिए, उन्हें नियमित समय पर खाना और सोना चाहिए, और न तो उन्हें हवा लगे न सूरज उन्हें झुलसाए। इसके अलावा, वे अपने काम के लिए कोई जिम्मेदारी नहीं लेते। उन्हें कुछ ऐसा करना होता है जो उन्हें पसंद हो, कुछ ऐसा जिसमें वे अच्छे हों, कुछ ऐसा जिसे करने की उनमें तीव्र इच्छा हो। यदि उनके पास मनपसंद काम नहीं होता, तो वे थोड़े से भी आज्ञाकारी नहीं होते। वे लगातार आगे-पीछे होते रहते हैं और दुविधा में पड़े रहते हैं। वे जो करते हैं उसमें कभी भी प्रतिबद्ध नहीं होते—हमेशा उनका एक पैर अंदर और एक पैर बाहर होता है। जब उन्हें कष्ट होता है, तो वे पीछे हट जाना चाहते हैं। वे काट-छाँट सहन नहीं कर पाते। उनसे ऊँची मांगें नहीं की जा सकतीं। वे कष्ट नहीं उठा सकते। वे जो करते हैं वह पूरी तरह से उनकी अपनी रुचि और योजना पर निर्भर होता है—उनके भीतर रत्ती भर भी आज्ञाकारिता नहीं होती। इस प्रकार का व्यक्ति यदि सत्य की खोज नहीं कर सकता और आत्मचिंतन नहीं कर सकता, तो इन आदतों और भ्रष्ट स्वभावों का बदलना मुश्किल होता है। परमेश्वर में विश्वास रखने वाले के रूप में कर्तव्य निभाने के लिए कम से कम थोड़ी सी ईमानदारी चाहिए। क्या तुम लोग सोचते हो कि ये लोग ईमानदार हैं? जब गंभीर प्रयास की आवश्यकता होती है, तो वे कायरता दिखाते हैं। उनमें रत्ती भर भी ईमानदारी नहीं होती। यह बहुत परेशानी वाली बात है और इससे निपटना मुश्किल होता है। उन्हें लगता है कि वे महान हैं, और जब उन्हें बर्खास्त किया जाता है या उनकी काट-छाँट की जाती है, तब भी उन्हें लगता है कि उनके साथ अन्याय हुआ है। यदि लोग सत्य की खोज नहीं करते या सत्य वास्तविकता में प्रवेश नहीं करते, तो यह बहुत परेशानी वाली बात होती है। इस विषय पर इतना ही काफी है—चलो, मुख्य बिंदु पर आते हैं।
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