मद एक : वे लोगों के दिल जीतने का प्रयास करते हैं (खंड चार)
ख. अपनी आराधना करवाने के लिए लोगों को अपनी खूबियाँ दिखाना
हमने अभी-अभी जिस थोड़ी-बहुत मदद का उपयोग करने के बारे में बात की, उसके अलावा मसीह-विरोधी लोगों के दिल जीतने के लिए आम तौर पर या आदतन कौन-सी दूसरी तकनीकों का उपयोग करते हैं? मिसाल के तौर पर, मान लो कि सभी के मन में किसी अगुआ के बारे में एक बुरी छवि बनी हुई है। लोग सोचते हैं कि इस अगुआ में प्रतिभा का अभाव है, वह सिर्फ शब्द और सिद्धांत ही बोल सकता है और उसे सत्य की कोई वास्तविक समझ नहीं है। अब अगर उस अगुआ को पता चल जाता है कि लोगों के मन में उसके बारे में ऐसी छवि बनी हुई है, तो क्या वह इन दोषों और कमियों को छिपाने का भरसक प्रयास करेगा? (हाँ।) वह क्या करेगा? वह किस तरह की चीजें कहेगा? खुलकर बात करने का ढोंग करना इसका एक पहलू है। वह और क्या करेगा? (चीजों को समझाएगा।) चीजों को समझाना भी छिपाने के एक साधन के तौर पर काम करता है। इसके अलावा अगुआ अपनी कमजोरियों को छिपाने के लिए अपनी खूबियों और उन चीजों का उपयोग कर सकता है जो दूसरों की नजरों में महान हैं। क्या यह एक आम तकनीक है? (हाँ।) मिसाल के तौर पर, एक व्यक्ति कहता है, “मुझे परमेश्वर में विश्वास करते हुए अभी सिर्फ कुछ ही समय हुआ है तो फिर मुझे अगुआ के तौर पर क्यों चुना गया? वह इसलिए क्योंकि मैं लौकिक दुनिया में एक कंपनी चलाता हूँ और हमारे कर्मचारियों की संख्या 10 लोगों से बढ़कर 200 हो गई है, जिससे पता चलता है कि मेरे पास अगुआई करने की क्षमता है। हालाँकि परमेश्वर का घर ऐसे मामलों को अहमियत नहीं देता है, लेकिन यह क्षमता कुछ परिस्थितियों में काम आती है, है न?” यह सुनकर दूसरे लोग असहमति जताते हैं, इसलिए यह व्यक्ति अपना प्रदर्शन जारी रखते हुए कहता है, “मिसाल के तौर पर, मान लो कि तुम अपने कर्मचारियों से कुछ कहते हो, लेकिन वे तुम्हारी बात नहीं सुनते हैं तो तुम्हें क्या करना चाहिए? वे तुम्हारी बात तब सुनेंगे जब तुम अच्छे परिणाम हासिल करोगे। मैं तो पहले से ही अपना सबूत पेश कर चुका हूँ : मेरी कंपनी सार्वजनिक हो गई है!” शुरू में कुछ लोग यह कह सकते हैं कि यह एक गुण है, अविश्वासी लोग इसी तरह से चीजें करते हैं, लेकिन यह व्यक्ति जैसे कार्य करता है, उसके वाकई तरीके हैं और उसके परिणाम मिलते हैं, इसलिए कुछ लोग शुरुआत में उस पर शक करते हैं, लेकिन जैसे-जैसे वह कार्य करता जाता है, वे थोड़ा-थोड़ा करके उस पर भरोसा करने लगते हैं और अनजाने में उसकी आराधना करने लगते हैं। इसके अलावा यह व्यक्ति दूसरों को गुमराह करता है और अपनी खुद की खामियों को छिपाता है; लोगों को पता भी नहीं चलता है कि उसने उनके दिलों को खरीद लिया है, उन्हें गुमराह कर दिया है और वे उसके आगे अपना सिर झुका देते हैं। क्या यह तकनीक नहीं है? (हाँ, है।) यह कौन-सी तकनीक है? यह अपनी विशेषज्ञता और गुणों को दिखाने और अपनी क्षमताओं और कौशलों की बड़ाई करने का भरसक प्रयास करना है। इन क्रिया-कलापों का क्या उद्देश्य है? यह भी दूसरों के दिल जीतने के लिए है। दूसरों के दिल जीतने के लिए उन्हें कुछ अच्छी चीजें देने के अलावा उसे दूसरों से अपना सम्मान भी करवाना पड़ता है। अगर वह कोई आम व्यक्ति होता या बिना ज्यादा स्कूली शिक्षा वाला अनपढ़ व्यक्ति होता तो कौन उसका सम्मान करता? इसलिए यह व्यक्ति जान-बूझकर अपने डिप्लोमा का दिखावा करता है, लोगों को यह जानकारी देता है कि उसके पास उन्नत डिग्री और उन्नत शैक्षणिक प्रमाण-पत्र हैं और फलस्वरूप वह कुछ लोगों को गुमराह करता है। वह अपने गुणों, अपनी विशेषज्ञता और क्षमताओं को दिखाने का भरसक प्रयास करता है, ताकि दूसरे लोगों के मन में उसके बारे में ऊँची राय और उसकी अच्छी छवि बन जाए और ताकि अपने कार्य करते समय अक्सर लोग उसकी सलाह लेने के बारे में सोचें या उनके मन में ऐसा करने की तीव्र इच्छा हो। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए वह जो भी करता है, क्या वह भी लोगों के दिल जीतने की रणनीति नहीं है? ये मसीह-विरोधियों द्वारा लोगों के दिल जीतने की दो अभिव्यक्तियाँ हैं। पहली है, थोड़ी-बहुत मदद का उपयोग करना। दूसरी है, अपनी खुद की क्षमताओं और गुणों, यानी उन चीजों को दिखाना जो उन्हें दूसरों से बेहतर बनाती हैं और इस तरीके का उपयोग करके बाकी लोगों को हरा देना, ताकि वे भीड़ से अलग दिखें और ताकि सभी उनका सम्मान करें, उनकी सराहना करें, उनके आदेशों को मानने और उनकी अगुआई को स्वीकार करने के लिए अपनी मर्जी से उनके सामने आएँ और अपनी मर्जी से उनकी सभी व्यवस्थाओं को स्वीकार करें और उनका पालन करें। क्या यह एक तरह का मनोवैज्ञानिक आक्रमण नहीं है? (हाँ, है।) दूसरों के दिल जीतना एक तरह का मनोवैज्ञानिक आक्रमण ही है। “मनोवैज्ञानिक आक्रमण” का क्या मतलब है? यह एक ऐसा साधन है जिसकी मदद से शैतान लोगों के दिलों पर कब्जा करके उन्हें नियंत्रित करता है। परमेश्वर मनुष्य के दिल की गहराइयों की जाँच-पड़ताल करता है। वह लोगों के दिल जीतता है और उन्हें हासिल करता है। तो फिर शैतान और मसीह-विरोधियों की बात करते समय “लोगों के दिल हासिल करना” वाक्यांश का उपयोग क्यों नहीं किया जाता है? वह इसलिए क्योंकि शैतान और मसीह-विरोधी लोगों के दिलों पर कब्जा करने, उन्हें गुमराह करने, फुसलाने और नियंत्रित करने के लिए असामान्य और दुष्ट तकनीकों का उपयोग करते हैं, ताकि लोग उनके बारे में ऊँची राय बनाने और गहराई से उनका सम्मान और उनकी सराहना करने के लिए मजबूर हो जाएँ।
अभी-अभी हमने लोगों के दिल जीतने के लिए दो युक्तियों के बारे में संगति की। इनके अलावा और कौन-सी खास युक्तियाँ हैं? अगर तुम लोगों ने अभी तक उन युक्तियों और तरीकों का अनुभव नहीं किया है जिनका उपयोग मसीह-विरोधी लोगों को गुमराह और बेबस करने के लिए करते हैं तो तुम खुद को देखकर यह पता लगा सकते हो कि उनकी तुलना में तुम कैसे व्यक्ति हो। ध्यान से देखो कि क्या तुम में ये अभिव्यक्तियाँ हैं। भ्रष्ट स्वभावों के बीच रहने वाले हर व्यक्ति में ये चीजें मौजूद होती हैं। थोड़ी-बहुत मदद करना, लोगों को गुमराह करना, लोगों को फुसलाना—क्या तुम अक्सर ये चीजें नहीं करते हो? और अपने गुणों और अपनी खूबियों को दिखाने का भरसक प्रयास करना—क्या यह भी तुम अक्सर नहीं करते हो? (हाँ, करते हैं।) खास तौर पर जब तुम कोई ऐसी चीज करते हो जो सत्य के खिलाफ होती है, जब तुम्हारी कमजोरियाँ और गलतियाँ उजागर होती हैं और यहाँ तक कि जब तुम्हें काटा-छाँटा जाता है और तुम वाकई शर्मिंदा होते हो और तुम्हारी प्रतिष्ठा की धज्जियाँ उड़ जाती हैं तो क्या तुम लोग परिस्थिति को सुधारने और लोगों के दिलों में अपने पद और प्रतिष्ठा को बहाल करने के लिए इन तरीकों और तकनीकों का उपयोग करने जैसी चीजें नहीं करते हो? (हम भी इस तरह की चीजें करते हैं।) जब तुम लोग ये चीजें करते हो तो क्या तुम्हारे अंदर कोई जागरूकता होती है जिससे तुम्हें महसूस हो कि यह गलत रास्ता है और तुम ऐसा नहीं कर सकते? क्या तुम्हें आत्म-निंदा महसूस होती है? क्या तुम अक्सर इसके प्रति असंवेदनशील रहते हो या फिर ऐसा है कि तुम्हें आत्म-निंदा महसूस तो होती है, लेकिन फिर भी तुम न चाहते हुए भी ये चीजें करने के लिए मजबूर हो जाते हो क्योंकि तुम्हारे लिए तुम्हारी प्रतिष्ठा और छवि बेहद महत्वपूर्ण हैं? इनमें से कौन-सी बात होती है? (हम इन्हें न चाहते हुए भी करते हैं।) तुम इन्हें न चाहते हुए भी करते हो—अच्छा, तो क्या उसके बाद तुम्हें आत्म-निंदा महसूस होती है? या तुम्हें यह बिल्कुल महसूस नहीं होता है, बल्कि इन चीजों को कर लेने के बाद तुम इन्हें मामूली बात बना देते हो और पहले की तरह ही खाना-पीना और सोना जारी रखते हो? (हम आत्म-निंदा महसूस करते हैं।) अगर तुम्हें अपने लिए थोड़ी-सी निंदा महसूस होती है तो फिर यह इतना बुरा नहीं है। इससे साबित होता है कि तुम लोगों की जड़ता ज्यादा गहरी नहीं हुई है—तुम्हारे अंदर अभी भी जागरूकता है। जागरूकता वाले लोगों के बचाए जाने की उम्मीद है; जिन लोगों में इसका पूरा अभाव है, उनमें मानवता नहीं है, इसलिए वे खतरे में हैं।
ग. लोगों को गुमराह करने और अपने बारे में उनकी अच्छी राय बनवाने के लिए मुखौटों का उपयोग करना
मसीह-विरोधी लोगों के दिल जीतने के लिए आदतन किन दूसरी तकनीकों का उपयोग करते हैं? एक और परिस्थिति है, जो यह है कि मसीह-विरोधी चाहे कोई भी कार्य कर रहे हों, वे इसे परमेश्वर के सामने नहीं, बल्कि लोगों के सामने करते हैं। इसमें उनका क्या लक्ष्य होता है? (लोगों को फुसलाना।) यह लोगों के दिलों को फुसलाना है। ऊपर से वे दूसरों की तुलना में ज्यादा कष्ट सहने और कीमत चुकाने के लिए तैयार रहते हैं; वे दूसरों की तुलना में ज्यादा आध्यात्मिक, परमेश्वर के प्रति ज्यादा वफादार और अपने कर्तव्य के प्रति ज्यादा गंभीर प्रतीत होते हैं। लेकिन जब आसपास उन्हें देखने वाला कोई नहीं होता है तो वे इस तरह से कार्य नहीं करते हैं। इस तरह से कार्य करना उनका सच्चा इरादा नहीं होता है; बल्कि उनका कोई गुप्त उद्देश्य होता है। वे दूसरों के सामने इसलिए इस तरह से व्यवहार करते हैं ताकि वे लोग देखें कि वे कितने अच्छे तरीके से कार्य कर रहे हैं और वे अपने कर्तव्यों को कितनी निष्ठा से कर रहे हैं, जबकि सच यह है कि निष्ठा उनकी आंतरिक प्रेरणा बिल्कुल नहीं है। उनका लक्ष्य लोगों को यह दिखाना है कि वे निष्ठावान और जिम्मेदार व्यक्ति हैं। वे इस तरीके से कीमत चुकाकर दूसरों को पूरी तरह से आश्वस्त कर देते हैं। फलस्वरूप, दूसरे लोग उनकी अगुआई स्वीकार करने और चाहे वे कैसी भी गलतियाँ करें, उन्हें माफ करने के लिए तैयार रहते हैं। यह किस तरह का आचरण है? यह लोगों को गुमराह करने के लिए मुखौटों का उपयोग करना है। यहाँ “मुखौटों” का क्या मतलब है? इसका मतलब उन अच्छे आचरणों और ऐसे क्रिया-कलापों से है जो सत्य के अनुरूप प्रतीत होते हैं। लोगों को गुमराह करने और अपने बारे में उनकी अच्छी राय बनवाने के लिए सत्य के अनुरूप प्रतीत होने वाले मुखौटों का उपयोग करना—यह इस आचरण की विशेषताओं का सारांश है, है न? उनका लक्ष्य आखिर में अपने बारे में लोगों की अच्छी राय बनवाना है। एक बार जब मसीह-विरोधियों के बारे में लोगों की अच्छी राय बन जाती है तो वे उनके लिए कुछ सम्मान महसूस करने लगते हैं—इस तरीके का उपयोग करके मसीह-विरोधी उनके दिलों में अपने लिए एक निश्चित जगह हासिल कर चुके होते हैं। मिसाल के तौर पर, एक ऐसा व्यक्ति है जो अपने कर्तव्य को करने में कीमत चुकाने के लिए तैयार है, ज्यादातर अपने क्रिया-कलापों में अनुभव पर भरोसा करता है और बुनियादी तौर पर किसी भी मुख्य सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करता है, लेकिन जब तुम सत्य सिद्धांतों को तलाशने के बारे में उसके साथ संगति करते हो तो वह क्या कहता है? “मेरे साथ इस बारे में संगति करने की कोई जरूरत नहीं है। ये सारी बातें मेरे मन में हैं!” जब वह वाकई किसी समस्या का सामना करता है तो वह न सिर्फ खोज नहीं करता, बल्कि किसी और की सलाह सुनने से भी साफ मना कर देता है, उनकी राय सुनना तो दूर की बात है; वह बस वही करता है जो उसके विचार में अच्छा है। जब वह कोई कीमत चुकाता है, जब वह अपने क्रिया-कलापों से तेज और निर्णायक और खास अधिकार वाला व्यक्ति प्रतीत होता है तो दूसरे लोग अपने दिलों में उसे किस नजर से देखते हैं? क्या वे उसके बारे में अच्छी राय रखते हैं या नहीं? दूसरे लोगों के नजरिए से देखें तो उसने किसी भी जाहिर तरीके से सत्य का उल्लंघन नहीं किया है और वह जिन तरीके से चीजों को करता है, उनमें बेहद कुशल है। उसकी “निष्ठा” का स्तर और अपने कर्तव्यों को करने में उसका अनुभव दूसरों को आश्वस्त करने के लिए काफी है। लोग सोचते हैं, “उसे देखो : उसने कई वर्षों से परमेश्वर में विश्वास किया है और उसे इस कर्तव्य को करने का अनुभव है। वह अनुभवी है। हम उसे नहीं कर पाते।” जब लोग उसके बारे में ऐसा सकारात्मक नजरिया रखते हैं तो क्या वह उन लोगों के दिलों में बहुत महत्व रखता है या कम महत्व रखता है? (बहुत महत्व रखता है।) बहुत; वह उनके दिलों में महत्व रखता है। कुछ लोग सत्य की तलाश कभी नहीं करते हैं, कुछ हद तक इसलिए क्योंकि उन्हें आध्यात्मिक समझ नहीं होती है और बाकी इसलिए क्योंकि उनकी सत्य में कोई दिलचस्पी नहीं होती है और वे सत्य से बिल्कुल प्रेम नहीं करते हैं और उन्हें सत्य सिद्धांतों की जरा भी समझ नहीं होती है। वे अपने कर्तव्य करने के लिए पूरी तरह से अपने पल भर के जोश, अपने खुद के अच्छे इरादों और अपने वर्षों के अनुभव पर भरोसा करते हैं। लेकिन वे नहीं चाहते हैं कि दूसरे लोग इन चीजों के बारे में जानें, इसलिए वे बहुत मेहनत करने और कीमत चुकाने का भरसक प्रयास करते हैं। अगर किसी को पता चल जाता है कि उन्हें आध्यात्मिक समझ नहीं है या वे सत्य नहीं समझते हैं और सिद्धांतों के बिना चीजें करते हैं तो वे लोगों को दिखाने के लिए जल्द ही कुछ उपलब्धियाँ हासिल कर लेते हैं। वे कहते हैं, “देखो और पता कर लो कि मुझे आध्यात्मिक समझ है या नहीं। ध्यान से देखो; पता कर लो कि मैं सच में सिद्धांतों के साथ कार्य करता हूँ या नहीं, मैं सच में सत्य समझता हूँ या नहीं।” जब वे इस तरह से कार्य करते हैं तो एक बड़ी संख्या में लोग उनके द्वारा गुमराह हो जाते हैं। वे कहते हैं, “वे लोग अपने कर्तव्य करने में अनुभवी हैं और वे सिद्धांतों को समझते हैं; हम लोगों को ही इनकी समझ नहीं है।” “हम लोगों को ही इनकी समझ नहीं है”—इस कथन से क्या प्रकट होता है? इससे यह प्रकट होता है कि वे अपने दिल की गहराई में उन लोगों के बाहरी अच्छे व्यवहार को स्वीकार करते हैं। यह स्वीकृति किसके समान है? यह स्वीकृति यह सोचने के समान है कि वे ऐसे लोग हैं जो सत्य का अभ्यास करते हैं, जो परमेश्वर से प्रेम करते हैं और जो परमेश्वर के द्वारा अपनी पूर्णता को प्राप्त करते हैं। क्या दूसरे लोगों द्वारा उनका इस तरह से मूल्यांकन करना उनके द्वारा लोगों के दिलों में एक खास जगह पर कब्जा करने के समान नहीं है? अधिक विशिष्ट रूप से यह कहा जा सकता है कि उनके पास एक तरह की प्रतिष्ठा है। तो इस प्रतिष्ठा से उन्हें क्या मिलता है? इससे दूसरे लोग उनका आदर करते हैं, उन्हें मान्यता देते हैं और यहाँ तक कि उन पर निर्भर हो जाते हैं। दूसरे लोग उन पर कैसे निर्भर हो जाते हैं? जैसे ही उन्हें कोई समस्या होती है, वे तुरंत उन्हें ढूँढ़ने लगते हैं। मान लो कि कोई कहता है, “यह एक बड़ी समस्या है और हम इसे नहीं समझ पा रहे हैं; हमें ऊपरवाले से पूछना चाहिए, है न?” तब कुछ लोग कहेंगे, “इसकी कोई जरूरत नहीं है। हम बस अपने अगुआ से पूछ सकते हैं। हमारे अगुआ को सब समझ आता है।” हर किसी के दिमाग में यह बात बैठी हुई है कि ज्यादातर समय अगुआ और कार्यकर्ता अपने काम में व्यस्त रहते हैं और उन्होंने बुराई नहीं की है और फलस्वरूप वह सोचता है कि वे निश्चित रूप से ऐसे लोग हैं जो सत्य समझते हैं और सिद्धांतों के साथ कार्य करते हैं। तुम इस मनोभाव का क्या मतलब निकालते हो? अगर किसी ने बाहरी तौर पर बुराई नहीं की है तो क्या इसका मतलब यह है कि वह सत्य समझता है? ऐसा जरूरी नहीं है। हर व्यक्ति की सत्य समझने की एक सीमा होती है। यह मानकर कि अगुआ सब कुछ समझते हैं, अगर तुम परमेश्वर से प्रार्थना नहीं करते हो, उससे नहीं खोजते हो या उसके वचनों में तलाश नहीं करते हो, तुम्हारी समस्या चाहे कुछ भी हो, तुम उसके बारे में पूछने के लिए सीधे अगुआ के पास चले जाते हो तो क्या इससे चीजों में देरी नहीं होगी? अगर तुम हमेशा वही कर रहे हो जो अगुआ कहते हैं, हमेशा उनका आदर कर रहे हो तो कुछ चीजें गलत हो सकती हैं और तुम्हारे कारण कलीसिया के कार्य को नुकसान पहुँच सकता है। यही कारण है कि लोगों की आराधना करना और उनका आदर करना अपने मार्ग से भटकने और गलतियाँ करने का, तुम्हारे अपने जीवन को और परमेश्वर के घर और कलीसिया के कार्य को नुकसान पहुँचाने का सबसे आसान तरीका है।
मसीह-विरोधियों द्वारा लोगों के दिल जीतने की तीन मुख्य अभिव्यक्तियाँ हैं : पहली अभिव्यक्ति है थोड़ी-बहुत मदद करके लोगों को फुसलाना; दूसरी है अपनी खूबियाँ, गुण और प्रतिभाएँ दिखाना; तीसरी है लोगों को गुमराह करने और अपने बारे में उनकी अच्छी राय बनवाने के लिए मुखौटों का उपयोग करना। ये अभिव्यक्तियाँ सभी में पाई जा सकती हैं। कुछ लोग अक्सर कुछ ऐसी गपशप का खुलासा करते हैं जिनके बारे में दूसरे लोगों को मालूम नहीं होता है, वे सभी तरह के विषयों पर बात करते हैं या कुछ अनोखी, विशेषज्ञ राय साझा करते हैं। इसे क्या कहते हैं? एक दो हिस्सों वाली कहावत है : “एक बुजुर्ग औरत तुम्हें दिखाने के लिए लिपस्टिक लगाती है।” ये लोग हमेशा अपने कौशल दर्शाना चाहते हैं और लोगों का सम्मान जीतना चाहते हैं। लेकिन कभी-कभी वे इस कार्य को अच्छी तरह नहीं करते हैं और लोग उनकी खामियाँ देख लेते हैं, इसलिए वे परिस्थिति को सुधारने के लिए और बहसबाजी करके इससे बाहर निकलने के लिए सब कुछ करते हैं। चाहे उन्होंने ऐसी कोई भी चीज की हो जो उनकी अंतरात्मा और सत्य के खिलाफ हो या जो उनके कर्तव्य करने से संबंधित नहीं हो, उन्हें अपनी गलती मान लेना या आत्म-चिंतन और पश्चात्ताप करना कभी नहीं आता है, न ही उन्हें कभी इस बात का एहसास होता है कि यह समस्या कितनी गंभीर है। इसके विपरीत वे अपनी तरफ से बहस करने और चीजों को आसान बनाने के तरीके ढूँढ़ने के लिए बहुत सोचते हैं और अपने दिमाग खपाते हैं। वे अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए बहुत बेसब्र हो जाते हैं और यह बेसब्री इस हद तक बढ़ जाती है कि उनके लिए खाना या सोना तक असंभव हो जाता है, उन्हें यह डर लगा रहता है कि दूसरों की नजरों में उनकी जो अच्छी स्थिति है उसमें कहीं अचानक और भयंकर गिरावट न आ जाए। मिसाल के तौर पर, कुछ लोग सोचते हैं कि वे अच्छा लिखते हैं, कि वे कुशल लेखक हैं; कुछ सोचते हैं कि वे अच्छे अगुआ हैं, कि वे कलीसिया को सहारा देने वाले स्तंभ हैं; दूसरे लोग सोचते हैं कि वे अच्छे लोग हैं। जैसे ही ये लोग किसी न किसी कारणवश अपनी अच्छी छवि खो देते हैं तो वे बहुत सोचते हैं और इसकी खातिर एक कीमत चुकाते हैं और परिस्थिति को सुधारने का प्रयास करने में अपने दिमाग खपाते हैं। फिर भी उन्हें अपने द्वारा चुने गए गलत मार्गों या सत्य के खिलाफ की गई अलग-अलग चीजों के लिए कभी शर्मिंदगी या आत्म-निंदा महसूस नहीं होती है और न ही वे कभी परमेश्वर के प्रति ऋणी महसूस करते हैं। उनके मन में इस तरह की भावना कभी नहीं आती है। वे लोगों को गुमराह करने और उनके दिल जीतने के लिए सभी तरह की युक्तियों का उपयोग करते हैं। क्या यह एक सृजित प्राणी का कर्तव्य करना है? बिल्कुल नहीं। क्या यह वह कार्य है जिसे कलीसियाई अगुआओं को करना चाहिए? बिल्कुल नहीं। वे शैतानी स्वभाव के अनुसार जी रहे हैं, बुरा कर रहे हैं, कलीसिया के कार्य में बाधा डाल रहे हैं और परमेश्वर के घर के कार्य को अस्त-व्यस्त कर रहे हैं। उनके क्रिया-कलापों और व्यवहारों, उनके द्वारा अपनाए गए मार्गों और लोगों को गुमराह करने और उन्हें नियंत्रित करने वाले उनके अलग-अलग व्यवहारों के आधार पर हम यह फैसला कर सकते हैं कि वे एक अगुआ का कर्तव्य नहीं कर रहे हैं, बल्कि मनुष्य को बचाने के परमेश्वर के कार्य को बरबाद कर रहे हैं और उसमें गड़बड़ कर रहे हैं, लोगों को परमेश्वर के सामने आने से रोक रहे हैं और लोगों को अपने हाथों में, अपने नियंत्रण में रखने का प्रयास कर रहे हैं। क्या ये मसीह-विरोधी के क्रिया-कलाप और व्यवहार नहीं हैं? इस बारे में कोई शक नहीं है। यह इस बात का पर्याप्त प्रमाण है कि मसीह-विरोधी पूरी तरह से शैतान की भूमिका निभाते हैं। उनके द्वारा की जाने वाली इन चीजों की प्रकृति को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि वे सिर्फ अपने उस कर्तव्य को अच्छी तरह से करने से ही नहीं चूक रहे हैं जो उन्हें करना चाहिए—बल्कि इसके विपरीत वे शैतान की भूमिका निभा रहे हैं। वे जो कुछ भी करते हैं, वह परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए उससे होड़ करना है। जो भेड़ें परमेश्वर की हैं, उन्हें परमेश्वर का अनुसरण करना चाहिए और वे उसके द्वारा प्राप्त की जानी चाहिए, फिर भी ये लोग दूसरों को परमेश्वर का अनुसरण करने से रोकते हैं; वे परमेश्वर की भेड़ों को अपने हाथों में ले लेते हैं और उन्हें नियंत्रित करते हैं और लोगों को उनकी खुद की आराधना करने और अपना अनुसरण करने के लिए मजबूर करते हैं। यही उनके क्रिया-कलापों की प्रकृति है। क्या ऐसे लोगों को “अगुआ” कहकर बुलाया जा सकता है? (नहीं।) तो फिर हमें उन्हें क्या कहकर बुलाना चाहिए? (बुरे सेवक।) “बुरे सेवक”—यह एक उपयुक्त नाम है। “मसीह-विरोधी,” “बुरे सेवक”—ये दोनों उपाधियाँ ही सही रहेंगी, है न? ये लोग अगुआ का कर्तव्य करने का झंडा तो फहराते हैं, लेकिन वे वह कार्य नहीं करते हैं जो एक अगुआ को करना चाहिए। वे जो करते हैं वह अगुआ का कर्तव्य करना बिल्कुल नहीं है, यह एक मसीह-विरोधी की भूमिका निभाना है, परमेश्वर के घर के कार्य में बाधा डालने और उसे नष्ट करने के लिए शैतान की जगह खड़े होना है और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को सत्य मार्ग से दूर रहने और परमेश्वर से दूर रहने के लिए गुमराह करना है। उनके सभी क्रिया-कलाप और व्यवहार शैतान के स्वभाव और उसकी प्रकृति को प्रकट करते हैं और लोगों को परमेश्वर से दूर रहने, सत्य और परमेश्वर को अस्वीकार करने और उनकी खुद की आराधना और अनुसरण करने के लिए मजबूर करने का परिणाम देते हैं। एक दिन जब वे लोगों को पूरी तरह से गुमराह कर देंगे और उन्हें अपने नियंत्रण में ले लेंगे तो लोग उनकी आराधना करना, उनका अनुसरण करना और उनकी आज्ञा मानना शुरू कर देंगे। तब वे लोगों के दिलों को फँसाने का अपना लक्ष्य हासिल कर लेंगे। वे कलीसिया के अगुआ हैं, लेकिन वे परमेश्वर द्वारा उन्हें सौंपा गया कार्य नहीं करते हैं; वे अगुआओं और कार्यकर्ताओं का कार्य नहीं करते हैं। इसके बजाय वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों पर कार्य करते हैं, उन्हें गुमराह करते हैं, उन्हें फँसाते हैं और उन्हें नियंत्रित करते हैं और उन भेड़ों को अपने नियंत्रण में ले लेते हैं जो स्पष्ट रूप से परमेश्वर की हैं। क्या वे चोर और लुटेरे नहीं हैं? परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए उसके साथ होड़ करते हुए क्या वे शैतान के सेवकों के रूप में कार्य नहीं कर रहे हैं? क्या ऐसे मसीह-विरोधी परमेश्वर के दुश्मन नहीं हैं? क्या वे उसके चुने हुए लोगों के दुश्मन नहीं हैं? (वे हैं।) वे सौ प्रतिशत हैं। वे परमेश्वर और उसके चुने हुए लोगों के दुश्मन हैं; इसमें रत्ती भर भी शक की गुंजाइश नहीं है।
इससे पहले जब मैं चीन की मुख्य भूमि में सभी कलीसियाओं में बोलता था और कार्य करता था तो मेरे साथ एक ऐसा व्यक्ति था जिस पर ऑडियो रिकॉर्डिंग की और धर्मोपदेशों को लिखने की जिम्मेदारी थी। यह व्यक्ति थोड़ा-बहुत गुणी था, तेज दिमाग वाला था और तेजी से प्रतिक्रियाएँ करता था। लेकिन उसमें एक खास बात थी : वह ऐसी मीठी बातें कहने में खूब माहिर था जिन्हें लोग सुनना चाहते थे। अगर तुम किसी चीज के बारे में कहते कि उसका स्वाद अच्छा है तो वह कहता, “तुम सही कह रहे हो। मैंने उसे चखकर देखा है। वह बहुत ही अच्छा है।” अगर तुम कहते कि बाहर बहुत गर्मी है तो वह कहता, “हाँ, बिल्कुल। मैं पसीने से लथपथ हो गया हूँ।” अगर तुम कहते कि बाहर बहुत ठंड है तो वह कहता, “ठंड तो है, सही कहा। मैंने ऊन की अस्तर वाले जूते पहने हुए हैं।” उसे कोई सच्ची या ईमानदार बात कहने में मुश्किल होती थी। वह ऐसा व्यक्ति प्रतीत होता था जो वाकई अनुसरण करता था, लेकिन जब कोई ऐसी बात सामने आती थी जिसके लिए कीमत चुकाने की जरूरत पड़ती थी तो वह छिप जाता था। वह चापलूस और धोखेबाज था। वह इसी किस्म का व्यक्ति था। कुछ लोग पूछ सकते हैं, “अच्छा, तो फिर तुमने ऐसे व्यक्ति को क्यों चुना था?” मैंने उसे नहीं चुना था—यह फैसला उस समय की परिस्थितियों के कारण लेना पड़ा था। वह समय ऐसा था जब उसके जैसा व्यक्ति मिलना भी मुश्किल था और कम से कम उसकी प्रतिक्रियाएँ तो तेज थीं—मेरे बोलना शुरू करते ही वह “रिकॉर्ड” बटन दबा देता था। मैं जहाँ भी जाता, वह मेरे पीछे-पीछे आता था और धर्मोपदेशों को रिकॉर्ड करता और लिखता था; उसने कुछ वास्तविक कार्य किए। लेकिन वह मेरी मौजूदगी में जिस तरह से आचरण करता था और वह कलीसिया में जो चीजें करता था, ये दोनों बातें पूरी तरह से दो अलग लोगों के क्रिया-कलापों जैसी थीं। मेरी मौजूदगी में वह आज्ञाकारी, अच्छा आचरण करने वाला, मेहनती, विवेकशील और जिम्मेदार व्यक्ति के रूप में कार्य करता था—लेकिन क्या कलीसिया में अपना कर्तव्य करते समय भी वह ऐसा ही था? यह देखते हुए कि ऊपरवाले के संपर्क में रहते हुए वह इस तरह का व्यक्ति था, क्या परमेश्वर के चुने हुए लोगों के बीच रहते हुए भी वह ऐसा ही था? क्या तुम इस पर कोई निश्चित जवाब देने की हिम्मत करोगे? नहीं, तुम नहीं करोगे। तो फिर तुम यह कैसे जान पाते कि उसकी वास्तविक परिस्थिति क्या थी? इसे करने के लिए तुम्हें उसके संपर्क में रहना पड़ता। कुछ देर उससे बातचीत करने के बाद उसके प्रकृति सार में निहित सब कुछ तुम्हारे सामने उभरकर आ जाता। उसे रुतबे से खास तौर पर प्रेम था और वह खास तौर पर घमंडी था; जब भी वह किसी के साथ होता तो उसे अपनी पूँजी के बारे में बात करना और उन चीजों को दिखाना बेहद अच्छा लगता था जिन्हें वह कर सकता था और जिन्हें वह कर चुका था और उसे यह दिखाना बहुत पसंद था कि उसने कितना कष्ट सहा है और वह कितना महान है। वह बार-बार ये चीजें करता था और इसी तरह से बात करता था, ऐसे समय में वह मेरी मौजूदगी में जिस तरह का व्यक्ति बना रहता था उसकी तुलना में पूरी तरह से एक अलग व्यक्ति बन जाता था। इसके अलावा जो कोई भी उसके आसपास होता, वह खुद को बेबस और डराया-धमकाया गया महसूस करता था और इस बारे में कुछ भी कहने की हिम्मत नहीं करता था। यहाँ सबसे बड़ी समस्या क्या थी? वह जो थोड़ा-सा कार्य कर रहा था, जो थोड़ा-सा कर्तव्य कर रहा था, उसे अपनी पूँजी मान बैठा था और जहाँ भी जाता था, उसे ही दिखाता फिरता था। उसने इसे किस हद तक दिखाया? यहाँ तक कि सभी उसका सम्मान करने लगे, उसकी आराधना करने लगे और उससे ईर्ष्या करने लगे। आखिर में उन्होंने कहा, “इस व्यक्ति ने परमेश्वर की खातिर बहुत कष्ट सहा है। उसमें जो आस्था है और परमेश्वर के लिए उसका जो प्रेम है, जरा उसे देखो! हम उसके सिर के एक बाल से तुलना किए जाने के भी काबिल नहीं हैं। हम उससे कितने घटिया हैं!” लोगों की जुबान पर हमेशा उसका जिक्र रहता था और जो लोग मुझसे नहीं मिल पाते थे, वे सोचते थे कि उससे मिलना मुझसे मिलने के समान है। लोगों के ज्ञान, विचारों और मन पर उसका जो प्रभाव था वह आखिर में इस स्तर तक पहुँच चुका था। इस जगह तक पहुँचने के लिए उसने जरूर बहुत-सी चीजें कही और की होंगी, है न? निश्चित रूप से उसने जो कर्तव्य किए थे उनका जिक्र करने के लिए उसने सिर्फ कुछ शब्दों का उपयोग नहीं किया था, निश्चित रूप से उसने इन चीजों के बारे में विस्तार से बात की थी; साथ ही उसके अपने उद्देश्य और लक्ष्य थे, उसने कुछ ऐसी चीजें कही थीं जो लोगों को लुभा सकती थीं और गुमराह कर सकती थीं, जिससे लोगों ने उसकी आराधना करना शुरू कर दिया और आखिर में उसने अपना लक्ष्य हासिल कर लिया। इस किस्म के व्यक्ति के बारे में तुम क्या सोचते हो? उसे मेरे साथ रहकर अपना कर्तव्य करने का जो अवसर मिला वह उसके लिए एक अच्छी चीज थी, यह चाहे यह सीखने के संबंध में हो कि कैसे आचरण करना है या इस संबंध में हो कि सत्य कैसे हासिल करना है। यह उसके लिए जल्दी पूर्ण बनाए जाने का एक अवसर था। दुःख की बात है कि उसने इस अवसर को सँजोया नहीं। उसने यह नहीं देखा कि यह अवसर कितना कीमती और महत्वपूर्ण है और न ही यह देखा कि यह सत्य हासिल करने और परमेश्वर का ज्ञान प्राप्त करने का मार्ग, आधार और स्रोत है। इसके बजाय उसने इस अवसर का उपयोग भीड़ से अलग दिखने में और लोगों के दिल जीतने के अपने लक्ष्य को हासिल करने में किया। यही मुसीबत का कारण बना; वह गलत मार्ग पर चल रहा था। मुझे बताओ, जब वह इतनी बेहूदगी से इस बात का प्रचार कर रहा था कि उसने कितना कष्ट सहा है, कैसे परमेश्वर ने उसका मार्गदर्शन किया है, कैसे परमेश्वर ने उसके साथ व्यवहार किया है और कैसे परमेश्वर ने उस पर भरोसा किया है, तो उस समय क्या वह यह पहचान पाया था कि इसमें कोई व्यक्तिगत इरादा है? (हाँ।) उसे यह पहचानने में सक्षम होना चाहिए था। यह कोई ऐसी चीज नहीं थी जिसे पहचानना असंभव हो। वह इसे पहचान सकता था—तो फिर वह अपने बुरे कर्मों पर रोक क्यों नहीं लगा पाया? क्योंकि वह सत्य से प्रेम नहीं करता था; उसे सिर्फ प्रतिष्ठा और रुतबा पसंद था। जब सत्य से वाकई प्रेम करने वाला कोई व्यक्ति भ्रष्टता का खुलासा करता है, जब वह इस बात की गवाही दे रहा होता है कि उसने कैसे कष्ट सहे हैं तो उसके मन में अपने प्रति तिरस्कार और खुद को दोषी महसूस करता है। उसे लगता है कि उसने जो किया वह घिनौना था, परमेश्वर के प्रति प्रतिरोधी था और उसे दोबारा ऐसा नहीं करना चाहिए। भविष्य में जब उसके मन में फिर से वैसा करने की इच्छा होती है तो उसके लिए खुद को रोकना और ऐसी चीजें करने का सिलसिला बंद करना संभव होता है। यह बिल्कुल सामान्य बात है। लेकिन ऐसे मौकों पर चाहे उनकी अंतरात्मा उन्हें फटकारे तो भी मसीह-विरोधी अपनी निरंकुश महत्वाकांक्षा और इच्छा को नियंत्रित नहीं कर पाते हैं और चाहे उनकी काट-छाँट कर दी जाए तो भी वे सत्य स्वीकार नहीं करते हैं। उनकी प्रकृति क्यों असाध्य रूप से फैल-फूल जाती है? (क्योंकि वे सत्य से प्रेम नहीं करते हैं।) अपनी प्रकृति में वे सत्य से प्रेम नहीं करते हैं। फिर वे किससे प्रेम करते हैं? (वे रुतबे से प्रेम करते हैं।) रुतबे से उन्हें क्या हासिल होगा? इससे लोग उनकी आराधना करेंगे, उनका आदर करेंगे और उनसे ईर्ष्या करेंगे। आखिर में उनका लक्ष्य परमेश्वर के समान रुतबे और व्यवहार का आनंद लेना है, साथ ही उस सम्मान, खुशी और प्रसन्नता का भी आनंद लेना है जो इस रुतबे की बदौलत उन्हें मिलती है। मैंने अभी-अभी जो कुछ भी कहा है, वह सब सुनने के बाद क्या तुम्हें घृणा महसूस नहीं हो रही है? (हाँ।) उस व्यक्ति ने कुछ और भी किया था जो इससे भी ज्यादा घिनौना था। बाद में वह बीमार पड़ गया और अपने शहर लौट गया और इससे उसे यह चीज और ज्यादा महसूस हुई कि वह रुतबे के फायदों का आनंद लेने का हकदार है। तुम्हें क्या लगता है कि इस विचार के नियंत्रण में रहते हुए वह कैसे कार्य करेगा? क्या वह यह माँग नहीं करेगा कि लोग उसके साथ और भी बेहतर व्यवहार करें? (हाँ।) उसने यह माँग क्यों की? क्या उसे यह माँग बहुत ज्यादा या अनुचित नहीं लगी? उसे लगा कि वह इसका हकदार है। उसने सोचा, “मैंने परमेश्वर की खातिर और अपने भाई-बहनों की खातिर बहुत कष्ट सहा है। यह मेरा हक है; मैं बीमार पड़ गया क्योंकि मैंने बहुत कुछ सहा है, इसलिए मेरे भाई-बहनों को मेरी सेवा करनी ही चाहिए।” जब वह बीमार पड़ा था तो उसने एक उँगली तक नहीं उठाई; वह बस पूरे दिन बिस्तर पर लेटा रहा और दूसरों से अपनी देखभाल करवाता रहा और उनके हाथों से खाना खाता रहा। वहाँ बहुत देर तक लेटे रहने के बाद उसे बोरियत होने लगी, इसलिए उसने अपनी बोरियत दूर करने के लिए लोगों से खाने-पीने की चीजें मँगवाईं और उन्हें अपने साथ बाहर घूमने जाने के लिए राजी किया। यह बहुत ही घिनौना है, है न? अगर वह सच में इतना ज्यादा बीमार होता तो यह इतनी बड़ी बात नहीं होती; अगर वह इतना ज्यादा बीमार नहीं था तो निश्चित रूप से उसके व्यवहार में विवेक का बहुत अभाव था, है न?
कुछ लोग परमेश्वर में अपने विश्वास को लेकर बहुत उत्साही प्रतीत होते हैं। उन्हें कलीसिया के मामलों में शामिल होना और उनमें दिलचस्पी लेना अच्छा लगता है और वे इसमें हमेशा जोर-शोर से सबसे आगे रहते हैं। और फिर भी अगुआ बनने के बाद अप्रत्याशित रूप से वे सभी को निराश कर देते हैं। वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों की व्यावहारिक समस्याओं को सुलझाने पर ध्यान केंद्रित नहीं करते हैं, इसके बजाय वे अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे की खातिर कार्य करने के लिए भरसक प्रयास करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं। वे दूसरों से अपना सम्मान करवाने के लिए दिखावा करना पसंद करते हैं और वे हमेशा इस बारे में बात करते रहते हैं कि वे परमेश्वर के लिए खुद को कैसे खपाते हैं और कष्ट सहते हैं, लेकिन फिर भी वे सत्य में और अपने जीवन प्रवेश के अनुसरण में प्रयास नहीं करते हैं। यह वह चीज नहीं है जिसकी उनसे उम्मीद की जाती है। हालाँकि वे खुद को अपने कार्य में व्यस्त रखते हैं, हर अवसर पर दिखावा करते हैं, कुछ शब्दों और सिद्धांतों का उपदेश देते हैं, कुछ लोगों से सम्मान और आराधना हासिल करते हैं, लोगों के दिलों को गुमराह करते हैं और अपने रुतबे को मजबूत करते हैं, लेकिन आखिर में इसका क्या परिणाम होता है? चाहे ये लोग दूसरों को रिश्वत देने के लिए थोड़ी-बहुत मदद करते हों या अपने गुण और अपनी योग्यताएँ दिखाते हों या लोगों को गुमराह करने के लिए अलग-अलग तरीकों का उपयोग करते हों और इससे उनकी अपने प्रति अच्छी राय बनवाते हों, वे लोगों के दिल जीतने और उनमें जगह बनाने के लिए चाहे किसी भी तरीके का उपयोग करते हों, उन्होंने क्या खो दिया है? उन्होंने एक अगुआ के कर्तव्य करते हुए सत्य हासिल करने का अवसर खो दिया है। साथ ही अपनी अलग-अलग अभिव्यक्तियों के कारण उन्होंने बुरे कर्म भी जमा कर लिए हैं जो उनके आखिरी परिणाम का कारण बनेंगे। चाहे वे लोगों को रिश्वत देने और फँसाने के लिए थोड़ी-बहुत मदद का उपयोग कर रहे हों या अपनी खूबियाँ दिखा रहे हों या लोगों को गुमराह करने के लिए मुखौटों का उपयोग कर रहे हों और बाहरी तौर पर चाहे ऐसा प्रतीत क्यों न हो कि ऐसा करके वे बहुत सारे फायदे और बहुत सारी संतुष्टि हासिल कर रहे हैं, पर अब इसे देखते हुए यह बताओ कि क्या यह मार्ग सही है? क्या यह सत्य की खोज करने का मार्ग है? क्या यह ऐसा मार्ग है जो किसी को उद्धार दिला सकता है? स्पष्ट रूप से यह नहीं है। ये तरीके और युक्तियाँ चाहे कितनी भी चतुराईपूर्ण क्यों न हों, वे परमेश्वर को धोखा नहीं दे सकती हैं और आखिर में परमेश्वर इनकी निंदा और इनसे घृणा करता है क्योंकि ऐसे व्यवहारों के पीछे मनुष्य की निरंकुश महत्वाकांक्षा और परमेश्वर के प्रति विरोध का रवैया और सार छिपा होता है। परमेश्वर अपने दिल में इन लोगों को कभी ऐसे लोगों के रूप में नहीं पहचानेगा जो अपने कर्तव्य कर रहे हैं, और इसके बजाय वह उन्हें कुकर्मियों के रूप में निरूपित करेगा। कुकर्मियों से निपटते समय परमेश्वर क्या फैसला सुनाता है? “हे कुकर्म करनेवालो, मेरे पास से चले जाओ।” जब परमेश्वर कहता है, “मेरे पास से चले जाओ,” तो वह ऐसे लोगों को कहाँ भेजना चाहता है? वह उन्हें शैतान को सौंप रहा है, उन्हें ऐसी जगह भेज रहा है जहाँ शैतानों की भीड़ रहती है। उनके लिए आखिरी परिणाम क्या है? उन्हें दुष्ट आत्माएँ यातना देकर मौत के घाट उतार देती हैं, जिसका मतलब है कि शैतान उन्हें निगल जाता है। परमेश्वर इन लोगों को नहीं चाहता है, जिसका मतलब है कि वह उन्हें नहीं बचाएगा, वे परमेश्वर की भेड़ें नहीं हैं, उसके अनुयायी होना तो दूर की बात है, इसलिए वे उन लोगों में शामिल नहीं हैं जिन्हें वह बचाएगा। परमेश्वर इस तरह से इन लोगों को परिभाषित करता है। तो फिर दूसरों के दिल जीतने का प्रयास करने की प्रकृति क्या है? यह एक मसीह-विरोधी के मार्ग पर चलना है; यह एक मसीह-विरोधी का व्यवहार और सार है। परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए उससे होड़ करने का सार और भी गंभीर बात है; ऐसा करने वाले लोग परमेश्वर के दुश्मन हैं। इस तरह से मसीह-विरोधियों को निरूपित और श्रेणीबद्ध किया जाता है और यह पूरी तरह से सटीक है।
22 जनवरी 2019
The Bible verses found in this audio are from Hindi OV and the copyright to the Bible verses belongs to the Bible Society of India. With due legal permission, they are used in this production.
परमेश्वर का आशीष आपके पास आएगा! हमसे संपर्क करने के लिए बटन पर क्लिक करके, आपको प्रभु की वापसी का शुभ समाचार मिलेगा, और 2025 में उनका स्वागत करने का अवसर मिलेगा।