मद बारह : जब उनके पास कोई रुतबा नहीं होता या आशीष पाने की आशा नहीं होती तो वे पीछे हटना चाहते हैं (खंड तीन)

III. मसीह-विरोधियों का खुद को बर्खास्त किए जाने के प्रति निपटने का तरीका

हमने अभी-अभी मसीह-विरोधियों की दो अभिव्यक्तियों पर संगति की है, एक वह जब उन्हें काट-छाँट का सामना करना पड़ता है और दूसरी वह जब उनकी कर्तव्य संबंधी स्थितियों में बदलाव किए जाते हैं। हमारी संगति का केंद्र-बिंदु यह रहा है कि जब मसीह-विरोधियों के साथ ऐसी चीजें घटित होती हैं तो उनका रवैया क्या होता है और वे क्या निर्णय लेते हैं। बेशक, मसीह-विरोधियों की काट-छाँट किए जाने या उनकी कर्तव्य संबंधी स्थिति में बदलाव किए जाने पर उनका दृष्टिकोण और रवैया चाहे जो हो, वे इन चीजों को हमेशा इस बात से जोड़ते हैं कि उन्हें आशीष मिलेगा या नहीं। अगर उन्हें यकीन होता है कि उन्हें आशीष नहीं मिलेगा, कि उनके लिए इसकी कोई उम्मीद नहीं है तो वे स्वाभाविक रूप से पीछे हट जाएँगे। एक सामान्य व्यक्ति के लिए जिसकी न कोई महत्वाकांक्षा है न ही कोई इच्छा है, न तो काट-छाँट होना और न ही उसकी कर्तव्य संबंधी स्थिति में बदलाव होना वास्तव में कोई बड़ी बात है। दोनों का उस पर कोई बड़ा प्रभाव नहीं पड़ेगा। उससे कर्तव्य करने का अधिकार नहीं छीना गया है, न ही बचाए जाने की उसकी उम्मीद छीनी गई है, इसलिए एक सामान्य व्यक्ति को अति प्रतिक्रिया देने, भयभीत होने या आहत होने या आकस्मिक योजनाएँ बनाने की कोई आवश्यकता नहीं होती। लेकिन मसीह-विरोधी के साथ ऐसा नहीं होता। वह इसे बहुत गंभीर मामला मानता है, क्योंकि वह इसे आशीष से जोड़ता है और यह उसके अंदर तमाम तरह के विद्रोही विचारों और व्यवहारों को जन्म देता है, जो बदले में पीछे हटने, परमेश्वर को छोड़ने वाले विचारों और योजनाओं को जन्म देते हैं। मसीह-विरोधी तो पीछे हटने के विचार को तब भी जन्म दे सकते हैं जब उनके साथ ऐसी बहुत ही साधारण चीजें घटित होती हैं। तो किसी रुतबेदार और परमेश्वर के घर में महत्वपूर्ण कार्य के लिए जिम्मेदार व्यक्ति को जब बर्खास्तगी का सामना करना पड़ता है तो उसका रवैया कैसा होगा? वह इसे कैसे सँभालेगा और कैसे फैसले करेगा? ऐसी चीजें और भी अधिक मिसाल पेश करने वाली होती हैं। मसीह-विरोधी के लिए रुतबा, सत्ता और प्रतिष्ठा सबसे महत्वपूर्ण प्रकार के हित होते हैं और ये वे चीजें हैं जिन्हें वे अपने जीवन के बराबर मानते हैं। यही कारण है कि जब किसी मसीह-विरोधी को बर्खास्त किया जाता है, जब वह अपना “अगुआ” का खिताब खोता है और जब उसका कोई रुतबा नहीं रह जाता तो इसका अर्थ है कि उसने अपनी सत्ता और प्रतिष्ठा खो दी है, कि उसके साथ अब सम्मानित होने, समर्थन और आदर पाने का विशेष सत्कार नहीं होगा, और रुतबे और सत्ता को ही जीवन मानने वाले एक मसीह-विरोधी के रूप में वह इस स्थिति को बिल्कुल अस्वीकार्य पाता है। जब किसी मसीह-विरोधी को बर्खास्त किया जाता है तो उसकी पहली प्रतिक्रिया ऐसी होती है जैसे उस पर बिजली गिर गई हो, मानो आसमान टूट पड़ा हो और उनकी दुनिया ही ढह गई हो। जिस चीज पर वह अपनी उम्मीदें टिकाए हुए था, वह जा चुकी होती है और रुतबे के तमाम फायदों के साथ जीने का मौका भी हाथ से निकल जाता है, साथ ही वह इच्छा भी मिट जाती है जो उसे अंधाधुंध ढंग से बुरे काम करने को प्रेरित करती है। यह उसके लिए सबसे अस्वीकार्य होता है। उसका पहला विचार यह होता है, “अब जब मेरा रुतबा नहीं रहा तो लोग मुझे कैसे देखेंगे? मेरे गृहनगर के भाई-बहन मेरे बारे में क्या सोचेंगे? मुझे जानने वाले सभी लोग मुझे कैसे देखेंगे? क्या वे अब भी मेरी चापलूसी करेंगे? क्या वे मेरे साथ इतने ही दोस्ताना रहेंगे? क्या वे हर मोड़ पर मेरा समर्थन करते रहेंगे? क्या वे अब भी मेरे आगे-पीछे घूमेंगे? क्या वे अब भी मेरे जीवन में मेरी सभी जरूरतों का ख्याल रखेंगे? जब मैं उनसे बात करता हूँ तो क्या वे अब भी विनम्र बने रहेंगे और मुस्कराहट के साथ मेरा स्वागत करेंगे? रुतबे के बिना मेरा गुजारा कैसे होगा? मैं आगे मार्ग पर कैसे चलूँगा? मैं दूसरे लोगों के बीच अपने पैर कैसे जमा सकता हूँ? अब जब मैंने अपना रुतबा खो दिया है तो क्या इसका मतलब यह नहीं है कि मुझे आशीष मिलने की उम्मीद कम है? क्या मैं बड़े आशीष प्राप्त कर पाऊँगा? क्या मुझे कोई बड़ा पुरस्कार या कोई बड़ा मुकुट मिलेगा?” जब वे सोचते हैं कि आशीष पाने की उनकी उम्मीदें नष्ट हो गई हैं या बहुत ही कम हो गई हैं, तो उन्हें ऐसा लगता है जैसे उनका सिर फटने वाला है, ऐसा लगता है जैसे उनके दिल पर हथौड़े से प्रहार किया जा रहा है और उन्हें यह चाकू से काटे जाने जैसा दर्दनाक लगता है। जब वे स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने का आशीष खोने वाले होते हैं जिसके लिए वे दिन-रात इतने लालायित रहते हैं, तो उन्हें यह एक अकस्मात आ टपके भयानक समाचार की तरह लगता है। मसीह-विरोधी की नजर में अपना कोई रुतबा न होना आशीष पाने की कोई उम्मीद न होने के समान होता है और वे एक चलती-फिरती लाश की तरह हो जाते हैं, उनका शरीर एक खोल बनकर रह जाता है, जिसमें आत्मा नहीं होती, जिसमें उनके जीवन को दिशा देने के लिए कुछ नहीं होता। उनके पास कोई उम्मीद नहीं बचती और आगे के लिए कुछ भी नहीं होता। जब कोई मसीह-विरोधी उजागर और बर्खास्त होने का सामना करता है तो उसके मन में सबसे पहले यही आता है कि उसने आशीष पाने की हर उम्मीद खो दी है। तो इस बिंदु पर क्या वे बस हार मान लेंगे? क्या वे समर्पण करने के लिए तैयार होंगे? क्या वे इस अवसर का उपयोग अपनी आशीष की इच्छा छोड़ने, रुतबे को त्यागने, स्वेच्छा से नियमित अनुयायी बनने और खुशी-खुशी परमेश्वर के लिए काम करने और अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाने के लिए करेंगे? (नहीं।) क्या यह उनके लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ हो सकता है? क्या यह महत्वपूर्ण मोड़ उन्हें अच्छी दिशा में और सकारात्मक तरीके से विकसित करेगा या यह उन्हें एक बदतर दिशा और नकारात्मक तरीके से विकसित करेगा? किसी मसीह-विरोधी के प्रकृति सार के आधार पर यह स्पष्ट है कि उसकी बर्खास्तगी उसके आशीष की इच्छा छोड़ने या सत्य को प्रेम करने और खोजने की शुरुआत बिल्कुल नहीं होती। इसके बजाय वह आशीष पाने की आशा और अवसर के लिए लड़ने की खातिर और भी अधिक मेहनत करेगा; वह किसी भी ऐसे अवसर को झपट लेगा जो उसे आशीष दिला सकता है जो उसे वापसी करने में मदद कर अपना रुतबा वापस पाने में सक्षम बना सकता है। इसीलिए बर्खास्तगी का सामना करते समय मसीह-विरोधी परेशान, निराश और विरोधी तो होगा ही, वह बर्खास्त किए जाने के खिलाफ भी जी-जान से लड़ेगा और स्थिति को पलटने और बदलने का प्रयास करेगा। वह आशीष पाने की अपनी आशा कायम रखने और अपने रुतबे, प्रतिष्ठा और सत्ता की दशा बरकरार रखने की खातिर पुरजोर संघर्ष करेगा। वह कैसे संघर्ष करता है? वह खुद को सही साबित करने की कोशिश करके, औचित्य साबित करके, बहाने बनाकर और यह बताकर संघर्ष करता है कि उसने जो किया वह कैसे किया, किस वजह से उससे गलती हुई, कैसे वह दूसरों की मदद करने और उनके साथ संगति करने के लिए पूरी रात जागता रहा और किस वजह से उससे इस मामले में लापरवाही हुई। वह इस मामले के हर पहलू को पूरी तरह स्पष्ट करेगा ताकि वह स्थिति को सँभाल सके और बर्खास्त होने के दुर्भाग्य से बच सके।

किन संदर्भों और मामलों में इस बात की सर्वाधिक संभावना होती है कि मसीह-विरोधी अपनी शैतानी प्रकृति बेनकाब और प्रकट कर देंगे? यह तब होता है जब उन्हें उजागर कर बर्खास्त किया जाता है, यानी जब वे अपना रुतबा खो देते हैं। मसीह-विरोधी जो प्राथमिक अभिव्यक्ति प्रदर्शित करते हैं, वह यह है कि वे खुद को सही साबित करने और कुतर्क करने का हर संभव प्रयास करते हैं। चाहे तुम उनके साथ सत्य पर कैसे भी संगति करो, वे प्रतिरोधी होते हैं और तुम जो कहते हो उसे स्वीकार करने से इनकार कर देते हैं। जब उनका सामना परमेश्वर के चुने हुए लोगों द्वारा उनके कुकर्मों के सभी तथ्यों को उजागर करने से होता है, तो वे इन बातों को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते, उन्हें डर होता है कि अगर वे ऐसा करेंगे तो वे आरोपों के अनुसार दोषी पाए जाएँगे और उन्हें बहिष्कृत या निष्कासित कर दिया जाएगा। अपने खिलाफ लगाए गए आरोपों को स्वीकार करने से इनकार करते हुए वे अपनी गलतियों और जिम्मेदारियों को दूसरे लोगों के कंधों पर भी डाल देते हैं। यह तथ्य पर्याप्त रूप से दर्शाता है कि मसीह-विरोधी कभी सत्य को स्वीकार नहीं करते, अपनी गलतियों को स्वीकार नहीं करते या सचमुच खुद को नहीं जानते, और यह और भी अधिक साबित करता है कि उनकी प्रकृति अहंकारी और आत्मतुष्ट होती है, कि यह सत्य से विमुख होती है, सत्य से घृणा करती है और सत्य को बिल्कुल स्वीकार नहीं करती, और इसलिए उन्हें बचाया नहीं जा सकता। जिनके पास नाम-मात्र की भी मानवता और कुछ विवेक होता है, वे अपनी गलतियों को मानकर स्वीकार कर सकते हैं, तथ्यों का सामना करने पर अपना सिर झुका सकते हैं और अपने द्वारा किए गए बुरे कामों के लिए पछतावा महसूस कर सकते हैं; लेकिन मसीह-विरोधी इन चीजों में असमर्थ होते हैं। यह दर्शाता है कि मसीह-विरोधियों के पास बिल्कुल भी अंतरात्मा या विवेक नहीं होता और वे पूरी तरह मानवता से रहित होते हैं। मसीह-विरोधी अपने दिल में हमेशा यह सोचता रहता है कि उसके पद का कद उसके आशीषों की सीमा के बराबर है। चाहे यह परमेश्वर के घर की बात हो या किसी अन्य समूह की, उनके दृष्टिकोण से लोगों के रुतबे और वर्ग के साथ ही उनके अंतिम परिणाम भी स्पष्ट रूप से निर्धारित होते हैं; इस जीवन में परमेश्वर के घर में किसी व्यक्ति का रुतबा कितना ऊँचा है और उसके पास कितनी सत्ता है, यह आने वाले संसार में उसे मिलने वाले आशीष, पुरस्कार और मुकुट के परिमाण के बराबर होगा—ये चीजें आपस में जुड़ी हुई हैं। क्या इस दृष्टिकोण में दम है? परमेश्वर ने ऐसा कभी नहीं कहा, न ही उसने कभी ऐसा कुछ वादा किया है, लेकिन यह ऐसी सोच है जो एक मसीह-विरोधी के भीतर पैदा होती है। फिलहाल हम इन कारणों की तह में नहीं जाएँगे कि मसीह-विरोधी ऐसे विचार क्यों रखते हैं। लेकिन उनके प्रकृति सार के संदर्भ में बात करें तो वे रुतबे के लिए प्रेम के साथ पैदा हुए हैं और वे इस जीवन में शानदार रुतबा और उच्च प्रतिष्ठा पाने, सत्ता का उपयोग करने की भी उम्मीद करते हैं और आने वाली दुनिया में इन सबका आनंद लेते रहना चाहते हैं। तो वे यह सब कैसे हासिल करेंगे? मसीह-विरोधियों के मन में, वे कुछ ऐसी चीजें करके इसे हासिल करेंगे जो वे करने में सक्षम हैं और जो चीजें वे तब करना चाहते हैं और करना पसंद करते हैं जब उनके पास इस जीवन में रुतबा, सत्ता और प्रतिष्ठा होते हैं, और फिर इन चीजों को वे भविष्य के आशीष, मुकुट और पुरस्कारों से बदलते हैं। मसीह-विरोधियों का सांसारिक आचरण का फलसफा यही है और यही वह तरीका है जिससे वे परमेश्वर में विश्वास रखते हैं और परमेश्वर में अपने विश्वास में वे यही दृष्टिकोण रखते हैं। उनके विचार, दृष्टिकोण और परमेश्वर में विश्वास रखने के तरीके का परमेश्वर के वचनों और वादों से कोई लेना-देना नहीं होता—ये आपस में पूरी तरह से असंबंधित होते हैं। मुझे बताओ, क्या ये मसीह-विरोधी दिमाग से थोड़े गलत नहीं हैं? क्या वे अत्यंत दुष्ट नहीं हैं? वे परमेश्वर के वचनों में कही गई किसी भी बात की अनदेखी करते हैं और उसे स्वीकार करने से इनकार करते हैं, वे मानते हैं कि जिस तरह वे सोचते हैं और जिस तरह वे परमेश्वर में विश्वास करते हैं, वही सही है, और उन्हें इसमें आनंद मिलता है, वे खुद इसमें रस लेते हैं और अपनी प्रशंसा करते हैं। वे यह जानने के लिए न तो सत्य की खोज करते हैं, न ही परमेश्वर के वचनों की जाँच करते हैं कि क्या वे ऐसी बातें कहते हैं या क्या परमेश्वर ने ऐसे वादे किए हैं। मसीह-विरोधी यह मानकर चलते हैं कि वे जन्मजात अन्य लोगों की तुलना में अधिक चतुर हैं, जन्मजात बुद्धिमान, प्रतिभाशाली और अत्यधिक गुणवान हैं; उन्हें लगता है कि उन्हें अन्य लोगों के बीच सबसे अलग दिखना चाहिए, कि उन्हें बॉस होना चाहिए, कि उन्हें दूसरों की नजर में आदर मिलना चाहिए, कि उन्हें सत्ता का प्रयोग करना चाहिए, कि उन्हें दूसरों पर शासन करना चाहिए, मानो परमेश्वर के सभी विश्वासियों को उनके द्वारा शासित होना चाहिए और हर किसी को उनकी अगुआई में रहना चाहिए। ये वो सारी चीजें हैं जो वे इस जीवन में प्राप्त करना चाहते हैं। वे ऐसे आशीष भी प्राप्त करना चाहते हैं जो अन्य लोग आने वाली दुनिया में नहीं पा सकते और वे इसे एक स्वाभाविक बात मानते हैं। मसीह-विरोधियों के ऐसे विचार और दृष्टिकोण क्या उन्हें पूरी तरह से बेशर्म नहीं बनाते? क्या वे थोड़े-से अविवेकी नहीं हैं? तुम किस आधार पर ऐसा सोचते हो? तुम किस आधार पर दूसरों से उच्च सम्मान प्राप्त करना चाहते हो? तुम किस आधार पर दूसरों पर शासन करना चाहते हो? किस आधार पर तुम्हें सत्ता चाहिए और मनुष्यों के बीच उच्च स्थान प्राप्त करना है? क्या परमेश्वर ने इन चीजों को पूर्वनिर्धारित किया है या क्या तुममें सत्य और मानवता है? क्या तुम सिर्फ इसलिए अपना रुतबा जताने और दूसरों की अगुआई करने योग्य हो क्योंकि तुम्हारे पास कुछ शिक्षा और ज्ञान है, और क्योंकि तुम थोड़े लंबे हो और सुंदर दिखते हो? क्या इससे तुम आदेश जारी करने के योग्य बन जाते हो? क्या यह तुम्हें अन्य लोगों को नियंत्रित करने के योग्य बनाता है? परमेश्वर अपने वचनों में यह कहाँ कहता है, “तुम आकर्षक हो, तुम्हारे पास ताकत और गुण हैं, इसलिए तुम्हें अन्य लोगों की अगुआई करनी चाहिए और स्थायी रुतबा प्राप्त करना चाहिए”? क्या परमेश्वर ने तुम्हें यह सामर्थ्य दी है? क्या परमेश्वर ने इसे पूर्वनिर्धारित किया है? नहीं। जब भाई-बहन तुम्हें अगुआ या कार्यकर्ता चुनते हैं तो क्या वे तुम्हें रुतबा दे रहे होते हैं? क्या यह एक आशीष है जिसके तुम इस जीवन में हकदार हो? कुछ लोग इन चीजों का आनंद लेने की व्याख्या इस जीवन में सौ गुना प्राप्त करने के रूप में करते हैं, और सोचते हैं कि जब तक उनके पास रुतबा और सत्ता है, और वे आदेश जारी कर सकते हैं और बहुत से लोगों पर शासन कर सकते हैं, तब तक उन्हें अपने आसपास अनुयायियों के समूह से घिरा होना चाहिए, और जहाँ भी वे जाएँ, वहाँ हमेशा लोग उनकी सेवा करते रहें और उनके इर्द-गिर्द घूमते रहें। किस आधार पर तुम इन चीजों का आनंद लेना चाहते हो? भाई-बहन तुम्हें अगुआ इसलिए चुनते हैं कि तुम यह कर्तव्य निभा सको; इसलिए नहीं कि तुम लोगों को गुमराह कर सको, तुम भाई-बहनों से उच्च सम्मान और प्रशंसा पाओ, और इसलिए तो बिल्कुल नहीं कि तुम सत्ता का उपयोग कर रुतबे के लाभों का आनंद ले सको, बल्कि इसलिए कि तुम कार्य व्यवस्थाओं और सत्य सिद्धांतों के अनुसार अपना कर्तव्य निभा सको। इसके अलावा, परमेश्वर ने यह पूर्वनिर्धारित नहीं किया है कि भाई-बहनों ने जिसे अगुआ चुना उसे बर्खास्त नहीं किया जा सकता। क्या तुम्हें लगता है कि तुम ऐसे व्यक्ति हो जिसका उपयोग पवित्र आत्मा द्वारा किया जा रहा है? क्या तुम्हें लगता है कि कोई भी तुम्हें बर्खास्त नहीं कर सकता? तो तुम्हें बर्खास्त करने में गलत क्या है? यदि तुम्हें निष्कासित नहीं किया गया है तो इसका कारण यह है कि तुम पर दया की जा रही है और तुम्हें पश्चात्ताप करने का मौका दिया जा रहा है, लेकिन तुम अभी भी संतुष्ट नहीं हो। तुम किस बात पर बहस कर रहे हो? यदि तुम पीछे हटना चाहते हो और अब परमेश्वर पर विश्वास नहीं करना चाहते क्योंकि तुम्हें आशीष पाने की उम्मीदें धराशायी हो गई हैं, तो ऐसा कर लो और पीछे हट जाओ! क्या तुम्हें लगता है कि परमेश्वर का घर तुम्हारे बिना नहीं चल सकता? कि तुम्हारे बिना दुनिया घूमना बंद कर देगी? कि तुम्हारे बिना परमेश्वर के घर का काम पूरा नहीं हो सकता? खैर, तुमने गलत सोचा! किसी भी व्यक्ति के न होने से दुनिया का घूमना या सूरज का उगना नहीं रुकेगा—केवल परमेश्वर अपरिहार्य है, कोई भी इंसान नहीं—कलीसिया का काम हमेशा की तरह चलता रहेगा। अगर कोई सोचता है कि उसके बिना कलीसिया नहीं चल सकती और परमेश्वर का घर उसके बिना नहीं चल सकता तो क्या वह मसीह-विरोधी नहीं है? तुम रुतबे के फायदे उठाने के आदी हो, है न? तुम दूसरों से आदर और उच्च सम्मान पाने और चापलूसी सुनने का आनंद लेने के आदी हो, है न? तुम दूसरों से आदर पाने का आनंद लेने के लिए योग्य कैसे हो? तुम दूसरों से मुस्कराहट के साथ अभिवादन किए जाने के योग्य कैसे हो? क्या तुम यह भी चाहते हो कि लोग तुम्हारे सामने झुकें और तुम्हारी आराधना करें? यदि ऐसा है तो क्या इसका मतलब यह नहीं है कि तुम पूरी तरह से बेशर्म हो? जब कुछ लोगों को उनके कर्तव्य से बर्खास्त कर दिया जाता है तो वे इतने अधिक परेशान और दुखी हो जाते हैं, जितना परिवार के किसी सदस्य के मरने पर भी नहीं होते। वे सब कुछ खोज निकालते हैं और परमेश्वर के घर के साथ यूँ बहस करते हैं मानो शायद कोई और कलीसिया की अगुआई नहीं कर सकता, मानो अब तक कलीसिया के कार्य का समर्थन करने वाले वे एकमात्र व्यक्ति रहे हों—यह एक बहुत बड़ी गलती है। परमेश्वर के चुने हुए लोगों का परमेश्वर को न छोड़ना परमेश्वर के वचनों से प्राप्त एक परिणाम है और वे सभाओं में भाग लेते हैं और कलीसिया का जीवन जीते हैं क्योंकि वे परमेश्वर में विश्वास करते हैं और परमेश्वर में सच्ची आस्था रखते हैं। ऐसा नहीं है कि परमेश्वर के चुने हुए लोग इसलिए दृढ़ रहकर सामान्य रूप से सभाओं में भाग लेते हैं कि इन्होंने सत्य को समझ लिया है और इनका अच्छी तरह से सिंचन किया गया है। कलीसिया के अगुआओं को बार-बार बदल दिया जाता है, बहुत से नकली अगुआओं और नकली कार्यकर्ताओं को बर्खास्त कर दिया जाता है और परमेश्वर के चुने हुए लोग सामान्य रूप से सभाओं में भाग लेते हैं और परमेश्वर के वचनों को खाते-पीते हैं—इसका इन नकली अगुआओं और नकली कार्यकर्ताओं से कोई लेना-देना नहीं होता। ये दलीलें देने का क्या मतलब है? क्या तुम सिर्फ बेतुकी और उलझी हुई दलीलें नहीं दे रहे हो? अगर तुममें सच में सत्य वास्तविकता है और तुमने परमेश्वर के चुने हुए लोगों की जीवन प्रवेश से जुड़ी कई समस्याओं को सुलझाया है, तो परमेश्वर के चुने हुए लोग अपने दिल में यह बात जान लेंगे; अगर तुममें सत्य वास्तविकता नहीं है और तुम समस्याओं को सुलझाने के लिए सत्य पर संगति नहीं कर सकते, तो फिर कलीसिया के कार्य के सामान्य विकास का तुमसे कोई लेना-देना नहीं है। बहुत सारे नकली अगुआ और नकली कार्यकर्ता हैं, जो एक बार बर्खास्त होने के बाद बहाने बनाते रहते हैं, मानो उन्होंने कलीसिया में बहुत योगदान दिया हो, जबकि वास्तव में उन्होंने कोई वास्तविक कार्य नहीं किया, और उनके रखरखाव के माध्यम से कलीसिया के जीवन की सामान्य व्यवस्था संरक्षित नहीं हुई; उनके बिना परमेश्वर के चुने हुए लोग सामान्य रूप से सभाओं में भाग लेते रहते हैं और हमेशा की तरह अपने कर्तव्यों का पालन करते रहते हैं। अगर तुममें सत्य वास्तविकता नहीं है और तुम कोई वास्तविक कार्य नहीं कर सकते, तो तुम्हें कलीसिया के कार्य और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश दोनों को प्रभावित करने और विलंबित करने से रोकने के लिए बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए। परमेश्वर का घर तुम जैसे किसी नकली अगुआ या नकली कार्यकर्ता का उपयोग नहीं करेगा—क्या तुम्हें यह लगता था कि परमेश्वर के घर में तुम्हें बर्खास्त करने की शक्ति नहीं है? तुम लोगों ने अपने काम को इतना खराब कर दिया है, तुमने कलीसिया के काम में इतनी परेशानी खड़ी की है और इतना बड़ा नुकसान पहुँचाया है, तुमने ऊपरवाले को इतना चिंतित कर दिया है, तुम्हारा उपयोग करना इतना परेशानी भरा है, और इससे लोगों को इतनी घृणा, विरक्ति और नफरत होती है। तुम इतने मूर्ख, अज्ञानी और जिद्दी हो, और यहाँ तक कि काट-छाँट के भी लायक नहीं हो, इसलिए परमेश्वर का घर तुम्हें बाहर निकालना चाहता है, तुम्हें तुरंत हटाना चाहता है और इस मामले को खत्म कर देना चाहता है। और फिर भी तुम चाहते हो कि ऊपरवाला तुम्हें अगुआ बने रहने का एक और मौका दे? यह तो भूल जाओ! जब ऐसे नकली अगुआओं और मसीह-विरोधियों की बात आती है जो अंतरात्मा और विवेक विहीन होते हैं और जो बुराई करते हैं और गड़बड़ी पैदा करते हैं तो एक बार हटा दिए जाने पर वे हमेशा के लिए हटा दिए जाते हैं। यदि तुम वास्तविक कार्य कर सकते हो, तो तुम्हारा उपयोग किया जाएगा; यदि तुम वास्तविक कार्य नहीं कर सकते और तुम बुराई भी करते हो और गड़बड़ी पैदा करते हो, तो तुम्हें तुरंत हटा दिया जाएगा—यह लोगों का उपयोग करने के लिए परमेश्वर के घर का सिद्धांत है। कुछ मसीह-विरोधी झुकते नहीं और कहते हैं, “तुम मुझे वास्तविक कार्य न करने के लिए बर्खास्त कर रहे हो—तुम मुझे पश्चात्ताप करने का एक मौका क्यों नहीं देते?” क्या यह विकृत तर्क नहीं है? तुम्हें इसलिए बर्खास्त किया जा रहा है क्योंकि तुमने बहुत सारी बुराइयाँ की हैं, और तुम्हें इतनी बार काट-छाँट के बाद ही बर्खास्त किया जा रहा है और फिर भी तुम पश्चात्ताप करने से पूरी तरह से इनकार कर रहे हो, तो तुम और क्या तर्क दे सकते हो? तुम प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे के पीछे दौड़ते रहे और वास्तविक कार्य नहीं किया, तुमने कलीसिया के काम को ठप कर दिया, और इतनी सारी समस्याओं का ढेर लगा हुआ था और तुमने उन्हें नहीं सँभाला—तुम्हारे कारण ऊपरवाले को कितनी चिंता करनी पड़ी होगी? जब ऊपरवाला तुम्हारा समर्थन कर रहा था और तुम्हारे काम में तुम्हारी मदद कर रहा था, तब तुम लोग छिपकर काम कर रहे थे, तुम बहुत से ऐसे काम कर रहे थे जो सिद्धांतों के विरुद्ध हैं, ऐसी चीजें जो देखे जाने लायक नहीं हैं, ऊपरवाले के पीठ पीछे, मनमाने ढंग से परमेश्वर की भेंटों को ऐसी बहुत सी चीजें खरीदने में खर्च कर रहे थे जो तुम्हें नहीं खरीदनी चाहिए, परमेश्वर के घर के हितों को इतना नुकसान पहुँचा रहे थे और कलीसिया के कार्य पर इतनी बड़ी आपदा ला रहे थे! तुम इन बुरे कर्मों के बारे में कभी क्यों नहीं बोलते? जब परमेश्वर का घर तुम्हें बर्खास्त करना चाहता है तो तुम पूरी बेशर्मी से कहते हो, “क्या तुम मुझे एक और मौका दे सकते हो?” क्या परमेश्वर के घर को तुम्हें एक और मौका देना चाहिए ताकि तुम अंधाधुंध ढंग से बुरे काम करते रहो? क्या तुममें परमेश्वर के घर से एक और मौका माँगने में कोई शर्म नहीं आती? क्या तुम्हें एक और मौका दिया जा सकता है जब तुम अपनी प्रकृति को बिल्कुल नहीं जानते और तुम्हारे दिल में पश्चात्ताप तो बिल्कुल भी नहीं है? इस तरह के लोगों को कोई शर्म नहीं होती, वे शर्म नाम की चीज को नहीं जानते और वे बुरे लोग और मसीह-विरोधी हैं!

कुछ अगुआ और कार्यकर्ता कतई कोई वास्तविक कार्य नहीं कर सकते और ऊपरवाले से कुछ समय तक मार्गदर्शन और मदद मिलने के बाद भी वे ऐसा कोई कार्य नहीं कर पाते। वे तो सामान्य मामलों के कार्य को भी अच्छी तरह नहीं सँभाल पाते और यह दर्शाता है कि उनमें काबिलियत की बहुत कमी है। ऊपरवाला कार्य के सभी पहलुओं की नियमित पूछताछ और निरीक्षण भी करेगा और भाई-बहनों से किसी भी समस्या की तुरंत रिपोर्ट करने के लिए कहेगा; ऊपरवाले को कार्य के सभी पहलुओं से जुड़े सिद्धांतों के बारे में पुनरीक्षण करने, मार्गदर्शन देने और संगति करने की भी जरूरत होती है। जब ऊपरवाला सिद्धांतों पर संगति समाप्त कर देता है, तब भी कुछ लोग नहीं जानते कि चीजें कैसे की जाएँ और वे इन्हें खराब तरीके से करते हैं और कुछ तो अंधाधुंध बुरे काम करते जाते हैं; चाहे वे जो भी काम कर रहे हों, वे कभी ऊपरवाले से नहीं खोजते, वे कभी ऊपरवाले को कोई समस्या नहीं बताते, इसके बजाय वे बस छिपकर काम करते रहते हैं—यह कैसी समस्या है? इन लोगों की प्रकृति क्या है? क्या वे सत्य से प्रेम करते हैं? क्या वे विकसित करने योग्य हैं? क्या वे अभी भी अगुआ और कार्यकर्ता होने के योग्य हैं? सबसे पहले, वे कुछ करने से पहले खोजते नहीं हैं; दूसरे, वे ऐसा करते समय कोई रिपोर्ट नहीं बनाते; और तीसरे, वे ऐसा करने के बाद कोई फीडबैक नहीं देते। वे इतने शर्मनाक तरीके से काम करने के बावजूद बर्खास्त नहीं होना चाहते और बर्खास्त होने के बाद भी वे झुकते नहीं हैं—क्या ये लोग सुधार से परे नहीं हैं? मुझे बताओ, क्या सुधरने से परे ज्यादातर लोग निपट बेशर्म और अविवेकी नहीं हैं? वे कोई भी काम अच्छी तरह से नहीं करते, और वे आलसी होते हैं और सुख-सुविधाओं में लिप्त रहते हैं; कोई भी काम करते समय वे बस आदेश देने के लिए अपनी जुबान हिलाते हैं, और एक बार बोल देने के बाद वे कुछ और नहीं करते। वे कभी भी काम की निगरानी, निरीक्षण या अनुवर्ती कार्रवाई नहीं करते, और वे ऐसे किसी भी व्यक्ति के प्रति द्वेष और आक्रोश महसूस करते हैं जो यह काम करता है, और उस व्यक्ति को पीड़ा देना चाहते हैं—क्या ये ठेठ मसीह-विरोधी नहीं हैं? यह मसीह-विरोधियों की शर्मनाक स्थिति है; वे नहीं जानते कि वे क्या हैं, वे बहुत ही शर्मनाक तरीके से काम करते हैं और फिर भी आशीष पाना चाहते हैं, वे फिर भी परमेश्वर के घर और ऊपरवाले से श्रेष्ठता के लिए होड़ करना चाहते हैं, और फिर भी बहस करना चाहते हैं—क्या ऐसा करके वे मौत को दावत नहीं दे रहे हैं? जब ऐसे गए-गुजरे लोगों को बर्खास्त कर दिया जाता है तो वे बहुत रुष्ट और हठी हो जाते हैं। वास्तव में उनमें कोई शर्म और यहाँ तक कि रत्तीभर समझ-बूझ नहीं होती! अपना कर्तव्य निभाते समय वे अंधाधुंध बुरे काम करते हैं और कलीसिया के काम में गड़बड़ी और बाधा पैदा करते हैं, और जब उन्हें बर्खास्त कर दिया जाता है तो वे न केवल अपनी गलतियाँ मानने से इनकार कर देते हैं, बल्कि वे इसकी जिम्मेदारी दूसरों के कंधों पर भी डालते हैं और अपनी जगह किसी और को दोषी ठहराते हैं, यह कहते हुए कि, “यह काम उन्होंने किया और उस अन्य काम को करने के लिए अकेले मैं जिम्मेदार नहीं हूँ। सभी ने मिलकर उस मामले पर चर्चा की थी और मैं ही अगुआई नहीं कर रहा था।” वे कोई जिम्मेदारी नहीं लेते, मानो जिम्मेदारी लेने से उनकी निंदा की जाएगी और उन्हें हटा दिया जाएगा और वे आशीष पाने की पूरी उम्मीद खो देंगे। इसलिए वे मर जाएँगे पर अपनी गलतियाँ और खुद को सीधे तौर पर जिम्मेदार नहीं मानेंगे, बल्कि दूसरों के कंधों पर जिम्मेदारी डालने पर जोर देते हैं। उनकी मानसिकता का आकलन करें तो वे अंत तक परमेश्वर से लड़ेंगे! क्या ये ऐसे लोग हैं जो सत्य को स्वीकार करते हैं? क्या ये ऐसे लोग हैं जो परमेश्वर के न्याय और ताड़ना को स्वीकार करते हैं? इस तरह से परमेश्वर के घर से लड़ने में सक्षम होना दर्शाता है कि उनके स्वभाव में गंभीर रूप से कुछ गड़बड़ है। जब यह बात आती है कि वे अपनी गलतियों से कैसे निपटते हैं तो सबसे पहले वे सत्य नहीं खोजते, और दूसरे, वे आत्म-चिंतन नहीं करते; वे अपना दोष दूसरों पर भी डालते हैं और जब परमेश्वर का घर उन्हें एक निश्चित तरीके से निरूपित करता है और उन्हें उनके कर्तव्य से हटा देता है तो वे परमेश्वर के घर से लड़ने लगते हैं, और वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों की सहानुभूति जीतने की कोशिश करते हुए जहाँ भी जाते हैं अपनी शिकायतें और नकारात्मकता फैलाते रहते हैं। वे परमेश्वर में विश्वास करते हैं, फिर भी उसका विरोध करने का दुस्साहस करते हैं—क्या वे मृत्यु को आमंत्रित नहीं कर रहे हैं? ये लोग वास्तव में अविवेकी हैं! तो अगर उन्हें उनके कर्तव्य से बर्खास्त कर दिया गया और उनका रुतबा चला गया तो क्या हुआ? उन्हें निष्कासित नहीं किया गया है और उनके जीने के अधिकार को छीना नहीं गया है; वे पश्चात्ताप कर सकते हैं, नए सिरे से शुरुआत कर सकते हैं और जहाँ भी वे असफल हुए और गिरे, वहाँ फिर से उठकर खड़े हो सकते हैं। मसीह-विरोधी इतनी सरल-सी बात भी स्वीकार नहीं कर पाते—ये लोग वास्तव में बचाए जाने से परे हैं! बेशक, जब कुछ मसीह-विरोधी बर्खास्त किए जाते हैं तो वे ऊपरी तौर पर अनिच्छा से आज्ञापालन करते हैं और बहुत मायूस नहीं होते या कोई विरोध नहीं दिखाते, लेकिन क्या इसका मतलब यह है कि वे सत्य को स्वीकार कर परमेश्वर के प्रति समर्पण कर रहे हैं? नहीं, ऐसा नहीं होता। किसी मसीह-विरोधी में मसीह-विरोधी का ही स्वभाव और सार होता है और यही चीज उसे सामान्य व्यक्ति से अलग करती है। हालाँकि बर्खास्त किए जाने के बाद वह बाहरी तौर पर कुछ नहीं कहता, लेकिन अपने दिल में वह विरोध करना जारी रखता है। वह अपनी गलतियाँ नहीं स्वीकारता और चाहे जितना समय बीत जाए, वह वास्तव में खुद को जानने में कभी सक्षम नहीं होगा। यह बहुत पहले ही सिद्ध हो चुका है। मसीह-विरोधी के बारे में कुछ और भी है जो कभी नहीं बदलता : वह चाहे कहीं भी काम कर रहा हो, वह अलग होना चाहता है, दूसरों से अपना आदर और सम्मान करवाना चाहता है; भले ही उसके पास कलीसिया-अगुआ या टीम-अगुआ का वैध पद और खिताब न हो, फिर भी वह रुतबे और महत्व के मामले में दूसरों से कहीं बेहतर होना चाहता है। चाहे वह काम कर पाए या न कर पाए, उसमें कैसी भी मानवता या उसके पास कैसा भी जीवन-अनुभव हो, वह दिखावा करने, लोगों को अपने पक्ष में करने, लोगों का मन जीतने और लोगों को लुभाने और गुमराह करने और उनका सम्मान पाने के लिए हर तरह के साधन खोजता है और किसी भी हद तक जाने को तैयार रहता है। मसीह-विरोधी किस बारे में लोगों से अपनी सराहना कराना चाहता है? भले ही उसे बर्खास्त कर दिया गया हो, वह सोचता है कि “कमजोर भालू भी एक हिरण से ताकतवर होता है” और वह चूजों के ऊपर उड़ने वाला बाज बने रहना चाहता है। क्या यह मसीह-विरोधी का अहंकार और आत्मतुष्टता नहीं है, क्या यह उसकी दूसरों से भिन्नता नहीं है? वह बिना रुतबे के रहने का इच्छुक नहीं है, एक नियमित विश्वासी और एक साधारण व्यक्ति बनकर रहने का इच्छुक नहीं है, इस बात का इच्छुक नहीं है कि पाँव जमीन पर टिकाए रखकर अपना कर्तव्य अच्छे से निभाए, अपने स्थान पर टिका रहे या बस अच्छा काम करता रहे, अपनी निष्ठा दिखाता रहे और उसके ऊपर जो काम आ पड़ा है, उसमें अपना सर्वश्रेष्ठ करे। वह इससे संतुष्ट होने से बहुत दूर होता है। वह इस तरह का व्यक्ति बनने या इस तरह की चीजें करने के लिए तैयार नहीं होता। उसकी “भव्य आकांक्षा” क्या होती है? वह है सम्मान और आदर पाना और सत्ता हासिल करना। इसलिए भले ही मसीह-विरोधी के नाम में कोई विशेष खिताब न जुड़ा हो, फिर भी वह अपने लिए प्रयास करता है, अपने लिए बोलता है और अपने लिए खड़ा होता है, खुद का प्रदर्शन करने के लिए हरसंभव प्रयास करता है, उसे डर होता है कि कोई उसकी ओर नहीं देखेगा या कोई भी उस पर ध्यान नहीं देगा। वह ज्यादा प्रसिद्ध होने, अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने, अधिक से अधिक लोगों को अपनी प्रतिभाएँ और खूबियाँ दिखाने और स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ दिखाने का कोई मौका नहीं चूकता। जब वह ये चीजें कर रहा होता है, मसीह-विरोधी अपनी शान बघारने और आत्म-स्तुति करने के लिए, और सभी को यह एहसास कराने के लिए हर कीमत चुकाने को तैयार रहता है कि भले ही वह अगुआ नहीं है और उसके पास रुतबा नहीं है, फिर भी वह साधारण लोगों से श्रेष्ठ है। तब, मसीह-विरोधी अपना लक्ष्य हासिल कर चुका होगा। वह एक सामान्य व्यक्ति, एक साधारण व्यक्ति बनने के लिए तैयार नहीं होता; वह सत्ता और प्रतिष्ठा चाहता है और दूसरों से आगे रहना चाहता है। कुछ लोग कहते हैं, “यह अकल्पनीय है। रुतबा, प्रतिष्ठा और सत्ता होने का क्या फायदा है?” समझ-बूझ वाले व्यक्ति के लिए सत्ता और रुतबा बेकार होते हैं और ये ऐसी चीजें नहीं हैं जिनके पीछे उसे भागना चाहिए। लेकिन महत्वाकांक्षा की आग से सुलग रहे मसीह-विरोधियों के लिए रुतबा, सत्ता और प्रतिष्ठा अहम होते हैं; उनके दृष्टिकोण को कोई नहीं बदल सकता, कोई भी उनके जीने के तरीके और अस्तित्व के लक्ष्यों को नहीं बदल सकता—यही मसीह-विरोधियों का प्रकृति सार है। इसलिए यदि तुम किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हो जो बढ़-चढ़कर अपना कर्तव्य निभाता है और अपने पास रुतबा होने पर उसकी रक्षा करता है, और जब रुतबा नहीं होता तो तब भी अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा करने के लिए यथासंभव सब कुछ करना चाहता है—तो इस तरह के व्यक्ति को बचाया नहीं जा सकता और वह पूरी तरह से मसीह-विरोधी होता है।

मसीह-विरोधी को बर्खास्त किए जाने से पहले और उसके बाद, जब वह कई प्रयासों के बावजूद मनचाहा रुतबा, सत्ता और प्रतिष्ठा प्राप्त करने में विफल रहता है तो भी वह आशीष की अपनी इच्छा और रुतबा नहीं छोड़ेगा। वह इन चीजों को दरकिनार कर सत्य का अनुसरण करने के लिए खुद का कायापलट नहीं करेगा या अपने कर्तव्य को व्यावहारिक और अच्छे व्यवहार के साथ ठीक से नहीं निभाएगा। उसने जो कुछ भी गलत किया है, उसके लिए वह कभी भी वास्तव में पश्चात्ताप नहीं करेगा, बल्कि बार-बार यह आकलन करेगा कि “क्या मुझे भविष्य में रुतबा पाने की कोई उम्मीद होगी? रुतबे के बिना क्या मुझे आशीष पाने की कोई उम्मीद है? क्या आशीष पाने की मेरी इच्छा पूरी होगी? मैं परमेश्वर के घर में, कलीसिया में किस स्तर पर हूँ? पदानुक्रम में मैं कहाँ पर हूँ?” जब वे यह निष्कर्ष निकालते हैं कि कलीसिया में उनकी कोई बड़ी प्रतिष्ठा नहीं है, कि अधिकतर लोग उन्हें अनुकूल दृष्टि से नहीं देखते और कई लोग तो उन्हें नकारात्मक शिक्षण के उदाहरण के रूप में भी इस्तेमाल करते हैं, तो उन्हें लगता है कि कलीसिया के भीतर उनकी प्रतिष्ठा पूरी तरह मिट्टी में मिल चुकी है, कि उन्हें अधिकतर लोगों का समर्थन हासिल नहीं है, संभवतः अधिकतर लोग उन्हें फिर से स्वीकार नहीं कर सकते और यह भी कि आशीष पाने की उनकी आशा लगभग न के बराबर है। जब वे यह सब देखते हैं, जब वे अपने आकलन में इन निष्कर्षों पर पहुँचते हैं, तब भी उनका विचार और रवैया अपने इरादों और इच्छाओं को त्यागकर परमेश्वर के सामने वास्तव में पश्चात्ताप करने या परमेश्वर के लिए श्रम करने के लिए खुद को पूरी तरह से समर्पित करने और अपने कर्तव्य को निष्ठापूर्वक करने का नहीं होगा। उनके दिमाग में यह नहीं है—तो क्या है? “चूँकि परमेश्वर के घर, कलीसिया में मैं अपनी आकांक्षाएँ पूरी करने वाला नहीं हूँ या कोई रुतबा नहीं पाने वाला हूँ, तो मैं इस गतिरोध वाले मार्ग पर क्यों चलता रहूँ? लोगों को स्थान परिवर्तन से लाभ हो सकता है। अगर मैं कहीं और चला जाऊँ तो वास्तव में मेरे लिए चीजें बेहतर हो सकती हैं। मुझे इस जगह से क्यों नहीं चले जाना चाहिए जिसने मेरा दिल तोड़ा? इस जगह को क्यों न छोड़ दूँ जहाँ मैं अपनी आकांक्षाएँ पूरी नहीं कर सकता, जहाँ मेरा अपनी आकांक्षाओं को पूरा करना मुश्किल है?” जब एक मसीह-विरोधी इन चीजों के बारे में सोचता है तो क्या इसका मतलब यह नहीं है कि वह कलीसिया छोड़ने वाला है? क्या तुम लोग चाहोगे कि कोई ऐसा व्यक्ति चला जाए या रहे? क्या उसे रहने के लिए मनाया जाना चाहिए? (उसे नहीं मनाया जाना चाहिए और अगर लोग उसे मनाने की कोशिश भी करें तो भी वह नहीं रुकेगा।) कोई भी उसे रहने के लिए मजबूर नहीं कर सकता—यह सच है। इसका कारण क्या है? सब कुछ के बाद भी मसीह-विरोधी सत्य से प्रेम नहीं करते, इसलिए परमेश्वर के घर में रहने से उन्हें केवल पीड़ा ही पहुँचेगी। यह किसी वेश्या, एक बदचलन औरत को अपने पति की सहायता कर अपने बच्चों को शिक्षित करने, एक सदाचारी महिला और नेक पत्नी और दयालु माँ बनने के लिए कहने जैसा होगा। क्या वह ये चीजें कर सकती है? (नहीं।) यह व्यक्ति की प्रकृति का सवाल है। इसलिए यदि तुम देखते हो कि कोई मसीह-विरोधी पीछे हटना चाहता है, तो तुम चाहे जो भी करो, उसे कुछ और समझाने की कोशिश न करो, जब तक कि किसी खास स्थिति में वह खुद यह न कहे, “भले ही मैं मसीह-विरोधी हूँ, मैं परमेश्वर के घर के लिए मजदूरी करना चाहता हूँ। मैं खुद को कोई बुराई न करने के लिए मजबूर करूँगा और शैतान के खिलाफ विद्रोह करूँगा।” इस तरह के मामले में क्या उसे मक्खी की तरह निकाल दिया जाना चाहिए? (नहीं।) ऐसे किसी मामले में हम चीजों को स्वाभाविक तरीके से चलने दे सकते हैं, लेकिन एक प्रक्रिया लागू की जानी चाहिए : अधिक लोगों को उस मसीह-विरोधी की निगरानी करनी चाहिए और परेशानी के पहले संकेत पर ही, जैसे बुराई करने की उसकी इच्छा पर, उसे तुरंत हटा देना चाहिए। यदि वह यह सह नहीं सकता कि दूसरे उसकी निगरानी करें और उस पर नजर रखें, उसे यह अपने साथ दुर्व्यवहार लगता है और वह मजदूरी करने का इच्छुक नहीं है तो ऐसे व्यक्ति के साथ कैसा व्यवहार किया जाना चाहिए? तुम्हें उसे उसकी राह दिखाने में मदद कर कहना चाहिए, “तुम प्रतिभाशाली हो और तुम्हें बाहर अविश्वासी दुनिया में जाना चाहिए और अपनी महान योजनाओं को साकार करना चाहिए। तुम इस तालाब के लिए बहुत बड़ी मछली हो, कलीसिया तुम्हारे लायक नहीं है। तुम यहाँ अपने पंख नहीं फैला सकते; यह काम तुम्हारी प्रतिभा के लायक नहीं है। अगर तुम दुनिया में वापस लौटे, तो शायद तुम्हें पदोन्नति मिल जाएगी, तुम बहुत सारा पैसा कमाओगे और अमीर बन जाओगे। शायद तुम सेलिब्रिटी बन जाओगे!” उन्हें जल्दी से चले जाने के लिए प्रोत्साहित करो। अगर वे धन और रुतबे के पीछे भागते हैं और रुतबे के फायदों के लिए ललचाते हैं, तो उन्हें काम करने और पैसा कमाने के लिए दुनिया में लौटने दो, ताकि तब वे अधिकारी बनें और अपने दैहिक जीवन का आनंद लें। कुछ लोग शायद पूछें कि क्या उनके साथ इस तरह का व्यवहार करना उनके साथ प्रेमपूर्ण हृदय के बिना व्यवहार करना है। असल में, भले ही तुम उनसे ऐसी बातें न कहो, मसीह-विरोधी अपने दिल में सोचेंगे, “एक दिन पदोन्नत और फिर अगले दिन बर्खास्त। मुझे रुतबा दिया गया है और फिर भी मुझ पर नजर रखी जाती है, मेरी निगरानी और काट-छाँट की जाती है—यह कितनी परेशानी की बात है! इस तरह का रुतबा पाना मेरे लिए कठिन नहीं है, और अगर मैं परमेश्वर में विश्वास न करता तो मैं अमीर होता और अब तक दुनिया में सामाजिक पायदान पर ऊपर चढ़ चुका होता, कम से कम मैं शहर स्तर का काडर तो होता ही। मैं एक अधिकारी बनने के लिए पैदा हुआ हूँ। मैं दुनिया में जो भी करता हूँ वह उत्कृष्ट होता है, मैं सब कुछ अच्छा करता हूँ, मैं किसी भी उद्योग में नाम कमा सकता हूँ और मैं उद्यमशील हूँ।” भले ही तुम उनसे ऐसी बातें न कहो, वे ऐसी बातें कहेंगे और इसीलिए तुम्हें जल्दी से कुछ ऐसे सुखद लगने वाले शब्द बोल देने चाहिए जो वे सुनना चाहते हैं और उन्हें जल्दी से कलीसिया छोड़ने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए—इससे सबको लाभ होगा। मसीह-विरोधी रुतबे, सत्ता और प्रतिष्ठा के पीछे भागते हैं; वे साधारण लोग नहीं होना चाहते हैं, बल्कि हमेशा दूसरों से आगे रहना चाहते हैं, जब तक कि वे आखिर में अपनी प्रतिष्ठा और पदवी को मटियामेट कर परमेश्वर द्वारा शापित नहीं हो जाते। तो क्या तुम साधारण लोग बनकर संतुष्ट हो? (हाँ।) साधारण लोग होना वास्तव में सार्थक है। प्रसिद्धि और लाभ का पीछा न करना, बल्कि वास्तविक जीवन से संतुष्ट रहना, शांति और आनंद के साथ रहना, सहज महसूस करना—यही जीवन में सही मार्ग है। अगर कोई हमेशा दूसरों से श्रेष्ठ और आगे रहना चाहता है तो यह उसके लिए खुद को आग पर भूनने और खुद को माँस की चक्की में डालने के बराबर है—वह मुसीबत को आमंत्रित कर रहा है। उनके मन में ऐसी भावनाएँ क्यों आती हैं? क्या दूसरों से बेहतर होना अच्छी बात है? (नहीं, यह अच्छी बात नहीं है।) यह अच्छी बात नहीं है। फिर भी मसीह-विरोधी इस मार्ग को चुनने पर अड़े रहते हैं। तुम लोग चाहे जो भी करो, इस मार्ग पर मत चलो!

जब एक साधारण भ्रष्ट व्यक्ति के पास परमेश्वर में अपने विश्वास का आधार नहीं होता, जब उसने परमेश्वर में सच्ची आस्था विकसित नहीं की होती है, तो उसके पास बहुत कम आस्था या आध्यात्मिक कद होता है। जब ऐसा व्यक्ति किसी पराजय का सामना करता है, तो वह खुद के बारे में खराब राय रखता है, और सोचता है कि परमेश्वर उससे प्रेम नहीं करता, उससे घृणा करता है। खुद को आगे बढ़ने में नाकाम होते और हर मोड़ पर असफल होते और परमेश्वर को संतुष्ट करने में असमर्थ होते देखकर वह हतोत्साहित महसूस करता है; वह कुछ कमजोरी और निराशा का भी अनुभव करेगा, और कभी-कभी उसके मन में कलीसिया छोड़ने के विचार भी आएँगे। लेकिन यह अवज्ञाकारी होने जैसा नहीं है। यह उस तरह का विचार है जो किसी व्यक्ति के मन में तब आता है जब वह मायूस और हताश होता है, और यह एक मसीह-विरोधी के पीछे हटने से पूरी तरह से अलग बात है। जब कोई मसीह-विरोधी पीछे हटना चाहता है, तो वह पश्चात्ताप करने के बजाय मरना पसंद करता है, लेकिन जब कोई साधारण भ्रष्ट व्यक्ति हतोत्साहित होकर कलीसिया छोड़ने के बारे में सोचता है तो वह दूसरों की मदद और संगति के साथ ही साथ अपने सक्रिय सहयोग, प्रार्थना, खोज के साथ और परमेश्वर के वचन पढ़कर उसे परमेश्वर के वचन धीरे-धीरे प्रभावित कर सकते हैं, बदल सकते हैं और उसके निर्णय और मन के साथ यह स्थिति भी बदल सकते हैं कि वह रहेगा या जाएगा। साथ ही परमेश्वर के वचन उसे धीरे-धीरे पश्चात्ताप करने, एक सकारात्मक दृष्टिकोण और डटे रहने का संकल्प विकसित करने में भी मदद कर सकते हैं, जिससे वह धीरे-धीरे मजबूत बन जाता है। यह एक सामान्य व्यक्ति के लिए जीवन प्रवेश की प्रक्रिया की अभिव्यक्ति है। दूसरी ओर, एक मसीह-विरोधी अंत तक लड़ेगा। वह कभी पश्चात्ताप नहीं करेगा और मर जाना पसंद करेगा पर अपनी गलती नहीं मानेगा, खुद को नहीं जानेगा, आशीष पाने की अपनी इच्छा नहीं छोड़ेगा। उसके पास रत्तीभर भी जीवन प्रवेश नहीं होता। तो जो भी व्यक्ति श्रम करने को तैयार नहीं है या इसे ठीक से करने में विफल रहता है, उसे बस कलीसिया छोड़ने की सलाह दे दो। यह एक बुद्धिमानी भरा निर्णय है और ऐसे मामले को सँभालने का सबसे बुद्धिमानी भरा तरीका है। अगर तुम उसे ऐसा करने की सलाह न भी दो तो क्या उसे रुकने के लिए राजी कर पाओगे? क्या तुम उसके अनुसरण के तरीके या उसके दृष्टिकोण को बदल पाओगे? तुम इन चीजों को कभी नहीं बदल पाओगे। कुछ लोग ऐसे होते हैं जिन्हें परमेश्वर का घर रुकने के लिए कहता है और उनकी मदद करता है और सहारा देता है, क्योंकि उनकी नकारात्मकता, कमजोरी और उनके द्वारा प्रकट किए गए भ्रष्ट स्वभाव सभी साधारण भ्रष्ट लोगों में आम होते हैं और सामान्यता के दायरे में आते हैं। परमेश्वर के वचनों पर संगति करके, दूसरों की मदद और सहारा लेकर वे धीरे-धीरे मजबूत बन सकते हैं, आध्यात्मिक कद प्राप्त कर सकते हैं, परमेश्वर में आस्था विकसित कर सकते हैं और अपना कर्तव्य निभाने के प्रति ईमानदार हो सकते हैं। हमें ऐसे ही व्यक्ति की सहायता कर उससे रुकने का आग्रह करना चाहिए। लेकिन जो मसीह-विरोधी किसी के लिए काम करने के इच्छुक नहीं हैं या अच्छी तरह से काम नहीं करते, उन्हें चले जाने के लिए प्रोत्साहित करो क्योंकि तुम्हारी सलाह देने से बहुत पहले ही वे छोड़ने का मन बना चुके हैं या किसी भी समय छोड़कर चले जाने के कगार पर हैं। ये विभिन्न अभिव्यक्तियाँ और विचार मसीह-विरोधियों को तब आते हैं जब उन्हें बर्खास्तगी का सामना करना पड़ता है और वे पीछे हटना चाहते हैं।

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