मद तीन : सत्य का अनुसरण करने वालों को वे निकाल देते हैं और उन पर आक्रमण करते हैं (खंड दो)

परमेश्वर के चुने हुए लोगों को मसीह-विरोधियों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए? उन्हें उनकी पहचान करनी चाहिए, उन्हें उजागर करना चाहिए, उनकी रिपोर्ट करनी चाहिए और उन्हें ठुकरा देना चाहिए। केवल तभी अंत तक परमेश्वर का अनुसरण और परमेश्वर में आस्था रखने के सही मार्ग में प्रवेश सुनिश्चित किया जा सकता है। मसीह-विरोधी तुम्हारे अगुआ नहीं हैं, चाहे उन्होंने दूसरों को गुमराह करके कैसे भी खुद को अगुआ चुनवाया हो। उन्हें स्वीकार मत करो और उनकी अगुआई मत मानो—तुम्हें उनकी पहचान करनी चाहिए और उन्हें ठुकरा देना चाहिए, क्योंकि वे सत्य को समझने में तुम्हारी मदद नहीं कर सकते और न ही वे तुम्हारा समर्थन कर सकते हैं या तुम्हारा पोषण कर सकते हैं। यही तथ्य हैं। अगर वे सत्य वास्तविकता की ओर तुम्हारा मार्गदर्शन नहीं कर सकते, तो वे अगुआ या कार्यकर्ता बनने के काबिल नहीं हैं। अगर वे सत्य को समझने और परमेश्वर के कार्य का अनुभव करने की ओर तुम्हारा मार्गदर्शन नहीं कर सकते, तो ये वे लोग हैं जो परमेश्वर का विरोध करते हैं और तुम्हें उन्हें पहचान लेना चाहिए, उन्हें उजागर करना चाहिए और उन्हें ठुकरा देना चाहिए। वे जो कुछ भी करते हैं उसका उद्देश्य तुम्हें अपना अनुसरण कराने के लिए गुमराह करना, और कलीसिया के कार्य को कमजोर करने और उसमें बाधा डालने के लिए तुम्हें अपने गुट में शामिल करना होता है, ताकि वे तुम्हें मसीह-विरोधियों का रास्ता अपनाने के लिए प्रेरित कर सकें, जैसा कि वे करते हैं। वे तुम्हें नरक में खींचना चाहते हैं! अगर तुम उन्हें बता नहीं सकते कि वे क्या हैं और मानते हो कि चूँकि वे तुम्हारे अगुआ हैं इसलिए तुम्हें उनकी आज्ञा माननी चाहिए और उनके प्रति रियायत बरतनी चाहिए, तो तुम एक ऐसे व्यक्ति हो जो सत्य और परमेश्वर दोनों के साथ विश्वासघात करता है—और ऐसे लोगों को बचाया नहीं जा सकता। अगर तुम बचाए जाना चाहते हो, तो तुम्हें न केवल बड़े लाल अजगर की बाधा पार करनी होगी, और न केवल बड़े लाल अजगर को पहचानने, उसके भयानक चेहरे की असलियत देखने और इसके खिलाफ पूरी तरह से विद्रोह करने में सक्षम होना होगा—बल्कि मसीह-विरोधियों की बाधा भी पार करनी होगी। कलीसिया में मसीह-विरोधी न केवल परमेश्वर का शत्रु होता है, बल्कि परमेश्वर के चुने हुए लोगों का भी शत्रु होता है। अगर तुम किसी मसीह-विरोधी का भेद नहीं पहचान पाओगे तो इन बातों की संभावना है कि तुम गुमराह हो जाओगे और फुसला लिए जाओगे, मसीह-विरोधी के मार्ग पर चलोगे और परमेश्वर तुम्हें शाप और दंड देगा। अगर ऐसा होता है, तो परमेश्वर में तुम्हारा विश्वास पूरी तरह से विफल हो गया है। उद्धार प्रदान किए जाने के लिए लोगों में क्या होना चाहिए? पहले, उन्हें कई सत्य समझने चाहिए, और मसीह-विरोधी का सार, स्वभाव और मार्ग पहचानने में सक्षम होना चाहिए। परमेश्वर में विश्वास करते हुए लोगों की आराधना या अनुसरण न करना सुनिश्चित करने का यह एकमात्र तरीका है, और अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करने का भी यही एकमात्र तरीका है। मसीह-विरोधी की पहचान करने में सक्षम लोग ही वास्तव में परमेश्वर में विश्वास कर सकते हैं, उसका अनुसरण कर सकते हैं और उसकी गवाही दे सकते हैं। तब कुछ लोग कहेंगे, “अगर मेरे पास इसके लिए फिलहाल सत्य नहीं है तो मैं क्या करूँ?” तुम्हें खुद को जल्दी से जल्दी सत्य से सुसज्जित करना चाहिए; तुम्हें लोगों और चीजों की असलियत देखना सीखना चाहिए। मसीह-विरोधी की पहचान करना कोई आसान बात नहीं है, इसके लिए उनका सार स्पष्ट रूप से देखने और उनके हर काम के पीछे की साजिशें, चालें, इरादे और लक्ष्य देख पाने की क्षमता होनी आवश्यक है। इस तरह तुम उनके द्वारा गुमराह नहीं होगे या उनके काबू में नहीं आओगे और तुम अडिग रह सकते हो, सुरक्षित और भरोसेमंद ढंग से सत्य का अनुसरण कर सकते हो और सत्य का अनुसरण करने और उद्धार प्राप्त करने के मार्ग पर दृढ़ रह सकते हो। अगर तुम मसीह-विरोधी की बाधा को पार नहीं कर सकते, तो यह कहा जा सकता है कि तुम एक बड़े खतरे में हो, और तुम्हें मसीह-विरोधी द्वारा गुमराह करके अपने कब्जे में किया जा सकता है और तुम्हें शैतान के प्रभाव में जीवन व्यतीत करना पड़ सकता है। वर्तमान में तुम लोगों के बीच कुछ ऐसे लोग हो सकते हैं जो सत्य का अनुसरण करने वालों को रोकें या ठोकर मारें, और ये उन लोगों के शत्रु हैं। क्या तुम लोग इसे स्वीकार करते हो? कुछ ऐसे लोग हैं जो इस तथ्य का सामना करने की हिम्मत नहीं रखते, न ही वे इसे तथ्य के रूप में स्वीकार करने की हिम्मत रखते हैं। लेकिन मसीह विरोधियों द्वारा लोगों को गुमराह करना वास्तव में कलीसियाओं में होता है और अक्सर होता है; बात केवल इतनी है कि लोग पहचान नहीं पाते। अगर तुम इस परीक्षा को पास नहीं कर सकते—मसीह-विरोधियों की परीक्षा, तब तुम या तो मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह हो चुके हो और उन्हीं के द्वारा नियंत्रित हो या उन्होंने तुम्हें कष्ट दिया है, पीड़ा पहुँचाई है, बाहर धकेला है, दबाया है और प्रताड़ित किया है। अंततः, तुम्हारा यह छोटा-सा तुच्छ जीवन लंबे समय तक नहीं टिकेगा, और मुरझा जाएगा; तुम परमेश्वर में विश्वास नहीं रख पाओगे, और तुम कहोगे, “परमेश्वर तो धार्मिक भी नहीं है! परमेश्वर कहाँ है? इस दुनिया में कोई न्याय या प्रकाश नहीं है, और परमेश्वर द्वारा मानवजाति का उद्धार जैसी कोई चीज नहीं है। हम काम करते हुए और पैसा कमाते हुए भी अपने दिन गुजार सकते हैं!” तुम परमेश्वर को नकारते हो, तुम परमेश्वर से भटक जाते हो और अब विश्वास नहीं करते कि वह मौजूद है; ऐसी कोई भी उम्मीद कि तुम्हारा उद्धार होगा, पूरी तरह से समाप्त हो चुकी है। इसलिए अगर तुम उस जगह पहुँचना चाहते हो जहाँ पर तुम्हें उद्धार प्राप्त हो सके, तो पहली परीक्षा जो तुम्हें पास करनी होगी वह है शैतान को जानने और उसकी असलियत पहचानने में सक्षम होना और तुम्हारे भीतर शैतान के विरुद्ध खड़ा होने, उसे उजागर करने और त्यागने का साहस भी होना चाहिए। फिर, शैतान कहाँ है? शैतान तुम्हारे बाजू में और तुम्हारे चारों तरफ है; हो सकता है कि वह तुम्हारे हृदय के भीतर भी रह रहा हो। अगर तुम शैतान के स्वभाव के अंतर्गत रह रहे हो, तो यह कहा जा सकता है कि तुम शैतान के हो। तुम आध्यात्मिक क्षेत्र के शैतान और दुष्ट आत्माओं को देख या छू नहीं सकते, लेकिन व्यावहारिक जीवन में मौजूद शैतान और जीवित राक्षस हर जगह हैं। जो भी व्यक्ति सत्य से विमुख है, वह बुरा है, और जो भी अगुआ या कार्यकर्ता सत्य को स्वीकार नहीं करता, वह मसीह-विरोधी या नकली अगुआ है। क्या ऐसे लोग शैतान और जीवित दानव नहीं हैं? हो सकता है कि ये लोग वही हों, जिनकी तुम आराधना करते हो और जिनका आदर करते हो; ये वही लोग हो सकते हैं जो तुम्हारी अगुआई कर रहे हैं या वे लोग जिन्हें तुमने लंबे समय से अपने हृदय में सराहा है, जिन पर भरोसा किया है, जिन पर निर्भर रहे हो और जिनकी आशा की है। जबकि वास्तव में, वे तुम्हारे मार्ग में खड़ी बाधाएँ हैं और तुम्हें सत्य का अनुसरण करने और उद्धार पाने से रोक रहे हैं; वे नकली अगुआ और मसीह-विरोधी हैं। वे तुम्हारे जीवन और तुम्हारे मार्ग पर नियंत्रण कर सकते हैं, और वे तुम्हारे उद्धार के अवसर को बर्बाद कर सकते हैं। अगर तुम उन्हें पहचानने और उनकी वास्तविकता की असलियत जानने में विफल रहते हो, तो किसी भी क्षण तुम गुमराह हो सकते हो या उनके द्वारा पकड़े और दूर ले जाए जा सकते हो। इस प्रकार, तुम बहुत बड़े खतरे में हो। अगर तुम इस खतरे से खुद को मुक्त नहीं कर सकते, तो तुम शैतान की बलि हो। वैसे भी, जो लोग गुमराह और नियंत्रित होते हैं, और मसीह-विरोधी के अनुयायी बन जाते हैं, वे कभी उद्धार प्राप्त नहीं कर सकते। चूँकि वे सत्य से प्रेम नहीं करते या उसका अनुसरण नहीं करते, इसलिए इसका अपरिहार्य परिणाम यह होगा कि वे गुमराह हो जाएँगे और मसीह-विरोधी का अनुसरण करेंगे।

कुछ लोग सोचते हैं कि वे सत्य का अनुसरण करने वाले व्यक्ति हैं और कहते हैं कि वे मसीह-विरोधियों को पहचानने में सक्षम हैं। वे खुद को जरूरत से ज्यादा आंक रहे हैं, है न? अगर तुम्हारा सामना साफ तौर पर किसी मसीह-विरोधी से होता है जो आक्रामक और जंगली है, जिसमें खराब मानवता है और जिसने कुछ बुरे कर्म किए हैं, तो तुम स्वाभाविक रूप से उसे पहचानने में सक्षम होगे। लेकिन अगर तुम्हारा सामना किसी ऐसे मसीह-विरोधी से होता है जो देखने में धर्मपारायण लगता है, जो बहुत ही मृदुभाषी है और एक अच्छा व्यक्ति लगता है—एक ऐसा मसीह-विरोधी जो लोगों की धारणाओं के अनुरूप है—तो क्या तुम अभी भी इतने साहसी हो कि यह दावा करो कि तुम उसकी असलियत बता सकते हो? क्या तुम उसे मसीह-विरोधी के रूप में निरूपित करने का साहस रखते हो? अगर तुम उसका भेद पहचानने में असमर्थ हो तो तुम निश्चित रूप से उसे सराहोगे और उसके लिए अच्छी भावना रखोगे और ऐसे में तुम उसके व्यवहार, उसकी राय और विचारों, उसके कार्य—यहाँ तक कि उसकी सत्य की समझ से भी—प्रभावित होओगे। ये चीजें तुम्हें किस हद तक प्रभावित करेंगी? तुम मसीह-विरोधी से जलने लगोगे, उसकी नकल करोगे, उसका अनुकरण करोगे, उसका अनुसरण करोगे, जिससे तुम्हारा जीवन प्रवेश प्रभावित होगा; इससे सत्य की तुम्हारी तलाश और वास्तविकता में प्रवेश भी प्रभावित होगा, यह परमेश्वर के प्रति तुम्हारे रवैये को प्रभावित करेगा और यह इस बात को भी प्रभावित करेगा कि तुम वास्तव में परमेश्वर के प्रति समर्पण करते हो या नहीं और अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करते हो या नहीं। अंततः मसीह-विरोधी तुम्हारे लिए एक आराध्य बन जाएगा, तुम्हारे दिल में उसके लिए जगह बन जाएगी और तुम उससे बच नहीं पाओगे। जब तुम इस हद तक गुमराह किए जाते हो, तो तुम्हारे पास बचाए जाने की बहुत ही कम उम्मीद होती है, क्योंकि परमेश्वर के साथ तुम्हारा संबंध टूट चुका होता है, परमेश्वर के साथ तुम्हारा सामान्य संबंध भी खत्म हो गया होता है, और तुम खतरे के कगार पर होते हो। और यह तुम्हारे लिए एक आपदा होती है या आशीष? बेशक यह एक आपदा ही है; यह आशीष तो बिल्कुल भी नहीं है। हालाँकि कुछ मसीह-विरोधी छोटी-छोटी बातों में तुम्हारी मदद कर सकते हैं और तुम्हारे लिए लाभकारी सिद्ध हो सकते हैं या फिर वे तुम्हें प्रबुद्ध करने के लिए शब्द और धर्म-सिद्धांतों का उपदेश भी दे सकते हैं, लेकिन एक बार तुम उनके द्वारा गुमराह हुए, उनकी आराधना करने लगे और उनका अनुसरण करने लगे, तो तुम मुसीबत में पड़ जाओगे। तुम खुद के लिए बरबादी लाओगे और अपने लिए उद्धार का मौका खो दोगे। कुछ लोग कहते हैं, “वे कोई शैतान या एक बुरे व्यक्ति नहीं हैं, वे तो आध्यात्मिक व्यक्ति जैसे लगते हैं, एक ऐसा व्यक्ति जो सत्य का अनुसरण करता है।” क्या इन बातों में कोई दम है? (नहीं।) क्यों नहीं? जो भी कोई सचमुच सत्य का अनुसरण करता है, उसके मार्गदर्शन, सहायता और पोषण का प्रभाव या लाभ तुम्हें परमेश्वर के समक्ष लाता है, ताकि तुम उसके वचन और सत्य की तलाश कर सको, और तुम परमेश्वर के समक्ष आओ और उस पर निर्भर होना और उसे तलाशना सीखो और उसके साथ तुम्हारा रिश्ता और अधिक घनिष्ठ होता जाए। इसके विपरीत, अगर मसीह-विरोधी के साथ तुम्हारा रिश्ता और अधिक घनिष्ठ होता जाए, यहाँ तक कि तुम उसके इशारे पर नाचने लगो तो इसका क्या परिणाम निकलेगा? तुम गलत मार्ग पर भटक जाओगे और खुद को बरबाद कर दोगे। जब तुम किसी मसीह-विरोधी के साथ घनिष्ठ संबंध रखते हो, तो तुम्हारा परमेश्वर के साथ संबंध दूर का हो जाता है। और इसका परिणाम क्या होता है? वे तुम्हें अपने नजदीक लाएँगे और तुम परमेश्वर से दूर हो जाओगे। अगर तुम अपने दिल में किसी को आराध्य बना लेते हो, तो जब भी तुम परमेश्वर के वचनों और कार्य के बारे में धारणाएँ बनाओगे या जब परमेश्वर के वचन तुम्हारे इस आराध्य को उजागर करने लगेंगे, तो तुम तुरंत परमेश्वर के खिलाफ विद्रोह कर दोगे, और यहाँ तक कि तुम परमेश्वर का विरोध और उससे विश्वासघात भी कर सकते हो; तुम अपने आराध्य के पक्ष में खड़े होगे और परमेश्वर का विरोध करोगे। ऐसा अक्सर होता है। जब कुछ झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों को बर्खास्त या निष्कासित किया जाता है, तो उनके साथी और अनुचर उनके बचाव में उतर आते हैं और शिकायत करने लगते हैं; कुछ तो नकारात्मक तक हो जाते हैं और परमेश्वर पर विश्वास करना बंद कर देते हैं। यह एक आम बात है, क्या ऐसा नहीं है? और ऐसा क्यों होता है कि वे विश्वास करना बंद कर देते हैं? वे कहते हैं, “हमारे अगुआ को बर्खास्त कर दिया गया है और उसे निष्कासित कर दिया गया है, तो फिर अब मुझ जैसा एक साधारण विश्वासी क्या उम्मीद कर सकता है?” क्या यह बकवास बात नहीं है? उनके शब्द संकेत देते हैं कि वे मसीह-विरोधी का अनुसरण करते हैं, कि वे मसीह-विरोधी द्वारा पूरी तरह से गुमराह किए जा चुके हैं। और उनके गुमराह होने का क्या परिणाम होता है? मसीह-विरोधी उनके लिए एक ऐसा आराध्य बन गया है जिसकी वे आराधना करते हैं; मसीह-विरोधी उनके लिए पूर्वज समान बन गया है : वे कैसे न छोड़ते, जब उनके पूर्वज को ही निष्कासित कर दिया गया? वे केवल मसीह-विरोधी की बात सुनते हैं और वे पूरी तरह से मसीह-विरोधी के नियंत्रण में होते हैं। उनका मानना होता है कि मसीह-विरोधी जो कुछ भी कहता और करता है वह सही है, और उसे सत्य के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए और उसके प्रति समर्पण किया जाना चाहिए, और इसलिए वे यह कभी भी बरदाश्त नहीं करते कि परमेश्वर के घर में कोई भी मसीह-विरोधी को उजागर करे और उसकी निंदा करे। एक बार जब मसीह-विरोधी को परमेश्वर के घर से निष्कासित कर दिया जाता है, तो जो लोग मसीह-विरोधी का अनुसरण करते हैं, वे खुद भी कलीसिया को छोड़ने का निर्णय कर लेते हैं; जैसा कि कहा जाता है, “पेड़ के गिरते ही बंदर तितर-बितर हो जाते हैं,” जैसा होता है। ऐसी बातें दर्शाती हैं कि मसीह-विरोधी और उनके अनुयायी शैतान के सेवक हैं, जो परमेश्वर के कार्य को अस्त-व्यस्त करने के लिए आए हैं। एक बार जब परमेश्वर के चुने हुए लोगों द्वारा उनका पर्दाफाश किया जाता है, उन्हें उजागर कर ठुकरा दिया जाता है, तो परमेश्वर में उनकी आस्था समाप्त हो जाती है। मसीह-विरोधियों के सभी अनुयायियों की एक स्पष्ट रूप से पहचान में आने वाली विशेषता होती है : वे मन से किसी की बात नहीं सुनते; वे केवल मसीह-विरोधियों की बात पर ध्यान देते हैं। और एक बार जब मसीह-विरोधियों द्वारा उन्हें गुमराह कर दिया जाता है, तो फिर वे परमेश्वर के वचनों को सुनना बंद कर देते हैं और केवल मसीह-विरोधी को ही अपना प्रभु मानते हैं। क्या इस स्थिति में, उन्हें गुमराह नहीं किया जा रहा है, क्या उन पर नियंत्रण नहीं किया जा रहा है? केवल मसीह-विरोधियों के अनुयायी ही मसीह-विरोधियों के बचाव में उनका साथ देने की कोशिश करते हैं। जब मसीह-विरोधियों को उजागर और बेनकाब कर दिया जाता है, तो उनका अनुसरण करने वाले लोग उनके लिए चिंतित हो जाते हैं, वे उनके लिए आँसू बहाते हैं, वे उनकी ओर से शिकायत करते हैं और उनका बचाव करने की कोशिश करते हैं। ऐसे समय में वे परमेश्वर को भूल चुके होते हैं और अब वे परमेश्वर से प्रार्थना नहीं करते या सत्य की तलाश नहीं करते; वे केवल मसीह-विरोधियों का बचाव करते हैं और उनके लिए अपने दिमाग पर जोर डालते हैं; वे तो अब परमेश्वर को भी नहीं पहचानते। क्या वे वास्तव में परमेश्वर में विश्वास रखते हैं? वे वास्तव में किस पर विश्वास रखते हैं? यह बात तो पहले से ही स्पष्ट है। चाहे वे जो कुछ भी कहें या करें, मसीह-विरोधियों का एक ही उद्देश्य होता है : यह है लोगों की अगुआई करना, उनका प्रभु बनना और वे चाहते हैं कि हर कोई उनका दासवत अनुसरण करे और उनकी आज्ञा का पालन करे और अंततः उनके साथ परमेश्वर जैसा व्यवहार करे। यह उस रास्ते से किस प्रकार भिन्न है जिस पर पौलुस चला था? जब पौलुस का कार्य अपनी अंतिम अवस्था पर पहुँचा, तो उसने अपने दिल में कुछ वचन कहे; पौलुस ने कहा कि उसके लिए जीना ही मसीह के लिए था, और ऐसा कहने के पीछे उसका उद्देश्य यह था कि जो लोग प्रभु में विश्वास रखते हैं वे उसका अनुकरण करें, उसका अनुसरण करें और उसके साथ परमेश्वर जैसा व्यवहार करें। इन वचनों को कहने के पीछे पौलुस का यही उद्देश्य था, है न? और अगर मसीह-विरोधियों का कार्य वास्तव में उस स्तर तक पहुँच जाता है जहाँ लोग उनकी आराधना और आज्ञापालन करने लगते हैं, तो इन लोगों के दिलों में परमेश्वर के लिए कोई स्थान नहीं रहेगा; उनके दिलों पर पहले ही मसीह-विरोधियों का कब्जा हो चुका होगा। यही इसका परिणाम है। तुम कहते हो कि तुम्हें मसीह-विरोधी द्वारा गुमराह किए जाने की कोई चिंता नहीं है, कि तुम्हें एक मसीह-विरोधी का अनुसरण करने का कोई डर नहीं है, लेकिन ऐसा दावा करने का कोई फायदा नहीं है। यह भ्रमित करने वाली टिप्पणी है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अगर तुम सत्य का अनुसरण नहीं करते और हमेशा लोगों की आराधना और उनका अनुसरण करते रहते हो, तो तुम मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चल रहे होगे और तुम्हें इसका एहसास भी नहीं होगा। कई वर्षों तक परमेश्वर पर विश्वास रखने के बावजूद अनुभवजन्य गवाही से वंचित रहना न केवल सत्य और जीवन प्राप्त न करना बल्कि परमेश्वर का विरोध करने वाला व्यक्ति बन जाना : यह मसीह-विरोधियों का अनुसरण करने का अंतिम परिणाम होता है और यह एक ऐसा परिणाम है जिससे तुम मुक्त नहीं हो सकते, यह एक अपरिवर्तनीय तथ्य है। यह उसी तरह है जैसे कोई व्यक्ति बिजली को छू लेता है : तो उसे निश्चित रूप से झटका लगेगा। कुछ लोग यह कह सकते हैं, “मैं यह नहीं मानता; मुझे कोई डर नहीं है”—लेकिन क्या यहाँ मामला यह है कि तुम इस पर विश्वास रखते हो या डरते हो या नहीं? बिजली को छू कर देखो! तुम्हें झटका जरूर लगेगा। इसे न मानने से कोई फायदा नहीं होगा। इसे न मानना अज्ञानता है; ऐसा कहना गैरजिम्मेदाराना बात है। इसलिए, चाहे तुम किसी मसीह-विरोधी का अनुसरण करने के लिए तैयार हो या न हो, अगर तुम सत्य का अनुसरण नहीं करते और तुम्हारे प्रयास हमेशा शोहरत, लाभ और हैसियत पाने के उद्देश्य से होते हैं, तो तुम पहले ही मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चल पड़े हो। यह परिणाम तुम्हें धीरे-धीरे दिखेगा, जैसे पानी में बहता हुआ कचरा सतह पर आता है। यह अपरिहार्य है। मसीह-विरोधी जो करते हैं, वह यह कि वे लोगों को अपने समक्ष लाते हैं, वे उन्हें परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं को स्वीकार करने या परमेश्वर की संप्रभुता के प्रति समर्पण करने के बजाय अपने नियंत्रण और चालाकी को स्वीकार करने के लिए मजबूर करते हैं। मसीह-विरोधी लोगों को जीतना चाहते हैं, वे उन्हें प्राप्त करना चाहते हैं, उनका लक्ष्य परमेश्वर के चुने हुए सभी लोगों को नियंत्रित करना है, परमेश्वर के चुने हुए लोगों को अपने हाथों में नियंत्रित करना है; वे तस्कर हैं। और मसीह-विरोधी लोगों को नियंत्रित करने के अपने उद्देश्य को हासिल करने के लिए क्या उपयोग करते हैं? वे उस आध्यात्मिक सिद्धांत का उपयोग करते हैं जिसकी लोग आराधना करते हैं, वे बाहर से सच्चे दिखने वाले सिद्धांतों का उपयोग करते हैं, वे लोगों को गुमराह करने के लिए उनकी सिद्धांतों की आराधना करने की भ्रष्ट मानसिकता का फायदा उठाकर बड़ी-बड़ी और मीठी-मीठी बातें कहते हैं। संक्षेप में कहें तो, वे जो कुछ भी कहते हैं वे केवल शब्द और धर्म-सिद्धांत होते हैं, खाली सिद्धांत जो बाहर से सच्चे दिखते हैं और सत्य से उलट होते हैं। अगर लोग सत्य को नहीं समझते, तो वे निश्चित रूप से गुमराह हो जाएँगे; कम से कम, वे होश में आने से पहले कुछ समय के लिए तो गुमराह जरूर होंगे। जब उन्हें होश आता है, तब मसीह-विरोधियों के मुखौटे उतर जाते हैं, फिर उस समय उन्हें बेहद पछतावा महसूस होता है। मसीह-विरोधियों का अनुसरण करने वाले लोगों ने पहले ही पवित्र आत्मा के कार्य को खो दिया है; क्योंकि वे अपने दिल में आराध्यों की आराधना करते हैं, लोगों का अनुसरण करते हैं और परमेश्वर द्वारा ठुकराए जाते हैं और उसने उनका खुलासा करने के लिए उन्हें एक तरफ कर दिया है। इसलिए, मसीह-विरोधियों का अनुसरण करना बहुत खतरनाक होता है; मसीह-विरोधियों की तरह जो लोग मसीह-विरोधियों का अनुसरण करते हैं उनसे परमेश्वर सबसे अधिक घृणा करता है। और इन लोगों को एक तरफ करने के पीछे परमेश्वर का उद्देश्य क्या होता है? इसके पीछे उद्देश्य परमेश्वर के चुने हुए लोगों के होश में आने, मसीह-विरोधियों को पहचानने और उन्हें उजागर करने में सक्षम होने और इन मसीह-विरोधियों को पूरी तरह से अस्वीकार करने तक प्रतीक्षा करने का होता है, जिसके बाद मसीह-विरोधियों के अंतिम दिन आ चुके होंगे। क्या मसीह-विरोधियों का हर काम लोगों के लिए हानिकारक नहीं होता? वे सत्य का अनुसरण नहीं करते और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को गुमराह करने और नियंत्रित करने की कोशिश करते हैं, वे लोगों को भी सत्य का अनुसरण नहीं करने देते, वे परमेश्वर के कार्य के प्रति समर्पण नहीं करते और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को अपना अनुसरण कराने के लिए गुमराह करने की कोशिश करते हैं—इस सबसे स्पष्ट होता है कि मसीह-विरोधियों में परमेश्वर का भय मानने वाला दिल नहीं होता और वे उसके सामने समर्पण नहीं करते और न ही उनमें सत्य के प्रति कोई प्रेम होता है। इसके बजाय वे परमेश्वर का विरोध करने और उसके चुने हुए लोग पाने को परमेश्वर से होड़ करने के लिए हैसियत और सत्ता प्राप्त करने के हर संभावित तरीकों के बारे में सोचते रहते हैं, ताकि वे अंततः परमेश्वर के खिलाफ अपना खुद का राज्य बना सकें—यह सब दर्शाता है कि मसीह-विरोधी देहधारी परमेश्वर के घोर शत्रु हैं और परमेश्वर के विनाश की वस्तु हैं। परमेश्वर के प्रति लोगों की आस्था के लिए सबसे खतरनाक चीज मसीह-विरोधियों द्वारा उन्हें गुमराह और नियंत्रित करना होता है। अगर लोगों ने पहले ही मसीह-विरोधियों का अनुसरण करना शुरू कर दिया है, अगर वे पहले से ही पूरी तरह से मसीह-विरोधियों की तरफ खड़े हैं, तो वे ऐसे लोग हैं जिन्होंने परमेश्वर को धोखा दिया है और उसके विरुद्ध खड़े हैं, ऐसी स्थिति में उनका परिणाम बिना कुछ कहे ही तय है।

कमोबेश यही बात है जिस पर संगति करनी है कि मसीह-विरोधी सत्य का अनुसरण करने वाले लोगों को कैसे निकालते और आक्रमण करते हैं। सत्य का अनुसरण करने वाले लोगों को निकालने और उन पर आक्रमण करने के पीछे उनका उद्देश्य और इरादा और वह रवैया, तरीके और तरकीबें जिनसे वे सत्य का अनुसरण करने वाले लोगों के साथ व्यवहार करते हैं, और साथ ही सत्य का अनुसरण करने वाले लोगों को मसीह-विरोधियों के प्रति जो कार्यवाही करनी चाहिए—हमने इनमें से प्रत्येक विषय पर थोड़ी-बहुत चर्चा की है, यद्यपि अभी तक विस्तृत रूप से नहीं की है। भविष्य की संगति अभी भी इन क्षेत्रों में विशिष्ट परिस्थितियों और विशिष्ट मामलों के हिसाब से और भी सत्य को छू सकती है। ऐसी विशिष्ट विषय-वस्तु पर संगति करते समय धर्मोपदेश सुनने वालों को कैसा रवैया अपनाना चाहिए? उन्हें पूरा ध्यान देना चाहिए, परमेश्वर के समक्ष शांति से रहना चाहिए और विचलित नहीं होना चाहिए, क्योंकि सत्य के हर पहलू के विशिष्ट बयान और परिभाषाएँ होती हैं और प्रत्येक की विशिष्ट सामग्री और अभ्यास के सिद्धांत होते हैं। इसके अलावा, हम विभिन्न कोणों और तरीकों से अवधारणात्मक विषयों पर बात करेंगे, जिनमें प्रत्येक सामग्री क्षेत्र के भीतर का सत्य शामिल है, साथ ही इसमें वे सत्य भी शामिल हैं जिन्हें लोगों को समझना चाहिए और वह मार्ग भी शामिल है जिस पर उन्हें अभ्यास करना चाहिए। इन सभी बातों पर स्पष्टता मिलने तक संगति करने और विचार करने की आवश्यकता है, तभी इसका कोई परिणाम देखने को मिलेगा। अब हम अपनी विस्तृत संगति के माध्यम से देखेंगे कि अपने कर्तव्य को निभाने में शामिल सत्य सिद्धांत उतने सरल नहीं होते जितना लोग सोचते हैं। सत्य को समझना उन लोगों के लिए वास्तव में कठिन होता है जिनके पास समझने की क्षमता नहीं होती। सत्य को समझना किसी विश्वविद्यालय में पढ़ने के समान ही कुछ हद तक कठिन होता है, लेकिन अगर किसी में समझने की क्षमता है तो उसे यह कठिन नहीं लगेगा। जब तक कोई सत्य को सुनने के बाद इसे समझ सकता है तो उसके पास स्वाभाविक रूप से इसका अभ्यास करने के लिए एक मार्ग होगा, और जितना अधिक वह सत्य का अभ्यास करने में प्रशिक्षित होगा, उसके अभ्यास का मार्ग उतना ही व्यापक होगा और वह सिद्धांतों को और अधिक सटीकता से समझ पाएगा। दूसरी ओर, अगर तुम इस तरह की विस्तृत संगति को नहीं सुनते हो और केवल सामान्यीकृत और सैद्धांतिक चीजों को ही समझते हो, तो तुम देखोगे कि अभ्यास के समय तुम्हारे हाथ बँधे होंगे। जब तुम सत्य सिद्धांतों की तलाश करोगे, तो ऐसा लगेगा कि तुम जिस भी दिशा में मुड़ते हो वह गलत है और चाहे तुम कुछ भी कर लो, तुम उन्हें सही तरीके से समझने में असमर्थ महसूस करोगे। लेकिन अब ऐसी ठोस परिभाषाओं और विशिष्टताओं के साथ तुम्हारे लिए इसका दायरा सीमित कर दिया गया है, और सत्य को विशिष्ट बना दिया गया है, तो जब तुम फिर से सत्य का अभ्यास करना शुरू करोगे तो तुम अधिक स्वतंत्र महसूस करोगे क्योंकि यह तुम्हारे लिए विस्तृत होगा। उदाहरण के लिए, मान लो मैंने तुम्हें एक नोटबुक खरीदने के लिए कहा। अगर मैंने तुम्हें केवल उसके आकार, मोटाई और कीमत जैसी मौलिक आवश्यकताओं के बारे में बताया होता, तो शायद तुम्हें इन सिद्धांतों को समझने और उन्हें अभ्यास में लाने के लिए कुछ प्रयास करने पड़ सकते थे। लेकिन अगर मैं तुम्हें नोटबुक के विशिष्ट रंग, आकार, पन्नों की संख्या, विशिष्ट फॉर्मेटिंग और कागज की गुणवत्ता जैसी चीजें बताऊँ—तो फिर ऐसे विवरण बताए जाने के बाद क्या तुम्हारे द्वारा समझे गए सिद्धांत अधिक ठोस नहीं होंगे? और अगर मैं तुम्हें इससे भी अधिक विशिष्ट जानकारी देता, तुम्हें एक कागज का एक पन्ना देता और तुमसे एक ऐसी नोटबुक खरीदने के लिए कहता जिसका कागज इसी गुणवत्ता, मोटाई, रंग, और ग्रिड आकार और मात्रा का हो या अगर मैं प्रत्येक विशेषता के लिए सटीक सीमाओं के बारे में विनिर्देश देता, तो क्या जब तुम इसे खरीदने जाते, तो तुम्हारे लिए विकल्पों की सीमा कम नहीं हो जाती? (हाँ, हो जाती।) क्या अभ्यास के समय प्रासंगिक सिद्धांत तुम्हारे लिए और अधिक ठोस और सरल नहीं हो जाते? अगर तुम्हारे अभ्यास की बात करें तो क्या इससे तुम्हें मदद मिलेगी या बाधा पैदा होगी? (यह मददगार होगा।) वास्तव में यह मददगार होना चाहिए क्योंकि सत्य के विभिन्न पहलुओं को अधिक ठोस ढंग से और अधिक विस्तार से बताया गया है, यहाँ तक कि विशेष मामलों में कैसे व्यवहार करना है, विशिष्ट अभिव्यक्तियों और अभ्यास करने के तरीकों की तफसील तक—ये सभी बातें तुम्हें विस्तार से बताई गई हैं। अगर अभी भी तुम इसे अभ्यास में नहीं ला सकते, तो फिर तुम्हारे अंदर सत्य को समझने की कोई योग्यता नहीं है।

तुम लोग सत्य को प्राप्त करने और पूर्ण बनाए जाने में सक्षम हो या नहीं, यह इस पर निर्भर है कि तुम लोगों में अभी सत्य को समझने की क्षमता है या नहीं। अब, मैं यहाँ तक पहुँच चुका हूँ कि मैंने कर्तव्यों के मानक स्तर के निर्वहन से संबंधित सत्यों को प्रत्येक कर्तव्य को निभाने वाले व्यक्तियों के आधार पर छह प्रकारों में वर्गीकृत कर दिया है; इनमें से प्रत्येक प्रकार को आगे विशिष्ट श्रेणियों में विभाजित किया गया है और प्रत्येक श्रेणी के भीतर विस्तृत संगति के उपखंड हैं। तुम लोगों के मामले में, क्या इस प्रकार का उपदेश और ऐसे सत्यों की संगति तुम लोगों को सत्य की बेहतर समझ की ओर ले जाती है और तुम्हें अभ्यास करने के लिए अधिक सिद्धांत प्रदान करती है, या इससे सिद्धांतों को तलाशना और अधिक कठिन हो जाता है? (इसकी वजह से हमें और अधिक सिद्धांत मिलते हैं।) इससे तुम्हें अधिक समझ प्राप्त होनी चाहिए और ऐसा होने पर मेरा विस्तृत धर्मोपदेश तुम लोगों के लिए सहायक सिद्ध होना चाहिए। इससे तुम लोगों को अधिक स्पष्टता मिलनी चाहिए, न कि अधिक भ्रम होना चाहिए। यह इस बात पर निर्भर करता है कि किसी में सत्य को समझने की क्षमता है या नहीं। अगर कोई वास्तव में अच्छी काबिलियत वाला व्यक्ति है जिसमें आध्यात्मिक समझ है, तो वह इस बारे में अधिक से अधिक स्पष्ट महसूस करेगा; लेकिन अगर किसी में खराब काबिलियत है और आध्यात्मिक समझ की भी कमी है, तो वह इसे समझने में कम सक्षम होगा और वह केवल अधिक से अधिक भ्रम में पड़ जाएगा। कुछ लोग कह सकते हैं, “पहले मुझे लगता था कि मैं थोड़ा बहुत समझता हूँ, लेकिन अब जितना अधिक मैं सुनता हूँ, उतना ही अधिक भ्रम में पड़ जाता हूँ, जैसे मानो मेरे अंदर कुछ भी नहीं बचा है। ऐसा क्या हो रहा है?” अगर जीवन प्रवेश के बारे में बहुत अधिक विस्तार से बात की जाती है, तो लोगों के लिए इसे समझना मुश्किल हो जाता है, अगर उनके पास अनुभव की कमी है और उनकी काबिलियत खराब है। जितनी अधिक विस्तृत बात होगी, खराब काबिलियत के लोगों की उतना ही अधिक उलझने की संभावना रहेगी। उनके उलझने की आशंका क्यों होती है? इसमें कई स्थितियाँ होती हैं। एक यह है कि ऐसे लोगों में आध्यात्मिक समझ की कमी होती है। वे सत्य को नहीं समझते—यानी वे यह नहीं समझते कि सत्य या कोई विशेष दशा क्या होती है। उन्हें ये बातें समझ नहीं आती। यह स्थिति सत्य को समझने की क्षमता की कमी की होती है। ऐसे लोगों के मामले में केवल एक ही अंतिम उपाय किया जा सकता है : उन्हें स्पष्ट रूप से बताना कि जब भी उनके साथ कुछ घटित हो तो उन्हें क्या करना चाहिए, बिल्कुल उसी तरह जैसे एक रोबोट को आवश्यकता अनुसार कार्यों को करने के लिए प्रोग्राम किया जाता है। बस उनसे विनियमों का पालन करवाना ही काफी होता है। इस तरीके से ऐसे लोगों में परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं; उनके लिए कोई अन्य तरीका नहीं है। मैं अब इस अंतिम उपाय का उपयोग कर रहा हूँ, सबसे ठोस चीजों तक अधिकतम विस्तार से बात करना—सबसे ठोस चीजों पर काम करना। कुछ लोगों का कहना है कि वे अभी भी नहीं समझे, तो मैं अब उन्हें विशेष रूप से बताऊँगा कि उनके मार्ग में जो कुछ भी आता है उसके साथ कैसे व्यवहार करना है और उसे कैसे सँभालना है। मैं उनसे विनियमों का पालन करवा रहा हूँ; मैं बस इतना ही कर सकता हूँ, क्योंकि उनमें सत्य को समझने की क्षमता नहीं है। हर किसी की दशा एकदम समान नहीं होती, लेकिन उनमें मामूली ही अंतर हैं। अगर तुम चाहते हो कि मैं तुम लोगों से एक-एक करके हर एक के बारे में विशेष रूप से और स्पष्ट रूप से बात करूँ, तो मुझे उन सभी तक पहुँचने में काफी कठिनाई होगी, क्योंकि तुममें से बहुत से लोग ऐसे हैं जिनकी काबिलियत खराब है। तुममें से आध्यात्मिक समझ और सत्य का बोध करने की क्षमता रखने वालों के लिए आवश्यक है कि वे कार्य का वह भाग करें। मैंने पहले ही अपना कार्य पूरी तरह से कर लिया है। यही सब कुछ है जो करना संभव था; मैं जो कुछ कर सकता था, वह सब मैंने किया है। देहधारी परमेश्वर द्वारा किए गए सभी कार्य और बोले गए सभी वचन एक साधारण व्यक्ति के लिए समझने योग्य और सुलभ हैं। यही वह सीमा है कि सामान्य मानवता की सोच और प्रतिक्रियाओं वाले लोगों के साथ जो सब किया जा सकता है। कुछ लोग पूछते हैं, “क्या परमेश्वर चमत्कार नहीं करेगा?” परमेश्वर चमत्कार नहीं करता; ये सभी चीजें वास्तविक, व्यावहारिक तरीके से की जानी चाहिए। यह ठीक वैसा ही है जैसे परमेश्वर के कार्य तीन चरणों में होते हैं : मानवजाति के जीवन में उसकी अगुआई करने के लिए कुछ नियमों की घोषणा से शुरू करना, फिर क्रूस पर चढ़ना और छुटकारे का कार्य और फिर वहाँ से अंत के दिनों तक जिनमें परमेश्वर का देहधारण मानवजाति को बचाने वाले सभी सत्यों को व्यक्त करता है—प्रत्येक चरण वास्तविक, व्यावहारिक तरीके से किया जाता है, मनुष्य के साथ आमने-सामने बात करना और कार्य करना। इसमें कोई चमत्कार नहीं है। सबसे बड़ा चमत्कार तो यही है कि परमेश्वर खुद व्यक्तिगत रूप से बोलता और कार्य करता है और वह चाहे कोई भी तरीका अपनाए, वह अंततः लोगों के एक समूह को पूर्ण बनाएगा और उन्हें प्राप्त करेगा। यह निश्चित रूप से पूरा होकर रहेगा; बस समय की बात है। यही सबसे बड़ा संकेत और चमत्कार है और परमेश्वर मनुष्य के दिल में सत्य के कार्य करने के लिए किसी अन्य अलौकिक तरीके का उपयोग नहीं करेगा। अब जबकि इन सत्यों के बारे में इतने विस्तार से संगति की जा चुकी है, तो अगर तुम्हारे पास समझने की क्षमता है और तुम वास्तव में सत्य का अनुसरण करने वाले व्यक्ति हो, तो अगर तुम सच में ध्यान दो और थोड़ा प्रयास करो, तो तुम्हारे लिए सत्य को या अभ्यास के सिद्धांतों को न समझना असंभव होगा। कुछ लोग कहते हैं कि वे सत्य से प्रेम करते हैं, लेकिन इतने वर्षों तक धर्मोपदेश सुनने के बाद भी वे अभी तक इसे क्यों नहीं समझ पाए हैं? दो संभावनाएँ हैं। एक यह है कि उनमें किसी भी प्रकार की कोई आध्यात्मिक समझ नहीं है और वे सत्य को समझने में असमर्थ हैं; दूसरा यह है कि वे वास्तव में सत्य से प्रेम नहीं करते और उन्होंने कभी भी इसका अनुसरण करने का प्रयास नहीं किया है। यही इसके दो संभावित कारण हैं। कुछ अन्य लोग कहते हैं कि वे सत्य को इसलिए नहीं समझते क्योंकि वे लंबे समय से परमेश्वर पर विश्वास नहीं कर रहे हैं और उन्होंने ज्यादा धर्मोपदेश नहीं सुने हैं, और उनके पास अधिक अनुभव नहीं है। यह भी एक और कारण है। हालाँकि, अगर तुम वास्तव में सत्य से प्रेम करने वाले व्यक्ति हो, तो जैसे-जैसे परमेश्वर में तुम्हारे विश्वास के वर्ष बढ़ते जाएँगे, तुम्हारी सत्य की समझ भी उतनी ही बढ़ती जाएगी और तुम्हारा आध्यात्मिक कद भी उतना ही ऊँचा होता जाएगा।

सत्य के किसी भी पहलू के बारे में संगति करने में, उसे पूरी तरह प्रस्तुत करने में केवल कुछ शब्दों से ज्यादा की जरूरत पड़ती है, इस तरह कि उससे सभी समस्याएँ हल हो सकें। आजकल लोगों के लिए सामान्यताएँ केवल सिद्धांत हैं, केवल विचारधारा होते हैं। तो, मैं लोगों को कैसे समझा सकता हूँ और कैसे उन्हें इस बात में सक्षम बना सकता हूँ कि जब वे किसी चीज को स्वीकार कर लें तो फिर इसे अपने अभ्यास के सिद्धांतों में बदल सकें? मुझे और विशिष्टता से और विस्तार से बात करनी होगी। भले ही मैं कोई कहानी सुनाऊँ या सत्य के बारे में संगति करूँ या अभ्यास के बारे में बात करूँ, उन्हें कुल मिलाकर अधिक विस्तृत और विशिष्ट होना चाहिए। विशिष्ट भाषण तुम लोगों के लिए फायदेमंद है। तो इसलिए मुझे तुम लोगों के लिए कहानियाँ और उदाहरण सोचने के लिए हमेशा अपने दिमाग पर जोर देना पड़ेगा ताकि तुम लोग थोड़ा बहुत और समझ सको। मैं इन सभी सत्यों को एक के बाद एक घटनाओं में मूर्त रूप देता हूँ और जिन सत्यों पर मैं संगति करता हूँ उन्हें प्रत्येक उस घटना के साथ जोड़ता जाता हूँ, ताकि तुम लोगों के मन में एक छवि बने जिसके साथ तुम अपनी तुलना कर सको और देख सको कि क्या तुमने कभी इस तरह से कार्य किया है, या तुम कभी ऐसे व्यक्ति की तरह कार्य करोगे, या कभी तुमने इस तरह से सोचा है या कभी तुम ऐसी स्थिति में फँसे हो। जैसे-जैसे तुम लोग इन सत्यों को सुनते हो, मैं इसे इस तरह बनाता हूँ कि तुम्हारे पास लगातार उसकी एक छवि रहे, मानो तुम उसमें पूरी तरह से डूबे हुए हो। यही कारण है कि मैं कहानियाँ सुनाता हूँ और उदाहरण देता हूँ। कुछ लोग ऐसे हैं जो कहानी शुरू होते ही अधीर हो जाते हैं। “एक और कहानी? मैं क्या कोई तीन साल का बच्चा हूँ?” बेशक आयु के लिहाज से तुम छोटे न हो, लेकिन परमेश्वर पर विश्वास रखने और सत्य का अनुसरण करने के मार्ग में तुम तीन साल से भी कम उम्र के हो सकते हो—यही इस मामले की सच्चाई है। इसलिए, तुम लोगों के साथ तीन साल से कम उम्र के बच्चों जैसा व्यवहार करना तुम लोगों का अपमान नहीं है और यह बिल्कुल भी अति नहीं है; मेरी नजर में तो यह तुम लोगों को ज्यादा आँकना है। जब तीन साल का बच्चा किसी वयस्क को कहते सुनता है कि कैंची तेज हैं और उन्हें छूना नहीं चाहिए, तो वह इस बात को एक सिद्धांत के रूप में याद रखेगा। वे उन्हें बिल्कुल भी नहीं छुएँगे और उनसे मिलते-जुलते औजारों या ब्लेडों को भी नहीं छुएँगे। उन्हें पता है कि वे सभी तेज हैं; वे जानते हैं कि उन्हें इस सिद्धांत में महारत हासिल करनी है। तो क्या लोग किसी ऐसी चीज में सिद्धांत तलाश सकते हैं जिसका अनुभव उन्होंने अपने अभ्यास में एक के बाद एक किया हो? यानी, क्या तुम परमेश्वर के कार्यों के पीछे के इरादों को, उसकी तुमसे अपेक्षाओं को और किसी विषय में उसके आवश्यक मानकों को समझ सकते हो? एक सामान्य व्यक्ति की बुद्धि के अनुसार, तुम्हें ये बातें समझ में आनी चाहिए। फिर ऐसी कौन सी परिस्थितियाँ हैं जिनमें लोग उन्हें नहीं समझते, चाहे मैं कुछ भी कहूँ? ऐसा होने का मुख्य कारण सबसे पहले तो उस शोरगुल भरे माहौल से संबंधित है जिसमें लोग रहते हैं, लोगों के पास सँभालने के लिए इतनी सारी मामूली और बोझल चीजें होती हैं कि वे परमेश्वर के वचन को ध्यानपूर्वक प्रार्थना-पाठ करने के लिए इच्छुक नहीं होते और वे सत्य को पाने के लिए कोई प्रयास नहीं करते। यह कारण का एक पहलू है; इसका दूसरा पहलू यह है कि लोगों की सत्य के प्रति प्यास और प्रेम इतना कम होता है कि अगर दस को पूर्ण स्कोर माना जाए, तो वर्तमान में तुम लोगों की सत्य के प्रति प्रेम की सीमा अधिकतम तीन या पाँच पर होगी। इसलिए लोगों द्वारा सत्य को न समझ पाने और अंततः इसे प्राप्त न कर पाने के कारण का बड़ा हिस्सा यह होता है कि उन्होंने इसके लिए खुद कोशिश नहीं की होती है और यह भी है कि उन्होंने खुद को पूरे दिल से इसमें नहीं झोंका होता और अपने दिल में वे सत्य से उतना भी प्रेम नहीं करते। सत्य के प्रति लोगों के प्रेम का स्तर पर्याप्त नहीं होता। यह केवल थोड़ी-सी दिलचस्पी की हद तक होता है; यह प्रेम के स्तर तक नहीं पहुँचता। यह केवल इसलिए है क्योंकि लोगों ने इस दुनिया में इतनी ज्यादा असफलताओं और कष्टों का सामना किया है कि वे इसी तरह नहीं जी पाते और क्योंकि उन्होंने परमेश्वर को अपना काम करते, लोगों को बचाते और हर दिन सत्य के बारे में संगति करते और मनुष्य को जो कुछ वह प्रदान करता है, उसकी प्रचुरता को देखा है, इसलिए उन्हें लगता है कि परमेश्वर ही है जो अच्छा है और वे उसके वचनों को पढ़ने और सत्य की ओर प्रयास करने के लिए तत्पर हो जाते हैं। उन्हें इसी चीज में थोड़ी दिलचस्पी होती है। लोगों के दिल अपना अधिकतर समय किस चीज में व्यतीत करते हैं? वे सभी अनेक तुच्छ बातों में उलझे रहते हैं और भावनात्मक संबंधों, पारस्परिक संबंधों, रुतबे और दिखावों और समाज के रुझानों जैसे विभिन्न मुद्दों में व्यस्त रहते हैं। यहाँ तक कि कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अपना ज्यादातर समय और ऊर्जा अपने भोजन, कपड़ों, सजने-सँवरने और देह के आनंद पर लगाते हैं। वे इन चीजों पर वास्तव में अपना अनमोल समय बरबाद करते हैं और यह कहकर इसकी महिमा करते हैं : “मैं परमेश्वर के लिए खुद को खपा रहा हूँ!” आखिरकार अंत में, वे पीछे मुड़कर देखते हैं कि परमेश्वर ने उनके लिए इतने वचन कहे और इतने लंबे समय तक कार्य किया, फिर भी उन्होंने सत्य प्राप्त नहीं किया है। ऐसा इसलिए नहीं है क्योंकि परमेश्वर ने उन्हें यह नहीं दिया, बल्कि इसलिए है क्योंकि उन्होंने दिल से सत्य को स्वीकार नहीं किया या सत्य के लिए प्रयास नहीं किया, हालाँकि उन्होंने परमेश्वर को इसे बहुत अधिक व्यक्त करते देखा था। यही कारण है कि वे परमेश्वर में अपने कई वर्षों के विश्वास में सत्य और जीवन प्राप्त नहीं कर पाए और अंत में हटा दिए गए।

22 जनवरी 2019

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