मद चार : वे अपनी बड़ाई करते हैं और अपने बारे में गवाही देते हैं (खंड दो)
क्या अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने की अन्य अभिव्यक्तियाँ भी हैं? तुम सभी को इस मामले में आत्म-चिंतन करना चाहिए। क्या तुम अपनी गवाही देते समय ऐसा कोई काम करोगे? क्या तुम्हारा जमीर और विवेक तुम्हें रोकेगा और ऐसा कोई शर्मनाक काम करने से तुम स्वयं को रोक पाओगे? यदि तुम स्वयं को रोक सकते हो, तो यह साबित करता है कि तुममें तर्कशीलता है, कि तुम मसीह-विरोधियों से अलग हो। यदि तुममें यह तर्कशीलता नहीं है, और तुम्हारी इस तरह की महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ हैं, और तुम अपनी गवाही देने जैसा काम करने में सक्षम हो, तो तुम मसीह-विरोधी के जैसे ही हो। तो, तुम लोगों का मामला क्या है? क्या तुम संयम से काम लेते हो? यदि तुम्हारा दिल परमेश्वर का भय मानने वाला है, तुममें शर्म की भावना, और तर्कशीलता है, तो, भले ही तुम ये काम करना चाहते हो, तुम सोचोगे कि इनसे परमेश्वर का अपमान होगा और वह इनसे घृणा करेगा, और तुम स्वयं को संयमित रखने में सक्षम होगे और अपनी गवाही देने की हिम्मत नहीं करोगे। यदि तुम एक बार, दो बार संयम कर लेते हो, तो कुछ समय बाद ये विचार और ये इरादे थोड़ा-थोड़ा करके धीरे-धीरे कम होने लगेंगे। तुम्हें इन विचारों की समझ होगी और एहसास होगा कि वे अपमानजनक और घिनौने हैं, ऐसे काम करने की तुम्हारी उमंगें और इच्छाएँ कम हो जाएँगी, और तुम धीरे-धीरे उस हद तक स्वयं पर लगाम लगाने और स्वयं को नियंत्रित करने में सक्षम हो पाओगे कि मन में ऐसे विचारों का आना धीरे-धीरे कम हो जाएगा। यदि तुम उनके प्रति जागरूक हो लेकिन स्वयं को रोकने में असमर्थ हो, तुम्हारे इरादे ज्यादा ही मजबूत हैं, तुम बस इतना चाहते हो कि लोग तुम्हारी आराधना करें, और यदि कोई तुम्हारी आराधना नहीं करता या तुम्हारा अनुसरण नहीं करता, तो तुम असंतुष्ट महसूस करते हो, और घृणा से भर जाते हो, और कुछ करना चाहते हो, बेईमानी से अपनी गवाही देने और अपने ऊपर इतराने में समर्थ हो—तो तुम एक मसीह-विरोधी हो। तुम लोगों का मामला क्या है? (जब मैं ऐसे विचारों के प्रति जागरूक होता हूँ, तो मैं स्वयं को रोकने में समर्थ होता हूँ।) तुम स्वयं को रोकने के लिए किस पर भरोसा करते हो? (मैं इस बात पर भरोसा करता हूँ कि मुझे परमेश्वर के बारे में कुछ ज्ञान है और मेरा दिल परमेश्वर का भय मानता है।) यदि किसी के पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल है, तो वे संयम रख सकते हैं। संयम स्वयं को रोके रखने या स्वयं को बाधित करने से प्राप्त नहीं होता है, बल्कि यह सत्य समझने और परमेश्वर का भय मानने का परिणाम है। व्यक्ति तर्क-शक्ति और बोध-शक्ति से स्वयं पर संयम रखता है और साथ ही, वह इसलिए संयम रखता है क्योंकि उसके पास परमेश्वर का थोड़ा बहुत भय मानने वाला दिल होता है और उसका अपमान करने से उसे भय लगता है। यदि तुम्हारी तर्क-शक्ति तुम्हें संयमित नहीं रख सकती, और तुम्हारे पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल भी नहीं है, और यदि तुम्हें अपनी गवाही देते समय शर्मिंदगी महसूस नहीं होती है तथा ऐसा करते रहना चाहते हो, और तब तक छोड़ने को तैयार नहीं हो जब तक कि तुम्हें अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता, तो इसकी प्रकृति भिन्न है—तुम मसीह-विरोधी हो।
मसीह-विरोधी अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने के लिए नाना प्रकार की तकनीकों और अभिव्यक्तियों से युक्त होते हैं। कुछेक मामलों में मसीह-विरोधी अपने सभी गुणों के बारे में बात करते हुए प्रत्यक्ष रूप से अपनी बड़ाई करते हैं और अपनी गवाही देते हैं, जबकि अन्य मामलों में वे चुपके-से लोगों को अपने बारे में बड़ा सोचने के लिए प्रेरित करने के लिए व्यंजनापूर्ण शब्दों या ऐसी विधियों का अप्रत्यक्ष उपयोग करने के तरीके ढूँढ़ते हैं जिससे लोगों से अपनी प्रशंसा करवाने, अपनी आराधना करवाने, और अपना अनुसरण करवाने, और यहाँ तक कि लोगों के दिलों में स्थान पाने के अपने उद्देश्य को प्राप्त कर सकें—यह ऐसे व्यवहार की प्रकृति है। मसीह-विरोधियों का अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने का स्वभाव सामान्य लोगों के स्वभाव से उसकी प्रकृति, उससे प्राप्त परिणामों, उसके अभिव्यक्त होने के तरीकों और उसमें अंतर्निहित इरादों और उद्देश्यों के संदर्भ में भिन्न होता है। इसके अलावा, वे लोग जो अपनी बड़ाई करते हैं और अपनी गवाही देते हैं, क्या वे केवल अपने गुणों के बारे में ही बात करते हैं? कभी-कभी, वे अपने बुरे पहलुओं के बारे में भी बात करते हैं, लेकिन क्या वे सच में विश्लेषण कर रहे होते हैं और ऐसा करते समय स्वयं को जानने का प्रयास कर रहे होते हैं? (नहीं।) तो किसी व्यक्ति को कैसे पता चलता है कि उसका आत्म-ज्ञान वास्तविक नहीं है, बल्कि यह मिलावटी है और इसके पीछे कोई इरादा छिपा है? कोई व्यक्ति इस मामले को पूरी तरह कैसे समझ सकता है? यहाँ मुख्य बिंदु यह है कि जब वह स्वयं को जानने और अपनी कमजोरियों, त्रुटियों, कमियों, और भ्रष्ट स्वभावों को उजागर करने का प्रयास कर रहा होता है, तो उसी समय वह स्वयं को दोष-मुक्त करने के लिए बहाने और कारण भी तलाश रहा होता है। वह गुप्त रूप से लोगों को बताता है, “केवल मैं ही नहीं, हर कोई गलतियाँ करने में सक्षम है। तुम सब भी गलतियाँ करने में सक्षम हो। मैंने जो गलती की है वो क्षम्य है; यह मामूली गलती है। यदि तुम यही गलती करते हो, तो मेरी अपेक्षा तुम्हारा मामला बहुत ज्यादा गंभीर हो जाएगा, क्योंकि तुम लोग आत्म-चिंतन और आत्म-विश्लेषण नहीं करोगे। भले ही मैं गलतियाँ करता हूँ, तो भी मैं तुम लोगों से बेहतर हूँ और मेरे में अधिक तर्क-शक्ति और ईमानदारी है।” जब हर कोई यह सुनता है, तो वह सोचता है, “तुम बिल्कुल सही हो। तुम सत्य को इतना ज्यादा समझते हो, और तुम्हारा वास्तव में आध्यात्मिक कद है। जब तुम गलतियाँ करते हो, तो तुम आत्म-चिंतन और आत्म-विश्लेषण करने में सक्षम होते हो; तुम हम लोगों से कहीं बेहतर हो। यदि हम गलतियाँ करते हैं, तो हम आत्म-चिंतन नहीं करते हैं और स्वयं को जानने का प्रयास नहीं करते हैं, और शर्मिंदगी के भय से हम आत्म-विश्लेषण करने का साहस भी नहीं करते हैं। तुम्हारा आध्यात्मिक कद हमसे ऊँचा है और तुममें हमसे कहीं ज्यादा साहस है।” इन लोगों ने गलतियाँ की, फिर भी दूसरों से सम्मान पाया और अपना गुणगान किया—यह किस तरह का स्वभाव है? कुछ मसीह-विरोधि विशेष रूप से दिखावा करने, लोगों को धोखा देने, और मुखौटा लगाने में माहिर होते हैं। जब उनका सत्य समझने वाले लोगों से सामना होता है, तो वे अपने आत्म-ज्ञान के बारे में बात करना शुरू कर देते हैं, और यह भी कहते हैं कि वे दानव और शैतान हैं, कि उनकी मानवता बुरी है, और यह कि वे शापित होने लायक हैं। मान लो कि तुम उनसे पूछते हो, “चूँकि तुम्हारा कहना है कि तुम एक दानव और शैतान हो, तो तुमने कौन-से बुरे काम किए हैं?” वो कहेंगे : “मैंने कुछ नहीं किया, लेकिन मैं एक दानव हूँ। और मैं केवल एक दानव नहीं हूँ; मैं एक शैतान भी हूँ!” फिर तुम उनसे पूछते हो, “चूँकि तुमने कहा कि तुम एक दानव और शैतान हो, तो तुमने दानव और शैतान वाले कौन-से बुरे काम किए, और तुमने परमेश्वर का प्रतिरोध कैसे किया? क्या तुम उन बुरे कामों के बारे में सत्य बता सकते हो जो तुमने किए थे?” वो कहेंगे : “मैंने कुछ भी बुरा नहीं किया!” फिर तुम और दबाव डालते हुए पूछो, “यदि तुमने कोई बुरा काम नहीं किया, तो तुमने ऐसा क्यों कहा कि तुम एक दानव और शैतान हो? ऐसा कह कर तुम क्या प्राप्त करने का प्रयास कर रहे हो?” जब तुम उनके साथ इस तरह गंभीर हो जाते हो, तो उनके पास कहने के लिए कुछ नहीं होता है। वास्तव में, उन्होंने कई बुरे काम किए हैं, लेकिन वे उनसे संबंधित तथ्यों को तुम्हारे साथ बिल्कुल भी साझा नहीं करेंगे। वे बस कुछ बड़ी-बड़ी बातें करेंगे और खोखले तरीके से अपने आत्म-ज्ञान के बारे में कुछ सिद्धांत उगलेंगे। जब यह बात आती है कि उन्होंने लोगों को विशेष रूप से कैसे आकर्षित किया, लोगों को कैसे धोखा दिया, लोगों का उनकी भावनाओं के आधार पर कैसे इस्तेमाल किया, परमेश्वर के घर के हितों को गंभीरता से लेने में कैसे विफल हुए, कार्य व्यवस्थाओं के खिलाफ कैसे गए, ऊपरवाले को कैसे धोखा दिया, भाई-बहनों से बातें कैसे छिपाई, और परमेश्वर के घर के हितों को कितना नुकसान पहुँचाया, तो वे इन तथ्यों के बारे में एक शब्द भी नहीं कहेंगे। क्या यह सच्चा आत्म-ज्ञान है? (नहीं।) ऐसा कहकर कि वे एक दानव और शैतान हैं, क्या वे अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने के लिए आत्म-ज्ञान का नाटक नहीं कर रहे हैं? क्या यह उनके द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला एक तरीका नहीं है? (है।) एक औसत व्यक्ति इस तरीके को समझ नहीं सकता है। जब कुछ अगुआओं को बर्खास्त कर दिया जाता है, उन्हें जल्द ही फिर से चुन लिया जाता है, और जब तुम इसका कारण पूछते हो, तो कुछ लोग कहते हैं : “वह अगुआ अच्छी क्षमता वाला है। उसे पता है कि वह दानव और शैतान है। और किसके पास ज्ञान का ऐसा स्तर है? सत्य की वास्तव में खोज करने वाले लोगों के पास ही ऐसा ज्ञान होता है। हममें से कोई भी अपने बारे में ऐसा ज्ञान प्राप्त करने में सक्षम नहीं है; औसत व्यक्ति का आध्यात्मिक कद इतना ऊँचा नहीं होता है। इस कारण से, सभी ने उसे फिर से चुना।” यहाँ क्या हो रहा है? इन लोगों को गुमराह किया गया है। इस अगुआ को पता था कि वह दानव और शैतान है लेकिन फिर भी हरेक ने उसे चुना, तो उसके ऐसा कहने से कि वह दानव और शैतान हैं, लोगों पर क्या प्रभाव और परिणाम होता है? (इससे लोग उसके बारे में अच्छा सोचने लगते हैं।) सही है, इससे लोग उसके बारे में अच्छा सोचने लगते हैं। अविश्वासी इस पद्धति को “आगे बढ़ने के लिए पीछे हटना” कहते हैं। इसका अर्थ है कि लोग उसके बारे में अच्छा सोचें, इसके लिए पहले वह अपने बारे में बुरी बातें कहता है ताकि दूसरे मान लें कि वह अपने बारे में खुलकर बात कर सकता है और स्वयं को जान सकता है, कि उसमें गहराई और अंतर्दृष्टि है, और उसे गहरी समझ है, और इस वजह से हर कोई उसकी और अधिक आराधना करता है। और हरेक के द्वारा उसकी और अधिक आराधना करने का क्या परिणाम है? जब अगुआओं को फिर से चुनने का समय आता है, तो उसे अभी भी इस भूमिका के लिए एकदम सही व्यक्ति माना जाता है। क्या यह तरीका काफी चतुराई वाला नहीं है? यदि वह इस तरह अपने आत्म-ज्ञान के बारे में बात नहीं करता और यह नहीं कहता कि वह दानव और शैतान है, और इसके बजाय वह केवल नकारात्मक होता, तो जब दूसरे लोग इसे देखते, तो वे कहते, “जैसे ही तुम्हें बर्खास्त कर दिया गया और तुमने अपनी हैसियत खोई, तुम नकारात्मक हो गए। तुम हमें नकारात्मक नहीं होने का ज्ञान देते थे, और अब तुम्हारी नकारात्मकता हमसे भी ज्यादा गंभीर है। हम तुम्हें नहीं चुनेंगे।” कोई भी इस अगुआ के बारे में अच्छा नहीं सोचेगा। यद्यपि हर किसी को अभी भी उसके बारे में समझ नहीं होगी, फिर भी कम से कम वे उसे फिर से अगुआ नहीं चुनेंगे, और यह व्यक्ति दूसरों को अपने बारे में बहुत अच्छी राय रखने के लिए प्रेरित करने का अपना उद्देश्य हासिल नहीं कर पाएगा। लेकिन यह अगुआ यह कहते हुए पहल करता है : “मैं दानव और शैतान हूँ; परमेश्वर मुझे शाप दे सकता है और मुझे नरक के अठारहवें स्तर पर भेज सकता है और हो सकता है कि मुझे अनंत काल के लिए फिर से देह धारण करने की अनुमति न दे!” कुछ लोगों को यह सुनकर उसके लिए दुःख होता है और वे कहते हैं : “हमारे अगुआ ने बहुत कष्ट सहा है। ओह, उसके साथ कैसा अन्याय हुआ है! अगर परमेश्वर उसे अगुआ बनने की अनुमति नहीं देता है, तो हम उसे चुनेंगे।” हर कोई इस अगुआ को इतना समर्थन देता है, तो क्या उन्हें गुमराह नहीं किया गया है? उसके शब्दों के मूल इरादे की पुष्टि हो गई है, जो साबित करता है कि वह वास्तव में इस तरह से लोगों को गुमराह कर रहा है। शैतान कभी अपनी बड़ाई करके और अपनी गवाही देकर दूसरे लोगों को गुमराह करता है तो कभी जब उसके पास कोई विकल्प नहीं होता तो वह घुमा-फिरा कर अपनी गलतियाँ स्वीकार कर सकता है, लेकिन यह सब दिखावा है, और उसका उद्देश्य लोगों की सहानुभूति और समझ हासिल करना है। वह यह भी कहेगा, “कोई भी पूर्ण नहीं है। हर किसी का स्वभाव भ्रष्ट होता है और हर कोई गलतियाँ करने में सक्षम होता है। जब तक कोई अपनी गलतियों को सुधार सकता है, तब तक वह अच्छा इंसान है।” जब लोग यह सुनते हैं, तो उन्हें लगता है कि वह सही है, और वे शैतान की आराधना और उसका अनुसरण करना जारी रखते हैं। अति-सक्रिय रूप से अपनी गलतियों को स्वीकार करना और गुप्त रूप से अपनी बड़ाई करना और लोगों के दिलों में अपनी स्थिति को मजबूत करना शैतान का तरीका है, ताकि लोग उसके बारे में हर चीज स्वीकार करें—यहाँ तक कि उसकी त्रुटियों को भी—और फिर इन त्रुटियों को क्षमा कर दें, धीरे-धीरे उनके बारे में भूल जाएँ, और अंततः शैतान को पूरी तरह से स्वीकार लें, मृत्यु तक उसके प्रति वफादार रहें, उसे कभी न छोड़ें या त्यागें, और अंत तक उसका अनुसरण करते रहें। क्या यह शैतान के कार्य करने का तरीका नहीं है? शैतान इसी तरह से कार्य करता है, और मसीह-विरोधी भी इस तरह के तरीके का उपयोग करते हैं जब वे अपनी महत्वाकांक्षाओं और लोगों से अपनी आराधना और अनुसरण करवाने के उद्देश्य को पूरा करने के लिए कार्य करते हैं। इसके होने वाले परिणाम भी वैसे ही होते हैं, और शैतान द्वारा लोगों को गुमराह और भ्रष्ट करने के परिणामों से बिल्कुल भी भिन्न नहीं होते हैं।
जब कुछ लोग अपने आत्म-ज्ञान की बात करते हैं, तो वे खुद को पूरी तरह से अव्यवस्थित और अनुपयोगी बताते हैं, और यहाँ तक कहते हैं कि वे दानव और शैतान हैं, वे शापित होने लायक हैं, और यदि परमेश्वर उन्हें हटा भी दे, तो भी वे शिकायत नहीं करेंगे। हालाँकि, इन लोगों को अपने प्रकृति सार या अपने भ्रष्ट स्वभावों की सच्ची समझ नहीं है, और वे अपनी वास्तविक स्थिति के बारे में कुछ भी साझा करने में असमर्थ हैं। इसके बजाय वे दूसरों को गुमराह करने के लिए मुखौटे का उपयोग करने की कोशिश करते हैं, और लोगों को अंधा करने और धोखा देने के लिए अपनी गलतियों को सक्रिय रूप से स्वीकारने एवं “आगे बढ़ने के लिए पीछे हटने” के तरीके और तकनीक का उपयोग करते हैं, और फिर लोगों को उनके बारे में अच्छी राय बनाने के लिए मजबूर करते हैं। यही मसीह-विरोधियों का अभ्यास है। अगली बार जब तुम लोगों का सामना किसी ऐसे व्यक्ति से हो, तो तुम उसके साथ कैसा व्यवहार करोगे? (उसके विवरणों पर गौर करेंगे।) सही है, तुम्हें समस्या की छानबीन करना और उसके विवरणों पर गौर करना सीखना चाहिए। और तुम्हें कितनी गहन छानबीन करनी चाहिए? छानबीन तब तक करो जब तक कि वे दया की भीख ना माँगें और कहें, “मैं आप लोगों को फिर कभी गुमराह नहीं करूँगा। अगर आप लोग मुझे अपना अगुआ भी चुनेंगे, तो भी मैं वो भूमिका नही निभाऊँगा।” उससे कहो, “हम कभी भी तुमसे दोबारा गुमराह नहीं होंगे या तुम्हें अपना अगुआ नहीं चुनेंगे, इसलिए सपने देखना बंद करो!” वह कैसा प्रतीत होता है? वे सभी जो अपने आत्म-ज्ञान के बारे में बहुत डींगे हाँकते हैं, और खुद को कोसते भी हैं, जबकि उनकी कोई भी बात कतई सच प्रतीत नहीं होती, वे झूठे तरीके से आध्यात्मिक और पाखंडी लोग हैं, और उनके सभी शब्द गुमराह करने वाले हैं। ऐसे लोगों की बातचीत की एक विशेषता और कुछ विवरण होते हैं जिन्हें पहचानने में तुम्हें सक्षम होना चाहिए। उदाहरण के लिए, मुझे बताओ कि यदि किसी व्यक्ति को भेंट की सुरक्षा के लिए शपथ लिखने को कहा जाए, तो शपथ के पहले वाक्य में क्या लिखा जाएगा? तर्क-शक्ति और मानवता वाला व्यक्ति क्या लिखेगा? वह अपने उचित स्थान में खड़े होने और अपना रवैया बताने के लिए किस लहजे और वाक्यांश का उपयोग करेगा? जब आम इंसान बोलते हैं, तो हरेक समझ सकता है कि वे सामान्य ढंग से बोल रहे हैं, लेकिन जब महत्वाकांक्षी व्यक्ति जो बुरे लोग या मसीह-विरोधी होते हैं, बोलते हैं तो उनका एक विशेष लहजा होता है जो औसत व्यक्ति से भिन्न होता है। उदाहरण के लिए, वो कहते हैं : “यदि मैं, अमुक व्यक्ति, परमेश्वर की भेंट का एक पैसा भी हड़प लूँ, तो मेरी अधम मृत्यु हो जाए—कार से कुचलकर मेरी मृत्यु हो जाए!” यह किस प्रकार का लहजा है? वे बड़बोले लहजे को चुनते हुए, “मैं” शब्द से आरंभ करते हैं—उनके लहजे और बोलने के ढंग के पीछे की प्रेरणा उनके द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले शब्दों में देखी जा सकती है। पहला शब्द है, “मैं”—वे बड़बोला लहजा और इतनी ऊँची आवाज चुनते हैं—क्या यह बड़बोली शपथ नहीं है? इस प्रकार की शपथ को क्या कहा जाता है? इसे बड़बोलापन और पाखंड कहा जाता है। इतनी आक्रामकता से शपथ लिखना—यह किस प्रकार का स्वभाव है? यह एक शपथ है, तो तुम यह शपथ किससे ले रहे हो? तुम यह शपथ परमेश्वर से ले रहे हो, तो एक आम इंसान को इस मामले में कैसे बोलना चाहिए? उसे विनम्र भाव से बोलना चाहिए, उसे अपने उचित स्थान पर खड़ा होना चाहिए, परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए, और दिल से बोलना चाहिए। उसे बड़बोले शब्दों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए या आक्रामक नहीं होना चाहिए। ऐसे लोग शपथ लेने के दौरान भी इतने आक्रामक होते हैं—उनका शैतानी स्वभाव इतना गंभीर होता है! यह कहना कठिन है कि उनकी शपथ सच्ची है या झूठी। उनका मतलब यह है : “क्या तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं है? क्या तुम्हें भय है कि मैं परमेश्वर के घर का लाभ उठा रहा हूँ, कि मैं भेंट चुरा रहा हूँ? तुम मेरा इस्तेमाल करते हो लेकिन तुम मुझ पर भरोसा नहीं करते हो, और तुम मुझे शपथ लेने के लिए कहते हो—फिर मैं शपथ लूँगा, तुम बस खड़े रहो और देखो कि मैं यह शपथ लेने का साहस करता हूँ कि नहीं! मुझे विश्वास नहीं होता कि मैं ऐसा कुछ कर सकता हूँ।” यह किस प्रकार का रवैया है? यह आक्रामकता और अनैतिकता है। वे परमेश्वर के विरुद्ध चिल्लाने की भी हिम्मत रखते हैं, और खुद को सही साबित करने और लोगों को गुमराह करने के लिए शपथ का इस्तेमाल करते हैं। क्या यह परमेश्वर का भय मानना है? इसमें किसी भी प्रकार की धर्मपरायणता नहीं है। इस प्रकार का व्यक्ति शैतान और मसीह-विरोधी है; मसीह-विरोधी इसी प्रकार बोलते हैं? शोरगुल के साथ शपथ लेना—यह किस प्रकार का स्वभाव है? क्या इस प्रकार के व्यक्ति को अभी भी बचाया जा सकता है? क्या तुम लोग इस प्रकार के व्यक्ति से पहले मिल चुके हो? तुम लोग नहीं जानते कि उनके द्वारा प्रदर्शित की जाने वाली इन अभिव्यक्तियों, खुलासों या स्वभावों को कैसे पहचाना जाए, क्या तुम जानते हो? कुछ लोग तो यह भी मानते हैं कि इस प्रकार का व्यक्ति स्पष्ट बुद्धि वाला, आध्यात्मिक समझ वाला, ईमानदार और परमेश्वर के प्रति वफादार होता है। क्या यह मूर्खता नहीं है? क्या यह विवेक की कमी नहीं है? यह खराब व्यवहार और स्वभाव उनकी शपथ के शब्दों और वाक्यांशों में देखा जा सकता है, लेकिन लोग अभी भी सोचते हैं कि यह मसीह-विरोधी काफी अच्छा है। क्या ये लोग सत्य को समझते हैं? ऐसा प्रतीत होता है कि तुम लोग केवल सिद्धांतों को समझते हो, तुम केवल सिद्धांतों के बारे में बात कर सकते हो और खोखले शब्द बोल सकते हो, और जब विशिष्ट मामलों और मुद्दों की बात आती है तो तुम विवेकहीन हो रहे हो। भविष्य में, यदि तुम्हारे समक्ष इस प्रकार के मामले आएँ, तो क्या तुम विवेकशील होगे? (हाँ, हम होंगे।) ऐसी शपथ लिखने वाले सभी लोग जानवर हैं और उन सबमें मानवता की कमी है। क्या तुम लोगों ने ऐसी शपथ पहले कभी देखी है? क्या तुम लोगों ने पहले भी ऐसी शपथ लिखी है? (हाँ।) क्या इसका लहजा और इसकी शुरुआत भी इसी जैसी थी? (यह उतना प्रत्यक्ष नहीं था।) फिर क्या इसकी प्रकृति समान थी? (हाँ।) इसकी प्रकृति समान थी। शपथ लेना युद्ध के मैदान में प्रवेश करने के समान नहीं है, जिसमें साहसिक आत्म-बलिदान की भावना अपेक्षित होती है। शपथ लेने में ऐसी भावना अपेक्षित नहीं होती है। जब तुम परमेश्वर की शपथ लेते हो, तो तुम्हें इसके बारे में अच्छी तरह से सोचना चाहिए, और समझना चाहिए कि तुम्हें शपथ लिखने की आवश्यकता क्यों है, तुम यह शपथ किससे ले रहे हो और किससे यह प्रतिज्ञा कर रहे हो। परमेश्वर इंसान का रवैया देखना चाहता है, न कि उसकी भावना। तुम्हारी वो भावना आक्रामक है और शोर मचाने वाली है; यह शैतान के अहंकारी स्वभाव की अभिव्यक्ति है। यह धर्मपरायणता नहीं है और न ही यह ऐसी अभिव्यक्ति है जो सृजित प्राणियों में होनी चाहिए, और सृजित प्राणियों के लिए ऐसी स्थिति को ग्रहण करना तो दूर की बात है। क्या इस अभिव्यक्ति को प्रदर्शित करने वाले लोग राष्ट्रीय वीरता से प्रभावित नहीं हैं? क्या यह इससे संबंधित है? लोगों के मन में गहरे तक जहर घोला गया है—जैसे ही वे कोई शपथ या प्रतिज्ञा लिखते हैं, वे उन सभी प्रसिद्ध हस्तियों के बारे में सोचते हैं जो सदियों से अपने देश और लोगों के प्रति वफादार थे। वो प्रसिद्ध हस्तियाँ शैतान के गिरोह का हिस्सा थीं, और उन्होंने अपने आप को अलग दिखाने, अपने लिए गवाही देने, लोगों के दिलों में जगह बनाने और अपने लिए अच्छी प्रतिष्ठा कायम करने के लिए अनैतिक तरीके से काम किया, ताकि इतिहास में उनका नाम दर्ज हो सके और उनका अच्छा नाम हो जो अनंत काल तक बना रहे। बाद की पीढ़ियों ने इसका अपने देश के प्रति उनकी अंधभक्ति के रूप में मूल्य निरूपण किया; क्या तुम्हें लगता है कि वे सचमुच अंधे थे? यह अंधापन वास्तव में क्या है? यह सबसे विश्वासघाती, दुष्ट अभ्यास है, और इसमें व्यक्तिगत इरादा भी है। यह अंधापन नहीं है, और यह निश्चित रूप से भक्ति भी नहीं है—यह दुष्टता है।
हम मसीह-विरोधियों द्वारा अपनी गवाही देने के विषय पर पहले ही काफी सहभागिता कर चुके हैं। क्या इस विषय से संबंधित कोई अन्य मुद्दे हैं जिन्हें तुम लोग अभी भी पूरी तरह से नहीं समझते हो? कुछ लोग भाषा का इस्तेमाल करके, और स्वयं का बखान करने वाले कुछ शब्द बोलकर अपनी गवाही देते हैं, जबकि अन्य लोग व्यवहारों का इस्तेमाल करते हैं। अपनी गवाही देने के लिए व्यवहारों का इस्तेमाल करने वाले व्यक्ति के कौन-कौन से लक्षण हैं? सतही तौर पर, वे कुछ ऐसा व्यवहार करते हैं जो अपेक्षाकृत लोगों की धारणाओं के अनुरूप हैं, जो लोगों का ध्यान खींचते हैं, और जिन्हें लोग बेहद नेक और अपेक्षाकृत नैतिक मानकों के अनुरूप मानते हैं। इन व्यवहारों के चलते लोग यह सोचने पर मजबूर होते हैं कि वे सम्मान-योग्य हैं, उनमें ईमानदारी है, वे वास्तव में परमेश्वर से प्रेम करते हैं, वे बेहद पवित्र हैं, और उनमें वास्तव में परमेश्वर का भय मानने वाला दिल है, और वे सत्य का अनुसरण करने वाले लोग हैं। वे लोगों को गुमराह करने के लिए अक्सर कुछ ऊपरी अच्छे व्यवहारों का प्रदर्शन करते हैं—क्या इसमें भी अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने की बू नहीं आती है? आमतौर पर लोग शब्दों के जरिये अपनी बड़ाई करते हैं और अपनी गवाही देते हैं, स्पष्ट भाषण देकर बताते हैं कि वे आम लोगों से किस प्रकार भिन्न हैं और उनके पास दूसरों के मुकाबले अधिक बुद्धिमान राय कैसे हैं, ताकि लोग उनके बारे में बहुत अच्छी राय कायम करें और उन्हें ऊँची नजरों से देखें। हालाँकि, कुछ ऐसे तरीके हैं जिनमें स्पष्ट भाषण शामिल नहीं होता है, जहाँ लोग दूसरों से बेहतर होने की गवाही देने के लिए इसके बजाय बाहरी अभ्यासों का इस्तेमाल करते हैं। इस तरह के अभ्यास सुविचारित होते हैं, इनमें एक उद्देश्य और एक निश्चित इरादा होता है, और वे बेहद उद्देश्यपूर्ण होते हैं। उन्हें सम्मिलित और संसाधित किया जाता है ताकि लोगों को जो कुछ व्यवहार और अभ्यास दिखाई दें वो व्यक्ति की धारणाओं के अनुरूप हों, नेक हों, पवित्र हों, और संतोचित शालीनता के अनुरूप हों, और परमेश्वर-प्रेमी, परमेश्वर का भय मानने वाले, और सत्य के अनुरूप भी हों। इससे भी अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने और लोगों की अपने बारे में बहुत अच्छी राय बनवाने और अपनी आराधना करवाने का वही लक्ष्य प्राप्त होता है। क्या तुम लोगों ने कभी ऐसी चीज का सामना किया है या ऐसी चीज देखी है? क्या तुम लोगों में ये लक्षण हैं? क्या ये चीजें और यह विषय जिसकी मैं चर्चा कर रहा हूँ असल जिंदगी से भिन्न हैं? वास्तव में, वे भिन्न नहीं हैं। मैं एक बेहद सरल उदाहरण दूँगा। जब कुछ लोग अपना कर्तव्य निभाते हैं, तो वे ऊपरी तौर पर बहुत व्यस्त प्रतीत होते हैं; वे विशेष उद्देश्य से उस समय भी काम कर रहे होते हैं जब अन्य लोग खा या सो रहे हों, और जब अन्य लोग अपना कर्तव्य निभाना शुरू करते हैं, तो वे खाने या सोने चले जाते हैं। ऐसा करने में उनका क्या उद्देश्य होता है? वे ध्यान आकर्षित करना और हरेक को दिखाना चाहते हैं कि वे अपने कर्तव्य निभाने में इतने व्यस्त हैं कि उनके पास खाने या सोने का समय ही नहीं है। वे सोचते हैं : “तुम लोग वास्तव में बोझ नहीं उठाते हो। तुम लोग खाने और सोने को लेकर इतने सक्रिय कैसे हो? तुम लोग किसी काम के नहीं हो! मुझे देखो, मैं काम कर रहा हूँ जबकि तुम सभी खा रहे हो, और मैं रात में अभी भी काम कर रहा हूँ जब तुम सो रहे हो। क्या तुम लोग इस तरह कष्ट सह सकोगे? मैं इस कष्ट को सहन कर सकता हूँ; मैं अपने व्यवहार से एक मिसाल पेश कर रहा हूँ।” तुम लोग इस प्रकार के व्यवहार और लक्षण के बारे में क्या सोचते हो? क्या ये लोग जानबूझकर ऐसा नहीं कर रहे हैं? कुछ लोग ये काम जानबूझकर करते हैं, और यह किस तरह का व्यवहार है? ये लोग संप्रदायवादी बनना चाहते हैं; वे भीड़ से अलग होना और लोगों को दिखाना चाहते हैं कि वे पूरी रात बस अपना कर्तव्य निभाते रहे हैं, वे विशेष रूप से कष्ट सहने में सक्षम हैं। इस प्रकार हरेक व्यक्ति खासकर उनके लिए दुखी होगा और यह सोचते हुए उनके प्रति विशेष रूप से सहानुभूति दिखाएगा कि उनके कंधों पर भारी बोझ है, और इस हद तक है कि वे काम में डूबे हुए हैं और उनके पास खाने या सोने का समय भी नहीं है। और अगर उन्हें बचाया नहीं जा सकता, तो हरेक उनके लिए परमेश्वर से अनुनय-विनय करेगा, उनकी ओर से परमेश्वर से याचना करेगा, और उनके लिए प्रार्थना करेगा। ऐसा करते हुए, ये लोग अन्य लोगों की आँखों में धूल झोंकने और धोखे से उनकी सहानुभूति एवं प्रशंसा प्राप्त करने के लिए ऐसे अच्छे व्यवहारों और अभ्यासों का इस्तेमाल कर रहे हैं जो व्यक्ति की धारणाओं के अनुरूप हैं, जैसे कि मुसीबत झेलना और कीमत चुकाना। और इसका अंतिम परिणाम क्या है? उनके संपर्क में आने वाला हरेक व्यक्ति जिसने उन्हें कीमत चुकाते हुए देखा है, वे सभी एक स्वर में कहेंगे : “हमारा अगुआ सर्वाधिक सक्षम है, कष्ट सहने और कीमत चुकाने में सर्वाधिक सक्षम है!” तो क्या वे लोगों को गुमराह करने का अपना उद्देश्य पूरा नहीं कर पाए? फिर एक दिन, परमेश्वर का घर कहता है, “तुम लोगों का अगुआ वास्तविक काम नहीं करता है। वह अपने को व्यस्त रखता है और बिना किसी उद्देश्य के काम करता है; वह लापरवाही से काम करता है और वह मनमाना व्यवहार करने वाला और तानाशाह है। उसने कलीसिया के काम को अस्त-व्यस्त कर दिया है, उसने ऐसा कोई काम नहीं किया है जो उसे करना चाहिए था, उसने सुसमाचार का काम नहीं किया या फिल्म प्रोडक्शन का काम नहीं किया, और कलीसिया का जीवन भी अस्त-व्यस्त कर दिया है। भाई-बहन सत्य नहीं समझते हैं, उनके पास जीवन प्रवेश नहीं है, और वे गवाही के लेख भी नहीं लिख सकते हैं। सबसे दयनीय बात तो यह है कि वे झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों को भी नहीं पहचान सकते हैं। इस तरह का अगुआ अत्यधिक अक्षम होता है; वो झूठा अगुआ है जिसे बर्खास्त कर देना चाहिए!” इन परिस्थितियों में, क्या उसे बर्खास्त करना आसान होगा? यह कठिन हो सकता है। चूँकि सभी भाई-बहनों ने उसे स्वीकार किया है और उसका समर्थन किया है, यदि कोई इस अगुआ को बर्खास्त करने की कोशिश करता है, तो भाई-बहन विरोध करेंगे और उसे पद पर बनाए रखने के लिए ऊपरवाले से अनुरोध करेंगे। ऐसा परिणाम क्यों होगा? क्योंकि यह झूठा अगुआ और मसीह-विरोधी, लोगों को प्रभावित करने, उन्हें खरीदने और गुमराह करने के लिए मुसीबतें झेलने और कीमत चुकाने, और साथ ही मीठे शब्द बोलने जैसे बाहरी अच्छे व्यवहार का इस्तेमाल करता है। एक बार उसने लोगों को गुमराह करने के लिए झूठे दिखावों का इस्तेमाल कर लिया, तो हर कोई उसके पक्ष में बोलेगा और उसे छोड़ने में असमर्थ होगा। उन्हें स्पष्ट रूप से पता है कि इस अगुआ ने कोई खास वास्तविक काम नहीं किया है, और उसने सत्य को समझने और जीवन प्रवेश प्राप्त करने के लिए परमेश्वर के चुने हुए लोगों का मार्गदर्शन भी नहीं किया है, लेकिन ये लोग अभी भी उसका समर्थन करते हैं, उसको स्वीकार करते हैं, उसका अनुसरण करते हैं, और वे इस बात की भी परवाह नहीं करते कि इसका अर्थ यह है कि उन्हें सत्य और जीवन प्राप्त नहीं होगा। सबसे बड़ी बात यह है कि इस अगुआ द्वारा गुमराह होने के कारण, ये सभी लोग उसकी आराधना करते हैं, उसके अलावा किसी अन्य अगुआ को स्वीकार नहीं करते, और उन्हें परमेश्वर की भी अब कोई आवश्यकता नहीं है। क्या वे इस अगुआ को परमेश्वर की तरह मान नहीं दे रहे हैं? यदि परमेश्वर का घर कहता है कि यह व्यक्ति वास्तविक काम नहीं करता है और वो झूठा अगुआ और मसीह-विरोधी है, तो उसके कलीसिया के लोग विरोध करेंगे और विद्रोह के लिए उठ खड़े होंगे। मुझे बताओ, इस मसीह-विरोधी ने किस हद तक उन लोगों को गुमराह किया है? अगर यह पवित्र आत्मा का काम है, तो लोगों के हालात केवल बेहतर होने चाहिए, और उन्हें सत्य ज्यादा समझ आना चाहिए, उन्हें परमेश्वर के प्रति अधिक समर्पित होना चाहिए, उनके दिलों में परमेश्वर का स्थान और बड़ा होना चाहिए, और उन्हें झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों को ज्यादा बेहतर ढंग से पहचानने में सक्षम होना चाहिए। इस दृष्टिकोण से, हमने जिस स्थिति की अभी चर्चा की है वो बिल्कुल भी पवित्र आत्मा का काम नहीं है—केवल मसीह-विरोधी और बुरी आत्माएँ ही कुछ समय काम करने के बाद इस हद तक लोगों को गुमराह कर सकती हैं। अनेक लोगों को इन मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह और नियंत्रित किया गया है, और उनके दिलों में, केवल मसीह-विरोधियों के लिए स्थान है और परमेश्वर के लिए कोई स्थान नहीं है। मसीह-विरोधियों ने बाहरी अच्छे व्यवहारों के माध्यम से अपनी बड़ाई करके और अपनी गवाही देकर यह अंतिम नतीजा प्राप्त किया है। वे अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने के लिए मुसीबत सहने और कीमत चुकाने के बाहरी अच्छे व्यवहारों का इस्तेमाल करते हैं, जो लोगों को गुमराह करने और नियंत्रित करने के लिए मसीह-विरोधियों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले उपायों में से एक है। तुम लोगों को यह मामला अब स्पष्ट दिखाई देता है, है न? क्या एक मसीह-विरोधी द्वारा लोगों को गुमराह करने के लिए मुसीबत सहने और कीमत चुकाने के बाहरी अच्छे व्यवहारों का इस्तेमाल करना बेहद धूर्ततापूर्ण और कपटपूर्ण नहीं है? और क्या तुम लोग भी कभी-कभी ये काम नहीं करते हो? कुछ लोग अपने कर्तव्य में देर तक जागते रहने के लिए शाम के समय अपनी ऊर्जा बढ़ाने के लिए कॉफी पीते हैं। भाई-बहनों को उनके स्वास्थ्य की चिंता होती है और वे उनके लिए चिकन सूप बनाते हैं। सूप खत्म होने पर, ये लोग कहते हैं, “परमेश्वर का धन्यवाद! मैंने परमेश्वर की अनुकंपा का आनंद लिया है। मैं इसके लायक नहीं हूँ। अब जब मैंने चिकन सूप खत्म कर लिया है, तो मुझे अपने कर्तव्य को अधिक कुशलता से निभाना होगा!” वास्तव में, वे अपनी कुशलता में कोई सुधार किए बिना अपना कर्तव्य उसी तरीके से करना जारी रखते हैं जैसा वे आमतौर पर करते हैं। क्या वे दिखावा नहीं कर रहे हैं? वे दिखावा कर रहे हैं, और इस तरह का व्यवहार भी चोरी-चोरी अपनी बड़ाई करना और अपनी गवाही देना ही है; इसका यह परिणाम निकलता है कि लोग उन्हें स्वीकारते हैं, उनके बारे में बहुत अच्छी राय कायम करते हैं, और उनके कट्टर अनुयायी बन जाते हैं। यदि लोगों की इस प्रकार की मानसिकता है, तो क्या उन्होंने परमेश्वर को भुला नहीं दिया है? परमेश्वर अब और उनके दिलों में नहीं बसता, तो फिर वे दिन-रात किसके बारे में सोचते हैं? यह उनका “अच्छा अगुआ” है, उनका “प्यारा” है। कुछ मसीह-विरोधी सतही तौर पर अधिकांश लोगों के प्रति बहुत स्नेही होते हैं, और बोलते समय वे ऐसी तरकीबों का इस्तेमाल करते हैं, ताकि लोगों को दिखे कि वे बहुत स्नेही हैं, और वे उनके करीब आने के इच्छुक हैं। जो कोई भी उनके करीब जाता है वे खुशी जाहिर करते हैं और उनसे बातचीत करने लगते हैं, और वे ऐसे लोगों से बेहद कोमल लहजे में बात करते हैं। अगर उन्हें दिखाई भी देता है कि कुछ भाई-बहन अपने कार्यों में सिद्धांतहीन रहे हैं, और इस प्रकार कलीसिया के हितों को नुकसान पहुँचाया है, वे उनकी थोड़ी-सी भी काट-छाँट नहीं करते हैं, वे केवल उन्हें समझाते और दिलासा देते हैं, और जब वे अपना कर्तव्य निभाते हैं तो उन्हें मनाते हैं—वे लोगों को तब तक मनाते हैं जब तक कि वे हर किसी को अपने सामने नहीं ले आते हैं। लोग धीरे-धीरे इन मसीह-विरोधियों से प्रभावित हो जाते हैं, हर कोई उनके स्नेही दिलों को बहुत पसंद करता है और उन्हें परमेश्वर-प्रेमी कह कर पुकारता है। अंततः, हर कोई उनकी आराधना करता है और हर मामले में उनकी सहभागिता चाहता है, इन मसीह-विरोधियों को इस हद तक अंतरमन के अपने सारे विचार और भावनाएँ बताता है कि वे अब परमेश्वर से प्रार्थना भी नहीं करते हैं या परमेश्वर के वचनों में सत्य की तलाश भी नहीं करते हैं। क्या ये लोग इन मसीह-विरोधियों से गुमराह नहीं हुए हैं? यह एक दूसरा उपाय है जिसका इस्तेमाल मसीह-विरोधी लोगों को गुमराह करने के लिए करते हैं। जब तुम लोग इन व्यवहारों और अभ्यासों में सम्मिलित हो जाते हो, या इन इरादों को पालते हो, तो क्या तुम लोगों को जानकारी है कि इसमें एक समस्या है? और जब तुम्हें इसकी जानकारी होती है, तो क्या तुम अपने कामकाज के तरीकों में बदलाव कर सकते हो? तुम्हें जानकारी होने पर अगर तुम आत्मचिंतन करो और सच में ग्लानि महसूस करो और जाँच करो कि तुम्हारा व्यवहार, अभ्यास, या इरादे समस्या पैदा करने वाले हैं, तो यह साबित करता है कि तुमने अपने तरीके बदल दिए हैं। यदि तुम्हें अपनी समस्याओं की जानकारी है लेकिन तुम बस उन्हें अनदेखा कर देते हो और केवल अपने इरादों के अनुसार काम करते हो, समस्याओं में गहरे और गहरे फँसते चले जाते हो जब तक कि तुम उस स्थिति में नहीं पहुँच जाते जहाँ से तुम खुद को निकालने में समर्थ नहीं हो, तब तुमने अपना तरीका पुनः नहीं बदला है और तुम जानबूझकर स्वयं को परमेश्वर के विरुद्ध खड़ा कर रहे हो, अपनी बड़ाई कर रहे हो और अपनी गवाही दे रहे हो, और सही रास्ते से भटक रहे हो। यह कैसा स्वभाव है? यह एक मसीह-विरोधी का स्वभाव है। क्या यह गंभीर है? (हाँ, यह गंभीर है।) यह कितना गंभीर है? अगर कोई व्यक्ति अपनी आराधना और अनुसरण करवाने के लिए लोगों को मजबूर करने के लिए कष्ट सहकर और कीमत चुकाकर अत्यधिक कपटपूर्ण और धूर्ततापूर्ण तरीके अपनाता है, तो उसका परिणाम खुलेआम अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने के समान होता है—इसकी प्रकृति एक जैसी होती है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने के लिए कौन-से तरीकों का इस्तेमाल करते हो, चाहे यह स्पष्ट भाषण हो या कुछ अधिक स्पष्ट अच्छे व्यवहार, प्रकृति में यह सब एक जैसा है। इसमें मसीह-विरोधी का गुण है, और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए परमेश्वर से लड़ाई करने का गुण है। तुम्हारे लक्षण चाहे जैसे भी हों या तुम चाहे कैसे भी तरीके क्यों ना अपना लो, जब तक तुम्हारा इरादा नहीं बदलता और परिणाम वही रहते हैं, तब तक यह सब प्रकृति में एक जैसा है। इससे यह स्पष्ट है कि मसीह-विरोधी बहुत धूर्त होते हैं। वे सत्य से प्रेम नहीं करते हैं या सत्य का अनुसरण नहीं करते हैं, लेकिन वे लोगों को गुमराह करने के तरीके के तौर पर कष्ट सहने और कीमत चुकाने में सक्षम होते हैं—यह मसीह-विरोधियों की दुष्टता है।
कुछ लोग कुछ बेतुके सिद्धांतों और भावात्मक तर्कों के बारे में बात करते हैं जिससे लोग सोचने लगते हैं कि वे बुद्धिमान और ज्ञानवान हैं, और उनके क्रियाकलाप अत्यंत गहरे हैं, और इस प्रकार वे लोगों द्वारा अपनी आराधना किए जाने के अपने उद्देश्य को प्राप्त कर लेते हैं। यानी वे हर मामले में भागीदारी करना और अपनी राय देना चाहते हैं, और उस स्थिति में भी जब हरेक ने अंतिम फैसला कर लिया हो, यदि वे इससे संतुष्ट नहीं होते हैं, तो वे दिखावा करने के लिए कुछ बड़बोले विचार उगलेंगे। क्या यह अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने का एक तरीका नहीं है? कुछ मामलों में, हरेक ने वास्तव में मुद्दों पर बातचीत कर ली है, एक-दूसरे से सलाह कर ली है, सिद्धांत ढूँढ़ लिए हैं, और कार्य-योजना पर निर्णय कर लिया है, लेकिन वे निर्णय को स्वीकार नहीं करते हैं और यह कहते हुए अनुचित तरीके से चीजों को बाधित करते हैं, “यह नहीं चलेगा। तुम लोगों ने इस पर व्यापक रूप से विचार नहीं किया है। हमने जिन पहलुओं पर बात की है, उनके अलावा मैंने एक और पहलू पर विचार किया है।” वास्तव में, उन्होंने जिस पहलू के बारे में सोचा वो केवल एक बेतुका सिद्धांत है; वे केवल बेकार के मुद्दों को तूल दे रहे हैं। उन्हें अच्छे से पता है कि वे बेकार के मुद्दों को तूल दे रहे हैं और अन्य लोगों के लिए चीजों को कठिन बना रहे हैं, लेकिन फिर भी वे ऐसा करते हैं। इसमें उनका क्या उद्देश्य है? यह लोगों को दिखाने के लिए है कि वे उनसे भिन्न हैं, दूसरों की अपेक्षा ज्यादा होशियार हैं। उनका मतलब है, “तुम सब लोगों का यह स्तर है? मुझे तुम लोगों को दिखाना है कि मेरा स्तर कहीं ऊँचा है।” वे आमतौर पर किसी भी व्यक्ति द्वारा कही गई किसी भी बात को नजरअंदाज करते हैं, लेकिन जैसे ही कुछ महत्वपूर्ण बात होती है, तो वे चीजों को बिगाड़ना शुरू कर देते हैं। इस तरह के व्यक्ति को क्या कहा जाता है? आम बोलचाल की भाषा में, उसे मीन-मेख निकालने वाला और गंदा आदमी कहा जाता है। मीन-मेख निकालने वाले व्यक्ति का आम नजरिया क्या होता है? उसे बड़बोले विचार प्रस्तुत करने और कुछ घृणित और कुटिल अभ्यासों में सम्मिलित होने में आनंद आता है। यदि तुम उसे सही कार्य-योजना प्रस्तुत करने को कहते हो, तो वे एक भी कार्ययोजना प्रस्तुत नहीं कर पाएँगे, और यदि तुम उसे कोई गंभीर मुद्दा सँभालने को कहते हो, वे ऐसा नहीं कर पाएँगे। वे केवल घृणित काम करते हैं, और सदैव लोगों को “हैरत” में डालना और अपनी योग्यता दिखाना चाहते हैं। वह वाक्यांश क्या है? “एक बुजुर्ग औरत तुम्हें दिखाने के लिए लिपस्टिक लगाती है।” इसका अर्थ है कि वे सदैव अपनी योग्यताओं का दिखावा करना चाहते हैं, और भले ही वे उनके समक्ष अच्छे से दिखावा कर पाएँ या नहीं, वे लोगों को बताना चाहते हैं, “मैं तुम लोगों की अपेक्षा कहीं अधिक उत्कृष्ट हूँ। तुम सब निकम्मे हो, तुम लोग बस मरणशील, साधारण लोग हो। मैं असाधारण और सर्वोत्कृष्ट हूँ। मैं तुम लोगों को हैरान करने के लिए अपने विचार साझा करूँगा और फिर तुम लोग देख सकते हो कि मैं सर्वश्रेष्ठ हूँ या नहीं।” क्या यह चीजों को खराब करना नहीं है? वे जानबूझकर चीजों को खराब कर रहे हैं। यह किस प्रकार का व्यवहार है? वे गड़बड़ियाँ और बाधाएँ उत्पन्न कर रहे हैं। उनका मतलब यह है कि : मैंने अभी तक यह नहीं दिखाया है कि मैं इस मामले में कितना चालाक हूँ, इसलिए चाहे किसी के हितों को नुकसान पहुँचे और चाहे किसी के प्रयास व्यर्थ हों, मैं तब तक इसे बिगाड़ता रहूँगा जब तक सभी यह न मान लें कि मैं श्रेष्ठ, योग्य और समर्थ हूँ। केवल तभी मैं इस मामले को बिना किसी बाधा के आगे बढ़ने दूँगा। क्या इस तरह के बुरे लोग मौजूद हैं? क्या तुम लोगों ने पहले भी इस तरह के काम किए हैं? (हाँ। कभी-कभी दूसरे लोगों ने मामले में चर्चा समाप्त कर दी थी और उपयुक्त योजना मिल गई थी, लेकिन चूँकि उन्होंने निर्णय-लेने की प्रक्रिया के दौरान मुझे जानकारी नहीं दी थी, तो मैंने जानबूझकर इसमें खामियाँ ढूँढ़ ली।) जब तुमने ऐेसा किया, तो क्या तुम्हें अपने अंतरमन में पता था कि यह सही है या गलत? क्या तुम्हें पता था कि इस समस्या की प्रकृति गंभीर है, और इससे गड़बड़ियाँ और बाधाएँ उत्पन्न हो रही हैं? (मुझे उस समय इसकी जानकारी नहीं थी, लेकिन अपने भाई-बहनों द्वारा गंभीर रूप से काट-छाँट किए जाने, और परमेश्वर के न्याय और ताड़ना के वचनों को खाने-पीने से, मैंने देखा कि प्रकृति में यह समस्या गंभीर है, और यह कलीसिया के काम में गड़बड़ियाँ और बाधाएँ उत्पन्न कर रही है, और यह एक प्रकार का शैतानी व्यवहार है।) चूँकि तुमने पहचान लिया कि यह समस्या कितनी गंभीर है, और जब उसके बाद ऐसी चीजें तुम्हारे साथ भी घटीं, तो क्या तुम थोड़ा बदलाव ला पाए और अपनी पहुँच के संदर्भ में कुछ प्रवेश पाने में सक्षम हुए? (हाँ। जब मैंने ऐसे विचार प्रकट किए, तो मुझे पता था कि यह शैतानी स्वभाव था, और मैं उस तरीके से चीजें नहीं कर सकता था, और मैं होशोहवास में परमेश्वर से प्रार्थना करने और उन गलत विचारों का विरोध करने में सक्षम था।) तुम कुछ हद तक बदल पाए थे। जब तुम्हारे समक्ष भ्रष्टता जैसी समस्याएँ हों, तो तुम्हें उनका समाधान करने और स्वयं को रोकने के लिए सत्य की खोज, और परमेश्वर से प्रार्थना करनी पड़ती है। जब तुम सोचते हो कि दूसरे तुम्हारी तरफ घृणा से देखते हैं, वे तुम्हारे बारे में ऊँचा नहीं सोचते या तुम्हें गंभीरता से नहीं लेते, और इसके परिणामस्वरूप तुम विघ्न-बाधा उत्पन्न करना चाहते हो, जब तुम्हारे मन में यह विचार आता है, तो तुम्हें यह पता होना चाहिए कि यह सामान्य मानवता से नहीं बल्कि शैतानी स्वभाव से आता है, और यदि तुम इसी तरह चलते रहोगे, तो तकलीफ उठानी होगी, और तुम शायद परमेश्वर के स्वभाव को ठेस पहुँचाओगे। तुम्हें सबसे पहले स्वयं को रोकना आना चाहिए, और फिर परमेश्वर से प्रार्थना करने के लिए उसके समक्ष आना चाहिए और अपने मार्ग को बदलना चाहिए। जब लोग अपने विचारों में, अपने भ्रष्ट स्वभावों में मग्न रहते हैं, तो उनके द्वारा किया गया कोई भी काम सत्य के अनुरूप नहीं होता या परमेश्वर को संतुष्ट करने वाला नहीं होता है; वे जो कुछ भी करते हैं वो परमेश्वर का विरोधी हो जाता है। तुम लोग अब इस तथ्य को पहचान सकते हो, है न? तुम हमेशा शोहरत और लाभ के लिए लड़ना चाहते हो, प्रतिष्ठा और रुतबा पाने के लिए कलीसिया के काम में गड़बड़ी और बाधा उत्पन्न करने से भी नहीं हिचकिचाते, और ये मसीह-विरोधियों के सबसे स्पष्ट लक्षण होते हैं। वास्तव में, सभी लोगों में ये लक्षण होते हैं, लेकिन यदि तुम इन्हें पहचान और स्वीकार सकते हो, और फिर परमेश्वर के समक्ष सच्चे पश्चात्ताप का रवैया अपनाकर, और अपने पेश आने के तरीकों, व्यवहारों, और स्वभावों में बदलाव लाकर पुनः सही रास्ते पर आ सकते हो, तो तुम सत्य का अनुसरण करने वाले व्यक्ति हो। यदि तुम इन वास्तविक समस्याओं को स्वीकार नहीं करते हो, तो तुम में निश्चित रूप से पश्चात्ताप की मनोवृति नहीं है, और तुम सत्य का अनुसरण करने वाले व्यक्ति नहीं हो। यदि तुम मसीह-विरोधी के मार्ग पर चलने की जिद करते हो, और अंत तक इस मार्ग का अनुसरण करते हो, और तुम अभी भी सोचते हो कि यह कोई समस्या नहीं है और पश्चात्ताप नहीं करना चाहते हो, इसी तरह काम करने की और कार्यकर्ताओं और अगुआओं के साथ शोहरत और लाभ के लिए प्रतिस्पर्धा करने की जिद करते हो, दूसरों से ज्यादा अलग दिखने, भीड़ से अलग दिखने, और भले ही तुम किसी भी समूह में क्यों ना हो दूसरों से बेहतर होने पर जोर देते हो, तो तुम मुसीबत में हो! यदि तुम प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागते रहते हो और जिद करके पश्चात्ताप करने से इनकार करते हो, तो तुम मसीह-विरोधी हो और अंत में दण्ड पाने के लिए अभिशप्त हो। परमेश्वर के वचन, सत्य, और जमीर और विवेक का तुम पर कोई असर नहीं होता है, और निश्चित तौर पर तुम्हारा अंत मसीह-विरोधियों के समान होगा। तुम्हें बचाया नहीं जा सकता, और तुम्हारा उद्धार असंभव है! लोग उद्धार प्राप्त कर सकते हैं या नहीं और परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के मार्ग पर चल सकते हैं या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि वे स्वयं को जानने के बाद सच्चे पश्चात्ताप के लक्षण दिखाते हैं या नहीं, और वे सत्य के साथ किस नजरिये से पेश आते हैं, और साथ ही वे कौन-सा मार्ग चुनते हैं। यदि तुम एक मसीह-विरोधी के मार्ग का त्याग नहीं करते हो, और इसके बजाय अपनी महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं को संतुष्ट करने का चुनाव करते हो, खुलेआम सत्य का विरोध करते हो, स्वयं को परमेश्वर के विरुद्ध खड़ा कर लेते हो, तो तुम्हारा उद्धार असंभव है। यदि कोई व्यक्ति अपनी गलतियों की गंभीरता या अपने द्वारा किए गए बुरे कर्मों की परवाह किए बिना डरना नहीं जानता, और वह दोषी महसूस नहीं करता, बिना किसी पश्चात्ताप के अपने लिए बहाने बनाता रहता है, तो वह एक पक्का मसीह-विरोधी और शैतान है। यदि किसी व्यक्ति में मसीह-विरोधियों के विभिन्न लक्षण मौजूद हों, लेकिन वह अपनी गलतियों को स्वीकार सकता है, पीछे मुड़ सकता है, और उसके हृदय में पछतावा हो सकता है, तो वह व्यक्ति मसीह-विरोधियों से प्रकृति में भिन्न है और पूरी तरह से एक अलग मामला है। इसलिए, कोई व्यक्ति उद्धार प्राप्त कर सकता है या नहीं, इसकी कुंजी इस बात में निहित है कि क्या वह आत्मचिंतन कर सकता है, क्या उसके पास पश्चात्ताप करने वाला हृदय है, और क्या वह सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर चल सकता है।
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