मद चार : वे अपनी बड़ाई करते हैं और अपने बारे में गवाही देते हैं (खंड एक)
परिशिष्ट : चूहों का शिकार
हाल ही में, मुझे एक नए मामले के बारे में पता चला है। इसे सुनो और सोचो कि यह लोगों के व्यवहार और स्वभाव से कैसे संबंधित है, यह कहानी किस बारे में है और यह किस प्रकार की समस्या को दर्शाती है। जब कुछ चीनी लोग अमेरिका आए तो यहाँ आने के बाद उन्होंने देखा कि न केवल यहाँ का सामाजिक परिवेश और माहौल चीन से काफी अलग है बल्कि यहाँ कुछ और भी है जो उन्हें बेहद दिलचस्प लगा। और वो यह था कि इस देश में, न केवल लोग स्वतंत्र थे, बल्कि सभी प्रकार के जीवित प्राणी और जानवर भी बहुत स्वतंत्र थे, और कोई भी उन्हें नुकसान नहीं पहुँचा रहा था। मानव की स्वतंत्रता निश्चित रूप से सामाजिक व्यवस्था का परिणाम है, तो सभी प्रकार के जीवित प्राणियों और जानवरों की इस स्वतंत्रता के पीछे क्या कारण था? क्या इसका संबंध भी सामाजिक व्यवस्थाओं से है? (है।) इसका संबंध इस बात से है कि सामाजिक व्यवस्थाएँ और सरकारी नीतियाँ संपूर्ण प्राकृतिक परिवेश की रक्षा और प्रबंधन कैसे करती हैं। यहाँ जंगली जानवर हर जगह पाए जाते हैं और हर जगह देखने को मिल जाते हैं। उदाहरण के लिए, आप हाइवे के किनारे घास के मैदान में जंगली हंसों को घास खाते हुए देख सकते हैं, और वहाँ कुछ ऐसे पार्क, घास के मैदान और जंगल भी हैं जहाँ आप कुछ हिरण, भालू या भेड़ियों और साथ ही पेरू पक्षी, तीतर और सभी प्रकार के पक्षियों और अन्य जंगली जानवरों को देख सकते हैं। जब लोग इस तरह का कोई दृश्य देखते हैं तो उनके मन में पहली छाप क्या पड़ती है? (उन्हें महसूस होता है कि उन्होंने प्रकृति को देखा है।) और जब वे प्रकृति को देखते हैं तो उनमें किस तरह की भावनाएँ पैदा होती हैं? क्या वे यह नहीं कहेंगे : “इनके इस देश को तो देखो। यहाँ न केवल लोग स्वतंत्र हैं, बल्कि यहाँ के जानवर भी स्वतंत्र हैं। एक जानवर के रूप में पुनर्जन्म लेकर इस देश में जीना चीन में एक मनुष्य के रूप में जीने से ज्यादा बेहतर होगा, क्योंकि यहाँ जानवर भी स्वतंत्र रहते हैं और कोई भी उनके साथ दुर्व्यवहार नहीं करता”? क्या उनके मन में ऐसी भावनाएँ नहीं आएँगी? (हाँ आएँगी।) जो लोग एक लंबे समय से यहाँ रह रहे हैं, उनके लिए ये चीजें सामान्य हो जाती हैं, और उन्हें यह बिल्कुल भी असामान्य नहीं लगतीं; उन्हें लगता है कि ये चीजें बहुत सामान्य हैं। लेकिन कुछ लोगों के लिए, इस तरह के परिवेश से परिचित होने के बाद, उनके मन में कुछ सक्रिय विचार उभरने लगते हैं : “ये सभी जानवर इतने स्वतंत्र हैं और कोई भी उनकी निगरानी नहीं करता या उन पर नजर नहीं रखता, तो क्या मैं उन्हें पकड़ सकता हूँ और खा सकता हूँ? कितना अच्छा होता अगर मैं उन्हें खा सकता, लेकिन मैं अंधाधुंध ऐसा काम नहीं कर सकता क्योंकि हो सकता है कि उन्हें कानून द्वारा संरक्षण प्राप्त हो। मुझे इस संभावना पर गौर करना होगा।” इस बारे में जानकारी इकठा करने पर उन्हें पता चलता है कि इस देश का कानून स्पष्ट रूप से कहता है कि जंगली जानवरों को राष्ट्रीय कानून के तहत समान रूप से संरक्षण प्राप्त है और लोग अपनी मर्जी से उनका शिकार नहीं कर सकते या उन्हें मार नहीं सकते। यदि कोई जानवरों का शिकार करना चाहता है, तो वह राज्य द्वारा निर्दिष्ट शिकार के क्षेत्र में ही ऐसा कर सकता है; इसके लिए उनके पास लाइसेंस भी होना चाहिए, और उन्हें हर उस जानवर के लिए शुल्क देना पड़ सकता है जिसे उन्होंने पकड़ा है। संक्षेप में कहें तो कानून इन जंगली जानवरों की रक्षा करता है और उनके बारे में स्पष्ट शर्तें निर्धारित हैं। कुछ लोग जंगली जानवरों की सुरक्षा के कानून को समझ ही नहीं सकते और वे सोचते हैं : “ये सब तो जंगली पकवान हैं और फिर भी सरकार हमें अपनी मर्जी से इन्हें पकड़ने और खाने की अनुमति नहीं देती है। यह तो बहुत ही अफसोस की बात है! चीन में तो कोई भी इसकी परवाह नहीं करता है : ‘यदि कोई इसकी रिपोर्ट न करे, तो सरकारी अधिकारी इसकी जाँच भी नहीं करेंगे।’ आप किसी भी जानवर को पकड़कर खा सकते हैं, बस किसी को इस बारे में पता नहीं चलना चाहिए। लेकिन आप एक लोकतांत्रिक देश में ऐसा नहीं कर सकते। यहाँ कानूनी नियम होते हैं और मैं अन्य लोगों के देश में जाकर अपनी मर्जी से कुछ भी नहीं कर सकता। लेकिन ये सभी जानवर तो जंगली शिकार हैं और यह इतनी अफसोस की बात है कि हम केवल उन्हें देख सकते हैं, पर खा नहीं सकते! मुझे इसका कोई समाधान सोचना ही होगा। मैं बिना किसी को दिखाए और बिना कानून तोड़े इस शिकार को कैसे खा सकता हूँ?” कुछ लोग चालाकी करने की सोचते हैं और कहते हैं : “अगर मैं एक पिंजरा बनाता हूँ और जानवरों को आकर्षित करने के लिए उसमें थोड़ा सा स्वादिष्ट भोजन डालता हूँ और जंगली खरगोशों जैसे कोई छोटे जानवर पकड़ता हूँ और फिर उन्हें मारकर खाने के लिए एक सुनसान जगह तलाश करता हूँ, तो ऐसा करने पर मैं कोई कानून नहीं तोड़ूँगा, है ना? उन छोटे जानवरों को तो राज्य द्वारा संरक्षण प्राप्त नहीं है और उनके बारे में कानून में कोई स्पष्ट शर्तें भी निर्धारित नहीं की गईं हैं। अगर मैं ऐसा करता हूँ, तो मैं जंगली शिकार खा सकता हूँ और यह भी सुनिश्चित कर सकता हूँ कि मैं कानून का उल्लंघन ना करूँ। इससे बेहतर और कुछ नहीं होगा।” और यह विचार आने के बाद, वे एक पिंजरा लेते हैं और शिकार करना शुरू कर देते हैं। अभी दो दिन भी नहीं गुजरे थे कि एक चूहा पिंजरे में आता है और वे उसी समय उसे मारकर खा जाते हैं और एक जंगली शिकार वाला एहसास लेते हैं! इसे खाने के बाद वे किस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं? “जंगली जानवर बहुत स्वादिष्ट होते हैं। अब से मैं अन्य प्रकार के शिकार खाने के और भी नए तरीके सोचूँगा। मैं उन्हें खाने से नहीं डरता, बशर्ते मैं कानून न तोड़ूँ।” कहानी यहीं खत्म होती है।
कुछ लोग पूछते हैं, “क्या यह एक सच्ची कहानी है या यह मनगढ़ंत है?” अभी के लिए, इस बारे में चिंता न करो कि क्या यह सच्ची कहानी है या मनगढ़ंत है, और क्या वास्तव में ऐसा हुआ भी था या नहीं। बस इसी बात पर ध्यान दो कि इस कहानी के आधार पर, इस तरह के काम करने वाले लोग क्या गलत करते हैं। क्या इस तरह का काम करना एक गंभीर गलती है? क्या इसे कानून का उल्लंघन माना जाता है? क्या इसे नैतिक न्याय के खिलाफ जाना माना जाता है? (हाँ।) क्या यह नैतिक न्याय के खिलाफ या मानवता के खिलाफ या किसी और चीज के खिलाफ जाता है? पहले तो मुझे बताओ : क्या इस प्रकार का व्यवहार प्रशंसा के योग्य है या निंदा के योग्य है? तुम लोग कौन सा पक्ष लोगे? (निंदा वाला।) भले ही यह व्यवहार नैतिक न्याय के खिलाफ जाता हो, कानून के खिलाफ जाता हो या मानवता के खिलाफ जाता हो, किसी भी स्थिति में इस तरह का व्यवहार खराब है और जिन लोगों में मानवता होती है उनका ऐसा व्यवहार नहीं होता है। तो यह क्या है? क्या इस प्रकार का स्वभाव या व्यवहार एक गंभीर समस्या है? तुम लोग अपने खुद के मानकों के अनुसार इस मामले को कैसे आँकोगे? क्या रोजमर्रा के जीवन में और हर प्रकार के लोगों में इस तरह का व्यवहार आम होता है? (हाँ।) यह कोई बेहद कपटी या बुरा व्यवहार नहीं है, बल्कि यह एक अनुचित व्यवहार है और यह कोई ऐसी अभिव्यक्ति नहीं है जो सामान्य मानवता वाले लोगों के पास होनी चाहिए। तो वास्तव में यह किस प्रकार की अभिव्यक्ति है? चलो आगे बढ़ो और इसका वर्गीकरण करो। यह किस प्रकार का व्यवहार है? क्या इसे बढ़ावा दिया जाना चाहिए? (नहीं।) यह इस काबिल नहीं है कि इसे बढ़ावा दिया जाए और लोग इसकी प्रशंसा नहीं करते और इसलिए इसकी निंदा की जानी चाहिए और इसका तिरस्कार किया जाना चाहिए। इस तरह का व्यवहार काफी आम होता है और यह अक्सर हर प्रकार के लोगों में और रोजमर्रा के जीवन में दिखाई देता है, हमें अक्सर यह देखने को मिलता है और ऐसे लोग मौजूद हैं जो अक्सर इस तरह का काम करते हैं। तो फिर क्या यह ध्यान दिए जाने और चर्चा किए जाने के लायक नहीं है, ताकि प्रत्येक व्यक्ति को इस मामले की सटीक परिभाषा समझ आ सके और वे इस प्रकार के व्यवहार से खुद को दूर रख सकें? क्या ऐसा करना सही नहीं रहेगा? (हाँ रहेगा।) तो फिर चलो इसे परिभाषित करते हैं—यह किस प्रकार का व्यवहार है? क्या यह अहंकारी व्यवहार है? क्या यह दुराग्रही व्यवहार है? क्या यह कपटी व्यवहार है? (नहीं।) क्या यह दुष्ट व्यवहार है? (थोड़ा सा।) यह कुछ हद तक इसके करीब है। तुम लोगों ने जो भी शब्द सीखे और समझे हैं, क्या उनमें ऐसे कोई शब्द हैं जो इस प्रकार के व्यवहार को परिभाषित कर सकें? (अनैतिक।) अनैतिक, इस शब्द में इस गुण का थोड़ा सा हिस्सा तो जरूर है। इस शब्द में इस प्रकार का व्यवहार और सार तो जरूर समाहित है लेकिन यह इसे पूरी तरह से सारांशित नहीं करता है। इस व्यवहार को दुर्भावनापूर्ण नहीं माना जा सकता है, क्योंकि यदि एक चूहे को मारना दुर्भावनापूर्ण है तो फिर चूहों का सफाया करना भी एक नकारात्मक बात होगी। जबकि चूहे का सफाया करना एक सकारात्मक बात है; चूहे लोगों को नुकसान पहुँचाते हैं, इसलिए उनका सफाया करना सही है। लेकिन क्या उनका सफाया करने और उन्हें खाने में कोई फर्क नहीं है? (हाँ है।) तो फिर इस व्यवहार को कैसे सारांशित किया जा सकता है? तुम लोगों के दिमाग में ऐसे कौन से शब्द आते हैं जो इस तरह के व्यवहार से संबंधित हैं? (घिनौना।) (नीच।) नीच, अनैतिक और घिनौना। रोजमर्रा के जीवन में नीच व्यवहार और अपने उचित कार्य पर ध्यान नहीं देने को सारांशित करने के लिए किस शब्द का उपयोग किया जाता है? (घटिया।) “घटिया” शब्द इस प्रकार के व्यवहार को ठीक और सटीक रूप से सारांशित करता है। इसे “घटिया” के रूप में परिभाषित क्यों किया गया है? यदि इसे नीच, स्वार्थी या घिनौना कहा जाए, तो यह अधम लोगों द्वारा प्रकट की जाने वाली बस एक प्रकार की अभिव्यक्ति है। “घटिया” के कई अर्थ होते हैं—अनैतिक होना, भ्रष्ट होना, घिनौना होना, स्वार्थी होना, चरित्रहीन होना, अच्छा व्यवहार न करना, खुलकर या ईमानदारी से अपने कार्य न करना बल्कि इसके बजाय छिपकर कार्य करना और केवल अनुचित काम करना। इस प्रकार के व्यवहार और अभिव्यक्तियाँ घटिया लोगों में होती हैं। उदाहरण के लिए, यदि किसी सामान्य व्यक्ति को कोई काम करना हो तो वह इसे खुले आम बिना किसी से छुपाए करता है, बशर्ते यह कोई उचित काम हो, और यदि यह काम कानून के विरुद्ध हो तो वह इसे छोड़ देता है और नहीं करता। लेकिन घटिया लोग ऐसे नहीं होते हैं; वे किसी भी कीमत पर अपने लक्ष्यों को प्राप्त करना चाहते हैं और उनके पास कानून की सीमाओं को लाँघने के लिए रणनीतियाँ होती हैं। वे कानून को नजरअंदाज करते हैं और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के तरीके तलाशते हैं, भले ही ऐसा करना नैतिकता, सदाचार या मानवता के खिलाफ ही क्यों न हो और इसका परिणाम चाहे कुछ भी हो। वे इनमें से किसी भी चीज की परवाह नहीं करते और केवल किसी भी तरह से अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने की कोशिश करते हैं। इसी को “घटिया” होना कहते हैं। क्या घटिया लोगों में कोई ईमानदारी या मर्यादा होती है? (नहीं।) क्या वे कुलीन लोग होते हैं या नीच होते हैं? (नीच।) वे किस तरह से नीच होते हैं? (उनके स्व-आचरण के लिए कोई नैतिक आधार रेखा नहीं है।) यह सही बात है, इस प्रकार के व्यक्ति के स्व-आचरण में कोई आधार रेखा या सिद्धांत नहीं होते हैं; वे परिणामों के बारे में नहीं सोचते और जो उनकी मर्जी हो वही करते हैं। वे कानून की, नैतिकता की और इस बात की परवाह नहीं करते कि क्या उनकी अंतरात्मा उनके कार्यों को स्वीकार सकती है या नहीं, और न ही उन्हें किसी के आरोप, आलोचना या निंदा की परवाह होती है। वे इन सब चीजों से बेपरवाह होते हैं और जब तक उन्हें लाभ और आनंद मिल रहा होता है तब तक उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। उनके काम करने का तरीका भ्रष्ट होता है, उनकी सोच घृणित और शर्मनाक होती है। घटिया होने का यही तो मतलब है। क्या “घटिया” शब्द को उन विभिन्न स्वभावों की अभिव्यक्तियों द्वारा प्रतिस्थापित किया जा सकता है जिनके बारे में हमने पहले बात की थी? ऐसा करना सही नहीं होगा। “घटिया” शब्द काफी विशेष है, तो क्या घटिया लोग एक विशेष प्रकार के लोग होते हैं? नहीं, वे विशेष नहीं होते। क्या तुम लोगों के भीतर कोई घटियापन है? (हाँ।) इसकी विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ क्या हैं? (कभी-कभी लोग अपना मुँह धोने के बाद काउंटर पर पानी फैला देते हैं और इसे साफ नहीं करते। और जब लोग अपना खाना खत्म कर लेते हैं, तो वे मेज से चावल के दाने और सब्जी का शोरबा साफ नहीं करते। जब उनके कपड़े गंदे हो जाते हैं, तो वे उन्हें मोड़े बिना ही किसी नुक्कड़ पर फेंक देते हैं। मुझे लगता है कि ये सभी हरकतें भी घटिया होने की अभिव्यक्तियाँ हैं।) वास्तव में, ये सभी चीजें हमारे रोजमर्रा के जीवन के छोटे-छोटे पहलू हैं और गंदा होना वास्तव में घटिया होना नहीं होता, बल्कि इसका संबंध मानवता में जीवन यापन करने से है। यदि कोई व्यक्ति समूह में रहते हुए ऐसे काम नहीं करता जो दूसरों के लिए फायदेमंद हों, और यदि उसका पालन-पोषण उचित ढंग से नहीं किया गया हो या वह दूसरों से अच्छा व्यवहार नहीं करता और लोगों के बुरे पहलू के पीछे पड़ा रहता है और दूसरों की नजरों में उनके लिए नफरत पैदा करता है, और वह जहाँ भी जाता है, वहाँ के नियमों या व्यवस्थाओं का पालन करना नहीं जानता और उसमें इस जागरूकता का अभाव है, तो फिर क्या उसकी मानवता में कुछ कमी नहीं है? (हाँ है।) किस चीज की कमी है? इसमें सूझ-बूझ की कमी है। क्या इस तरह के लोगों में मर्यादा की कमी नहीं है? (हाँ।) उनमें कोई मर्यादा नहीं है, कोई ईमानदारी नहीं है और उनकी परवरिश खराब तरीके से हुई थी। इसका संबंध स्व-आचरण की आधार रेखा और सामान्य मानवता के साथ जीवन यापन करने से है। यदि कोई इन मानकों को भी पूरा नहीं कर सकता, तो कैसे संभव होगा कि वे सत्य का अभ्यास करें? कैसे संभव होगा कि वे परमेश्वर की महिमा करें? कैसे संभव होगा कि वे सत्य सिद्धांतों के अनुसार कार्य करें? उनके लिए तो इनमें से कुछ भी करने की कोई संभावना नहीं है। इस तरह के व्यक्ति में कोई जमीर या सूझ-बूझ नहीं होती—क्या इनका प्रबंधन करना आसान होता है? क्या उनके लिए बदलना आसान होता है? यह बिल्कुल भी आसान नहीं होता। तो फिर वे कैसे बदल सकते हैं? यह इस बात पर निर्भर करेगा कि सभी को उनकी निगरानी करनी चाहिए, उन्हें रोकना टोकना और प्रेरित करना चाहिए। गंभीर मामलों में सभी को उनकी आलोचना करने के लिए खड़ा होना चाहिए। इस आलोचना के पीछे क्या मकसद है? इसका मकसद उनकी सहायता करना, उचित रूप से आचरण करने में उनकी मदद करना और उन्हें अपमानजनक और गलत काम करने से रोकना है। तो फिर वास्तव में घटिया होने का क्या मतलब है? इसके प्राथमिक लक्षण और अभिव्यक्तियाँ क्या हैं? देखो क्या मेरा सारांश सटीक है या नहीं। घटिया लोग किसके बराबर होते हैं? वे ऐसे जंगली जानवरों के बराबर हैं जिन्हें पालतू नहीं बनाया गया है और जिन्हें गलत तरीके से पाला गया है और इसकी प्राथमिक अभिव्यक्तियाँ घमंड, क्रूरता, संयम की कमी, लापरवाही से कार्य करना, सत्य को जरा भी स्वीकार न करना, साथ ही जो चाहे वह करना, किसी की बात न सुनना, या किसी को भी उन्हें प्रबंधित करने की अनुमति नहीं देना, किसी के भी विरुद्ध जाने का साहस करना और किसी अन्य के प्रति कोई सम्मान न रखना है। मुझे बताओ कि क्या घटिया होने की विभिन्न अभिव्यक्तियाँ गंभीर होती हैं? (हाँ होती हैं।) कम-से-कम, घमंड, सूझ-बूझ की कमी और लापरवाही से कार्य करने का यह स्वभाव बहुत गंभीर है। भले ही इस तरह के किसी व्यक्ति के बारे में ऐसा प्रतीत हो कि वह ऐसे काम नहीं करता जो परमेश्वर को आँकते हों या उसका विरोध करते हों, लेकिन उनके घमंडी स्वभाव के कारण, इसकी अत्यधिक संभावना है कि वे बुरे कार्य करेंगे और उसका विरोध करेंगे। उनके सभी कार्य उनके भ्रष्ट स्वभावों को दिखाते हैं। जब कोई व्यक्ति एक हद तक घटिया बन जाता है, तो वह एक डाकू और शैतान बन जाता है, और डाकू और शैतान कभी भी सत्य को स्वीकार नहीं करते—उन्हें केवल नष्ट किया जा सकता है।
क्या इस कहानी के बारे में बात करने का कोई महत्व है? (हाँ।) यद्यपि यह कहानी मनुष्य के प्रकृति सार या स्वभाव के बारे में नहीं है, लेकिन यह मनुष्य के व्यवहार से संबंधित है, जो कि मनुष्य के सार से अलग या असंबंधित नहीं होता है। इस कहानी को क्या कहा जाना चाहिए? चलो इसे एक प्रतीकात्मक गुणवत्ता वाला नाम देते हैं और कोई साफ-सीधा नाम नहीं रखते। (चूहों का शिकार।) “चूहों का शिकार” एक बढ़िया नाम है। किसी ने “पूरी तरह से वैध” तरीके से एक चूहा पकड़ा और कहा : “अब मैं क्या कर सकता हूँ? यह खुद चल कर यहाँ आया है और मुझे इसके लिए काफी खेद है। इसके अलावा, इसे चोट भी तो लगी है। अगर यह यहाँ से वापस बाहर निकल जाता है, तो यह मर जाएगा और फिर वैसे भी अन्य जानवर इसे खा लेंगे, तो फिर मैं ही क्यों न इसे खा लूँ? क्या ऐसा करना कानूनी तौर पर पूरी तरह से वैध नहीं होगा?” केवल उस चूहे को खाने के लिए उसने ये सारे बहाने बनाए और ये सभी कारण तलाश किए और फिर उसने निर्दोष अंतरात्मा के साथ इसे खाया। इसी को घटिया होना कहते हैं। ऐसा नहीं है कि अमेरिका में लोग मांस नहीं खा सकते, इसलिए ऐसा करने के लिए सारी परेशानी उठाने और इतना प्रयास करने का कोई फायदा नहीं है। यह घटिया लोगों के काम हैं। क्या सामान्य लोग भी इस तरह का काम करते हैं? क्या मानवता और ईमानदारी वाले लोग इस तरह का काम करते हैं? (नहीं।) वे ऐसा क्यों नहीं करते? इसका संबंध ईमानदारी से है। जो लोग प्रकृति से ही चोर होते हैं और उन्हें सुधारना असंभव होता है, वे हमेशा चोरी और ठगी करते रहते हैं और शर्मनाक काम करते रहते हैं। क्या उन्हें घर में किसी चीज की कमी होती है? जरूरी तो नहीं। चूँकि वे घटिया होते हैं, इसलिए उन्हें अपनी प्राथमिकताओं को प्राप्त करने और अपने अत्यधिक लालची स्वभाव को संतुष्ट करने के लिए चोरी करने पर निर्भर होना पड़ता है। इन चीजों को करने से उनके दिल को सुकून मिलता है। अगर वे इस तरह की हरकत न करें तो वे परेशान हो जाते हैं। इसी को घटिया होना कहते हैं। अब मैं इस कहानी को समाप्त करता हूँ और मुख्य विषय पर आता हूँ।
मुख्य विषय पर बात करने से पहले, आओ पहले हमारी पिछली संगति की विषय-वस्तु पर गौर करते हैं। परमेश्वर के चुने हुए लोग जो कर्तव्य निभाते हैं उन्हें छह मुख्य श्रेणियों में बाँटा जा सकता है। हमने पहली श्रेणी पर चर्चा पूरी कर ली है, अर्थात वे लोग जो सुसमाचार प्रचार करने का कर्तव्य निभाते हैं। दूसरी श्रेणी उन लोगों की है जो कलीसिया में विभिन्न स्तरों पर अगुआओं और कार्यकर्ताओं के कर्तव्यों का पालन करते हैं। इस श्रेणी के सदस्यों को बुनियादी रूप से दो मुख्य प्रकारों में बाँटा जा सकता है, और पिछली बार हमने इनमें से एक प्रकार, अर्थात् मसीह विरोधियों के बारे में बात की थी। मसीह विरोधी कैसे काम करते हैं, उनके पास कौन सी अभिव्यक्तियाँ होती हैं और वे ऐसी कौन सी चीजें करते हैं जिनके कारण उन्हें मसीह-विरोधी के रूप में निरूपित किया जा सकता है—हमने मसीह विरोधियों की इन अभिव्यक्तियों और स्वभावों को वर्गीकृत किया था। इसके अंतर्गत कौन सी विशिष्ट मदें थीं? (मद एक : वे लोगों के दिल जीतने का प्रयास करते हैं; मद दो : वे विरोधियों पर आक्रमण करते हैं और उन्हें निकाल देते हैं; मद तीन : सत्य का अनुसरण करने वालों को वे निकाल देते हैं और उन पर आक्रमण करते हैं; मद चार : वे अपनी बड़ाई करते हैं और अपने बारे में गवाही देते हैं; मद पाँच : वे लोगों को गुमराह करने, फुसलाने, धमकाने और नियंत्रित करने का काम करते हैं।) पिछली बार, पाँच मदों को सारांशित किया गया था, और तुम लोगों ने उन सभी को नोट कर लिया था। अब अगली मदों को नोट करो। मद छह : वे कुटिल तरीकों से व्यवहार करते हैं, वे स्वेच्छाचारी और तानाशाह होते हैं, वे कभी दूसरों के साथ संगति नहीं करते, और वे दूसरों को अपने आज्ञापालन के लिए मजबूर करते हैं; मद सात : वे दुष्ट, धूर्त और कपटी हैं; मद आठ : वे दूसरों से केवल अपने प्रति समर्पण करवाएँगे, सत्य या परमेश्वर के प्रति नहीं; मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते और यहाँ तक कि उन हितों के साथ विश्वासघात भी कर देते हैं, वे व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों का सौदा तक कर देते हैं; मद दस : वे सत्य से घृणा करते हैं, सिद्धांतों की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाते हैं और परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं की उपेक्षा करते हैं; मद ग्यारह : वे काट-छाँट करना स्वीकार नहीं करते और न ही गलत काम करने पर उनमें पश्चात्ताप का रवैया होता है, बल्कि वे धारणाएँ फैलाते हैं और परमेश्वर के बारे में सार्वजनिक रूप से आलोचना करते हैं; मद बारह : जब उनके पास कोई रुतबा नहीं होता या आशीष पाने की आशा नहीं होती तो वे पीछे हटना चाहते हैं; मद तेरह : वे कलीसिया के वित्त को नियंत्रित करने के साथ-साथ लोगों के दिलों को भी नियंत्रित करते हैं; मद चौदह : वे परमेश्वर के घर को अपना निजी अधिकार क्षेत्र मानते हैं; मद पंद्रह : वे परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते और वे मसीह के सार को नकारते हैं। कुल 15 मदें हैं और वे सभी मसीह विरोधी की विभिन्न अभिव्यक्तियों का गहन-विश्लेषण करती हैं और उन्हें उजागर करती हैं। ये 15 मदें असल में मसीह-विरोधियों के विभिन्न प्रकार के व्यवहार, अभिव्यक्तियों और स्वभावों को सारांशित करती हैं। इनमें से कुछ मदें देखने में सतही व्यवहार जैसी लगती हैं, लेकिन इन व्यवहारों के पीछे मसीह विरोधियों का अंतर्निहित स्वभाव सार होता है। क्या इन 15 मदों को उनके शाब्दिक अर्थ के संदर्भ में समझना आसान नहीं है? उन सभी मदों को सरल भाषा में बयान किया गया है और एक लिहाज से, उन्हें समझना आसान है, जबकि इसके अतिरिक्त, जो कुछ भी उनमें से प्रत्येक में सारांशित किया गया है वह मनुष्य की अभिव्यक्तियों, प्रकाशनों और सार से संबंधित है। प्रत्येक मद एक प्रकार का स्वभाव है; यह कोई अस्थायी व्यवहार या विचार नहीं होता है। स्वभाव क्या है? कोई किसी को कैसे समझा सकता है कि स्वभाव क्या है? स्वभाव से अभिप्राय है जब किसी व्यक्ति के तौर-तरीके विचार, राय, काम करने के सिद्धांत, संचालन के तरीके और जिस लक्ष्य का वे पीछा कर रहे हैं, वे समय और भौगोलिक स्थिति में परिवर्तन के साथ बिल्कुल भी नहीं बदलते हैं, चाहे वो व्यक्ति कहीं भी जाए। यदि किसी व्यक्ति का परिवेश बदलते ही उसका कार्य करने का तरीका गायब हो जाता है, तो यह एक भ्रष्ट स्वभाव का खुलासा नहीं है, बल्कि एक अस्थायी व्यवहार है। तो फिर एक असली स्वभाव का क्या मतलब है? (यह किसी भी समय और किसी भी स्थान पर किसी व्यक्ति पर हावी हो सकता है।) यह सही बात है, यह किसी भी समय और स्थान पर किसी व्यक्ति के शब्दों और कार्यों पर हावी हो सकता है, वह भी बिना किसी शर्तों वाले प्रतिबंध या प्रभाव के। यह एक सार है। सार उस चीज को कहते हैं जिस पर कोई जीवित रहने के लिए निर्भर रहता है; यह समय, स्थान या अन्य बाहरी कारकों में परिवर्तन के आधार पर नहीं बदलता। इसे व्यक्ति का सार कहते हैं। कुछ लोग कहते हैं : “मेरे पास मसीह-विरोधियों की कमोबेश ये सभी 15 अभिव्यक्तियाँ हैं जिन्हें आपने सारांशित किया है, लेकिन मैं रुतबे के पीछे नहीं भागता और मैं किसी महत्वाकांक्षा के साथ पैदा नहीं हुआ था। इसके अलावा, मेरे ऊपर इस समय कोई जिम्मेदारी नहीं है। मैं कोई अगुआ या कार्यकर्ता नहीं हूँ और मुझे चर्चा का विषय बनना पसंद नहीं है, तो क्या मसीह विरोधियों का प्रकृति सार मेरे लिए अप्रासंगिक नहीं है? यदि यह अप्रासंगिक है, तो क्या यह सच नहीं है कि मुझे इन संगतियों को सुनने या उनको सामने रखकर अपनी तुलना करने की आवश्यकता नहीं है?” क्या यही हकीकत नहीं है? (नहीं।) तो फिर मसीह विरोधियों की इन अभिव्यक्तियों के प्रति क्या दृष्टिकोण रखना चाहिए? इन अभिव्यक्तियों के बारे में संगति की गई सच्चाइयों के प्रति क्या दृष्टिकोण रखना चाहिए? तुम्हें सत्य को समझना चाहिए और इन संगतियों के भीतर खुद को पहचानना चाहिए, फिर सही रास्ता ढूँढ़ना चाहिए और अपने कर्तव्य के निर्वहन और परमेश्वर की सेवा में सिद्धांतों को अपनाना चाहिए। केवल यही एक तरीका है जिससे तुम मसीह विरोधियों के रास्ते से अलग हो सकते हो और पूर्ण बनाए जाने के रास्ते पर चल सकते हो। यदि तुम लोग देखते हो कि मसीह विरोधियों की ये अभिव्यक्तियाँ तुमसे मेल खाती हैं, तो यह तुम लोगों के लिए एक चेतावनी, एक ताकीद, एक प्रकटीकरण और एक न्याय होगा। यदि यह तुम्हारे साथ मेल नहीं खातीं, लेकिन तुम यह भाँप लेते हो कि तुम्हारी दशाएँ भी ऐसी ही हैं, तो इन दशाओं का समाधान करने के लिए तुम लोगों को और अधिक आत्मचिंतन करने और खुद को जानने की कोशिश करनी चाहिए और सत्य की खोज करनी चाहिए। इस तरह, तुम भी धीरे-धीरे अपने भ्रष्ट स्वभावों को त्याग सकते हो और मसीह विरोधियों के रास्ते पर चलने से बच सकते हो।
मसीह-विरोधियों द्वारा अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने का गहन-विश्लेषण
आज की संगति मसीह-विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों की चौथी मद के बारे में है : अपनी बड़ाई करना और अपनी गवाही देना। अपनी बड़ाई करना और अपनी गवाही देना, स्वयं पर इतराना, दूसरों की अपने बारे में बहुत अच्छी राय बनवाने और उनसे अपनी आराधना करवाने की कोशिश करना—भ्रष्ट मनुष्यजाति इन चीजों में माहिर है। जब लोग अपनी शैतानी प्रकृतियों से शासित होते हैं, तब वे सहज और स्वाभाविक ढंग से इसी तरह प्रतिक्रिया करते हैं, और यह भ्रष्ट मनुष्यजाति के सभी लोगों में आम है। लोग सामान्यतः कैसे अपनी बड़ाई करते हैं और अपनी गवाही देते हैं? वे दूसरों की अपने बारे में बहुत अच्छी राय बनवाने और उनसे अपनी आराधना करवाने के इस लक्ष्य को कैसे हासिल करते हैं? वे इस बात की गवाही देते हैं कि उन्होंने कितना कार्य किया है, कितना अधिक दुःख भोगा है, स्वयं को कितना अधिक खपाया है, और क्या कीमत चुकाई है। वे अपनी पूँजी के बारे में बातें करके अपनी बड़ाई करते हैं, जो उन्हें लोगों के मन में अधिक ऊँचा, अधिक मजबूत, अधिक सुरक्षित स्थान देता है, ताकि अधिक से अधिक लोग उनकी सराहना करें, उन्हें मान दें, उनकी प्रशंसा करें और यहाँ तक कि उनकी आराधना करें, उनका आदर करें और उनका अनुसरण करें। यह लक्ष्य हासिल करने के लिए लोग कई ऐसे काम करते हैं, जो ऊपरी तौर पर तो परमेश्वर की गवाही देते हैं, लेकिन वास्तव में वे अपनी बड़ाई करते हैं और अपनी गवाही देते हैं। क्या इस तरह पेश आना उचित है? वे तार्किकता के दायरे से परे हैं और उन्हें कोई शर्म नहीं है, अर्थात, वे निर्लज्ज ढंग से गवाही देते हैं कि उन्होंने परमेश्वर के लिए क्या-क्या किया है और उसके लिए कितना अधिक दुःख झेला है। वे तो अपनी योग्यताओं, प्रतिभाओं, अनुभव, विशेष कौशलों पर, सांसारिक आचरण की चतुर तकनीकों पर, लोगों के साथ खिलवाड़ के लिए प्रयुक्त अपने तौर-तरीकों पर इतराते तक हैं। अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने का उनका तरीका स्वयं पर इतराने और दूसरों को नीचा दिखाने के लिए है। वे छद्मावरणों और पाखंड का सहारा भी लेते हैं, जिनके द्वारा वे लोगों से अपनी कमजोरियाँ, कमियाँ और त्रुटियाँ छिपाते हैं, ताकि लोग हमेशा सिर्फ उनकी चमक-दमक ही देखें। जब वे नकारात्मक महसूस करते हैं तब भी दूसरे लोगों को बताने का साहस तक नहीं करते; उनमें लोगों के साथ खुलने और संगति करने का साहस नहीं होता, और जब वे कुछ गलत करते हैं, तो वे उसे छिपाने और उस पर लीपा-पोती करने में अपनी जी-जान लगा देते हैं। अपना कर्तव्य निभाने के दौरान उन्होंने कलीसिया के कार्य को जो नुकसान पहुँचाया होता है उसका तो वे जिक्र तक नहीं करते। जब उन्होंने कोई छोटा-मोटा योगदान किया होता है या कोई छोटी-सी कामयाबी हासिल की होती है, तो वे उसका दिखावा करने को तत्पर रहते हैं। वे सारी दुनिया को यह जानने देने का इंतजार नहीं कर सकते कि वे कितने समर्थ हैं, उनमें कितनी अधिक क्षमता है, वे कितने असाधारण हैं, और सामान्य लोगों से कितने बेहतर हैं। क्या यह अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने का ही तरीका नहीं है? क्या अपनी बड़ाई करना और अपनी गवाही देना ऐसी चीज है, जिसे कोई जमीर और विवेक वाला व्यक्ति करता है? नहीं। इसलिए जब लोग यह करते हैं, तो सामान्यतः कौन-सा स्वभाव प्रकट होता है? अहंकार। यह प्रकट होने वाले मुख्य स्वभावों में से एक है, जिसके बाद छल-कपट आता है, जिसमें यथासंभव वह सब करना शामिल है जिससे दूसरे उनके प्रति अत्यधिक सम्मान का भाव रखें। उनके शब्द पूरी तरह अकाट्य होते हैं और उनमें अभिप्रेरणाएँ और कुचक्र स्पष्ट रूप से होते हैं, वे अपनी खूबियों का प्रदर्शन करते हैं, फिर भी वे इस तथ्य को छिपाना चाहते हैं। वे जो कुछ कहते हैं, उसका परिणाम यह होता है कि लोगों को यह महसूस करवाया जाता है कि वे दूसरों से बेहतर हैं, कि उनके बराबर कोई नहीं है, कि हर कोई उनसे हीनतर है। और क्या यह परिणाम चालाकीपूर्ण साधनों से हासिल नहीं किया गया है? ऐसे साधनों के पीछे कौन-सा स्वभाव है? और क्या उसमें दुष्टता के कोई तत्त्व हैं? (हैं।) यह एक प्रकार का दुष्ट स्वभाव है। देखा जा सकता है कि उनके द्वारा प्रयुक्त ये साधन कपटपूर्ण स्वभाव से निर्देशित होते हैं—तो मैं क्यों कहता हूँ कि यह दुष्टतापूर्ण है? दुष्टता के साथ इसका क्या संबंध है? आप लोग क्या सोचते हो : अपनी बड़ाई करने और अपने बारे में गवाही देने के अपने लक्ष्यों के बारे में क्या वे निष्कपट हो सकते हैं? नहीं हो सकते। लेकिन उनके दिलों की गहराइयों में हमेशा एक आकांक्षा होती है, और जो कुछ भी वे कहते और करते हैं वह उस आकांक्षा को बल प्रदान करता है, और वे जो कुछ कहते और करते हैं, उसके लक्ष्य और प्रयोजन बहुत गुप्त रखे जाते हैं। उदाहरण के लिए, इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए वे गुमराह करने वाली या किन्हीं संदिग्ध चालों का इस्तेमाल करेंगे। क्या इस तरह का दुराव-छिपाव अपनी प्रकृति में ही धूर्ततापूर्ण नहीं है? क्या इस तरह की धूर्तता को दुष्टता नहीं कहा जा सकता? (हाँ।) इसे निश्चय ही दुष्टता कहा जा सकता है, और इसकी जड़ें छल-कपट से कहीं ज्यादा गहराई तक फैली होती हैं। वे अपने लक्ष्य प्राप्त करने के लिए एक निश्चित तरीका या विधि का प्रयोग करते हैं। यह स्वभाव धोखेबाजी है। तथापि, उनके दिलों की गहराइयों में हर समय व्याप्त यह महत्वाकांक्षा और इच्छा कि लोग उनका अनुसरण करें, उनकी प्रशंसा करें, और नित्य उनकी आराधना करें, उन्हें अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने, तथा इन कार्यों को अनैतिकता और बेशर्मी से करने के लिए निर्देशित करती है। यह कैसा स्वभाव है? यह दुष्टता के स्तर तक पहुँच जाता है। दुष्टता सामान्य संकीर्ण मानसिकता या धूर्त होने और झूठ बोलने से कहीं अधिक है। यदि कोई व्यक्ति सामान्य भ्रष्टता से दुष्टता के स्तर तक पहुँच सकता है, तो क्या इसका अर्थ यह नहीं है कि वह कहीं ज्यादा भीतर तक भ्रष्ट है? (इसका यही अर्थ होता है।) तो दुष्टता के स्तर का वर्णन करो—इसे व्यक्त करने का उपयुक्त तरीका क्या है? कोई व्यक्ति सामान्य भ्रष्टता से दुष्टता तक क्यों पहुँच जाता है? क्या तुम इस मामले को स्पष्ट रूप से समझ सकते हो? धूर्तता और दुष्टता के बीच क्या अंतर है? जिस तरह से वे अभिव्यक्त होती हैं उस दृष्टिकोण से देखें तो दुष्टता और धूर्तता में नजदीकी संबंध है, लेकिन दुष्टता अधिक गंभीर है—यह धूर्तता का अपनी चरम सीमा पर होना है। यदि किसी व्यक्ति के बारे में कहा जाए कि वह दुष्ट स्वभाव का है, तो वह व्यक्ति सामान्य रूप से धूर्त नहीं है, चूँकि सामान्य धूर्तता का केवल यह अर्थ हो सकता है कि वह आदतन झूठा है या अपने कार्यों में बहुत ईमानदार नहीं है, जबकि दुष्टता अधिक गंभीर होती है और धूर्तता के मुकाबले इसका स्तर अधिक गहरा होता है। दुष्ट स्वभाव वाले व्यक्ति की धूर्तता औसत व्यक्ति की तुलना में अधिक और गंभीर होती है, तथा काम करने के उसके साधन एवं तरीके, और उसके क्रियाकलापों के पीछे के षड्यंत्र, सभी गहरी चालाकियों एवं रहस्यों से भरे होते हैं, और अधिकांश लोग उन्हें समझ नहीं सकते हैं। यही दुष्टता है।
एक मसीह-विरोधी द्वारा अपनी बड़ाई करना और गवाही देना एक औसत व्यक्ति के ऐसा करने से कैसे अलग है? औसत व्यक्ति अक्सर शेखी बघारता है और दिखावा करता है ताकि लोग उसके बारे में ऊँचा सोचें, और उसके पास इन स्वभावों और अवस्थाओं की अभिव्यक्तियाँ भी होंगी, तो एक मसीह-विरोधी द्वारा अपनी बड़ाई करना और गवाही देना ऐसा करने वाले सामान्य लोगों से कैसे अलग हैं? अंतर कहाँ है? तुम्हें इस संबंध में स्पष्ट होना चाहिए—कभी-कभार अपनी बड़ाई करने या शेखी बघारने की सभी अभिव्यक्तियों को मसीह-विरोधियों की श्रेणी में शामिल मत करो। क्या यह एक संकल्पनात्मक त्रुटि नहीं है? (हाँ।) तो इस मामले को स्पष्ट रूप से अलग कैसे किया जा सकता है? अंतर कहाँ है? यदि तुम इसके बारे में स्पष्ट रूप से बता सको, तो तुम अच्छी तरह से समझ सकते हो कि मसीह-विरोधी का सार क्या है। इसे समझने का प्रयास करो। (एक मसीह-विरोधी का काम करने का तरीका अधिक गुप्त होता है; वह कुछ ऐसे साधनों का उपयोग करता है जो लोगों को गुमराह करने के लिए बहुत उचित प्रतीत होते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि वह एक उचित मामले के बारे में बोल रहा है, किन्तु इससे पहले कि तुम इसे जानो, वह किसी को इसका पता चलने दिए बिना, अपनी बड़ाई करना और गवाही देना शुरू कर देता है। उसके साधन अपेक्षाकृत अधिक गुप्त होते हैं।) अपेक्षाकृत अधिक गुप्त साधन—यह उसे अपनी बड़ाई करने और गवाही देने के उसके तरीके से अलग करना है। क्या इसके अलावा कुछ और भी है? मुझे बताओ कि होशोहवास में अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने और अनजाने में ऐसा करने की प्रकृति के बीच क्या अंतर है? (इरादे अलग-अलग हैं।) क्या यहीं पर अंतर नहीं है? (हाँ।) जब भ्रष्ट स्वभाव वाला एक औसत व्यक्ति अपनी बड़ाई करता है और इतराता है, तो वह केवल दिखावा करने के लिए ऐसा करता है। एक बार दिखावा हो गया, तो बात खत्म, और उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि दूसरे लोग उसके बारे में अच्छा सोचते हैं या बुरा। उसका इरादा अधिक स्पष्ट नहीं है, यह बस एक स्वभाव है जो उसे नियंत्रित कर रहा है, उस स्वभाव का बस एक प्रकटन है। बस इतना ही। क्या इस तरह के स्वभाव को बदलना आसान है? यदि ऐसा व्यक्ति सत्य का अनुसरण करता है, तो वह धीरे-धीरे बदलने में सक्षम होगा, जब वह काट-छाँट, न्याय और ताड़ना का अनुभव करेगा। उसमें धीरे-धीरे शर्म एवं तर्क-शक्ति की भावना और बढ़ेगी, और वह इस प्रकार के व्यवहार को कम-से-कम प्रदर्शित करेगा। वह इस प्रकार के व्यवहार की निंदा करेगा, और वह संयम बरतेगा तथा स्वयं पर लगाम लगाएगा। यह अनजाने में अपनी बड़ाई करना और अपनी गवाही देना ही है। यद्यपि होशोहवास में अपनी बड़ाई करना और अपनी गवाही देना और यही कार्य अनजाने में करना, इन दोनों के निहित स्वभाव एक जैसे ही हैं, लेकिन दोनों की प्रकृति भिन्न है। प्रकृति में वे दोनों कैसे भिन्न हैं? होशोहवास में अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने का काम इरादे से किया जाता है। जो लोग ऐसा करते हैं वे यूँ ही नहीं बोल रहे होते हैं—हर बार जब वे अपनी बड़ाई करते हैं और अपनी गवाही देते हैं, तो उनके निश्चित इरादे और छिपे हुए उद्देश्य होते हैं, और वे शैतानी महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं के चलते ऐसे काम करते हैं। ऊपरी तौर पर, यह उसी प्रकार की अभिव्यक्ति प्रतीत होती है। दोनों मामलों में, लोग अपनी बड़ाई कर रहे हैं और अपनी गवाही दे रहे हैं, लेकिन अनजाने में अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने को परमेश्वर कैसे परिभाषित करता है? भ्रष्ट स्वभाव के प्रकटन के रूप में। और होशोहवास में अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने को परमेश्वर कैसे परिभाषित करता है? एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जो लोगों को गुमराह करना चाहता है, जिसका इरादा है कि लोग उसके बारे में ऊँचा सोचें, उसकी आराधना करें, उसकी प्रशंसा करें और फिर उसका अनुसरण करें। उसके क्रियाकलापों की प्रकृति गुमराह करने वाली है। इसलिए, जैसे ही उसका इरादा लोगों को गुमराह करने और लोगों को अपने अधीन करने का होता है ताकि वे उसका अनुसरण करें और उसकी आराधना करें, तो वह बोलते और कार्य करते समय कुछ ऐसे साधनों और तरीकों का उपयोग करेगा जो आसानी से उन लोगों को गुमराह और पथभ्रष्ट कर सकते हैं जो सत्य नहीं समझते हैं और जिनका आधार मजबूत नहीं है। ऐसे लोगों में न केवल विवेक की कमी होती है, बल्कि, इसके विपरीत, उन्हें लगता है कि यह व्यक्ति जो कहता है वही सही है, और हो सकता है वे उसकी प्रशंसा करें और उसके प्रति ऊँचा सोचें, और समय के साथ वे उसकी आराधना और उसका अनुसरण करने लगेंगे। दैनिक जीवन में एक सबसे आम घटना यह है कि कोई व्यक्ति उपदेश सुनने के बाद उसे अच्छी तरह से समझता हुआ प्रतीत होता है, परन्तु बाद में जब उस पर आपदाएँ आती हैं, तो उसे नहीं पता होता है कि इन्हें कैसे हल किया जाए। वह प्रार्थना करने के लिए परमेश्वर के सामने जाता है, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं होता है, और अंत में, उसे इस मामले के बारे में पता लगाने के लिए अपने अगुआ के पास जाना पड़ता है और उससे समाधान पूछना पड़ता है। हर बार उस पर कोई समस्या आने पर, वह इसका समाधान अपने अगुआ से पूछना चाहता है। यह ऐसा ही है जैसे अफीम पीना कुछ लोगों के लिए एक लत और एक पैटर्न बन जाता है, और कुछ ही समय में, वे इसे पिए बिना नहीं रह सकते। इसलिए, मसीह-विरोधियों का अपनी बड़ाई करना और अपनी गवाही देना उन लोगों के लिए एक प्रकार का नशा बन जाता है जो छोटे आध्यात्मिक कद के, अविवेकी, मूर्ख और अज्ञानी हैं। जब भी उन पर कोई समस्या आती है, वे इसके बारे में पूछने के लिए मसीह-विरोधी के पास जाएँगे, और यदि मसीह-विरोधी कोई आदेश नहीं देता है, तो वे कुछ भी करने की हिम्मत नहीं करते, भले ही इस मामले पर सभी लोग पहले से ही चर्चा कर आम सहमति पर पहुँच चुके हों। वे मसीह-विरोधी की इच्छा के विरुद्ध जाने और दबाए जाने से डरते हैं, इसलिए हर मामले में, वे मसीह-विरोधी के बोलने के बाद ही कार्रवाई करने का साहस करते हैं। भले ही उन्होंने सत्य सिद्धांतों को स्पष्ट रूप से समझ लिया हो, फिर भी वे कोई निर्णय लेने या मामले को सँभालने की हिम्मत नहीं करते हैं, इसके बजाय वे उस “स्वामी” की प्रतीक्षा करते हैं जिसकी ओर वे अंतिम फैसले और निर्णय के लिए आदर से देखते हैं। यदि उनका स्वामी कुछ नहीं कहता है, तो जो कोई भी इस मामले को सँभाल रहा है, वह इस बारे में अनिश्चित महसूस करेगा कि उसे क्या करना चाहिए। क्या इन लोगों के विचारों को विषाक्त नहीं कर दिया गया है? (उन्हें विषाक्त कर दिया गया है।) विषाक्त किए जाने का यही अर्थ है। उनके विचारों को इतना अधिक विषाक्त करने के लिए, मसीह-विरोधी को कितना काम करना पड़ेगा, और मसीह-विरोधी को उनके भीतर कितने विषाक्त विचार डालने होंगे ताकि वे बहक जाएँ? यदि मसीह-विरोधी बार-बार स्वयं का गहन-विश्लेषण करें, और स्वयं को जानने लगें, और अक्सर अपनी कमजोरियाँ, गलतियाँ, और अपराध खुले में लोगों को दिखाने लगें, तो क्या अभी भी हर कोई उनकी ऐसे ही आराधना करेगा? बिल्कुल नहीं। ऐसा प्रतीत होता है कि मसीह-विरोधी अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने के लिए काफी प्रयास करते हैं, यही वजह है कि उन्होंने इतनी “सफलता” हासिल की है। वे यही परिणाम चाहते हैं। उनके बिना, किसी को पता नहीं होगा कि अपने कर्तव्यों को सही ढंग से कैसे निभाना है, और हर कोई पूरी तरह से असमंजस में रहेगा। यह स्पष्ट है कि इन लोगों को नियंत्रित करते समय, मसीह-विरोधी उनके भीतर चुपके से अनेक विषाक्त विचार डाल देते हैं और इसके लिए वे काफी मेहनत करते हैं! यदि वे केवल कुछ शब्द ही कहते, तो क्या ये लोग तब भी उनसे इसी तरह विवश होते? कतई नहीं। जब मसीह-विरोधी औरों से अपनी आराधना करवाने, और हर मामले में अपनी प्रशंसा करवाने और अपनी बात मनवाने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में कामयाब हो जाते हैं, तो क्या उन्होंने ऐसे बहुत से काम नहीं किए हैं और ऐसे बहुत से शब्द नहीं कहे हैं जो उनकी बड़ाई करते हैं और उनकी गवाही देते हैं? ऐसा करने से उन्हें क्या परिणाम प्राप्त होता है? परिणाम यह है कि लोगों के पास कोई रास्ता नहीं होगा और वे उनके बिना जी नहीं पाएँगे—यह ऐसा है कि मानो आसमान टूट पड़ेगा और पृथ्वी उनके बिना घूमना बंद कर देगी, और परमेश्वर पर विश्वास करने का कोई मूल्य या अर्थ नहीं रहेगा, और धर्मोपदेश सुनना बेकार हो जाएगा। यह ऐसा भी है कि मसीह-विरोधी के आसपास होने पर उन्हें अपने जीवन में कुछ उम्मीद नजर आती है, और यदि मसीह-विरोधी की मृत्यु हो जाए तो वे सारी उम्मीद खो देंगे। क्या इन लोगों को शैतान ने बंदी नहीं बना लिया है? (उन्हें बंदी बना लिया गया है।) और क्या इस तरह के लोग इसी लायक नहीं हैं? (वे इसी लायक हैं।) हम ऐसा क्यों कहते हैं कि वे इसी लायक हैं? परमेश्वर एक है जिसमें तुम विश्वास करते हो, तो तुम मसीह-विरोधियों की आराधना और उनका अनुसरण क्यों करते हो, और हर मोड़ पर तुम उन्हें स्वयं को विवश और नियंत्रित क्यों करने देते हो? इसके अलावा, व्यक्ति चाहे कोई भी कर्तव्य क्यों न कर रहा हो, परमेश्वर के घर ने लोगों को स्पष्ट सिद्धांत और नियम प्रदान किए हैं। यदि कोई ऐसी कठिनाई है जिसे व्यक्ति अपने आप हल नहीं कर सकता है, तो उसे किसी ऐसे व्यक्ति से राय लेनी चाहिए जो सत्य समझता हो, और अधिक गंभीर मामलों में ऊपरवाले से राय लेनी चाहिए। लेकिन न केवल तुम सत्य की खोज नहीं करते हो, बल्कि इसके विपरीत, तुम इन मसीह-विरोधियों की बातों पर विश्वास करके लोगों की आराधना करते हो और उनकी प्रशंसा करते हो। इसलिए तुम शैतान के नौकर बन गए हो, और क्या इसके लिए केवल तुम स्वयं ही जिम्मेदार नहीं हो? क्या तुम इसी लायक नहीं हो? अपनी बड़ाई करना और अपनी गवाही देना मसीह-विरोधियों में एक साझा व्यवहार और अभिव्यक्ति है, और सबसे आम अभिव्यक्ति यही है। मसीह-विरोधी कैसे अपनी बड़ाई करते हैं और अपनी गवाही देते हैं, इसका मुख्य लक्षण क्या है? एक औसत व्यक्ति जिस तरह अपनी बड़ाई करता है और अपनी गवाही देता है, यह उससे किस तरह से अलग है? ऐसा है कि इस कार्रवाई के पीछे मसीह-विरोधियों का अपना इरादा होता है, और वे इसे अनजाने में बिल्कुल नहीं कर रहे होते हैं। बल्कि, वे इरादों, इच्छाओं और महत्वाकांक्षाओं को पाल रहे होते हैं, और इस तरह से अपनी गवाही देने के परिणामों पर विचार करना भी बहुत भयावह है—वे लोगों को गुमराह और नियंत्रित कर सकते हैं।
मैं एक उदाहरण देता हूँ। तुम लोग विचार कर सकते हो कि इस प्रकार की अभिव्यक्ति और स्वभाव अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने से संबंधित है या नहीं। एक समय की बात है, एक अगुआ था जो किसी स्थान पर दो-तीन साल से कलीसिया का काम करता था। वह कई कलीसियाओं में घूम चुका था, और फिर आखिरकार उसने अपनी जड़ें वहीं जमा लीं। इसका क्या मतलब है कि उसने अपनी जड़ें जमा लीं? इसका मतलब है कि अधिकांश लोग उसे जानते थे और उसके प्रति अच्छे विचार रखते थे, और यह कि वह उस जगह अपेक्षाकृत खासा मशहूर था। जैसे ही लोग उसे देखते, वे उसका स्वागत करते, अपना स्थान उसे दे देते, और खाने के लिए उसे अच्छी चीजें भेंट करते। कोई भी उसके विरोध में आवाज नहीं उठाता था, उसका विरोध करने वाला कोई नहीं था, हर कोई इस अगुआ को अच्छे-से जानता था, और अंतरमन में वे सभी उसके काम करने के तरीके से काफी खुश थे और उसके नेतृत्व को स्वीकार रहे थे। यह पूरी तरह से नहीं पता है कि अगुआ ने वहाँ कितना काम किया था, उसने कितना बोला या किस बारे में बोला; ये जानकारी अज्ञात है, लेकिन संक्षेप में, अधिकांश लोगों ने उसके नेतृत्व को काफी हद तक स्वीकार किया था। कुछ समय बीतने के बाद, अगुआ ने कहा : “यहाँ के सभी भाई-बहन आज्ञाकारी तथा समर्पित हैं, और कलीसिया में सब कुछ अच्छा चल रहा है। दुर्भाग्य से, एक चीज है जो पूरी तरह से संतोषजनक नहीं है, वह यह है कि यहाँ का परिवेश खराब है। अगर परिवेश उपयुक्त होता, तो हम किसी अच्छे, धूप वाले दिन हजारों लोगों के साथ एक बड़ी सभा करने किसी बड़े पार्क में जाते, और एक माइक्रोफोन और लाउडस्पीकरों के सेट का उपयोग करके सत्य को व्यक्त करते, और अधिक लोगों को परमेश्वर में विश्वास करने के लिए प्रेरित करते। तब क्या हमारे काम का फल नहीं मिलता?” इसे सुनने के बाद, हरेक ने कहा, “आमीन” और इसे स्वीकार कर लिया। मुझे बताओ, क्या इस वाक्यांश “हम सत्य को व्यक्त करते” से कोई समस्या है? (हाँ।) क्या समस्या है? (अगुआ स्वयं को परमेश्वर मान रहा था।) तुम सभी लोगों ने पहचाना कि इससे समस्या है, लेकिन वहाँ उपस्थित भ्रमित लोगों ने इसे नहीं पहचाना। यहाँ तक कि उन्होंने इस वाक्य का जवाब “आमीन” कहकर दिया! क्या सत्य को इस अगुआ ने व्यक्त किया है? वह कौन है? वह एक आम अगुआ है; उसने कुछ साल काम किया और फिर सोचने लगा कि वह हर किसी से श्रेष्ठ है और यह भूल गया कि वह कौन है, और वह सत्य भी व्यक्त करना चाहता है—जो उसके लिए एक बहुत ही मुश्किल काम होगा। इससे क्या साबित होता है? इससे साबित होता है कि उसे नहीं पता कि वह कौन है, और उसे नहीं पता कि वह कौन सा कर्तव्य निभा रहा है। चूँकि उसका स्वभाव इस तरह का है, तो क्या उसके सामान्य कार्य या भाषण का कोई हिस्सा सत्य के अनुरूप है? उसके सामान्य कार्य और भाषण निश्चित रूप से भ्रमित और शैतानी शब्दों से भरे हुए हैं, और उनसे कलीसिया के लिए आपूर्ति और सिंचाई करने का परिणाम बिल्कुल प्राप्त नहीं किया जा सकता है। उसे तो यह भी नहीं पता कि सत्य क्या है, सत्य व्यक्त करना तो बहुत दूर की बात है। बस दो-तीन साल कहीं काम करके उसे लगा कि उसके पास थोड़ी प्रतिष्ठा और पूँजी है, और फिर वह भूल गया कि वह कौन है, वह स्वयं को बहुत अच्छा समझने लगा था, और सत्य को व्यक्त करना चाहता था। क्या ऐसी गलत धारणा रखना घिनौना नहीं है? यह गलत धारणा कहाँ से आती है? क्या उसे मानसिक विकार था, या यह एक क्षणिक आवेग था? उसने थोड़ा काम किया, स्थानीय कलीसिया में किसी ने भी उसका विरोध नहीं किया, और ऐसा प्रतीत होता था कि उसके लिए सब कुछ सुचारू रूप से चल रहा था, इसलिए उसने मान लिया कि सब कुछ उसके किए हुए कार्य का परिणाम था, और अचानक उसे लगा कि वह इसका श्रेय ले सकता है। उसने सोचा, “यदि मैं ऐसे उल्लेखनीय कार्य कर सकता हूँ, तो क्या मैं परमेश्वर नहीं हूँ? और अगर मैं परमेश्वर हूँ, तो मुझे अभी बहुत ही बुरी तरह से दबाया जा रहा है—अगर परिवेश बेहतर होता, तो मैं सत्य व्यक्त कर सकता था!” उसके मन में अचानक यह विचार आया। क्या उसके दिमाग में कुछ गड़बड़ तो नहीं है? (हाँ।) उसके दिमाग में कुछ गड़बड़ है। क्या उसमें तर्क की कमी नहीं है? क्या शैतानों और मसीह-विरोधियों के कार्यों और शब्दों में सामान्य मानवता का तर्क हो सकता है? बिल्कुल नहीं हो सकता। इस अगुआ ने थोड़ा काम किया और कुछ परिणाम हासिल किए, फिर अचानक भूल गया कि वह इंसान है। क्या इसका ऐसे अनुचित शब्द उगलने में सक्षम होना उसके स्वभाव से संबंधित नहीं है? (है।) यह कैसे संबंधित है? क्या वह स्वभाव से एक अनुयायी बनने के लिए तैयार है? क्या उसे पता है कि वह परमेश्वर का केवल एक साधारण अनुयायी है? उसे बिल्कुल पता नहीं है। उसका मानना है कि उसकी स्थिति और पहचान अन्य सभी से कहीं अधिक सम्मानजनक और श्रेष्ठ है। क्या तुम्हें इस प्रकार के व्यवहार और इसकी प्रकृति की जानकारी नहीं है? शैतान को हवा में क्यों फेंक दिया गया था? (वह परमेश्वर के बराबर बनना चाहता था।) क्योंकि वह परमेश्वर के बराबर बनना चाहता था। क्योंकि शैतान को ब्रह्मांड में अपने स्थान का पता नहीं था, उसे नहीं पता था कि वह कौन है, और उसे अपने स्वयं के माप का पता नहीं था, इसलिए जब परमेश्वर ने शैतान को उसी स्थान पर चलने की अनुमति दी जहाँ वह था, तो शैतान ने सोचना शुरू कर दिया कि वह परमेश्वर है। वह उन कार्यों को करना चाहता था जो परमेश्वर ने किए थे, वह उसका प्रतिनिधित्व करना चाहता था, उसका स्थान लेना चाहता था, और उसके अस्तित्व को नकारना चाहता था, और परिणामस्वरूप, उसे हवा में फेंक दिया गया। मसीह-विरोधी भी उसी तरह का काम करते हैं, उनके कार्यों की प्रकृति भी वैसी ही होती है, और शैतान तथा उनका स्रोत एक ही होता है। एक मसीह-विरोधी के लिए, ऐसी अभिव्यक्ति कभी-कभार का प्रकटन या किसी वहम का परिणाम नहीं है—यह वास्तव में उसकी शैतानी प्रकृति का प्रभुत्व है और उसके शैतानी स्वभाव का स्वाभाविक प्रकटन है। उस अगुआ की अभिव्यक्ति की प्रकृति क्या है जिसके बारे में मैंने अभी बात की? (यह अभिव्यक्ति मसीह-विरोधी की है।) हम अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने के मद में इस अभिव्यक्ति पर चर्चा क्यों कर रहे हैं? अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने से संबंधित इस अभिव्यक्ति की प्रकृति कैसी है? उसने जो शब्द बोलें “सत्य को व्यक्त करते” उनकी प्रकृति क्या है? मुझे ऐसा क्यों कहना पड़ता है कि ये शब्द अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने से संबंधित हैं? (इस अगुआ का मानना था कि वह लोगों को सत्य प्रदान कर सकता है।) उसका यही अर्थ था। जब उसने ऐसी बातें कही, तो उसे सुनने वाले लोगों ने सोचा, “तुम्हारा इतना प्रभावी अंदाज है, और तुम इतने उम्दा लहजे में बात कर सकते हो—क्या इस लहजे में परमेश्वर को बात नहीं करनी चाहिए? क्या इस तरह का प्रभावी अंदाज और व्यापक मन परमेश्वर में नहीं होना चाहिए?” क्या इस अगुआ ने अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने के लक्ष्य को हासिल नहीं कर लिया है? उसने अनजाने में ही लोगों में अपने लिए सम्मान, आराधना, और प्रशंसा की भावनाएँ उत्पन्न कर दी हैं। क्या ऐसा नहीं था? (हाँ।) यह मसीह-विरोधी का छिपा हुआ रूप है; यह वह मसीह-विरोधी है जो गुप्त रूप से अपनी बड़ाई कर रहा है और अपनी गवाही दे रहा है।
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