मद चौदह : वे परमेश्वर के घर को अपना निजी अधिकार क्षेत्र मानते हैं (खंड तीन)
II. मसीह-विरोधी परिस्थितियों में जोड़-तोड़ करते हैं
पहले, हमने मसीह-विरोधियों द्वारा परमेश्वर के घर को अपना निजी अधिकार क्षेत्र मानने की पहली अभिव्यक्ति के बारे में सहभागिता की थी : शक्ति पर एकाधिकार जमाना। शक्ति पर एकाधिकार जमाने के संबंध में, हमने मुख्य तौर पर इस विशिष्ट विषयवस्तु पर सहभागिता की थी कि किस प्रकार मसीह-विरोधी शक्ति प्राप्त करते हैं, उसे प्राप्त करने के बाद वे कैसे अपने रुतबे को स्थिर करते हैं और उस शक्ति को आगे और समेकित करते हैं और अंत में, उस शक्ति का कैसे उपयोग करते हैं। शक्ति पर एकाधिकार जमाने के अलावा, परमेश्वर के घर को अपना निजी अधिकार क्षेत्र मानने वाले मसीह-विरोधियों का दूसरा ठोस अभ्यास है परिस्थितियों में जोड़-तोड़ करना। परिस्थितियों में जोड़-तोड़ करने के शाब्दिक अर्थ को समझना आसान होना चाहिए, तो “परिस्थितियाँ” शब्द का क्या मतलब है? जब मसीह-विरोधी शक्ति पर अपना एकाधिकार बना लेता है, अपना अधिकार क्षेत्र स्थापित कर लेता है और अपने खुद के कट्टर अनुयायी, घनिष्ठ मित्र और प्रभाव क्षेत्र एकत्र कर लेता है, तो क्या वह दूसरों को अपने कार्य में हस्तक्षेप करने की अनुमति दे सकता है? क्या वह दूसरों को उन मामलों और प्रभाव क्षेत्र में शामिल होने या हस्तक्षेप करने की अनुमति दे सकता है जिनकी वह खुद देखरेख करता है? (वह इसकी अनुमति नहीं देता है।) मसीह-विरोधी के लिए शक्ति ही उसका जीवन है। उसके प्रभाव क्षेत्र में सब कुछ उसके हुक्म से होना चाहिए। उसके प्रभाव क्षेत्र में चाहे कुछ भी होता रहे, इसमें शामिल लोग और मामले और साथ ही मामलों का अंतिम परिणाम, सब कुछ उसके द्वारा संचालित और नियंत्रित होना चाहिए। यह सब कुछ उसकी इच्छाओं के अनुरूप होना चाहिए और उसे कोई नुकसान हुए बिना इसे उसकी जरूरतें पूरी करनी चाहिए। जैसे, अगर वह किसी विशेष मामले में हस्तक्षेप नहीं करता है या उसमें जोड़-तोड़ नहीं करता है, और उस मामले को स्वाभाविक रूप से अपने आप आगे बढ़ने देता है, तो हो सकता है कि इससे उसकी बदनामी हो या कोई उसकी रिपोर्ट कर दे और उसे बर्खास्त कर दिया जाए। ऐसा होने पर उसका रुतबा खतरे में पड़ सकता है और फिर उसके पास जो शक्ति है वह छू-मंतर हो सकती है। इसलिए, मसीह-विरोधी के लिए कलीसिया में होने वाले छोटे-बड़े सभी तरह के मामलों को खुद ही सँभालना जरूरी होता है। इन मामलों के साथ उसकी प्रतिष्ठा और रुतबा ही नहीं उसकी शक्ति भी जुड़ी हुई है। जहाँ तक उसकी शक्ति से संबंध न रखने वाले मामलों की बात है, वह उनकी छानबीन न करने या उन्हें पूरी तरह अनदेखा कर देने का फैसला ले सकता है। खास तौर पर परमेश्वर के घर के कार्य, भाई-बहनों के जीवन प्रवेश, कलीसियाई जीवन और ऐसे ही कई अलग-अलग मामलों के संबंध में, अगर ये चीजें उसके रुतबे और शक्ति को प्रभावित नहीं करतीं और अगर ये ऊपरवाले के साथ उसकी बातचीत से संबंधित नहीं हैं, तो वह उन्हें लेकर न परेशान होता है, न उनकी छानबीन करता है और न ही उनकी परवाह करता है। मिसाल के तौर पर, सुसमाचार दल द्वारा प्राप्त लोगों की मासिक संख्या उसके लिए बहुत जरूरी है क्योंकि यह उसके रुतबे को प्रभावित करती है। अगर हर महीने सूचित की गई संख्या उसके रुतबे को सुनिश्चित कर सकती है, तो वह अपने रुतबे की रक्षा करने के उद्देश्य से उस संख्या को प्राप्त करने के लिए अत्यधिक प्रयास करेगा, जबकि दूसरे मामले उसके लिए अप्रासंगिक बने रहेंगे। जैसे, मान लो कि वह जिस क्षेत्र की देखरेख करता है उसमें सामान्य परिस्थितियों में एक महीने में एक सौ लोग प्राप्त होने चाहिए। लेकिन, अगर परिवेश इसकी अनुमति नहीं दे रहा हो, उस महीने कुछ खास परिस्थितियाँ हों या अब भी कुछ लोगों की जाँच अवधि में होने के कारण प्राप्त लोगों की संख्या एक सौ से कम हो, तो मसीह-विरोधी इस मामले में प्रयास करेगा और परेशान हो जाएगा। वह किस चीज को लेकर परेशान है? क्या वह बोझ तले दबा हुआ और परेशान इसलिए महसूस करता है क्योंकि वह देख रहा है कि परमेश्वर के सुसमाचार को फैलाने का काम सुचारू रूप से नहीं चल रहा है? क्या ऐसा है कि सुसमाचार का प्रचार करने वाले लोगों में बोझ की समझ नहीं है और वे बेपरवाह हैं और उसे इस बात की चिंता है कि वह उन्हें किस तरह से सींचे और इसे हल करे? या उसे यह चिंता है कि सुसमाचार का प्रचार करने के लिए पर्याप्त श्रमशक्ति नहीं है तो इसे कैसे समायोजित किया और बढ़ाया जाना चाहिए? नहीं, वह इन चीजों को लेकर परेशान नहीं है। वह यह सोचकर परेशान है कि वह ऊपरवाले को अपने छलपूर्ण तरीकों के बारे में पता चलने दिए बिना इस संख्या को एक सौ तक कैसे लेकर जाए। यदि असली संख्या सौ के बजाय सिर्फ अस्सी है और वह ईमानदारी से इसकी सूचना देता है, तो हो सकता है कि ऊपरवाला परिस्थिति की छानबीन करने और ज्यादा जानकारी हासिल करने के लिए किसी को भेज दे, तो फिर वह इस संख्या को कैसे सूचित करे ताकि ऊपरवाला कोई प्रतिक्रिया न दे। तो वह अट्ठानवे लोगों की रिपोर्ट देता है। कोई कहता है, “तुम ऐसे हेर-फेर नहीं कर सकते; यह धोखाधड़ी है, यह अस्वीकार्य है।” जवाब में वह कहता है, “सब ठीक है। यहाँ के सारे फैसले मैं लेता हूँ; अगर कुछ हुआ, तो मैं उसकी जिम्मेदारी लूँगा।” उसने खासकर यही संख्या क्यों बताई? क्या इसके पीछे कोई और गहरा मतलब है? क्या उसने इस पर बहुत ध्यान से सोच-विचार किया था? हाँ, उसने किया था। असली संख्या सिर्फ अस्सी होने पर अगर उसने एक सौ लोगों की सूचना दी होती, तो यह बहुत बड़ा अंतर हो जाता, जिससे बाद में इस झूठ की सफाई देना मुश्किल हो जाता। लेकिन, जब वह अट्ठानवे की सूचना देता है, तो हालाँकि ऊपरवाला देखता है कि यह संख्या सौ से नीचे है, लेकिन यह एक जायज संख्या लगती है और इसलिए, ऊपरवाले की तरफ से छानबीन की कोई कार्यवाही नहीं की जाती, जिससे उसके रुतबे का सुरक्षित रहना सुनिश्चित हो जाता है। कभी-कभी जब वह एक सौ लोग प्राप्त कर लेता है, तो वह दो सौ की सूचना देने की हिम्मत करता है और अगर ऊपरवाला किसी को छानबीन करने के लिए भेजता है, तो उसके पास इससे निपटने के तरीके हैं। वह दावा करता है कि अतिरिक्त एक सौ फिलहाल जाँच कर रहे हैं और उन्हें अगले महीने प्राप्त कर लिया जाएगा। अगर ऊपरवाला इसकी छानबीन करने के लिए किसी को नहीं भेजता है, तो वह अपने योगदानों का दिखावा करने का कोई न कोई तरीका ढूँढ़ लेता है। कभी-कभी, अगर उसने एक महीने में एक भी व्यक्ति प्राप्त नहीं किया है, तो वह तीस या पचास लोग प्राप्त करने की झूठी सूचना तक दे देता है, और फिर अगले महीने इसकी भरपाई करने के लिए कोई तरीका ढूँढ़ लेता है। संक्षेप में कहें तो जब सुसमाचार का प्रचार करने के द्वारा प्राप्त लोगों की संख्याएँ सूचित करने की बात आती है, तो मसीह-विरोधी उनमें हेर-फेर कर सकता है, उनके बारे में झूठ बोल सकता है, धोखाधड़ी कर सकता है और छलपूर्ण तरीकों का उपयोग कर सकता है। कोई संख्या कैसे सूचित की जाती है और क्या संख्या सूचित की जानी है, इसे सीधे मसीह-विरोधी निर्देशित करता है। क्या यह परिस्थितियों में जोड़-तोड़ करना नहीं है?
मसीह-विरोधी अपने रुतबे और शक्ति का उपयोग निरंतर परमेश्वर के चुने हुए लोगों द्वारा अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में हस्तक्षेप करने और विघ्न डालने के लिए करता है। वह ऐसे हर किसी का दमन कर देता है और उसे निकाल देता है जो सिद्धांतों के आधार पर कार्य करता है और अपना कर्तव्य करने में प्रभावकारी है। इस तरह व्यवहार करने के पीछे उसका क्या उद्देश्य है? परिस्थितियों में जोड़-तोड़ करना; वह सारा नियंत्रण अपने हाथों में रखता है और अपने अधीन लोगों को दबाता है और ऊपरवाले की आँखों में धूल झोंकता है। परिस्थितियों में जोड़-तोड़ करने के पीछे उसका क्या लक्ष्य है? उसका लक्ष्य सत्य को प्रकट होने से रोकना, लोगों को सत्य जानने से रोकना, ऊपरवाले को धोखा देना, नीचे वह जो कार्य कर रहा है उसकी असली परिस्थिति और उसने कोई असल कार्य किया या नहीं और अपना कार्य कैसे किया इसे छिपाना है। परिस्थितियों में जोड़-तोड़ करने में उसका लक्ष्य तथ्यों पर पर्दा डालना, सत्य को ढकना और अपने बुरे इरादों को छिपाना है और साथ ही, उसका लक्ष्य अपने बुरे कर्मों, उसके अत्यधिक उपेक्षापूर्ण कार्यकलापों और इस बारे में सत्य को भी छिपाना है कि वह किस तरह कोई असली कार्य न तो करता है और न ही कर सकता है, वगैरह। जैसे, जब परमेश्वर के घर को कुछ पैसों की जरूरत पड़ती है और उससे पूछा जाता है कि उसकी कलीसिया के पास कितना चढ़ावा है, तो मसीह-विरोधी पहले पूछता है कि परमेश्वर के घर को कितने पैसों की जरूरत है। अगर तुम कहते हो कि तुम्हें कुछ हजार युआन चाहिए, तो वह दावा करता है कि उसके पास कुछ सौ युआन ही हैं; अगर तुम कहते हो कि तुम्हें दसियों हजार की जरूरत है, तो वह कहता है कि उसके पास बस कुछ हजार ही हैं। वास्तव में, कलीसिया में उसके पास चढ़ावे के दसियों हजार युआन हैं और वह उन्हें अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहता। क्या वह अपने मन में बुरे इरादे नहीं रख रहा है? वह क्या करना चाहता है? वह अपने खुद के उपयोग के लिए इन चढ़ावों पर कब्जा कर लेना चाहता है। क्या इसे परिस्थितियों में जोड़-तोड़ करना कह सकते हैं? (हाँ।) मसीह-विरोधी परिस्थितियों में इस हद तक जोड़-तोड़ करता है कि वह चढ़ावों को भी अपने हाथ से नहीं जाने देता। अगर तुम उससे पूछते हो कि क्या उसकी कलीसिया में कोई लेखन, संगीत या वीडियो उत्पादन में कुशल है, तो हो सकता है कि वह कहे कि “हमारे पास लेखन में कुशल एक व्यक्ति है, वह अठहत्तर साल का है और पहले पत्रकार था, अब उसे पेट की गंभीर बीमारी है।” सच तो यह है कि यह व्यक्ति सिर्फ तीस-पैंतीस साल का युवा है और उसे पेट की कोई गंभीर बीमारी नहीं है। मसीह-विरोधी अपनी पकड़ ढीली क्यों नहीं करता है? वह झूठी जानकारी क्यों देता है? वह परिस्थितियों में जोड़-तोड़ करना चाहता है। उसका मानना है कि ऐसी प्रतिभा को अपने हाथ से जाने देने से उसके राज पर प्रभाव पड़ेगा; वह इन प्रतिभाशाली लोगों को अपने पास बनाए भी रखना चाहता है। क्या ये प्रतिभाशाली लोग वाकई उसके हैं? (नहीं।) तो फिर वह उन्हें अपने हाथ से जाने क्यों नहीं देता है? जब परमेश्वर के घर को उनकी जरूरत है, तो फिर वह इन कुशल लोगों को प्रदान क्यों नहीं करता है और जानकारी में हेर-फेर करने की हद तक क्यों पहुँच जाता है? वह अपना रुतबा सुरक्षित रखने के लिए लोगों को गुमराह करना चाहता है—वह वाकई परिस्थितियों में जोड़-तोड़ कर रहा है। वह न तो यह पूछता है कि क्या इसमें शामिल पक्ष ये कर्तव्य निभाने के इच्छुक हैं और न ही वह परमेश्वर के घर को सच्चाई से इन लोगों की परिस्थितियाँ प्रस्तुत करता है। इसके बजाय, वह उन्हें अपने उपयोग के लिए रख लेता है और अगर वह उनका उपयोग न भी करे, तो भी वह उन्हें परमेश्वर के घर को प्रदान नहीं करता है। मिसाल के तौर पर, अगर परमेश्वर के घर को कलीसिया से वीडियो प्रोडूसर की जरूरत है, तो मसीह-विरोधी यह देखकर सोचता है कि “वीडियो बनाने में कुशल व्यक्ति प्रदान करना है—क्या मैं इतना अच्छा अवसर यूँ ही छोड़ सकता हूँ? हर इंसान सिर्फ अपने फायदे के बारे में सोचता है : मेरी बेटी, बेटा और कुछ रिश्तेदार वीडियो प्रोडक्शन के बारे में थोड़ा-बहुत जानते हैं, इसलिए मैं उन्हें प्रदान कर दूँगा, चाहे वे परमेश्वर के घर की जरूरतें पूरी करते हों या न करते हों।” जब उसे लोग प्रदान करने जैसा कोई अच्छा अवसर मिलता है, तो वह अपने रिश्तेदारों और मित्रों को प्रधानता देता है और बाहरवालों के लिए कुछ नहीं छोड़ता। क्या यह परिस्थितियों में जोड़-तोड़ करना नहीं है?
ऊपर बताई गईं मिसालों के आधार पर, मसीह-विरोधी द्वारा परिस्थितियों में जोड़-तोड़ करने का ठीक-ठीक क्या मतलब है? क्या इसका मतलब यह नहीं है कि मसीह-विरोधी दृढ़तापूर्वक संपूर्ण प्रभुता दिखाकर सभी व्यक्तियों और चीजों को नियंत्रित करता है और उनमें जोड़-तोड़ करता है? सब कुछ उसके हाथ में है और हर चीज में उसी का फैसला अंतिम होता है; बोर्ड को नियंत्रित करने, पर्दे के पीछे से निर्देश देने और जोड़-तोड़ करने की भूमिका सिर्फ वही निभाता है। यही परिस्थितियों में जोड़-तोड़ करना है। जब ऊपरवाला हालात को समझने के लिए उसकी कलीसिया में किसी को भेजता है और वह व्यक्ति कुछ लोगों से बात करना और यह देखना चाहता है कि भाई-बहनों का जीवन प्रवेश और उनके कर्तव्यों का निर्वहन कैसा चल रहा है, और यह पता करना चाहता है कि क्या परमेश्वर के वचन की किताबों और धर्मोपदेशों की रिकॉर्डिंग जैसी सामग्रियाँ परमेश्वर के चुने हुए सभी लोगों में बाँट दी गई हैं, तो मसीह-विरोधी कहता है, “कोई बात नहीं, मैं तुम्हें एक भाई और एक बहन के घर ले जाऊँगा।” ये दो लोग कौन हैं? क्या ये दोनों लोग मसीह-विरोधी के अधिकार क्षेत्र में शामिल नहीं हैं? (हाँ, हैं।) इन दोनों में से एक उसकी छोटी बहन है और दूसरा व्यक्ति उसकी पत्नी का छोटा भाई है। जब वह ऊपरवाले की तरफ से भेजे गए व्यक्ति को इन दोनों घरों में लेकर जाता है, तो ये दोनों लोग कहते हैं, “हमारा कलीसियाई जीवन बहुत अच्छा है और हमारे पास सभी प्रकार के धर्मोपदेश और सहभागिता और साक्ष्य के वीडियो हैं। हमारी कलीसिया के अगुआ कलीसिया के कार्य के सिलसिले में कुछ दिनों के लिए बाहर गए हुए हैं और अभी तक घर नहीं लौटे हैं।” चाहे कोई भी उसकी कलीसिया जाए, असली हालात के बारे में उसे जरा-सी भी भनक नहीं लग पाती है। मसीह-विरोधी कलीसिया में असली हालात के बारे में सब कुछ छिपा देता है, जैसे कि जो समस्याएँ पैदा हुई हैं, वे कुकर्मी जो विघ्न-बाधाएँ उत्पन्न कर रहे हैं, कौन अपने कर्तव्य अनमने ढंग से कर रहा है, किन कार्यों में भूल हुई है, वगैरह। वहाँ जाने पर तुम्हें जो दृश्य नजर आते हैं वे सिर्फ वही होते हैं जो देखने में सुखद हैं—यह पूरी तरह से झूठा दिखावा है। यहाँ सिर्फ एक बात पर ध्यान देना चाहिए : अगर ऊपरवाले की तरफ से भेजा गया व्यक्ति यह पूछता है कि क्या कलीसिया के चढ़ावे को रखने के लिए कोई उचित जगह है और क्या कुछ चढ़ावों को वहाँ से ले जाने की जरूरत है, तो मसीह-विरोधी जल्दी से कहता है कि कलीसिया का चढ़ावा ज्यादा नहीं है। सिर्फ चढ़ावों से जुड़े हालात की बात छोड़कर वह दूसरे सभी कार्यों के संबंध में सकारात्मक तरीके से बात करता है—इससे पहले कि व्यक्ति कुछ कह पाए वह बातचीत ही बंद कर देता है। मसीह-विरोधी कलीसिया के उन कर्मियों को नियंत्रित करता है जो सभी तरह के कर्तव्य पूरे करने के लिए उपयुक्त हैं और ऐसे कुछ लोगों को प्रदान कर देता है जिन्हें वह पसंद करता है या जो परमेश्वर के घर में कर्तव्य करने की शर्तों को पूरा नहीं करते हैं, खास तौर पर ऐसे लोगों को प्रदान करता है जिनमें बुरी मानवता है और जिनमें कोई बुरी आत्मा कार्य कर रही है या उन दूसरे लोगों को प्रदान कर देता है जिनमें बुनियादी तौर पर आध्यात्मिक समझ नहीं है, जिनमें घिनौनी मानवता है, जो अनमने ढंग से अपने कर्तव्य करते हैं, परमेश्वर में उनकी आस्था की बुनियाद नहीं है और जो बिल्कुल अविश्वासियों जैसे हैं। अनमने तरीके से अपने कर्तव्य करने के अलावा ये लोग विघ्न-बाधाएँ और गड़बड़ियाँ भी उत्पन्न करते हैं और अनियंत्रित व्यवहार करते हैं और इनमें से कुछ लोग कष्ट नहीं झेल पाने के कारण परमेश्वर का घर छोड़ देना चाहते हैं। कुछ लोग तो निराधार अफवाहें भी फैलाते हैं और धारणाओं का प्रचार करते हैं और दूसरे लोग अपने कर्तव्यों को ठीक से पूरा नहीं करते हैं और टेलीविजन ड्रामा या दूसरे बकवास वीडियो देखकर अपने दिन बिताते हैं। और फिर अंत में क्या होता है? इनमें से कुछ लोगों को निकाल दिया जाता है। निकाल दिए जाने वालों में से पंचानवे प्रतिशत से ज्यादा लोगों में बुरी मानवता होती है। उनकी मानवता कितनी बुरी है? अत्यंत बुरी है—उनमें मानवता की कमी है और कुछ तो परमेश्वर में बिल्कुल विश्वास नहीं करते हैं। ये लोग कहाँ से आए? क्या ये सभी कलीसिया की तरफ से प्रदान नहीं किए गए थे? चूँकि ये कलीसिया द्वारा प्रदान किए गए थे, इसलिए जिन लोगों ने इन्हें प्रदान किया था उनमें जरूर कोई समस्या है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इनमें से कुछ लोग मसीह-विरोधी हो सकते हैं और प्रदान किए गए लोग मसीह-विरोधियों के रिश्तेदार, यार-दोस्त या कट्टर अनुयायी हो सकते हैं। क्या यही बात नहीं है? क्या जिस व्यक्ति में वाकई मानवता है और थोड़ा-सा जमीर है, वह प्रतिभाशाली व्यक्ति प्रदान करने के जरूरी मुद्दे को ध्यान से सँभाल सकता है? क्या वह थोड़ा-सा जिम्मेदार हो सकता है? क्या वह अपने कुछ स्वार्थी इरादों को दूर कर सकता है? जिस व्यक्ति में मानवता और जमीर है वह बिल्कुल ऐसा कर सकता है और सिर्फ एक प्रकार का व्यक्ति ही ऐसा नहीं कर सकता और वह है मसीह-विरोधी। वे सारी अच्छी चीजों को अपने लिए जमा करना चाहते हैं और ऐसी हर चीज के साथ सहयोग करने को अस्वीकार और इनकार कर देते हैं जो उनके लिए फायदेमंद नहीं है—मसीह-विरोधी ऐसे होते हैं।
कलीसिया में पूरा नियंत्रण रखने और हर मामले में सिर्फ अपनी चलाने की हमेशा चाह रखने के अलावा भी मसीह-विरोधी के परिस्थितियों में जोड़-तोड़ करने का एक और इससे भी ज्यादा घिनौना पहलू है। क्या अपने कट्टर अनुयायियों के साथ साठ-गाँठ करने वाले मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं के आगे समर्पण कर सकते हैं, अपने कर्तव्य सही तरीके से कर सकते हैं, परमेश्वर के घर के कार्यों को सँभाल सकते हैं और अपनी जिम्मेदारियाँ और दायित्व निभा सकते हैं? (नहीं, वे ऐसा नहीं कर सकते।) इसलिए मैंने कहा कि वे आपस में साठ-गाँठ कर रहे हैं। यह कह देने के बाद कि वे आपस में साठ-गाँठ करते हैं, यह सुस्पष्ट हो जाता है कि वे सब साथ मिलकर जो भी कहते हैं और करते हैं उसमें बेईमान लेन-देन शामिल है। ऊपर से ये लोग मिलनसार, वरिष्ठ लोगों का आदर करने वाले और सुव्यवस्थित प्रतीत होते हैं और एक दूसरे के प्रति अत्यंत प्रेममय, शालीन और आदरपूर्ण व्यवहार करने वाले प्रतीत होते हैं, और साथ ही वे विनम्र और चरित्रवान भी लगते हैं। लेकिन वास्तव में यह सब सतही, छली और पाखंडपूर्ण है। वे इतने शिष्ट कैसे हो सकते हैं और एक दूसरे के साथ अत्यंत आदर और विनम्रता से व्यवहार कैसे कर सकते हैं? इसका एक कारण है। आपस में साठ-गाँठ करने के पीछे उनका उद्देश्य अपनी खुद की कमजोरियों की भरपाई करने के लिए एक दूसरे से सीखना नहीं है या परमेश्वर की इच्छा के अनुसार चलने और अच्छी तरह से कलीसिया का कार्य करने के लिए सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने की प्रक्रिया में एक दूसरे को सहारा देना नहीं है। बल्कि, यह आपसी शोषण, निर्भरता और सहायता के लिए है। वे आपस में साठ-गाँठ इसलिए करते हैं क्योंकि ज्यादा लोगों के होने का मतलब है ज्यादा ताकत होना, और ज्यादा ताकत से चीजों से निपटना आसान हो जाता है और निजी मामलों को सँभालना सुगम हो जाता है। इसलिए, जब वे एक साथ होते हैं, तो वे बहुत स्नेहशील दिखते हैं, मानो वे सब एक घनिष्ठ परिवार के सदस्य हों। वे अपने से बड़ों को विनम्रता से संबोधित करते हैं, हमउम्र लोगों को “बहन” या “भाई” बुलाते हैं और इन शब्दों को स्नेह और पूरी सामाजिक परंपरा के अनुसार कहते हैं। अगर किसी को हालात के तथ्यों की जानकारी न हो, तो हो सकता है कि वह उनके प्रेम, आपसी सहयोग और एक दूसरे पर भरोसा करने के लिए उनकी सराहना भी कर दे; वे मुश्किल घड़ियों में मदद का हाथ बढ़ाने के लिए इच्छुक प्रतीत होते हैं और वे बहुत खुश और संतुष्ट होकर कहते हैं, “हम एक परिवार हैं; हम एक ही परमेश्वर में विश्वास करते हैं।” ऐसा कहते समय वे एक दूसरे को अर्थपूर्ण नजरों से देखकर अपना प्रेम साझा करते हैं जिससे इस बात की और पुष्टि हो जाती है कि वे वाकई एक परिवार और सुगठित समूह हैं। तो, आखिर आपस में साठ-गाँठ करते समय वे क्या करते हैं? मिसाल के तौर पर, उनमें से एक बड़ी बहन किसी कंपनी में जनरल मैनेजर है और उसके बहुत व्यापक सामाजिक संबंध और कई लोगों से अच्छी जान-पहचान है। उसने मसीह-विरोधी के अधिकार क्षेत्र में लोगों के लिए बहुत कुछ किया है और ज्यादातर लोगों ने कभी न कभी उससे मदद ली है, इसलिए वे उसे “बड़ी बहन” बुलाते हैं। जब भी किसी के घर कुछ चल रहा होता है, जैसे किसी का बेटा यूनिवर्सिटी जाने वाला होता है या किसी की बेटी नौकरी की तलाश में होती है, तो वे उससे सलाह जरूर लेते हैं और समस्याएँ सुलझाने के लिए उससे मदद माँगते हैं। अगर कोई अस्पताल में भर्ती है और कलीसिया में ऐसा कोई व्यक्ति है जो अस्पताल में कार्य करता है और आयात की गई दवाएँ प्राप्त करने में उसकी मदद कर सकता है, तो मसीह-विरोधी जल्दी से इस व्यक्ति को एक घनिष्ठ विश्वासपात्र और परिवार का हिस्सा मान लेता है। वे ऐसे कार्य सँभालने के लिए आपस में साठ-गाँठ करते हैं, एक दूसरे को फायदा पहुँचाते हैं और ऐसे हालात पैदा करते हैं जिनमें दोनों पक्षों को फायदा ही फायदा होता है। इसलिए, जब वे एक साथ होते हैं, तो उन्हें देखकर लगता है जैसे उनके बीच अच्छे संबंध और बढ़िया तालमेल है और वे अत्यंत खुश हैं और कभी लड़ते-झगड़ते नहीं हैं। लेकिन, इस तालमेल के पीछे हर व्यक्ति चुपके से अपने मन में छिपी हुई मंशाएँ पाले रहता है और यह सोचता रहता है कि किस तरह से दूसरे पक्ष का फायदा उठाया जाए और दूसरों का उपयोग किया जाए, साथ में वह यह भी सोचता है कि एक दूसरे के लिए फायदे तैयार करके और दूसरे लोगों का एहसान चुकाकर वह किस तरह से दूसरों की मदद कर सकता है। जब मसीह-विरोधी अपना अधिकार क्षेत्र स्थापित कर लेता है और अपने कट्टर अनुयायी बना लेता है, तो उसके पास उसकी टीम और उसका “परिवार” होता है जो दैनिक जीवन की सभी छोटी-छोटी समस्याओं को सुलझाने में उसकी मदद करते हैं। मिसाल के तौर पर, नौकरी ढूँढ़ना, कॉलेज जाना, तरक्की हासिल करना, किसी गंभीर बीमारी से निपटना, घर बदलना या यहाँ तक कि उसे हिरासत में लिए जाने के बाद जेल से छुड़वाने के लिए किसी को मध्यस्थ के रूप में पैसे देने के लिए ढूँढ़ना—इन सभी मामलों को सँभालने के लिए कोई न कोई होता है। मसीह-विरोधी के परिप्रेक्ष्य से देखें, तो क्या ये “परिवार के सदस्य” काम के नहीं हैं? क्या उन पर भरोसा नहीं किया जा सकता है? क्या वे एक दूसरे पर निर्भर नहीं रह सकते हैं और एक-दूसरे की मदद नहीं कर सकते हैं? (हाँ, कर सकते हैं।) इसलिए, ऐसे अधिकार क्षेत्र में जो लोग दिखाई देते हैं, वे परमेश्वर के वचनों को अपने सिद्धांत मानकर बातचीत करने वाले या अपने जमीर के अनुसार कार्य करने, परमेश्वर के वचनों के अनुसार जीवन बिताने, परमेश्वर की पूजा करने, एक दूसरे से सामान्य ढंग से बातचीत करने, पूरी ईमानदारी से सहभागिता करने, अपना दिल खोलकर खुद को पूरी तरह उजागर करने, अपने खुद के भ्रष्ट स्वभाव के बारे में सहभागिता करने और उसके बारे में जानने वाले या अपनी कमियों की भरपाई करने के लिए एक दूसरे से सीखने वाले लोग नहीं हैं—ऐसा कुछ भी नहीं है। यह गुट, यह अधिकार क्षेत्र, मसीह-विरोधी के गिरोह का अधिकार क्षेत्र है, जहाँ सत्य के पास कोई शक्ति नहीं है, जहाँ पवित्र आत्मा कार्य नहीं करता और जहाँ लोगों के दिलों में परमेश्वर के वचन नहीं हैं। इसके बजाय, यहाँ मसीह-विरोधी का गिरोह संतोषपूर्वक, आराम से और मजे लेते हुए रहता है और इसे अपना ही घर समझता है। वास्तव में, यह न तो परमेश्वर का घर है और न ही कलीसिया है; यह समाज है, मसीह-विरोधी का गिरोह है।
मसीह-विरोधी कलीसिया को अपना खुद का अधिकार क्षेत्र बनाकर उसे एक सामाजिक समूह और अपने गिरोह में बदल देते हैं। वे विनाशकारी और घिनौने कृत्यों में शामिल होते हैं और पूरी तरह से अविश्वासियों की कार्यनीतियों और तरीकों का उपयोग करके बात या कार्य करते हैं। इनमें से हर व्यक्ति चिकनी-चुपड़ी, ओछी बातें करने वाला, गुंडागर्दी करने वाला, कपटी और दुष्ट है और सत्य को स्वीकार करने से इनकार करता है। ऊपर से, ये सुसंस्कृत, सभ्य, विनम्र, अनुशासित और यहाँ तक कि काबिलियत और चरित्र वाले शिष्ट व्यक्ति का भेष धरे रहते हैं। लेकिन, सच तो यह है कि इनमें से हर व्यक्ति कपटी, चालाक, नीच और दुष्ट चरित्र का है। वे आपस में साठ-गाँठ करते हैं, संबंध स्थापित करते हैं, प्रभावों के लिए मुकाबला करते हैं, फिजूलखर्ची पर ध्यान देते हैं और समाज में सामुदायिक और कार्मिक रिश्तों पर बल देते हैं। वे इस बात पर ध्यान देते हैं कि समाज में किसका ज्यादा बोलबाला है, किसके पास बड़ा रुतबा और ज्यादा प्रतिष्ठा है और साथ ही, रणनीतियाँ बनाने में कौन सबसे अच्छा है। उनकी बातों और व्यवहार में तुम्हें सच्चा विश्वास नहीं दिखेगा; और उनके दिलों में परमेश्वर के वचनों और सत्य के लिए थोड़ी-सी जगह भी तुम्हें दिखाई नहीं पड़ेगी। उनका विश्वास सिर्फ एक खेल और धोखे से ज्यादा और कुछ नहीं है। इन दुष्ट किरदारों ने कलीसिया को एक सामाजिक समूह में बदल दिया है, जो दुष्ट किरदारों के लिए आपस में साठ-गाँठ करने का अधिकार क्षेत्र है, जहाँ वे हमेशा अपने आडंबरपूर्ण शब्दों को लगातार व्यक्त करते हुए कहते हैं : “हमें परमेश्वर में विश्वास है, हम परमेश्वर के घर में अपने कर्तव्य पूरे करते हैं, फलाँ तरीके से परमेश्वर का अनुसरण करते हैं, फलाँ तरीके से अपने भाई-बहनों के कल्याण में योगदान करते हैं, फलाँ तरीके से उनकी मदद करते हैं और उन्हें सहारा देते हैं और फलाँ-फलाँ तरीके से एक दूसरे से प्रेम करते हैं।” वे लोगों को गुमराह करने और जाल में फँसाने वाले दुष्ट साधनों और अलग-अलग नीच तरीकों से भाई-बहनों का नुकसान करते हैं और फिर भी यही मानते हैं कि वे अपना कर्तव्य कर रहे हैं, भाई-बहनों की मदद कर रहे हैं, परमेश्वर को महिमान्वित कर रहे हैं और उसके साक्षी बन रहे हैं। उन्हें इस बात की जरा भी समझ नहीं है कि इन कार्यों और व्यवहार के पीछे मसीह-विरोधियों के परिस्थितियों में जोड़-तोड़ करने का सार छिपा हुआ है। मसीह-विरोधी परमेश्वर का अनुसरण करने वालों को अपनी शक्ति के जाल में फँसा लेते हैं और कलीसिया को अपने खुद के अधिकार क्षेत्र में, एक सामाजिक समूह में, ऐसे लोगों के संगठन में बदल देते हैं जो शैतान की शक्ति के अधीन हैं। क्या ऐसे संगठन को अब भी कलीसिया माना जा सकता है? बिल्कुल नहीं। क्या मसीह-विरोधियों का व्यवहार सरासर घिनौना नहीं है? क्या तुम लोगों ने कभी ऐसा मसीह-विरोधी का गिरोह देखा है? जब तुम लोग उनके बीच होते हो, तो तुम्हें कैसा लगता है? बाहर से, वे लोग विनम्र और मिलनसार प्रतीत होते हैं—लेकिन जब तुम उनके साथ सत्य और परमेश्वर के इरादों की सहभागिता करते हो, तो वे अपनी बाहरी विनम्रता और मिलनसारिता के विपरीत ऐसा रवैया दिखाते हैं जो खास तौर पर घृणा और अरुचि का होता है। जब तुम उनके साथ सत्य की सहभागिता करते हो, तो उन्हें महसूस होता है कि तुम बाहरवाले हो और जब तुम कलीसिया के कार्य की सहभागिता करते हो, तो उन्हें और ज्यादा ऐसा महसूस होने लगता है; फिर जब तुम उन सत्य सिद्धांतों के बारे में सहभागिता करते हो जिनका कर्तव्य पूरा करते समय अभ्यास करना चाहिए, तो वे कुंठित और उदासीन हो जाते हैं और यही वह समय है जब वे अपनी राक्षसी समानता प्रकट करते हैं, वे अपना सिर खुजाते हैं, जम्हाई लेते हैं और उनकी आँखों से पानी आने लगता है। क्या यह असामान्य नहीं है? जैसे ही तुम सत्य पर सहभागिता करते हो, उनका राक्षसी रूप क्यों बाहर आ जाता है? क्या उनमें से हरेक के दिल में बहुत प्रेम नहीं है? जैसे ही तुम सत्य पर सहभागिता करना शुरू करते हो, वे दिलचस्पी कैसे खो सकते हैं? क्या इस तरह से वे बेनकाब नहीं हो जाते हैं? क्या उनमें बाहरी कार्यों को पूरा करने के प्रति बहुत उत्साह और वफादारी नहीं है? और अगर वे भरोसेमंद हैं, तो क्या उनमें वास्तविकता नहीं है? अगर उनमें वास्तविकता है, तो लोगों को सत्य की सहभागिता करते हुए सुनकर उन्हें खुश होना चाहिए, उन्हें इसके लिए तरसना चाहिए। उनकी मनोदशा हमेशा असामान्य क्यों बनी रहती है, यहाँ तक कि बुरी आत्माओं के वश में भी हो जाती है? इससे पता चलता है कि उनकी आम सामंजस्यपूर्ण बातचीत, उनकी विनम्रता और मिलनसारिता सरासर झूठी हैं। परमेश्वर के न्याय के वचन और उसके द्वारा व्यक्त किए गए सत्य ही उन्हें पूरी तरह से बेनकाब करते हैं। फिर उनका गुस्सा उबलने लगता है और उनकी स्थिति आम तौर पर जैसी होती है उससे अलग हो जाती है और वे बुराई करने लगते हैं और विघ्न डालते हैं। फिर परमेश्वर उन्हें शैतान के हवाले कर देता है और उनके बारे में परवाह करना बंद कर देता है। अपनी अनगिनत दानवता में उन्होंने अपने असली रंग दिखा दिए हैं।
मसीह-विरोधियों का परिस्थितियों में जोड़-तोड़ करना वाकई एक सच्चाई है। मामूली मामलों में, एक व्यक्ति कुछ लोगों को चालाकी से नियंत्रित करता है; जबकि गंभीर मामलों में, एक गुट कुछ लोगों को चालाकी से नियंत्रित करता है और इसके अलावा हर मुद्दे में हेरा फेरी करता है। एक व्यक्ति एक सीमित संख्या में ही चीजों और परिस्थितियों में जोड़-तोड़ कर सकता है; इसलिए, अपनी शक्ति को बढ़ाने और अपने रुतबे को सुरक्षित करने के लिए मसीह-विरोधियों के लिए लोगों की एक टीम को प्रशिक्षित करना जरूरी है। उनके लिए लोगों के एक समूह को आकर्षित करना और उन्हें नियंत्रित करना जरूरी होता है ताकि वे उन्हें सहयोग करें, उनके रुतबे और शक्ति को सुरक्षित करें और परिस्थितियों में जोड़-तोड़ करने में उनकी मदद करें। जैसे ही मसीह-विरोधी अपना गिरोह स्थापित कर लेते हैं, उनके प्रभाव का दायरा बड़ा होने लगता है जिससे वे और चीजों में जोड़-तोड़ करने में सक्षम हो जाते हैं और उनकी भागीदारी व्यापक हो जाती है। फलस्वरूप, उनके शिकारों की संख्या भी बढ़ने लगती है। अगर तुम्हारा सामना किसी ऐसे मसीह-विरोधी के गिरोह से हो जाए जो परिस्थितियों में जोड़-तोड़ करने की क्षमता रखता है, तो तुम लोगों को क्या करना चाहिए? क्या तुम लोगों ने कभी ऐसा गिरोह देखा है? आम तौर पर, इस समूह में चार या पाँच मुख्य सदस्य होते हैं या फिर दस से ज्यादा भी हो सकते हैं। हरेक व्यक्ति अलग-अलग कार्यों के लिए जिम्मेदार होता है। मिसाल के तौर पर, यहाँ कुछ लोग हैं जो कर्मचारियों के समायोजनों में माहिर हैं, जो आर्थिक मामलों को सँभालते हैं, जो ऊपरवाले से निपटते हैं और कुछ वे होते हैं जो भले कुछ भी हो जाए, मसीह-विरोधी के लिए जल्दी से चीजों पर पर्दा डाल देते हैं; और फिर ऐसे लोग भी हैं जो पर्दे के पीछे से सलाह देते हैं, जो दूसरों को नुकसान पहुँचाने के लिए बुरी चीजों की योजना बनाते हैं; कुछ लोग अफवाह फैलाने में माहिर हैं, कुछ फूट डालते हैं, कुछ बुरे कार्यों को अंजाम देने में कुकर्मियों की मदद करते हैं, कुछ जानकारी एकत्र करते हैं और यहाँ तक कि ऐसे लोग भी हैं जो फायदे हासिल करते हैं और बीमारियों के इलाज मुहैया कराते हैं। संक्षेप में, इस जत्थे में हर तरह की भूमिका निभाने के लिए कोई न कोई जरूर मौजूद है। मसीह-विरोधी ऐसे लोगों की उपेक्षा करते हैं जो प्रभावशाली नहीं हैं, निष्कपट और सादे हैं और जिनमें समाज के मामलों को सँभालने की क्षमता नहीं है। इसके बजाय, वे खास तौर पर ऐसे विश्वासियों को निशाना बनाते हैं जिनके पास अधिकारी की हैसियत से या समाज में बड़ा व्यवसायी होने के कारण रुतबा, प्रतिष्ठा, प्रभाव और अनुभव होता है—ऐसे लोग जिन्होंने दुनिया देखी है, जो कार्यों को करवाने की क्षमता रखते हैं और उनके लिए अच्छी चीजें हासिल कर सकते हैं। मिसाल के तौर पर, अगर एक कार की कीमत 400,000 युआन है, तो एक काबिल व्यक्ति जो बाजार को अच्छी तरह जानता है, वह मसीह-विरोधी के लिए आधी कीमत पर एक पुरानी कार खरीद सकता है, जो नई कार जैसी होगी। अगर ऐसा व्यक्ति मसीह-विरोधी के पास आए, तो क्या मसीह-विरोधी उसे शामिल कर लेगा? (हाँ।) मसीह-विरोधी ऐसे लोगों को शामिल करते हैं। उनका क्या उद्देश्य होता है? वे परमेश्वर के घर को, परमेश्वर के कार्य की जगह को सामाजिक समूह में बदलने का लक्ष्य रखते हैं और ऐसा कर देते हैं कि परमेश्वर के कार्य और सत्य को लोगों के बीच कार्यान्वित नहीं किया जा सकता—वे अपने खुद के लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं। अगर कोई आम विश्वासी महिला परमेश्वर में दिल और आत्मा से विश्वास करती है, अपने परिवार और करियर को त्याग सकती है, निष्कपट और सीधी-सादी है और उसमें चीजों को सँभालने की क्षमता की कमी है, तो क्या मसीह-विरोधी उसे चाहेगा? (नहीं।) अगर उसका पति और बेटा दोनों व्यवसाय से अच्छा पैसा कमा सकते हैं, समाज में उनका बोलबाला है और कोई उन्हें डराने-धमकाने की हिम्मत नहीं करता है, तो क्या मसीह-विरोधी की नजर में ऐसी बुजुर्ग महिला का कोई मूल्य है? हो सकता है कि मसीह-विरोधी की नजर में इस महिला में अन्तर्निहित मूल्य की कमी हो, लेकिन उसके परिवार के संबंध में वह अत्यंत मूल्यवान है। उसके पास पैसों की कोई कमी नहीं है, उसका घर भाई-बहनों की मेजबानी कर सकता है और अगर कुछ समस्या हो जाती है, तो उससे निपटने में वह अपने परिवार की मदद ले सकती है। मसीह-विरोधी के लिए ऐसा व्यक्ति मूल्यवान होता है। मसीह-विरोधी ऐसे व्यक्ति को आकर्षित और गुमराह करने के लिए सारे संभव प्रयास करता है और वे उन्हें अपने पक्ष में खड़ा करते हैं और उनका उपयोग करते हैं। मसीह-विरोधी अपने लिए उपयोगी लोगों का सटीकता से मूल्यांकन कर लेता है। वह ऐसे लोगों की न परवाह और न ही कद्र करता है जिनकी आस्था सच्ची है, जो ईमानदारी से परमेश्वर में विश्वास करते हैं या चरित्रवान हैं और अपने कर्तव्य के प्रदर्शन में भरोसेमंद हैं और चरवाही किए और सींचे जाने के बाद प्रगति कर सकते हैं और सच्चाई से कीमत चुका सकते हैं। तुम जितने ज्यादा सच्चे होगे और तुममें जितना ज्यादा जमीर और समझ होगी, वह उतना ही ज्यादा तुमसे घृणा करेगा। अगर तुम ईमानदारी और सीधे तरीके से बात करते हो, तो वह तुमसे दूर भागता है और उसे तुमसे घिन आती है। तुम्हें देखते ही वह तुमसे दूर हट जाएगा। अगर तुम उससे बात करोगे, तो वह दिखावे के लिए तुम्हारा हाल-चाल पूछ लेगा, लेकिन सच्चे दिल से सिर्फ तभी बात करेगा अगर तुम उसके लिए मूल्यवान हो। वह ऐसे लोगों को पसंद करता है जो उसके लिए मूल्यवान हैं, जो उसकी शक्ति और रुतबे के लिए फायदेमंद हैं। अगर ऐसा कोई है जिसका वह उपयोग कर सकता है और जो कार्य पूरे करने में उसकी मदद कर सकता है, सच्चे तथ्यों को छिपा सकता है, गलत कार्य को करने के उपयुक्त बहाने ढूँढ़कर उन्हें कर सकता है और किसी को पता चलने दिए बिना, किसी के द्वारा उजागर किए गए या असलियत जाने बिना भाई-बहनों को गुमराह कर सकता है, तो वह व्यक्ति उसके शोषण और भर्ती का लक्ष्य बन जाता है। अगर कोई व्यक्ति, चाहे वह किसी से भी बात कर रहा हो, हमेशा चापलूसी वाले शब्द बोलता है, शक्तिशाली लोगों के गुण गाता है, रुतबे वाले लोगों का अनुसरण करता है और किसी के प्रति कोई विवेक नहीं दिखाता है, तो क्या मसीह-विरोधी उसका उपयोग करता है? मसीह-विरोधी के लिए ऐसा व्यक्ति मूल्यवान है, लेकिन वह ऐसे व्यक्ति के साथ व्यवहार करते समय सावधानी भी बरतता है। वह चापलूसी करने वालों पर पूरी तरह से भरोसा नहीं करता है और वह उन्हें कुछ चीजों के बारे में जानने नहीं देता है। अगर बैठकों में पदानुक्रम तय किए जाते हैं, तो वहाँ वह ऐसे लोगों को महत्वपूर्ण सभाओं से बाहर रखता है। कम महत्वपूर्ण सभाएँ या आम सभाएँ वे सभाएँ हैं जहाँ ऐसे ढुलमुल लोग भाग ले सकते हैं। इसका यह कारण है कि अगर कोई और अगुआ उभरकर सामने आया, तो ये ढुलमुल लोग किसी भी समय उसे धोखा दे सकते हैं और उसे उजागर कर सकते हैं। मसीह-विरोधी ऐसे लोगों के साथ चालाकी से व्यवहार करता है और हालात के अनुसार उनका उपयोग करता है। इसलिए, जब परिस्थितियों में जोड़-तोड़ करने की बात आती है, तो मसीह-विरोधी बहुत सावधानी बरतता है। वह ऐसे मामलों को व्यवस्थित और नपे-तुले तरीके से सँभालता है और बड़े ध्यान से विचार करता है कि उसे किस तरीके से कार्य करना है और किन लोगों का फायदा उठाना है। वह अपने मन में करीबी साथियों और आम दोस्तों के बीच फर्क करता है।
जब मसीह-विरोधी किसी अजनबी के संपर्क में आता है, जैसे कोई ऊँचे स्तर का अगुआ या कोई ऐसा व्यक्ति जिसे वह अच्छी तरह से नहीं जानता है, तो पहले वह उस व्यक्ति के चरित्र की छानबीन करता है कि क्या उसके कुछ खास काम या शौक हैं, क्या उसमें सच्ची आस्था है, उसे परमेश्वर में विश्वास रखते हुए कितने वर्ष हो चुके हैं, क्या उसके पास सत्य वास्तविकता है या क्या वह इनका भेद पहचानता है और क्या वह जीवन प्रवेश के लिए कोई बोझ उठाता है। वह हर पहलू का मूल्यांकन और अवलोकन करता है, फिर वह अलग-अलग तरीकों का उपयोग करके उनसे उनकी बातें उगलवाता है और उन्हें परखता है। अगर वह देखता है कि कोई व्यक्ति भ्रमित है, तो वह अपनी चौकसी कम करके उसे अनदेखा कर देता है। हालाँकि, अगर कोई व्यक्ति चालाक प्रतीत होता है और उसकी असलियत जानना आसान नहीं है, तो उसे लगता है कि उसे सावधान रहना पड़ेगा। मसीह-विरोधी का परिस्थितियों को नियंत्रित करने का मतलब सारी चीजों का नियंत्रण अपने हाथ में लेना है और यह चाहना है कि सभी चीजों में उसी का फैसला अंतिम माना जाए, जिसमें सभी प्रकार के लोगों को अपने नियंत्रण में रखना भी शामिल है। उसके लिए परमेश्वर के घर के विनियम रद्दी कागज के टुकड़े की तरह बेमतलब हो जाते हैं, और परमेश्वर के प्रशासनिक आदेशों और स्वभाव का कोई अस्तित्व नहीं रहता, मानो वे बस हवा हों। उसकी महत्वाकांक्षा और इच्छाएँ लोगों को नियंत्रित करने और उन्हें अपनी बातें सुनाने तक ही सीमित नहीं रहतीं; वह हर व्यक्ति द्वारा अनुभव की गई हर घटना को और उन मामलों को भी नियंत्रित करने की हद तक पहुँच जाता है जो ठीक उसकी नाक के नीचे, उसके प्रभाव क्षेत्र के अंदर और उसके बाहर घटती हैं। इस नियंत्रण का क्या उद्देश्य है? अपनी शक्ति और रुतबे के साथ-साथ अपनी प्रतिष्ठा को सुरक्षित करना। मसीह-विरोधी द्वारा परिस्थितियों में जोड़-तोड़ करने को एक वाक्य सारांशित करता है : सब कुछ उसके नियंत्रण में होता है। और इसलिए, मसीह-विरोधी किसी भी मामले को अनदेखा करने की हिम्मत नहीं करता, चाहे वह मामला बड़ा हो या छोटा। वह किसी भी चीज को अनदेखा करने की हिम्मत नहीं करता है, वह ऐसी हर चीज में भाग लेना और हस्तक्षेप करना चाहता है जो उसके रुतबे या उसके प्रभाव क्षेत्र से जुड़ी हुई है और वह किसी भी फायदे से चूकता नहीं है। वह कलीसिया में होने वाले कई मामलों में सक्रियता से शामिल रहना चाहता है और चीजें कैसे आगे बढ़ रही हैं इस स्थिति को समझना चाहता है। मिसाल के तौर पर, अगर कुछ लोग वाकई उसकी बात नहीं सुनते हैं या उसके आगे समर्पण नहीं करते हैं और हमेशा उसके बारे में राय बनाए रखते हैं, तो वह उन्हें ढूँढ़ कर सताने के तरीके ढूँढ़ लेता है। लेकिन अगर वह उनकी काट-छाँट करने का कोई बहाना नहीं ढूँढ़ पाता, तो वह क्या करता है? वह परमेश्वर के घर से नीचे भेजी गई किताबों और धर्मोपदेशों की रिकॉर्डिंग को नियंत्रित करने का कोई तरीका ढूँढ़ लेता है। इस आधार पर कि कौन उसका आज्ञाकारी है वह यह तय करता है कि ये सामग्रियाँ तुरंत किसे भेजी जाएँगी। अगर तुम उसकी बात नहीं सुनते हो या उस अवधि के दौरान प्रतिकूल व्यवहार दिखाते हो, तो वह संसाधन सीमित होने का दावा करता है और तुम्हें वे चीजें नहीं भिजवाता है। मसीह-विरोधी तुम्हारे व्यवहार पर नजर रखता है। अगर तुम इस पर स्पष्ट रूप से विचार करते हो, इसकी असलियत जान लेते हो और मसीह-विरोधी के मनोविज्ञान को समझते हो; अगर तुम स्वेच्छा से अपनी गलतियाँ मान लेते हो और मसीह-विरोधी के पास आते हो, तो वह यह कहने का बहाना ढूँढ़ लेगा, “इस बार परमेश्वर के घर ने सबके लिए पर्याप्त संसाधन भेजा है और तुम भी शामिल हो।” लेकिन, अगर उसने देखा कि कुछ समय बाद तुमने फिर से दूरी बना ली है, तो वह अब भी तुम्हें सताएगा। नए संसाधन आने पर वह तुम्हें सूचित भी नहीं करेगा, वह तुम्हें एक भी चीज नहीं देगा, और यहाँ तक कि शायद वह तुम्हारे पास पहले से जो चीजें हैं, उन्हें भी जब्त करने का बहाना ढूँढ़ ले। खासकर जब मसीह-विरोधी को पता चलता है कि किसी को उसके पर्दे के पीछे के कुकर्मों की जानकारी हो सकती है और वह उसकी रिपोर्ट कर सकता है, तो वह पूर्वनिवारक कार्यवाही करने के लिए पहले एक सौम्य तरीका अपनाता है, वह सक्रियता से खुद आगे बढ़कर अपनी गलतियाँ मान लेता है और आत्म-ज्ञान साझा करता है। जब मसीह-विरोधी को लगता है कि यहाँ सौम्य तरीका कारगर नहीं होगा, और वे अपने दिलों में यह सोचकर असुरक्षित महसूस करते हैं कि यह व्यक्ति अभी भी उसकी रिपोर्ट कर सकता है, तो वह इस व्यक्ति का घेराव करने और जबरदस्ती धमकाने के लिए और लोगों को जुटाने का भरसक प्रयत्न करता है। यह तब तक जारी रहता है जब तक वह व्यक्ति समझौता नहीं कर लेता और अपना रुख बताते हुए यह स्पष्ट नहीं कर देता कि वह उसकी रिपोर्ट नहीं करेगा और सिर्फ तभी मसीह-विरोधी अपने प्रयास रोकता है। कुछ मामलों में, मसीह-विरोधी दूसरों को पहले उजागर कर सकता है; इस डर से कि शायद दूसरे लोग उसे उजागर कर दें और उसकी रिपोर्ट कर दें, वह पूर्वनिवारक कार्यवाही करता है और जानबूझकर दूसरे व्यक्ति से प्रभावन क्षमता छीन लेता है ताकि उस पर झूठे आरोप लगा सके और उसके लिए जाल बिछा सके। बाद में, वह उस व्यक्ति को सबसे अलग करने और निष्कासित करने का बहाना ढूँढ़ लेता है और ऊपरवाले और कलीसिया के साथ उसकी बातचीत बंद करवा देता है। अब, मसीह-विरोधी महसूस करता है कि वह सुरक्षित है और उसे फिक्र करने की और जरूरत नहीं है। क्या यह परिस्थितियों में जोड़-तोड़ करना नहीं है? (हाँ है।) यह कह सकते हैं कि ऐसे मामलों में मसीह-विरोधी की कार्यवाहियाँ बस एक या दो छिटपुट घटनाओं से ज्यादा होती हैं या एक या दो से ज्यादा तरीकों का उपयोग किया जाता है। मसीह-विरोधी बहुत-से बुरे कर्म करता है ताकि परिस्थितियों में जोड़-तोड़ कर सके, अपने रुतबे को सुरक्षित कर सके और ऐसी व्यवस्था कर सके जिससे उसका अधिकार क्षेत्र डगमगाए नहीं। मिसाल के तौर पर, वह कलीसिया में कर्मचारियों से जुड़ी प्रणालियों और व्यवस्थाओं को बदल देता है। ज्यादा लोगों को नियंत्रित करने के लिए वह भाइयों और बहनों में फूट डालता है और उन्हें एक दूसरे पर हमला करने और एक दूसरे की निंदा करने के लिए उकसाता है। वह अपने अनुयायियों को ऐसे कुछ भाई-बहनों का घेराव करने के लिए भी उकसाता है जिनमें न्याय की भावना ज्यादा है; वह भाई-बहनों के आगे यह भी दावा करता है कि ऊपरवाला उसका बहुत सम्मान करता है। इतना ही नहीं, वह ऊपरवाले को पत्र लिखता है जिसमें वह अपने उत्कृष्ट कार्य की डींगे हाँकता है और दावा करता है कि उसने आत्म-ज्ञान प्राप्त कर लिया है और स्वेच्छा से अपनी समस्याओं का खुलासा कर सकता है, वगैरह। वह ऊपरवाले की कृपादृष्टि पाने के प्रयास में उसे पत्र लिखकर अपनी सारी समस्याओं की जानकारी दे देता है। वह अलग-अलग साधनों और तरीकों का उपयोग करके परिस्थितियों में जोड़-तोड़ करता है, अपने कट्टर अनुयायियों को नियंत्रित करता है, और भाइयों और बहनों के साथ-साथ परमेश्वर के घर को भी चकमा देता है। कलीसिया में परिस्थितियों को नियंत्रित करने के लिए मसीह-विरोधी इन्हीं अलग-अलग अभ्यासों का उपयोग करते हैं। बेशक, इनके अलावा और कई ज्यादा विशिष्ट अभ्यास भी हैं, लेकिन उनके बारे में यहाँ नहीं बताया जाएगा। संक्षेप में, मसीह-विरोधी जिन तरीकों का उपयोग करके कलीसिया को नियंत्रित करते हैं उनसे जुड़े ये मामले आम हैं और वे जो अलग-अलग अभ्यास प्रदर्शित करते हैं वे भी आम हैं।
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