मद चौदह : वे परमेश्वर के घर को अपना निजी अधिकार क्षेत्र मानते हैं (खंड दो)
और अपना स्वयं का अधिकार क्षेत्र स्थापित करने के बाद मसीह-विरोधी क्या करता है? क्या वह इस बात को लेकर अत्यधिक उद्विग्न होता है कि कलीसिया का सुसमाचार कार्य कैसा चल रहा है? क्या वह इसके बारे में चिंतित होता है, या क्या वह इसके बारे में पूछताछ करता है? वह केवल निरीक्षण दौरा करता है, यंत्रवत ढंग से काम करता है, कुछ शब्द बोलकर अनमने ढंग से अपना काम चलाता है और इससे अधिक कुछ नहीं करता। उसके निरीक्षण दौरे का उद्देश्य क्या है? भाई-बहनों का हाल जानने के लिए इन व्यापक यात्राओं पर निकलने का अंतिम उद्देश्य क्या है? क्या ऐसा इसलिए है कि उसे इस बात की परवाह है कि भाई-बहनों का जीवन प्रवेश कैसा चल रहा है? नहीं। वह यह देखना चाहता है कि क्या उनके प्रभाव के दायरे में कोई उनका विरोध करने का इरादा रखता है, क्या कोई है जो उन्हें प्रश्नवाचक दृष्टि से देखता है, या उसे “नहीं” कहने का साहस करता है, या उसकी बात न मानने और कहे के मुताबिक न करने का साहस करता है; उसे अपनी आँखों से देखना होता है, उसे स्थितियों से व्यक्तिगत रूप से परिचित होना होता है। यह एक पहलू है। और तो और, जब मसीह-विरोधी अपना अधिकार क्षेत्र स्थापित कर लेते हैं, तो वे खुद को उसका न्यायसंगत राजा बना लेते हैं—और यदि तुम कहो कि वे अत्याचारी हैं, शहर के बदमाश हैं, डाकुओं के सरदार हैं, तो भी अगर उनके पास रुतबा है और सत्ता है तो उन्हें इन बातों की कोई परवाह नहीं होती। उनके प्रभाव क्षेत्र में, उनके अधिकार क्षेत्र के अंदर, सारी शक्ति उनके हाथों में होती है, वे अकेले ही निर्णय लेते हैं। साथ ही, वे अपने समूह के लोगों की आराधना, प्रशंसा और सम्मान के साथ-साथ उनकी चापलूसी, मिथ्या प्रशंसा और श्रेष्ठता की भावनाओं और उनके द्वारा अपने प्रति किए गए विशेष व्यवहारों का भी आनंद लेते हैं। क्या तुम सोचते हो कि जब मसीह-विरोधी सत्ता पर एकाधिकार जमा लेते हैं तो यह केवल उच्च पद से बोलने के लिए होता है? क्या यह सब केवल ऐसी इच्छा संतुष्ट करने के लिए होता है? नहीं, वे कुछ और अधिक ठोस चाहते हैं : वे अपने अधिकार क्षेत्र में सत्ता और रुतबे के कारण मिलने वाले सभी विशिष्ट व्यवहारों का आनंद लेते हैं। एक बार जब मसीह-विरोधी अपना अधिकार क्षेत्र स्थापित कर लेते हैं, उनके कट्टर अनुयायी बन जाते हैं, तो उनका समय प्राचीन सम्राटों से भी अधिक आराम से बीतता है। उन्हें कुछ भी करने की जरूरत नहीं होती : जबान से निकलते ही उनकी इच्छा पूरी हो जाती है; उनके कुछ कहते ही उनकी इच्छित वस्तुएँ उन तक पहुँचा दी जाती हैं। उदाहरण के लिए, मसीह-विरोधी कहता है, “आज मौसम अच्छा है; मुझे मुर्गा खाने का इतना मन क्यों कर रहा है?” दोपहर से पहले ही, किसी ने मुर्गा पका लिया होगा। दोपहर के भोजन के दौरान, मसीह-विरोधी कहता है, “हम परमेश्वर के विश्वासी, शराब नहीं पी सकते, लेकिन कुछ जलपान तो किया ही जा सकता है?” अपने अगुआ की बातें सुनकर, मसीह-विरोधी के अनुयायी जलपान खरीदने के लिए किसी को दौड़ा देंगे। क्या वह सभी इच्छित चीजें नहीं पा लेता? उसे बस अपना हाथ बढ़ाना है, अपना मुँह खोलना है, और चीजें उसके पास ले आई जाएँगी और उसकी सभी इच्छाएँ पूरी हो जाएँगी। उसके दिन बड़े आराम से कटते हैं। फिर मसीह-विरोधी कहता है, “आज बहुत ठंड है। पिछले साल मैं जो स्वेटर पहन रहा था उसमें कीड़ों ने छेद कर दिया था, अब मैं इसे पहनता हूँ तो यह अच्छा नहीं लगता—अच्छा नहीं दिखता। मुझे नहीं पता कि इस साल वाला स्वेटर कहाँ है।” जब कोई उसे कई स्वेटर खरीद देने की पेशकश करेगा, तो वह कहेगा कि उन्हें यूँ ही नहीं खरीदना चाहिए, उसे संतों की मर्यादा के अनुरूप होना चाहिए, और पैसा सिद्धांत के अनुसार खर्च किया जाना चाहिए। इतना कहने के तुरंत बाद कोई उसके लिए कई स्वेटर खरीद कर लाता है। स्वेटर के आने के बाद मसीह-विरोधी को लगता है कि अगर उसने कुछ नहीं बोला तो लगेगा कि यह सब जानबूझकर किया गया है, इसलिए वह कहता है : “इन्हें किसने खरीदा? क्या यह सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं है? क्या इससे मैं गलत नहीं ठहराया जाऊँगा? कौन इन्हें खरीद लाया? मैं उसे इसके पैसे दूँगा।” वह अपनी पत्नी से पहले कलीसिया के चढ़ावे में से कुछ पैसे निकालने के लिए कहता है, और कहता है कि जब उसके पास पैसे होंगे तो वह इसे वापस कर देगा। वास्तव में, यह बात वह यूँ ही कहता है; उन पैसों को वापस देने की उसकी कोई योजना नहीं होती। मसीह-विरोधी वास्तव में वह सब कुछ हासिल करता है जो वह चाहता है, और हर पकी-पकाई चीज का आनंद लेता है। और क्या इन चीजों का आनंद लेने के बाद उसके दिल में कोई आत्म-ग्लानि होती है? क्या उसका अंतःकरण उसे दोषी ठहराता है? (नहीं।) वह आरोपी कैसे महसूस कर सकता है? वह इसी के तो पीछे पड़ा है, यही वह चीज है जिसकी उसने दिन-रात कामना की है—वह इसे अस्वीकार कैसे कर सकता है? यह लाभ गँवाया नहीं जा सकता, यदि वह इसका लाभ नहीं उठाता तो यह समाप्त और अर्थहीन हो जाएगा; एक बार जब इसका फायदा उठा लिया जाए, तब वह कुछ अच्छी-सी बात कह देगा, ताकि पैसा खर्च करने वाला व्यक्ति स्वेच्छा से ऐसा करे, और उसके बारे में कुछ भी सोचने की हिम्मत न करे।
अपने अधिकार क्षेत्र में मसीह-विरोधी न केवल अधीनस्थों के विशेष व्यवहार और उनके द्वारा दी जाने वाली सेवाएँ पाते हैं, बल्कि वे अपने अधिकार क्षेत्र के लोगों को अपनी आज्ञाओं का पूरी तरह पालन करने का प्रशिक्षण भी देते हैं। उदाहरण के लिए यदि मसीह-विरोधी सभी को सुबह पाँच बजे उठने के लिए कहता है, तो सभी को सुबह पाँच बजे तक उठ ही जाना होगा। जो देर से जागेंगे उनकी काट-छाँट होगी—उन्हें मसीह-विरोधी के हाव-भाव देखने होंगे। खाना खाने के समय कोई मेज पर तब तक नहीं बैठ सकता जब तक कि मसीह-विरोधी न बैठ जाए और उसके खाना शुरू करने के पहले कोई खाना शुरू करने की हिम्मत नहीं कर सकता। वह जो कुछ भी करना तय करे, वह किया जाना आवश्यक है; वह जैसे तय करता है दूसरों को वैसे ही काम करना होगा, और अवज्ञा बर्दाश्त नहीं की जाती है। अपने अधिकार क्षेत्र में वे ही अगुआ और राजा होते हैं और उनकी बात ही अंतिम होती है—जो भी उनका पालन करने में असफल होता है, उसे सताया जाएगा। मसीह-विरोधियों के अधीनस्थों को प्रशिक्षण दिया जाता है कि वे बिना कोई सवाल किए आदेशों का पालन करें, थोड़ा-सा भी उनके खिलाफ न जाएँ और यह विश्वास करें कि जो भी आदेश दिए जा रहे हैं वे न्यायोचित और मूल्यवान हैं—यही उनका कर्तव्य और दायित्व है। परमेश्वर में विश्वास होने तथा अपने कर्तव्य करने की पताका तले मसीह-विरोधियों के अधीनस्थ बिना कोई सवाल किए उनकी आज्ञाओं का पालन करते हैं, उन्हें अपनी हथेली पर उठाए फिरते हैं और उनके साथ अपने राजा और मालिक जैसा व्यवहार करते हैं। यदि किसी के मन में मसीह-विरोधी के बारे में कोई विचार या राय है, यदि उनके दृष्टिकोण मसीह-विरोधी से भिन्न हैं, तो मसीह-विरोधी उनका खंडन करने, उन्हें नीचा दिखाने, विश्लेषण करने, उन पर फैसला सुनाने, निंदा करने और उन्हें दबाने में कोई कसर नहीं छोड़ते और तब जाकर चैन लेते हैं जब वह व्यक्ति पूरी तरह से उनका आज्ञापालन करे। मसीह-विरोधी अपने आश्चर्यजनक रूप से आरामदेह अधिकार क्षेत्र में फलता-फूलता है। भाई-बहनों का दिया हुआ पैसा सारा का सारा मसीह-विरोधी के पास जाता है, और मसीह-विरोधी को जो भी कमी होती है, वह उन्हें ही पूरी करनी होती है। मसीह-विरोधियों को संतुष्ट और प्रसन्न रखने के लिए भाई-बहनों को उनकी जरूरतों को तुरंत पूरा करना होता है। मसीह-विरोधी ने इन लोगों को बिल्कुल गुलाम जैसा होने के लिए प्रशिक्षित किया है। मसीह-विरोधी जो उपदेश सबसे ज्यादा देते हैं वह इस बात के इर्द-गिर्द होता है कि उन्होंने कैसे कष्ट सहे और वफादार रहे और उसमें इस बात पर जोर दिया गया होता है कि लोगों को परमेश्वर को खुश करने और सत्य सिद्धांतों के अनुरूप होने के लिए उन्हें समझना और उनका पालन करना चाहिए। मसीह-विरोधी ऊँचे-ऊँचे धर्मोपदेशों का प्रवचन करता है, नारे लगाता है, और ऐसे धर्म-सिद्धांत प्रस्तुत करता है जो मानवीय धारणाओं और कल्पनाओं से पूरी तरह मेल खाते हैं, जिससे उसे दूसरे लोगों की आराधना और प्रशंसा मिलती है। इसी के साथ, वे अपने खिलाफ कोई भी शक, संदेह या उनका भेद पहचानने को प्रभावी तरीके से रोकते हैं, और लोगों को उन्हें उजागर करने या पहचानने या उनके विरुद्ध किसी तरह के विश्वासघात के विचार रखने से भी रोकते हैं। इससे सुनिश्चित होता है कि उनकी सत्ता हमेशा बनी रहेगी, कि बिना किसी परिवर्तन के उनकी सत्ता कलीसिया में सुदृढ़ रहेगी। क्या मसीह-विरोधी काफी आगे की नहीं सोच रहे होते हैं? तो फिर, इन सभी कार्यों के पीछे क्या उद्देश्य है? एक शब्द में कहें तो—सत्ता। चाहे उनके अधिकार क्षेत्र के भीतर के लोग हों या बाहर के, उनके कट्टर अनुयायी हों या उनका भेद पहचानने वाले भाई-बहन, मसीह-विरोधी को सबसे अधिक डर और चिंता किस बात की होती है? उनकी चिंता होती है कि ये लोग सत्य को समझ सकते हैं, परमेश्वर के सामने आ सकते हैं, उन्हें पहचान सकते हैं और उन्हें अस्वीकार कर सकते हैं। इसी बात से उन्हें सबसे ज्यादा डर लगता है। जब हर कोई उन्हें अस्वीकार कर देता है, तो वे बिना सेना के सेनाध्यक्ष जैसे हो जाते हैं, अपना रुतबा और प्रतिष्ठा खो देते हैं, और उनकी सत्ता छिन जाती है। इसलिए, वे मानते हैं कि केवल अपने अधिकार क्षेत्र को सुरक्षित करके, अपने कट्टर अनुयायियों पर मजबूत पकड़ बनाकर, अपने अनुयायियों को पूरी तरह से गुमराह और नियंत्रित करके, उन सबको मजबूती से अपनी पकड़ में रखकर ही वे अपनी सत्ता को सुदृढ़ कर सकते हैं। इस तरह, वे उस विशेष व्यवहार पर अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखना चाहते हैं, वह विशेष व्यवहार जो उनकी सत्ता के कारण उन्हें मिलता है। कुछ मसीह-विरोधी अपने आचरण और व्यवहार में विशेष रूप से चतुर और लोगों को जीतने में माहिर होते हैं। जिस अधिकार क्षेत्र का वे प्रबंधन करते हैं, उसमें विभिन्न प्रकार के वे लोग होते हैं जो उनके काम करते हैं, जो उनकी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं, और वे जो उनके लिए जानकारी इकट्ठा करते हैं या चीजों को सुचारु बनाते हैं। मसीह-विरोधी के प्रभाव क्षेत्र में यदि अच्छी काबिलियत वाला कोई व्यक्ति न हो, कोई सत्य का अनुसरण न कर रहा हो, और कोई भी सत्य सिद्धांतों को कायम न रख रहा हो तो मसीह-विरोधी लंबे समय तक कलीसिया पर नियंत्रण बनाए रख सकता है, और इसके कारण कलीसिया के भीतर के लोग पूरी तरह से क्षत-विक्षत और इतने गुमराह हो चुके होंगे कि उनके सुधारे जाने की कोई आशा नहीं होगी। अगर ऊपरवाले ने किसी को उनके काम की जाँच के लिए भेजा भी तो वह व्यर्थ होगा। मसीह-विरोधी के नियंत्रण में कलीसिया अपारगम्य और अभेद्य हो चुकी है, उसका मजबूत किला बन चुकी है। मसीह-विरोधी को चाहे जो उजागर और विश्लेषित करे, या कोई भी सत्य सिद्धांतों पर संगति करे, गुमराह हो चुके लोग उसकी बात नहीं सुनते। इसके बजाय, वे सत्य का विरोध करते हुए मसीह-विरोधी के पक्ष में खड़े होते हैं और मसीह-विरोधी को उजागर किए जाने और उसके विश्लेषण की निंदा करते हैं।
मसीह-विरोधी, उनके कट्टर अनुयायी, और उनके अधिकार क्षेत्र के सदस्य हमेशा परमेश्वर के घर के मामलों पर चर्चा और जाँच करते रहते हैं : किसे कहाँ स्थानांतरित किया गया है? किसे बर्खास्त किया गया है? ऊपरवाले ने अमुक-अमुक को उजागर करने के बारे में एक और संगति और धर्मोपदेश जारी किया है—क्या हमें इसका प्रकाशन करना चाहिए? और हम इसे कैसे प्रकाशित करेंगे? इसे पहले किसे उपलब्ध कराया जाएगा और उसके बाद किसे? क्या हमें इसमें हस्तक्षेप करने और कुछ सुधार या संपादन करने की जरूरत है? हाल ही में कौन बाहरी लोगों के संपर्क में रहा है? क्या ऊपरवाले ने किसी को नीचे भेजा है? क्या उनमें से किसी का हमारे निचले स्तर के लोगों से संपर्क था? ऐसी चीजों पर वे अक्सर साथ में चर्चा करते हैं; वे अक्सर ऊपरवाले की सभी कार्य व्यवस्थाओं के प्रत्युत्तर में प्रत्युपायों, योजनाओं और साधनों पर चर्चा करते हुए साँठ-गाँठ करते और षड्यंत्र रचते हैं; और तो और वे अक्सर अपने से नीचे की स्थिति वाले भाई-बहनों की परिस्थितियों पर चर्चा और उनकी जाँच भी करते हैं। मसीह-विरोधी और उनके अधिकार क्षेत्र के सदस्य साथ बैठकर पूरा दिन साजिश रचने में बिताते हैं, अत्यधिक करीबी और बुरे कर्मों में साथ देने वाले होते हैं। जब वे एक साथ होते हैं, तो वे सत्य या परमेश्वर के इरादों पर संगति नहीं करते, कलीसिया के काम, या अपना कर्तव्य कैसे निभाया जाए, कलीसिया के काम को कैसे आगे बढ़ाया जाए, या परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में भाई-बहनों के प्रवेश का मार्गदर्शन कैसे किया जाए, अथवा बाहरी परिस्थितियों पर कैसे प्रत्युत्तर दिया जाए आदि के बारे में तो और भी संगति नहीं करते। वे कभी भी इन उचित चीजों के बारे में संगति नहीं करते हैं, बल्कि जाँच करते हैं कि कौन किसके करीब आ रहा है, ये लोग जब साथ होते हैं तो किसके बारे में बात करते हैं, क्या वे पीठ पीछे अगुआओं के बारे में बात करते हैं; और वे इस बात पर ध्यान देते हैं कि किसका परिवार धनी है और क्या उन्होंने कोई चढ़ावा चढ़ाया है। ये वे चीजें हैं जो वे अकेले में करते हैं, वे हमेशा भाइयों और बहनों और ऊपरवाले की कार्य व्यवस्थाओं की आलोचना करते रहते हैं—वे हमेशा भाई-बहनों और ऊपरवाले के साथ कपट की हर संभव कोशिश करते रहते हैं। अकेले में वे जो करते हैं, वह लज्जाप्रद है : वह यदि कलीसिया के लिए हानिकारक न हो, तो भी भाई-बहनों के लिए हानिकारक होता है; वे हमेशा साजिश रचते रहते हैं या अच्छी काबिलियत वाले और सत्य का अनुसरण करने वाले भाई-बहनों के लिए मुसीबतें खड़ी कर रहे होते हैं, वे हमेशा अच्छे लोगों को नीचा दिखाने या उनके नाम पर कालिख पोतने की कोशिश करते रहते हैं। मसीह-विरोधी जब भी कुछ करते हैं, तो वे हमेशा अपने पक्ष के लोगों के साथ इस पर चर्चा करते हैं—इसमें साजिशें और योजनाएँ शामिल होती हैं। मसीह-विरोधी गिरोह की कही कोई भी बात विश्लेषण के लायक नहीं है; यदि सावधानीपूर्वक विश्लेषण किया जाए तो इन सभी में समस्याएँ मिल जाती हैं। अधिकार क्षेत्र से बाहर के लोगों से वे बातें छिपाते हैं और सावधान रहते हैं; मसीह-विरोधी के अधिकार क्षेत्र में कोई भी बात सीमा से बाहर नहीं होती : वे भाई-बहनों पर, परमेश्वर के घर के काम पर, ऊपरी स्तर के अगुआओं पर, यहाँ तक कि परमेश्वर पर भी फैसले सुनाते हैं। सब कुछ जायज है। लेकिन जब अधिकार क्षेत्र के बाहर का कोई व्यक्ति मौजूद होता है, तो वे अपने शब्द छिपा लेते हैं, चुप्पी साध लेते हैं, बातें नहीं कहते और यहाँ तक कि बाहरी लोगों की समझ में न आने वाली गुप्त भाषा का भी प्रयोग करते हैं। उनकी एक खास मुखाकृति है जिसका एक निश्चित अर्थ है, एक कुटिल मुस्कान है जिसका कुछ मतलब है, यहाँ तक कि एक खँखार और एक खाँसी का भी कुछ मतलब है—ये सभी उनके गुप्त चिह्न हैं। कभी वे अपना सिर खुजाते हैं, कभी वे अपने कान खींचते हैं, कभी वे पैर पटकते हैं, कभी वे अपनी हथेलियाँ आपस में रगड़ते हैं; उन सभी का कुछ न कुछ मतलब होता है। ये सभी मसीह-विरोधी गिरोह की सामान्य अभिव्यक्तियाँ हैं, वे व्यवहार हैं जिन्हें वे कलीसिया की सत्ता पर एकाधिकार हो जाने के बाद प्रकट करते हैं। उनके विभिन्न व्यवहारों और अभिव्यक्तियों के मद्देनजर और उनकी मानवता के दृष्टिकोण से विश्लेषण करें तो, ये लोग क्या हैं? क्या वे कपट और दुष्टता के अनुचर नहीं हैं? (हाँ, हैं।) और क्या इन लोगों में न्याय की कोई भावना है? क्या उनमें कोई जमीर या नैतिकता है? क्या वे ईमानदार हैं? नहीं, इन लोगों को कोई शर्म नहीं है। वे भाई-बहनों द्वारा दिए चढ़ावे को खा जाते हैं, और उसे अपना हक समझते हैं; साथ ही, वे मनमानी करते हैं और परमेश्वर के घर में निरंकुश हो जाते हैं जिससे भाई-बहनों को नुकसान होता है—और वे केवल अस्थाई रूप से कलीसिया पर नहीं पलते, बल्कि पीढ़ी-दर-पीढ़ी हर दिन ऐसा करते रहते हैं। क्या ये मनुष्य का मांस खाने और मनुष्य का रक्त पीने वाले दानव नहीं हैं? वे बेशर्म हैं! मसीह-विरोधी और उनका गिरोह एक साथ बैठकर हमेशा “राष्ट्रीय मामलों” पर चर्चा करते रहते हैं। लेकिन क्या बंद दरवाजों के पीछे उनकी चर्चाएँ लज्जाप्रद हैं? (हाँ।) वे किस बारे में बात करते हैं? क्या वे कलीसिया के काम पर संगति करते हैं? क्या वे कलीसिया के काम का बोझ महसूस करते हैं? कुछ स्थानों पर कलीसिया पर निगरानी रखी जा रही होती है और बड़े लाल अजगर यानी सरकार द्वारा भाई-बहनों का पीछा किया जा रहा होता है, निगरानी की जा रही होती है, और ज्यादातर भाई-बहनों को सरकारी नियंत्रण में रखा गया होता है और उन पर गिरफ्तारी और जेल भेजे जाने का खतरा होता है। क्या उन्हें कोई परवाह है? क्या वे भाई-बहनों की रक्षा करने, उन्हें उत्पीड़न और जेल के कष्टों से बचने में मदद करने का कोई तरीका खोजने की कोशिश करते हैं? अकेले में क्या वे कलीसिया की पुस्तकों, सामान आदि की सुरक्षा कैसे की जाए, इस मसले पर विचार करते हैं ताकि कलीसिया को नुकसान से बचाया जा सके? यदि कोई यहूदा कलीसिया में प्रकट हो जाए, तो क्या वे तुरंत प्रतिक्रिया करते हुए प्रभावित भाई-बहनों की सुरक्षा के लिए तुरंत किसी सुरक्षित स्थान की व्यवस्था करते हैं? क्या वे ऐसी चीजें करेंगे? (नहीं।) जब लोगों के पास सत्ता होती है, तो वे अच्छी चीजें भी कर सकते हैं और बुरी चीजें भी। तो, जब मसीह-विरोधी के पास शक्ति होती है, तो वे क्या करते हैं? (बुरी चीजें।) वे कौन-सी बुरी चीजें करते हैं? (वे ऐसे हर किसी को सताने के तरीके ढूँढ़ते हैं जो उनकी बात नहीं सुनता है। जब परमेश्वर का घर कुछ अगुआओं और कार्यकर्ताओं को काम के बारे में पूछने के लिए भेजता है, तो वे उनसे बचने का एक तरीका ढूँढ़ लेते हैं, या मौके का फायदा उठाने और उनकी आलोचना करने, उनकी निंदा करने, और उन्हें दूर कर देने के कारण ढूँढ़ लेते हैं ताकि उन्हें काम के बारे में पूछताछ करने और उसमें समस्याओं का पता लगाने से रोक सकें।) कुछ मसीह-विरोधी इसके ठीक विपरीत कार्य करते हैं : इस डर से कि भाई-बहन उनकी समस्याओं की रिपोर्ट कर देंगे, वे ऊपरवाले द्वारा भेजे गए अगुआओं पर नजर रखते हैं, उन्हें बढ़िया भोजन और पेय उपलब्ध कराते हैं, और नीचे के भाई-बहनों के संपर्क में आने से रोकते हैं। जब अगुआ भाई-बहनों के बारे में पूछते हैं, तो उनका जवाब होता है, “वे सब अच्छे हैं। फिलहाल, हमारा सुसमाचार का काम आराम से आगे बढ़ रहा है। हमने प्रतिकूल माहौल के कारण उपजे सभी मुद्दों को हल कर लिया है, और उन यहूदा को निष्कासित कर दिया है जिन्होंने हमें धोखा दिया था; हम उन लोगों से निपट चुके हैं जिन्होंने कलीसिया के काम में बाधा डालने की कोशिश की थी, उन सभी को बाहर कर दिया गया है, और परमेश्वर के वचनों की किताबों का वितरण सामान्य रूप से कर दिया गया है। यहाँ बिल्कुल कोई समस्या नहीं है।” ऐसा कहकर वे दूसरे लोगों के बारे में भी कुछ रिपोर्ट करते हैं। ऊपरवाला जब उनकी जाँच के लिए किसी को भेजता है तब अगर उन्हें लगता है कि किसी ने उनकी रिपोर्ट की है—तो उच्च अगुआओं को भटकाने के लिए वे जानबूझकर उस व्यक्ति की समस्याओं की रिपोर्ट करेंगे और आने वाले अगुआओं को यह सोचने पर बाध्य कर देंगे कि मसीह-विरोधी ने जिस व्यक्ति के बारे में रिपोर्ट की है उसमें समस्याएँ हैं, ताकि अगुआओं को कलीसिया के कामकाज की वास्तविक स्थिति जानने और मसीह-विरोधी से जुड़े मसलों का पता लगाने से रोका जा सके और अंततः उन्हें बर्खास्त न किया जाए और उन पर कोई खतरा न रह जाए। अपने अधिकार क्षेत्र की रक्षा करने के पीछे मसीह-विरोधी का उद्देश्य अपनी सत्ता को सुदृढ़ करना और उसे प्रभावी बनाना होता है, और इसलिए वे बहुत-से पिछलग्गू, नौकर, कट्टर अनुयायी और यार बनाते हैं। ऐसे लोगों को बढ़ाने में उनका उद्देश्य सत्ता पर पूर्ण एकाधिकार स्थापित करना होता है, ताकि उसे कमजोर होने या छिनने से रोका जा सके।
मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर के साथ अपने निजी अधिकार क्षेत्र जैसा व्यवहार करते हैं और नेतृत्व पाने के बाद वे जो पहला काम करते हैं वह है सत्ता पर एकाधिकार स्थापित करना। क्या तुम लोगों ने मसीह-विरोधियों द्वारा सत्ता पर एकाधिकार स्थापित करने की किसी घटना के बारे में सोचा है? (अतीत में एक मसीह-विरोधी एक कलीसिया का अगुआ था। जब भी कोई उसकी समस्याएँ बताता या उसे उजागर करता वह उस व्यक्ति को दबा देता और उसकी परमेश्वर के वचनों की पुस्तकें जब्त कर लेता था। स्थिति के बारे में और जानकारी हासिल करने के लिए मैं उसकी कलीसियाओं की कुछ सभा समूहों में गया। इस डर से उसके बुरे कर्म सामने न आ जाएँ, उस मसीह-विरोधी ने मुझे वहाँ से भगाने की कोशिश की और इसे मुझ पर उसकी अनुमति के बिना गोपनीय तरीके से सभाओं में भाग लेने का आरोप लगाने का मौका लपक लिया। बाद में उच्च अगुआओं ने किसी को जाँच के लिए भेजा जिससे मसीह-विरोधी ने मेरी खूब भर्त्सना की, मुझे बदनाम और मुझे नजरबंद करके दूसरे भाई-बहनों को निर्देशित किया कि वे मेरे साथ कोई संबंध न रखें। उस समय एक अगुआ और एक कार्यकर्ता के सहयोग से यह मसीह-विरोधी आठ कलीसियाओं पर नियंत्रण रखता था। अंत में, कई महीनों की संगति और समझाने पर भाइयों-बहनों ने अंततः मसीह-विरोधियों के इस समूह को निकाल दिया।) तो, मसीह-विरोधी इस तरह से काम करते हैं। कलीसिया में वे जो कुछ भी करते हैं उसका लक्ष्य सत्ता पर पकड़ बनाना और लोगों को नियंत्रित करना होता है। वे उस व्यक्ति के प्रति खास तौर पर संवेदनशील होते हैं जो उनके रुतबे और सत्ता के लिए खतरा हो। ऐसे मामलों का पता लगाने में उनकी नाक बहुत तेज होती है और वे तुरंत जान जाते हैं कि ये मामले उनके प्रतिकूल हैं और उनके रुतबे को खतरे में डालने वाले हैं। क्या यह दुष्टतापूर्ण नहीं है? मसीह-विरोधी इन मामलों के बारे में इतने संवेदनशील क्यों होते हैं? दूसरे लोग इसे क्यों नहीं पकड़ पाते? इसका संबंध उनकी प्रकृति से है; केवल मसीह-विरोधी ही इन चीजों के प्रति सजग हो सकते हैं। इससे एक बात साबित होती है : मसीह-विरोधियों का सार इसी प्रकार का होता है। सत्ता के लिए उनकी लालसा असाधारण होती है और उनमें इसके लिए अद्वितीय छटपटाहट होती है। कोई जब ऐसी कलीसिया में जाता है जिसके वे प्रभारी हों, तो वे यह सोचते हुए उस व्यक्ति को गहराई से पढ़ने की कोशिश करते हैं कि “क्या यह व्यक्ति मेरे रुतबे और प्रतिष्ठा के लिए खतरा बन सकता है? वह यहाँ मुझे पदोन्नत करने आया है या मुझे बर्खास्त करने के लिए? क्या वह यहाँ मुझसे जुड़े मुद्दों की जाँच करने आया है या फिर कामकाज के बारे में सामान्य रूप से संगति करने?” वे पहले इन बातों का पता लगाने की कोशिश करते हैं। ऐसे मामलों के प्रति वे विशेष रूप से संवेदनशील होते हैं क्योंकि उनमें रुतबे और सत्ता के प्रति विशेष मोह और लालसा होती है; वे सत्ता और रुतबे के लिए जीते हैं। वे सोचते हैं कि यदि उन्होंने सत्ता खो दी, उनके समर्थक कम हो गए, और वे बिना सेना के सेनापति जैसे हो गए तो जीवन का अर्थ खो जाएगा। इसलिए, मसीह-विरोधी चाहे तीन, पाँच, या दस कलीसियाओं के प्रभारी हों, जो रुतबा और सत्ता उनके पास होती है उसके संबंध में उनका विश्वास है कि जितना अधिक हो, उतना बेहतर। वे अपनी सत्ता दूसरों को बिल्कुल नहीं सौंपते। वे सोचते हैं कि उचित ढंग से यह उनकी ही है, वह चीज जिसके लिए उन्होंने संघर्ष किया, कुछ ऐसी चीज जिसे उन्होंने क्रांति और रणनीति के सहारे हासिल किया। दूसरे अगर इसे पाना चाहते हैं तो उन्हें इसके बदले में अपनी जान देने के लिए तैयार रहना चाहिए। यह बड़े लाल अजगर की तरह है—अगर कोई तानाशाही को समाप्त करने के लिए लोकतांत्रिक परिवर्तन का सुझाव देते हुए कम्युनिस्ट पार्टी से निष्पक्ष चुनाव कराने का आग्रह करे, तो बड़ा लाल अजगर क्या कहेगा? “प्रजातंत्र? तुम इसे दो करोड़ लोगों के सिर के बदले पा सकोगे! कम्युनिस्ट पार्टी ने अनगिनत व्यक्तियों का खून बहाकर यह सत्ता हासिल की है। यदि तुम सत्ता पर कब्जा करना चाहते हो, तो तुम्हें इसके बदले उतने ही लोगों का खून और जीवन देना होगा!” मसीह-विरोधी भी वैसे ही होते हैं। यदि तुम चाहते हो कि वे सत्ता छोड़ दें, तो उन्हें मनाने के लिए केवल सत्य पर संगति करना ही पर्याप्त नहीं होगा; वे तुमसे विवाद करेंगे और लड़ेंगे। उनके तरीके या साधन कितने भी घृणित क्यों न हों, उन्हें अपनी सत्ता की रक्षा करनी होगी। जब तक परमेश्वर के चुने हुए लोग नहीं जागते और उन्हें उजागर करने और हटाने के लिए एकजुट नहीं होते, वे ऐसा नहीं करेंगे। क्या मसीह-विरोधी बहुत दुष्ट नहीं हैं? यह मसीह-विरोधियों के दुष्ट और क्रूर स्वभाव की पूरी तरह से पुष्टि करता है और उदाहरण सहित समझाता है। मसीह-विरोधी इस बात की परवाह नहीं करते कि जो लोग उनके अधीन हैं वे ऐसा स्वेच्छा से करते हैं या नहीं, उनकी रजामंदी सच्ची है या नहीं अथवा वे आज्ञापालन और अनुसरण करने को तैयार हैं या नहीं। वे लोगों को दबाने और नियंत्रित करने के लिए अपनी सत्ता का बलपूर्वक उपयोग करते हैं। कोई भी उनकी अवज्ञा नहीं कर सकता : जो कोई भी उनकी बात नहीं मानेगा, वह दंडित होगा। मसीह-विरोधी ऐसे होते हैं।
अभी-अभी, हमने मसीह-विरोधियों द्वारा सत्ता पर एकाधिकार जमाने के कुछ विशिष्ट अभ्यासों और अभिव्यक्तियों के बारे में संगति की। इन अभ्यासों और अभिव्यक्तियों से क्या हम यह नहीं देख सकते कि मसीह-विरोधियों के पास एक क्रूर और दुष्ट स्वभाव और सार होता है? क्या कोई उन्हें बदल सकता है? क्या उनके साथ तर्क करना, उनकी भावनाओं को जगाना, परमेश्वर के वचनों में मौजूद सत्य को प्रस्तुत करना, उनकी काट-छाँट करना, या वास्तविक भावनाओं के माध्यम से उन्हें बदलने की कोशिश करना आदि में से कोई भी तरीका उन्हें सत्ता पर एकाधिकार करने की आदत छोड़ने को तैयार कर सकता है? (नहीं।) कुछ लोग कहते हैं, “मसीह-विरोधी केवल भ्रष्ट स्वभाव वाले लोग हैं। लोगों में मानवीय भावनाएँ होती हैं। यदि तुम उनसे भावनात्मक रूप से निवेदन करोगे, चीजों को तार्किक रूप से समझाओगे, और उनके सामने पक्ष-विपक्ष रखोगे, तो तर्क समझने के बाद शायद वे इस तरह से कार्य न करें। वे अपनी गलतियाँ स्वीकार कर सकते हैं, पश्चाताप कर सकते हैं और मसीह-विरोधियों के रास्ते पर चलना बंद कर सकते हैं। संभव है कि वे परमेश्वर के घर के भीतर अपना खुद का अधिकार क्षेत्र स्थापित न करें, परमेश्वर के घर में सत्ता पर एकाधिकार करने के लिए अपने कट्टर अनुयायियों को जमा न करें, और ऐसे कामों में न लगें जो मानवता और नैतिकता के अनुरूप नहीं हैं।” क्या मसीह-विरोधियों को इस तरह प्रभावित किया जा सकता है? (नहीं।) क्या कभी किसी ने किसी मसीह-विरोधी को बदला है? कुछ लोग कहते हैं, “शायद छोटी उम्र से उनकी माँ ने उन्हें ठीक से शिक्षा नहीं दी थी जिससे वे खराब हो गए। अब, यदि उसकी माँ या उसके परिवार का सबसे सम्मानित व्यक्ति उससे बात करे, या कोई लंबे समय का विश्वासी उसे समझाए, तो संभव है कि वह उन कामों को छोड़ दे जो मसीह-विरोधी करते हैं।” क्या इसमें कोई सत्य है? (नहीं।) क्यों नहीं? (उनके साथ तर्क करना बेकार है; तुम जितनी ज्यादा बात करोगे, उतना ही वे उससे नाराज होंगे। यदि तुम उन्हें उजागर करते हो और उनकी काट-छाँट करते हो, तो वे तुमसे नफरत करने लगेंगे।) सही कहा। क्या उन्होंने परमेश्वर के वचनों और सत्य को काफी नहीं सुना है? कुछ मसीह-विरोधियों ने दस या बीस वर्षों तक विश्वास किया है फिर भी कोई बदलाव नहीं हुआ। उन्होंने परमेश्वर के वचनों को काफी पढ़ा है, मगर कोई बदलाव क्यों नहीं हुआ? ऐसा इसलिए कि उनके हृदय बुराई से भरे हुए हैं—यहाँ तक कि परमेश्वर भी उन्हें नहीं बचाता, तो, क्या मनुष्य अपने थोड़े-से ज्ञान और धर्म-सिद्धांत से उन्हें बदल सकते हैं? मानव समाज में, देशों में शिक्षा है और समाज में कानून हैं, जो सभी को अच्छा बनने और अपराध करने से बचने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। लेकिन यह लोगों को बदल क्यों नहीं पाता? क्या राष्ट्रीय शिक्षा और व्यवस्थाओं का समाज पर कोई सकारात्मक प्रभाव पड़ा है? क्या राष्ट्र द्वारा प्रचारित उन चीजों का मानवता के लिए कोई शैक्षिक महत्व या मूल्य है? क्या वे प्रभावी रहे हैं? (नहीं।) यहाँ तक कि प्रत्येक देश में कानूनी विभाग, जैसे कि किशोर सुधार सुविधाएँ और जेल हैं जो लोगों को अनुशासित करने के सबसे बड़े और सख्त स्थान हैं, क्या इनसे लोगों का सार बदल गया? बलात्कारियों, चोरों और ठगों को ही लो—वे इतनी बार जेल के अंदर और बाहर जाते हैं कि वे आदतन अपराधी बन जाते हैं—क्या अंततः वे बदलते हैं? नहीं, उन्हें कोई नहीं बदल सकता। किसी व्यक्ति का सार नहीं बदला जा सकता। इसी प्रकार, मसीह-विरोधियों का सार भी नहीं बदला जा सकता है। सत्ता पर एकाधिकार करने का अभ्यास मसीह-विरोधियों के सार को दर्शाता है, और इसे बदला नहीं जा सकता। बदलाव में असमर्थ इस प्रकार के व्यक्ति के प्रति परमेश्वर का रवैया क्या है? क्या यह उसे बदलने और बचाने के लिए अपना अधिकतम प्रयास करने और फिर उनकी प्रकृति में परिवर्तन लाने का रवैया है? क्या परमेश्वर यह कार्य करता है? (नहीं।) अब जब तुम लोग समझ गए हो कि परमेश्वर इस तरह का काम नहीं करता, तो तुम्हें मसीह-विरोधियों से कैसे निपटना चाहिए? (उन्हें अस्वीकार करो।) पहले, भेद पहचानो और गहन-विश्लेषण करो; जब तुम उनकी असलियत जान लो, तो उन्हें अस्वीकार कर दो। केवल अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर किसी को यह सोचकर अस्वीकार न करो कि वह अहंकारी और आत्मतुष्ट है और मसीह-विरोधी जैसा है। इससे काम नहीं चलेगा; तुम दृष्टिहीन नहीं बन सकते। संपर्क, जाँच और विवेक के माध्यम से, धीरे-धीरे स्थापित करो और पुष्टि करो कि कोई व्यक्ति मसीह-विरोधी है। पहले, संगति करो और सभी के सामने उनका गहन-विश्लेषण करो, उन्हें समझो, और फिर कलीसिया में उन लोगों के साथ एकजुट हो जो सत्य का अनुसरण करते हैं और मसीह-विरोधी को अस्वीकार करने के लिए न्याय की भावना रखते हैं। पहले उनका भेद पहचानो और गहन-विश्लेषण करो, और तब उन्हें अस्वीकार करो—मसीह-विरोधियों से निपटने का यही सबसे अच्छा तरीका है। पाखंड में माहिर और काफी चालाक कुछ मसीह-विरोधियों से संपर्क करने के द्वारा तुमने जाँच की है और उनकी पहचान की है, पुष्टि की है कि वे मसीह-विरोधी हैं, पर भाई-बहनों को उनके बारे में अच्छी तरह से पता नहीं है और उनमें वास्तविक विवेक की कमी है, तो जब तुम उन भाई-बहनों के साथ संगति करते हो और मसीह-विरोधी का विश्लेषण करते हो, तो वे न केवल उसके मसीह-विरोधी होने की बात पर विश्वास नहीं करते या इसे अस्वीकार करते हैं बल्कि यहाँ तक कहते हैं कि “तुम उसके प्रति पूर्वाग्रही हो; यह तुम्हारी व्यक्तिगत राय है”—तो तुम्हें क्या करना चाहिए? यदि तुम कहते हो कि “जो भी हो, मैंने उसकी पहचान कर ली है, मैं उसके द्वारा गुमराह या उससे बेबस नहीं होऊँगा, मैं उसकी बात नहीं सुनूँगा, और निश्चित रूप से मैं उसकी आज्ञा का पालन नहीं करूँगा। तुम लोग उसे पहचानो या नहीं, यह मेरी चिंता का विषय नहीं है। मैंने तो तुम लोगों को उसकी अभिव्यक्तियों और उसके कामों के बारे में बता दिया है, और तुम लोग इस पर विश्वास करो या न करो, सुनो या न सुनो, मेरी जिम्मेदारी तो पूरी हुई। यदि तुम उसके गुमराह करने और नियंत्रण में रहते हो, यदि तुम उसके कहे पर ध्यान देते हो और उसकी बातों का पालन करते हो, तो इसके परिणामों के ही हकदार हो और यह तुम्हारी बदकिस्मती है!”—क्या यह दृष्टिकोण स्वीकार्य है? क्या इसे तुम्हारी जिम्मेदारी पूरी करने के रूप में देखा जा सकता है? क्या इसे परमेश्वर के प्रति वफादार होना माना जा सकता है? (नहीं।) तो, तुम्हें क्या करना चाहिए? ऐसी चीजें अपरिहार्य हैं; ऐसे मामले तो उठेंगे ही। कुछ लोग, चाहे वे कितने भी धर्मोपदेश सुनें, सत्य नहीं समझ सकते, और वे मसीह-विरोधियों की अभिव्यक्तियों को उन धर्मोपदेशों से जोड़ने या उनका भेद पहचानने में असमर्थ रहते हैं जो उन्होंने सुने हैं। किसी व्यक्ति के मसीह-विरोधी होने की बात जब दिन की तरह साफ हो तब भी वे इसे नहीं देख पाते हैं और गुमराह हो जाते हैं। जब तक मसीह-विरोधी उन्हें व्यक्तिगत रूप से नुकसान नहीं पहुँचाता, उन्हें नहीं दबाता, उन्हें नहीं डाँटता, उनकी काट-छाँट नहीं करता, या उनके बिल्कुल सामने खराब आचरण नहीं करता, वे उसका मसीह-विरोधी होना स्वीकार नहीं करेंगे। भले ही दूसरे लोग तथ्य बताएँ या सबूत पेश करें, वे उस पर विश्वास नहीं करते। उन्हें इसे स्वीकार करने से पहले अपनी आँखों से देखना होता है कि मसीह-विरोधी क्या करता है और व्यक्तिगत रूप से मसीह-विरोधियों के दुर्व्यवहार का अनुभव करना होता है। इस स्थिति में क्या किया जाना चाहिए? (उन्हें मसीह-विरोधियों का अनुसरण करने देते हुए दुर्व्यवहार का अनुभव करने देना चाहिए; दुर्व्यवहार सहने के बाद ही उनकी नींद टूटेगी।) क्या यह थोड़ा कठोर होना नहीं है? (यह उनके साथ कठोर व्यवहार करना नहीं है। ऐसे लोग संगति के माध्यम से सत्य नहीं समझ सकते, वे व्यक्तिगत रूप से दुर्व्यवहार का अनुभव करके ही जागरूक हो सकते हैं और जाग सकते हैं। इसलिए, ऐसे लोगों से निपटने का यही एकमात्र तरीका है।) यह एक सिद्धांत है। कुछ लोग सकारात्मक तरीके से बात करने पर उसे समझ नहीं पाते; उनमें इसे समझने की क्षमता का अभाव होता है। उदाहरण के लिए, यदि तुम उन्हें बताओ, “वह क्षेत्र खतरनाक है; यदि तुम रात में अकेले जाओगे, तो लुटेरे मिल सकते हैं। ऐसा कई लोगों के साथ हुआ है। रात को टहलने न जाओ; जल्दी वापस आओ!” वे इस पर विश्वास नहीं करते और बिना किसी को साथ लिए रात में अकेले टहलने पर जोर देते रहते हैं। उस स्थिति में तुम उन्हें अकेले घूमने देते हो, लेकिन यह सुनिश्चित करते हुए कि वे वास्तव में परेशानी में न पड़ें, तुम गुप्त रूप से उनकी रक्षा करते हो। यह तुम्हारी जिम्मेदारी निभाना है। जब असल में मुसीबत आती है, तो तुम उनकी रक्षा कर सकते हो, किसी भी मुसीबत को उनके पास आने से रोक सकते हो, और उन्हें सबक सीखने और उसे याद रखने में मदद कर सकते हो। आखिरकार, वे विश्वास करेंगे कि तुमने जो कहा था, वह सही था। इसलिए, जो लोग मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह किए जाते हैं और सत्य की चाहे जैसी संगति की जाए, वे उनका भेद नहीं पहचान पाते हैं, उनको गंभीर नुकसान उठाना होगा, सबक सीखना होगा, और भेद पहचान पाने की क्षमता पैदा करने के लिए इसे स्मृति में रखना होगा। जो भ्रमित लोग होते हैं और सलाह को नजरअंदाज करते हैं, वे मसीह-विरोधियों की दुष्टता और क्रूरता को नहीं समझ सकते, यहाँ तक कि मसीह-विरोधियों के साथ भाई-बहनों की तरह व्यवहार करते हैं, उनके साथ वैसे ही बातचीत करते हैं, प्यार से उनकी मदद करते हैं और उनके साथ ईमानदारी से व्यवहार करते हैं, दिल से बात करते हैं। इसके परिणामस्वरूप, वे मसीह-विरोधियों के शिकार बन जाते हैं। कुछ लोगों को समझ पैदा करने से पहले एक बार नहीं, बल्कि कई बार नुकसान उठाना होता है। फिर जब तुम उनके साथ संगति करते हो और उनकी मदद करते हो, तो वे तुम पर विश्वास करते हैं। यह एक प्रभावी तरीका है और कुछ लोगों को ऐसी चीजों से परेशानी उठानी पड़ती है। अतीत में, एक भ्रमित व्यक्ति था जिसमें समझ की कमी थी और जब परमेश्वर के घर ने एक मसीह-विरोधी को बर्खास्त कर दिया तो वह नाराज हो गया। मसीह-विरोधी के बुरे कर्म स्पष्ट थे और उसे मसीह-विरोधी के रूप में निरूपित भी किया गया था। उसके अलावा सभी ने इसे स्वीकार किया, और कोई भी उसके साथ संगति नहीं कर सका। अंततः, वह मसीह-विरोधी के पीछे-पीछे बाहर चला गया। एक अवधि के बाद, गंभीर क्षति झेलने के बाद, वह आंसुओं के साथ लौटा और स्वीकार किया कि मसीह-विरोधी वास्तव में भयानक था। वास्तव में, मसीह-विरोधी हमेशा से इतना ही बुरा था, लेकिन क्योंकि उसके मन में मसीह-विरोधी के बारे में अच्छी भावना थी और वह उसकी चापलूसी करना चाहता था, इसलिए उसने मसीह-विरोधी की हर बात को सहन और समायोजित किया। जब मसीह-विरोधी ने अपना रुतबा खो दिया, तो उसने मसीह-विरोधी के साथ समान स्तर पर बातचीत की और मसीह-विरोधी द्वारा किए गए कुछ कामों के बारे में राय बनाने लगा। उसका नजरिया बदल गया और उसने समस्याओं को देखना शुरू कर दिया। अंत में, फिर से मसीह-विरोधी का अनुसरण करने के लिए कहे जाने पर भी, उसने साफ तौर पर इनकार कर दिया—वह मसीह-विरोधी का अनुसरण करने के बजाय मरने को तैयार था, क्योंकि उसे बहुत क्षति हुई थी और उसने मसीह-विरोधी की असलियत जान ली थी। वास्तव में, उसने जो देखा वह उसे पहले ही बताया गया था, लेकिन तब उसने इसे मानने या स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। इसे रोका नहीं जा सकता था। ऐसे लोगों को घुमावदार रास्ता अपनाना पड़ता है और अधिक कठिनाई सहनी पड़ती है—वे इस पीड़ा के लायक हैं। मैं यह क्यों कहता हूँ कि वे इसी लायक हैं? मेरा मतलब यह है कि जब तुम्हारे पास आशीष हैं, लेकिन तुम उनका आनंद लेने से इनकार करते हो, और कष्ट सहने पर अड़े रहते हो—तो इसमें कुछ नहीं किया जा सकता—तुमको पहले कठिनाई और कष्ट सहना होगा। तुम इस कष्ट के लायक हो।
सत्ता पर एकाधिकार स्थापित करते हुए मसीह-विरोधी प्राथमिक रूप से महत्वपूर्ण काम उन्हें सौंपते हैं जो बिना कोई सवाल किए उनकी आज्ञा का पालन करें। इसके बाद वे उन अस्थिरचित्त लोगों को प्रशिक्षित करते हैं जिनके दिमाग को बदला जा सकता है, उन्हें वे अपने पक्ष में करते हैं। ये लोग जब पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित हो जाते हैं और मसीह-विरोधी के अधिकार क्षेत्र के सदस्य बन जाते हैं, तो मसीह-विरोधी को चैन आ जाता है। जहाँ तक उन लोगों की बात है जिनका वे इस्तेमाल नहीं कर पाते, मसीह-विरोधी उन्हें पूरी तरह छोड़ देते हैं, और उन्हें अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर रखते हैं। वे सभी जो बिना प्रश्न किए उनकी बात मानते हैं, मसीह-विरोधी के कट्टर समर्थक और उनके अधिकार क्षेत्र के विश्वसनीय सदस्य माने जाते हैं। वे इन लोगों को अपने अनुगामियों, पिछलग्गुओं और भरोसे के लोगों की तरह देखते हैं। उनकी सत्ता का इस समूह में बोलबाला होता है; मतलब कि उन लोगों के माध्यम से प्रभावी तरीके से प्रयोग की जाती है। इसलिए कहा जा सकता है कि जब मसीह-विरोधी सत्ता पर एकाधिकार स्थापित करते हैं और परमेश्वर के घर को अपने अधिकार क्षेत्र में बदलते हैं, तो उन्हें इसके लिए काफी प्रयास करने होते हैं। वे बहुत-से क्रियाकलाप करते हैं और इसकी काफी कीमत चुकाते हैं, लेकिन इसका परिणाम होता है परमेश्वर से, सत्य से और सत्य का अनुसरण करने वाले सभी भाई-बहनों से शत्रुता। ऐसी सत्ता का मूल्य और महत्व क्या है? यह इस तथ्य में निहित है कि मसीह-विरोधी परमेश्वर और उसके घर से लड़ने की पूँजी पा जाते हैं, अपने गढ़ स्थापित करते हैं, स्वतंत्र राज्यों का निर्माण करते हैं और उनके पास स्वतंत्र रूप से काफी सत्ता होती है।
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