मद एक : वे लोगों के दिल जीतने का प्रयास करते हैं (खंड तीन)
अगुआओं का कर्तव्य करते समय मसीह-विरोधी लोग किस तरह की चीजें करते हैं? हमने अभी-अभी इस बारे में बात की कि वे किस तरह से लोगों के दिल जीतने का प्रयास करते हैं और विरोधियों पर आक्रमण करते हैं और उन्हें अलग कर देते हैं, लेकिन सभी मसीह-विरोधियों में एक और आम अभिव्यक्ति होती है—उन लोगों के प्रति उनका कैसा रवैया होता है जो सत्य का अनुसरण करते हैं? (नफरत का।) और यह उन्हें क्या करने के लिए मजबूर करता है? क्या वे उन लोगों से सिर्फ नफरत करते हैं, क्या बस इतना ही? नहीं, वे उन्हें अलग कर देने और दबाने के तरीके ढूँढ़ते हैं। वे विरोधियों पर आक्रमण करते हैं और उन्हें अलग कर देते हैं। ये विरोधी ऐसे लोग हो सकते हैं जो थोड़े भ्रमित हैं, जो दूसरों को खुश करने या सांसारिक आचरण के फलसफों का उपयोग करने का तरीका नहीं जानते हैं। वे ऐसे लोग भी हो सकते हैं जो दूसरों से ज्यादा उत्साही हैं और जो सत्य का थोड़ा-बहुत अनुसरण करते हैं। तो, मसीह विरोधियों की तीसरी तकनीक क्या है? सत्य का अनुसरण करने वालों को वे अलग कर देते हैं और उन पर आक्रमण करते हैं। उनकी एक और तकनीक भी है : वे लोगों के दिलों में अपने लिए जगह बनाने का प्रयास करते हैं। इसे क्या कहते हैं? (लोगों के दिलों पर कब्जा करना।) वे यही हासिल करने का प्रयास कर रहे हैं। इसे करने के लिए वे किस साधन का उपयोग करते हैं? (वे अपनी बड़ाई करते हैं और अपनी गवाही देते हैं।) और अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने के पीछे मसीह-विरोधियों का क्या लक्ष्य है? उनका लक्ष्य लोगों के दिलों पर कब्जा करना और उन्हें नियंत्रित करना है। जब लोग अपनी बड़ाई करते हैं और अपनी गवाही देते हैं तो आम तौर पर वे किस तरह की चीजों के बारे में बात करते हैं? एक तो है अपनी योग्यताओं के बारे में बात करना। मिसाल के तौर पर, कुछ लोग इस बारे में बात करते हैं कि कैसे उन्होंने ऊँचे स्तर के कुछ कलीसियाई अगुआओं की मेजबानी की है। कुछ लोग तो यहाँ तक कहते हैं, “मैंने खुद परमेश्वर की मेजबानी की और उसने मेरे साथ काफी अच्छा व्यवहार किया—मुझे निश्चित रूप से पूर्ण बनाया जाएगा।” इससे वे क्या कहना चाहते हैं? (वे लोगों के दिलों में अपने बारे में ऊँची राय बनाने का प्रयास कर रहे हैं।) ये चीजें कहने के पीछे उनका एक लक्ष्य है। दूसरे लोग कहते हैं, “मैं ऊपरवाले के संपर्क में आ चुका हूँ, मेरे बारे में वह बहुत ऊँची राय रखता है और उसने मुझे मेरे लक्ष्य के लिए कड़ी मेहनत करने के लिए प्रेरित किया।” दरअसल, किसी को भी यह अंदाजा बिल्कुल नहीं होता कि ऊपरवाला उसके बारे में क्या सोचता है। कुछ लोग वाकई चीजों को बढ़ा-चढ़ाकर बताते हैं और कभी-कभी तो कहानियाँ तक बना लेते हैं। अगर लोगों का एक समूह उनकी कहानियों को सत्यापित करने और जाँचने के लिए इकट्ठा हो जाए तो उन्हें पता नहीं होगा कि क्या करना है। ऊपरवाला किसी से कह सकता है, “तुममें अच्छी काबिलियत है और तुम्हारे पास समझने की क्षमता है। तुम्हें अपनी अनुभवजन्य गवाही को लिखने का अभ्यास करना चाहिए। एक बार जब तुम्हारे पास जीवन अनुभव आ जाएगा तो तुम अगुआ बन सकते हो।” यहाँ निहितार्थ क्या है? भले ही यह व्यक्ति प्रतिभाशाली है, फिर भी उसे कुछ समय तक प्रशिक्षण लेने और चीजों का अनुभव करने की जरूरत है। जब वह व्यक्ति प्रशिक्षण लेने या अनुभव हासिल करने से पहले अपनी शान दिखाता है और दिखावा करता है तो इसकी क्या प्रकृति है? वह घमंडी और दंभी हो रहा है और अपनी सूझ-बूझ खो चुका है, है ना? भले ही ऊपरवाला भाई कहे कि इस व्यक्ति में काबिलियत है और कि वह प्रतिभाशाली है, यह सिर्फ उनका उत्साह बढ़ाना या उसका मूल्यांकन करना है। इस तरह से घूम-घूमकर दिखावा करने के पीछे उस व्यक्ति का क्या लक्ष्य है? यह लोगों के दिलों में अपने बारे में ऊँची राय बनाना और उनसे अपनी आराधना करवाना है। उसके कहने का यह मतलब है, “देखो—ऊपरवाला भाई मेरे बारे में ऊँची राय रखता है तो तुम क्यों नहीं रखते हो? अब जब मैंने तुम्हें यह बता दिया है तो तुम्हें भी मेरे बारे में ऊँची राय रखनी चाहिए।” यही वह लक्ष्य है जिसे वह हासिल करना चाहता है। ऐसे भी लोग हैं जो कहते हैं, “मैं अगुआ हुआ करता था। मैं एक क्षेत्र, एक जिले, एक कलीसिया का अगुआ था—मैं सीढ़ी से लगातार नीचे गिरता रहा और लगातार ऊपर चढ़ता रहा—मुझे कई बार पदोन्नत और पदावनत किया गया है। आखिर में, स्वर्ग मेरी सच्चाई से द्रवित हो उठा और आज, मैं एक बार फिर से ऊँचे स्तर का अगुआ हूँ। और मैं एक बार भी नकारात्मक नहीं रहा हूँ।” जब तुम उससे पूछते हो कि उसने कभी नकारात्मक महसूस क्यों नहीं किया तो जवाब में वह कहता है, “मुझे आस्था है कि सच्चा सोना अंततः चमकता ही है।” वह इसी निष्कर्ष पर पहुँचा है। क्या यह सत्य वास्तविकता है? (नहीं।) तो अगर यह सत्य वास्तविकता नहीं है तो फिर यह क्या है? यह एक अजीब सिद्धांत है; हम यह भी कह सकते हैं कि यह एक भ्रांति है। उसके इस तरह से बोलने का क्या परिणाम हो सकता है? कुछ लोग कह सकते हैं, “यह व्यक्ति वाकई सत्य का अनुसरण करता है। वह इतनी बार पदोन्नत और पदावनत होने के बाद भी नकारात्मक नहीं हुआ। और अब उसे फिर से अगुआ बना दिया गया है—असली सोना वाकई चमक उठता है। बहुत जल्द उसे पूर्ण बना दिया जाएगा।” क्या उस व्यक्ति का यही लक्ष्य नहीं था? दरअसल, उसका लक्ष्य ठीक यही था। मसीह-विरोधियों के बोलने का ढंग चाहे जो भी हो, यह हमेशा इसलिए होता है ताकि लोग उनके बारे में ऊँची राय रखें और उनकी आराधना करें, वे उनके दिलों में एक निश्चित जगह बना लें, यहाँ तक कि वहाँ परमेश्वर की जगह भी ले लें—ये सभी वे लक्ष्य हैं, जो मसीह-विरोधी अपनी गवाही देते समय हासिल करना चाहते हैं। लोग जो भी कहते हैं, जिसका भी प्रचार करते हैं और जिसकी भी संगति करते हैं, जब भी इसके पीछे की प्रेरणा यह होती है कि लोग उनके बारे में ऊँची राय रखें और उनकी आराधना करें तो इस तरह का व्यवहार अपनी बड़ाई करना और अपनी गवाही देना होता है, इसे दूसरों के दिलों में एक जगह बनाने के लिए किया जाता है। हालाँकि इन लोगों के बोलने का तरीका पूरी तरह से एक-जैसा नहीं होता है, लेकिन कमोबेश इससे अपनी गवाही देने और दूसरों से अपनी आराधना करवाने का प्रभाव पड़ता है। कमोबेश, ऐसे व्यवहार लगभग सभी अगुआओं और कार्यकर्ताओं में मौजूद होते हैं। अगर वे ऐसी जगह पहुँच जाते हैं जहाँ वे खुद को रोक नहीं पाते हैं और उनके लिए खुद को सीमित करना मुश्किल हो जाता है और यह इच्छा करते हुए उनमें एक खास तौर से मजबूत और साफ इरादा और लक्ष्य होता है कि वे लोगों से ऐसा व्यवहार करवाएँ मानो वे परमेश्वर या कोई आराध्य व्यक्ति हों और इस तरह से वे दूसरों को बेबस और नियंत्रित करने का और दूसरे लोगों से अपनी आज्ञा मनवाने और अपनी आराधना करवाने का लक्ष्य हासिल कर सकें तो इस सबकी प्रकृति अपनी बड़ाई करने और अपने बारे में गवाही देने की है और इसमें मसीह-विरोधियों का एक गुण निहित है। लोग अपनी बड़ाई करने और अपने बारे में गवाही देने के लिए आम तौर पर किन साधनों का उपयोग करते हैं? (वे पूँजी की बात करते हैं।) पूँजी की बात करने में क्या शामिल है? इस बारे में बात करना कि वे कब से परमेश्वर में विश्वास कर रहे हैं, उन्होंने कितना कष्ट सहा है, कितनी कीमत चुकाई है, कितना कार्य किया है, कितनी दूर तक यात्रा की है और साथ ही सुसमाचार प्रचार करके उन्होंने कितने लोग हासिल किए हैं और कितना अपमान सहा है। कुछ लोग अक्सर इस बारे में भी बात करते हैं कि उन्हें कितनी बार गिरफ्तार किया गया है और जेल में डाला गया है, लेकिन उन्होंने कभी भी कलीसिया या भाई-बहनों को धोखा नहीं दिया और वे अपनी गवाही में अडिग रहे, वगैरह-वगैरह; ये सारी चीजें पूँजी के बारे में बात करने में आती हैं। कलीसिया का कार्य करने की आड़ में वे अपने ही उद्यम में लगे रहते हैं, अपने रुतबे को मजबूत करते हैं और लोगों के दिलों में अपनी अच्छी छाप छोड़ते हैं। साथ ही, वे लोगों के दिल जीतने के लिए हर तरह के तरीकों और चालों का उपयोग करते हैं, यहाँ तक कि अपने से अलग विचार रखने वालों पर आक्रमण करते हैं और उन्हें अलग कर देते हैं, खास तौर पर जो सत्य का अनुसरण करते हैं और सिद्धांतों पर बने रहते हैं, वे उन्हें अलग करने और दबाने के लिए अपने भरसक प्रयास करते हैं। जहाँ तक बेवकूफ और अज्ञानी और अपनी आस्था में भ्रमित लोगों के साथ-साथ उन लोगों की बात है जिन्होंने थोड़े समय के लिए ही परमेश्वर में विश्वास किया है और वे छोटे आध्यात्मिक कद के हैं, ऐसे लोगों पर वे किन तरीकों का उपयोग करते हैं? वे अपने रुतबे को मजबूत करने का अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए इन चालों का उपयोग करके उन्हें गुमराह करते हैं, फुसलाते हैं और यहाँ तक कि उन्हें धमकाते भी हैं। ये सभी मसीह-विरोधियों की चालें हैं।
कलीसियाओं में अक्सर इस तरह की चीज होती रहती है : कुछ भाई-बहन ऐसे उपदेश और संगति सुनते हैं जिनमें ऊपरवाला कहता है कि अगर कोई अगुआ या कार्यकर्ता ऐसा कुछ करता है जो परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाओं का उल्लंघन करते हैं तो परमेश्वर के चुने हुए लोगों के पास इसकी रिपोर्ट करने का अधिकार है। उनमें से कुछ लोग यह सुनने और पता लगने के बाद कि उनकी कलीसिया में एक अगुआ इस तरीके से कार्य कर रहा है जो कार्य-व्यवस्थाओं के अनुरूप नहीं है, तय करते हैं कि वे उस अगुआ की रिपोर्ट करना चाहते हैं। फिर, अगुआ को इस बारे में पता चल जाता है और वह मन ही मन सोचता है, “तो ऐसा है कि यहाँ कुछ ऐसे लोग हैं जिनमें अब भी मेरी रिपोर्ट करने की हिम्मत है। उनकी इतनी हिम्मत! ये कौन लोग हैं?” इसके बाद वह कलीसिया के कई दर्जन सदस्यों में से हर एक की छानबीन करता है। वह इस छानबीन में किस हद तक जाता है? वह हर एक की उम्र का, उसने कितने समय से परमेश्वर में विश्वास किया है, अतीत में उसने कौन-से कर्तव्य किए हैं, उसके मौजूदा कर्तव्य क्या हैं, वह किसके संपर्क में हैं, वह ऊपरवाले से संपर्क बना सकता है या नहीं, वगैरह-वगैरह का पता लगाता है। वह इन सारी चीजों का पता लगाता है और इसमें बहुत प्रयास करता है। उसकी अच्छी तरह से की गई छानबीन पूरी होने के बाद, उसे पता चलता है कि दो या तीन लोग संदिग्ध लगते हैं, इसलिए अगली सभा में यह अगुआ ऐसा उपदेश देता है जो खास तौर से इस मामले को लक्षित करता है। वह कहता है, “लोगों के पास विवेक होना चाहिए। परमेश्वर में तुम्हारी आस्था में अब तक किसने तुम्हारी अगुआई की है? अब तुम बहुत सारे सत्य समझते हो; अगर मैं तुम्हारे साथ सभाएँ और संगति नहीं करता तो क्या तुम ये सत्य समझ पाते? हमारी कलीसिया बहुत सारे लोगों तक सुसमाचार प्रचार कर उन्हें यहाँ लेकर आई है और हमारे सुसमाचार कार्य ने विशाल प्रगति की है। अगर मैं यहाँ मौजूद रहकर इसे निर्देशित नहीं कर रहा होता तो क्या तुम किसी को भी ला पाते? वैसे भी, इस सबके लिए तुम्हें किसे धन्यवाद देना चाहिए?” कुछ लोग इस पर विचार करते हैं और सोचते हैं, “मुझे सिर्फ परमेश्वर को धन्यवाद देना चाहिए; मनुष्य ने क्या योगदान किए हैं?” लेकिन फिर अगुआ अपनी बात जारी रखते हुए कहता है, “अगर मैं तुम्हारे लिए परमेश्वर के वचनों की ये किताबें वापस नहीं लाया होता तो क्या तुम इन्हें हासिल कर पाते? सभाओं का आयोजन करने के लिए अगर मैं नहीं होता तो क्या तुम लोग इकट्ठा हो पाते? लोगों के पास विवेक होना चाहिए। तो अगर तुम्हारे पास विवेक है तो तुम्हें क्या करना चाहिए? जब तुम्हारा अगुआ कभी-कभार कोई मामूली गलती कर देता है तो तुम्हें उसकी बहुत ज्यादा गहराई से छानबीन नहीं करनी चाहिए। उसकी कमियों को लपककर और उन्हें अनदेखा करने से मना करके क्या तुम उसके विरुद्ध बगावत करने का प्रयास कर रहे हो? अगर कोई मामूली बात होती है तो हमें उसे अंदर ही अंदर सँभाल लेना चाहिए। रिपोर्ट दर्ज करवाने का क्या मतलब है? मामलों की रिपोर्ट करने वाले लोग अयोग्य और छोटे आध्यात्मिक कद के होते हैं। क्या ऊपरवाले को सबकुछ रिपोर्ट करना उचित है? ऊपरवाले के पास ऐसी समस्याओं को सुलझाने के लिए समय कैसे हो सकता है? अगर उन्हें सुलझाना ही है तो कलीसिया के अगुआ उन्हें सुलझाएँगे। क्या बंद दरवाजों के पीछे चीजों पर चर्चा नहीं की जा सकती है? क्या ऊपरवाले को सब कुछ रिपोर्ट करना तुम्हारे लिए जरूरी है? क्या यह ऊपरवाले को बस परेशान करना नहीं होगा? सुनो, अगर तुम मुझे किसी चीज की रिपोर्ट करते हो तो मैं शांति और मित्रभाव से तुम्हारी काट-छाँट किए बिना कोई हल निकाल लूँगा। लेकिन अगर तुम ऊपरवाले को उसकी रिपोर्ट करते हो तो क्या तुम्हें पता है कि उसका रवैया क्या होगा? ऊपरवाले के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए—वह शेरों और चीलों की तरह है। क्या हमारे जैसे छोटे आध्यात्मिक कद के लोग उसके स्तर तक पहुँच सकते हैं? ऊपरवाले को किसी समस्या की रिपोर्ट करने से कोई अच्छा परिणाम नहीं निकलेगा; तुम निश्चित रूप से काटे-छाँटे जाओगे। मेरे साथ ऐसा कई बार हो चुका है; तुम्हारे जैसे छोटे आध्यात्मिक कद वाला व्यक्ति इसे कैसे सँभाल पाएगा? तुम शायद विश्वास करना भी बंद कर दोगे और फिर उसका परिणाम भुगतने वाला व्यक्ति कौन होगा? अगर तुम किसी चीज की रिपोर्ट करना चाहते हो तो तुम्हें इसका परिणाम भुगतना होगा। जब समय आएगा और तुम काटे-छाँटे जाओगे और नकारात्मक और कमजोर हो जाओगे तो आकर मुझे दोष मत देना। अगर तुम रिपोर्ट दर्ज करवाना चाहते हो तो मैं तुम्हें नहीं रोकूँगा। जाओ और करो; मैं देखता हूँ कि कौन रिपोर्ट करता है!” जब यह अगुआ इतना डराएगा-धमकाएगा तो क्या कोई रिपोर्ट दर्ज करवाने की हिम्मत करेगा? (नहीं।) कुछ लोग ऐसा करना चाहेंगे, लेकिन वे बहुत ज्यादा डरे हुए होंगे। क्या ये लोग निकम्मे नहीं हैं? उन्हें किस बात का डर है? वे इस अगुआ से इतना कैसे डर सकते हैं? भले ही वह अगुआ उन्हें सताकर उनकी जान लेना चाहता हो, लेकिन उनका जीवन उस अगुआ के हाथों में नहीं है; परमेश्वर की अनुमति के बिना वह अगुआ उन्हें सताने की हिम्मत कैसे कर सकता है? उस अगुआ के कुछ डरावने शब्दों के बाद, ऐसे लोग हैं जो रिपोर्ट दर्ज करवाने से वाकई बहुत डरेंगे; वे अपने मन में सोचेंगे, “परमेश्वर कहीं दिखाई नहीं दे रहा है। अगर मैंने रिपोर्ट दर्ज करवाई तो क्या ऊपरवाला इस अगुआ को सँभाल लेगा? अगर उसने नहीं सँभाला तो क्या होगा—क्या यह अगुआ मुझसे बदला लेगा? क्या तब भी मैं अपना कर्तव्य सामान्य रूप से कर पाऊँगा? तो फिर मुझे कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं करवानी चाहिए। इसके अलावा, इस मामले से मेरा कोई लेना-देना नहीं है। किसी और ने तो इसकी रिपोर्ट नहीं की है तो मैं क्यों करूँ?” वे पीछे हट जाएँगे और रिपोर्ट दर्ज करवाने की हिम्मत नहीं जुटा पाएँगे। क्या मसीह-विरोधी की ऐसे लोगों पर दया दिखाने की संभावना है? (नहीं।) वह उनके साथ क्या करेगा? एक बार जब वह पक्के तौर पर यह पता लगा लेगा कि कौन उसकी रिपोर्ट करने की योजना बना रहा है, कौन उसके साथ एकमत नहीं है तो वह सोचना शुरू कर देगा : “तुम हमेशा कुछ ना कुछ करते रहते हो; तुम हमेशा बड़े-बड़े विचार अभिव्यक्त करना चाहते हो, तुम हमेशा परेशानी खड़ी करने की फिराक में रहते हो, हमेशा मेरे मुद्दों की रिपोर्ट करना चाहते हो—यह अपमानजनक है! तुम ऊपरवाले से संपर्क करने के एक मौके की तलाश में हो ताकि तुम उसे मेरी स्थिति की रिपोर्ट कर सको। अब तुम पीछे हट रहे हो, तुम इसे करने की हिम्मत नहीं कर रहे हो; लेकिन कौन जाने, अगर तुम्हें सही मौका मिल जाता है तो तुम फिर भी मेरी रिपोर्ट कर सकते हो। ओह, मैं तुम्हें मजा चखाता हूँ!” इसलिए, मसीह-विरोधी उन लोगों को बदनाम करने के लिए बहाने और मौके ढूँढ़ेगा, ताकि भाई-बहन उनके प्रति नफरत महसूस करने लगें। फिर वह उन्हें पकड़ने, उनके लिए परेशानी खड़ी करने और उनकी प्रतिष्ठा पर कलंक लगाने के लिए हर तरह के तरीकों के बारे में सोचेगा। और उसके बाद वे लोग अपने मन में क्या सोचते हैं? “यह बहुत ही बुरा हुआ! मैंने अगुआ की आज्ञा नहीं मानी, मैंने आँख मूँदकर उसकी रिपोर्ट करने का प्रयास किया और अब मुझे कष्ट सहना पड़ रहा है। मुझे यह सबक याद रखना चाहिए : मुझे इस अगुआ को बिल्कुल नाराज नहीं करना चाहिए! इस समय, यही अगुआ सारे फैसले लेता है। अगर वह कहता है ‘पूर्व,’ तो मैं ‘पश्चिम’ नहीं कह सकता; अगर वह कहता है ‘एक,’ तो मैं ‘दो’ नहीं कह सकता। मुझे वही करना होगा जो यह अगुआ मुझसे करने को कहता है। मुझे समस्याओं की रिपोर्ट करने के लिए ऊपरवाले से बिल्कुल संपर्क नहीं करना चाहिए। यह वाकई गंभीर बात है! इस अगुआ ने मुझे कष्ट सहने पर मजबूर किया है और ऊपरवाला इस बारे में नहीं जानता है—मेरे बचाव में कौन खड़ा होगा? जैसा कि वे कहते हैं, ‘राज्य के अधिकारियों की तुलना में स्थानीय अधिकारियों के पास ज्यादा नियंत्रण रहता है!’” ये लोग नकारात्मक बन चुके हैं। वे यह नहीं मानते कि परमेश्वर के घर में सत्य राज करता है और यह तो और भी कम मानते हैं कि परमेश्वर सभी चीजों पर संप्रभु है। क्या उनके दिलों में अभी भी परमेश्वर है? नहीं, उनके दिलों में परमेश्वर नहीं है। उनमें परमेश्वर में सच्ची आस्था का अभाव है, वे समस्या की रिपोर्ट करना चाहते हैं, लेकिन वे उस कुकर्मी से डरते हैं, उन्हें किसी भी दुष्ट शक्ति की कोई पहचान नहीं है, उस कुकर्मी ने उन्हें उस जगह कष्ट सहने पर मजबूर किया है जहाँ उसके पास शक्ति है, और वे निकम्मे बन गए हैं। शुरू में उनमें न्याय की थोड़ी-सी समझ थी, जो एक वांछनीय गुण है, लेकिन क्योंकि वे सत्य नहीं समझते हैं और सिद्धांतों के अनुसार कार्य करना नहीं जानते हैं, इसलिए उस कुकर्मी, झूठे अगुआ और मसीह-विरोधी ने उन्हें उस हद तक कुचल डाला कि उन्होंने सारी आस्था खो दी; वे नहीं जानते हैं कि सत्य की तलाश करने के लिए परमेश्वर पर कैसे भरोसा किया जाए या बुद्धिमानी से कैसे कार्य किया जाए। अब जब भी वे किसी मसीह-विरोधी को देखते हैं तो डर जाते हैं और दब्बू बन जाते हैं। वे कितने डरे हुए हैं? वे सोचते हैं, “इस दुनिया में कुकर्मियों के पास शक्ति है। मैं जिस भी समूह में हूँ, उसमें मुझे अच्छी तरह व्यवहार करना चाहिए। मुझमें उस तरह की क्रूरता और हिम्मत नहीं है, इसलिए मैं जहाँ भी जाऊँगा, मुझे स्वेच्छा से बुरा व्यवहार सहना पड़ेगा और दूसरों की आज्ञा माननी पड़ेगी—मुझे उनके साथ अपने पूर्वजों जैसा व्यवहार करना पड़ेगा। अगर वे कहते हैं ‘पूर्व,’ तो मैं ‘पश्चिम’ नहीं कह सकता। मैं उनसे अलग राय व्यक्त नहीं कर सकता, मैं दूसरे लोगों की समस्याओं के बारे में रिपोर्ट दर्ज नहीं करवा सकता और मैं दूसरे लोगों के मामलों में दखल नहीं दे सकता। मैं सिर्फ परमेश्वर में विश्वास करने पर ध्यान केंद्रित कर सकता हूँ। मुझे अगुआओं और कार्यकर्ताओं को नाराज नहीं करना चाहिए, सत्य सिद्धांतों का पालन नहीं करना चाहिए, प्रकाश की लालसा नहीं रखनी चाहिए, या न्याय से प्रेम नहीं करना चाहिए—इस दुनिया में कोई प्रकाश या न्याय नहीं है। मैं सिर्फ आखिर तक सहने पर ध्यान दूँगा और भविष्य में मैं जहाँ कहीं भी जाऊँगा, हमेशा शांति बनाए रखने को प्राथमिकता देने की बात याद रखूँगा!” वे इसी निष्कर्ष पर पहुँचते हैं। क्या वे उस मसीह-विरोधी से हार नहीं गए हैं? (हाँ।) इसकी पुष्टि किससे होती है? उस मसीह-विरोधी से दब जाने के बाद, वे बुरी तरह से डर गए हैं, वे इतना डर गए हैं कि उनके लिए कुछ कहना या करना नामुमकिन हो गया है। उन्होंने अपनी सच्ची आस्था खो दी है और अब वे अपने कर्तव्य निष्ठा से नहीं करते हैं; उनके दिलों में न्याय के प्रति उनके प्रेम की छोटी-सी लौ बुझ गई है; वे उस मसीह-विरोधी से पूरी तरह हार गए हैं और पिट चुके हैं। क्या वे निकम्मे नहीं हैं? क्या वे डरपोक नहीं हैं? (हाँ।) तुम कैसे बता सकते हो? अगर तुम उनसे पूछते हो, “तुम्हारी कलीसिया में अमुक व्यक्ति का क्या हाल है?” तो वे जवाब देंगे, “बुरा नहीं है।” अगर तुम पूछते हो, “और उस नए कलीसियाई अगुआ की क्या खबर है जिसे तुम सभी ने चुना है; क्या तुम उसे जानते हो?” तो जवाब में वह कहेगा, “मैं उससे ज्यादा परिचित नहीं हूँ।” अगर तुम पूछते हो, “अब वहाँ कलीसियाई जीवन कैसा है? क्या कोई गड़बड़ी फैला रहा है?” वे कहेंगे, “अच्छा है, ठीक से चल रहा है।” तुम उनसे जो भी पूछोगे, उसका वे बस इन थोड़े-से शब्दों में जवाब देंगे। क्या यह इसलिए नहीं है क्योंकि वे डरे हुए हैं? वे इतना क्यों डरे हुए हैं? वह इसलिए क्योंकि वे परमेश्वर की धार्मिकता को नहीं जानते हैं; वे शैतान की दुष्टता, क्रूरता, बेरहमी और अँधेरे को ठीक से पहचान नहीं पाते हैं; उन्हें ना तो सत्य के शासन का मतलब पता है और ना ही यह पता है कि इसका क्या महत्व है—और इसलिए वे डरते हैं। इसलिए, तुम जो भी पूछोगे, उनके पास उसका जवाब अस्पष्ट और धुँधला होगा; तुम्हें उनसे इस बारे में कोई जवाब नहीं मिलेगा कि कलीसिया में वाकई क्या हो रहा है, या यह पता नहीं चलेगा कि वे वाकई दिल में क्या सोच रहे हैं। वे खुद को इतना कसकर समेट लेंगे कि तुम्हें यह भी ठीक से पता नहीं होगा कि वे किस बारे में बात कर रहे हैं। वे कलीसिया में मौजूद समस्याओं के बारे में या इस बारे में कुछ नहीं कहेंगे कि अगुआ और कार्यकर्ता कैसे हैं और तुम उन मुश्किलों के बारे में कुछ भी नहीं जान पाओगे जिनका सामना परमेश्वर के चुने हुए लोग कर रहे हैं। तुम इनमें से किसी के भी बारे में कुछ पता नहीं लगा पाओगे—वे तुमसे सिर्फ इसी तरीके से बात करेंगे। और उनकी बातें सुनने के दौरान तुम्हें कैसा महसूस होगा? तुम्हें महसूस होगा कि तुम दोनों के दिलों के बीच फासला है। उनकी सोच ऐसी है : “मेरे बारे में कुछ भी जानने का प्रयास मत करो, मैं तुम्हारे सामने किसी जानकारी का या वाकई क्या चल रहा है इसका खुलासा नहीं करना चाहता हूँ। मुझसे दूर रहो; अगर तुम मुझसे यह पता लगाने का प्रयास करोगे कि कलीसिया में क्या चल रहा है तो तुम मेरे लिए परेशानी खड़ी करने और मेरे मौजूदा रहन-सहन के परिवेश, दिनचर्या और स्थिति में गड़बड़ करने का प्रयास कर रहे हो। मेरे जीवन के किसी भी पहलू में शामिल मत हो; इन चीजों को मुझे खुद सँभालने दो।” वे इस बात से डरते हैं कि मसीह-विरोधी उन्हें कष्ट देगा या उनसे बदला लेगा और वे अपनी कलीसिया के बारे में किसी भी समस्या की रिपोर्ट करने से डरते हैं। क्या यह उस मसीह-विरोधी के सामने हथियार डाल देना नहीं है? क्या वे उस मसीह विरोधी द्वारा गुमराह और नियंत्रित नहीं किए गए हैं? (हाँ।) और यह देखकर वह मसीह-विरोधी खुश हो जाता है। उसने लोगों को इस हद तक पीड़ा पहुँचाई है कि अब वे अपने मुद्दों की रिपोर्ट करने की हिम्मत नहीं करते है, इसलिए कलीसिया पर उसका मजबूत नियंत्रण है। क्या कलीसिया में बहुत से लोग मसीह-विरोधी द्वारा इस तरीके से नियंत्रित हैं? क्या तुमने कभी किसी को किसी समस्या की रिपोर्ट करने से रोका है? हो सकता है कि तुमने ऐसा किया हो लेकिन तुम्हें इसकी जानकारी ना हो, या हो सकता है कि तुम भविष्य में ऐसा करो। तो, क्या मसीह-विरोधियों द्वारा लोगों को जीत लेना और नियंत्रित करना एक समस्या माना जा सकता है? (हाँ।) कुछ लोग कहते हैं : “कलीसिया में कुछ लोग एक मसीह-विरोधी से डरते हैं, लेकिन वे उस मसीह-विरोधी में विश्वास नहीं करते हैं या उस मसीह-विरोधी का अनुसरण नहीं करते हैं और वे उस मसीह-विरोधी की सेवा तो बिल्कुल नहीं करते हैं। बस इतना ही है कि उस मसीह-विरोधी ने उन्हें थोड़ा बेबस कर दिया है और परमेश्वर में विश्वास करने के सही मार्ग में उनके प्रवेश में देर करवा दी है। तुम ऐसा क्यों कहते हो कि यह एक समस्या है?” एक तरफ, मसीह-विरोधियों द्वारा लोगों को जीतने और नियंत्रित करने के लिए उपयोग किए जाने वाले तरीकों को देखकर, तुम्हें यह देखने में सक्षम होना चाहिए कि उनका प्रकृति सार शैतान का सार है; यह सत्य के प्रति और परमेश्वर के प्रति बैर-भाव है। मसीह-विरोधी लोगों के लिए परमेश्वर से होड़ करना चाहते हैं, उसके चुने हुए लोगों के लिए प्रतिस्पर्धा करना चाहते हैं। दूसरी तरफ, मसीह-विरोधी जिन व्यवस्थाओं द्वारा और जिन तरीकों से काम करते हैं, उनका उन लोगों पर वाकई प्रभाव पड़ सकता है जो बेवकूफ, अज्ञानी, भ्रमित हैं और सत्य को नहीं समझते हैं। वे वाकई उन लोगों को गुमराह कर सकते हैं, उन्हें मसीह-विरोधियों के नियंत्रण में अच्छी तरह से व्यवहार करवाते रह सकते हैं और उन्हें सभी चीजों में मसीह-विरोधियों से सलाह लेने और उनका पालन करने के लिए मजबूर कर सकते हैं। मसीह-विरोधी ना सिर्फ इन लोगों के मुँह बंद रखते हैं; वे उनके क्रियाकलापों को भी नियंत्रित करते हैं, उनकी सोच और विचारों पर प्रभाव डालते हैं और वे जिस दिशा में चलते हैं उसे प्रभावित करते हैं। ये वे प्रभाव और परिणाम हैं जो मसीह-विरोधी के क्रियाकलाप से उन लोगों पर आते हैं जो बेवकूफ और अज्ञानी हैं।
अभी-अभी मैंने अगुआ या कार्यकर्ता के कर्तव्य करने से संबंधित अलग-अलग सत्यों के बारे में बात की है। मैंने अगुआओं और कार्यकर्ताओं की कुछ समस्याओं को भी उजागर किया और मुख्य तौर पर, मैंने सबसे गंभीर प्रकार के व्यक्ति की अभिव्यक्तियों पर ध्यान केंद्रित किया—और वह किस तरह का व्यक्ति है? (मसीह-विरोधी।) वह एक आम अभिव्यक्ति कौन-सी है जो सभी मसीह-विरोधियों में मौजूद होती है? वे अपने लिए शक्ति हथियाने और कलीसिया को नियंत्रित करने का प्रयास करते हैं। शक्ति की उनकी इच्छा बाकी सभी चीजों की इच्छा से बढ़कर होती है; शक्ति उनका जीवन, उनकी जड़ है; वह जीवन में जो कुछ भी करते हैं वह इसी विषय, इसी दिशा और इसी लक्ष्य पर केंद्रित होता है। इसलिए, मसीह-विरोधियों के क्रियाकलाप और वे जो स्वभाव प्रकट करते हैं वे, शैतान द्वारा लोगों को गुमराह करने, उन्हें जीतने और नियंत्रित करने के लिए उपयोग की जाने वाली युक्तियों जैसे हैं। यह कहा जा सकता है कि इस तरह का व्यक्ति जो कुछ भी करता है, वह उसे शैतान का एक निकास द्वार, एक मूर्त रूप और एक अभिव्यक्ति से कम नहीं बनाता है; उसका हर क्रियाकलाप और उसके सभी व्यवहार का मुख्य लक्ष्य शक्ति पर कब्जा करना है। और वे किसे नियंत्रित करने का प्रयास करते हैं? ये वही लोग हैं जिनकी वे अगुआई करते हैं, जो परमेश्वर के अनुयायी हैं, ये वही लोग हैं जो उनकी शक्ति के दायरे में आते हैं, जिन्हें वे नियंत्रित कर पाते हैं। कुछ ही क्षण पहले, हमने उन तकनीकों के बारे में भी बात की जिनका उपयोग मसीह-विरोधी लोगों को नियंत्रित करने के लिए करते हैं। पहली तकनीक है लोगों के दिल जीतना; दूसरी है विरोधियों पर आक्रमण करना और उन्हें अलग करना; तीसरी है सत्य का अनुसरण करने वाले लोगों को अलग करना और उन पर आक्रमण करना; चौथी है लगातार अपनी बड़ाई करना और अपने बारे में गवाही देना; और पाँचवीं है लोगों को गुमराह करना, उन्हें फुसलाना, धमकाना और नियंत्रित करना। ये सभी पाँच प्रधान अभिव्यक्तियाँ वे मूल तकनीकें और साधन हैं जिनका उपयोग मसीह-विरोधी शक्ति हासिल करने और लोगों पर कब्जा करने और उन्हें नियंत्रित करने के लिए करते हैं। ये व्यापक श्रेणियाँ हैं। इसके बाद, हम इन व्यापक श्रेणियों का ज्यादा विस्तार से गहन-विश्लेषण करेंगे और उन पर संगति करेंगे।
मसीह-विरोधियों द्वारा लोगों के दिल जीतने के प्रयास का गहन-विश्लेषण
क. थोड़ी-बहुत मदद करके लोगों को फुसलाना
मसीह-विरोधी लोगों को नियंत्रित करने के लिए जिस पहली तकनीक का उपयोग करते हैं वह है उनके दिल जीतना। लोगों के दिल जीतने के कितने तरीके हैं? एक तरीका है उनकी थोड़ी-बहुत मदद करके उन्हें फुसलाना। कभी-कभी मसीह-विरोधी लोगों को कुछ अच्छी चीजें देते हैं, कभी-कभी वे उनकी तारीफ करते हैं और कभी-कभी वे उनसे छोटे-छोटे वादे करते हैं। और कभी-कभी, मसीह-विरोधी देखते हैं कि कुछ कर्तव्य लोगों को सुर्खियों में आने में मदद कर सकते हैं या दूसरों को लगता है कि ये कर्तव्य इन्हें करने वाले लोगों को फायदे और सभी से सम्मान दिला सकते हैं और फिर वे ये कर्तव्य उन लोगों को सौंप देते हैं जिन्हें वे जीतना चाहते हैं। इस “थोड़ी-बहुत मदद” में कई चीजें शामिल हैं : कभी-कभी ये भौतिक चीजें होती हैं; कभी-कभी ये अमूर्त चीजें होती हैं; कभी-कभी ये लुभावने शब्द होते हैं जिन्हें लोग सुनना चाहते हैं। मिसाल के तौर पर, जब किसी व्यक्ति पर कोई मुसीबत आती है तो वह कमजोर हो जाता है और अपने कर्तव्य के लिए प्रेरणा खो देता है और जब वह अपनी इस कमजोरी के लिए परमेश्वर के वचनों को दोषी ठहराता है तो उसे एहसास होता है कि यह परमेश्वर के साथ निष्ठाहीनता है, अपना कर्तव्य करने की अनिच्छा है, सच्चे समर्पण का अभाव है और वह बहुत तिरस्कृत महसूस करता है। यह देखकर कोई अगुआ कह सकता है, “तुम्हारा बस आध्यात्मिक कद छोटा है। परमेश्वर इस मामले को उस तरीके से नहीं देखेगा। तुम्हें उस पर विश्वास करते हुए अभी कुछ ही समय हुआ है। तुम खुद से इतनी उम्मीद नहीं कर सकते। इस प्रकार की चीजों में समय लगता है—तुम इसमें जल्दबाजी नहीं कर सकते। परमेश्वर लोगों से बड़ी-बड़ी माँगें नहीं करता है और तुम्हारे लिए, एक ऐसे व्यक्ति के लिए जिसे उस पर विश्वास करते हुए अभी कुछ ही समय हुआ है, कभी-कभी थोड़ा कमजोर हो जाना सामान्य बात है और तुम्हें इसकी चिंता नहीं करनी चाहिए।” इसका मतलब है कि कमजोर होने को लेकर चिंता करने की कोई बात नहीं है और लगातार कमजोर बने रहने को लेकर तो और भी कम चिंता करनी चाहिए और यह सब कुछ सामान्य नकारात्मकता है और परमेश्वर इसे याद नहीं रखता है। कुछ लोग बेहद भावुक होते हैं और अपना कर्तव्य करते समय वे हमेशा अपनी भावनाओं के आगे बेबस रहते हैं और उनका अगुआ कहता है, “यह तुम्हारे छोटे आध्यात्मिक कद की वजह से है, कोई बात नहीं।” कुछ लोग अपने कर्तव्य में आलसी और निष्ठाहीन होते हैं, लेकिन उनका अगुआ उन्हें नहीं डाँटता है, इसके बजाय वह उनसे ऐसी मीठी-मीठी बातें कहता है जिन्हें वे लोग हर मोड़ पर सुनना चाहते हैं, ताकि वह उन्हें खुश कर सके और वे उसे अच्छा कहें और वह उन्हें दिखा सके कि वह कितना समझदार और प्रेम करने वाला है। वे लोग सोचते हैं, “हमारा अगुआ एक प्रेम करने वाली माँ जैसा है। उसके दिल में हमारे लिए वाकई प्रेम की भावना है—वह सच में परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करता है। वह सच में परमेश्वर की तरफ से भेजा गया है!” इसका अनकहा आशय यह है कि उनका अगुआ परमेश्वर के प्रवक्ता के तौर पर कार्य कर सकता है और वह परमेश्वर का प्रतिनिधित्व कर सकता है। क्या इस अगुआ का यही लक्ष्य है? शायद यह उतना स्पष्ट नहीं है, लेकिन उसका एक लक्ष्य तो स्पष्ट है : वह लोगों से यह कहलवाना चाहता है कि वह एक शानदार अगुआ है, वह दूसरों का ध्यान रखता है, लोगों की कमजोरियों के प्रति हमदर्दी रखता है और उनके दिलों को अच्छी तरह समझता है। जब कोई कलीसियाई अगुआ भाई-बहनों को अनमने ढंग से अपने कर्तव्य करते हुए देखता है तो उन्हें डाँटता नहीं, हालाँकि उसे डाँटना चाहिए। स्पष्ट रूप से यह देखने पर भी कि परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँच रहा है, वह इस बारे में कोई चिंता नहीं करता है और न ही कोई पूछताछ करता है और वह दूसरों को जरा भी नाराज नहीं करता है। दरअसल, वह लोगों की कमजोरियों के प्रति सचमुच विचारशील नहीं है; बल्कि, उसका इरादा और लक्ष्य लोगों के दिल जीतना है। उसे पूरी तरह से मालूम है कि : “जब तक मैं ऐसा करता रहूँगा और किसी को नाराज नहीं करूँगा, तब तक वे यही सोचेंगे कि मैं एक अच्छा अगुआ हूँ। वे मेरे बारे में अच्छी, ऊँची राय रखेंगे। वे मुझे स्वीकार करेंगे और मुझे पसंद करेंगे।” वह इसकी परवाह नहीं करता है कि परमेश्वर के घर के हितों को कितनी हानि पहुँच रही है या परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश को कितने बड़े-बड़े नुकसान हो रहे हैं या उनके कलीसियाई जीवन को कितनी ज्यादा बाधा पहुँच रही है, वह बस अपने शैतानी फलसफे पर कायम रहता है और किसी को नाराज नहीं करता है। उसके दिल में कभी कोई आत्म-निंदा का भाव नहीं होता है। जब वह किसी को गड़बड़ियाँ और विघ्न उत्पन्न करते देखता है तो ज्यादा से ज्यादा वह उससे इस बारे में कुछ बात कर लेता है, मुद्दे को मामूली बनाकर पेश करता है और फिर मामले को समाप्त कर देता है। वह सत्य पर संगति नहीं करेगा या उस व्यक्ति को समस्या का सार नहीं बताएगा, उसकी स्थिति का गहन-विश्लेषण तो और भी कम करेगा और परमेश्वर के इरादों के बारे में संगति तो कभी नहीं करेगा। नकली अगुआ कभी भी लोगों द्वारा बार-बार की जाने वाली गलतियों या प्रायः प्रकट किए जाने वाले भ्रष्ट स्वभावों को उजागर या गहन विश्लेषित नहीं करते। वह किसी वास्तविक समस्या का समाधान नहीं करता है, बल्कि हमेशा लोगों के गलत अभ्यासों और भ्रष्टाचार के खुलासों में शामिल रहता है और भले ही लोग कितने भी निराश या कमजोर क्यों ना हों, वह इस चीज को गंभीरता से नहीं लेता है। वह सिर्फ कुछ शब्दों और धर्म-सिद्धांतों का ही प्रचार करता है और मेल-मिलाप बनाए रखने का प्रयास करते हुए बेपरवाह तरीके से स्थिति से निपटने के लिए प्रोत्साहन के कुछ शब्द बोल देता है। फलस्वरूप, परमेश्वर के चुने हुए लोगों को यह मालूम नहीं होता है कि उन्हें कैसे आत्मचिंतन करना है और आत्म-ज्ञान कैसे प्राप्त करना है, वे जो भी भ्रष्ट स्वभाव प्रकट करते हैं उनका कोई समाधान नहीं निकलता है और वे जीवन प्रवेश के बिना ही शब्दों और धर्म-सिद्धांतों, धारणाओं और कल्पनाओं के बीच जीवन जीते रहते हैं। वे अपने दिलों में भी यह मानते हैं, “हमारी कमजोरियों के बारे में हमारे अगुआ को परमेश्वर से भी ज्यादा समझ है। परमेश्वर की अपेक्षाएँ पूरी करने के लिए हमारा आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है। हमें बस अपने अगुआ की अपेक्षाएँ पूरी करने की जरूरत है; अपने अगुआ के प्रति समर्पण करके हम परमेश्वर के प्रति समर्पण कर रहे हैं। अगर ऐसा कोई दिन आता है जब ऊपरवाला हमारे अगुआ को बर्खास्त कर देता है तो हम अपनी आवाज उठाएँगे; अपने अगुआ को बनाए रखने और उसे बर्खास्त किए जाने से रोकने के लिए हम ऊपरवाले से बातचीत करेंगे और उसे हमारी माँगें मानने के लिए मजबूर करेंगे। इस तरह से हम अपने अगुआ के साथ उचित व्यवहार करेंगे।” जब लोगों के दिलों में ऐसे विचार होते हैं, जब वे अपने अगुआ के साथ ऐसा रिश्ता बना लेते हैं और उनके दिलों में अपने अगुआ के लिए इस तरह की निर्भरता, ईर्ष्या और आराधना की भावना जन्म ले लेती है तो ऐसे अगुआ में उनकी आस्था और बढ़ जाती है और वे हमेशा परमेश्वर के वचनों में सत्य तलाशने के बजाय अगुआ के शब्दों को सुनना चाहते हैं। ऐसे अगुआ ने लोगों के दिलों में परमेश्वर की जगह लगभग ले ली है। अगर कोई अगुआ परमेश्वर के चुने हुए लोगों के साथ ऐसा रिश्ता बनाए रखने के लिए राजी है, अगर इससे उसे अपने दिल में खुशी का एहसास होता है और वह मानता है कि परमेश्वर के चुने हुए लोगों को उसके साथ ऐसा ही व्यवहार करना चाहिए तो इस अगुआ और पौलुस के बीच कोई फर्क नहीं है, वह पहले से ही एक मसीह-विरोधी के मार्ग पर अपने कदम रख चुका है और परमेश्वर के चुने हुए लोग पहले से ही इस मसीह-विरोधी द्वारा गुमराह हो चुके हैं और वे बिल्कुल भी भेद नहीं पहचान पाते हैं। दरअसल, इस अगुआ के पास सत्य वास्तविकता नहीं है और वह परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश के बारे में बिल्कुल भी बोझ नहीं उठाता है। वह सिर्फ शब्द और धर्म-सिद्धांतों का ही उपदेश दे सकता है और दूसरों के साथ अपने रिश्ते बनाए रख सकता है। वह पाखंडी तरीकों का उपयोग करके दिखावा करने में अच्छा होता है, उसकी बोली और क्रियाकलाप लोगों की धारणाओं से तालमेल रखते हैं और इस तरह से वह लोगों को गुमराह करता है। उसे सत्य की संगति करने या आत्म-ज्ञान प्राप्त करने का तरीका नहीं मालूम होता है और इसलिए वह दूसरों की अगुवाई करके उन्हें सत्य वास्तविकता में नहीं ले जा सकता है। वह सिर्फ प्रतिष्ठा और रुतबे के लिए काम करता है और सिर्फ मीठे-मीठे शब्द बोलता है जो लोगों को फाँस लेते हैं। वह पहले से ही लोगों को उसकी आराधना करने और उसका आदर करने के लिए मनाने का लक्ष्य प्राप्त कर चुका है और इससे कलीसिया का कार्य और परमेश्वर के चुने हुए लोगों का जीवन प्रवेश गंभीर रूप से प्रभावित हुआ है और उसमें देरी हुई है। क्या ऐसा व्यक्ति मसीह-विरोधी नहीं है? कुछ लोग बिल्कुल मसीह-विरोधियों की तरह कार्य करते हैं, लेकिन जब वे किसी मसीह-विरोधी का खुलासा होते देखते हैं तो वे तुलना के लिए खुद को उस मसीह-विरोधी के सामने खड़ा कर पाते हैं। उन्हें लगता है कि वे जिस रास्ते पर चल रहे हैं, वह भी मसीह-विरोधियों का मार्ग है, उन्हें सर्वनाश की कगार तक पहुँचने से खुद को रोकना चाहिए, फौरन परमेश्वर के आगे पश्चात्ताप करना चाहिए और अपने व्यक्तिगत रुतबे और छवि पर ध्यान देना बंद कर देना चाहिए; उन्हें लगता है कि उन्हें सभी चीजों में परमेश्वर की बड़ाई करनी चाहिए, उसके लिए गवाही देनी चाहिए, लोगों को अपने दिलों में परमेश्वर के लिए जगह बनाने के लिए मनाना चाहिए और परमेश्वर को महान मानकर उसका सम्मान करना चाहिए—उन्हें लगता है कि सिर्फ तभी उनके दिल को सच्ची शांति मिल सकेगी। ऐसा करने वाला व्यक्ति ही सत्य से प्रेम करता है और उसे स्वीकार कर सकता है। अगर कोई व्यक्ति मसीह-विरोधी की प्रकृति का है तो मसीह-विरोधियों को उजागर करने वाले शब्द सुनकर भी वह अपने दिल में बेचैनी महसूस करेगा, लेकिन वह परमेश्वर के वचनों के न्याय और ताड़ना को स्वीकार नहीं कर पाएगा या अपना दिल खोलकर अपने भ्रष्ट स्वभाव को उजागर नहीं कर पाएगा। इससे स्पष्ट होता है कि वह सत्य को स्वीकार नहीं कर सकता है और सच्चा पश्चात्ताप करना उसके लिए नामुमकिन है। वह अपने रुतबे का दावा करता रहेगा, रुतबे के फायदों का आनंद लेता रहेगा और परमेश्वर के चुने हुए लोगों द्वारा अपनी आराधना और सम्मान किए जाने का आनंद लेता रहेगा। इसकी वजह से वे सभी लोग सच्चे मार्ग और परमेश्वर के वचनों से भटक जाते हैं जिन्हें यह व्यक्ति गुमराह कर चुका है; ये लोग परमेश्वर से दूर हो जाते हैं और इस व्यक्ति का अनुसरण करने लगते हैं। लेकिन फिर भी यह व्यक्ति बिल्कुल आत्मचिंतन नहीं करता है। इस बात से अनजान कि वह पहले से ही खतरे में पड़ चुका है, वह अब भी अपने बारे में अच्छी राय रखता है और दूसरों को गुमराह करना और उनके दिल जीतना जारी रखता है। जब तक लोग उसकी बातों पर ध्यान देते हैं और उसकी आज्ञा मानते हैं, तब तक चाहे वे लोग अपने कर्तव्यों को करने में कितने भी बेपरवाह या गैर-जिम्मेदार क्यों ना हों, वह इसे देखकर भी अनदेखा कर देगा। इतना ही नहीं, वह इन जाहिल, बेवकूफ लोगों द्वारा अपनी आराधना और सम्मान किए जाने से प्रसन्न होगा और किसी को भी उन्हें उजागर करने या पहचानने की अनुमति नहीं देकर उनकी रक्षा करता रहेगा। क्या ऐसा करके मसीह-विरोधी अपने लिए एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना नहीं कर रहा है? मसीह-विरोधी वास्तविक कार्य नहीं करता है, वह समस्याओं को सुलझाने के लिए सत्य पर संगति नहीं करता है, वह परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने और सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने में लोगों का मार्गदर्शन नहीं करता है। वह सिर्फ रुतबे, शोहरत और फायदों के लिए कार्य करता है, उसे सिर्फ खुद को स्थापित करने, लोगों के दिलों में अपनी जगह सुरक्षित रखने और हर किसी से अपनी आराधना करवाने, अपना सम्मान करवाने और हर समय अपना अनुसरण करवाने की परवाह रहती है; वह इन्हीं लक्ष्यों को प्राप्त करना चाहता है। इसी तरह से मसीह-विरोधी लोगों के दिल जीतने और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नियंत्रित करने का प्रयास करता है—क्या कार्य करने का यह तरीका दुष्ट नहीं है? यह बहुत ही घिनौना है! वह कुछ समय तक इसी तरीके से कार्य करता रहता है जिससे लोग उसके प्रति अच्छा व्यवहार करने, उस पर विश्वास करने और उस पर निर्भर रहने लगते हैं—लेकिन इसके क्या परिणाम होते हैं? ये लोग ना सिर्फ सत्य को समझने से चूक जाते हैं और अपने जीवन प्रवेश में प्रगति करने में असफल हो जाते हैं—बल्कि वे परमेश्वर के स्थान पर, मसीह-विरोधी को अपने आध्यात्मिक माता-पिता के रूप में अपना लेते हैं और अपने दिलों में परमेश्वर का दर्जा मसीह-विरोधी को लेने देते हैं। जब किसी को कोई समस्या होती है तो वे अब परमेश्वर के सामने नहीं आते हैं और उन पर जो भी मुसीबत आती है, उसके लिए ना तो वे परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं, ना उस पर भरोसा करते हैं और ना ही वे उसके वचनों में सत्य की तलाश करते हैं। इसके बजाय, वे इस अगुआ के पास जाकर उससे इस बारे में पूछते हैं। वे अगुआ से उन्हें मार्ग दिखाने के लिए कहते हैं और इस अगुआ के लिए उनके दिलों में सम्मान लगातार बढ़ता जाता है और वे उस पर और ज्यादा निर्भर रहने लगते हैं। वे परमेश्वर की तलाश करने के तरीके से अनजान होते हैं और उन्हें नहीं मालूम होता है कि उसका सम्मान कैसे करना है और उस पर कैसे भरोसा करना है और सत्य और सिद्धांतों के अनुसार कार्य करने के बारे में तो उन्हें और भी कम पता होता है। चाहे उन पर कोई भी मुसीबत क्यों ना आए, वे बेसब्री से अगुआ द्वारा इस बारे में कोई फैसला लिए जाने का इंतजार करते हैं। अगुआ उन्हें जिस भी कार्य के बारे में कहता है कि उन्हें करना चाहिए, वे उसे करते हैं और अगुआ के जो भी निर्देश होते हैं वे उन सभी का पालन करते हैं। लोगों को इस हालत में लाकर क्या मसीह-विरोधी उन्हें गुमराह और नियंत्रित नहीं कर रहा है? जब परमेश्वर के चुने हुए लोगों के साथ कुछ होता है तो वे परमेश्वर से सत्य की तलाश क्यों नहीं करते हैं? परमेश्वर के चुने हुए लोग अपने अगुआ की बातों को जाँचे बिना या बिना भेद पहचाने आँख मूँदकर क्यों मानते चले जा रहे हैं? ऐसा क्यों है कि परमेश्वर के चुने हुए लोग अपने अगुआ के शब्दों को सुनते ही फौरन उनके प्रति समर्पण कर सकते हैं, लेकिन वे परमेश्वर के वचनों के साथ ऐसा नहीं कर सकते हैं? वे परमेश्वर की इच्छाएँ तलाशने के बजाय अपने अगुआ की इच्छाएँ तलाश रहे हैं; वे परमेश्वर की इच्छाओं पर ध्यान देने और सत्य को तलाशने और उसके प्रति समर्पण करने के बजाय अपने अगुआ के शब्दों पर ध्यान दे रहे हैं। वे परमेश्वर पर भरोसा करने, उसका सम्मान करने और उसके प्रति समर्पण करने के बजाय कार्य करने, उन्हें सहारा देने और उन्हें मजबूत बनाने, उनकी तरफ से बोलने और उनके लिए फैसले लेने के लिए अपने अगुआ पर भरोसा करते हैं। क्या इन तथाकथित अगुआओं ने लोगों के दिलों में एक खास जगह नहीं बना ली है? यह एक मसीह-विरोधी द्वारा लोगों को गुमराह किए जाने और उन्हें फँसाने का परिणाम है।
जब कुछ लोगों के साथ कुछ होता है और तुम उन्हें परमेश्वर से प्रार्थना करने के लिए कहते हो तो वे कहते हैं कि उनका आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है और उन्हें नहीं पता कि कैसे तलाश करनी है। अगर तुम उन्हें परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने के लिए कहते हो तो वे कहते हैं कि उनमें बिल्कुल काबिलियत नहीं है और वे महान प्रकाश को प्राप्त नहीं कर सकते हैं। अगर तुम उन्हें धर्मोपदेश सुनने के लिए कहते हो तो वे कहते हैं कि धर्मोपदेश की विषयवस्तु उनके लिए बहुत उदात्त और गहन है और यह उनकी समझ से परे है। वे मानते हैं कि अगर किसी व्यक्ति में कम काबिलियत है, उसमें कमजोरियाँ हैं और वह हर पहलू से नाकाफी है तो उसे अगुआओं की तलाश करने की जरूरत है। मान लो तुम उनसे पूछते हो कि, “तुम्हें अगुआ की तलाश करने की क्या जरूरत है? तुम परमेश्वर की तलाश क्यों नहीं करते हो और उसके सामने क्यों नहीं आते हो?” तो वह कहता है, “लोगों के लिए परमेश्वर के सामने आना बहुत मुश्किल है : हमारी कुछ धारणाएँ हैं, हमारी काबिलियत कम है और हम मंदबुद्धि और जड़ व्यक्ति हैं। परमेश्वर के वचन हमेशा इतने स्पष्ट नहीं होते हैं और उसके वचनों में ऐसे कोई उदाहरण नहीं दिए गए हैं जिनसे उनके मतलब साफ हो जाएँ। हमारा अगुआ हमें साफ-साफ बता देता है कि हमें क्या करना है, एक तरह से यह वाकई स्पष्ट होता है, बिल्कुल वैसा जैसे एक जमा एक दो होते हैं। जब परमेश्वर के वचनों को पढ़ने की बात आती है तो यह बहुत अच्छी बात है अगर मैं उन्हें ऊँची आवाज में पढ़ पाता हूँ, लेकिन मुझे उनका मतलब नहीं मालूम है और ना ही यह पता है कि परमेश्वर की मनुष्य से क्या अपेक्षाएँ है या परमेश्वर के इरादों के अनुसार कैसे अभ्यास करना है। मुझे जवाब कभी नहीं मिल सकते हैं। यह देखते हुए कि मैं एक कम काबिलियत वाला व्यक्ति हूँ, एक ऐसा व्यक्ति हूँ जिसका आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है, जो जड़ और बेवकूफ है, जो किसी भी चीज की असलियत नहीं जान पाता है, मुझे घटने वाली हर चीज के बारे में अपने अगुआ से पूछना पड़ता है और उसे मेरे लिए फैसले लेने देना पड़ता है। हमारा अगुआ मेरे लिए जवाब ढूँढ़ सकता है; मैं सिर्फ वही करता हूँ जो वह मुझे करने के लिए कहता है। मैं बस ऐसा ही व्यक्ति हूँ—सरल और आज्ञाकारी।” “सरल और आज्ञाकारी होने में कुछ गलत नहीं है, लेकिन क्या तुम्हारे अगुआ के पास वाकई सत्य वास्तविकता है? क्या वह वाकई ऐसा व्यक्ति है जो परमेश्वर के प्रति समर्पण करता है? अगर वह सिर्फ शब्दों और धर्म-सिद्धांतों का उपदेश दे सकता है और वह ऐसा व्यक्ति नहीं है जो परमेश्वर के प्रति समर्पण करता हो तो क्या तुम्हारा उसके प्रति समर्पण करने का मतलब है कि तुम परमेश्वर के प्रति समर्पण कर रहे हो?” तो वह कहता है, “हमारे अगुआ में बहुत काबिलियत है और वह जो कुछ भी कहता है वह सही है। इससे यह साबित होता है कि वह सत्य को समझता है और वह परमेश्वर के इरादों के अनुरूप है।” उसकी बातों में कुछ तार्किक सूझ-बूझ तो है, है ना? यह सब कुछ उसकी निजी भावनाओं पर आधारित है। वह कम काबिलियत वाला व्यक्ति है और वह भेद नहीं पहचान पाता, इसलिए अगर उसके अगुआ में वाकई कुछ गलत होता तो भी वह इसे नहीं देख पाता। ज्यादातर लोग मूर्ख, अज्ञानी और कम काबिलियत वाले होते हैं, लेकिन चलो फिलहाल हम उस कारण को नजरअंदाज कर देते हैं। इस चीज को अगुआ के लिहाज से देखते हुए, अगर लोग इन अभिव्यक्तियों को दर्शाते हैं, वे अपने अगुआ पर इस तरह से निर्भर रहते हैं और उसके प्रति इस तरह का नजरिया और रवैया रखते हैं तो क्या लोगों के दिल जीतने के लिए अगुआ की चालबाजियों और तरीकों से इसका कुछ संबंध नहीं है? (हाँ, है।) कितना बड़ा संबंध है? क्या इसका सीधा संबंध अगुआ के कार्य करने के तरीके से है? हम पूरे यकीन से यह कह सकते हैं कि यहाँ एक संपूर्ण, सीधा संबंध है और यह कि ये चीजें सौ प्रतिशत आपस में जुड़ी हुई हैं। मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ? ऐसे बहुत से अगुआ हैं जो अपनी व्यक्तिपरक इच्छा के लिहाज से लोगों को परमेश्वर के सामने लाना चाहते हैं, लेकिन चूँकि उन्हें सत्य की समझ नहीं है या उन्हें अलग-अलग वास्तविक समस्याओं को सुलझाना नहीं आता है, वे सिर्फ कुछ प्रशासनिक कार्यों और सामान्य मामलों को ही सँभाल सकते हैं और दिखावा करते हैं ताकि लोग उनका सम्मान करें, इसलिए वे अनजाने में मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चल पड़ते हैं। वे लोगों के दिल जीतने और उनके दिलों, व्यवहार और विचारों को नियंत्रित करने का प्रयास करते रहने के लिए अपने खुद के तरीकों और साधनों का उपयोग करते हैं, ताकि लोग अपने कार्यों, सत्य के अपने अभ्यास और अपने कर्तव्य निर्वहन के हर पहलू में वही करें जो वे कहते हैं। अगर लोग मसीह-विरोधी के प्रति समर्पण कर देते हैं और परमेश्वर के प्रति ईमानदारी से समर्पण नहीं करते हैं—अगर वे परमेश्वर के प्रति समर्पण करने की तुलना में मसीह-विरोधी के प्रति कहीं ज्यादा समर्पण करते हैं—और उनके कर्तव्य निर्वहन से कोई परिणाम नहीं निकलता है और वे मनुष्य के कर्तव्य अच्छी तरह से नहीं कर रहे हैं तो क्या ऐसे लोगों को बचाया जाएगा? लोगों के पास अगुआओं और कार्यकर्ताओं की आज्ञा मानने और उनके प्रति वफादार होने के लिए अभ्यास के “सटीक” मार्ग हैं, लेकिन जब परमेश्वर के प्रति समर्पण करने और उसके प्रति वफादार होने की बात आती है तो वे सटीक रूप से अभ्यास तक नहीं करते हैं—कोई भी ना तो इस पर संगति करता है और ना ही वास्तविक कार्य के इस पहलू को कोई करता है। सब लोगों को अपने खुद के रुतबे और प्रतिष्ठा के लिए बोलना और कार्य करना अच्छा लगता है और वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों से अपनी आज्ञा मनवाने और अपनी आराधना करवाने के लिए अपना दिमाग खपाते हैं और इस दिशा में कार्य करने के दौरान खाना-पीना और सोना तक भूल जाते हैं। जाहिर है कि वे कलीसिया में एक अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में राज करने के अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए यह सब करते हैं। इसका क्या कारण है? इसका कारण यह है कि सारी भ्रष्ट मानवता का स्वभाव एक जैसा होता है और उसकी प्राथमिकताएँ एक जैसी होती हैं। जब कोई तुम्हें कोई मार्ग दिखाता है और तुम उसका अभ्यास करने के लिए बेहद इच्छुक होते हो तो इसका मतलब यह नहीं है कि तुम सत्य का अभ्यास कर रहे हो—इसका मतलब है कि तुम उस व्यक्ति के कहे अनुसार कार्य कर रहे हो और उसकी आज्ञा मान रहे हो। तो, लोग परमेश्वर के सामने आने या उसे तलाशने के इच्छुक क्यों नहीं हैं? क्योंकि मनुष्य की मानवता में सत्य से मेल खाने वाली कोई चीज नहीं है। लोगों को जो अच्छा लगता है, वे जिस चीज के लिए तरसते हैं और वे अपने दिलों में जो रखते हैं, वह सब कुछ सत्य के विरुद्ध है, सत्य के विपरीत है। इसलिए, अगर तुम किसी के साथ कुछ होने पर उसे सत्य की तलाश करने के लिए कहते हो तो यह कार्य उसे उड़कर चाँद पर जाने से भी मुश्किल लगेगा—लेकिन अगर तुम उससे किसी व्यक्ति की बातों पर ध्यान देने के लिए कहते हो तो उसे वह कार्य बहुत आसान लगेगा। यह जाहिर है कि लोगों को नियंत्रित करने के लिए जब मसीह-विरोधी लोगों के दिल जीतने की तकनीक का उपयोग करते हैं तो वे बहुत जल्द ही परिणाम हासिल कर लेते हैं। चलते-चलते बस एक टिप्पणी करके वे किसी व्यक्ति को अपने बारे में अनुकूल राय बनाने के लिए मजबूर कर सकते हैं; सिर्फ एक सामान्य टिप्पणी से, जिसमें कोई इरादा या नजरिया मौजूद हो, वे किसी को उन्हें एक नए नजरिये से, एक नई रोशनी में देखने के लिए मजबूर कर सकते हैं। इससे प्रकट हो जाता है कि इन लोगों के अंदर क्या है। इसका मतलब है कि अगर तुम सत्य की खोज नहीं करते हो और इसके बजाय रुतबा और शक्ति हासिल करने का मार्ग अपनाते हो तो तुम जो भी करोगे उसका प्रभाव और परिणाम भ्रष्ट मानवजाति के हर सदस्य पर पड़ेगा, वह उन्हें सत्य मार्ग से मुँह फेर लेने, सत्य से दूर हो जाने, परमेश्वर से दूर हो जाने और परमेश्वर को अस्वीकार करने के लिए प्रेरित करेगा। इसका सिर्फ यही निष्कर्ष है, सिर्फ यही परिणाम है। इसे साफ-साफ देखा जा सकता है।
लोगों के दिल जीतने का प्रयास करने वाले मसीह-विरोधियों की पहली अभिव्यक्ति है थोड़ी-बहुत मदद करके लोगों को फुसलाना। ऐसा जरूरी नहीं है कि थोड़ी-बहुत मदद भौतिक चीजों के रूप में ही की जाए; इसमें एक विशाल श्रेणी शामिल है। कभी-कभी यह मदद विचारशील शब्द के रूप में होती है; कभी-कभी यह किसी की इच्छा या प्राथमिकता की पूर्ति के रूप में होती है; और कभी-कभी यह किसी के विचारों को महसूस करके ऐसी मीठी-मीठी बातों के रूप में होती हैं जो वह व्यक्ति सुनना चाहता है ताकि वह सोचे कि उसका अगुआ बहुत अच्छा और बहुत ही समझदार है। दूसरे शब्दों में, मसीह-विरोधी लोगों को नियंत्रित करने की अपनी गुप्त महत्वाकांक्षा को छिपाने के लिए सहनशीलता, प्रेम, जोश और तथाकथित विचारशीलता का ढेर लगा देते हैं। मिसाल के तौर पर, अगर भाई-बहनों ने कुछ अच्छी चीजें दान में दी हैं तो वे उनमें से कुछ चीजें उठाकर उन लोगों में बाँट सकते हैं जिनके साथ उनके अच्छे रिश्ते हैं। वे लोगों के दिल जीतने और उन्हें खरीदने के लिए ऐसी थोड़ी-बहुत मदद का उपयोग करते हैं। अगर कलीसिया में कोई कम मेहनत वाला, हल्का-फुल्का कार्य हो, जिसमें प्रतिकूल मौसम जैसे कि कड़ी धूप या बारिश, वगैरह के संपर्क में आने की जरूरत नहीं हो और जो किसी को सुर्खियों में आने का अवसर दे सकता हो तो वे किसी ऐसे व्यक्ति को यह कार्य करने के लिए भेज देते हैं जिसके साथ उनके अच्छे रिश्ते हैं। वे ऐसा क्यों कर पाते हैं? इसका आंशिक कारण यह है कि वे सहज रूप से सत्य से प्रेम नहीं करते हैं और सिद्धांतों के बिना क्रियाकलाप करते हैं। दूसरा कारण यह है कि वे यह अच्छा कर्तव्य उन लोगों के लिए बचाकर रखते हैं जिनके साथ उनके अच्छे रिश्ते होते हैं और फिर वे उन्हें कुछ मीठी बातें कहते हैं ताकि वे लोग उनके प्रति एहसानमंद महसूस करें। ऐसा करके वे इन लोगों के दिल जीतने का अपना लक्ष्य हासिल करते हैं। यह चाल सिर्फ छोटी-छोटी चीजें देने और जब-तब कोई मीठी बात कहने के बारे में नहीं है—इसमें एक इरादा, एक लक्ष्य निहित है। और वह लक्ष्य क्या है? इसका उद्देश्य लोगों के दिलों में अपने लिए अनुकूल मूल्यांकन छोड़ना है। अगर दस लोगों का एक समूह है तो वे शुरुआत उनके मूल्यांकन से करेंगे : “इन दस में से दो लोग ऐसे हैं जो लोगों की खुशामद करने में अच्छे हैं। मुझे उन्हें लेकर परेशान होने की जरूरत नहीं है, वे वैसे ही मेरी खुशामद करेंगे। फिर, यहाँ दो भ्रमित लोग हैं; अगर मैं उन्हें कुछ लालच दूँ तो वे बिल्कुल वही करेंगे जो मैं उनसे करने के लिए कहूँगा। और दो लोग ऐसे हैं जिनमें कुछ काबिलियत है; जब तक मैं कुछ उदात्त धर्मोपदेश देता रहूँगा और उनसे कुछ प्रभावशाली शब्द कहता रहूँगा, वे मेरे आगे झुके रहेंगे। इसके बाद, तीन ऐसे लोग हैं जो सत्य की खोज करने वाले लगते हैं, इसलिए उन्हें सँभालना थोड़ा मुश्किल होगा। मुझे उनकी असली स्थिति को साफ-साफ समझना होगा, देखना होगा कि उनकी जरूरतें क्या हैं और फिर उन्हें संतुष्ट करना होगा। अगर इनमें से कोई मुझ पर विश्वास नहीं करता है और मेरी आज्ञा नहीं मानता है तो मैं आखिर में उससे निपट लूँगा और उसे बाहर कर दूँगा। भले ही आखिरी व्यक्ति मेरे खिलाफ हो जाए, वह मुझे सिर्फ एक हद तक ही परेशान कर सकता है और उससे निपटना आसान होगा।” एक सरसरी निगाह डालकर ही वे यह तय कर सकते हैं कि समूह में वे किसको सँभाल सकते हैं और किसको नहीं। वे यह बात इतनी जल्दी कैसे जान सकते हैं? वे ऐसा इसलिए कर पाते हैं क्योंकि उनके दिलों में शैतानी राजनीति और फलसफे भरे हुए हैं। उनके व्यवहार के सिद्धांत और उनके आचरण करने और दूसरों से बातचीत करने के तरीके लोगों के साथ मैत्रीपूर्ण रिश्ते रखने या सामान्य पारस्परिक संबंध रखने के बारे में नहीं हैं, ये दूसरों की मदद करने या उनके लिए आपूर्ति करने या उन्हें शिक्षा देने या दूसरों के साथ बराबरी का व्यवहार करने या मामलों को सँभालने और दूसरे लोगों से निपटने के लिए सत्य सिद्धांतों का उपयोग करने के बारे में नहीं हैं। उनमें ये सिद्धांत बिल्कुल नहीं होते हैं। तो उनके सिद्धांत क्या हैं? “हर व्यक्ति अपने दिल में मुझे कैसा मानता है? मुझे उन लोगों के बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है जो मेरे बारे में ऊँची राय रखते हैं, जिन्होंने मुझे अपने दिल में बसाकर रखा है और जो मुझसे डरते हैं, मेरा सम्मान करते हैं, और मुझे पूजते हैं। जो मुझे नहीं पूजते हैं, उनके साथ आगे मुझे ऐसा व्यवहार करना चाहिए और जो मुझे पूजते हैं, लेकिन उन्होंने अभी तक मेरे आगे समर्पण नहीं किया है, उनके साथ मुझे ऐसा व्यवहार करना चाहिए। और, जहाँ तक उन लोगों की बात है, जो आम तौर पर दूसरों पर ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं, उनके साथ मुझे ऐसा व्यवहार करना चाहिए।” उनके पास लोगों को नियंत्रित करने के लिए एक चरण-दर-चरण प्रक्रिया होती है। वे इन चरणों और विचारों को क्यों उत्पन्न करते हैं? क्योंकि उनके दिलों में ताकत हासिल करने की अनियंत्रित इच्छा है। अगर उन्हें किसी समूह में दूसरे लोगों के साथ मैत्रीपूर्ण ढंग से रहना पड़े तो वे काफी असंतुष्ट और अपमानित महसूस करेंगे। तो उनका लक्ष्य क्या है? हर किसी को अपने दिल में उनके लिए स्थान बनाने के लिए मजबूर करना—अगर सबसे पहला स्थान नहीं तो फिर दूसरा स्थान ही सही और अगर दूसरा स्थान नहीं तो फिर तीसरा ही सही। दूसरों के साथ समान स्तर पर बातचीत करना उन्हें मंजूर नहीं है। अगुआ होने के नाते, क्या ये लोग दूसरों के अलग विचारों पर ध्यान दे सकते हैं? नहीं दे सकते। वे जो भी करते हैं वह किस चीज पर केंद्रित होता है? (ताकत।) वे जो भी करते हैं वह ताकत पर केंद्रित होता है। वे ऐसी कौन-सी चीजें करते हैं जो ताकत पर केंद्रित होती हैं? सबसे पहले, वे तुम्हारे दिल की छानबीन करते हैं और उस पर अपनी पकड़ बनाते हैं; मतलब, सबसे पहले, वे तुम्हें खरीद लेते हैं और तुम्हें उनके आगे अपना दिल खोलने पर मजबूर करते हैं, वे तुमसे तुम्हारी सच्ची भावनाएँ उगलवा लेते हैं और उनके बारे में तुम्हारी सच्ची राय का पता लगा लेते हैं। इसे समझ लेने के बाद वे हर स्थिति के अनुसार अपने तरीके अपनाते हैं और हर मामले पर अलग-अलग कार्य करते हैं। वे लोगों के दिलों को नियंत्रित करना चाहते हैं और जब उन्हें कोई ऐसा व्यक्ति मिलता है जो उनसे सहमत नहीं होता है, कोई ऐसा जो उनका सम्मान नहीं करता है, कोई ऐसा जो उनके प्रति वफादार नहीं होता है, तब वे उस व्यक्ति पर वार करते हैं और उसे पीड़ा पहुँचाते हैं। इसलिए, लोगों के दिल जीतने में सत्ता ही मसीह-विरोधियों की प्रेरणा है। और सत्ता हासिल करने के लिए वे कौन-से तरीके और तकनीकें अपनाते हैं? वे लोगों के दिलों को अच्छी तरह समझ लेते हैं, उन पर अपनी पकड़ बनाते हैं और उन्हें नियंत्रित करते हैं। लोगों के विचार किससे नियंत्रित होते हैं? उनके दिल और उनकी प्रकृति से। जब किसी व्यक्ति के दिल को कोई मसीह-विरोधी नियंत्रित कर लेता है तो उसके इरादे और विचार से कोई फर्क नहीं पड़ता। एक बार जब मसीह-विरोधी किसी के दिल को अपने नियंत्रण में कर लेता है तो फिर वह उस व्यक्ति की पूरी शख्सियत को नियंत्रित करने लगता है।
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