मद पंद्रह : वे परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते और वे मसीह के सार को नकारते हैं (भाग दो) खंड तीन

ख. मसीह-विरोधी मसीह की सामान्यता और व्यावहारिकता से कैसे पेश आते हैं

अभी-अभी हमने मसीह-विरोधियों की मसीह के सार को नकारने वाली पहली अभिव्यक्ति पर संगति की और उसका विश्लेषण किया, जो यह है कि मसीह-विरोधी मसीह की उत्पत्ति से कैसे पेश आते हैं, वे क्या विचार और समझ रखते हैं और क्या क्रियाकलाप करते हैं। ऐसे लोगों के सार की पहचान करने के लिए हमने मसीह-विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों का विश्लेषण किया। मसीह के दूसरे पहलू—उसकी सामान्यता और व्यावहारिकता—के बारे में मसीह-विरोधी क्या विचार रखते हैं, वे क्या क्रियाकलाप करते हैं, और वे कौन-से स्वभाव और सार प्रदर्शित करते हैं? इसके बाद हम मसीह-विरोधियों की मसीह के सार को नकारने वाली दूसरी अभिव्यक्ति का विश्लेषण करेंगे, जो यह है कि मसीह-विरोधी मसीह की सामान्यता और व्यावहारिकता से कैसे पेश आते हैं। जब सामान्यता और व्यावहारिकता की बात आती है, तो ज्यादातर लोगों के कुछ निश्चित विचार और समझ होनी चाहिए। उदाहरण के लिए, तीन दिनों तक पानी न पीना या खाना न खाना, लेकिन भूखा या प्यासा महसूस न करना, और वास्तव में पहले की तुलना में शारीरिक रूप से ज्यादा मजबूत और ऊर्जावान महसूस करना—क्या इसे सामान्यता और व्यावहारिकता माना जाता है? सामान्य लोग चार-पाँच किलोमीटर चलने के बाद थक जाते हैं; अगर मसीह 40 किलोमीटर चलने के बाद भी थका हुआ महसूस नहीं करता और उसके पैरों में दर्द नहीं होता, यहाँ तक कि वह हवा से भी हलका होता है, ज्यादा ऊर्जावान महसूस करता है, तो क्या इसे सामान्य और व्यावहारिक माना जा सकता है? अगर मसीह को ठंड में सर्दी नहीं लगती और वह किसी भी परिस्थिति में कभी बीमार नहीं पड़ता, अगर उसकी आँखें उन सभी तेज रोशनियों से, जिनमें वे देखती हैं, दर्जनों गुना ज्यादा तेज रोशनी उत्सर्जित कर सकती हैं, और चाहे वह कितनी भी देर तक कंप्यूटर देखता रहे, उसकी आँखें नहीं थकतीं, न ही दूर की चीजें देखने में धुँधलाहट होती, अगर वह चाहे जितनी देर भी देखे, सूर्य की रोशनी में उसकी आँखें नहीं चौंधियातीं, और रात में चलते समय उसे टॉर्च की जरूरत नहीं पड़ती, जबकि दूसरों को पड़ती है, और जैसे-जैसे दिन चढ़ता है, उसकी आँखें ज्यादा चमकदार हो जाती हैं—क्या इन्हें सामान्यता और व्यावहारिकता माना जाता है? इनमें से किसी को भी सामान्यता और व्यावहारिकता नहीं माना जाता, यह सामान्य ज्ञान है जिसके संपर्क में लोग अक्सर आते हैं। सामान्यता और व्यावहारिकता का अर्थ है लंबे समय तक पानी न पीने के बाद प्यास महसूस करना, बहुत बात करने के बाद थकान महसूस करना, बहुत चलने के बाद पैरों में दर्द महसूस करना, और दुखद और हृदयविदारक खबर सुनकर दुखी होना और आँसू बहाना—यह सामान्यता और व्यावहारिकता है। तो, सामान्यता और व्यावहारिकता की सटीक परिभाषा क्या है? जो देह की सामान्य जरूरतों और प्रवृत्तियों के अनुरूप हो, और इस सीमा से आगे न बढ़े, सामान्यता और व्यावहारिकता की यही परिभाषा है। जो कुछ सामान्य मानवता की क्षमताओं और दायरे के अनुरूप हो, सामान्य मानवता की तर्कसंगतता और सामान्य मानवता की भावनाओं, जैसे खुशी, गुस्सा, दुख और आनंद, के अनुरूप हो, वह सामान्यता और व्यावहारिकता के दायरे में आता है। मसीह पृथ्वी पर परमेश्वर द्वारा पहना गया देह है; किसी भी सामान्य व्यक्ति की तरह ही, उसकी सामान्य बोलचाल और व्यवहार, सामान्य जीवन-दिनचर्या और कार्यक्रम होते हैं। अगर वह तीन दिन और तीन रात न सोए तो उसे नींद आएगी और वह खड़े-खड़े भी सोना चाहेगा; अगर वह पूरे दिन न खाए तो उसे भूख लगेगी; और अगर वह लंबे समय तक चले तो वह थक जाएगा, और जल्दी आराम करने के सिवाय कुछ नहीं चाहेगा। उदाहरण के लिए, मैं भी तीन-चार घंटे तुम लोगों के साथ सभा और संगति करने के बाद थक जाता हूँ, और मुझे भी आराम करने की जरूरत पड़ती है। यह देह की सामान्यता और व्यावहारिकता है, यह पूरी तरह से देह की विशेषताओं और सामान्य मानवता की विभिन्न अभिव्यक्तियों और प्रवृत्तियों के अनुरूप है, यह अलौकिक बिल्कुल नहीं है। इसलिए, ऐसे देह में मानवता की कई अभिव्यक्तियाँ और प्रकाशन होते हैं, और इस देह की मानवता की बाहरी जीवन-शैली और जीवन-चर्या हर साधारण, सामान्य व्यक्ति द्वारा अभिव्यक्त और प्रकट की जाने वाली चीजों से अलग नहीं होतीं, वे बिल्कुल एक-जैसी होती हैं। परमेश्वर ने मानवजाति का निर्माण किया, और देहधारी परमेश्वर के देह में मानवजाति जैसी ही विशेषताएँ और सामान्य, व्यावहारिक जीवन-प्रवृत्तियाँ हैं, वह अलौकिक बिल्कुल भी नहीं है। मनुष्य दीवारों या बंद दरवाजों से नहीं गुजर सकते, और देहधारी परमेश्वर भी ऐसा ही है। कुछ लोग कहते हैं, “क्या तुम देहधारी परमेश्वर नहीं हो? क्या तुम मसीह नहीं हो? क्या तुममें परमेश्वर का सार नहीं है? क्या तुम्हें वास्तव में बंद दरवाजे से रोका जा सकता है? तुम्हें बंद दरवाजे से गुजरने में सक्षम होना चाहिए। लोग पाँच किलोमीटर चलने के बाद थक जाते हैं, लेकिन तुम्हें 40 किलोमीटर चलने के बाद भी थकान महसूस नहीं होनी चाहिए; लोग दिन में तीन बार खाना खाते हैं, लेकिन तुम्हें 30 दिनों तक कुछ न खाने में सक्षम होना चाहिए, सिर्फ तभी खाना चाहिए जब तुम्हारा मन करे और जब तुम्हारा मन न करे तब नहीं खाना चाहिए, और फिर भी सभाओं में उपदेश देने में सक्षम होना चाहिए, और दूसरों की तुलना में ज्यादा उत्साह से जीना चाहिए। बीमार पड़ना मानव-जीवन का एक हिस्सा है, लेकिन तुम्हें बीमार नहीं पड़ना चाहिए। चूँकि तुम मसीह हो, इसलिए तुम्हारा एक पक्ष ऐसा होना चाहिए जो सामान्य लोगों से अलग हो, तभी तुम मसीह कहलाने योग्य होगे, सिर्फ यही यह साबित करेगा कि तुममें परमेश्वर का सार है।” क्या यह सही है? (नहीं।) यह गलत कैसे है? ये सत्य नहीं, बल्कि इंसानी धारणाएँ और कल्पनाएँ हैं।

देहधारी परमेश्वर का देह सामान्य और व्यावहारिक है—उसकी सामान्य मानवता द्वारा की जाने वाली तमाम गतिविधियाँ, और उसका दैनिक जीवन, बोलचाल और आचरण, सब सकारात्मक चीजों की वास्तविकताएँ हैं। शुरू से ही, जब परमेश्वर ने मनुष्यों को बनाया, उसने उन्हें ये सामान्य, व्यावहारिक प्रवृत्तियाँ प्रदान कीं; इसलिए देहधारी परमेश्वर का देह भी कभी इन नियमों का उल्लंघन नहीं करेगा। यही कारण और आधार है कि मसीह की सामान्यता और व्यावहारिकता सकारात्मक चीजें हैं। परमेश्वर ने मानवता का निर्माण किया, और उसकी सभी अभिव्यक्तियों और प्रवृत्तियों को बिल्कुल अपनी इच्छा के अनुसार बनाया। परमेश्वर ने मनुष्य को ये प्रवृत्तियाँ दीं, और ये मनुष्य के दैनिक जीवन के नियम हैं—क्या परमेश्वर अपने देहधारी देह को सामान्यता और व्यावहारिकता के इन नियमों का उल्लंघन करने देगा? स्पष्ट रूप से, परमेश्वर ऐसा नहीं करेगा। परमेश्वर ने मानवजाति का निर्माण किया, और वह देहधारी देह भी परमेश्वर है—वे एक ही स्रोत से आते हैं, इसलिए उनके क्रियाकलापों के सिद्धांत और उद्देश्य भी एक ही हैं। मसीह की सामान्यता और व्यावहारिकता की अभिव्यक्तियों के कारण वह स्वाभाविक रूप से लोगों की नजरों में एक अत्यंत साधारण व्यक्ति प्रतीत होता है। बहुत-सी चीजों में उसके पास पूर्वज्ञान और दूरदर्शिता की शक्तियों का अभाव है जिनकी लोग उसके पास होने की कल्पना करते हैं, और वह चीजों को गायब या प्रकट नहीं कर सकता, जैसी कि लोग कल्पना करते हैं, और वह साधारण लोगों, देह की क्षमताओं और सहज प्रवृत्तियों से बढ़कर तो बिल्कुल नहीं हो सकता, या मनुष्यों की सामान्य सोच से परे जाकर कुछ ऐसी चीजें नहीं कर सकता जिन्हें कोई व्यक्ति नहीं कर सकता, जैसा कि लोग कल्पना करते हैं। इन कल्पनाओं के विपरीत, इस साधारण व्यक्ति ने अपने कार्य के आरंभ से लेकर वर्तमान तक परमेश्वर का एक भी संकेत प्रकट या अभिव्यक्त नहीं किया है, जिसे मनुष्य अपनी आँखों से देख सके। उसके भाषण और कार्य के अलावा उसकी किसी भी सामान्य इंसानी गतिविधियों में परमेश्वर का कोई भी संकेत या परमेश्वर की पहचान और सार का प्रकाशन मनुष्य अपनी आँखों से नहीं देख सकता। लोग उसे कैसे भी देखें, वह उन्हें हमेशा एक साधारण व्यक्ति की तरह ही दिखाई देता है। क्यों? कारण एक ही है : मनुष्य जो देखता है वह सही है; देहधारी परमेश्वर का देह वास्तव में एक सामान्य, व्यावहारिक व्यक्ति, एक सामान्य, व्यावहारिक देह है। बाहरी तौर पर ऐसा सामान्य और व्यावहारिक देह अन्य लोगों की तरह ही बड़े लाल अजगर के उत्पीड़न और धर-पकड़ का अनुभव करता है, उसके पास सिर छिपाने के लिए कोई जगह नहीं होती, या आराम करने के लिए कोई स्थान नहीं होता। इस मामले में वह किसी भी अन्य मनुष्य से अलग नहीं है, और वह कोई अपवाद नहीं है। ऐसे उत्पीड़न का अनुभव करते समय वह जहाँ कहीं खुद को छिपा सकता है, छिपा लेता है; वह खुद को अदृश्य नहीं बना सकता या भागकर भूमिगत नहीं हो सकता, इन खतरों से बचने के लिए उसके पास अलौकिक शक्तियाँ नहीं हैं। वह सिर्फ इतना कर सकता है कि उनके बारे में पहले से जानकारी प्राप्त कर ले और फिर जल्दी से वहाँ से भाग जाए। खतरनाक स्थितियाँ सामने आने पर लोग घबरा जाते हैं और डर जाते हैं, क्या तुम लोगों को लगता है कि मसीह को डर लगता है? क्या तुम्हें लगता है कि वह घबरा जाता है? (हाँ।) तुमने सही कहा; तुम लोग कैसे जानते हो? (उस स्थिति में कोई भी सामान्य व्यक्ति घबरा जाएगा।) सही कहा। तुमने इसे बहुत अच्छी तरह से बताया है। तुम लोग वास्तव में सामान्यता और व्यावहारिकता को समझते हो, तुमने इसे पूरी तरह से समझ लिया है। मसीह भी इन स्थितियों में घबराएगा और डर जाएगा, लेकिन क्या वह कायरता दिखाएगा? क्या वह सत्तारूढ़ पार्टी से भयभीत महसूस करेगा? क्या वह उससे समझौता करेगा? नहीं। वह सिर्फ घबराएगा और डरेगा, तथा राक्षसों की इस माँद से जल्दी से जल्दी बच निकलना चाहेगा। ये सब मसीह की सामान्यता और व्यावहारिकता की अभिव्यक्तियाँ हैं। बेशक, मसीह की सामान्यता और व्यावहारिकता की कुछ और अभिव्यक्तियाँ भी हैं, जैसे कि कभी-कभी भुलक्कड़ हो जाना, लोगों को लंबे समय तक न देखने के बाद उनके नाम भूल जाना, इत्यादि। सामान्यता और व्यावहारिकता एक सामान्य, साधारण व्यक्ति की विशेषताएँ, सहज प्रवृत्तियाँ, चिह्न और संकेत भर हैं। चूँकि मसीह में सामान्य, व्यावहारिक मानवता, जीवित रहने की सहज प्रवृत्तियाँ और देह की तमाम विशेषताएँ हैं, ठीक इसीलिए वह सामान्य रूप से बोल और काम कर सकता है, लोगों के साथ सामान्य रूप से बातचीत कर सकता है, लोगों की सामान्य और व्यावहारिक तरीके से अगुआई कर सकता है, और लोगों को अपने कर्तव्य सामान्य और व्यावहारिक तरीके से करने में मार्गदर्शन और मदद भी कर सकता है। यह मसीह की सामान्यता और व्यावहारिकता की वजह से ही है कि सभी सृजित मनुष्य परमेश्वर के कार्य की व्यावहारिकता ज्यादा महसूस करते हैं, उस कार्य से लाभ उठाते हैं, और उससे ज्यादा ठोस और उपयोगी लाभ प्राप्त करते हैं। मसीह की सामान्यता और व्यावहारिकता सामान्य मानवता के लक्षण हैं, वे उसके देहधारी देह के लिए समस्त सामान्य कार्य, गतिविधियों और मानव-जीवन में शामिल होने के लिए आवश्यक हैं, और इससे भी बढ़कर, वे ऐसी चीजें हैं जिनकी परमेश्वर का अनुसरण करने वाले सभी लोगों को जरूरत होती है। लेकिन मसीह-विरोधी मसीह की सामान्यता और व्यावहारिकता को इस तरह से नहीं समझते। मसीह-विरोधी मसीह को सिर्फ एक साधारण व्यक्ति मानते हैं, क्योंकि वह सामान्य और व्यावहारिक है और मनुष्य के बहुत समान है—जिसका अर्थ है कि वह परमेश्वर का पुत्र, मनुष्यों के बीच परमेश्वर का मूर्त रूप, या मसीह कहलाने के अयोग्य है, क्योंकि वह बहुत सामान्य और व्यावहारिक है, इस हद तक व्यावहारिक है कि लोग उसमें परमेश्वर का कोई संकेत या सार नहीं देख सकते। मसीह-विरोधी कहते हैं, “क्या ऐसा परमेश्वर लोगों को बचा सकता है? क्या ऐसा परमेश्वर मसीह कहलाने योग्य है? यह परमेश्वर, परमेश्वर से बहुत भिन्न है! परमेश्वर के बारे में मनुष्य की धारणाओं के कई तत्त्व उसमें नहीं हैं : पहला, उसका अलौकिक, असाधारण और रहस्यमय होना; दूसरा, उसके पास महाशक्तियाँ होना और प्रबल शक्ति प्रदर्शित करने की क्षमता होना; तीसरा, उसका परमेश्वर जैसा दिखना, उसमें परमेश्वर की पहचान, गरिमा और सार होना, इत्यादि। अगर इनमें से कोई भी तत्त्व उसमें नहीं देखा जा सकता, तो वह परमेश्वर कैसे हो सकता है? क्या उसके द्वारा वे कुछ वचन बोलने और वह छोटा-सा कार्य करने का यह अर्थ है कि वह परमेश्वर है? तब तो परमेश्वर बनना बहुत आसान है, है न? एक साधारण, सामान्य देह परमेश्वर कैसे हो सकता है?” यह ऐसी चीज है, जिसे मसीह-विरोधी कभी नहीं स्वीकार सकते।

चीन की मुख्यभूमि में बड़े लाल अजगर के उत्पीड़न का अनुभव करते समय कई भाई-बहनों के साथ मुझे, जहाँ भी हम जाते थे, अक्सर छिपना पड़ता था, और हमारे पास कोई व्यक्तिगत स्वतंत्रता नहीं होती थी। कभी-कभी खतरे की खबर सुनकर हमें जल्दी से भागना पड़ता था। इन परिस्थितियों में, मेरे साथ रहने वाले लोगों में से कोई भी कमजोर नहीं पड़ा। इसका क्या कारण था? क्या वे मूर्ख थे? क्या वे भोले-भाले थे? नहीं, ऐसा इसलिए था क्योंकि उन्होंने देहधारी परमेश्वर के सार को दृढ़ता से पहचान लिया था। उन्होंने न सिर्फ मसीह की सामान्यता और व्यावहारिकता के बारे में कोई धारणा नहीं रखी या निंदा नहीं की, बल्कि इन गुणों के प्रति विचारशीलता और समझ भी दिखाई, और उन्हें सही तरीके से समझा। मसीह ने जो भी कष्ट सहा, उसके साथ-साथ उन्होंने भी उसे सहा, और मसीह ने चाहे जो भी उत्पीड़न और धर-पकड़ सही, उन्होंने फिर भी बिना किसी शिकायत के उसका अनुसरण किया, वे इन परिस्थितियों के कारण कभी कमजोर नहीं पड़े। जब मैं कुछ स्थानों पर गया तो तब जाकर वहाँ के कुछ लोगों ने यह जानकर कि मैं खतरनाक परिवेशों से बचने के लिए जल्दबाजी में भागा हूँ और शायद मेरे रहने के लिए कोई और जगह नहीं है और शायद मैं आराम करने के लिए कहीं और जगह नहीं ढूँढ़ पाऊँगा—मन ही मन सोचा : “हुँ! तुम मसीह, देहधारी परमेश्वर की देह होने का दावा करते हो, फिर भी देखो तुम किस दयनीय स्थिति में हो। तुम मसीह होने योग्य कैसे हो? तुम किस तरह से परमेश्वर जैसे दिखते हो? तुम्हें लगता है कि तुम दूसरों को बचा सकते हो? तुम्हें जल्दी से पहले खुद को बचाना चाहिए! क्या तुम्हारा अनुसरण करने से आशीष मिल सकते हैं? यह असंभव लगता है! अगर तुम्हारे वचन दूसरों को बचा सकते हैं, तो वे तुम्हें क्यों नहीं बचा सकते? अब खुद को देखो, तुम्हारे पास सिर रखने के लिए भी जगह नहीं है, और तुम्हें हम मनुष्यों से, शक्तिशाली लोगों से मदद माँगनी पड़ती है। अगर तुम परमेश्वर हो, तो तुम्हें इतना दयनीय नहीं होना चाहिए। अगर तुम देहधारी परमेश्वर के देह हो, तो तुम्हें बेघर नहीं होना चाहिए!” इसलिए, ऐसे लोग इस मामले को कभी समझ नहीं पाते। अगर किसी दिन वे देखते हैं कि राज्य का सुसमाचार विदेशों में फैल रहा है, विभिन्न देशों में कई लोग उसे स्वीकार रहे हैं, और यह देखते हैं कि बड़े लाल अजगर का पतन हो गया है, परमेश्वर के अनुयायी अपना सिर ऊँचा उठाए हुए हैं, और अब उन्हें सताया नहीं जाता, और वे शासन कर रहे और शक्ति का उपयोग कर रहे हैं और कोई उन पर धौंस जमाने की हिम्मत नहीं कर रहा है, तो वे निश्चित रूप से अपना ठेठ रवैया पूरी तरह से बदल लेंगे, और अब परमेश्वर द्वारा देह में हुकूमत करने के बारे में धारणाएँ नहीं पालेंगे। ऐसा अचानक परिवर्तन क्यों होगा? ये व्यक्ति सिर्फ आँखों देखी पर भरोसा करते हैं; वे यह नहीं मानते कि परमेश्वर के वचन सत्य हैं, वह सर्वशक्तिमान है या वह जो कुछ भी कहता है वह सच होगा। क्या ऐसे लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं? वे किसमें विश्वास करते हैं? (शक्ति में।) क्या मसीह के पास शक्ति है? भ्रष्ट मानवजाति के बीच मसीह के पास कोई शक्ति नहीं है। कुछ लोग कहते हैं, “क्या परमेश्वर के पास अधिकार नहीं है? अगर मसीह का सार परमेश्वर है, तो फिर उसके पास परमेश्वर का अधिकार क्यों नहीं है? अधिकार शक्ति से कहीं ज्यादा बड़ा होता है, तो क्या उसके पास शक्ति भी नहीं होनी चाहिए?” देहधारी परमेश्वर के कार्य का क्या उद्देश्य है? देहधारी परमेश्वर की क्या जिम्मेदारी है? क्या यह शक्ति भाँजना है? (नहीं।) इसलिए, किसी भी सामान्य व्यक्ति की तरह, उसे इस दुनिया से अस्वीकृति, अपमान, बदनामी और शत्रुता सहनी पड़ती है—मसीह को ये सब चीजें सहनी होंगी, वह इनसे मुक्त नहीं है।

जो लोग वास्तव में सत्य का अनुसरण करते हैं, वे न सिर्फ मसीह की सामान्यता और व्यावहारिकता के बारे में कोई धारणा नहीं रखते—बल्कि, इसके विपरीत, वे इन गुणों में परमेश्वर की मनोहरता और ज्यादा देखते हैं, और इनके जरिये परमेश्वर के सच्चे सार और सृष्टिकर्ता के सच्चे सार की बेहतर समझ प्राप्त करते हैं। परमेश्वर के बारे में उनकी समझ ज्यादा गहरी, ज्यादा व्यावहारिक, ज्यादा वास्तविक और ज्यादा सटीक हो जाती है। इसके विपरीत, मसीह-विरोधी अक्सर मसीह की समस्त सामान्यता और व्यावहारिकता के कारण इस तरह के मसीह का अनुसरण करने के अनिच्छुक होते हैं, वे सोचते हैं कि उसमें अलौकिक क्षमताओं का अभाव है और वह साधारण लोगों से अलग नहीं है, और इसके अलावा वह मानवजाति के समान ही जीवन-परिवेश का अनुभव करता है। मसीह-विरोधी न सिर्फ यह सब खुशी से स्वीकारने और इससे परमेश्वर के स्वभाव को समझने में असमर्थ होते हैं, बल्कि वे इसकी निंदा भी करते हैं और इससे बचते भी हैं, और इससे भी बढ़कर, इसके बारे में आरोप भी लगाते हैं। उदाहरण के लिए, जब कोई ऐसा कुछ करता है जो सिद्धांतों के विरुद्ध है, अगर मैं उसके बारे में नहीं पूछता और कोई मुझे उसके बारे में नहीं बताता, तो मुझे उसके बारे में पता नहीं चलेगा—क्या यह ऐसी अभिव्यक्ति नहीं है जो सामान्यता और व्यावहारिकता के दायरे में आती है? (बिल्कुल।) जो लोग सही समझ और सामान्य मानवता रखते हैं, वे मुझे मामला स्पष्ट रूप से और पूरी तरह से बताएँगे, और फिर मुझे उससे जैसे मैं ठीक समझूँ वैसे निपटने देंगे। मसीह-विरोधी इसके बिल्कुल विपरीत करते हैं; वे मुझे अपनी आँखों से देखते हैं और मुझसे सूचनाएँ निकलवाकर मेरी परीक्षा लेते हैं। फिर वे मन ही मन सोचते हैं, “चूँकि तुम इस मामले के बारे में नहीं जानते, इसलिए इसे सँभालना आसान है—अगर तुम इसके बारे में जानते हो तो मेरे पास तुमसे निपटने की एक योजना है और अगर नहीं जानते तो मेरे पास तुमसे निपटने की दूसरी योजना है; कोई बड़ा मुद्दा होगा तो मैं उसे छोटे मुद्दे जैसा दिखाऊँगा, और फिर उसे इतना छोटा कर दूँगा कि बिल्कुल शून्य लगे, तुम्हें पूरी तरह से अँधेरे में रखूँगा, और इस मामले को खत्म होने दूँगा—चूँकि तुम इस मुद्दे से अनजान हो, इसलिए तुम्हें आगे इसके बारे में जानने की जरूरत नहीं है या तुम्हें इसके बारे में जानना नहीं पड़ेगा। इसका जिम्मा मैं ले लूँगा। जब किसी दिन तुम्हें इसके बारे में पता चलेगा, तो यह पहले ही उस तरह हो चुका होगा जैसे मैं चाहता हूँ, और तब तुम मेरा क्या कर लोगे?” मसीह के साथ इस तरह कौन-से लोग पेश आते हैं? क्या वे अच्छे लोग होते हैं? क्या वे सत्य का अनुसरण करने वाले लोग होते हैं? क्या उनमें मानवता और ईमानदारी होती है? (नहीं।) कुछ अगुआ थे, जिन्होंने कुछ खास चीजें कीं; उन्होंने कलीसिया में लोगों को मनमाने ढंग से पदोन्नत किया, चढ़ावे बरबाद किए, और बेतरतीब ढंग से हद से ज्यादा खरीदारी की, और चाहे जितना भी पैसा खर्च किया गया हो या जो भी महत्वपूर्ण मुद्दा सामने आया हो, उन्होंने उसके बारे में एक शब्द नहीं कहा। मैं कई बार वहाँ गया, और उन्होंने कभी मुझसे इन चीजों के बारे में सलाह नहीं ली, न ही मुझसे पूछा, उन्होंने बस खुद ही निर्णय ले लिए; उन्होंने मुझे कोई जाँच-परख भी पूरी नहीं करने दी, और मुझे उनसे मुश्किल से जानकारी निकालनी पड़ी। वे मेरे साथ एक बाहरी व्यक्ति की तरह पेश आए : “चूँकि तुम यहाँ हो, इसलिए हम बस तुम्हें रिपोर्ट करेंगे और तुम्हें बताएँगे कि तुम अपने सामने क्या देख सकते हो। जहाँ तक उन चीजों का सवाल है जो हमने तुम्हारी पीठ पीछे की हैं, बेहतर होगा कि तुम उनमें से किसी के बारे में पता लगाने की कोशिश न करो। हम तुम्हें हस्तक्षेप करने या पूछताछ करने की अनुमति नहीं देंगे।” मैं जितनी भी बार गया, उन्होंने मुझे कभी कोई पूछताछ नहीं करने दी। इस डर से कि मैं सवाल पूछना शुरू कर सकता हूँ, उन्होंने जानबूझकर झूठे, अच्छे लगने वाले शब्दों से सच्चाई छिपाई, छल-कपट किया। उन्होंने आपस में साँठ-गाँठ की, आम सहमति पर पहुँचे, और अर्थपूर्ण नजरों से एक-दूसरे को देखा; उन्होंने एकजुटता बनाए रखी, और एक-दूसरे की समस्याओं की रिपोर्ट नहीं की, एक-दूसरे को बचाते रहे। जब मुझे पता चला कि वे मेरी पीठ के पीछे क्या कर रहे थे और मैंने उन्हें जवाबदेह ठहराना चाहा, तो वे एक-दूसरे को बचाते रहे, उन्होंने यह नहीं बताया कि कौन जिम्मेदार है, भोले-भाले होने का अभिनय करते रहे और मेरे साथ शब्दों का खेल खेलते रहे। उन्होंने क्या गलती की? उन्होंने सोचा, “अपनी सामान्य, सरल सोच और साधारण, सामान्य मानवता के अलावा, मसीह—इस साधारण व्यक्ति—के पास घमंड करने लायक कुछ नहीं है और कोई अलौकिक शक्तियाँ नहीं हैं। चूँकि ऐसा है, इसलिए हम तुम्हारी पीठ पीछे कुछ छोटी-मोटी गतिविधियाँ कर सकते हैं, और अपने उद्यमों में संलग्न होने में सहज महसूस कर सकते हैं। कलीसिया के पैसे का नियंत्रण हमारे हाथों में है, इसलिए हम जो चाहें खरीदेंगे। जब हस्ताक्षर की जरूरत होती है तो हमें किसी से पूछने की जरूरत नहीं होती, हम बिना किसी समीक्षा की जरूरत के मनमाने ढंग से खरीदारियों पर हस्ताक्षर कर सकते हैं और पैसा लापरवाही से खर्च कर सकते हैं। क्या मसीह परमेश्वर नहीं है? क्या तुम इन चीजों पर नियंत्रण रख सकते हो? हम जैसा चाहेंगे वैसा करेंगे; जब तुम आस-पास होते हो उस समय को छोड़कर बाकी समय यह सब हमारा अधिकार-क्षेत्र है!” उन्होंने मसीह की सामान्यता और व्यावहारिकता को कैसे लिया? क्या उन्होंने उसे ऐसा व्यक्ति नहीं समझा, जिसे धमकाना आसान है? उन्होंने सोचा, “अगर तुममें सामान्य मानवता है, तो हम तुम्हें धमकाने से नहीं डरते। अगर तुममें अलौकिक मानवता नहीं है, तो हम तुमसे नहीं डरते।” वे किस तरह के लोग थे? अगर उनको मानवता के संदर्भ में आँका जाए, तो क्या वे अच्छे लोग माने जाएँगे? क्या वे ऐसे लोग माने जाएँगे, जिनमें शिष्टाचार और मानवता है? क्या वे ऐसे लोग माने जाएँगे, जिनमें नेक ईमानदारी है? वे वास्तव में क्या थे? क्या वे बदमाशों का गिरोह नहीं थे? जब ये लोग परमेश्वर के घर में काम करते थे, तो किसका प्रतिनिधित्व करते थे? यहाँ तक कि वे मनुष्य का प्रतिनिधित्व भी नहीं करते थे, वे शैतान का प्रतिनिधित्व करते थे। वे शैतान के लिए काम करते थे, वे उसके सेवक और साथी थे; वे यहाँ परमेश्वर के घर का काम बिगाड़ने और बरबाद करने के लिए थे, वे अपने कर्तव्य नहीं निभा रहे थे बल्कि बुरे कर्म कर रहे थे। शैतान के जुर्म में सहभागियों का यह गिरोह उस बड़े लाल अजगर से भिन्न कैसे था, जो परमेश्वर के चुने हुए लोगों को पकड़ता, सताता और उनके साथ दुर्व्यवहार करता है? बड़ा लाल अजगर देखता है कि परमेश्वर का देहधारी देह सिर्फ एक साधारण व्यक्ति है, वह बिल्कुल भी डरावना नहीं है, इसलिए वह मनमाने ढंग से उसे पकड़ने की कोशिश करता है, और जब वह उसे पकड़ लेगा, तो उसे मारने की कोशिश करेगा। क्या शैतान के ये जुर्म के साथी, ये मसीह-विरोधी, मसीह के साथ इसी तरह पेश नहीं आते थे? क्या उनका सार एक-जैसा नहीं है? (बिल्कुल है।) उन्होंने अपने विश्वास में मसीह को क्या माना? वे उसमें परमेश्वर की तरह विश्वास करते थे या एक इंसान की तरह? अगर वे मसीह को परमेश्वर मानते, तो क्या वे उसके साथ इस तरह पेश आते? (नहीं।) इसका सिर्फ एक ही स्पष्टीकरण है : उन्होंने मसीह को एक इंसान के रूप में देखा, एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा, जिसकी वे लापरवाही से आलोचना कर सकते थे, जिसे वे धोखा दे सकते थे, जिसके साथ वे खिलवाड़ कर सकते थे, जिसका वे तिरस्कार कर सकते थे और जिसके साथ जैसे चाहे पेश आ सकते थे; इसका मतलब है कि वे बहुत साहसी थे। अगर हम ऐसे दुस्साहसी लोगों को वर्गीकृत करें, तो क्या उन्हें सृजित प्राणियों, परमेश्वर के चुने हुए लोगों, उसके अनुयायियों, उसके द्वारा पूर्ण किए जा सकने वाले लोगों और उसके द्वारा बचाए जा सकने वाले लोगों की श्रेणी और समूह में रखा जा सकता है? (नहीं।) ऐसे कचरे को कहाँ डालना चाहिए? शैतान के खेमे में। इस समूह के लोगों को मसीह-विरोधियों के रूप में निरूपित किया जाता है। उन्होंने मसीह के साथ एक साधारण व्यक्ति जैसा व्यवहार किया, और स्वेच्छाचारिता और लापरवाही से काम किया और अपने प्रभाव के दायरे में पूरी शक्ति का इस्तेमाल किया, और सोचा, “चाहे जो भी मुद्दा हो, अगर मैं तुमसे नहीं पूछता या तुम्हें इसके बारे में सूचित नहीं करता, तो तुम्हें हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है, और तुम्हें इसके बारे में कभी पता नहीं चलेगा।” मुझे बताओ, क्या मसीह को उनसे निपटने का अधिकार है? (बिल्कुल है।) ऐसा करने का उचित तरीका क्या होगा? (उन्हें कलीसिया से निकाल दो।) मसीह-विरोधियों और शैतानों से इसी तरह निपटना चाहिए; उनके प्रति नरमी नहीं दिखानी चाहिए। जब ऐसे लोग परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, तो परमेश्वर चाहे जो भी करे, वह लोगों को चाहे जैसे सत्य प्रदान करे, या वह जो भी कार्य करे, वे उस पर ध्यान नहीं देते। अगर उनके पास शक्ति नहीं होती, तो वे उसे प्राप्त करने के तरीकों के बारे में सोचते हैं, और जब वे सत्ता में आ जाते हैं, तो वे मसीह के साथ समान स्तर पर खड़े होने, उसके साथ दुनिया को बाँटने का प्रयास करते हैं, यह देखने के लिए प्रतिस्पर्धा करने का प्रयास करते हैं कि उनमें श्रेष्ठ कौन है, और उसके साथ रुतबे के लिए प्रतियोगिता करने का प्रयास करते हैं। अपने प्रभाव के दायरे में, वे मसीह को यह कहते हुए चुनौती देना चाहते हैं, “मैं देखना चाहता हूँ कि किसके शब्द ज्यादा महत्व रखते हैं, तुम्हारे या मेरे। यह कलीसिया मेरा क्षेत्र है; मैं कलीसिया के पैसे जैसे चाहूँ खर्च करूँगा, जो चाहूँगा खरीदूँगा, और मामले अपनी इच्छानुसार सँभालूँगा। जिस भी व्यक्ति को मैं बेकार मानता हूँ, वह बेकार है। मैं जिनका उपयोग करना चाहूँगा, उनका उपयोग करूँगा, और किसी को भी उन लोगों को छूने की अनुमति नहीं है जिनका मैं उपयोग करना चाहता हूँ। अगर कोई ऐसा करता है, तो मैं कभी भी मामले को खत्म नहीं होने दूँगा—भले ही परमेश्वर कहे कि वह ऐसा करना चाहता है, मैं इसे स्वीकार नहीं करूँगा!” क्या यह मौत को आमंत्रित करना नहीं है?

अगर लोग परमेश्वर की मनोहरता को ज्यादा समझने लगते हैं और देहधारी परमेश्वर की सामान्य और व्यावहारिक मानवता के जरिये परमेश्वर की व्यावहारिकता और सार की ज्यादा स्पष्ट और ज्यादा सटीक समझ प्राप्त कर लेते हैं, तो वे ऐसे लोग होते हैं जो सत्य का अनुसरण करते हैं और जिनमें मानवता होती है। लेकिन कुछ लोग मसीह को उसके सामान्य, व्यावहारिक पक्ष के कारण परमेश्वर नहीं मानते। वे उसके सामने ज्यादा ढीठ और निर्भीक हो जाते हैं, वे स्वतंत्र रूप से कार्य करने के लिए ज्यादा साहसी हो जाते हैं, और वे मसीह से आगे निकलने और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नियंत्रित करने के विचारों से ज्यादा ग्रस्त हो जाते हैं। उन्हें लगता है कि उनके पास मसीह से घृणा और प्रतिस्पर्धा करने के लिए पूँजी है, और मसीह को एक इंसान मानने के लिए सबूत है। उन्हें लगता है कि इस सबूत को प्राप्त करने के बाद उन्हें मसीह से डरने की जरूरत नहीं है और वे स्वतंत्र रूप से उसकी आलोचना कर सकते हैं, उसके साथ लापरवाही से बातचीत और हँसी-ठट्टा कर सकते हैं और खुद को उसके बराबर रख सकते हैं, और उससे अपने घरेलू मामलों और व्यक्तिगत परेशानियों पर चर्चा कर सकते हैं। कुछ लोग तो यह तक कहते हैं, “मैंने अपने आंतरिक विचार, कमजोरियाँ और भ्रष्ट स्वभाव तुम्हारे साथ साझा कर दिए हैं, इसलिए मुझे अपनी अवस्था के बारे में बताओ। मैंने तुम्हें परमेश्वर में विश्वास करने से पहले के और बाद के अपने अनुभवों के बारे में बता दिया है, और मैंने तुम्हें यह भी बता दिया है कि मैंने परमेश्वर का कार्य कैसे स्वीकारा, इसलिए अपने अनुभव मेरे साथ साझा करो।” वे क्या करने का प्रयास कर रहे हैं? क्या वे देहधारी परमेश्वर को बहुत साधारण और सामान्य नहीं मानते, और क्या वे उसे परिवार के सदस्य, यार, दोस्त या पड़ोसी में बदलना नहीं चाहते? चाहे मसीह कितना भी सामान्य और व्यावहारिक क्यों न हो, उसका सार कभी नहीं बदलेगा। चाहे उसकी उम्र कुछ भी हो, वह कहीं भी पैदा हुआ हो, या उसकी योग्यताएँ और अनुभव तुम्हारी तुलना में कैसे भी हों, चाहे वह तुम्हें उच्च लगे या क्षुद्र, यह कभी मत भूलना कि वह हमेशा तुमसे अलग रहेगा। ऐसा क्यों है? वह बाहरी तौर पर सामान्य और व्यावहारिक देह में रहने वाला परमेश्वर है; उसका सार तुमसे हमेशा अलग है; उसका सार सर्वोच्च परमेश्वर का है, जो हमेशा-हमेशा के लिए समस्त मानवजाति से ऊपर है। इसे मत भूलना। सतह पर वह एक साधारण और सामान्य व्यक्ति प्रतीत होता है, उसे मसीह कहा जाता है और उसके पास मसीह की पहचान है, लेकिन अगर तुम अपने विश्वास में उसे एक इंसान मानते हो, और उसे एक साधारण व्यक्ति, भ्रष्ट मानवजाति के सदस्य के रूप में देखते हो, तो तुम खतरे में हो। मसीह की पहचान और सार कभी नहीं बदलता, उसका सार परमेश्वर का सार है और उसकी पहचान हमेशा परमेश्वर की पहचान है। वह एक सामान्य, व्यावहारिक देह के खोल के भीतर रहता है, इस तथ्य का यह मतलब नहीं कि वह भ्रष्ट मानवजाति का सदस्य है, न ही इसका मतलब यह है कि मनुष्य उसे बहका या नियंत्रित कर सकते हैं, या वे उसके बराबर हो सकते हैं या सत्ता के लिए उसके साथ होड़ कर सकते हैं। अगर लोग उसे एक इंसान के रूप में देखते हैं और उसे इंसानी तरीकों और दृष्टिकोणों का उपयोग करके मापते हैं, और उसे एक दोस्त, साथी, सहकर्मी या वरिष्ठ अधिकारी में बदलने की कोशिश करते हैं, तो वे खुद को एक खतरनाक स्थिति में डाल रहे हैं। यह खतरनाक क्यों है? अगर तुम मसीह को एक साधारण, सामान्य इंसान के रूप में देखते हो, तो तुम्हारे भ्रष्ट स्वभाव उभरने लगेंगे। जिस क्षण से तुम मसीह को इंसान मानोगे, तुम्हारे बुरे कर्म उजागर होने लगेंगे। क्या यह खतरनाक भाग नहीं है? अगर लोग मसीह को मनुष्य के रूप में देखते हैं और सोचते हैं कि वह सामान्य और व्यावहारिक है, उसे धोखा देना आसान है, और वह मनुष्य के समान ही है, तो वे परमेश्वर का भय नहीं मानते, और इस समय परमेश्वर के साथ उनका रिश्ता बदल जाता है। यह रिश्ता क्या बन जाता है? उनका रिश्ता अब एक सृजित मनुष्य और सृष्टिकर्ता का नहीं रह जाता, वह अब एक अनुयायी और मसीह का रिश्ता नहीं रह जाता, और वह अब उद्धार के पात्र और परमेश्वर का रिश्ता नहीं रह जाता, इसके बजाय वह शैतान और सभी चीजों के संप्रभु का रिश्ता बन जाता है। लोग परमेश्वर के विरोध में खड़े हो जाते हैं और उसके शत्रु बन जाते हैं। जब तुम मसीह को मनुष्य के रूप में देखते हो, तो तुम परमेश्वर के सामने अपनी पहचान और उसकी नजरों में अपना मूल्य भी बदल देते हो; तुम अपने असंयम, विद्रोहशीलता, दुष्टता और अहंकार से अपनी संभावनाएँ और नियति पूरी तरह से नष्ट कर लेते हो। परमेश्वर सिर्फ इस आधार पर तुम्हें स्वीकारेगा, तुम्हारा मार्गदर्शन करेगा और तुम्हें जीवन और उद्धार प्राप्त करने का अवसर प्रदान करेगा कि तुम एक सृजित प्राणी हो, मसीह के अनुयायी हो, और ऐसे व्यक्ति हो जिसने परमेश्वर का उद्धार स्वीकारा है। अन्यथा परमेश्वर से तुम्हारा रिश्ता बदल जाएगा। जब लोग परमेश्वर, अर्थात् मसीह को एक व्यक्ति के रूप में देखते हैं, तो क्या वे मजाक नहीं कर रहे होते? लोग आमतौर पर इसे समस्या के रूप में नहीं देखते, वे सोचते हैं, “मसीह ने कहा कि वह एक साधारण और सामान्य व्यक्ति है, तो उसके साथ एक व्यक्ति की तरह पेश आने में क्या गलत है?” वास्तव में, इसमें गलत कुछ नहीं है, लेकिन इसके परिणाम गंभीर हैं। मसीह के साथ एक व्यक्ति की तरह पेश आने से तुम्हें कई लाभ हैं। एक ओर यह तुम्हारी प्रतिष्ठा बढ़ाता है, तो दूसरी ओर यह तुम्हारे और परमेश्वर के बीच की दूरी कम करता है, और इसके अलावा, तुम परमेश्वर की उपस्थिति में इतने औपचारिक नहीं होगे, तुम तनावमुक्त और स्वतंत्र महसूस करोगे। तुम्हारे पास अपने मानवाधिकार, स्वतंत्रता और अपने अस्तित्व के मूल्य की भावना होगी, और तुम अपनी उपस्थिति महसूस करोगे—क्या यह अच्छा नहीं है? किसी वास्तविक व्यक्ति के साथ इस तरह से व्यवहार करने में कुछ गलत नहीं है, यह दर्शाता है कि तुममें गरिमा और ईमानदारी है। मनुष्य को आसानी से झुकना नहीं चाहिए; लोगों को किसी व्यक्ति के सामने घुटने नहीं टेकने चाहिए, झुकना नहीं चाहिए, या आसानी से अपनी हीनता नहीं स्वीकारनी चाहिए—क्या मानव-अस्तित्व के कानून और मनुष्य के खेल के नियम यही नहीं हैं? बहुत-से लोग मसीह के साथ अपने व्यवहार में यही कानून और खेल के नियम लागू करते हैं। इसका अर्थ है परेशानी, और इससे परमेश्वर के स्वभाव को नाराज करने की बहुत संभावना है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि मानवजाति के सभी सदस्यों का प्रकृति-सार, चाहे वे किसी भी नस्ल के हों, एक-जैसा है। सिर्फ मसीह ही मानवजाति से भिन्न है। हालाँकि मसीह में सामान्यता और व्यावहारिकता का आभास है, और उसकी जीवन-शैली और दिनचर्या सामान्य, व्यावहारिक मानवता की है, फिर भी उसका सार किसी भ्रष्ट मनुष्य से भिन्न है। ठीक यही कारण है कि वह यह अपेक्षा करने के योग्य है कि उसके अनुयायी उसके साथ वैसा ही व्यवहार करें, जैसा वह चाहता है। मसीह के अलावा, कोई भी अन्य व्यक्ति लोगों से अपेक्षाएँ करने के लिए इन तरीकों और मानकों का उपयोग करने के योग्य नहीं है। क्यों? क्योंकि मसीह का सार स्वयं परमेश्वर है, और मसीह—यह साधारण, सामान्य व्यक्ति—एक सामान्य देह है जिसे परमेश्वर ने पहना है, और जो मनुष्यों के बीच परमेश्वर का देहधारण है। बस अकेले इसी आधार पर मसीह को एक व्यक्ति के रूप में देखना गलत है, उसके साथ एक व्यक्ति की तरह व्यवहार करना और भी गलत है, और उसके साथ छल करना, उसके साथ खिलवाड़ करना और उसके खिलाफ इस तरह लड़ना मानो वह एक व्यक्ति हो, और भी बुरा है। मसीह-विरोधी लोग, अर्थात् दुष्ट व्यक्तियों का यह गिरोह जो सत्य से घृणा करता है, इस महत्वपूर्ण समस्या और स्पष्ट भूल से हमेशा अनजान रहता है। ऐसा क्यों है? क्योंकि उनका प्रकृति-सार मसीह-विरोधियों का सार है। वे आध्यात्मिक क्षेत्र में परमेश्वर से लड़ते हैं, उसके साथ रुतबे के लिए होड़ करते हैं, उसे कभी परमेश्वर के रूप में संबोधित नहीं करते या उसके साथ वैसा व्यवहार नहीं करते। परमेश्वर के घर में वे यही व्यवहार दोहराते हैं, मसीह के साथ इसी तरह पेश आते हैं। उनके पूर्वज ने भी परमेश्वर के साथ इसी तरह से व्यवहार किया था, इसलिए इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं कि वे भी ऐसा ही व्यवहार किए बिना नहीं रह पाते। चूँकि वे इसी तरह व्यवहार किए बिना नहीं रह पाते और उनके प्रकृति-सार का पता लगाया जा चुका है, तो क्या ऐसे लोग अभी भी परमेश्वर द्वारा बचाए जा सकते हैं? क्या उन्हें परमेश्वर के घर से निकाल बाहर नहीं किया जाना चाहिए? क्या उन्हें परमेश्वर के सभी चुने हुए लोगों द्वारा अस्वीकार नहीं किया जाना चाहिए? (बिल्कुल।) क्या तुम लोगों में परमेश्वर के घर द्वारा ऐसे व्यक्तियों की निंदा करने, उन्हें बाहर निकालकर हटा देने के बारे में अभी भी धारणाएँ हैं? (नहीं।) क्या वे दया के पात्र हैं? (नहीं।) वे दया के पात्र क्यों नहीं हैं? वे कुत्सित और घृणित हैं, इसलिए वे दया के पात्र नहीं हैं।

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