मद चार : वे अपनी बड़ाई करते हैं और अपने बारे में गवाही देते हैं (खंड पाँच)

अपनी बड़ाई करना और अपने बारे में गवाही देना मसीह-विरोधियों की प्राथमिक अभिव्यक्ति है, और इस अभिव्यक्ति के अनुसार उनके सार को निरूपित करना बेहद उचित और ठोस है—यह कोई खोखला निरूपण नहीं है। उनके एजेंडों, महत्वाकांक्षाओं, उनके सार के खुलासों, और उनके क्रियाकलापों के सतत लक्ष्यों को देखकर, कोई भी समझ सकता है कि अपनी बड़ाई करना और अपने बारे में गवाही देना मसीह-विरोधियों की विशेष अभिव्यक्ति है। क्या ऐसा कोई मसीह-विरोधी है जिसने कभी भी अपनी बड़ाई नहीं की और अपने बारे में गवाही नहीं दी? (नहीं।) क्यों नहीं? क्योंकि उसकी महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ अपार हैं, और वह उन्हें नियंत्रित नहीं कर सकता है। चाहे वह लोगों के किसी भी समूह में रहे, यदि कोई भी उसकी बड़ाई नहीं करता और उसकी आराधना नहीं करता, तो उसे लगता है कि जीवन का कोई मूल्य या अर्थ नहीं है, यही वजह है कि वह अपने लक्ष्यों को पाने के लिए अपनी बड़ाई करने और अपने बारे में गवाही देने के लिए इतना उत्सुक रहता है। वह दूसरों से श्रेष्ठ होने के लिए जीता है, और उसे ऐसे लोगों की आवश्यकता होती है जो उसकी आराधना करें और उसका अनुसरण करें, और भले ही वे लोग खिझाऊ, घृणित मक्खियों या भिखारियों के गिरोह जैसे हों, उसे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। जब तक ऐसे लोग हैं जो उसकी आराधना करते हैं और उसका अनुसरण करते हैं, तब तक उन्हें मन की संतुष्टि और शांति प्राप्त होती है। यदि उसे प्रशंसकों से बेहिसाब तालियाँ मिल सकें, जैसा कि प्रसिद्ध गायकों को मिलती हैं, तो वह सातवें आसमान पर होगा, उसे इसका आनंद लेना अच्छा लगता है—यह मसीह विरोधी की प्रकृति है। चाहे किसी भी तरह के लोग उसका अनुसरण करें या उसकी आराधना करें, मसीह-विरोधी उन सभी को पसंद करता है। भले ही उसका अनुसरण करने वाले लोग सबसे अभागे और घृणित हों, भले ही वे जानवर हों, जब तक वे उसकी बड़ाई करते हैं और रुतबे के लिए उसकी महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं को संतुष्ट करते हैं, तब तक मसीह-विरोधी बुरा नहीं मानता। तो, क्या मसीह-विरोधी अपनी बड़ाई करने और अपने बारे में गवाही देने, और जहाँ भी वह जाता है वहाँ दिखावा करने से खुद को रोक सकता है? (नहीं।) यह उसका सार है। मुझे बताओ, वे किस प्रकार के लोग हैं जो सच में परमेश्वर का अनुसरण करते हैं? मानवजाति में, एक प्रकार का व्यक्ति है जिसे परमेश्वर चुनना और बचाना चाहता है, और इन लोगों में थोड़ा सा जमीर, विवेक और शर्म होती है। जो लोग इससे थोड़े बेहतर हैं वे सत्य से प्रेम करने, सकारात्मक चीजों से प्रेम करने, और परमेश्वर की निष्पक्षता और धार्मिकता से प्रेम करने में सक्षम हैं; वे दुष्टता से घृणा करने में सक्षम हैं, जब वे अन्यायपूर्ण या दुष्ट चीजों को देखते हैं तो वे क्रोधित महसूस करते हैं, और भले ही वे इन चीजों के बारे में कुछ भी करने में समर्थ न हों, फिर भी वे उनसे घृणा करते हैं—ये वो लोग हैं जिन्हें परमेश्वर थोड़ा बहुत चाहता है। जहाँ तक उन लोगों का सवाल है जिनमें यह मानवता और सार नहीं है, परमेश्वर उन्हें नहीं चाहता, चाहे वे परमेश्वर की अच्छाई या उसकी महानता के बारे में कितनी भी बातें करें। उदाहरण के लिए, धर्म में फरीसी उन्हीं पुराने खोखले सिद्धांतों और सतही शब्दों के साथ परमेश्वर की बड़ाई करते हैं और परमेश्वर के बारे में गवाही देते हैं, और दो हजार साल बाद भी वे उन्हें कहने से नहीं थकते। अब परमेश्वर बहुत सारे सत्य व्यक्त कर रहा है, लेकिन वे उन्हें देख नहीं सकते, वे उन्हें अनदेखा करते हैं, और कुछ लोग तो उन पर दोष लगाते हैं और उनकी ईश निंदा भी करते हैं। यह पूरी तरह से उनका खुलासा करता है, और परमेश्वर ने बहुत पहले से ही उन्हें पाखंडी फरीसी के रूप में निरूपित कर दिया है, जिनमें से सभी शैतान के गिरोह का हिस्सा हैं; परमेश्वर ने उन्हें दानवों और शैतानों, सूअरों और कुत्तों के रूप में निरूपित किया है। जब मसीह-विरोधी ऐसे लोगों के समूह में आता है और देखता है कि उनमें से बहुत कम लोग सत्य को समझ सकते हैं, उनमें से किसी में भी कोई विवेक या प्रतिभा नहीं है, तो वह दिखावा करने के लिए इस अवसर का लाभ उठाने में शीघ्रता करता है। कुछ लोग डींगें हाँकते हैं कि एक बार उन्हें एक साथ दो विश्व-स्तरीय विश्वविद्यालयों में दाखिला मिला था, और अंत में वे वहाँ नहीं गए क्योंकि उन्होंने परमेश्वर में विश्वास रख लिया था और उसके आदेश को स्वीकार लिया था। उनकी यह बात सुनकर कुछ लोग उनका बहुत आदर करने लगते हैं। यदि तुम सत्य को नहीं समझते हो, और यदि जिन चीजों से तुम प्रेम करते हो और तुम्हारा वैश्विक दृष्टिकोण सांसारिक लोगों के समान है, तो तुम इस तरह के लोगों की आराधना करोगे, और इसीलिए जब मसीह-विरोधी ऐसी बातें कहता है, तो तुम उसके द्वारा गुमराह किए और मूर्ख बनाए जाओगे। मसीह-विरोधी अप्रत्यक्ष रूप से अपनी बड़ाई करता है, और उसके द्वारा उन अविवेकी मूर्ख लोगों को गुमराह किया जाता है। मसीह-विरोधी को यह सोचकर बहुत प्रसन्नता महसूस होती है कि उसके अधीन कोई भी व्यक्ति सामान्य नहीं है, जबकि वास्तव में वे सभी लोग भ्रमित और बेकार लोगों का समूह मात्र हैं। जिनके पास सत्य को समझने की कोई योग्यता नहीं है उन सभी लोगों को शैतानों और मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह किया जा सकता है। जब वे शैतानों और मसीह-विरोधियों को बोलते हुए सुनते हैं, तो उन्हें महसूस होता है कि ये शब्द उनके अपने विचारों और रुचियों से वास्तव में मेल खा रहे हैं, इसलिए उन्हें इसे सुनने में आनंद आता है। वे जो सुन रहे हैं उसके बारे में निर्णय लेने के लिए सामान्य सोच का उपयोग करने में सक्षम नहीं हैं, न ही उन्हें कोई ऐसा व्यक्ति मिलेगा जो सत्य को समझता हो और उन्हें ऐसी चीजों का भेद पहचानने में मदद कर सके; जब तक उन्हें लगता है कि वे जो सुन रहे हैं वह उचित जान पड़ता है, वे इसे स्वीकार करने के इच्छुक रहेंगे, और इस तरह वे अनजाने में ही गुमराह हो जाते हैं। यदि सत्य को समझने की क्षमता रखने वाले और मसीह-विरोधियों को बोलते हुए सुनने का विवेक रखने वाले लोग जान जायेंगे कि वे लोग दूसरों को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं तो वे उन्हें अस्वीकार कर देंगे। जिन भ्रमित लोगों में विवेक की कमी है, वे विश्वास कर लेंगे कि मसीह-विरोधियों के पास शिक्षण है, अच्छी काबिलियत है, और संभावनाएँ हैं। वे चीजों को इस तरह से देखेंगे, और किसी सतही घटना से गुमराह हो जाएँगे; उन्हें पता नहीं होगा कि सत्य सिद्धांत क्या हैं, और वे शैतानों का अनुसरण करना आरंभ कर देंगे। क्या ऐसे लोग अपनी मूर्खता और अज्ञानता के कारण अपना विनाश नहीं कर लेते हैं? यह ऐसे ही होता है। यदि तुम्हें मसीह-विरोधी द्वारा अक्सर अपनी बड़ाई करने और अपने बारे में गवाही देने की विभिन्न अभिव्यक्तियों, या ऐसे करने के उसके अलग-अलग तरीकों की समझ है, और तुम उसके शब्दों के पीछे के उद्देश्य और एजेंडा का अनुमान लगाने में समर्थ हो, तो तुम्हारे लिए मसीह-विरोधियों के सार को समझना आसान हो जाएगा, और तब तुम उसे तुरंत अस्वीकार करने और उसे शाप देने में समर्थ हो जाओगे, और उसे दोबारा कभी नहीं देख पाओगे। तुम ऐसा क्यों करोगे? क्योंकि जब तुम मसीह-विरोधी को बोलते और कार्य करते देखते हो, तो तुम उसे तुच्छ जानोगे और उससे घृणा करोगे, तुम्हें बुरा लगेगा जैसे कि तुम मक्खियों को देख रहे हो और तुम उन्हें जल्द से जल्द वहाँ से भगा देना चाहोगे। इसलिए, एक बार मसीह-विरोधी के क्रियाकलापों और व्यवहार का भेद पहचान लेने पर, तुम्हें उसको तुरंत उजागर कर देना चाहिए ताकि दूसरे लोग उसका भेद पहचान सकें, और फिर उसे सिद्धांतों के अनुसार कलीसिया से निष्कासित कर सकें। क्या तुम लोगों में यह करने का साहस है? अगर परमेश्वर के चुने हुए लोग यह काम कर सकते हैं, तो यह दर्शाता है कि उनका आध्यात्मिक कद बढ़ गया है, और वे परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशीलता दिखा सकते हैं और परमेश्वर के घर के कार्य की सुरक्षा कर सकते हैं। जब परमेश्वर के चुने हुए लोग सत्य को समझते हैं और उनमें विवेक होता है, तो मसीह-विरोधियों के लिए कलीसिया में या परमेश्वर के घर में पैर जमाना संभव नहीं होगा।

चाहे कोई भी मौका हो, जब तक मसीह-विरोधी के पास अवसर है, वह दिखावा करेगा और अपने बारे में गवाही देगा, और जब तक ऐसे लोग हैं जो उसकी आराधना करते हैं और उसकी तरफ प्रशंसा, ईर्ष्या, और श्रद्धा भरी निगाहों से देखते हैं, वह खुश होगा—उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे लोग कौन हैं। क्या उसके कोई मानक हैं जो उसे उन लोगों से चाहिए जो उसका अनुसरण करते हैं, उसकी आराधना करते हैं, और उसका आदर करते हैं? (नहीं।) चाहे वे लोग बेवकूफ, मानसिक रूप से अक्षम, बुरे लोग या छद्म-विश्वासी हों, चाहे वे कैसे भी लोग हों, इनमें वे लोग भी शामिल हैं जिन्हें निकाल और हटा दिया जाना चाहिए, जब तक वे लोग उसका अनुसरण कर सकते हैं, उसकी आराधना करते हैं और उसकी बड़ाई करते हैं, तो मसीह-विरोधी उन्हें स्वीकार लेता है, वह उन्हें बहुत पसंद करता है, उनका पक्ष लेकर और उनकी रक्षा करके उन्हें अपने जाल में फँसा लेता है। मसीह-विरोधी उन लोगों को अपनी भेड़ों, अपनी निजी संपत्त‍ि की तरह देखता है, और वह किसी को भी उनका तबादला करने, उन्हें उजागर करने, या उनसे निपटने की अनुमति नहीं देता। भले ही वे लोग मसीह-विरोधी की खुशामद और चापलूसी करके उसके दिल में जगह बना लें, भले ही वे कितनी भी घृणास्पद और घिनौनी बातें कहें, मसीह-विरोधी इन सबका आनंद उठाता है; जब तक वे लोग मसीह-विरोधी की झूठी तारीफ करते हैं उसके लिए यह सब ठीक होता है। मसीह-विरोधी जो कुछ भी कहता और करता है वह इसलिए होता है ताकि दूसरे लोग उसका आदर करें, उसे पसंद करें, उसका अनुसरण करें, और उसका अनुसरण करने वाले लोग भले ही कितने भी खराब काम करें, मसीह-विरोधी उनकी जाँच-पड़ताल नहीं करेगा, और चाहे उनकी मानवता कितनी भी धूर्त और दुर्भावनापूर्ण क्यों ना हो, वह इसकी परवाह नहीं करेगा। जब तक वे लोग उसका अनुसरण करते हैं, उसकी आराधना करते हैं, मसीह-विरोधी उन्हें पसंद करेगा, और जब तक वे लोग मसीह-विरोधी की शक्ति और रुतबा बनाए रख सकते हैं, और उसके विरुद्ध नहीं जाते या उसका विरोध नहीं करते हैं, तो मसीह-विरोधी को बहुत संतुष्टि होगी—मसीह-विरोधी ऐसे ही होते हैं। इसके विपरीत, मसीह-विरोधी उन लोगों के साथ कैसा व्यवहार करता है जो सदैव उसे उजागर करते रहते हैं, और जो उसे अपनी बड़ाई करने और अपने बारे में गवाही देने से रोकते हैं, और जो ऐसा करने के लिए उसका तिरस्कार करते हैं, साथ ही जो उसके साथ सत्य की संगति करते हैं, जो उसकी समस्याओं के सार की असलियत को समझ सकते हैं और जो सही मायनों में उनका भेद पहचानते हैं? वह शर्म से तुरंत क्रोधित हो जाता है, और उन लोगों से सावधान हो जाता है, उन्हें बहिष्कृत करता है, उन पर आक्रमण करता है, और अंत में उन लोगों को अलग-थलग करने के लिए हर संभव साधन आजमाने का प्रयास करता है जो उसका भेद पहचान सकते हैं और उसका विरोध कर सकते हैं। उसके ऐसा करने के पीछे क्या कारण है? ऐसा इसलिए है क्योंकि जब वह अपनी बड़ाई करता है और अपने बारे में गवाही दे रहा होता है तो वह हमेशा सोचता है कि वे लोग उसकी आँखों की किरकिरी और उसकी चिढ़ का कारण हैं, और वे लोग उसका भेद पहचान कर उसे अस्वीकार कर देंगे, उसे उजागर कर देंगे और उसके अच्छे काम को बर्बाद कर देंगे। जिस पल मसीह-विरोधी उन लोगों को देखता है, वह असहज महसूस करने लगता है और सदैव उन लोगों से यह सोचकर निपटना चाहता है कि अगर वह उन लोगों से निपट सकता है, तो वह जब भी दोबारा अपनी बड़ाई करेगा और अपने बारे में गवाही देगा, उसे उजागर करने या रोकने वाला कोई नहीं होगा और वह बेलगाम होकर बुरे काम कर पाएगा। मसीह-विरोधी इसी सिद्धांत के अनुसार कार्य करता है। चाहे किसी भी तरह के लोग उसकी चापलूसी करें, उसकी प्रशंसा करें या उसकी बड़ाई करें, चाहे उनका कहा तथ्यों के अनुरूप हो या नहीं, भले ही वे झूठ बोल रहे हों, मसीह-विरोधी उन्हें खुशी-खुशी स्वीकारेगा, उसे उनको सुनने में आनंद आएगा, और वह उन लोगों को तहेदिल से पसंद करेगा। उसे कोई परवाह नहीं है कि उन लोगों में क्या समस्याएँ हैं, अगर उसे उन लोगों की समस्याओं का पता लग भी जाता है, तो वह उन्हें छिपा लेगा, उन पर पर्दा डाल देगा, और उनके बारे में एक शब्द भी नहीं बोलेगा। जब तक मसीह-विरोधी का अनुसरण और उसकी झूठी तारीफ करने वाले लोग उसके आस-पास हैं, वह इसका आनंद लेता रहेगा। मसीह-विरोधी इसी तरह काम करते हैं। क्या तुम लोग ये काम करने में सक्षम हो जो मसीह-विरोधी करते हैं? उदाहरण के लिए, मान लो कि तुम लोग कलीसिया में अगुआ और कार्यकर्ता हो, परमेश्वर के चुने हुए लोगों में तुम्हारा रुतबा और प्रतिष्ठा है। यदि भाई-बहन तुम्हारा बहुत सम्मान करें, तुम्हारी झूठी तारीफ करें, तुम्हारी चापलूसी करें, और अक्सर तुम्हारी प्रशंसा करें, और कहें कि तुम अच्छे उपदेश देते हो, तुम अच्छे दिखते हो, और तुम उनके लिए सबसे अच्छे अगुआ हो, तो तुम्हें कैसा लगेगा? क्या तुम उनके शब्दों के पीछे छिपे इरादे का भेद पहचान पाओगे? क्या तुम ऐसे लोगों को अस्वीकार कर इनसे दूर रह सकोगे? यदि नहीं, तो तुम खतरे में हो। तुम्हें स्पष्ट रूप से पता है कि तुम दिखने में उतने अच्छे नहीं हो, तुम सत्य वास्तविकता की संगति करने में सक्षम नहीं हो, और फिर भी जब तुम लोगों को अपने बारे में इस तरह झूठी तारीफ करते हुए सुनते हो तो तुम्हें खुशी महसूस होती है, और सदैव ऐसे लोगों के पास जाना और उन्हें बढ़ावा देना चाहते हो, क्या इसका मतलब यह नहीं है कि तुम मुसीबत में हो? इसका मतलब है कि तुम खतरे में हो।

जब अगुआ और कार्यकर्ता काम कर रहे हों तो कभी-कभी पवित्रात्मा उन्हें प्रबुद्ध और रोशन करता है, वे कुछ असली अनुभवों के बारे में बात कर सकते हैं, और स्वाभाविक रूप से उनके पास ऐसे लोग होंगे जो उनका अत्यधिक सम्मान करते होंगे और उनकी आराधना करते होंगे, जो उनका अनुसरण करते होंगे और उनसे ऐसे जुड़े होंगे जैसे उनकी अपनी छाया—ऐसे समय में, उन्हें इन चीजों के साथ कैसे पेश आना चाहिए? हर किसी की अपनी-अपनी पसंद होती है, हर कोई घमंडी होता है; अगर लोग किसी को अपनी प्रशंसा और चापलूसी करते हुए सुनते हैं तो वे इसका भरपूर आनंद लेते हैं। ऐसा महसूस करना सामान्य बात है और यह कोई बड़ी बात नहीं है। लेकिन, यदि वे किसी ऐसे व्यक्ति को बढ़ावा देते हैं जो उनकी भरपूर प्रशंसा कर सकता है और उनकी चापलूसी कर सकता है और वे ऐसे व्यक्ति को किसी महत्वपूर्ण काम में लगाते हैं तो वह खतरनाक है। ऐसा इसलिए है क्योंकि जिन लोगों को दूसरों की चापलूसी और भरपूर प्रशंसा करना पसंद होता है वे बहुत ज्यादा धूर्त और धोखेबाज होते हैं और वे ईमानदार या सच्चे नहीं होते। जैसे ही इन लोगों को रुतबा हासिल हो जाता है तो उनसे परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश या कलीसिया के काम को कोई लाभ नहीं होता। ये लोग मक्कार होते हैं और काम बिगाड़ने में सर्वाधिक सक्षम होते हैं। जो लोग तुलनात्मक रूप से सीधे-सच्चे होते हैं वे कभी भी दूसरों की भरपूर प्रशंसा नहीं करते। भले ही वे दिल से तुम्हें स्वीकृति देते हों लेकिन वे इसे खुलकर नहीं कहेंगे और अगर उन्हें पता चल जाए कि तुम में खामियाँ हैं या तुमने कुछ गलत किया है तो वे इसके बारे में तुम्हें बताएँगे। हालाँकि कुछ लोग सीधे-सच्चे लोगों को पसंद नहीं करते और जब कोई उनकी खामियाँ बताता है या उनकी निंदा करता है तो वे उस व्यक्ति पर अत्याचार करेंगे और उसे निकाल देंगे, और उस व्यक्ति की खामियों और कमियों का फायदा उठाकर निरंतर उसकी आलोचना और निंदा करेंगे। ऐसा करके, क्या वे भले लोगों पर अत्याचार नहीं कर रहे हैं और उन्हें नुकसान नहीं पहुँचा रहे हैं? इस तरह के काम करना और ऐसे भले लोगों को सताना ऐसे काम हैं जिनसे परमेश्वर अत्यधिक घृणा करता है। भले लोगों को सताना एक दुष्टतापूर्ण काम है! और यदि कोई बहुत सारे भले लोगों को सताता है तो वह राक्षस है। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सभी के साथ निष्पक्ष और प्रेमपूर्ण व्यवहार करना चाहिए और उन्हें सिद्धांतों के अनुसार मामलों से निपटना चाहिए। विशेषकर जब तुम्हारे आसपास ऐसे लोग हों जो तुम्हारी झूठी तारीफ और चापलूसी करते हों, तुम्हारे इर्द-गिर्द मंडराते हों, तो तुम्हें उनके साथ सही व्यवहार करना चाहिए, प्रेमपूर्वक उनकी सहायता करनी चाहिए, उनसे उनके उचित कार्य करवाने चाहिए और अविश्वासियों की तरह लोगों की झूठी तारीफ नहीं करने देनी चाहिए; अपनी स्थिति और परिप्रेक्ष्य को स्पष्ट रूप से बताओ, उन्हें अपमानित और शर्मिंदा महसूस कराओ ताकि वे दोबारा ऐसा कभी न करें। यदि तुम सिद्धांतों का पालन कर सकते हो और लोगों के साथ निष्पक्ष व्यवहार कर सकते हो तो क्या शैतान की किस्म वाले इन घिनौने मसखरों को शर्म नहीं आएगी? इससे शैतान को शर्मिंदगी महसूस होगी और परमेश्वर को संतुष्टि मिलेगी। दूसरों की चापलूसी करना पसंद करने वाले लोगों का मानना है कि अगुआ और कार्यकर्ता उन सभी लोगों को पसंद करते हैं जो उनकी चापलूसी करते हैं और जब भी कोई उनकी झूठी तारीफ या चापलूसी करता है तो उनके घमंड की और रुतबे के लिए उनकी इच्छा की तृप्ति होती है। सत्य से प्रेम करने वाले लोगों को यह सब पसंद नहीं आता है, और वे इन सबको नापसंद करते हैं और इन सबसे अत्यधिक घृणा करते हैं। केवल झूठे अगुआओं को ही चापलूसी में आनंद आता है। परमेश्वर का घर शायद उनकी सराहना या प्रशंसा न करे, परन्तु यदि परमेश्वर के चुने हुए लोग उनकी सराहना और प्रशंसा करते हैं तो उन्हें बहुत खुशी मिलती है और वे इसका भरपूर आनंद उठाते हैं, और अंततः उन्हें इससे कुछ सांत्वना भी मिलती है। मसीह-विरोधियों को चापलूसी में और भी अधिक आनंद आता है और उन्हें सबसे अधिक आनंद तब मिलता है जब इस तरह के लोग उनके करीब आते हैं और उनके इर्द-गिर्द मंडराते हैं। क्या यह परेशानी वाली बात नहीं है? मसीह-विरोधी ऐसे ही होते हैं; उन्हें लोगों से अपनी प्रशंसा और सराहना करवाना, अपनी आराधना करवाना और अपना अनुसरण करवाना पसंद आता है, जबकि सत्य का अनुसरण करने वाले और अपेक्षाकृत सीधे-सच्चे लोगों को इनमें से कुछ भी पसंद नहीं आता है। तुम्हें उन लोगों के करीब जाना चाहिए जो तुमसे सच्ची बात कह सकें; इस तरह के लोगों का साथ होना तुम्हारे लिए बहुत फायदेमंद है। खास तौर पर ऐसे लोगों का तुम्हारे आसपास होना तुम्हें भटकने से बचा सकता है जो तुममें किसी समस्या का पता चलने पर तुम्हें डाँटने-फटकारने और तुम्हें उजागर करने का साहस रखते हों। उन्हें तुम्हारे रुतबे से कोई फर्क नहीं पड़ता है, और जिस पल उन्हें पता चलता है कि तुमने सत्य सिद्धांतों के विरुद्ध कुछ किया है, तो आवश्यक होने पर वे तुम्हें फटकारेंगे और तुम्हें उजागर भी करेंगे। केवल ऐसे लोग ही सीधे-सच्चे और न्यायप्रिय लोग होते हैं और चाहे वे तुम्हें कैसे भी उजागर करें और कैसे भी तुम्हारी गलतियाँ या कमियाँ बताएँ और तुम्हारी आलोचना करें, यह सब तुम्हारी मदद करने, तुम्हारी निगरानी करने और तुम्हें आगे बढ़ाने के लिए होता है। तुम्हें ऐसे लोगों के करीब जाना चाहिए; ऐसे लोगों को अपने साथ रखने से, ऐसे लोगों की मदद से, तुम अपेक्षाकृत अधिक सुरक्षित हो जाते हो—परमेश्वर की सुरक्षा पाने का भी यही अर्थ है। सत्य समझने वाले और सिद्धांतों का पालन करने वाले लोगों का तुम्हारे साथ होना और रोजाना तुम्हारी निगरानी करना, तुम्हारे लिए अपना कर्तव्‍य निभाने और अच्छे से काम करने के लिए बहुत फायदेमंद है। तुम्हें उन धूर्त, धोखेबाज लोगों को अपना सहायक बिल्कुल नहीं बनाना चाहिए जो तुम्हारी चापलूसी करते हैं और तुम्हारी झूठी तारीफ करते हैं; इस तरह के लोगों का तुम्हारे साथ चिपके रहना अपने ऊपर बदबूदार मक्खियों को बैठने देने के समान है, इससे तुम बहुत सारे जीवाणुओं और विषाणुओं के संपर्क में आ जाओगे! ऐसे लोग तुम्हें परेशान कर सकते हैं और तुम्हारे काम को प्रभावित कर सकते हैं, वे तुम्हें प्रलोभन में फँसाकर भटका सकते हैं और वे तुम्हारे लिए आपदा और विपत्ति ला सकते हैं। तुम्हें उनसे दूर रहना चाहिए, जितना ज्यादा दूर रहोगे उतना बेहतर होगा, और यदि तुम यह भेद पहचान सको कि उनमें छद्म-विश्वासियों का सार है और उन्हें कलीसिया से बाहर निकाल सको तो और भी बेहतर होगा। एक बार जब सत्य का अनुसरण करने वाला कोई सीधा-सच्चा व्यक्ति यह देखता है कि तुम में कोई समस्या है तो वह तुम्हें सत्य बताएगा, चाहे तुम्हारा रुतबा कुछ भी हो, चाहे तुम उसके साथ कैसा भी व्यवहार करो, और भले ही तुम उसे बर्खास्त कर दो। वह कभी भी इसे छुपाने की कोशिश नहीं करेगा या रुक रुक कर नहीं बोलेगा। अपने आसपास ऐसे बहुत से लोगों को रखना काफी फायदेमंद होता है! जब तुम ऐसा कुछ करते हो जो सिद्धांतों के विरुद्ध है, तो वे तुम्हें उजागर कर देंगे, तुम्हारी समस्याओं पर राय देंगे, और स्पष्ट रूप से और ईमानदारी से तुम्हारी समस्याएँ और त्रुटियाँ बताएँगे; वे तुम्हारी इज्जत बचाने में मदद करने की कोशिश नहीं करेंगे, और तुम्हें बहुत सारे लोगों के सामने शर्मिंदगी से बचने का मौका भी नहीं देंगे। तुम्हें ऐसे लोगों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए? क्या तुम्हें उन्हें सताना चाहिए या उनके करीब जाना चाहिए? (उनके करीब जाना चाहिए।) सही है। तुम्हें उनके साथ दिल खोलकर बात करनी चाहिए और उनके साथ यह कहते हुए संगति करनी चाहिए, “तुमने मेरी जिस समस्या के बारे में बताया वह सही थी। उस समय, मैं घमंड और रुतबे के विचारों से भरा था। मुझे लगा कि मैं इतने सालों से अगुआ रहा हूँ, इसके बावजूद तुमने न केवल मेरी इज्जत बचाने की कोशिश नहीं की, बल्कि इतने सारे लोगों के सामने मेरी समस्याएँ भी बताई, और इसलिए मैं इसे स्वीकार नहीं कर सका। हालाँकि, अब मुझे दिखाई देता है कि मैंने जो किया वो वास्तव में सिद्धांतों और सत्य के विरुद्ध था, और मुझे वह नहीं करना चाहिए था। अगुआ का पद होने के क्या मायने होते हैं? क्या यह बस मेरा कर्तव्य नहीं है? हम सभी अपना कर्तव्य निभा रहे हैं और हम सबका रुतबा एक समान है। केवल अंतर यह है कि मेरे कंधों पर थोड़ी ज्यादा जिम्मेदारी है, बस इतना ही। यदि तुम्हें भविष्य में किसी समस्या का पता चले तो जो तुम्हें कहना हो कह देना, और हमारे बीच कोई व्यक्तिगत द्वेष नहीं होगा। अगर सत्य की हमारी समझ में अंतर है तो हम एक साथ सं‍गति कर सकते हैं। परमेश्वर के घर में और परमेश्वर और सत्य के सामने, हम सब एक होंगे, कोई अवरोधक नहीं होगा।” यह सत्य का अभ्यास करने और उससे प्रेम करने का रवैया है। यदि तुम मसीह-विरोधी के मार्ग से दूर रहना चाहते हो तो तुम्हें क्या करना चाहिए? तुम्हें ऐसे लोगों के करीब आने की पहल करनी चाहिए जो सत्य से प्रेम करते हैं, जो ईमानदार हैं, ऐसे लोगों के करीब आना चाहिए जो तुम्हारे मसले बता सकते हैं, जो तुम्हारी समस्याओं का पता चलने पर सच बोल सकते हैं और तुम्हें डाँट-फटकार सकते हैं, और विशेष रूप से ऐसे लोगों के जो तुम्हारी समस्याओं का पता चलने पर तुम्हारी काट-छाँट कर सकते हैं—ये वे लोग हैं जो तुम्हारे लिए सबसे अधिक फायदेमंद हैं और तुम्हें उन्हें सँजोना चाहिए। यदि तुम ऐसे अच्छे लोगों को बहिष्कृत कर देते हो और उनसे छुटकारा पा लेते हो तो तुम परमेश्वर की सुरक्षा गँवा दोगे और आपदा धीरे-धीरे तुम्हारे पास आ जाएगी। अच्छे लोगों और सत्य को समझने वाले लोगों के करीब आने से तुम्हें शांति और आनंद मिलेगा, और तुम आपदा को दूर रख सकोगे; घृणित लोगों, बेशर्म लोगों और तुम्हारी चापलूसी करने वाले लोगों के करीब आने से तुम खतरे में पड़ जाओगे। न केवल तुम आसानी से ठगे और छले जाओगे, बल्कि तुम पर कभी भी आपदा आ सकती है। तुम्हें पता होना चाहिए कि किस तरह के लोग तुम्हारे लिए सबसे ज्यादा फायदेमंद हो सकते हैं—ये वे लोग हैं जो तुम्हारे कुछ गलत करने पर, या जब तुम अपनी बड़ाई करते हो और अपने बारे में गवाही देते हो और दूसरों को गुमराह करते हो तो, तुम्हें चेतावनी दे सकते हैं, इससे तुम्हें सर्वाधिक फायदा हो सकता है। ऐसे लोगों के करीब जाना ही सही मार्ग है। क्या तुम लोग इसके लिए सक्षम हो? यदि कोई ऐसा कुछ कहता है जिससे तुम्हारी प्रतिष्ठा नष्ट होती है और तुम अपना शेष जीवन उससे नाराज होकर यह कहते हुए बिताते हो, “तुमने मुझे उजागर क्यों किया? मैंने तुम्हारे साथ कभी गलत व्यवहार नहीं किया। तुम सदैव मेरे लिए चीजें मुश्किल क्यों कर देते हो?” और तुम्हारे दिल में द्वेष पैदा हो जाता है, रिश्तों में दरार पड़ जाती है और तुम हमेशा सोचते हो, “मैं अगुआ हूँ, मेरी यह पहचान है और मेरा यह रुतबा है, और मैं तुम्हें इस तरह से बात करने की अनुमति नहीं दूँगा,” तो यह किस तरह की अभिव्यक्ति है? यह सत्य स्वीकार नहीं करना और स्वयं को दूसरों के विरोध में खड़ा करना है; यह कुछ हद तक अक्ल के अंधे होने जैसा है। क्या यह रुतबे को लेकर तुम्हारी सोच नहीं है जो मुसीबत खड़ी कर रही है? यह दर्शाता है कि तुम्हारे भ्रष्ट स्वभाव बेहद गंभीर हैं। जो लोग सदैव रुतबे के बारे में सोचते रहते हैं वे घोर मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोग होते हैं। यदि वे बुरे काम भी करेंगे, तो बहुत जल्द उनका खुलासा हो जाएगा और उन्हें हटा दिया जाएगा। लोगों के लिए सत्य को ठुकराना और उसे स्वीकार न करना बहुत खतरनाक है! हमेशा रुतबे के लिए होड़ करने की इच्छा रखना और रुतबे के फायदों में लिप्त होने की चाह रखना खतरे के संकेत हैं। जब किसी का दिल हमेशा रुतबे से बेबस रहता है तो क्या वह अभी भी सत्य का अभ्यास कर सकता है और सिद्धांतों के अनुसार चीजों को सँभाल सकता है? यदि कोई व्यक्ति सत्य पर अमल करने में असमर्थ है और हमेशा प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे के लिए काम करता है और हमेशा चीजों को करने के लिए अपनी शक्ति का उपयोग करता है तो क्या वह स्पष्ट रूप से मसीह-विरोधी नहीं है जो अपना असली रंग दिखा रहा है?

अपनी बड़ाई करने और अपने बारे में गवाही देने की ऐसी अभिव्यक्तियाँ मसीह-विरोधियों की सर्वाधिक आम अभिव्यक्तियाँ हैं। चाहे यह रोजाना के जीवन में हो या जिस तरीके से वे दूसरों से मिलते-जुलते हैं और चीजों से निपटते हैं उसमें हो या चाहे यह कलीसियाई जीवन में हो, इन अभिव्यक्तियों को सदैव देखा जा सकता है, क्योंकि ये अभिव्यक्तियाँ भ्रष्ट स्वभावों का प्रकटन होती हैं। उदाहरण के लिए, किसी व्यक्ति का अपने कर्तव्य के प्रति कैसा दृष्टिकोण है, कोई व्यक्ति दूसरों के साथ कैसा व्यवहार करता है, और वह दूसरों को कैसे पहचानता है, इनसे संबंधित सत्यों पर हमने संगति में चर्चा की है। क्या ऐसा है कि तुम लोगों को अपने सामान्य जीवन में इन चीजों की ठोस अभिव्यक्तियों का पता है, लेकिन तुम उन्हें समस्याओं के रूप में नहीं देख पाते हो? या फिर क्या ऐसा है कि तुमने इन विशिष्ट समस्याओं के आधार पर प्रवेश करना आरंभ नहीं किया है? यदि तुम लोग स्वभावों से आरंभ नहीं करते हो, या तुम कभी-कभार इन अभिव्यक्तियों को प्रदर्शित करते हो, फिर भी तुम्हें नहीं पता कि वे स्वभावगत समस्याएँ हैं या नहीं, और इसलिए तुम उन्हें नजरअंदाज करते हो, फिर तुम स्वभावगत बदलाव लाने के आसपास भी कहीं नहीं हो। यदि तुम यह समझने में विफल रहते हो कि ये अभिव्यक्तियाँ तुम्हारे अपनी बड़ाई करने और अपने बारे में गवाही देने के बारे में हैं, यदि तुम्हें नहीं पता कि ये अभिव्यक्तियाँ तुम्हारे भ्रष्ट स्वभाव द्वारा नियंत्रित हो रही हैं, और तुम उन्हें एक प्रकार की व्यक्तित्व विशेषता या चीजों को करने का एक सहज तरीका या संज्ञान मानते हो, और उन्हें कम तरजीह देते हो, और तुम उन्हें अपने भ्रष्ट स्वभाव और भ्रष्ट सार के खुलासों के रूप में नहीं लेते हो, तो तुम्हें ऐसे भ्रष्ट स्वभाव को बदलने में कठिनाई होगी। जिसे लोग स्वभावों से संबंधित समझ सकते हैं, चाहे वह चीजों को करने का तरीका हो या उनकी अपनी दशा हो, चाहे वह बाहरी व्यवहार हो या उनका भाषण और कथन, चाहे वह उनके विचार और दृष्टिकोण हों या किसी खास विषय को लेकर उनकी समझ हो, अगर यह स्वभाव सार से संबंधित है, उन्हें इसे हमेशा मनुष्य के प्रकृति सार के मूर्त रूप या खुलासे मानना चाहिए, और इस तरह, क्या उनकी समझ व्यापक नहीं हो जाएगी? उन्हें केवल बड़ी-बड़ी बातें ही नहीं समझनी चाहिए, जैसे कि कोई व्यक्ति परमेश्वर का विरोध करता है, सत्य से प्रेम नहीं करता है, रुतबे का लालची है, या अपनी बातों से लोगों को गुमराह करता है, बल्कि विशिष्ट विचारों और इरादों जैसी छोटी-छोटी चीजों से लेकर तर्क या कथन जैसी बड़ी चीजों तक सब कुछ समझना चाहिए। मैंने अभी कुल मिलाकर छह बातें बताईं, जिनमें विचार और दृष्टिकोण के साथ-साथ किसी खास विषय पर व्यक्ति की समझ भी शामिल थी। विचार और दृष्टिकोण ऐसी चीजें हैं जो व्यक्ति की चेतना और सोच के भीतर विद्यमान होती हैं; समझ ऐसी चीज है जिसे पहले से ही पहचाना जा चुका है और जिसके बारे में व्यक्ति ठोस शब्द और कथन बना सकता है; फिर व्यवहार और भाषा आती है। कुल मिलाकर ये चार चीजें हैं। कथन और तर्क भी हैं। कथन और तर्क किसके विपरीत हैं? (इरादों और विचारों के।) विचार अस्पष्ट चीजें हैं जो अनजाने में मस्तिष्क में उत्पन्न होती हैं। उन्हें अभी तक सही या गलत के रूप में परिभाषित नहीं किया गया है, तुम बस उन्हें सोचते हो, और उन्होंने अभी तक तुम्हारे भीतर आकार नहीं लिया है, जबकि बोले गए तर्क बनाए जाते हैं। कुल मिलाकर तीन समूह और छह चीजें हैं। इन छह चीजों को अपने भ्रष्ट स्वभावों के सार का गहन-विश्‍लेषण करने और स्वभावगत बदलाव लाने के मार्ग के रूप में लो, अब से इन छह चीजों से अपने भ्रष्ट स्वभावों और भ्रष्ट सार को जानना आरंभ करो और इस प्रकार तुम सही में स्वयं को जान पाओगे।

आज की संगति सुनने के बाद क्या तुम लोगों को इन बातों को आत्मसात करने के लिए कुछ समय चाहिए? जब तुम लोग एक साथ इकट्ठा होते हो, तो क्या तुम इस बुनियाद पर प्रकाश डालते हुए कुछ संगति कर सकते हो या खुद से इसकी तुलना कर सकते हो? यह महत्वपूर्ण है, और यह तुम्हारे लिए सबसे ज्यादा फायदेमंद है। जब तुम लोग एक साथ इकट्ठा होते हो, तो तुम लोगों को संगति करने, विचारों का आदान-प्रदान करने और अपने अनुभवों और अनुभूतियों पर चर्चा करने की आवश्यकता होती है—यह सबसे प्रभावी है। हम पहले हमेशा “विचार करना” शब्द का प्रयोग करते थे; बोलचाल की भाषा में, हम कहते हैं, “चिंतन-मनन करना।” इसका अर्थ है अधिक पढ़ना, अधिक प्रार्थना-पाठ करना, अधिक सोचना, और अधिक खोजना, उस समय जो तुमने समझा था उसे ग्रहण करना, साथ ही जो तुम नहीं समझ पाए थे और जिन्हें तुमने धर्म-सिद्धांत, महत्वपूर्ण बिंदु, और ऐसे मुद्दे माना था जिन्हें हर किसी ने गलत समझा था, और जिन मुद्दों को तुमने नहीं समझा था, और उन सभी पर संगति में ध्यान केंद्रित करना—यही “चिंतन-मनन करने” का अर्थ है। इस तरह, इन सत्यों के विवरण, सत्यों के बीच विभिन्न अंतरों और प्रत्येक सत्य की परिभाषाओं के बारे में तुम्हारी समझ अधिक स्पष्ट और सटीक हो जाएगी। तुम लोगों को क्या लगता है कि हाल के वर्षों में तुमने जिन विभिन्न सत्यों को समझा और व्यवहार में लाया है, वे पहले की तुलना में अधिक अस्पष्ट हो गए हैं या स्पष्ट हुए हैं? (स्पष्ट हुए हैं।) और इन वर्षों में, क्या परमेश्वर में तुम लोगों की आस्था के मार्ग में, तुम जिस दिशा में आचरण करते हो उसमें और अपना कर्तव्य निभाने के पीछे के इरादे, प्रेरणा और मूल प्रोत्साहन में कोई बड़ा बदलाव आया है? (परमेश्वर द्वारा थोड़ी ताड़ना और अनुशासन से गुजरने, और परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने के बाद, मुझे लगता है कि कुछ बदलाव आया है।) यह सही है कि बदलाव हुआ है और ऐसा ही होना चाहिए। कुछ लोग शुरू से ही उदासीन रहे हैं और इतने सारे धर्मोपदेश सुनने के बाद भी उनमें रत्ती भर भी बदलाव नहीं आया है। वे अपने अंतरमन में प्रेरित नहीं होते, अर्थात्, कोई भी सभा या संगति उनकी वह दिशा नहीं बदल सकती जिसमें वे जा रहे हैं—वे बहुत सुन्न और मंदबुद्धि हैं! उद्धार पाने का मार्ग अब अधिकाधिक स्पष्ट होता जा रहा है, और अनुभवी लोग साफ-साफ देख रहे हैं कि किस प्रकार परमेश्वर मनुष्य को बचाता है, और ऐसा करने में उसका क्या उद्देश्य है। अगर इतने सालों तक परमेश्वर पर विश्वास करने के बाद भी तुम नहीं जानते कि परमेश्वर लोगों को कैसे बचाता है और उन्हें भ्रष्टता से कैसे शुद्ध करता है, तो यह दर्शाता है कि तुममें सत्य की कोई समझ नहीं है और परमेश्वर के कार्य की थोड़ी सी भी समझ नहीं है। क्या ऐसे लोग अपनी आस्था में संभ्रमित नहीं हैं?

20 मार्च 2019

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