मद चौदह : वे परमेश्वर के घर को अपना निजी अधिकार क्षेत्र मानते हैं (खंड एक)
पिछली सभा में हमने इस बात पर संगति की थी कि मसीह-विरोधी लोगों के हृदयों के साथ-साथ कलीसिया का वित्त भी नियंत्रित करते हैं। हमने जिन मुख्य बिंदुओं पर संगति की थी वे क्या थे? (हमने दो बिंदुओं के बारे में संगति की थी : पहला बिंदु था कलीसिया की संपत्ति पर अपने कब्जे और उपयोग को प्राथमिकता देना, जबकि दूसरा बिंदु भेंटें बरबाद करने, उनका दुरुपयोग करने, उन्हें उधार देने, उनका कपटपूर्ण उपयोग करने और उनकी चोरी करने आदि से संबंधित था।) हमने उन दो मुख्य बिंदुओं पर संगति की थी। आज हम मसीह-विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों के चौदहवें मद के बारे में संगति करेंगे : वे परमेश्वर के घर को अपना निजी अधिकार क्षेत्र मानते हैं। आओ, इस मद में देखें कि मसीह-विरोधियों की किन अभिव्यक्तियों से साबित होता है कि उनके पास मसीह-विरोधी का सार है। वे परमेश्वर के घर से अपने निजी अधिकार क्षेत्र की तरह पेश आते हैं : सतही तौर पर इन दो पदों—“परमेश्वर का घर” और “निजी अधिकार क्षेत्र”—से ऐसा कोई संकेत नहीं मिलता कि मसीह-विरोधी क्या बुराई कर सकते हैं। यह कहने से कि “मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर से अपने घर की तरह पेश आते हैं” इस बात का कोई प्रत्यक्ष संकेत नहीं मिलता है कि “घर” शब्द क्या संदर्भित कर रहा है, वह कुछ सकारात्मक है या नकारात्मक, इसका उपयोग प्रशंसा-भाव से हो रहा है या निंदात्मक रूप में। लेकिन क्या “घर” के स्थान पर “निजी अधिकार क्षेत्र” का उपयोग करने पर कुछ अनुमान होता है कि यहाँ कुछ समस्या है? सबसे पहले, “निजी अधिकार क्षेत्र” से क्या पता लगता है? (मसीह-विरोधी चाहते हैं कि अंतिम निर्णय वे लें।) इसके अलावा और क्या? (वे परमेश्वर के घर से ऐसे पेश आते हैं मानो वह उनका अपना प्रभाव क्षेत्र हो, जहाँ वे यारों और अपने घर के लोगों को आगे बढ़ाते हैं, और फिर कलीसिया पर नियंत्रण हासिल करते हैं।) यह भी मसीह-विरोधियों की अभिव्यक्ति है। और कुछ? क्या इस वाक्यांश का सतही अर्थ यह दर्शाता है कि यह मसीह-विरोधियों का प्रभाव क्षेत्र है, कि यही वह जगह है जहाँ सत्ता और प्रभुत्व मसीह-विरोधियों के हाथ में है, यही वह जगह है जहाँ सब कुछ मसीह-विरोधियों के नियंत्रण, एकाधिकार और दमन में है, वह स्थान जहाँ मसीह-विरोधियों की तूती बोलती है? (हाँ।) हम इस वाक्यांश से ऐसे अर्थ निकाल सकते हैं; क्योंकि जब पहले मसीह-विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों पर चर्चा की जा रही थी, तो हमने मसीह-विरोधियों के सार का गहन-विश्लेषण करने और उसे उजागर करने के बारे में काफी संगति की थी। इन अभिव्यक्तियों में से मुख्य हैं मसीह-विरोधियों के लोगों को नियंत्रित करने और सत्ता का उपयोग करने के प्रयास—यद्यपि निश्चित रूप से कई अन्य अभिव्यक्तियाँ भी हैं।
अब जब हमने मसीह-विरोधियों द्वारा “निजी अधिकार क्षेत्र” का उपयोग करने के सामान्य अर्थ पर संगति कर ली है, तो आओ अब हम इस पर संगति करें कि “परमेश्वर के घर” का ठीक-ठीक अर्थ क्या है। क्या तुम लोगों के पास कोई अवधारणा है कि परमेश्वर का घर क्या है—क्या तुम लोग इसकी कोई सटीक परिभाषा दे सकते हो? भाई-बहनों का एक एकत्रित समूह—क्या यह “परमेश्वर का घर” है? क्या मसीह और परमेश्वर का अनुसरण करने वाले लोगों के एकत्र होने या उनकी सभा को परमेश्वर का घर माना जाता है? क्या कलीसिया के अगुआओं, उपयाजकों और विभिन्न दलों के अगुआओं के एक साथ होने को परमेश्वर का घर माना जाता है? (नहीं।) तो, आखिर परमेश्वर का घर है क्या? (परमेश्वर का घर केवल वह कलीसिया है जहाँ मसीह का शासन हो।) (केवल ऐसे लोगों के समूह को परमेश्वर का घर माना जा सकता है जो परमेश्वर के वचनों को अपने अभ्यास के सिद्धांतों के रूप में अपनाते हों।) क्या ये दोनों परिभाषाएँ बिल्कुल सही हैं? तुम लोग इसे समझा नहीं सकते। इतने सारे धर्मोपदेश सुनकर भी तुम लोग इसकी आसान परिभाषा देने में असमर्थ हो। जाहिर है कि तुम लोगों को इन आध्यात्मिक शब्दों और शब्दावली को गंभीरता से लेने और उन पर उचित विचार करने की आदत नहीं है। तुम लोग कितने लापरवाह हो! तो, इस पर फिर से विचार करो : परमेश्वर के घर का बिल्कुल ठीक-ठीक अर्थ क्या है? यदि इसे सैद्धांतिक रूप से परिभाषित किया जाए, तो परमेश्वर का घर एक ऐसा स्थान है जहाँ सत्य का शासन होता है, ऐसे लोगों का समूह है जिनके अभ्यास के सिद्धांत परमेश्वर के वचन हैं। ऐसी स्थिति में, मसीह-विरोधियों द्वारा परमेश्वर के घर को अपना निजी अधिकार क्षेत्र मानना समस्या वाली बात है; वे परमेश्वर का अनुसरण करने वाले भाई-बहनों की सभा से अपने व्यक्तिगत प्रभाव क्षेत्र के तौर पर पेश आते हैं, उस स्थान के रूप में पेश आते हैं जहाँ वे सत्ता का प्रयोग करते हैं और उस वस्तु के रूप में पेश आते हैं जिस पर वे शक्ति का प्रयोग करते हैं। मसीह-विरोधियों के परमेश्वर के घर से अपने निजी अधिकार क्षेत्र के तौर पर पेश आने के द्वारा यही शाब्दिक अर्थ समझा जा सकता है। तुम इसे किसी भी कोण से समझाओ या देखो, मसीह-विरोधियों का परमेश्वर के घर से अपने निजी अधिकार क्षेत्र के रूप में पेश आना लोगों को गुमराह करने और उन्हें नियंत्रित करने और पूर्ण सत्ता स्थापित करने का उनका प्रकृति सार दर्शाता है। परमेश्वर का घर वह स्थान है जहाँ परमेश्वर काम करता है और बोलता है, जहाँ परमेश्वर लोगों को बचाता है, जहाँ परमेश्वर के चुने हुए लोग परमेश्वर के काम का अनुभव करते हैं, शुद्ध किए जाते हैं और उद्धार पाते हैं, जहाँ परमेश्वर की इच्छा और इरादे निर्बाध तरीके से लागू किए जा सकते हैं, और जहाँ परमेश्वर की प्रबंधन योजना क्रियान्वित एवं पूरी की जा सकती है। संक्षेप में, परमेश्वर का घर वह स्थान है जहाँ सत्ता परमेश्वर के हाथ में है, जहाँ परमेश्वर के वचनों और सत्य का शासन होता है; वह ऐसा स्थान नहीं है जहाँ कोई व्यक्ति शक्ति का प्रयोग करता है और अपना खुद का व्यक्तिगत उद्यम पूरा करता है ताकि अपनी खुद की इच्छाओं अथवा भव्य योजनाओं को हासिल कर सके। परंतु, मसीह-विरोधी जो भी करते हैं वह बिल्कुल परमेश्वर की इच्छा के विरुद्ध होता है : वे इस बात पर ध्यान नहीं देते और गौर नहीं करते कि वह क्या है जो परमेश्वर करना चाहता है, उन्हें इस बात की परवाह नहीं है कि क्या परमेश्वर के वचन लोगों के बीच फलीभूत होते हैं, न ही वे इस बात की परवाह करते हैं कि क्या लोग परमेश्वर के वचन और सत्य सिद्धांतों को समझ पा रहे हैं, अभ्यास में ला और उनका अनुभव कर पा रहे हैं; वे केवल इस बात पर विचार करते हैं कि उनके पास रुतबा, ताकत और अंतिम निर्णय है या नहीं, और क्या उनके इरादों, विचारों और इच्छाओं को लोगों के बीच साकार किया जा सकता है। अर्थात्, उनके प्रभाव क्षेत्र के भीतर कितने लोग उनकी बातें सुनते हैं और उनका आज्ञापालन करते हैं, और उनकी छवि, प्रतिष्ठा और अधिकार किस प्रकार के हैं—यही वे प्रमुख चीजें हैं जिनके प्रबंधन का वे प्रयास करते हैं, और यही वे बातें हैं जिनकी उन्हें अपने दिल में सबसे अधिक परवाह होती है। परमेश्वर मनुष्यों के बीच बोलता और कार्य करता है, वह लोगों को बचाता है, लोगों की अगुआई करता है, लोगों का भरण-पोषण करता है, लोगों को परमेश्वर के सामने आने, उसके इरादों को समझने, कदम-दर-कदम सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने और धीरे-धीरे परमेश्वर के प्रति समर्पण प्राप्त करने में मार्गदर्शन देता है। मसीह-विरोधी जो कुछ भी करते हैं, वह ठीक इसके उलट होता है। परमेश्वर लोगों को परमेश्वर के सामने लाने में उनकी अगुआई करता है, फिर भी मसीह-विरोधी इन लोगों के लिए परमेश्वर से होड़ करते हैं और उन्हें अपने सामने लाने की कोशिश करते हैं। सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने, परमेश्वर के इरादों को समझने और कदम-दर-कदम परमेश्वर के प्रभुत्व के प्रति समर्पण करने में परमेश्वर लोगों का मार्गदर्शन करता है; मसीह-विरोधी कदम-दर-कदम लोगों को नियंत्रित करने, उनकी गतिविधियों पर नजर रखने और उन्हें मजबूती से अपनी शक्ति के अधीन करने का प्रयास करते हैं। सार रूप में, मसीह-विरोधी जो कुछ भी करते हैं वह परमेश्वर के अनुयायियों को अपने अनुयायियों में बदलने के लिए होता है; जब वे सत्य का अनुसरण न करने वाले भ्रमित लोगों को जीतकर अपनी सत्ता के अधीन कर लेते हैं, तो वे एक कदम आगे बढ़ते हैं और उन लोगों को जीतकर अपनी सत्ता के अधीन करने का हर संभव प्रयास करते हैं जो परमेश्वर का अनुसरण करने और निष्ठापूर्वक अपना कर्तव्य निभाने में सक्षम हैं, कलीसिया में सभी लोगों को अपनी बातें सुनने को और उन्हें मसीह-विरोधियों की इच्छा के अनुसार जीने, कार्य करने, आचरण करने और सब कुछ करने को मजबूर करते हैं ताकि वे अंततः मसीह-विरोधियों की हर बात मानें, उनकी इच्छाओं का पालन करें और उनकी माँगें पूरी करें। कहने का तात्पर्य यह है कि, परमेश्वर जो भी करना चाहता है, परमेश्वर जो भी प्रभाव प्राप्त करना चाहता है, मसीह-विरोधी भी वही परिणाम पाना चाहते हैं। वे जो परिणाम प्राप्त करना चाहते हैं वह यह नहीं है कि लोग परमेश्वर के सामने आएँ और परमेश्वर की आराधना करें, बल्कि यह है कि वे उनके सामने आएँ और उनकी आराधना करें। कुल मिलाकर, जब मसीह-विरोधियों के पास ताकत होती है, तो वे अपने प्रभाव क्षेत्र में प्रत्येक व्यक्ति और वस्तु को नियंत्रित करने का प्रयास करते हैं, वे जिस भी क्षेत्र को नियंत्रित कर सकते हैं उसे नियंत्रित करने का प्रयास करते हैं, वे कलीसिया, परमेश्वर के घर, और उन लोगों को वह क्षेत्र बनाने का प्रयास करते हैं जहाँ वे अपनी सत्ता का उपयोग करते हैं और शासन कर सकते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि परमेश्वर लोगों को अपने सामने लाता है, जबकि मसीह-विरोधी लोगों को गुमराह करते हैं और लोगों को अपने सामने लाना चाहते हैं। यह सब करने के पीछे मसीह-विरोधियों का लक्ष्य परमेश्वर के अनुयायियों को अपना अनुयायी बनाना, परमेश्वर के घर और कलीसिया को अपने घर में बदल देना है। चूँकि मसीह-विरोधियों में ये प्रेरणाएँ और सार हैं, ऐसे में उनकी कौन-सी विशिष्ट अभिव्यक्तियों और व्यवहार से प्रदर्शित होता है कि ये मसीह-विरोधी, मसीह-विरोधी ही हैं, कि वे परमेश्वर के शत्रु हैं, कि वे ऐसे राक्षस और शैतान हैं जो परमेश्वर और सत्य के प्रति शत्रुता रखते हैं? इसके बाद, हम इसका ठोस विश्लेषण करेंगे कि मसीह-विरोधियों में किस प्रकार की विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ और व्यवहार हैं जिनसे साबित होता है कि वे परमेश्वर के घर से अपने निजी अधिकार क्षेत्र के रूप में पेश आते हैं।
I. मसीह-विरोधी सत्ता पर एकाधिकार जमाते हैं
मसीह-विरोधियों द्वारा परमेश्वर के घर से अपने निजी अधिकार क्षेत्र की तरह पेश आने की पहली अभिव्यक्ति पर हमने अक्सर संगति की है, और यह एक आवश्यक अभिव्यक्ति है जो खास मसीह-विरोधियों में होती है : मसीह-विरोधी किसी भी चीज से ज्यादा प्रेम रुतबे से करते हैं। उन्हें रुतबा सबसे ज्यादा क्यों पसंद है? रुतबा किस बात का प्रतिनिधित्व करता है? (सत्ता का।) सही कहा—यही कुंजी है। रुतबा होने पर ही उनके पास सत्ता हो सकती है, और केवल सत्ता होने पर ही वे आसानी से काम करवा सकते हैं; केवल सत्ता से ही उनकी विभिन्न इच्छाएँ, महत्वाकांक्षाएँ और लक्ष्यों के साकार होने और वास्तविकता में बदलने की उम्मीद की जा सकती है। तो, मसीह-विरोधी बहुत चालाक होते हैं, वे ऐसे मामलों में बहुत स्पष्ट दृष्टि रखते हैं; यदि उन्हें परमेश्वर के घर को अपना निजी अधिकार क्षेत्र बनाना है, तो उन्हें पहले सत्ता पर एकाधिकार स्थापित करना होगा। यह एक प्रमुख अभिव्यक्ति है। जिन मसीह-विरोधियों से तुम लोगों का सामना हुआ है, जिनके बारे में तुमने सुना है, या अपनी आँखों से देखा है, उनमें से कौन ऐसा था जिसने सत्ता पर एकाधिकार स्थापित करने की कोशिश नहीं की? वे चाहे जो भी साधन अपनाएँ, चाहे मक्कारी और चालाकी हो, चाहे बाहरी तौर पर संतुलित और मिलनसार होना हो, या ज्यादा शातिर और बहुत नीच साधनों का उपयोग करना, या हिंसा का सहारा लेना हो, मसीह-विरोधियों का केवल एक ही उद्देश्य होता है : रुतबा हासिल करना और फिर सत्ता का इस्तेमाल करना। इसलिए, मैं जिस पहली बात पर संगति करना चाहता हूँ वह यह है कि बाकी सारी बातों से पहले, मसीह-विरोधी सत्ता पर एकाधिकार जमाने की कोशिश करते हैं। मसीह-विरोधियों में सत्ता पाने की इच्छा सामान्य लोगों से कहीं अधिक होती है; उनमें यह भ्रष्ट स्वभाव वाले सामान्य लोगों से कहीं ज्यादा होती है। भ्रष्ट स्वभाव वाले सामान्य लोग केवल इतना चाहते हैं कि दूसरे लोग उनके बारे में अच्छा सोचें, उनके बारे में अच्छी राय रखें; बात करते समय उन्हें ज्यादा प्रमुखता हासिल करना अच्छा लगता है, लेकिन सत्ता न होने से या लोगों की आराधना का पात्र न होने से उन्हें बहुत तकलीफ नहीं होती; यह सब उनके पास हो या न हो, उनका काम चल जाता है; वे सत्ता थोड़ी पसंद करते हैं और उसकी लालसा तो रखते हैं, लेकिन मसीह-विरोधियों की हद तक नहीं। और वह कौन-सी हद है? सत्ता न होने पर वे लगातार बेचैन रहते हैं, उन्हें शांति नहीं मिलती, वे ढंग से न खा पाते हैं, न सो पाते हैं, हर दिन उनके लिए केवल बोरियत और बेचैनी लेकर आता है, और अपने दिलों में वे महसूस करते रहते हैं जैसे यह कुछ ऐसा है जिसे पाने में वे असफल हो रहे हैं, और यह भी कि मानो कुछ ऐसा है जिसे वे खो चुके हैं। सामान्य भ्रष्ट मनुष्य सत्ता पाकर खुश होते हैं, लेकिन उसके न होने से बहुत ज्यादा परेशान नहीं होते; वे थोड़ी निराशा महसूस कर सकते हैं, किंतु सामान्य व्यक्ति होने में भी वे संतुष्ट रहते हैं। यदि मसीह-विरोधियों को सामान्य रहना पड़े, तो वे जिंदा ही नहीं रह सकते, जीवन में आगे ही नहीं बढ़ सकते, ऐसा लगता है जैसे उनके जीवन की दिशा और उद्देश्य खो गए हैं, वे नहीं जानते कि जीवन के मार्ग पर आगे कैसे बढ़ें। रुतबा होने पर ही उन्हें महसूस होता है कि उनका जीवन प्रकाश से भरा है, केवल रुतबे और सत्ता से ही उनका जीवन गौरवशाली, शांतिपूर्ण और खुशहाल बनता है। क्या यह सामान्य लोगों से अलग नहीं है? रुतबा पा लेने पर मसीह-विरोधी असामान्य रूप से उत्साहित हो जाते हैं। दूसरे लोग यह सब देखकर सोचते हैं कि वे पहले से इतना बदले हुए क्यों हैं? वे इतने कांतिमान और दीप्तिमान क्यों हैं? वे इतने खुश क्यों हैं? पूछने पर पता चलता है कि ऐसा इसलिए है क्योंकि उनके पास रुतबा है; सत्ता है; अंतिम निर्णय है; वे आसपास के लोगों पर रौब जमा सकते हैं; वे सत्ता का इस्तेमाल कर सकते हैं; उनकी प्रतिष्ठा है; और उनके पास उनके समर्थक हैं। रुतबा और सत्ता होने पर मसीह-विरोधियों के मानसिक नजरिये में कुछ बदलाव आ जाता है।
मसीह-विरोधियों की सत्ता लिप्सा संकेत करती है कि उनका सार सामान्य नहीं है; यह कोई सामान्य भ्रष्ट स्वभाव नहीं है। और इसलिए, इस बात की परवाह किए बिना कि वे किसके बीच हैं, मसीह-विरोधी अलग दिखने, दिखावा करने, अपने बारे में प्रचार करने, हर किसी को अपनी खूबियाँ और सद्गुण दिखाने और उनकी ओर सबका ध्यान खींचने, और कलीसिया में अपने लिए कुछ पद पाने का तरीका खोजने की कोशिश करते हैं। जब कलीसिया के चुनाव होते हैं, तो मसीह-विरोधियों को लगता है कि उनका मौका आ गया है : खुद का प्रचार करने का मौका, अपनी इच्छाओं को वास्तविकता में बदलने का मौका, और अपनी इच्छाएँ पूरी करने का मौका आ गया है। वे अगुआ चुने जाने के लिए जो बन पड़े वो करते हैं, सत्ता हासिल करने की हर संभव कोशिश करते हैं, वे मानते हैं कि सत्ता हासिल करने से उनके लिए काम करवाना आसान हो जाएगा। आसान क्यों होगा? मसीह-विरोधियों के पास जब कोई ताकत नहीं होती, तो बहुत संभव है कि तुम उनके बाहरी रूप से उनकी महत्वाकांक्षाओं, इच्छाओं और सार की पहचान न कर सको, क्योंकि वे उन्हें छिपा कर रखते हैं, और दिखावा करते हैं, ताकि तुम उन चीजों की असलियत न देख सको। लेकिन एक बार रुतबा और सत्ता हासिल होते ही वे सबसे पहले क्या करते हैं? वे अपने रुतबे को मजबूत करने, अपने हाथों में सत्ता का विस्तार करने और उसे सुदृढ़ करने का प्रयास करते हैं। और वे अपनी सत्ता को ठोस बनाने और अपनी स्थिति मजबूत करने के कौन-से तरीके अपनाते हैं? मसीह-विरोधियों के पास कई साधन हैं; वे ऐसा अवसर नहीं चूकते, जब वे सत्ता पर काबिज हो चुके होते हैं तो निष्क्रिय नहीं रहते। उनके लिए, ऐसे मौकों का आना बहुत प्रसन्नता की बात होती है—और इसी समय वे अपनी धूर्तता को काम में लाते हैं, और अपनी क्षमताओं का पूरा उपयोग करते हैं। कोई मसीह-विरोधी निर्वाचित होने के बाद, सबसे पहले अपने परिवार और रिश्तेदारों की पड़ताल करके यह जाँचता है कि कौन उससे करीब से जुड़ा है, कौन उसका घनिष्ठ है, कौन उसकी चापलूसी करता है, और कौन उससे मेलजोल रखता है और उस जैसी ही भाषा बोलता है। वह यह भी जाँचता है कि कौन ईमानदार है, कौन उसका पक्ष नहीं लेगा, परमेश्वर के घर के नियमों और सिद्धांतों के विरुद्ध जाने वाला कोई काम करने पर कौन उसकी रिपोर्ट करेगा—ये वे लोग हैं जिन्हें वह छाँट कर निकाल देगा। रिश्तेदारों की छँटाई करने के बाद वह सोचता है : “मेरे अधिकांश रिश्तेदारों के मेरे साथ अच्छे संबंध हैं, हमारी अच्छी बनती है, हम एक ही भाषा बोलते हैं; यदि वे मेरे मातहत बन जाएँ और मैं उनका उपयोग कर सकूँ, तो क्या मेरा प्रभाव नहीं बढ़ेगा? और क्या इससे कलीसिया के भीतर मेरा रुतबा मजबूत नहीं होगा? एक कहावत है, ‘रिश्तेदारों को नजरअंदाज किए बगैर सक्षम लोगों को बढ़ावा देना।’ अविश्वासी अधिकारियों को मदद के लिए अपने करीबी दोस्तों और सहयोगियों पर निर्भर रहना पड़ता है—अब जब मैं अधिकारी हूँ, तो मुझे भी ऐसा ही करना चाहिए, यह अच्छा विचार है। सबसे पहले, मुझे अपने रिश्तेदारों को बढ़ावा देना चाहिए। मेरी पत्नी और बच्चों को तो लाभ मिलेगा ही; मैं सबसे पहले उनके लिए कुछ पदों की व्यवस्था करूँगा। मेरी पत्नी क्या करेगी? कलीसिया में चढ़ावे की देखभाल करना एक आवश्यक और महत्वपूर्ण भूमिका है—वित्तीय शक्ति हमारे हाथों में होनी चाहिए, तभी मैं स्वतंत्रता से और आसानी से पैसे खर्च कर सकूँगा। यह पैसा किसी बाहरी व्यक्ति के हाथ में नहीं छोड़ा जा सकता; यदि ऐसा होता है, तो अंततः यह पैसा उनका होगा, और व्ययों की निगरानी होगी और नियंत्रण में रखा जाएगा, जो सुविधाजनक नहीं होगा। क्या वह व्यक्ति जो वर्तमान में खातों का प्रबंधन करता है वह मेरी ओर है? वह बाहर से तो ठीक दिखता है, लेकिन कौन जाने वह अंदर क्या सोच रहा है। नहीं, मुझे उसे बदलने का कोई रास्ता निकालना होगा और अपनी पत्नी को खातों का प्रबंधन देना होगा।” मसीह-विरोधी इस मुद्दे पर अपनी पत्नी से बात करता है, जो कहती है “यह तो बहुत अच्छी बात है! अब चूँकि तुम कलीसिया के एक अगुआ हो, तो कलीसिया को मिलने वाले चढ़ावों के बारे में तुम्हारी राय ही अंतिम होगी, है ना? तुम्हीं तय करो कि उनका प्रभारी कौन होगा।” मसीह-विरोधी कहता है : “लेकिन इस समय खातों का प्रबंधन कर रहे व्यक्ति से छुटकारा पाने का कोई अच्छा तरीका नहीं है।” इस पर उसकी पत्नी थोड़ा सोचती है और कहती है : “क्या यह आसानी से नहीं होगा? तुम कहो कि वह बहुत लंबे समय से काम कर रहा है। यह बुरी बात है; हो सकता है वहाँ अशोध्य ऋण, अव्यवस्थित खाते या रिश्वतखोरी की घटनाएँ हों। जब किसी के पास कोई काम लंबे समय से हो, तो आसानी से गलतियाँ हो जाती हैं; जैसे-जैसे समय बीतता है, उसे लगता है कि उसके पास एक पूँजी है, और वह दूसरों की बात सुनना बंद कर देता है। इसके अलावा, खातों का प्रबंधन करने वाला व्यक्ति काफी बुजुर्ग है। बुजुर्ग लोग आसानी से उलझ जाते हैं और अक्सर चीजें भूल जाते हैं। यदि कभी कोई चूक हुई तो नुकसान होगा। यह बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है—उन्हें बदलना होगा।” और यह कहेगा कौन कि उन्हें बदला जाना है? कलीसिया के अगुआ के रूप में उसके मुँह से तो इस व्यक्ति को बदलने की कोई बात नहीं निकल सकती; मसीह-विरोधी की पत्नी को यह जिम्मेदारी देने का सुझाव तो भाई-बहनों पर छोड़ दिया जाना चाहिए। जब उसकी पत्नी अपना प्रस्ताव रख लेगी, तो कलीसिया के चढ़ावों की जिम्मेदारी उसे सौंप दी जाएगी। लेकिन कलीसिया के सिद्धांत निर्देशित करते हैं कि चढ़ावों को सुरक्षित रखने का काम किसी व्यक्ति द्वारा अकेले नहीं बल्कि दो या तीन लोगों द्वारा संयुक्त रूप से किया जाना चाहिए, इससे किसी एक व्यक्ति द्वारा किसी खामी का फायदा उठाने और परमेश्वर के घर के धन का गबन करने से बचने में मदद मिलती है। इसलिए मसीह-विरोधी ने अपनी चचेरी बहन को इसे सुरक्षित रखने की प्रक्रिया में शामिल होने की सिफारिश यह कहते हुए की कि वह लंबे समय से परमेश्वर में विश्वास करती है, उसने कई बार दान दिए हैं, उसकी अच्छी प्रतिष्ठा है और उस पर भरोसा किया जा सकता है। सब कहते हैं, “ये दोनों तुम्हारे रिश्तेदार हैं। तुम्हारे परिवार से बाहर का भी कोई व्यक्ति इसमें शामिल होना चाहिए।” इसलिए मसीह-विरोधी वित्त प्रबंधन और नियंत्रण में मदद के लिए एक भ्रमित बुजुर्ग बहन की सिफारिश करता है। मसीह-विरोधी सबसे पहले वित्त को अपने परिवार के नियंत्रण में लाता है, जिसके बाद उसका परिवार विशेष रूप से यह नियंत्रित करता है कि चढ़ावे का पैसा कैसे खर्च होगा और विशिष्ट लेन-देन आदि पर उसका पूरा नियंत्रण होता है।
वित्तीय शक्ति पर एकाधिकार जमाने और संपत्ति पर नियंत्रण स्थापित करने के बाद क्या मसीह-विरोधी ने अपना लक्ष्य हासिल कर लिया है? अभी नहीं। सबसे महत्वपूर्ण बात है कलीसिया के विभिन्न कार्यों के पर्यवेक्षकों को नियंत्रित करना, उन्हें अपने पक्ष में लाना और अंतिम निर्णय लेना। मसीह-विरोधी को लगता है कि यही बात सबसे अधिक मायने रखती है; इसका संबंध इस बात से है कि क्या नीचे की हर टीम में लोग उसके कहे के मुताबिक ही काम करते हैं और क्या उसकी ताकत सबसे निचले स्तर तक पहुँचती है। तो, वह ऐसा कैसे करता है? वह व्यापक सुधारों की शुरुआत करता है। सबसे पहले वह संगति करता है और कहता है कि प्रत्येक मूल टीम के काम में फलाँ-फलाँ गलती है। उदाहरण के लिए वीडियो टीम के सामने कुछ मुद्दे आए तो मसीह-विरोधी कहता है, “ये समस्याएँ पर्यवेक्षक के कारण हुई हैं। उसके काम में ये बड़ी अनदेखियाँ और उनके कारण पैदा हुई बड़ी समस्याएँ इस बात का सबूत हैं कि पर्यवेक्षक मानक-स्तर का नहीं है, और उसे बदला जाना चाहिए; यदि वह नहीं बदला जाता है तो यह कार्य ठीक से नहीं हो सकता। तो, उसकी जगह कौन लेगा? क्या तुम लोगों के मन में कोई है—क्या कोई उम्मीदवार है? टीम में कौन अपने काम में सर्वश्रेष्ठ है?” हर कोई इस पर विचार करता है, और कोई कहता है, “एक भाई है जो बहुत अच्छा है, लेकिन मुझे नहीं पता कि वह उपयुक्त है या नहीं।” मसीह-विरोधी उत्तर देता है : “यदि तुम नहीं जानते, तो उसे नहीं चुना जा सकता। तुम लोगों के लिए मेरा एक सुझाव है। मेरा 25 वर्ष का बेटा कंप्यूटर विज्ञान में स्नातक है और उसने वीडियो निर्माण तथा स्पेशल एफेक्ट्स में विशेषज्ञता हासिल की है। परमेश्वर में उसका विश्वास नया है और सत्य का ज्यादा अनुसरण नहीं करता, लेकिन उसके पेशेवर कौशल तुम सभी से बेहतर हैं। क्या तुम लोगों में से कोई पेशेवर है?” और सभी उत्तर देते हैं, “नहीं, हमें पेशेवर नहीं कहा जा सकता, लेकिन हम लंबे समय से अपना कर्तव्य निभा रहे हैं और परमेश्वर के घर के इस काम के सिद्धांतों को समझते हैं। क्या उसे इनकी समझ है?” “अगर वह नहीं समझता तो कोई बात नहीं; वह सीख सकता है।” यह बात हर किसी को सही लगती है और वे उसकी बात से सहमत हो जाते हैं, सभी उसकी पसंद के व्यक्ति की पदोन्नति करने पर सहमत हो जाते हैं, और इस तरह यह मसीह-विरोधी एक और महत्वपूर्ण भूमिका पर नियंत्रण स्थापित कर लेता है। इसके बाद मसीह-विरोधी को लगता है कि सुसमाचार का कार्य परमेश्वर के घर के लिए महत्वपूर्ण है—और इसका पर्यवेक्षक उसके पक्ष में नहीं है। उसे बदला जाना चाहिए। उसे कैसे बदलें? उसी तरीके से : दोष निकालकर। मसीह-विरोधी कहता है, “पिछली बार के संभावित सुसमाचार प्राप्तकर्ताओं का क्या हुआ?” किसी ने उत्तर दिया, “एक महीने तक विश्वास करने के बाद, उन्होंने कुछ नकारात्मक प्रचार सुना और उस पर विश्वास करने लगे, इसलिए वे अब परमेश्वर पर विश्वास नहीं करते।” मसीह-विरोधी पूछता है, “वे ऐसे विश्वास करना कैसे बंद कर सकते हैं? क्या ऐसा इसलिए है क्योंकि तुम लोगों ने दर्शनों के सत्य पर स्पष्ट संगति नहीं की? या, ऐसा इसलिए है कि तुम लोग आलसी थे, या प्रतिकूल वातावरण से भयभीत थे और खुद को खतरे में डालने से डरते थे, इसलिए तुमने साफ-साफ संगति नहीं की? या ऐसा इसलिए है कि तुम लोगों ने तुरंत उनकी परवाह नहीं की? या तुम लोग उनकी मुश्किलें हल करने में मदद करने में विफल रहे?” वह एक के बाद एक ढेर सारे प्रश्न पूछता है। और, उसे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि दूसरे क्या उत्तर देते हैं, या वे क्या स्पष्टीकरण देते हैं; मसीह-विरोधी इस बात पर जोर देता है कि सुसमाचार टीम के पर्यवेक्षक के साथ बहुत सारे मसले हैं, उसके दोष बहुत गंभीर हैं, वह गैर-जिम्मेदार है, और वह दिए गए काम के अयोग्य है, इस प्रकार उसे जबरन सेवामुक्त कर दिया जाता है। और उसे सेवामुक्त किए जाने के बाद मसीह-विरोधी कहता है, “अमुक बहन ने इससे पहले सुसमाचार का प्रचार किया है और उसके पास अनुभव भी है—मुझे लगता है कि वह अच्छी रहेगी।” यह सुनकर लोग कहते हैं, “वह तो तुम्हारी बड़ी बहन है! वह वाक्पटु होने का दिखावा कर लेती है, लेकिन उसकी मानवता अच्छी नहीं है। उसका नाम बहुत खराब है, उसका उपयोग नहीं किया जा सकता,” और भाई-बहन इससे असहमत हो जाते हैं। मसीह-विरोधी कहता है, “यदि तुम लोग सहमत नहीं हो, तो सुसमाचार टीम को भंग कर दिया जाएगा। अब तुम्हें सुसमाचार का प्रचार नहीं करना है, तुम इस कर्तव्य को ठीक से करने में सक्षम नहीं हो। या तो ऐसा होगा या एक उपयुक्त टीम लीडर चुनो, और मेरी बहन सहायक टीम लीडर होगी!” भाई-बहन किसी को चुनते हैं, और मसीह-विरोधी अनिच्छा से इस शर्त पर सहमत होता है कि उसकी बड़ी बहन को सहायक टीम लीडर बनाया जाएगा। इस प्रकार बनी सहमति से सुसमाचार टीम किसी तरह कायम रह पाती है।
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई काम कहाँ है या क्या है, मसीह-विरोधियों को अपने साथियों को, ऐसे लोगों को उसमें शामिल करना होता है जो उनके पक्ष में हों। मसीह-विरोधी जब अगुआ बन जाते हैं और रुतबा हासिल कर लेते हैं, तो उनका पहला काम यह देखना नहीं होता कि विभिन्न टीमों के सदस्य अपने जीवन प्रवेश में कैसा प्रदर्शन कर रहे हैं, या यह पता लगाना नहीं होता कि उनका काम कैसा चल रहा है, या अपने काम में उन्हें जिन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है उन्हें कैसे हल किया जा सकता है, और क्या कोई लंबित मुद्दे या चुनौतियाँ हैं; इसके बजाय, वे कार्मिकों की स्थिति देखते हैं कि विभिन्न टीमों का मुखिया कौन है, विभिन्न टीमों में उनके खिलाफ कौन है और भविष्य में कौन-से लोग उनके रुतबे के लिए खतरा होंगे। वे ऐसे मामलों के बारे में पूरी जानकारी रखते हैं, लेकिन वे कभी भी कलीसिया के काम की स्थिति के बारे में पूछताछ नहीं करते। वे कभी भी भाई-बहनों की स्थिति, उनके जीवन प्रवेश या उनका कलीसियाई जीवन कैसा चल रहा है आदि के बारे में नहीं पूछते, और वे इसकी परवाह भी कम से कम करना चाहते हैं। लेकिन वे सभी टीमों के प्रभारियों के बारे में अच्छी तरह से जानते हैं कि क्या वे उनके साथी हैं, क्या उन लोगों की उनके साथ अच्छी बनती है, और क्या वे उनकी सत्ता या रुतबे के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं। वे इन सभी विवरणों को जानते हैं और वे उन्हें बहुत स्पष्ट रूप से समझते हैं। समूह में जो लोग अपेक्षाकृत खरे हैं और सच बोलते हैं, उनके संबंध में मसीह-विरोधियों का मानना है कि ऐसे व्यक्तियों से बचा जाना चाहिए और उन्हें कोई रुतबा नहीं दिया जाना चाहिए; तिस पर भी वे उन लोगों का पक्ष लेते हैं जो चापलूसी में माहिर हैं, जो लप-चप करना जानते हैं, जो दूसरों को खुश करने के लिए मीठा बोलते हैं, और जो लोग इशारों पर चल सकते हैं। मसीह-विरोधी उनके प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखता है और उन्हें बढ़ावा देने और उन्हें महत्वपूर्ण पदों पर रखने की योजना बनाता है। इस तरह के लोगों को मसीह-विरोधी हर कहीं अपने साथ ले जाने के बारे में भी सोचते हैं, और इस तरह सुनिश्चित करते हैं कि वे अधिक धर्मोपदेश सुनें और उन्हें अपने यार-दोस्तों में तब्दील कर देते हैं। जहाँ तक कलीसिया में उन लोगों की बात है जो सत्य का अनुसरण करते हैं, न्याय की भावना रखते हैं, और सत्य बोलने का साहस करते हैं, जो लगातार परमेश्वर को ऊँचा उठाते और उसकी गवाही देते हैं, जो दुष्ट ताकतों, रुतबे या अधिकार के सामने नहीं झुकते—मसीह-विरोधी उनसे बचते हैं, उनसे घृणा करते हैं, उनके साथ भेदभाव करते हैं और अपने मन से उन्हें बाहर कर देते हैं। परंतु, जो लोग उनकी चापलूसी करते हैं, खास तौर पर उनके परिवार के सदस्य, उनके दूर के रिश्तेदार—जो उनके इर्द-गिर्द घूम सकते हैं उन्हें वे अपना मानते हैं और उन्हें अपने परिवार के रूप में देखते हैं। मसीह-विरोधी की सत्ता के अधीन आने वाले जो लोग उनके इर्द-गिर्द घूम सकते हैं, उनके इशारों पर चल सकते हैं और काम करते समय निर्देश लेते हैं, और उनके मन-मुताबिक काम करते हैं—उन लोगों में अंतश्चेतना या विवेक, मानवता और थोड़ा-भी परमेश्वर का भय मानने वाला दिल नहीं होता। वे छद्म-विश्वासियों का समूह भर हैं। वे चाहे जो बुरे काम करें, मसीह-विरोधी उनका विकास करता है, उनकी रक्षा करता है, और उन्हें अपने परिवार के रूप में मानते हुए अपनी शक्ति के अधीन लाता है—इस तरह से मसीह-विरोधी के अधिकार क्षेत्र का निर्माण होता है।
और मसीह-विरोधी का निजी अधिकार क्षेत्र किन लोगों से बनता है? पहली बात, मसीह-विरोधी मुखिया होता है, नेता होता है, सारे अधिकार रखने वाला राजा होता है जिसका हर शब्द इस अधिकार क्षेत्र में सवालों से परे होता है। मसीह-विरोधियों के रक्तसंबंधी, उनके निजी परिवार, उनके यार, दोस्त, कट्टर प्रशंसक, दूसरे लोग जो खुशी-खुशी उनके पीछे चलते और उनसे आदेश लेते हैं, और फिर वे अन्य लोग जो प्रसन्नता से उनके साथ जुड़कर उनके बुरे कामों में शामिल होते हैं, और वे लोग भी जो परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं और प्रशासनिक आदेशों के विनियमन की परवाह किए बगैर, परमेश्वर के वचनों और सत्य सिद्धांतों की परवाह किए बगैर खुशी-खुशी उनके लिए जी-जान से मेहनत करते हैं, उनके लिए खुद को जोखिम में डालते हैं और उनके लिए कड़ी मेहनत करते हैं—ये सभी मसीह-विरोधी के इस अधिकार क्षेत्र के सदस्य होते हैं। कुल मिलाकर, वे मसीह-विरोधी के कट्टर अनुयायी होते हैं। और, मसीह-विरोधी के अधिकार क्षेत्र के ये सभी सदस्य क्या करते हैं? क्या वे अपना कर्तव्य और प्रत्येक कार्य परमेश्वर के घर के विनियमों और सिद्धांतों के अनुसार करते हैं? क्या वे वैसा ही काम करते हैं जैसी परमेश्वर अपेक्षा करता है और उसके वचनों और सत्य को सभी सिद्धांतों में सर्वोच्च मानते हैं? (नहीं।) जब ऐसे लोग कलीसिया में मौजूद हों, तो क्या सत्य और परमेश्वर के वचन बिना किसी रुकावट के आगे बढ़ सकते हैं? न केवल वे ऐसा नहीं कर सकते, बल्कि मसीह-विरोधी गिरोह द्वारा पैदा किए गए विघ्नों, उनके गुमराह करने और तोड़-फोड़ के कारण परमेश्वर के वचनों, उसके द्वारा व्यक्त किए गए सत्यों, और लोगों से उसकी अपेक्षाओं को कलीसिया में पूरा नहीं किया जा सकता; उन्हें लागू नहीं किया जा सकता। जब मसीह-विरोधी का अधिकार क्षेत्र अस्तित्व में होता है, तो परमेश्वर के चुने हुए लोग सामान्य कलीसियाई जीवन नहीं जी सकते, न ही वे अपना कर्तव्य सामान्य रूप से कर सकते हैं, और वे सत्य सिद्धांतों के अनुसार काम तो बिल्कुल नहीं कर सकते क्योंकि कलीसिया का प्रत्येक कार्य मसीह-विरोधी के नियंत्रण में होता है। जहाँ पर ऐसा प्रभाव कम है, वहाँ मसीह-विरोधियों के व्यवधान से अराजकता पैदा होती है, लोग व्याकुलता की स्थिति में होते हैं, काम में कोई प्रगति नहीं होती, और लोगों को नहीं पता होता कि वे अपना काम अच्छी तरह से कैसे करें या अपना कर्तव्य ठीक से कैसे करें; सब कुछ अराजकता की स्थिति में होता है। गंभीर मामलों में, सारा काम रुक जाता है और किसी को इसकी चिंता या परवाह नहीं होती। कुछ लोग ये तो बता सकते हैं कि कोई समस्या है, पर वे यह नहीं पहचान पाते कि यह समस्या मसीह-विरोधियों के कारण है; वे लोग भी मसीह-विरोधियों से बाधित और भ्रमित हो जाते हैं और नहीं जानते कि कौन सही है या कौन गलत; इतना ही नहीं, अगर कुछ लोग कुछ मुद्दों की पहचान कर पाते हैं और बोलना चाहते हैं या काम का प्रभार लेना चाहते हैं, तो वे काम का बीड़ा उठाने में असमर्थ होते हैं। जो कोई भी मसीह-विरोधियों को उजागर करने की कोशिश करता है, या न्याय की भावना रखता है और खुद काम का बीड़ा उठाने की कोशिश करता है, उसे दबा दिया जाता है। और ऐसे लोगों को दबाने में मसीह-विरोधी किस हद तक जाते हैं? यदि तुम आवाज उठाने का साहस नहीं करते, यदि तुम दया की भीख माँगते हो, यदि तुम उनके बारे में जानकारी देने का साहस नहीं करते, यदि तुम ऊपरी स्तरों पर उनके बारे में रिपोर्ट करने का साहस नहीं करते, या उनके काम से संबंधित मसलों को सामने नहीं लाते, या सत्य की संगति नहीं करते, या “परमेश्वर” शब्द नहीं बोलते, तो मसीह-विरोधी तुम्हें छोड़ देगा। यदि तुम सिद्धांतों का समर्थन करते हो और मसीह-विरोधियों को उजागर करते हो, तो वे तुम्हें सताने का हर संभव प्रयास करेंगे, वे तुम्हारी निंदा करने और दबाने का हर संभव प्रयास करेंगे, और यहाँ तक कि अपने अधिकार क्षेत्र के सदस्यों और एक किनारे रहने वालों तथा साहसहीन, कायरों और मसीह-विरोधी ताकतों से भयभीत रहने वालों को भी तुम्हें अस्वीकार करने और दबाने के लिए भड़काएँगे। अंततः, कुछ कम आस्था और आध्यात्मिक कद रखने वाले लोग मसीह-विरोधियों के सामने घुटने टेक देंगे। इससे मसीह-विरोधियों को खुशी होती है; उन्होंने अपना लक्ष्य हासिल कर लिया है। एक बार सत्ता पा लेने पर उस सत्ता पर एकाधिकार जमाने और अपने रुतबे को सुरक्षित करने के लिए, वे न केवल कलीसिया में सभी महत्वपूर्ण कार्य अपने रिश्तेदारों और उन लोगों को देते हैं जिनके साथ उनके अच्छे संबंध हैं, बल्कि इसी के साथ वे ऐसे दूसरे लोगों को भी भर्ती करते हैं जो रिश्तेदार नहीं होते, ताकि वे उनकी सेवा करें और उनके लिए पूरी ताकत से काम करें क्योंकि उनका लक्ष्य भविष्य में अपना रुतबा बनाए रखना और हमेशा सत्ता अपने हाथों में रखना होता है। उनके दिमाग में, उनके अधिकार क्षेत्र में जितने अधिक लोग होंगे, उनका बल उतना ही ज्यादा होगा, और इस प्रकार उनकी शक्ति भी उतनी ही अधिक होगी। और उनकी शक्ति जितनी अधिक होगी, उतना ही भयभीत वे लोग होंगे जो उनका विरोध कर सकते हैं, जो उन्हें मना कर सकते हैं, और जो उन्हें बेनकाब करने का साहस कर सकते हैं। ऐसे लोगों की संख्या और भी कम हो जाती है। लोग उनसे जितना अधिक डरेंगे, उनके पास परमेश्वर और परमेश्वर के घर से लड़ने के लिए उतनी ही बड़ी पूँजी होगी; वे अब परमेश्वर से नहीं डरते, और परमेश्वर के घर द्वारा निपटारा किए जाने से भी नहीं डरते। सत्ता के लिए मसीह-विरोधियों की आकांक्षा, सत्ता द्वारा वे जो करते हैं और उनके विभिन्न प्रकार के व्यवहारों के आधार पर कहा जा सकता है कि मसीह-विरोधी सार रूप में परमेश्वर के दुश्मन हैं; वे शैतान हैं और दानव हैं।
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